जहरीला कफ सिरप – भाग 3

अब जब मनाली के बारे में तहकीकात की बात सामने आई, तब उस ने ठाकुर या डिजिटल के साथ किसी भी तरह के कारोबार करने से इनकार कर दिया. उस ने इसे पूरी तरह से गलत और भ्रामक बताया. साथ ही ठाकुर ने भी मनाली के साथ व्यापार करने का सबूत देने से इनकार कर दिया.

डिजिटल विजन कंपनी द्वारा कथित आरोप और इस्तेमाल किए जाने वाले रसायनों के बारे में पूछताछ की गई, तब उस ने अगस्त 2020 में हिमाचल प्रदेश के उच्च न्यायालय को बताया था कि जब वह वहां अपने कारखाने को फिर से खोलने की अपील कर रहा था, तब उस ने नई दिल्ली की एक प्रयोगशाला में डीईजी और ईजी के लिए अपने सिरप के परीक्षण का अनुरोध किया था, लेकिन इस ने कोई सबूत नहीं दिया.

उस के बाद हिमाचल उच्च न्यायालय ने अगस्त 2020 में फैसला सुनाया कि डिजिटल ने यह साबित नहीं किया है कि उस ने पीजी को एक लाइसेंस प्राप्त डीलर से खरीदा है, न ही डीईजी के लिए इस का परीक्षण किया है. इसी के साथ अदालत ने डिजिटल को दवाओं का उत्पादन फिर से शुरू करने की अनुमति दे दी.

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तब गोयल ने जोर दे कर कहा था कि उन के अवयव फार्मास्युटिकल-ग्रेड मानकों को पूरा करते हैं, जिन्हें फार्माकोपिया के रूप में जाना जाता है. कई फार्मा कंपनियां गैरफार्माकोपिया पीजी खरीदती हैं. बहुत से लोग पीजी का परीक्षण भी नहीं करते हैं. वे सोचते हैं कि यह एक बड़े ड्रम में है, बस इसे इस में डाल दो.

मैरियन बायोटेक के मामले में भी कुछ ऐसी बात सामने आई, जिस के कफ सिरप को उज्बेकिस्तान के अधिकारियों ने जहरीला होने का दोषी ठहराया था. इन की रिपोर्ट जून 2003 में आई थी. इस का पीजी आपूर्तिकर्ता माया केमटेक रसायनों का कारोबार करता था. केवल औद्योगिक-ग्रेड बेचने का लाइसेंस था. मैरियन ने इस कहानी पर की गई टिप्पणी पर भी कोई जवाब नहीं दिया.

इसी बीच मेडेन ने भारतीय अधिकारियों को बताया कि उस का पीजी दक्षिण कोरिया के एसकेसी द्वारा बनाया गया था, लेकिन एसकेसी कहना था कि उस ने रायटर को बताया कि कभी भी मेडेन या उस के कथित रसायन आपूर्तिकर्ता, दिल्ली स्थित गोयल फार्मा केम को पीजी की आपूर्ति नहीं की.

भारतीय नियमों के अनुसार दवा निर्माताओं को कच्चे माल और उत्पादों के प्रत्येक बैच की मजबूती, गुणवत्ता और शुद्धता का परीक्षण करना आवश्यक है. उन्हें स्पष्ट रूप से डीईजी और ईजी के लिए परीक्षणों की आवश्यकता है.

यदि कोई उत्पाद गंभीर नुकसान या मृत्यु का कारण बनता पाया जाता है तो उल्लंघन के लिए जुरमाना या आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है. हालांकि, जहरीली दवाएं बेचने या परीक्षण करने में विफल रहने पर सजा का कोई राष्ट्रव्यापी रिकौर्ड नहीं है.

कभीकभी दवा भी हो सकती है जानलेवा : डा. मनोज कुमार

एलोपैथी की दवाओं को आम बोलचाल में अंगरेजी दवाएं कहा जाता है, जिसे डाक्टर  उम्र, रोग, समय अंतराल और मौसम के अनुसार खाने की सलाह देते हैं. यह सब उन में शामिल किए गए रासायनिक कंपोजिशन के आधार पर निर्धारित होता है. अकसर लोग सामान्य बीमारियों के उपचार के लिए सीधे मैडिकल स्टोर से दवाएं खरीद लाते हैं. उस के डोज और खाने का तरीका पता किए बगैर गोलिया निगल लेते हैं या सिरप आदि पी लेते हैं.

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यह कई बार जानलेवा बन जाता है, जैसा कि कफ सिरप के लिए हो चुका है. इसलिए दवा सेवन से पहले उस के बारे में किस तरह की सावधानियां बरतने की जरूरत है, बता रहे हैं गया (बिहार) मैडिकल कालेज के प्रोफेसर डा. मनोज कुमार—

दवाइयां बगैर डाक्टर की परची के सीधे दुकानों से खरीद कर खाना कई बार बहुत खतरनाक हो जाता है. कारण, इन में कई दवाइयां ऐसी भी हैं, जिन्हें डाक्टर की सलाह के बगैर नहीं खाना चाहिए. दवाइयों को ओटीसी, शेड्यूल एच, शेड्यूल एच1, शेड्यूल एक्स आदि श्रेणियों में बांटा गया है.

ओटीसी श्रेणी वाली दवाइयां बिना डाक्टर की सलाह के खरीदा और सेवन किया जा सकता है. पैरासिटामोल, एस्प्रिन आदि प्रचलित दवाइयां हैं. किंतु ऐसी दवाओं के पैकेट पर दी गई एक्सपयरी डेट के बाद इन का सेवन नहीं करना चाहिए.

शेड्यूल एच, शेड्यूल एच1 और शेड्यूल एक्स की दवाइयों का सेवन तो बगैर डाक्टरी सलाह यानी उन की परची के बिना खरीदने की मनाही की गई है. इन पर ड्रग्स ऐंड कास्मेटिक्स एक्ट लागू होता है. इन दवाओं की खुराक डाक्टर मरीज की हालत के अनुसार करते हैं.

शेड्यूल एच में 500 से भी अधिक दवाएं हैं. एजिथ्रोमाइसिन और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन जैसी दवाएं इसी श्रेणी में आती हैं. इन के लेबल पर क्र3 लिखा होता है. उस के साथ ही प्रयोग को ले कर चेतावनी भी लिखी होती है. शेड्यूल एच1 दवा में तीसरे और चौथे जेनेरेशन की एंटीबायोटिक्स, एंटी ट्यूबरकुलोसिस और साइकोट्रोपिक ड्रग्स जैसी नशीली और आदत बनाने वाली दवाएं शामिल हैं.

शेड्यूल एक्स में नारकोटिक और साइकोट्रोपिक दवाएं आती हैं, जो अत्यंत प्रभावी और नशीली होती हैं. ये दवाएं सीधे दिमाग पर असर करती हैं. ऐसे में इन की गलत खुराक या ओवरडोज घातक भी साबित हो सकती हैं. इसलिए दवाओं के सेवन के मामले में डाक्टर की सलाह लेनी बहुत जरूरी है.

किसी भी तरह की दवाओं के सेवन को ले कर दुविधा होने की स्थिति में सीधे डाक्टर से सलाह लेनी चाहिए. उन से यह पूछा जाना चाहिए कि क्या उन की दवाई पीबीएस अर्थात फार्मास्युटिक बेनिफिट्स स्कीम पर है. उन से यह भी पूछा जाना चाहिए कि सेवन की जाने वाली दवाओं के साइड इफेक्ट्स क्या हो सकते हैं?

दवाई के असर के बारे में भी डाक्टर से पूछताछ की जा सकती है. दर्द दूर करने वाली दवाओं के अलावा कुछ दवाएं तुरंत काम करती हैं. जबकि कई दवाइयों के असर को देखने में कई सप्ताह तक लग सकते हैं. इसलिए दवा शुरू करने से ले कर उस के बंद करने तक के बारे में भी डाक्टर की सलाह लेना जरूरी होता है.

जहरीला कफ सिरप – भाग 2

सभी मामलों में सिरप में डीईजी और उस से संबंधित रसायन एथिलीन ग्लाइकोल (ईजी) का उच्च स्तर पाया गया. इस पर डब्ल्यूएचओ का कहना था कि कम से कम 15 देशों में विभिन्न कंपनियों द्वारा बनाए गए दूषित सिरप बिक्री की जा सकती है.

साथ ही सिरप के नाम पर जहर पिलाए जाने की घटना के कारण भारत और विदेशों में आपराधिक जांच, मुकदमे और नियामक जांच में तेजी आ गई. भारतीय नियामकों ने कई निरीक्षण किए. कुल 160 कारखानों को निशाना बनाया गया. जांच में पाया गया कि 10 में से 9 कंपनियों के कारखानों में नियमों का उल्लंघन किया गया था.

किन किन कंपनियों के थे ये कफ सिरप

एक तरफ जम्मूकश्मीर से ले कर अफ्रीकी देशों में कफ सिरप पी कर मरने वाले बच्चों का सिलसिला जारी था, दूसरी तरफ जम्मू में बच्चों के परिवार उन मौतों के लिए अदालत तक में गुहार लगा चुके थे. इन में रामनगर की वीणा कुमारी भी थी, जिस के बेटे अनिरुद्ध की 2 साल की उम्र में 10 जनवरी, 2020 को जहरीला कफ सिरप पीने के बाद मृत्यु हो गई थी. उस ने जांचकर्ताओं को बारबार बच्चे की तसवीरें दिखाईं.

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जांच में असुरक्षित पाए गए मिलावटी 20 कफ सिरप, विटामिन सिरप और पैरासिटामोल सिरप थे. वे भारत और इंडोनेशिया की 15 फार्मा कंपनियों द्वारा बनाए गए थे.

इन में से 7 भारतीय कंपनियों में मेडन फार्मास्युटिकल्स (हरियाणा) के 4 सिरप, मैरियन बायोटेक (उत्तर प्रदेश) के 2 सिरप और एक सिरप क्यूपी फार्माकेम (पंजाब) के अलावा डिजिटल विजन कंपनी के सिरप भी थे. इन दवाओं को ले कर डब्ल्यूएचओ ने गांबिया, उज्बेकिस्तान, माइक्रोनेशिया और मार्शल आइलैंड्स में मैडिकल प्रोडक्ट अलर्ट जारी कर दिया था.

दूसरी तरफ कई मामले अदालत तक जा चुके थे और भारतीय कानून की मदद से इस के दोषियों पर शिकंजा कसने की कोशिश जारी थी. साथ ही यह मामला स्वास्थ्य मंत्रालय, प्रधानमंत्री कार्यालय और संघीय दवा नियामक, केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) तक चर्चा का विषय बना रहा.

