चाइना गर्ल (फेंटानाइल) : दर्द से नहीं, जिंदगी से राहत

Fentanyl China Girl के अलावा भी अन्य तमाम कोडनेम से जानी जाती है. चाइना गर्ल के अलावा चाइना टाउन, चाइना व्हाइट, डांस फीवर, गुड फेलास, ही-मैन, प्वाइजन, टेंगो और कैश के नाम से भी यह जानी जाती है. बहुत ही मामूली कीमत में यह ड्रग तैयार होती है. अमेरिका की गलियों में बड़ी आसानी से यह ड्रग मिल जाती है. यह ड्रग मार्फिन से सौ गुना और हेरोइन से 50 गुना स्ट्रांग होती है.

अमेरिका में जुलाई, 2021 से जून, 2022 के दौरान करीब एक लाख लोगों की इस ड्रग से मौत हुई थी. मई, 2022 से अप्रैल, 2023 के दौरान 70 हजार से अधिक लोगों की मौत इस ड्रग के कारण हुई.

नशेड़ी सोचते हैं कि थोड़ा अधिक ड्रग लेने से नशा थोड़ा ज्यादा होगा, इसलिए वे अधिक मात्रा में ड्रग लेते हैं. ड्रग की ओवरडोज के कारण कुछ ही मिनट में तड़प कर नशेड़ी मर जाते हैं. फेंटानाइल पाउडर, टेबलेट और लिक्विड के रूप में मिलती है. नशेड़ी लोग ज्यादातर पाउडर लेना पसंद करते हैं, जिस से इसे अन्य ड्रग्स के साथ मिक्स कर के लिया जा सके.

भारत से अमेरिका के न्यूयार्क में पढ़ने आए राजेश पटेल के पेट में जब तक दर्द हल्का रहा, तब तक तो वह सहन करता रहा. दर्द थोड़ा और तेज हुआ तो घर में रखी पेट दर्द की दवा खा ली कि शायद इस से आराम मिल जाए. लेकिन उस दवा से जरा भी आराम नहीं हुआ, बल्कि धीरेधीरे दर्द बढ़ता ही गया. जब दर्द ज्यादा ही होने लगा तो उस ने अपने एक दोस्त को फोन किया, जिस ने उसे एक मैडिकल स्टोर से पेनकिलर की 3 गोलियां ला कर दीं.

उस दवा को खाते ही राजेश को दर्द से राहत तो मिल ही गई. साथ ही उसे एक अलग तरह का आनंद भी मिला. कुछ घंटे बाद जब उस दवा का असर खत्म हुआ तो उस के पेट में दर्द तो नहीं हुआ, लेकिन उसे लगा कि उस का शरीर टूट रहा है. यह एक अलग तरह की तकलीफ थी.

उसे लगा कि अभी तो दर्द की 2 गोलियां और रखी हैं, क्यों न उन में से एक गोली खा ली जाए. उस ने दूसरी गोली खाई तो उसे और ज्यादा आनंद की अनुभूति हुई. उसे बहुत मजा आया. इसलिए उसे लगा कि यह गोली दर्द से तो राहत दिलाती ही है, इस में कुछ ऐसा है, जो असीम आनंद की अनुभूति कराता है.

फिर तो राजेश ने जब तीसरी गोली खाई तो उसे पूरा विश्वास हो गया कि इस गोली को खाने से ऐसा नशा होता है, जो न तो किसी को पता चलता है और न कोई जान पाता है कि इसे खाने वाला कोई नशा किए है. जबकि गोली को खाते ही तुरंत नशा हो जाता है, जो कम से कम से 8 से 10 घंटे तक रहता है.

राजेश को उस के दोस्त ने मात्र 3 गोलियां ही ला कर दी थीं. उस ने तीनों गोलियां खा लीं. अब उस के पास उस दवा की एक भी गोली नहीं थी. वह दिन में पढ़ाई करता था और अपना खर्च चलाने के लिए सुबहशाम पार्ट टाइम नौकरी भी करता था.

रात को घर आता तो काफी थका होता था. इसलिए वह दवा खाने के बाद उसे काफी आराम मिलता था. उस ने अपने उस दोस्त से वही दवा फिर लाने को कहा. लेकिन इस बार उसे यह दवा 3 गुना दाम पर मिली.

लेकिन उस दवा से राजेश को जो सुख मिलता था, उस के आगे उसे 3 गुना दाम देने में जरा भी परेशानी नहीं हुई. परम आनंद के लिए दवा खाते खाते राजेश को उस की लत लग गई. राजेश ने वह दवा कई बार खरीदी तो उस के दोस्त ने पूछा, ”यार राजेश, इस दवा में ऐसा क्या है, जो तुम इसे बारबार खरीद कर ले जाते हो?’‘

”एक बार तुम खा कर देखो, तब तुम्हें पता चलेगा.’‘ राजेश ने कहा.

इस तरह राजेश ने दोस्त को भी वह दवा खिलाई तो जल्दी ही उस का दोस्त भी उस दवा का आदी हो गया. दोनों ही अब उस दवा के बगैर नहीं रह सकते थे.

एक दिन अचानक राजेश की मौत हो गई. राजेश भारत का रहने वाला था, इसलिए उस का शव भारत भेजना था. शव भेजने के पहले यह जान लेना जरूरी था कि राजेश की मौत इस तरह अचानक कैसे हुई?

क्या है फेंटानाइल यानी चाइना गर्ल?

राजेश का पोस्टमार्टम हुआ तो पता चला कि उस ने ड्रग की ओवरडोज ली थी, इसलिए उस की मौत हुई है. वह ड्रग कोई और नहीं, वह वही दवा थी, जो उस ने दर्द से राहत के लिए ली थी. उस दवा का नाम था फेंटानाइल, जो चीन से आती थी. आज यह दवा चाइना गर्ल के नाम से प्रसिद्ध है.

ऐसा नहीं है कि यह दवा भारत में नहीं मिलती, यह भारत में भी खूब मिलती है. पर भारत में बाइडन की तरह चिंता करने वाला कोई नहीं है. भारत में तो नशे से रोजाना न जाने कितने लोग मरते हैं. कभी किसी सरकार ने इस बारे में नहीं सोचा. यह खुलासा होते ही अमेरिकी मीडिया में फेंटानाइल को ले कर समाचार छपने लगे. इस के बाद तो नशेड़ियों के बीच चाइना गर्ल का क्रेज बढ़ गया और इस के ओवरडोज के कारण धड़ाधड़ अमेरिकियों की मौत होने लगी. फिर तो अमेरिका में इस को ले कर प्रदर्शन होने लगे और इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग होने लगी.

चीन एक ऐसा देश है, जो पूरी दुनिया में तरहतरह की काली करतूतें करता रहता है. ड्रग्स और हथियारों की तसकरी के लिए चीन पूरी दुनिया में कुख्यात है. माफिया वर्ल्ड में भी चीन ने अपना सिक्का जमा रखा है. चीन की सरकार भी इन माफियाओं की सीधे या फिर पीठ पीछे मदद करती रहती है.

चीन के राजनेताओं और माफिया डौन के बीच सांठगांठ से दो नंबरी धंधे चल रहे हैं. चीनी माफिया पूरी दुनिया में ड्रग्स सप्लाई करते हैं. चाइना गर्ल के नाम से जानी जाने वाली फेंटानाइल ड्रग ने पिछले कुछ सालों से पूरी दुनिया में हाहाकार मचा रखा है.

इसी का नतीजा है कि अभी जल्दी ही चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अमेरिका के दौरे पर गए थे तो अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने द्विपक्षीय वार्ता के दौरान अनेक मुद्दों पर बातचीत करते हुए जिनपिंग से चाइना गर्ल पर कंट्रोल करने की बात कही.

फेंटानाइल नाम की यह ड्रग गैरकानूनी ढंग से अमेरिका पहुंच रही है और अमेरिकियों को इस की लत लगा रही है. इस चाइना गर्ल (फेंटानाइल) की ओवरडोज की वजह से मात्र एक साल में 70 हजार अमेरिकियों की मौत हुई है. यह आंकड़ा तो मात्र मौत का है. इस ड्रग के नशे के कारण अन्य लाखों अमेरिकी बरबाद हो रहे हैं. बाइडन द्वारा इस मुद्दे को उठाने से चाइना गर्ल एक बार फिर से चर्चा में आ गई है.

जिनपिंग ने अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन को विश्वास दिलाया है कि इस ड्रग को कंट्रोल करने के लिए वह हरसंभव कदम उठाएंगे. जबकि चीनी माफिया किसी की बात मानने वाले नहीं हैं. चीन में चोरीछिपे फेंटानाइल का भारी मात्रा में उत्पादन होता है.

मात्र थोड़ी मात्रा में इस ड्रग को लेने से जबरदस्त किक लगने से नशेड़ियों के बीच यह ड्रग काफी पापुलर है. चीन से असंख्य वस्तुओं का निर्यात होता है. निर्यात होने वाली चीजों के साथ कंटेनर में यह ड्रग भी भेज दी जाती है. इस के अलावा अलगअलग देशों के रास्ते भी यह ड्रग अमेरिका पहुंचती है.

भारत सहित दुनिया के अनेक देशों में इस की तसकरी होती है. अन्य देश तो मात्र खेल देखते हैं, जबकि बाइडन ने जिनपिंग से बात कर के इस मुद्दे को इंटरनैशनल इश्यू बना दिया है.

