कंगाल करने वाला कौलसेंटर : ठगी का नया तरीका

जयपुर के रहने वाले चरण सिंह शेखावत उस दिन घरेलू काम में व्यस्त थे, तभी उन के मोबाइल फोन की घंटी बजी. उन्होंने मोबाइल की स्क्रीन पर नजर डाली. जिस नंबर से फोन आ रहा था, वह नंबर उन का जानापहचाना नहीं था. उन्हें वह नंबर राजस्थान से बाहर का लगा. उन का बात करने का मन नहीं था, फिर भी उन्होंने यह सोच कर अनमने मन से फोन रिसीव किया कि फोन किसी परिचित का न हो. फोन रिसीव कर के उन्होंने जैसे ही कान से लगाया, दूसरी ओर से युवती की खनकती सी आवाज आई, ‘‘सर, आप जयपुर से चरण सिंह शेखावतजी बोल रहे हैं न?’’

‘‘जी, मैं चरण सिंह ही बोल रहा हूं.’’ उन्होंने युवती के सवाल पर सहज भाव से जवाब दिया.

‘‘सर, मैं नोएडा से इंडो सफायर जर्नीज लिमिटेड कंपनी से बोल रही हूं,’’ दूसरी ओर से युवती ने कहा, ‘‘हमारी कंपनी शेयर मार्केट से जुड़ी हुई है. हमारी कंपनी की नजर में ऐसी कुछ कंपनियां हैं, जिन में निवेश करने पर आप का पैसा एक साल में ही लगभग दोगुना हो सकता है.’’

एक साल में पैसा दोगुना होने की बात में दिलचस्पी लेते हुए चरण सिंह ने युवती से कई सवाल पूछे. उन के हर सवाल का जवाब उस ने आत्मविश्वास से दे कर उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा, ‘‘सर, आप पूरी तरह से निश्चिंत रहिए, आप का पैसा पूरी तरह सुरक्षित रहेगा. फिर भी अगर आप को किसी तरह की कोई शंका है तो मैं आप की बात कंपनी के बौस से करा दूंगी.’’

‘‘ठीक है, आप मेरी बात अपनी कंपनी के किसी बड़े औफिसर से करा देना. उस के बाद मैं विचार करूंगा.’’ चरण सिंह ने कहा. इसी के साथ नोएडा से आया फोन कट गया.

यह बात कोई दोढाई साल पहले की है. नोएडा से आए उस फोन के एकदो दिन बाद ही चरण सिंह शेखावत के मोबाइल पर फिर फोन आया. इस बार नंबर दूसरा था. दूसरी ओर से अनजान युवती बड़ी ही शिष्टता से हिंदी और अंगरेजी में बोल रही थी. चरण सिंह के हैलो कहते ही उस युवती ने कहा, ‘‘सर, मैं नोएडा से इंडो सफायर जर्नीज लिमिटेड कंपनी से बोल रही हूं. मैं कंपनी की वाइस चेयरपरसन हूं. एकदो दिन पहले आप की हमारी कंपनी की एग्जीक्यूटिव से बात हुई थी.’’

‘‘जी, नोएडा से एक फोन आया था,’’ चरण सिंह ने कहा, ‘‘एक लड़की बता रही थी कि शेयर कंपनियों में निवेश करने पर एक साल में ही रकम दोगुनी हो जाएगी.’’

‘‘सर, हमारी एग्जीक्यूटिव ने आप को बिलकुल सही बताया है.’’ दूसरी ओर से उस वाइस चेयरपरसन युवती ने कहा.

‘‘ऐसा कैसे संभव है कि एक साल में ही हमारा पैसा दोगुना हो जाएगा?’’ चरण सिंह ने थोड़ा हैरानी से पूछा.

युवती ने चरण सिंह की शंका को दूर करते हुए कहा, ‘‘सर, आप को पता ही होगा कि शेयर मार्केट में लिस्टेड कई कंपनियां ऐसी हैं, जिन के शेयरों के भाव एक साल में ही दोगुने से भी ज्यादा हो जाते हैं. हमारी कंपनी ने शेयर मार्केट के कई विशेषज्ञ हायर किए हुए हैं. वही विशेषज्ञ हमें बताते हैं कि आजकल किन कंपनियों में निवेश करने का अच्छा मौका है. हम आप जैसे लोगों से पैसा जुटा कर वैसी ही कंपनियों में निवेश करते हैं. उस के बदले जो रिटर्न मिलता है, वह हम अपने कस्टमर को दिलाते हैं. हमारी कंपनी इस काम का केवल कमीशन लेती है. यह आप के लिए अच्छा मौका है. आप हमारी कंपनी के साथ जुड़ कर शेयर मार्केट में निवेश कर के अच्छा रिटर्न हासिल कर सकते हैं.’’

‘‘ठीक है, मैं इस विषय पर सोच कर एकदो दिन में आप को बताता हूं.’’ चरण सिंह ने कहा.

अधेड़ उम्र के चरण सिंह शेखावत को शेयर मार्केट के बारे में ज्यादा कुछ जानकारी नहीं थी, लेकिन इतना तो पता ही था कि शेयर मार्केट में ऐसी कई कंपनियां हैं, जिन के शेयरों के भाव बहुत तेजी से चढ़तेगिरते रहते हैं. उन्होंने इस बारे में अपने एकदो परिचितों से बात की तो उन्होंने भी यही कहा कि शेयर कंपनियों में निवेश करने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन कोई भी निवेश करने से पहले उस कंपनी के बारे में अच्छी तरह से पता जरूर कर लेना.

चरण सिंह शेखावत कुछ समय पहले ही सरकारी नौकरी से रिटायर हुए थे. वह राजस्थान सरकार की सैकेंड ग्रेड की नौकरी में थे. रिटायर होने पर उन्हें ग्रैच्युटी एवं पीएफ वगैरह की एक बड़ी रकम मिली थी. वह रकम उन के बैंक खाते में जमा थी, जिसे वह कहीं निवेश करना चाहते थे. वह चाहते थे कि किसी ऐसी कंपनी में उन का पैसा निवेश किया जाए, जिस से उन्हें अच्छा रिटर्न मिलता रहे, ताकि बुढ़ापे में उन्हें किसी तरह की परेशानी न हो और जिंदगी आराम से गुजर सके.

कुछ दिनों बाद नोएडा की उस कंपनी से एक बार फिर चरण सिंह के मोबाइल पर फोन आया. इस बार तीसरे नंबर से फोन किया गया था. फोन करने वाली युवती ने अपना परिचय दे कर पूछा, ‘‘सर, आप ने शेयर बाजार की कंपनियों में निवेश के बारे में क्या विचार किया?’’

‘‘निवेश तो हम कर देंगे, लेकिन इस बात पर कैसे भरोसा किया जाए कि मुझे एक साल में करीब दोगुना रिटर्न मिल जाएगा?’’ चरण सिंह ने चिंता जाहिर करते हुए पूछा.

‘‘सर, आप निश्चिंत रहिए. हमारी कंपनी बाकायदा आप को लिखित पेपर्स देगी, जिस में साफ लिखा होगा कि हम आप के पैसों का शेयर मार्केट में लिस्टेड कंपनियों में निवेश करेंगे और अच्छा रिटर्न दिलवाएंगे.’’ युवती ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा.

‘‘चलो ठीक है, आप की बात मान लेता हूं. लेकिन हमें करना क्या होगा?’’ चरण सिंह ने पूछा.

‘‘सर, आप को पहले हमारी कंपनी में रजिस्ट्रेशन करवाना होगा.’’ युवती ने कहा.

‘‘ठीक है, आप हमारा रजिस्ट्रेशन कर दीजिए.’’ चरण सिंह ने कहा.

‘‘सर, कंपनी में रजिस्ट्रेशन कराने के लिए आप को 12 हजार रुपए जमा कराने होंगे.’’ युवती ने कहा, ‘‘आप चाहें तो यह पैसा हमारी कंपनी के बैंक खाते में औनलाइन जमा करा सकते हैं. आप हमारा बैंक एकाउंट नंबर नोट कर लीजिए.’’

चरण सिंह ने बैंक एकाउंट नंबर नोट करते हुए कहा, ‘‘ठीक है, मैं एकदो दिन में आप की कंपनी के खाते में रजिस्ट्रेशन फीस के 12 हजार रुपए जमा करा दूंगा.’’

चरण सिंह ने युवती द्वारा बताए बैंक एकाउंट में 12 हजार रुपए औनलाइन जमा करा दिए. पैसे जमा कराने के कुछ समय बाद ही उन के मोबाइल पर मैसेज आ गया कि उन का कंपनी में रजिस्टे्रशन हो गया है. उन्हें कंपनी की ओर से एक रजिस्ट्रेशन नंबर भी दिया गया.

कंपनी में रजिस्ट्रेशन होने के बाद चरण सिंह को कंपनी से फोन कर के शेयर मार्केट की अलगअलग लिस्टेड कंपनियों के नाम बता कर उन्हें निवेश की सलाह देते हुए रकम की मांग की जाती रही. इस में खास बात यह रही कि चरण सिंह के पास जब भी नोएडा की उस कंपनी से फोन आता था, नए नंबर से ही आता था. चरण सिंह ने इस बात पर कभी ध्यान नहीं दिया. उन्होंने भरोसा करते हुए अलगअलग समय पर 42 लाख रुपए से ज्यादा की रकम नोएडा की उस कंपनी के बैंक खातों में जमा करा दी.

इस बीच कूरियर से चरण सिंह के पास कागजात भी आते रहे. उन कागजातों में बताया गया था कि कंपनी ने उन की रकम का निवेश शेयर मार्केट की कंपनियों में कर दिया है. बारबार मोटी रकम जमा कराने के बाद जब समय पर रिटर्न नहीं मिला तो चरण सिंह परेशान हुए.

उन्होंने न जाने कितनी बार उन नंबरों पर फोन किया, जिन से उन के पास फोन आते थे. उन नंबरों पर बात करने से चरण सिंह को कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला. हर बार उन्हें यह कह कर टरका दिया जाता था कि आप को जल्दी ही अच्छा रिटर्न मिल जाएगा. आप का पैसा जल्दी ही आप के बैंक खाते में आ जाएगा.

लंबे इंतजार के बाद भी जब चरण सिंह को कोई रिटर्न नहीं मिला तो उन्हें शक हुआ. उन्होंने अपने रिश्तेदारों और परिचितों से इस बारे में सलाह ली, तब परिचितों ने ठगी की आशंका जताते हुए पुलिस से मदद लेने की सलाह दी.

इसी साल 24 अप्रैल को चरण सिंह अपने कुछ परिचितों के साथ जयपुर दक्षिण के थाना अशोक नगर पहुंचे और थानाप्रभारी को सारी बात बताई. उन की बात सुन कर थानाप्रभारी को तुरंत अहसास हो गया कि चरण सिंह के साथ ठगी हुई है. उन्होंने उसी दिन उन की रिपोर्ट भादंवि की धारा 420 एवं 120बी के तहत दर्ज कर ली.

शेयर मार्केट में निवेश के बाद अच्छे रिटर्न का औफर दे कर लोगों से ठगी करने के इस तरह के एकदो अन्य मामले कुछ दिनों पहले ही जयपुर पुलिस की जानकारी में आए थे. चरण सिंह के साथ 42 लाख रुपए से ज्यादा की ठगी हुई थी. जयपुर के पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल ने अपने मातहत अधिकारियों को इस तरह सूचना प्रौद्योगिकी की नई तकनीकों के जरिए आर्थिक अपराध करने वालों का पता लगाने का आदेश दिया.

पुलिस कमिश्नर के निर्देशन में अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (प्रथम) प्रफुल्ल कुमार एवं पुलिस उपायुक्त (अपराध) डा. विकास पाठक ने कार्ययोजना बना कर पुलिस की एक टीम गठित की. इस टीम में सहायक पुलिस आयुक्त (अन्वेषण) पुष्पेंद्र सिंह, इंसपेक्टर राजकुमार, मुकेश चौधरी, एसआई मनोज कुमार, कृष्ण कुमार, हरि सिंह के अलावा सिपाही राजेश, अभिमन्यु कुमार सिंह, महेंद्र कुमार, बसंत सिंह, बिश सिंह, श्रीमती नीरज एवं श्रीमती मुकेश को शामिल किया गया.

इस टीम में क्राइम ब्रांच की तकनीकी शाखा एवं संगठित अपराध शाखा के अधिकारियों को भी शामिल किया गया. इस टीम ने कई दिनों की जांच के बाद पता लगा लिया कि अभियुक्त संगठित तरीके से कालसैंटर की आड़ में अपराधों को अंजाम दे रहे हैं. ये अभियुक्त सफेदपोश बन कर अलगअलग कंपनियों की आड़ में नोएडा में कालसैंटर चला कर धोखाधड़ी कर लोगों से करोड़ों रुपए की ठगी कर रहे हैं.

