पिंड दान : प्रेमी के प्यार में पति का कत्ल

बचपन का मजा, जवानी में बना सजा – भाग 3

दिल्ली आते समय उस ने रुखसाना पर नजर रखने की जिम्मेदारी भाई दिलशाद को सौंपी थी. भाई के कहने पर दिलशाद उस पर रातदिन नजर रखने लगा. रुखसाना की आदत बिगड़ चुकी थी. अब वह सुधरने वाली नहीं थी. वह बिना मर्द के बिलकुल नहीं रह सकती थी. लेकिन देवर की वजह से वह किसी मर्द तक पहुंच नहीं पा रही थी.

पिछले साल मई महीने में अचानक दिलशाद की करंट लगने से मौत हो गई. गांव वालों का कहना था कि यह सब रुखसाना ने अपने पुराने प्रेमी असरुद्दीन से करवाया था. इस की वजह यह थी कि असरुद्दीन उन दिनों गांव में ही था. जबकि वह सूरत में रहता था. वह रुखसाना का बचपन का प्रेमी था. बहरहाल सच्चाई कुछ भी रही हो, सुबूत न होने की वजह से पुलिस केस नहीं बना.

पुलिस केस भले ही नहीं बना, लेकिन गांव वाले इस बात को ले कर काफी गुस्से में थे. इसलिए घर वालों ने असरुद्दीन को सूरत भेज दिया. वह सूरत तो चला गया, लेकिन वह वहां भी नहीं बच सका. दिलशाद के भतीजे ताहिर ने चाचा की मौत का बदला लेने के लिए सूरत में ही उस की हत्या कर दी.

गांव वाले रुखसाना के कारनामों से परेशान हो गए तो उन्होंने जाबिर को फोन कर के उसे अपने साथ दिल्ली ले जाने को कहा. उन का कहना था कि वे इस गंदगी को गांव में नहीं रहने देंगे. क्योंकि इस की वजह से खूनखराबा भी होने लगा है. गांव वालों के कहने पर जाबिर रुखसाना को दिल्ली ले आया. रुखसाना ने पति से वादा किया था कि अब वह ऐसा कोई काम नहीं करेगी, जिस से उस के मानसम्मान को ठेस पहुंचे. लेकिन रुखसाना मानी नहीं. उस ने  ठान लिया था कि अब वह जाबिर के साथ नहीं रहेगी. फिर उस ने पति से छुटकारा पाने के लिए जो योजना बनाई, वह बहुत ही खतरनाक थी.

पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चल गया था कि हत्या में रुखसाना का हाथ है. फिर भी पुलिस ने उसे गिरफ्तार नहीं किया था. दरअसल उसी के माध्यम से पुलिस असली हत्यारों तक पहुंचना चाहती थी. अगर पुलिस उसे पकड़ लेती तो असली हत्यारे छिप जाते.

इंसपेक्टर अत्तर सिंह यादव ने मुखबिरों की मदद से नंदनगरी के गगन सिनेमा के पास से जानेआलम उर्फ टिंकू, आमिर हुसैन और हनीफ उर्फ काला को पकड़ा. थाने ला कर तीनों से पूछताछ की गई तो पता चला कि रुखसाना ने ही 4 लाख रुपए की सुपारी दे कर जाबिर की हत्या कराई थी. हत्यारों के पकड़े जाने के बाद पुलिस रुखसाना के घर पहुंची तो पता चला कि वह घर से गायब हो चुकी है. शायद उसे हत्यारों के पकड़े जाने की भनक लग चुकी थी.

पुलिस रुखसाना की तलाश कर रही थी कि तभी अलाउद्दीन उर्फ आले पुलिस के हाथ लग गया. इस के बाद 4 नवंबर, 2013 को पुलिस ने रुखसाना को भी उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब वह अपने घर जरूरी सामान लेने आई थी. इस के बाद पुलिस को नौकर जाबिर अली, कमर और शानू की तलाश थी.

गिरफ्तारी के बाद पूछताछ में रुखसाना ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. इस के बाद उस ने जाबिर की हत्या की जो कहानी पुलिस को सुनाई, वह इस प्रकार थी.

