जब प्यार बना व्यापार

रिमझिम चतुर्वेदी पटना के जानेमाने दंत चिकित्सक विश्वजीत चतुर्वेदी की पत्नी थी. धनाढ्य और उच्चशिक्षित होते हुए भी वह तंत्र विद्या का धंधा करती थी. डा. विश्वजीत चतुर्वेदी के चेहरे पर परेशानियों की लकीरें साफ झलक रही थीं. वह कमरे में चहलकदमी कर रहे थे, वहीं से वह बारबार मुख्यद्वार की ओर झांक रहे थे. जैसे किसी के आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हों.

इस की वजह यह थी कि रात के करीब 10 बज रहे थे और उन की पत्नी रिमझिम चतुर्वेदी अब तक घर लौटी नहीं थी. उन का मोबाइल फोन भी नहीं लग रहा था. बारबार वह स्विच्ड औफ बताया जा रहा था. इस से विश्वजीत चतुर्वेदी परेशान हो गए थे. ऐसा उन के साथ पहली बार हुआ था, जब पत्नी का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ आ रहा हो.

रात काफी गहरा चुकी थी. ऐसे में उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा था कि वह करें तो क्या करे. जबकि सभी परिचितों और रिश्तेदारों के पास फोन कर के पत्नी के वहां आने के बारे में पूछ रहे थे. वहां से उन्हें पता चला कि रिमझिम उन में से किसी के भी घर नहीं पहुंची थी. इस से उन का दिल और बैठा जा रहा था. यह 23 नवंबर, 2021 की घटना है.

बहरहाल, डा. विश्वजीत ने पूरी रात आंखों में काटी और सुबह होते ही श्रीकृष्णपुरी थाने पहुंचे. उन के साथ बहनोई संजय पाठक भी थे. थानाप्रभारी एस.के. सिंह ने संजय से तहरीर ले ली और रिमझिम चतुर्वेदी की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर आगे की काररवाई शुरू कर दी थी. रिमझिम चतुर्वेदी कोई मामूली महिला नहीं थी. वह पटना के जानेमाने डेंटिस्ट विश्वजीत चतुर्वेदी की पत्नी थी. यानी मामला हाईप्रोफाइल था. यह बात 24 नवंबर, 2021 की है.

खैर, उसी दिन पटना के ही नौबतपुर थाने के डीहरा शेखपुरा गांव स्थित पुनपुन सुरक्षा बांध के किनारे सुनसान इलाके में एक खूबसूरत युवती की लाश मिली. किसी ने गोली मार कर उस की हत्या कर दी थी. शक्लोसूरत और पहनावे से वह किसी अच्छेभले घर की लग रही थी.

लाश मिलने की सूचना मिलते ही थानाप्रभारी दीपक सम्राट टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए और काररवाई में जुट गए. उन्होंने लाश की बारीकी से जांच की तो देखा हत्यारों ने युवती के मुंह में गोली मार कर हत्या की थी. युवती का सिर खून में तरबतर था. पहनावे से वह अच्छेभले घर की लग रही थी. पैरों में उस के हाईहील वाली सफेद रंग की कीमती सैंडल थीं. दाहिनी जांघ के पास आसमानी रंग का मास्क गिरा हुआ था. जांचपड़ताल करने पर मौके से एक फायरशुदा खोखा बरामद हुआ.

मौके से बरामद सभी सामानों को पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया और इस की जानकारी दीपक सम्राट ने डीएसपी और एसएसपी उपेंद्र कुमार शर्मा को दे दी. मौके की प्रारंभिक काररवाई करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए एम्स पटना भिजवा दी.

थानाप्रभारी दीपक सम्राट ने पटना के सभी थानों में लाश की फोटो भिजवा दी ताकि किसी थाने में किसी युवती के गायब होने का मुकदमा तो दर्ज नहीं है. लाश की तसवीर श्रीकृष्णपुरी थाने में भी पहुंची. फोटो देख कर थानाप्रभारी एस.के. सिंह चौंक गए. वह तसवीर गुमशुदा रिमझिम चतुर्वेदी से काफी हद तक मेल खा रही थी. फौरन उन्होंने फोन कर के वादी संजय पाठक को थाने बुलवाया. उन के साथ उन की पत्नी श्वेता पाठक भी थाने पहुंची.

थानाप्रभारी एस.के. सिंह ने मोबाइल में आई वह तसवीर उन्हें दिखाई, जो नौबतपुर थाना पुलिस ने उन्हें भेजी थी. खून में सने फोटो को देखते ही ननद श्वेता पाठक पहचान गई. लाश उन की भाभी रिमझिम चतुर्वेदी की थी. फिर क्या था, रिमझिम की हत्या की सूचना मिलते ही घर में कोहराम मच गया और रोनापीटना शुरू हो गया.

थानाप्रभारी ने सब से पहले मृतका रिमझिम के फोन नंबर की की काल डिटेल्स निकलवाई. इस से पहले सहदेव महतो मार्ग बोरिंग रोड स्थित रिमझिम के ब्यूटीपार्लर पहुंच कर वहां के कर्मचारी राजू से पूछताछ की. राजू ने बताया कि शाम करीब 4 बजे मैडम के मोबाइल पर किसी का काल आया. काल रिसीव करने के बाद वह पार्लर से यह कहते हुए निकलीं कि थोड़ी देर बाद लौटती हूं फिर पार्लर बढ़ा कर घर चली जाऊंगी. लेकिन काफी देर बीत जाने के बाद भी मैडम घर नहीं लौटी थी. अब उन की हत्या की खबर आई. राजू से पूछताछ करने के बाद थानाप्रभारी थाने वापस लौट आए थे.

बहरहाल, एस.के. सिंह ने रिमझिम के फोन की काल डिटेल्स का गहन अध्ययन किया. 23 नवंबर, 2021 की शाम 4 बज कर 23 मिनट पर उन के फोन पर एक काल आई थी. फिर 6 बजे के बाद रिमझिम का फोन बंद हो गया था.

आखिरी काल का नंबर जांचने पर पता चला कि वह नंबर किसी रोहित सिंह के नाम था, जो पटना के पालीगंज थाना क्षेत्र के जलपुरा का रहने वाला था. पुलिस रोहित सिंह को उस के घर जलपुरा से पूछताछ के लिए श्रीकृष्णपुरी थाने ले आई. थाने ला कर थानाप्रभारी एस.के. सिंह ने उस से कड़ाई से घंटों तक पूछताछ की.

रोहित कोई आदतन अपराधी तो था नहीं जो पुलिस को यहांवहां घुमाता. वह तो पुलिस के सवालों से टूट गया था और रोते हुए कहा, ‘‘क्या करता सर, रिमझिम से मैं हार चुका था. उस से छुटकारा पाना चाहता था. पर उस ने मुझे बरबाद करने की बारबार धमकी दे कर मेरा जीना मुहाल कर दिया था, इसलिए उसे रास्ते से हटाने की योजना बनाई और 4 लाख की सुपारी दे कर उसे मौत के घाट उतरवा दिया.’’ और फिर विस्तार से उस ने पूरी कहानी पुलिस के सामने उगल दी.

हैरान कर देने वाली कहानी सुन कर पुलिस ने दांतों तले अंगुली दबा ली कि मृतका रिमझिम ऐसा भी कर सकती थी. रोहित की निशानदेही पर पुलिस ने रिमझिम चतुर्वेदी हत्याकांड में शामिल 5 और आरोपियों कमल शर्मा, सूरज कुमार, पवन कुमार, रंजीत और राहुल यादव को गिरफ्तार कर लिया. इन सभी में राहुल यादव और रंजीत शार्पशूटर थे. सभी आरोपियों ने अपनेअपने जुर्म कुबूल कर लिए थे.

हत्या में रोहित सिंह का नाम सामने आते ही मृतका के घर वाले हैरान रह गए थे. क्योंकि रोहित सिंह रिमझिम का मुंहबोला भाई था. जिस मुंहबोले भाई की कलाई पर वह 2 साल से राखी बांध रही थी, वही उस का कातिल कैसे हो सकता है, वह यही सोच रहे थे.

हाईप्रोफाइल रिमझिम चतुर्वेदी हत्याकांड का खुलासा होने के बाद 29 नवंबर, 2021 की दोपहर में एसएसपी उपेंद्र कुमार शर्मा ने पुलिस लाइन में एक पत्रकारवार्ता आयोजित कर इस केस के खुलासे की जानकारी दी. उस के बाद सभी को अदालत के समक्ष पेश किया, जहां से अदालत ने सभी आरोपियों को बेउर जेल भेजने का आदेश दिया.

पुलिस की पूछताछ में इस हत्याकांड की कहानी कुछ ऐसे सामने आई. 40 वर्षीय खूबसूरत रिमझिम चतुर्वेदी मूलरूप से बिहार के बक्सर जिले की रहने वाली थी. संपन्न घराने की रिमझिम ने सन 2001 में डा. विश्वजीत चतुर्वेदी से प्रेम विवाह किया था. विश्वजीत चतुर्वेदी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के रहने वाले थे.

डाक्टरी पढ़ाई के दौरान दोनों के बीच में प्यार हुआ. फिर उन्होंने एकदूसरे को जीवनसाथी बनाने का फैसला कर लिया. इन के इस फैसले पर इन के घर वालों ने भी स्वीकृति की मोहर लगा दी थी.कालांतर में रिमझिम और विश्वजीत दोनों ही पटना, बिहार आ कर रहने लगे. तब उन की प्रैक्टिस कोई खास नहीं चल रही थी. बाद में दोनों की ही मैडिको केयर की दुकानें अच्छीभली चल निकलीं. शहर के मानेजाने दांत के डाक्टरों में से एक डा. विश्वजीत को गिना जाने लगा था.

उन की पत्नी रिमझिम ने हेल्थकेयर ब्यूटीपार्लर खोल लिया था और दुकान चलाती थी. इस प्रोफेशन में बेशुमार पैसे हैं, वह अच्छी तरह जानती थी. थोड़ी सी मेहनत के बाद रिमझिम का भी पार्लर अच्छा चल निकला था और उस की उम्मीद से कहीं ज्यादा पैसे घर में आने लगे थे. दोनों पतिपत्नी अपनी कमाई से खुश थे. फिर बाद के दिनों में श्रीकृष्णपुरी इलाके में कृष्णकुंज अपार्टमेंट में रहने लगे थे.

रिमझिम खुद को तंत्र विद्या में पारंगत समझती थी. इस बात को उस की पक्की सहेली पूनम बखूबी जानती थी. बताया जाता है कि रिमझिम ने तंत्रविद्या की शक्ति से कइयों की डूबती नैया पार लगाई थी और उस की बातें जो नहीं मानता था, उसे सबक सिखाने से भी वह नहीं चूकती थी.

बात 2019 की है. पूनम भुटेडा रोहित सिंह नाम के एक युवक को रिमझिम से मिलवाया. बताया कि वह काफी परेशान रहता है. इस की कमाई में कोई बरकत नहीं होती है. कोई ऐसा उपचार कर दो, जिस से इस की माली हालत में सुधार हो जाए और वह भी सुख की नींद सोए.

पूरी तन्मयता के साथ रिमझिम ने रोहित की कहानी सुनी और सहेली पूनम को यकीन दिलाते हुए कहा, ‘‘भरोसा रखो, जब तुम इसे साथ ले कर आई हो तो काम अच्छा क्यों नहीं होगा भला. अब यह मेरा मरीज है, मैं इसे खुद ही देख लूंगी. तुम मुझ पर आंख बंद कर के यकीन कर सकती हो.’’

इस के बाद दोनों हंस पड़ीं. ठगा सा रोहित खिलखिला कर हंसती हुई सुंदर रिमझिम को अपलक निहारता रह गया था. रिमझिम की नजरें रोहित की नजरों से टकराईं तो रोहित ने घबरा कर अपनी नजरें दूसरी ओर घुमा लीं. रिमझिम को समझते देर न लगी कि इश्किया नजरों से रोहित उसे ही देख रहा था. यह देख हौले से वह मुसकराई. फिर अपनी आपबीती रोहित ने रिमझिम को सुना दी.

करीब 35 वर्षीय रोहित सिंह मूलरूप से पटना के पालीगंज थानाक्षेत्र के जलपुरा का रहने वाला था. उस के परिवार में मांबाप, भाई और बहन थे. बहनों की शादियां हो चुकी थीं. अपने परिवार के साथ वे ससुराल में खुश थीं. खूबसूरत रोहित भी कुछ कम नहीं था. वह मेहनतकश और कर्मठी किस्म का इंसान था.

इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रोहित ने पटना में ही एक प्राइवेट फर्म में 50 हजार रुपए महीने की नौकरी जौइन कर ली थी. मनचाही मिली नौकरी से रोहित बेहद खुश था. लेकिन उस की किस्मत में यह खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं टिकी रह सकी. जिस काम में भी वह हाथ डालता था, काम बनने की बजाय बिगड़ जाता था. जिस से रोहित कर्ज में डूब गया. ऐसे में उस की प्रेमिका पूनम भुटेडा सहारा बनी थी. 50 हजार रुपयों में से 40 हजार रुपए तो कर्ज के बंट जाते थे, बाकी बचे 10 हजार रुपए में घर चलाना होता था. इस से रोहित बहुत परेशान रहता था.