व्यापक जांच के बाद जयपुर पुलिस की टीम ने 15 जून, 2017 को नोएडा पुलिस की मदद से नोएडा के सेक्टर-2 स्थित प्लौट नंबर ए-74 में बनी बिल्डिंग से संचालित इंडो सफायर जर्नीज लिमिटेड कंपनी के कालसैंटर पर छापा मारा. वहां 2 दरजन से ज्यादा लड़कियां काम कर रही थीं.

पुलिस ने जांच के बाद इस कंपनी के 5 निदेशकों को गिरफ्तार कर लिया, जिन में मोहम्मद इकराम निवासी शाहीन बाग, ओखला, नई दिल्ली, मोहम्मद आमिर निवासी बाटला हाउस, जामियानगर, नई दिल्ली, शाहिद खान एवं मोहम्मद यामीन निवासी ग्राम शीलपुर, पोस्ट कुबाकी, जिला मुरादाबाद तथा मेहराज आलम निवासी इंदिरापुरम, गाजियाबाद शामिल थे.

जयपुर कमिश्नरेट ने इस कालसैंटर पर छापे के दौरान सिम सहित 37 मोबाइल फोन एवं 24 सिम अलग से, 5 लैपटौप, 1 लाख रुपए नकद, 23 इंटरकौम फोन व वौकीटौकी, कई मोहरों सहित ढेर सारे दस्तावेज बरामद किए थे.

नोएडा से पांचों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर पुलिस जयपुर ले आई. पुलिस ने इन से कड़ी पूछताछ के आधार पर सुनील कुमार देवतवाल को गिरफ्तार किया. सुनील कुमार मूलत: राजस्थान के करौली जिले के टोडाभीम कस्बे का रहने वाला था. आजकल वह जयपुर में जगतपुरा में रह रहा था. इन सभी अभियुक्तों से पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—

सुनील कुमार देवतवाल कुछ सालों पहले आईसीआईसीआई बैंक में दिल्ली के स्टेट हैड मार्केटिंग के पद पर काम करता था. इस से पहले उस ने आदित्य बिड़ला, अमेरिकन एक्सप्रैस, यस बैंक आदि में भी काम किया था. आईसीआईसीआई बैंक में जब वह स्टेट हैड मार्केटिंग था, तब मोहम्मद इकराम उस के पास सहायक के रूप में काम करता था.

बाद में सुनील कुमार ने आईसीआईसीआई बैंक की नौकरी छोड़ दी और दिल्ली में स्टार ट्रैवल्स नाम से कंपनी खोली. यह कंपनी ज्यादा नहीं चली. इस में उसे घाटा होने लगा तो उस ने यह कंपनी बंद कर दी. इस के बाद उस ने जयपुर की पौश कालोनी सी स्कीम के सुभाषमार्ग पर 506 अलौकिक हाइट्स में एक्सरोस टूर्स एवं एक्सपीयर मैक्स ट्रैवल्स नामक कंपनी खोली.

दूसरी ओर मोहम्मद इकराम ने भी सुनील कुमार के नौकरी छोड़ने के बाद आईसीआईसीआई बैंक की नौकरी छोड़ दी थी. फिर भी दोनों एकदूसरे के संपर्क में बने रहे. चूंकि सुनील कुमार देवतवाल कई नामी बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों में काम कर चुका था, इसलिए उस के पास इन कंपनियों का करोड़ों कस्टमर्स का डाटाबेस था. इन के अलावा भी उस ने कई कंपनियों का डाटा जुटा रखा था. इस तरह करीब 20 कंपनियों का डाटाबेस उस ने अवैध तरीके से हासिल किया हुआ था.

मोहम्मद इकराम को पता था कि सुनील कुमार के पास करोड़ों लोगों का डाटाबेस है. इस में उन लोगों के नामपते व फोन नंबरों के अलावा उन की वित्तीय स्थिति का आकलन था. इकराम शातिर दिमाग था. उस ने आसान तरीके से लोगों को ठग कर पैसा कमाने की योजना बना डाली. इस के लिए उस ने कुछ साथियों की मदद से सुनील से वह डाटाबेस खरीद लिया. करोड़ों लोगों का डाटाबेस हाथ में आने के बाद उस ने अपने भरोसे के साथियों के साथ मिल कर औनलाइन ठगी का धंधा शुरू कर दिया.

पहले उन्होंने छोटे स्तर पर ठगी का धंधा शुरू किया. इस के लिए उन्होंने इंडो सफायर जर्नीज लिमिटेड, सेमटेक्स ट्रैवल, सेमटेक्स फाइनेंसर्स, इंडो सफायर कंसडिंग प्रा.लि. आदि कंपनियां बनाईं. शेयर मार्केट की कंपनियों में निवेश के नाम पर लोगों को ठगने का उन का धंधा चल निकला तो इन्होंने नोएडा के सेक्टर-2 में एक कालसैंटर बना लिया. इस कालसैंटर के आलीशान दफ्तर से 3 दरजन से ज्यादा लड़केलड़कियों को नौकरी पर रखा गया.

ये लड़केलड़कियां लोगों को फोन कर के अपनी लच्छेदार बातों से शेयर मार्केट में निवेश के लिए फांसते थे. ये सभी अवैध तरीके से जुटाए बैंकों व वित्तीय संस्थाओं के डाटा के जरिए ऐसे लोगों को तलाशते थे.

ऐसे लोगों की जानकारी हासिल कर के  ये उसे अपने कालसैंटर के जरिए फोन करते और लगातार संपर्क में रह कर उसे निवेश करने के लिए प्रेरित करते. कालसैंटर से जो फोन किए जाते थे, वे फरजी आईडी से हासिल सिम से किए जाते थे, ताकि पुलिस इन तक पहुंच न सके. जयपुर के रहने वाले चरण सिंह शेखावत को इस कालसैंटर के जरिए 24 अलगअलग मोबाइल नंबरों से फोन किए गए थे.

कोई भी आदमी जब इन की बातों में फंस जाता था तो सब से पहले वे उस से कंपनी में रजिस्ट्रेशन के नाम पर 12 हजार रुपए अपने बैंक खाते में औनलाइन जमा कराते थे. इस के बाद फाइल चार्ज और फिर धीरेधीरे निवेश के नाम पर रकम ऐंठते रहते थे. अपने शिकार से ये पूरी रकम औनलाइन ही ट्रांसफर कराते थे. ठगी की राशि जमा कराने के लिए इन लोगों ने सैंट्रल बैंक औफ इंडिया, पंजाब नेशनल बैंक, सिंडिकेट बैंक, इंडियन ओवरसीज बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, एसबीबीजे, इंडसइंड बैंक, आईडीबीआई बैंक, एक्सिस बैंक और स्टेट बैंक औफ इंडिया में खाते खुलवा रखे थे. ये सभी खाते अभियुक्तों ने खुद और परिवार वालों के नाम खुलवा रखे थे.

पुलिस जांच में पता चला है कि इन लोगों ने 23 बैंक खातों में पिछले 6 महीने में लगभग 6 करोड़ रुपए की रकम जमा करवाई थी. शिकार से बैंक खाते में रकम जमा कराने के बाद ये चैक से रकम निकाल लेते थे. सभी खातों से ज्यादातर रकम निकाल ली गई थी. पुलिस ने अभियुक्तों के बैंक खातों में जमा 12 लाख 50 हजार रुपए की रकम सीज कराई है.

पूछताछ में पता चला है कि पकड़े गए लोगों ने पिछले करीब एक साल में राजस्थान सहित देश के 23 राज्यों में 256 फरजी मोबाइल नंबरों से 4 हजार 879 से अधिक फोन किए थे. इन में 414 फोन राजस्थान में किए गए थे. राजस्थान का एक भी ऐसा जिला नहीं बचा, जहां इन लोगों ने फोन कर के ठगी न की हो.

इन के पास से डेबिटक्रैडिट कार्ड होल्डर्स, डाक्टर्स, इंश्योरेंस, एटीएम, इनवेस्टर्स, एनआरआई, बजाज अलायंज, सिटी बैंक, होंडा और हुंडई गाड़ी खरीदने वालों के डाटा भी मिले हैं.

गिरफ्तार किए गए सुनील कुमार से इलैक्ट्रौनिक डिवाइस में सैकड़ों फाइलें मिली हैं, जिन में एकएक फाइल में 6 लाख से 20 लाख लोगों तक का डाटा है. एक फाइल में एयरटेल पोस्टपेड मोबाइल धारक 20 लाख उपभोक्ताओं का डाटा मिला है. इन फाइलों में ऐसी भी जानकारी है कि किस आदमी ने किस बैंक या इंश्योरेंस कंपनी से कौन सी पौलिसी करवाई है. वह उस का कितना प्रीमियम देता है. उस आदमी का नामपता, मोबाइल नंबर के साथ अन्य जानकारियां भी हैं.

पूछताछ में सुनील कुमार ने बताया कि वह भी नोएडा जैसा कालसैंटर जयपुर में खोलना चाहता था, लेकिन पुलिस ने उसे पकड़ लिया. सुनील कुमार ने जयपुर में ट्रैवल एजेंसी के नाम से ठगी की थी. वह जयपुर के अशोकनगर एवं थाना ज्योतिनगर में सन 2016 में दर्ज धोखाधड़ी के मामले में जेल जा चुका है.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. पीडि़त का नाम बदला हुआ है.

अखिला से हादिया : अंगारों से शोलों तक

अखिला से हादिया बनी केरल की लड़की कुएं से निकल कर खाई में जा रही है. अदालत में अपनी आजादी की बात करने वाली हादिया धर्म की जकड़न में खुद ही फंसती नजर आ रही है. 27 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने हादिया को आगे की पढ़ाई करने की अनुमति देने का फैसला सुना कर एक तरह से उसे उस के मातापिता की कैद से आजादी दिला दी और शायद अगली सुनवाई तक अदालत उसे अपने मुसलिम पति के साथ रहने की आजादी भी दे दे पर जिस तरह की मजहबी मानसिकता और वेशभूषा में वह कोर्ट में दिखाई दे रही है,

वह आजादी का नहीं, गुलामी का रास्ता है, रोशनी का नहीं, अंधेरे कैदखाने का रास्ता है. हैरत यह है कि वह इस के लिए उतावली है. एक धर्म बदल कर दूसरे धर्म में जाना और स्वतंत्रता की मांग करना हैरानी की बात है क्योंकि धर्म तो औरत का गुलाम बनाए रखते हैं.

अखिला नाम बदल कर हादिया बनी यह युवती हिंदू धर्म का पाखंडी दलदल छोड़ कर मुसलिम मुल्लेमौलवियों के रहमोकरम व फतवों की गुलामी की बेडि़यां धारण कर रही है. बुर्के में कैद हो कर आजादी मांग रही है, वाह हादिया!

कोट्टायम जिले के वैकुम में थिरुमनी वेंकितापुरम गांव के एक हिंदू परिवार में जन्मी 24 वर्षीय अखिला अपने मातापिता की इकलौती बेटी है. हादिया ने 12वीं तक पढ़ाई अपने घर पर रह कर की थी. बाद में उस ने तमिलनाडु के सलेम में शिवराज होम्योपैथी मैडिकल कालेज में दाखिला लिया.

सीमा सुरक्षा बल यानी बीएसएफ से रिटायर्ड के एम अशोकन ने जनवरी 2016 को बेटी अखिला के लापता होने का मामला दर्ज कराया था. अखिला अपनी 2 सहेलियां फसीना और जसीना के साथ रह रही थी. लापता होने के कुछ दिनों बाद अखिला अपने कालेज में हिजाब पहने नजर आई. उस के हिंदू दोस्तों ने उस के पिता अशोकन को सूचना दी. अशोकन उस के निवास पर पहुंचे तो वह गायब हो चुकी थी.

पिता अशोकन ने फसीना और जसीना के पिता अबूबकर के खिलाफ मामला दर्ज कराया कि उन्होंने बेटी को गायब करा दिया है. पुलिस ने अबूबकर को गिरफ्तार भी किया पर कोई ठोस प्रमाण नहीं मिल सका और अखिला का पता नहीं लगाया जा सका.

बाद में अखिला के एक इसलामिक चैरिटेबल ट्रस्ट सत्य सरणी में रहने का पता चला. इस पर अशोकन ने केरल उच्च न्यायालय में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की. अशोकन ने आरोप लगाया कि उन की बेटी को धर्म परिवर्तन करा कर विदेश भेजने का षडयंत्र किया गया है और शादी के नाम पर उसे आतंकवादी संगठन आईएसआईएस में धकेला जा रहा है.