चाइना गर्ल (फेंटानाइल) एक सिंथेटिक ओपीओइड है. इस सिंथेटिक ड्रग को लैब में बनाया जाता है. तरहतरह के केमिकल के मिश्रण से यह ड्रग तैयार होती है.

साल 2019 तक अमेरिका में सब से अधिक फेंटानाइल चीन से आती थी. इस ड्रग के ओवरडोज से फटाफट अमेरिकी मरने लगे, तब अमेरिका सतर्क हुआ. तब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप थे. उन्होंने चीन से ट्रेड टाक की. उस समय ट्रंप ने इस ड्रग पर प्रतिबंध लगा दिया था.

इस के बाद चीन इस ड्रग के उत्पादन, बिक्री, निर्यात पर बैन लगाने के लिए सहमत हो गया था. इस के बाद भी चीन ने लाइसेंस के आधार पर तमाम कंपनियों को इस के उत्पादन की छूट दी है.

चाइना गर्ल (फेंटानाइल) ड्रग का नुकसान कितना हो सकता है, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राष्ट्रपति के चुनाव में यह ड्रग मुद्दा बनी थी. बिना स्वाद और गंध वाली इस सिंथेटिक ड्रग को पेंसिल की नोक के बराबर एक बूंद जितनी मात्रा में लेने से तुरंत असर होता है.

चाइना गर्ल क्यों पसंद करते हैं नशेड़ी

इस दवा की शुरुआत एक पेनकिलर के रूप में हुई थी. गंभीर और बड़ी सर्जरी के बाद दर्द कम करने के लिए इस दवा को डाक्टर देते थे. अमेरिका की एफडीआई यानी फूड और ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने साल 1998 में फेंटानाइल को पेनकिलर के रूप में कायदे से मंजूरी दी थी.

हुआ यह कि सर्जरी के बाद पेशेंट को भी इस दवा से आनंद आने लगा. इसलिए वह इसे स्वस्थ होने के बाद भी लेने लगा. नशे के बाजार में भी यह बात फैल गई कि फेंटानाइल से नशा किया जा सकता है, इसलिए यह धड़ाधड़ बिकने लगी. जब इस के ओवरडोज से मौतें होने लगीं तो अमेरिकी सरकार ने जांच कराई. पता चला कि लोग फेंटानाइल के नशे की वजह से मर रहे हैं.

सेंटर औफ डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने इस ड्रग के बारे में रिसर्च कर के बताया कि यह ड्रग सर्जरी के पेशेंट को देनी भी खतरनाक है. अच्छाखासा आदमी भी इसे नशे के लिए लेता है तो उस के अंगों को यह दवा भारी नुकसान पहुंचाती है.

चीन से दूसरे देशों में कैसे पहुंचती है चाइना गर्ल

यह ड्रग भारत में भी भारी मात्रा में भेजी जाती है. ड्रग एनफोर्समेंट एसोसिएशन का कहना है कि फेंटानाइल चीन में बनती है और भारत, कनाडा और मैक्सिको के रास्ते अमेरिका पहुंचती है. अमेरिका से अन्य देशों में भी यह ड्रग भेजी जाती है.

अमेरिका ने फेंटानाइल मंगाने वाले 38 लोगों को पकड़ा है, जिन से पता चला कि चीन इस ड्रग का मेन सोर्स है. जो लोग पेनकिलर के रूप में इस दवा को लेते हैं, उन को तो पता भी नहीं होता कि वह किस तरह का खतरनाक ड्रग ले रहे हैं. कुछ समय के लिए दर्द तो कम हो जाता है, पर यह अन्य तमाम अंगों को डैमेज कर देती है. ड्रग का असर कम होते ही शरीर टूटने लगता है और फिर से ड्रग लेने की इच्छा होती है. माफिया क्लबों में पहले तो एकदो गोली मुफ्त में देते हैं, उस के बाद इस के बदले में वह मोटी रकम ऐंठते हैं.

इस ड्रग के बारे में एक शंका तो यह भी मन में उठती है कि चीन अपने दुश्मन देशों को खोखला और खत्म करने के लिए इस ड्रग का उपयोग कर रहा है. पिछले साल दिसंबर, 2022 में अमेरिका में फेंटानाइल इतनी अधिक मात्रा में पकड़ी गई थी कि वह 33 करोड़ लोगों को मारने के लिए पर्याप्त थी.

अमेरिका के विशेषज्ञों का कहना है कि यह ड्रग बम से जरा भी कम खतरनाक नहीं है. अमेरिका दुनिया के किसी भी देश में उस का एक भी नागरिक मरता है तो वह उथलपुथल मचा देता है. ऐसे में चीन की इस ड्रग के कारण उस के नागरिक मर रहे हैं तो वह भन्नाएगा ही. बाइडन के कहने से चीन की इस ड्रग का उत्पादन बंद होगा, इस की संभावना कम ही है.

फेंटानाइल: दुष्प्रभाव और बचने के उपाय  —डा. सोनी सिंह

फेंटानाइल डाक्टर द्वारा लिखी जाने वाली एक दवा है, जिसे अवैध रूप से बनाया और उपयोग किया जाता है. यह मार्फिन जैसी दवा है, जिस का उपयोग गंभीर दर्द वाले खास कर सर्जरी वाले रोगियों के इलाज के लिए किया जाता है.

अवैध रूप से उपयोग की जाने वाली फेंटानाइल प्रयोगशालाओं में बनाई जाती है. यह गोली या पाउडर के रूप में मिलती है. कुछ दवा बेचने वाले फेंटानाइल को हेरोइन, कोकीन, मेथमफेटामीन और एमडीएमए के साथ मिला कर बेचते हैं. क्योंकि फेंटानाइल के साथ किक जल्दी लगती है और बेचने वाले को कम लागत में लाभ ज्यादा होता है.

लेकिन ड्रग लेने वालों के लिए यह जोखिम भरा होता है. फेंटानाइल हेरोइन, कोकीन और अन्य नशीली दवाओं की तरह ही काम करती है, लेकिन कुछ समय बाद मस्तिष्क इस दवा का अभ्यस्त हो जाता है, जिस से संवेदनशीलता कम हो जाती है और फिर इस दवा के अलावा किसी भी अन्य चीज से आनंद महसूस नहीं होता.

इस दवा को लेने से खुशी तो मिलती है, पर आदमी हमेशा तंद्रा में रहता है. उस का जी मिचलाता है और वह हमेशा भ्रम की स्थिति में रहता है. वह जैसे बेहोशी की हालत में रहता है और उसे सांस लेने में प्राब्लम होती है.

अगर फेंटानाइल अधिक मात्रा में ले ली गई तो सांस लेने की गति धीमी हो सकती है और रुक भी सकती है. उस के मस्तिष्क तक पहुंचने वाली औक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है. इसे हाइपोक्सिया कहा जाता है. हाइपोक्सिया से कोमा, जिस में मस्तिष्क को स्थाई नुकसान पहुंचता है और फिर फेंटानाइल लेने वाले की मौत हो सकती है.

जैसा कि ऊपर बताया गया है कि कुछ दवा बेचने वाले अधिक फायदा कमाने के लिए हेरोइन, कोकीन  एमडीएमए और मेथमफेटामीन में फेंटानाइल मिलाते हैं, जिस से पता नहीं चलता कि कौन सी दवा का ओवरडोज की वजह बन रही है. लेकिन अगर पता चल जाए कि फेंटानाइल का ओवरडोज है तो नालोक्सोन एक ऐसी दवा है, जिसे दे कर फेंटानाइल का इलाज किया जा सकता है.

जो लोग फेंटानाइल के आदी हो चुके होते हैं तो अगर उन्हें फेंटानाइल नहीं मिलती तो उन की हड्डियों और मांसपेशियों में दर्द होने लगता है. उन्हें नींद नहीं आती, दस्त और उल्टियां होने लगती हैं, ठंड सी लगती और रोंगटे खड़े हो जाते हैं और पैर कांपने लगते हैं. इस के बाद फेंटानाइल लेने की तीव्र लालसा होती है.

ऐसा नहीं है कि फेंटानाइल की लत छुड़ाई नहीं जा सकती. अन्य नशीले पदार्थों की तरह ही व्यवहारिक उपचारों वाली दवाएं फेंटानाइल की लत वाले लोगों के लिए भी प्रभावी साबित हुई हैं.

दवाओं के अलावा संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी यानी अपने विचारों, कार्यों और भावनाओं के बीच संबंधों को पहचानना सिखा कर उस की मानसिक स्थिति को सुधारा जा सकता है. इस से तनाव कम होगा और आदी व्यक्ति खुद को स्वस्थ महसूस करेगा. रिहैब सेंटर में भरती करा कर भी इलाज कराया जा सकता है.

डाक्टर की कर सकते हैं शिकायत  डा. संजय कंसल, मुख्य चिकित्सा अधीक्षक

मैडिकल क्राइम के विषय में रुड़की (उत्तराखंड) के जे.एन. सिन्हा स्मारक संयुक्त राजकीय अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डा. संजय कंसल का कहना है कि यदि चिकित्सक अथवा रोगी में से कोई भी फरजी हो तो वह मैडिकल क्राइम की श्रेणी में होता है. सभी एलोपैथिक चिकित्सकों की डिग्रियां उस के क्लीनिक व उस के परचे पर लिखी हुई होती है. यदि कोई रोगी अपने चिकित्सक की डिग्रियां चैक करना चाहे तो वह अपने राज्य की आईएमए की साइट पर जा कर उस के पंजीकरण नंबर के आधार पर उस की डिग्री चैक कर सकता है.

