जिंदगी के रंग निराले : कुदरत का बदला या धोखे की सजा? – भाग 1

मेरा नाम शमशेर है. जो बात मैं बताने जा रहा हूं वह 35-40 साल पुरानी है. मेरा बाप तांगा चलाता था. इस काम में हमारी अच्छे से गुजरबसर  हो जाती थी. जब मैं 11-12 साल का था, मेरा बाप एक एक्सीडेंट में चल बसा. मां ने तांगा घोड़ा किराए पर चलाने को दे दिया. वह बड़ी मेहनती औरत थी और घर में बैठ कर सिलाई का काम करती थी. इस तरह हमारी जिंदगी की गाड़ी चलने लगी.

मां मुझे पढ़ाना चाहती थी. पर मेरा पढ़ाई में जरा भी मन नहीं लगता था. वैसे मुझे अंगरेजी जरूर अच्छी लगती थी. अंगरेजी को मैं बड़े ध्यान से पढ़ता और सीखता था. इसी वजह से 9वीं क्लास में मैं अंगरेजी के अलावा सारे विषयों में फेल हो गया.

फेल होने के बाद स्कूल से मेरा मन एकदम उचाट हो गया था. मैं ने पढ़ाई छोड़ दी. उन्हीं दिनों मेरी दोस्ती गलत किस्म के कुछ युवकों से हो गई. दोस्तों के साथ रह कर मुझे कई तरह के ऐब लग गए. सिगरेट पीना, ताश खेलना, होटलों में जाना मेरी आदतों में शामिल हो गया. इस के लिए पैसे की जरूरत होती थी. पैसे के लिए मैं दोस्तों के साथ मिल कर हाथ की सफाई भी करने लगा.

इस में कोई दो राय नहीं कि बुराई शैतान की आंत की तरह होती है. एक बार शुरू हो जाए तो रुकना आसान नहीं होता. मां ने मुझे फिर से स्कूल भेजने की बहुत कोशिश की पर गुनाह की आदत ने मुझे पीछे नहीं लौटने दिया.

धीरेधीरे मैं जुए में माहिर हो गया. मेरे पास पैसे की रेलपेल होने लगी. ताश के पत्ते मेरे हाथ में आते ही जैसे मेरे गुलाम हो जाते थे. मेरी चालाकी ने मुझे जीतने का हुनर सिखा दिया था. जीतने की कूवत ने मेरी मांग भी बढ़ा दी और शोहरत भी. अब बाहर की पार्टियां भी मुझे बुला कर जुआ खिलवाने लगीं. इस काम में मुझे अच्छाखासा पैसा मिल जाता था. जिंदगी ऐश से गुजर रही थी.

देखतेदेखते मैं 23 साल का गबरू जवान बन गया. मेरी मां से मेरी बरबादी बरदाश्त न हुई और एक दिन वह सारे दुखों से निजात पा गई. मां की मौत के बाद मुझे कोई रोकने टोकने वाला नहीं था. जुए की महारत ने जहां कई दोस्त बनाए वहीं बहुत से दुश्मन भी बन गए. दोस्त तो पैसे के यार होते हैं. मैं ने ऐसे ही दोस्तों के साथ छोटा सा एक गिरोह बना लिया ताकि दुश्मनों से निपटा जा सके. हम लोग अपने पास चाकू कट्टे भी रखने लगे.

एक दिन मैं जुआखाने में एक बड़े गिरोह के सूरमा के साथ जुआ खेल रहा था. शुरू में वह जीतता रहा फिर अचानक बाजी पलट गई. मैं लगातार जीतने लगा,  नोटों का ढेर बढ़ता गया. यह देख उस के साथी गाली गलोच पर उतर आए. गुस्से में मैं ने खेल रोक कर जैसे ही नोट समेटने चाहे उन लोगों के हाथों में चाकू और पिस्तौल चमकने लगे. मेरे साथियों ने भी हथियार निकाल लिए. गोलियों चलने लगीं.

उसी दौरान एक गोली मेरे बाजू से रगड़ती हुई निकल गई. इस से मुझ पर जुनून सा तारी हो गया. हम 4 लोग थे और वो 7-8. दोनों तरफ से घमासान शुरू हो गया. 3 लोग जमीन पर गिर कर तड़पने लगे. दूसरे लोग चीखतेचिल्लाते हुए बाहर भागे. मैं और मेरे साथी भी सारे नोट समेट कर वहां से भाग लिए. अंधेरे ने हमारा साथ दिया. पीछे से पकड़ो पकड़ो की आवाजों के साथ गोलियां चल रही थीं. भागते भागते मेरा एक साथी भी चीख कर ढेर हो गया.

मैं ने जल्दी से रास्ता बदला और एक तंग गली से होता हुआ एक टूटीफूटी वीरान बिल्डिंग के जीने के नीचे दुबक गया. मेरे साथी पता नहीं किधर निकल गए. मैं घंटों वहां बैठा रहा. रात का गहरा सन्नाटा फैल चुका था. कहीं कोई आहट नहीं थी. मैं छिपते छिपाते घर पहुंचा और अपना घोड़ा ले कर एक अनजानी दिशा की तरफ बढ़ गया.

मैं मौत के मुंह से निकला था और बुरी तरह घबराया हुआ था. जुए से कमाए पैसे मैं ने घर के अंदर कपड़ों में छिपा कर रख रखे थे. मुझ में इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि उन पैसों को ले आता. अभी तक मैं ने चोरी, लूट और जुआ जैसी छोटीछोटी वारदातें की थीं. मेरे हाथों कत्ल पहली बार हुआ था. मैं ने अपराध भले ही किए थे, लेकिन अभी तक मेरे अंदर का इंसान मरा नहीं था. मेरे हाथों किसी की जान गई है, यह अहसास मुझे मन ही मन विचलित कर रहा था.

मुझे ये पता नहीं था कि मेरे हाथों से कितने लोग मरे हैं, पर मेरा निशाना चूंकि अच्छा था इसलिए मुझे लग रहा था कि कत्ल मेरे हाथों ही हुआ होगा. एक मरे या दो, गुनाह तो गुनाह है और इस गुनाह की सजा मौत है. अगर मैं पुलिस के हाथ लग जाता तो वह मेरी एक नहीं सुनती क्योंकि पुलिस में भी मेरा रिकौर्ड खराब था.

जुए में जीतने की मेरी शोहरत की वजह से मेरे दुश्मनों की कमी नहीं थी. निस्संदेह वे मेरे खिलाफ गवाही दे कर मेरी मौत का सामान कर देते और अगर मैं इत्तफाक से सूरमा के गिरोह के हाथ लग जाता तो वे लोग मेरे टुकड़ेटुकड़े करने में जरा भी देर नहीं लगाते क्योंकि उन के 3-4 आदमी मरे थे.

मुझे जल्द से जल्द वहां से बहुत दूर चले जाना था इसलिए मैं ने जंगल का सुनसान रास्ता पकड़ा. पता नहीं मैं कब तक घोड़ा दौड़ाता रहा. जब घोड़े ने थक कर आगे बढ़ने से इनकार कर दिया और मैं भी भूखप्यास और थकान से पस्त हो गया तो एक साफ जगह देख कर रुक गया. तब तक दिन का उजाला फैलने लगा था. मैं ने घोड़े को एक पेड़ से बांधा और उसी पेड़ के नीचे लेट गया.

जिस वक्त सूरज की तेज तपिश से मेरी आंखें खुलीं तब तक दिन काफी चढ़ आया था. घोड़ा भी आसपास की घासपत्ती खा कर ताजादम हो गया था.

मैं ने पानी की तलाश में आसपास नजर दौड़ाई, लेकिन दूरदूर तक छितराए पेड़ों और झाडि़यों के अलावा कुछ नजर नहीं आया. वह पूरा इलाका सूखा बंजर सा था. मजबूरन मैं ने फिर से अपना सफर शुरू कर दिया. मैं जानबूझ कर बस्तियों से बच कर चल रहा था इसलिए कोई कस्बा या शहर भी रास्ते में नहीं आया. दोपहर तक भूख ने मेरी हालत खराब कर दी. इस के बावजूद मैं किसी ऐसी जगह पहुंच कर रुकना चाहता था जहां मेरे दुश्मन मुझ तक न पहुंच सकें. अब तक मैं काफी दूर निकल आया था. इसलिए जंगल का रास्ता छोड़ कर मैं सड़क पर आ गया.

भूखप्यास बरदाश्त से बाहर होती जा रही थी. मुझे लग रहा था कि अगर कुछ देर और दानापानी नहीं मिला तो घोड़ा भी नहीं चल पाएगा. मैं ने लस्तपस्त हो कर अपना सिर घोड़े की पीठ पर रख दिया और सोचने लगा कि पता नहीं जिंदगी मिलेगी या मौत. घोड़ा धीमी गति से चलता रहा. कुछ देर बाद मैं ने भूख और धूप से चकराया हुआ अपना सिर उठाया तो सामने एक फार्म हाउस देख कर आंखों पर यकीन नहीं हुआ.

फिर क्यों? : दीपिका की बदकिस्मती – भाग 3

तुषार ने 4-5 दिनों में पेपर तैयार कर के दीपिका को दिए तो वह धर्मसंकट में पड़ गई कि सिग्नेचर करूं या न करूं. इसी उधेड़बुन में 3 दिन बीत गए तो घर में झाड़ूपोंछा लगाने वाली सरोजनी अचानक उस से बोली, ‘‘मेमसाहब, सुना है कि आप बैंक से लोन ले कर तुषार बाबू को देंगी?’’

‘‘तुम्हें किस ने बताया?’’ दीपिका ने हैरत से पूछा.

‘‘कल आप के घर से काम कर के जा रही थी तो बरामदे में तुषार बाबू और उस की मां के बीच हुई बात सुनी थी. तुषार बाबू कह रहे थे, ‘चिंता मत करो मां. लोन ले कर दीपिका रुपए मुझे दे देगी तो उसे घर में रहने नहीं दूंगा. उस पर तरहतरह के इल्जाम लगा कर घर से बाहर कर दूंगा.’’

सरोजनी चुप हो गई तो दीपिका को लगा उस के दिल की धड़कन बंद हो जाएगी. पर जल्दी ही उस ने अपने आप को संभाल लिया. सरोजनी को डांटते हुए कहा, ‘‘बकवास बंद करो.’’