अखिला सत्य सरणी संस्था के राष्ट्रीय महिला मोरचा की अध्यक्ष ए एस जैनबा के पास रह रही थी. इस अवधि में उस ने अपना नाम हादिया कर लिया. केरल उच्च न्यायालय में पेश होने के दौरान हादिया के साथ जैनबा जाती थी. हादिया ने अदालत से कहा कि वह अपनी इच्छा से जैनबा के साथ रह रही है.

अगस्त 2016 में हाईकोर्ट में अशोकन ने दूसरी याचिका दायर की जिस में कहा कि उन की बेटी को भारत से बाहर ले जाया जा रहा है. हालांकि, हादिया ने इस से इनकार कर दिया था. उस ने कहा कि उस के पास पासपोर्ट ही नहीं है.

अगली सुनवाई पर वह अपने पति शफीन जहां के साथ अदालत में नजर आई. 9 दिसंबर, 2016 को अखिला ने शफीन जहां से मुसलिम धर्म के अनुसार शादी कर ली. शफीन जहां ने कहा कि पिछले अगस्त माह में एक मुसलिम विवाह वैबसाइट के जरिए हादिया से मुलाकात हुई थी. उस समय वह खाड़ी में काम करता था. नवंबर में जब वह छुट्टी पर घर आया तो अपने दोस्त के घर पर हादिया से मिला. वह उस की पृष्ठभूमि से परिचित था और मालूम था कि अदालत में उस को ले कर बंदी प्रत्यक्षीकरण मामला चल रहा है.

अखिला ने बाद में केरल हाईकोर्ट में कहा था कि उस का पढ़ाई के समय अपनी मुसलिम दोस्तों फसीना औैर जसीना के साथ रहते हुए उस का इसलाम धर्म की ओर झुकाव हो गया. दोनों मित्रों द्वारा समय से नमाज पढ़ने और उन के अच्छे चरित्र से वह प्रभावित थी. उस ने अदालत से यह भी कहा था कि इसलामिक पुस्तकें पढ़ने और वीडियो देखने के बाद उस ने इसलाम धर्म अपनाया. वह 3 वर्षों से इसलाम का अनुसरण कर रही थी पर उस के पिता अशोकन इसलामी तरीके से प्रार्थना करने पर उसे चेतावनी देते थे.

दोस्तों के साथ रहने के दौरान फसीना के पिता अबूबकर उसे मल्लापुरम जिले के पेसिंथलाण्णा में किम नामक धार्मिक संस्था में ले कर गए पर उसे वहां प्रवेश दिए जाने से इनकार कर दिया गया. बाद में अखिला कोझिकोड में एक इसलामिक सैंटर में गई. वहां उस से एक हलफनामा लिखवाने के बाद बाहरी उम्मीदवार के तौर पर भरती कर लिया गया. हलफनामे में लिखवाया गया कि वह अपनी मरजी से इसलाम धर्म स्वीकार कर रही है.

हादिया घर छोड़ने और इसलाम अपनाने के बाद जैनबा के साथ रहने लगी. जैनबा पीएफआई की राष्ट्रीय महिला विंग की अध्यक्ष थी. एनआईए का दावा है कि पौपुलर फ्रंट औफ इंडिया यानी पीएफआई एक इसलामिक संगठन है. पीएफआई और उस के साथी भारत में आतंकवादी वारदात करने की योजना बना रहे हैं.

शादी पर विवाद

हादिया के पति शफीन जहां पर आरोप था कि वह सोशल डैमोके्रटिक पार्टी औफ इंडिया यानी एसडीपीआई का सक्रिय सदस्य है. यह संगठन पीएफआई से संबद्ध बताया जाता है. एसडीपीआई पीएफआई का राजनीतिक मोरचा है और कहा जाता है कि वह हिंदू लड़कियों को फंसा पर आतंकवादी संगठन में भरती कराता है.

केरल हाईकोर्ट में हादिया ने यह भी कहा था कि उस ने एक मुसलिम विवाह वैबसाइट पर अपना विवाह प्रस्ताव डाला था. उसी के माध्यम से शफीन जहां का प्रस्ताव आया था. शफीन कोल्लम का रहने वाला ग्रेजुएट युवा है.

शादी से नाराज अखिला के पिता अशोकन ने इसे लव जिहाद बताया था. आतंकवाद के मामलों में जांच करने वाली प्रमुख एजेंसी राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआईए की मई 2017 में केरल उच्च न्यायालय में दी गई रिपोर्ट के आधार पर हादिया की शादी को रद्द कर दिया गया था. एनआईए द्वारा अदालत से कहा गया कि हादिया की शादी एक वैवाहिक वैबसाइट के जरिए तय की गई, वह गलत थी. असली मकसद शादी के नाम पर आतंकवादी संगठन के लिए सक्रिय सदस्यों की तलाश करना था और वह उस में फंस गई.

कोर्ट की टिप्पणी का विरोध

25 मई को केरल हाईकोर्ट की खंडपीठ ने इस निकाह को शून्य करार देते हुए हादिया को उस के हिंदू अभिभावकों की अभिरक्षा में देने का आदेश दिया था. जस्टिस सुरेंद्र मोहन और जस्टिस अब्राहम मैथ्यू ने टिप्पणी करते हुए आदेश दिया था कि 24 साल की युवती कमजोर और जल्द चपेट में आने वाली होती है और उस का कई तरीके से शोषण किया जा सकता है. शादी उस के जीवन का सब से अहम फैसला होता है, इसलिए वह सिर्फ अभिभावकों की सक्रिय संलिप्तता से ही लिया जा सकता है.

बाद में केरल हाईकोर्ट की इस विवादित टिप्पणी का विरोध हुआ और फैसला आने के बाद मुसलिम कट्टरपंथी संगठनों ने केरल हाईकोर्ट के बाहर विरोध प्रदर्शन किया था.

इस फैसले पर हादिया ने कहा था कि वह 24 वर्षीया भारतीय है. पिछले कई महीनों से वह घर में गिरफ्तार है. अदालत ने उस की आस्था और पसंद के अनुसार जीने के अधिकार को क्यों अस्वीकार कर दिया? हादिया ने अदालत से यह भी कहा था कि शिव शक्ति योग केंद्र के कार्यकर्ताओं ने उसे प्रताडि़त किया और वे उस का वापस हिंदू धर्म में परिवर्तन कराना चाहते थे. उस के पिता अशोकन ने उन लोगों से ऐसा करने का अनुरोध किया था.

शिव शक्ति योग केंद्र हिंदू लड़कियों द्वारा मुसलिम युवकों से शादी कर लेने के बाद उन्हें वापस हिंदू धर्र्म में लाने के लिए केरल में बदनाम है. इस संगठन ने केरल में ऐसे कई मामलों को अपने हाथ में लिया है.

बाद में हादिया के पति शफीन ने केरल हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और कहा कि हाईकोर्ट ने बिना किसी कानूनी अधिकार के निकाह को शून्य करार दिया है. याचिका में कहा गया था कि यह फैसला आजाद देश की महिलाओं का असम्मान करता है क्योंकि इस ने महिलाओं के बारे में सोचविचार करने के अधिकार को छीन लिया है और यह उन्हें कमजोर करने व उन के खुद के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है, इसलिए इसे रद्द किया जाना चाहिए.

हादिया ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि उसे आजादी चाहिए. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने हादिया के पिता से उसे कोर्ट में पेश करने का आदेश दिया था. कोर्ट ने बताया था कि वह हादिया की मानसिक स्थिति के बारे में जानना चाहता है.

उधर, उस के पिता अशोकन ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में आरोप लगाया कि हादिया का कथित पति शफीन कट्टर दिमाग का है और उस के आतंकवादी संगठन से रिश्ते हैं. अशोकन ने आरोप लगाया कि शफीन जहां मानसी बुराक का दोस्त है जिस के खिलाफ आतंकवादियों से संबंध होने के मामले में एनआईए ने चार्जशीट दाखिल की है. बहुत सारे फेसबुक पोस्ट इस के सुबूत हैं कि मानसी बुराक की कट्टर सोच पर याचिकाकर्ता ने खुशी जताई थी. इस के अलावा वह लगातार फेसबुक पर बुराक से बातचीत करता था.

सुप्रीम कोर्ट और हादिया

27 नवंबर को सुप्रीम कोर्र्ट ने हादिया से बातचीत शुरू की. सवाल किया कि आप ने किस स्कूल से पढ़ाई की? आप ने डाक्टरी पेशे को कैसे चुना? क्या आप दूसरों को दवा भी देती हैं? आप की भविष्य की क्या योजना है?

हादिया ने कहा कि उसे 11 महीनों से मातापिता की गैरकानूनी हिरासत में रखा गया है. उस ने बीएचएमएस किया है पर वह इंटर्नशिप नहीं कर पाई. वह इसे पूरा करना चाहती है. कोर्ट ने पूछा कि अगर सरकार खर्चा दे तो क्या वह पढ़ाई जारी रखना चाहती है? इस पर हादिया ने कहा, ‘‘मेरे पति मेरा खर्च उठा सकते हैं. सरकारी पैसे की जरूरत नहीं है.’’

इस के बाद सुप्रीम कोर्ट ने हादिया को मातापिता की हिरासत से रिहा करने का आदेश दिया. कोर्ट ने कालेज में स्थानीय अभिभावक के बारे में हादिया से पूछा तो उस ने अपने पति का नाम लिया पर जज ने कहा, ‘‘पति होस्टल में नहीं रह सकता. कोई पति अपनी पत्नी का अभिभावक नहीं हो सकता. मैं भी अपनी पत्नी का अभिभावक नहीं हूं.’’

तमिलनाडु स्थित शिवराज होम्योपैथी कालेज के डीन को अभिभावक नियुक्त करते हुए अदालती पीठ ने डीन को हादिया की किसी भी समस्या को सुलझाने की छूट दी है. हादिया अपनी पढ़ाई करने के लिए उक्त कालेज चली गई है और उसे होस्टल मुहैया करा दिया गया है. वहां वह 11 महीने की इंटर्नशिप पूरा करेगी.

सुप्रीम कोर्ट में भी हादिया के पिता अशोकन ने विदेश में बसे मानसी बुराक के बारे में कहा कि वह आईएसआईएस का सदस्य है और हादिया के पति शफीन के बीच उस की बातचीत का लिखित रूप कोर्ट में पेश किया. अशोक ने अदालत से कहा कि शफीन के संबंध पौपुलर फ्रंट औफ इंडिया नाम के संगठन से हैं जो जमीनी स्तर पर सिखापढ़ा कर किशोरों को कट्टर बनाने की बड़ी साजिश कर रहा है.

उधर, एनआईए इसे लव जिहाद बताने पर अड़ा रहा. उस ने दलील दी कि ऐसे 10 और मामलों की जांचें की जा रही हैं. उस के पास ठोस सुबूत हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पहले एनआईए की जांच में कुछ जानकारियां मिलें तो फिर आगे की सुनवाई करेंगे.

सवाल यह नहीं है कि एक युवती किसी अपराधी से प्रेम या विवाह कर सकती है या नहीं? तिहाड़ जेल में बंद कुख्यात चार्ल्स शोभराज से मिलने उस की नेपाली प्रेमिका जाया करती थी और वह उस से शादी करना चाहती थी. अबू सलेम के अपराधी होते हुए भी मोनिका बेदी के साथ प्रेम संबंध बना रहा. एक बालिग युवती को अपने बारे में फैसले करने का कानूनन हक है, फिर भी अंधी आस्था में डूबी दिख रही हादिया का जीवन धर्म बदल कर शादी के बाद सुखी रह पाएगा, यह सवाल है.

एक धर्म का लबादा त्याग कर दूसरे का धारण कर पति के साथ रहने को हादिया स्वतंत्रता मान रही है. हादिया किस आजादी की बात कर रही है? वह स्त्री को शिकंजे में रखने वाले एक दकियानूसी धर्म को छोड़ कर दूसरे कट्टर मजहब की ओर जा रही है जहां चारों ओर रोशनी नहीं, अंधेरे का साम्राज्य है. एक ऐसा मजहब जहां औरत की आजादी दिवास्वप्न है.

हादिया जिस पोशाक में अदालतों में जा रही है वह पोशाक भारत की नहीं, घोर मजहबी कट्टरपंथियों द्वारा थोपी गई पैर के अंगूठे से ले कर सिर की चोटी न दिखाई देने वाली पोशाक है जो शायद उस ने खुद अपनी स्वतंत्रता से नहीं, किसी मुल्लामौलवी के हुक्म से पहनी है. यह पोशाक दकियानूसी पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, इराक जैसे देशों में पहनी जाती है पर वहां भी अब ऐसी पोशाक औरतें त्याग रही हैं.

सवाल केवल औरत की लिबर्टी का नहीं है. वह इस तथाकथित आजादी के बाद भी क्या स्वतंत्र है?