भारत, उज्बेकिस्तान और गांबिया में मामलों में फंसे 3 दवा निर्माताओं ने दावा किया कि उन्होंने फार्मास्युटिकल गुणवत्ता वाली रासायनिक सामग्री खरीदी थी. जबकि जांच में तीनों मामलों में रसायन आपूर्तिकर्ताओं ने दावों का खंडन किया.

इसी के साथ 7 भारतीय फार्मास्युटिकल अधिकारियों और नियामकों ने यह माना कि कफ सिरप बनाते समय कुछ निर्माताओं द्वारा सस्ती सामग्री का इस्तेमाल किया जाना आम बात है. यह किस कंपनी द्वारा हुआ, इस की पहचान वह नहीं कर पाए.

दिसंबर 2020 में जम्मू और कश्मीर में पुलिस ने डिजिटल विजन के संस्थापक पुरुषोत्तम गोयल और उन के बेटों मैनिक और कोनिक पर जहर देने के संबंध में गैरइरादतन हत्या सहित अन्य अपराधों का आरोप लगाया गया था. इन आरोपों में आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है. इस बारे में कथा लिखे जाने तक उन पर कोई आंच नहीं आई थी. उल्टे उन्होंने अपने खिलाफ किसी भी मामले को चुनौती देने की बात कही, साथ ही यह कहा कि हो सकता है कि किसी ने कुछ लगा दिया हो और कौन जानता है कि किस को क्या खिलाया गया?

किस पदार्थ से बनाए जाते हैं कफ सिरप

डिजिटल कंपनी ने अगस्त 2020 में राज्य दवा नियामक द्वारा विनिर्माण लाइसेंस रद्द किए जाने के खिलाफ हिमाचल की एक अदालत में अपील की. इस की सुनवाई में उस की अपील बरकरार रही, क्योंकि जम्मू में बेची गई केवल एक खेप की कफ सिरप में ही जहरीला पदार्थ पाया गया था.

अदालत ने कंपनी को कुछ अवयवों वाली दवाएं बनाने से रोक दिया. इस तरह से यह मामला जम्मू में हुई बच्चों की मौतों के दोषी कौन हैं, निर्णय के बगैर खत्म हो गया.

जबकि कफ सिरप की खुराक से मौत के कई उदाहरण अदालत में पेश किए गए. उन्हीं में एक पोली देवी की 11 माह की बेटी जाह्नवी का वीडियो भी था, जिस की मौत 19 दिसंबर, 2019 को हुई थी. उन्हीं दिनों 3 जनवरी, 2020 को जफरुद्दीन के 2 साल के बेटे इरफान की मौत का भी हवाला दिया गया था.

खांसी और सर्दी के सिरप प्रोपलीन ग्लाइकोल (पीजी) से बनाए जाते हैं, जो एक रंगहीन, चिपचिपा तरल होता है और अन्य पदार्थों के साथ प्रतिक्रिया नहीं करता है. यह सिरप वाली दवाओं के लिए एक अच्छा द्रव माना जाता है. इसे आमतौर पर 2 ग्रेडों फार्मास्युटिकल और औद्योगिक के रूप में बेचा जाता है.

औद्योगिक ग्रेड पीजी व्यापक रूप से तरल डिटर्जेंट, एंटीफीज, पेंट या कोटिंग्स में उपयोग किया जाता है और यह फार्मास्युटिकल संस्करण वाले पीजी से सस्ता होता है. यह मानव उपयोग के लिए नहीं होता है, क्योंकि इस में डीईजी या ईजी की मात्रा अधिक हो सकती है.

मुंबई स्थित रसायन पदार्थों के बाजार ट्रैकर केमएनालिस्ट के अनुसार भारत में फार्मास्युटिकल ग्रेड पीजी की कीमतें हाल के सालों में कई गुना बढ़ गई हैं.

जहरीला कैसे बना कफ सीरप

डब्ल्यूएचओ के अनुसार उसे भी जम्मूकश्मीर में 2019 में इस जहरीले पदार्थ के बारे में तभी पता चला था, जब उस ने पिछले साल 2022 में गांबिया में हुई मौतों की जांच के सिलसिले में पहल की थी. संयुक्त राष्ट्र स्वास्थ्य एजेंसी ने पश्चिम अफ्रीकी देशों में कम से कम 70 बच्चों की मौत का संबंध मेडेन फार्मास्युटिकल्स द्वारा बने कफ सिरप से जोड़ा था.

इस कंपनी की फैक्टरी हरियाणा में है. उस ने भी गलत काम से इनकार किया है. डब्ल्यूएचओ की टीम के प्रमुख रुतेंडो कुवाना का इस बारे में कहना है कि इस तरह के जहर एक साथ जमा हो जाते हैं.

जम्मू में बच्चों की मौतों पर जांच से यह भी पता चला कि भारत के 42 अरब डालर सालाना के फार्मास्युटिकल उद्योग में रसायनों का पता लगाना काफी मुश्किल काम है. डिजिटल विजन के अनुसार उस ने सितंबर 2019 में हरियाणा राज्य में स्थित एक आपूर्तिकर्ता ठाकुर एंटरप्राइजेज से फार्मास्युटिकल ग्रेड पीजी का उपयोग किया था.

कहने को तो कंपनी ने जो सिरप बनाए वह गलत नहीं थे, लेकिन ठाकुर एंटरप्राइजेज के बारे में यह भी मालूम हुआ कि उस ने डिजिटल को भले ही पीजी बेचा हो, लेकिन वह केवल औद्योगिक ग्रेड रसायनों की आपूर्ति करता है. ठाकुर को चलाने वाले विभोर चितकारा का कहना था कि उस के सभी उत्पाद केवल औद्योगिक उपयोग के लिए हैं.

तो फिर सवाल था कि डिजिटल को पीजी कैसे बेचा? इस बाबत चितकारा का कहना था कि उस ने पीजी एक अन्य कंपनी मनाली पैट्रोकेमिकल्स से खरीदा, जो भारत की एकमात्र पीजी निर्माता है और फार्मा और औद्योगिक ग्रेड दोनों बेचती है.

जहरीला कफ सिरप – भाग 1

जम्मू के रामनगर में रहने वाले जफरुद्दीन का 2 महीने का बेटा इरफान रात को खांसी से काफी परेशान था. दिसंबर 2019 में सन्नाटे को चीरती हुई उस की बारबार उठने वाली खांसी से एक ओर परिवार और  पड़ोसियों की नींद में बारबार खलल पड़ रही थी, वहीं दूसरी ओर उस की सांस फूलने की हालत को देख कर जफरुद्दीन बेहद परेशान हो गया था. बच्चे को बुखार भी था. वह सो नहीं पा रहा था.

जफरुद्दीन और उस की बीवी जैसेतैसे रात काटते हुए सुबह होने का इंतजार करने लगे, ताकि उस के लिए बाजार से खांसी का कोई सिरप ला कर पिला सके. सूर्योदय से पहले ही जफरुद्दीन पहाड़ों में अपने एक कमरे वाले घर से निकला. करीब 10 किलोमीटर का सफर तय कर नजदीकी दवा की दुकान पर गया.

वहां से उस ने खांसी की एक सिरप खरीदी. वापस लौट कर बच्चे को चम्मच से एक खुराक सिरप पिला दी. मीठी सिरप पी कर बच्चा कुछ देर में ही सो गया. जफरुद्दीन ने भी चैन की सांस ली और बेफिक्र हो गया कि बच्चे की अब खांसी ठीक हो जाएगी.

कुछ घंटे बाद इरफान की नींद खुल गई. वह बेचैनी की हालत में था. अचानक जोर की खांसी उठी और उसे उल्टियां होने लगीं. जफर ने दवाई दुकानदार के कहे अनुसार उसे दूसरी खुराक पिला दी. बच्चा फिर सो गया. गहरी नींद में सो रहे बच्चे को देख कर जफर एक बार फिर आश्वस्त हो गया कि उस का बेटा स्वस्थ होने की स्थिति में आ चुका है. किंतु उस ने बच्चे में एक बदलाव भी देखा. उस का पेट फूला हुआ था. उसे काफी समय से पेशाब नहीं हुआ था.

जफरुद्दीन तुरंत उसे ले कर जम्मू शहर के अस्पताल गए. डाक्टर को दिखाया. डाक्टर ने उस की हालत देख कर भरती कर लिया. उस का इलाज शुरू हुआ, लेकिन हालत सुधरने के बजाय दिनबदिन बिगड़ती चली गई. और सप्ताह भर बाद इरफान की मृत्यु हो गई.

इरफान उन 16 बच्चों में से एक था, जिन के बारे में भारत के उत्तरी क्षेत्र जम्मू और कश्मीर में पुलिस प्रशासन के अधिकारियों ने अनुमान लगाया था कि उन की मौत जहर से हुई होगी. बाद में गहन जांच और पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद पुलिस की चार्जशीट से पता चला कि उन की किडनी और अन्य अंगों के काम करना बंद कर देने से 12 बच्चों की मौत हो गई थी, जबकि 4 अन्य बच्चे गंभीर रूप से विकलांग हो गए थे.

दिसंबर 2019 और जनवरी 2020 के बीच 11 महीने से 4 साल की उम्र के 12 बच्चों की मौत हो गई थी, ये सभी हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के काला अंब शहर में स्थित डिजिटल विजन द्वारा निर्मित कोल्डबेस्ट-पीसी कफ सिरप के सेवन से मर गए थे.

इस मामले ने पुलिस और राज्य औषधि निरीक्षकों की जांच में  डिजिटल विजन फार्मा का नाम आया, जिस के द्वारा सिरप बनाई गई थी. जांच में यह भी पाया गया कि कंपनी का मालिक पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश का है और उस की फार्मा कंपनी भारत के फार्मास्युटिकल उद्योग की ही नहीं, बल्कि एशिया के सब से बड़ी दवा निर्माता कंपनियों में से एक है.

तब ऊधमपुर के एसएसपी विनोद कुमार की निगरानी में जांच के लिए कुछ पुलिस अधिकारियों को विशेष रूप से यह जानने के लिए तैनात कर दिया गया था कि मृतक बच्चों के परिवारों को मृत्यु प्रमाणपत्र क्यों नहीं जारी किए गए. उस के बाद सरकार सचेत हो गई. डिजिटल विजन द्वारा बनाए गए सिरप का अध्ययन किया गया. फरवरी 2020 में कफ सिरप की जांच में पाया गया कि इस में डायथिलीन ग्लाइकोल (डीईजी) एक जहरीला यौगिक है.

इस के बाद 8 राज्यों से दवा की करीब 5,500 बोतलें वापस मंगवा ली गईं. साथ ही हिमाचल प्रदेश स्वास्थ्य सुरक्षा और विनियमन अधिकारियों ने सिरमौर जिले के काला अंब में डिजिटल विजन की इकाई में सभी उत्पादन पर रोक लगा दी.