सरोजनी डांट खा कर पल दो पल तो चुप रही. फिर बोली, ‘‘कुछ दिन पहले मेरे बेटे की तबीयत बहुत खराब हुई थी तो आप ने रुपए से मेरी बहुत मदद की थी. इसीलिए मैं ने कल जो कुछ भी सुना था, आप को बता दिया.’’

वह फिर बोली, ‘‘मेमसाहब, तुषार बाबू से सावधान रहिएगा. वह अच्छे इंसान नहीं हैं. उन की नजर हमेशा अमीर लड़कियों पर रहती थी. उन्होंने आप से शादी क्यों की, मेरी समझ से बाहर की बात है. इस में भी जरूर उन का कोई न कोई मकसद होगा.’’

शक घर कर गया तो दीपिका ने अपने मौसेरे भाई सुधीर से तुषार की सच्चाई का पता लगाने का फैसला किया. सुधीर पुलिस इंसपेक्टर था. सुधीर ने 10 दिन में ही तुषार की जन्मकुंडली खंगाल कर दीपिका के सामने रख दी.

पता चला कि तुषार आवारा किस्म का था. प्राइवेट जौब से वह जो कुछ कमाता था, अपने कपड़ों और शौक पर खर्च कर देता था. वह आकर्षक तो था ही, खुद को ग्रैजुएट बताता था. अमीर घर की लड़कियों को अपने जाल में फांस कर उन से पैसे ऐंठना वह अच्छी तरह जानता था.

दीपिका को यह भी पता चल चुका था कि उस से 50 लाख रुपए ऐंठने का प्लान तुषार ने अपनी मां के साथ मिल कर बनाया था.  मां ऐसी लालची थी कि पैसों के लिए कुछ भी कर सकती थी. उस ने तुषार को दीपिका से शादी करने की इजाजत इसलिए दी थी कि तुषार ने उसे 2 लाख रुपए देने का वादा किया था. विवाह के एक साल बाद तुषार ने अपना वादा पूरा भी कर दिया था.

तुषार पर दीपिका से किसी भी तरह से रुपए लेने का जुनून सवार था. रुपए के लिए वह उस के साथ कुछ भी कर सकता था.  तुषार की सच्चाई पता लगने पर दीपिका को अपना अस्तित्व समाप्त होता सा लगा. अस्तित्व बचाने के लिए कड़ा फैसला लेते हुए दीपिका ने तुषार को कह दिया कि वह बैंक से किसी भी तरह का लोन नहीं लेगी.

तुषार को बहुत गुस्सा आया, पर कुछ सोच कर अपने आप को काबू में कर लिया. उस ने सिर्फ  इतना कहा, ‘‘मुझे तुम से ऐसी उम्मीद नहीं थी.’’

कुछ दिन खामोशी से बीत गए. तुषार और उस की मां ने दीपिका से बात करनी बंद कर दी.

दीपिका को लग रहा था कि दोनों के बीच कोई खिचड़ी पक रही है. पर क्या, समझ नहीं पा रही थी.

एक दिन सास तुषार से कह रही थी, ‘‘दीपिका को कब घर से निकालोगे? उस ने तो लोन लेने से भी मना कर दिया है. फिर उसे बरदाश्त क्यों कर रहे हो?’’

‘‘उस से तो 50 लाख ले कर ही रहूंगा मां.’’ तुषार ने कहा.

‘‘पर कैसे?’’

‘‘उस का कत्ल कर के.’’

उस की मां चौंक गई, ‘‘मतलब?’’

‘‘मुझे पता था कि फरजी कागजात पर वह लोन नहीं लेगी. इसलिए 7 महीने पहले ही मैं ने योजना बना ली थी.’’

‘‘कैसी योजना?’’

‘‘दीपिका का 50 लाख रुपए का जीवन बीमा करा चुका हूं. उस का प्रीमियम बराबर दे रहा हूं. उस की हत्या करा दूंगा तो रुपए मुझे मिल जाएंगे, क्योंकि नौमिनी मैं ही हूं.’’

तुषार की योजना पर मां खुश हो गई. कुछ सोचते हुए बोली, ‘‘अगर पुलिस की पकड़ में आ जाओगे तो सारी की सारी योजना धरी की धरी रह जाएगी.’’

‘‘ऐसा नहीं होगा मां. दीपिका की हत्या कुछ इस तरह से कराऊंगा कि वह रोड एक्सीडेंट लगेगा. पुलिस मुझे कभी नहीं पकड़ पाएगी. बाद में गौरांग का भी कत्ल करा दूंगा.’’

कुछ देर चुप रह कर तुषार ने फिर कहा, ‘‘दीपिका की मौत के बाद अनुकंपा के आधार पर बैंक में मुझे नौकरी भी मिल जाएगी. फिर किसी अमीर लड़की से शादी करने में कोई परेशानी नहीं होगी.’’

दीपिका ने दोनों की बात मोबाइल में रिकौर्ड कर ली थी. मांबेटे के षडयंत्र का पता चल गया था. अब उस का वहां रहना खतरे से खाली नहीं था.

इसलिए एक दिन वह बेटे गौरांग को ले कर किसी बहाने से मायके चली गई. सारा घटनाक्रम मम्मीपापा को बताया तो उन्होंने तुषार से तलाक लेने की सलाह दी. दीपिका तुषार को सिर्फ तलाक दे कर नहीं छोड़ना चाहती थी. बल्कि वह उसे जेल की हवा खिलाना चाहती थी. यदि उसे यूं छोड़ देती तो वह फिर से किसी न किसी लड़की की जिंदगी बरबाद कर देता.

फिर थाने जा कर दीपिका ने तुषार के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई. सबूत में मोबाइल में रिकौर्ड की गई बातें पुलिस को सुना दीं. तब पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर तुषार को गिरफ्तार कर लिया. कुछ महीनों बाद ही दीपिका ने तुषार से तलाक ले लिया. इस के बाद पापा ने उसे फिर से शादी करने का सुझाव दिया.

शादी के नाम का कोई ठप्पा अब दीपिका नहीं लगाना चाहती थी. पापा को समझाते हुए बोली, ‘‘मुझे किस्मत से जो मिलना था, मिल चुका है. फिलहाल जिंदगी से बहुत खुश भी हूं. फिर शादी क्यों करूं. आप ही बताइए पापा कि इंसान को जीने के लिए क्या चाहिए? खुशी और संतुष्टि, यही न? बेटे की परवरिश करने से जो खुशी मिलेगी, वही मेरी उपलब्धि होगी. फिर मैं बारबार किस्मत आजमाने क्यों जाऊं?’’

पापा को लगा कि दीपिका सही रास्ते पर है. फिर वह चुप हो गए.

फिर क्यों? : दीपिका की बदकिस्मती – भाग 2

5 दिन बाद दीपिका जब कुछ सामान्य हुई तो मां ने उसे समझाते हुए गर्भपात करा कर दूसरी शादी करने की सलाह दी.

कुछ सोच कर दीपिका बोली, ‘‘मम्मी, गलती मैं ने की है तो बच्चे को सजा क्यों दूं. मैं ने फैसला कर लिया है कि मैं बच्चे को जन्म दूंगी. उस के बाद ही भविष्य की चिंता करूंगी.’’

दीपिका को ससुराल आए 20 दिन हो चुके थे तो अचानक तुषार आया. वह बोला, ‘‘मुझे विश्वास है कि तुम बदचलन नहीं हो. तुम्हारे पेट में मेरे भाई का ही अंश है.’’

‘‘जब तुम यह बात समझ रहे थे तो उस दिन अपना मुंह क्यों बंद कर लिया था, जब सभी मुझे बदचलन बता रहे थे?’’ दीपिका ने गुस्से में कहा.

‘‘उस दिन मैं तुम्हारे भविष्य को ले कर चिंतित हो गया था. फिर यह फैसला नहीं कर पाया था कि क्या करना चाहिए.’’ तुषार बोला.

दीपिका अपने गुस्से पर काबू करते हुए बोली, ‘‘अब क्या चाहते हो?’’

‘‘तुम से शादी कर के तुम्हारा भविष्य संवारना चाहता हूं. तुम्हारे होने वाले बच्चे को अपना नाम देना चाहता हूं. इस के लिए मैं ने मम्मीपापा को राजी कर लिया है.’’

औफिस और मोहल्ले में वह बुरी तरह बदनाम हो चुकी थी. सभी उसे दुष्चरित्र समझते थे. ऐसी स्थिति में आसानी से किसी दूसरी जगह उस की शादी होने वाली नहीं थी, इसलिए आत्ममंथन के बाद वह उस से शादी के लिए तैयार हो गई.

दीपिका बच्चे की डिलीवरी के बाद शादी करना चाहती थी, लेकिन तुषार ने कहा कि वह डिलीवरी से पहले शादी कर के बच्चे को अपना नाम देना चाहता है. ऐसा ही हुआ. डिलीवरी से पहले उन दोनों की शादी हो गई.

जिस घर से दीपिका बेइज्जत हो कर निकली थी, उसी घर में पूरे सम्मान से तुषार के कारण लौट आई थी. फलस्वरूप दीपिका ने तुषार को दिल में बसा कर प्यार से नहला दिया और पलकों पर बिठा लिया. तुषार भी उस का पूरा खयाल रखता था. घर का कोई काम उसे नहीं करने देता था. काम के लिए उस ने नौकरी रख दी थी. तुषार का भरपूर प्यार पा कर दीपिका इतनी गदगद थी कि उस के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे.

डिलीवरी का समय हुआ तो बातोंबातों में तुषार ने दीपिका से कहा, ‘‘तुम अपने बैंक की डिटेल्स दे दो. डिलीवरी के समय अगर मेरे एकाउंट में रुपए कम पड़ जाएंगे तो तुम्हारे एकाउंट से ले लूंगा.’’

दीपिका को उस की बात अच्छी लगी. बैंक की पासबुक, डेबिट कार्ड और ब्लैंक चैक्स पर दस्तखत कर के पूरी की पूरी चैकबुक उसे दे दी.

नौरमल डिलीवरी से बेटा हुआ तो उस का नाम गौरांग रखा गया. 6 महीने बाद तुषार ने हनीमून पर शिमला जाने का प्रोग्राम बनाया तो दीपिका ने मना नहीं किया.  वहां से लौट कर आई तो बहुत खुश थी. तुषार का अथाह प्यार पा कर वह विक्रम को भूल गई थी.

