अब जब मनाली के बारे में तहकीकात की बात सामने आई, तब उस ने ठाकुर या डिजिटल के साथ किसी भी तरह के कारोबार करने से इनकार कर दिया. उस ने इसे पूरी तरह से गलत और भ्रामक बताया. साथ ही ठाकुर ने भी मनाली के साथ व्यापार करने का सबूत देने से इनकार कर दिया.
डिजिटल विजन कंपनी द्वारा कथित आरोप और इस्तेमाल किए जाने वाले रसायनों के बारे में पूछताछ की गई, तब उस ने अगस्त 2020 में हिमाचल प्रदेश के उच्च न्यायालय को बताया था कि जब वह वहां अपने कारखाने को फिर से खोलने की अपील कर रहा था, तब उस ने नई दिल्ली की एक प्रयोगशाला में डीईजी और ईजी के लिए अपने सिरप के परीक्षण का अनुरोध किया था, लेकिन इस ने कोई सबूत नहीं दिया.
उस के बाद हिमाचल उच्च न्यायालय ने अगस्त 2020 में फैसला सुनाया कि डिजिटल ने यह साबित नहीं किया है कि उस ने पीजी को एक लाइसेंस प्राप्त डीलर से खरीदा है, न ही डीईजी के लिए इस का परीक्षण किया है. इसी के साथ अदालत ने डिजिटल को दवाओं का उत्पादन फिर से शुरू करने की अनुमति दे दी.
तब गोयल ने जोर दे कर कहा था कि उन के अवयव फार्मास्युटिकल-ग्रेड मानकों को पूरा करते हैं, जिन्हें फार्माकोपिया के रूप में जाना जाता है. कई फार्मा कंपनियां गैरफार्माकोपिया पीजी खरीदती हैं. बहुत से लोग पीजी का परीक्षण भी नहीं करते हैं. वे सोचते हैं कि यह एक बड़े ड्रम में है, बस इसे इस में डाल दो.
मैरियन बायोटेक के मामले में भी कुछ ऐसी बात सामने आई, जिस के कफ सिरप को उज्बेकिस्तान के अधिकारियों ने जहरीला होने का दोषी ठहराया था. इन की रिपोर्ट जून 2003 में आई थी. इस का पीजी आपूर्तिकर्ता माया केमटेक रसायनों का कारोबार करता था. केवल औद्योगिक-ग्रेड बेचने का लाइसेंस था. मैरियन ने इस कहानी पर की गई टिप्पणी पर भी कोई जवाब नहीं दिया.
इसी बीच मेडेन ने भारतीय अधिकारियों को बताया कि उस का पीजी दक्षिण कोरिया के एसकेसी द्वारा बनाया गया था, लेकिन एसकेसी कहना था कि उस ने रायटर को बताया कि कभी भी मेडेन या उस के कथित रसायन आपूर्तिकर्ता, दिल्ली स्थित गोयल फार्मा केम को पीजी की आपूर्ति नहीं की.
भारतीय नियमों के अनुसार दवा निर्माताओं को कच्चे माल और उत्पादों के प्रत्येक बैच की मजबूती, गुणवत्ता और शुद्धता का परीक्षण करना आवश्यक है. उन्हें स्पष्ट रूप से डीईजी और ईजी के लिए परीक्षणों की आवश्यकता है.
यदि कोई उत्पाद गंभीर नुकसान या मृत्यु का कारण बनता पाया जाता है तो उल्लंघन के लिए जुरमाना या आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है. हालांकि, जहरीली दवाएं बेचने या परीक्षण करने में विफल रहने पर सजा का कोई राष्ट्रव्यापी रिकौर्ड नहीं है.
