राजसमंद लाइव मर्डर : लव जिहाद नहीं धर्म जिहाद

जिस धार्मिक तालीबानी खतरे का डर था वह अपने घिनौने रूप में सामने है. पिछले कुछ सालों से फैलाया जा रहा नफरत का बीज अब फल बन कर गिरने लगा है. इस के नतीजे में वह घिनौना चेहरा सामने खड़ा है जिस को देख पाना किसी भी इनसान के लिए मुश्किल है.

21वीं सदी के भारत में 69 सालों के लोकतंत्र का अगर यही हासिल है तो उस का पूरा बनने पर ही सवाल खड़ा हो जाता है. राजस्थान के राजसमंद से सामने आई  एक वारदात और उस की आग की लपटों में कोई एक बेबस इनसान नहीं, बल्कि देश का पूरा संविधान व लोकतंत्र जल रहा है.

यह इनसानियत को शर्मसार करने वाली वह तसवीर है, जो बताती है कि अब कुछ बचा नहीं है. अगर बचे हैं तो सिर्फ अपराधी गिरोह और उन का नंगा नाच जो धर्म का वेश धर कर पूरी इनसानियत को लील जाने के लिए तैयार हैं.

राजसमंद की एक वारदात की तसवीरें और वीडियो वायरल हुए. जिहाद का बदला लेने के लिए एक मुसलमान मजदूर की वहशी तरीके से हत्या कर उस की लाश को जला दिया गया.

खबरों के मुताबिक, पश्चिम बंगाल के मालदा का एक मजदूर राजसमंद में अपने परिवार के साथ मजदूरी करता था. हत्या करने वाले शख्स ने उसे काम देने के बहाने अपने पास बुलाया. हत्यारे का नाम शंभुलाल रैगर है. उस ने 50 साल के एक अधेड़ आदमी, जिस का नाम मोहम्मद अफराजुल बता रहे हैं, की पहले कुल्हाड़ी और तलवार से बेरहमी से हत्या की, फिर उस की लाश को जला दिया गया.

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इस पूरी वारदात का शंभुलाल ने अपने एक दोस्त की मदद से न केवल वीडियो बनाया, बल्कि उस ने हत्या और लाश को जलाने की बात को भी माना.

इस वीडियो में दिखा कि अफराजुल आगे चल रहे थे और उन के पीछे शंभुलाल था. मौका पाते ही शंभुलाल ने पीछे से अफराजुल पर हमला कर दिया. इस हमले में उन पर 1-2 नहीं बल्कि कई बार वार किया गया. उस के बाद शंभुलाल ने अपनी मोटरसाइकिल से तलवार निकाल ली और अफराजुल का गला काट दिया.

इस के पहले अफराजुल लगातार उस से अपनी जान की भीख मांग रहे थे, लेकिन शंभुलाल पर इस का कोई असर नहीं पड़ता दिखा. फिर शंभुलाल ने अफराजुल को आग के हवाले कर दिया.

वीडियो में शंभुलाल ने हत्या की बात कबूल की है. उस ने कहा कि यह तुम्हारी हालत होगी. ये हमारे देश में लव जिहाद करते हैं. अगर ऐसा करोगे तो हर जिहादी की हालत ऐसी ही होगी. जिहाद खत्म कर दो.

इस के अलावा एक दूसरे वायरल वीडियो में एक शख्स ने कहा कि यह हत्या हिंदुत्व को बचाने के लिए की गई है. उस शख्स ने कहा कि मेवाड़ को बचाना है. मेवाड़ को एक हो कर इसलामिक जिहाद को यहां से निकालना है, इसलिए मेवाड़ के सभी भाईबहनो, मैं ने जो किया है चाहे अच्छा है या गलत है, लेकिन मुझे जो लगा मैं ने किया.

बोया बीज बबूल का…

तमाम तरह के धर्म अब इनसानियत के दुश्मन बन चुके हैं. इसलाम के आदेश के मुताबिक मुसलमानों ने तलवारें उठाईं. आज अफगानिस्तान, पाकिस्तान में रोज चरमपंथियों द्वारा इनसानियत का कत्ल किया जा रहा है.

अमेरिकी राष्ट्रपति ने यरुशलम को इजरायल की राजधानी यों ही नहीं बताया है. यरुशलम को ले कर जो लड़ाइयां हुई थीं उन को दोबारा जिंदा किया जा रहा है. धर्म के नाम पर इनसानियत की हत्या करने की साजिश रची जा रही है और यह भूख सिर्फ और सिर्फ सब से ताकतवर दिखने व पूंजी लूटने की है. जो खुद अपनेआप को नहीं बचा पाया, उस के मानने वाले दावा तो दुनिया को बचाने का काम कर रहे हैं लेकिन बहुत खूनखराबा सदियों तक यीशु के इन्हीं मानने वालों ने किया है.

भारत की हालत भी ज्यादा अच्छी नहीं रही है. वर्ण भेद के आधार पर ब्राह्मण धर्म की सोच भी इनसानियत को कमजोर करने वाली रही है. ब्राह्मण धर्म के जोरजुल्म की मारी जनता ने बगावत कर बौद्ध परंपरा अपना ली तो पुष्यमित्र शुंग द्वारा सत्ता हथियाने के बाद बौद्धों पर जुल्म करने का सिलसिला चल पड़ा था.

जब भी ब्राह्मण धर्म कमजोर हुआ तो इस देश में शांति रही और जब भी ब्राह्मण धर्म मजबूत हुआ, बहुसंख्यक जनता पर जुल्म ढहाए गए. इतिहास इन के जुल्मों की कथाओं से भरा पड़ा है. तेल की कड़ाहियों में बौद्धों को जिंदा डाल कर मारा गया था. दलितों को कभी इनसान ही नहीं माना गया था. आज इन के 33 करोड़ देवीदेवता धर्म बचाने में नाकाम हो गए हैं, लेकिन अनोखी बात देखो कि एक अंबेडकर का लिखा ग्रंथ इस देश को चला रहा है. यह इन लोगों को फूटी आंख नहीं सुहाता है.

आजादी के आंदोलन के समय भी धर्मांधता के कीचड़ में पूरा का पूरा आंदोलन फंसा हुआ था. दलितों को अंगरेजी राज में खुली हवा में सांस लेने की छूट मिली थी. वे किसी भी हालत में इसे खोना नहीं चाहते थे और उन की लड़ाई की अगुआई अंबेडकर कर रहे थे.

अंगरेजों की विदाई के बाद ब्राह्मणवादी पूरी तरह सत्ता पर कब्जा करना चाहते थे इसलिए तमाम हिंदू संगठन इस के जुगाड़ में लग गए थे. मुसलिमों की अगुआई जिन्ना जैसे लोग कर रहे थे. हक की आड़ में ब्राह्मणों व मुसलमानों ने अपनेअपने धर्म के आधार पर देश का बंटवारा करा दिया था. बेचारे दलित, किसान और आदिवासी कहां जाते?

दलितों के लिए तो अंबेडकर ने संविधान में पुख्ता इंतजाम किए लेकिन तालीम की कमी में वे ज्यादा समझ नहीं पाए. किसान तो बेचारे सदियों से अनाथ ही थे और आजादी के बाद भी अनाथ से ही हो कर रह गए.