गौरांग एक साल का हो गया था. फिर भी दीपिका ने तुषार से डेबिट कार्ड और दस्तखत किए हुए चैक्स वापस नहीं लिए थे. इस की कभी जरूरत महसूस नहीं की थी. तुषार ने उस के अंधकारमय जीवन को रोशनी से नहला दिया था. ऐसे में भला वह उस पर अविश्वास कैसे कर सकती थी.

जरूरत तब पड़ी, जब एक दिन दीपिका के पिता को बिजनैस में कुछ नुकसान हुआ और उन्होंने उस से 3 लाख रुपए मांगे. तब दीपिका ने पिता का एकाउंट नंबर तुषार को देते हुए कहा, ‘‘तुषार, मेरे एकाउंट से पापा के एकाउंट में 3 लाख रुपए ट्रांसफर कर देना.’’

इतना सुनते ही तुषार ने दीपिका से कहा, ‘‘डार्लिंग, तुम्हारे एकाउंट में रुपए हैं कहां. मुश्किल से 2-4 सौ रुपए होंगे.’’

दीपिका को झटका लगा. क्योंकि उस के एकाउंट में तो 12 लाख रुपए से अधिक थे. आखिर वे पैसे गए कहां.

उस ने तुषार से पूछा, ‘‘मेरे एकाउंट में उस समय 12 लाख रुपए से अधिक थे. इस के अलावा हर महीने 40 हजार रुपए सैलरी के भी आ रहे थे. सारे के सारे पैसे कहां खर्च हो गए?’’

तुषार झुंझलाते हुए बोला, ‘‘कुछ तुम्हारी डिलीवरी में खर्च हुए, कुछ हनीमून पर खर्च हो गए. बाकी रुपए घर की जरूरतों पर खर्च हो गए. तुम्हारे पैसों से ही तो घर चल रहा है. मेरी सैलरी और पापा की पेंशन के पैसे तो शिखा की शादी के लिए जमा हो रहे हैं.’’

तुषार का जवाब सुन कर दीपिका खामोश हो गई. पर उसे यह समझते देर नहीं लगी कि उस के साथ कहीं कुछ न कुछ गलत हो रहा है.  डिलीवरी के समय उसे छोटे से नर्सिंगहोम में दाखिल किया गया था. उस का बिल मात्र 30 हजार रुपए आया था. हनीमून पर भी अधिक खर्च नहीं हुआ था. जिस होटल में ठहरे थे, वह बिलकुल साधारण सा था. उन का खानापीना भी सामान्य हुआ था.

जो होना था, वह हो चुका था. उस पर बहस करती तो रिश्ते में खटास आ जाती. लिहाजा उस ने भविष्य में सावधान रहने की ठान ली.

तुषार से अपनी बैंक पास बुक, चैकबुक और डेबिट कार्ड ले कर उस ने कह दिया कि वह घर खर्च के लिए महीने में सिर्फ 10 हजार रुपए देगी. सैलरी के बाकी पैसे गौरांग के भविष्य के लिए जमा करेगी और शिखा की शादी में 2 लाख रुपए दे देगी.  दीपिका के निर्णय से तुषार को दुख हुआ, लेकिन वह उस समय कुछ बोला नहीं.

अगले दिन ही दीपिका ने बैंक से ओवरड्राफ्ट के जरिए पैसे ले कर अपने पिता को दे दिए. पर उन्हें यह नहीं बताया कि तुषार ने उस के सारे रुपए खर्च कर दिए हैं.

कुछ दिनों तक सब कुछ सामान्य रहा. उस के बाद अचानक तुषार ने उस से कहा, ‘‘मैं ने नौकरी छोड़ दी है.’’

‘‘क्यों?’’ दीपिका ने पूछा.

‘‘बिजनैस करना चाहता हूं. इस के लिए तैयारी कर ली है, पर तुम्हारी मदद के बिना नहीं कर सकता.’’

‘‘तुम्हारी मदद हर तरह से करूंगी. बताओ, मुझे क्या करना होगा?’’ दीपिका ने पूछा.

‘‘तुम्हें अपने नाम से 50 लाख रुपए का लोन बैंक से लेना है. उसी रुपए से बिजनैस करूंगा. मेरा कुछ इस तरह का बिजनैस होगा कि लोन 5 साल में चुकता हो जाएगा.’’

‘‘इतने रुपए का लोन मुझे नहीं मिलेगा. अभी नौकरी लगे 5 साल ही तो हुए हैं.’’

‘‘मैं ने पता कर लिया है. होम लोन मिल जाएगा.’’

‘‘होम लोन लोगे तो बिजनैस कैसे करोगे. इस लोन में फ्लैट या कोई मकान लेना ही होगा.’’ दीपिका ने बताया.

‘‘इस की चिंता तुम मत करो. मैं ने सारी व्यवस्था कर ली है. तुम्हें सिर्फ होम लोन के पेपर्स पर दस्तखत कर बैंक में जमा करने हैं.’’

‘‘मैं कुछ समझी नहीं, तुम करना क्या चाहते हो. ठीक से बताओ.’’

तुषार ने अपनी योजना दीपिका को बताई तो वह सकते में आ गई. दरअसल तुषार ब्रोकर के माध्यम से फरजी कागजात पर होम लोन लेना चाहता था. इस में उसे 3 महीने बाद पूरे रुपए कैश में मिल जाता. बाद में ब्रोकर अपना कमीशन लेता. दीपिका ने इस काम के लिए मना किया तो तुषार ने उसे अपनी कसम दे कर कर अंतत: मना लिया.

फिर क्यों? : दीपिका की बदकिस्मती – भाग 1

विक्रम से शादी कर दीपिका ससुराल आई तो खुशी से झूम उठी. यहां उस का इतना भव्य  स्वागत होगा, इस की उस ने कल्पना भी नहीं की थी.  सुबह 9 बजे से शाम 4 बजे तक ससुराल में रस्में चलती रहीं. इस के बाद वह कमरे में आराम करने लगी.

शाम करीब 4 बजे कमरे में विक्रम आया और दीपिका से बोला, ‘‘मेरा एक दोस्त बहुत दिनों से कैंसर से जूझ रहा था. उस के घर वालों ने फोन पर अभी मुझे बताया है कि उस का देहांत हो गया है. इसलिए मुझे उस के घर जाना होगा.’’

दीपिका का ससुराल में पहला दिन था, इसलिए उस ने पति को रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन विक्रम उसे यह समझा कर चला गया, ‘‘तुम चिंता मत करो, देर रात तक वापस आ जाऊंगा.’’

विक्रम के जाने के बाद उस की छोटी बहन शिखा दीपिका के पास आ गई और उस से कई घंटे तक इधरउधर की बातें करती रही. रात के 9 बजे दीपिका को खाना खिलाने के बाद शिखा उस से यह कह कर चली गई कि भाभी अब थोड़ी देर सो लीजिए. भैया आ जाएंगे तो फिर आप सो नहीं पाएंगी.

ननद शिखा के जाने के बाद दीपिका अपने सुखद भविष्य की कल्पना करतेकरते कब सो गई, उसे पता ही नहीं चला.

दीपिका अपने मांबाप की एकलौती बेटी थी. उस से 3 साल छोटा उस का भाई शेखर था. वह 12वीं कक्षा में पढ़ता था. पिता की कपड़े की दुकान थी. ग्रैजुएशन के बाद दीपिका ने नौकरी की तैयारी की तो 10 महीने बाद ही एक बैंक में उस की नौकरी लग गई थी.

2 साल नौकरी करने के बाद पिता ने विक्रम नाम के युवक से उस की शादी कर दी. विक्रम की 3 साल पहले ही रेलवे में नौकरी लगी थी. उस के पिता रिटायर्ड शिक्षक थे और मां हाउसवाइफ थीं.  विक्रम से 3 साल छोटा उस का भाई तुषार था, जो 10वीं तक पढ़ने के बाद एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने लगा था. तुषार से 4 साल छोटी शिखा थी, जो 11वीं कक्षा में पढ़ रही थी.

पति के जाने के कुछ देर बाद दीपिका गहरी नींद सो रही थी, तभी ननद शिखा उस के कमरे में आई. उस ने दीपिका को झकझोर कर उठाया. शिखा रो रही थी. रोतेरोते ही वह बोली, ‘‘भाभी, अनर्थ हो गया. विक्रम भैया दोस्त के घर से लौट कर आ रहे थे कि रास्ते में उन की बाइक ट्रक से टकरा गई. घटनास्थल पर उन की मृत्यु हो गई. पापा को थोड़ी देर पहले ही पुलिस से सूचना मिली है.’’

यह खबर सुनते ही दीपिका के होश उड़ गए. उस समय रात के 2 बज रहे थे. क्या से क्या हो गया था. पति की मौत का दीपिका को ऐसा गम हुआ कि वह उसी समय बेहोश हो गई.

कुछ देर बाद उसे होश आया तो अपने आप को उस ने घर के लोगों से घिरा पाया. पड़ोस के लोग भी थे. सभी उस के बारे में तरहतरह की बातें कर रहे थे. कोई डायन कह रहा था, कोई अभागन तो कोई उस का पूर्वजन्म का पाप बता रहा था.  रोने के सिवाय दीपिका कर ही क्या सकती थी. कुछ घंटे पहले वह सुहागिन थी और कुछ देर में ही विधवा हो गई थी. खबर पा कर दीपिका के पिता भी वहां पहुंच गए थे.

अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने विक्रम का शव घर वालों को सौंप दिया था. तेरहवीं के बाद दीपिका मायके जाने की तैयारी कर रही थी कि अचानक सिर चकराया और वह फर्श पर गिर कर बेहोश हो गई. ससुराल वालों ने उठा कर उसे बिस्तर पर लिटाया. मेहमान भी वहां आ गए.

डाक्टर को बुलाया गया. चैकअप के बाद डाक्टर ने बताया कि दीपिका 2 महीने की प्रैग्नेंट है. पर वह बेहोश कमजोरी के कारण हुई थी.

2 सप्ताह पहले ही तो दीपिका बहू बन कर इस घर में आई थी तो 2 महीने की प्रैग्नेंट कैसे हो गई. सोच कर सभी लोग परेशान थे. दीपिका के पिता भी वहीं थे. वह सकते में आ गए.

