सनकी सोल्जर : भाभी के प्यार में उजाड़ दिए 2 घर

कानपुर महानगर के थाना चकेरी के अंतर्गत आने वाले गांव घाऊखेड़ा में बालकृष्ण यादव अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी वीरवती के  अलावा 2 बेटियां गीता, ममता और 3 बेटे मोहन, राजेश और श्यामसुंदर थे. बालकृष्ण सेना में थे, इसलिए उन्होंने अपने सभी बच्चों की परवरिश बहुत ही अच्छे ढंग से की थी. उन की पढ़ाईलिखाई भी का भी विशेष ध्यान रखा था. नौकरी के दौरान ही उन्होंने अपने बड़े बेटे मोहन और बड़ी बेटी गीता की शादी कर दी थी.

सन 2004 में बालकृष्ण सेना से रिटायर्ड हो गए थे. अब तक उन के अन्य बच्चे भी सयाने हो गए थे. इसलिए वह एकएक की शादी कर के इस जिम्मेदारी से मुक्ति पाना चाहते थे. इसलिए घर आते ही उन्होंने ममता के लिए अच्छे घरवर की तलाश शुरू कर दी. इसी तलाश में उन्हें अपने दोस्त लक्ष्मण सिंह की याद आई. क्योंकि उन का छोटा बेटा सुरेंद्र सिंह शादी लायक था.

लक्ष्मण सिंह भी उन्हीं के साथ सेना में थे. उन के परिवार में पत्नी लक्ष्मी देवी के अलावा 2 बेटे वीरेंद्र और सुरेंद्र थे. वीरेंद्र प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था, जबकि सुरेंद्र की नौकरी सेना में लग गई थी. वीरेंद्र की शादी कानपुर के ही मोहल्ला श्यामनगर के रहने वाले रामबहादुर की बहन निर्मला से हुई थी. सुरेंद्र की नौकरी लग गई थी, इसलिए लक्ष्मण सिंह भी उस के लिए लड़की देख रहे थे. सुरेंद्र का ख्याल आते ही बालकृष्ण अपने दोस्त के यहां जा पहुंचे. उन्होंने उन से आने का कारण बताया तो दोनों दोस्तों ने दोस्ती को रिश्तेदारी में बदलने का निश्चय कर लिया.

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इस के बाद सारी औपचारिकताएं पूरी कर के ममता और सुरेंद्र की शादी हो गई. ममता सतरंगी सपने लिए अपनी ससुराल गांधीग्राम आ गई.

शादी के बाद ममता के दिन हंसीखुशी से गुजरने लगे. लेकिन जल्दी ही ममता की यह खुशी दुखों में बदलने लगी. इस की वजह यह थी कि सुरेंद्र पक्का शराबी था. वह शराब का ही नहीं, शबाब का भी शौकीन था. इस के अलावा उस में सभ्यता और शिष्टता भी नहीं थी. शादी होते ही हर लड़की मां बनने का सपना देखने लगती है. ममता भी मां बनना चाहती थी.

लेकिन जब ममता कई सालों तक मां नहीं बन सकी तो वह इस विषय पर गहराई से विचार करने लगी. जब इस बात पर उस ने गहराई से विचार किया तो उसे लगा कि एक पति जिस तरह पत्नी से व्यवहार करता है, उस तरह का व्यवहार सुरेंद्र उस से नहीं करता.

उसी बीच ममता ने महसूस किया कि सुरेंद्र उस के बजाय अपनी भाभी के ज्यादा करीब है. लेकिन वह इस बारे में किसी से कुछ कह नहीं सकी. इस की वजह यह थी कि उस ने कभी दोनों को रंगेहाथों नहीं पकड़ा था. फिर भी उसे संदेह हो गया था कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है.

एक तो वैसे ही ममता को सुरेंद्र के साथ ज्यादा रहने का मौका नहीं मिलता था, दूसरे जब वह घर आता था तो उस से खिंचाखिंचा रहता था. सुरेंद्र ममता को साथ भी नहीं ले जाता था, इसलिए ज्यादातर वह मायके में ही रहती थी.

आखिर शादी के 5 सालों बाद ममता का मां बनने का सपना पूरा ही हो गया. उस ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम रखा गया सौम्य. ममता को लगा कि बेटे के पैदा होने से सुरेंद्र बहुत खुश होगा. उन के बीच की जो हलकीफुलकी दरार है, वह भर जाएगी. उस के जीवन में भी खुशियों की बहार आ जाएगी.

लेकिन ऐसा हुआ नहीं, क्योंकि ममता को जैसे ही बेटा पैदा हुआ, उस के कुछ दिनों बाद ही सुरेंद्र के बड़े भाई वीरेंद्र की मौत हो गई. वीरेंद्र की यह मौत कुदरती नहीं थी. वह थोड़ा दबंग किस्म का आदमी था. उस का किसी से झगड़ा हो गया तो सामने वाले ने अपने साथियों के साथ उसे इस तरह मारापीटा कि अस्पताल पहुंचने से पहले ही उस की मौत हो गई.

वीरेंद्र की मौत के बाद सुरेंद्र और उस की भाभी के जो नजायज संबंध लुकछिप कर बन रहे थे, अब घरपरिवार और समाज की परवाह किए बगैर बनने लगे. ममता का जो संदेह था, अब सच साबित हो गया. भाभी को हमारे यहां मां का दरजा दिया जाता है, लेकिन सुरेंद्र और निर्मला को इस की कोई परवाह नहीं थी. जेठ के रहते ममता ने इस बात पर खास ध्यान नहीं दिया था. लेकिन जेठ की मौत के बाद सुरेंद्र खुलेआम भाभी के पास आनेजाने लगा.

ममता ने इस का विरोध किया तो उस के ससुर ने कहा, ‘‘ममता, इस मामले में तुम्हारा चुप रहना ही ठीक है. दरअसल मैं ने अपनी सारी प्रौपर्टी पहले ही वीरेंद्र और सुरेंद्र के नाम कर दी थी. निर्मला अभी जवान है. अगर वह कहीं चली गई तो उस के हिस्से की प्रौपर्टी भी उस के साथ चली जाएगी. इसलिए अगर तुम बखेड़ा न करो तो सुरेंद्र उस से शादी कर ले. इस तरह घर की बहू भी घर में ही रह जाएगी और प्रौपर्टी भी.’’

सौतन भला किसे पसंद होती है. इसलिए ससुर की बातें सुन कर ममता तड़प उठी. वह समझ गई कि यहां सब अपने मतलब के साथी हैं. उस का कोई हमदर्द नहीं है. पति गलत रास्ते पर चल रहा है तो ससुर को चाहिए कि वह उसे सही रास्ता दिखाएं और समझाएं. जबकि वह खुद ही उस का समर्थन कर रहे हैं. बल्कि उस से यह कह रहे हैं कि वह सौतन स्वीकार कर ले. उस का पति तो वैसे ही उसे वह मानसम्मान नहीं देता, जिस की वह हकदार है. अगर उस ने भाभी से शादी कर ली तो शायद वह उसे दिल से ही नहीं, घर से भी निकाल दे.

यही सब सोच कर ममता ने उस समय इस बात को टालते हुए कहा, ‘‘बाबूजी, यह मेरी ही नहीं, मेरे बच्चे की भी जिंदगी से जुड़ा मामला है. इसलिए मुझे थोड़ा सोचने का समय दीजिए.’’

इस के बाद ममता मायके गई और घरवालों को पूरी बात बताई. ममता की बात सुन कर सभी हैरान रह गए. एकबारगी तो किसी को इस बात पर विश्वास ही नहीं हुआ, क्योंकि निर्मला 3 बच्चों की मां थी. उस समय उस की बड़ी बेटी लगभग 20 साल की थी, उस से छोटा बेटा 16 साल का था तो सब से छोटा बेटा 12 साल का. इस उम्र में निर्मला को अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोचना चाहिए था, जबकि वह अपने बारे में सोच रही थी. उस की बेटी ब्याहने लायक हो गई थी, जबकि वह खुद अपनी शादी की तैयारी कर रही थी.

ममता के घर वालों ने उस से साफसाफ कह दिया कि वह इस बात के लिए कतई न राजी हो. जेठानी को जेठानी ही बने रहने दे, उसे सौतन कतई न बनने दे. मायके वालों का सहयोग मिला तो सीधीसादी ममता ने अपने ससुर से साफसाफ कह दिया कि वह कतई नहीं चाहती कि उस  का पति उस के रहते दूसरी शादी करे.

ममता का यह विद्रोह न सुरेंद्र को पसंद आया, न उस के बाप लक्ष्मण सिंह को. इसलिए बापबेटे दोनों को ही ममता से नफरत हो गई. परिणामस्वरूप दोनों के बीच दरार बढ़ने लगी. ममता सुरेंद्र की परछाई बन कर उस के साथ रहना चाहती थी, जबकि सुरेंद्र उस से दूर भाग रहा था. अब वह छोटीछोटी बातों पर ममता की पिटाई करने लगा.

ससुराल के अन्य लोग भी उसे परेशान करने लगे. इस के बावजूद ममता न पति को छोड़ रही थी, न ससुराल को. इतना परेशान करने पर भी ममता न सुरेंद्र को छोड़ रही थी, न उस का घर तो एक दिन सुरेंद्र ने खुद ही मारपीट कर उसे घर से निकाल दिया.

सुरेंद्र ने जिस समय ममता को घर से निकाला था, उस समय उस की पोस्टिंग लखनऊ के कमांड हौस्पिटल में थी. ममता के पिता बालकृष्ण और भाई श्यामसुंदर ने सुरेंद्र के अफसरों से उस की इस हरकत की लिखित शिकायत कर दी. तब अधिकारियों ने सुरेंद्र और ममता को बुला कर दोनों की बात सुनी. चूंकि गलती सुरेंद्र की थी, इसलिए अधिकारियों ने उसे डांटाफटकारा ही नहीं, बल्कि आदेश दिया कि वह ममता को 10 हजार रुपए महीने खर्च के लिए देने के साथ बच्चों को ठीक से पढ़ाएलिखाए.

इस के बाद अधिकारियों ने कमांड हौस्पिटल परिसर में ही सुरेंद्र को मकान दिला दिया, जिस से वह पत्नी और बच्चों के साथ रह सके. अधिकारियों के कहने पर सुरेंद्र ममता को साथ ले कर उसी सरकारी क्वार्टर में रहने तो लगा, लेकिन उस की आदतों में कोई सुधार नहीं आया. उसे जब भी मौका मिलता, वह भाभी से मिलने कानपुर चला जाता. अगर ममता कुछ कहती तो वह उस से लड़नेझगड़ने लगता.

साथ रहने पर सुरेंद्र से जितना भी हो सकता था, वह ममता को परेशान करता रहा, इस के बावजूद ममता उस का पीछा छोड़ने को तैयार नहीं थी. अगर सुरेंद्र ज्यादा परेशान करता तो वह उस की ज्यादतियों की शिकायत उस के अधिकारियों से कर देती, जिस से उसे डांटा फटकारा जाता. लखनऊ में रहते हुए ममता ने एक बेटी को जन्म दिया. बेटी के पैदा होने के समय वह मायके आ गई थी. लेकिन 2 महीने के बाद वह अकेली ही लखनऊ चली गई.

धीरेधीरे सुरेंद्र सेना के नियमों का उल्लंघन करने लगा. एक दिन वह शराब पी कर बिना हेलमेट के सैन्य क्षेत्र में मोटरसाइकिल चलाते पकड़ा गया तो उसे दंडित किया गया. लेकिन उस पर इस का कोई असर नहीं पड़ा. दंडित किए जाने के बाद भी उस में कोई सुधार नहीं आया.

इसी तरह दोबारा शराब पी कर बिना हेलमेट के सैन्य क्षेत्र में मोटरसाइकिल चलाने पर सेना के गार्ड ने उसे रोका तो उस ने गार्ड को जान से मारने की धमकी दी. गार्ड ने इस बात की रिपोर्ट कर दी. निश्चित था, इस मामले में उसे सजा हो जाती. इसलिए सजा से बचने के लिए वह भाग कर कानपुर चला गया.

सुरेंद्र को लगता था कि इस सब के पीछे उस के साले श्यामसुंदर का हाथ है. यह बात दिमाग में आते ही श्यामसुंदर उस की आंखों में कांटे की तरह चुभने लगा. क्योंकि श्यामसुंदर काफी पढ़ालिखा और समझदार था. वह कानपुर में ही एयरफोर्स में नौकरी कर रहा था. बात भी सही थी. उसी ने अधिकारियों से उस की शिकायत कर के ममता को साथ रखने के लिए उसे मजबूर किया था.

सुरेंद्र को लग रहा था कि जब तक श्यामसुंदर रहेगा, उसे चैन से नहीं रहने देगा. इसलिए उस ने सोचा कि अगर उसे चैन से रहना है तो उसे खत्म करना जरूरी है. इसी बात को दिमाग में बैठा कर सुरेंद्र 29 सितंबर को चकेरी के विराटनगर स्थित अपने ससुर की दुकान पर जा पहुंचा. उस समय शाम के सात बज रहे थे.