गांव में रहने के दौरान जब उस के संबंध नौकर जाबिर अली से बने थे तो इस का खुलासा होने पर उस का शौहर जाबिर उस के साथ बुरी तरह मारपीट करने लगा था. तब रुखसाना ने तय कर लिया था कि अब वह उसे ठिकाने लगवा कर ही रहेगी. नौकर जाबिर से उस की फोन पर बात होती रहती थी. उस ने उस से बात की तो उस ने रुखसाना की मुलाकात अलाउद्दीन उर्फ आले से कराई. उस ने आले को 4 लाख रुपए देने की बात की तो वह जाबिर की हत्या करने के लिए तैयार हो गया.

अलाउद्दीन नौकर जाबिर का दोस्त था और रमजानपुर का ही रहने वाला था. आले अपराधी प्रवृत्ति का था. उस ने गांव के ही अब्बन की हत्या तलवार से काट कर की थी. चूंकि आले को गांव वालों से जान का खतरा था, इसलिए वह जेल से छूटने के बाद पत्नी मुनीजा के साथ गांव बीकमपुर में रहने लगा था. आले कामकाज के नाम पर दिल्ली की फैक्ट्रियों से कौपर डस्ट की चोरी कर के कबाडि़यों को बेचता था.

दिल्ली में रहते हुए ही उस की जानपहचान 26 वर्षीय हनीफ उर्फ काला से हुई. वह भी रमजानपुर का ही रहने वाला था. काफी समय से वह गाजियाबाद के भोपुरा में रहता था. वह चोरी का माल तो खरीदता ही था, खुद भी चोरी करता था.

आले ने जाबिर की हत्या करने पर 4 लाख रुपए मिलने की बात बता कर उसे भी योजना में शामिल कर लिया था. हनीफ को लगा कि वह आले के साथ मिल कर इस योजना को अंजाम नहीं दे पाएगा, इसलिए उस ने अपने दोस्तों कमर, आमिर हुसैन, शानू और जानेआलम उर्फ टिंकू को भी अपने साथ मिला लिया.

पूरी योजना तैयार कर के सभी 15 जून, 2013 को रुखसाना के घर पहुंचे. रुखसाना ने सभी को घर में ही अलगअलग जगहों पर छिपा दिया. रात में क्या होना है, रुखसाना को पता ही था, इसलिए उस ने जाबिर के रात के खाने में बेहोशी की दवा मिला दी, जिसे खा कर जाबिर सो गया. लेकिन थोड़ी देर बाद उसे टौयलेट आई तो रुखसाना ने उसे ऊपर वाले टौयलेट में जाने को कहा. क्योंकि नीचे वाले टौयलेट में कमर छिप कर बैठा था. जबकि टिंकू कमरे में ही चाकू लिए छिपा था.

जाबिर सीढि़यां चढ़ने लगा, तभी कमर ने उसे पीछे से पकड़ लिया तो टिंकू ने उस पर चाकू से लगातार कई वार कर दिए. जाबिर का मुंह दबा था, इसलिए वह चीख भी नहीं सका और छटपटा कर मर गया. खून बहुत ज्यादा बह रहा था, इसलिए उसे रोकने के लिए लाश को चादर में लपेट कर बालकनी में डाल दिया. इस के बाद वे सभी चले गए. उन के जाने के बाद रुखसाना ने इधरउधर फैले खून को साफ किया और असलम के घर जा कर जाबिर के ऊपर जा कर वापस न आने की बात बताई.

पूछताछ के बाद पुलिस ने रुखसाना को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. 4 लोगों को पुलिस पहले ही जेल भेज चुकी थी. पुलिस को अभी नौकर जाबिर, कमर और शानू की तलाश है. कथा लिखे जाने तक इन में से एक भी अभियुक्त पुलिस के हाथ नहीं लगा था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पत्नी के लिए पिता के खून से रंगे हाथ – भाग 2

शीलेश महीने, 2 महीने में घर आता और 1-2 दिन रह कर वापस दिल्ली चला जाता. उस के बाद ममता को जब भी हरीश से मिलना होता, किसी न किसी बहाने एटा चली जाती और उस से मिल लेती. मोबाइल फोन इस काम में उन की पूरी मदद कर रहा था. अब वह खुश थी.