कंपनी के कारखाने और उस के वितरक से लिए गए नमूनों की भी जांच की गई. पाया गया कि उन में टौक्सिन डीईजी की सांद्रता अर्थात किसी घोल में घोले जाने वाले पदार्थ की मात्रा 34 प्रतिशत है. आरोप के अनुसार डिजिटल विजन के मालिकों के खिलाफ चल रहे आपराधिक मामले की चार्जशीट और जम्मूकश्मीर के ड्रग्स नियामक की एक जांच रिपोर्ट को देखने पर और भी कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं.

पहली बात यह है कि डीईजी की सांद्रता सुरक्षित स्तर से काफी अधिक थी, जो कार ब्रेक में उपयोग किया जाने वाला एक रासायनिक तरल पदार्थ है. इस बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत मानकों के आधार पर इस की सुरक्षित सीमा 0.10 से अधिक नहीं होनी चाहिए.

इस जांच आरोप के बारे में कंपनी डिजिटल विजन ने दावा किया था कि इस के सिरप में कोई डीईजी नहीं था और उन की दवाएं गलत नहीं हैं. हालांकि कंपनी ने इस के साबित होने के कोई सबूत भी नहीं दिए, फिर भी कंपनी संस्थापक पुरुषोत्तम गोयल ने उस पर लगाए गए मामले को चुनौती देने की बात कही.

मामला राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तक जा पहुंचा. उस ने ड्रग्स विभाग को लापरवाह पाया और जम्मू कश्मीर प्रशासन को प्रत्येक बच्चे के परिवारों को 3-3 लाख रुपए का मुआवजा देने को कहा.

दूषित कफ सिरप के मामले में एक और नाम मेडेन फार्मास्युटिकल लिमिटेड का भी शामिल हो गया.

यह मामला तब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आ गया, जब एक भारत निर्मित कफ सिरप से गांबिया में धड़ाधड़ बच्चों की मौतें होने लगीं और कुछ दिनों में ही 66 बच्चों की मौतें हो गईं. फिर तो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) भी ऐक्शन में आ गया. उस ने 5 अक्तूबर, 2022 को घोषणा की कि मेडेन द्वारा बनाए गए कफ सिरप में डायथिलीन ग्लाइकोल और एथिलीन ग्लाइकोल है.

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इस मामले को ले कर डब्ल्यूएचओ भी सचेत हो गया. उस का मानना था कि जम्मू में मौतें 3 अन्य कंपनियों द्वारा भारत में बनाई गई दवाओं के कारण ‘जहर की लहरÓ की शुरुआत हो सकती है, जो पिछले साल गांबिया, उज्बेकिस्तान और कैमरून में 141 बच्चों की मौत से जुड़ी हुई हैं. यह इस तरह के सब से बड़े मामलों का एक हिस्सा हो सकती है.

अकेले लोकेश ने की 25 करोड़ की चोरी – भाग 4

शिवा को ले कर छत्तीसगढ़ पुलिस टीम दिल्ली पुलिस टीम के साथ भिलाई के लिए रवाना हो गई. एसपी 2 सिपाहियों की कस्टडी में लोकेश राव को साथ ले कर अपने औफिस लौट आए.

भिलाई के स्मृति नगर के एक किराए के कमरे में लोकेश श्रीवास बड़े इत्मीनान से पलंग पर लेटा आराम कर रहा था. इस कमरे तक पुलिस पहुंच जाएगी, उसे जरा भी अनुमान नहीं था. पुलिस ने उसे कस्टडी में ले लिया. लोकेश श्रीवास और शिवा चंद्रवंशी को छत्तीसगढ़ की रायपुर के न्यायिक मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश किया गया.

इंसपेक्टर विष्णु दत्त ने डीसीपी को फोन कर लोकेश श्रीवास के पकड़े जाने की खबर दे दी. डीसीपी के आदेश पर निजामुद्ïदीन थाने के एसआई जितेंद्र रघुवंशी रायपुर पहुंच गए. उन्होंने चोरी के आरोपी लोकेश श्रीवास की औपचारिक गिरफ्तारी और ट्रांजिट रिमांड तथा उस से जब्त किए गए आभूषणों को अपने कब्जे में लेने के लिए कोर्ट में दरख्वास्त की.

अदालत ने लोकेश श्रीवास की 72 घंटे की ट्रांजिट रिमांड मंजूर कर ली तथा लोकेश श्रीवास से जब्त संपत्ति भी जांच अधिकारी को सौंप दी.

अदालत में दुर्ग के एसीपी संजय कुमार धु्रव भी मौजूद थे. उन्होंने दिल्ली से आए इंसपेक्टर विष्णु दत्त और इंसपेक्टर दिनेश कुमार तथा निजामुद्दीन थाने के एसआई जितेंद्र रघुवंशी की कस्टडी में महाचोर लोकेश श्रीवास को दिल्ली के लिए रवाना कर दिया.

चोरी के तरीके से पुलिस भी रह गई दंग

दिल्ली में लोकेश श्रीवास को थाना निजामुद्दीन लाया गया तो उसे देखने के लिए वहां भारी भीड़ जमा हो गई थी. डीसीपी राजेश देव, इंसपेक्टर विष्णुदत्त, इंसपेक्टर दिनेश कुमार, निजामुद्दीन थाने के एसएचओ परमवीर, एसआई जितेंद्र रघुवंशी और स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर राजेंद्र डागर के सामने शातिर चोर लोकेश श्रीवास एकदम शांत खड़ा था. उस के चेहरे से नहीं लग रहा था कि 25 करोड़ की चोरी करने के बाद पकड़े जाने पर उसे खौफ हो.

वह पहले कितनी ही बार पकड़ा गया था, इसलिए उसे इस बार भी कस्टडी का कोई डर नहीं था. डीसीपी राजेश देव ने लोकेश श्रीवास के चेहरे पर नजरें गड़ा कर पूछा, ‘‘छत्तीसगढ़ में रहते हो. तुम्हें यहां दिल्ली में उमराव सिंह ज्वेलर्स की जानकारी किस ने दी?’’

‘‘साहब, मैं अकेले ही काम करने में विश्वास रखता हूं. मैं ने आज एक जितनी भी चोरियां की हैं, अकेले ही की हैं. मैं इस बार बड़ा हाथ मारना चाहता था. मुझे मालूम है कि बड़े ज्वेलर्स महानगरों में ही होते हैं. मैं ने दिल्ली का चुनाव किया. दिल्ली में बड़े ज्वेलर्स कहांकहां पर हैं, इस के लिए मैं ने गूगल पर सर्च किया.

‘‘दिल्ली के कितने ही ज्वेलर्स के नाम मेरे सामने आए. मैं चोरी के लिए इन में से किसी एक को टारगेट करना चाहता था. मैं 9 सितंबर, 2023 को सुबह करीब 11 बजे दिल्ली आया. 10 से 12 सितंबर तक चांदनी चौक में रहा और गूगल पर सर्च किए गए ज्वेलर्स की दुकानों पर जा कर उन की भोगोलिक स्थिति को चेक करता रहा. मुझे भोगल का उमराव सिंह ज्वेलर्स चोरी के लिए सब से आसान टारगेट लगा. क्योंकि इस के पास जो इमारत थी, उस में कई परिवार रहते थे. उस की सीढिय़ों से छत पर पहुंचा जा सकता था.’’

कुछ क्षण को चुप होने के बाद लोकेश श्रीवास ने आगे कहना शुरू किया, ‘‘मैं ने उमराव सिंह ज्वेलर्स की रेकी की. पास की इमारत से छत पर जा कर देखा. मुझे किसी ने भी नहीं टोका. शायद वहां रहने वाले लोग यही सोच रहे थे कि मैं किसी परिवार का मेहमान हूं. मैं ने उमराव सिंह ज्वेलर्स की दुकान में जा कर अंदर का मुआयना किया और फिर अपनी योजना को अंतिम टच देने लगा.

‘‘12 सितंबर को मैं मथुरा-वृंदावन चला गया. मंदिरों में दर्शन करने के बाद 15 सितंबर को दिल्ली लौट आया. 17 सितंबर को मैं ने कश्मीरी गेट बस अड्ïडे से बस पकड़ी और मध्य प्रदेश चला गया. 21 सितंबर को मैं बस से साढ़े 7 बजे शाम को दिल्ली के सराय काले खां आया और सवा 9 बजे जंगपुरा पहुंचा और एक होटल में ठहरा.

‘‘22 से 23 सितंबर तक मैं ने चोरी में इस्तेमाल होने वाले औजार एकत्र किए. मैं ने जीबी रोड से 1300 रुपए में कटर मशीन खरीदी. चांदनी चौक से मैं ने 100 रुपए का हथौड़ा खरीदा. मैं पेंचकस और प्लास अपने घर से लाया था. मैं ने ये औजार 23 सितंबर की रात को उमराव सिंह ज्वेलर्स की छत पर ले जा कर छिपा दिए.

‘‘24 सितंबर को भोगल मार्किट से मैं ने कोल्डड्रिंक, चौकलेट, बिसकुट, ड्राईफ्रूट, केक आदि सामान खरीद कर अपने बैग में रख लिया. फिर 24 सितंबर की रात 11 बजे मैं पास की इमारत की सीढिय़ों द्वारा छत पर पहुंचा. वहां से ज्वैलरी शोरूम की छत पर उतरा.

‘‘वहां परछत्ती में ग्रिल का दरवाजा था, जिस पर ताला लगा था. मैं ने ग्रिल काट कर अंदर जाने का रास्ता बनाया और इत्मीनान से सीढिय़ां उतर कर नीचे शोरूम में पहुंच गया. मुझे मालूम था कि सोमवार को मार्केट की छुट्टी रहती है. मेरे पास 25 तारीख की शाम तक का समय था.

‘‘मैं ने सब से पहले सीसीटीवी की तारें काटी, फिर आराम से सो गया. सुबह फ्रैश होने के बाद नाश्ता किया और स्ट्रांगरूम की दीवार काटने लगा. दीवार में अंदर जाने का रास्ता बन गया तो मैं ने अंदर जा कर लौकर का दरवाजा भी कटर से काट डाला और उस में रखे सोनेहीरों के सारे आभूषण बैग में भर लिए.’’

‘‘वहां से तुम्हें नकदी रुपया भी मिला होगा?’’ एसआई जितेंद्र ने पूछा.

‘‘हां, अलमारी में 5 लाख रुपए कैश था. वह भी मैं ने अपने बैग में भर लिया. मैं दुकान से 7 बजे बाहर निकला और छत पर आ कर पास वाली इमारत से नीचे आ गया.’’