श्यामसुंदर ड्यूटी से आ कर दुकान पर बैठ कर पिता की मदद करता था. संयोग से उस दिन श्यामसुंदर दुकान पर अकेला ही था. सुरेंद्र ने पहुंचते ही अपने लाइसेंसी रिवाल्वर से श्यामसुंदर पर गोली चला दी.

गोली लगते ही श्यामसुंदर गिर कर छटपटाने लगा. गोली की आवाज सुन कर आसपास के लोग दौड़े तो सुरेंद्र ने हवाई फायर करते हुए कहा, ‘‘अगर किसी ने रोकने या पकड़ने की कोशिश की तो उस का भी यही हाल होगा.’’

डर के मारे किसी ने सुरेंद्र को पकड़ने की हिम्मत नहीं की. सुरेंद्र आसानी से वहां से भाग निकला. पड़ोसियों की मदद से बालकृष्ण बेटे को एयरफोर्स हौस्पिटल ले गए, जहां निरीक्षण के बाद डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

श्यामसुंदर की मौत से उस के घर में कोहराम मच गया. श्यामसुंदर की पत्नी सीमा देवी, जिस की शादी अभी 3 साल पहले ही हुई थी, उस का रोरो कर बुरा हाल था. अपने 2 साल के बेटे कार्तिक को सीने से लगाए कह रही थी, ‘‘बेटा तू अनाथ हो गया. तुझे किसी और ने नहीं, तेरे फूफा ने ही अनाथ कर दिया.’’

इस घटना की सूचना ममता को मिली तो उस का बुरा हाल हो गया. वह दोनों बच्चों को ले कर रोतीपीटती किसी तरह लखनऊ से कानपुर पहुंची. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी भाभी को कैसे सांत्वना दे. वह तो यही सोच रही थी कि वह स्वयं विधवा हो गई होती तो इस से अच्छा रहता.

घटना की सूचना पा कर अहिरवां चौकी प्रभारी विक्रम सिंह चौहान सिपाही रूप सिंह यादव, सीमांत सिकरवार, विनोद कुमार तथा योंगेंद्र को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंचे. घटना गंभीर थी, इसलिए उन्होंने घटना की सूचना थानाप्रभारी संगमलाल सिंह को दी. इस तरह सूचना पा कर थानाप्रभारी संगमलाल सिंह, पुलिस अधीक्षक (पूर्वी) राहुल कुमार और क्षेत्राधिकारी कैंट भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

इस के बाद श्यामसुंदर के भाई राजेश यादव द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर हत्या का यह मुकदमा थाना चकेरी में सुरेंद्र सिंह यादव पुत्र लक्ष्मण सिंह यादव निवासी गांधीग्राम, चकेरी के खिलाफ दर्ज कर लिया गया. दूसरी ओर घटनास्थल और लाश का निरीक्षण करने पुलिस ने उसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया था. इस के बाद मामले की जांच की जिम्मेदारी थानाप्रभारी संगमलाल सिंह ने संभाल ली.

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अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद श्यामसुंदर का शव मिला तो घरवालों ने सुरेंद्र की गिरफ्तारी न होने तक अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया. मृतक के घर वालों की इस घोषणा से पुलिस प्रशासन सकते में आ गया. इस के बाद पुलिस सुरेंद्र की गिरफ्तारी के लिए दौड़धूप करने लगी. परिणामस्वरूप अगले दिन यानी 1 अक्तूबर, 2013 को रामादेवी चौराहे से सुबह 4 बजे अभियुक्त सुरेंद्र सिंह यादव को गिरफ्तार कर लिया गया.

इस के बाद पुलिस ने सुरेंद्र की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त उस की लाइसेंसी रिवाल्वर बरामद कर ली. पूछताछ में सुरेंद्र ने बताया, ‘‘मेरे अपनी भाभी निर्मला से अवैध संबंध थे. भाई के मरने के बाद मैं उसे अपने साथ रखना चाहता था, जबकि ममता और उस के घर वाले इस बात का विरोध कर रहे थे. श्यामसुंदर इस मामले में सब से ज्यादा टांग अड़ा रहा था, इसलिए मैं ने उसे खत्म कर दिया.’’

सुरेंद्र की गिरफ्तारी के बाद उसी दिन शाम को श्यामसुंदर को घर वालों ने उस का अंतिमसंस्कार कर दिया. इस तरह एक सनकी फौजी ने अपनी सनक की वजह से 2 घर बरबाद कर दिए. साले के बच्चे को तो अनाथ किया ही, अपने भी बच्चों को अनाथ कर दिया.

ममता भी पति के रहते न सुहागिन रही न विधवा. उस के लिए विडंबना यह है कि वह मायके में भी रहे तो कैसे? अब उस की और उस के बच्चों की परवरिश कौन करेगा? सुरेंद्र को सजा हो गई तो उस के मासूम बच्चों का क्या होगा?

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बेटी का हत्यारा बाप – भाग 3

धीरेधीरे 2 साल बीत गए. इस बीच किसी को उन के प्यार की भनक नहीं लगी. लेकिन यह ऐसी चीज है, जो कभी न कभी सामने आ ही जाती है. आखिर एक दिन प्राची और आयुष्मान के प्यार की सच्चाई प्राची के घर वालों के सामने आ गई. मोहल्ले की किसी औरत ने प्राची और आयुष्मान को एक साथ देख लिया तो उस ने यह बात प्राची की मां सुमन को बता दी.

बेटी के बारे में यह सब सुन कर सुमन सन्न रह गई. इस का मतलब साफ था कि उन की बेटी इतनी बड़ी हो गई थी कि उन की आंखों में धूल झोंक सके. उन्होंने तुरंत प्राची को बुला कर डांटते हुए पूछा, ‘‘तू उस आयुष्मान के साथ कहां घूमती फिर रही थी?’’

‘‘कौन आयुष्मान?’’ प्राची ने इस तरह पूछा जैसे वह किसी आयुष्मान को जानती ही न हो.

‘‘झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं है. मैं विशाल के भांजे आयुष्मान की बात कर रही हूं. इस मोहल्ले में इस नाम का कोई दूसरा लड़का नहीं है. इस से तुझे पता होना चाहिए कि मैं उसी आयुष्मान की बात कर रही हूं.’’

‘‘मैं उस के साथ क्यों घूमूंगी?’’ प्राची तुनक कर बोली.

प्राची ने यह बात इतनी सफाई से कही थी कि सुमन को लगा कि उस की पड़ोसन को ही धोखा हुआ है. इसलिए उन्होंने बात बढ़ाना उचित नहीं समझा और हिदायत दे कर बेटी को छोड़ दिया. इस के बाद प्राची खुद तो सतर्क हो ही गई, अपने प्रेमी आयुष्मान को भी सतर्क कर दिया. उस ने आयुष्मान से साफसाफ कह दिया कि अब उन्हें काफी सोचसमझ कर और बच कर मिलना होगा.

सुमन तो बेटी की बात मान कर शांत हो गई थी, लेकिन जब कई लोगों ने अजीत शुक्ला को टोका कि वह अपनी बेटी पर नजर रखें, वरना एक दिन वह उन के मुंह पर कालिख पोत देगी, तब घर में बवंडर मच गया.

अजीत को जैसे ही पता चला कि प्राची आयुष्मान से मिलती है, उन्होंने यह बात सुमन से कही. तब पतिपत्नी ने सलाह की कि जवान हो रही बेटी को समझाया जाए. शायद वह रास्ते पर आ जाए. उन्होंने प्राची को पास बैठा कर कैरियर का हवाला दे कर काफी समझायाबुझाया. लेकिन प्राची पर मांबाप के इस समझानेबुझाने का कोई असर नहीं हुआ.

प्राची ने मांबाप के सामने तो कह दिया कि अब वह आयुष्मान से नहीं मिलेगी, लेकिन उस ने उस से मिलना बंद नहीं किया. हां, वह मिलने में सावधानी जरूर बरतने लगी थी. इस के बावजूद शहजहांपुर जैसे छोटे शहर में उन पर किसी न किसी की नजर पड़ ही जाती थी. तब उन की हरकतों का पता अजीत को चल जाता था.

अजीत की गिनती मोहल्ले के प्रतिष्ठित लोगों में होती थी. कोई चारा न देख अजीत शुक्ला ने सरायकाइयां का विशाल के पास वाला मकान छोड़ दिया और कुछ दूरी पर स्थित दलेलगंज में दूसरा मकान ले कर रहने लगे. इस के अलावा प्राची पर भी नजर रखी जाने लगी. प्राची को रोज सुबह वह स्वयं मोटरसाइकिल से कालेज छोड़ने जाते और शाम को ले भी आते.

रास्ते में भले ही प्राची और आयुष्मान की मुलाकात नहीं हो पाती थी, लेकिन दिन में तो उन पर कोई नजर  रखता नहीं था. प्राची क्लास छोड़ कर आयुष्मान के साथ निकल जाती. दिन भर दोनों घूमतेफिरते और छुट्टी होने के पहले आयुष्मान उसे कालेज में छोड़ देता. तब प्राची बाप के साथ घर आ जाती.

रोज की तरह 13 नवंबर को भी अजीत शुक्ला प्राची को कालेज छोड़ कर अपनी दुकान पर चले गए. इस के थोड़ी देर बाद आयुष्मान अपनी मोटरसाइकिल से प्राची के कालेज के गेट पर पहुंचा तो प्राची कालेज छोड़ कर उस के साथ निकल गई. दोनों थोड़ी दूर ही गए होंगे कि प्राची के ताऊ के बेटे राहुल शुक्ला की नजर उन पर पड़ गई. उस ने यह बात फोन कर के अपने चाचा अजीत शुक्ला को बताई तो उन्होंने राहुल से उन दोनों का पीछा करने को कहा.

राहुल अपनी मोटरसाइकिल से उन का पीछा करने लगा. प्राची ने राहुल को पीछा करते देख लिया तो उस ने यह बात आयुष्मान को बताई. इस के बाद आयुष्मान ने अपने मामा विशाल को फोन कर के ककराकलां आने को कहा.

दूसरी ओर बेटी की हरकत से नाराज अजीत शुक्ला ने लाइसेंसी राइफल उठाई और बेटे रजत को साथ ले कर प्राची के प्रेमी आयुष्मान को सबक सिखाने के लिए मोटरसाइकिल से निकल पड़े. ककराकलां में पानी की टंकी के पास अजीत शुक्ला ने राहुल और रजत की मदद से आयुष्मान और प्राची को घेर लिया. उन में बहस और हाथापाई होने लगी. तभी विशाल भी अपनी मारुति वैगनआर से ड्राइवर वरुण के साथ वहां पहुंच गया.

वादविवाद बढ़ता ही गया. अंतत: अजीत ने अपनी 315 बोर की राइफल से आयुष्मान पर फायर कर दिया. लेकिन आयुष्मान थोड़ा पीछे हट गया, जिस से निशाना चूक गया और वह गोली उस के दाएं हाथ में लगी.

अजीत दूसरी गोली न चला दे, इस के लिए सभी उस की राइफल छीनने लगे. इस छीनाझपटी में राइफल का ट्रिगर दब गया, जिस से चली गोली प्राची की बाईं तरफ कमर में जा कर लगी, जो उस के शरीर को भेदती हुई दाईं ओर से बाहर निकल गई. प्राची जमीन पर गिर कर तड़पने लगी.

बेटी को गोली लगते ही अजीत राइफल ले कर भाग खड़ा हुआ. प्राची के भाई रजत ने घायल प्राची को विशाल की कार में डाला और जिला अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने जांच कर के उसे मृत घोषित कर दिया. अस्पताल से ही इस घटना की सूचना स्थानीय थाना कोतवाली सदर बाजार को दी गई. परिणामस्वरूप कोतवाली प्रभारी इंस्पेक्टर आलोक सक्सेना सहयोगियों को साथ ले कर अस्पताल पहुंच गए.

पुलिस ने प्राची के भाई रजत शुक्ला को हिरासत में ले लिया. घटनास्थल से पुलिस ने राइफल की खाली मैगजीन और एक जिंदा कारतूस बरामद किया. आयुष्मान जिला अस्पताल में भर्ती था. पुलिस ने आयुष्मान से घटना के बारे में पूछताछ की और औपचारिक काररवाई निपटा कर प्राची के शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

पुलिस ने रजत को ला कर पूछताछ की. इस पूछताछ में उस ने पूरी कहानी बता दी, जिसे आाप ऊपर पढ़ ही चुके हैं.

इंस्पेक्टर आलोक सक्सेना ने आयुष्मान के नाना हरिकरननाथ मिश्र को वादी बना कर अजीत शुक्ला. रजत शुक्ला और राहुल शुक्ला के खिलाफ अपराध संख्या 842/2013 पर भादंवि की धारा 302, 307, 504, 506 के तहत मुकदमा दर्ज कर रजत को सीजेएम की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक अजीत और राहुल शुक्ला को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर सकी थी. पुलिस सरगर्मी से दोनों की तलाश कर रही थी. पोस्टमार्टम के बाद प्राची का अंतिम संस्कार किया जा चुका था. आयुष्मान की हालत खतरे से बाहर थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

लौकेट का रहस्य – भाग 4

जीते को साथ ले कर हम उसी वक्त उस मकान पर गए, जहां उसे कैद रखा गया था. वह मकान वली खां के दोस्त शेरू का था. वहां वाकई एक कमरे की जाली टूटी हुई थी. वहां ऐसे सुबूत भी थे, जिस से साबित होता था कि उसे उसी जगह कैद कर के रखा गया था. वली खां और शेरू दोनों गायब थे.