ममता का बारबार एटा जाना रामरखी को अच्छा नहीं लगता था. उस ने रोका भी, लेकिन ममता के बहाने ऐसे होते थे कि वह रोक नहीं पाती थी. फिर उस पर उस का इतना जोर भी नहीं चलता था, इसलिए ममता आराम से हरीश से मिल रही थी.

लेकिन किसी दिन गांव के किसी आदमी ने ममता को हरीश के साथ देख लिया तो उस ने रुकुमपाल से बता दिया कि उस की बहू शहर में किसी लड़के के साथ घूम रही थी. बात चिंता वाली थी. लेकिन रुकुमपाल ने अपनी आंखों से नहीं देखा था, इसलिए वह बहू से कुछ कह नहीं सकता था. रुकुमपाल को पता था कि उन का बेटा उन से ज्यादा पत्नी पर विश्वास करता था, इसलिए उस से कुछ कहने से कोई फायदा नहीं हो सकता था.

उसी बीच रामरखी कुछ दिनों के लिए आशा के यहां चली गई तो ममता को हरीश से घर में ही मिलने का मौका मिल गया. रुकुमपाल दिनभर खेतों पर रहता था, इसलिए ममता हरीश को घर में बुलाने लगी. संयोग से एक दिन रुकुमपाल की तबीयत खराब हो गई तो वह दोपहर को ही घर आ गया. घर में अनजान युवक को देख कर उस ने ममता से पूछा, ‘‘यह कौन है?’’

‘‘मेरे मामा का बेटा है.’’ ममता ने कहा.

‘‘आज से पहले तो इसे कभी नहीं देखा.’’

‘‘पापा, यह पहली बार मेरे यहां आया है.’’

ममता और रुकुमपाल बातचीत कर रहे थे, तभी हरीश चुपके से खिसक गया था. इस से रुकुमपाल को पूरा शक हो गया. उसे लगा कि यह वही लड़का है, जिसे ममता के साथ एटा में देखा गया था.

अब रुकुमपाल ममता पर नजर रखने लगा. बाहर आनेजाने के लिए भी वह मना करने लगा. परेशान हो कर आखिर एक दिन ममता ने कह दिया, ‘‘मैं इस घर की बहू हूं, नौकरानी नहीं कि 24 घंटे घर में कोल्हू के बैल की तरह जुटी रहूं. मेरी भी कुछ इच्छाएं हैं. जब देखो तब आप रोकतेटोकते रहते हैं. यह मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

रुकुमपाल समझ गया कि बहू उस के हाथ से निकल चुकी है. अब इसे संभालना उस के वश का नहीं है. इसलिए उस ने शीलेश को फोन किया कि वह आ कर अपनी बीवीबच्चों को ले जाए. क्योंकि अब उन्हें संभालना उस के वश में नहीं है.

‘‘ऐसा क्या हो गया पापा?’’ शीलेश ने पूछा.

रुकुमपाल ने सच्चाई छिपा ली, क्योंकि वह जानता था कि सच्चाई बताने पर बेटे का घर टूट सकता है. उस ने कहा, ‘‘मुझे लगता है, तुम्हारे बिना ममता उदास रहती है. बच्चे भी तुम्हें बहुत याद करते हैं.’’

‘‘ठीक है पापा, मैं कुछ दिनों की छुट्टी ले कर घर आ रहा हूं.’’

ममता को जब पता चला कि रुकुमपाल उसे दिल्ली भेजना चाहता है तो वह बेचैन हो उठी. उस ने तुरंत शीलेश को फोन किया, ‘‘तुम अपने काम में मन लगाओ. अगर मैं दिल्ली आ गई तो यहां दादी और पापा को कौन देखेगा. तुम मेरी और बच्चों की चिंता बिलकुल मत करो. मेरी तो अब तुम्हारे बिना रहने की आदत सी पड़ गई है.’’