अब राजसमंद कांड में सीधेतौर पर तो कोई हिंदूवादी संगठन जिम्मेदार नहीं है लेकिन इन हिंदूवादी संगठनों द्वारा 90 साल से की जा रही मेहनत का नतीजा इसे जरूर माना जा सकता है.

बाबरी मसजिद ढहाने के बाद इस में एकाएक तेजी आई थी जिस में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी की सरकारों ने भी खूब सहयोग दिया.

जब धर्म के नाम पर नफरत के बीज बोए जाएंगे तो उन्हीं के नतीजे दरिंदों की इस तरह की दरिंदगी के रूप में ही सामने आएंगे. इस वारदात के समर्थक दूसरी वारदातों के उदाहरण दे कर कट्टर सोच को ढो रहे हैं.

धर्म के नाम पर जो हत्या, मारपीट व भेदभाव की घटनाएं हो रही हैं उन के कुसूरवारों को अदालत जाना भी नहीं पड़ रहा. पर जो उन की पोलपट्टी खोलते हैं उन पर मुकदमे दर्ज हो जाते हैं. धर्म इनसानियत का हत्यारा है, पर इस पर लगाम लगाने की कभी किसी में हिम्मत नहीं है.

गहरी साजिश की बूराजसमंद में अफराजुल के परिवार ने हत्यारों के लिए फांसी की सजा की मांग की है. उन्होंने कहा है कि जिन लोगों ने उन की जानवरों की तरह हत्या की है और फिर उन की वीडियो को पूरी दुनिया में दिखाया है उन्हें सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए.

अफराजुल की बीवी गुलबहार ने कहा, ‘‘मैं उन लोगों के लिए फांसी की सजा चाहती हूं जिन्होंने मेरे पति की इतने घिनौने तरीके से हत्या की है. मैं इंसाफ चाहती हूं. वे इसलिए मारे गए क्योंकि वे मुसलिम थे.’’

3 बेटियों के पिता अफराजुल को अपनी छोटी बेटी की शादी के लिए घर लौटना था. परिवार के सदस्यों के मुताबिक, अफराजुल पिछले 12 सालों से राजस्थान में मजदूरी कर रहे थे. हर 2 महीने के बाद वे घर चले आते थे.

उन के पास जमीन का एक टुकड़ा था लेकिन उस से परिवार का भरणपोषण नहीं हो पाता था.

अफराजुल की भतीजी जीनत खान ने कहा, ‘‘इस में गहरी साजिश की बू आ रही है और कई बड़े लोग शामिल हैं. एक मजदूर भला क्या कर सकता है? जिस तरह से सोशल मीडिया पर इसे फैलाया गया है, उस से लगता है कि इस के पीछे एक गहरी साजिश है.’’

बहुत से लोगों ने शंभुलाल की तसवीर ‘माई हीरो शंभु भवानी’ के साथ अपने ट्विटर या फेसबुक के लिए प्रोफाइल फोटो डाला है. इन समर्थकों के नाम के साथ लगी जाति की पहचान करने पर चौंकाने वाला सच सामने आता है.

इस हत्याकांड का समर्थन कर रहे लोगों में से 95 फीसदी ऊंची जाति के हिंदू हैं जो शंभुलाल रैगर नामक एक दलित की हरकत को जायज ठहरा रहे हैं.

लोगों के बीच यह झूठ फैलाया जा रहा है कि आतंकी हमले का शिकार हुए बंगाली मजदूर अफराजुल ने हत्यारे शंभुलाल की बहन से शादी कर रखी थी और उसे भगा कर पश्चिम बंगाल ले गया था, जबकि सच तो यह है कि कातिल की बहन तो छोडि़ए उस की किसी रिश्तेदार से भी पीडि़त का कोई संबंध नहीं था. वे तो हत्यारे शंभुलाल को ठीक से जानते तक नहीं थे. उन्हें कातिल ने महज मुसलमान होने की वजह से हमले का शिकार बनाया और बड़ी बेरहमी से पहले तो काटा और फिर जला डाला.

इस वारदात को सिर्फ सनकी आदमी की सनक में किया गया आम अपराध बता देना नफरत के उन कारोबारी संगठनों की तरफदारी करना है जो अपनी जहरीली सोच से कमजोर दिमाग के नौजवानों को फंसा कर आत्मघाती दस्ते तैयार कर रहे हैं.

राजसमंद हत्याकांड यह भी साबित करता है कि दलित नौजवानों का तालिबानीकरण किया जा रहा है. उन के जरीए मौत के सौदागर अपना आतंकी खेल खेलने में कामयाब हो रहे हैं. इस से ऊंची जाति के सांप्रदायिक लोग एक तीर से कई शिकार करने की कोशिश कर रहे हैं.

वे दलितों और मुसलमानों को आमनेसामने की एक न खत्म होने वाली लड़ाई में झोंक कर खुद महफूज होने की कोशिश में हैं. इसी के साथ वे दलित नौजवानों को अपराधी बनाने का काम भी कर रहे हैं ताकि वे हत्या, दंगे, लूट, हमले जैसी वारदातें करते रहें और जेलों में बरसों सड़ते रहें. इस तरह एक शख्स ही नहीं बल्कि उस का पूरा परिवार ही बरबाद हो जाए.

दलितों और मुसलिमों को आपसी लड़ाई में धकेल कर भारत के कट्टर लोग सारे साधनों व संसाधनों पर काबिज हो कर अमीरी भोगते रहना चाहते हैं. यह एक घिनौनी साजिश है. इस के शिकार दलित हो चुके हैं.

दलित नौजवानों को बड़े पैमाने पर उन उग्र संगठनों से जोड़ा जा रहा है जिन के जरीए हिंसक वारदातें कराई जा सकें. हुड़दंग करने, दंगे फैलाने, त्रिशूल बांटने, शस्त्र पूजा कराने, चाकूबाजी और मुकदमे कराने, हत्याएं कराने व जेल भेजने के लिए ये नए बने कट्टर बहुत काम आते हैं.

हालांकि ये तभी तक हिंदू माने जाते हैं जब तक सामने मुसलमान हो या चुनाव होने हों. बाकी समय में इन को नीच हिंदू के तौर पर ही माना जाता है. धर्म की प्रयोगशाला में आज दलितों की औकात लैबोरेटरी में चीरफाड़ किए जाने वाले मेढ़कों जैसी हो गई है.

एक फर्जी किस्म की ऊपरीऊपरी कुछ मिनटों की इज्जत मिल जाने और थोड़ेबहुत पैसे पा कर आज के भटके दलित नौजवान अपनी जान पर खेल कर हमलावर तक बनने को तैयार हैं. वे कुछ भी सोचविचार नहीं कर पा रहे हैं. उन पर हिंदुत्व इतना हावी हो गया है कि वे खुद को धर्मयोद्धा समझ कर मरनेमारने पर उतारू हैं.

आज देश का दलित किशोर और नौजवान जिंदा बम बन कर खुदकुशी की राह पर चल पड़ा है. उन्हें धर्म से इतना भर दिया गया है कि भस्मासुर बन कर खुद का ही नुकसान कर रहे हैं. वे अब मनु के गीत गा रहे हैं. आरक्षण हटाने की मांग भी वे अब कर रहे हैं.