इस के अलावा बीएएमएस चिकित्सकों का राज्य सरकार भी पंजीकरण करती है. अकसर सुनने में आता रहता है कि फलां क्षेत्र में झोलाछाप डाक्टर उपचार कर रहा था. इस के लिए तो स्वयं रोगी को अलर्ट रहना चाहिए और अपने रोग के अनुसार उसी रोग के विशेषज्ञ चिकित्सक से ही अपना उपचार कराना चाहिए. कई बार रोगी स्वयं ऐसे झोलाछाप डाक्टरों के पास उपचार कराने जाते हैं और फिर अकसर मुसीबत में फंस जाते हैं.

भारत में डाक्टर पर मरीज पूरा भरोसा करता है. तभी वह उस के पास पूरे विश्वास के साथ इलाज के लिए जाता है. इस के अलावा यदि कोई फरजी डाक्टर बन कर मरीजों को उपचार के नाम पर दवाएं देता है तो इस से बड़ा मैडिकल क्राइम कोई नहीं हो सकता है.

ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त से सख्त काररवाई होनी चाहिए. यदि किसी रोगी को अपने डाक्टर पर फरजी होने का संदेह है तो वह इस की शिकायत जिले के मुख्य चिकित्साधिकारी से कर सकता है.

फरजी डाक्टर, औपरेशन धड़ाधड़, 9 मौतें

जहरीला कफ सिरप

फरजी डाक्टर, औपरेशन धड़ाधड़, 9 मौतें – भाग 3

जैसेजैसे पुलिस की जांच आगे बढ़ती जा रही थी, नएनए खुलासे हो रहे थे. अग्रवाल मैडिकल सेंटर के लिए काम करने वाला एक मैडिकल रिप्रजेंटेटिव (एमआर) दीपक जो बिहार का रहने वाला है और दिल्ली में काम करता है. उस से पूछताछ कर रही पुलिस को पता चला कि वह पिछले 3 सालों में इस अग्रवाल मैडिकल सेंटर के डा. नीरज अग्रवाल के संपर्क में है. वह इस अस्पताल में करीब 400 मरीजों को औपरेशन, गर्भपात और डिलीवरी के लिए भेज चुका है.

उसे भी डा. नीरज अग्रवाल मोटा कमीशन देता था. कथा लिखने तक उस से पूछताछ चल रही थी. दोषी पाए जाने पर उसे गिरफ्तार किया जा सकता है.

पुलिस ने अग्रवाल मैडिकल सेंटर में काम करने वाले टेक्नीशियन महेंद्र सिंह के तुगलकाबाद स्थित न्यू गंगा मैडिकल सेंटर पर छापा मार कर तलाशी ली तो पुलिस को इंजेक्शन, दवाइयोंं के साथ अहम कागजात भी मिले.

पुलिस जांच में सब से अहम खुलासा हुआ है कि महेंद्र दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में कार्यरत वरिष्ठ डाक्टर के पास टेक्नीशियन का काम करता था. उस ने डाक्टर को सर्जरी करते देख कर काम सीखा, जिस के बाद एमबीबीएस की फरजी डिग्री तैयार की और अग्रवाल मैडिकल सेंटर में काम करने लगा.

महेंद्र टेक्नीशियन होने के बाद भी मैडिकल सेंटर चला रहा था. यहां दलालों को 35 फीसदी की दलाली दे कर मरीजों को बुलाया जाता था, जिस के बाद उन की नकली ब्लड रिपोर्ट तैयार की जाती थी. ब्लड रिपोर्ट में फरजी बीमारियां दिखा कर लैब टेक्नीशियन उसी आधार पर उन लोगों का औपरेशन कर देता था.

डा. नीरज अग्रवाल को पैसों की इतनी भूख थी कि वह शादियों के लिए अपनी मर्सिडीज भी किराए पर देता था और खुद ही ड्राइवर बनता था.

एंबुलेंस व आटो वालों की मदद से दिल्ली के पौश इलाके में चल रहे इस फरजी अस्पताल के खेल में मरीजों का धड़ल्ले से सौदा किया जा रहा था. कमीशन के लिए एंबुलेंस चालक मरीजों को सरकारी अस्पतालों के बजाए इस प्राइवेट हौस्पिटल में छोड़ देते थे. इस के एवज में एंबुलेंस चालकों को मोटा कमीशन अग्रवाल मैडिकल सेंटर से मिलता था.

किनकिन सरकारी अस्पतालों में बैठाए थे इन्होंने अपने एजेंट

इन फरजी डाक्टरों की घुसपैठ सब जगह थी. दक्षिणी जिला पुलिस अधिकारियों के अनुसार आरोपी डा. अग्रवाल ने सफदरजंग अस्पताल के जच्चाबच्चा विभाग व ओपीडी और एम्स आदि की ओपीडी में अपने एजेंट बिठा रखे थे. जो भी मरीज यहां इलाज कराने आता, आरोपी के एजेंट कम पैसे में इलाज तथा औपरेशन करने का लालच दे कर अग्रवाल मैडिकल सेंटर ले जाते थे. इस के पुलिस को कई सबूत भी मिले हैं.

अग्रवाल मैडिकल सेंटर को नर्सिंग होम सेल ने कारण बताओ नोटिस जारी किया है. स्वास्थ्य विभाग के इस नोटिस में सेंटर का पंजीकरण एक्ट 1953 के तहत 3 बैड (बिस्तर) के लिए मान्य है. इस का उल्लघंन किया गया. इस के साथ ही नोटिस में 9 मरीजों के साथ हुए हादसे का भी जिक्र है.

इस से पूर्व दिल्ली मैडिकल काउंसिल के सचिव डा. गिरीश त्यागी ने अग्रवाल मैडिकल सेंटर के खिलाफ मामला सामने आने के बाद पुलिस से सारी जांच रिपोर्ट मांगी है. इस रिपोर्ट का अध्ययन कर डा. अग्रवाल पर काररवाई की जाएगी.

दिल्ली मैडिकल काउंसिल से कुछ और शिकायतें पुलिस को मिली हैं. इन शिकायतों पर कानूनी सलाह ली गई है. कानूनी सलाह में अलग एफआईआर दर्ज करने की बात कही गई है. रिपोर्ट मिलने के बाद और मामले भी दर्ज कर इस गोरखध्ंधे में शामिल चेहरों को पुलिस उजागर करेगी.

कई मृत मरीजों के परिजनों ने अग्रवाल मैडिकल सेंटर के खिलाफ शिकायतें की थीं. इन शिकायतों में कुछ साल 2016 की थीं. नवंबर 2023 तक कोई आपराधिक काररवाई नहीं की गई थी. ऐसा सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत के बिना संभव नहीं है. अन्यथा इन मुन्नाभाई एमबीबीएस का भंडाफोड़ बहुत पहले हो गया होता.

मरीज का इलाज करने से पूर्व डाक्टर उस के मन का इलाज करते हैं. वे मरीजों को स्वास्थ्य का उपहार देते हैं. लेकिन दिल्ली के अग्रवाल मैडिकल सेंटर ने फरजी डाक्टरों के साथ मिल कर मरीज की बीमारी को बढ़ाचढ़ा कर बता कर उन के तीमारदारों को लूटने के साथ ही उन के मरीज को मौत के मुंह में पहुंचाने का काम किया है. उन का यह कार्य कभी माफी के लायक नहीं है.

भंडाफोड़ होने से सुधा की जान बच गई

बसंत विहार की रहने वाली सुधा की जान इस अस्पताल का भंडाफोड़ होने से बालबाल बच गई. सुधा ने बताया कि उस के पति को भी इस अस्पताल के बारे में बताया गया था.

hospital ke bahar marij Sudha

उस का 15 नवंबर, 2023 को औपरेशन होना था. लेकिन उस दिन भाईदूज होने के कारण वह औपरेशन के लिए अस्पताल नहीं पहुंच पाई थी. दूसरे दिन इस फरजी अस्पताल और उस के फरजी डाक्टरों की पोल खुलने के साथ गिरफ्तारी हो गई थी. सुधा का कहना था कि भंडाफोड़ नहीं होता तो मेरा भी पता नहीं क्या होता.

किसी भी क्लीनिक में जाने और इलाज कराने से पूर्व पेशेंट और उस के परिजनों को यह पता होना चाहिए कि यहां किस लेवल के डाक्टर हैं. क्लीनिक में हर तरह की सुविधा उपलव्ध है या नहीं. अगर मरीज की सर्जरी करते समय कोई इमरजेंसी हो जाए तो डाक्टर कैसे डील करेंगे? इमरजेंसी का सारा सेटअप होना जरूरी है.

जितने भी क्लीनिक दिल्ली एनसीआर में हैं, उन का दिल्ली डीएमसी नंबर होना चाहिए. क्योंकि डीएमसी नंबर उन्हीं डाक्टर के पास होता है, जो पूरी तरह से क्वालीफाइड होते हैं और समयसमय पर डीएमसी को भी हर तरह से इन छोटेबड़े क्लीनिक की जांच करवानी चाहिए.