दरअसल, रोहित ने अपने क्रेडिट पर एक बड़ी रकम बालू कारोबारी अपने बहनोई को दिलवा दी थी. बहनोई का कारोबार रफ्तार भी नहीं पकड़ पाया था कि एक सड़क हादसे में उन की मौत हो गई. बहनोई की मौत से रोहित बुरी तरह टूट गया. इस चिंता में वह डूब गया था कि इतनी बड़ी रकम आखिर वह कहां से भरेगा.

बताया जाता है कि रिमझिम तंत्र साधना के लिए एक कब्रिस्तान में जा कर अपनी कलाई काट कर खून भी चढ़ाती थी. इस बात को उस की सहेली पूनम जानती थी, तभी तो वह अपने प्रेमी रोहित को उस के पास ले कर आई थी. रिमझिम ने रोहित की परेशानियों को सुन कर उसे चांदी का कड़ा दाहिनी कलाई में धारण करने का मशविरा दिया. साथ ही 4 अलगअलग रंगों की शर्ट भी पहनने की सलाह दी.

रोहित ने रिमझिम के कहे अनुसार काम किया. पहले दाहिनी कलाई में चांदी का कड़ा धारण किया और फिर चारों शर्ट को बारीबारी से पहना. कल तक परेशान रहने वाले रोहित के चेहरे पर कुछ ही दिनों में खुशियां झलकने लगीं. रिमझिम के टोटके और तंत्रमंत्र ने अपना असर दिखाया. उस दिन से रिमझिम के प्रति रोहित की आस्था बढ़ गई और दोनों के बीच में मधुर संबंध बन गए थे.

भले ही रोहित और रिमझिम के बीच में मधुर संबंध बन गए थे लेकिन पैसों के मामले में रिमझिम किसी से समझौता करने वाली नहीं थी. रोहित से पूजापाठ के नाम पर वह कभी 10 हजार तो कभी 20 हजार तो कभी 40 हजार रुपए मांगती रहती थी. जबकि रोहित की माली हालत पहले से ही खराब थी. रिमझिम द्वारा आए दिन रुपए मांगने से वह परेशान रहने लगा था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह रुपए कहां से लाए.

रुपयों की मांग से रोहित और रिमझिम के रिश्तों में खटास आने लगी. रोहित अब रिमझिम से हमेशाहमेशा के लिए छुटकारा पाना चाहता था, इसलिए वह चुपके से उस से अलग हो गया. लेकिन रिमझिम भी कम शातिर नहीं थी. वह रोहित को इतनी आसानी से अपनी गिरफ्त से जाने नहीं देना चाहती थी.

रिमझिम ने उसे धमकाया. उस के देवर की हाल ही में मौत हो गई थी. रिमझिम ने रोहित को बताया कि देवर ने उस की बात नहीं मानी थी तो उस ने उसे दुनिया से ही रुखसत कर दिया. तुम भी गंभीर परिणाम भुगतने के लिए तैयार हो जाओ. रिमझिम की बात सुन कर रोहित बुरी तरह डर गया. रोहित रिमझिम और उस के काले जादू से छुटकारा पाना चाहता था. पर कैसे? रोहित डिप्रेशन में रहने लगा था.

घटना से कई दिनों पहले की बात है. रोहित चाय की दुकान पर बैठा कुछ सोच रहा था. तभी वहां उस के दोस्त कमल शर्मा, सूरज कुमार और पवन आ गए. तीनों को अपने पास देख कर रोहित चौंका. फिर कुछ देर तक वे आपस में गप्पें हांकने लगे थे लेकिन रोहित के चेहरे पर वह चमक नहीं थी, जो पहले हुआ करती थी. कमल शर्मा दोस्त रोहित को देख कर भांप गया था कि जरूर कोई न कोई बात है. फिर उस ने उस की परेशानियों के बारे में पूछा. परेशान रोहित ने आखिर आपबीती दोस्तों से बता दी.

सचमुच मामला काफी गंभीर था और जीवन से जुड़ा था. फिर क्या था? उसी समय रिमझिम का काम तमाम करने का फैसला उन सभी ने ले लिया. इस के लिए कमल शर्मा ने 2 शूटरों रंजीत कुमार और राहुल यादव को 4 लाख की सुपारी दे कर तैयार कर लिया. रिमझिम की हत्या की सुपारी का पैसा खुद रोहित ने रिमझिम से जमीन खरीदने के बहाने धोखे से लिया था और उसी पैसे से उसी की सुपारी दे डाली थी.

योजना के अनुसार, 23 नवंबर, 2021 की शाम 4 बज कर 23 मिनट पर रोहित ने रिमझिम को फोन कर के पूछा कि वह कहां है. इस पर रिमझिम ने बताया कि पार्लर में है. राहुल ने कहा, ‘‘एक जमीन देख रखी है. वहां चल कर के देखना कि बिजनैस के लिए अच्छी होगी या नहीं. आप भी साथ चलतीं तो मेरा काम बन जाता.’’

रोहित ने अपनी बात कुछ इस अंदाज में कही कि रिमझिम चाह कर भी मना नहीं कर सकी और साथ चलने के लिए हामी भर दी. यही रोहित चाहता भी था. उस के जाल में रिमझिम फंस चुकी थी. उसे क्या पता था कि मौत उस का इंतजार कर रही है. ब्यूटीपार्लर से निकली रिमझिम फिर कभी लौट कर नहीं आई.

इधर रिमझिम के हां करते ही रोहित के चेहरे पर कुटिल मुसकान तैर गई. उस ने यह बात दोस्तों को बता दी और योजना पर अमल करने के लिए तैयार हो जाने के लिए कह दिया.

योजना के मुताबिक, रिमझिम को उस के पार्लर से लाने के लिए कमल शर्मा को कार ले कर उस के पास भेजा और दोनों शूटरों रंजीत और राहुल यादव को नौबतपुर थाने के सुनसान पुनपुन सुरक्षा बांध भेज दिया था. घंटे भर बाद कमल शर्मा रिमझिम को साथ ले कर पुनपुन सुरक्षा बांध के पास पहुंचा, जहां रोहित और उस के 2 दोस्त सूरज व पवन बेसब्री से उस का इंतजार कर रहे थे. उसे देख कर चारों चौंकन्ने हो गए.

नवंबर का महीना था. 5 बजते ही अंधेरा घिर चुका था. मौके पर कई लोगों को देख कर रिमझिम घबरा गई. मानो उस ने खतरे को भांप लिया हो. रिमझिम ने रोहित से उस जमीन के बारे में पूछा जिसे देखने के लिए उस ने बुलाया था. फिर रोहित ने एक जमीन दिखाई और जांचने के लिए उस की थोड़ी सी मिट्टी उठा कर रिमझिम को दी. मिट्टी देख कर रिमझिम ने कहा कि बिजनैस के लिए अच्छी है.

इतना कह कर वह कार की ओर लौटने लगी. तभी अचानक वहां 2 और युवकों को देख कर वह घबरा गई. दोनों में से एक युवक राहुल यादव के हाथ में पिस्टल थी. इस से पहले रिमझिम कुछ समझ पाती, पिस्टल उस के मुंह में डाल कर ट्रिगर दबा दिया. गोली गले को चीरती हुई दूसरी ओर से निकल गई. वह जमीन पर धड़ाम से गिर पड़ी. कुछ ही देर में उस का जिस्म ठंडा पड़ने लगा.

रिमझिम मर चुकी थी. शूटर रंजीत और राहुल यादव उसी बाइक पर सवार हो कर फरार हो गए जिस से आए थे. जबकि रोहित सिंह, कमल शर्मा, सूरज कुमार और पवन कमल के कार में सवार हो कर भाग निकले. आखिर पुलिस ने रिमझिम चतुर्वेदी के कातिलों को गिरफ्तार कर उन्हें जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. लेकिन मृतका की ननद डा. श्वेता पाठक ने आरोपियों के तंत्रमंत्र और काला जादू वाले कथन को सिरे से नकार दिया.

उस ने कहा कि पूनम ने रिमझिम से 35 लाख 30 हजार रुपए का कर्ज ले लिया था तो वहीं रोहित ने 30 लाख 90 हजार रुपए उधार लिए थे. इस के अलावा अन्य आरोपियों ने भी उस से कर्ज ले रखा था. श्वेता पाठक ने कहा कि इन लोगों ने रिमझिम से लगभग 83 लाख रुपए कर्ज ले रखा था. रिमझिम इन लोगों से अपना पैसा वापस मांग रही थी. श्वेता ने बताया कि रिमझिम जिस किसी को पैसे देती थी, उस का विवरण अपनी डायरी में दर्ज करती थी और स्टांप पेपर भी तैयार कराती थी. पुलिस श्वेता पाठक के बयान की भी जांच कर रही है.

इस पर पुलिस का कहना है कि डा. श्वेता पाठक ने पुलिस को एक स्टांप पेपर की फोटोकौपी दी थी, जिस पर पूनम भुटेडा को 5 लाख रुपए दिए जाने की बात लिखी थी. लेकिन उस पर रिमझिम के दस्तखत नहीं थे. कथा लिखे जाने तक पुलिस डा. श्वेता पाठक के बयानों की जांच कर रही थी.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

स्पा के दाम में फाइव स्टार सेक्स – भाग 3

महाराजपुर पुलिस चौकी में कार्यरत जितने भी पुलिसकर्मी थे, उन्हें तुरंत वहां से पुलिस लाइंस में जा कर अपनी उपस्थिति दर्ज करने का आदेश दे दिया. पर फरार हुए स्पा मैनेजर और मालिकों की गिरफ्तारी के लिए टीमें नियुक्त कर के छापेमारी कर रही थीं.

समाज में गंदगी फैलाने वाले ऐसे लोगों को कानून के कटघरे में खड़ा कर के जेल पहुंचाना ही पुलिस का उद्ïदेश्य था. देखना है ये फरार हुए अभियुक्त कब तक पुलिस से लुकाछिपी का खेल खेलते हैं.

यह मामला अभी चल ही रहा था, ताजा भी था कि उत्तर प्रदेश के मऊ जनपद में एक और सैक्स रैकेट का भंडाफोड़ हो गया. हुआ यूं कि सीओ (सिटी) संजय मिश्रा अपने औफिस में बैठे. तभी उन्होंने अपने एक मुखबिर को फोन लगा लिया, “हैलो करीम, क्या कह रहे हो?”

“गुड मार्निंग साहब.” दूसरी ओर से करीम की आवाज उभरी, “आजकल खाली हूं साहब, जेब से कडक़ा हो गया हूं, कोई काम बताइए न?”

“करीम, कुछ दिनों से मुझे होटल राधाकृष्णा के विषय में उलटीसीधी बातें सुनने को मिल रही हैं.”

करीम ने तुरंत कहा, “हां साहब, सुना तो मैं ने भी है कि राधाकृष्णा में गरम गोश्त का धंधा होता है. आप कहें तो मैं पता लगाऊं?”

“खाली हो तो यही काम कर लो, खर्चापानी निकल जाएगा तुम्हारा.” संजय मिश्रा ने कहा.

“मैं आज शाम को ही मालूम कर लूंगा.” करीम चहक कर बोला, “आप को अच्छी खबर ही दूंगा साहब.”

“ठीक है.” कह कर संजय मिश्रा ने बात खत्म की.

उधर करीम शाम होने का इंतजार करने लगा. करीम 25-26 साल का युवक था. वह स्मार्ट था, रंगत भी गोरी थी. वह पुलिस के लिए मुखबिरी करता था. सीओ सिटी से बात होने के बाद उस ने शाम को व्हाइट शर्ट और ब्राऊन रंग की जींस पहनी. बालों को संवारा और पैदल ही होटल राधाकृष्णा की तरफ चल पड़ा.

राधाकृष्णा होटल में पहुंच कर वह बार काउंटर पर पहुंच गया, वहां मौजूद सर्विस बौय से उस ने लार्ज व्हिस्की का पैग मांगा. सर्विस बौय पैग बनाने लगा तो करीम धीरे से बोला, “यार, यहां शराब ही मिलती है क्या, उस के साथ कुछ चटपटा माल नहीं मिलता?”

“मिलता है जनाब.” सर्विस बौय पैग उस की तरफ बढ़ाते हुए बोला, “भुने काजू हैं, चटपटी नमकीन है, बौयल एग्स हैं.”

करीम मुसकराया, “यह नहीं यार, तनमन को तृप्त कर दे. कुछ ऐसा चटपटा सामान जो…”

“ओह समझा!” सर्विस बौय आगे को झुक कर मुसकराया, “आप गरम गोश्त की बात कर रहे हैं.”

“ठीक समझे, शराब के साथ शबाब हो तो तबियत फडक़ा फाइट हो जाती है.”

“आप रिसैप्शन काउंटर पर जाइए, वहां रंगीन एलबम है. उस में आप को एक से बढ़ कर एक फुलझडिय़ां मिल जाएंगी.”

“वाह!” करीम ने दोनों हाथ कंधे पर ले जा कर अंगड़ाई ली, “रेट वेट मालूम है तुम्हें?”

“नहीं, यह मैनेजर ही बता देंगे.” सर्विस बौय ने हंस कर कहा, “ऐसी गरम आइटम की कीमत नहीं पूछी जाती, दिल को भा जाए तो दिलफेंक लोग लाखों लुटा देते हैं.”

करीम हंसा, “आदमी दिलचस्प हो तुम.”