मेरी हिदायत पर थानेदार बख्शी ने अपने स्टाफ से उन्हें तलाश करने को कहा. लेकिन कुछ किया जाता, इस से पहले ही शाम करीब 7 बजे वे दोनों खुद ही थाने आ गए. उन के साथ एक सरकारी अफसर भी था. उस ने बताया कि इन दोनों का भागने का कोई इरादा नहीं था. वे केवल डर की वजह से थाने नहीं आए थे.

मैं ने वली खां से कहा कि वह अपनी सफाई में कुछ कहना चाहता है तो कह दे. इस पर उस ने जेब से कुछ खत निकाल कर हमारे सामने रख दिए. वे खत क्या थे, गालियों का पुलिंदा था. उन में ऐसी ऐसी गालियां लिखी थीं जो मैं ने कभी नहीं सुनी थीं. खत लिखने वाले ने कोशिश की थी कि वली खां और उस की बीवी को जितना ज्यादा हो सके, जलील किया जाए.

वली खां ने रुआंसे हो कर कहा, ‘‘जनाब, कुछ खत तो बरदाश्त से बाहर थे, इसलिए मैं ने फाड़ कर फेंक दिए थे.’’

उन खतों को पढ़ कर किसी भी शरीफ आदमी का दिमाग घूम सकता था. वली खां ने बताया कि ये गंदगी उस के घर में 3 महीने से फेंकी जा रही है. उस का मानना था कि ये काम जीते के अलावा और कोई नहीं कर सकता.

वली खां ने यह भी बताया कि मजबूर हो कर वह अमृतसर गया और जीते से मिल कर उसे समझाने की कोशिश की. लेकिन वह उल्टे उसे ही डरानेधमकाने लगा. इस पर उस का दिमाग घूम गया. वह उसे टैक्सी में डाल कर यहां ले आया. वली खां ने माना कि उस ने जीते को 4-5 दिन शेरू के घर में रखा था. वह सिर्फ यह चाहता था कि वह उन मियांबीवी की जिंदगी से निकल जाए.

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वली खां के साथ आए सरकारी अफसर ने भी कहा कि वली खां शरीफ आदमी है. अगर जीता उस की इज्जत को न ललकारता तो यह वाकया कभी न होता. मैं ने वली खां और शेरू को गिरफ्तार न कर के उन्हें तफ्तीश के दायरे में रखा. जीते को हवालात में रखना जरूरी था, क्योंकि अगर उसे छोड़ा जाता तो वह फिर से वली खां के घर जा कर हंगामा कर सकता था. हम ने डाक्टर बुला कर उस की मरहमपट्टी करा दी थी.

जीते को हवालात में छोड़ कर मैं उस के घर पहुंचा और उस के पिता सुरजीत से मुलाकात की. मैं काफी देर तक सुरजीत से जीते के बारे में बातें करता रहा. जब मैं उस के पास से उठने लगा तो दरवाजे के पीछे से चूडि़यों की खनक सुनाई दी. एक औरत जल्दी से अंदर आई थी और मुझे देख कर ठिठक गई थी. वह जवान औरत थी. उस के हाथ में एक छोटा सा लिफाफा था. वह असमंजस में थी कि आगे जाए या वापस लौट जाए.

लेकिन लौटने के बजाए वह हिम्मत कर बोली, ‘‘सुरजीत चचा, ये दवा खा लो. बस 2 दिन और खानी है.’’

सुरजीत ने उसे घूर कर देखते हुए कहा, ‘‘रजिया तुझे कितनी बार कहा है, यहां मत आया कर. रही दवा की बात तो मुझे एक बार ही ला कर दे दे. मैं खुद ही खा लिया करूंगा. बिना वजह रिश्तेदारी मत बना हम से. हम पहले ही बहुत दुखी हैं.’’

रजिया ने दवा वाला लिफाफा सुरजीत के सामने रखते हुए कहा, ‘‘आज तो खा लो, कल बाकी दवा भिजवा दूंगी.’’

सुरजीत ने दवा ले कर मजबूरी में कहा, ‘‘जा, पानी ले कर आ.’’

वह मुझे उलझन भरी नजरों से देख कर बाहर चली गई. मैं समझ गया कि यह वही रजिया है, जो इस फसाद की जड़ है. उस के बाहर जाते ही सुरजीत बोला, ‘‘पागल है यह लड़की, हम सब को भी पागल बना रखा है. यह सोच कर बहाने से दवा देने आई है कि शायद जीता घर पर हो. एक तरफ उसे धक्के दे कर घर से निकालती है, दूसरी तरफ उस की दीवानी हुई फिरती है. पता नहीं क्या चाहती है यह नादान लड़की.’’

रजिया पानी ले आई. जब वह सुरजीत को दवा खिला कर जाने लगी तो मैं ने उसे आवाज दे कर रोक लिया. वह ठिठक गई. सुरजीत ने उस से मेरा परिचय करवाते हुए बताया कि इन इंसपेक्टर साहब ने जीते की बहुत मदद की है.

मेरा परिचय सुन कर वह डर गई. फिर संभल कर बोली, ‘‘जी फरमाइए.’’

मैं ने कहा, ‘‘मैं तुम से कुछ जरूरी बातें करना चाहता हूं. तुम्हारा शौहर घर में ही है?’’

‘‘जी नहीं,’’ वह बोली, ‘‘वह शेरू के साथ थाने गए हैं.’’

‘‘चलो ठीक है, यहीं बात कर लेते हैं.’’ मैं ने सुरजीत की ओर देख कर कहा, ‘‘आप हमें चंद मिनट दीजिए.’’

मेरी बात समझ कर वह उठ खड़ा हुआ और जातेजाते बोला, ‘‘इंसपेक्टर साहब, वाहेगुरु के वास्ते इसे समझाएं. इस के दिमाग से यह जुनून निकाल दें. इसे समझाएं कि न अपना घर उजाड़े और न हमें बरबाद करे.’’

सुरजीत बाहर चला गया तो मैं ने रजिया को सामने पड़ी कुरसी पर बैठने को कहा. वह वाकई खूबसूरत औरत थी. मैं ने उस से पूछा, ‘‘बीबी, तुम जानती हो कि तुम्हारी वजह से कितना हंगामा हो रहा है? आखिर तुम चाहती क्या हो?’’

उस ने सिर झुका लिया. उस के होंठ कांपने लगे. वह कुछ कहना चाहती थी, पर कह नहीं पा रही थी. मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारा शौहर शरीफ आदमी है. तुम से बेपनाह मोहब्बत भी करता है. फिर तुम यह खेल क्यों खेल रही हो?’’

मेरी बात सुन कर उस की आंखों से आंसू निकल आए. मैं ने बहुत कोशिश की कि वह अपने दिल की बात बताए. लेकिन वह अपने होंठों को सी कर बैठ गई. आखिर मैं ने कहा, ‘‘खामोश रहने से काम नहीं चलेगा. यह मत भूलो कि तुम्हारा व्यवहार तुम्हें अदालत तक भी ले जा सकता है और जेल भी.’’

उस ने रोतेरोते सिर्फ इतना कहा, ‘‘मैं बेबस हूं.’’

वह टस से मस नहीं हुई. बस खामोश बैठी आंसू बहाती रही. निस्संदेह वह कोई अहम बात छिपा रही थी. अपनी आंखें पोंछने के बाद उस ने कानों पर गिरे अपने बालों को पीछे किया तो मेरी निगाह उस के कान के झुमके पर पड़ी. मैं ने उस झुमके को गौर से देखा तो चौंका. इतनी देर में रजिया ने अपने कानों पर ओढ़नी डाल दी थी. मैं ने कहा, ‘‘बीबी, जरा कानों से ओढ़नी हटाओ.’’

वह मेरी बात नहीं समझी. जब मैं ने दूसरी बार गुस्से से कहा तो उस ने ओढ़नी हटाई. मैं ने आगे हो कर उस के झुमके का मुआयना किया. शक की कोई गुंजाइश नहीं थी. यह उस लौकेट के साथ का उसी डिजाइन का झुमका था जो जीते के गले में था. मैं ने पूछा, ‘‘बीबी, यह झुमका तुम्हें कहां से मिला?’’

‘‘मेरी शादी का है.’’ उस ने बताया.

‘‘मांबाप ने दिया था?’’

‘‘नहीं, ससुराल की तरफ से मिला था.’’

‘‘इस के साथ का और कोई जेवर भी है तुम्हारे पास?’’

‘‘जी नहीं, बस झुमके ही हैं.’’

‘‘देखो बीबी, मैं जो भी पूछूं, सचसच बताना वरना तुम सब बहुत बड़ी मुसीबत में फंस जाओगे.’’

रजिया मेरी बातों से पहले ही परेशान नजर आ रही थी. जब मैं ने मुसीबत की बात कही तो वह घबरा गई. कहने लगी, ‘‘पता नहीं, आप क्या पूछना चाहते हैं. बेहतर होगा आप मेरे शौहर से बात कर लें.’’

‘‘घबराने की कोई बात नहीं है. सच बोलोगी तो मैं हर तरह से मदद करूंगा. लेकिन झूठ बोला तो मैं तुम्हें नहीं बचा पाऊंगा.’’

उस के चेहरे का रंग पीला पड़ गया. वह ऐसे सिमट कर बैठ गई जैसे खुद में ही छिपने की कोशिश कर रही हो. मैं ने कहा, ‘‘इस झुमके के साथ का एक लौकेट मैं ने जीते के गले में देखा है. वह कहां से आया?’’

उस ने सिर झुका कर जवाब दिया, ‘‘वह लौकेट उसे मैं ने दिया था.’’

‘‘तुम्हारे शौहर को मालूम है?’’

‘‘जी नहीं.’’

‘‘क्या तुम यह जानती हो कि तुम्हारे शौहर के पास ये जेवर कहां से आए?’’

वह सादगी से बोली, ‘‘ये जेवर शादी से पहले के हैं.’’

मैं ने रजिया से कुछ सवाल और पूछे फिर उसे घर जाने की इजाजत देते हुए कहा कि न तो वह घर से बाहर कहीं जाएगी और न इस बात का जिक्र किसी से करेगी. वहां से फारिग हो कर मैं थाने पहुंचा. मैं ने थानेदार से कहा कि वह एक सिपाही भेज कर शेरू को बुलाए. साथ ही मैं ने एक एएसआई को यह कह कर भेज दिया कि वली खां जहां भी मिले उसे फौरन मेरे पास ले आए. लगभग आधे घंटे बाद एएसआई वली खां को ले आया. वह थोड़ी देर पहले ही थाने से गया था.

बेटी का हत्यारा बाप – भाग 2

आग दोनों तरफ लग चुकी थी. दिन तो किसी तरह बीत जाता था, लेकिन रात काटनी मुश्किल हो जाती थी. रोज रात को दोनों सोचते कि कल अपने दिल की बात जरूर कह देंगे. लेकिन सुबह होने पर हिम्मत नहीं पड़ती. दोनों एकदूसरे के नजदीक आते तो उन के दिलों की धड़कन इतनी तेज हो जाती कि दिल की बात जुबां पर आ ही नहीं पाती. होंठों पर जीभ फेरते हुए दोनों अपनेअपने रास्ते चले जाते.

आखिर जब रहा और सहा नहीं गया तो आयुष्मान ने अपने दिल की बात कहने का वही पुराना तरीका अख्तियार करने का विचार किया, जिसे अकसर इस तरह के प्रेमी इस्तेमाल करते आ रहे हैं. उस ने अपने दिल की बेचैनी एक कागज पर लिख कर प्राची तक पहुंचाने का विचार किया. रोज की तरह उस दिन भी प्राची कालेज के लिए निकली तो आयुष्मान अपनी निश्चित जगह पर उस का इंतजार करता दिखाई दिया. जैसे ही प्राची उस के नजदीक पहुंची, उस ने रात में लिखा वह प्रेमपत्र प्राची के सामने धीरे से फेंक दिया और बिना नजरें मिलाए चला गया.

प्राची ने इधरउधर देखा और फिर डरतेडरते वह कागज चुपके से उठा कर अपने बैग में डाल लिया. कालेज पहुंचते ही सब से पहले एकांत में जा कर उस ने उस कागज को निकाला. उस की जिज्ञासा उस कागज में लिखे मजमून पर थी.

उस ने उस कागज को जल्दी से खोला. उस में लिखा था—

‘प्रिय प्राची,

मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. मुझे मालूम है कि तुम भी मुझे उतना ही प्यार करती हो, फिर भी मैं तुम से यह बात कहने की हिम्मत नहीं कर सका. तुम्हारे करीब पहुंचते ही पता नहीं क्यों शब्द ही जुबान से नहीं निकलते. इसीलिए दिल की बात इस कागज पर लिख कर भेज रहा हूं. मुझे पूरा विश्वास है कि तुम्हारे मन में भी वही सब है, जो मेरे मन में है. फिर भी एक बार जानना चाहता हूं. तुम भी अपने दिल की बात इसी तरह कागज पर उतार कर मुझ तक पहुंचा सकती हो.