मैडिकल क्राइम से कैसे बचें : डा. अजय अग्रवाल

इस संबंध में 37 वर्षों से चिकित्सकीय कार्य कर रहे शल्य चिकित्सक डा. अजय अग्रवाल का कहना है कि स्वास्थ्य अपराध का मुख्य कारण झोलाछाप डाक्टर हैं. इन के द्वारा अधूरी या बिना किसी चिकित्सकीय योग्यता के मरीजों का इलाज कम पैसों का लालच दे कर किया जाता है.

इस के साथ ही इस का एक कारण देश में योग्य चिकित्सकों का अभाव है. साथ ही ग्रामीण व पिछड़े क्षेत्रों में क्वालीफाइड डाक्टर्स का न मिलना, वहीं घोर अज्ञानता व भयंकर गरीबी भी है. लोग सस्ते इलाज के चक्कर में झोलाछाप डाक्टरों के चंगुल में फंस कर अपनी जान जोखिम में डाल लेते हैं. ऐसी खबरें आए दिन टीवी व अखबारों के माध्यम से सुनाई देती है.

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डा. अजय अग्रवाल

मरीजों व उन के तीमारदारों को दवाएं अधिकृत मैडिकल स्टोर्स से ही खरीदनी चाहिए, साथ ही दवाओं की रसीद भी लेनी चाहिए ताकि नकली दवाओं से बच सकें.

कहने को सरकार द्वारा इस दिशा में कुछ अच्छे प्रयास किए जा रहे हैं. जहां एमबीबीएस की सीटों में बढ़ोत्तरी की गई हैं, वहीं आयुष्मान कार्ड द्वारा 5 लाख रुपए तक का फ्री में इलाज कराया जा सकता है. लोगों को अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने हेतु हेल्थ एजूकेशन कैंप व मेलों का आयोजन भी किया जा रहा है. इन प्रयासों से नीमहकीमी कम होगी तथा इलाज भी कम पैसों में अच्छा मिल सकेगा. आईएमए और एएसआई जैसी संस्थान भी इस में सहयोग प्रदान करेंगी.

घटिया पेसमेकर से 200 की मौत – भाग 3

डा. समीर ने कई मरीजों को क्यों लगाए यूज्ड पेसमेकर

उत्तर प्रदेश के इटावा की रहने वाली 46 साल की नूरबानो को अचानक दिल का दौरा पड़ा. घर वाले फौरन उसे ले कर सैफई के आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय के अस्पताल में ले गए, जहां डाक्टरों ने उसे पेसमेकर लगाने की सलाह दी.

लेकिन हद तो तब हो गई कि औपरेशन के बाद सर्जन डा. समीर सर्राफ ने पेसमेकर सीने के अंदर नहीं, बाहर ही चिपका कर छोड़ दिया. इस के बाद नूरबानो के साथसाथ उस के घर वाले भी करीब 24 महीने तक इस पेसमेकर से जूझते रहे और आखिरकार नूरबानो की मौत हो गई.

इटावा की ही रहने वाली 40 साल की नजीमा को भी दिल की बीमारी थी. उस के परिवार वालों ने उसे साईं मैडिकल यूनिवर्सिटी हौस्पिटल में भरती करवाया. उस के इलाज में करीब 4 लाख रुपए खर्च किए. उसे भी डा. समीर सर्राफ ने पेसमेकर लगाया, मगर अंत में नजीमा की भी जान चली गई.

आमतौर पर मरीज डाक्टर पर आंखें मूंद कर विश्वास करते हैं, लेकिन जब कोई डाक्टर चंद नोटों की खातिर अपने पेशे से ही गद्दारी करने लगे, लोगों की जिंदगी को ही दांव पर लगा दे तो कोई क्या ही कर सकता है. डा. समीर सर्राफ की गिरफ्तारी के बाद ऐसी ऐसी हैरतअंगेज कहानियों का खुलासा हो रहा है कि जांच करने वाली पुलिस के साथसाथ समूचा देश भी हैरान हो कर रह गया.

इटावा के एसएसपी संजय कुमार वर्मा के अनुसार, पुलिस को अब तक की जांच में पता चला है कि  डा. समीर सर्राफ ने कुछ मामलों में तो मरीजों को यूज्ड यानी कि इस्तेमाल किए गए पेसमेकर ही धोखे से लगा डाले थे.

यानी कि यदि किसी मरीज की मौत हो गई थी तो धोखे से उस मरीज का पेसमेकर निकाल लिया और फिर उसी पेसमेकर को किसी दूसरे मरीज के अंदर प्लांट कर दिया, जबकि वह दूसरे मरीज से नए और ब्रांडेड पेसमेकर के पैसे पहले से ही वसूल चुका होता था. पुलिस ऐसी अजीबोगरीब और दिल दहला देने वाली शिकायतों को भी वेरीफाई करने में जुटी हुई है.

और भी हो सकते हैं चौंकाने वाले खुलासे

फिलहाल पुलिस को अभी तक की जांच में इस रैकेट में 4 से 5 लोगों के शामिल होने का पता चला है. पुलिस उन सभी की भूमिका की जांच भी कर रही है और बहुत मुमकिन भी है कि जल्द ही कानून के हाथ उन सभी के गरेबान तक भी होंगे. अब तक करीब 600 लोगों को नकली पेसमेकर लगाए जाने की बात सामने आई है.

पुलिस को पेसमेकर वाले करीब 200 मरीजों के मरने की जो जानकारी मिली है, जांच कर पुलिस यह पता लगाने की कोशिश करेगी कि मरे हुए मरीजों में से कितने नकली पेसमेकर का शिकार बने?

इसी बीच पुलिस ने डा. समीर सर्राफ का पासपोर्ट भी जब्त करने की कोशिश शुरू कर दी है, ताकि अगर कल को यह शातिर अपराधी जमानत पर बाहर भी निकल आए तो उस के लिए विदेश भागना संभव न हो सके.

कथा लिखने तक डा. समीर सर्राफ जेल में ही था. पुलिस की जांच जारी थी. आने वाले दिनों में कई और भी चौंकाने वाले खुलासे हो सकते हैं.

(कहानी पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित है)

पेसमेकर क्या होता है और यह कैसे करता है काम?

पेसमेकर एक छोटा उपकरण होता है जो असामान्य हृदय लय को नियंत्रित करने में मदद करता है. इसे छाती या पेट के क्षेत्र में लगाया जाता है. पेसमेकर उस व्यक्ति को लगाया जाता है, जो अतालता लक्षणों (बेहोशी, सांस की तकलीफ, थकान) से पीड़ित होता है. अतालता एक ऐसी बीमारी है, जिस में व्यक्ति का दिल बहुत धीमा या बहुत तेज धड़कता है.

पेसमेकर 3 प्रकार के होते हैं, एकल कक्ष पेसमेकर, चेथरूम वाला पेसमेकर और तीसरा बायवेंट्रिकल पेसमेकर. सिंगल कक्ष या एकल पक्ष पेसमेकर में एकएक लीड हार्ट के दाएं वेंट्रिकल और ऊपरी कक्ष (दाएं अलिंद) दोनों से यात्रा होती है.

क्वांटम कक्ष वाले पेसमेकर में 2 लीड हृदय के सिद्धांत (दाएं वेंट्रिकल) और ऊपरी कक्ष (दाएं अलिंद) से अलगअलग जुड़े होते हैं. जबकि तीसरे बायवेंट्रिकल पेसमेकर में 2 या 3 लीड अलगअलग होते हैं. अलगअलग कण (दाएं वेंट्रिकल), ऊपरी कक्ष (दाएं एट्रियम) और हृदय के बाएं वेंट्रिकल दोनों से जुड़े होते हैं.

पेसमेकर में एक कंप्यूटरीकृत बिल्डर, बैटरी और गोदाम होते हैं. अंतिम पेसमेकर के आखिर में सेंसर वाला तार होता है, जिस से व्यक्ति के हृदय की विद्युत गतिविधि का पता लगाया जाता है.

पेसमेकर लगाने की पूरी प्रक्रिया में एक से 2 घंटे का समय लग सकता है. उस के बाद हृदय रोग विशेषज्ञ मरीज की छाती के ऊपरी भाग में प्लास्टर बोन के नीचे एक छोटा सा चीरा लगाता है. चीरा 2-3 इंच का होता है, उस के बाद फ्लोरोस्कोपी की मदद से डाक्टर पेसमेकर की लीड को मरीज के हृदय कक्ष में शामिल करता है.

पेसमेकर से वैसे तो कोई नुकसान नहीं होता, लेकिन कई बार इस को लगाने से जटिलताएं पैदा हो जाती हैं, जो नुकसानदायक होती हैं. मसलन पेसमेकर में लगी चीजों या फिर पेसमेकर लगाने के दौरान दी गई दवाओं से भी मरीज को एलर्जी हो सकती है.

कई मशीनों मसलन, मेटल डिटेक्टर वगैरह शरीर में लगे पेसमेकर की गति में असर डालते हैं, इसलिए अकसर पेसमेकर वाले मरीजो को ऐसी किसी मशीन के इस्तेमाल से या इन से दूर रहने की सलाह दी जाती है. भारत में सब से सस्ता पेसमेकर 40 हजार रुपए का आता है, लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि पेसमेकर खराब है. हां, अगर पेसमेकर घटिया है तो अवश्य ही जानलेवा हो सकता है.

