अपहरण : कैसे पहुंचा एक पिता अपनी बेटी के अपहर्ता तक?

अपहरण : कैसे पहुंचा एक पिता अपनी बेटी के अपहर्ता तक? – भाग 3

अब तक के वैवाहिक जीवन में उन्हें इस तरह कभी दोबारा बैंक जाने की जरूरत नहीं पड़ी थी. आज चैक के नाम पर वह लीना को बेवकूफ बना रहे थे. राजकुमार को तिजोरी की चाभी ले कर आने को कहते हैं, तो लीना समझ जाएगी कि जरूर कोई गड़बड़ है. उसे इस हालत में चिंता में डालना ठीक नहीं है.

उन्हें लगा कि फोन कर के लीना को बता दें कि सैवी उन के साथ है. इस से लीना उस के लिए परेशान नहीं होगी. रात में वह लौटेंगे, तो सैवी उन के साथ होगी. जनार्दन ने गाड़ी आगे बढ़ाई. कालोनी से बाहर आ कर उन्होंने पार्क के पास सड़क के किनारे कार रोक दी. दुकान पर काफी भीड़भाड़ थी, इसलिए वहां से उन्होंने फोन करना ठीक नहीं समझा. उन्होंने पार्क की ओर देखा, कालू माली गेट पर खड़ा सिगरेट पी रहा था. उस की निगाहें उन्हीं पर जमी थीं.

पार्क में खेलने वाले बच्चे अपने अपने दादी दादा या मम्मियों के साथ चले गए थे या जा रहे थे. जनार्दन पार्क की ओर बढ़े. उन्हें अपनी ओर आते देख मुंह से सिगरेट का धुआं उगलते हुए कालू ने पूछा, ‘‘कोई काम है क्या साहब?’’

‘‘मेरी थोड़ी मदद करो कालू. मैं मोबाइल घर में भूल आया हूं. लौट कर जाऊंगा तो समय लगेगा. मुझे जल्दी से कहीं पहुंचना है. एक जरूरी फोन करना था. पार्क के फोन से एक फोन कर लूं?’’

कालू ने सिगरेट का एक लंबा कश लिया और मुंह से सिगरेट हटा कर धुआं उगलते हुए कहा, ‘‘क्या बात करते हैं साहब, यह भी कोई पूछने की बात है? आप का काम मेरा काम. यह फोन सरकार ने आप लोगों के लिए ही तो लगवाया है. फोन कमरे में मेज पर रखा है. जाइए, कर लीजिए.’’

पार्क के गेट के पास ही बाईं ओर 2 कमरों का एक छोटा सा बरामदे वाला मकान था. वही कालू का घर, औफिस स्टोर सब कुछ था. आगे वाले कमरे में कोने में रखी एक छोटी सी मेज पर फोन रखा था. पास ही टूटी हुई मूर्ति रखी थी. जनार्दन को याद आया, जब पार्क में फव्वारा बना था, तब उस में यही मूर्ति लगी थी. लेकिन कुछ ही दिनों में मूर्ति को बच्चों ने तोड़ दिया था.

जनार्दन को लगा, मूर्ति मेज के पीछे ठीक से नहीं रखी थी. स्वभाववश छोटीछोटी बातों का ध्यान रखने वाले जनार्दन ने मूर्ति को उठा कर ठीक से रखा. मूर्ति को ठीक करने के बाद उन्होंने फोन करने के लिए जैसे ही रिसीवर उठाया, उन्हें झटका सा लगा. रिसीवर को गौर से देखा, उस पर उन्हें काले काले दाग दिखाई दिए. वह सोच में डूब गए. उन्हें कुछ याद आने लगा, जिसे वह रिसीवर से जोड़ने की कोशिश कर रहे थे.

अचानक दिमाग में बिजली सी कौंधी. समस्या के सारे समाधान अपने आप अपनी अपनी जगह फिट होते चले गए. एक ही झटके में उन की समझ में आ गया कि सैवी का अपहरण कोई देख क्यों नहीं सका. उन्हें विश्वास हो गया कि सैवी के अपहरण के किए गए फोनों से आने वाली आवाज कालू की थी. इस का मतलब सैवी को यहीं कहीं होना चाहिए. माली ने अपने इसी मकान में उसे कहीं छिपा रखा होगा.

मारे गुस्से के जनार्दन का शरीर कांपने लगा. लेकिन उन्होंने तुरंत अपने गुस्से को काबू में किया. दिमाग शांत और तीक्ष्ण बन गया. आखिर एक बैंकर का दिमाग था. वह जानते थे कि पहलवानी वाले शरीर का मालिक कालू काफी ताकतवर था. अब तक पार्क में सिर्फ कुछ बुजुर्ग और 2-4 महिलाएं बची थीं. वहां ऐसा कोई नहीं था जो कालू को रोक पाता, इसलिए जनार्दन कुछ ऐसा करना चाहते थे कि कालू भाग न सके. यही सोच कर उन्होंने आराम से रिसीवर रख दिया और मेज के पीछे रखी कांसे की मूर्ति उठा ली.

मूर्ति के वजन का अंदाजा लगा कर जनार्दन ने तुरंत कालू पर हमले की योजना बना ली. कालू पार्क की ओर मुंह किए बरामदे में खड़ा था. जनार्दन दबे पांव फुर्ती से 3 कदम आगे बढ़े और कालू की गर्दन पर मूर्ति का तेज प्रहार कर दिया. एक ही वार में कालू जमीन पर गिरा और बेहोश हो गया. जनार्दन ने तुरंत वहां पेड़ों को बांधने के लिए रखी प्लास्टिक की रस्सी उठाई और पीछे कर के उस के दोनों हाथ बांधने लगे. कालू की चीख सुन कर पार्क में बैठे बुजुर्ग और टहल रही महिलाएं वहां आ गईं. लेकिन तब तक जनार्दन कालू के हाथ बांध चुके थे.

उन लोगों से शांति से खड़े रहने को कह कर जनार्दन कालू के क्वार्टर में घुसे. पीछे के बंद कमरे में पड़ी चारपाई पर सैवी पड़ी थी. उस के मुंह पर कपड़ा बंधा था. उस भीषण गर्मी में अंदर का पंखा भी बंद था. जनार्दन ने जल्दी से मुंह पर बंधा कपड़ा खोला और बेटी को सीने से लगा कर बाहर आ गए.

जनार्दन के साथ पसीने से लथपथ उन की बेटी को देख कर लोग हैरान रह गए. रोने से सैवी की आंखों से बहे आंसुओं की लाइन गालों पर साफ नजर आ रही थी. सैवी को देख कर सभी समझ गए कि मामला क्या था.

पुलिस कंट्रोल रूम को फोन किया गया, कंट्रोल रूम की जीप पास में ही कहीं थी, 5 मिनट में आ गई. अब तक कालू को होश आ गया था. जनार्दन की गोद में सैवी को और पुलिस को देख कर वह समझ गया कि उस की पोल खुल चुकी है. थोड़ी देर में कंट्रोल रूम से सूचना पा कर थाना पुलिस भी आ गई.