अदालतों के सभी फैसले जरूरी नहीं कि सही हों. सुप्रीम कोर्ट तक ने अपने कुछ निर्णय कुछ सालों बाद बदले हैं. हम अदालतों को सांप्रदायिक नहीं कह रहे हैं. लेकिन सवाल यह है कि अदालतों के फैसलों से क्या औैरत को वास्तविक आजादी, राहत मिलती है?

कानून कोई गारंटी नहीं

संविधान पीठ ने इसी साल 22 अगस्त को तीन तलाक को अवैध करार देते हुए सरकार से कानून बनाने को कहा था. इस पर केंद्र ने एक बार में तीन तलाक को खत्म करने के लिए नए कानून का मसौदा तैयार किया है. ‘द मुसलिम वूमेन प्रोटैक्शन औफ राइट्स औन मैरिज बिल’ नाम से जाना जाने वाला यह कानून क्या मुसलिम औरत के परिवार के लिए उस की जिंदगी को खुशहाल बना पाने की गारंटी हो सकता है?

तीन तलाक और हादिया मामला एकजैसा ही है. सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को अमानुषिक बता कर असंवैधानिक करार तो दे दिया पर क्या औरत को तलाक नाम के खौफ से मुक्ति मिल जाएगी? सुप्रीम कोर्ट के आदेश से औरत के जीवन से तलाक यानी अलगाव यानी परिवार का टूट जाना, बिखर जाने का सिलसिला खत्म हो जाएगा?

तीन तलाक के मामले को ही लें. क्या तीन तलाक मामले में औरत की समस्या हल हो गई? 3 तलाक पर कानून बनने से क्या तलाक होने बंद हो जाएंगे? क्या फर्क पड़ता है कोई तीन बार तलाक बोले या एक बार?

सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक पर कहा था कि यह औरत की स्वतंत्रता का हनन है. उसे न्याय के लिए अपील करने के अधिकारों पर अंकुश है.

सवाल यह है कि क्या हादिया को वास्तविक लिबर्टी मिल पाएगी? एक अंधरे से निकल कर दूसरी अंधेरी गुफा में चले जाना क्या स्त्री की वास्तविक तरक्की है? स्त्री को रोशनी की राह कौन दिखाएगा? हादिया एक धर्म की अंधी गुफा से निकल कर दूसरे धर्म की कालकोठरी की ओर जा रही है जहां सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा है. एक स्त्री की जिंदगी के लिए जिस वास्तविक रोशनी की जरूरत है वह वहां नहीं है. वह रोशनी क्या अदालत दिखा पाएगी?

धर्म के दुकानदारों के स्वार्थ

ऐसे मामलों में औरतें धर्म व सांप्रदायिकता का महज हथियार बनी दिखाई देती हैं. और वह हथियार केवल धर्म के दुकानदारों के लिए फायदेमंद साबित होता है. धर्म की खाने वाले यही तो चाहते हैं. उन्हें स्त्री की आजादी से कोई मतलब नहीं है. उस की तरक्की से कोई वास्ता नहीं है. बस, उन के धर्म का परचम लहराता दिखाईर् देना चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा ग्राहक उन की दुकानों पर आएं. इस पूरे मामले में हलाल सिर्फ हादिया हुई है.

आजादी कहां है? उसे अपना नाम अखिला से बदल कर हादिया करना पड़ा. इस में उस की अपनी मरजी कहां है? यह तो धर्म की मरजी है.

हादिया, असली आजादी क्या है? औरत को गुलाम बना कर रखने वाला मजहब चाहे कोई भी हो, वहां आजादी महज खामखयाली है. हादिया स्वयं मानसिक गुलामी की जकड़न में बुरी तरह फंसी दिखती है. उस की असली आजादी बुर्का उतार फेंकने में है. धर्म की संकीर्ण सोच के दायरे से बाहर निकलने में असली आजादी है. न जाने कितनी हादियाएं अब तक इस बात को समझ ही नहीं पाई हैं. इसीलिए, वे गुलाम हैं. असली आजादी धर्म से बाहर निकलने से ही हासिल हो सकती है.

एक थीं नूर इनायत खान

नूर इनायत खान का नाम द्वितीय विश्व महायुद्ध के इतिहास में गुप्तचर के रूप में शहीद होने के कारण स्वर्णाक्षरों में अंकित है. नूर इनायत खान का पूरा नाम नूर उन निसा इनायत खान था. उन के पिता हजरत इनायत खान भारतीय तथा मैसूर के शासक टीपू सुल्तान के वंशज थे. उन की मां अमेरिकी थीं. नूर 4 भाई बहनों में सब से बड़ी थीं. उन का जन्म 1 जनवरी, 1914 को मास्को में हुआ था. नूर के पिता सूफी मतावलंबी तथा धार्मिक शिक्षक थे. उन्होंने भारत के सूफी मत का पाश्चात्य देशों में प्रचारप्रसार किया. नूर की रुचि अपने पिता की भांति, संगीतकला के माध्यम से पिता की विरासत को आगे बढ़ाने में थी.

पहले विश्वयुद्ध के बाद नूर के पिता परिवार सहित मास्को से लंदन आ गए थे. नूर का बचपन वहीं बीता. नाटिंगहिल के एक नर्सरी स्कूल में उन की पढ़ाई शुरू हुई. 1920 में वे सब फ्रांस में पैरिस के निकट सुरेसनेस में रहने लगे. 1927 में पिता की मृत्यु के बाद 13 साल की छोटी सी उम्र में ही नूर के कंधों पर मां और 3 छोटे भाईबहनों की जिम्मेदारी आ गई.

स्वभाव से शांत, शर्मीली, संवेदनशील नूर ने जीविका के लिए संगीत को माध्यम चुना. वे पियानो पर सूफी संगीत का प्रचारप्रसार करने लगीं. वीणा बजाने में भी वे निपुण थीं. उन्होंने कविताएं, बच्चों के लिए कहानियां लिखीं, साथ ही साथ, फ्रैंच रेडियो में भी वे नियमित रूप से योगदान करने लगीं. 1939 में जातक कथाओं से प्रेरित हो कर उन्होंने ट्वंटी जातका टेल्स लिखी.

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लंदन में पुस्तक का प्रकाशन हुआ. द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होने पर वे अपने परिवार के साथ समुद्रीमार्ग से ब्रिटेन के फ्रालमाउथ कार्नवाल आ गईं.

संवेदनशील, शांतिप्रिय, सूफीवाद की अनुयायी नूर को नाजियों द्वारा किए जा रहे क्रूर, बर्बर अत्याचारों से गहरा आघात पहुंचा. उन्होंने अपने छोटे भाई के साथ मिल कर नाजी अत्याचारों के विरुद्ध लड़ने का फैसला किया.

नूर ने 19 नवंबर, 1940 को ब्रिटेन की एयरफोर्स में महिला सहायक के रूप में कार्यभार संभाला. वहां पर उन्होंने वायरलैस औपरेटर का प्रशिक्षण लिया. जून 1941 में बमवर्षक प्रशिक्षण विद्यालय की चयनसमिति के समक्ष सशस्त्र बल अधिकारी पद के लिए आवेदनपत्र प्रस्तुत किया. वहां पर सहायक अनुभाग अधिकारी के पद पर उन की नियुक्ति हो गई.

फ्रैंच भाषा की अच्छी जानकारी होने के कारण ‘स्पैशल औपरेशंस ग्रुप’ के अधिकारियों का ध्यान उन की तरफ गया. उन को वायरलैस औपरेशन के द्विभाषी अनुभवी गुप्तचर के रूप में प्रशिक्षित किया गया. जून 1943 में वे डायना राउडेन (कोड नेम पादरी), सेसीली लेफोर्ट (कोड नेम एलिस शिक्षक) के साथ फ्रांस आ गई. उन का कोड नेम मेडेलीन था. वे फ्रांसिस सुततील (कोड नेम प्रोस्पर) के नेतृत्व में काम करने लगीं.

नूर एक चिकित्सकीय नैटवर्क में नर्स के रूप में शामिल हो गईं. वे वेश बदल कर भिन्नभिन्न स्थानों से ब्रिटिश अधिकारियों को महत्त्वपूर्ण सूचनाएं भेजने लगीं. द्वितीय विश्वयुद्ध में वे पहली एशियन महिला गुप्तचर थीं. नूर विंस्टन चर्चिल के विश्वासपात्रों में से एक थीं. उन्होंने 3 महीने से ज्यादा समय तक अपना गुप्त नैटवर्क चलाया. वे ब्रिटेन में नाजियों की गुप्त जानकारी भेजती रहीं. एक कामरेड की गर्लफ्रैंड ने ईर्ष्या के कारण उन की जासूसी की और उन को पकड़वा दिया. 13 अक्तूबर, 1943 को उन्हें जासूसी करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया.

खतरनाक कैदी के रूप में उन को भीषण यातनाओं से गुजरना पड़ा. उन्होंने 2 बार जेल से भागने की कोशिश की लेकिन बंदी बना ली गईं.

गेस्टोपो के पूर्व अधिकारी हैंस किफर ने उन से गुप्त सूचनाएं प्राप्त करने का अथक प्रयास किया लेकिन नूर के मुंह से वे कुछ भी नहीं उगलवा पाए. 25 नवंबर, 1943 को एसओई गुप्तचर जौन रेनशा और लियोन के साथ वे सिचरहिट्टसडिंट्स, पैरिस के हैडक्वार्टर से भाग निकलीं. लेकिन ज्यादा दूर तक भाग नहीं सकीं और पकड़ ली गईं. 27 नवंबर, 1943 को नूर को पैरिस से जरमनी ले जाया गया. वहां उन्हें फोर्जेम जेल में रखा गया. वहां भी अधिकारियों ने उन को कठोर यातनाएं दीं. भेजी गई गुप्त सूचनाओं की जानकारी प्राप्त करने के प्रयास किए, लेकिन नूर ने कोई राज नहीं खोला.

11 सितंबर, 1944 को नूर को 3 और साथियों के साथ जरमनी के डकाऊ यातना शिविर में ले जाया गया.

13 सितंबर, 1944 को चारों के सिर पर गोली मारने का आदेश हुआ. पहले नूर के 3 अन्य साथियों के सिर पर गोली मार कर मौत की नींद सुला दिया गया. उस के बाद जरमनी फोर्स ने नूर को डराधमका कर ब्रिटेन भेजे गए संदेशों के बारे में जानकारी हासिल करनी चाही लेकिन निर्भीक, साहसी नूर ने अंत तक कुछ भी बताने से इनकार कर दिया. हार कर सिर में गोली मार कर उन की भी हत्या कर दी गई.

अंतिम सांस लेने से पहले नूर के होंठों पर एक शब्द था-स्वतंत्रता. लाख कोशिशों के बावजूद जरमन सैनिक राज उगलवाने की बात तो दूर, उन का असली नाम तक नहीं जान पाए थे. मृत्यु के समय उन की आयु केवल 30 साल की थी. वास्तव में वे एक शेरनी थीं, जिन्होंने आखिरी सांस तक अपना मुंह नहीं खोला.

सम्मान

  • इस भारतीय महिला गुप्तचर को मरणोपरांत 1949 में जौर्ज क्रौस से सम्मानित किया गया
  • फ्रांस ने उन्हें अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान क्रोक्स डी गेयर प्रदान किया.
  • मेंसेंड इन डिस्पैचीज (ब्रिटिश गैलेंटरी अवार्ड).

स्मारक

लंदन के गौर्डन स्क्वैयर में नूर की तांबे की प्रतिमा स्थापित की गई है. यह वह जगह है जहां पर नूर बचपन में रहती थीं. यह पहला अवसर है जब ब्रिटेन में किसी मुसलिम अथवा एशियाई महिला की प्रतिमा स्थापित की गई है. 8 नवंबर, 2012 को प्रतिमा को अनावृत किया गया था. महारानी एलिजाबेथ की द्वितीय बेटी राजकुमारी एनी ने अनावरण किया था. इस प्रतिमा का निर्माण लंदन के कलाकार न्यूमेन ने किया है.

भारतीय मूल की पत्रकार श्रावणी बासु ने नूर की जीवनी को अपनी किताब स्पाई प्रिंसेस यानी जासूस राजकुमारी नूर इनायत खान में संजोने का प्रयास किया है. ब्रिटिश साम्राज्य की विरोधी होने के बावजूद नूर ने ब्रिटेन के लिए जासूसी कर एक अद्वितीय मिसाल कायम की थी.

राजसमंद लाइव मर्डर : लव जिहाद नहीं धर्म जिहाद

जिस धार्मिक तालीबानी खतरे का डर था वह अपने घिनौने रूप में सामने है. पिछले कुछ सालों से फैलाया जा रहा नफरत का बीज अब फल बन कर गिरने लगा है. इस के नतीजे में वह घिनौना चेहरा सामने खड़ा है जिस को देख पाना किसी भी इनसान के लिए मुश्किल है.