फरजी डाक्टर, औपरेशन धड़ाधड़, 9 मौतें – भाग 2

मुन्नाभाई कैसे चढ़े पुलिस के हत्थे

पैसा कमाने और रातोंरात अमीर बनने के चक्कर में कुछ लोग डाक्टरी पेशे में भी फरजीवाड़ा करने से बाज नहीं आते. वे सभी की आंखों में धूल झोंकने के धंधे में लग कर लोगों की जान लेने से भी नहीं चूकते. ऐसे ही झोलाछाप डाक्टरों को 16 नवंबर, 2023 को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया. आरोपियों में डा. नीरज अग्रवाल (एमबीबीएस), निदेशक अग्रवाल मैडिकल सेंटर, उस की पत्नी पूजा अग्रवाल,  महेंद्र सिंह पूर्व लैब टैक्नीशियन,  डा. जसप्रीत सिंह (एमबीबीएस और एमएस), जिस ने फरजी सर्जरी नोट्स तैयार किए, सभी को गिरफ्तार कर लिया गया.

डा. जसप्रीत का लैटर हैड भी बरामद हुआ, जिस पर वह सर्जरी नोट्स लिखता था. गिरफ्तार आरोपियों में 2 एमबीबीएस डाक्टर हैं और 2 फरजी डाक्टर शामिल हैं. पुलिस ने गिरफ्तार आरोपियों को न्यायालय के समक्ष पेश किया. अदालत ने इन सभी को 5 दिनों की पुलिस हिरासत में भेज दिया. पुलिस को पूछताछ में इन आरोपियों से कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां मिलीं.

दिल्ली के सर्जरी स्कैम में एक और डाक्टर के शामिल होने की बात सामने आई है. उस के बारे में पुलिस पता लगा रही है. इस के साथ ही यह बात भी सामने आई है कि आरोपी डाक्टर नीरज अग्रवाल मरीजों के औपरेशन अपनी पत्नी पूजा व लैब टेक्नीशियन महेंद्र से भी करवाता था,

जिन के पास डाक्टरी की कोई डिग्री तक नहीं थी.

पुलिस की काररवाई के दौरान डा. नीरज अग्रवाल के घर से संदिग्ध दस्तावेज और अन्य चीजें पाई गईं. इन में डाक्टर के हस्ताक्षर के साथ 414 पर्चे, पर्चियां जिन में ऊपर काफी खाली जगह छोड़ी गई थी. 2 रजिस्टर जिन में उन मरीजों का विवरण था, जिन का चिकित्सीय गर्भपात केंद्र में किया गया था.

प्रतिबंधित दवाएं, इंजेक्शन जो केवल अस्पतालों में ही स्टोर करने चाहिए, इस्तेमाल किए गए सर्जिकल ब्लेड, विभिन्न रोगियों के मूल पर्चे, पर्चियां, 47 विभिन्न बैंकों की चैकबुक्स, विभिन्न बैंकों के 54 एटीएम कार्ड, विभिन्न डाकघरों की पासबुकें, 6 पीओएस टर्मिनल क्रेडिट कार्ड मशीनें शामिल थीं. इन लोगों ने औपरेशन थिएटर एक छोटे से रूम में बना रखा था.

जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने काररवाई करते हुए फरजी सर्जरी करने वाले अस्पताल में सस्ते व अच्छे इलाज के नाम पर मरीजों को मौत के मुंह में भेजने वाले एक व्यक्ति पर शिकंजा कसा. पुलिस ने 42 साल के फार्मासिस्ट जुल्फिकार को 19 नवंबर, 2023 को गिरफ्तार कर लिया. जुल्फिकार प्रह्लादपुर के लाल कुंआ का रहने वाला है. इस फार्मासिस्ट की गिरफ्तारी के बाद कई राज भी उजागर हुए.

दक्षिणी दिल्ली के पुलिस आयुक्त चंदन चौधरी ने जानकारी देते हुए बताया कि जुल्फिकार को संगम विहार इलाके से गिरफ्तार किया गया. जुल्फिकार डी. फार्मा कोर्स किए हुए है. वह संगम विहार में क्लीनिक-कम-मैडिसन नाम से दुकान चलाता था. वह बिना वैध लाइसेंस के होम्योपैथी और एलोपैथी दवाइयां बेचने का काम अपनी दुकान से करता था.

जुल्फिकार दुकान पर किडनी स्टोन, आंत की समस्या और अन्य बीमारियों की दवाएं लेने आने वाले पीड़ितों को वह स्वयं को होम्योपैथी का डाक्टर बताता था. वह सस्ते और अच्छे इलाज का भरोसा दिलाते हुए अग्रवाल मैडिकल सेंटर पर उन्हें भेजा करता था. कभी मरीज को आटोरिक्शा में अपने साथ भी लाता था. इस के बदले में जुल्फिकार को अच्छाखासा कमीशन मिलता था.

पुलिस के अनुसार, जुल्फिकार को एक मरीज को इस सेंटर पर भेजने के बदले में मरीज के इलाज में आने वाले कुल खर्च का 35 परसेंट कमीशन मिलता था.

डीसीपी ने बताया कि जुल्फिकार पिछले 5-6 साल से इस सेंटर के लिए काम कर रहा था. जुल्फिकार ने जिस अंतिम मरीज को इस अग्रवाल मैडिकल सेंटर में भेजा था, वह असगर अली था. उस की सर्जरी के दौरान मौत हो गई थी. इन 5-6 सालों में जुल्फिकार ने लगभग 40-50 मरीजों को इस सेंटर में डिलीवरी, गर्भपात और अन्य रोगों के इलाज के लिए भेजा था.

पेट दर्द की शिकायत पर क्यों किया 2 बार औपरेशन

डा. नीरज के खिलाफ साल 2011 में शशिभूषण नाम के एक व्यक्ति ने शिकायत पुलिस को दी थी. इस में आरोप लगाया गया था कि उस की पत्नी रिंंकी 4 माह की गर्भवती थी. उस के पेट में दर्द होने के साथ ब्लीडिंग हो रही थी. वह डा. अग्रवाल के सेंटर पर पत्नी को उपचार के लिए ले कर आया था. डा. नीरज ने एक ही बीमारी के लिए 2 औपरेशन कर दिए थे. फीस के रूप में 2.10 लाख रुपए भी लिए थे.

पीड़ित ने आरोप लगाया कि डा. नीरज के उपचार के चलते उस के गर्भ के बच्चे की मौत हो गई थी. औपरेशन के कुछ दिनों बाद रिंकू को पेट में दर्द की शिकायत बनी रही और लगातार उल्टी होती रही. इस के बाद शशिभूषण ने पत्नी का अल्ट्रासाउंट कराया, तब पता चला कि भ्रूण हत्या का एक हिस्सा अभी भी उस के अंदर था.

देश की राजधानी दिल्ली के अस्पताल में चल रहे मौत के खेल में रोज नए चौंकाने वाले खुलासे हुए. पौश इलाके ग्रेटर कैलाश स्थित अग्रवाल मैडिकल अस्पताल के झोलाछाप डाक्टरों की करतूत सुन सभी हैरान हैं. बिना डिग्री फरजी अस्पताल चला कर लोगों की जान से खिलवाड़ करने वाले इस अस्पताल पर अब कानून का शिकंजा कसा हुआ है.

इस अस्पताल और इस से जुड़े लोगों की जांच के बाद पुलिस को पता चला कि अस्पताल में आ कर कुल 9 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. ये सभी मौतें साल 2016 के बाद हुई हैं.

जांच में पता चला कि डा. नीरज अग्रवाल एक फिजीशियन है, लेकिन वह गैरकानूनी तरीके से अस्पताल में मैडिकल सर्जरी भी करता था. पता चला कि 2016 से अब तक विभिन्न शिकायतकर्ताओं द्वारा अग्रवाल मैडिकल सेंटर के खिलाफ दिल्ली मैडिकल एसोसिएशन और डा. नीरज अग्रवाल व उस की पत्नी पूजा अग्रवाल के खिलाफ 7 शिकायतें दर्ज कराई गई थीं. इस के बावजूद ये अस्पताल धड़ल्ले से चलता रहा.

सर्जरी जैसा जटिल इलाज करने के लिए उस के पास कोई योग्यता ही नहीं थी. इस से पता चलता है कि मरीज की जान कितनी सस्ती है, इस मौत के अस्पताल में सर्जरी के बाद अगर कोई मरीज बच गया तो वह उस की किस्मत होती थी.

एक्सपायरी इंजेक्शन व दवाओं ने बयां की हकीकत

पुलिस ने बताया कि आरोपी नीरज अग्रवाल पहले सफदरजंग अस्पताल में  नौकरी करता था, जिस के बाद उस ने यह मैडिकल सेंटर खोला. इस सेंटर का हैड डा. जसप्रीत सिंह को बनाया था. पुलिस को शक है कि बीते कुछ सालों में इस फरजी अस्पताल ने मरीजों को लगभग 80 करोड़ रुपए का चूना लगाया है. पुलिस ने इंडियन मैडिकल एसोसिएशन को इस अस्पताल के लाइसैंस को निरस्त करने के लिए लिखा है.

18 नवंबर, 2023 को भी एम्स के डाक्टर अभिलाष फोरैंसिक टीम, एसएचओ अजय कुमार, इंसपेक्टर अनिल कुमार, एसआई भगवान और राकेश कुमार के साथ गिरफ्तार किए गए मुख्य आरोपी डा. नीरज अग्रवाल और उस के साथी डा. जसप्रीत सिंह को ले कर अग्रवाल मैडिकल सेंटर पहुंचे, जहां भारी मात्रा में एक्सपायरी दवादयां और इंजेक्शन मिले.

