विकृत : कौन समझेगा दुष्कर्म की पीड़ा? – भाग 1

उस बंद पड़ी मिल में कोई आता-जाता नहीं था. उस की दीवारों का सीमेंट उधड़ चुका था, लोहे के पाइपों में जंग लग चुका था, सारी मशीनें कबाड़ हो चुकी थीं. मिल तक पहुंचने का रास्ता भी खराब हो चुका था. शहर के बाहर होने की वजह से वहां कोई कितना भी चीखे, कोई उसे सुनने वाला नहीं होता था.

उसी मिल के अंदर मशीन से एक 50-55 साल का आदमी बंधा था. लेकिन वह अपनी उम्र से काफी बड़ा दिखाई दे रहा था. साधारण से कपड़े, बढ़ी हुई दाढ़ी, अस्तव्यस्त बाल. उस के दोनों हाथ पीछे की ओर बंधे थे. उस से कुछ दूरी पर एक लड़का बंधा था. उस के कपड़े, जूते आदि उम्दा किस्म के थे. दोनों बेहोश पड़े थे.

जब दोनों को होश आया तो लड़के ने अधेड़ से पूछा, ‘‘मैं यहां कैसे आया, तुम कौन हो?’’

‘‘मुझे क्या पता? देखो न, मैं भी तो तुम्हारी तरह बंधा हूं.’’ अधेड़ ने झल्ला कर कहा.

दोनों पसीने से तरबतर थे. छत टिन की थी, जो मई की गर्मी में तप रही थी. कहीं से हवा भी नहीं आ सकती थी. जो खिड़कियां थीं, वे बंद थीं. लड़का चीखा, ‘‘कोई है?’’

गला सूखा होने की वजह से उसे खांसी आ गई. उस की आंखों से पानी बहने लगा. लड़के ने खांसी पर काबू पाते हुए कहा, ‘‘अगर किसी ने रुपयों के लिए मेरा अपहरण किया है तो वह महामूर्ख है. मेरे न तो मांबाप हैं और न मेरे पास रुपए ही हैं.’’

‘‘मैं ने किसी का क्या बिगाड़ा था. मैं तो वैसे ही 10 सालों बाद जेल से बाहर आया हूं.’’ अधेड़ ने कहा.

दोनों खामोश हो कर याद करने की कोशिश करने लगे कि वे यहां कैसे पहुंचे?

अधेड़ जेल से 10 साल की सजा काट कर जेल से बाहर निकला था. रात 8 बजे उस की रिहाई हुई थी. जेल से कुछ दूर आने पर अचानक पीछे से आ रही कार ने उसे टक्कर मारी तो वह गिर गया. कार से एक व्यक्ति उतरा. उस ने माफी मांगते हुए कहा, ‘‘आइए, आप की मरहमपट्टी करवा कर आप के घर छोड़ देता हूं.’’

अधेड़ कार में बैठा ही था कि पीछे से किसी ने उस के मुंह पर कुछ रखा, जिस से वह बेहोश हो गया. उस के बाद वह होश में आया तो यहां बंधा था. उस की किसी से क्या दुश्मनी हो सकती है? 10 सालों से वह किसी के संपर्क में नहीं रहा. कहीं कोई गलती से तो उसे नहीं उठा लाया.

लड़का शराब की दुकान से शराब पी कर घर लौट रहा था, तभी रास्ते में एक छोटा सा बच्चा उसे रोता हुआ मिला. बच्चे के गले में एक रेशम की डोरी से उस के घर का पता बंधा था. बच्चे को देख कर उसे लगा कि यह अपने घर वालों से भटक गया है. उस ने सोचा कि अगर वह इसे इस के घर पहुंचा देता है तो इस के मांबाप उसे कुछ इनाम देंगे, जिस से उस के शराब पीने का इंतजाम हो जाएगा.

वह बच्चे के बारे में सोच ही रहा था कि उस के पास एक कार आ कर रुकी. उस में से एक बुजुर्ग महिला उतरी. उस के कुछ कहने से पहले ही महिला ने उसे बच्चे की सलामती के लिए धन्यवाद देते हुए कहा, ‘‘आप मेरे घर चलिए. हम आप को कुछ इनाम देना चाहते हैं.’’

इनाम के लालच में वह कार में ड्राइवर की बगल वाली सीट पर बैठ गया. औरत बच्चे को ले कर पिछली सीट पर बैठ गई. उस के कार में बैठते ही पिछली सीट से किसी ने उस के मुंह पर रूमाल रखा तो वह बेहोश हो गया. लड़के ने कहा, ‘‘मुझे क्लोरोफार्म सुंधा कर बेहोश किया गया था.’’

‘‘मुझे भी.’’ अधेड़ ने हैरानी से कहा.

‘‘मेरा अपहरण क्यों किया गया, यह मेरी समझ नहीं आ रहा है?’’ लड़के ने कहा.

‘‘अपहरण कोई क्यों करता है, पैसों के लिए या फिर बदला लेने के लिए?’’ अधेड़ ने कहा, ‘‘लेकिन मेरे पास न पैसे हैं और न किसी से ऐसी दुश्मनी है. मैं तो जेल से छूट कर आ रहा हूं.’’

‘‘किस जुर्म में जेल गए थे?’’ लड़के ने होंठों पर जीभ फेरते हुए पूछा.

‘‘तुम्हें उस से क्या लेना. यह सोचो कि हमें यहां क्यों लाया गया है? तुम्हारी जरूर किसी से दुश्मनी रही होगी? अपहरण करने वाले को पता होगा कि तुम्हारे पास रुपए नहीं हैं. ऐसा काम करने से पहले आदमी पूरी जानकारी कर लेता है.’’

‘‘लेकिन तुम्हारे मामले में तो उस ने गलती की है.’’

‘‘मेरा मामला अलग है. तुम अपनी बात करो.’’

दोनों बातें कर ही रहे थे कि तभी दरवाजे के चरमराने की आवाज आई. इस के बाद कदमों की आहट सुनाई दी, जो निरंतर उन के करीब आती जा रही थी. एक आदमी जो सिर से पैर तक ढका था, सिर्फ उस की आंखें दिख रही थीं, आ कर उन के पास खड़ा हो गया. लड़के ने पूछा, ‘‘कौन हो तुम?’’

‘‘जवाब क्यों नहीं देते?’’ अधेड़ चीखा, ‘‘मुझे थोड़ा पानी पिला दो.’’

वह आदमी लौट गया. वापस आया तो उस के हाथ में एक बोतल थी. उस ने अधेड़ के मुंह से बोतल लगाई. एक घूंट पीने के बाद अधेड़ उसे उगल कर गुस्से से चीखा, ‘‘यह क्या है?’’

उस आदमी ने वही बोतल लड़के के मुंह लगा दी. लड़का छटपटाया. लेकिन कुछ बूंदें उस के मुंह में चली गईं. लड़के ने किसी तरह बोतल से मुंह हटा कर हांफते हुए कहा, ‘‘पेशाब क्यों पिला रहे हो?’’

‘‘यह क्या हैवानियत है?’’ अधेड़ ने कहा.

उस आदमी ने अधेड़ को एक ठोकर मारी. वह दर्द से बिलबिला उठा. इस के बाद लड़के को उसी तरह ठोकर मार कर बोला, ‘‘दुष्कर्म करने के बाद रोती गिड़गिड़ाती लड़कियों को तुम यही पिलाते थे न?’’

‘‘लेकिन मैं तो अपने अपराध की सजा काट चुका हूं. ’’ महिला की आवाज सुन कर अधेड़ गिड़गिड़ाया. उसी वक्त उसे पता चला कि वह आदमी नहीं औरत है.

‘‘तभी तो 50 की उम्र में 60 के लग रहे हो खुशाल.’’ उस महिला ने कहा.

अपना नाम सुन कर खुशाल ने पूछा, ‘‘कौन हो तुम?’’

‘‘पहले यह पूछो कि यह लड़का कौन है? जानते हो इसे?’’ लबादे से ढकी औरत ने चीख कर पूछा.

‘‘नहीं, इस से मेरा क्या वास्ता?’’ खुशाल ने लड़के की तरफ अजनबी निगाहों से देखते हुए कहा.

‘‘यह वही लड़का है, जिस के मातापिता अस्पताल जाते समय तुम्हें अपना भाई और इस का चाचा समझ कर इसे तुम्हारे पास छोड़ जाते थे और तुम इस के गले में अपने गोदाम का, जहां तुम काम करते थे, पता लटका कर गर्ल्स हौस्टल, वर्किंग वुमेन हौस्टल, गर्ल्स स्कूल या कालेज के पास छोड़ देते थे. जब कोई लड़की या महिला अपनी नारी सुलभ आदत की वजह से इसे तुम्हारे पास पहुंचाने जाती थी तो तुम अपने नीच दोस्तों के साथ इस मासूम बच्चे के सामने उस के साथ दुष्कर्म करते थे.

‘‘तुम्हारी हरकतों की वजह से इस का दिमाग इतना विकृत हो गया कि यह डाक्टर, इंजीनियर बनने के बजाय दुष्कर्मी बन गया. तुम ने इस के मातापिता से उन का बेटा छीन लिया, इस का पूरा भविष्य छीन लिया. जानते हो इस ने क्या किया है? जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही इस ने अपनी रिश्ते की बहन के साथ वही किया, जो तूने इसे सिखाया था. इस के मातापिता ने शरम से आत्महत्या कर ली.

‘‘कानून ने तुझे सिर्फ एक दुष्कर्म की सजा दी है. इस के मातापिता को आत्महत्या के लिए विवश करने की सजा और इसे दुष्कर्मी बनाने की सजा तो अभी बाकी है. जिन लड़कियों के साथ तूने दुष्कर्म किया था, बता सकता है उन का क्या हुआ था?’’ इतना कह कर उस औरत ने रिवाल्वर निकाला और खुशाल के दाएं पैर पर गोली मार दी. खुशाल दर्द से चीख पड़ा. उस के पैर से खून बहने लगा.

‘‘बताता हूं…बताता हूं. मुझे मत मारो. मैं सब बताता हूं. एक लड़की ने आत्महत्या कर ली थी, दूसरी जबरदस्ती करते वक्त ज्यादा चोट लगने से मर गई थी. तीसरी ने केस किया. लेकिन कोर्ट से मेरे बाइज्जत बरी होने के बाद उसे ऐसा सदमा लगा कि वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठी. सुना है पागलखाने में है. लेकिन तुम कौन हो?’’

इंसाफ की राह : किस की थी वो दुआ? – भाग 6

अली भाई की भी हालत खराब थी. वे अली भाई को ले कर अंदर पहुंचे तो जज अपनी सीट पर बैठे थे. उन्होंने इफ्तिखार अहमद की ओर देख कर पूछा, ‘‘आप की बच्ची घर पहुंच गई?’’

‘‘जी सर, लेकिन अगवा हुई बच्ची मेरी नहीं थी. सिर्फ उस का नाम दुआ था.’’ इफ्तिखार अहमद ने कहा.

‘‘लेकिन आप ने तो कहा था कि वह बच्ची आप की थी?’’ जज ने हैरानी से कहा.