—तुम्हारे प्यार में पागल, आयुष्मान’

कागज के उस टुकड़े का एकएक शब्द प्राची के दिल में उतर गया. पत्र पढ़ कर उस का दिल बल्लियों उछलने लगा, क्योंकि उस के मन की मुराद पूरी हो गई थी. वह खुद को बहुत ही सौभाग्यशाली समझ रही थी. उस ने अपने दिल को आयुष्मान को समर्पित करने का निर्णय ले लिया. उस ने भी जवाब में आयुष्मान को पत्र लिख कर उसी तरह दे दिया, जिस तरह आयुष्मान ने उसे दिया था.

पत्र मिलने के बाद आयुष्मान के मन में जो भी आशंकाएं थीं, सब समाप्त हो गईं. अब वह हमेशा प्राची के बारे में ही सोचता रहता. उस ने प्राची को ले कर जो सपने देखे थे, वे पूरे होते दिखाई दे रहे थे. दोनों चोरीछिपे मिलने लगे तो उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. पत्रों से शुरू हुआ प्यार वादों,कसमों, रूठनेमनाने से ले कर साथसाथ जीनेमरने की प्रतिज्ञाओं तक पहुंच गया. दोनों ने ही मुलाकातों के दौरान सौगंध ली कि वे अपने प्यार को मंजिल तक पहुंचा कर ही दम लेंगे, इस के लिए उन की जान ही क्यों न चली जाए.

आयुष्मान त्रिपाठी उर्फ मोनू सीतापुर जनपद के माहोली कस्बा के रहने वाले जयप्रकाश त्रिपाठी और विनीता त्रिपाठी का एकलौता बेटा था. एकलौता होने की वजह से वह मांबाप का काफी लाडला था. यह बात उन दिनों की है, जब वह बीए की पढ़ाई कर रहा था. उस का ननिहाल जिला शाहजहांपुर के थाना रामचंद्र मिशन के सरायकाइयां मोहल्ले में था.

उस के नाना हरिकरननाथ मिश्र की फलों की आढ़त थी. उन के इस काम में उन का बेटा विशाल उर्फ भोला मदद करता था. आयुष्मान ज्यादातर ननिहाल में ही रहता था. नाना के यहां रहने में ही उस की नजर नाना के घर के करीब रहने वाली प्राची पर पड़ी तो पहली ही नजर में वह उसे इस तरह भायी कि जब तक वह उसे एक नजर देख नहीं लेता, उसे चैन नहीं मिलता था.

प्राची के पिता अजीत शुक्ला का शाहजहांपुर के केरूगंज में मैडिकल स्टोर था. उन के परिवार में पत्नी सुमन के अलावा 2 बेटे रजत, रितिक और एक बेटी प्राची थी. रजत बरेली से बीटेक कर रहा था, जबकि प्राची आर्य कन्या महाविद्यालय से बीएससी कर रही थी. उस से छोटा रितिक 9वीं कक्षा में पढ़ रहा था. एकलौती बेटी होेने की वजह से प्राची भी मांबाप की लाडली थी.

किशोरावस्था में कदम रखते ही हसीन ख्यालों में खोने का जैसे ही समय आया, कालेज आनेजाने में आयुष्मान की नजर उस पर पड़ी तो वह उस के दिल में उतर गई. इस की वजह यह थी कि वह इतनी सुंदर थी कि आयुष्मान तो क्या, किसी के भी दिल में उतर सकती थी. संयोग से वह आयुष्मान को भायी तो आयुष्मान भी उसे भा गया. इसलिए आयुष्मान की चाहत जल्दी ही पूरी हो गई.

प्यार का इजहार हो गया तो प्राची और आयुष्मान घर वालों से चोरीछिपे पार्कों और रेस्तराओं में मिलने लगे. दोनों जब भी मिलते, उन्हें लगता कि दुनियाजहान की खुशी मिल गई है. बीए करने के बाद आयुष्मान शाहजहांपुर में नाना के यहां रह कर मामा की मदद करने लगा था. दोनों के पास एकदूसरे के मोबाइल नंबर थे, इसलिए समय मिलने पर वे लंबीलंबी बातें भी करते थे. इस से उन की करीबियां और बढ़ती गईं.

प्राची के घर में किसी को भी पता नहीं था कि उस के कदम बहक चुके हैं. वह एकलौती बेटी थी, इसलिए उस के पापा अजीत शुक्ला चाहते थे कि पढ़लिख कर वह उन का नाम रोशन करे. जबकि उन की बेटी पढ़ाई को भूल कर कुछ और ही गुल खिला रही थी. कोई भी मातापिता नहीं चाहता कि बेटी प्यारमोहब्बत में पड़े.

इस की वजह यह है कि हमारा समाज आज भी इसे अच्छा नहीं मानता. लेकिन प्यार करने वाले इस की परवाह नहीं करते. उन की अपनी अलग ही दुनिया होती है. वे स्वयं की रचीबुनी सपनीली दुनिया में खोए रहते हैं. ऐसी ही सपनीली दुनिया में आयुष्मान और प्राची भी खो गए थे.

लौकेट का रहस्य – भाग 3

जीते के बारे में यह जानकारी मिलने के बाद मैं ने फैसला किया कि मुझे खुद ही जामनगर जा कर हकीकत मालूम करनी चाहिए. थाने का चार्ज मैं ने सबइंसपेक्टर नदीम को सौंपा और अगले दिन जामनगर के लिए रवाना हो गया.

जामनगर एक छोटा सा कस्बा था. मैं सीधा कस्बे के थाने में पहुंचा. वहां का थानेदार बख्शी मेरा पुराना दोस्त था. मैं ने उस से जीते के बाप सुरजीत के बारे में पूछा.

उस ने बताया कि वह सुरजीत को बहुत अच्छी तरह जानता है. वह निहायत ही शरीफ आदमी है और नीम वाली गली में रहता है. उस ने एक आदमी भेज कर नीम वाली गली से शेखू नाम के एक मुखबिर को बुलवा लिया. वह काफी होशियार आदमी था. इलाके के हर आदमी के बारे में उसे पूरी जानकारी थी. वह मुझे सुरजीत व उस के परिवार के बारे में बताने लगा.

उस की बातों से पता चला कि सुरजीत को नशे की लत है. उस ने शराबखोरी में अपनी पूरी जमीनजायदाद गंवा दी थी. इसी वजह से घर में क्लेश रहता था. सुरजीत अपने बेटे जीते से बहुत प्यार करता था. प्यार तो वह अपनी बीवी व छोटे बेटे से भी बहुत करता था, पर उस का जीते के साथ कुछ अधिक ही लगाव था.

लेकिन पिता की शराब की लत की वजह से जीता घर छोड़ कर अमृतसर आ गया था, ताकि पढ़लिख कर किसी काबिल बन जाए तो अपनी मां और छोटे भाई को भी अपने पास बुला ले.

शेखू ने जो कुछ बताया, उस के अनुसार नीम वाली गली में ही वली खां का घर था. वली खां का चौबारा सुरजीत के चौबारे से मिला हुआ था. दोनों परिवारों का एकदूसरे के घर काफी आनाजाना था. जब वली खां की शादी हुई, तब जीते की उम्र बमुश्किल 16 साल थी. उसे वली खां की बीवी रजिया से बहुत लगाव हो गया था. वली खां से भी उस की गहरी छनती थी. वह हर वक्त वली खां के घर में घुसा रहता था.

वक्त धीरेधीरे गुजरता रहा. हालांकि रजिया और वली खां की उम्र में खासा अंतर था. फिर भी कस्बे की बड़ी बूढि़यां उन पर अंगुली उठाने लगीं. उन्हें जीते का इस तरह रजिया से चिपके रहना पसंद नहीं था. सुरजीत ने बेटे को समझाया, पर वह बाज नहीं आया. मजबूरी में उसे उस के मामा के घर भेज दिया गया. साथ ही वली खां को भी समझा दिया गया कि वह अपनी जवान बीवी को इतनी आजादी न दे.

जीते के जाने के बाद यह मामला शांत हो गया. लेकिन थोड़े दिनों बाद जीते की मां बीमार पड़ गई. उस की देखभाल के लिए जीते को घर लौटना पड़ा. कुछ महीने बीमार रहने के बाद उस की मां चल बसी. मां की बीमारी और मौत के कारण जीते की पढ़ाई छूट गई. अब वह फिर से रजिया के घर में घुसा रहने लगा. उन्हीं दिनों वली खां रोजगार के सिलसिले में पेशावर चला गया. उस के जाने के बाद रजिया और भी आजाद हो गई.

फिर एक दिन पता चला कि रजिया ने जीते को धक्के दे कर घर से बाहर निकाल दिया और जीते ने गुस्से में नीला थोथा खा लिया. हकीम ने बड़ी मुश्किल से उस की जान बचाई थी. इस घटना से सभी हैरान थे. बाद में जो हकीकत सामने आई, वह यह थी कि जीते ने रजिया के साथ छेड़छाड़ की थी.

यह बात किसी तरह वली खां को भी पता चल गई थी. वह पहले ही लोगों की बातें सुनसुन कर भरा बैठा था. पेशावर से वापस आ कर वह जीते की जान के पीछे पड़ गया. फिर अचानक एक दिन जीता चुपचाप कहीं चला गया. काफी दिनों तक उस का कोई पता नहीं चला. बाद में किसी ने बताया कि वह अमृतसर में है.

जीते की पूरी कहानी सुनने के बाद मैं ने मुखबिर से पहला सवाल यह किया कि वली खां और उस की बीवी अब कहां है? उस ने बताया, ‘‘यहीं कस्बे में ही रहते हैं. वली खां अभी हफ्ता भर पहले ही पेशावर से आया है.’’

मैं ने पूछा, ‘‘मियांबीवी में इन दिनों कोई ताजा झगड़ा तो नहीं हुआ?’’

वह इनकार में सिर हिलाने लगा. फिर कुछ सोच कर बोला, ‘‘झगड़े से आप का क्या मतलब?’’

मैं ने कहा, ‘‘तुम मेरे मतलब की छोड़ो. जो कुछ तुम्हें पता है वह बताओ.’’

वह गहरी सांस ले कर बोला, ‘‘पिछले दिनों मुझे दीनू डाकिया मिला था. उस ने बताया कि वली खां के नाम कहीं से कुछ खत आते हैं. उन में वली खां और रजिया के नाम बड़ी गंदीगंदी गालियां लिखी होती हैं. वली खां इस बात से बहुत परेशान है.’’

मेरे दिमाग में बिजली सी कौंधी. मैं ने सोचा, खत कोई भी लिखता हो, लेकिन वली खां का ध्यान सब से पहले अपनी बीवी के आशिक जीते की तरफ ही गया होगा. उसे जीते का अमृतसर का पता भी मालूम था. संभव था उसी ने भाड़े के गुंडों से जीते को उठवा लिया हो. अगर वाकई ऐसा था तो जीते की जान को खतरा था.

मैं ने शेखू से पूछा, ‘‘क्या वली खां पेशावर से आने के बाद कस्बे से बाहर गया था?’’

वह कुछ देर सोचता रहा, फिर बोला, ‘‘मैं ठीक से नहीं बता सकता. पर इतना जानता हूं कि वह ज्यादातर अपने घर में ही रहता है. हां, कभीकभी अपने दोस्त शेरू के पास जरूर चला जाता है.’’

हम अभी बातें कर ही रहे थे कि एक सिपाही दौड़ता हुआ थाने आया और उस ने थानेदार को बताया, ‘‘जनाब, उधर नीम वाली गली में बड़ा हंगामा हो रहा है. जीता जख्मी हालत में पड़ा चीखपुकार कर रहा है.’’

मैं ने चौंक कर थानेदार बख्शी की ओर देखा. मेरा आशय समझ कर वह बोला, ‘‘आइए, चल कर देखते हैं.’’

हम थाने से निकल कर नीम वाली गली में पहुंचे. गली में लोगों का हुजूम लगा था. वे लोग किसी को संभालने की कोशिश कर रहे थे. मैं ने गौर से देखा, वह जीता ही था.  उस के होंठ सूजे हुए थे. चेहरे पर कई जगह नील निशान थे और खून रिस रहा था. उस की कमीज भी फटी हुई थी.

पुलिस को देख कर लोग हटने लगे. मुझे देख जीता गुहार लगाने लगा, ‘‘ये देखो थानेदारजी, क्या हाल किया है इन्होंने मेरा. मैं ने क्या बिगाड़ा है किसी का? क्यों लोग मुझे जीने नहीं देते?’’

थानेदार बख्शी ने पूछा, ‘‘तुम्हारी यह हालत किस ने की है?’’

जीते ने रोते हुए बताया, ‘‘मुझे वली खां और उस के गुंडों ने उठा लिया था. 5 दिन भूखाप्यासा बांध कर रखा.’’