घटिया पेसमेकर से 200 की मौत – भाग 2

कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिस में डा. समीर सर्राफ द्वारा किए गए भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ. कार्डियोलौजी विभाग की पैथ लैब में एक से डेढ़ साल का सामान होने के बावजूद डा. समीर सहित भ्रष्टाचार में संलिप्त लोगों ने 2019 में मनमानी कर करीब एक करोड़ की गैरजरूरी खरीद कर डाली थी.

विश्वविद्यालय प्रशासन की जांच से इस बात की पुष्टि होने पर तत्कालीन कुलपति ने भुगतान पर रोक लगा दी. जनवरी, 2020 से ही डा. समीर सर्राफ द्वारा खरीदा गया सामान विश्वविद्यालय के स्टोर में अभी भी रखा हुआ है. मगर पिछले 2 सालों से कभी भी इस का इस्तेमाल नहीं किया गया. अब ये सामान एक्सपायर होने वाला है.

डा. समीर सर्राफ ने भ्रष्टाचार की सभी सीमाएं पार कर डाली थीं. एक तरफ उस ने मरीजों से धोखाधड़ी कर घटिया पेसमेकर लगा दिए और इस के एवज में मरीजों से अधिक पैसा भी वसूला तो दूसरी तरफ उस ने प्रधानमंत्री की महत्त्वाकांक्षी ‘आयुष्मान भारत योजनाÓ के तहत भरती हुए मरीजों से भी ज्यादा पैसा वसूल किया.

7 फरवरी, 2022 को प्रोफेसर (डा.) आदेश कुमार, चिकित्सा अधीक्षक यूपीयूएमएस सैफई, इटावा द्वारा सैफई थाने में डा. समीर सर्राफ पुत्र जितेंद्र सर्राफ निवासी सिविल लाइंस, जनपद ललितपुर, तत्कालीन असिस्टेंट प्रोफेसर कार्डियोलौजी विभाग यूपीयूएमएस सैफई, इटावा के खिलाफ अनावश्यक आर्बिटरी खरीद, पेसमेकर धोखाधड़ी, अनावश्यक विदेश यात्राएं, गहन भ्रष्टाचार कर के सैफई आयुर्वेद विश्वविद्यालय को लाखों रुपए की वित्तीय हानि तथा मरीजों को भी धोखाधड़ी का शिकार बनाए जाने के संबंध में मुकदमा दर्ज कराया गया.

यह मुकदमा धारा 7/8/9/13/14 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 व भादंवि की धारा 467/468/471 और 420 के तहत दर्ज कर लिया गया.

अपर पुलिस महानिदेशक (कानपुर जोन) आलोक जैन एवं पुलिस महानिरीक्षक (कानपुर परिक्षेत्र) प्रशांत कुमार के निर्देशन व एसएसपी (इटावा) संजय कुमार वर्मा के पर्यवेक्षण एवं सीओ (सैफई) नागेंद्र कुमार चौबे के नेतृत्व में थाना सैफई में एक विशेष पुलिस टीम का गठन किया गया.

जिस में थाना सैफई के एसएचओ मोहम्मद कामिल, एसएसआई पवन कुमार शर्मा, एसआई संतोष कुमार और कांस्टेबल विपुल कुमार को शामिल किया गया. इस के बाद पुलिस टीम आरोपी की तलाश में जुट गई. फिर एक गुप्त सूचना के आधार पर पुलिस ने 7 नवंबर, 2023 को दुमिला बौर्डर के पास से आरोपी 42 वर्षीय डा. समीर सर्राफ को गिरफ्तार कर लिया गया.

पेसमेकर बनाने वाली कंपनी ने भी क्यों की शिकायत

पुलिस को जांच में पता चला कि पेसमेकर बनाने वाली कंपनी ने वाइस चांसलर को सबूतों के साथ चेताया भी था. एसए हेल्थटेक कंपनी, लखनऊ ने 17 मार्च, 2020 को तत्कालीन कुलपति डा. राजकुमार को लिखित शिकायत दे कर कहा था कि एमआरआई पेसमेकर घोटाला आप के सैफई स्थित विश्वविद्यालय में धड़ल्ले से हो रहा है.

इस रिपोर्ट में बताया गया था कि मरीज सुदामा लाल को 21 मई, 2018 को पेसमेकर लगाया गया था. जिस का एसपीजीआई आरसी रेट 96,844 रुपए था, जबकि डा. समीर सर्राफ ने मरीज के घर वालों से एक लाख 85 हजार रुपए वसूले थे.

इसी प्रकार डा. समीर सर्राफ ने एक और मरीज गुड्डी देवी से पेसमेकर इंप्लांट के एक लाख 85 हजार रुपए वसूले, जबकि उस का आरसी रेट 94,484 रुपए था. डाक्टर ने मरीजों को गलत तरीके से बताया कि यह एमआरआई संगत है, जो सही नहीं है.

इन मरीजों के एमआरआई से गुजरने पर मौत काफी रिस्की हो जाती है, आगे रिपोर्ट में लिखा गया था कि मैं ने ही समीर सर्राफ से यह अनुरोध भी किया था कि वह इस तरह से मरीजों को धोखा न दें और उन्हें असली सच्चाई से अवगत कराएं. लेकिन उल्टा डा. समीर सर्राफ ने मुझे ब्लैकमेल और धमकाना शुरू कर दिया और आगे से मुझे एमआरआई पेसमेकर कीमत पर अधिक नौन एमआरआई लाने को कहा. लेकिन भ्रष्टाचार के कारण, पेसमेकर की आपूर्ति ही बंद कर दी.

मरीज के जीवन को बचाने के लिए उन को गलत तरीके से वित्तीय लाभ लेने के लिए बताया कि एमआरआई संगत पेसमेकर है. इस शिकायती पत्र के साथ आडियो रिकौर्डिंग और सीडी भी संलग्न कर के तत्कालीन कुलपति को सौंपी गई थी.

इस के बाद तत्कालीन चिकित्सा अधीक्षक डा. आदेश कुमार ने 2 मार्च, 2021 और 11 मार्च, 2021 को तत्कालीन कुल सचिव सुरेशचंद्र शर्मा को लिखे गए गोपनीय पत्र में यह कहा था कि आप के कार्डियोलौजी विभाग की एक सदस्यीय और 5 सदस्यीय कमेटी की पूरी जांच हो चुकी है, जिस में प्रथमदृष्टया यह साबित हुआ है कि डा. समीर सर्राफ द्वारा मरीजों को एमआरआई पेसमेकर बता कर घटिया पेसमेकर लगाए गए थे, जिस से उन मरीजों की जान को खतरा बना हुआ है.

सीबीटीएस विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. अमित सिंह के द्वारा 3 बार जांच करने पर डा. समीर सर्राफ को दोषी सिद्ध किया था. खुद को फंसता देख डा. समीर ने बचने का उपाय खोजा और अपने पैसे और रुतबे का फायदा उठा कर उस ने न्यायालय के आदेश पर सैफई थाने में डा. अमित सिंह के ही खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा दिया.

विभागीय जांच में डा. समीर सर्राफ को निलंबित कर दिया था. उस के निलंबित होने के बाद सैफई स्थित आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय की ओपीडी पूरे 17 महीनों तक बंद रही थी. यहां पर आने वाले दिल के मरीजों को तब इलाज न मिलने के कारण कानपुर और लखनऊ जाने को विवश होना पड़ा था.

जांच अधिकारी सीओ नागेंद्र चौबे ने बताया कि जांच में सहयोग करने के लिए उन्होंने डा. समीर को नोटिस दिया तो वह अंडरग्राउंड हो गया. फिर 12 सितंबर 2023 को विश्वविद्यालय में कार्यसमिति की बैठक हुई, जिस के बाद डा. समीर 40 दिनों की लंबी छुट्टी पर चला गया था.

डा. समीर ने यूपी के बाहर कैसे फैलाया जाल

विश्वविद्यालय के पेसमेकर घोटाले के आरोपी डा. समीर सर्राफ का उत्तर प्रदेश के साथ राजस्थान के अस्पतालों में नेटवर्क फैला हुआ था. वह राजस्थान में अपना नाम बदल कर मरीजों का औपरेशन किया करता था.

पुलिस को जांच में पता चला कि डा. समीर सर्राफ ने विश्वविद्यालय प्रशासन की अनुमति के बिना 8 बार विदेश यात्राएं की थीं. ये विदेश यात्राएं चिकित्सा उपकरण बनाने वाली कंपनियों द्वारा प्रायोजित थीं.

मूलरूप से ललितपुर का रहने वाला डा. समीर सर्राफ दवा बनाने वाली कंपनियों से सांठगांठ रखता था. उस के माध्यम से दवा व उपकरण बनाने वाली कंपनियां बेहिसाब कमाई भी करती थीं. डा. समीर अपने बेटे की जन्मदिन की पार्टी भी विदेश में करता था. इस संबंध में जांच अधिकारी मरीजों के बयान लेने के साथ ही विश्वविद्यालय से और भी अन्य जानकारियां एवं रिकौर्ड इकट्ठा कर रहे थे.