‘‘जी सर, जब मुझे पता चला कि मेरी बेटी दुआ का अपहरण कर लिया गया है और वह बेरहम अपराधियों के हाथों में है तो मैं परेशान हो उठा. उसे सकुशल छोड़ने के लिए मुझ से कहा गया कि मैं अली भाई की जमानत में रुकावट न डालूं. आप अंदाजा नहीं लगा सकते कि उस समय मेरी क्या हालत हुई होगी. लेकिन जब उन लोगों ने दुआ से मेरी बात कराई तो मुझे पता चल गया कि वह मेरी बेटी दुआ नहीं है .

‘‘क्योंकि मेरी दुआ हकलाती है. वह साफ नहीं बोल पाती, जिस का इलाज चल रहा है. जबकि उस बच्ची ने मुझ से साफ लहजे में बात की थी. उसी से मैं समझ गया था कि अपहर्ताओं ने गलत बच्ची को उठा लिया है.

सच्चाई जान कर भी मेरे जमीर ने ये गंवारा नहीं किया कि मैं अपनी कामयाबी के लिए एक मासूम को बलि चढ़ा दूं. दूसरी ओर मैं यह भी नहीं चाहता था कि अहम मुकदमे का जालिम गुनहगार छूट जाए.’’ इफ्तिखार अहमद ने पूरी बात एक ही सांस में कह दी.

‘‘बच्ची का अपहरण किन लोगों ने किया था?’’ जज ने पूछा.

‘‘अपहरण करने वाले अली भाई के आदमी थे.’’

‘‘आप ने उन्हें देखा था?’’

‘‘नहीं सर, आते समय कोर्ट के बाहर वाली लालबत्ती पर एक भिखमंगे ने मुझे एक मोबाइल फोन दिया था. उसी से अपहर्त्ताओं ने मुझे अपहरण की जानकारी दी थी.’’ इफ्तिखार अहमद ने कहा.

‘‘ऐसे में आप कैसे कह सकते हैं कि वे अली भाई के आदमी थे?’’ जज ने पूछा.

‘‘क्योंकि उन्होंने मुझे अली भाई की जमानत में रुकावट न डालने के लिए कहा था. उन की बात न मानने पर उन्होंने बच्ची को मार देने की धमकी दी थी.’’

‘‘यह सरासर झूठ है, एक तरह से अली भाई के खिलाफ साजिश है.’’ अली भाई का वकील चीखा.

जज ने उसे घूरते हुए गुस्से से कहा, ‘‘अभी आप खामोश रहें, आप से भी पूछा जाएगा.’’

‘‘यह सच है सर, इस का सुबूत यह है कि जिस बच्ची का अपहरण हुआ था, वह मेरे घर में मौजूद है, क्योंकि अली भाई की जमानत मंजूर होने के बाद अपहर्त्ता उसे मेरे घर के सामने छोड़ गए थे.’’ इफ्तिखार अहमद ने खुलासा किया.

‘‘सर, यह मेरे मुवक्किल के खिलाफ साजिश रची गई है.’’ अली भाई के वकील ने एक बार फिर जोर लगाया.

‘‘जी सर, इस मामले में मुलजिम की जमानत का कोई चांस नहीं था, क्योंकि वह दर्जनों बेगुनाह लोगों का कातिल है. इसलिए इन के साथियों ने मेरी बेटी ‘दुआ’ के अपहरण की साजिश रची. मगर अपहर्त्ताओं ने गलती से मेरी बेटी ‘दुआ’ की जगह दूसरी बच्ची का अपहरण कर लिया. ऐसा शायद नाम की वजह से हुआ, क्योंकि उस का भी नाम दुआ था.’’

‘‘जब वह आप की बेटी नहीं थी तो आप ने अपहर्त्ताओं की बात क्यों मानी?’’ जज ने पूछा.

‘‘सर, वह भले मेरी दुआ नहीं थी, लेकिन किसी न किसी की तो दुआ थी. वह भी उस से उतना ही प्यार करता होगा, जितना मैं अपनी दुआ से करता हूं. मैं ने आप से मदद भी बहुत हिम्मत कर के मांगी थी. अगर उस बच्ची को कुछ हो जाता तो मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाता. मुझ पर आप का एहसान है, जिस की वजह से बच्ची मेरे घर में महफूज है.’’

अब तक अली भाई के वकील ने खुद को काफी हद तक संभाल लिया था. उस ने कहा, ‘‘सर, इस बात का क्या सुबूत है कि यह काम अली भाई ने करवाया था?’’

‘‘सुबूत है सर, अली भाई की जेब में वह मोबाइल फोन मौजूद है, जिस पर अपहर्त्ताओं ने मुझ से बात की थी. मुझे वह नंबर भी याद है, जिस नंबर से उन्होंने फोन किया था. उस नंबर को मोबाइल में देखा जा सकता है. यही नहीं, जब फोन करने वाला पकड़ा जाएगा तो खुद ही सारी कहानी सुना देगा.’’ इफ्तिखार अहमद ने कहा.

इफ्तिखार अहमद की दलीलें सुन कर अली भाई का चेहरा उतर गया. उन का हाथ जेब तक जाता, उस से पहले ही एक पुलिस वाले ने उन की जेब से वह मोबाइल फोन निकाल कर जज के सामने रख दिया. जज ने मोबाइल फोन का काल लौग चैक किया तो इफ्तिखार अहमद द्वार बताए फोन नंबर से उस पर फोन आए थे.

इस के बाद सारा मामला खुल गया. जज ने नाराज होते हुए कहा, ‘‘अली भाई, तुम शरीफ आदमी के रूप में शातिर अपराधी हो. तुम्हें सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए. मैं देखता हूं, तुम कैसे बचते हो?’’

हुआ यह था कि इफ्तिखार अहमद ने मुकदमे की फाइल में संक्षेप में सारी स्थिति लिख कर जज के सामने पेश कर दी थी. जज ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए फौरन ऐक्शन लिया और अली भाई की जमानत मंजूर कर ली. लेकिन जमानत की रकम इतनी ज्यादा रख दी कि उस की व्यवस्था करने में समय लगे.

इस के बाद इफ्तिखार अहमद की कोशिश पर अली भाई ने अपने आदमियों से बच्ची को उस के घर पहुंचाने के लिए कह दिया. उन के वकील ने ऐतराज किया, लेकिन अली भाई को यकीन हो गया था कि अब उस की जमानत हो चुकी है, इसलिए कोई कुछ नहीं कर सकता. यही सोच कर उस ने अपना फैसला नहीं बदला.

बच्ची के रिहा होते ही जज की ओर से बुलाए गए सीआईडी वालों ने मामला संभाल लिया.

एक टीम इफ्तिखार अहमद के घर पहुंच गई. मदीहा ने पति से पूछ कर बच्ची को उन के हवाले कर दिया. उसी बीच स्कूल की प्रिंसिपल और बच्ची के मांबाप भी वहां पहुंच गए तो बच्ची उन्हें सौंप दी गई.

एकएक खबर जज तक पहुंच रही थी. इस के बाद जज के आदेश पर इलाके के थाने में इस अपहरण की भी अली भाई और उस के साथियों के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज की गई. इस तरह अली भाई के खिलाफ एक और मामला दर्ज हो गया. अदालत से उसे सीधे जेल भेज दिया गया.

अली भाई के आदमी खूंखार नजरों से इफ्तिखार अहमद को घूर रहे थे. उन्होंने जज से कहा, ‘‘सर, मैं ने तो अपना फर्ज पूरा किया, लेकिन मुझे अली भाई के आदमियों से खतरा महसूस हो रहा है, अगर मुझे या मेरे परिवार के किसी सदस्य को कुछ हुआ तो इस का जिम्मेदार अली भाई होगा.’’

जज ने इफ्तिखार अहमद को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘आप बिलकुल चिंता न करें. आप की पूरी हिफाजत की जाएगी.’’

पूरी तरह आश्वस्त और खुश हो कर इफ्तिखार अहमद बाहर आए तो मीडिया वालों ने उन्हें घेर लिया.

जब सभी चैनलों पर यह दिखाया जा रहा था कि एडवोकेट इफ्तिखार के साथ क्या हुआ और उन्होंने इस मुश्किल का कैसे मुकाबला किया तो लाखों लोगों के साथ नन्ही दुआ भी अपने पापा को टीवी स्क्रीन पर देख कर खुश हो रही थी.

इंसाफ की राह : किस की थी वो दुआ? – भाग 5

जज के इस फैसले से परेशान अली भाई ने अपने वकील को बुला कर कुछ कहा तो वह फोन करने लगा. मीडिया वाले इस ब्रेकिंग न्यूज को अपने चैनलों तक पहुंचाने के लिए भागे. पीडि़त इफ्तिखार अहमद को बुराभला कह रहे थे, ‘‘आप ने हमारा बेड़ा गर्क कर दिया. हमें कतई यकीन नहीं था कि आप ऐसा करेंगे. मरने वालों की जो इंसाफ की गुहार ले कर हम आप के पास आए थे, वह बेकार चली गई.’’

इफ्तिखार अहमद ने एक सर्द आह भरी. मुकदमा करने वाले गुस्से से बड़बड़ाते चले गए. इस के बाद इफ्तिखार अहमद ने अली भाई के पास जा कर धीरे से कहा, ‘‘अली भाई, आप का काम हो गया, अब आप मेरी बच्ची को छोड़ दें.’’

अली भाई ने हैरानी से अपने वकील की ओर देखते हुए कहा, ‘‘वकील साहब, यह किस बच्ची की बात कर रहे हैं?’’

‘‘पता नहीं सर, शायद आज इन की तबीयत ठीक नहीं है.’’ अली भाई के वकील ने इफ्तिखार अहमद का मजाक उड़ाते हुए कहा.

‘‘अली भाई, आप अच्छी तरह जानते हैं कि मैं किस बच्ची की बात कर रहा हूं. आप की जमानत हो गई है. अब आप अपने आदमियों से कहें कि मेरी बच्ची को छोड़ दें, अन्यथा मैं इस मामले को कहीं और ले कर जाऊंगा. इफ्तिखार अहमद ने गुस्से से कहा.’’

‘‘आराम से वकील साहब. इतनी जल्दी क्या है? जमानत तो हो जाने दीजिए.’’ अली भाई ने कहा.

‘‘मैं अब पलभर सब्र नहीं कर सकता. वैसे भी छुट्टी होने का समय हो गया है. अगर बच्ची समय पर घर नहीं पहुंची तो मेरी बीवी फौरन स्कूल फोन करेगी. वहां से पता चलेगा कि बच्ची स्कूल पहुंची ही नहीं तो वह मुझे फोन करेगी. मेरा मोबाइल फोन गाड़ी में पड़ा है. मुझ से बात नहीं होगी तो वह पुलिस को फोन करेगी. मेरी बात समझ में आ रही है न?’’ इफ्तिखार ने इतनी सारी बात एक सांस में कह डाली.