कालू को हिरासत में ले कर थानाप्रभारी ने जनार्दन से पूछा, ‘‘आप को कैसे पता चला कि आप की बेटी का अपहरण कालू ने किया है?’’

बेटी की पीठ सहलाते हुए जनार्दन ने कहा, ‘‘इंसपेक्टर साहब, मैं यहां फोन करने न आया होता तो कालू की करतूत का पता न चलता. अपहर्त्ता मेरे आसपास ही है, इस बात का अंदाजा तो मुझे पहले ही हो गया था. लेकिन थोड़ी देर पहले एक घटना घटी थी, जिस की वजह से कालू पकड़ा गया.

‘‘शाम को एक बच्चे के घुटने में लगा सड़क का तारकोल कालू ने अपने अंगौछे से पोंछा था. उस के बाद इस ने मुझे फोन किया, इस ने अपनी आवाज बदलने के लिए रिसीवर पर अंगौछा रखने की युक्ति अपनाई थी. उसी समय इस के अंगोछे का तारकोल रिसीवर में लग गया होगा. वही दाग मैं ने रिसीवर पर देखा तो समझ गया कि जिस अंगोछे से बच्चे के घुटने का तारकोल साफ किया गया था, वही अंगोछा इस रिसीवर पर रखा गया था, जिस का तारकोल इस में लग गया है.’’

पुलिस कालू को पकड़ कर ले जाने लगी तो सैवी ने कहा, ‘‘डैडी, अब आप हमें पार्क में खेलने के लिए कभी नहीं आने देंगे?’’

‘‘क्यों नहीं आने देंगे बेटा,’’ जनार्दन ने बेटी का गाल चूमते हुए कहा, ‘‘बिलकुल आने दूंगा. बेटा हर आदमी कालू की तरह खराब नहीं होता. और जो खराब होता है, वह कालू की तरह जेल जाता है.’’

बेटी के अपहरण और बरामद होने की जानकारी लीना को हुई तो उस ने बेटी को सीने से लगा कर अपना सिर जनार्दन के कंधे पर रख दिया, ‘‘इतना बड़ा संकट आप ने अकेले कैसे झेल लिया. बेटी को मिलने में देर होती तो क्या करते?’’

‘‘कह देता कि वह मेरे साथ है. मैं जरूरी काम से बैंक में हूं. वह मिल जाती, मैं तभी घर लौटता.’’ जनार्दन ने लीना का सिर सहलाते हुए कहा.

अपहरण : कैसे पहुंचा एक पिता अपनी बेटी के अपहर्ता तक? – भाग 2

जनार्दन ने बाथरूम से बाहर आ कर ड्राइंगरूम की खिड़की खोली. सिर बाहर निकाल कर इधरउधर देखा. उस गली में कुल 12 मकान थे. 6 एक तरफ और 6 दूसरी तरफ. उन के मकान के बाईं ओर एक मकान था. जबकि दाहिनी ओर 4 मकान थे. उस के बाद पार्क था. उसी तरह सामने की लाइन में 6 मकान थे. पार्क के आगे वाले हिस्से में माली का क्वार्टर था. उसी के सामने एक दुकान थी. इस इलाके में घर के रोजमर्रा के सामानों की वही एक दुकान थी.

कालोनी के अन्य 11 मकानों में रहने वालों को जनार्दन अच्छी तरह जानते थे. उन्हें लगता नहीं था कि इन लोगों में कोई ऐसा काम कर सकता है. दुकान का मालिक पंडित अधेड़ था. उसे भी जनार्दन अच्छे से जानते थे. उन्हें पूरा विश्वास था कि पंडित इस तरह का काम कतई नहीं कर सकता.

चाय पी कर वह बाहर निकलने लगे तो लीना ने कहा, ‘‘सैवी अभी तक नहीं आई. जाते हुए जरा उसे भी देख लेना.’’

‘‘आ जाएगी. अभी तो कालोनी के सभी बच्चे खेल रहे हैं. और हां, खाना खाने की इच्छा नहीं है, इसलिए खाना थोड़ा देर से बनाना.’’

लीना ने जनार्दन के चेहरे पर नजरें गड़ा कर पूछा, ‘‘आज तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’

‘‘आज काम थोड़ा ज्यादा था, इसलिए भूख मर सी गई है.’’ जनार्दन ने सफाई दी तो लीना बोली, ‘‘इस तरह काम करोगे, तो कैसे काम चलेगा.’’

खिड़की से हवा का झोंका आया. उस में ठंडक थी. नहीं तो पूरे दिन आकाश से लू बरसी थी. पत्थर को भी पिघला दे, इस तरह की लू. जनार्दन सैवी के बारे में सोच रहे थे. बदमाशों ने उसे न जाने कहां छिपा रखा होगा? उस के हाथ पैर बांध कर इस भीषण गर्मी में कहीं फर्श पर फेंक दिया होगा. जनार्दन का मन द्रवित हो उठा और आंखें भर आईं.

‘‘मैं जरा चैक के इस बारे में पता कर लूं.’’ दूसरी ओर मुंह कर के जनार्दन घर से बाहर आ गए. गली सुनसान थी. वह पंडित की दुकान पर जा कर बोले, ‘‘कैसे हो पंडितजी, आज इधर कोई अनजान आदमी तो दिखाई नहीं दिया?’’

पंडित थोड़ी देर सोचता रहा. उस के बाद हैरान सा होता हुआ बोला, ‘‘नहीं साहब, कोई अनजान आदमी तो नहीं दिखाई दिया.’’ इस के बाद उस ने मजाक किया, ‘‘बैंक मैनेजर अब नौकरी बचाने के लिए खातेदारों की तलाश करने लगे हैं क्या?’’

पंडित के इस मजाक का जवाब दिए बगैर जनार्दन आगे बढ़ गए. वह पलट कर चले ही थे कि पंडित के दुकान में लगे फोन की घंटी बजी. पंडित ने रिसीवर उठाया, उस के बाद हैरानी से बोला, ‘‘अरे पांडेजी, आप का फोन है. ताज्जुब है, फोन करने वाले को यह कैसे पता चला कि आप यहां हैं?’’

जनार्दन ने फुर्ती से पंडित के हाथ से रिसीवर ले कर कहा, ‘‘हैलो.’’

वही पहले वाली जानी पहचानी घुटी हुई अस्पष्ट आवाज, ‘‘पांडेजी आप अपनी बेटी को जीवित देखना चाहते हैं, तो मैं जैसा कहूं, वैसा करो. देख ही रहे हो. आजकल एक्सीडेंट बहुत हो रहे हैं, आप की बेटी का भी हो सकता है. याद रखिएगा 9 बजे.’’