‘‘यहां से तुम ने आटो किया और कश्मीरी गेट गए, जहां से तुम ने 8.40 बजे की छत्तीसगढ़ जाने वाली बस पकड़ ली.’’ डीसीपी ने कहते हुए लोकेश श्रीवास को घूरा, ‘‘इतना मोटा हाथ मारने के बाद तुम ने सरकारी बस में धक्के खाने का मन क्यों बनाया था?’’

लोकेश श्रीवास मुसकराया, ‘‘मैं ने अभी तक करोड़ों रुपए की चोरियां की हैं साब, लेकिन मुझ में अमीरों वाले ठाठ नहीं आए. मैं साधारण कपड़े पहनता हूं, साधारण ही रहता हूं क्योंकि दिखावा करने वाला अकसर लोगों की नजरों में आ जाता है. सरकारी बस में मैं ने लंबा सफर इसीलिए किया कि मुझे साधारण यात्री समझा जाए, कोई मुझ पर शक न करे.’’

‘‘यह शिवा और लोकेश राव तुम्हारे साथी रहे हैं चोरी के काम में…’’

‘‘नहीं साब!’’ लोकेश श्रीवास ने बात काटी, ‘‘मैं अकेला ही सारे काम को अंजाम देता हूं. वे छोटेमोटे चोर हैं, जेलों में उन से मेरी जानपहचान बनी. मैं ने दिल्ली में बड़ी चोरी करने की बात शिवा को बता दी थी और किराए पर कवर्धा में एक कमरा भी ले कर शिवा को वहां ठहरा दिया था. कवर्धा पहुंच कर मैं ने चोरी का माल वहां के कमरे में छिपा दिया. मुझ से गलती यह हुई कि मैं ने तरस खा कर लोकेश राव को सोने की एक चेन पहनने को दे दी थी और भिलाई चला गया.’’

लोकेश श्रीवास द्वारा जुर्म कबूल करने के बाद डीसीपी ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर लोकेश श्रीवास की उमराव सिंह ज्वेलर्स के यहां से 25 करोड़ की चोरी करने की पूरी कहानी बताते हुए उस से 18 किलो आभूषण और 12 लाख रुपए बरामद करने की जानकारी दी.’’

महावीर प्रसाद जैन ने शातिर चोर लोकेश श्रीवास को 4 दिन में ही छत्तीसगढ़ जा कर गिरफ्तार करने वाली पुलिस टीम का आभार प्रकट करते हुए कहा, ‘‘मैं ने तो उम्मीद ही छोड़ दी थी कि कुछ मिलेगा, लेकिन दिल्ली पुलिस ने ज्वैलरी और नकदी बरामद कर मेरे अंदर चेतना जगा दी. मैं दिल से इन्हें धन्यवाद देता हूं.’’

पुलिस ने सुपर चोर लोकेश श्रीवास को न्यायालय में पेश कर दिया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

अकेले लोकेश ने की 25 करोड़ की चोरी – भाग 3

सुपर चोर की पत्नी चलाती है ब्यूटीपार्लर

32 वर्षीय लोकेश श्रीवास छत्तीसगढ़ राज्य के कवर्धा शहर में कैलाश नगर इलाके में रहता था. परिवार में मांबाप, पत्नी रमा और 2 बेटियां क्रमश: 11 वर्ष और 6 वर्ष है.

लोकेश श्रीवास का मकान तीनमंजिला है. वह अपने घर में कम ही रहता है. उस का ज्यादातर वक्त छत्तीसगढ़ और दूसरे राज्यों की जेलों में ही कटता है. लोकेश की पत्नी रमा मकान के निचले हिस्से में ब्यूटीपार्लर चलाती है. मकान का एक हिस्सा रमा ने किराए पर दे रखा है, जिस से वह अपने घर का खर्च चलाती है.

लोकेश श्रीवास शातिर चोर है, यह पत्नी रमा को शादी के बहुत बाद में पता चला था. लोकेश ने उसे कभी नहीं बताया कि वह क्या काम करता है. जब घर के दरवाजे पर आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना, ओडिशा, छत्तीसगढ़ के दुर्ग, भिलाई की पुलिस लोकेश को दबोचने के लिए आने लगी और घर में लोकेश श्रीवास द्वारा छिपा कर रखा गया चोरी का माल बरामद होने लगा तो रमा को पता चला कि उस का पति शातिर चोर है.

लोकेश श्रीवास पहले एक सैलून में बाल काटने का काम करता था. उस के ख्वाब ऊंचे थे. बाल काटते वक्त उस का ख्वाब होता था कि उस के हाथ में सोने का कंघा, सोने की कैंची और सोने का उस्तरा हो, जिस से वह देश के प्रधानमंत्री के बाल काटे.

प्रधानमंत्री तक तो उस की पहुंच संभव नहीं थी, लेकिन अपने सुनहरे ख्वाब पूरे करने के लिए उस ने 20 मई, 2006 को एक ज्वेलरी शोरूम में चोरी की. लाखों के गहने हाथ लगे तो लोकेश श्रीवास ने चोरी को ही अपना धंधा बना लिया.

लोकेश श्रीवास ने आंध्र प्रदेश के विजय नगर शहर में एक ज्वेलरी शोरूम में 6 किलोग्राम सोने के आभूषणों की चोरी की. तेलंगाना स्टेट में एक ज्वेलर के यहां 4 किलोग्राम, ओडिशा में 500 ग्राम, भिलाई के बजाज ज्वेलर के यहां से 17 लाख के आभूषणों पर हाथ साफ किया. सन 2019 में लोकेश श्रीवास ने भिलाई के आनंद नगर में पारख ज्वेलर के यहां से 15 करोड़ के आभूषण चोरी किए.

19 और 25 अगस्त, 2023 को बिलासपुर में मास्टरमाइंड लोकेश श्रीवास ने एक ही रात में 10 ज्वेलरी शोरूम को अपना निशाना बनाया था.

लोकेश श्रीवास को विभिन्न राज्यों की पुलिस ने कितनी ही बार पकड़ कर चोरी का माल बरामद किया. उसे जेल की सलाखों में भी डाला, लेकिन वह किसी न किसी तिकड़म से अपनी जमानत करवा लेता और बाहर आ कर फिर से किसी ज्वेलरी शोरूम को निशाना बनाता.

उस ने 5 साल पहले चोरी के माल से 60 हजार की पल्सर मोटरसाइकिल खरीदी और 60 लाख रुपए से जिम खोला था, लेकिन वहां के कलेक्टर अमरीश कुमार शरण ने जिम को सील करा कर लोकेश श्रीवास को जिलाबदर कर दिया.

चूंकि उस वक्त देश में लोकसभा चुनाव होने वाले थे और लोकेश श्रीवास सैकड़ों चोरियां कर के पुलिस रिकौर्ड में अपना एक अलग ही क्रिमिनल रिकौर्ड दर्ज करवा चुका था, इसलिए उसे जिलाबदर करना बहुत जरूरी था.

शातिर मास्टरमाइंड चोर लोकेश श्रीवास इतनी चोरियां करने के बाद भी चैन से नहीं बैठा. छत्तीसगढ़ से 11 सौ किलोमीटर की दूरी तय कर के वह देश की राजधानी दिल्ली आया और 25 सितंबर, 2023 को उस ने साउथईस्ट दिल्ली के थाना निजामुद्दीन क्षेत्र के भोगल मार्केट में स्थित उमराव सिंह ज्वेलर्स के शोरूम में लगभग 25 करोड़ के आभूषणों पर हाथ साफ कर दिया. यह लोकेश श्रीवास द्वारा अब तक की गई चोरियों में सब से बड़ी चोरी मानी जा रही थी.

इसी सुपर चोर लोकेश श्रीवास को गिरफ्त में लेने के लिए दिल्ली पुलिस के इंसपेक्टर विष्णुदत्त और इंसपेक्टर दिनेश कुमार छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में एसपी संतोष सिंह के औफिस में पहुंचे थे.

शातिर चोर के बारे में उस के साथी से मिला सुराग

एसपी संतोष सिंह ने शातिर चोर लोकेश श्रीवास की पूरी हिस्ट्री दोनों को बताते हुए कहा, ‘‘इंसपेक्टर, कमाल की बात यह है कि लोकेश श्रीवास अकेले ही चोरियां करता है. हम ने उस से इस विषय में पूछा था. उस का कहना था कि अकेले चोरी करने में वह अधिक सुविधा महसूस करता है. गैंग बना कर चोरी की जाए तो कोई न कोई गैंग का साथी बड़बोलेपन में फंसा सकता है. एक आदमी फंसा तो समझो सारा गैंग पकड़ में आया, इसलिए मैं जो करता हूं अपने हिसाब से अकेला ही करता हूं.’’

‘‘कमाल की बात है सर. दिल्ली में उमराव सिंह ज्वेलरी शोरूम में जिस हिसाब से दीवार और लौकर काटा गया है, वह एक व्यक्ति का काम नहीं लगता.’’ इंसपेक्टर विष्णुदत्त ने हैरानी से कहा.

‘‘वह अकेले लोकेश श्रीवास के ही शातिर दिमाग और हाथों का कमाल होगा. आप देख लेना, जब वह पकड़ में आएगा, तब वह यही कहेगा, मैं ने दिल्ली के उमराव सिंह ज्वेलर्स के यहां अकेले ही 25 करोड़ के आभूषणों पर हाथ साफ किया था.’’

‘‘वह पकड़ में कैसे आएगा सर?’’ विष्णुदत्त बोले, ‘‘क्या हमें उस के कवर्धा वाले घर पर रेड करनी चाहिए?’’

‘‘वह वहां नहीं मिलेगा.’’ एसपी संतोष सिंह बोले, ‘‘दिल्ली से उमराव सिंह ज्वेलर्स के यहां चोरी करके वह छत्तीसगढ़ वाली बस में बैठा है, यह मुझे आप के डीसीपी राजेश देव ने बताया था. तभी मैं ने लोकेश श्रीवास को दबोचने के लिए पुलिस को अलर्ट कर दिया था. पुलिस ने बिलासपुर आने वाली बस और उस के कबीर नगर के घर पर दबिश दी, लेकिन वह नहीं मिला.

‘‘बस से वह पहले ही उतर गया था, इस की सीसीटीवी कैमरों से फुटेज मिल गई है. हम यह मान कर चल रहे हैं कि लोकेश श्रीवास छत्तीसगढ़ वाली बस से बिलासपुर आया है, लेकिन सुरक्षा के मद्देनजर वह बसअड्ïडे तक आने से पहले ही रास्ते में उतर गया. उस की तलाश यहां की पुलिस कर रही है. उसे जल्द ही पकड़ लिया जाएगा.’’