सर्विस बौय मुसकराने लगा. करीम ने पैग का बिल दिया और गिलास ले कर वह रिसैप्शन पर आ गया.

रिसैप्शन पर बैठे मोटे से व्यक्ति ने आंखों पर चढ़ा चश्मा ऊंचा कर के करीम को देखा, “फरमाइए जनाब, रूम चाहिए क्या?”

“अकेला हूं,” करीम ने होंठों को गोल किया, “शादी भी नहीं हुई है. रूम ले कर क्या करूंगा. कोई पार्टनर दिलवाएंगे तो रूम लेने का मजा है.”

“पार्टनर भी मिल जाएगा सर.” मैनेजर ने दाईं आंख दबा कर कहा, “एलबम देखेंगे आप.”

“दिखाइए, कोई पसंद आ जाएगी तो रात यहीं गुजार लूंगा.”

मैनेजर ने एलबम निकाल कर दिखाई, उस में अनेक खूबसूरत महिलाओं के फोटो लगे थे. करीम ने एक फोटो पर अंगुली रख कर उस का रेट पूछा.

“3 हजार चार्ज है इस हसीना का, हमारे होटल की शान इसी नगीना से है. यह रूबी है. पसंद हो तो बुलाऊंï?”

“रूम का चार्ज इसी में शामिल है या अलग से देना होगा?”

“यह आधा घंटे का चार्ज है, इस में कमरा हम देंगे आप को. यदि आप पूरी रात मौज करना चाहते हैं तो 7 हजार रुपया लगेगा. 5 लडक़ी के, 2 रूम चार्ज.”

“मैं रात भर रुकूंगा, लेकिन आज नहीं. आप कल के लिए रुबी को कहीं बुक नहीं करेंगे. यह एडवांस हजार रुपया रखिए.”

करीम ने कहने के बाद पर्स से 5-5 सौ के 2 नोट निकाल कर रिसैप्शन पर रख दिए. फिर वह होटल से बाहर आ गया. उस ने तुरंत सीओ संजय मिश्रा को फोन कर के सारी जानकारी दे दी.

संजय मिश्रा ने दूसरे दिन शनिवार 27 मई, 2023 को सुबह ही दक्षिण टोला सराय लखसी थाना और महिला थाने की पुलिस को कोतवाली में लिया. उन्हें यहां बुलाने का मकसद समझाने के बाद वह पुलिस बल, जिन में महिला कांस्टेबल भी थी, को साथ ले कर रोडवेज बस अड्ïडे के पास स्थित होटल राधाकृष्णा में छापा डाल दिया.

पुलिस को देख वहां भगदड़ मच गई. होटल मैनेजर को काबू कर लिया गया. ऊपर के फस्र्ट फ्लोर पर बने बहुत से कमरे अंदर से बंद थे. उन्हें खटखटा कर महिला पुलिस को आगे कर दिया गया. सीओ संजय मिश्रा ने ऊंची आवाज में आदेश दिया, “यहां पुलिस ने रेड डाली है. बंद कमरों में मौजूद महिलाएं पुरुष अपने कपड़े ठीक कर के बाहर आ जाएं.”

थोड़ी देर में बंद कमरों से महिलाएं मुंह ढंक कर बाहर आ गईं. हर महिला के साथ एक पुरुष भी था. टोटल 14 महिलाएं और मैनेजर सहित 16 पुरुष वहां से हिरासत में लिए गए. कमरों की तलाशी में आपत्तिजनक सामान भी बरामद हुआ, उसे सीलमोहर कर के कब्जे में ले लिया गया.

सभी पकड़े गए अनैतिक देह में लिप्त पुरुष और महिलाओं को कोतवाली में लाया गया. पुलिस उन से विस्तार से पूछताछ कर के कानूनी काररवाई में लग गई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में करीम व जगदीश उर्फ जग्गी परिवर्तित नाम हैं.

रिश्तों की कब्र खोदने वाला क्रूर हत्यारा

ज़रा सी भूल ने खोला क़त्ल का राज – भाग 2

मुश्किल से एक मिनट लगा होगा. कोठारी रामलाल के चैंबर से बाहर आ गया. उस वक्त उस का चेहरा पसीने से तर था, सांस फूली हुई थी. रूमाल से पसीना पोंछते हुए वह बाहर के गलियारे में निकल आया. औफिस का मुख्य दरवाजा डुप्लिकेट चाबी से खोल कर वह बाहर चला आया और दरवाजा बंद कर दिया. बाहर आते ही उसे टैक्सी मिल गई. टैक्सियां बदलते हुए वह दोपहर का शो खत्म होने के समय सिनेमाहाल के पास पहुंच गया. शो छूटा तो वह हाल से निकली भीड़ में शामिल हो गया और फिर भीड़ से निकल कर मैनेजर के चैंबर में जा पहुंचा. कुछ इस तरह जैसे फिल्म देख कर बाहर आया हो.

मैनेजर के केबिन में बैठ कर उस ने एक सिगरेट पी और फिर उस से विदा ले कर अपने औफिस आ पहुंचा. उस ने टैक्सी ड्राइवर से कहा, ‘‘तुम जरा ठहरो, मैं अभी लौटता हूं.’’

पल भर बाद कोठारी बदहवास दौड़ता हुआ बाहर आया और चिल्ला कर बोला, ‘‘खून, किसी ने उसे मार डाला. ड्राइवर, जल्दी चलो… थाने…’’

थाने पहुंच कर कोठारी ने बदहवासी के आलम में इंसपेक्टर को कत्ल की बात बताई, इंसपेक्टर कोठारी और 2 सिपाहियों के साथ तुरंत जिप्सी ले कर चल दिया.

औफिस में आते ही कोठारी निढाल भाव से एक कुरसी पर गिरते हुए बोला, ‘‘आप चैंबर में खुद जा कर देख लें. मुझ में उस भयानक दृश्य को दोबारा देखने की हिम्मत नहीं है.’’

इंसपेक्टर ने जा कर देखा. रामलाल गोयल का निर्जीव शरीर आराम कुरसी पर पड़ा हुआ था. उस की कनपटी पर गोली का निशान था और कनपटी से ले कर फर्श तक खून फैला था. गोली शायद अंदर ही रह गई थी. पुलिस का डाक्टर, फोटोग्राफर आदि आए. औफिस की तलाशी से कोई खास चीज नहीं मिली. जरूरी काररवाई के बाद इंसपेक्टर ने फोन कर के एंबुलेंस बुलवाई. साथ ही कोठारी से कहा, ‘‘मि. कोठारी, आप अपना बयान लिखवा दें. आगे की काररवाई आप की रिपोर्ट पर निर्भर करेगी.’’

कोठारी ने अटकअटक कर बदहवासी के आलम में अपना बयान लिखवाना शुरू किया, हवलदार उस का बयान नोट करता जा रहा था. कोठारी ने दिन भर की कहानी, मैटनी शो में सिनेमा जाने की बात और लौट कर यह भयानक दृश्य देख कर थाने जाने वगैरह की सारी बातें बयान में लिखवा दीं. हवलदार उस के बयान को पढ़ कर इंसपेक्टर को सुना ही रहा था कि औफस के आगे एक मोटरसाइकिल आ कर रुकी. मोटरसाइकिल खड़ी कर के एक छरहरे, मजबूत शरीर वाले व्यक्ति ने अंदर कदम रखा. कोठारी उसे जानता था.

वह मयंकमोहन था, पत्रकार और शौकिया जासूस. उसे देख कर कोठारी को फिर से पसीना आने लगा. वह सोचने लगा, यह बिना टांग अड़ाए नहीं मानेगा.

इंसपेक्टर ने पूछा, ‘‘कहां से आ रहे हैं मि. मयंक? यहां की गंध आप की नाक तक भी पहुंच गई क्या?’’

‘‘एक खास सिलसिले में थाने गया था, आप मिले नहीं. वहां पता लगा तो इधर आ गया. क्या मामला है?’’

मयंक ने बैठ कर सिगरेट सुलगाई. इंसपेक्टर ने कोठारी के मुंह से सुनी कहानी उसे सुना दी. फिर चैंबर में ले जा कर गोयल की लाश भी दिखाई. वह जानता था कि कई बार मयंक बड़े काम का साबित होता है. मयंक ने चेंबर, मेज पर रखे कागजात, नोटबुक और गोयल की लाश वगैरह का सूक्ष्म निरीक्षण किया. फिर वापस औफिस में आ गया.

इंसपेक्टर ने कोठारी का लिखवाया हुआ बयान खुद मयंक को पढ़ कर सुनाया. इस बीच मयंक चुपचाप सिगरेट के कश लेते हुए सुनता रहा. बीचबीच में वह कोठारी को देख रहा था. कोठारी बेचैन सा नजर आ रहा था. जब इंसपेक्टर बयान पढ़ चुका, तो कोठारी ने पूछा, ‘‘मुझे यहां कब तक बैठना होगा? मेरी तबीयत ठीक नहीं है. मैं घर जा कर आराम करना चाहता हूं.’’

‘‘बस, ऐंबुलेंस को आने दीजिए, आ ही रही होगी. हम डैड बौडी को भिजवा कर औफिस में ताला लगा कर सील कर देंगे. अभी आप को औफिस बंद रखना पड़ेगा,.’’

चपरासी लंच कर के कभी का लौट आया था. पुलिस ने उस का भी बयान लिया था. कोठारी ने उस की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘ताले सील की क्या जरूरत है? यह रहेगा यहां.’’

‘‘नहीं मि. कोठारी, मर्डर हुआ है यहां. जब तक हम किसी नतीजे पर नहीं पहुंच जाते हमें औफिस सील करना पड़ेगा. थोड़ी काररवाई और हो जाए तो आप चले जाइएगा. लेकिन आप शहर के बाहर नहीं जा पाएंगे.’’

कोठारी चुपचाप बैठा रहा.

मयंकमोहन इस बीच घूमघूम कर औफिस के ताले की चाबी के छेद, दरवाजे आदि को देख रहा था. इंसपेक्टर ने कहा, ‘‘मि. कोठारी, आप के बयान की पुष्टि हो ही जाएगी. कौन सी फिल्म देखी थी आप ने?’’ आप दोपहर वाले शो में प्लाजा सिनेमा में थे न?

‘‘जी हां, प्लाजा में मैं ने ‘सुनहरा तीर’ फिल्म देखी थी. यह क्या पता था कि आज ही यह मनहूस घटना घटेगी.’’

औफिस की बारीकी से छानबीन कर रहे मयंकमोहन ने कोठारी की बात सुनी तो उसे स्थिर दृष्टि से देखने लगा.

इंसपेक्टर ने पूछा, ‘‘आप के पास कोई सुबूत है कि आप ने आज ही वह फिल्म देखी है?’’

‘‘जी, मेरे पास आधा टिकट है,’’ कोठारी ने आधा टिकट निकाल कर दिखाते हुए इतमीनान से जवाब दिया, ‘‘सिनेमा का मैनेजर और वहां के गेटकीपर्स वगैरह मुझे जानते हैं. इत्तेफाक से आज मैं मैनेजर से भी मिला था.’’

मयंकमोहन के होंठों पर हलकी सी मुसकराहट उभर आई. उस ने इंसपेक्टर से पूछा, ‘‘डाक्टर तो देख कर गया है, उस के विचार से हत्या कब हुई होगी.’’

‘‘डाक्टर का अंदाजा है कि हत्या 12 से डेढ़ या 2 बजे के बीच हुई होगी.’’ वैसे आटोप्सी के बाद ठीक पता तो कल ही लगेगा.’’

एंबुलेंस आ गई. अटेंडेंटों ने बौडी को एंबुलेंस में रख दिया. एंबुलेंस चली गई.

इंसपेक्टर ने सिपाहियों से कहा, ‘‘औफिस में ताला और सील लगा दो.’’

मयंकमोहन ने टोका, ‘‘थोड़ा ठहरें, इंसपेक्टर साहब.’’

कोठारी ने इंसपेक्टर से कहा, ‘‘तो, मैं अब जा सकता हूं? यहां तो आप सील लगाएंगे.’’

‘‘जरा आप भी ठहरें मि. कोठारी, मुझे आप से कुछ बातें करनी हैं,’’ मयंक ने कहा.

अनिच्छा दिखाते कोठारी ने पूछा, ‘‘क्या बातें?’’

‘‘मि. कोठारी, आप आज दिन के 12 बजे से 3 बजे तक सिनेमा हाल में ही थे न?’’

‘‘बेशक,’’ कोठारी ने तपाक से जवाब दिया.

‘‘क्या आप मुझे फिल्म की कहानी संक्षेप में सुनाएंगे? फिल्म का नाम भी दोहराने की कृपा करें.’’

‘‘वह सब मैं इंसपेक्टर साहब को बता चुका हूं.’’ कोठारी बोला, तो मयंक ने अनुरोध किया, ‘‘बस, एक बार और. इंसपेक्टर साहब, प्लीज आप एक कागज पर इन का बयान दोबारा नोट कर लें.’’

कोठारी ने बताया, ‘‘फिल्म का नाम था ‘सुनहरा तीर.’ उस की कहानी भी दिलचस्प है.’’ वह संक्षेप में कहानी का सारांश बता कर बोला, ‘‘खास कर वह सीन, जब अंत में हीरो तीरों की बौछार में हीरोइन को घोड़े पर बैठा कर भागता है, बेजोड़ है.’’