अली भाई सोच में पड़ गया. शातिर आदमी था, इसलिए समझ गया कि अगर मामला खुल गया तो जमानत रद्द हो जाएगी. उस पर एक मामला और बन जाएगा. पौने 12 बज रहे थे. 1 बजे छुट्टी होती थी. सवा बजे बच्ची को घर पहुंच जाना चाहिए.

अली भाई ने धीरे से कहा, ‘‘तुम अपनी बीवी को फोन करो कि वह सब्र करे, बच्ची घर पहुंच जाएगी.’’

‘‘वह पल भर भी सब्र नहीं कर सकती. वह तुरंत अपने भाई डीएसपी सफदर खान को फोन करेगी. वह एंटी टेररिस्ट स्क्वायड में हैं, आप ने उन का नाम सुना ही होगा? मुझ पर एकएक पल भारी पड़ रहा है. अगर मैं ने सब्र खो दिया तो आप की जमानत पर होने वाली रिहाई रद्द हो जाएगी.’’

इफ्तिखार अहमद का इतना कहना था कि अली भाई और उन का वकील परेशान हो गया. आपस में थोड़ी खुसरफुसुर कर के अली भाई ने कहा, ‘‘ठीक है, 1 बजे बच्ची को घर के दरवाजे पर छोड़ दिया जाएगा.’’

उन के वकील ने कहा, ‘‘सर, अभी जमानत की रकम आने में एक घंटा है.’’

अली भाई ने कहा, ‘‘अब कोई फर्क नहीं पड़ता.’’

इफ्तिखार अहमद ने भिखमंगे द्वारा दिया गया मोबाइल फोन निकाल कर अली भाई को देते हुए कहा, ‘‘आप की अमानत है. मैं ने अपना काम कर दिया. अब मुझे इजाजत दें.’’

अली भाई ने कहा, ‘‘ठीक है, आप जा सकते हैं, लेकिन एक बजे से पहले नहीं.’’

मीडिया की दखलंदाजी रोकने के लिए अदालत में ज्यादा लोग अली भाई के ही होते थे. एक बजते ही इफ्तिखार अहमद अपनी कार की ओर भागे. कार में बैठ कर तुरंत मदीहा को फोन किया. लेकिन दूसरी ओर से फोन नहीं उठा.

तभी किसी ने उन की कार का शीशा ठकठकाया. उन्होंने उस की ओर देखा तो उस ने शीशा खोलने का इशारा किया. उन्होंने कार का शीशा नीचे किया तो उस ने पूछा, ‘‘आप की बच्ची घर पहुंच गई?’’

‘‘यही पता करने के लिए तो घर फोन कर रहा हूं, लेकिन फोन ही नहीं उठ रहा.’’ इफ्तिखार अहमद ने कहा.

‘‘जैसे ही बच्ची के घर पहुंचने की जानकारी आप को हो, आप कार से बाहर आ कर इस की छत पर 2 बार हाथ पटक दीजिएगा.’’ इतना कह कर वह आदमी तेजी से चला गया.

इफ्तिखार अहमद ने घर फोन किया तो इस बार मदीहा ने फोन रिसीव कर लिया. उन के ‘हैलो’ करते ही इफ्तिखार अहमद  ने गुस्से से पूछा, ‘‘इतनी देर तक कहां थी? दुआ घर आ गई?’’

‘‘हां, दुआ तो घर आ गई है, लेकिन एक अजीब बात है.’’

‘‘दूसरी बच्ची कहां है?’’ इफ्तिखार अहमद ने जल्दी से पूछा.

‘‘इस का मतलब आप जानते हैं?’’ मदीहा ने हैरानी से पूछा.

‘‘तुम उस बच्ची को भी अंदर कर के दरवाजा ठीक से बंद कर लो. जब तक मैं न आऊं, दरवाजा बिलकुल मत खोलना. स्कूल फोन कर के उस बच्ची के बारे में बता दो, लेकिन बच्ची को किसी को देना मत.’’ जल्दी जल्दी इफ्तिखार अहमद ने पूरी बात समझा दी.

‘‘क्या बात है, कोई खतरा है क्या?’’ मदीहा ने पूछा.

‘‘मैं घर आ कर सब बताता हूं, अभी जितना कहा है, बस उतना करो.’’

कह कर इफ्तिखार अहमद सुकून से बाहर निकले और कार की छत पर 2 बार हाथ मार कर अदालत की ओर रवाना हो गए. रजिस्ट्रार के कमरे में जमानत की काररवाही चल रही थी. अली भाई बरामदे में खड़े थे, तभी कुछ लोगों ने उन्हें घेर लिया.

वे किसी तरह की वर्दी में नहीं थे, इसलिए उन के वकील ने परेशान हो कर पूछा, ‘‘तुम लोग कौन हो? अली भाई की जमानत हो चुकी है?’’

‘‘जमानत तो हो चुकी थी, लेकिन जमानत देने वाले जज ने उसे रद्द कर के मुलजिम को अदालत में ले आने के लिए कहा है.’’ उन में से एक आदमी ने कहा.

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’ वकील ने ऐतराज जताया.

वे लोग पुलिस की मदद से अली भाई को ले कर अदालत की ओर बढ़े तो उन का वकील पीछेपीछे लपका. वह उन लोगों को समझाने लगा, लेकिन उन लोगों ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया.

इंसाफ की राह : किस की थी वो दुआ? – भाग 4

इफ्तिखार अहमद का खून खौल रहा था. लेकिन उस समय वह पूरी तरह से मजबूर थे. अपनी जगह पर बैठ कर वह मुकदमे की फाइल देखने लगे. ठीक 11 बजे जज ने सीट संभाली. अली भाई के वकील ने खड़े हो कर कहा, ‘‘सर, मैं अलीभाई की जमानत की अर्जी देना चाहता हूं.’’

जज ने एकदम से कहा, ‘‘अभी तो जुर्म पर बहस होनी है. उस के बाद ही जमानत की अर्जी दी जा सकती है.’’

वकील जल्दी से बोला, ‘‘सर, बहस होती रहेगी, आप अर्जी तो ले लीजिए. मेरा मुवक्किल 70 साल का बूढ़ा और बीमार आदमी है. वह समाज का एक सम्मानित आदमी है. ऐसे आदमी को जमानत मिल जानी चाहिए. जनाब वकील इस्तगासा को भी इस जमानत पर कोई ऐतराज नहीं है.’’

बचाव पक्ष के वकील की इस बात पर वहां मौजूद लोग हैरान रह गए. जज को भी हैरानी हुई. उन्होंने इफ्तिखार अहमद की ओर देख कर कहा, ‘‘मि. इफ्तिखार अहमद, सचमुच आप को इस अर्जी पर कोई ऐतराज नहीं है?’’

सकुचाते हुए इफ्तिखार अहमद खड़े हुए, ‘‘जी नहीं सर, मानवीय आधार पर मुझे कोई ऐतराज नहीं है.’’

जज हैरानी से इफ्तिखार अहमद को देखते रह गए. इस के बाद उन्होंने अली भाई के वकील से कहा, ‘‘ठीक है, आप जमानत की अरजी दे दीजिए.’’

इस के बाद मुकदमा करने वालों में से एक आदमी ने इफ्तिखार अहमद के पास आ कर कहा, ‘‘वकील साहब, आप यह क्या कर रहे हैं? जमानत पर छूटते ही यह आदमी गायब हो जाएगा, आप ऐतराज करें.’’

इफ्तिखार अहमद ने झुंझला कर कहा, ‘‘आप लोग परेशान मत हों, ऐसा कुछ नहीं होगा. मुझे मेरा काम करने दें.’’

अरजी लगते ही बचाव पक्ष के वकील में जोश सा आ गया. अब वह अली भाई की जमानत के लिए तरह तरह की दलीलें देने लगा. परेशान हो कर जज ने कहा, ‘‘पहले जुर्म तय हो जाने दो, उस के बाद जमानत पर विचार किया जाएगा.’’

इस पर वकील ने ढिठाई से कहा, ‘‘जनाब, दोनों मामले साथसाथ भी तो चल सकते हैं.’’

जज ने इफ्तिखार अहमद से पूछा, ‘‘इस बारे में आप का क्या विचार है वकील साहब?’’

इफ्तिखार अहमद ने सकुचाते हुए कहा, ‘‘मेरे खयाल से वकील साहब ठीक ही कह रहे हैं.’’

जज ने खीझ कर कहा, ‘‘दोनों मामले साथसाथ कैसे चल सकते हैं? पहले छोटे मोटे कर्मचारियों पर आरोप लगा. दोबारा मामले की जांच कराई गई तो अली भाई और उन के साथी इस मामले में फंस गए. जब तक अपराध तय नहीं हो जाता, जमानत पर बात कैसे हो सकती है?’’

अली भाई के वकील ने बीमारी, उम्र, हैसियत, पिछला रिकौर्ड, सामाजिक कार्यों के उदाहरण दे कर उस ने जमानत की अरजी एक बार फिर जज के सामने पेश की तो जज ने इफ्तिखार अहमद से पूछा, ‘‘आप इस जमानत के लिए राजी हैं?’’

‘‘जी सर, मुलजिम की उम्र, बीमारी और हैसियत को देखते हुए मुझे इन की जमानत होने में कोई ऐतराज नहीं है, बल्कि समर्थन में मैं ने कुछ पौइंट्स लिख रखे हैं, जिन्हें मैं आप की खिदमत में पेश करना चाहता हूं.’’ इफ्तिखार अहमद ने सुकून से कहा.

‘‘इजाजत है, आप पेश कर सकते हैं.’’ जज ने कहा. इफ्तिखार अहमद ने मुकदमे की फाइल खोल कर जज के सामने रखते हुए कहा, ‘‘सर, ये कुछ पौइंट्स हैं, इन्हें देख कर यकीनन आप मेरी बात से सहमत हो जाएंगे कि मुलजिम की जमानत से मुकदमे पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा.’’

एक नजर इफ्तिखार अहमद पर डाल कर जज फाइल पढ़ने लगे. फाइल पढ़ते हुए उन का चेहरा भावशून्य रहा. इफ्तिखार अहमद, अली भाई का वकील और मुकदमा करने वालों की नजरें जज पर टिकी थीं कि वह क्या कहने वाले हैं.

फाइल पढ़ने के बाद जज ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘इफ्तिखार अहमद, आप के पौइंट्स काबिलेगौर हैं. अदालत इन्हीं पौइंट्स को ध्यान में रख कर जमानत की अरजी पर विचार करेगी.’’

इफ्तिखार अहमद के साथ बचाव पक्ष के वकील ने भी सुकून की सांस ली. सिर्फ मुकदमा करने वाले परेशान थे. अली भाई मुसकरा रहा था. उन का वकील जमानत के लिए दलीलें दे रहा था. इफ्तिखार अहमद ने एक बार भी ऐतराज नहीं किया.

करीब 12 बजे थोड़ी देर के लिए अदालत को स्थगित कर के जज अपने चैंबर में चले गए. मुकदमा पूरी तरह अली भाई के पक्ष में हो गया था. जज के आते ही मुकदमा करने वाले लोग इफ्तिखार अहमद के पास आ कर कहने लगे, ‘‘वकील साहब, आप यह क्या कर रहे हैं? लगता है, आप अली भाई से मिल गए है?’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. आप लोग बिलकुल चिंता न करें. अगर उसे जमानत मिल भी गई तो वह सजा से नहीं बच पाएगा.’’