उस ने अपना दायां हाथ दिखाया. उस की 3 अंगुलियां टूट गई थीं. पिंडलियों पर डंडों की मार के निशान थे, जहां से खून रिस रहा था.

मैं ने जीते को सांत्वना दे कर चुप करवाया और उसे भीड़ से निकाल कर थाने ले आया. वह बारबार एक ही बात कहे जा रहा था, ‘‘थानेदार साहब, मैं ने किसी को बदनाम नहीं किया. इन लोगों ने खुद ही बदनामी का इंतजाम किया है, मुझे अमृतसर से उठा लाए. 5 दिन बांध कर मेरी हड्डियां तोड़ते रहे. अब मैं भी वही करूंगा जो मेरा मन चाहेगा. मैं रजिया के बिना नहीं रह सकता. मैं उस से शादी करूंगा. अगर वह मुझे न मिली तो मैं उसी के दरवाजे पर खुदकुशी कर लूंगा.’’

थानेदार बख्शी ने उसे गुस्से से डांटा, ‘‘ओए मजनूं की औलाद, होश की दवा कर. अभी सारा भूत उतार दूंगा.’’

मैं ने थानेदार को इशारा कर के मना किया. क्योंकि जितना मैं इस मामले को जानता था, थानेदार बख्शी को पता नहीं था. वैसे भी जीता इस वक्त मुद्दई की हैसियत रखता था. उसे अगवा किया गया था. कैद में रख कर उसे यातनाएं दी गई थीं. मैं ने उस से घटना के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि उसे टैक्सी में डाल कर पहले जालंधर ले जाया गया.

वहां रात भर रखने के बाद उसे जामनगर ला कर एक अंधेरे मकान में बंद कर दिया गया. फिर रस्सियों से बांध कर भूखाप्यासा रखा गया. वली खां और उस के दोस्त शेरू ने उसे बहुत मारा था. शायद वे लोग उसे जान से ही मार डालते, लेकिन आज सुबह वे कमरे की एक खिड़की बंद करना भूल गए. जीते ने किसी तरह लोहे की जाली तोड़ी और वहां से निकल भागा.

पति की आशिकी का अंजाम – भाग 3

कमलेश की इस कहानी में कितनी सच्चाई है, मंजू यादव ने यह पता लगाने के लिए तुरंत सबइंसपेक्टर भीम सिंह रघुवंशी को कृष्णाबाग कालोनी स्थित कमलेश के घर भेजा. पूछताछ में कमलेश के पिता मनोहर पांचाल ने बताया कि कमलेश कह तो रहा था कि एक मोटरसाइकिल पर सवार 2 लड़के मुंह पर कपड़ा बांध कर घर की रेकी कर रहे थे. तब उन्होंने मोहल्ले वालों से इस बारे में पता किया था. लेकिन मोहल्ले वालों का कहना था कि इस तरह की न तो कोई मोटरसाइकिल दिखाई दी थी, न लड़के. इस से उन्हें लगा कि कमलेश को भ्रम हुआ होगा.

कमलेश की यह कहानी झूठी निकली तो पुलिस ने उसे अदालत में पेश कर के सुबूतों के आधार पर आगे की पूछताछ के लिए उसे 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया.

दूसरी ओर कमलेश के ससुर नंदकिशोर पांचाल ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिख कर निष्पक्ष जांच की गुहार की थी. उन का कहना था कि कमलेश के पिता मनोहर पांचाल हाईकोर्ट के जज की गाड़ी चलाते हैं, इसलिए कहीं मामले की जांच प्रभावित न करा दें. उन्होंने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में पिंकी की हत्या का आरोप सीधे कमलेश पर लगाया था. उन का कहना था कि बाकी तो सब ठीक था, लेकिन कमलेश के संबंध अन्य लड़कियों से थे. इसी वजह से वह पिंकी को नजरअंदाज करता था. पिंकी इस बात का विरोध कर रही थी, इसलिए कमलेश ने उस की हत्या कर दी है.

नंदकिशोर के भाई यानी पिंकी के एक चाचा इंदौर में ही एरोड्रम रोड पर स्थित राजनगर में रहते थे. उन का नाम भी कमलेश था. वह प्रेस फोटोग्राफर थे. उन का घर पिंकी के घर से मात्र एक किलोमीटर दूर था. पिंकी ने उन से भी कमलेश से अन्य लड़कियों से दोस्ती की बात बताई थी. इसलिए उन्होंने भी पुलिस को बताया था कि उन की भतीजी की हत्या उन के दामाद कमलेश ने अन्य लड़कियों की वजह से उस से छुटकारा पाने के लिए की है.

तमाम सुबूत होने के बावजूद कमलेश अपनी बात पर अड़ा था. उस का कहना था कि पिंकी की हत्या उन्हीं दोनों लड़कों ने की है, जो उस के घर लूटपाट करने आए थे. जब पुलिस ने कहा कि सारे गहने तो घर में ही मिल गए हैं तो इस पर कमलेश ने कहा, ‘‘हो सकता है, उन्हें ले जाने का मौका न मिला हो?’’

थानाप्रभारी मंजू यादव ने देखा कि कमलेश सीधे रास्ते पर नहीं आ रहा है तो उन्होंने अपने दोनों सबइंसपेक्टरों राजेंद्र सिंह दंडोत्या और भीम सिंह रघुवंशी से कहा, ‘‘यह सीधे सच्चाई बताने वाला नहीं है. इस के ससुर ने दहेज मांगने की जो रिपोर्ट दर्ज कराई है, उस के तहत इस के घर जा कर इस के पिता मनोहर, मां किरण और बहन को पकड़ लाओ. कल सभी को अदालत में पेश कर के जेल भिजवा दो.’’

थानाप्रभारी की इस धमकी पर कमलेश कांप उठा. उस ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘प्लीज, मेरे मातापिता और बहन को मत परेशान कीजिए. मेरे ससुर ने झूठा आरोप लगाया है. हम लोगों ने कभी दहेज मांगा ही नहीं है.’’

‘‘तो सच क्या है?’’ थानाप्रभारी मंजू यादव ने पूछा, ‘‘पिंकी की हत्या किस ने और क्यों की है?’’

‘‘उस की हत्या मैं ने की है. इस में मेरे घर वालों का कोई हाथ नहीं है.’’ कमलेश ने कहा.

इस तरह थानाप्रभारी मंजू यादव ने कमलेश से पिंकी की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने पिंकी की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी.

कमलेश कालेज में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेता था. वह स्टेज पर भी बढि़या अभिनय करता था. देखने में ठीकठाक था ही, इसलिए लड़कियां उस की ओर आकर्षित होने लगीं. कई लड़कियों से उस की दोस्ती भी हो गई. पढ़ाई पूरी करने के बाद उस ने काल सेंटर में नौकरी की. वहां भी उस के साथ तमाम लड़कियां नौकरी करती थीं. उन में से भी कई लड़कियों से उस की दोस्ती हो गई, जिन से वह घर आ कर भी फोन पर बातें करता रहता था.

कमलेश ने काल सेंटर की नौकरी छोड़ी तो उसे एक ऐसे एनजीओ में नौकरी मिल गई, जो रोजगार के लिए प्रेरित और दिलाने का काम करती थी. वहां स्वरोजगार का प्रशिक्षण भी दिया जाता था. इसलिए वहां भी तमाम लड़कियां रोजगार के लिए आती रहती थीं.

लड़कियां जो फार्म भरती थीं, उन में उन के फोटो के साथ जरूरी जानकारी तो होती ही थी, मोबाइल नंबर भी होता था. ऐसे में जो लड़की उसे पसंद आ जाती, नौकरी दिलाने के बहाने वह उस से बातचीत करने लगता था. कई लड़कियों को उस ने नौकरी भी दिलाई थी, जिस की वजह से उसे मध्यप्रदेश मुख्यमंत्री की ओर से अवार्ड भी मिला था.

उसी बीच प्रियंका उर्फ पिंकी से उस की शादी हो गई. लेकिन शादी के बाद उस की आदत में कोई बदलाव नहीं आया. वह पहले की ही तरह लड़कियों से दोस्ती और फोन पर बातें करता रहा. पिंकी ने कई बार टोका भी लेकिन वह नहीं माना. इस के बाद पिंकी ने सासससुर से ही नहीं, मांबाप से भी उस की शिकायत की. सब ने कमलेश को समझाया, लेकिन वह अपनी आदत से बाज नहीं आया.

उसी बीच कमलेश की मुलाकात बाणगंगा की रहने वाली एक लड़की से हुई. वह लड़की स्वरोजगार प्रशिक्षण लेने आई थी. लड़की काफी खूबसूरत थी, इसलिए वह उसे दिल दे बैठा. संयोग से लड़की उस की मीठी मीठी बातों में फंस भी गई. कमलेश उस से शादी के बारे में सोचने लगा. उस ने लड़की से बताया था कि अभी वह पढ़ रहा है, इसलिए लड़की  ने भी शादी के लिए हामी भर दी थी.

लड़की के हामी भरने के बाद कमलेश पिंकी से छुटकारा पाने के उपाय सोचने लगा. पिंकी सासससुर की लाडली बहू थी. इसलिए वह उसे छोड़ नहीं सकता था. ऐसे में पिंकी से छुटकारा पाने का उस के पास एक ही उपाय था कि वह उस की हत्या कर दे. इस के बाद उस ने पिंकी की हत्या की जो योजना बनाई, उस के अनुसार वह सब से कहने लगा कि सुबहशाम मुंह पर कपड़ा बांध कर 2 लड़के पलसर मोटरसाइकिल से उस के घर के आसपास चक्कर लगा रहे हैं. लेकिन मोहल्ले के किसी आदमी ने ऐसे लोगों को देखा नहीं.

वह पिंकी की हत्या के लिए मौके की तलाश में था. वह इस काम को तभी अंजाम दे सकता था, जब पिंकी घर में अकेली हो. उसे तब मौका मिल गया, जब उस के नाना के मरने पर मां अपने मायके चली गईं. 17 फरवरी, 2014 सोमवार को पिता के ड्यूटी पर चले जाने के बाद घर में पिंकी और कमलेश ही घर में रह गए. पिंकी घर के काम निपटाने में लगी थी.

तभी कमलेश ने योजना के तहत पिंकी की हत्या करने में चाकू वगैरह पर अंगुलियों के निशान न आएं, इस के लिए रबर के दास्ताने पहन लिए. वह दास्ताने पहन कर तैयार हुआ था कि किसी का फोन आ गया तो वह फोन पर बातें करने लगा. उसी बीच पिंकी ने कमलेश से कहा, ‘‘आप कपड़े भिगो देते तो खाली होने पर मैं धो लेती.’’

कमलेश कपड़े भिगोने के बजाय किचन में जा कर फोन पर बातें करने लगा. पिंकी ने देखा कि वह कपड़े भिगोने के बजाय फोन पर ही बातें कर रहा है तो उस ने झुंझला कर कहा, ‘‘कपड़े भिगोने के लिए कह रही हूं, वह तो करते नहीं, फालतू फोन पर बातें कर रहे हो.’’

पिंकी की इस बात पर कमलेश को गुस्सा आ गया तो उस ने पिंकी को एक तमाचा मार दिया. पति की इस हरकत से नाराज हो कर पिंकी ने भी उसे ऐसा धक्का दिया कि उस का सिर दीवार से टकरा गया, जिस की वजह से वह चकरा कर गिर पड़ा.

कमलेश तो चाहता ही था कि कुछ ऐसा हो, जिस से वह पिंकी से भिड़ सके. संयोग से मौका भी मिल गया गया. चोट लगने से वह तिलमिला कर उठा और किचन में रखा सब्जी काटने का चाकू उठा कर पिंकी पर झपटा. लेकिन पिंकी हट गई तो चाकू दीवार से जा लगा, जिस की वजह से टूट गया.

कमलेश इस मौके को गंवाना नहीं चाहता था, इसलिए दूसरा चाकू उठा कर पिंकी पर टूट पड़ा. पिंकी का मुंह दबा कर लगातार वार करने लगा. पिंकी मूर्छित हो कर जमीन पर गिर पड़ी तो उस ने उस का गला रेत दिया. थोड़ी देर छटपटा कर पिंकी मर गई. कमलेश ने देखा की पिंकी मर गई है तो उस ने खून सने कपड़े उतार कर बेडरूम में छिपा दिए और फिर बाथरूम में जा कर हाथपैर साफ किए.

दूसरे कपड़े पहन कर उस ने इस हत्या को लूट में हत्या का रूप देने के लिए अलमारी खोल कर सारा सामान बिखेर दिया. कुछ गहने उस ने पलंग के नीचे डाल दिए तो कुछ खिड़की से पिछवाड़े फेंक दिए. इतना सब करने के बाद वह वहां से भाग जाना चाहता था, लेकिन तभी उस की बुआ के बेटे राहुल ने दरवाजा खटखटा दिया. अब वह बाहर तो जा नहीं सकता था, इसलिए खुद को बचाने के लिए वह मरी पड़ी पिंकी के ऊपर लेट गया. इस के बाद राहुल ने अंदर आ कर उसे अस्पताल में भरती कराया और घटना की जानकारी पुलिस को दी.