‘‘कोठारी साहब, आप यह सब सचसच बता रहे हैं?’’ मयंक ने पूछा.

मगनलाल कोठारी का चेहरा लाल हो गया. वह कुछ बिगड़ कर बोला, ‘‘तो क्या आप को झूठ लग रहा है? आप तो ऐसे बात कर रहे हैं जैसे मैं ने ही खून किया हो?’’

‘‘नहीं, मैं ने ऐसा कब कहा,’’ मयंकमोहन ने इतमीनान से कहा, ‘‘मैं आप की बात पर पूरा विश्वास कर रहा हूं. बस, आप को गवाहों के सामने अपने इस बयान पर हस्ताक्षर करने होंगे.’’

‘‘मुझे कोई ऐतराज नहीं है.’’ कोठारी ने जोश में कहा.

                                                                                                                                                क्रमशः

अमीर बनने की चाहत – भाग 2

इस सनसनीखेज मामले की जांच में तत्परता दिखाना बहुत जरूरी था. क्योंकि अपहर्ता जयकरन को नुकसान पहुंचा सकते थे. दोपहर होतेहोते पुलिस को जयकरन के मोबाइल की काल डिटेल्स भी मिल गई. उस से पता चला कि उस की अंतिम लोकेशन दिल्ली-मेरठ रोड स्थित औद्योगिक क्षेत्र में थी. इस के बाद मोबाइल बंद हो गया था.

जबकि जयकरन के मोबाइल से फिरौती के लिए जो काल की गई थी, वह वहां से करीब 15 किलोमीटर दूर गालंद क्षेत्र से की गई थी. मोबाइल से सिर्फ एक वही काल हुई थी. इस के बाद मोबाइल बंद कर दिया गया था. इस का मतलब अपहर्ता बेहद चालाक थे. उन्होंने फिरौती के लिए न सिर्फ जयकरन के फोन का इस्तेमाल किया था, बल्कि स्थान भी बदल दिया था. संदिग्ध गतिविधियों के चलते पुलिस ने दीपक को रडार पर ले लिया.

उस के मोबाइल की जांच से पता चला कि वह मोदीनगर क्षेत्र का रहने वाला था. जांच के दौरान यह बात भी पता चली कि वह अपनी मां के साथ राजनगर स्थित छोटे बच्चों के रौयल किड्स प्ले स्कूल में रहता था. उस की मां चूंकि स्कूल में ही कर्मचारी थी, इसलिए इस परिवार को स्कूल में रहने के लिए जगह मिली हुई थी.

पुलिस को दीपक के 2 और नजदीकियों के ठिकाने पता चले. इन में एक था संदीप. उस के मोबाइल की लोकेशन जयकरन के मोबाइल की लोकेशन से मैच हो रही थी. संदीप के बारे में पुलिस तत्काल कोई खास जानकारी नहीं जुटा सकी. शक में मजबूती आते ही पुलिस सतर्क हो गई. अगर दीपक ही अपहर्ता था तो यह भी संभव था कि उस ने जयकरन को स्कूल स्थित घर पर ही छिपा कर रखा हो.

पुलिस अधिकारियों ने आपस में विचारविमर्श कर के अविलंब स्कूल में दबिश डालने का निर्णय लिया. एसपी अजयपाल शर्मा के नेतृत्व वाली टीम रौयल किड्स स्कूल पहुंची. उस वक्त दोपहर के 3 बजे थे. स्कूल के बच्चों की छुट्टी हो चुकी थी. अचानक पुलिस को वहां आया देख स्कूल की संचालिका रिचा सूद सकते में आ गईं. पुलिस को दीपक की मां अनीता भी वहीं मिल गईं. दीपक के बारे में पूछताछ करने पर वह बुरी तरह घबरा गईं.

“दीपक कहां है?” पुलिस ने पूछा.

“घर पर.” बताते हुए उस ने स्कूल कैंपस में पीछे की तरफ इशारा कर के बताया. वहां क्वार्टर बना हुआ था. पुलिस दनदनाती हुई वहां पहुंची तो वहां पहुंचते ही वह हुआ, जिस की किसी को उम्मीद नहीं थी. घर के अंदर से अचानक गोलियां चलनी शुरू हो गईं.

संभवत: क्वार्टर में मौजूद लोगों को अपनी घेराबंदी का अंदाजा हो गया था. इस पर पुलिसकॢमयों ने भी हथियार थाम कर पोजीशन ले ली. कुछ मिनटों तक दोनों तरफ से रुकरुक कर कई राउंड गोलियां चलीं. इस से आसपास के क्षेत्र में दहशत फैल गई और लोग एकत्र हो गए. पुलिसकॢमयों की निगाहें क्वार्टर पर जमी थीं. तभी ट्रैक सूट पहने एक युवक ने तेजी से क्वार्टर का दरवाजा खोला और बिजली जैसी फुरती से फायरिंग करता हुआ भागा. पुलिस ने उसे चेतावनी दी, “रुक जाओ, वरना गोली मार देंगे.”

युवक ने एक पल के लिए पीछे पलट कर देखा और फिर भागने लगा. इस पर पुलिस ने एक गोली उस के बाएं पैर पर दाग दी. गोली लगते ही वह नीचे गिर गया. उस के गिरते ही पुलिसकॢमयों ने उसे घेर लिया. पुलिस को उम्मीद थी कि वह दीपक होगा, लेकिन उस ने अपना नाम संदीप बताया.

“जयकरन कहां है?” जवाब में उस ने घर की तरफ इशारा कर दिया. पुलिस हथियार तान कर घर के अंदर दाखिल हुई, तो भौचक्की रह गई. पिस्टल से लैश 2 और युवक वहां मौजूद थे. लेकिन वह घबराए हुए थे. जयकरन एक कोने में बैठा थरथर कांप रहा था. उस के हाथपैर बंधे हुए थे.

पुलिस ने दोनों युवकों को गिरफ्त में ले कर जयकरन को बंधनमुक्त कराया. अपहर्ताओं को गिरफ्तार कर के जयकरन को सकुशल बरामद करना पुलिस के लिए बड़ी कामयाबी थी. मौके से गिरफ्तार किए गए दोनों युवकों में एक दीपक व दूसरा उस का छोटा भाई बिट्टू था. उन के कब्जे से पुलिस ने तीन पिस्टल, उन के मोबाइल व जयकरन का मोबाइल भी बरामद कर लिया. बेटे की बरामदगी की सूचना पर विवेक महाजन और उन की पत्नी भी मुठभेड़स्थल पर आ गए. जयकरन बहुत डरासहमा था. इस बीच पुलिस घायल युवक संदीप को अस्पताल ले गई.

पुलिस दीपक व बिट्टू को थाने ले आई. पुलिस ने डरीसहमी स्कूल संचालिका रिचा सूद, दीपक की मां अनीता और उस के सब से छोटे भाई आयुष को भी पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. पुलिस द्वारा गिरफ्तार युवकों व घायल संदीप से विस्तृत पूछताछ की गई तो राह से भटके युवाओं द्वारा रचित अपराध की चौंकाने वाली कहानी सामने आई.

दीपक का प्लेसमेंट एजेंसी का कमीशन पर आधारित काम था. उस के परिवार में मां अनीता के अलावा उस के छोटे भाई बिट्टू व आयुष थे. दीपक के पिता की वर्षों पहले मृत्यु हो गई थी. अनीता मेहनती और हिम्मती महिला थीं. उन्होंने परिवार को चलाने के लिए छोटीमोटी नौकरियां कर के बेटों को इस उम्मीद में पढ़ायालिखाया कि वे जिम्मेदारियां उठा कर घर को संभाल लेंगे. लेकिन इंसान सोचता कुछ है और होता कुछ और है.

अनीता ने आॢथक तंगियां भी देखी थीं और जमाने की कठोरता भी. वह मोदीनगर की भूपेंद्र कालोनी में रहती थीं. बाद में उन्होंने रौयल किड्स स्कूल में नौकरी कर ली थी. स्कूल परिसर में ही बने क्वार्टर में उन के रहने का भी इंतजाम हो गया तो वह तीनों बेटों के साथ वहां चली आईं. वहां आ कर दीपक ने एक कंपनी में कमीशन के आधार पर काम करना शुरू कर दिया था, लेकिन यह काम उसे छोटा लगता था.

स्पा के दाम में फाइव स्टार सेक्स – भाग 2

पहला राज थैरपी सेंटर के लिए प्रभारी एसआई ओमवीर स्वाट टीम से बनाए गए. उन के साथ एसआई मोहित यादव, लेडी एसआई सुमित्रा रावत, हैडकांस्टेबल मनोज कुमार सभी थाना लिंक रोड, एसआई मोहित कुमार, कांस्टेबल योगेश, विपुल खोकर, अभय प्रताप, लेडी कांस्टेबल मंजू सभी पुलिस लाइंस, कांस्टेबल तरुण स्वाट टीम.

दूसरी टीम स्वाधिका थैरपी सेंटर के लिए प्रभारी एसआई आकाश तिवारी पुलिस लाइंस को बनाया गया. इस टीम में एसआई रोहित गुप्ता, कांस्टेबल नीतेश कुमार, लेडी कांस्टेबल एकता डबास सभी पुलिस लाइंस, मीना थाना लिंक रोड को शामिल किया गया.

तीसरी टीम के प्रभारी एसआई धु्रव सिंह पुलिस लाइंस को बनाया गया. उन के साथ एसआई नरेंद्र कुमार, कांस्टेबल पुष्पेंद्र शर्मा, लेडी कांस्टेबल सीमा मलिक और जौली सभी थाना लिंक रोड के अलावा एसआई विवेक कुमार पुलिस लाइंस को भी शामिल किया गया. यह टीम द हैवन थैरपी सेंटर के लिए गठित की गई.

चौथी टीम अरोमा थैरपी सेंटर के प्रभारी एसआई सौरव, पुलिस लाइंस के नेतृत्व में गठित की गई. इस टीम में मुनेश कुमार, थाना लिंक रोड, हेडकांस्टेबल निशांत स्वाट टीम, कांस्टेबल अंजेश कुमार थाना लिंक रोड, रवि यादव, लेडी कांस्टेबल राधा शर्मा पुलिस लाइंस, उर्वशी थाना लिंक रोड को शामिल किया.

पांचवीं टीम का प्रभारी एसआई विश्वेंद्र, पुलिस लाइंस को बनाया, जिस में एसआई यश कुमार थाना लिंक रोड, हैडकांस्टेबल महेश कुमार थाना लिंक रोड, कांस्टेबल अनुज पुलिस लाइंस, महिला कांस्टेबल रेणु चौहान पुलिस लाइंस, सीमा थाना लिंक रोड को शामिल किया गया. इस टीम को अरमान थैरेपी सेंटर के लिए नियुक्त किया गया.

छठी टीम के प्रभारी एसआई दिनेश कुमार यादव पुलिस लाइंस, कप्तान सिंह थाना लिंक रोड, हेडकांस्टेबल अरुण वीर थाना लिंक रोड, कांस्टेबल विपिन पुलिस लाइंस, महिला कांस्टेबल पूजा पुलिस लाइंस, शिवांगी को रायल स्पा सेंटर के लिए टीम में शामिल किया गया.

सातवीं टीम एस-2 थैरपी सेंटर के लिए प्रभारी एसआई संजय कुमार पुलिस लाइंस, चेतन कुमार थाना लिंक रोड, हैडकांस्टेबल जितेंद्र कुमार थाना लिंक रोड, सुमित पुलिस लाइंस, कांस्टेबल श्रीकृष्णा पुलिस लाइंस, लेडी कांस्टेबल लता शर्मा पुलिस लाइंस, गीता पुलिस लाइंस.

आठवीं टीम के प्रभारी इंसपेक्टर पुष्पराज सिंह थाना लिंक रोड, महिला एसआई सर्जना पुलिस लाइंस, कांस्टेबल नीरेश यादव, थाना लिंक रोड, कांस्टेबल मनीष थाना लिंक रोड, संजय कुमार, थाना लिंक रोड, हैडकांस्टेबल तहजीब खान स्वाट टीम, लेडी कांस्टेबल रेणु पुलिस लाइंस. यह टीम एस-2 थैरपी सेंटर के लिए नियुक्त की गई.

‘द रुद्रा थैरपी’ पैसिफिक माल के अंदर चल रहे स्पा सेंटरों पर दबिश तथा आवश्यक काररवाई के मद्ïदेनजर हिदायत दी गई कि मौके पर मौजूद महिलाओं की मर्यादा को ध्यान में रख कर सर्च अभियान एवं वैधानिक काररवाई की जाएगी. इस के बाद सभी की जामातलाशी ले कर यह सुनिश्चित किया गया कि किसी के पास कोई नाजायज वस्तु नहीं है.

पैसिफिक माल में पुलिस ने मारा छापा

ये टीमें रात 8 बज कर 20 मिनट पर द रुद्रा थैरपी पैसिफिक माल के सामने पहुंच गईं. वहां आनेजाने वाले लोगों को पुलिस रेड का गवाह बनाने के लिए पूछा गया, लेकिन कोई भी शख्स बेकार के लफड़े में फंसने को तैयार नहीं हुआ. सभी ने अपनेअपने तरीके से मजबूरी जाहिर कर के इंकार कर दिया. निराश हो कर टीमों ने साढ़े 10 बजे एक साथ आठों स्पा सेंटरों पर धावा बोल दिया.