दीपिका को होश आया तो सास दहाड़ उठी, ‘‘बता, तेरे पेट में किस का पाप है? जब तू पहले से इधरउधर मुंह मारती फिर रही थी तो मेरे बेटे से शादी क्यों की?’’

दीपिका कुछ न बोली. पर उसे याद आया कि रोका के 2 दिन बाद ही विक्रम ने उसे फोन कर के मिलने के लिए कहा था. उस ने विक्रम से मिलने के लिए मना करते हुए कहा, ‘‘मेरे खानदान की परंपरा है कि रोका के बाद लड़की अपने होने वाले दूल्हे से शादी के दिन ही मिल सकती है. मां ने आप से मिलने से मना कर रखा है.’’

विक्रम ने उस की बात नहीं मानी थी. वह हर हाल में उस से मिलने की जिद कर रहा था. तो वह उस से मिलने के लिए राजी हो गई.

शाम को छुट्टी हुई तो दीपिका ने मां को फोन कर के झूठ बोल दिया कि आज औफिस में बहुत काम है. रात के 8 बजे के बाद ही घर आ पाऊंगी. फिर वह उस से मिलने के लिए एक रेस्टोरेंट में चली गई. उस दिन के बाद भी उन के मिलनेजुलने का कार्यक्रम चलता रहा. विक्रम अपनी कसम दे दे कर उसे मिलने के लिए मजबूर कर देता था. वह इतना अवश्य ध्यान रखती थी कि घर वालों को यह भनक न लगे.

एक दिन विक्रम उसे बहलाफुसला कर एक होटल में ले गया. कमरे का दरवाजा बंद कर उसे बांहों में भरा तो वह उस का इरादा समझ गई. दीपिका ने शादी से पहले सीमा लांघने से मना किया लेकिन विक्रम नहीं माना. मजबूर हो कर उस ने आत्मसमर्पण कर दिया.

गलती का परिणाम अगले महीने ही आ गया. जांच करने पर पता चला कि वह प्रैग्नेंट हो गई है. विक्रम का अंश उस की कोख में आ चुका था. वह घबरा गई और उस ने विक्रम से जल्दी शादी करने की बात कही.

‘‘देखो दीपिका, सारी तैयारियां हो चुकी हैं. बैंक्वेट हाल, बैंड वाले, बग्गी आदि सब कुछ तय हो चुके हैं. एक महीना ही तो बचा है. घर वालों को सच्चाई बता दूंगा तो तुम ही बदनाम होगी. तुम चिंता मत करो. शादी के बाद मैं सब संभाल लूंगा.’’

जब सास उसे तरहतरह के ताने देने लगी तो दीपिका ने आखिर चुप्पी तोड़ दी. उस ने सभी के सामने सच्चाई बता दी. पर उस का सच किसी ने स्वीकार नहीं किया. सभी ने उस की कहानी मनगढ़ंत बताई.

आखिर अपने सिर बदचलनी का इलजाम ले कर दीपिका मातापिता के साथ मायके आ गई.  वह समझ नहीं पा रही थी कि अब क्या करे. भविष्य अंधकारमय लग रहा था. होने वाले बच्चे की चिंता उसे अधिक सता रही थी.

सुहाग का गहना

सुहाग का गहना – भाग 4

जैतून बंगले से निकल कर अस्पताल के उस कमरे में जा पहुंची, जहां शाहिद गहरी नींद सो रहा था. नींद की गोली की गिरफ्त में जकड़ा वह दुनिया से बेखबर था. जैतून कुछ देर तक उसे खालीखाली नजरों से देखती रही. फिर जब वह अपने क्वार्टर में आई तो उस ने अपनी बच्चियों को गहरी नींद में डूबी पाया.

वे नरम नाजुक कलियां सी लग रही थीं. उसे ऐसा लग रहा था कि वे कलियां जमाने की सर्दीगर्मी नहीं सह सकेंगी और कुम्हला जाएंगी. वक्त के बेरहम हाथ उन से सब कुछ छीन लेंगे. शाहिद तो उन्हें पेट भर दो वक्त की रोटी भी नहीं खिला सकेगा.

जैतून जब सोने के लिए बिस्तर पर लेटी तो उस की आंखों के सामने नवेद का चेहरा उभर आया. उस ने महसूस किया कि उस के दिल के किसी कोने में नवेद की मोहब्बत जाग रही है. नवेद की बदौलत ही उस के शौहर को नई जिंदगी मिली थी. वह उस से आज मोहब्बत की भीख मांग रहा था. जैतून ने नवेद से पहली मोहब्बत की थी और फिर उस ने शाहिद को पाने के बाद अपने दिल का दरवाजा हमेशाहमेशा के लिए बंद कर कर लिया था.

इस के बाद उस के दिल में बसी नवेद की तसवीर धुंधली होती चली गई थी. मगर आज फिर से वह दरवाजा खुल गया था. सोई हुई मोहब्बत धीरेधीरे जाग रही थी और नवेद उस के वजूद में रचबस गया था. वह आज अपने आप को दोराहे पर खड़ी महसूस कर रही थी. उस के दिमाग में बहुत से उलझेउलझे और अजीबोगरीब खयाल पैदा हो रहे थे. दिल जैसे डूबता जा रहा था.

जैतून ने हैरत से उस शीशी को देखा. उस के बाद प्रश्नवाचक दृष्टि से नवेद को देखने लगी, ‘‘इस में क्या है नवेद?’’

‘‘जहर है.’’ नवेद ने जैतून की कमर में हाथ डाल कर उसे अपने करीब कर लिया.

जैतून के हाथ से शीशी छूटतेछूटते बची. आवाज कंपकंपा सी गई, ‘‘क्या मेरा जुर्म छिप जाएगा?’’

‘‘तुम पर कोई शक नहीं करेगा. इसलिए कि इस तरह का जहर आम आदमी की पहुंच से बाहर की चीज है. यह जहर खाते ही आदमी कुछ ही लमहों में मौत की गोद में समा जाता है. तुम्हें डरने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि शाहिद की मौत से शक नहीं होगा कि उसे जहर दिया गया है. यह दिल की धड़कन बंद कर देता है. तुम दूध में जहर मिला कर पिलाने के बाद गिलास को कपड़े से अच्छी तरह साफ कर देना. फिर उस के हाथ में गिलास थमा देना, ताकि उस पर उस की अंगुलियों के निशान बन जाएं.

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अगर किसी शक की बिना पर गिलास का परीक्षण भी किया जाए तो उस पर शाहिद की अंगुलियों के निशान हों, जिस से यही समझा जाएगा कि उस ने आत्महत्या की है. तुम्हें मौका मिले तो उस गिलास को कपड़े से पकड़ कर जरा सा धो देना और उस में बिना जहर मिला थोड़ा सा दूध डाल देना… फिर तो तुम पर कोई आंच नहीं आएगी. पुलिस यही समझेगी कि उस की मौत किसी सदमे से हो गई है.’’

‘‘खुदकुशी की बुनियाद क्या होगी?’’ जैतून ने डरे हुए लहजे में पूछा, ‘‘हार्ट फेल भी किसलिए हो सकता है?’’

‘‘टांग का कट जाना… कुछ मर्द अपाहिजपन और दूसरों पर बोझ बन कर जिंदगी गुजारने से बेजार हो कर मर जाना पसंद करते हैं. यह सदमा जानलेवा भी साबित हो सकता है. तुम तसल्ली रखो, बात पुलिस तक नहीं पहुंचेगी, क्योंकि इस मौत का सर्टीफिकेट तो मैं ही जारी करूंगा.’’

‘‘पुलिस यह भी तो सोच सकती है कि शाहिद को जहर दिया गया है और यह जहर एक मामूली मरीज के पास कैसे और कहां से आया?’’

‘‘तुम किसी फिक्र में मत पड़ो और ज्यादा गहराई में मत जाओ. यह भी कहा जा सकता है कि किसी नर्स को लालच दे कर मरीज ने जहर हासिल कर लिया होगा,’’ नवेद ने उस का हौसला बढ़ा दिया, ‘‘मैं ने तुम्हें जितना बताया, बस तुम उतना ही करो.’’

‘‘ठीक है, मैं जा रही हूं.’’ जैतून बोली.

‘‘कोशिश करना कि तुम किसी की नजर में न आओ. वहां से तुम सीधी मेरे पास चली आना और कौफी तैयार कर के रखना.’’ नवेद ने जैतून का बाजू पकड़ कर अपने करीब कर लिया.

‘‘तुम्हारे लिए कौफी तैयार कर के अपनी कोठरी में क्यों न चली जाऊं,’’ जैतून कुछ सोचते हुए बोली, ‘‘तुम्हारे पास आ कर मैं क्या करूंगी?’’

‘‘इसलिए कि तुम्हारी मौजूदगी मैं अपने यहां साबित कर सकूं?’’

‘‘लेकिन इस में भी तो खतरा है,’’ जैतून बोली, ‘‘सारे अस्पताल वालों को पता है कि मैं तुम्हारे घर पर काम करती हूं. कल मुझ पर यह इलजाम लग सकता है कि मैं ने तुम्हारी मोहब्बत में अपने शौहर की जान ले ली. लिहाजा, मैं उसे जहर दे कर क्यों न अपनी कोठरी में चली जाऊं. मैं अपने शौहर को जहर दे कर बाथरूम के पिछले दरवाजे से निकल जाऊंगी.’’

‘‘मगर तुम मुझे इस की खबर कैसे दोगी? मेरा तुम्हारी कोठरी की तरफ आना मुनासिब नहीं है.’’ नवेद ने कहा.

‘‘मैं तुम्हारे पास भी पिछले दरवाजे से ही आऊंगी, ताकि तुम्हारे चौकीदार की मुझ पर नजर न पड़ सके. इस तरह हम दोनों पर ही शक नहीं किया जाएगा.’’

‘‘तुम इतनी अक्लमंद और होशियार होगी, मुझे अंदाजा नहीं था.’’ नवेद खुश हो कर बोला.

जैतून जब पिछले रास्ते से बाहर निकल गई तो डा. नवेद ने चैन की सांस ली. थोड़ी ही देर बाद वह अस्पताल के राउंड पर जाने के लिए निकल पड़ा. गेट पर चौकीदार मौजूद था. जिस वक्त जैतून अंदर आई थी, वह नमाज के लिए गया हुआ था, इसलिए गेट खाली था.