जब वे लोग बहस करने लगे तो तबीयत खराब होने का बहाना कर के इफ्तिखार अहमद आगे बढ़ गए. वह उन्हें कैसे समझाते कि एक बच्ची की जिंदगी का सवाल है.

10 मिनट बाद ही जज आ कर अपनी सीट पर बैठ गए. आगे की काररवाही शुरू हुई. वकील सफाई ने जमानत की बात की तो जज ने सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘इस्तगासा वकील की ओर से ऐतराज न होने की वजह से अदालत अली भाई की जमानत की अरजी 50 करोड़ रुपए की निजी जमानत पर मंजूर करती है.’’

जमानत की बात सुन कर अली भाई और उन के वकील के चेहरे पर जो खुशी उभरी थी, 50 करोड़ रुपए की बात सुन कर लुप्त हो गई. वकील ने झट कहा, ‘‘सर, जमानत की रकम बहुत ज्यादा है.’’

‘‘कोई ज्यादा नहीं है. अली भाई की प्रौपर्टी, कंपनियां, शेयर्स वगैरह मिला कर 10 अरब से ज्यादा की संपत्ति है. उस पर 50 करोड़ रुपए की जमानत कोई ज्यादा नहीं है.’’ जज ने सोच समझ कर जवाब दिया.

‘‘सर, जमानत की रकम बहुत ज्यादा है. इस में कुछ समय लगेगा.’’ अली भाई के वकील ने बेबसी से कहा.

जज ने तुरंत कहा, ‘‘इस हालत में जमानत पर रिहाई अगली पेशी तक के लिए मुल्तवी की जा सकती है.’’

‘‘नहीं… नहीं सर, जमानत की रकम का बंदोबस्त जल्दी ही हो जाएगा.’’ वकील ने कहा.

‘‘जब तक जमानत की रकम जमा नहीं की जाती, मुलजिम अली भाई पुलिस की निगरानी में रहेगा. जमानत की रकम जमा होने के बाद ही उसे रिहा किया जाएगा.’’ कह जज साहब उठे और अपने चैंबर में चले गए.

इंसाफ की राह : किस की थी वो दुआ? – भाग 3

इफ्तिखार अहमद को लगा कि यह आदमी अदालत की काररवाही से अच्छी तरह वाकिफ है. इसे पता है कि अदालत में जज अच्छे वकीलों की बात का जल्दी विरोध नहीं करते. अगर दलीलें न दी जाएं तो केस कमजोर हो जाता है.

मगर इफ्तिखार अहमद वकील थे, उन्होंने तर्क जारी रखे, ‘‘इस तरह नहीं होता. अगर मैं दलीलें नहीं दूंगा तो खुद शक के घेरे में आ जाऊंगा. अगर मैं ने अली भाई के विरोध में दलीलें नहीं दीं तो जज समझ जाएगा कि मुझ पर दबाव डाला गया है. इस के बाद तो जमानत की उम्मीद और कम हो जाएगी. मेरी जरा भी लापरवाही पर जज को संदेह हो सकता है.’’

इफ्तिखार अहमद के इन तर्कों पर वह आदमी सोच में पड़ गया. इस के बाद उस ने कहा, ‘‘ठीक है, मैं तुम से थोड़ी देर बाद बात करता हूं. और हां, एक बात याद रखना, तुम्हारे ऊपर हमारी नजर रहेगी, किसी से बात करने की कोशिश मत करना.’’

‘‘ठीक है जी, मैं किसी से कोई बात नहीं करूंगा, क्योंकि मुझे अपनी बेटी दुनिया में सब से प्यारी है.’’

और फोन कट गया.

इफ्तिखार अहमद ऐसी जगह खड़े थे, जहां आसानी से उन पर नजर रखी जा सकती थी. पार्किंग में गाडि़यां आजा रही थीं, लोग भी आजा रहे थे. उन्होंने घड़ी देखी, साढ़े 9 बज रहे थे. उसी समय उन का अपना फोन बजा. उन्हें एक मुकदमा और देखना था, उसी मुवक्किल का था. लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया. वह उस के आदेश की अवहेलना भला कैसे कर सकते थे, बेटी की जिंदगी का सवाल था.

थोड़ी देर बाद भिखमंगे वाला फोन बजा. उन्होंने फोन रिसीव कर के कान से लगाया तो दूसरी ओर से कहा गया, ‘‘तुम्हें जो कहा गया है, तुम वही करना.’’

‘‘तुम ने जो कहा है, मैं वही करूंगा. अगर इस के बाद भी अली भाई की जमानत नहीं हुई तो…’’

‘‘किसी भी हालत में अली भाई की जमानत होनी चाहिए. उस के बाद ही तुम्हारी दुआ की जान बच सकती है. इस के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है,’’ उस ने सख्त लहजे में कहा, ‘‘और हां, किसी से फोन पर भी बात मत करना, वरना सजा तुम्हारी बेटी को मिलेगी.’’

इफ्तिखार अहमद ने झुंझला कर मोबाइल फोन बगल वाली सीट पर पटक दिया. उस आदमी की बातचीत का अंदाज बता रहा था कि वह पेशेवर मुजरिम है. वह काफी चालाक लग रहा था.

अली भाई के लोगों ने काफी सोचविचार कर योजना बनाई थी. अली भाई खुद सामने नहीं आया था. स्कूल से दुआ का अपहरण करने वाला भी सामने नहीं आया था. दुआ कहां और किस के पास है, उन की निगरानी कौन कर रहा है? इस का कुछ पता नहीं था. इफ्तिखार अहमद को लग रहा था कि जैसे उन के हाथपैर बांध कर उन्हें पानी में डाल दिया गया हो और उन से कहा जा रहा हो कि तैरो. वे लोग मुजरिम थे, लेकिन इस समय उन के जुर्म से ज्यादा अहम उन की मजबूरी थी.

मुकदमा बहुत महत्त्वपूर्ण था. अदालत ने मुजरिमों की सख्त निगरानी का आदेश दे रखा था. बख्तरबंद गाडि़यों में उन्हें लाया जाता था. उन्हें लाने ले जाने में पुलिस काफी सतर्क रहती थी. जब उन्होंने देखा कि अली भाई की जमानत का कोई उपाय नहीं है तो उन्होंने यह युक्ति अपनाई थी.

इफ्तिखार अहमद इस नए मसले को सुलझाने की कोई तरकीब सोच रहे थे. उन की चिंता यह थी कि दुनिया लाख गलत काम कर रही हो, लेकिन उन्हें अपनी ईमानदारी और पेशे की लाज रखनी है. आज पहली बार वह अपने उसूलों के खिलाफ कुछ करने जा रहे थे, क्योंकि वह काफी दबाव में थे.

10 बज गए थे. शीशे बंद होने की वजह से गरमी लग रही थी. वह खिड़की भी नहीं खोल सकते थे. उन्होंने इंजन स्टार्ट कर के एसी चला दिया और मुकदमे की फाइल खोल कर देखने लगे कि अली भाई का वकील जमानत के लिए क्या क्या दलीलें दे सकता है.

सब से मजबूत दलील अली भाई की हैसियत और दौलत थी. उस का कारोबार बाहर के मुल्कों तक फैला था. उस की कई कंपनियां थीं. वह करोड़ों का टैक्स अदा करता था. उस के नाम से कई अनाथाश्रम चलते थे. यह पहला मौका था, जब उस के ऊपर मुजरिम की हैसियत से मुकदमा चल रहा था. यह दलील भी दी जा सकती थी कि उस का नाम इसीएल में है, इसलिए वह देश छोड़ कर नहीं भाग सकता. इस के अलावा उसे चंदा लेने वालों की हमदर्दी भी हासिल थी.

एक बार फिर फोन बजा. इफ्तिखार अहमद ने फोन रिसीव किया तो उस आदमी ने हुक्म दिया, ‘‘अब तुम अदालत जा सकते हो. लेकिन न कहीं रुकोगे, न किसी से मिलोगे और न किसी से बात करोगे. अपने मिलने जुलने वालों से भी दूर रहोगे.’’

‘‘अगर कोई मिलने आ गया तो?’’

‘‘सिर्फ सलाम कर के व्यस्तता का बहाना बना कर आगे बढ़ जाओगे. याद रखना, हमारे आदमी तुम्हारे आसपास होंगे. कोई इशारा किया या बात की तो हमें फौरन पता चल जाएगा.’’

‘‘मैं कुछ नहीं करूंगा. अब मैं कार से बाहर निकल सकता हूं?’’

‘‘हां, अब तुम बाहर आ जाओ, लेकिन अपना मोबाइल फोन कार में ही छोड़ दो. हमारा दिया मोबाइल फोन वाइबे्रट पर लगा कर जेब में रख लो.’’

इफ्तिखार अहमद पौने 11 बजे अदालत पहुंचे. उस भीड़ में यह पता लगाना मुश्किल था कि उन पर कौन नजर रख रहा है. पुलिस अली भाई को अंदर ले आई. 70 साल की उम्र में भी वह पूरी तरह सेहतमंद थे. अपने वकील से बात करते समय उस ने इफ्तिखार अहमद की ओर देखा. उस के होठों पर तैरती हंसी और आंखों की चमक देख कर इफ्तिखार अहमद को समझते देर नहीं लगी कि यह सब कुछ उस के इशारे पर हुआ है.

इंसाफ की राह : किस की थी वो दुआ? – भाग 2

एडवोकेट इफ्तिखार अहमद बैड पर लेटे इंतजार कर रहे थे कि दुआ कब आ कर उन्हें उठाए. उन की सुबह दुआ के उठाने और रात बालों में अंगुलियां फेरने से होती थी. वह सोच ही रहे थे कि दुआ आ कर उन के सिरहाने बैठ गई. सोने का नाटक कर रहे इफ्तिखार अहमद ने उसे दबोच लिया.

दुआ ने हंसते हुए कहा, ‘‘नाश्ता तैयार है, आप जल्दी से फ्रैश हो कर आ जाइए.’’

इफ्तिखार अहमद नीचे आए तो बेटे उन से मिल कर स्कूल चले गए. वह दुआ के साथ बैठ कर उस से बातें करते हुए नाश्ता करने लगे. दुआ की वैन का हौर्न सुनाई दिया तो मदीहा उस का लंचबौक्स, बोतल और बैग ले कर वैन तक छोड़ने चली गई.

इफ्तिखार अहमद ने टीवी चालू किया तो अली भाई वाले मुकदमे से संबंधित खबरें आ रही थीं. मीडिया अली भाई को मानवता का दुश्मन बताते हुए समाज विरोधी घोषित कर रहा था. कहा जा रहा था कि यह लापरवाही से नहीं, बल्कि ऐसा जानबूझ कर किया गया था. इसलिए ऐसे आदमी को कतई जमानत नहीं मिलनी चाहिए. इसी के साथ इफ्तिखार अहमद की तारीफ करते हुए कहा जा रहा था कि वह किसी भी हालत में उस की जमानत नहीं होने देंगे.