अभी एसपी संतोष सिंह ने अपनी बात खत्म की ही थी कि उन का लैंडलाइन फोन बजने लगा. उन्होंने रिसीवर उठा कर कान से लगाया, ‘‘हैलो.’’

‘‘सर, यहां पर लोकेश राव चोर अभीअभी आंध्रा पुलिस के हाथ लगा है. उस ने गले में मोटी सोने की चेन पहन रखी है. पूछताछ में उस ने बताया है कि यह चेन उसे लोकेश श्रीवास ने दी है.’’

‘‘ओह!’’ एसपी संतोष सिंह खुशी से उछल पड़े, ‘‘तब तो लोकेश राव यह भी जानता होगा कि लोकेश श्रीवास कहां है?’’

‘‘बेशक जानता होगा. उस से पूछताछ की जा रही है, आप कवर्धा आ जाइए सर, मैं कवर्धा थाने से बात कर रहा हूं.’’

‘‘हम आते हैं.’’ एसपी संतोष सिंह उठते हुए बोले.

उन्होंने रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया और वह इंसपेक्टर विष्णुदत्त और इंसपेक्टर दिनेश कुमार से मुखातिब हुए, ‘‘चलिए, लोकेश श्रीवास हाथ आने ही वाला है.’’

इंसपेक्टर विष्णुदत्त और इंसपेक्टर दिनेश कुमार ने कुरसी छोड़ दी. वह एसपी संतोष सिंह के साथ कक्ष से बाहर की ओर बढ़ गए. पुलिस का एक दस्ता भी उन के साथ था.

अकेले ही चुरा ले गया 25 करोड़ की ज्वेलरी

कवर्धा पुलिस थाने में कुरसी पर बैठा वह पतलादुबला व्यक्ति लोकेश राव था. लोकेश श्रीवास के नाम से मिलताजुलता नाम. काम छोटीमोटी चोरियां करना. उस ने आंध्र प्रदेश में चोरी की थी. वहां की पुलिस उस की तलाश में कवर्धा आई तो वह हत्थे चढ़ गया.

उस वक्त वह गले में सोने की मोटी चेन पहने था. पूछने पर उस ने बताया कि लोकेश श्रीवास उसे जानता है, उस ने अभी दिल्ली में किसी ज्वेलरी शोरूम में मोटा हाथ मारा है, खुश हो कर उस ने सोने की चेन उसे उपहार में दी है.

लोकेश राव से पुलिस लोकेश श्रीवास के ठिकाने का पता मालूम कर रही थी, लेकिन वह बारबार एक ही बात कह रहा था कि वह लोकेश श्रीवास का ठिकाना नहीं जानता.

‘‘तुम अपने किसी दूसरे साथी का नामपता जानते हो, जो तुम्हारी तरह ही चोरियां करता हो?’’ इंसपेक्टर विष्णुदत्त ने उसे घूरते हुए पूछा.

‘‘हां, मेरा एक दोस्त है शिवा चंद्रवंशी, वह भी मेरी तरह चोर है.’’

‘‘शिवा चंद्रवंशी कहां रहता है?’’

‘‘वह कबीर धाम में रह रहा है, वहां उस ने किराए का कमरा ले रखा है.’’

‘‘चलो, हमें शिवा से मिलवाओ,’’ इंसपेक्टर विष्णुदत्त ने कहा.

लोकेश राव इस के लिए न नहीं कह सका. वह सभी को अपने साथ ले कर कबीर धाम में शिवा के कमरे पर पहुंच गया. उस वक्त शिवा सो रहा था. अधिकारियों ने उसे सोते हुए ही दबोचा तो वह हड़बड़ा कर उठ बैठा. पुलिस को देख कर वह कांपने लगा.

‘‘तुम लोकेश श्रीवास को जानते हो, यह लोकेश राव ने हम से कहा है. बताओ, इस वक्त लोकेश श्रीवास कहां है?’’ इंसपेक्टर दिनेश कुमार ने अंधेरे में तीर चलाया.

‘‘व.. वह भिलाई के स्मृतिनगर में है…’’ शिवा चंद्रवंशी ने हकलाते हुए बताया.

‘‘वह तुम से कब मिला था?’’

‘‘कल वह दिल्ली से मोटा माल ले कर आया था. यह कमरा उस ने पहले ही किराए पर ले लिया था ताकि माल यहां छिपा सके.’’

शिवा के मुंह से यह रहस्य उजागर होते ही पुलिस टीम ने कमरे की तलाशी लेनी शुरू कर दी. तकिए, रजाई गद्दों और पलंग में छिपा कर रखे गए सोनेहीरों के आभूषणों को पुलिस ने बरामद किया. 19 लाख रुपया कैश भी बरामद हुआ.

यह आभूषण अनुमान से 18-19 किलोग्राम वजन के थे और इन की कीमत करोड़ों में आंकी जा सकती थी. यह आभूषण उमराव सिंह ज्वेलर्स के शोरूम से चुराए गए हैं या कहीं और से, यह लोकेश श्रीवास ही बता सकता था.

खुद ही बनाया बर्बादी का रास्ता

अकेले लोकेश ने की 25 करोड़ की चोरी – भाग 2

पुलिस टीमें जुटीं जांच में

डीसीपी राजेश देव ने फिगरप्रिंट एक्सपर्ट और तेजतर्रार इंसपेक्टर विष्णु दत्त और इंसपेक्टर दिनेश को भी वहां बुला कर जांच में लगा दिया. स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर राजेंद्र डागर वहां आ गए. दुकान में 6 सीसीटीवी कैमरे थे, जिन की तार चोरों ने काट दी थी.

उन कैमरों की फुटेज कब्जे में ले ली गई. पड़ोस की इमारत में रहने वालों से पूछताछ की गई. इमारत में कई परिवार रहते थे. उन लोगों का कहना था कि उन्होंने ज्वेलरी शोरूम के आसपास किसी को संदिग्ध हालत में घूमते नहीं देखा, न उन लोगों ने ज्वेलरी शोरूम में घुसे चोरों के द्वारा अंदर की गई तोडफ़ोड की आवाजें सुनीं. चोर ज्वेलरी शोरूम में कब और कैसे घुसे, वे नहीं जानते.

पुलिस ने अनुमान लगाया कि चोर इसी इमारत की सीढिय़ों से इमारत की छत पर पहुंचे. वहां से ज्वेलरी शोरूम की इमारत पर आए और सीढ़ी के ग्रिल दरवाजे का ताला तोड़ कर ग्राउंड फ्लोर पर आ गए. उन्होंने यह काम सोमवार को किया, क्योंकि उस दिन साप्ताहिक अवकाश के कारण शोरूम बंद था.

उन्हें सोमवार का दिन और रात का पूरा वक्त स्ट्रांगरूम की दीवार तोड़ कर लौकर तक पहुंचने के लिए मिला. उन्होंने कटर से लौकर भी काट डाला और सारे आभूषण ले कर चले गए.

पुलिस की कई टीमें इस हाईप्रोफाइल चोरी का सुराग तलाशने में जुटी थीं. साइबर सेल टैक्निकल सर्विलांस पर काम कर रही थी. काल डिटेल्स खंगालने का भी काम जारी था.

छत्तीसगढ़ पुलिस से मिला सुराग

चोरों ने ज्वेलरी शोरूम में लगे सीसीटीवी कैमरों की वायर अंदर घुसते ही काट डाली थी, लेकिन वायर काटने से पहले की एक व्यक्ति की तसवीर सीसीटीवी फुटेज में कैद हो गई थी. उस व्यक्ति का हुलिया ज्यादा स्पष्ट नहीं था और पुलिस के लिए उसे पहचान पाना भी आसान नहीं था, लेकिन जांच में जुटी पुलिस टीम ने हिम्मत नहीं हारी.

दूसरे दिन भोगल एरिया में लगे सीसीटीवी कैमरों को खंगालते वक्त पुलिस को एक फुटेज में उसी कदकाठी के एक व्यक्ति की तसवीर मिली, जैसी ज्वेलरी शोरूम में मिली थी. इस में उस व्यक्ति का चेहरा साफसाफ दिखाई पड़ रहा था. फोटो के सहारे पुलिस इस व्यक्ति का क्रिमिनल रिकौर्ड खंगालने में जुट गई.

दिल्ली के किसी भी थाने में इस व्यक्ति का फोटो नहीं था. हां, उस फोटो के जरिए गूगल पर इंटरस्टेट चोरों का रिकौर्ड खंगाला गया तो यह छत्तीसगढ़ के मशहूर चोर लोकेश श्रीवास के रूप में दर्ज मिला.

Inspector rajender and Jitender raghuvanshi

एसआई जितेंद्र ने स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर राजेंद्र डागर, इंसपेक्टर विष्णु दत्त से विचारविमर्श किया. तीनों ने यह तय किया कि छत्तीसगढ़ पुलिस से इस लोकेश श्रीवास की पूरी जानकारी मालूम की जाए.

वह अभी छत्तीसगढ़ पुलिस को फोन करने वाले ही थे कि छत्तीसगढ़ के बिलासपुर थाने से एक एसआई की काल एसआई जितेंद्र के मोबाइल पर आ गई. उस सबइंसपेक्टर ने कहा, ‘‘जितेंद्रजी, हम यहां रुटीन चेकिंग के लिए निकले थे. हमें आज लोकेश राव नाम का एक चोर हाथ लगा. यह लोकेश राव छोटीमोटी चोरियां करता है. एक चोरी के मामले में आंध्र प्रदेश की पुलिस को उस की तलाश थी.

‘‘इस चोर का कहना है, मुझ जैसे छोटे चोर को क्यों पकड़ते हो, दिल्ली में शातिर चोर लोकेश श्रीवास ने बड़े ज्वेलरी शोरूम पर हाथ साफ किया है, उसे पकड़ो तो जानूं. मैं यह जानना चाहता हूं क्या दिल्ली में कोई बड़ा ज्वेलरी शोरूम लूटा गया है?’’

‘‘हां. कल यहां उमराव सिंह ज्वेलर्स के यहां 25 करोड़ के आभूषणों पर उसी लोकेश श्रीवास ने हाथ साफ कर दिया है.’’ एसआई जितेंद्र ने बताया, ‘‘हमें भोगल मार्किट में एक व्यक्ति संदिग्ध अवस्था में घूमता सीसीटीवी फुटेज में मिला है. गूगल पर सर्च करने से वह व्यक्ति शातिर चोर लोकेश श्रीवास ही निकला. वह आटो में सवार हो कर ज्वेलरी शोरूम से गया है, हम आटो का पता लगवा रहे हैं. आप ने हमारा विश्वास पक्का किया है. इस जानकारी के लिए आप का धन्यवाद. जल्द ही हम छत्तीसगढ़ आ सकते हैं.’’