पुलिस सर्च अभियान के दौरान स्पा सेंटर में प्रवेश करने वाली टीमों के प्रभारियों ने ऊंची आवाज में महिलाओं को अपने नग्न जिस्म ढंकने के लिए कहा. महिलाओं की मर्यादा रख कर उन्हें बंद केबिनों से बाहर निकाला गया. उन की जामातलाशी ली गई और उन के नामपते पूछ कर नोट किए गए. जो अय्याश लोग इन स्पा सेंटरों में मौजमस्ती करने आए थे, उन्हें हिरासत में ले लिया गया.

इन स्पा सेंटरों से कुल 60 युवतियां देह धंधे में लिप्त मिली थीं. इन्हें महिला सबइंसपेक्टर और महिला कांस्टेबल की हिरासत में दे कर सभी के नामपते नोट किए गए. इन की उम्र 19 साल से 22 साल थी. इन में कुछ युवतियां शादीशुदा भी थीं. इन के नामपते मर्यादा का ध्यान रख कर उजागर नहीं किए जा सकते.

जब इन से इस प्रकार का अनैतिक देह धंधा अपनाने का कारण पूछा गया तो सभी ने एक ही बात कही, “हम अपना घर खर्च या जरूरतें पूरी करने के लिए इन स्पा सेंटरों में नौकरी करने आई थीं. न जाने कैसे हमें बहलाफुसला कर हमारी अश्लील वीडियो स्पा मालिक अथवा मैनेजर द्वारा बना ली गई. उसे वायरल करने की धमकी दे कर हमें देह परोसने के लिए मजबूर किया गया. एक के बाद बारबार ऐसा होने लगा. हमें एक या आधा घंटे के लिए 3 से 5 हजार रुपए ग्राहक से ले कर उन के साथ सोने को मजबूर किया जाता रहा, इस में हमारी मरजी नहीं थी.”

गर्म गोश्त के धंधे में हुईं गिरफ्तारियां

इन स्पा सेंटरों के मालिक और मैनेजर पकड़ में आए, उन के नाम हैं— कुशल कुमार, प्रीत कौर, सुभाष कुमार, रोहित, रेनू, थे.

युवतियों के साथ मौजमस्ती करते हुए जिन पुरुषों को हिरासत में लिया गया, उन के नाम सुमित, अमित कुमार गुप्ता, राकेश, अमित कुमार, सागर सोनी, श्याम कुमार, नीरज कपूर, गुलफाम, ललित मोहन, मुशाहिद, सुनील, रोहित जैन, संदीप कुमार, विमल कुमार, सुनील कुमार, रवि कुमार, अश्वनी कुमार, मुकेश कुमार, नदीम कुरैशी, अनुज कुमार, राजेश कुमार, अजय कुमार, विष्णु, अबूजर, विशाल माथुर, मुनीश कुमार, प्रशांत वत्स, अभिषेक, आशुतोष भटनागर, आकाश कश्यप, प्रफुल्ल कुमार, गोरंगो बहेरा मोहन, रमेश चंद, सैंसर पाल सिंह, वसीम थे. ये सभी गाजियाबाद और आसपास के रहने वाले थे.

यह 41 लोग किसी न किसी रूप में रुद्रा पैसिफिक माल में चल रहे 8 स्पा सेंटरों से जुड़े हुए थे. पुलिस टीम ने इन्हें हिरासत में ले लिया.

छापे के दौरान स्पा सेंटरों के संचालक और मैनेजर गिरफ्तार

स्पा एस-2 का मालिक शाहिद, रायल स्पा का मालिक गौरव वर्मा, स्वातिका स्पा का मालिक दीपक, द हैवन थैरपी का मालिक विशाल उर्फ कपिल, राज थैरपी का मालिक ङ्क्षरकू व राजकुमार, अरोमा थेरपी का मालिक मोहन, अरमान थैरपी का मालिक पिंटू गिरि, रुद्रा थैरपी का मालिक राहुल चौधरी वहां से भाग से भाग गए.

इन सभी का जुर्म अनैतिक देह व्यापार निवारण अधिनियम 1956 की हद को पार करता है इसलिए इन्हें धारा 3/4/5/6 लगा कर विधिवत बंदी बनाने के लिए प्रयास किया जाएगा.

पुलिस ने स्पा सेंटरों के केबिनों से आपत्तिजनक हालत में मिली महिलाओं को पीडि़त मान कर उन्हें गवाह बना लिया गया. उन के सगेसंबंधियों और घर वालों को बुला कर उन की सुपुर्दगी में सौंप दिया जाएगा ताकि उन का उचित रीहैबिलिटेशन हो सके.

स्पा सेंटरों से अनेक आपत्तिजनक चीजें जैसे कंडोम, अश्लील उत्तेजक तसवीरें, जोश बढ़ाने वाली दवाइयां, 29 मोबाइल और एक लाख 7 हजार 358 रुपए बरामद हुए थे. उन्हें अलगअलग कपड़ों में रख कर सीलमोहर किया गया. गिरफ्तारी के समय माननीय सर्वोच्च न्यायालय व मानवाधिकार आयोग के आदेशोंनिर्देशों का भी पालन किया गया.

पुलिस ने सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर 25 मई, 2023 को कोर्ट में पेश किया, जहां से इन्हें जेल भेज दिया गया. डीसीपी विवेकचंद्र यादव ने इस काररवाई के बाद महाराजपुर पुलिस चौकी के इंचार्ज शिशुपाल सिंह को सस्पेंड कर दिया.

ज़रा सी भूल ने खोला क़त्ल का राज – भाग 1

मगनलाल कोठारी बहुत खुश था. इंडियन काफी हाउस से नाश्ता कर के वह हलके स्वर में सीटी बजाते हुए धीरेधीरे कनाटप्लेस की ओर  जा रहा था. उसे केवल एक घंटे का समय बिताना था. एक घंटा बाद टिकट ले कर उसे प्लाजा सिनेमा में फिल्म देखनी थी.

हकीकत में उसे फिल्म नहीं देखनी थी बल्कि यह उस की योजना का हिस्सा था. उसे बस सिनेमा हाल में टिकट ले कर घुसना भर था ताकि वह अपनी मौजूदगी पक्की कर ले कि वह 12 से 3 बजे वाले शो में फिल्म देख रहा था.

40-42 साल का मगनलाल कोठारी खुद को बहुत होशियार समझता था. सचमुच वह चतुर चालाक था भी. दिल्ली में वह पिछले 6 सालों से कारोबार कर रहा था और उस में सफल भी था. लेकिन जब से उस ने एक पंजाबी युवती से शादी की थी तब से उस की सोच कुछ टेढ़ी हो गई थी. अब वह अपने पूरे कारोबार का एकछत्र मालिक बनने की सोचने लगा था, लेकिन उस की राह का कांटा था रामलाल गोयल, उस का पार्टनर.

रामलाल गोयल स्वभाव का अच्छा व्यक्ति था. व्यवसाय में ज्यादातर पैसा भी उसी का लगा हुआ था. अच्छे पार्टनर की तरह उसे कोठारी पर पूरा भरोसा था. कोठारी और गोयल ने सालों पहले पार्टनरशिप में बिजनैस शुरू किया था जो अच्छाभला चल रहा था. रामलाल गोयल करीब 50 साल का था लेकिन अविवाहित और अकेला. वह अपना खाली समय सिनेमा, टीवी और पत्रपत्रिकाओं वगैरह से बिताता था.

जबकि कोठारी के मनोरंजन के साधन कुछ और ही थे. उस के मनोरंजन का साधन होती थीं औरतें. वह चूंकि शादीशुदा था, इसलिए अपने इस शौक को वह बड़ी सावधानी से छिपाने का अभ्यस्त हो गया था. कोठारी की परेशानी यह थी कि रामलाल गोयल को बिना अपने रास्ते से हटाए वह सारे कारोबार का अकेला मालिक नहीं बन सकता था.

उसे रास्ते से हटाने के बारे में वह इसलिए भी सोचता था क्योंकि गोयल वैसे तो अकेला था लेकिन मध्यप्रदेश के उस के पैतृक घर में उस के भाई वगैरह थे. यह अलग बात है वह काफी पहले उन से संबंध तोड़ चुका था और दिल्ली में अकेला रह रहा था. कोठारी सोचता था कि अगर गोयल उस की राह से हट जाता है तो वह सारे कारोबार का अकेला मालिक बन जाएगा.

थोड़ी देर पहले कोठारी अपनी पत्नी और उस के रिश्ते के ममेरे भाई के साथ बाजार में था. उसे अपना यह साला सख्त नापसंद था. वह बिल्कुल नहीं चाहता था कि उस की खूबसूरत बीवी लफंगे टाइप के उस साले से मिलेजुले, पर पत्नी का दिल न दुखे इसलिए उसे यह बर्दाश्त करना पड़ता था. उन लोगों ने करोलबाग में कुछ खरीददारी की थी और जब वापस लौटने लगे थे तो कोठारी एक आदमी से मिलने का बहाना बना कर कनाट प्लेस आ गया था और इधरउधर घूम कर इंडियन काफी हाउस में जा बैठा था.

थोड़ी देर बाद जब दोपहर के शो का समय हो गया तो वह अपनी योजनानुसार प्लाजा सिनेमा की ओर चल दिया. वहां उसे अपने परिचित सिनेमा मैनेजर से मिलना था, फिर टिकट लेना था और अपने जानकार गेटकीपर को ठीक से अपना चेहरा दिखा कर हाल में घुस जाना था. फिर सब की आंख बचा कर उसे चुपके से हाल से निकल कर अपना काम करना था. इस के बाद, फिल्म समाप्ति पर उसे सिनेमा हाल से बाहर निकलने वाली भीड़ में शामिल हो कर मैनेजर से दो बातें कर के वापस लौट आना था.

मगन लाल कोठारी ने अपनी योजना पर कई दिनों तक काफी सोचविचार किया था. इस से 2-3 दिन पहले उस ने बिना अपने परिचित मैनेजर से मिले चुपके से जा कर सिनेमा हाल में लगी फिल्म देख ली थी और उस की कहानी भी अच्छी तरह याद कर ली थी.

सिनेमा हाल के पास वाली दुकान से सिगरेट खरीद कर वह कश लेता हुआ मैनेजर के औफिस में गया. मैनेजर ने उस का बड़ी गर्मजोशी से स्वागत किया. फिर बैठने का इशारा करते हुए पूछा, ‘‘क्यों मि. कोठारी, फिल्म देखेंगे न?’’

‘‘हां भई, इसीलिए तो आया हूं. जरा टिकट मंगवा दीजिए.’’ कोठारी ने पैसे देने चाहे तो मैनेजर ने आजीजी से कहा, ‘‘पैसों की क्या बात है, आप चलें, मैं बैठा देता हूं.’’

‘‘देखो भाई,’’ कोठारी बोला, ‘‘घोड़ा घास से दोस्ती नहीं करता. दोस्ती हम दोनों की है, मालिक का क्यों नुकसान करते हो?’’

मैनेजर मुसकरा कर रह गया, वह कोठारी की आदत जानता था. उस ने चपरासी से ड्रेस सर्किल की एक टिकट मंगवा दी. कोठारी गेट से हाय हैलो कर के अंदर चला गया. फिल्म शुरू होने से पहले बत्तियां बुझ गईं. हाल में अंधेरा छाते ही कोठारी एक्जिट की ओर बढ़ गया. उस वक्त उस ने नकली दाढ़ी मूंछें लगा रखी थीं जो उस ने पिछले दिन ही खरीदी थीं. उस वक्त 2-3 युवक अंदर आ रहे थे. उस ने इस का लाभ उठाया. फलस्वरूप उसे गेटपास भी नहीं लेना पड़ा. गेटकीपर उसे पहचानता था, लेकिन वह उस वक्त दूसरी ओर पीठ किए खड़ा था इसलिए कोठारी को देख नहीं सका.

सिनेमा हाल के पिछवाड़े की गली उसे मालूम थी, उसी से वह सड़क पर आ गया. वहां से एक टैक्सी ले कर वह सीधा अपने औफिस आया जो साउथ ऐक्सटेंशन के पास था. वह जानता था, कि औफिस 1 से 3 बजे तक बंद रहता है. दरअसल इस बीच रामलाल दोपहर में लंच करने के लिए पास ही के रेस्तरां में जाता था और फिर लौट कर 3 बजे तक औफिस में ही आराम करता था. औफिस का चपरासी 2 बजे भोजन करने अपने घर जाता था. उस के लौटने का समय हो रहा था. कोठारी ने हाथ में रूमाल लपेट कर चाबी से औफिस का मुख्य दरवाजा खोला और अंदर घुस कर दरवाजा फिर से बंद कर दिया.

उस ने धीरे से जेब थपथपाई, फिर आगे बढ़ गया. रामलाल गोयल के चैंबर का दरवाजा खुला हुआ था. धीरे से थोड़ा सा परदा हटा कर उस ने अंदर झांका. रामलाल फाइलों से लदी मेज के पार आराम कुर्सी पर मुंह खोले खर्राटे ले रहा था. कोठारी के होंठों पर कुटिल मुसकान फैल गई. वह सोचने लगा कितना आसान है किसी का खून करना. लोग बिना वजह घबराते हैं. अगर योजना सही हो तो कोई दिक्कत नहीं होती. पर योजना भी तो परफेक्ट होनी चाहिए. कोठारी दबे पांव अंदर चला गया.