पूछताछ के बाद पुलिस कमलेश को उस के घर ले गई, जहां घर के पीछे से उस के द्वारा फेंके गए गहने बरामद कर लिए. पुलिस ने उस के फोन की काल डिटेल्स पहले ही निकलवा ली थी. उस के अनुसार उस ने साल भर में लड़कियों को 24 हजार फोन और एसएमएस किए थे. पुलिस ने सारे सुबूत जुटा कर 24 फरवरी को कमलेश को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक वह जेल में ही था.

कथा पुलिस सूत्रों एवं घर वालों से की गई बातचीत पर आधारित

बेटी का हत्यारा बाप – भाग 1

कालेज पहुंचने के लिए अभी पर्याप्त समय था, इसलिए कंधे पर बैग लटकाए प्राची मस्ती से चली जा रही थी.  घर से निकल कर अभी वह थोड़ी दूर गई थी कि उस ने महसूस किया कि उसे 2 आंखें लगातार घूर रही हैं. लड़कियों के लिए यह कोई खास बात नहीं है, इसलिए ध्यान दिए बगैर वह अपनी राह चली गई. एक दिन की बात होती तो शायद वह इस बात को भूल जाती, लेकिन जब वे 2 आंखें उसे रोज घूरने लगीं तो उसे उन में उत्सुकता हुई.

एक दिन जब प्राची ने उन आंखों में झांका तो आंखें मिलते ही उस के शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई. उस ने झट अपनी आंखें फेर लीं. लेकिन उस ने उन आंखों में ऐसा न जाने कौन सा सम्मोहन देखा कि उस से रहा नहीं गया और उस ने एक बार फिर पलट कर उन आंखों में अपनी आंखें डाल दीं. वे आंखें अपलक उसे ही ताक रही थीं. इसलिए दोबारा आंखें मिलीं तो उस के दिल की धड़कन बढ़ गई.

उन आंखों में प्राची के लिए चाहत का समंदर लहरा रहा था. यह देख कर उस का दिल बेचैन हो उठा. न चाहते हुए भी उस की आंखों ने एक बार फिर उन आंखों में झांकना चाहा. इस बार आंखें मिलीं तो अपने आप ही उस के होंठ मुसकरा उठे. शरम से उस के गाल लाल हो गए और मन बेचैन हो उठा. वह तेजी से कालेज की ओर बढ़ गई.

कहते हैं, लड़कियों को लड़कों की आंखों की भाषा पढ़ने में जरा भी देर नहीं लगती. प्राची ने भी उस लड़के की आंखों की भाषा पढ़ ली थी. वह कालेज तो चली गई, लेकिन उस दिन पढ़ाई में उस का मन नहीं लगा. बारबार वही आंखें उस के सामने आ जातीं. नोटबुक और किताबों में भी उसे वही आंखें दिखाई देतीं. उस का मन बेचैन हो उठता. सिर झटक कर वह पढ़ाई में मन लगाना चाहती, लेकिन मन अपने वश में होता तब तो पढ़ाई में लगता. वह खोईखोई रही.

कालेज की छुट्टी हुई तो प्राची घर के लिए चल पड़ी. रोज की अपेक्षा उस दिन वह कुछ ज्यादा ही तेज चल रही थी. वह जल्दी ही उस जगह पर पहुंच गई, जहां उसे वे आंखें घूर रही थीं. लेकिन उस समय वहां कोई नहीं था. वह उदास हो गई. बेचैनी में वह घर की ओर चल पड़ी. प्राची को घूरने वाली उन आंखों के चेहरे की तलाश थी. घूरने वाली वे आंखें किसी और की नहीं, उस के घर से थोड़ी दूर रहने वाले आयुष्मान त्रिपाठी उर्फ मोनू की थीं.

प्राची इधर काफी दिनों से उसे अपने मोहल्ले में देख रही थी. वह उसे अच्छी तरह जानती भी थी, लेकिन कभी उस से उस की बात नहीं हुई थी. इधर उस ने महसूस किया था कि आयुष्मान अकसर उस से टकरा जाता था. लेकिन उस से आंखें मिलाने की हिम्मत नहीं कर पाता था. प्राची ने कालेज जाते समय उस की आंखों में झांका था तो उस ने आंखें झुका ली थीं. फिर जैसे ही उस ने मुंह फेरा था, वह फिर उसे ताकने लगा था.

प्राची ने उस दिन आयुष्मान में बहुत बड़ा और हैरान करने वाला बदलाव देखा था. सिर झुकाए रहने वाला आयुष्मान उसे प्यार से अपलक ताक रहा था. कई बार उन आंखों से प्राची की आंखें मिलीं तो उस के दिल में तूफान सा उमड़ पड़ा था.

उस के होंठों पर बरबस मुसकान उभर आई थी. दिल की धड़कन एकाएक बढ़ गई थी. विचलित मन से वह घर पहुंची थी. इस के बाद उस के ख्यालों में आयुष्मान ही आयुष्मान छा गया था.

घर पहुंच कर प्राची ने बैग रखा और बिना कपड़े बदले ही सीधे छत पर जा पहुंची. उस ने आयुष्मान के घर की ओर देखा. लेकिन आयुष्मान उसे दिखाई नहीं दिया. वह उदास हो गई. उस का मन एक बार फिर उन आंखों में झांकने को बेचैन था. लेकिन उस समय वे आंखें दिखाई नहीं दे रही थीं. वह उन्हीं के बारे में सोच रही थी कि नीचे से मां की आवाज आई, ‘‘प्राची, आज तुझे क्या हो गया कि आते ही छत पर चली गई? कपड़े भी नहीं बदले और खाना भी नहीं खाया. चल जल्दी नीचे आ जा. मुझे अभी बहुत काम करने हैं.’’

मां की बातें सुन कर ऊपर से ही प्राची बोली, ‘‘आई मां, थोड़ा टहलने का मन था, इसलिए छत पर आ गई थी.’’

प्राची ने एक बार फिर आयुष्मान की छत की ओर देखा. वह दिखाई नहीं दिया तो उदास हो कर प्राची नीचे आ गई. रात को खाना खाने की इच्छा नहीं थी, पर मां से क्या बहाना बनाती, इसलिए 2-4 कौर किसी तरह पानी से उतार कर प्राची बेड पर लेट गई. लेकिन आंखों में नींद नहीं थी.

आंखें बंद करती तो उसे आयुष्मान की घूरती आंखें दिखाई देने लगतीं. करवट बदलते हुए जब किसी तरह नींद आई तो उस ने सपने में भी उन 2 आंखों को प्यार से निहारते देखा.

दूसरी ओर आयुष्मान भी कम बेचैन नहीं था. सुबह तो समय निकाल कर उस ने प्राची को देख लिया था, लेकिन शाम को देर हो जाने की वजह वह प्राची को नहीं देख पाया था, इसलिए अगले दिन की सुबह के इंतजार में समय कट ही नहीं रहा था. वैसे भी इंतजार की घडि़यां काफी लंबी होती हैं.

अगले दिन सुबह जल्दी उठ कर प्राची कालेज जाने की तैयारी करने लगी थी. लेकिन उस दिन ऐसा लग रहा था, जैसे समय बीत ही नहीं रहा है. आखिर इंतजार करतेकरते कालेज जाने का समय हुआ तो प्राची उस दिन कुछ ज्यादा ही सजधज कर घर से निकली. वह उस जगह जल्दी से जल्दी पहुंच जाना चाहती थी, जहां बैठ कर आयुष्मान उस के आने का इंतजार करता था.

पंख होते तो शायद वह उड़ कर पहुंच जाती, लेकिन उसे तो वहां पैरों से चल कर पहुंचना था. वह दौड़ कर भी नहीं जा सकत थी. कोई देख लेता तो क्या कहता. जैसेजैसे वह जगह नजदीक आती जा रही थी, उस के दिल की धड़कन बढ़ने के साथ मन बेचैन होता जा रहा था.

वह उस जगह पर पहुंची तो देखा कि आयुष्मान अपलक उसे ताक रहा था. उस ने उस की आंखों में अपनी आंखें डाल दीं. आंखें मिलीं तो होंठ अपने आप ही मुसकरा उठे. उस का आंखें हटाने का मन नहीं हो रहा था, लेकिन राह चलते यह सब ठीक नहीं था. ऐसी बातें लोग ताड़ते भी बहुत जल्दी हैं. वह उसे पलटपलट कर भी नहीं देख सकती थी. फिर भी शरमसंकोच के बीच उस से जितनी बार हो सका, उस ने उसे तब तक देखा, जब तक वह उसे दिखाई देता रहा.

साफ था, दोनों ही आंखों के रास्ते एकदूसरे के दिल में उतर चुके थे. उस रात दोनों को ही नींद नहीं आई. बेड पर लेटेलेटे बेचैनी बढ़ने लगी तो प्राची बेड से उठ कर छत पर आ गई. खुले वातावरण में गहरी सांस ले कर उस ने इधरउधर देखा. आसमान में तारे चमक रहे थे. उस ने उन तारों की ओर देखा तो उसे लगा कि हर तारे से आयुष्मान मुसकराता हुआ उसे ताक रहा है.

लौकेट का रहस्य – भाग 2

जगजीत उर्फ जीते की कहानी मैं ने गौर से सुनी. उस से कुछ सवाल पूछने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि उस की बातों में जरा भी झूठ की मिलावट नहीं है. कुसूर यकीनन उस लड़की का था. अब सवाल यह था कि खातेपीते रईस घर की लड़की ने आखिर हौकर से ही नजरें क्यों लड़ाईं?

मैं ने सोचा कि जब किसी लड़की का दिल किसी पर आता है तो वह ऊंचनीच नहीं देखती. हो सकता है बग्गा की बेटी के साथ भी यही रहा हो. जीते ने उस के प्रति जो बेरुखी दिखाई थी, वह उस से बेचैन हो गई होगी. संभव है उस ने अपने भाई की मोटरसाइकिल अपने किसी चाहने वाले से चोरी करवा दी हो. अगर ऐसा नहीं भी हुआ होगा तो उस ने मौके का फायदा उठाया होगा और मोटरसाइकिल चोरी होने पर जानबूझ कर शक की सुई जीते की ओर मोड़ दी होगी.

घटनास्थल देखने के बहाने मैं उसी दिन बग्गा की कोठी पर पहुंचा. मैं ने नौकरों और घर वालों से पूछताछ की. पम्मी भी वहीं मौजूद थी. वह खूबसूरत थी. साथ ही चालाक भी नजर आ रही थी. उस ने भी अपने बयान में वही बताया, जो उस के पिता और भाई ने बताया था.

अभी मैं कोठी में पूछताछ कर ही रहा था कि मोटरसाइकिल की पहेली हल हो गई. थाने से हवलदार बिलाल शाह चोरी की उसी मोटरसाइकिल पर सवार हो कर वहां आ गया. उस ने बताया कि मोटरसाइकिल नहर के पास से बरामद हुई है. चोर भी पकड़ा गया था. जीते ने ठीक ही कहा था. उसे सबक सिखाने के लिए पम्मी ने ही यह चोरी करवाई थी. कहने को तो यह केस यहीं खत्म हो गया था, पर हकीकत में खत्म नहीं हुआ था, बल्कि इस के बहाने एक नया मामला सामने आ गया था.

थाने आ कर जब मैं जीते को रिहा करने के लिए कागजी काररवाई कर रहा था, तभी जामातलाशी की एक चीज देख कर मैं बुरी तरह चौंका. मैं ने जीते को एक कागज पर दस्तखत करने के लिए कहा. वह दस्तखत करने के लिए मेज पर झुका तो उस के गले का लौकेट लटक कर मेरी आंखों के सामने लहराने लगा. हालांकि यह लौकेट जीते के गले में मैं पहले भी देख चुका था.

सोने के उस तिकोने लौकेट के बीचोबीच ‘ॐ’ बना हुआ था. उस के ऊपर वाले कोने पर एक लाल रंग का नग व नीचे के 2 कोनों पर सफेद नग जड़े थे. मुझे लगा कि उस लौकेट को मैं पहले भी कहीं देख चुका हूं. लेकिन याद नहीं आ रहा था कि कहां देखा है. मैं ने दिमाग पर जोर डाला तो सब कुछ याद आ गया.

करीब 5 साल पहले मेहता सेठ के घर डकैती पड़ी थी. इस डकैती में मेहता सेठ की गोली लगने से मौत हो गई थी. इस वारदात में कीमती जेवरात बच गए थे, क्योंकि वे तिजोरी के एक भीतरी खाने में पड़े थे. डकैतों ने केवल वही जेवर लूटे थे, जो मेहता की बीवी ने उस वक्त पहन रखे थे.

लूटे गए जेवरों में सोने की चूडि़यां, झुमके, लौकेट व एक अंगूठी थी. जो लौकेट लूटा गया था, उसी डिजाइन का एक लौकेट तिजोरी में रखा हुआ था. मेहता की बीवी ने वह लौकेट तिजोरी से निकाल कर मुझे दिखाते हुए बताया था कि जो लौकेट डाकू ले गए हैं, वह हूबहू ऐसा ही था.