‘‘मुझे पता कैसे चलेगा…?’’ जनार्दन ने कहा. लेकिन उन की बात सुने बगैर ही अपहर्त्ता ने फोन काट दिया. उन्होंने तुरंत रिसीवर रख दिया और उत्सुकता की उपेक्षा कर के आगे बढ़ गए.

अब उन्हें 9 बजे का इंतजार करना था. वह परेशान हो उठे. इतनी देर तक वह अपना क्षोभ और सैवी के अपहरण की बात कैसे छिपा पाएंगे. क्योंकि घर पहुंचते ही लीना बेटी के बारे में पूछने लगेगी. उन्हें लगा लीना को सच्चाई बतानी ही पड़ेगी. यही सोचते हुए वह कालोनी के गेट की ओर बढ़े. तभी उन्होंने देखा, कालू माली 2 बच्चों को गालियां देते हुए दौड़ा रहा था.

शायद उन्होंने फूल तोड़ लिए थे. गेट के बाहर आते ही एक बच्चा सड़क पर गिर पड़ा. भयंकर गर्मी से सड़क का पिघला तारकोल अभी ठंडा नहीं पड़ा था. वह बच्चे के घुटने में लग गया तो वह कुछ उस से और कुछ कालू माली के डर से रोने लगा. बड़बड़ाता हुआ कालू उस की ओर दौड़ा. उस ने बच्चे को उठा कर खड़ा किया और उस के घुटने में लगा तारकोल अपने अंगौछे से साफ कर दिया. तारकोल पूरी साफ तो नहीं हुआ फिर भी बच्चे को सांत्वना मिल गई. उस का रोना बंद हो गया.

कालू अपना अंगौछा रख कर खड़ा हुआ, तब तक जनार्दन उस के पास पहुंच गए. उन्हें देख कर वह जानेपहचाने अंदाज में मुसकराया. जनार्दन ने पूछा, ‘‘कालू, इधर कोई अनजान आदमी तो नहीं दिखाई दिया?’’

‘‘नहीं साहेब, अनजान पर तो मैं खुद ही नजर रखता हूं. आज तो इधर कोई अनजान आदमी नहीं दिखा.’’

जनार्दन घर की ओर बढ़े. अब 9 बजे तक इंतजार करने के अलावा उन के पास कोई दूसरा चारा नहीं था. वह जैसे ही घर पहुंचे, फोन की घंटी बजी. जनार्दन चौंके. अपहर्त्ता ने तो 9 बजे फोन करने को कहा था. फिर किस का फोन हो सकता है. कहीं अपहर्त्ता का ही फोन तो नहीं, यह सोच कर उन्होंने लपक कर फोन उठा लिया.

उन के ‘हैलो’ कहते ही इस बार अपहर्त्ता ने कुछ अलग ही अंदाज में कहा, ‘‘मैं ने 9 बजे फोन करने को कहा था. लेकिन 9 बजे फोन करता, तो आप के पास मेरी योजना को साकार करने के लिए समय कम रहता. इसलिए अभी फोन कर रहा हूं. मेरी बात ध्यान से सुनो, जैसे ही बात खत्म हो, कार से बैंक की ओर चल देना.

‘‘बैंक के पीछे वाले दरवाजे से अंदर जाना और उसे खुला छोड़ देना. गार्ड को कहना वह आगे ही अपनी जगह बैठा रहे. तुम तिजोरी वाले स्ट्रांगरूम में जाना और तिजोरी खुली छोड़ देना. तिजोरी और स्ट्रांगरूम का दरवाजा खुला छोड़ कर तुम जा कर अपने चैंबर में बैठ जाना.

चैंबर का दरवाजा अंदर से बंद कर के साढ़े 10 बजे तक वहीं बैठे रहना. उस के बाद तुम्हें जो करना हो करना, मेरी ओर से छूट होगी.’’

‘‘और उस की सलामती का क्या?’’ जनार्दन ने लीना के आगे सैवी का नाम लिए बगैर पूछा, ‘‘मुझे कैसे विश्वास हो कि उस का कुछ…’’

अपहर्त्ता ने जनार्दन को रोक लिया, ‘‘मैं तुम्हें एक बात की गारंटी दे सकता हूं. अगर हमारी योजना में कोई खलल पड़ी, हमारे कहे अनुसार न हुआ या हमें रात 11 बजे तक पैसा ले कर शहर के बाहर न जाने दिया गया, तो तुम अपनी बेटी को जीवित नहीं देख पाओगे.’’

जनार्दन का कलेजा कांप उठा. उन्होंने स्वयं को संभाल कर कहा, ‘‘तुम जो कह रहे हो, यह सब इतना आसान नहीं है. तिजोरी में 2 चाभियां लगती हैं, एक चाभी मेरे पास है, तो दूसरी हमारे चीफ कैशियर राजकुमार के पास.’’

‘‘मुझे पता है. इसीलिए तो अभी फोन किया है और कार ले कर चल देने को कह रहा हूं. राजकुमार से मिलने का अभी तुम्हारे पास पर्याप्त समय है. उस से कैसे चाभी लेनी है. यह तुम्हारी जिम्मेदारी है.’’

‘‘अगर वह घर में न हुआ तो…?’’

‘‘वह घर में ही है,’’ उस ने कहा, ‘‘मैं ने इस बारे में पता कर लिया है. नहीं भी होगा तो फोन कर के बुला लेना.’’ कहते हुए उस ने फोन काट दिया.

रिसीवर रखते हुए जनार्दन का हाथ कांप रहा था. लीना ने पूछा, ‘‘यह सब क्या है? तिजोरी की चाभी की क्या बात हो रही थी?’’

‘‘अरे उसी चैक की बात हो रही थी,’’ जनार्दन ने सहमी आवाज में कहा, ‘‘मुझे अभी बाहर जाना होगा. थोड़ी परेशानी खड़ी हो गई है, लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है.’’

‘‘सैवी अभी तक नहीं आई है. जाते समय उसे घर भेज देना. बहुत खेल लिया.’’

सैवी का नाम सुनते ही जनार्दन का दिल धड़क उठा. उन्होंने घर से बाहर निकलते हुए कहा, ‘‘ठीक है, भेज दूंगा.’’

जनार्दन ने कार निकाली. थोड़ी देर स्टीयरिंग पर हाथ रखे चुपचाप बैठे रहे. अपहर्त्ता की बात मानना उन की मजबूरी थी. उन्होंने समय देखा, राजकुमार शहर के दूसरे छोर पर रहता था. शाम के ट्रैफिक में आने जाने में कितना समय लग जाए, कहा नहीं जा सकता. उन्हेंने उसे फोन कर के चाबी के साथ बैंक में ही बुलाने की सोची.