                                                                                                                                           क्रमशः

अमीर बनने की चाहत – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जनपद गाजियाबाद के पौश इलाके राजनगर एक्सटेंशन की वीवीआईपी सोसाइटी में 30 नवंबर, 2015 की सुबह हडक़ंप मचा हुआ था. इस की वजह वह थी कि इस सोसाइटी में रहने वाले कारोबारी विवेक महाजन का बेटा रहस्यमय ढंग से गायब हो गया था. दरअसल उन का 13 वर्षीय बेटा जयकरन 29 नवंबर की दोपहर सोसाइटी में ही बने मैदान में खेलने के लिए गया था.

इसी बीच वह लापता हो गया था. जब वह शाम तक घर नहीं पहुंचा तो घर वालों को चिंता हुई. चिंता के बादल तब और गहरे हो गए, जब यह पता चला कि जयकरन का मोबाइल भी स्विच्ड औफ है. परिचितों और जयकरन के दोस्तों के यहां भी उस की खोजबीन की जा चुकी थी. लेकिन उस का कहीं कोई पता नहीं लग पा रहा था. थकहार कर विवेक महाजन ने स्थानीय थाना सिंहानी गेट में बेटे की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी. पुलिस ने उन्हें नातेरिश्तेदारों के यहां खोजबीन करने की सलाह दे कर जयकरन का फोटो और हुलिया नोट कर लिया था.

विवेक महाजन के परिवार में पत्नी अमिता के अलावा 2 ही बच्चे थे, बेटी संस्कृति और बेटा जयकरन. अमिता पेशे से डाक्टर थीं, उन का अपना नैचुरोपैथी क्लिनिक था. जयकरन शहर के ही एक पब्लिक स्कूल में कक्षा 8 में पढ़ रहा था. उस के लापता होने से अनहोनी की आशंकाएं जन्म ले रही थीं. पूरी रात जयकरन का इंतजार होता रहा. लेकिन न तो वह आया और न ही उस के मोबाइल पर संपर्क हो सका. चिंताओं के बीच किसी तरह रात बीत गई. 30 नवंबर की सुबह सूरज की रेशमी किरणों से नई उम्मीदों का उजाला तो हुआ, लेकिन महाजन परिवार की उदासी और परेशानी ज्यों की त्यों बनी रही.

करीब सवा 10 बजे अमिता के मोबाइल की घंटी बजी. उन्होंने बुझे मन से मोबाइल की स्क्रीन को देखा तो उस पर जयकरन का नंबर डिस्प्ले हो रहा था. उन्होंने झट से फोन का बटन दबा कर के कान से लगाया, “ह…ह…हैलो जयकरन बेटा, कहां है तू?”

“घबराओ नहीं डाक्टर साहिबा, जयकरन हमारे पास सलामत है.” किसी अनजबी की आवाज सुन कर अमिता के दिल की धडक़नें बढ़ गईं और आवाज गले में अटक सी गई, “अ…अ…आप कौन, मेरा बेटा कहां है? उस से मेरी बात कराइए.” अमिता ने कहा.

लेकिन फोन करने वाला ठंडे लहजे में बोला, “इतनी भी क्या जल्दी है, बेटे से बात करने की. अभी एक ही रात के लिए तो दूर हुआ है. बाई द वे वह बिल्कुल ठीक है. हम पूरा खयाल रख रहे हैं उस का.”

कुछ पल रुक कर उस ने आगे कहा, “रही हमारी बात तो इतना बताना ही काफी है कि आप लोग फटाफट 2 करोड़ रुपए का इंतजाम कर लो. जैसे ही 2 करोड़ दे दोगे, बेटा तुम्हें मिल जाएगा.”

यह सुन कर अमिता के होश उड़ गए. वह समझ गईं कि उन के बेटे का अपहरण हुआ है. वह गिड़गिड़ाईं, “देखो प्लीज, तुम मेरे बेटे को छोड़ दो.”

उन की बेबसी पर फोनकर्ता ने पहले ठहाका लगाया, फिर वह कठोर लहजे में बोला, “कहा तो है छोड़ देंगे. तुम रकम का इंतजाम करो. हम तुम्हें दोबारा फोन करेंगे.” थोड़ा रुक कर वह आगे बोला, “और हां, पुलिस को फोन करने की गलती कतई मत करना, वरना तुम्हारा बेटा टुकड़ों में मिलेगा.”

“तुम लोग गलत कर रहे हो. हम पर रहम करो, प्लीज मेरे बेटे को छोड़ दो.”

अमिता ने कहा तो दूसरी ओर से फोन कट गया. उन्होंने काल बैक की, लेकिन तब तक मोबाइल फोन स्विच्ड औफ हो चुका था.

जयकरन के अपहरण की बात से महाजन परिवार में कोहराम मच गया. सोसाइटी के लोग भी एकत्र हो गए. विवेक महाजन ने इस की सूचना पुलिस को दी तो पुलिस विभाग तुरंत हरकत में आ गया. मामला एक हाईप्रोफाइल कारोबारी के बच्चे के अपहरण का था, लिहाजा कुछ ही देर में थानाप्रभारी रणवीर ङ्क्षसह विवेक महाजन के घर पहुंच गए. बाद में एसएसपी धर्मेंद्र यादव, एसपी (सिटी) अजयपाल शर्मा व सीओ विजय प्रताप यादव भी वहां आ गए.

यह बात पूरी तरह साफ हो गई थी कि जयकरन का अपहरण फिरौती के लिए किया गया था. अपहर्ता उस के साथ कुछ भी कर सकते थे. ऐसे में पुलिस के सामने जयकरन को बचाना बड़ी चुनौती थी. मेरठ जोन के आईजी आलोक शर्मा व डीआईजी आशुतोष कुमार ने सतर्कता के साथ अविलंब काररवाई निर्देश दिए.

एसएसपी धर्मेंद्र यादव ने जयकरन की सकुशल रिहाई के लिए एसपी अजयपाल शर्मा के निर्देशन में एक पुलिस टीम गठित कर दी. इस टीम में थाना पुलिस के अलावा क्राइम ब्रांच के प्रभारी अवनीश गौतम व उन की टीम को भी शामिल किया गया.

इस बीच पुलिस ने जयकरन की गुमशुदगी को अपहरण में तरमीम कर के अज्ञात अपहर्ताओं के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया था. पुलिस ने जयकरन का मोबाइल नंबर ले कर सॢवलांस पर लगा दिया. पुलिस को उम्मीद थी कि सीसीटीवी की मदद से संभवत: कोई ऐसा सुराग मिल जाएगा, जिस से यह पता चल जाएगा कि जयकरन को कालोनी के बाहर कब और कैसे ले जाया गया. लेकिन पुलिस की यह उम्मीद तब टूट गई, जब पता चला कि वीवीआईपी सोसाइटी में सीसीटीवी कैमरे नहीं लगे हैं.

इस बीच पुलिस इतना अंदाजा जरूर लगा चुकी थी कि जयकरन के अपहरण में किसी ऐसे व्यक्ति का हाथ है, जिसे वह पहले से जानता रहा होगा. क्योंकि अगर उसे जबरन ले जाया गया होता तो शोरशराबा होता या घटना का कोई प्रत्यक्षदर्शी मिल जाता.

पुलिस ने जयकरन के घर वालों और अन्य लोगों से पूछताछ की, लेकिन कोई ऐसा सुराग नहीं मिला, जिस के आधार पर पुलिस आगे बढ़ पाती. पुलिस ने जयकरन के दोस्तों और सोसाइटी के संदिग्ध लोगों के बारे में पूछताछ की तो एक चौंकाने वाली जानकारी मिली. एक व्यक्ति ने बताया, “सर, 2 लडक़े हैं जो अब नहीं दिख रहे. वे दोनों जयकरन के दोस्त भी हैं.”

“कौन हैं वे?” पुलिस अधिकारी ने पूछा तो उस व्यक्ति ने बताया, “दीपक और संदीप. दोनों सोसाइटी में ही किराए पर अकेले रहते हैं. रात और सुबह 9 बजे तक तो दोनों यहीं पर थे, लेकिन अब नहीं दिख रहे हैं.”

यह पता चलने पर पुलिस उन दोनों के फ्लैट पर पहुंची, लेकिन वहां ताला लटका हुआ था. इस से पुलिस को उन पर थोड़ा शक हुआ. उन के बारे में ज्यादा कोई कुछ नहीं जानता था. बस इतना ही पता चला कि वे दोनों 2 महीने पहले ही सोसाइटी में रहने के लिए आए थे. दोनों बहुत मिलनसार थे और बच्चों के साथ क्रिकेट खेलते थे. जयकरन को चूंकि क्रिकेट का बहुत शौक था, इसलिए उस की उन से अच्छी जानपहचान थी.

“वे दोनों काम क्या करते थे?”

“नहीं पता सर.”

पुलिस के शक की सूई उन दोनों के इर्दगिर्द घूमने लगी. तभी एक युवक ने अपना मोबाइल आगे बढ़ाते हुए कहा, “यह देखिए सर, दीपक का फोटो.” फोटो पर नजर पड़ते ही एसपी अजयपाल शर्मा चौंके. उस में दीपक अपने हाथ में अवैध पिस्टल लिए हुए था. दरअसल दीपक ने वह फोटो व्हाट्सएप ग्रुप में खुद ही पोस्ट की थी. पुलिस ने पहली नजर में ही ताड़ लिया कि पिस्टल अवैध थी. इस से पुलिस का शक उन दोनों पर और भी बढ़ गया. पुलिस ने पूछताछ कर के दीपक का मोबाइल नंबर हासिल कर लिया.

स्पा के दाम में फाइव स्टार सेक्स – भाग 1

24 मई, 2023 को शाम के करीब 6 बजे का समय था. तारकोल की चिकनी सडक़ पर तेजी से दौड़ती चमचमाती कार सुजुकी अर्टिगा गाजियाबाद के लिंक रोड थानाक्षेत्र में स्थित पैसिफिक माल के सामने आकर रुकी. कार की ड्राइविंग सीट से सफेद वरदी पहना ड्राइवर तेजी से बाहर आया. उस ने कार का पिछला दरवाजा खोला और अदब से एक ओर खड़ा हो गया.

कार से जो शख्स उतरा, वह थुलथुले शरीर वाला नाटा सा व्यक्ति था. उस का चेहरा गोल और आंखें छोटीछोटी थीं. सिर पर आधी खोपड़ी गंजी थी, लेकिन जो बाल थे, वह ब्लैक डाई से रंगे हुए अलग ही पहचाने जा सकते थे. इस व्यक्ति के शरीर पर बेशकीमती ब्राऊन कलर का सफारी सूट था. पैरों में कीमती जूते चमचमा रहे थे. यह पैसों वाला अमीर व्यक्ति जान पड़ता था.

छोटीछोटी आंखों को जबरदस्ती फैला कर वह ड्राइवर से बोला, “मुन्ना देखो, मैं अपना फोन गाड़ी में ही छोड़ कर जा रहा हूं, यदि पीछे से तुम्हारी मालकिन सुनीता का फोन आए तो उस से कहना कि साहब हलका होने गए हैं, समझ गए.” कहने के बाद वह मानीखेज अंदाज में मुसकराया.

मुन्ना ने भद्दे पीले दांत चमकाए और धीरे से बोला, “समझ गया मालिक.”

वह व्यक्ति आगे बढ़ता, तभी मुन्ना ने मासूमियत से उसे टोका, “मालिक?”

वह व्यक्ति रुका, पलटा, “क्या?”

मुन्ना ने दोनों हाथ बांधे और जांघों के बीच में दबा कर खींसे निपोरते हुए बोला, “मालिक, कभी मुझे भी हलका होने के लिए ले चलिए न.”

“शटअप!” वह नाटा व्यक्ति गुस्से में बोला, “शक्ल देखी है कभी अपनी आईने में?”

“सौरी मालिक.” मुन्ना झेंप कर बोला.

वह व्यक्ति लंबेलंबे डग भरता हुआ पैसिफिक माल में चला गया तो मुन्ना ने उसे भद्ïदी सी गली दी, “हरामी कहीं का. घर में इतनी सुंदर बीवी है और रोज यहां गटर में डुबकी मारने आ जाता है.”

पैसिफिक माल में वेश्यावृत्ति

अपनी भड़ास निकाल लेने के बाद मुन्ना ने अपनी जेब से बीड़ी का बंडल निकाल कर बीड़ी सुलगा ली, उस ने बीड़ी का गहरा कश ले कर धुआं बाहर उगला, तभी उस के मोबाइल की घंटी बजने लगी. मुन्ना ने मोबाइल के स्क्रीन पर नजर डाली, उस पर उस के दोस्त गणेशी का नंबर चमक रहा था.

काल रिसीव करते हुए चहक कर बोला, “हैलो, मैं मुन्ना हूं. अबे तू 20 दिन से कहां मर गया था?”

“गांव गया था यार, बीवी की तबीयत खराब थी.”

“अब कैसी है भाभी?”

“अच्छी है अब.” गणेशी की आवाज उभरी, “तू कहां पर है?”

“मालिक को गटर में गोते खिलाने के लिए पैसिफिक माल में लाया हूं.”