इफ्तिखार अहमद ने खुदा का शुक्र अदा किया कि एक बार फिर मीडिया इस मामले में पूरी दिलचस्पी ले रहा है. दुआ को छोड़ कर आई मदीहा ने टीवी पर आ रही खबरों को देख कर मुकदमे की काररवाही के बारे में पूछा.

इफ्तिखार अहमद ने जो बताया, उसे सुन कर उस ने कहा, ‘‘अल्लाह करे, अली भाई की जमानत न हो. ऐसे लोगों को तो सरेआम फांसी पर चढ़ा देना चाहिए. और हां, आप कब तक वापस आ जाएंगे. दुआ को डाक्टर के यहां ले जाना है.’’

इफ्तिखार ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘शायद मुझे कुछ देर हो जाए, इसलिए तुम अनस के साथ डाक्टर के यहां चली जाना.’’

इफ्तिखार अहमद ने अली भाई के मुकदमे की फाइल निकाल कर एक बार फिर सारे पौइंट्स ध्यान से पढ़े. उन का पूरा ध्यान इस मुकदमे पर था. 9 बजे वह घर से निकल गए. सुबह के समय सड़क पर बहुत ज्यादा भीड़ होती थी. कोर्ट से पहले वाली लालबत्ती पर उन की कार रुकी तो भिखमंगों ने उन की कार को घेर लिया.

एक भिखमंगे ने कार का शीशा ठकठकाया. इफ्तिखार ने उस की ओर देख कर इशारे से मना कर दिया. लेकिन वह लगातार शीशा ठकठकाता रहा. उन्होंने दोबारा उस की ओर देखा तो उस ने अपनी हथेली उन के सामने कर दी. उस की हथेली पर काले स्केच से ‘दुआ’ लिखा था. इस के बाद उस ने एक पुराना मोबाइल फोन दिखाया तो इफ्तिखार अहमद ने शीशा खोल दिया.

भिखमंगे ने जल्दी से मोबाइल फोन इफ्तिखार अहमद की गोद में फेंक दिया और खुद भीड़ में गायब हो गया. उन्होंने उसे आवाज भी दी, लेकिन लौटने की कौन कहे, उस ने पलट कर भी नहीं देखा. उस के जाने के बाद उन्होंने मोबाइल उठाया तो उस की स्क्रीन पर भी ‘दुआ’ लिखा था.

इफ्तिखार अहमद परेशान हो उठे, दिमाग चकराने लगा. उसी समय हरी बत्ती हो गई. उन्होंने कार आगे बढ़ा दी. चंद मिनट बाद ही वह कोर्ट की पार्किंग में पहुंच गए. लेकिन उन का दिमाग ‘दुआ’ और ‘मोबाइल’ की गुत्थी में उलझा हुआ था.

मोबाइल भले ही पुराना था, लेकिन जानी मानी कंपनी का था. वह मोबाइल देख रहे थे कि तभी उस की घंटी बजने लगी. उन्होंने धड़कते दिल से फोन रिसीव किया तो दूसरी ओर से पूछा गया, ‘‘एडवोकेट इफ्तिखार अहमद?’’

‘‘जी बोल रहा हूं, यह कैसा मजाक है, मोबाइल फोन पर मेरी बेटी का नाम क्यों लिखा है?’’

दूसरी ओर से जवाब में कहा गया, ‘‘वकील साहब, यह मजाक नहीं, हकीकत है. तुम्हारी बेटी दुआ मेरे कब्जे में है.’’

इफ्तिखार अहमद को आघात सा लगा. पल भर के लिए उन का दिमाग सुन्न सा हो गया कि यह आदमी क्या कह रहा है? वह चीखे, ‘‘तुम्हारा दिमाग तो ठीक है, मेरी बेटी स्कूल गई है.’’

‘‘वह घर से स्कूल के लिए निकली जरूर थी, लेकिन पहुंची नहीं.’’

कांपती आवाज में इफ्तिखार अहमद ने कहा, ‘‘तुम झूठ बोल रहे हो.’’

‘‘तुम्हारे ऐसा कहने से हकीकत बदल नहीं जाएगी. हम ने उसे स्कूल के गेट के सामने से इतनी सफाई से उठा लिया है कि किसी को कानो कान खबर नहीं हुई.’’ फोन करने वाले ने बड़े ही रूखे लहजे में कहा.

इफ्तिखार की जान पर बन आई. उन का शरीर कांपने लगा. जल्दी ही खुद पर काबू पाते हुए उन्होंने कहा, ‘‘मेरे खयाल से तुम झूठ बोल रहे हो. अगर मेरी बेटी दुआ तुम्हारे पास है तो मेरी उस से बात कराओ.’’

‘‘जरूर करो,’’ उस आदमी ने कहा, ‘‘लो, अपने पापा से बात करो.’’

‘‘दुआ,’’ इफ्तेखार तड़प उठे. तभी दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘पापा, मुझे बचा लो. ये लोग मुझे पकड़ लाए हैं. पापा, मुझे आप के पास आना है.’’

बच्ची बुरी तरह से रो रही थी. इफ्तिखार अहमद की धड़कन रुक सी गई, लेकिन वह कुछ कहते, उस को पहले ही बच्ची से मोबाइल फोन ले लिया गया. इस के बाद उस आदमी ने कहा, ‘‘मेरे खयाल से अब तुम्हें तसल्ली हो गई होगी?’’

इफ्तिखार अहमद ने सूखे होठों पर जुबान फेरते हुए कहा, ‘‘तुम चाहते क्या हो?’’

उस आदमी ने हंसते हुए कहा, ‘‘अब विश्वास हो गया न कि तुम्हारी बेटी दुआ हमारे पास है.’’

‘‘जी…’’

‘‘और यह भी मानते हो कि हम इस के साथ कुछ भी कर सकते हैं, इसे मार भी सकते हैं?’’ उस ने मजाक उड़ाते हुए कहा.

‘‘जी. आगे बोलो, तुम चाहते क्या हो? काम की बात करो.’’

दूसरी ओर से कहा गया, ‘‘वकील साहब, काम की बात यह है कि आप अली भाई की जमानत का कोर्ट में विरोध नहीं करेंगे.’’

इफ्तिखार अहमद चौंके, ‘‘तुम अली भाई के आदमी हो?’’

‘‘तुम चाहो तो यही समझ लो. आज हर हालत में अली भाई को जमानत पर रिहा होना चाहिए.’’ दूसरी ओर से धमकी दी गई.

‘‘अगर ऐसा नहीं हो सका तो..?’’

‘‘तो यह तुम्हारी बच्ची के हक में अच्छा नहीं होगा. उस के टुकड़े कर के तुम्हें भेज दिए जाएंगे.’’ उस ने दांत पीसते हुए कहा.

‘‘पहली बात तो मामला अदालत में है, दूसरी बात जज अली भाई के खिलाफ है. मैं कोशिश न भी करूं, तब भी जमानत होना आसान नहीं है.’’ इफ्तिखार अहमद ने कहा.

‘‘मैं कुछ नहीं जानता. अगर आज जमानत नहीं हुई तो तुम अपनी बेटी को फिर कभी नहीं देख पाओगे.’’ उस आदमी ने चेतावनी दी.

‘‘खुदा के लिए मेरी बात सुनो, यह मेरे वश में नहीं है. अगर मैं अदालत में कोई भी दलील न दूं, तब भी मुझे नहीं लगता कि अली भाई की जमानत होगी. क्योंकि अदालत ने पहले से ही उन्हें जमानत न देने का मन बना लिया है. इसलिए मुझे नहीं लगता कि अली भाई की जमानत हो सकेगी.’’ इफ्तिखार अहमद बेबसी से गिड़गिड़ाए.

‘‘तुम्हें इस की चिंता करने की जरूरत नहीं है. अली भाई का वकील अपना काम करेगा. वह अदलत को कायल कर के अली भाई की जमानत मंजूर करा लेगा. तुम्हें उन के वकील का विरोध करने के बजाय समर्थन करना है. अगर तुम ने समर्थन कर दिया तो जज राजी हो जाएगा. जज तुम्हारा विरोध नहीं करेगा.’’

इंसाफ की राह : किस की थी वो दुआ? – भाग 1

आंख खुलते ही इफ्तिखार अहमद को किचन से आने वाली बच्चों की आवाजें सुनाई दीं. वे आवाजें खुशी से चहकने की थीं. बच्चे इस तरह चहक रहे थे, जैसे परिंदे रात खत्म होने पर सुबह का उजाला देख कर चहकते हैं. उन आवाजों में सब से प्यारी आवाज दुआ की थी.

दुआ इफ्तिखार अहमद की छोटी बेटी थी. बहुत ही प्यारी, एकदम बार्बी डौल जैसी. इफ्तिखार अहमद हाईकोर्ट के मशहूर और कामयाब वकील थे. उन के मुकदमा हाथ में लेते ही सामने वाला समझ लेता था कि वह मुकदमा हार चुका है. अदालत में उन के खड़े होते ही जज भी होशियार हो जाता. क्योंकि उन की दलीलें कानून की बेहतरीन मिसालें होती थीं और दुनिया भर के माने हुए कानूनी उदाहरण उन की बहस का हिस्सा होते थे.

आम लोग ही नहीं, उन के साथी वकील और जज भी उन्हें कानून का जिन्न कहते थे. लेकिन उन लोगों को पता नहीं था कि इस जिन्न की जान अपनी नन्ही सी बेटी दुआ में बसती है. वह दुनिया में अगर सब से ज्यादा किसी से मोहब्बत करते थे तो वह उन की बेटी दुआ थी. किसी से हार न मानने वाले इफ्तिखार अहमद नन्ही सी दुआ के सामने छोटी से छोटी बात पर घुटने टेक देते थे.

इफ्तिखार अहमद के 4 बच्चे थे, 3 बेटे और बेटी दुआ. बच्चों में वही सब से छोटी थी. 6 साल की दुआ का स्कूल में एक साल पहले ही दाखिला कराया गया था. इफ्तिखार अहमद अभी उस का दाखिला नहीं कराना चाहते थे, लेकिन उन की बीवी मदीहा, जो एक स्कूल में पढ़ाती थी, की जिद के आगे उन की एक न चली और नजदीक के एक स्कूल में उस का दाखिला करा दिया गया था.

लेकिन दुआ का दाखिला कराने से पहले इफ्तिखार अहमद ने खुद स्कूल जा कर प्रिंसिपल और वहां पढ़ाने वाली अध्यापिकाओं से मिल कर तसल्ली की थी. जब वहां की प्रिंसिपल और अध्यापिकाओं ने उन्हें तसल्ली कराई थी कि वे दुआ को संभाल लेंगी, इस के बाद ही उन्होंने वहां उस का नाम लिखाया था.