जब दोस्ती पर भारी पड़ गया शराब का नशा

उड़ीसा के रहने वाले 25 साल के कुमार मांझी की अपने से 10 साल बड़े सीतापुर निवासी पूरन से गहरी दोस्ती थी. दोनों साथ मिल कर कोई छोटामोटा काम करते और जो कमाते, उसी से गुजरबसर करते थे. इन के परिवार भी थे, लेकिन दोनों ही घर वालों के साथ नहीं रहते थे. ये दिन भर में जो कमाते थे, शाम को सीतापुर रोड पर कूड़ाखाना के पास स्थित देशी शराब के ठेके पर जा कर शराब में उड़ा देते थे.

मांझी और पूरन की दोस्ती इतनी गहरी थी कि दोनों को ही एकदूसरे के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता था. यहां तक कि उन्हें परिवार की भी कमी नहीं खलती थी. दोनों की उम्र में 10 साल का अंतर था, लेकिन वे लगते हमउम्र थे. इन की गहरी दोस्ती होने की वजह यह थी कि दोनों ही आपस में एक जैसा व्यवहार करते थे. दोनों की पसंद भी एक जैसी थी.

कई बार मांझी और पूरन के अन्य साथी इन के साथ रहना चाहते या बात करना चाहते तो दोनों ही उन से कन्नी काट लेते थे. दोनों ही पक्के शराबी थे. बिना शराब के वे एक भी दिन नहीं रह सकते थे. लेकिन शराब पीने के बाद अकसर दोनों में लड़ाई हो जाती थी. कई बार मारपीट भी हो जाती थी, इस के बावजूद दोनों देर तक एकदूसरे से अलग नहीं रह पाते थे.

रात में लड़ाई होती थी तो सवेरा होतेहोते सब ठीक हो जाता था. यह देख कर उन के अन्य दोस्त कहते भी थे कि मांझी और पूरन कब लड़ते हैं, पता ही नहीं चलता, सवेरे दोनों का चायनाश्ता एक साथ होता है. इस के बाद वे साथसाथ ही काम पर जाते थे.

पूरन और कुमार मांझी ने उस रात भी जम कर शराब पी थी. इस के बाद दोनों में लड़ाई शुरू हो गई. बात बढ़ी तो पूरन ने कहा, ‘‘मांझी, तू कभी पैसे खर्च नहीं करता. हमेशा मेरे पैसे ही खर्च कराता है.’’

‘‘हमारे बीच पैसा आ गया, इस का मतलब हमारी दोस्ती खतम.’’ मांझी ने कहा.

‘‘भई, दोस्ती रहे या खतम हो जाए, हम इस बारे में कुछ नहीं जानते. हम तो यह जानते हैं कि पैसे का सही से हिसाब होना चाहिए. पिछली बार के 100 रुपए अभी तक तुम ने नहीं दिए हैं.’’ पूरन ने कहा.

‘‘लेकिन मैं ने तो कई बार पैसे खर्च किए हैं, उन का क्या होगा?’’ मांझी ने कहा.

इस के बाद उन के बीच बात बढ़ गई. दोनों ही नशे में थे. ऐसे में आगापीछा सोचे बगैर आपस में हाथापाई करने लगे. मारपीट में उन्हें ध्यान ही नहीं रहा कि वे क्या कर रहे हैं. मांझी ज्यादा नशे में था, इसलिए पूरन ने उसे पीट दिया. मारपीट कर के पूरन बैठ गया. नशे की वजह से उसे झपकी आ गई.

नशा कम होने पर मांझी थोड़ा होश में आया तो उसे याद आया कि पूरन ने उसे मारा था. उसे गुस्सा आ गया और ईंट उठा कर उस ने पूरन के सिर पर दे मारी. तब उसे इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि इस से पूरन मर भी सकता है.

रात में दोनों रघुवर पैलेस के पास खाली प्लौट में बैठे थे. सवेरे 4 बजे कुमार मांझी इंजीनियरिंग कालेज चौराहे पर स्थित अनिल की दुकान पर पहुंचा. दोनों अकसर यहीं चायनाश्ता करते थे. कुमार के कपड़ों में खून लगा देख कर अनिल ने पूछा, ‘‘तेरे कपड़ों में खून कहां से लगा, पूरन कहां गया?’’

मांझी ने कहा, ‘‘कल रात पूरन से सौ रुपए को ले कर लड़ाई हो गई थी. वह मुझे बेईमान कह रहा था. जब मैं ने उसे सच बताया तो वह झगड़ा करने लगा. झगड़ा ज्यादा बढ़ा तो मैं ने ईंट से मार कर उस की हत्या कर दी. लेकिन अनिल भाई, अब मुझे अपनी गलती का अहसास हो रहा है. उस की मौत का मुझे पछतावा हो रहा है.’’

उस से कुछ कहने के बजाय अनिल ने उसे दुकान पर बैठा दिया और पुलिस को सूचना देने के लिए फोन करने लगा. लेकिन दूसरी ओर से फोन उठा ही नहीं. करीब 7 बजे अनिल ने रघुवर पैलेस के मैनेजर वीरेंद्र को घटना की सूचना दी तो वीरेंद्र ने जानकीपुरम थाने में तैनात सबइंसपेक्टर को फोन कर के इस बात की जानकारी दे दी.

इस के बाद 9 बजे पुलिस मौके पर पहुंची और लाश को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस में पुलिस को कुछ समय लग गया. तब तक कुमार मांझी को पूरी तरह होश आ गया था. होश में आने के बाद उसे पता चला कि मामला पुलिस तक पहुंच गया है तो पुलिस की मार की डर से वह कांपने लगा.

दोस्त की हत्या के साथसाथ पुलिस की मार का डर उसे सताने लगा. वहां मौजूद लोगों ने जब उसे बताया कि हत्या के बाद फांसी हो सकती है तो वह काफी डर गया. हत्या के आरोप में मिलने वाली सजा के डर से वह जंगल की ओर भागा.

अनिल ने मांझी को भागते देखा तो उसे पकड़ने के लिए शोर मचाने लगा. आसपास के लोगों ने उस का पीछा किया. लेकिन तब तक वह गुडंबा के जंगल में घुस गया, जहां एक पेड़ के पीछे छिप गया. पुलिस अन्य लोगों को साथ मिल कर मांझी की तलाश करती रही. करीब आधे घंटे की मशक्कत के बाद मांझी को पकड़ लिया गया और थाने लाया गया.

थाना जानकीपुरम के थानाप्रभारी इंसपेक्टर सतीश सिन्हा ने बताया कि अपने दोस्त की हत्या के आरोप में पकड़े गए कुमार मांझी ने स्वीकार कर लिया है कि सौ रुपए के विवाद में उस ने दोस्त की हत्या को अंजाम दिया था.

शुक्रवार की रात कुमार मांझी से मृतक पूरन ने सौ रुपए उधार मांगे थे. पैसे न होने पर कुमार ने देने से मना कर दिया, जिसे ले कर दोनों के बीच कहासुनी हो गई. बात हाथापाई तक पहुंच गई. मारपीट के दौरान कुमार ने ईंट से पूरन के सिर पर कई वार कर दिए, जिस से उस की मौके पर ही मौत हो गई.