“गटर में गोते? अबे तू क्या बक रहा है, तेरा मालिक पैसिफिक माल में कहां के गटर में गोते लगाता है?”

मुन्ना हंसा, “अमा यार, पैसिफिक माल में कई स्पा सेंटर हैं, यहां एक से बढ़ कर एक हसीन लडक़ी मिल जाती है. यहां स्पा की आड़ में जिस्मफरोशी का धंधा खूब होता है. मेरा मालिक सात दिन से रोज इसी वक्त यहां आता है. अमीर है, इसलिए मौज मार रहा है. मैं उस का 15 हजार रुपल्ली का ड्राइवर हूं. मैं बाहर बैठ कर अपनी बदकिस्मती पर सिसकता रहता हूं. काश! मैं भी किसी धन्ना सेठ के यहां पैदा हुआ होता.” मुन्ना ने आह भरी.

दूसरी तरफ गणेशी हंस पड़ा, “रोता क्यों है यार, अपने भी दिन आएंगे कभी मौजमस्ती के.”

“नहीं आएंगे. हम लोगों के नसीब में शादी के वक्त जो औरत पल्ले बांध दी गई है, बस उसी से अपनी हसरतें पूरी करना लिखा है.”

“छोड़ ये बातें, बता घर कब आएगा?”

“इस इतवार को छुट्टी करूंगा, तब आता हूं, भाभी के हाथ की चाय पीने.”

“आ जा, चाय के बाद तुझे बढिय़ा शराब की दावत दूंगा.”

“ठीक है,” मुन्ना ने खुश हो कर कहा, “इतवार की छुट्टी तेरे नाम की.” कहने के बाद मुन्ना ने काल डिसकनेक्ट कर दी. उसे तब अहसास भी नहीं था कि उस की गणेशी से हुई बात को वहीं पास में खड़े एक व्यक्ति ने सुन लिया है. मुन्ना बीड़ी के सुट्टे मारता हुआ ड्राइविंग सीट पर बैठा, तब उस की बातें सुनने वाला व्यक्ति किसी को फोन लगाने लगा था.

मुन्ना की अपने दोस्त गणेशी से होने वाली बातों को सुनने वाला वह व्यक्ति पुलिस का खास मुखबिर जगदीश उर्फ जग्गी था. उस ने तुरंत साहिबाबाद के एसीपी भास्कर वर्मा को फोन लगा कर यह जानकारी दी कि गाजियाबाद के पैसिफिक माल में चल रहे स्पा सेंटर में देह व्यापार का अनैतिक काम चल रहा है.

एसीपी भास्कर वर्मा ने जग्गी को स्पा सेंटरों में चल रहे देह धंधे की पुष्टि कर के उन्हें हकीकत से अवगत करने का निर्देश दे दिया. जग्गी इन कामों का मंझा हुआ खिलाड़ी था. वह उसी वक्त पैसिफिक माल में घुस गया. एक घंटे बाद उस ने एसीपी भास्कर वर्मा को दोबारा फोन लगाया.

“हां जग्गी?” एसीपी ने उतावलेपन से पूछा, “तुम ने मालूम किया?”

“साहब, ईनाम में 5 हजार लूंगा. यहां पैसिफिक माल में एक नहीं पूरे 8 स्पा सेंटर हैं, सभी में लड़कियों से देह धंधा करवाया जा रहा है. इस वक्त छापा डालेंगे तो देह धंधे में लिप्त सैकड़ों लड़कियां, उन के दलाल, मैनेजर और मौजमस्ती करने आए अय्याश लोग भी आप के हाथ आ सकते हैं.”

“ठीक है, तुम्हारा ईनाम पक्का. मैं छापा डालने की तैयारी करवाता हूं.” एसीपी भास्कर वर्मा ने कहा और जग्गी की काल डिसकनेक्ट कर उन्होंने दूसरी जगह फोन घुमाना शुरू कर दिया.

स्पा सेंटर में देह धंधे की खबर से चौंके डीसीपी

एसीपी भास्कर वर्मा ने थाना लिंक रोड, स्वाट टीम ट्रांस हिंडन जोन तथा पुलिस लाइंस कमिश्नरेट गाजियाबाद को फोन कर के तुरंत पुलिस बल सहित महाराजपुर पुलिस चौकी पर पहुंचने का निर्देश दे दिया. उन्होंने ट्रांस हिंडन जोन के डीसीपी विवेक चंद यादव को भी पैसिफिक माल में स्थित 8 स्पा सेंटरों में देह व्यापार होने की सूचना दे कर उन से निर्देश मांगा. डीसीपी विवेक चंद यादव ने चौकी आने की बात कही.

आधा घंटे में ही महाराजपुर पुलिस चौकी में थाना लिंक रोड, स्वाट टीम ट्रांस हिंडन जोन और पुलिस लाइंस कमिश्नरेट गाजियाबाद का पुलिस बल और अधिकारी पहुंच गए. महाराजपुर पुलिस चौकी छावनी में तब्दील होने जैसी प्रतीत होने लगी. डीसीपी विवेक चंद्र यादव और एसीपी भास्कर वर्मा ने आपस में सलाहमशविरा कर इस माल में चल रहे 8 स्पा सेंटरों में एक साथ छापा डालने के लिए 8 पुलिस टीमों का गठन कर दिया. इन टीमों के प्रभारी नियुक्त किए गए.

बदनामी सह न सकी बदनाम औरत

फिलिप्स हर उस बदनाम गली और अड्डे पर हो आया था, जहां अकसर जाया करता था.  लेकिन कहीं भी उस का मन घंटे भर तो क्या, पल भर भी बैठने को नहीं हुआ. रंगीनमिजाज फिलिप्स ने किसी एक का हो कर रहना सीखा ही नहीं था. 30 साल का होने के बावजूद उस ने शादी नहीं की थी. शादी की उस ने जरूरत ही नहीं महसूस की, क्योंकि वह 15-16 साल का था, तभी से बदनाम गलियों का चक्कर लगाने लगा था.

सारा दिन वह मेहनत कर के जो भी कमाता था, उस का एक बड़ा हिस्सा बदनाम औरतों के साथ कुछ समय गुजार कर खर्च कर देता था. तभी तो वह हर बदनाम गली की हर बदनाम औरत का नाम ही नहीं, उस के शरीर की नापतौल भी बता सकता था.

फिलिप्स में एक आदत यह थी कि वह जिस औरत के साथ एक बार समय गुजार लेता था, उस के पास दोबारा नहीं जाता था. जब उन गलियों में उसे कोई नई औरत बैठने को नहीं मिली तो वह बीयर बार चला गया.  बीयर बार में शराब के 4-5 बड़े पैग गले से नीचे उतरे तो वहां भी उस का मन नहीं लगा, बल्कि उस की इच्छा और बढ़ गई. वहां की बारगर्ल्स के अधखुले अंगों को देख कर उस का मन और बेचैन हो उठा. मन तो किया, उन्हीं में से किसी को साथ बैठने का औफर दे दे, लेकिन वे ऐसा काम नहीं करती थीं, इसलिए वह उन्हें सिर्फ छू कर रह गया था.

फिलिप्स अभी कुछ कदम ही आगे बढ़ा था कि उस की नजर एक साइबर कैफे पर पड़ी. वह साइबर कैफे में घुस गया और वहां एक कंप्यूटर के सामने जा बैठा. उस ने वहां कालगर्ल्स की साइटें खोल कर खंगालनी शुरू कीं. उस की मेहनत रंग लाई और उस की पसंद की एक कालगर्ल मिल गई.

वह हसीन तो थी ही, उस की अदाएं भी कातिल थीं. उस के शरीर पर 2 ही कपड़े थे, एक ब्रा और दूसरी पैंटी. गोरे रंग पर गुलाबी रंग के ये दोनों कपड़े खूब फब रहे थे. फिलिप्स की नजर स्क्रीन पर उभरे फोटो से हट ही नहीं रही थी. मन कर रहा था, हाथ डाल कर खींच ले. साइट पर दिए विवरण को पढ़ कर फिलिप्स जैसे उस में डूबा जा रहा था. अंत में लिखा था, ‘अगर दीदार करना है तो एक पल का भी इंतजार न करें. तुरंत दिए मोबाइल नंबर पर फोन करें.’

दिए गए मोबाइल नंबर पर फिलिप्स ने फोन किया तो दूसरी ओर से एक मीठी और सैक्सी आवाज आई, ‘‘बहुत देर कर दी, इतनी देर तक क्या सोचते रहे? सोचविचार में कितने हसीन पल गंवा दिए? मेरे बारे में तो सब जान ही लिया है. अब कीमत सुन लो. एक घंटे के मात्र 3 सौ डौलर, ज्यादा नहीं हैं न? जन्नत की सैर के लिए यह रकम कोई ज्यादा नहीं है.’’

‘‘मुझे यह कीमत मंजूर है. तुम कहां मिलोगी?’’ फिलिप्स ने पूछा.

‘‘मेरे यहां ही आ जाओ. पता है—द हाउस विद लाइट्स औन. और हां, अब देर मत करो. मैं इंतजार कर रही हूं.’’

‘‘आप ने अपना नाम तो बताया ही नहीं?’’ फिलिप्स ने पूछा.

‘‘वैसे नाम की क्या जरूरत है. लेकिन आप पूछ रहे हैं तो बता देती हूं, मुझे ब्रांडी कहते हैं.’’ इतना कह कर दूसरी ओर से फोन काट दिया गया.

फिलिप्स तो कब से बेचैन था. पैसे उस की जेब में थे ही, उस ने टैक्सी पकड़ी और द हाउस विद लाइट्स औन पहुंच गया. यह शहर से थोड़ा हट कर एक कम रिहायशी इलाके में बनी आलीशान कोठी थी. सड़क पर ज्यादा भीड़भाड़ भी नहीं थी. कोठी के नीचे जरूर कुछ नौजवान टहल रहे थे.

कोठी नाम के एकदम अनुरूप थी. लाइट हलकी जरूर थी, पर जगमगा रही थी. देख कर यही लग रहा था कि यहां कभी रात होती ही नहीं.  फिलिप्स अंदर घुसते हुए सहमा सा था. वह अंदर पहुंचा तो उस के कानों में मिठास घोलने वाले ये शब्द पड़े, ‘‘लगता है पेनीलोपे, तुम यहां खुश नहीं हो?’’

यही आवाज फिलिप्स ने फोन पर सुनी थी. उस ने खुली खिड़की से अंदर झांका. संगमरमर के फर्श पर संगमरमर सी काया वाली एक लड़की बैठी थी. शायद वही पेनीलोपे थी. उस की बगल में एक औरत और बैठी थी. उसी से फिलिप्स की बात हुई थी. वह ब्रांडी थी. वह पेनीलोपे के गुलाबी गाल पर अंगुलियां फेरते हुए कह रही थी, ‘‘पता नहीं क्यों तुम्हें यहां अच्छा नहीं लग रहा? अरे यहां नएनए आशिक तो आते ही हैं, मोटी कमाई भी होती है.’’

‘‘लेकिन मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘पेनीलोपे! तुम अपनी कीमत समझो? तुम जिस से शादी करोगी, वह भी तुम्हें नोचेगा, खसोटेगा. बदले में क्या देगा, दो जून की रोटी और तन के कपड़े. जबकि यहां जो चाहोगी, वह मिलेगा.’’ ब्रांडी ने कहा.

‘‘तुम बहुत खराब हो मैम.’’ पेनीलोपे शरमाते हुए बोली. शायद उस पर ब्रांडी की बातों का जादू चल गया था.

‘‘वह तो हूं.’’ ब्रांडी ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘अब देर मत करो, जल्दी से तैयार हो जाओ. लोग आते ही होंगे.’’

ब्रांडी की बात पूरी ही हुई थी कि नौकरानी ने आ कर कहा, ‘‘मैम, फिलिप्स नाम का एक लड़का आप से मिलने आया है.’’

‘‘ठीक है, उसे मेरे कमरे में भेज दो.’’ कह कर ब्रांडी अपने कमरे की ओर बढ़ गई. ब्रांडी का कमरा किसी जन्नत से कम नहीं था. कमरे के बीचोबीच बेड पड़ा था, जो बेहद कीमती था. उस के सिरहाने एक छोटी सी टेबल रखी थी, जिस पर सुगंधित मोमबत्ती जल रही थी. हलका उत्तेजक संगीत बज रहा था. मोमबत्ती की हलकी रोशनी में पारदर्शी गाउन पहने ब्रांडी लेटी थी.

उसे देख कर फिलिप्स की आंखें हैरत से फटी रह गई थीं. उसे ब्रांडी नहीं, जन्नत दिखाई दे रही थी. वह होश खो बैठा. उसे आगे बढ़ने का होश ही नहीं रहा. उसे ठगा सा देख ब्रांडी ने कहा, ‘‘एक घंटे के लिए मैं तुम्हारी हो चुकी हूं, जिस की कीमत तुम अदा कर चुके हो. अब दूर खड़े क्या देख रहे हो, करीब आ जाओ.’’

फिलिप्स जैसे ही बेड के नजदीक पहुंचा, ब्रांडी ने उसे खींच लिया. फिलिप्स बेड पर गिर पड़ा. उसे बांहों में भर कर ब्रांडी ने कहा, ‘‘मेरा नाम ही ब्रांडी नहीं है, मुझ में ब्रांडी जैसा नशा भी है. जहां भी होंठ रखोगे, मदहोश हो जाओगे.’’