रामरखी के न रहने से ममता आजाद थी. उस ने एक दिन फोन कर के फिर हरीश को बुला लिया. रुकुमपाल ममता पर बराबर नजर रख रहा था. इसलिए हरीश के आने की खबर उसे लग गई. संयोग से उस दिन ममता ने दरवाजा बंद नहीं किया था, इसलिए रुकुमपाल ने दोनों को रंगेहाथों पकड़ लिया.

रुकुमपाल को देख कर हरीश तो भाग खड़ा हुआ, जबकि ममता डर के मारे कांपने लगी. रुकुमपाल ने पहले तो उसे खूब फटकारा. इस के बाद कहा, ‘‘अब तुम्हें गांव में रहने की जरूरत नहीं है. मैं सब कुछ बता कर शीलेश को बुलाता हूं और तुम्हें उस के साथ दिल्ली भेज देता हूं.’’

ममता बुरी तरह डर गई. क्योंकि अगर उस के और हरीश के संबंधों की जानकारी शीलेश को हो गई तो उस की नजरों में गिर जाएगी. दूसरी ओर वह दिल्ली बिलकुल नहीं जाना चाहती थी. इसलिए सोचने लगी कि वह ऐसा क्या करे कि शीलेश को बाप की बात पर विश्वास न हो.

रुकुमपाल ने ममता को भले ही धमकी दे दी थी, लेकिन शीलेश को यह सब बताना नहीं चाहता था. क्योंकि बेटे की गृहस्थी बरबाद नहीं करना चाहता था. ममता ने हरीश से कह दिया था कि कुछ दिनों तक वह इधर बिलकुल न आए. इस के बाद उस ने पूरी योजना बना कर जो ड्रामा रचा, उस में सचमुच उस ने रुकुमपाल को चारों खाने चित कर दिया. उस ने शीलेश को फोन किया, ‘‘तुम जल्दी से गांव आ जाओ. मैं यहां बहुत परेशान हूं.’’

‘‘तुम्हें जो भी परेशानी हो, पापा से बता दो. मैं अभी नहीं आ सकता, क्योंकि मुझे छुट्टी नहीं मिलेगी.’’ शीलेश ने कहा.

‘‘उन से क्या बताऊं परेशानी, परेशानी की वजह ही वही हैं. तुम्हें अपनी नौकरी की पड़ी है और मैं यहां उन की हरकतों से परेशान हूं.’’

‘‘क्या… पापा की हरकतों से परेशान हो?’’ शीलेश हैरानी से बोला.

‘‘एक ही बात को कितनी बार कहूं?’’ ममता गुस्से में बोली.

ममता ने ऐसी बात कह दी थी कि मजबूरन शीलेश को छुट्टी ले कर घर आना पड़ा. बेटे को देख कर रुकुमपाल ने राहत की सांस ली. उस ने सोचा कि बेटा आ गया है तो वह बहू को उस के साथ भेज देंगे. उस के बाद सारा झंझट खत्म हो जाएगा.

रुकुमपाल कुछ दूसरा सोच रहा था, जबकि ममता कुछ और ही सोचे बैठी थी. रात में उस ने रोते हुए शीलेश से कहा, ‘‘तुम तो दिल्ली में रहते हो, यहां मुझे इज्जत बचाना मुश्किल हो गया है.’’

‘‘तुम्हें भ्रम हुआ होगा. करने की कौन कहे, पापा ऐसा कभी सोच भी नहीं सकते.’’ शीलेश ने कहा.

‘‘उन्हें पता है कि तुम मेरी बात पर विश्वास नहीं करोगे, इसीलिए तो वह मुझे गंदी नजरों से देखते हैं. इस हालत में मैं अपनी इज्जत कैसे बचाऊं?’’

शीलेश को पत्नी की बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था. जिस बाप ने उस की खातिर अपनी जवानी होम कर दी थी, वह उस की पत्नी के साथ गलत काम करने की कैसे सोच सकता था. उस ने ममता को समझाना चाहा, लेकिन ममता अपनी जिद पर अड़ी थी.

तब उस ने दिल्ली चलने को कहा तो ममता ने वहां जाने से मना करते हुए कहा, ‘‘नहीं जाना मुझे दिल्ली, वहां उस छोटी सी कोठरी में मेरा दम घुटता है.’’