असहाय क्रोध की एक सिहरन सी पूरे शरीर में दौड़ गई. लेकिन उस समय शांति और धैर्य की जरूरत थी. उन्होंने बड़ी मुश्किल से क्रोध पर काबू पाया. घर से तो राजकुमार को फोन किया नहीं जा सकता था. मोबाइल फोन भी वह घर पर ही छोड़ आए थे. जिस से लीना फोन करे, तो पता चले कि फोन तो घर पर ही रह गया है. उस स्थिति में वह न उन के बारे में पता कर पाएगी, न सैवी के बारे में.

अपहरण : कैसे पहुंचा एक पिता अपनी बेटी के अपहर्ता तक? – भाग 1

जनार्दन जिस समय अपनी कोठी पर पहुंचे, शाम के 6 बज रहे थे. उन्होंने बिना आवाज दिए बड़ी सहजता से दरवाजा बंद किया. ऐसा उन्होंने इसलिए किया था, ताकि लीना जाग न जाए. डाक्टर ने कहा था कि उसे पूरी तरह आराम की जरूरत है. आराम मिलने पर जल्दी स्वस्थ हो जाएगी. लेकिन अंदर पहुंच कर उन्होंने देखा कि लीना जाग रही थी. वह अंदर वाले कमरे में खिड़की के पास ईजी चेयर पर बैठी कोई पत्रिका पढ़ रही थी.

‘‘आज थोड़ी देर हो गई.’’ कह कर जनार्दन ने पत्नी के कंधे पर हाथ रख कर प्यार से पूछा, ‘‘अब तबीयत कैसी है?’’

लीना कोई जवाब देती, इस से पहले ही फोन की घंटी बजने लगी. जनार्दन ने रिसीवर उठा कर कहा, ‘‘जी, जनार्दन पांडेय…’’

दूसरी ओर से घुटी हुई गंभीर अस्पष्ट आवाज आई, ‘‘पांडेय… स्टेट बैंक के मैनेजर…?’’

‘‘जी आप कौन?’’ जनार्दन पांडे ने पूछा.

‘‘यह जानने की जरूरत नहीं है मि. पांडेय. मैं जो कह रहा हूं, ध्यान से सुनो, बीच में बोलने की जरूरत नहीं है.’’ फोन करने वाले ने उसी तरह घुटी आवाज में धमकाते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी बेटी मेरे कब्जे में है. इसलिए मैं जैसा कहूंगा, तुम्हें वैसा ही करना होगा. थोड़ी देर बाद मैं फिर फोन करूंगा, तब बताऊंगा कि तुम्हें क्या करना है.’’

दूसरी ओर से फोन कट गया. जनार्दन थोड़ी देर तक रिसीवर लिए फोन को एकटक ताकते रहे. एकाएक उन की मुखाकृति निस्तेज हो गई. पीछे से लीना ने पूछा, ‘‘किस का फोन था?’’

जनार्दन ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘कोई खास बात नहीं थी.’’

जनार्दन पत्नी से सच्चाई नहीं बता सकते थे. क्योंकि उस की तबीयत वैसे ही ठीक नहीं थी. यह सदमा सीधे दिमाग पर असर करता. इस से मामला और बिगड़ जाता. जनार्दन रिसीवर रख कर पूरे घर में घूम आए, सैवी कहीं दिखाई नहीं दी. उन्होंने पत्नी से पूछा, ‘‘सैवी घर में नहीं है, लगता है पार्क में खेलने गई है?’’

‘‘हां, आप के आने से थोड़ी देर पहले ही निकली है,’’ लीना खड़ी होती हुई बोली, ‘‘मैं ने तो चाय पी ली है, आप के लिए बनाऊं?’’

जनार्दन ने चाय के लिए मना कर दिया. घड़ी पर नजर डाली, सवा 6 बज रहे थे. उन्होंने कहा, ‘‘अभी नहीं, थोड़ी देर बाद चाय पिऊंगा. अभी एक आदमी से मिल कर उस के एक चैक के बारे में पता करना है.’’

दरवाजा खोलते हुए उन के दिमाग में एक बात आई तो उन्होंने पलट कर लीना से पूछा, ‘‘इस के पहले तो मेरे लिए कोई फोन नहीं आया था?’’

‘‘नहीं, फोन तो नहीं आया.’’ लीना ने कहा.

जनार्दन ने राहत की सांस ली. लेकिन इसी के साथ ध्यान आया कि अगर सैवी के अपहरण का फोन पहले आया होता, तो घर में हड़कंप मचा होता. वह सोचने लगे कि इस मामले से कैसे निपटा जाए. उन्हें लगा कि कहीं बैठ कर शांति से विचार करना चाहिए.

वह घर से बाहर निकले और सोसाइटी के बाहर बने सार्वजनिक पार्क में फव्वारे के पास बैठ कर सोचने लगे. उन्हें लगा कि सैवी के अपहरण की योजना बहुत सोचसमझ कर बनाई गई थी. उस ने फोन भी मोबाइल के बजाए लैंडलाइन पर किया. क्योंकि मोबाइल पर नंबर आ जाता और वह पकड़ा जाता.

शायद उसे हमारे घर का नंबर ही नहीं, यह भी पता है कि हमारे फोन में कौलर आईडी नहीं है. अपहर्त्ता न जाने कब से सैवी के अपहरण की योजना बना रहे थे. योजना बना कर ही उन्होंने आज का दिन चुना होगा. आज बैंक की तिजोरी में पूरे 80 लाख की रकम रखी है.

लगता है, अपहर्त्ताओं को कहीं से इस की जानकारी मिल गई होगी. यह भी संभव है कि आज इतने रुपए आना और सैवी का अपहरण होना, महज एक संयोग हो. अगर यह संयोग नहीं है, तो इस अपहरण में बैंक का कोई कर्मचारी भी शामिल हो सकता है?

यह बात दिमाग में आते ही जनार्दन का मूड खराब हो गया. वह सोचने लगे कि बैंक का कौन सा कर्मचारी ऐसा कर सकता है. तभी उन्हें लगा कि मूड खराब करना ठीक नहीं है. मूड ठीक रख कर शांति से सोचना विचारना चाहिए. अपहर्त्ताओं के चंगुल में फंसी बेटी और लीना की बीमारी को भूल कर गंभीरता से विचार करना चाहिए. वह बैंक के एकएक कर्मचारी के बारे में सोचने लगे कि उन में कौन अपहर्त्ता हो सकता है या कौन मदद कर सकता है. उन्हें लगा कि मोटे कांच का चश्मा लगाने वाला चीफ कैशियर उन की मदद कर सकता है.

जनार्दन पांडेय अपने कर्मचारियों में बिलकुल प्रिय नहीं थे. पीछेपीछे उन्हें सभी ‘जनार्दन….’ कहते थे. इस की वजह यह थी कि वह छोटीछोटी बातों पर सभी से सतर्क रहने को कहते थे और जरा भी गफलत बरदाश्त नहीं करते थे.