‘‘वेलकम जितेंद्रजी. यहां हम आप का पूरा सहयोग करेंगे.’’ कहने के बाद एसआई ने एक मोबाइल नंबर जितेंद्र रघुवंशी के वाट्सऐप पर भेज दिया. और कहा, ‘‘यह लोकेश श्रीवास का मोबाइल नंबर है. आप इस से लोकेश की लोकेशन ट्रेस कर सकेंगे.’’

उधर से नंबर मिलते ही एसआई जितेंद्र ने लोकेश श्रीवास का मोबाइल नंबर सर्विलांस सेल के पास भेज दिया, ताकि इस नंबर की लोकेशन मालूम हो सके. इधर पुलिस की एक टीम उस आटो का पता तलाशने में जुट गई. जांच में उस आटो के मालिक का पता मिल गया.

पुलिस उस आटो मालिक के घर पहुंच गई. उसे लोकेश श्रीवास की फोटो दिखा कर पूछा गया कि कल रात इसे उमराव सिंह ज्वेलर्स के पास से बिठा कर कहां उतारा?

आटो वाले ने तुरंत बताया, ‘‘वह सवारी मुझे एक हजार रुपया भाड़ा दे गई थी, इसलिए याद है. मैं ने उसे कश्मीरी गेट बसअड्ïडे पर उतारा था.’’

पुलिस के 4 सिपाही साथ ले कर इंसपेक्टर विष्णुदत्त, इंसपेक्टर दिनेश और निजामुद्दीन थाने के एसआई जितेंद्र कश्मीरी गेट बसअड्डा पहुंच गए.

यहां हर स्टेट की ओर जाने वाली बसों के टर्मिनल पर सीसीटीवी कैमरे लगे थे. इंसपेक्टर दिनेश के इशारे पर पुलिस टीम ने सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखनी शुरू की तो उन्हें वह व्यक्ति छत्तीसगढ़ जाने वाली एक बस में सवार होता दिखाई दे गया. सर्विलांस टीम ने भी पुष्टि कर दी कि इस फोन नंबर की लोकेशन छत्तीसगढ़ में शो हो रही है. इस से पूरी तरह स्पष्ट हो गया था कि मास्टरमाइंड चोर लोकेश श्रीवास ही है.

इंसपेक्टर विष्णु दत्त ने डीसीपी राजेश देव को यह जानकारी दे दी और बिलासपुर के एसआई के फोन की बात भी बता दी. डीसीपी पूरी संतुष्टि करना चाहते थे. उन्होंने लोकेश श्रीवास की तसवीर छत्तीसगढ़ पुलिस के पास फ्लैश करवा दी. वहां से जो कुछ बताया गया, उस से जांच में जुटी पुलिस टीम की बांछें खिल गईं.

पता चला कि वह व्यक्ति छत्तीसगढ़ के क्रिमिनल रिकौर्ड में दर्ज है. उस का नाम लोकेश श्रीवास उर्फ गोलू है. उम्र 32 साल. जानकारी मिली कि वह अब तक दरजनों ज्वेलरी शोरूम को अपना निशाना बना चुका है.

छत्तीसगढ़ पुलिस ने उसे कई बार पकड़ कर जेल में डाला था, लेकिन न जाने कैसे यह शातिर चोर अपनी जमानत करवा कर जेल से बाहर आ जाता है. फिलहाल वह छत्तीसगढ़ पुलिस की कस्टडी में नहीं था. छत्तीसगढ़ पुलिस एक ज्वेलर के यहां हुई चोरी के केस में लोकेश श्रीवास को तलाश कर रही थी.

डीसीपी राजेश देव ने इस जानकारी पर राहत की सांस ली. लोकेश श्रीवास एक शातिर चोर है और उसी ने दिल्ली के भोगल इलाके में उमराव सिंह ज्वेलर्स के शोरूम में 25 करोड़ की ज्वेलरी पर हाथ साफ किया था. चूंकि वह छत्तीसगढ़ गया था, इसलिए डीसीपी को उम्मीद थी कि लोकेश श्रीवास को छत्तीसगढ़ में पकड़ा जा सकता है.

उन्होंने नारकोटिक्स सेल के इंसपेक्टर विष्णुदत्त शर्मा और इंसपेक्टर दिनेश कुमार को फ्लाइट से छत्तीसगढ़ जाने का आदेश दे दिया. दोनों इंसपेक्टर छत्तीसगढ़ पुलिस की मदद से लोकेश श्रीवास को तलाश कर के गिरफ्तार करने के लिए छतीसगढ़ रवाना हो गए. स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर राजेंद्र डागर को सर्विलांस विभाग में रह कर लोकेश श्रीवास के मोबाइल काल पर नजर रखनी थी.

अकेले लोकेश ने की 25 करोड़ की चोरी – भाग 1

पत्नी रमा को शादी के बहुत दिनों बाद ही यह बात पता चली कि उस का पति लोकेश श्रीवास एक शातिर चोर है. लोकेश ने उसे कभी नहीं बताया कि वह क्या करता है. जब घर के दरवाजे पर आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना, ओडिशा, छत्तीसगढ़ के दुर्ग, भिलाई की पुलिस उस के पति को दबोचने के लिए आने लगी और घर में पति द्वारा छिपा कर रखा गया चोरी का माल बरामद होने लगा तो रमा को पता चला कि उस का पति शातिर चोर है.

लोकेश श्रीवास पहले एक सैलून में बाल काटने का काम किया करता था. उस के ख्वाब ऊंचे थे. बाल काटते वक्त उस का ख्वाब होता था कि उस के हाथ में सोने का कंघा, सोने की कैंची और सोने का उस्तरा हो, जिस से वह देश के प्रधानमंत्री के बाल काटे. प्रधानमंत्री तक तो उस की पहुंच संभव नहीं थी, लेकिन अपने सुनहरे ख्वाब पूरे करने के लिए उस ने 20 मई, 2006 को एक ज्वेलरी शोरूम में चोरी की. लाखों के गहने हाथ लगे तो लोकेश श्रीवास ने चोरी को ही अपना धंधा बना लिया.

लोकेश श्रीवास ने आंध्र प्रदेश के विजय नगर शहर में एक ज्वेलरी शोरूम में 6 किलोग्राम सोने के आभूषणों की चोरी की. तेलंगाना स्टेट में एक ज्वेलर के यहां 4 किलोग्राम, ओडिशा में 500 ग्राम, भिलाई के बजाज ज्वेलर के यहां से 17 लाख के आभूषणों पर हाथ साफ किया. सन 2019 में लोकेश श्रीवास ने भिलाई के आनंद नगर में पारख ज्वेलर के यहां से 15 करोड़ के आभूषण चोरी किए.

19 और 25 अगस्त, 2023 को बिलासपुर में मास्टरमाइंड लोकेश श्रीवास ने एक ही रात में 10 ज्वेलरी शोरूम को अपना निशाना बनाया था.

लोकेश श्रीवास को विभिन्न राज्यों की पुलिस ने कितनी ही बार पकड़ कर चोरी का माल बरामद किया. उसे जेल की सलाखों में भी डाला, लेकिन वह किसी न किसी तिकड़म से अपनी जमानत करवा लेता और बाहर आ कर फिर से किसी ज्वेलरी शोरूम को निशाना बनाता.

दिल्ली में स्थित थाना निजामुद्दीन के भोगल में स्थित उमराव सिंह ज्वेलर्स का शोरूम 25 सितंबर, 2023 को साप्ताहिक अवकाश की वजह से बंद था. 26 सितंबर को शोरूम के मालिक महावीर प्रसाद जैन सुबह 10 बजे दुकान पर पहुंचे तो वहां पूरा स्टाफ आ चुका था. सभी गपशप कर रहे थे.

मालिक को कार से उतरता देख उन्होंने अपने मालिक को अभिवादन किया. मुसकरा कर उन का अभिवादन स्वीकार करते हुए महावीर प्रसाद जैन ने बैग से चाबियों का गुच्छा निकाल कर एक कर्मचारी की तरफ बढ़ा दिया.

उस कर्मचारी ने शोरूम के ताले खोले और एक अन्य कर्मचारी के सहयोग से दुकान का शटर उठाया तो धूल का गुबार दुकान के भीतर से निकल कर दोनों से टकराया. दोनों धूल को हाथ से हटाने का प्रयास करते हुए बुरी तरह खांसने लगे.

‘‘इतनी धूल शोरूम में कहां से आ गई?’’ महावीर प्रसाद जैन हैरानी से बोले.

‘‘कल शोरूम बंद था न मालिक, इस की वजह से अंदर धूल जमा हो गई होगी.’’ एक कर्मचारी ने अपनी राय प्रकट की.

‘‘एक दिन में इतनी धूल दुकान में थोड़ी इकट्ठा हो जाएगी, जरा अंदर जा कर देखो तो…’’

महावीर प्रसाद जैन कह ही रहे थे, उस से पहले ही एक युवा कर्मचारी हाथों से धूल हटाने की कोशिश करता हुआ शोरूम में घुस गया था. वह धूल के गुबार में किसी तरह आंखें जमाने में कामयाब हुआ तो उस के गले से चीख निकल गई.

वह चीखता हुआ बाहर भागा, ‘‘मालिक अंदर स्ट्रांग रूम की दीवार टूटी हुई है…’’

‘‘क्… क्या कह रहे हो?’’ महावीर प्रसाद घबरा कर बोले और जल्दी से शोरूम में घुस गए.

शोरूम में धूल ही धूल भरी हुई थी. अंधेरा भी था.

अन्य स्टाफ के लोग भी अंदर आ गए थे. धूल और अंधेरे के कारण कुछ देख पाना संभव नहीं था.

एक कर्मचारी ने समझदारी दिखाते हुए लाइट्स और एग्जास्ट फैन चालू कर दिए. थोड़ी देर में दुकान की धूल छंटी तो रोशनी में उन्होंने जो कुछ देखा, वह उन के होश उड़ाने के लिए काफी था. स्ट्रांगरूम की दीवार को तोड़ कर खिडक़ी जैसा रास्ता बना दिया गया था. फर्श पर ईंटों और सीमेंट का मलबा पड़ा था.

यह रास्ता क्यों बनाया गया होगा, इस का अनुमान लगाते ही महावीर प्रसाद चीखे, ‘‘स्ट्रांगरूम का लौक खोलो और लौकर चेक करो.’’

स्ट्रांगरूम का दरवाजा खोला गया तो अंदर रखा लौकर टूटा हुआ था, उस में रखे सोने और हीरों के आभूषण गायब थे. बड़ी दुकानों में सुरक्षा की दृष्टि से मजबूत स्ट्रांगरूम का निर्माण करवाया जाता है. दुकान बंद होने से पहले सारे आभूषण स्ट्रांगरूम के लौकर में रख दिए जाते हैं.