21वीं सदी के भारत में 69 सालों के लोकतंत्र का अगर यही हासिल है तो उस का पूरा बनने पर ही सवाल खड़ा हो जाता है. राजस्थान के राजसमंद से सामने आई  एक वारदात और उस की आग की लपटों में कोई एक बेबस इनसान नहीं, बल्कि देश का पूरा संविधान व लोकतंत्र जल रहा है.

यह इनसानियत को शर्मसार करने वाली वह तसवीर है, जो बताती है कि अब कुछ बचा नहीं है. अगर बचे हैं तो सिर्फ अपराधी गिरोह और उन का नंगा नाच जो धर्म का वेश धर कर पूरी इनसानियत को लील जाने के लिए तैयार हैं.

राजसमंद की एक वारदात की तसवीरें और वीडियो वायरल हुए. जिहाद का बदला लेने के लिए एक मुसलमान मजदूर की वहशी तरीके से हत्या कर उस की लाश को जला दिया गया.

खबरों के मुताबिक, पश्चिम बंगाल के मालदा का एक मजदूर राजसमंद में अपने परिवार के साथ मजदूरी करता था. हत्या करने वाले शख्स ने उसे काम देने के बहाने अपने पास बुलाया. हत्यारे का नाम शंभुलाल रैगर है. उस ने 50 साल के एक अधेड़ आदमी, जिस का नाम मोहम्मद अफराजुल बता रहे हैं, की पहले कुल्हाड़ी और तलवार से बेरहमी से हत्या की, फिर उस की लाश को जला दिया गया.

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इस पूरी वारदात का शंभुलाल ने अपने एक दोस्त की मदद से न केवल वीडियो बनाया, बल्कि उस ने हत्या और लाश को जलाने की बात को भी माना.

इस वीडियो में दिखा कि अफराजुल आगे चल रहे थे और उन के पीछे शंभुलाल था. मौका पाते ही शंभुलाल ने पीछे से अफराजुल पर हमला कर दिया. इस हमले में उन पर 1-2 नहीं बल्कि कई बार वार किया गया. उस के बाद शंभुलाल ने अपनी मोटरसाइकिल से तलवार निकाल ली और अफराजुल का गला काट दिया.

इस के पहले अफराजुल लगातार उस से अपनी जान की भीख मांग रहे थे, लेकिन शंभुलाल पर इस का कोई असर नहीं पड़ता दिखा. फिर शंभुलाल ने अफराजुल को आग के हवाले कर दिया.

वीडियो में शंभुलाल ने हत्या की बात कबूल की है. उस ने कहा कि यह तुम्हारी हालत होगी. ये हमारे देश में लव जिहाद करते हैं. अगर ऐसा करोगे तो हर जिहादी की हालत ऐसी ही होगी. जिहाद खत्म कर दो.

इस के अलावा एक दूसरे वायरल वीडियो में एक शख्स ने कहा कि यह हत्या हिंदुत्व को बचाने के लिए की गई है. उस शख्स ने कहा कि मेवाड़ को बचाना है. मेवाड़ को एक हो कर इसलामिक जिहाद को यहां से निकालना है, इसलिए मेवाड़ के सभी भाईबहनो, मैं ने जो किया है चाहे अच्छा है या गलत है, लेकिन मुझे जो लगा मैं ने किया.

बोया बीज बबूल का…

तमाम तरह के धर्म अब इनसानियत के दुश्मन बन चुके हैं. इसलाम के आदेश के मुताबिक मुसलमानों ने तलवारें उठाईं. आज अफगानिस्तान, पाकिस्तान में रोज चरमपंथियों द्वारा इनसानियत का कत्ल किया जा रहा है.

अमेरिकी राष्ट्रपति ने यरुशलम को इजरायल की राजधानी यों ही नहीं बताया है. यरुशलम को ले कर जो लड़ाइयां हुई थीं उन को दोबारा जिंदा किया जा रहा है. धर्म के नाम पर इनसानियत की हत्या करने की साजिश रची जा रही है और यह भूख सिर्फ और सिर्फ सब से ताकतवर दिखने व पूंजी लूटने की है. जो खुद अपनेआप को नहीं बचा पाया, उस के मानने वाले दावा तो दुनिया को बचाने का काम कर रहे हैं लेकिन बहुत खूनखराबा सदियों तक यीशु के इन्हीं मानने वालों ने किया है.

भारत की हालत भी ज्यादा अच्छी नहीं रही है. वर्ण भेद के आधार पर ब्राह्मण धर्म की सोच भी इनसानियत को कमजोर करने वाली रही है. ब्राह्मण धर्म के जोरजुल्म की मारी जनता ने बगावत कर बौद्ध परंपरा अपना ली तो पुष्यमित्र शुंग द्वारा सत्ता हथियाने के बाद बौद्धों पर जुल्म करने का सिलसिला चल पड़ा था.

जब भी ब्राह्मण धर्म कमजोर हुआ तो इस देश में शांति रही और जब भी ब्राह्मण धर्म मजबूत हुआ, बहुसंख्यक जनता पर जुल्म ढहाए गए. इतिहास इन के जुल्मों की कथाओं से भरा पड़ा है. तेल की कड़ाहियों में बौद्धों को जिंदा डाल कर मारा गया था. दलितों को कभी इनसान ही नहीं माना गया था. आज इन के 33 करोड़ देवीदेवता धर्म बचाने में नाकाम हो गए हैं, लेकिन अनोखी बात देखो कि एक अंबेडकर का लिखा ग्रंथ इस देश को चला रहा है. यह इन लोगों को फूटी आंख नहीं सुहाता है.

आजादी के आंदोलन के समय भी धर्मांधता के कीचड़ में पूरा का पूरा आंदोलन फंसा हुआ था. दलितों को अंगरेजी राज में खुली हवा में सांस लेने की छूट मिली थी. वे किसी भी हालत में इसे खोना नहीं चाहते थे और उन की लड़ाई की अगुआई अंबेडकर कर रहे थे.

अंगरेजों की विदाई के बाद ब्राह्मणवादी पूरी तरह सत्ता पर कब्जा करना चाहते थे इसलिए तमाम हिंदू संगठन इस के जुगाड़ में लग गए थे. मुसलिमों की अगुआई जिन्ना जैसे लोग कर रहे थे. हक की आड़ में ब्राह्मणों व मुसलमानों ने अपनेअपने धर्म के आधार पर देश का बंटवारा करा दिया था. बेचारे दलित, किसान और आदिवासी कहां जाते?

दलितों के लिए तो अंबेडकर ने संविधान में पुख्ता इंतजाम किए लेकिन तालीम की कमी में वे ज्यादा समझ नहीं पाए. किसान तो बेचारे सदियों से अनाथ ही थे और आजादी के बाद भी अनाथ से ही हो कर रह गए.

अब राजसमंद कांड में सीधेतौर पर तो कोई हिंदूवादी संगठन जिम्मेदार नहीं है लेकिन इन हिंदूवादी संगठनों द्वारा 90 साल से की जा रही मेहनत का नतीजा इसे जरूर माना जा सकता है.

बाबरी मसजिद ढहाने के बाद इस में एकाएक तेजी आई थी जिस में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी की सरकारों ने भी खूब सहयोग दिया.

जब धर्म के नाम पर नफरत के बीज बोए जाएंगे तो उन्हीं के नतीजे दरिंदों की इस तरह की दरिंदगी के रूप में ही सामने आएंगे. इस वारदात के समर्थक दूसरी वारदातों के उदाहरण दे कर कट्टर सोच को ढो रहे हैं.

धर्म के नाम पर जो हत्या, मारपीट व भेदभाव की घटनाएं हो रही हैं उन के कुसूरवारों को अदालत जाना भी नहीं पड़ रहा. पर जो उन की पोलपट्टी खोलते हैं उन पर मुकदमे दर्ज हो जाते हैं. धर्म इनसानियत का हत्यारा है, पर इस पर लगाम लगाने की कभी किसी में हिम्मत नहीं है.

गहरी साजिश की बूराजसमंद में अफराजुल के परिवार ने हत्यारों के लिए फांसी की सजा की मांग की है. उन्होंने कहा है कि जिन लोगों ने उन की जानवरों की तरह हत्या की है और फिर उन की वीडियो को पूरी दुनिया में दिखाया है उन्हें सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए.

अफराजुल की बीवी गुलबहार ने कहा, ‘‘मैं उन लोगों के लिए फांसी की सजा चाहती हूं जिन्होंने मेरे पति की इतने घिनौने तरीके से हत्या की है. मैं इंसाफ चाहती हूं. वे इसलिए मारे गए क्योंकि वे मुसलिम थे.’’

3 बेटियों के पिता अफराजुल को अपनी छोटी बेटी की शादी के लिए घर लौटना था. परिवार के सदस्यों के मुताबिक, अफराजुल पिछले 12 सालों से राजस्थान में मजदूरी कर रहे थे. हर 2 महीने के बाद वे घर चले आते थे.

उन के पास जमीन का एक टुकड़ा था लेकिन उस से परिवार का भरणपोषण नहीं हो पाता था.

अफराजुल की भतीजी जीनत खान ने कहा, ‘‘इस में गहरी साजिश की बू आ रही है और कई बड़े लोग शामिल हैं. एक मजदूर भला क्या कर सकता है? जिस तरह से सोशल मीडिया पर इसे फैलाया गया है, उस से लगता है कि इस के पीछे एक गहरी साजिश है.’’

बहुत से लोगों ने शंभुलाल की तसवीर ‘माई हीरो शंभु भवानी’ के साथ अपने ट्विटर या फेसबुक के लिए प्रोफाइल फोटो डाला है. इन समर्थकों के नाम के साथ लगी जाति की पहचान करने पर चौंकाने वाला सच सामने आता है.

इस हत्याकांड का समर्थन कर रहे लोगों में से 95 फीसदी ऊंची जाति के हिंदू हैं जो शंभुलाल रैगर नामक एक दलित की हरकत को जायज ठहरा रहे हैं.

लोगों के बीच यह झूठ फैलाया जा रहा है कि आतंकी हमले का शिकार हुए बंगाली मजदूर अफराजुल ने हत्यारे शंभुलाल की बहन से शादी कर रखी थी और उसे भगा कर पश्चिम बंगाल ले गया था, जबकि सच तो यह है कि कातिल की बहन तो छोडि़ए उस की किसी रिश्तेदार से भी पीडि़त का कोई संबंध नहीं था. वे तो हत्यारे शंभुलाल को ठीक से जानते तक नहीं थे. उन्हें कातिल ने महज मुसलमान होने की वजह से हमले का शिकार बनाया और बड़ी बेरहमी से पहले तो काटा और फिर जला डाला.

इस वारदात को सिर्फ सनकी आदमी की सनक में किया गया आम अपराध बता देना नफरत के उन कारोबारी संगठनों की तरफदारी करना है जो अपनी जहरीली सोच से कमजोर दिमाग के नौजवानों को फंसा कर आत्मघाती दस्ते तैयार कर रहे हैं.

राजसमंद हत्याकांड यह भी साबित करता है कि दलित नौजवानों का तालिबानीकरण किया जा रहा है. उन के जरीए मौत के सौदागर अपना आतंकी खेल खेलने में कामयाब हो रहे हैं. इस से ऊंची जाति के सांप्रदायिक लोग एक तीर से कई शिकार करने की कोशिश कर रहे हैं.

वे दलितों और मुसलमानों को आमनेसामने की एक न खत्म होने वाली लड़ाई में झोंक कर खुद महफूज होने की कोशिश में हैं. इसी के साथ वे दलित नौजवानों को अपराधी बनाने का काम भी कर रहे हैं ताकि वे हत्या, दंगे, लूट, हमले जैसी वारदातें करते रहें और जेलों में बरसों सड़ते रहें. इस तरह एक शख्स ही नहीं बल्कि उस का पूरा परिवार ही बरबाद हो जाए.

दलितों और मुसलिमों को आपसी लड़ाई में धकेल कर भारत के कट्टर लोग सारे साधनों व संसाधनों पर काबिज हो कर अमीरी भोगते रहना चाहते हैं. यह एक घिनौनी साजिश है. इस के शिकार दलित हो चुके हैं.

दलित नौजवानों को बड़े पैमाने पर उन उग्र संगठनों से जोड़ा जा रहा है जिन के जरीए हिंसक वारदातें कराई जा सकें. हुड़दंग करने, दंगे फैलाने, त्रिशूल बांटने, शस्त्र पूजा कराने, चाकूबाजी और मुकदमे कराने, हत्याएं कराने व जेल भेजने के लिए ये नए बने कट्टर बहुत काम आते हैं.