मांझी और पूरन की दोस्ती पर शराब का नशा भारी पड़ा. अगर दोनों शराब न पीते होते तो सौ रुपए जैसी मामूली रकम के लिए मांझी अपने सच्चे दोस्त की हत्या कतई नहीं कर सकता था. पूछताछ के बाद पुलिस ने कुमार मांझी को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस और पब्लिक से मिली जानकारी के आधार पर

11 दुल्हों की फरेबी दुलहन की कहानी

देश की राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा शहर में कारखानों और बड़ीबड़ी कंपनियों के तमाम औफिस हैं, जिन में काम करने के लिए देश के अलगअलग राज्यों से आए लोग यहां रह रहे हैं. रहने  वालों की संख्या बढ़ती गई तो फ्लैट कल्चर कायम हुआ. जिन में रहने वाले लोग एकदूसरे से ज्यादा मतलब नहीं रखते.  इसे इस तरह भी कह सकते हैं कि लोग निजी जिंदगी में किसी की दखलंदाजी पसंद नहीं करते.

ऐसे में किस फ्लैट में कौन रहता है और कौन क्या करता है, पड़ोसियों तक को पता नहीं होता. नोएडा शहर के ही सैक्टर-120 स्थित जोडिएक अपार्टमेंट सोसाइटी भी इस आधुनिक हकीकत से अलग नहीं थी. 17 दिसंबर, 2016 की सुबह पुलिस की 2 गाडि़यां सोसाइटी में आ कर रुकीं. पुलिस ने गेट पर तैनात सुरक्षाकर्मियों से कुछ पूछताछ की और फिर एक सुरक्षाकर्मी को साथ ले कर सीधे 11वीं मंजिल पर बने फ्लैट नंबर-1104 के सामने जा पहुंची.

पुलिस के इशारे पर सुरक्षाकर्मी ने दरवाजे के ठीक बराबर में लगी डोरबैल बजाई तो अंदर से किसी लड़की की आवाज आई, ‘‘कौन है?’’

सुरक्षाकर्मी ने जवाब में कहा, ‘‘दरवाजा खोलिए मैम, मैं गार्ड हूं.’’

‘‘क्या बात है?’’

‘‘आप से कोई मिलने आया है.’’ गार्ड ने कहा.

कुछ पलों की खामोशी के बाद एक लड़की ने दरवाजा खोला तो दरवाजे पर पुलिस वालों को देख कर उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. वह कुछ समझ पाती, उस के पहले ही एक पुलिसकर्मी ने पूछा, ‘‘मेघा कहां है?’’

पुलिस वाले के इस सवाल पर वह चौंकी, लेकिन तुरंत ही संभलने की कोशिश करते हुए जवाब देने के बजाए सवाल दाग दिया, ‘‘एक्सक्यूजमी सर, कौन मेघा? मैं समझी नहीं. आप शायद गलत जगह आ गए हैं. यहां कोई मेघा नहीं रहती.’’

लड़की के जवाब से एकबारगी पुलिसकर्मी सकते में आ गए. लेकिन अगले ही पल उस ने कहा, ‘‘यह नाटक बंद करो और जल्दी बताओ कि मेघा कहां है?’’

वह लड़की कोई जवाब देती, उस के पहले ही पुलिसकर्मी फ्लैट में दाखिल हो गए. अंदर बैडरूम में एक लड़की एक युवक के साथ बैठी टीवी देख रही थी. पुलिसकर्मियों की नजर जैसे ही उस लड़की पर पड़ी, उन के चेहरे पर मुसकान तैर गई. जबकि लड़की ने हारे हुए जुआरी की तरह दोनों हाथों से अपना सिर थाम लिया.

उस की हालत देख कर उस पुलिसकर्मी ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा, ‘‘यहां भी तुम शादी करने आई होगी मेघा? चलो, बहुत शादियां कर लीं, अब बाकी का वक्त जेल में बिता लेना.’’

लड़की हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाते हुए बोली, ‘‘मुझे माफ कर दीजिए सर, अब आगे से ऐसी गलती नहीं करूंगी.’’ पुलिसकर्मियों ने उस की बातों को नजरअंदाज करते हुए फ्लैट में रहने वाले तीनों लोगों को कस्टडी में ले कर औपचारिक पूछताछ की. इस के बाद पुलिस तीनों को थाना फेज-2 ले आई, जहां उन से लंबी पूछताछ की गई. गिरफ्तार तीनों लोगों में मेघा भार्गव, उस की बहन प्राची और जीजा देवेंद्र शर्मा शामिल थे.

अगले दिन मेघा की गिरफ्तारी अखबारों और समाचार चैनलों की सुर्खियां बन गई. इस की वजह यह थी कि मेघा कोई मामूली लड़की नहीं थी. उस ने 11 लोगों से शादी कर के उन से करीब एक करोड़ रुपए से ज्यादा की ठगी की थी. लोग उस की सुंदरता के जाल में आसानी से फंस जाते थे. उसे ले कर ढेरों अरमान सजाते थे, जबकि वह शादी की शहनाई में धोखे की धुन बजाती थी.

उन की नईनवेली दुलहन मेघा फरेबी होती थी और वह कुछ ही दिनों में पूरे परिवार को नींद की गोलियां खिला कर घर में रखी नकदी और गहने ले कर रफूचक्कर हो जाती थी. इस के बाद ऐशपरस्त जिंदगी जीने वाली मेघा एक बार फिर नए दूल्हे की तलाश में निकल पड़ती थी. सिलसिला था कि थमने का नाम ही नहीं ले रहा था.

केरल के त्रिवेंद्रम में भी मेघा फरेब का ऐसा ही खेल खेल कर आई थी. नोएडा पुलिस की मदद से उसे गिरफ्तार करने  वाली केरल पुलिस ही थी. उस के कारनामे से हर कोई दंग था. तीनों आरोपियों को केरल ले जाना था, लिहाजा पुलिस ने तीनों को सूरजपुर स्थित न्यायालय में पेश किया और कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के उन्हें साथ ले कर केरल के लिए रवाना हो गई. सचमुच इस लुटेरी दुलहन का हर कारनामा चौंकाने वाला था.

27 वर्षीया मेघा भार्गव मूलरूप से भोपाल के अशोकनगर निवासी उमेश भार्गव की 4 बेटियों में तीसरे नंबर के बेटी थी. उस ने एमबीए की पढ़ाई की थी. वह शुरू से ही शातिर दिमाग और महत्वाकांक्षी थी. उस के ऐशपरस्ती के जो सपने थे, वे साधारण जिंदगी में कभी पूरे नहीं हो सकते थे. लेकिन वह अपने सपनों को पूरा करना चाहती थी.

करीब 6 साल पहले मेघा ने केतन नामक युवक से एक कालेज में एडमीशन कराने के नाम पर 80 हजार रुपए ले लिए थे. लेकिन एडमीशन नहीं हो सका तो केतन अपने रुपए वापस मांगने लगा. मेघा ने रुपए लौटाने में आनाकानी की तो उस ने उस के खिलाफ ठगी का मामला दर्ज करा दिया. दरअसल, मेघा का मकसद उसे धोखा देना ही था. पुलिस ने इस मामले में उस के खिलाफ कोई काररवाई नहीं की तो केतन न्यायालय चला गया.