फरजी डाक्टर, औपरेशन धड़ाधड़, 9 मौतें – भाग 1

जहां ये अग्रवाल मैडिकल सेंटर चलता था, वहां 10 किलोमीटर के अंदर ऐसे कई क्लीनिक चलते हैं, जहां पर बिना डिग्री के डाक्टर व स्टाफ काम करते हैं. जांच के दौरान अग्रवाल मैडिकल सेंटर के अंदर सब से अधिक सफदरजंग अस्पताल से आए मरीजों के कागजात मिले.

दिल्ली के इन फरजी डाक्टरों का सालों से फरजी गोरखधंधा देश की राजधानी में अग्रवाल मैडिकल सेंटर में धड़ल्ले से चल रहा था. यह अस्पताल गैंग की तरह चलता था. बेहद सस्ते में इलाज और सर्जरी का लालच दे कर यह मरीजों को फंसाते थे. यह गैंग मरीजों को डरा कर उन से मोटी रकम वसूल कर धड़ाधड़ सर्जरी करता था. पैसों की खातिर गैंग की नजरों में मरीज की जान की कोई कीमत ही नहीं थी.

इस अस्पताल में सिर्फ 2 डाक्टर ही थे, डा. नीरज अग्रवाल और डा. जसप्रीत सिंह.  नीरज एमबीबीएस है, लेकिन दिल्ली मैडिकल काउंसिल उस के रजिस्ट्रेशन को 3 बार रद्द कर चुकी है. हैरान कर देने वाली बात तो यह है कि सर्जन डा. जसप्रीत सिंह तो बिना औपरेशन थिएटर में पहुंचे, बिना मरीज को छुए ही अस्पताल के लिए कागजों पर सर्जरी कर दिया करता था. सर्जरी तो डा. जसप्रीत के नाम पर होती थी, लेकिन उसे अंजाम देते थे अस्पताल में कार्यरत मुन्नाभाई एमबीबीएस.

दक्षिणी दिल्ली के ईस्ट औफ कैलाश के गढ़ी गांव निवासी 44 वर्षीय जय नारायण कई दिनों से पेट के दर्द से परेशान चल रहे थे. उन के चचेरे भाई ने उन का चैकअप कराया.  अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट से पता चला कि उन के पित्ताशय में पथरी है.

पथरी से निजात पाने के लिए उन को औपरेशन की सलाह दी गई. तब उन्हें बताया गया कि दिल्ली के पौश इलाके ग्रेटर कैलाश में अग्रवाल मैडिकल सेंटर नाम का एक नर्सिंग होम है. इस में इलाज सस्ता और अच्छे डाक्टरों द्वारा किया जाता है.

इस जानकारी के बाद जय नारायण अपने चचेरे भाई राजपाल सिंह, जो दिल्ली के ही श्रीनिवासपुरी वार्ड के निगम पार्षद हैं, के साथ इस अस्पताल में 26 अक्तूबर, 2023 को जा पहुंचे. परिजनों ने अस्पताल के डाक्टरों से बातचीत के बाद औपरेशन फीस जमा कर दी. इस के साथ ही औपरेशन के लिए आवश्यक दवाएं, इंजेक्शन, सर्जिकल ब्लेड आदि सामान भी डाक्टरों के कहने पर ला कर दिए. अगले दिन की तारीख जय नारायण के औपरेशन के लिए दे दी गई.

27 अक्तूबर को नर्सिंग होम के डाक्टरों की टीम ने जय नारायण की पित्ताशय की पथरी का औपरेशन किया. औपरेशन के बाद जय नारायण की तबीयत बिगड़ गई और उन की मौत हो गई. नर्सिंग होम के डाक्टरों ने जय नारायण की मौत की खबर घर वालों को दी.

जय नारायण की मौत की खबर सुनते ही घर वालों के पैरों के नीचे से जैसे जमीन खिसक गई. भाई ने जब डाक्टरों से मौत का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि औपरेशन सफल रहा था, लेकिन उस के बाद हार्ट अटैक आने से जय नारायण की मौत हो गई.

अजीब बात यह थी मरीज को सर्जरी के लिए उन्हीं कपड़ों में ले जाया गया था, जो उस ने उस समय पहने हुए थे. जबकि मरीज को औपरेशन थिएटर में ले जाने से पूर्व अस्पताल के कपड़े पहनाए जाते हैं. फिर ऐसा क्यों किया गया? यह बात घर वालों के गले नहीं उतर रही थी.

मृतक जय नारायण की पत्नी के अलावा 21 व 14 साल के बच्चे हैं. वह परिवार के मुखिया थे. उन की मौत की खबर मिलते ही परिवार में कोहराम मच गया. घर वालों ने डाक्टरों की बातों पर विश्वास नहीं किया और पुलिस को सूचना दे दी. कुछ ही देर में पुलिस आ गई और शिकायत पर मृतक जय नारायण के शव को अपने कब्जे में ले लिया.

पुलिस ने शव का पोस्टमार्टम एम्स में कराया. शव का पोस्टमार्टम डाक्टरों के एक पैनल द्वारा किया गया. अपनी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में डाक्टरों ने बताया कि जय नारायण की मौत हार्ट अटैक से नहीं, बल्कि ज्यादा खून के निकलने के कारण हुई थी.

फरजी डाक्टरों के गैंग में कौनकौन थे शामिल

इस अस्पताल के खिलाफ पिछले साल भी की गई एक शिकायत की जांच चल रही थी. 10 अक्तूबर, 2022 को दक्षिणपूर्वी दिल्ली के संगम विहार की एक महिला ने ग्रेटर कैलाश थाने में शिकायत दर्ज कराई थी.

शिकायत में आरोप लगाया कि 19 सितंबर, 2022 को वह अपने पति असगर अली की पित्ताशय की पथरी निकलवाने के लिए अग्रवाल मैडिकल सेंटर ले गई थी. उस का आरोप था कि सर्जरी शुरू होने से पहले नर्सिंग होम के निदेशक डा. नीरज अग्रवाल ने उस से कहा कि सर्जरी डा. जसप्रीत सिंह द्वारा की जाएगी, लेकिन सर्जरी होने से पहले डा. नीरज अग्रवाल ने महिला को बताया कि डा. जसप्रीत सिंह सर्जरी करने नहीं आ सके हैं और अब सर्जरी डा. महेंद्र सिंह करेंगे.

इस के बाद डा. नीरज अग्रवाल ने उस महिला से डा. महेंद्र सिंह को भी मिलवाया. इस के साथ ही वहां मौजूद एक नर्स ने भी उस महिला का परिचय डा. पूजा के रूप में कराया.

असगर अली की सर्जरी डा. महेंद्र सिंह, डा. नीरज अग्रवाल और पूजा ने की. औपरेशन के बाद मरीज को औपरेशन थिएटर से जब बाहर लाया गया तो वह तेज दर्द की शिकायत करने लगा. इस के बाद हालत बिगड़ने पर उसे एंबुलेंस से सफदरजंग अस्पताल ले जाया गया तो वहां के डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

फोटो से कैसे खुला असगर अली की मौत का राज

संगम विहार निवासी असगर का अग्रवाल मैडिकल सेंटर में पित्ताशय की पथरी का औपरेशन किया गया था. पथरी को निकालने के बाद पूजा ने असगर के बेटे को पित्ताशय व पथरी दिखाई थी. ये दोनों चीजें दिखाते समय बेटे ने अपने मोबाइल से फोटो खींच ली थी. यही फोटो थी, जिस से डा. अग्रवाल के सारे राज खुल गए.

हुआ यह कि जब असगर की हालत खराब होने पर उसे सफदरजंग अस्पताल ले जाया गया तो अग्रवाल मैडिकल सेंटर से असगर की जो समरी सफदरजंग अस्पताल भेजी थी, उस में टाइम कुछ और था. इस टाइम के अंतर में डा. नीरज अग्रवाल फंस गया.

पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद 25 अक्तूबर, 2022 को थाना ग्रेटर कैलाश-1 में आईपीसी की धारा 304/196/197/198/201/120बी के अंतर्गत मामला दर्ज कर लिया.

पुलिस ने इस मामले की जब जांच शुरू की तो उसे पता चला कि 19 सितंबर, 2022 को मृतक असगर अली की सर्जरी के समय डा. जसप्रीत सिंह ग्रेटर कैलाश-1 में मौजूद नहीं था, लेकिन उस ने मृतक की सर्जरी के संबंध में फरजी दस्तावेज तैयार किए थे.

आगे की जांच के दौरान पुलिस को यह भी पता चला कि वर्ष 2016 से अब तक विभिन्न शिकायतकर्ताओं द्वारा अग्रवाल मैडिकल सेंटर और डा. नीरज अग्रवाल व उन की पत्नी पूजा अग्रवाल के खिलाफ दिल्ली मैडिकल काउंसिल में लगभग 7 शिकायतें दर्ज कराई थीं. इलाज में कई मरीजों की जान चली गई थी.

जांच के बाद पुलिस ने आरोपी की करतूतों से परदा उठा दिया. यदि उस समय इस अस्पताल के खिलाफ कोई सख्त काररवाई हो जाती तो कई जिंदगियां बचाई जा सकती थीं. लेकिन ढुलमुल रवैए के चलते ऐसा नहीं किया गया, जिस से यहां लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ होता रहा.

Press Confrence me Farji Hospital Ki Jankari Deti DCP Chandan Chaudhari

अग्रवाल मैडिकल सेंटर की जांच के लिए 4 सदस्यीय डाक्टरों वाले एक मैडिकल बोर्ड को पहली नवंबर, 2023 को बुलाया गया. बोर्ड ने अपनी जांच के दौरान इस नर्सिंग होम में अनेक कमियां देखीं.