हालांकि ये तभी तक हिंदू माने जाते हैं जब तक सामने मुसलमान हो या चुनाव होने हों. बाकी समय में इन को नीच हिंदू के तौर पर ही माना जाता है. धर्म की प्रयोगशाला में आज दलितों की औकात लैबोरेटरी में चीरफाड़ किए जाने वाले मेढ़कों जैसी हो गई है.

एक फर्जी किस्म की ऊपरीऊपरी कुछ मिनटों की इज्जत मिल जाने और थोड़ेबहुत पैसे पा कर आज के भटके दलित नौजवान अपनी जान पर खेल कर हमलावर तक बनने को तैयार हैं. वे कुछ भी सोचविचार नहीं कर पा रहे हैं. उन पर हिंदुत्व इतना हावी हो गया है कि वे खुद को धर्मयोद्धा समझ कर मरनेमारने पर उतारू हैं.

आज देश का दलित किशोर और नौजवान जिंदा बम बन कर खुदकुशी की राह पर चल पड़ा है. उन्हें धर्म से इतना भर दिया गया है कि भस्मासुर बन कर खुद का ही नुकसान कर रहे हैं. वे अब मनु के गीत गा रहे हैं. आरक्षण हटाने की मांग भी वे अब कर रहे हैं.

जब दोस्ती पर भारी पड़ गया शराब का नशा

उड़ीसा के रहने वाले 25 साल के कुमार मांझी की अपने से 10 साल बड़े सीतापुर निवासी पूरन से गहरी दोस्ती थी. दोनों साथ मिल कर कोई छोटामोटा काम करते और जो कमाते, उसी से गुजरबसर करते थे. इन के परिवार भी थे, लेकिन दोनों ही घर वालों के साथ नहीं रहते थे. ये दिन भर में जो कमाते थे, शाम को सीतापुर रोड पर कूड़ाखाना के पास स्थित देशी शराब के ठेके पर जा कर शराब में उड़ा देते थे.

मांझी और पूरन की दोस्ती इतनी गहरी थी कि दोनों को ही एकदूसरे के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता था. यहां तक कि उन्हें परिवार की भी कमी नहीं खलती थी. दोनों की उम्र में 10 साल का अंतर था, लेकिन वे लगते हमउम्र थे. इन की गहरी दोस्ती होने की वजह यह थी कि दोनों ही आपस में एक जैसा व्यवहार करते थे. दोनों की पसंद भी एक जैसी थी.

कई बार मांझी और पूरन के अन्य साथी इन के साथ रहना चाहते या बात करना चाहते तो दोनों ही उन से कन्नी काट लेते थे. दोनों ही पक्के शराबी थे. बिना शराब के वे एक भी दिन नहीं रह सकते थे. लेकिन शराब पीने के बाद अकसर दोनों में लड़ाई हो जाती थी. कई बार मारपीट भी हो जाती थी, इस के बावजूद दोनों देर तक एकदूसरे से अलग नहीं रह पाते थे.

रात में लड़ाई होती थी तो सवेरा होतेहोते सब ठीक हो जाता था. यह देख कर उन के अन्य दोस्त कहते भी थे कि मांझी और पूरन कब लड़ते हैं, पता ही नहीं चलता, सवेरे दोनों का चायनाश्ता एक साथ होता है. इस के बाद वे साथसाथ ही काम पर जाते थे.

पूरन और कुमार मांझी ने उस रात भी जम कर शराब पी थी. इस के बाद दोनों में लड़ाई शुरू हो गई. बात बढ़ी तो पूरन ने कहा, ‘‘मांझी, तू कभी पैसे खर्च नहीं करता. हमेशा मेरे पैसे ही खर्च कराता है.’’

‘‘हमारे बीच पैसा आ गया, इस का मतलब हमारी दोस्ती खतम.’’ मांझी ने कहा.

‘‘भई, दोस्ती रहे या खतम हो जाए, हम इस बारे में कुछ नहीं जानते. हम तो यह जानते हैं कि पैसे का सही से हिसाब होना चाहिए. पिछली बार के 100 रुपए अभी तक तुम ने नहीं दिए हैं.’’ पूरन ने कहा.

‘‘लेकिन मैं ने तो कई बार पैसे खर्च किए हैं, उन का क्या होगा?’’ मांझी ने कहा.

इस के बाद उन के बीच बात बढ़ गई. दोनों ही नशे में थे. ऐसे में आगापीछा सोचे बगैर आपस में हाथापाई करने लगे. मारपीट में उन्हें ध्यान ही नहीं रहा कि वे क्या कर रहे हैं. मांझी ज्यादा नशे में था, इसलिए पूरन ने उसे पीट दिया. मारपीट कर के पूरन बैठ गया. नशे की वजह से उसे झपकी आ गई.

नशा कम होने पर मांझी थोड़ा होश में आया तो उसे याद आया कि पूरन ने उसे मारा था. उसे गुस्सा आ गया और ईंट उठा कर उस ने पूरन के सिर पर दे मारी. तब उसे इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि इस से पूरन मर भी सकता है.

रात में दोनों रघुवर पैलेस के पास खाली प्लौट में बैठे थे. सवेरे 4 बजे कुमार मांझी इंजीनियरिंग कालेज चौराहे पर स्थित अनिल की दुकान पर पहुंचा. दोनों अकसर यहीं चायनाश्ता करते थे. कुमार के कपड़ों में खून लगा देख कर अनिल ने पूछा, ‘‘तेरे कपड़ों में खून कहां से लगा, पूरन कहां गया?’’

मांझी ने कहा, ‘‘कल रात पूरन से सौ रुपए को ले कर लड़ाई हो गई थी. वह मुझे बेईमान कह रहा था. जब मैं ने उसे सच बताया तो वह झगड़ा करने लगा. झगड़ा ज्यादा बढ़ा तो मैं ने ईंट से मार कर उस की हत्या कर दी. लेकिन अनिल भाई, अब मुझे अपनी गलती का अहसास हो रहा है. उस की मौत का मुझे पछतावा हो रहा है.’’

उस से कुछ कहने के बजाय अनिल ने उसे दुकान पर बैठा दिया और पुलिस को सूचना देने के लिए फोन करने लगा. लेकिन दूसरी ओर से फोन उठा ही नहीं. करीब 7 बजे अनिल ने रघुवर पैलेस के मैनेजर वीरेंद्र को घटना की सूचना दी तो वीरेंद्र ने जानकीपुरम थाने में तैनात सबइंसपेक्टर को फोन कर के इस बात की जानकारी दे दी.

इस के बाद 9 बजे पुलिस मौके पर पहुंची और लाश को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस में पुलिस को कुछ समय लग गया. तब तक कुमार मांझी को पूरी तरह होश आ गया था. होश में आने के बाद उसे पता चला कि मामला पुलिस तक पहुंच गया है तो पुलिस की मार की डर से वह कांपने लगा.

दोस्त की हत्या के साथसाथ पुलिस की मार का डर उसे सताने लगा. वहां मौजूद लोगों ने जब उसे बताया कि हत्या के बाद फांसी हो सकती है तो वह काफी डर गया. हत्या के आरोप में मिलने वाली सजा के डर से वह जंगल की ओर भागा.

अनिल ने मांझी को भागते देखा तो उसे पकड़ने के लिए शोर मचाने लगा. आसपास के लोगों ने उस का पीछा किया. लेकिन तब तक वह गुडंबा के जंगल में घुस गया, जहां एक पेड़ के पीछे छिप गया. पुलिस अन्य लोगों को साथ मिल कर मांझी की तलाश करती रही. करीब आधे घंटे की मशक्कत के बाद मांझी को पकड़ लिया गया और थाने लाया गया.

थाना जानकीपुरम के थानाप्रभारी इंसपेक्टर सतीश सिन्हा ने बताया कि अपने दोस्त की हत्या के आरोप में पकड़े गए कुमार मांझी ने स्वीकार कर लिया है कि सौ रुपए के विवाद में उस ने दोस्त की हत्या को अंजाम दिया था.

शुक्रवार की रात कुमार मांझी से मृतक पूरन ने सौ रुपए उधार मांगे थे. पैसे न होने पर कुमार ने देने से मना कर दिया, जिसे ले कर दोनों के बीच कहासुनी हो गई. बात हाथापाई तक पहुंच गई. मारपीट के दौरान कुमार ने ईंट से पूरन के सिर पर कई वार कर दिए, जिस से उस की मौके पर ही मौत हो गई.

मांझी और पूरन की दोस्ती पर शराब का नशा भारी पड़ा. अगर दोनों शराब न पीते होते तो सौ रुपए जैसी मामूली रकम के लिए मांझी अपने सच्चे दोस्त की हत्या कतई नहीं कर सकता था. पूछताछ के बाद पुलिस ने कुमार मांझी को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस और पब्लिक से मिली जानकारी के आधार पर

11 दुल्हों की फरेबी दुलहन की कहानी

देश की राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा शहर में कारखानों और बड़ीबड़ी कंपनियों के तमाम औफिस हैं, जिन में काम करने के लिए देश के अलगअलग राज्यों से आए लोग यहां रह रहे हैं. रहने  वालों की संख्या बढ़ती गई तो फ्लैट कल्चर कायम हुआ. जिन में रहने वाले लोग एकदूसरे से ज्यादा मतलब नहीं रखते.  इसे इस तरह भी कह सकते हैं कि लोग निजी जिंदगी में किसी की दखलंदाजी पसंद नहीं करते.

ऐसे में किस फ्लैट में कौन रहता है और कौन क्या करता है, पड़ोसियों तक को पता नहीं होता. नोएडा शहर के ही सैक्टर-120 स्थित जोडिएक अपार्टमेंट सोसाइटी भी इस आधुनिक हकीकत से अलग नहीं थी. 17 दिसंबर, 2016 की सुबह पुलिस की 2 गाडि़यां सोसाइटी में आ कर रुकीं. पुलिस ने गेट पर तैनात सुरक्षाकर्मियों से कुछ पूछताछ की और फिर एक सुरक्षाकर्मी को साथ ले कर सीधे 11वीं मंजिल पर बने फ्लैट नंबर-1104 के सामने जा पहुंची.

पुलिस के इशारे पर सुरक्षाकर्मी ने दरवाजे के ठीक बराबर में लगी डोरबैल बजाई तो अंदर से किसी लड़की की आवाज आई, ‘‘कौन है?’’

सुरक्षाकर्मी ने जवाब में कहा, ‘‘दरवाजा खोलिए मैम, मैं गार्ड हूं.’’

‘‘क्या बात है?’’

‘‘आप से कोई मिलने आया है.’’ गार्ड ने कहा.

कुछ पलों की खामोशी के बाद एक लड़की ने दरवाजा खोला तो दरवाजे पर पुलिस वालों को देख कर उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. वह कुछ समझ पाती, उस के पहले ही एक पुलिसकर्मी ने पूछा, ‘‘मेघा कहां है?’’

पुलिस वाले के इस सवाल पर वह चौंकी, लेकिन तुरंत ही संभलने की कोशिश करते हुए जवाब देने के बजाए सवाल दाग दिया, ‘‘एक्सक्यूजमी सर, कौन मेघा? मैं समझी नहीं. आप शायद गलत जगह आ गए हैं. यहां कोई मेघा नहीं रहती.’’

लड़की के जवाब से एकबारगी पुलिसकर्मी सकते में आ गए. लेकिन अगले ही पल उस ने कहा, ‘‘यह नाटक बंद करो और जल्दी बताओ कि मेघा कहां है?’’

वह लड़की कोई जवाब देती, उस के पहले ही पुलिसकर्मी फ्लैट में दाखिल हो गए. अंदर बैडरूम में एक लड़की एक युवक के साथ बैठी टीवी देख रही थी. पुलिसकर्मियों की नजर जैसे ही उस लड़की पर पड़ी, उन के चेहरे पर मुसकान तैर गई. जबकि लड़की ने हारे हुए जुआरी की तरह दोनों हाथों से अपना सिर थाम लिया.

उस की हालत देख कर उस पुलिसकर्मी ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा, ‘‘यहां भी तुम शादी करने आई होगी मेघा? चलो, बहुत शादियां कर लीं, अब बाकी का वक्त जेल में बिता लेना.’’

लड़की हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाते हुए बोली, ‘‘मुझे माफ कर दीजिए सर, अब आगे से ऐसी गलती नहीं करूंगी.’’ पुलिसकर्मियों ने उस की बातों को नजरअंदाज करते हुए फ्लैट में रहने वाले तीनों लोगों को कस्टडी में ले कर औपचारिक पूछताछ की. इस के बाद पुलिस तीनों को थाना फेज-2 ले आई, जहां उन से लंबी पूछताछ की गई. गिरफ्तार तीनों लोगों में मेघा भार्गव, उस की बहन प्राची और जीजा देवेंद्र शर्मा शामिल थे.