इस के बाद मेघा का परिवार मध्य प्रदेश के इंदौर शहर के गोयल विहार में शिफ्ट हो गया. लेकिन केतन ने उस का पीछा नहीं छोड़ा. अंत में पुलिस से दबाव  डलवा कर उस ने अपनी रकम वसूल कर ही ली. मेघा ने पीछा छुड़ाने के लिए यह रकम कर्ज ले कर अदा की थी. कर्ज अदा करने के लिए उस ने एक संस्थान में रिसैप्शनिस्ट की नौकरी कर ली. समय अपनी गति से चलता रहा. करीब 2 साल पहले मेघा की मुलाकात महेंद्र बुंदेला से हुई. समाज में ऐसे शातिर लोगों की कमी नहीं है, जो महत्वाकांक्षी लोगों का इस्तेमाल अपने हिसाब से करने में माहिर होते हैं.

मेघा के रंगढंग और पैसे की जरूरतों को देख कर महेंद्र समझ गया कि यह ऐसी लड़की है, जो पैसों के लिए कुछ भी कर सकती है. मौका देख कर उस ने मेघा से कहा, ‘‘मेघा, तुम ऐश की जिंदगी जीना चाहती हो न?’’

‘‘बिलकुल.’’ मेघा की आंखों में एकाएक चमक आ गई. ‘‘मेरे पास एक आइडिया है. तुम चाहो तो महीने भर में ही इतनी रकम कमा सकती हो कि पूरे साल मेहनत कर के भी उतना नहीं कमा सकती. लेकिन इस के लिए मैं जिस से कहूं, तुम्हें उस से शादी करनी होगी. वहां से जो माल मिलेगा, उस में मुझे आधा हिस्सा देना होगा.’’

‘‘क…क्या,’’ मेघा चौंकी, ‘‘लेकिन मैं अभी शादी नहीं करना चाहती.’’

‘‘शादी तो एक नाटक होगी, लेकिन उसी से तुम अमीर बन सकती हो.’’ महेंद्र ने उसे समझाया, ‘‘मैं किसी ऐसे अमीर को पकडूंगा, जिस की शादी नहीं हो रही होगी. शादी के बाद उस के माल पर हाथ साफ कर के तुम दूर निकल जाना.’’

मेघा को महेंद्र की यह योजना पसंद आ गई. इस के बाद महेंद्र एक ऐसा तलाकशुदा आदमी ढूंढ कर लाया, जो शादी के लिए काफी परेशान था. महेंद्र ने उसे मेघा की फोटो दिखा कर किसी दूसरे राज्य की अनाथ लड़की बताया. फोटो देखते ही उस ने मेघा को पसंद कर लिया तो उस ने दोनों की मुलाकात करा दी. मेघा सुंदर भी थी और पढीलिखी भी. उस आदमी की जिंदगी में जैसे खुशियों की बहार खुद चल कर आ रही थी. महेंद्र ने कहा कि लड़की जल्द से जल्द शादी करना चाहती है, क्योंकि उसे पति के रूप में सहारा चाहिए. इस पर वह आदमी और भी खुश हुआ. इस मौके को वह हाथ से जाने नहीं देना चाहता था, इसलिए जल्दी ही महेंद्र ने एक मंदिर में उन का विवाह करा दिया.

विवाह के अभी 10 दिन ही बीते थे कि मेघा एक रात करीब साढ़े 11 लाख रुपए की नकदी ले कर लापता हो गई. उस आदमी ने महेंद्र से संपर्क किया तो उस ने हाथ खड़े कर दिए. उस ने कहा कि उस अनाथ लड़की से उस की जानपहचान जरूर थी, लेकिन वह कहां की रहने वाली थी, इस बारे में उसे पता नहीं था. यह उस आदमी की शराफत थी  कि उस ने पुलिस में शिकायत नहीं की. जैसा तय था, मेघा ने आधी रकम महेंद्र को दे दी.

इस के बाद मेघा मुंबई चली गई. कुछ दिन मस्ती में गुजारने के बाद उस ने नया शिकार तलाश कर लिया और इस नए शिकार को उस ने 40 लाख रुपए का चूना लगाया. मेघा को ठगी का यह अनोखा धंधा रास आ गया. अब तक वह इतनी तेज हो गई थी कि उस ने महेंद्र का साथ छोड़ दिया और खुद ही अपने लिए दूल्हे ढूंढने लगी.

उस ने पुणे के एक अमीर परिवार के अपाहिज लड़के से शादी कर के वहां 90 लाख रुपए का चूना लगाया. इस के बाद उस ने मुंबई छोड़ दी. इस बीच मेघा की बड़ी बहन प्राची का विवाह देवेंद्र से हो चुका था. मेघा के धंधे से वे वाकिफ थे. रुपयों के लालच में वे भी उस की फितरत में शामिल हो गए.

कभी पैसोंपैसों के लिए मोहताज रहने वाली मेघा नोटों से खेलने लगी. वह अच्छा खाने और महंगे कपड़े पहनने की शौकीन थी. बड़े शहरों में घूमने के लिए हवाई जहाज की यात्राएं करती थी. मेघा सौ, 5 सौ के नोट टिप में दे दिया करती थी.

उस का कोई स्थाई ठिकाना नहीं था. वह शादियों के विज्ञापन देने वाली इंटरनेट बेवसाइट्स पर शिकार की तलाश करती थी. खास बात यह थी कि वह पैसे वाले तलाकशुदा और विकलांगों से ही शादी करती थी. इस की वजह यह थी कि उन्हें अच्छी लड़की मिल रही होती थी. ऐसे जरूरतमंद लोग ज्यादा छानबीन किए बिना शादी के लिए आसानी से तैयार हो जाते थे.

मेघा की बहन और जीजा भावी दूल्हे के परिवार से मिलते थे और माली हालत का अंदाजा लगा कर ही रिश्ता पक्का करते थे. रिश्ता पक्का होते ही शादी की जल्दी करते थे. वह अपनी कमजोर माली हालत का परिचय देते तो शादी का खर्च भी लड़के वाले ही उठाते थे. जिन की माली हालत लूटने लायक नहीं होती थी, वहां वे कोई न कोई बहाना बना कर रिश्ता तोड़ देते थे.

मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के अलावा राजस्थान और बिहार में भी मेघा ने लोगों को अपना शिकार बनाया था. परिवार के नाम पर मेघा की शादी में बहन और जीजा ही शामिल होते थे. कुछ मामलों में वह खुद को अनाथ और दुखियारी लड़की बता कर अकेली ही रिश्ता पक्का कर लेती थी. वह हंसमुख स्वभाव की थी, इसलिए शादी के बाद दूल्हे के घर वालों से मीठीमीठी बातें कर के घुलमिल जाती थी.

ससुराल वाले तो अपनी नईनवेली दुलहन की तारीफ करते नहीं थकते थे कि उन के नसीब अच्छे थे, जो गुणी बहू मिली. रुपए और गहने कहां रखे होते थे, इस की वह जल्दी से जल्दी जानकारी हासिल कर लेती थी. उस में एक खास बात यह थी कि वह घर में खाना बनाने का काम भी जल्दी ही संभाल लेती थी.