इफ्तिखार आंखें बंद किए उन आवाजों का मजा ले रहे थे. तभी उन्हें याद आया कि आज का दिन उन के लिए बहुत खास है. आज अली भाई के मुकदमे की तारीख थी और उस की जमानत पर सुनवाई होनी थी. अली भाई एक फार्मास्युटिकल कंपनी का मालिक था. कुछ महीने पहले उस की कंपनी की बनी एक दवा के इस्तेमाल से बीमारी और मौत का सिलसिला सा चल पड़ा था.

जांच और परीक्षण के बाद पता चला था कि उस दवा में एक कैमिकल की मात्रा जरूरत से कई गुना ज्यादा थी. वही मौत का कारण बन गया था. अली भाई पैसे वाला आदमी था. सरकार में बैठे लोगों तक उस की पहुंच थी. लोगों को दिखाने के लिए पुलिस ने काररवाई की और कंपनी के कुछ छोटेमोटे कर्मचारियों को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

लेकिन मीडिया इस से संतुष्ट नहीं हुआ और उस ने असलियत का पता लगा लिया. कंपनी के कैमिकल इंजीनियर का स्टिंग कर के पता कर लिया था कि इस मामले में गलती किस की थी. स्टिंग में कैमिकल इंजीनियर कह रहा था कि इस मामले में पूरी की पूरी गलती कंपनी के मालिक अली भाई की थी. उस ने उन से कहा था कि इस केमिकल की वजह से दवा फायदा पहुंचाने के बजाय खाने वाले को नुकसान पहुंचा सकती है. इसलिए इस का उपयोग करना ठीक नहीं होगा.

लेकिन कैमिकल और दवा इतनी ज्यादा बन चुकी थी कि अगर उसे बेकार किया जाता तो कंपनी को करोड़ों का नुकसान होता. इसलिए अली भाई ने कहा था कि दवा बना कर बाजार में भेजो, बाद में जो होगा, देखा जाएगा. दवा के इस्तेमाल से जब दर्जनों लोग मर गए तो मीडिया के शोर मचाने पर हाईकोर्ट ने उन्हीं खबरों के आधार पर खुद ही इस मामले को संज्ञान में लिया था.

इसीलिए इस मामले की पुलिस ने उल्टीसीधी जांच कर के छोटेमोटे कर्मचारियों को जेल भेज कर जो रिपोर्ट पेश की थी, उस पर कोर्ट को विश्वास नहीं हुआ था. पुलिस ने तो कंपनी के मालिक अली भाई को साफ बचा लिया था, लेकिन जब कैमिकल इंजीनियर का स्टिंग दिखाया गया तो कोर्ट ने उस रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर दिया और दूसरे एक ईमानदार पुलिस अधिकारी से मामले की जांच कराई.

इस जांच अधिकारी ने मेहनत लगन और ईमानदारी से मामले की नए सिरे से जांच शुरू की. लेकिन उस पर दबाव डाल कर जांच रुकवा दी गई. मीडिया ने होहल्ला मचाया तो जांच फिर से शुरू हुई. इस तरह रिपोर्ट आने में काफी समय लग गया.

इस दूसरी जांच की रिपोर्ट के अनुसार, जिस दवा से इतनी मौतें हुई थीं, उसे बनवाने और बाजार में भेजने की जिम्मेदारी अली भाई पर आ गई थी. उस के असर को जानते हुए भी उन्होंने दवा बना कर बाजार में भेजने का आदेश दिया था. सच्चाई सामने आने के बाद अदालत ने उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया था. अदालत के आदेश के बाद भी उन की गिरफ्तारी आसानी से नहीं हो सकी थी.

अली भाई के पास पैसों की कमी तो थी नहीं. उन्होंने अच्छे से अच्छे वकील किए. एक तरह से उन्होंने वकीलों की पूरी पैनल ही खड़ी कर दी थी. इन वकीलों ने सरकार को उस के पक्ष में करने के लिए पूरा जोर लगा दिया था. पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा था. जेल में उसे हर सुविधाओं वाला सेल मिला था. उन के लिए खाना भी घर से आता था. मोबाइल और इंटरनेट की सुविधा भी मिली थी.

दबाव की वजह से सरकारी वकील अली भाई वाले मुकदमे की पैरवी मन से नहीं कर रहा था. उस के रुख को देखते हुए यही लग रहा था कि वह अली भाई को सजा से बचाना चाहता है. उस के रवैए से यही लग रहा था कि जल्दी ही अली भाई को जमानत मिल जाएगी. कहा जा रहा था कि जमानत मिलते ही वह विदेश भाग जाएगा.

अली भाई को पूरा विश्वास था कि जो हालात चल रहे हैं, उसे जल्दी ही जमानत मिल जाएगी. लेकिन अचानक इस में एक बाधा खड़ी हो गई. जिन लोगों के घर वाले अली भाई की कंपनी की दवा खा कर मरे थे, उन्होंने सरकारी वकील पर अविश्वास जताते हुए अपने वकील के रूप में इफ्तिखार अहमद को अदालत में खड़ा कर दिया. सरकारी वकील के रवैए से अदालत भी संतुष्ट नहीं था. इसलिए इफ्तिखार अहमद को मुकदमे की पैरवी की इजाजत मिल गई.

एक हत्या ऐसी भी : कौन था मंजूर का कातिल?

इनाम : इश्तेहार ने कैसे बदली गफूर की जिंदगी?

गफूर मियां की हेयर कटिंग और ड्रेसिंग की दुकान थी. दुकान खोलने के बाद सफाई आदि कर के गफूर मियां  अखबार खोल कर बैठ गए. अखबार पढ़ते पढ़ते उन की नजर एक इश्तहार पर पड़ी, जिस में लिखा था, ‘3 लाख का नकद ईनाम उस आदमी के लिए जो रुस्तम बटेरी का पता बताए या उस की गिरफ्तारी में मदद करे. बताने वाले का नाम गुप्त रखा जाएगा.

‘रुस्तम का कद 6 फीट 4 इंच, चौड़ा सीना, चौकोर चेहरा, भूरे बाल, कहींकहीं सफेदी, उम्र करीब 40 साल, गोरा रंग, काली आंखें, मजबूत शरीर. 2 खास निशानियों में एक यह कि उस के बाएं हाथ का अंगूठा थोड़ा कटा हुआ है और दूसरी यह कि उस का एक दांत सोने का है. वह बातें बहुत होशियारी से करता है. बेहद चालाक और खतरनाक है. दाढ़ी हलकी और मूंछें घनी हैं (अब शायद कुछ बदलाव आ गया हो).’

पुलिस की ओर से यह इश्तहार अखबार में दिया गया था. इश्तहार पढ़ कर उन की आंखों में चमक आ गई. उस इश्तहार में उन्हें 3 लाख रुपए का ईनाम दिखाई दे रहा था. उस इश्तहार को 2 दिन में वह 10-12 बार पढ़ चुके थे. सुबह से ले कर रात 8 बजे तक उन की दुकान पर सिर्फ 4 ग्राहक ही आए थे.

वैसे गफूर मियां हेयर कटिंग और ड्रेसिंग में माहिर थे. लेकिन पिछले एक साल से उन का धंधा बहुत मंदा चल रहा था. इस की वजह उन की दुकान के ठीक सामने नया खुलने वाला दिलदार खां का दिलखुश सैलून था. उस सैलून में चमकदमक के साथ नईनई तरह की मशीनें थीं. वहां आधुनिक मसाज का भी इंतजाम था, इसलिए ग्राहक मुंहमांगे पैसे तो देते ही थे, साथ ही खुश हो कर जाते थे.

गफूर मियां भी चाह रहे थे कि वह भी अपनी दुकान को आधुनिक लुक दें, लेकिन उन के सामने समस्या पैसों की थी. इसलिए वह सोच रहे थे कि किसी तरह यह 3 लाख का ईनाम उन्हें मिल जाए.

रुस्तम बटेरी 3 हफ्तों से गायब था. उस ने बड़ी बेदर्दी से अपनी खाला का कत्ल कर के जेवर उड़ाए थे. पुलिस तमाम कोशिशों के बावजूद 3 हफ्ते बाद भी उस का पता नहीं लगा पाई थी. तब खाला के बेटे ने यह 3 लाख रुपए का ईनाम रखवाया था. उम्मीद यह भी थी कि कहीं रुस्तम मुल्क से बाहर न भाग गया हो.

गफूर मियां ने एक बार फिर अखबार में छपा वह इश्तहार पढ़ा और दुआ मांगी ‘या खुदा यह ईनाम किसी तरह मुझे दिलवा दे या फिर कुछ ग्राहक ही भेज दे, जिस से आमदनी का कोई जरिया तो बने.’

रात के 8 बज रहे थे. सर्दी भी बढ़ चुकी थी. गफूर मियां ने दिलखुश सैलून देखने के लिए दरवाजा खोला कि एक आदमी लंबा कोट पहने हुए उन से टकरा गया. टकराते ही वह आदमी गुर्राया, ‘‘बेवकूफ, इस ठंड के मौसम में क्यों मेरे हाथ का घूंसा खाना चाहता है.’’

वह लंबाचौड़ा आदमी यकीनन ग्राहक था, उस का रुख दुकान की तरफ था. गफूर मियां ने फौरन उस का कंधा पकड़ कर कहा, ‘‘आइए जनाब, अंदर तशरीफ लाइए हुजूर.’’

जोर लगा कर वह उसे अंदर ले आए और कुरसी पेश करते हुए बोले, ‘‘तशरीफ रखिए जनाब.’’

उस ने गुर्रा कर पूछा, ‘‘सैलून कितने बजे तक खुला रहेगा?’’

गफूर मियां ने मीठे लहजे में कहा, ‘‘जनाब, वेसे 10 बजे तक खुला रहता है पर आप चाहेंगे तो मैं देर तक आप की खिदमत कर सकता हूं.’’

ग्राहक ने इत्मीनान से कोट उतारा और चारों तरफ एक सतर्क नजर डाली और कुरसी पर बैठ कर बोला, ‘‘काम बढि़या होना चाहिए. कटिंग करो, बाल छोटे कर दो, दाढ़ी बिलकुल साफ कर दो. मूंछें हलकी करो और बाल डार्क ब्राउन रंग दो. और हां, मूंछों का कलर हलका ब्राउन रखना.’’

गफूर मियां ने ग्राहक की ओर देखा. क्या शानदार आदमी था. हुस्न और सेहत का बेजोड़ नमूना. वह बोले, ‘‘जनाब, काम बहुत अच्छा होगा. आप इत्मीनान से बैठें.’’ और फिर मुस्तैदी से वह अपने काम में लग गए.

पहले कटिंग शुरू की. उन्होंने देखा उस आदमी के बाल बहुत रूखे और मोटे थे. उन पर बड़े भौंडे अंदाज में उन पर लाल रंग चढ़ा हुआ था.

‘‘यह औरतें भी अजीब दिमाग की होती हैं. उन की पसंद और नापसंद का कुछ ठिकाना नहीं रहता.’’ अजनबी ग्राहक ने कहा.

गफूर मियां बात शुरू होने पर बहुत खुश हुए. उन के अंदर का नाई जाग उठा. वह मीठे लहजे में बोले, ‘‘जनाब, क्या बात हो गई?’’