तफ्तीश के लिए मैं उस लौकेट को मेहता की बीवी से ले आया था. बाद में वह लौकेट महीनों तक मेरी दराज में पड़ा रहा था. मैं ने उसे सैकड़ों बार देखा था. बाद में कोई सुराग न मिलने की वजह से इस केस की फाइल बंद कर दी थी और मैं ने लौकेट वापस लौटा दिया था.

गौर से देखने के बाद मैं ने जीते से पूछा, ‘‘जीते, बड़ा खूबसूरत लौकेट पहने हो. तुम्हारा ही है या किसी ने दिया है?’’

‘‘जी…हां, जी…नहीं…’’ उस ने घबरा कर हां और ना दोनों कहा तो मैं ने पूछा, ‘‘क्या मतलब, तुम्हारा नहीं है?’’

‘‘जी नहीं, यह मुझे राह चलते बाजार में पड़ा मिला था. यह कीचड़ से सना हुआ था. मैं ने धो कर काले धागे में डाल कर पहन लिया.’’

‘‘इस का मतलब यह तुम्हारे पास गैरकानूनी है?’’ मैं ने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा तो वह घबरा गया. अचानक उस का हाथ गले की तरफ बढ़ा. वह लौकेट उतारना चाहता था. मैं ने उसे रोकते हुए कहा, ‘‘अब रहने दो. लेकिन आइंदा ध्यान रखना कि गुमशुदा चीज मिलने का मतलब यह नहीं होता कि उसे अपने पास रख लिया जाए. तुम्हें पता है, गुमशुदा चीजों से कभीकभी काम के कई सुराग मिल जाते हैं.’’

बहरहाल, मैं ने उसे समझा कर वापस भेज दिया. चूंकि उस लौकेट को मैं ने पहचान लिया था, इसलिए यह जरूरी हो गया था कि मैं जीते की निगरानी करवाऊं. क्योंकि उस लौकेट से 5 साल पुरानी डकैती और हत्या का रहस्य खुल सकता था. मैं ने उस की निगरानी का काम बिलाल शाह को सौंप दिया. बिलाल शाह ने 4 रोज बाद मुझे बताया कि जीते और बग्गा की लड़की पम्मी का मामला अभी खत्म नहीं हुआ, बल्कि और भी ज्यादा भड़क गया है.

‘‘कैसे?’’ मैं ने पूछा तो बिलाल शाह ने बताया, ‘‘सच्ची बात छिपी नहीं रहती है जी. जीते ने तो उसी दिन से बग्गा के घर अखबार डालना बंद कर दिया था. अब तो वह उस इलाके में भी नहीं जाता. लेकिन बग्गा की लड़की बड़ी तेज निकली. परसों शाम वह उस के बुकस्टाल पर जा धमकी. बुकस्टाल पर जीते का कोई बुजुर्ग रिश्तेदार बैठता है. उस के सामने वह जीते को खींच कर अपने साथ ले गई. एक होटल में उस ने चाय वगैरह मंगवाई और जीते के सामने रो कर कहने लगी कि उस से बहुत बड़ी गलती हो गई है और वह माफी चाहती है.

वह किसी भी तरह से जीते का पीछा नहीं छोड़ना चाहती थी. आखिर जीते ने अपना पीछा छुड़ाने के लिए हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘बीबी, मैं ने तुझे माफ किया. मेरे वाहेगुरु ने भी तुझे माफ किया.’’

लेकिन यह बात छिपी नहीं रह सकी. बग्गा के बेटे के एक दोस्त ने दोनों को देख लिया था. उस ने जा कर यह बात पम्मी के भाई को बता दी. उस का भाई अपने दोस्तों के साथ बुकस्टाल पर पहुंचा और जीते को उठा कर एक पार्क में ले गया. उस ने धमकी दी कि वह अपनी खैरियत चाहता है तो शहर छोड़ कर चला जाए. लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई. आज सवेरे कुछ लोगों ने जीते को अगवा कर लिया है.’’

जीते का गायब होना मामूली बात नहीं थी. उस से बड़ी बात यह थी कि उस के गले में वह लौकेट था, जो देरसवेर मुझे 5 साल पुरानी डकैती की वारदात का सुराग दे सकता था. मैं ने पम्मी और उस के भाई को बुला कर पूछताछ की. पम्मी के भाई ने स्वीकार किया कि उस ने जीते को धमकी जरूर दी थी, पर उस के अपहरण के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है.

मैं ने जीते के रिश्तेदार से भी इस के बारे में जानकारी एकत्र करने की नीयत से कुरेद कुरेद कर सवाल पूछे. उस ने बताया कि जीते ने किसी वजह से नाराज हो कर अपना घर छोड़ा था और उस का वापस जाने का कोई इरादा नहीं था. साथ ही यह भी कि वह यहीं अपनी पढ़ाई पूरी कर के सरकारी नौकरी करना चाहता था. वैसे वह अच्छे खातेपीते घर का है, पर इन दिनों उस का परिवार आर्थिक संकट से जूझ रहा है. उस के पिता जामनगर में ही क्लर्क की नौकरी करते हैं.

पति की आशिकी का अंजाम – भाग 2

कमलेश शादी लायक हो गया था. वह नौकरी भी कर रहा था, इसलिए उस की शादी के लिए रिश्ते आने लगे थे. मनोहर और किरण भी बेटे की शादी करना चाहते थे, इसलिए वे बेटे के लिए लड़की देखने लगे थे. काफी खोजबीन के बाद आखिर उन्होंने नागदा के रहने वाले नंदकिशोर पांचाल की बेटी प्रियंका उर्फ पिंकी को पसंद कर लिया था.

जैसा कमलेश के मांबाप चाहते थे, पिंकी वैसी ही पढ़ीलिखी, खूबसूरत, सुशील और समझदार घरेलू लड़की थी. सारी बातचीत के बाद पूरी रस्मोरिवाज के साथ 12 मई, 2013 को कमलेश और पिंकी का धूमधाम से विवाह हो गया. पिंकी बाबुल के घर से विदा हो कर अपने सपनों के राजकुमार के घर आ गई.

अब पिंकी को उस पल का इंतजार था, जो जिंदगी में सिर्फ एक बार आता है. वह पल आ गया, लेकिन उस का पति कमलेश उस का घूंघट उठा कर प्यार करने के बजाय उतनी रात को भी न जाने किस से फोन पर बातें करने में लगा था. पिंकी को यह सब अच्छा तो नहीं लग रहा था, लेकिन संकोचवश वह कुछ कह नहीं पा रही थी. वह भले ही कुछ नहीं कह पा रही थी, लेकिन यह जरूर सोच रही थी कि ऐसा कौन सा खास आदमी है, जिस से वह उसे छोड़ कर फोन पर बातें करने में लगा है.

कमलेश ने सुहागरात तो मनाई, लेकिन उस में वह जोश नहीं था, जो होना चाहिए था. जिस की कसक पिंकी साफ महसूस कर रही थी. उस की यह कसक बढ़ती जा रही थी, क्योंकि कमलेश का लगभग रोज का वही नियम था. वह होता तो पिंकी के पास था, लेकिन बातें किसी और से करता रहता था. उस की बातें सुन जब पिंकी को लगा कि वह लड़कियों से बातें करता है तो उस की कसक और बढ़ गई.

कमलेश की काल सेंटर की नौकरी कोई बहुत अच्छी नहीं थी, इसलिए वह किसी अच्छी नौकरी की तलाश में था. उसे एक एनजीओ में काम मिल गया तो उस ने काल सेंटर वाली नौकरी छोड़ दी. यह लगभग 6 महीने पहले की बात है. उस एनजीओ की ओर से वह मध्यप्रदेश मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत लोगों को प्रशिक्षण देता था. उस ने अपना यह काम पूरी ईमानदारी और लगन से किया था. इसलिए उसे मुख्यमंत्री ने अवार्ड भी प्रदान किया था. एनजीओ से जुड़ने के बाद कमलेश फोन पर कुछ ज्यादा ही व्यस्त रहने लगा था. वह देर रात तक फोन पर बातें करता रहता था. पिंकी अकसर उकता कर सो जाती थी.

पिंकी इस का पुरजोर विरोध कर रही थी. लेकिन कमलेश में कोई सुधार नहीं आ रहा था. तब पिंकी ने इस बात की शिकायत अपने सासससुर से ही नहीं, मांबाप से भी की. कमलेश के मांबाप ने जब उसे टोका तो यह बात उसे बड़ी नागवार लगी. पिंकी का इस तरह जिंदगी में दखल देना उसे अच्छा नहीं लगा. इस के बाद पतिपत्नी में तनाव रहने लगा.

कमलेश पिंकी को इसलिए कुछ नहीं कह पाता था, क्योंकि उस के मांबाप बहू को बहुत प्यार करते थे. उन की बहू थी भी इस लायक. वह सासससुर का हर तरह से खयाल रखती थी. उन्हें हमेशा हाथों पर लिए रहती थी.

ऐसी बहू की हत्या हो जाने से मनोहर और किरण बहुत परेशान थे, इसलिए वे केस को खोलने और हत्यारे को पकड़वाने के लिए पुलिस पर दबाव बनाए हुए थे. चूंकि वह ज्युडिशियरी से जुड़े थे, इसलिए पुलिस पर इस मामले को जल्द से जल्द खोलने का दबाव भी था.

कमलेश अगर अपना बयान दे देता तो पुलिस को हत्यारे तक पहुंचने में आसानी होती. इसलिए पुलिस उस से पूछताछ के लिए अस्पताल के चक्कर लगा रही थी. लेकिन पुलिस जब भी अस्पताल पहुंचती, पता चलता वह बेहोश है. जबकि डाक्टरों के अनुसार वह पूरी तरह से स्वस्थ था. अब पुलिस को उसी पर शक होने लगा. लेकिन पुलिस उस पर शक के आधार पर हाथ नहीं डाल सकती थी, क्योंकि उस के पिता हाईकोर्ट के जज की गाड़ी चलाते थे. जरा भी इधरउधर हो जाता तो पुलिस को जवाब देना मुश्किल हो जाता. इसलिए पुलिस उस के खिलाफ सुबूत जुटाने लगी.

पुलिस ने सब से पहले उस के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. इस काल डिटेल्स से ऐसे तमाम नंबर मिले, जिन पर उस की लंबीलंबी बातें हुई थीं. पुलिस ने जब उन नंबरों के बारे में पता किया तो वे सभी नंबर लड़कियों के थे. इस से यह बात साफ हो गई कि वह काफी आशिकमिजाज लड़का था.

थानाप्रभारी मंजू यादव की समझ में आ गया था कि कमलेश पुलिस की पूछताछ से बचने के लिए बेहोश और कमजोरी होने का नाटक कर रहा है. वैसे भी वह नाटकों में काम कर चुका था. कालेज के समय में उसे अभिनय सम्राट कहा जाता था. उसे नाटकों के लिए कई अवार्ड भी मिले थे. इसलिए मंजू यादव ने भी उस के साथ नाटक करने की योजना बनाई.

वह सबइंसपेक्टर राजेंद्र सिंह दंडोत्या, भीम सिंह रघुवंशी और कुछ पुलिस वालों को साथ ले कर अस्पताल पहुंचीं. क्योंकि अब तक उन्हें कुछ ऐसे सुबूत मिल चुके थे, जिस से उन्हें लग रहा था कि पिंकी की हत्या कमलेश ने ही की है. इस की वजह यह थी कि कमरे में केवल उसी की अंगुली के निशान मिले थे. जांच के लिए कमलेश के खून से सने कपड़े और पलंग के नीचे से मिले जो गहने पुलिस ने बरमाद किए थे, उन पर जो खून के दाग लगे थे, वह पिंकी के खून के थे.

अपने शक को दूर करने के लिए पुलिस ने कमलेश की काल डिटेल्स से मिले एक नंबर पर उसी के फोन से फोन किया, जिस पर उस ने उसी रात काफी लंबीलंबी बातचीत की थी. फोन लगते ही दूसरी ओर से फोन रिसीव कर लिया गया था, इधर से बिना कुछ कहे ही दूसरी ओर से सीधे कहा गया, ‘‘कमलेश, तुम ने जो किया, वह ठीक नहीं किया. तुम बहुत ही गंदे आदमी हो. आखिर तुम ने अपनी पत्नी की हत्या कर ही दी. लेकिन अब इस मामले में मुझे मत फंसाना, क्योंकि इस में मेरी कोई भूमिका नहीं है. और हां, अब कभी मुझे भूल कर भी फोन मत करना.’’

इतना कह कर फोन रिसीव करने वाली लड़की ने फोन काट दिया था. पुलिस ने लड़की की यह बातचीत टेप कर ली थी. बाद में पुलिस ने उस  लड़की के बारे में पता किया तो वह बाणगंगा मोहल्ले की निकली.

थानाप्रभारी मंजू यादव अपने साथियों के साथ सीएचएल अस्पताल के उस कमरे में जैसे ही पहुंचीं, जिस में कमलेश भरती था, उन्हें देख कर कमलेश तुरंत बेहोश हो गया. कमलेश की मां किरण उस की देखभाल के लिए वहीं थीं. पुलिस उन्हें बाहर भेज कर कमलेश से बात करने की कोशिश करने लगी. कमलेश बेहोशी का नाटक तो किए ही था, अब कराहने भी लगा.