डा. नवेद अस्पताल में 20-25 मिनट तक राउंड पर रहा. उस के लिए वक्त काटना दूभर हो गया था. जब वह घर वापस आ कर अपने बेडरूम में पहुंचा तो उस ने जैतून को देखा, जो उस के बेडरूम में कौफी लिए बैठी थी. डा. नवेद ने जैतून का शांत चेहरा देखा तो उसे यकीन नहीं आया.

जैसे वह शाहिद को जहर नहीं, अमृत पिला कर आई हो. आखिर जैतून ने उस की मोहब्बत के आगे हथियार डाल ही दिए. नवेद ने जब उसे बाजुओं में भर लिया तो वह उस के गले में बांहें डाल कर उस की आंखों में झांकने लगी. फिर धीरे से बोली, ‘‘मुझे जल्दी से जाने दो, कहीं बच्चे जाग न जाएं. वे रोने लगेंगे तो पड़ोस में खबर हो जाएगी.’’

चंद लमहों बाद नवेद कुर्सी पर बैठ गया. कौफी का कप उठा कर उस ने एक घूंट लिया और पूछा, ‘‘काम हो गया?’’

‘‘तुम ने तो मुझे बहुत सख्त इम्तिहान में डाल दिया था नवेद.’’ जैतून धीरे से बोली.

‘‘मोहब्बत का इम्तिहान तो हमेशा ही सख्त होता है जैतून.’’ उस की तरफ मोहब्बत भरी नजरों से देखते हुए नवेद ने दूसरा घूंट लिया.

‘‘यह मोहब्बत का नहीं, बल्कि एक औरत का इम्तिहान था. औरत कभी मोहब्बत के इम्तिहान में नहीं डगमगाती.’’

‘‘औरत का इम्तिहान,’’ नवेद के चेहरे पर आश्चर्य उभर आया, ‘‘वह कैसे?’’ उस ने तीसरे घूंट में सारी काफी हलक में उतार ली.

‘‘मैं जब शाहिद के कमरे में पहुंची तो मेरे दिमाग में यह खयाल बिजली की तरह आया कि मैं शाहिद को नहीं, बल्कि एक औरत, बीवी और मां को जहर दे रही हूं.’’

‘‘क्या मतलब?’’ नवेद की आंखों में हैरानी भर गई. उस ने अपनी पलकें झपकाईं, ‘‘मैं तुम्हारी बात समझा नहीं?’’

‘‘मतलब यह है कि मैं एक वफादार बीवी, शौहरपरस्त औरत और जिम्मेदार मां की पवित्रता पर बदनुमा दाग बन रही हूं, इस अहसास ने मेरा सीना चीर दिया था.’’

‘‘तो क्या तुम ने शाहिद को जहर नहीं दिया?’’ नवेद ने वहशतभरे लहजे में पूछा.

‘‘जहर तो मैं ने दे दिया, लेकिन शाहिद को नहीं, औरत की मजबूरी यही है कि वह अपनी फितरत और सोच पर काबू नहीं पा सकती.’’

‘‘फिर तुम ने जहर किसे दिया? क्या तुम ने जहर की शीशी कहीं फेंक दी?’’

‘‘अपनी उस मोहब्बत को, जो नागिन बन कर बीवी, औरत और मां को डसना चाहती थी, मैं ने उसे अर्थात तुम्हें जहर दे दिया. वह जहर उस वक्त मैं ने कौफी के कप में घोल दिया था, जब मैं ने तुम्हारे कदमों की आहट सुनी थी. अब तुम और तुम्हारी मोहब्बत बस कुछ ही लमहों की मेहमान है,’’

नवेद का घबराया हुआ चेहरा देख कर जैतून मुसकरा दी, ‘‘तुम शायद भूल गए थे कि मेरे वजूद के किसी कोने में एक बीवी, मां और ईमानदार औरत अभी जिंदा है, जो अपनी मोहब्बत को तो जहर दे सकती है, मगर उन तीनों को नहीं, जो उस की सुनहरी दुनिया है.’’

नवेद ने चीख कर चौकीदार को आवाज देनी चाही, लेकिन आवाज उस के हलक से नहीं निकल सकी. उस ने अपनी जिंदगी के आखिरी लमहों में जैतून को यह कहते सुना, ‘‘मुझे माफ कर देना नवेद. कभीकभी औरत को अपने हाथों ही अपनी मोहब्बत की कब्र खोदनी पड़ती है.’’

नवेद ने जैतून को जो तरकीब बताई थी, वह उसी पर इस्तेमाल कर के अपनी कोठरी में जा पहुंची. उस ने अंदर आते ही अपनी सोती हुई बच्चियों को चूमा और उन के बगल में लेट कर सुकून से आंखें बंद कर लीं.

सुहाग का गहना – भाग 3

जैतून गुमसुम सी बैठी रही. जैसे वह बहुत शर्मिंदा हो रही हो. उस का दिमाग जैसे भूतकाल की गहराइयों में जा पहुंचा. वह कुछ देर बाद बोली तो उस की आवाज रुंधी हुई थी, ‘‘तुम्हारे जाने के एक साल बाद अम्मी पर अचानक दिल का जबरदस्त दौरा पड़ा. वह उस दौरे से संभल नहीं सकीं.  एक तो उन्हें वक्त पर सही मेडिकल एड नहीं मिली और डाक्टरों की लापरवाही या मौत के बहाने ने उन्हें मुझ से छीन लिया. उन की इस अचानक मौत से मैं इतनी बड़ी दुनिया में अकेली रह गई.

‘‘तुम तो जानते ही हो कि इस दुनिया में मां के अलावा मेरा कोई भी नहीं था. तुम उस वक्त लंदन में थे. मेरे पास तुम्हारा पता भी नहीं था. मैं तुम्हारा पता लेने तुम्हारे घर कैसे जा सकती थी. इतने बड़े घर में जाती तो जलील और रुसवा हो कर आती.

‘‘तुम ने अपनी मोहब्बत को राज रखा था. फिर मैं ने सोचा कि इंतजार के 4 साल काट लूंगी. लेकिन मुझे मालूम हुआ कि जिंदगी बहुत कठिन है. खासतौर पर एक जवान, हसीन और बेसहारा लड़की के लिए तो हर तरफ भेडि़ए ही भेडि़ए मौजूद होते हैं. दुनिया वालों ने मुझे भी लूट का माल समझ लिया था. न जाने कैसे कैसे लोग मेरा हाथ थामने को तैयार थे.

अगर मैं तुम्हारा इंतजार करती रहती तो किसी न किसी भेडि़ए का शिकार हो जाती. मुझे उठा ले जाने की कोशिश की गई. 2 बार मेरी आबरू लुटतेलुटते बची. फिर मैं ने शाहिद का हाथ थाम लिया. वह एक स्कूल टीचर था और उस के पास इल्म की दौलत थी.’’

जैतून सांस लेने के लिए रुकी. उस के बाद उस की आवाज फिजा में लहराई, ‘‘सांसारिक दौलत उस के पास नहीं थी. लेकिन जिस दिन शाहिद से मेरी शादी हुई, उसी दिन से मैं ने दिल का वह कोना बंद कर दिया, जिस में तुम्हारी तसवीर छिपी थी. इसलिए कि अब शाहिद ही मेरा सब कुछ था. शाहिद ने मुझे इतनी मोहब्बत दी कि तुम्हारी तसवीर धुंधली पड़ गई. फिर मैं शाहिद की ही दुनिया में खो गई. मैं उस का वजूद बन गई. मैं अगर ऐसा नहीं करती तो फिर क्या करती?’’

‘‘तुम ने बहुत अच्छा किया. एक औरत का ऐसा रूप होना चाहिए,’’ नवेद ने कहा, ‘‘मैं ने तुम्हारी हर याद को मिटाने के लिए शादी की थी. मेरा खयाल था कि एक औरत ही मेरा दुख बांट सकती है और वह मुझे तुम्हारी ही तरह से चाहेगी. मगर हम दोनों में 6-7 माह से ज्यादा निबाह न हो सका और हम दोनों सदा के लिए अलग हो गए.’’

‘‘वह क्यों,’’ जैतून ने हैरत से पूछा, ‘‘मुझे यकीन नहीं आ रहा है.’’

वह भी डाक्टर थी. मैं ने सोचा था कि इस तरह हम जिंदगी के सफर में एकदूसरे के बेहतरीन साथी साबित होंगे, मगर ऐसा नहीं हो सका. वह सिर्फ और सिर्फ लेडी डाक्टर रहना चाहती थी. मुझे तो ऐसी बीवी की जरूरत थी, जिस के वजूद से सारा घर महकता.

‘‘हैरत की बात है. क्या एक औरत भी इस अंदाज में सोच सकती है?’’ जैतून हैरानी से बोली, ‘‘हर औरत तो एक जैसी नहीं होती. अब तुम बस जल्दी से अपना घर बसा लो.’’

‘‘अब तुम आ ही गई हो तो मेरे लिए भी अपनी जैसी ही औरत ढूंढ देना,’’ नवेद ने कहा, ‘‘ऐसी औरत, जो घर की चारदीवारी में रह कर तुम्हारी ही तरह चाहे.’’

शाहिद की अभी ज्यादा देखभाल की जरूरत थी. कोई और मरीज होता तो डाक्टर नवेद उसे छुट्टी दे देता. मगर शाहिद जैतून का शौहर था और इस नाते नवेद शाहिद को उस वक्त तक अस्पताल में रखना चाहता था, जब तक वह पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हो जाता. उस ने जैतून से कह दिया था कि उसे दो-एक महीने तक यहीं रहना होगा. जैतून ने इस शर्त पर वहां रह कर शाहिद का इलाज मंजूर किया था कि वह अस्पताल में कोई नौकरी कर लेगी.

डा. नवेद के लिए जैतून को नौकरी देना कोई बड़ी समस्या नहीं थी. असली मसला तो जैतून के बच्चे थे. वह बच्चों से 8-10 घंटे अलग रह कर कोई काम नहीं कर सकती थी. इन सारी बातों को ध्यान में रखते हुए नवेद ने जैतून को यह काम सौंपा कि वह उस के बंगले पर आ कर उस के लिए नाश्ता और दोनों वक्त का खाना बना दे.