उस रात ममता ने रोधो कर ऐसा त्रियाचरित्र रचा कि शीलेश को पूरा विश्वास हो गया कि ममता सही है और उस के पापा गलत. यही नहीं, उस ने वादा भी कर लिया कि सुबह वह इस बात को ले कर पापा से आरपार की बात करेगा.

सुबह रुकुमपाल शीलेश से ममता के बारे में कुछ कहता, उस से पहले ही शीलेश ने कहा, ‘‘पापा आप एकदम बेशरम ही हो गए हैं क्या?’’

‘‘क्यों? मैं ने ऐसा क्या किया, जो तुम मुझे बेशरम कह रहे हो?’’ रुकुमपाल ने हैरानी से कहा.

‘‘बहू पर नीयत खराब किए हो और कह रहे हो कि मैं ने क्या किया है.’’

रुकुमपाल की समझ में सारा माजरा आ गया. उस ने बेटे को समझाने के लिए कहा, ‘‘बेटा अपना पाप छिपाने के लिए तुम्हारी पत्नी मेरे ऊपर यह लांछन लगा रही है. सोचो, जिस आदमी ने अपनी पूरी जिंदगी तुम लोगों के पीछे होम कर दी, अब इस उम्र में वह ऐसी घटिया हरकत करेगा. मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था कि बुढ़ापे में मुझ पर यह कलंक भी लगेगा.’’

‘‘पापा, आप कुछ और कह रहे हैं और ममता कुछ और.’’

ममता ने रोधो कर शीलेश के मन में रुकुमपाल के खिलाफ जो जहर भरा था, उस की वजह से वह बाप की न कोई बात सुनने को तैयार था न कोई तर्क. रुकुमपाल की समझ में नहीं आ रहा था कि वह शीलेश को कैसे समझाए कि गलत वह नहीं, गलत ममता है.

अधिवक्ता पत्नी की जिंदगी की वैल्यू पौने 6 करोड़ – भाग 3

जिद बन गई मौत का सबब

नितिन काफी दिनों से रेनू से जिद कर रहा था कि वे इस कोठी को बेच कर ब्रिटेन चलते हैं, जहां वे कोई बिजनैस या जौब कर लेंगे. लेकिन नितिन की इस जिद का रेनू ने कभी समर्थन नहीं किया. रेनू को क्या पता था कि नितिन की यही जिद उस की मौत का सबब बन जाएगी.

नितिन नाथ की जिद थी कि रेनू उस के साथ सेक्टर 30 वाला घर बेच कर ब्रिटेन में बस जाएं, लेकिन रेनू की बारबार की न के कारण दोनों के बीच झगड़े होने लगे. कभीकभी तो नितिन रेनू पर हाथ भी छोड़ देता था. रेनू ने अपने भाई और बेटे को यह बात बता दी थी. इसलिए बेटे ने तो अपने पिता से बात तक करनी बंद कर दी. अजय सिन्हा भी नितिन को इस बात पर लानत देने लगे.

इसी दौरान जब 3 महीने पहले रेनू इलाज के लिए बेटे के पास अमेरिका गई तो नितिन ने अपनी कोठी को बेचने के प्रयास शुरू कर दिए. एक महीना पहले जब रेनू कैंसर के इलाज से ठीक हो कर घर आईं तो उस से पहले नितिन ने मनमोहन भंडारी नाम के एक ब्रोकर से अपनी कोठी का 5 करोड़ 70 लाख में सौदा कर लिया और बतौर एडवांस 55 लाख रुपए का बयाना भी ले लिया था.

पत्नी कोठी बेचने का कर रही थी विरोध

घर आने के 15 दिन बाद नितिन ने रेनू को बताया कि उस ने कोठी का सौदा कर दिया है. बस इस बात पर दोनों के बीच आए दिन लड़ाई होनी शुरू हो गई. पहले तो केवल कहासुनी होती थी बाद में हाथापाई भी होने लगी और उस के बाद इस झगड़े की बात उन के बेटे व रेनू के घर वालों को पता चल गई.