फिलिप्स को लगा, उस की खोज पूरी हो चुकी है. वह जिस काम के लिए ब्रांडी के पास आया था, पूरा होने के बाद ब्रांडी ने कहा, ‘‘आप मेरी सेवा से खुश तो हैं?’’

‘‘उम्मीद से ज्यादा.’’ फिलिप्स ने कहा.

‘‘और चुकाई गई कीमत से भी ज्यादा.’’ ब्रांडी ने कहा तो फिलिप्स को हंसी आ गई. उसी के साथ ब्रांडी भी हंसने लगी.

एक कालगर्ल के अड्डे पर दोबारा न जाने वाले फिलिप्स की रातें अब ब्रांडी की कोठी पर बीतने लगीं. इस की वजह यह थी कि उस की यह इच्छा यहीं पूरी हो जाती थी. उसे यहीं रोजरोज नई लड़कियां मिल जाती थीं.

लेकिन एक रात फिलिप्स ब्रांडी की ‘द हाउस विद लाइट्स औन’ कोठी पर पहुंचा तो उसे वहां एक पुलिस जीप खड़ी दिखाई दी. वह काफी देर उस जीप के जाने का इंतजार करता रहा. जब वह काफी देर तक नहीं गई तो वह लौट गया. अगले दिन वह गया तो ब्रांडी ने बताया कि पुलिस उसे पकड़ने आई थी. लेकिन उसे ले जाने के बजाय हुस्न और दौलत ले कर चली गई.

ब्रांडी ने उसे बताया कि जब पुलिस उस के यहां आई तो ब्रांडी और उस के साथ की लड़कियां हाथों में डौलर की गड्डियां लिए उन के सामने आ खड़ी हुईं. उस समय उन के तन पर एक भी कपड़ा नहीं था.

उस हालत में पुलिस वाले अपनी वर्दी का फर्ज और आने का मकसद भूल गए. डौलरों को जेब के हवाले किया और लड़कियों के साथ कमरों में घुस गए. 3-4 घंटे गुजार कर वे जैसे आए थे, उसी तरह खाली हाथ लौट गए. लेकिन उस के कुछ दिनों बाद ही एक बार फिर पुलिस ने उस के यहां छापा मारा. इस बार ब्रांडी की कोई चाल कामयाब नहीं हुई. दरअसल ब्रांडी के खिलाफ काफी शिकायतें हो चुकी थीं. इसलिए यह मामला अंडर कवर डिटेक्टिव एजेंसी के पास पहुंच गया था.

किसी ने फोन द्वारा पुलिस को सूचना दी थी कि शाम ढलते ही जैसे द हाउस विद लाइट्स औन कोठी में लाइट जलती है, बाहर गाडि़यों की लाइन लग जाती है. नएनए लोग गाडि़यों से आते हैं और घंटे-2 घंटे रुक कर चले जाते हैं. उस में रहने वाली ब्रांडी ने एलीक्स 38डी नाम से वेबसाइट बना रखी है. एलीक्स उस का दूसरा नाम है. उस के नाम के साथ जो 38 लगा है, वह उस की ब्रा का साइज है. इस साइट पर कालगर्ल्स की फोटो के साथ उन के साथ रात गुजारने की कीमत भी लिखी है.

उस व्यक्ति के अलावा भी कुछ अन्य लोगों ने शिकायतें की थीं. उन लोगों का भी यही कहना था कि ब्रांडी के यहां गलत काम होता है. उस के यहां तरहतरह के लोग आते हैं. उस की वजह से उन का जीना दूभर हो गया है. क्रिसमस की रात उस के यहां ऐसा जश्न मनाया गया था कि उस की कोठी के आगेपीछे दूरदूर तक पैर रखने की जगह नहीं थी. जश्न शाम से शुरू हुआ था तो सुबह 4 बजे तक चला था.

इस के अलावा एक महिला ने शिकायत की थी कि उस का अय्याश पति ब्रांडी के घर हर रात 3 से 5 सौ डौलर खर्च कर के आता है. घर आ कर कहता है कि उसे जो सुख वहां मिलता है, कहीं और नहीं मिल सकता. कई शिकायतें हो गई थीं, इसलिए पुलिस को सख्त काररवाई करनी पड़ी.

पहले छापे में मिली नाकामी को ध्यान में रख कर इस बार ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अधिकारियों की टीम को ब्रांडी के घर भेजा गया था.   छापे में ब्रांडी के अलावा 3 अन्य कालगर्ल्स पकड़ी गई थीं. इन के साथ तमाम आपत्तिजनक सामान भी बरामद किया गया था. पुलिस द्वारा पकड़े जाने पर ब्रांडी चिल्लाचिल्ला कर कह रही थी, ‘‘न तो मैं कालगर्ल हूं और न ही ऐसा कोई रैकेट चलाती हूं. यह सब मेरे पति ने मुझ से बदला लेने के लिए किया है. मुझे झूठे इलजाम में फंसाया जा रहा है. मैं जेल नहीं जाऊंगी. इस से बेहतर है मैं मर जाऊं.’’

पुलिस ने उस की एक नहीं सुनी और हथकड़ी पहना दी. अदालत से उसे जेल भेज दिया गया. मगर मानसिक हालत ठीक न होने की वजह से उसे जल्दी ही जमानत मिल गई. जमानत पर छूट कर घर आते ही उस ने जो कहा था, कर दिखाया. उस ने पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली.

ब्रांडी मर गई, मगर उस की कहानी खत्म नहीं हुई. उस का अतीत वाकई चौंका देने वाला था. उस का असली नाम ब्रिटन था. बचपन से ही वह कुशाग्र बुद्धि थी.

हर कक्षा में अव्वल आने वाली ब्रिटन खेलकूद में भी आगे रहती थी. अखबारों में वह लेख भी लिखती थी. उस ने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से जीव विज्ञान और समाज विज्ञान से डिग्री लेने के बाद इलाइट यूनिवर्सिटी से पीएचडी किया था. उस के नाम के साथ डाक्टर जैसा सम्मानित शब्द जुड़ गया तो उसे मैरीलैंड यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर की नौकरी मिल गई. तब वह 30 साल की थी.

न जाने क्यों ब्रिटन ने 1999 में यूनिवर्सिटी की नौकरी से इस्तीफा दे दिया. सन 2002 में उस की मुलाकात इसामु तुबीयामी से हुई. यह मुलाकात इंटरनेट के माध्यम से हुई थी. जल्दी ही दोनों एकदूसरे को समझ गए तो प्यार की राह पर चल पड़े. प्यार गहराया तो दोनों ने शादी कर ली. लेकिन उन का दांपत्य सुखी नहीं रहा. इस की वजह यह थी कि इसामु जैसा दिखता था, वैसा था नहीं. वह हिंसक प्रवृत्ति का था.

एकांत के क्षणों में इसामु ब्रिटन को तरहतरह की यातनाएं दे कर अपनी विकृत यौन कुंठा को संतुष्ट करता था. यही नहीं, उसे मारतापीटता भी था. उस की इन्हीं हरकतों से तंग आ कर शादी के मात्र 6 महीने बाद ही ब्रिटन ने उस से तलाक ले लिया.

उस समय ब्रिटन के पास कोई नौकरी नहीं थी. आमदनी का कोई जरिया न होने की वजह से किसी की सलाह पर उस ने कालगर्ल का धंधा अपना लिया. पहले ही दिन एक ही ग्राहक से उसे इतनी कमाई हो गई कि वह उतना पूरे महीने बच्चों को पढ़ा कर नहीं कमा पाती थी.  ब्रिटन को अच्छी कमाई के साथ देह की संतुष्टि का यह पेशा इतना अच्छा लगा कि वह पूरी तरह से इस धंधे से जुड़ गई. उस ने अपने अलगअलग नाम रख लिए. कहीं वह ब्रांडी होती थी तो कहीं एलीक्स.

यही नहीं, वह जहां कालगर्ल रैकेट चलाने वाली एक कुख्यात मैडम रिंग से जुड़ी थी, वहीं उस ने अपनी वेबसाइट भी बना डाली. जिस का नाम रखा— एलीक्स 38डी. इस से उस का धंधा इतना चमका कि उस ने एक आलीशान कोठी खरीद ली. जरूरतमंद लड़कियों को सब्जबाग दिखा कर देह के धंधे से खूब दौलत बटोरने लगी. वह आम लोगों की ही नहीं, कई नामीगिरामी राजनैतिक हस्तियों की भी रातें रंगीन करती थी.

ब्रिटन उर्फ ब्रांडी भले ही गलत काम कर रही थी, लेकिन वह बेहद भावुक थी. यही वजह थी कि धंधे का खुलासा होने और पुलिस द्वारा पकड़े जाने पर उस ने आत्मग्लानि के चलते आत्महत्या कर ली थी.   ब्रिटन द्वारा आत्महत्या करने पर उसी रैकेट की डी.सी. मैडम ने कहा था कि उस ने कायरतापूर्ण कदम उठाया है.  संयोग देखो, आगे चल कर डी.सी. मैडम को भी यही कदम उठाना पड़ा.

डी.सी. मैडम का पूरा नाम था डीबोराह जीन पालफ्रे. वह देह के धंधे की कुख्यात और मास्टरमाइंड खिलाड़ी थी. जवानी में डीबोराह ने अपनी खूबसूरत देह से अकूत दौलत कमाई थी. तब वह कई बार पकड़ी भी गई थी.

लेकिन जब जवानी ढल गई तो उस के ग्राहकों की संख्या एकदम से घट गई. इस के बाद उस ने ‘पामेला मार्टिन ऐंड एसोसिएट्स’ नाम की एक एस्कार्ट एजेंसी खोल ली. उस की इस एजेंसी में ऐसी तमाम जवान खूबसूरत लड़कियां थीं, जो मजबूरी की मारी थीं या फिर ऐश की जिंदगी जीने के लिए कुछ भी करने को तैयार थीं.

रैकेट में वह डी.सी. मैडम के नाम से प्रसिद्ध थी. उन्हीं लड़कियों की बदौलत उस ने अपनी पहुंच ऊपर तक बना ली थी. राजनैतिक गलियारों में भी उस के नाम की धमक थी. कई राजनीतिज्ञ अपनी रात रंगीन करने के लिए उस की सेवा लिया करते थे. वह उन के साथ सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी दिखाई देने लगी थी, जिस से उस का धंधा और चमक उठा था.

58 वर्षीया डी.सी. मैडम सालों तक देह का अपना यह धंधा इन्हीं पहुंच के दम पर चलाती रही. लेकिन जब भारी दबाव पड़ा तो 15 अप्रैल, 2008 को उसे गिरफ्तार कर लिया गया.

उस की गिरफ्तारी के बाद पता चला कि 24 जुलाई, 2007 को उस ने वाशिंगटन पौलीटिकल ग्रुप के सीनेटर डेविड विट्टर के लिए अपने रैकेट की एक कालगर्ल भेजी थी, जबकि अदालत में सुनवाई के दौरान वह चीखचीख कर कह रही थी, ‘‘मुझ पर देह व्यापार का इलजाम लगाना गलत है. किसी ने दुश्मनी की वजह से मुझे फंसाया है.’’

लेकिन उस की यह आवाज सुबूतों के बोझ तले दब कर रह गई थी. उस पर यह भी आरोप था कि 15 अप्रैल, 2008 को उस ने एक मेल के जरिए अपने इस काले धंधे के काले धन को अवैध रूप से विदेशी बैंक में जमा कराया था. तब उस ने सफाई में कहा था कि अब तक वह शरम के मारे चुप थी, लेकिन अब खुल कर बोलेगी. वह उन राजनीतिज्ञों के नाम उजागर करेगी, जिन की उस ने रातें रंगीन कराई थीं.

उसी के जुबान खोलने पर सीनेटर विट्टर को अदालत में तलब किया गया था. उस ने विटनेस बौक्स में खड़े हो कर स्वीकार किया कि डी.सी. मैडम कालगर्ल रैकेट चलाती थी और उस ने उस के रैकेट की एक कालगर्ल के साथ एक रात बिताई थी.

इस के बाद डी.सी. मैडम कुछ बोल नहीं सकी, क्योंकि सुबूत सामने था. लेकिन इस के बावजूद भी वह यही कहती रही, ‘‘यह झूठ है. मैं ने कितने भी जुर्म किए हों, पर मैं जेल में कदम नहीं रखूंगी.’’

और वाकई उस ने जेल में कदम नहीं रखा. 1 मई, 2008 को वह अपनी 76 वर्षीया मां बलान्ये पालफ्रे से मिलने गई तो वहां से जिंदा नहीं लौटी. उस का परिवार टारपोन स्प्रिंग्स, फ्लोरिडा के जिस मोबाइल होम में रहता था, पुलिस को उस से उस का शव मिला था. उस ने नायलौन की रस्सी का फंदा गले में डाल कर आत्महत्या कर ली थी.

पहले प्रोफेसर ब्रिटन और अब डी.सी. मैडम द्वारा आत्महत्या कर लेने के बाद वाशिंगटन की राजनीतिक हस्तियों ने राहत की सांस ली. क्योंकि वे जिंदा रहतीं तो उन के नाम उजागर कर सकती थीं, जो अपनी रातें रंगीन करने के लिए उन की सहायता लिया करते थे.