24 सितंबर रविवार को जब दुकान बंद की गई थी, महावीर प्रसाद ने अपने सामने सारे आभूषणों को स्ट्रांगरूम के लौकर में रखवाया था. अब वह लौकर खाली था. उस का मजबूत दरवाजा काट कर किसी ने सारे आभूषणों की चोरी कर ली थी.

महावीर प्रसाद खाली लौकर देखते ही गश खा कर गिर पड़े. अन्य कर्मचारियों के होश फाख्ता हो गए थे, उन की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. अपने मालिक को बेहोश हो कर गिरता देख कर वे संभले. 2-3 कर्मचारी उन्हें उठा कर बाहर के हाल में लाए और चेहरे पर पानी के छींटे मार कर उन्हें होश में लाने का प्रयास करने लगे.

थोड़े प्रयास से महावीर प्रसाद होश में आ कर उठ बैठे. उन्होंने सब से पहले मोबाइल निकाल कर पुलिस कंट्रोल रूम को अपने यहां हुई चोरी की जानकारी दे दी.

मजबूत लौकर टूटने पर पुलिस हुई हैरान

भोगल का थाना क्षेत्र निजामुद्दीन था. कंट्रोल रूम से थाने को उमराव सिंह ज्वेलर्स के यहां लौकर तोड़ कर आभूषण चोरी चले जाने की सूचना दी गई तो थोड़ी देर में ही निजामुद्दीन के एसएचओ परमवीर और एसआई जितेंद्र रघुवंशी मय स्टाफ के उमराव सिंह ज्वेलर्स शोरूम पर पहुंच गए.

एसएचओ और एसआई जितेंद्र रघुवंशी ने दुकान में चोरों द्वारा तोड़ी गई स्ट्रांगरूम की डेढ़ फुट मोटी दीवार को देखा तो उन्हें बड़ा ताज्जुब हुआ. यह काम 1-2 घंटे का नहीं हो सकता था. लौकर का लोहे का मजबूत दरवाजा भी काटा गया था. इस में भी काफी समय लगा होगा.

पुलिस का मानना था कि चोर रात भर ज्वेलरी शोरूम में रहे हैं और उन्होंने इत्मीनान से यह चोरी की है. उमराव सिंह ज्वेलर्स की दुकान ग्राउंड फ्लोर पर थी. यह 4 मंजिला इमारत में ऊपर के 3 मंजिल पर आवासीय फ्लैट हैं. पूरी छानबीन करने के बाद यह अनुमान लगाया गया कि चोर पड़ोस की छत से शोरूम की छत पर आए. ऊपर ग्रिल दरवाजे में मजबूत ताला था, उसे तोड़ कर वह सीढियों के रास्ते शोरूम में घुसे और आभूषणों पर हाथ साफ कर दिया.

एसएचओ और एसआई शोरूम के मालिक महावीर प्रसाद जैन के पास आए. वह पत्थर की मूरत बने बैठे थे. उन का चेहरा पसीने से तरबतर था.

‘‘इस चोरी का आप को कैसे पता चला?’’ एसआई जितेंद्र रघुवंशी ने सवाल किया.

‘‘सुबह हम ने जैसे ही शोरूम खोला तो अंदर धूल का गुबार भरा था. एग्जास्ट चलाने से जब धूल छंटी, तब हम ने स्ट्रांगरूम की दीवार को टूटा हुआ पाया. स्ट्रांगरूम का दरवाजा खोल कर देखा गया तो लौकर का दरवाजा भी कटा मिला, उस में रखे सारे आभूषण गायब हैं सर.’’

‘‘आप के अनुमान से चोरों ने कितने मूल्य के आभूषण चोरी किए हैं?’’

‘‘लौकर में लगभग 25 करोड़ के आभूषण थे, सभी चोरी कर लिए गए हैं. 5 लाख रुपए का कैश था, उसे भी चोर ले गए हैं.’’

‘‘25 करोड़ की चोरी!’’ एसएचओ परमवीर का मुंह खुला का खुला रह गया. एसआई जितेंद्र रघुवंशी भी इतनी बड़ी चोरी की जानकारी पा कर चौंक गए कि यह किसी मामूली चोर का काम नहीं हो सकता.

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इस की जानकारी एसएचओ परमवीर ने उच्चाधिकारियों को दी तो जिले से ले कर पुलिस हैडक्वार्टर तक के अधिकारी हरकत में आ गए. अधिकारियों की गाडिय़ां उमराव सिंह ज्वेलर्स शोरूम की ओर दौड़ पड़ीं.

साउथईस्ट जिले के डीसीपी राजेश देव भी खबर पा कर तुरंत उमराव सिंह ज्वेलर्स शोरूम पर आ गए. उन्होंने शोरूम में जा कर बड़ी बारीकी से चोरों द्वारा की गई चोरी की वारदात का निरीक्षण किया.

स्ट्रांगरूम की 3 ओर की दीवारें लोहे की थीं, एक दीवार मोटे सरिया और कंक्रीट से बनाई गई थी. चोरों ने कंक्रीट की दीवार को तोड़ कर अंदर जाने का रास्ता बनाया था. वे छत के रास्ते से नीचे दुकान में उतरे थे. लौकर भी कटर से काट दिया गया था.

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स्ट्रांगरूम में लोहे की बड़ीबड़ी 2 तिजोरियां भी रखी थीं, लेकिन चोरों ने उन के साथ छेड़छाड़ नहीं की. क्योंकि स्ट्रांगरूम के अंदर ही भारी मात्रा में सोने और हीरे के आभूषण मिल गए थे. स्ट्रांगरूम भी अलमारी जैसा था. उस में कई किलोग्राम चांदी के भी आभूषण थे, लेकिन चोर उन आभूषणों को नहीं ले गए.

खुद ही बनाया बर्बादी का रास्ता – भाग 3

संदीप कुमार का एक दोस्त था मुकेश, जिस का बंगाली कालोनी की गली नंबर 16 में फोटो स्टूडियो था. चूंकि अपहरण जैसा काम संदीप के अकेले के बस का नहीं था, इसलिए उस ने मुकेश को लालच दे कर अपनी योजना में शामिल कर लिया.

अपहरण के लिए एक कार की जरूरत थी, इस के लिए संदीप कुमार ने अपने एक अन्य दोस्त संदीप उर्फ सन्नी से बात की. सन्नी का हरित विहार, बुराड़ी में ही सन्नी मेडिकल के नाम से दवाओं की दुकान थी. वह रहने वाला जहांगीरपुरी का था. मोटी रकम के लालच में सन्नी भी संदीप का साथ देने को तैयार हो गया था.

तीनों ने बैठ कर किशनलाल के दूसरे नंबर के बेटे जतिन ढींगरा के अपहरण की योजना बनाई. वैसे तो वे उस के छोटे बेटे हर्ष को उठाना चाहते थे, लेकिन समस्या यह थी कि हर्ष स्कूल आनेजाने के अलावा घर से निकलता नहीं था. और जब स्कूल जाताआता था तो उस के साथ घर का कोई सदस्य होता था, जबकि 13 साल का जतिन अकेला भी घर के बाहर आताजाता रहता था.

योजना बन गई, तो उन्हें फिरौती मांगने के लिए ऐसे फोन नंबर की जरूरत थी, जो किसी दूसरे की आईडी पर लिया गया हो, जिस से वे फंस न सकें. किसी दूसरे की आईडी उन तीनों में से किसी के पास थी नहीं.

मेडिकल स्टोर खोलने से पहले सन्नी एक फाइनेंस कंपनी में काम करता था. उसी के साथ जहांगीर पुरी का ही रहने वाला गौतम जैन भी नौकरी करता था. सन्नी ने बातें ही बातों में गौतम जैन से पता किया कि उस के पास किसी की आईडी तो नहीं पड़ी है? गौतम जैन ने सन्नी से आईडी की जरूरत के बारे में पूछा तो सन्नी ने उसे सच्चाई बता दी. पैसों के चक्कर में गौतम जैन के मन में भी लालच आ गया. उस ने कहा कि वह आईडी और फोटो तो उपलब्ध करा देगा, लेकिन फिरौती की रकम में वह भी बराबर का हिस्सा लेगा.

सन्नी ने यह बात मुकेश और संदीप कुमार को बताई तो मजबूरी में उन्होंने गौतम जैन को भी योजना में शामिल कर लिया. गौतम जैन को तिगड़ी के रहने वाले उस के दोस्त मनोज ने 2 साल पहले अपना फोटो और आईडी दी थी, ताकि वह उस की नौकरी लगवा सके. तब से मनोज के सारे कागज गौतम के पास ही रखे थे. मनोज की आईडी और फोटो से गौतम ने आइडिया कंपनी का नया सिम ले लिया.

संदीप कुमार किशनलाल के घर भी आताजाता था, जिस से घर के सभी लोग उसे अच्छी तरह पहचानते थे. इसलिए उस ने साथियों के साथ पहले ही तय कर लिया था कि फिरौती मिलने के बाद जतिन को जिंदा नहीं छोड़ा जाएगा. सारी तैयारी हो गई तो वे मौके की तलाश में रहने लगे.

21 सितंबर, 2013 को दोपहर के बाद जतिन बुराड़ी के ही अपने किसी दोस्त से कौपी लेने के लिए घर से निकला. जैसे ही वह मेन रोड पर पहुंचा, गिद्धदृष्टि जमाए संदीप और मुकेश उस के पास पहुंच गए. जतिन वीडियो गेम खेलने का शौकीन था. वीडियो गेम खेलने और खिलौने दिलाने के बहाने संदीप कुमार जतिन को अपने साथ ले गया. चूंकि जतिन संदीप को जातनापहचानता था, इसलिए वह उस के साथ चला गया.

वहां से कुछ दूर अपनी वैगनआर कार डीएल9सीएक्स1861 में बैठा सन्नी यह सब देख रहा था. संदीप का इशारा मिलते ही वह अपनी कार संदीप के पास ले आया. संदीप ने जतिन को कार में बैठने को कहा तो बैठ गया. कार सन्नी चला रहा था. वह जतिन को हरित विहार स्थित अपने मैडिकल स्टोर पर ले गया.

सन्नी ने दुकान में रखे फ्रिज से कोल्ड ड्रिंक की बोतल निकाल कर जतिन को दी तो वह पीने लगा. उस कोल्डड्रिंक में नशीली दवा पहले ही मिला रखी थी, इसलिए कोल्डड्रिंक पीने के थोड़ी देर बाद जतिन बेहोश हो गया. सन्नी की दुकान के बगल की दुकान बंद रहती थी, जिस की चाबी सन्नी के पास थी. बेहोश जतिन को उसी दुकान में रखना चाहते थे, लेकिन ऐन वक्त पर उन की यह योजना बदल गई. उस समय उन के साथ गौतम जैन नहीं था. उसे उन्होंने फोन पर सब बता दिया तो उस ने कहा कि वह उन्हें बुराड़ी चौक पर मिल जाएगा.