जैतून को नवेद की अमीरी का पहले से कुछ अंदाजा नहीं था. शादी से पहले जब वह नवेद की मोहब्बत में गिरफ्तार हुई थी, तब भी वह सिर्फ यही जानती थी कि वह एक बड़े बाप का बेटा है. वह यही समझती थी कि नवेद इस अस्पताल में नौकर है, पर जब उस ने देखा और सुना कि नवेद ही इस अस्पताल का मालिक है तो वह हैरान भी हुई और खुश भी.

जब उस ने नवेद के घर में कदम रखा तो घर को अंदर से देख कर उस के दिल में कांच की किरच सी चुभ गई. उस ने कभी ऐसे ही घर का ख्वाब देखा था, मगर वे ख्वाब दगाबाज निकले थे. फिर एक आवारा सा खयाल जैतून के दिमाग में आया कि काश! वह नवेद की बीवी होती तो इस घर में राज कर रही होती. फिर उस ने इस बेहूदा खयाल को अपने दिमाग से निकाल फेंका. अब वापसी संभव नहीं थी.फिर ऐसी हालत में शाहिद को मंझधार में छोड़ देना औरत की जात पर बदनुमा धब्बा था.

उधर न जाने क्यों नवेद महसूस कर रहा था कि जैतून फिर से उस के दिमाग पर किसी बदली की तरह छा रही है और वह उस के जादू में कैद हो रहा है. 8-10 दिनों में ही जैतून में अजीब सा निखार आ गया था. बेफिक्री, अच्छे खानपान और मानसिक शांति ने उसे फिर से जवान कर दिया था. उस के गालों पर सुर्खी झलकने लगी थी. जैतून सुबह जब उस के लिए नाश्ता तैयार करने आती थी तो उस का रूप नया होता था और जब वह उस के सामने से गुजरती थी तो जिस्म की खुशबू सुरूर दे जाती थी.

नवेद अपनी पहली बीवी के बारे में सोचता और उस का जैतून से मिलान करता. पहली बीवी खूबसूरत थी, लेकिन नवेद की जिंदगी और घर में कभी उस ने खुशी महसूस नहीं की थी. नवेद को वह हमेशा ठंडी लाश जैसी महसूस होती थी. उस के रहते घर में अजीब सी मुर्दनी और वहशत का एहसास होता था.

लेकिन जब से जैतून ने इस घर में कदम रखा था, सारा घर और उस की जिंदगी जैसे जगमगाने लगी थी. नवेद ने महसूस किया था कि उसे जैतून जैसी सुघड़, सलीकेदार और पुरशबाब औरत कहीं नहीं मिल सकती. वह उस की कमजोरी बनती जा रही थी और अब उसे जैतून के बिना जिंदगी गुजारना मुश्किल नजर आ रहा था.

घर की तनहाई डा. नवेद को किसी सांप की तरह डसती महसूस होती थी. वैसे तो जैतून कभीकभी किसी एक बच्ची को ले आती थी, पर अकसर वह अकेली ही आती थी. उस का अकेले आना नवेद की रगों में खून का बहाव तेज कर देता था. फिर भी उस ने कभी जैतून के भरोसे को ठेस पहुंचाने की कोशिश नहीं की. एक दिन रात के खाने पर जैतून भी थी. वह बच्चों को खिलापिला कर सुला कर आई थी. खाने से फुरसत पा कर वे दोनों बैठे कौफी पी रहे थे कि नवेद ने जैतून की तरफ देखा.

वह उसे परेशान और चिंतित दिखाई दी. नवेद ने पूछा, ‘‘जैतून क्या सोच रही हो तुम?’’

‘‘मैं सोच रही हूं कि अब वापस जा कर अपनी जिंदगी की शुरुआत कैसे और किस अंदाज में करूं? मुझे अपनी और शाहिद की फिक्र नहीं है. फिक्र मुझे अपने बच्चों की है. शाहिद ट्यूशन कर के कितना कमा सकेगा? उस आमदनी से तो पेट भरना ही मुश्किल पड़ेगा. मैं अगर घर से काम करने के लिए निकलूं तो घर चौपट हो जाएगा. मालूम नहीं, मुझे कोई काम देगा भी या नहीं.’’

‘‘जैतून, मैं एक बात कहूं, बुरा तो नहीं मानोगी?’’ नवेद की आवाज में अजीब सी कंपकंपाहट थी.

जैतून ने उस के आवाज के कंपन पर चौंक कर उस की तरफ देखा, ‘‘मैं और तुम्हारी किसी बात का बुरा मानूं, यह कैसे हो सकता है.’’

‘‘जैतून,’’ नवेद को अपनी आवाज कहीं दूर से आती महसूस हो रही थी, ‘‘मैं आज भी तुम से उतनी ही मोहब्बत करता हूं, जितनी कल करता था. न जाने क्यों यह जानते हुए भी तुम्हें फिर से पाने की चाह पैदा हो रही है कि तुम किसी और की बीवी हो, अमानत हो किसी गैर की. मुझे महसूस होने लगा है कि अब मैं तुम्हारे बिना जिंदगी का एक लम्हा भी नहीं गुजार सकूंगा. अगर तुम मेरी बन गईं तो फिर तुम्हारे लिए कोई समस्या नहीं रहेगी.’’

‘‘नवेद,’’ जैतून इस तरह से उछल पड़ी, जैसे नवेद के शब्द जहरीले डंक बन कर उस के वजूद में गड़ गए हों, ‘‘तुम ने यह क्यों नहीं सोचा कि मैं एक औरत हूं और शाहिद से मुझे जो इज्जत हासिल है, वह किसी और मर्द को अपनाने में नहीं है.

‘‘अब उसे मेरी जरूरत है. वह मेरा वजूद बन गया है.’’ जैतून सांस लेने के लिए रुकी, फिर बोली, ‘‘तुम ही बताओ, क्या औरत अपने शौहर के होते हुए किसी और की भी हो सकती है?’’

‘‘तुम ने मेरी बात का गलत मतलब समझा है,’’ नवेद ने जल्दी से कहा, ‘‘तुम शाहिद से तलाक ले लो. शाहिद का क्या है, वह किसी न किसी तरह जी लेगा.’’

‘‘तो तुम यह चाहते हो कि मैं शाहिद को हालात के रहमोकरम की चक्की में पिसने के लिए छोड़ दूं? क्या तुम मुझ से इस बात की उम्मीद रखते हो?’’ जैतून तेजी से बोली.

‘‘अगर तुम ने मेरी बात पर गंभीरता से गौर नहीं किया और नहीं मानी तो सारी जिंदगी पछताओगी, क्योंकि तुम्हारी बेटियों का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा. आज के जमाने में एक लड़की की शादी करना कितना मुश्किल काम है, तुम अच्छी तरह जानती हो. कल तो और भी मुश्किल होगी. तुम शाहिद को छोड़ कर मेरे पास आ जाओगी तो मेरा फर्ज बनता है कि मैं तुम्हें खुश रखूं और तुम्हारी लड़कियों की शादी खूब धूमधाम से करूं. अब मुझ से जुदाई बरदाश्त नहीं हो रही.’’

जैतून झटके से कुरसी से उठ खड़ी हुई. वह उस से गिड़गिड़ा कर बोली, ‘‘नवेद, खुदा के लिए मुझे यूं इम्तिहान में मत डालो.’’

‘‘तुम जज्बाती बन कर मत सोचो. कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारा जज्बाती फैसला कल नाउम्मीदी की नजर हो जाए.’’

‘‘शायद तुम ठीक कहते हो,’’ जैतून दरवाजे की तरफ बढ़ी और फिर रुक गई. उस ने नवेद की आंखों में अजीब सी चमक देखी थी. वह बड़े मजबूत लहजे में बोलती चली गई, ‘‘शाहिद से तलाक लेने और तुम से शादी करने पर सारी जिंदगी के लिए मुझ पर दाग लग जाएगा. मुझे मर जाना मंजूर है, लेकिन बदनामी कुबूल नहीं. तुम मुझे मेरे हाल पर ही छोड़ दो.’’

सुहाग का गहना – भाग 2

डाक्टर नवेद बहुत थक चुका था. उस ने लगातार 5 बड़े औपरेशन किए थे. वह अपने कमरे में आ कर बैठा तो उसे बहुत तेजी से कौफी की तलब लगी. उस ने इंटरकाम पर नर्स से कौफी के लिए कह कर अपने आप को एक सोफे पर गिरा दिया और आंखें बंद कर के टांगें पसार दीं. कुछ ही देर में आंख भी लग गई. अचानक किसी शोर से उस की आंख खुली तो वह हड़बड़ा कर उठ बैठा.

कमरे के बाहर एक औरत चीखचीख कर कह रही थी, ‘‘मुझे अंदर जाने दो, डाक्टर से बात करने दो, मेरे शौहर की हालत बहुत नाजुक है.’’

‘‘इस वक्त डाक्टर साहब मरीज नहीं देखते. तुम कल शाम को मरीज को ले कर आना.’’ नर्स उसे समझा रही थी.

‘‘मेरे शौहर की जान खतरे में है और तुम कल आने के लिए कह रही हो,’’ उस औरत ने पूरी ताकत से चीख कर कहा, ‘‘तुम औरत हो या जानवर, चलो हटो सामने से.’’

फिर अगले ही लम्हे दरवाजा एक धमाके से खुला और एक औरत पागलों की तरह अंदर दाखिल हो गई. उस के पीछे नर्स थी, जो उसे अंदर जाने से रोक रही थी. जैसे ही उस औरत की नजर डा. नवेद पर पड़ी, वह उस की तरफ बिजली की तरह लपकी. लेकिन नवेद के पास पहुंच कर वह ठिठक गई. उस ने नवेद को देखा तो आंखें हैरत से फैल गईं. वक्त की नब्ज रुक सी गई. वह कुछ लमहे तक सकते के आलम में खड़ी रही, फिर उस के होंठों में जुंबिश हुई, ‘‘नवेद… तुम…!’’

‘‘जैतून!’’ नवेद झटके से उठ खड़ा हुआ.

जैतून की आंखों के सामने अंधेरा सा छा गया. वह किसी नाजुक सी शाख की तरह लहराई, ‘‘मेरा सुहाग बचा लो नवेद… नहीं तो मैं…’’ इस के आगे वह एक भी लफ्ज नहीं बोल सकी. अगर नवेद तेजी से आगे बढ़ कर उसे संभाल न लेता तो वह फर्श पर गिर चुकी होती.