वह झटके से उठे, क्योंकि उन के पास समय कम था. घटना कैसे घटी, इस के बारे में जानकारी जुटाना जरूरी थी. फिर दूसरे फोन का भी इंतजार करना था. अगर फोन आ गया और उन की गैरमौजूदगी में लीना ने फोन उठा लिया, तो…तभी उन्हें लगा कि एक बार वह पार्क में घूम कर सैवी को देख लें.

उन्होंने पार्क में खेल रहे बच्चों पर नजर डाली, सैवी दिखाई नहीं दी. फोन पर घुटी हुई अस्पष्ट आवाज सुनाई दी थी. ऐसा लग रहा था, जैसे आवाज को दबा कर बदलने की कोशिश की जा रही हो. शायद रिसीवर पर कपड़ा रख कर अस्पष्ट बनाने की कोशिश की गई थी. लेकिन उस का कहने का ढंग जाना पहचाना लग रहा था.

उस समय जनार्दन याद नहीं कर पाए कि वह आवाज किस की हो सकती थी. जनार्दन के घर में कदम रखते ही फोन की घंटी बज उठी. यह संयोग था या उन पर कोई नजर रख रहा था कुछ भी हो सकता था. फोन कहीं आसपास से ही किया जा रहा था और फोन करने वाले को अपनी आवाज पहचाने जाने का डर था, इसीलिए वह अपनी आवाज को छिपा रहा था. जनार्दन ने लपक कर फोन उठा लिया.

उन के कुछ कहने के पहले ही दूसरी ओर से पहले की ही तरह कहा गया, ‘‘बेटी को सब जगह देख लिया न? अब मेरी बात पर विश्वास हो गया होगा. खैर, मेरे अगले फोन का इंतजार करो.’’

फोन की घंटी सुन कर लीना भी कमरे में आ गई थी. जनार्दन के फोन रखते ही उस ने पूछा, ‘‘किस का फोन था? आप का काम हो गया?’’

पहले सवाल के जवाब को गोल करते हुए जनार्दन ने कहा, ‘‘वह आदमी घर में नहीं था. अभी फिर जाना होगा.’’

कह कर जनार्दन ने बाहर जाने का बहाना बना दिया.

‘‘मैं चाय बनाए देती हूं. चाय पी कर जाना.’’ लीना ने कहा. लीना बीमार थी, लेकिन घर के काम करती रहती थी.

जनार्दन ने बाथरूम में जा कर ठंडे पानी से मुंह धोया. मन में उथलपुथल मची थी. फोन पड़ोस के मकान से हो सकता है या फिर ऐसी जगह से, जहां से उन के घर पर ठीक से नजर रखी जा सकती थी. उन्हें पूरी संभावना थी कि ये फोन उन्हीं की सोसाइटी के किसी मकान से आ रहे थे.

मौत का खेल : कौन था शिम्ट का कातिल?

मौत का खेल : कौन था शिम्ट का कातिल? – भाग 3

वैगन आई तो हम लोग उस में बैठ गए. पिछली सीट पर मेरे साथ प्यानो वादक कैलर के अतिरिक्त और कोई नहीं था. वह इस तरह जड़ हुई बैठी थी, जैसे उसे लकवा मार गया हो.  स्टेशन वैगन शहर की तरफ जाने वाली सुनसान सड़क पर दौड़ रही थी. कैलर की वीरान निगाहें तेजी से पीछे भागते हुए दृश्यों पर जमी थीं.

अचानक वह इस तरह बड़बड़ाई जैसे अपने आप से मुखातिब हो और उस का दिलोदिमाग काबू में न हो, ‘‘मैं…मैं अपने आप को माफ नहीं कर सकती. इस की जिम्मेदार मैं हूं.’’ वह कुछ पल खामोश रही फिर बड़बड़ाई, ‘‘ओह, यह सब मेरी वजह से हुआ है. उस की कातिल मैं हूं.’’

यह बात मेरे लिए आश्चर्यजनक थी. वह मेरे सामने अपने आप को मुलजिम ठहरा रही थी. मैं समझ नहीं पा रहा था कि वह खुद को शिम्ट का कातिल क्यों समझ रही थी? और यह सब कुछ मुझे क्यों बता रही थी?

‘‘कत्ल? नहीं मिस कैलर, यह महज एक हादसा था और किसी को इस का जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता.’’ मैं ने उसे समझाने की कोशिश की.

‘‘नहीं, यह हादसा नहीं कत्ल है. अगर हम यह खेल शुरू न करते तो यह सब नहीं होता. हम इस खेल में शरीक थे, इसलिए किसी को भी इलजाम से बरी नहीं किया जा सकता.’’ वह पहले की तरह ही बड़बड़ाई.

‘‘मुमकिन है तुम्हारा ख्याल सही हो, लेकिन सब की पर्चियां नष्ट की जा चुकी हैं और अब यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि कातिल कौन है?’’ मैं ने कहा.

वह कुछ देर खामोशी से मेरी तरफ देखती रही, फिर हाथ मेरे सामने कर के मुट्ठी खोल दी. उस की हथेली पर कागज का एक पुरजा रखा हुआ था, जिस पर ‘कातिल’ शब्द लिखा हुआ था.

‘‘अब तुम समझ गए होगे कि मैं ऐसी बातें क्यों कर रही हूं.’’ वह दुखी स्वर में बोली.

मैं वाकई हैरत में था कि वह ऐसी बातें क्यों कर रही थी. मैं कुछ देर उस के चेहरे की तरफ देखता रहा, फिर बोला, ‘‘यह सिर्फ एक हादसा था. तुम्हें इस पर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए मिस कैलर.’’

‘‘ओह. तुम्हें शायद उस की मौत का कोई गम नहीं है. जबकि शिम्ट तुम्हारा दोस्त था.’’ उस के अंदाज में व्यंग्य साफ झलक रहा था.

‘‘मुझे उस की मौत का बहुत अफसोस है, लेकिन मौत पर किसी का बस तो नहीं है न. यह संगीन इत्तेफाक मेरे साथ भी पेश आ सकता था.’’

‘‘संगीन इत्तेफाक?’’ उस ने सुलगती हुई निगाहों से मेरी तरफ देखा, ‘‘तुम्हें शायद अपने दोस्त से मोहब्बत नहीं, नफरत थी.’’

‘‘तुम गलत सोच रही हो. लेकिन मैं यह जरूर जानना चाहता हूं कि तुम अपने आप को उस की मौत का जिम्मेदारक्यों समझ रही हो?’’

‘‘मेरी पर्ची से तुम समझ चुके होगे कि इस खेल में मेरा किरदार क्या था. मुझे किसी एक को कत्ल करना था. मैं ऊपरी मंजिल पर किसी को तलाश करती रही, लेकिन जब कोई नहीं मिला तो मैं नीचे चली आई. वह दीवार से टेक लगाए खड़ा था. मैं ने मौका पा कर जब उस पर हमला किया तो उस ने कोई विरोध नहीं किया.