थानाप्रभारी मंजू यादव भी कम नाटकबाज नहीं थीं. उन्होंने सच्चाई का पता लगाने के लिए एक योजना बनाई. उस योजना के तहत उन्होंने एक सिपाही को परदे के पीछे छिपा कर खड़ा कर दिया और एक मोबाइल फोन का वाइस रिकौर्ड चालू कर के कमलेश के बेड पर इस तरह रख दिया कि उसे पता नहीं चला. इस के बाद उन्होंने साथियों के साथ बाहर आ कर कमलेश की मां से कहा, ‘‘कमलेश अभी बयान देने लायक नहीं है. जब वह बयान देने लायक हो जाए, आप हमें सूचना भिजवा दीजिएगा. हम सभी आ कर बयान ले लेंगे.’’

इतना कह कर थानाप्रभारी मंजू यादव ने किरण को अंदर भेज दिया. मां के अंदर आते ही कमलेश को होश आ गया. उस ने तुरंत पूछा, ‘‘पुलिस वाले चले गए?’’

मां ने हां में सिर हिलाया तो वह उन से अच्छी तरह बातें करने लगा. उसे अच्छी तरह बातें करते देख परदे के पीछे छिप कर खड़े सिपाही ने मिसकाल दे कर थानाप्रभारी मंजू यादव को अंदर आने का इशारा कर दिया. वह साथियों के साथ तुरंत अंदर आ गईं. कमरे में अचानक पुलिस को देखते ही कमलेश फिर से बेहोशी का नाटक कर के कराहने लगा.

मंजू यादव ने हंसते हुए पलंग पर छिपा कर रखे मोबाइल फोन को उठा कर रिकौर्ड हुई मांबेटे की बातचीत सुनाई तो कमलेश का कराहना बंद हो गया. उसे तुरंत अस्पताल से छुट्टी करा कर थानाप्रभारी मंजू यादव रानीसराय स्थित पुलिस मुख्यालय ले गईं. उन्होंने वहां वीडियोग्राफी की तैयारी पहले से ही करा रखी थी.

वीडियोग्राफी कराते हुए कमलेश से पूछताछ शुरू हुई. इस पूछताछ में उस ने पुलिस को भरमाने के लिए एक कहानी सुनाई, जो इस प्रकार थी.

कमलेश ने बताया कि 4-5 दिनों से काले रंग की एक पलसर मोटरसाइकिल से 2 लड़के मुंह पर कपड़ा बांध कर उस के घर के आसपास चक्कर लगा रहे थे. उस दिन वही दोनों लड़के उस के घर में घुस आए और उस के सिर पर डंडा मार कर उसे बेहोश कर दिया. इस के बाद उन्होंने लूटपाट की होगी. पिंकी ने विरोध किया होगा या उन्हें पहचान लिया होगा, जिस की वजह से उन्होंने उस की हत्या कर दी होगी.

लौकेट का रहस्य – भाग 1

उस दिन सुबह जब मैं थाने पहुंचा तो थाने के अहाते में काले रंग की एक कार खड़ी हुई थी. कार के पास 4 लोग खड़े थे, जिन में एक ड्राइवर था. सलामदुआ के बाद अधेड़ व्यक्ति ने अपना  नाम महेश बग्गा बताया. महेश बिजनैसमैन थे और शहर के बाहर अजनाला रोड पर उन की सरिया मिल थी.

अमृतसर के पौश इलाके सिविल लाइंस में उन की आलीशान कोठी थी. उन्होंने बताया कि आज सुबह कोठी से उन के बेटे की नई मोटरसाइकिल चोरी हो गई है. उन का 22-23 साल का वह खूबसूरत जवान बेटा भी साथ था, जिस की मोटरसाइकिल चोरी हुई थी.

उस ने कहा, ‘‘मैं सैर पर जाने के लिए सुबह 5 बजे उठ जाता हूं. आज उठ कर जाने के लिए तैयार हुआ तो गैराज में मोटरसाइकिल नहीं थी. मैं ने घर वालों से पूछा, पर किसी को कुछ पता नहीं था. पड़ोसी ने बताया कि उस ने सुबह करीब पौने 5 बजे मोटरसाइकिल स्टार्ट होने की आवाज सुनी थी.’’

उस ने आगे बताया, ‘‘हमारे यहां हौकर सुबह 5 बजे अखबार डालता है. वह ज्यादातर बाहर से ही अखबार फेंकता था. पिछले कई दिनों से बारिश हो रही थी, इसलिए मैं ने दादीजी से कहा था कि वह सुबह पूजापाठ के लिए उठती हैं तो अंदर से दरवाजा खोल दिया करें, ताकि हौकर अखबार अंदर आ कर बरामदे में डाल सके. वह ऐसा ही करने लगा था.

आज का अखबार बरामदे में पड़ा हुआ था. इस का मतलब करीब 5 बजे हौकर जीता अंदर आया था. मेरी बहन पम्मी का कहना है कि चंद रोज पहले वह मोटरसाइकिल पर झुका हुआ कुछ कर रहा था. उसे देख कर वह ठिठक गया था.

झेंप कर कहने लगा, ‘पैट्रोल गिर रहा था, मैं ने बंद कर दिया है.’ लेकिन जब पम्मी ने देखा तो वहां पैट्रोल गिरने का कोई निशान नहीं था. पम्मी ने उसी दिन मुझ से कहा भी था, ‘भैया, मोटरसाइकिल नई है, अंदर रखा करें.’ मगर मैं ने ही ध्यान नहीं दिया था.’’

मामला कोई खास नहीं था. मैं ने बग्गा और उस के बेटे की तहरीर पर कच्ची रिपोर्ट लिखा दी और 2 सिपाहियों को इस निर्देश के साथ भेज दिया कि न्यूज एजेंसी जा कर हौकर जीते का पता करें. आधे घंटे बाद दोनों सिपाही जीते को थाने ले आए.

जगजीत उर्फ जीता 17-18 साल का खूबसूरत लड़का था. वह नजरें झुका कर मेरे सामने खड़ा हो गया. वह बेहद डरा हुआ था. मैं ने उस से नामपता पूछा तो उस ने बताया कि वह कस्बा जामपुर का रहने वाला है और यहां अमृतसर में अपने एक दूर के रिश्तेदार के पास रहता है. सुबह कालेज जाता है, शाम को बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता है और तड़के अखबार बांटता है.

मैं ने आवाज को थोड़ी सख्त कर के उस से पूछा, ‘‘जीते, तुम ने आज सुबह बग्गा साहब की कोठी से जो मोटरसाइकिल उठाई है, वह कहां है?’’

वह हकला कर बोला, ‘‘इंसपेक्टर साहब, यह आप क्या कह रहे हैं? यह मुझ पर सरासर झूठा इलजाम है. मैं मेहनतमजदूरी कर के चार पैसे कमाता हूं और अपनी पढ़ाई करता हूं.’’

मैं अभी जीते से बात कर ही रहा था कि न्यूज एजेंसी का मालिक और उस का वह रिश्तेदार भी आ गया, जिस के पास वह रहता था. मैं ने उन से कहा, ‘‘इस की खैरियत चाहते हो तो चोरी का माल बरामद करवा दो, वरना सब को रगड़ा लगेगा.’’

लेकिन मेरे डरानेधमकाने के बावजूद भी कोई नतीजा नहीं निकला. जीते ने स्वीकार किया कि वह 5 बजे के करीब कोठी में अखबार डालने के लिए दाखिल जरूर हुआ था, लेकिन उस ने मोटरसाइकिल को छुआ तक नहीं था. उस ने यह भी बताया कि उस वक्त मोटरसाइकिल अपनी जगह मौजूद थी.

पूछताछ में यह बात सामने आई कि जीता पिछले 4-5 दिनों से पैदल घूम कर अखबार डाल रहा था. यह बात शक पैदा करने वाली थी. मैं ने इस की वजह पूछी तो जीते की जगह उस का रिश्तेदार बोला, ‘‘इस की साइकिल कई दिनों से खराब पड़ी है जी, इसलिए इसे पैदल घूमना पड़ता है.’’

मैं ने एक हवलदार से कहा कि वह जीते को ले जा कर थोड़ा शक दूर कर ले. हवलदार ने हवालात में ले जा कर जीते के कसबल निकाल दिए. हवलदार जब उसे मेरे सामने लाया तो वह बुरी तरह कांप रहा था. उस ने हाथ जोड़ कर मुझ से कहा, ‘‘साहब, मैं आप से अकेले में बात करना चाहता हूं.’’

मैं समझ गया कि वह बग्गा और उस के बेटे से कुछ छिपाना चाहता है. इसलिए मैं ने उसे हवालात में भेज दिया, ताकि उस से वहीं बात कर सकूं.

करीब एक घंटा बाद मैं ने जीते से पूछताछ की. उस की आंखों में मर्दाना कशिश थी. डीलडौल भी अच्छा था. अगर उस का संबंध किसी रईस घर से होता, जिस्म पर अच्छा लिबास होता तो राह चलती औरतें उसे मुड़ कर जरूर देखतीं.

वह कहने लगा, ‘‘साहब, मैं गरीब इंसान हूं. सच भी बोलूंगा तो लोग झूठ समझेंगे. लेकिन मेरी जो बेइज्जती हुई है, उस से मेरा मन खून के आंसू रो रहा है. इसलिए अब मैं कुछ नहीं छिपाऊंगा. पिछले 2-3 महीनों से बग्गा साहब की लड़की पम्मी मेरे साथ अश्लील हरकतें कर रही थी. जब मैं सुबह लगभग 5 बजे अखबार फेंकने जाता था, तब वह पायजामा बनियान पहने अपने घर के पार्क में एक्सरसाइज करती मिलती थी.

उस वक्त मुझे दूसरे घरों में अखबार डालने की जल्दी होती थी, लेकिन वह बेवजह की कोई न कोई बात छेड़ कर मुझे रोक लेती थी. बाद में उस ने मुझे फूल देने शुरू कर दिए. वह शरारत करती और फिर बेवजह हंसती रहती. मैं उस से जितना बचने की कोशिश करता था, वह उतना ही सिर चढ़ती जा रही थी. मैं डरता था कि कहीं किसी दिन कोई मुसीबत खड़ी न हो जाए. आखिर वही हुआ, जिस का मुझे डर था.’’

मैं ने कहा, ‘‘मैं समझा नहीं, क्या तुम यह कहना चाहते हो कि तुम्हें फंसाया जा रहा है?’’

‘‘हां साहब, यही कहना चाहता हूं. मुझे नहीं मालूम कि मोटरसाइकिल चोरी हुई है या नहीं. लेकिन पम्मी ने मुझ पर यह जो इलजाम लगाया है कि कुछ रोज पहले मैं मोटरसाइकिल से छेड़छाड़ कर रहा था, बिलकुल गलत है. ऐसा लगता है, मुझे दोषी ठहराने में पम्मी का ही हाथ है. हो सकता है, उस ने अपने किसी चाहने वाले से मोटरसाइकिल गायब करवा दी हो.’’

‘‘तुम यकीन के साथ ऐसा कैसे कह सकते हो?’’

उस ने इधरउधर देखा, फिर संभल कर बोला, ‘‘साहब, कहना नहीं चाहिए पर वह लड़की बहुत तेज है. पिछले इतवार को उस का भाई सैर के लिए नहीं निकला था. इसलिए वह बड़ी निडर दिख रही थी.

मैं अंदर अखबार डालने गया तो वह पिछले लौन की तरफ से आ गई. कहने लगी, ‘सिर्फ अखबार ही बेचते हो या वहां कुछ जानपहचान भी है?’

मैं ने जवाब में कहा, ‘हां, थोड़ीबहुत जानपहचान है.’ इस पर वह मुझे एक फोटो दिखाते हुए बोली, ‘मेरी सहेली की है, इसे अखबार में छपवा दो.’

वह एक औरत की अर्धनग्न तसवीर थी. शायद उस ने किसी मैगजीन से काटी थी. मैं ने उस की तरफ देखा तो वह शरारत से मुसकरा रही थी. मैं ने उस से कहा, ‘‘आप पढ़ीलिखी अच्छे घर की लड़की हैं. ऐसी हरकत करते हुए आप को शरम आनी चाहिए.’’

इस पर वह छूटते ही बोली, ‘‘सारी शरम तो तुम जैसे लड़के ले गए. लड़कियों के लिए कुछ बचा ही नहीं.’’

मैं वापस जाने लगा तो वह पीछे से मेरी कमीज पकड़ कर बोली, ‘‘बड़े नखरे हैं तुम्हारे. बातें तो बड़ीबड़ी करते हो, एक छोटी सी तसवीर नहीं छपवा सकते.’’

मैं ने उस से कहा, ‘‘अपने पिताजी को दे देना, वह बड़े आदमी हैं, छपवा देंगे.’’

मेरी बात सुन वह गुस्से से लाल हो कर मुझे घूरने लगी. फिर बदतमीज कह कर पांव पटकती हुई वहां से चली गई. मैं ने सोचा था कि महीना पूरा होते ही वहां अखबार डालना छोड़ दूंगा, लेकिन इस से पहले ही यह मामला हो गया.