ऐसा कर के वह एक तीर से 2 शिकार करती थी. एक तो लड़के वाले उस के कामकाज की प्रशंसा कर के विश्वास करने लगते थे, दूसरे उसे नींद की गोलियां मिलाने में सुविधा हो जाती थी. वह ऐसी अदाकारा बन चुकी थी कि सभी उस पर पूरी तरह विश्वास कर बैठते थे. वारदात करने से पहले वह बहन और जीजा को बता देती थी, जिस से तय समय पर वे घर के बाहर पहुंच जाते थे. इस के बाद मेघा सामान समेट कर उन के साथ निकल जाती थी.

प्रत्येक वारदात के बाद मेघा अपने मोबाइल का सिमकार्ड तोड़ कर फेंक देती थी. कुछ लोगों ने पुलिस में शिकायतें भी कीं, लेकिन पुलिस कभी उस तक पहुंच नहीं पाई. इस से उस के हौसले बढ़ते गए. पिछले साल मेघा अपनी बहन और जीजा के साथ केरल पहुंची. मेघा ने अपने पुराने अंदाज में शादी कर के 4 लोगों को ठगा. कुछ महीने पहले उस ने त्रिवेंद्रम के लौरेन जोसटिस से शादी की.

शादी के 20 दिनों बाद ही वह करीब 15 लाख के माल पर हाथ साफ कर के भाग निकली. उस के शिकार हुए लोग लुटने के बाद सिर पीट कर रह जाते थे, लेकिन लौरेन सिर पीटने वालों में नहीं थे. उन्होंने सीधा पुलिस का रुख किया और मेघा के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया. पुलिस ने मामले को गंभीरता लिया और इस केस की जांच का जिम्मा इंसपेक्टर टी. सज्जी को सौंपा गया. कुछ समय मुंबई में रहने के बाद मेघा, प्राची और देवेंद्र नोएडा आ कर रहने लगे.

यह इत्तेफाक ही था कि अभी तक मेघा कभी पकड़ी नहीं गई थी. उस का सोचना था कि उस का जन्म ही शादी की चाह रखने वाले लोगों को ठगने के लिए हुआ है. तीनों फ्लैट में गुमनाम जिंदगी जी रहे थे और किसी से कोई वास्ता नहीं रखते थे. आसपास के लोगों को खबर भी नहीं थी कि वहां शादी के नाम पर अपने हाथों में मक्कारी की मेहंदी लगाने वाली जालसाज दुलहन रहती है.

नोएडा में भी वे नए शिकार की तलाश में जुट गए थे. उधर केरल पुलिस ने ठगी के इस मामले को चुनौती के रूप में लिया. उस ने मेघा के फोटो हासिल करने के साथ ही उस के मोबाइल नंबर को हासिल कर के उस की कौल डिटेल्स निकलवाई. उन की गहराई से जांचपड़ताल की गई. उस में 2 नंबर मिले, जिन पर उस की सब से ज्यादा बातें हुई थीं. इन तीनों की लोकेशन भी साथसाथ होती थी. यही दोनों नंबर उस की बहन और जीजा के थे. लेकिन परेशानी की बात यह थी कि तीनों ही नंबर बंद कर दिए गए थे.

जिन मोबाइल हैंडसेट में ये नंबर इस्तेमाल होते थे, उन पर कोई दूसरा नंबर भी नहीं चल रहा था. लेकिन एक महीने बाद एक मोबाइल हैंडसेट में नया नंबर चल गया. जांच में यह नंबर मेघा के जीजा देवेंद्र का निकला. इस नंबर के संपर्क में 2॒ नंबर और आए. पुलिस समझ गई कि ये मेघा और प्राची के नंबर हैं.

पुलिस ने इन नंबरों की लोकेशन पता कराई तो वह नोएडा की मिली. इस के बाद पुलिस ने तीनों ही नंबरों को सर्विलांस पर लगा दिया. बहुत जल्दी साफ हो गया कि ये नंबर शादी के नाम पर ठगी करने वाली तिगड़ी के हैं. मेघा कोई नया शिकार फांस कर नंबर बदल सकती थी, इसलिए उसे जल्दी गिरफ्तार करना जरूरी था.

इंसपेक्टर टी. सज्जी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम नोएडा आ पहुंची और एसएसपी धर्मेंद्र यादव से मिली. एसएसपी ने एसपी (सिटी) दिनेश यादव को मदद करने के निर्देश दिए. उन्होंने फेज-2 थानाप्रभारी उम्मेद सिंह को केरल से आई पुलिस टीम के साथ लगा दिया. पुलिस ने पहले सुरागसी की, उस के बाद सोसाइटी जा कर तीनों को गिरफ्तार कर लिया.

मेघा के पकड़े जाने के बाद केरल के वे अन्य लोग भी सामने आ गए हैं, जिन्हें मेघा ने ठगा था. पुलिस ने मेघा, प्राची और देवेंद्र को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया था. कथा लिखे जाने तक किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हो सकी थी. मेघा ने अपनी महत्वाकांक्षाओं को काबू में रखा होता और पढ़ाई का सही इस्तेमाल किया होता तो आज उसे जेल जाने की नौबत न आती.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बच्चों की सुरक्षा के लिए सतर्कता जरूरी

7 साल का प्रद्युम्न ठाकुर गुड़गांव के ख्यातिप्राप्त रायन इंटरनैशनल स्कूल की कक्षा 2 का छात्र था. रोजाना की तरह गत 8 सितंबर को मां ने प्यार से तैयार कर उसे पढ़ने के लिए स्कूल भेजा. पिता द्वारा प्रद्युम्न को स्कूल में पहुंचाने के आधे घंटे के अंदर घर पर फोन आ गया कि बच्चे के साथ हादसा हो गया है. प्रद्युम्न को संदिग्ध परिस्थितियों में ग्राउंडफ्लोर पर मौजूद वाशरूम में खून से लथपथ मृत अवस्था में पाया गया. देखने से स्पष्ट था कि उस की हत्या की गई है. उस पर 2 बार चाकू से वार किए गए थे. अत्यधिक खून बहने से उस की मौत हो गई.

प्रारंभिक जांच में बस कंडक्टर को दोषी पाया गया मगर बाद की जांच में उसी स्कूल की 11वीं कक्षा के एक छात्र को हिरासत में लिया गया. आरोपी छात्र ने स्वीकार किया कि महज परीक्षा की तिथि और टीचर पेरैंट्स मीटिंग की तारीख आगे बढ़वाने के मकसद से उस ने, जानबूझ कर, इस घटना को अंजाम दिया.

वैसे, इस केस में स्कूल प्रशासन पर सुबूत छिपाने के इलजाम भी लगे और एक बार फिर स्कूलों में बच्चों की लचर सुरक्षा व्यवस्था की हकीकत सामने आ गई.

बच्चों की सुरक्षा पर सवाल खड़ा करता ऐसा ही मामला द्वारका, दिल्ली के एक स्कूल का है. यहां 4 साल की बच्ची के साथ यौनशोषण की घटना सामने आई. आरोप बच्ची की ही कक्षा में पढ़ने वाले 4 साल के बच्चे पर लगा. छोटी सी बच्ची से बलात्कार का एक मामला 14 नवंबर को दिल्ली के अमन विहार इलाके में भी सामने आया. यह नाबालिग बच्ची अपने मातापिता के साथ किराए के मकान में रहती थी. आरोपी युवक उसी मकान में पहली मंजिल पर रहता था.