‘‘यह देख मैं ने उस का गला दबोच लिया. उसे खत्म करने के बाद मैं वहां से हट गई, ताकि वह दूसरों को सूचना दे सके कि कातिल अपना रोल अदा कर चुका है. लेकिन उस की जगह तुम ने हम लोगों को कत्ल की सूचना दी. क्या ऐसी हालत में मैं यह न समझूं कि उस की मौत मेरे हाथों हुई थी? मैं अपनेआप को उस की मौत की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं कर सकती.’’

कैलर खामोश हो कर सिसकियां भरने लगी.

मैं ने परेशानी से दूसरे साथियों की तरफ देखा. वह हम पर ध्यान दिए बिना अपनी बातों में मग्न थे. वैगन शहर की सरहद में दाखिल हो चुकी थी.

पूरब के क्षितिज पर फैलने वाली लाली बता रही थी कि सूरज निकलने ही वाला है. स्टेशन वैगन जैसे ही एक सड़क के मोड़ पर घूमी, कैलर ने ड्राइवर को गाड़ी रोक देने का निर्देश दिया.

कैलर का निवास शहर के एक मध्यमवर्गीय इलाके में था. जबकि यह इलाका शहर की घटिया आबादी वाला था. उस के द्वारा वहां गाड़ी रुकवाने पर मुझे आश्चर्य हुआ. वहां न रोशनी का इंतजाम था और न सफाई पर तवज्जो दी गई थी. दूर तक कच्चे और बेतरतीब मकान फैले हुए थे. आबादी के शुरू में चर्च था. बस्ती की यह अकेली पक्की इमारत थी. चर्च का कलश, अभीअभी निकले सूरज की किरणों में चमकने लगा था.

कैलर के उतरते ही मैं भी गाड़ी से नीचे उतर आया. उस ने मुड़ कर मेरी तरफ देखा और कुछ कहे बिना तेज कदमों से चर्च की तरफ चल दी.  मैं कुछ देर देखता रहा, फिर खुद भी उस के पीछे चल दिया. जब मैं गली में पहुंचा तो वह चर्च में दाखिल हो रही थी.

मैं चर्च के दरवाजे पर रुक कर उस की तरफ देखने लगा. वह इबादत वाले कमरे में पैर मोड़े बैठी अपने उस गुनाह की माफी मांग रही थी, जो उस की समझ के हिसाब से खेल ही खेल में उस के हाथों हो गया था.

वह खुद को शिम्ट का कातिल समझ रही थी. उसे यकीन था कि उस ने शिम्ट का गला घोंट कर उसे मार डाला था. अगर वह दूसरों के सामने इस बात को प्रकट करती तो मुमकिन था कि वे उस की बात मान लेते, लेकिन कम से कम मैं इस बात को मानने को तैयार नहीं था.

क्योंकि कैलर के गला दबोचने से पहले ही शिम्ट मर चुका था. यह कारनामा तो मैं ने अंजाम दिया था. खेल के शुरू में लाइट औफ होते ही मैं ने बाहर निकल कर उसे दबोच लिया था और हलक से आवाज निकालने का मौका दिए बिना जिंदगी से उस का संबंध खत्म कर दिया था.

दरअसल, मैं लंबे अरसे से किसी ऐसे ही मौके की तलाश में था. उस की खूबसूरत बीवी, जो मुझ से बहुत ज्यादा प्यार करती थी और उस की बेशुमार दौलत, इन दोनों पर कब्जा करने के लिए मुझे इस से बेहतर मौका फिर कभी नहीं मिल सकता था और अगर मैं इस सुनहरे मौके से फायदा न उठाता तो मुझ से बड़ा बेवकूफ कोई न होता.

मौत का खेल : कौन था शिम्ट का कातिल? – भाग 2

मैं घुटनों के बल झुक कर उस का मुआयना करने लगा. वह आदमी जमीन पर सीने के बल आड़ातिरछा पड़ा हुआ था. खेल के दौरान इस दृश्य का मतलब था कि कातिल अपना काम कर चुका था और अब जासूस का काम था कि वह कातिल को तलाश करे.

मैं ने एक विशेष इशारे में चीख कर खेल में शामिल लोगों को इस की सूचना दी. इस के साथ ही किसी ने लाइट जला दी और सब लोग इधरउधर से निकलनिकल कर वहां जमा होने लगे.

हर कोई एकदूसरे को पीछे धकेल कर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा था, ताकि देख सके कि मरने वाला कौन है? जो लोग आगे थे, वे झुक कर जमीन पर पड़े हुए शख्स को अपने मजाक का निशाना बना रहे थे.

कोई उस की नाक दबा रहा था, कोई कान मरोड़ रहा था और कोई बाजू से पकड़ कर उसे उठाने की कोशिश कर रहा था. सब का मकसद एक ही था कि वह मरने की अदाकारी खत्म कर दे, ताकि जासूस अपना काम शुरू कर सके. लेकिन उस के जिस्म में जरा सी भी हरकत नहीं हुई.

रोशनी होने के बाद लोगों ने उसे पहचान लिया, वह शिम्ट था.

2 आदमियों ने उसे बांहों से पकड़ कर उठाना चाहा, मगर वह अपनी कोशिश में कामयाब नहीं हो सके. शिम्ट के जिस्म में कोई हरकत नहीं हुई.  उसे उठाने की कोशिश की गई तो वह धड़ाम से दोबारा जमीन पर गिर पड़ा. कुछ लोग बुलंद आवाज में उस की अदाकारी की दाद दे रहे थे कि उस ने इस ड्रामे में हकीकत का रंग भर दिया है.

‘‘बस भई शिम्ट, बहुत देर हो गई. अब एक्टिंग खत्म करो.’’ एक और शख्स ने उसे कालर से पकड़ कर उठाते हुए कहा, लेकिन शिम्ट दोबारा नीचे गिर गया.

‘‘रुक जाओ, यह एक्टिंग नहीं हो सकती. मुझे मामला कुछ गंभीर नजर आ रहा है.’’ एक आदमी दूसरों से कहते हुए, उन्हें धकेल कर आगे बढ़ा. सब लोग अभी तक इसे मजाक ही समझ रहे थे.

उस के शब्द सुन कर सभी गंभीर हो गए. माहौल पर एकदम खामोशी छा गई. हर कोई इस तरह एकदूसरे की तरफ देखने लगा, जैसे पूछ रहा हो कि क्या गड़बड़ है? साफ पता चल रहा था कि शिम्ट मर चुका है.

मेहमानों में एक डाक्टर भी था. उस ने आगे बढ़ कर शिम्ट की जांच की. वह कई मिनट तक विभिन्न तरीकों से उस के जिस्म में जिंदगी की ‘लौ’ तलाश करने की कोशिश करता रहा, फिर उस ने सीधा हो कर इस अंदाज में हम सब की तरफ देखा जैसे कुछ कहना चाहता हो, लेकिन कह नहीं पा रहा हो.