‘‘बात क्या होनी है. मेरी मंगेतर को पहले लाल बाल पसंद थे, लेकिन अब जिद पकड़ ली है कि बालों को डार्क ब्राउन करा लो, बहुत अच्छे लगेंगे. हुक्म दिया कि दाढ़ी भी साफ करा लो. मूंछें हलकी कर के लाइट ब्राउन करा दो. अब तुम ही बताओ कि मेरी क्या मजाल है कि उस की बात टाल दूं.’’

‘‘अच्छा, यह आप की मंगेतर की फरमाइश है.’’ गफूर मियां मुसकराते हुए बोले, ‘‘आप ने अभी तक शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘अगले हफ्ते मेरा शादी का प्रोग्राम है.’’ वह बोला, ‘‘मैं 40 साल का हूं. कारोबार और दूसरी परेशानियों ने उम्र ज्यादा कर दी. वैसे मैं इस बात को मानता हूं कि शादी 40 साल के बाद ही करनी चाहिए. तुम बताओ, तुम्हारे कितने बच्चे हैं?’’

‘‘बच्चे नहीं जनाब, अभी तो बच्चों की मां ही नहीं आई है.’’

सुन कर वह चौंका, ‘‘तुम्हारी उम्र कितनी है?’’

‘‘जनाब, मैं 36 साल का हूं.’’ गफूर ने बताया.

‘‘पर लगते तो मुझ से भी बड़े हो?’’

‘‘क्या बताऊं जनाब, परेशानियों ने समय से पहले बूढ़ा बना दिया.’’

कटिंग खत्म हो चुकी थी. ग्राहक ने अंदाजा लगा लिया था कि नाई काफी तजुर्बेकार है और अपने काम में एक्सपर्ट है. उस ने बिलकुल उस के मनमाफिक कटिंग की थी. अब वह शेव की तैयारी कर रहा था.

‘‘अरे भाई, नाम क्या है तुम्हारा?’’ ग्राहक बोला.

‘‘जी, गफूर मियां.’’

‘‘अच्छा गफूर मियां, कोई अखबार हो तो दो पढ़ने को.’’

गफूर मियां ने सामने पड़ा अखबार उस की तरफ बढ़ाया. उस ने अपना बायां हाथ आगे बढ़ाया, तभी गफूर मियां को उस के हाथ का अंगूठा दिख गया जो आधा था. फिर अचानक ग्राहक ने फौरन सीधा हाथ बढ़ा कर अखबार छीन लिया. उस की नजर सब से पहले ईनाम वाले इश्तहार पर पड़ी.

‘पुलिस वालो, अपना वक्त बेकार कर रहे हो.’ वह आदमी बुदबुदाया. फिर बोला, ‘‘गफूर मियां, गोली मारो इस इश्तहार को. तुम अपना काम जल्द निपटाओ.’’

गफूर मियां ने शेविंग क्रीम लगाई और उस की दाढ़ी साफ करनी शुरू कर दी.

‘‘मियां इस धंधे में कितना कमा लेते हो?’’ उस ने पूछा.

‘‘बस जनाब, गुजारा हो जाता है.’’ गफूर ने जवाब दिया.

‘‘हा…हा…हा…’’ ग्राहक ने एक जोरदार ठहाका लगाया. तभी गफूर मियां ने आइने में उस के सोने के दांत की झलक देख ली.

यह देख कर वह खुश हो गया. सोचने लगा कि 3 लाख रुपए खुद मेरे पास चल कर आए हैं. पर उस मजबूत कदकाठी के शख्स पर काबू पाना नामुमकिन था. उस का तो एक मुक्का ही उस की गरदन तोड़ सकता था. आइने से ही 2 गहरी काली जालिम आंखें गफूर मियां को चेतावनी दे रही थीं.

वह जल्दीजल्दी अपना काम करने लगे. एक बार दिल में आया कि इसे यहां बिठा कर बाहर चला जाऊं और दरवाजा बंद कर दूं फिर पुलिस को बुला लूं. पर यह जालिम मुझे जाने दे, तब न. इस से बचना नामुमकिन है. अचानक गफूर मियां के दिल में एक खयाल आया. वह मुसकरा पड़े.

‘‘सामने वाले दिलखुश सैलून के बारे में तुम्हारा क्या खयाल है?’’ ग्राहक ने पूछा.

‘‘जनाब, कल का छोकरा है. हुनर हाथों में नहीं दिमाग में है. ग्राहकों को लूटता है. मसाज की आड़ में बेशर्मी होती है वहां.’’

‘‘यह काम तुम भी शुरू कर दो.’’

‘‘तौबातौबा हुजूर, मैं ऐसे कामों से दूर भागता हूं. वैसे भी पैसे की कमी है सरकार. अगर कुछ रकम मिल जाए तो दुकान की डेकोरेशन कराऊंगा और उस बदमाश दिलदार के आधे ग्राहक तो तोड़ ही लूंगा. आप को मालूम है जनाब, यह जो डाई आप के बालों में लगाऊंगा, मैं ने तैयार की है. केमिस्ट्री के एक होनहार स्टूडेंट से मेरी दोस्ती हो गई थी. उस के मशविरे पर मैं ने यह डाई बनाई है. यह स्किन को जरा भी नुकसान नहीं पहुंचाती और काफी दिनों तक बनी रहती है.’’ गफूर मियां ने डाई की शीशी दिखाते हुए कहा.

डाई करने से पहले बालों को सूखा करने में करीब 11 बज गए. सामने वाले दिलदार का सैलून भी बंद हो चुका था. डाई लगाने के बाद ग्राहक ने पैसे पूछे. गफूर मियां ने 75 रुपए बताए. ग्राहक ने सौ का नोट दिया. इस के बाद वह बाकी पैसे लिए बिना ही दुकान से निकल गया.

सड़क सुनसान हो चुकी थी. गफूर मियां ने जल्दीजल्दी सामान समेटा और दुकान बंद की. वह सीधे थाने जा पहुंचे. वहां उन्होंने सीनियर इंसपेक्टर अकरम अली से मिलने की गुजारिश की, जो इस केस को देख रहे थे.

गफूर ने अकरम अली से रिक्वेस्ट की कि अगर आप मेरी बात पर अमल करें तो कल आप रुस्तम बटेरी को गिरफ्तार कर सकते हैं.

अकरम अली ने उलझ कर पूछा, ‘‘कल क्या कोई चमत्कार हो जाएगा कि मैं रुस्तम को पकड़ लूंगा.’’

‘‘हुजूर, एक बार मेरी बात तसल्ली से सुन तो लीजिए. कल सुबह 9 बजे 2-3 सिपाहियों के साथ मेरे सैलून पर आ जाइए और आप का मुलजिम आप के हाथों में होगा.’’

पहले तो अकरम अली ने गफूर को टालना चाहा पर गफूर मियां की आवाज में बेहद यकीन था और आंखों में विनती थी. गफूर मियां ने फिर हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘हुजूर, कल सुबह आप लोग सादे कपड़ों में मेरे सैलून के आसपास जरूर रहें.यह मेरी गुजारिश है. मैं इस बात का यकीन दिलाता हूं कि अगर आप नाउम्मीद हुए तो आप मुझे जेल में बंद कर देना.’’

‘‘गफूर मियां, तुम सारी बात खुल कर क्यों नहीं बता रहे हो? क्या आज रुस्तम तुम्हारी दुकान से बनठन कर चला गया और अब वह सवेरे तुम्हें टिप देने आएगा?’’

‘‘सर आप को यह सुबह पता चल जाएगा. मेरी इतनी दरख्वास्त मान लीजिए.’’

अकरम अली को गफूर मियां की बेचारगी पर रहम आ गया. उन्होंने उस से वादा कर लिया कि कल सुबह ठीक 9 बजे 2 सिपाहियों के साथ उस के सैलून के आसपास मौजूद रहेंगे.

रात भर गफूर मियां को ख्वाब में 3 लाख रुपए दिखते रहे. सवेरे जल्दी उठ कर तैयारी के बाद वह दुकान पहुंच गए और इंतजार शुरू कर दिया.

ठीक 9 बजे अकरम अली 2 सिपाहियों के साथ सादे कपड़ों में उन की दुकान के आसपास मंडराने लगे. इंतजार करतेकरते 10 बज गए पर रुस्तम नहीं आया. अब गफूर मियां को घबराहट होने लगी. ठीक साढ़े 10 बजे सैलून के बाहर एक टैक्सी रुकी और आंधीतूफान की तरह रात वाला ग्राहक अंदर दाखिल हुआ. उस ने काले रंग का चश्मा लगा रखा था. चेहरा भी ढका हुआ था.

अंदर पहुंचते ही वह गफूर मियां पर टूट पड़ा, ‘‘उल्लू के पट्ठे, कमीनेकुत्ते…’’ कहते हुए उस ने उस की गरदन पकड़ ली.

उसी वक्त सीनियर इंसपेक्टर अकरम अली और सिपाही अंदर आ गए. थोड़ी हाथापाई के बाद पिस्तौल के बल पर उसे काबू कर लिया गया. इस हाथापाई में उस का चश्मा और सिर से टोपी भी गिर गई.

कुछ राहगीर भी अंदर आ गए. सारे लोग सूरतेहाल देख कर हंस रहे थे क्योंकि रुस्तम बटेरी के बाल डार्क ब्राउन और मूंछें हरे रंग से रंगी हुई थीं. यूं लग रहा था जैसे कोई तोता इंसान बन गया हो.

अकरम अली ने गफूर मियां की पीठ थपथपाते हुए कहा, ‘‘मुबारक हो, तुम्हें 3 लाख रुपए का ईनाम मिल गया. तुम ने एक खतरनाक मुलजिम को पकड़वाया. आखिर यह सब कैसे हुआ?’’

‘‘जनाब मैं ने अपनी नई बनाई हुई डाई इस्तेमाल की थी. उस की खास बात यह है कि यह 6-7 घंटे तो ब्राउन रंग की रहती है फिर अपने ओरिजिनल कलर यानी गहरी हरी हो जाती है. यह कलर डाई मैं ने खासतौर से रंगीनमिजाज नौजवानों के लिए तैयार की है, जिन्हें रंगबिरंगे बाल पसंद होते हैं.

‘‘मुझे पक्का यकीन था कि रुस्तम सवेरे जब अपने हरे बाल देखेगा तो सीधा मेरी दुकान पर मेरी पिटाई करने के लिए जरूर पहुंचेगा, इसलिए सुबह तो उस को आना ही था. तभी तो मैं ने आप से गुजारिश की थी कि आप मेरी दुकान पर आएं.’’

गफूर मियां के कारनामे ने उन्हें रातोंरात इतना मशहूर कर दिया कि उन की दुकान पर खूब भीड़ रहने लगी. उन के दिन फिर गए और 3 लाख रुपए का ईनाम भी मिल गया.

एक हत्या ऐसी भी : कौन था मंजूर का कातिल? – भाग 5

मैं 2 घंटे बाद अपने औफिस आया, गामे शाह अभी नहीं आया था. आमना आ चुकी थी. मैं ने उस से कहा, ‘‘आमना, मेरे दिल में तुम्हारे लिए हमदर्दी पैदा हो गई थी, लेकिन तुम ने सच फिर भी नहीं बोला और कहा कि पता नहीं मंजूर कहां गया था. जबकि तुम ने ही उसे रशीद के पास भेजा था.’’