जैतून पलंग पर बेहोशी के आलम में पड़ी थी. नवेद पलंग के पास कुर्सी पर बैठा कौफी की चुस्की ले रहा था. उस की नजरें जैतून के हसीन चेहरे पर जमी थीं. यह वही चेहरा था, जो आज भी उस के दिल पर नक्श था. उसे देखते देखते वह बहुत दूर चला गया. उस के दिमाग की खिड़कियां खुलने लगीं. उस ने सोचा, जैतून जो कभी उस की मोहब्बत थी, उन दोनों में बेइंतहा प्यार था. उस की जिंदगी का हर लम्हा जैतून की याद में जकड़ा हुआ था. क्या आज भी जैतून के दिल के किसी कोने में उस की याद बसी होगी?

जैतून तो उस की मोहब्बत में पागल थी. फिर बेवफा कौन था? वह वक्त, जिस पर किसी का अख्तियार नहीं होता है, जो किसी का नहीं होता है. वायदों की जंजीर को किस ने तोड़ा था, उस ने या जैतून ने? जैतून ही तो बेवफा निकली थी. कहा था, ‘मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.’ उस ने जैतून से सिर्फ 5 साल इंतजार करने के लिए कहा था. वे 5 साल पलक झपकते गुजर गए थे. लेकिन जब वह वापस आया तो सुना कि जैतून की शादी हो चुकी है.

जब जैतून किसी की हो चुकी थी तो उस की तलाश बेकार थी. उस ने अपने सीने में एक गहरा जख्म ले लिया था, जिस की दवा खुद उस के पास नहीं थी. जिस के पास दवा थी, वह किसी और की हो चुकी थी. अब अचानक जैतून उस की राह में आ कर खड़ी हो गई थी और आज देख कर कि वाकई वह किसी और की बन चुकी है.

नवेद को महसूस हो रहा था, जैसे उस के दिल में बर्छियां उतरती जा रही हों. वह सीने में किसी जख्मी परिंदे की तरह फड़फड़ाता हुआ दिल थामे सोचने लगा, आखिर जैतून और उस के शौहर का क्या जोड़ है? शाहिद जैतून के किसी लायक भी तो नहीं है.

नवेद ने जैतून के जिस्म पर परखने वाली एक नजर दौड़ाई. 3 बच्चों की मां बन कर भी वह नहीं ढली थी, बल्कि और भी नशीली हो गई थी. तकदीर ने एक शहजादी को एक मामूली से गुलाम की झोली में डाल दिया था. सोचतेसोचते नवेद का दिमाग अचानक बहकने लगा. वह एक खयाल से अचानक यूं उछल पड़ा, जैसे उसे करंट लगा हो. उस ने सोचा, जैतून को हासिल करने का उसे सुनहरा मौका मिल रहा है.

सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी. वह बड़ी आसानी से जैतून के शौहर को मौत की नींद सुला सकता है. कोई जैतून के शौहर की मौत को चैलेंज भी नहीं कर सकेगा. पर जैतून को क्या वह अपना बना पाएगा? क्या वह यह सदमा सह सकेगी? पर दुनिया की न जाने कितनी औरतें यह सदमा सह जाती हैं. वे मर तो नहीं जातीं, जैतून भी नहीं मरेगी. वह खुद ही नहीं, वक्त भी जैतून के जख्मों को सुखा देगा. दुनिया में वक्त से बड़ा कोई मरहम नहीं है. जैतून बच्चों के लिए उस का सहारा पा कर अपने शौहर की मौत को जल्द ही भुला देगी.

मगर जैतून अपने शौहर की मौत की सूरत में उस पर शक भी तो कर सकती है. नवेद के दिमाग में यह खयाल बिजली की तरह आते ही उस का सारा जिस्म पसीने में डूब गया. नवेद ने इस खयाल को जेहन से झटक दिया. उस का काम किसी की जान लेना नहीं है. बरसों से बसेबसाए घर को उजाड़ना दरिंदगी है, कत्ल है. एक डाक्टर होने के नाते खुदगर्जी के अंधे जुनून में डूब जाना उस के लिए बहुत ही शर्मनाक होगा. नवेद एक नई सोच, नए हौसले के साथ सिर्फ और सिर्फ एक डाक्टर बन कर जैतून के शौहर को देखने के लिए उठ खड़ा हुआ.

चेक करने पर नवेद ने जाना कि औपरेशन के सिवा और कोई चारा नहीं है. वह शाहिद के औपरेशन से फुरसत पाने के बाद जब औपरेशन थिएटर से निकला तो उस ने अपने आप को बेहद हल्काफुल्का और शांत महसूस किया. उस ने जैतून को बेचैनी से इंतजार करते पाया. उस ने बेताबी से उस के पास आ कर पूछा, ‘‘शाहिद कैसे हैं?’’

‘‘वह अब खतरे से बाहर हैं.’’ नवेद ने मुसकराते हुए उसे तसल्ली दी.

‘‘नवेद,’’ जैतून की आंखें आंसुओं से भर गईं, ‘‘मैं तुम्हारा यह एहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगी.’’

‘‘मगर जैतून, हमें तुम्हारे शौहर की जान बचाने के लिए उन की टांग काटनी पड़ी.’’ नवेद ने ठहरठहर कर धीमे लहजे में बताया.

जैतून की आंखों में अंधेरा सा छा गया. उस ने सदमे से भर कर अपना सीना दबा लिया, ‘‘मेरे अल्लाह! यह क्या हुआ.’’

‘‘इस के सिवा और कोई चारा नहीं था,’’ नवेद ने कहा, ‘‘टांग में जहर फैल गया था. अगर पहले ही इलाज पर पूरी मेहनत की गई होती तो यह नौबत न आती.’’

नवेद अपनत्व से आगे बोला, ‘‘जैतून, इस क्वार्टर में तुम अपने बच्चों के साथ रह सकती हो. जब तक शाहिद पूरी तरह से सेहतमंद नहीं हो जाते, तुम्हें किसी तरह की फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं है. अलबत्ता शाहिद अस्पताल के कमरे में ही रहेंगे, क्योंकि उन्हें जल्दी ठीक होने के लिए आराम की सख्त जरूरत है. इस क्वार्टर में रहने पर बच्चों की वजह से उन्हें आराम नहीं मिल पाएगा.’’

जैतून ने एक पोटली नवेद के सामने रखी तो हैरत से उस ने जैतून की तरफ देखा, ‘‘यह क्या है जैतून?’’

‘‘गहने,’’ वह नवेद से नजरें नहीं मिला सकी, इसलिए नीची कर के बोली, ‘‘यह तुम्हारी और औपरेशन की फीस है. शाहिद के कमरे, खानेपीने और दूसरे मेडिकल खर्चे के लिए मेरे पास कुल पूंजी यही है. अगर इन गहनों को बेचने के बाद भी रकम कम पड़े तो मैं बाद में थोड़ाथोड़ा कर के अदा कर दूंगी.’’

‘‘जैतून!’’ नवेद की आवाज में दुख भर गया, ‘‘क्या तुम मुझे अपनी नजरों में जलील करना चाहती हो? क्या तुम मेरे जज्बात और हमदर्दी की कीमत लगा रही हो?’’

‘‘नहीं नवेद,’’ वह झुकी पलकों से फर्श को घूरती रही, ‘‘मैं आज खुद ही अपनी नजरों में जलील हो रही हूं. मैं खुद भी नहीं जानती कि तुम्हारे एहसानों का बदला कब और कैसे अदा करूं.’’

‘‘मैं इन गहनों को हाथ लगाना तो दूर, इन की तरफ देखना भी पसंद नहीं करूंगा,’’ नवेद ने उस के चेहरे पर नजरें जमा कर कहा, ‘‘ये गहने तुम्हारे सुहाग, प्यार और मोहब्बत भरी जिंदगी की निशानियां हैं. बस, मैं तुम से आज सिर्फ एक ही सवाल करना चाहता हूं.’’

‘‘मगर आज तुम अपने सवाल का जवाब पा कर क्या पाओगे नवेद? मैं ने अतीत को, और अपने आप को भुला दिया है.’’

‘‘मुझे क्या पाना है जैतून,’’ नवेद ने गहरी सांस ली, ‘‘तुम्हारे जवाब से मेरे दिल में जो बरसों से फांस गड़ी है, वह निकल जाएगी.’’

‘‘तुम मुझ से यही पूछना चाहते हो न कि मैं ने जब तुम से इंतजार करने का वायदा किया था तो तुम्हारा इंतजार क्यों नहीं किया? झूठ क्यों बोला?’’

‘‘हां जैतून,’’ नवेद ने सिर हिला दिया, ‘‘जब मैं ने वापस आ कर सुना कि तुम ने शादी कर ली है तो मेरे दिल पर कयामत सी टूट पड़ी.’’

सुहाग का गहना – भाग 1

शाहिद को नींद की हलकी सी झपकी सी आ गई थी. बिलकुल इस तरह, जैसे तेज उमस में ठंडी हवा का कोई  आवारा झोंका कहीं से भटक कर आ गया हो. उस ने गहरी सांस ले कर सोचा, ‘काश मुझे नींद आ जाती.’

उसे अब नींद कहां आती थी. वह तो उस के लिए अनमोल चीज बन चुकी थी. दिमाग में उलझे उलझे खयालात पैदा हो रहे थे. दिल का अजीब हाल था. तभी उस की नजर सामने पड़ी, वह चौंका. जैतून चमड़े के बैग पर झुकी हुई थी. कंपार्टमेंट में फैली मद्धिम रोशनी में जैतून के जिस्म का साया बर्थ पर पड़ रहा था. उस की हरकतों से ऐसा लग रहा था, जैसे वह बैग में हाथ डाल कर कोई चीज ढूंढ रही है. शाहिद को न जाने क्यों जैतून की यह हरकत इतनी अजीब लगी कि वह उछल पड़ा.

थोड़ी देर पहले तो उस ने उसे गहरी नींद में डूबी हुई देखा था. वह सो तो रही थी, मगर उस के परेशान चेहरे पर जिंदगी की तमाम फिक्रें और दुख जाग रहे थे. जैतून को देखते देखते ही शाहिद को झपकी सी आ गई थी. इस के बाद उस ने जैतून को बैग में कुछ तलाशते देखा था.