चंद क्षण बाद आखिर उस ने मेरे खयाल की तसदीक कर दी. शिम्ट मर चुका था. डाक्टर ने बताया कि उस की मौत दम घुटने की वजह से हुई थी. ठीक उसी समय मैं भीड़ में से एक लड़की की चीख सुन कर चौंका. मैं ने जल्दी से उस की तरफ देखा. उस के गले में बंधे हुए स्कार्फ से मैं ने उसे पहचान लिया.

यह वही लड़की थी, जिसे पहले मैं बालकनी और फिर ठोकर लग कर गिरने से पहले इसी जगह देख चुका था. चीख उस के हलक में ही घुट कर रह गई. चेहरे पर खौफ व दहशत के भाव उभर आए. मैं ने गौर से उस की तरफ देखा. वह 21-22 साल की एक हसीन लड़की थी.

अखरोटी बालों वाली इस लड़की को मैं मौत का खेल शुरू होने से पहले पार्टी में देख चुका था. वह एक बेहतरीन प्यानो वादक थी. उस की मां अमेरिकन और बाप स्थानीय निवासी था.

कभी उस के बाप की गिनती देश के अमीरतरीन लोगों में होती थी. लेकिन देश की सत्ता पर बैठे लोगों से राजनीतिक विरोध की वजह से उस पर इस का सीधा असर पड़ा. पहले उस का पौलिटिकल कैरियर प्रभावित हुआ. फिर कारोबार भी तबाह हो गया.

उस की फैक्ट्रियों, मिलों में रहस्यमय तरीके से आग लगने की घटनाएं होने लगीं. इस सब का नतीजा यह निकला कि एक दिन उस की लाश घर में पंखे से लटकी पाई गई. कैलर उस की एकलौती बेटी थी.   बाप के खुदकुशी करने के बाद आग लगने की वारदातें रुक गईं और कैलर व उस की मां बचीखुजी पूंजी के सहारे जिंदगी के दिन गुजारने लगीं.

अच्छी प्यानो वादक की हैसियत से कैलर को बड़ीबड़ी पार्टियों में आमंत्रित किया जाता था. जहां से उसे इतना पारिश्रमिक मिल जाता था कि घर का खर्च आसानी से चल जाए. इस वक्त वही खूबसूरत कैलर दहशत की हालत में कुछ इस तरह मुंह पर हाथ रखे सहमी खड़ी थी, जैसे अपनी चीखें रोकना चाहती हो.

‘‘लेडीज एंड जेंटलमेन.’’ डाक्टर की आवाज पर सभी उस की तरफ देखने लगे. डाक्टर कह रहा था, ‘‘हम यहां एक खेल, खेल रहे थे, जिस का नतीजा एक लाश की शक्ल में हमारे सामने है. हम में से कोई नहीं जानता कि इस खेल में किस का क्या किरदार था. इस स्थिति में किसी को इस घटना का जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. यहां कोई किसी का दुश्मन नहीं है. मिस्टर शिम्ट की मौत किसी हादसे या इत्तेफाक का नतीजा भी हो सकती है.

‘‘अब मेरी राय है कि इसे एक हादसा समझा जाए और अपनी अपनी पर्चियां नष्ट कर दी जाएं, ताकि इस खेल में किसी को किसी के किरदार का पता न चल पाए. पर्चियां नष्ट करने का तरीका यह होगा कि सब लोग एकएक कर के कमरे में जाएं और अपनीअपनी पर्चियां आतिशदान में डाल दें. इस तरह किसी को किसी पर शुबहा करने का मौका नहीं मिल सकेगा.’’

दुनिया का कोई भी होशमंद इंसान कत्ल के इल्जाम में शामिल होना पसंद नहीं करता. इसलिए सब लोगों ने डाक्टर की तजवीज बिना हीलहुज्जत के कुबूल कर ली. सभी ने अपनी पर्चियां इस तरह आतिशदान में जा डालीं, ताकि किसी को पता न चल सके कि इस खेल में किस का क्या रोल था. मौत का खेल अपने अंजाम तक पहुंच चुका था.

धीरेधीरे रात बीत गई और सुबह की लाली फैलने लगी. कुछ देर बाद पार्टी में आए मेहमान एकएक कर के रुखसत होने लगे. कोठी के लंबेचौड़े पार्किंग लौट पर खड़ी हुई कारें गायब हो गईं.

कुछ मेहमान ऐसे भी थे, जिन के पास कारें नहीं थीं. उन्हें एक स्टेशन वैगन पर म्यूनिख से यहां तक लाया गया था. मेरा शुमार भी उन्हीं लोगों में था, जो वापसी के लिए वैगन का इंतजार कर रहे थे. पुलिस को इत्तला करने की किसी ने सोची तक नहीं, बस सब खुद को बचाना चाहते थे.

मौत का खेल : कौन था शिम्ट का कातिल? – भाग 1

मुमकिन है कि आप को मौत के खेल के बारे में जानकारी न हो. इसलिए मैं पहले इस खेल के बारे में कुछ बातें आप को बता दूं. इस खेल में होता यह है कि लाटरी की कुछ पर्चियां एक हैट में डाल दी जाती हैं. खेल में शामिल होने वाले एकएक पर्ची उठा लेते हैं. इन पर्चियों में से एक पर कातिल और एक पर जासूस लिखा होता है. बाकी पर्चियां सादी होती हैं.

इस खेल में जिसे कातिल की पर्ची मिले उसे कातिल और जिसे जासूस की पर्ची मिले उसे जासूस का रोल अदा करना होता है. मरने वाले का किरदार अदा करने के लिए किसी का चुनाव नहीं किया जाता. उस का चुनाव खुद कातिल को करना होता है.

इस खेल में यह जरूरी है कि जिस के नाम कातिल की पर्ची निकले वह अपने वजूद को दूसरों के सामने गुप्त रखे. जबकि जासूस के बारे में खेल में शामिल लोग फैसला करते हैं कि उस के किरदार को दूसरों के सामने प्रकट किया जाए या नहीं.

पर्चियां बंट जाने के बाद खेल में हिस्सा लेने वाले उस पूरे घर में फैल जाते हैं जहां खेल खेला जाना होता है. मकान का तहखाना और बागीचा वगैरह भी खेल के दायरे में शामिल होते हैं. इस खेल के लिए यह भी जरूरी है कि खेल रात के वक्त खेला जाए या कम से कम शाम का अंधेरा तो जरूर फैल चुका हो.

कातिल की शख्सियत चूंकि गुप्त होती है इसलिए किसी को पता नहीं होता कि उस का शिकार कौन बनेगा और किस वक्त बनेगा. यह कातिल किसी को अपना शिकार बनाए तो उस के शिकार व्यक्ति की बनावटी चीख दूसरों को जरूर सुनाई दे ताकि वे समझ जाएं कि ‘कातिल’ अपना वार कर चुका है.