बेहोश जतिन को उन्होंने कार में डाला और नगली ऊना गांव की ओर चल पड़े. संदीप वहीं रहता था, इसलिए उसे वहां की अच्छीखासी जानकारी थी. रास्ते में बुराड़ी चौक के पास गौतम जैन मिला तो उसे भी उन्होंने कार में बैठा लिया. जतिन को होश आ जाता तो वह हंगामा कर सकता था. इसलिए उन्होंने कार में ही उस की गला दबा कर हत्या कर दी. उसे मार कर उस की लाश उन्होंने नगली के पास गहरे नाले में फेंक दी.

लाश ठिकाने लगा कर संदीप कुमार और मुकेश अपनीअपनी दुकानों पर चले गए. जबकि फिरौती के लिए फोन करने की जिम्मेदारी सन्नी और गौतम जैन को सौंपी गई.

दूसरे जतिन घर नहीं लौटा तो घरवाले परेशान हो उठे. उन्होंने मोहल्ले में और इधरउधर तलाश की. जब इस बात की जानकारी मुकेश को हुई तो सहानुभूति दिखाते हुए वह भी किशनलाल की मदद के लिए आ गया.

सन्नी और गौतम ने दिल्ली के वजीराबाद इलाके में जा कर किशनलाल ढींगरा को फोन कर के 40 लाख रुपए की फिरौती मांगी. बेटे के अपहरण की खबर सुन कर किशनलाल के होश उड़ गए. वह किसी भी तरह रकम जुटा कर बेटे को सकुशल वापस पाना चाहता था, लेकिन परिचितों के कहने पर वह थाने चला गया. तब उसे क्या पता था कि अपहर्त्ताओं ने पहले ही उस के बेटे को मार दिया है.

पूछताछ के बाद पुलिस ने गौतम जैन को 27 सितंबर को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. इस के बाद अन्य अभियुक्तों संदीप कुमार, मुकेश और सन्नी से घटनास्थल की तस्दीक करा कर 28 सितंबर को उन्हें भी न्यायालय में पेश किया गया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया. मामले की विवेचना इंसपेक्टर परमजीत सिंह कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

खुद ही बनाया बर्बादी का रास्ता – भाग 2

मनोज जैन से पूछताछ में पता चला कि उस के साथियों संदीप कुमार, मुकेश और संदीप उर्फ सन्नी ने जतिन का अपहरण किया था. इस कांड में उन के साथ वह भी शामिल था. पुलिस ने जब उस से अपहृत जतिन के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि जतिन की हत्या कर के लाश नरेला से हो कर बहने वाले नाले में फेंक दी गई है.

गौतम से पूछताछ के बाद पुलिस ने किशनलाल को थाने बुला लिया. जब उसे पता चला कि जतिन की हत्या कर दी गई है तो उस पर तो जैसे आसमान टूट पड़ा. थानाप्रभारी किशनलाल और गौतम को साथ ले कर वहां के लिए रवाना हो गए, जहां जतिन की लाश फेंकी गई थी. बाहरी दिल्ली में नरेला के पास एक गांव है नगली. वहीं एक बड़ा सा नाला है. गौतम ने वह जगह बताई जहां उस ने लाश फेंकी थी. लेकिन पुलिस को वहां लाश दिखाई नहीं दी.

नाला गहरा था, इसलिए पुलिस ने जेसीबी मशीन मंगा कर नाले को खंगालना शुरू किया. आखिर थोड़ी मेहनत के बाद लाश मिल गई. बेटे की लाश देख कर किशनलाल फफक फफक कर रोने लगा. उस ने लाश की शिनाख्त अपने बेटे जतिन के रूप में कर दी. आवश्यक काररवाई के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया और गौतम को साथ ले कर थाने आ गए.

गौतम के अन्य साथी फरार थे, इसलिए उसे तीस हजारी न्यायालय में पेश कर के 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया. गौतम की निशानदेही पर पुलिस ने 27 सितंबर को मुकेश, संदीप कुमार और संदीप उर्फ सन्नी को उन की दुकानों से गिरफ्तार कर लिया. इन सभी से की गई पूछताछ में जतिन के अपहरण की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस तरह थी.

देश के आजाद होने के बाद भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो पाकिस्तान के पेशावर के रहने वाले कालूराम ढींगरा पत्नी और बेटी हरकौर के साथ भारत आ गए थे. कालूराम एक पैर से विकलांग थे. उस समय वह उत्तर प्रदेश के जिला बदायूं में आ कर बस गए थे. वहीं पर उन्होंने परचून की दुकान खोली, जिस की आमदनी से परिवार का गुजरबसर होने लगा.

बदायूं मे ही उन की पत्नी ने 4 बच्चों को जन्म दिया, जिन में 2 बेटे और 2 बेटियां थीं. उन के नाम थे गोविंदराम, हरवंश कौर, रीतू कौर और किशनलाल. कालूराम का भरापूरा परिवार हो गया था, जिस से उन की जिंदगी हंसीखुशी से गुजर रही थी. उन्होंने अपने बच्चों की अपनी हैसियत से परिवरिश की.

जैसेजैसे बच्चे सयाने होते गए, कालूराम उन की शादी करते गए. बड़ी बेटी हरकौर की शादी दिल्ली के लारेंस रोड पर अपनी ही बिरादरी के लड़के से कर दी थी. हरकौर की शादी दिल्ली में हो गई तो उसी के सहारे घर के बाकी लोगों का भी दिल्ली आनाजाना हो गया. इस के बाद हरवंश की शादी फरीदाबाद और रीतू की शादी उत्तरी दिल्ली के संतनगर (बुराड़ी) में हो गई. गोविंदराम की शादी उन्होंने वहीं एक गांव से कर दी थी. वह पिता के काम में हाथ बंटाता था.

किशनलाल बच्चों में सब से छोटा था. उस की 2 बहनों की दिल्ली में शादी हुई थी. जब वह 7 साल का था, रीतू के साथ दिल्ली आ गया था. बहन ने यहां उस का दाखिला एक स्कूल में करा दिया. घर वाले चाहते थे कि पढ़लिख कर वह कोई अच्छी नौकरी कर ले. लेकिन वह ज्यादा पढ़ नहीं सका. पढ़ाई छोड़ कर आटोरिक्शा चलाने लगा.

कई सालों तक आटोरिक्शा चलाने के बाद जब उस के पास पैसे हो गए तो उस ने बुराड़ी की ही बंगाली कालोनी में एक प्लौट खरीद कर अपने लिए एक मकान बनवा लिया. इस के बाद उत्तरी दिल्ली की संत परमानंद कालोनी में रहने वाले हरिदर्शन सिंह की बेटी राज से उस की शादी हो गई.

शादी के बाद उस के यहां गुरप्रीत, जतिन और हर्ष 3 बच्चे हुए. 3 बेटे होने के बाद जहां भरापूरा परिवार हो गया, वहीं घर का खर्च भी बढ़ गया. किशनलाल आटो चला कर जो कमाता था, उस से घर खर्च बड़ी मुश्किल से चलता था. वह आमदनी बढ़ाने के बारे में सोचने लगा. काफी सोचविचार कर उस ने आटो चलाने के बजाय प्रौपर्टी डीलिंग का काम शुरू किया. उस की तमाम लोगों से जानपहचान थी, इसलिए किशनलाल ने बुराड़ी में अच्छीखासी प्रौपर्टी खरीद ली.

अब उस के पास पैसों की कमी नहीं रही. पैसे आए तो उस ने बच्चों का दाखिला अच्छे स्कूलों में करा दिया. बड़ा बेटा गुरप्रीत निरंकारी पब्लिक स्कूल में पढ़ रहा था तो जतिन माउंट एवरेस्ट पब्लिक स्कूल में.

किशनलाल का बुराड़ी के हरित विहार में औफिस था. उस के औफिस के पास ही संदीप कुमार की दवाओं की दुकान थी. जबकि उस का घर जहांगीरपुरी में था. बीए पास करने के बाद उस ने हरित विहार में मेडिकल स्टोर खोल लिया था. दुकान से उसे अच्छीखासी आमदनी हो जाती थी. इस के बावजूद वह चाहता था कि कहीं से उसे मोटी कमाई हो जाए, जिस से वह ऐशोआराम की जिंदगी जी सके.

इसीलिए वह क्रिकेट के आइपीएल मैचों पर सट्टा लगाने लगा, जिस से उसे लाखों रुपए का नुकसान हुआ. इस के अलावा उस ने कुछ दुकानदारों के साथ चिट फंड कमेटी डाली, जिस का सारा पैसा एक दुकानदार ले कर भाग गया. इस से संदीप को काफी नुकसान हुआ.

इन सब की वजह से संदीप परेशान रहने लगा. उस के ऊपर लाखों का कर्ज था, जो दुकान की कमाई से अदा नहीं हो पा रहा था. जिन लोगों से उस ने पैसे उधार लिए थे, वे अपने पैसे वापस मांग रहे थे, जिस से वह परेशान रहने लगा था.

संदीप की एक बंगाली डाक्टर से दोस्ती थी. उस ने अपनी परेशानी डा. बंगाली को बताई तो उस ने कर्ज उतारने के लिए उसे 5 लाख रुपए उधार दिए. इस के अलावा बंगाली कालोनी में ही रहने वाली निशा उर्फ नीतू से भी उस ने एक लाख रुपए कर्ज लिए. इस तरह 6 लाख रुपए देने के बाद भी उस पर कर्ज बाकी था.

जिस दुकान में संदीप का मेडिकल स्टोर था. वह किराए पर थी. परेशानी की वजह से वह कई महीने से दुकान का किराया भी नहीं दे पा रहा था, जिस से दुकान के मालिक ने उस से दुकान खाली करने को कह दिया. संदीप अब सोचने लगा कि कहीं से उसे मोटी रकम मिल जाती तो वह सभी का कर्ज दे कर निजात पा जाता.

किशनलाल ने कुछ दिनों पहले ही अपना एक प्लौट बेचा था. इस बात की जानकारी संदीप को थी. वैसे भी संदीप को किशनलाल की हैसियत का पता था. क्योंकि वह उस के घर भी आताजाता रहता था. संदीप को जब पता चला कि किशनलाल ने प्लौट बेचा है तो उस के दिमाग में तुरंत आया कि अगर किशनलाल के बच्चे का अपहरण कर लिया जाए तो फिरौती में उस से मोटी रकम मिल सकती है.