दिल्ली के एक स्कूल में 5 साल की बच्ची के साथ स्कूल के चपरासी द्वारा बलात्कार की घटना ने भी सभी को स्तब्ध कर दिया. इन घटनाओं ने स्कूल परिसरों में बच्चों की सुरक्षा को ले कर कई प्रश्न खड़े कर दिए हैं. स्कूल परिसरों में मासूम लड़कियां ही नहीं, लड़के भी यौनशोषण के शिकार हो रहे हैं.

इस संदर्भ में सभी राज्य सरकारों, स्कूल प्रशासनों और मातापिता को सतर्क होने की जरूरत है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न घट सकें.

स्कूल की जिम्मेदारियां

कोई भी मातापिता जब अपने बच्चे के लिए किसी स्कूल का चुनाव करते हैं तो स्कूल की आधारभूत संरचना और वहां की पढ़ाई के स्तर को जांचने के साथ ही उन का विश्वास भी होता है जो उन्हें किसी विशेष स्कूल को अपने बच्चे के लिए चुनने हेतु प्रेरित करता है. ऐसे में स्कूल प्रशासन की पूरी जिम्मेदारी बनती है कि वह न सिर्फ बेहतरीन शिक्षा उपलब्ध कराए, बल्कि मातापिता के विश्वास पर भी खरा उतरे.

मातापिता की जिम्मेदारियां

हर मातापिता का कर्तव्य है कि वे घरबाहर अपने बच्चों की सुरक्षा को ले कर सतर्क रहें. घर के बाद बच्चे सब से अधिक समय स्कूल में बिताते हैं. ऐसे में स्कूल परिसर में बच्चों की सुरक्षा एक गंभीर मुद्दा है. द्य मातापिता को चाहिए कि जिस स्कूल में वे बच्चे को दाखिल कराने जा रहे हैं, वहां की सुरक्षा व्यवस्था की वे विस्तृत जानकारी लें.

हमेशा टीचरपेरैंट्स मीटिंग में जाएं और बच्चों की सुरक्षा से संबंधित कोई कमी नजर आए तो टीचर से उस की चर्चा जरूर करें. द्य बच्चों से स्कूल में उन के अनुभवों के बारे में खुल कर चर्चा करें. अगर अचानक बच्चा स्कूल जाने से घबराने लगे या उस के नंबर कम आने लगें तो इन संकेतों को गंभीरता से लें और इन का कारण जानने का प्रयास करें.

बच्चों को अच्छे और बुरे टच के बारे में समझाएं ताकि यदि कोई उन्हें गलत मकसद से छुए तो वे शोर मचा दें. द्य बच्चों को यह भी समझाएं कि यदि कोई बच्चा उन्हें डराधमका रहा है तो वे टीचर या मम्मीपापा को सारी बात बताएं.

बच्चों को मोबाइल और दूसरी कीमती चीजें स्कूल न ले जाने दें. द्य अगर आप के बच्चे का व्यवहार कुछ दिनों से बदलाबदला नजर आ रहा है, वह आक्रामक होने लगा है या ज्यादा चुप रहने लगा है तो इस की वजह जानने का प्रयास करें.

रोज स्कूल से आने के बाद बच्चे का बैग चैक करें. उस के होमवर्क, क्लासवर्क और ग्रेड्स पर नजर रखें. उस के दोस्तों के बारे में भी सारी जानकारी रखें. द्य छोटे बच्चे को बस में चढ़नाउतरना सिखाएं.

बसस्टौप पर कम से कम 5 मिनट पहले पहुंचें. द्य आप अपने बच्चों को सिखाएं कि किसी आपातकालीन स्थिति में किस तरह के सुरक्षात्मक कदम उठाए जा सकते हैं. हो सके तो बच्चों को सैल्फडिफैंस के गुर, जैसे मार्शल आर्ट व कराटे वगैरा सिखाएं.

मनोवैज्ञानिक पहलू तुलसी हैल्थ केयर, नई दिल्ली के मनोचिकित्सक डा. गौरव गुप्ता बताते हैं कि गुड़गांव के प्रद्युम्न केस की बात हो या 4 साल की बच्ची का यौनशोषण, इस तरह की घटनाएं बच्चों में बढ़ती हिंसक प्रवृत्ति व गलत कामों के प्रति आकर्षण को चिह्नित करती हैं.

इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि आज लोगों के पास वक्त कम है. हर कोई भागदौड़भरी जिंदगी में व्यस्त है. संयुक्त परिवारों की प्रथा खत्म होने के कगार पर पहुंच चुकी है. नतीजा यह है कि बच्चों का लालनपालन एक मशीनी प्रक्रिया के तहत हो रहा है. परिवार वालों के साथ रह कर जीवन की वास्तविकताओं से अवगत होने और टीवी धारावाहिक व फिल्में देख कर जिंदगी को समझने में बहुत अंतर है. एकाकीपन के माहौल में पल रहे बच्चों के मन की बातों और कुंठाओं को समझना जरूरी है. मांबाप द्वारा बच्चों के आगे झूठ बोलने, बेमतलब की कलह और विवादों में फंसने, छोटीछोटी बातों पर हिंसा करने पर उतारू हो जाने जैसी बातें ऐसी घटनाओं का सबब बनती हैं क्योंकि बच्चे बड़ों से ही सीखते हैं.

स्कूल भी पीछे कहां हैं? स्कूल आज शिक्षाग्रहण करने का स्थान कम, पैसा कमाने का जरिया अधिक बन गए हैं. स्कूल का जितना नाम, उतनी ही महंगी पढ़ाई. जरूरी है कि शिक्षा प्रणाली में बाल मनोविज्ञान का खास खयाल रखा जाए. अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है. यदि हम सब आज भी अपनी आने वाली पीढ़ी के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझें और उसे सही ढंग से निभाएं तो अवश्य ही हम उन्हें बेहतर भविष्य दे सकते हैं.

साइबर बुलिंग

बुलिंग का अर्थ है तंग करना. इतना तंग करना कि पीडि़त का मानसिक संतुलन बिगड़ जाए. बुलिंग व्यक्ति को भावनात्मक और दिमागी दोनों ही तौर पर प्रभावित करती है. बुलिंग जब इंटरनैट के जरिए होती है तो इसे साइबर बुलिंग कहते हैं.

साइबर बुलिंग के कहर से भी स्कूली बच्चे सुरक्षित नहीं हैं. हाल ही में 174 बच्चों पर किए गए एक अध्ययन के मुताबिक, 17 फीसदी बच्चे बुलिंग के शिकार हैं. स्टडी में पाया गया कि 15 फीसदी बच्चे शारीरिक तौर पर भी बुलिंग के शिकार हो रहे हैं. इस में मारपीट की धमकी प्रमुख है. लड़कियों की तुलना में लड़के इस के ज्यादा शिकार होते हैं.