इस के बाद सभी लोग वारदात की जगह पर इकट्ठा हो जाते हैं. लेकिन कातिल का शिकार हुए व्यक्ति को यह जाहिर करने की इजाजत नहीं होती कि कातिल कौन है. इस के बाद ‘जासूस’ कातिल की तलाश शुरू कर देता है.

मैं भी मौत के इस खेल में हिस्सा ले चुका हूं और वह मेरी जिंदगी का पहला और आखिरी खेल था. इस के बाद मैं ने कभी इस खेल में हिस्सा नहीं लिया. उन दिनों की है जब मैं ‘म्यूनिख’ में रहता था. अचानक एक दिन मेरे एक दोस्त शिम्ट की तरफ से पार्टी में शामिल होने का ‘दावतनामा’ मिला. पार्टी म्यूनिख से 30 किलोमीटर दूर ‘ओम्बर्ग’ में थी. शहर के हंगामे से दूर यह छोटी सी बस्ती बसंत में जन्नत जैसी खूबसूरत बन जाती थी.

हरियाली भरी पहाड़ी के दामन में दूरदूर तक फैली खूबसूरत कोठियां और दिल को खुशी से भर देने वाले दृश्य देख कर वहीं रह जाने का मन करता था. लेकिन सब से बड़ी दिक्कत यह थी कि मेरे जैसा मिडिल क्लास आदमी वहां रहने के बारे में सोच भी नहीं सकता था. इस इलाके में सिर्फ उन लोगों की रिहाइश थी, जिन्हें खुद अपनी दौलत का अंदाजा नहीं था.

मेरे दोस्त ‘शिम्ट’ की गिनती भी देश के चंद अमीरतरीन लोगों में होती थी. पुरानी दोस्ती की वजह से वह मुझे हर खुशी के मौके पर आमंत्रित कर लिया करता था. वैसे भी म्यूनिख में दूसरे दोस्तों के मुकाबले शिम्ट का मेरे यहां ज्यादा आनाजाना था. शिम्ट के यहां होने वाली पार्टी के दूसरे दिन एक साहब के यहां कौकटेल पार्टी थी.

इस पार्टी में शिम्ट के साथ मैं भी शामिल हुआ. उस रोज उस खूबसूरत बस्ती के तमाम लोग मिस्टर ‘वोल्फ गैंग’ के यहां जमा हुए थे. देर रात तक शराब के जाम छलकते रहे. यह शराब इस पार्टी के लिए खास तौर पर तैयार करवाई गई थी और बहुत मजेदार थी. यही वजह थी कि हर कोई बढ़चढ़ कर पी रहा था.

आधी रात गुजर जाने के बाद किसी ने ‘मौत का खेल’ खेलने की बात कही, जिसे फौरन ही मान लिया गया. पर्चियां बनाई गईं. हर किसी ने अपनीअपनी पर्ची निकाली. कौन कातिल था, कौन जासूस, किसी को कुछ पता नहीं था. पर्चियां निकलने के तुरंत बाद किसी ने मेन स्विच बंद कर दिया. कोठी एकदम अंधेरे में डूब गई.

इस के साथ ही मौत का खेल शुरू हो गया. मैं भी शराबनोशी में बराबर का शरीक था, लेकिन मेरा दिमाग पूरी तरह से मेरे बस में था. मेरे नाम जासूस की पर्ची निकली थी. यानी कि कत्ल की इस फरजी वारदात में मुझे जासूस का किरदार अदा करते हुए, कातिल की तलाश करनी थी.

पहले तो मैं ने इस खेल में ज्यादा दिलचस्पी नहीं ली, लेकिन जब मैं ने महसूस किया कि इसे सिर्फ एक खेल समझने के बजाय हर शख्स संजीदा नजर आ रहा है तो मुझे भी इस में संजीदगी से दिलचस्पी लेनी पड़ी.

मकान की ऊपरी मंजिल पर चारों तरफ एक खुली गैलरी बनी थी, जिस पर सुरक्षा की दृष्टि से कोई जंगला वगैरह नहीं लगा था.

मकान के अंदर गहरे अंधेरे में रास्ता सुझाई नहीं दे रहा था, लेकिन कपड़ों की सरसराहट और पंजों के बल खास अंदाज से चलने की आवाजों से जाहिर हो रहा था कि हर कोई कातिल से बचने के लिए कहीं न कहीं पनाह लेने की कोशिश में है. कातिल कोई गुप्त व्यक्ति था. कोई नहीं जानता था कि उस पर किस तरफ से हमला होगा.

यह हमला मुझ पर भी हो सकता था. मैं चूंकि जासूस था, इसलिए यह खयाल मुझे कतई पसंद नहीं आया कि मैं ही कातिल का निशाना बनूं. निश्चित रूप से जासूस को दूसरों से ज्यादा समझदार और चालाक होना चाहिए.

मैं सुरक्षित अंदाज में चलता हुआ हाल से बाहर निकल आया. लाइट औफ होने से पहले मैं ने अपने दोस्त शिम्ट को भी उस तरफ जाते देखा था. कुछ देर अंधेरे में दुबके रहने के बाद मैं दोबारा मकान में दाखिल हो गया. मैं दबे कदमों से चलते हुए ऊपरी मंजिल पर पहुंच कर रुक गया. सितारों की धुंधली सी रोशनी में बालकनी में एक साए को हिलते देख कर मैं ठिठक गया.

मैं उस की शक्ल तो नहीं देख सका, लेकिन यह अंदाजा लगाने में कोई परेशानी नहीं हुई कि वह कोई औरत थी. वह बड़ी सावधानी से पंजों के बल चलते हुए बालकनी के आखिरी सिरे पर जा रही थी.

कुछ देर बाद ही वह दूसरी तरफ घूम कर निगाहों से ओझल हो गई. जब मैं बालकनी के उस मोड़ पर पहुंचा तो मुझे गले में बंधा हुआ उस का स्कार्फ हवा में लहराता नजर आया. लेकिन फिर वह अचानक गायब हो गई.

नीचे हाल में पहुंच कर मैं कुछ देर के लिए रुका. फिर जैसे ही बाहर निकला एक बार फिर उसी औरत का साया नजर आया. यकीनन वह वही औरत थी, जिसे मैं बालकनी पर देख चुका था. मैं ने उस के गले में बंधे हुए स्कार्फ से उसे पहचान लिया था.

मैं उस की एक झलक से ज्यादा नहीं देख सका था, क्योंकि वह जल्दी से अंधेरे में गायब हो गई थी. मैं उस के पीछे लपका, लेकिन किसी चीज से ठोकर खा कर गिर गया. उस औरत के बारे में मेरे दिल में जिज्ञासा पैदा हो रही थी, लेकिन अब मैं उस का पीछा नहीं कर सकता था, क्योंकि मैं जिस चीज से टकरा कर गिरा था वह एक इंसानी जिस्म था.

एक लाश ने लिया प्रतिशोध

पुनर्जन्म : कौन था मयंक का कातिल?