कभीकभी दवा भी हो सकती है जानलेवा : डा. मनोज कुमार
एलोपैथी की दवाओं को आम बोलचाल में अंगरेजी दवाएं कहा जाता है, जिसे डाक्टर उम्र, रोग, समय अंतराल और मौसम के अनुसार खाने की सलाह देते हैं. यह सब उन में शामिल किए गए रासायनिक कंपोजिशन के आधार पर निर्धारित होता है. अकसर लोग सामान्य बीमारियों के उपचार के लिए सीधे मैडिकल स्टोर से दवाएं खरीद लाते हैं. उस के डोज और खाने का तरीका पता किए बगैर गोलिया निगल लेते हैं या सिरप आदि पी लेते हैं.
यह कई बार जानलेवा बन जाता है, जैसा कि कफ सिरप के लिए हो चुका है. इसलिए दवा सेवन से पहले उस के बारे में किस तरह की सावधानियां बरतने की जरूरत है, बता रहे हैं गया (बिहार) मैडिकल कालेज के प्रोफेसर डा. मनोज कुमार—
दवाइयां बगैर डाक्टर की परची के सीधे दुकानों से खरीद कर खाना कई बार बहुत खतरनाक हो जाता है. कारण, इन में कई दवाइयां ऐसी भी हैं, जिन्हें डाक्टर की सलाह के बगैर नहीं खाना चाहिए. दवाइयों को ओटीसी, शेड्यूल एच, शेड्यूल एच1, शेड्यूल एक्स आदि श्रेणियों में बांटा गया है.
ओटीसी श्रेणी वाली दवाइयां बिना डाक्टर की सलाह के खरीदा और सेवन किया जा सकता है. पैरासिटामोल, एस्प्रिन आदि प्रचलित दवाइयां हैं. किंतु ऐसी दवाओं के पैकेट पर दी गई एक्सपयरी डेट के बाद इन का सेवन नहीं करना चाहिए.
शेड्यूल एच, शेड्यूल एच1 और शेड्यूल एक्स की दवाइयों का सेवन तो बगैर डाक्टरी सलाह यानी उन की परची के बिना खरीदने की मनाही की गई है. इन पर ड्रग्स ऐंड कास्मेटिक्स एक्ट लागू होता है. इन दवाओं की खुराक डाक्टर मरीज की हालत के अनुसार करते हैं.
शेड्यूल एच में 500 से भी अधिक दवाएं हैं. एजिथ्रोमाइसिन और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन जैसी दवाएं इसी श्रेणी में आती हैं. इन के लेबल पर क्र3 लिखा होता है. उस के साथ ही प्रयोग को ले कर चेतावनी भी लिखी होती है. शेड्यूल एच1 दवा में तीसरे और चौथे जेनेरेशन की एंटीबायोटिक्स, एंटी ट्यूबरकुलोसिस और साइकोट्रोपिक ड्रग्स जैसी नशीली और आदत बनाने वाली दवाएं शामिल हैं.
शेड्यूल एक्स में नारकोटिक और साइकोट्रोपिक दवाएं आती हैं, जो अत्यंत प्रभावी और नशीली होती हैं. ये दवाएं सीधे दिमाग पर असर करती हैं. ऐसे में इन की गलत खुराक या ओवरडोज घातक भी साबित हो सकती हैं. इसलिए दवाओं के सेवन के मामले में डाक्टर की सलाह लेनी बहुत जरूरी है.
किसी भी तरह की दवाओं के सेवन को ले कर दुविधा होने की स्थिति में सीधे डाक्टर से सलाह लेनी चाहिए. उन से यह पूछा जाना चाहिए कि क्या उन की दवाई पीबीएस अर्थात फार्मास्युटिक बेनिफिट्स स्कीम पर है. उन से यह भी पूछा जाना चाहिए कि सेवन की जाने वाली दवाओं के साइड इफेक्ट्स क्या हो सकते हैं?
दवाई के असर के बारे में भी डाक्टर से पूछताछ की जा सकती है. दर्द दूर करने वाली दवाओं के अलावा कुछ दवाएं तुरंत काम करती हैं. जबकि कई दवाइयों के असर को देखने में कई सप्ताह तक लग सकते हैं. इसलिए दवा शुरू करने से ले कर उस के बंद करने तक के बारे में भी डाक्टर की सलाह लेना जरूरी होता है.