अपराध के बढ़ते मामले चिंताजनक

एनसीआरबी द्वारा हाल ही में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, 2015 और 2016 के बीच बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों की संख्या में 11 फीसदी बढ़ोतरी हुई है. क्राइ यानी चाइल्ड राइट्स ऐंड यू द्वारा किए गए विश्लेषण दर्शाते हैं कि पिछले एक दशक में बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराध तेजी से बढ़े हैं. 2006 में 18,967 से बढ़ कर 2016 में यह संख्या 1,06,958 हो गई. राज्यों के अनुसार बात करें तो 50 फीसदी से ज्यादा अपराध केवल 5 राज्यों उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, दिल्ली और पश्चिम बंगाल में दर्ज किए गए है. उत्तर प्रदेश 15 फीसदी अपराधों के साथ इस सूची में सब से ऊपर है. वहीं महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश क्रमश: 14 और 13 फीसदी अपराधों के साथ ज्यादा पीछे नहीं हैं.

अपराध की प्रवृत्ति और कैटिगरी की बात करें तो सूची में सब से ऊपर अपहरण रहा. 2016 में दर्ज किए गए कुल अपराधों में से लगभग आधे अपराध इसी प्रवृत्ति (48.9 फीसदी) के थे. इस के बाद अगली सब से बड़ी कैटिगरी बलात्कार की रही. बच्चों के खिलाफ दर्ज किए गए 18 फीसदी से ज्यादा अपराध इस श्रेणी में दर्ज किए गए.

खून : अवैध संबंधों का फलितार्थ!

छत्तीसगढ़ के जिला कोरबा में एक ऐसी ही घटना घटित हुई है जिसे देखने पर विचार करना पड़ता है कि शराब किस तरह छत्तीसगढ़ के गरीब आदिवासियों को  बर्बाद कर रही है. एक “शराब विक्रेता” आदिवासी महिला के घर शराब पीने के लिए गए एक वृद्ध को  अपनी जान से हाथ धोना पड़ गया.

गांव के ही  युवक से अवैध संबंध रखने वाली इस महिला के पति ने अपने भाई के साथ पत्नी की हत्या करने हमला कर दिया… लेकिन नशे में धुत्त होकर सोए वृद्ध को अपनी पत्नी समझकर  टांगिया से वार कर वृद्ध पिअकड़ को वहीं ढेर कर दिया. यही नहीं पास में ही सोया प्रेमी भी उनके गुस्से का शिकार हुआ लेकिन शोर मचाकर जान बचा नौ दो ग्यारह हो गया.

इस संपूर्ण हत्याकांड में महत्वपूर्ण यह बात रही की शराब बेचकर जीवन यापन करने वाली पत्नी दूसरे कमरे में सोने के कारण बाल बाल बच गई. शायद इसीलिए कहते हैं जाकर राखे साइयां मार सके ना कोई.

पति पत्नी और “वो” का किस्सा

छत्तीसगढ़ के औघोगिक जिला कोरबा  के आदिवासी बाहुल्य पाली थाना क्षेत्र के ग्राम बांधाखार  स्थित नीम चौक निवासी वृद्ध चमरा सिंह नामक व्यक्ति की  विगत 17 सितंबर को रक्त रंजित लाश गांव के मीना बाई कोल के घर में मिली थी. इस मामले की गुत्थी पुलिस ने अंततः सुलझा ली.

थाना प्रभारी लीलाधर राठौर ने हमारे संवाददाता को बताया कि मृतक के पुत्र मनोहर सिंह मरावी (35 वर्ष) के द्वारा उसके पिता की 16 सितंबर की रात 7-8 बजे घर से निकलने और अधिकतर मीना बाई कोल के यहां जाकर शराब पीने के लिए जाने व घर वापस नहीं लौटने की सूचना दी गई थी.

17 सितंबर को सुबह 8 बजे ग्राम सरपंच तानू सिंह मरावी ने मनोहर को उसके पिता के मीना बाई के घर में लहूलुहान मृत हालत में पड़े होने की सूचना दी. मनोहर सिंह वहां पहुंचा तो मीना बाई के घर के एक कमरे में चमरा सिंह मृत पड़ा था और उसके सिर पर गंभीर चोट थी. मीना बाई और पड़ोसी घायल शिव सिंह वहां कुर्सी पर बैठे मिले.शिव सिंह के गले, पीठ और सीने में चोट थी.

मामले में पुलिस ने  जब मीना बाई व शिव सिंह से  पूछताछ की तो संपूर्ण मामला सामने आ गया – घटना  की रात मीना का पति गोरेलाल (45 वर्ष )और उसका भाई मूरित राम कोल( 30 वर्ष) दोनों पिता सुरूज लाल, है निवासी ग्राम बांधाखार शराब के नशे में धुत्त होकर मीना की हत्या करने की नीयत घर पहुंचे थे.

जांच अधिकारी राठौर ने बताया कि दोनों भाई कमरे में घुसे जहां औंधे मुंह वृद्ध चमरा सिंह सोया हुआ था और पास ही  शिव सिंह सोया था.वृद्ध को अपनी पत्नी मीना समझकर गोरेलाल ने टांगी से लगातार 3 वार किया तो तत्काल  उसकी मौत हो गई. इसके बाद शिव सिंह का गला काटने टांगी चलाया लेकिन शिव की नींद उचट गई और बचाव किया. उसके कंधे व गर्दन में जख्म आए हैं.

शिव ने जोर-जोर से शोर मचाया तो गोरेलाल व मूरित राम भाग निकले.इस पूरे घटनाक्रम के दौरान मीना बाई अपने मकान के ही एक अन्य कमरे में बच्चे के साथ सोई हुई थी. थाना प्रभारी लीलाधर राठौर ने आरोपियों को गिरफ्तार कर हत्या में प्रयुक्त टांगी को जब्त कर दोनों को जेल दाखिल कराया.बताया गया कि महिला का उसके पति गोरेलाल से वैवाहिक संबंध  ठीक नहीं था.

पत्नी की शराब बेचने वाले अन्य हरकतों से गोरेलाल परेशान भी रहता था .उसने शिव सिंह के साथ पत्नी को आपत्तिजनक हालत में पकड़ भी लिया था तब दोनों घर से भाग गए थे. इस मामले में गोरेलाल ने पंचायत भी बुलाई पर पत्नी ने पंचायत की बात नहीं मानी और अपने पति को ही घर से मारपीट कर निकाल दिया.

अपने घर में रह रहे गोरेलाल ने सबक सिखाने की ठान रखी थी और 16 सितंबर को शिव सिंह के संबंध में पता चला कि वह उसके घर जाने वाला है तब उसे खत्म करने के लिए गोरेलाल ने अपने भाई मूरित राम से मदद मांगी और सनसनीखेज वारदात कर डाली.

पुलिस अधिकारी विवेक शर्मा के अनुसार उनके 20 वर्ष के कार्यकाल में अनेक घटनाओं को उन्होंने निकट से देखा है जिसमें अवैध संबंधों के कारण हत्याएं हुई जिसके मूल में शराब भी एक कारक रहा. उच्च न्यायालय के अधिवक्ता बीके शुक्ला बताते हैं कि आदिवासी बाहुल्य होने के कारण छत्तीसगढ़ में शराब एक बहुत बड़ा कारण हत्या का मैं मानता हूं अच्छा हो सरकार इस पर अंकुश लगाने का निर्णय ले.