अगले दिन मेघा की गिरफ्तारी अखबारों और समाचार चैनलों की सुर्खियां बन गई. इस की वजह यह थी कि मेघा कोई मामूली लड़की नहीं थी. उस ने 11 लोगों से शादी कर के उन से करीब एक करोड़ रुपए से ज्यादा की ठगी की थी. लोग उस की सुंदरता के जाल में आसानी से फंस जाते थे. उसे ले कर ढेरों अरमान सजाते थे, जबकि वह शादी की शहनाई में धोखे की धुन बजाती थी.

उन की नईनवेली दुलहन मेघा फरेबी होती थी और वह कुछ ही दिनों में पूरे परिवार को नींद की गोलियां खिला कर घर में रखी नकदी और गहने ले कर रफूचक्कर हो जाती थी. इस के बाद ऐशपरस्त जिंदगी जीने वाली मेघा एक बार फिर नए दूल्हे की तलाश में निकल पड़ती थी. सिलसिला था कि थमने का नाम ही नहीं ले रहा था.

केरल के त्रिवेंद्रम में भी मेघा फरेब का ऐसा ही खेल खेल कर आई थी. नोएडा पुलिस की मदद से उसे गिरफ्तार करने  वाली केरल पुलिस ही थी. उस के कारनामे से हर कोई दंग था. तीनों आरोपियों को केरल ले जाना था, लिहाजा पुलिस ने तीनों को सूरजपुर स्थित न्यायालय में पेश किया और कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के उन्हें साथ ले कर केरल के लिए रवाना हो गई. सचमुच इस लुटेरी दुलहन का हर कारनामा चौंकाने वाला था.

27 वर्षीया मेघा भार्गव मूलरूप से भोपाल के अशोकनगर निवासी उमेश भार्गव की 4 बेटियों में तीसरे नंबर के बेटी थी. उस ने एमबीए की पढ़ाई की थी. वह शुरू से ही शातिर दिमाग और महत्वाकांक्षी थी. उस के ऐशपरस्ती के जो सपने थे, वे साधारण जिंदगी में कभी पूरे नहीं हो सकते थे. लेकिन वह अपने सपनों को पूरा करना चाहती थी.

करीब 6 साल पहले मेघा ने केतन नामक युवक से एक कालेज में एडमीशन कराने के नाम पर 80 हजार रुपए ले लिए थे. लेकिन एडमीशन नहीं हो सका तो केतन अपने रुपए वापस मांगने लगा. मेघा ने रुपए लौटाने में आनाकानी की तो उस ने उस के खिलाफ ठगी का मामला दर्ज करा दिया. दरअसल, मेघा का मकसद उसे धोखा देना ही था. पुलिस ने इस मामले में उस के खिलाफ कोई काररवाई नहीं की तो केतन न्यायालय चला गया.

इस के बाद मेघा का परिवार मध्य प्रदेश के इंदौर शहर के गोयल विहार में शिफ्ट हो गया. लेकिन केतन ने उस का पीछा नहीं छोड़ा. अंत में पुलिस से दबाव  डलवा कर उस ने अपनी रकम वसूल कर ही ली. मेघा ने पीछा छुड़ाने के लिए यह रकम कर्ज ले कर अदा की थी. कर्ज अदा करने के लिए उस ने एक संस्थान में रिसैप्शनिस्ट की नौकरी कर ली. समय अपनी गति से चलता रहा. करीब 2 साल पहले मेघा की मुलाकात महेंद्र बुंदेला से हुई. समाज में ऐसे शातिर लोगों की कमी नहीं है, जो महत्वाकांक्षी लोगों का इस्तेमाल अपने हिसाब से करने में माहिर होते हैं.

मेघा के रंगढंग और पैसे की जरूरतों को देख कर महेंद्र समझ गया कि यह ऐसी लड़की है, जो पैसों के लिए कुछ भी कर सकती है. मौका देख कर उस ने मेघा से कहा, ‘‘मेघा, तुम ऐश की जिंदगी जीना चाहती हो न?’’

‘‘बिलकुल.’’ मेघा की आंखों में एकाएक चमक आ गई. ‘‘मेरे पास एक आइडिया है. तुम चाहो तो महीने भर में ही इतनी रकम कमा सकती हो कि पूरे साल मेहनत कर के भी उतना नहीं कमा सकती. लेकिन इस के लिए मैं जिस से कहूं, तुम्हें उस से शादी करनी होगी. वहां से जो माल मिलेगा, उस में मुझे आधा हिस्सा देना होगा.’’

‘‘क…क्या,’’ मेघा चौंकी, ‘‘लेकिन मैं अभी शादी नहीं करना चाहती.’’

‘‘शादी तो एक नाटक होगी, लेकिन उसी से तुम अमीर बन सकती हो.’’ महेंद्र ने उसे समझाया, ‘‘मैं किसी ऐसे अमीर को पकडूंगा, जिस की शादी नहीं हो रही होगी. शादी के बाद उस के माल पर हाथ साफ कर के तुम दूर निकल जाना.’’

मेघा को महेंद्र की यह योजना पसंद आ गई. इस के बाद महेंद्र एक ऐसा तलाकशुदा आदमी ढूंढ कर लाया, जो शादी के लिए काफी परेशान था. महेंद्र ने उसे मेघा की फोटो दिखा कर किसी दूसरे राज्य की अनाथ लड़की बताया. फोटो देखते ही उस ने मेघा को पसंद कर लिया तो उस ने दोनों की मुलाकात करा दी. मेघा सुंदर भी थी और पढीलिखी भी. उस आदमी की जिंदगी में जैसे खुशियों की बहार खुद चल कर आ रही थी. महेंद्र ने कहा कि लड़की जल्द से जल्द शादी करना चाहती है, क्योंकि उसे पति के रूप में सहारा चाहिए. इस पर वह आदमी और भी खुश हुआ. इस मौके को वह हाथ से जाने नहीं देना चाहता था, इसलिए जल्दी ही महेंद्र ने एक मंदिर में उन का विवाह करा दिया.

विवाह के अभी 10 दिन ही बीते थे कि मेघा एक रात करीब साढ़े 11 लाख रुपए की नकदी ले कर लापता हो गई. उस आदमी ने महेंद्र से संपर्क किया तो उस ने हाथ खड़े कर दिए. उस ने कहा कि उस अनाथ लड़की से उस की जानपहचान जरूर थी, लेकिन वह कहां की रहने वाली थी, इस बारे में उसे पता नहीं था. यह उस आदमी की शराफत थी  कि उस ने पुलिस में शिकायत नहीं की. जैसा तय था, मेघा ने आधी रकम महेंद्र को दे दी.

इस के बाद मेघा मुंबई चली गई. कुछ दिन मस्ती में गुजारने के बाद उस ने नया शिकार तलाश कर लिया और इस नए शिकार को उस ने 40 लाख रुपए का चूना लगाया. मेघा को ठगी का यह अनोखा धंधा रास आ गया. अब तक वह इतनी तेज हो गई थी कि उस ने महेंद्र का साथ छोड़ दिया और खुद ही अपने लिए दूल्हे ढूंढने लगी.

उस ने पुणे के एक अमीर परिवार के अपाहिज लड़के से शादी कर के वहां 90 लाख रुपए का चूना लगाया. इस के बाद उस ने मुंबई छोड़ दी. इस बीच मेघा की बड़ी बहन प्राची का विवाह देवेंद्र से हो चुका था. मेघा के धंधे से वे वाकिफ थे. रुपयों के लालच में वे भी उस की फितरत में शामिल हो गए.

कभी पैसोंपैसों के लिए मोहताज रहने वाली मेघा नोटों से खेलने लगी. वह अच्छा खाने और महंगे कपड़े पहनने की शौकीन थी. बड़े शहरों में घूमने के लिए हवाई जहाज की यात्राएं करती थी. मेघा सौ, 5 सौ के नोट टिप में दे दिया करती थी.

उस का कोई स्थाई ठिकाना नहीं था. वह शादियों के विज्ञापन देने वाली इंटरनेट बेवसाइट्स पर शिकार की तलाश करती थी. खास बात यह थी कि वह पैसे वाले तलाकशुदा और विकलांगों से ही शादी करती थी. इस की वजह यह थी कि उन्हें अच्छी लड़की मिल रही होती थी. ऐसे जरूरतमंद लोग ज्यादा छानबीन किए बिना शादी के लिए आसानी से तैयार हो जाते थे.

मेघा की बहन और जीजा भावी दूल्हे के परिवार से मिलते थे और माली हालत का अंदाजा लगा कर ही रिश्ता पक्का करते थे. रिश्ता पक्का होते ही शादी की जल्दी करते थे. वह अपनी कमजोर माली हालत का परिचय देते तो शादी का खर्च भी लड़के वाले ही उठाते थे. जिन की माली हालत लूटने लायक नहीं होती थी, वहां वे कोई न कोई बहाना बना कर रिश्ता तोड़ देते थे.

मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के अलावा राजस्थान और बिहार में भी मेघा ने लोगों को अपना शिकार बनाया था. परिवार के नाम पर मेघा की शादी में बहन और जीजा ही शामिल होते थे. कुछ मामलों में वह खुद को अनाथ और दुखियारी लड़की बता कर अकेली ही रिश्ता पक्का कर लेती थी. वह हंसमुख स्वभाव की थी, इसलिए शादी के बाद दूल्हे के घर वालों से मीठीमीठी बातें कर के घुलमिल जाती थी.

ससुराल वाले तो अपनी नईनवेली दुलहन की तारीफ करते नहीं थकते थे कि उन के नसीब अच्छे थे, जो गुणी बहू मिली. रुपए और गहने कहां रखे होते थे, इस की वह जल्दी से जल्दी जानकारी हासिल कर लेती थी. उस में एक खास बात यह थी कि वह घर में खाना बनाने का काम भी जल्दी ही संभाल लेती थी.

ऐसा कर के वह एक तीर से 2 शिकार करती थी. एक तो लड़के वाले उस के कामकाज की प्रशंसा कर के विश्वास करने लगते थे, दूसरे उसे नींद की गोलियां मिलाने में सुविधा हो जाती थी. वह ऐसी अदाकारा बन चुकी थी कि सभी उस पर पूरी तरह विश्वास कर बैठते थे. वारदात करने से पहले वह बहन और जीजा को बता देती थी, जिस से तय समय पर वे घर के बाहर पहुंच जाते थे. इस के बाद मेघा सामान समेट कर उन के साथ निकल जाती थी.

प्रत्येक वारदात के बाद मेघा अपने मोबाइल का सिमकार्ड तोड़ कर फेंक देती थी. कुछ लोगों ने पुलिस में शिकायतें भी कीं, लेकिन पुलिस कभी उस तक पहुंच नहीं पाई. इस से उस के हौसले बढ़ते गए. पिछले साल मेघा अपनी बहन और जीजा के साथ केरल पहुंची. मेघा ने अपने पुराने अंदाज में शादी कर के 4 लोगों को ठगा. कुछ महीने पहले उस ने त्रिवेंद्रम के लौरेन जोसटिस से शादी की.

शादी के 20 दिनों बाद ही वह करीब 15 लाख के माल पर हाथ साफ कर के भाग निकली. उस के शिकार हुए लोग लुटने के बाद सिर पीट कर रह जाते थे, लेकिन लौरेन सिर पीटने वालों में नहीं थे. उन्होंने सीधा पुलिस का रुख किया और मेघा के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया. पुलिस ने मामले को गंभीरता लिया और इस केस की जांच का जिम्मा इंसपेक्टर टी. सज्जी को सौंपा गया. कुछ समय मुंबई में रहने के बाद मेघा, प्राची और देवेंद्र नोएडा आ कर रहने लगे.

यह इत्तेफाक ही था कि अभी तक मेघा कभी पकड़ी नहीं गई थी. उस का सोचना था कि उस का जन्म ही शादी की चाह रखने वाले लोगों को ठगने के लिए हुआ है. तीनों फ्लैट में गुमनाम जिंदगी जी रहे थे और किसी से कोई वास्ता नहीं रखते थे. आसपास के लोगों को खबर भी नहीं थी कि वहां शादी के नाम पर अपने हाथों में मक्कारी की मेहंदी लगाने वाली जालसाज दुलहन रहती है.

नोएडा में भी वे नए शिकार की तलाश में जुट गए थे. उधर केरल पुलिस ने ठगी के इस मामले को चुनौती के रूप में लिया. उस ने मेघा के फोटो हासिल करने के साथ ही उस के मोबाइल नंबर को हासिल कर के उस की कौल डिटेल्स निकलवाई. उन की गहराई से जांचपड़ताल की गई. उस में 2 नंबर मिले, जिन पर उस की सब से ज्यादा बातें हुई थीं. इन तीनों की लोकेशन भी साथसाथ होती थी. यही दोनों नंबर उस की बहन और जीजा के थे. लेकिन परेशानी की बात यह थी कि तीनों ही नंबर बंद कर दिए गए थे.