बोर्ड को जांच के दौरान जानकारी मिली कि अग्रवाल मैडिकल सेंटर का निदेशक डा. नीरज अग्रवाल अकसर मरीजों के इलाज व सर्जरी से संबंधित फरजी दस्तावेज तैयार करता था. इस के बाद वह इन्हें मरीजों को सौंप देता था. पुलिस उपायुक्त ने अग्रवाल मैडिकल सेंटर का लाइसेंस रद्द कराने के लिए दिल्ली मैडिकल काउंसिल के अध्यक्ष को पत्र लिखा है.

घटिया पेसमेकर से 200 की मौत – भाग 1

तकरीबन 200 से अधिक मरीजों की दर्दनाक मौत कोई इत्तफाक नहीं, बल्कि इन मौतों के पीछे लालच, धोखा और हैवानियत की एक ऐसी कहानी छिपी है, जिस पर यकीन करना भी मुश्किल है. इन सभी  मरीजों का इलाज एक ही डाक्टर ने किया था और उस निर्दयी डा. समीर सर्राफ ने चंद रुपयों के लालच में मरीजों को घटिया क्वालिटी के पेसमेकर लगा दिए थे. जिस का नतीजा यह हुआ कि कुछ दिनों तक सस्ते और घटिया पेसमेकर से जूझने के बाद करीब 200 मरीजों की जान चली गई.

सरकारी अस्पतालों में आमतौर पर पेसमेकर लगाने में 75 हजार रुपए से ले कर डेढ़ लाख रुपए तक खर्च आता है, लेकिन डा. समीर पेसमेकर लेने और इस के लिए अलग से रुपए खर्च करने की सलाह देता था. इस तरह वह एक मरीज से 4 से 5 लाख रुपए तक चार्ज कर लिया करता था.

हाल ही में एक दिल को झकझोर देने वाली खबर देश के सब से बड़े राज्य उत्तर प्रदेश से सामने आई है. यह खबर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री के पिता स्व. मुलायम सिंह यादव और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का गढ़ कहे जाने वाले सैफई से है.

उत्तर प्रदेश के सैफई में एक डाक्टर की काली करतूत पूरे देश और समूचे विश्व के सामने आई है. सैफई की मैडिकल यूनिवर्सिटी के डाक्टर की काली करतूत ने भारत को समूचे विश्व के सामने शर्मसार कर के रख दिया है. डा. समीर सर्राफ, जो मैडिकल यूनिवर्सिटी का हार्ट स्पैशलिस्ट था, उसे घटिया और नकली पेसमेकर लगाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है.

सैफई मैडिकल यूनिवर्सिटी में तैनात रहे कार्डियोलौजिस्ट डा. समीर सर्राफ पर बेहद संगीन आरोप लगा है कि उस ने 600 मरीजों में खराब पेसमेकर इंप्लाट किए थे, जिन में से अब तक करीब 200 मरीजों की मौत हो चुकी है. डा. समीर सर्राफ पर मरीजों से अधिक पैसे वसूलने सहित कई संगीन आरोप भी लगे हैं.

कैसे खुला नकली पेसमेकर लगाने का मामला?

नकली पेसमेकर लगाने का मामला तब प्रकाश में आया, जब मोहम्मद ताहिर ने यह मामला मीडिया और पुलिस के सामने उजागर किया. मोहम्मद ताहिर ने 12 जून, 2019 को अपनी बीवी रेशमा की तबीयत खराब होने और कमजोरी महसूस होने पर सैफई यूनिवर्सिटी में भरती कराया था. उन की गैरमौजूदगी में डाक्टर ने उन्हें पेसमेकर लगा दिया.

पेसमेकर लगाने के बाद ताहिर से एक लाख 85 हजार रुपए ले लिए गए. ताहिर ने जब डाक्टर से रसीद की मांग की तो दूसरे दिन कानपुर के कृष्णा हेल्थकेयर (फर्म) की हस्तलिखित रसीद थमा दी गई.

डा. समीर सर्राफ ने ताहिर से ये बात कही थी कि जो पेसमेकर हम ने आप की पत्नी रेशमा के शरीर पर प्रत्यारोपित किया है, वह पूरे 20 साल चलेगा, लेकिन महज 2 महीने बाद ही वह 20 साल गारंटी वाला पेसमेकर खराब हो गया था.

एक दिन रेशमा अपने घर पर ही बेहोश हो कर गिर गई. 24 अगस्त, 2019 को रेशमा को घर वालों ने फिर गंमीर हालत में सैफई मैडिकल कालेज में भरती कराया तो वहां पर डाक्टर ने बताया गया कि इन का पेसमेकर खराब हो गया है. वहां पर एक दूसरा पेसमेकर उन्हें लगवाया गया और 5 दिन तक सैफई मैडिकल कालेज में भरती होने के बाद रेशमा को 29 अगस्त, 2019 को बाहर ले जाने के लिए रेफर कर दिया गया.

पत्नी को बाहर किसी अच्छे अस्पताल में रेफर किए जाने के बाद घर वाले उसे ले कर दिल्ली के होली फैमिली हौस्पिटल में ले गए, वहां पर 11 डाक्टरों की एक पूरी टीम ने रेशमा का पूरा चेकअप किया और फिर उन्होंने बताया कि पेसमेकर लगाने के कारण ही रेशमा की ऐसी बद से बदतर हालत हुई है. क्योंकि जो पेसमेकर उन्हें लगाया गया, वह बहुत ही खराब क्वालिटी का था.

दिल्ली के होली फैमिली अस्पताल में रेशमा का पूरे 13 दिन कोमा की हालत में इलाज किया गया और उस के बाद 10 सितंबर, 2019 को रेशमा को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया.

करीब एक महीने बाद 9 अक्तूबर, 2019 को रेशमा की तबीयत एक बार फिर से बहुत सीरियस हो गई. घर वाले उसे ले कर आगरा के एक अस्पताल में ले गए. आगरा में एशिया के जानेमाने न्यूरोसर्जन आर.सी. मिश्रा ने रेशमा को देखा.

उन्होंने भी जांच करने के बाद यही बताया कि पेसमेकर अच्छी क्वालिटी का नहीं था. उसी की वजह से आज उन की यह स्थिति हो गई है और उन का दिमाग डेड हो चुका है. इस के बाद रेशमा की मृत्यु हो गई.

डा. समीर सर्राफ पर आरोप लगाने वाले केवल मोहम्मद ताहिर ही नहीं, बल्कि अन्य कई लोग भी हैं, जिन्होंने उस पर गंभीर आरोप लगाए हैं. जनपद मैनपुरी निवासी रेनू चौहान ने बताया कि 24 सितंबर, 2019 को उस के पति चेतन चौहान की तबीयत खराब होने पर सैफई मैडिकल कालेज ले गए थे. कार्डियोलौजी विभाग में मौजूद असिस्टेंट प्रोफेसर डा. समीर सर्राफ ने अस्पताल में उन्हें भरती कर लिया. फिर 26 सितंबर, 2019 को पेसमेकर लगा दिया और अगले दिन 27 सितंबर को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया.

रेनू ने बताया कि जब हम कानपुर में अपने पति को दिखाने के लिए ले गए तो वहां पर जांच के दौरान पता चला कि पति के नौन एमआई पेसमेकर डाला गया है. रेनू ने इस की शिकायत सैफई के विश्वविद्यालय प्रशासन से कई बार की, मगर उस की सुनवाई नहीं हुई.

विश्वविद्यालय प्रशासन ने क्यों नहीं की थी काररवाई

इस के बाद उस ने मुख्यमंत्री के जन सुनवाई पोर्टल पर भी शिकायत की. पति का इलाज करवाते करवाते वह साहूकारों की कर्जदार हो गई, लेकिन पति आज भी बीमार हैं. एक अन्य मरीज सोमवंशी का पेसमेकर डा. समीर सर्राफ ने 12 अगस्त, 2017 को डाला था. खराब गुणवत्ता के कारण वह बाहर निकल आया. यह मामला दिल्ली हाईकोर्ट में भी गया था.

इसी तरह 20 दिसंबर, 2017 को मरीज दिनेशचंद्र के परिजनों ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जन सुनवाई पोर्टल पर शिकायत संख्या 60000170119949 पर शिकायत की थी. इस में डा. समीर सर्राफ के खिलाफ लापरवाही बरतने से मरीज की मौत होने की बात कही गई थी.

9 मई, 2018 को मरीज रामप्रकाश ने भी मुख्यमंत्री पोर्टल जन सुनवाई संख्या 40016118007850 के अंतर्गत डा. समीर सर्राफ के खिलाफ पेसमेकर की अनुचित कीमत के संदर्भ में शिकायत दर्ज कराई थी.

मरीजों के हेल्थ कार्ड होने के बावजूद क्यों लिया पैसा

डा. समीर सर्राफ के खिलाफ जब शासनप्रशासन तक शिकायतें पहुंचने लगीं तो 24 दिसंबर, 2021 को सैफई थाने में डा. समीर सर्राफ व अन्य लोगों के खिलाफ वित्तीय अनियमितता करने का मुकदमा दर्ज किया गया था. मामले की जांच के लिए सैफई आयुर्वेद विश्वविद्यालय प्रशासन ने 5 सदस्यीय जांच कमेटी गठित की थी.

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