आमना की हालत रशीद की तरह हो गई. मैं ने उस का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘आमना, अब भी समय है. सच बता दो. मैं मामले को गोल कर दूंगा.’’

‘‘अब यह बताओ, तुम्हारा पति अपने दुश्मन के पास गया था, वह सारी रात वापस नहीं लौटा. क्या तुम ने पता करने की कोशिश की कि वह कहां गया है और क्या रशीद ने उस की हत्या कर के कहीं फेंक न दिया हो?’’

आमना का चेहरा लाश की तरह सफेद पड़ गया. मैं ने उस से 2-3 बार कहा लेकिन उस ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘‘तुम कयूम को बुला कर उस से कह सकती थी कि मंजूर बाग में गया है और वापस नहीं आया. वह उसे जा कर देखे.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया?’’

मुझे उस की हालत देख कर ऐसा लगा जैसे उस का दम निकल जाएगा.

‘‘तुम ने मंजूर को सलाह दी थी कि वह शाम को बाग में जाए. उस की हत्या के लिए तुम ने रास्ते में एक आदमी बिठा रखा था ताकि जब वह लौटे तो वह मंजूर की हत्या कर दे. वह आदमी था कयूम.’’

वह चीख पड़ी, ‘‘नहीं…नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं है.’’

‘‘क्या रशीद ने उस की हत्या की है?’’

‘‘नहीं…’’ यह कह कर वह चौंक पड़ी.

कुछ देर चुप रही. फिर बोली, ‘‘मैं घर पर थी, मुझे क्या पता उस की हत्या किस ने की?’’

‘‘मेरी एक बात सुनो आमना,’’ मैं ने उस से प्यार से कहा, ‘‘मुझे तुम से हमदर्दी है. तुम औरत हो, अच्छे परिवार की हो. मैं तुम्हारी इज्जत का पूरा खयाल रखूंगा. मुझे पता है कि हत्या तुम ने नहीं की है. आज का दिन मैं तुम्हें अलग किए देता हूं. खूब सोच लो और मुझे सच सच बता दो. तुम्हें इस केस में बिलकुल अलग कर दूंगा. तुम्हें गवाही में भी नहीं बुलाऊंगा.’’

उस की हालत पतली हो चुकी थी. उस ने मेरी किसी बात का भी जवाब नहीं दिया. मैं ने कांस्टेबल को बुला कर कहा, इस बीबी को अंदर ले जाओ और बहुत आदर से बिठाओ. किसी बात की कमी नहीं आने देना. पुलिस वाले इशारा समझते थे कि उस औरत को हिरासत में रखना है.

गामे शाह आ गया. मेरा अनुभव कहता था कि हत्या उस ने नहीं की है. लेकिन हत्या के समय वह कुल्हाड़ी ले कर कहां गया था? मैं ने उसे अंदर बुला कर पूछा कि कुल्हाड़ी ले कर कहां गया था.

उस ने एक गांव का नाम ले कर बताया कि वह वहां अपने एक चेले के पास गया था. मैं ने एक कांस्टेबल को बुलाया और गामे शाह के चेले का और गांव का नाम बता कर कहा कि वह उस आदमी को ले कर आ जाए.

‘‘जरा ठहरना हुजूर, मैं उस गांव नहीं गया था. बात कुछ और थी.’’ उस ने कहा.

वह बेंच पर बैठा था. मैं औफिस में टहल रहा था. मैं ने उस के मुंह पर उलटा हाथ मारा और सीधे हाथ से थप्पड़ जड़ दिया. वह बेंच से नीचे गिर गया और हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया.

असल बात उस ने यह बताई कि वह उस गांव की एक औरत से मिलने गया था, जिसे उस से गांव से बाहर मिलना था. कुल्हाड़ी वह अपनी सुरक्षा के लिए ले गया था. अब हुजूर का काम है, उस औरत को यहां बुला लें या उस से किसी और तरह से पूछ लें. मैं उस का नाम बताए देता हूं. किसी की हत्या कर के मैं अपने कारोबार पर लात थोड़े ही मारूंगा.

दिन का पिछला पहर था. मैं यह सोच रहा था कि आमना को बुलाऊं, इतने में एक आदमी तेजी से आंधी की तरह आया और कुरसी पर गिर गया. वह मेज पर हाथ मार कर बोला, ‘‘आमना को हवालात से बाहर निकालो और मुझे बंद कर दो. यह हत्या मैं ने की है.’’

वह कयूम था.

वह खुशी और कामयाबी का ऐसा धचका था, जैसे कयूम ने मेरे सिर पर एक डंडा मारा हो. यकीन करें, मुझ जैसा कठोर दिल आदमी भी कांप कर रह गया.

मैं ने कहा, ‘‘कयूम भाई, थोड़ा आराम कर लो. तुम गांव से दौड़े हुए आए हो.’’

उस ने कहा, ‘‘नहीं, मैं घोड़ी पर आया हूं, मेरी घोड़ी सरपट दौड़ी है. तुम आमना को छोड़ दो.’’

वह और कोई बात न तो सुन रहा था और न कर रहा था. मैं ने प्यार मोहब्बत की बातें कर के उस से काम की बातें निकलवाई. पता यह चला कि मैं ने आमना को जब हिरासत में बिठाया था तो किसी कांस्टेबल ने गांव वालों से कह दिया था कि आमना ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है और उसे गिरफ्तार कर लिया गया है. गांव का कोई आदमी आमना के घर पहुंचा और आमना के पकड़े जाने की सूचना दी. कयूम तुरंत घोड़ी पर बैठ कर थाने आ गया.

‘‘कयूम भाई, अगर अपने होश में हो तो अकल की बात करो.’’

उस ने कहा, ‘‘मैं पागल नहीं हूं, मुझे लोगों ने पागल बना रखा है. आप मेरी बात सुनें और आमना को छोड़ दें. मुझे गिरफ्तार कर लें.’’

कयूम के अपराध स्वीकार करने की कहानी बहुत लंबी है. कुछ पहले सुना चुका हूं और कुछ अब सुना रहा हूं. मंजूर रशीद से बहुत तंग आ चुका था. वह गुस्सा अपने अंदर रोके हुए था. एक दिन आमना ने कयूम से कहा कि रशीद की हत्या करनी है. उसे खूब भड़काया और कहा कि अगर रशीद की हत्या नहीं हुई तो वह मंजूर की हत्या कर देगा.

कयूम आमना के इशारों पर नाचता था. वह तैयार हो गया. मंजूर से बात हुई तो योजना यह बनी कि रशीद बाग से शाम होने से कुछ देर पहले घर आता है. अगर वह रात को आए तो रास्ते में उस की हत्या की जा सकती है. उस का तरीका यह सोचा गया कि मंजूर रशीद के बाग में जा कर नाटक खेले कि वह दुश्मनी खत्म करने आया है और उसे बातों में इतनी देर कर दे कि रात हो जाए. कयूम रास्ते में टीलों के इलाके में छिप कर बैठ जाएगा और जैसे ही रशीद गुजरेगा तो कयूम उस पर कुल्हाड़ी से वार कर देगा.

यह योजना बना कर ही मंजूर रशीद के पास बाग में गया था. कयूम जा कर छिप गया. अंधेरा बहुत हो गया था. एक आदमी वहां से गुजरा, जहां कयूम छिपा हुआ था. अंधेरे में सूरत तो पहचानी नहीं जा सकती थी, कदकाठी रशीद जैसी थी.

कयूम ने कुल्हाड़ी का पहला वार गरदन पर किया. वह आदमी झुका, कयूम ने दूसरा वार उस के सिर पर किया और वह गिर कर तड़पने लगा.

कयूम को अंदाजा था कि वह जल्दी ही मर जाएगा, क्योंकि उस के दोनों वार बहुत जोरदार थे. पहले वह साथ वाले बरसाती नाले में गया और कुल्हाड़ी धोई. फिर उस पर रेत मली. फिर उसे धोया और मंजूर के घर चला गया.

वहां उस ने अपने कपड़े देखे, कमीज पर खून के कुछ धब्बे थे जो आमना ने तुरंत धो डाले. कुल्हाड़ी मंजूर की थी. आमना और कयूम बहुत खुश थे कि उन्होंने दुश्मन को मार गिराया.

उस समय तक तो मंजूर को वापस आ जाना चाहिए था. तय यह हुआ था कि मंजूर दूसरे रास्ते से घर आएगा. वह अभी तक घर नहीं पहुंचा था. 2-3 घंटे बीत गए. तब आमना ने कयूम से पूछा कि उस ने रशीद को पहचान कर ही हमला किया था. उस ने कहा कि वहां से तो रशीद को ही आना था, ऐसी कोई बात नहीं है कि वह गलती से किसी और को मार आया हो.

जब और समय हो गया तो उस ने कयूम से कहा कि जा कर देखो गलती से किसी और को न मारा हो. वह माचिस ले कर चल पड़ा. जा कर उस का चेहरा देखा तो वह मंजूर ही था.

कयूम दौड़ता हुआ आमना के पास पहुंचा और उसे बताया कि गलती से मंजूर मारा गया. आमना का जो हाल होना था वह हुआ, लेकिन उस ने कयूम को बचाने की तरकीब सोच ली.

उस ने कयूम से कहा कि वह अपने घर चला जाए और बिलकुल चुप रहे. लोगों को पता ही है कि रशीद की मंजूर से गहरी दुश्मनी है. मैं भी अपने बयान में यही कहूंगी कि मंजूर को रशीद ने ही मारा है.

कयूम को गिरफ्तार कर के मैं ने आमना को बुलाया और उसे कयूम का बयान सुनाया. कुछ बहस के बाद उस ने भी बयान दे दिया.

उन्होंने जो योजना बनाई थी, वह विफल हो गई. आमना का सुहाग लुट गया. लेकिन उस ने इतने बड़े दुख में भी कयूम को बचाने की योजना बनाई. मंजूर को लगा था कि वह रशीद की इस तरह से हत्या कराएगा तो किसी को पता नहीं चलेगा कि हत्यारा कौन है.

मैं ने आमना और कयूम के बयान को ध्यान से देखा तो पाया कि आमना ने पति की मौत के दुख के बावजूद अपने दिमाग को दुरुस्त रखा और मुझे गुमराह किया. कयूम को लोग पागल समझते थे, लेकिन उस ने कितनी होशियारी से झूठ बोला.

मैं ने हत्या का मुकदमा कायम किया. कयूम ने मजिस्ट्रैट के सामने अपराध स्वीकार कर लिया. मैं ने आमना को गिरफ्तार नहीं किया था और कयूम से कहा था कि आमना का नाम न ले. यह कहे कि उसे मंजूर ने हत्या करने पर उकसाया था. कयूम को सेशन से आजीवन कारावास की सजा हुई, लेकिन हाईकोर्ट ने उसे शक का लाभ दे कर बरी कर दिया.