जिन मोबाइल हैंडसेट में ये नंबर इस्तेमाल होते थे, उन पर कोई दूसरा नंबर भी नहीं चल रहा था. लेकिन एक महीने बाद एक मोबाइल हैंडसेट में नया नंबर चल गया. जांच में यह नंबर मेघा के जीजा देवेंद्र का निकला. इस नंबर के संपर्क में 2॒ नंबर और आए. पुलिस समझ गई कि ये मेघा और प्राची के नंबर हैं.

पुलिस ने इन नंबरों की लोकेशन पता कराई तो वह नोएडा की मिली. इस के बाद पुलिस ने तीनों ही नंबरों को सर्विलांस पर लगा दिया. बहुत जल्दी साफ हो गया कि ये नंबर शादी के नाम पर ठगी करने वाली तिगड़ी के हैं. मेघा कोई नया शिकार फांस कर नंबर बदल सकती थी, इसलिए उसे जल्दी गिरफ्तार करना जरूरी था.

इंसपेक्टर टी. सज्जी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम नोएडा आ पहुंची और एसएसपी धर्मेंद्र यादव से मिली. एसएसपी ने एसपी (सिटी) दिनेश यादव को मदद करने के निर्देश दिए. उन्होंने फेज-2 थानाप्रभारी उम्मेद सिंह को केरल से आई पुलिस टीम के साथ लगा दिया. पुलिस ने पहले सुरागसी की, उस के बाद सोसाइटी जा कर तीनों को गिरफ्तार कर लिया.

मेघा के पकड़े जाने के बाद केरल के वे अन्य लोग भी सामने आ गए हैं, जिन्हें मेघा ने ठगा था. पुलिस ने मेघा, प्राची और देवेंद्र को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया था. कथा लिखे जाने तक किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हो सकी थी. मेघा ने अपनी महत्वाकांक्षाओं को काबू में रखा होता और पढ़ाई का सही इस्तेमाल किया होता तो आज उसे जेल जाने की नौबत न आती.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बच्चों की सुरक्षा के लिए सतर्कता जरूरी

7 साल का प्रद्युम्न ठाकुर गुड़गांव के ख्यातिप्राप्त रायन इंटरनैशनल स्कूल की कक्षा 2 का छात्र था. रोजाना की तरह गत 8 सितंबर को मां ने प्यार से तैयार कर उसे पढ़ने के लिए स्कूल भेजा. पिता द्वारा प्रद्युम्न को स्कूल में पहुंचाने के आधे घंटे के अंदर घर पर फोन आ गया कि बच्चे के साथ हादसा हो गया है. प्रद्युम्न को संदिग्ध परिस्थितियों में ग्राउंडफ्लोर पर मौजूद वाशरूम में खून से लथपथ मृत अवस्था में पाया गया. देखने से स्पष्ट था कि उस की हत्या की गई है. उस पर 2 बार चाकू से वार किए गए थे. अत्यधिक खून बहने से उस की मौत हो गई.

प्रारंभिक जांच में बस कंडक्टर को दोषी पाया गया मगर बाद की जांच में उसी स्कूल की 11वीं कक्षा के एक छात्र को हिरासत में लिया गया. आरोपी छात्र ने स्वीकार किया कि महज परीक्षा की तिथि और टीचर पेरैंट्स मीटिंग की तारीख आगे बढ़वाने के मकसद से उस ने, जानबूझ कर, इस घटना को अंजाम दिया.

वैसे, इस केस में स्कूल प्रशासन पर सुबूत छिपाने के इलजाम भी लगे और एक बार फिर स्कूलों में बच्चों की लचर सुरक्षा व्यवस्था की हकीकत सामने आ गई.

बच्चों की सुरक्षा पर सवाल खड़ा करता ऐसा ही मामला द्वारका, दिल्ली के एक स्कूल का है. यहां 4 साल की बच्ची के साथ यौनशोषण की घटना सामने आई. आरोप बच्ची की ही कक्षा में पढ़ने वाले 4 साल के बच्चे पर लगा. छोटी सी बच्ची से बलात्कार का एक मामला 14 नवंबर को दिल्ली के अमन विहार इलाके में भी सामने आया. यह नाबालिग बच्ची अपने मातापिता के साथ किराए के मकान में रहती थी. आरोपी युवक उसी मकान में पहली मंजिल पर रहता था.

दिल्ली के एक स्कूल में 5 साल की बच्ची के साथ स्कूल के चपरासी द्वारा बलात्कार की घटना ने भी सभी को स्तब्ध कर दिया. इन घटनाओं ने स्कूल परिसरों में बच्चों की सुरक्षा को ले कर कई प्रश्न खड़े कर दिए हैं. स्कूल परिसरों में मासूम लड़कियां ही नहीं, लड़के भी यौनशोषण के शिकार हो रहे हैं.

इस संदर्भ में सभी राज्य सरकारों, स्कूल प्रशासनों और मातापिता को सतर्क होने की जरूरत है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न घट सकें.

स्कूल की जिम्मेदारियां

कोई भी मातापिता जब अपने बच्चे के लिए किसी स्कूल का चुनाव करते हैं तो स्कूल की आधारभूत संरचना और वहां की पढ़ाई के स्तर को जांचने के साथ ही उन का विश्वास भी होता है जो उन्हें किसी विशेष स्कूल को अपने बच्चे के लिए चुनने हेतु प्रेरित करता है. ऐसे में स्कूल प्रशासन की पूरी जिम्मेदारी बनती है कि वह न सिर्फ बेहतरीन शिक्षा उपलब्ध कराए, बल्कि मातापिता के विश्वास पर भी खरा उतरे.

मातापिता की जिम्मेदारियां

हर मातापिता का कर्तव्य है कि वे घरबाहर अपने बच्चों की सुरक्षा को ले कर सतर्क रहें. घर के बाद बच्चे सब से अधिक समय स्कूल में बिताते हैं. ऐसे में स्कूल परिसर में बच्चों की सुरक्षा एक गंभीर मुद्दा है. द्य मातापिता को चाहिए कि जिस स्कूल में वे बच्चे को दाखिल कराने जा रहे हैं, वहां की सुरक्षा व्यवस्था की वे विस्तृत जानकारी लें.

हमेशा टीचरपेरैंट्स मीटिंग में जाएं और बच्चों की सुरक्षा से संबंधित कोई कमी नजर आए तो टीचर से उस की चर्चा जरूर करें. द्य बच्चों से स्कूल में उन के अनुभवों के बारे में खुल कर चर्चा करें. अगर अचानक बच्चा स्कूल जाने से घबराने लगे या उस के नंबर कम आने लगें तो इन संकेतों को गंभीरता से लें और इन का कारण जानने का प्रयास करें.

बच्चों को अच्छे और बुरे टच के बारे में समझाएं ताकि यदि कोई उन्हें गलत मकसद से छुए तो वे शोर मचा दें. द्य बच्चों को यह भी समझाएं कि यदि कोई बच्चा उन्हें डराधमका रहा है तो वे टीचर या मम्मीपापा को सारी बात बताएं.

बच्चों को मोबाइल और दूसरी कीमती चीजें स्कूल न ले जाने दें. द्य अगर आप के बच्चे का व्यवहार कुछ दिनों से बदलाबदला नजर आ रहा है, वह आक्रामक होने लगा है या ज्यादा चुप रहने लगा है तो इस की वजह जानने का प्रयास करें.

रोज स्कूल से आने के बाद बच्चे का बैग चैक करें. उस के होमवर्क, क्लासवर्क और ग्रेड्स पर नजर रखें. उस के दोस्तों के बारे में भी सारी जानकारी रखें. द्य छोटे बच्चे को बस में चढ़नाउतरना सिखाएं.

बसस्टौप पर कम से कम 5 मिनट पहले पहुंचें. द्य आप अपने बच्चों को सिखाएं कि किसी आपातकालीन स्थिति में किस तरह के सुरक्षात्मक कदम उठाए जा सकते हैं. हो सके तो बच्चों को सैल्फडिफैंस के गुर, जैसे मार्शल आर्ट व कराटे वगैरा सिखाएं.

मनोवैज्ञानिक पहलू तुलसी हैल्थ केयर, नई दिल्ली के मनोचिकित्सक डा. गौरव गुप्ता बताते हैं कि गुड़गांव के प्रद्युम्न केस की बात हो या 4 साल की बच्ची का यौनशोषण, इस तरह की घटनाएं बच्चों में बढ़ती हिंसक प्रवृत्ति व गलत कामों के प्रति आकर्षण को चिह्नित करती हैं.

इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि आज लोगों के पास वक्त कम है. हर कोई भागदौड़भरी जिंदगी में व्यस्त है. संयुक्त परिवारों की प्रथा खत्म होने के कगार पर पहुंच चुकी है. नतीजा यह है कि बच्चों का लालनपालन एक मशीनी प्रक्रिया के तहत हो रहा है. परिवार वालों के साथ रह कर जीवन की वास्तविकताओं से अवगत होने और टीवी धारावाहिक व फिल्में देख कर जिंदगी को समझने में बहुत अंतर है. एकाकीपन के माहौल में पल रहे बच्चों के मन की बातों और कुंठाओं को समझना जरूरी है. मांबाप द्वारा बच्चों के आगे झूठ बोलने, बेमतलब की कलह और विवादों में फंसने, छोटीछोटी बातों पर हिंसा करने पर उतारू हो जाने जैसी बातें ऐसी घटनाओं का सबब बनती हैं क्योंकि बच्चे बड़ों से ही सीखते हैं.

स्कूल भी पीछे कहां हैं? स्कूल आज शिक्षाग्रहण करने का स्थान कम, पैसा कमाने का जरिया अधिक बन गए हैं. स्कूल का जितना नाम, उतनी ही महंगी पढ़ाई. जरूरी है कि शिक्षा प्रणाली में बाल मनोविज्ञान का खास खयाल रखा जाए. अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है. यदि हम सब आज भी अपनी आने वाली पीढ़ी के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझें और उसे सही ढंग से निभाएं तो अवश्य ही हम उन्हें बेहतर भविष्य दे सकते हैं.

साइबर बुलिंग

बुलिंग का अर्थ है तंग करना. इतना तंग करना कि पीडि़त का मानसिक संतुलन बिगड़ जाए. बुलिंग व्यक्ति को भावनात्मक और दिमागी दोनों ही तौर पर प्रभावित करती है. बुलिंग जब इंटरनैट के जरिए होती है तो इसे साइबर बुलिंग कहते हैं.

साइबर बुलिंग के कहर से भी स्कूली बच्चे सुरक्षित नहीं हैं. हाल ही में 174 बच्चों पर किए गए एक अध्ययन के मुताबिक, 17 फीसदी बच्चे बुलिंग के शिकार हैं. स्टडी में पाया गया कि 15 फीसदी बच्चे शारीरिक तौर पर भी बुलिंग के शिकार हो रहे हैं. इस में मारपीट की धमकी प्रमुख है. लड़कियों की तुलना में लड़के इस के ज्यादा शिकार होते हैं.

अपराध के बढ़ते मामले चिंताजनक

एनसीआरबी द्वारा हाल ही में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, 2015 और 2016 के बीच बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों की संख्या में 11 फीसदी बढ़ोतरी हुई है. क्राइ यानी चाइल्ड राइट्स ऐंड यू द्वारा किए गए विश्लेषण दर्शाते हैं कि पिछले एक दशक में बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराध तेजी से बढ़े हैं. 2006 में 18,967 से बढ़ कर 2016 में यह संख्या 1,06,958 हो गई. राज्यों के अनुसार बात करें तो 50 फीसदी से ज्यादा अपराध केवल 5 राज्यों उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, दिल्ली और पश्चिम बंगाल में दर्ज किए गए है. उत्तर प्रदेश 15 फीसदी अपराधों के साथ इस सूची में सब से ऊपर है. वहीं महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश क्रमश: 14 और 13 फीसदी अपराधों के साथ ज्यादा पीछे नहीं हैं.

अपराध की प्रवृत्ति और कैटिगरी की बात करें तो सूची में सब से ऊपर अपहरण रहा. 2016 में दर्ज किए गए कुल अपराधों में से लगभग आधे अपराध इसी प्रवृत्ति (48.9 फीसदी) के थे. इस के बाद अगली सब से बड़ी कैटिगरी बलात्कार की रही. बच्चों के खिलाफ दर्ज किए गए 18 फीसदी से ज्यादा अपराध इस श्रेणी में दर्ज किए गए.