बैग में जो रकम थी, वही उन की कुल जमापूंजी थी. वह शाहिद की दवादारू के लिए न जाने किनकिन मुश्किलों से बचाई गई थी. थोड़ी देर के बाद शाहिद जागा तो उस के दिल में शक की लहर दौड़ गई.

उस ने एक बार फिर सोचा, ‘कुछ ही देर पहले जैतून जिस तरह की गहरी नींद सो रही थी, क्या वह अदाकारी थी. वह बैग से रकम निकाल रही होगी, ताकि उसे ले कर अगले किसी स्टेशन पर उतर जाए. वह इतना बड़ा कदम इसलिए उठा रही होगी, क्योंकि वह अब उस की बीमारी, दर्द और तकलीफजदा जिंदगी से तंग आ चुकी होगी. अगर जैतून उसे छोड़ कर सदा के लिए किसी स्टेशन पर उतर गई तो बच्चों का क्या होगा? क्या वह उन्हें भी अपने साथ ले जाएगी?’

जैतून बैग बर्थ के ऊपर खिसका कर जैसे ही पलटी, उस की नजरें शाहिद की नजरों से जा टकराईं. वह उस की बर्थ के पास आ कर धीरे से बोली, ‘‘आप तो सो गए थे. मुझे खुशी हुई थी कि आप गहरी नींद सो रहे थे.’’

‘‘काश! मैं हमेशा के लिए सो जाता.’’ शाहिद ने गहरी सांस ले कर कहा. उस के लहजे में सारे जहां का दर्द भरा हुआ था.

जैतून ने तड़प कर उस के मुंह पर अपना हाथ रख दिया, ‘‘फिर आप ने बहकीबहकी बातें शुरू कर दीं.’’

‘‘अब मैं जी कर क्या करूंगा जैतून?’’ शाहिद का लहजा ऐसा दर्दनाक और मायूसी भरा था कि जैतून का दिल भर आया. उस ने जैतून की आंखों में झांका, ‘‘मेरे दिल के किसी भी कोने में जीने की जरा भी ख्वाहिश नहीं रही, न जाने क्यों मुझ से दुनिया की हर चीज रूठ रही है.’’

‘‘मेरे अल्लाह! आप से कौन रूठा है?’’ जैतून की आवाज उस के हलक में फंसने लगी.

‘‘न जाने क्यों मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि तुम भी किसी दिन मुझ से रूठ जाओगी.’’ दिल की बात शाहिद की जुबान पर आ ही गई. जैतून बोली, ‘‘सारी दुनिया आप से रूठ सकती है, पर मैं आखिरी सांस तक नहीं रूठूंगी.’’

शाहिद ने चौंक कर जैतून की तरफ देखा. सोचा, कहीं यह अपनी चोरी पकड़े जाने पर फरेब से काम तो नहीं ले रही. यह बनावट और फरेब का दौर है और किसी पर भरोसा करना बहुत ही मुश्किल है. लेकिन फौरन ही शाहिद ने महसूस किया कि जैतून के लहजे में सच्चाई है. उस की बड़ीबड़ी और खूबसूरत आंखों में मोहब्बत के चिराग जल रहे थे.

जैतून ने शाहिद के चेहरे से महसूस कर लिया कि वह किसी कशमकश में पड़ा है या फिर उसे तकलीफ हो रही है. पूछा, ‘‘कहीं दर्द तो नहीं बढ़ गया?’’

‘‘दर्द तो मेरा मुकद्दर बन चुका है. यह कोई नई बात नहीं है,’’ फिर शाहिद बिना पूछे नहीं रह सका, ‘‘इस वक्त तुम बैग में क्या तलाश रही थीं?’’

जवाब देने से पहले जैतून ने सहमी हुई हिरनी की तरह पूरे कंपार्टमेंट का जायजा लिया, फिर वह शाहिद के चेहरे के बहुत पास अपना चेहरा ला कर फुसफुसाई, ‘‘मैं गहनों की पोटली देख रही थी कि वह हैं या नहीं.’’

‘‘गहनों की पोटली?’’ शाहिद को झटका सा लगा, ‘‘तो तुम गहनों की पोटली भी लेती आई हो? वह किस लिए?’’

‘‘हमारे पास जो रकम है, क्या वह काफी होगी,’’ जैतून उस के बालों को सहलाते हुए बोली, ‘‘हमारे पास नकदी ही कितनी है.’’

‘‘जितनी भी है, बहुत है,’’ शाहिद ने कहा, ‘‘सरकारी अस्पताल में मुफ्त इलाज होता है, दवा भी फ्री मिलती है.’’

‘‘मैं सरकारी अस्पताल में आप का इलाज नहीं कराऊंगी.’’

‘‘वह किसलिए?’’ शाहिद धीमे से मुसकराया.

‘‘सरकारी अस्पतालों में इलाज पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता. मैं आप का इलाज एक बहुत ही अच्छे प्राइवेट अस्पताल में कराऊंगी.’’

शाहिद उछल पड़ा, ‘‘तुम्हारा दिमाग तो ठीक है?’’

‘‘क्यों, क्या हम प्राइवेट अस्पताल में इलाज नहीं करा सकते?’’

‘‘तुम नहीं जानतीं, प्राइवेट अस्पताल में इलाज कराने पर पैसा पानी की तरह बहता है.’’

‘‘जितना खर्च होता है, हो जाने दो,’’ जैतून धीमे से मुसकराई, ‘‘मैं अपना एकएक गहना बेच दूंगी.’’

शाहिद भौचक्का रह गया, ‘‘तुम गहने बेच दोगी?’’

‘‘गहने तो फिर बन सकते हैं, पर अल्लाह न करे, अगर आप को कुछ हो गया तो मैं क्या करूंगी? कहां जाऊंगी? अगर औरत एक बार शौहर जैसे गहने से महरूम हो जाए तो सारी जिंदगी उसे वह गहना नसीब नहीं होता. औरत के लिए सब से अच्छा, सब से प्यारा गहना उस का शौहर ही होता है.’’

‘‘जैतून,’’ शाहिद की आवाज गले में रुंध गई. उस ने उस का हाथ अपने हाथ में ले कर चूमा, ‘‘तुम कितनी अच्छी हो और मैं कितना खुशनसीब हूं.’’

शाहिद ने कभी भी जैतून को अपने काबिल नहीं पाया था. उसे जैतून इतनी ऊंची लगती थी कि वह उस बुलंदी तक पहुंचने की सोच  भी नहीं सकता था. जब उस ने सुहागरात को पहली बार जैतून को देखा था तो उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ था कि नूर के सांचे में ढली लड़की उस की बीवी बन सकती है. जैतून किस्सेकहानियों की शहजादी की तरह थी. वह किसी शहजादे के ही काबिल थी. किस्मत ने उसे जैतून का जीवनसाथी बना दिया था. वह दहेज में इतने सारे सोने के गहने लाई थी कि शाहिद और भी हीनता महसूस करने लगा था.

जैतून ने अपने हुस्न और मोहब्बत से ही नहीं, बल्कि अपने बात व्यवहार से भी उसे दीवाना बना दिया था. वह सब्रशुक्र से जीवन बिताने वाली औरत साबित हुई थी. शादी के 8-9 साल गुजर जाने के बाद भी जैतून की मोहब्बत में जरा भी फर्क नहीं आया था. शाहिद भी जैतून को उतना ही चाहता था.

लगभग 7 माह पहले शाहिद बच्चों को पढ़ाने साइकिल से स्कूल जा रहा था कि एक हादसे का शिकार हो गया. तेज रफ्तार ट्रक उस की जान तो नहीं ले सका, लेकिन उस का पैर कुचल दिया था. पिंडली की हड्डी बुरी तरह टूट गई थी. अब वह सिर्फ बिस्तर पर ही लेटा रह सकता था. उस छोटे से शहर में होने वाले इलाज से उसे जरा भी फायदा नहीं हुआ था. टांग पर हलका सा भी जोर देने पर दर्द की इतनी तेज लहर उठती थी कि जान निकलने लगती थी.

अस्पताल के डाक्टरों ने उसे किसी बड़े शहर में जा कर दिखाने की सलाह दी थी. टांग के इसी दर्द ने उस की नींद, सुकून, चैन व आराम लूट लिया था. जैतून से उस की तकलीफ देखी नहीं जाती थी. उस ने सुना था कि कराची के एक बड़े अस्पताल में हड्डी के इलाज का अच्छा बंदोबस्त है. वहां शाहिद की टांग इस काबिल हो सकती है कि वह चलफिर सकेगा. आज शाहिद पर यह भेद खुला था कि जैतून उस का इलाज किसी प्राइवेट अस्पताल में कराएगी.

बहुत देर बाद शाहिद ने उस से कहा, ‘‘वहां डाक्टर सिर्फ चेकअप की फीस ही 4-5 सौ रुपए तक लेते हैं.’’

‘‘मुझे पता है.’’ जैतून ने लापरवाही से कहा.

‘‘बात सिर्फ भारी फीस की ही नहीं है,’’ शाहिद बोला, ‘‘अस्पताल के कमरे का किराया भी 3-4 सौ रुपए से कम नहीं होता. फिर वे दर्जनों टेस्ट भी कराते हैं. हर चीज की फीस अलग होती है. अगर मेरा कोई बड़ा औपरेशन हुआ और पैर काटने की नौबत आ गई तो उस पर भी हजारों रुपए का खर्च आएगा.’’

‘‘खुदा न करे कि पैर कटने की नौबत आए,’’ जैतून तड़प कर रुंधी आवाज में बोली, ‘‘आप ऐसी बातें मत करें, मेरा दिल डूबने लगता है.’’

‘‘मैं खुदा को फरेब नहीं देना चाहता. हकीकत को झुठलाना अक्लमंदी नहीं है,’’ शाहिद ने बड़े हौसले से कहा, ‘‘मैं तुम्हें भी अंधेरे में नहीं रखना चाहता, क्योंकि खुदा के बाद अब तुम ही मेरा सहारा हो और मैं तुम्हारे बिना बिलकुल अधूरा हूं जैतून. अगर मैं एक पैर खो भी बैठा तो भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा. मेरे अंदर हालात से मुकाबला करने का बहुत हौसला है.’’