रेनू ने साफ कह दिया था कि वह किसी भी हाल में अपना घर नहीं बेचने देगी, क्योंकि उस घर में उन के मेहनत की कमाई भी लगी थी और इस घर में उन की जिंदगी भर की यादें जुड़ी थीं.

कत्ल से 2 दिन पहले रेनू और उन के पति नितिन के बीच प्रौपर्टी को ले कर ही विवाद हुआ था. रेनू ने यह बात भी अपने बेटे व भाई को बताई थी. रविवार को सुबह से ही दोनों के बीच कोठी बेचने के विवाद पर बहस चल रही थी. दरअसल, ब्रोकर ने कह दिया था कि वह जल्द ही मकान खाली कर रजिस्ट्री उन के नाम कर दे या एडवांस वापस कर दे.

नितिन नाथ ब्रिटेन में सैटल होने की तैयारी में इतना पैसा पानी की तरह बहा चुका था कि अब वह मकान बेचने के फैसले से पीछे नहीं हट सकता था. यही कारण था कि आए दिन रेनू से उस की बहस होने लगी.

रविवार की सुबह 10 से 11 बजे के बीच में इसी बात को ले कर रेनू व नितिन की बहस इतनी बढ़ी कि गुस्से में आ कर उस ने रेनू का सिर दीवार पर दे मारा. जब वह चीखने लगीं तो नितिन नाथ ने तकिए से रेनू का मुंह दबाना शुरू कर दिया, जिस से वह निस्तेज हो गईं. उस ने मुंह पर कपड़ा बांध कर उसे खींच कर बैडरूम के ही बाथरूम में डाल दिया. अपने गुस्से में रेनू से हाथापाई करते वक्त नितिन ये भूल गया था कि ब्रोकर को किसी ग्राहक के साथ उस का घर देखने के लिए एक घंटे बाद आना है.

थोड़ी देर में ब्रोकर घर देखने आने वाला था तो नितिन नाथ ने बैडरूम में बने बाथरूम में रेनू की लाश को छिपाया और बाहर से उस पर ताला लगा दिया. जब ब्रोकर व खरीदार कोठी देखने आए तो उस ने पूरी कोठी दिखाई भी थी, सिवाय उस बाथरूम के जहां उस की बीवी की लाश थी.

नितिन ने खरीदार को बताया था कि उस की बीवी को कैंसर है, इसलिए बाथरूम की तरफ न ही जाएं तो ठीक है, क्योंकि इस से इंफेक्शन का खतरा हो सकता है. मकान देखने के बाद ब्रोकर व खरीदार गए. इस के बाद नितिन ने बाथरूम खोल कर देखा तो रेनू की नाक व कान से खून निकल रहा था. पत्नी के मर्डर के बाद उस ने ठंडे दिमाग से सोचा कि क्या करना है और क्या नहीं, क्या चीजें उसे फंसा सकती हैं.

ब्रिटेन भाग जाना चाहता था नितिन

इस के बाद नितिन ने घर में बिखरा सारा खून साफ कर दिया. और तो और रेनू का लैपटाप, उस की गाड़ी की चाबी ये सारी चीजें भी उस ने ठिकाने लगा दी थीं. उस ने घर के सीसीटीवी कैमरे को भी छिपा कर रख दिया, ताकि अगर कोई घर में आए तो यह लगे कि रेनू शायद कहीं बाहर गई हैं.

नितिन के पास ब्रिटिश पासपोर्ट पहले से ही था, जिस से वह आसानी से भारत से बाहर भाग सकता था. उस ने फैसला कर लिया था कि वह अगले दिन या रात में रेनू की लाश को ठिकाने लगा देगा. इस के बाद उस ने बचने के लिए खुद को स्टोर रूम में बंद कर लिया.

उसे पता था कि रेनू से मिलने के लिए उस के परिवार का कोई सदस्य या परिचित घर आ सकता है. इसलिए उस ने सुबह से ही अपने घर के मुख्य गेट पर बाहर से ताला लगा दिया था. ब्रोकर को भी उस ने कोठी के अंदर बुलाने के लिए छोटे दरवाजा को खोला था.

शव मिलने के बाद पुलिस को लगा कि नितिन देश छोड़ कर भाग गया होगा, क्योंकि वह ब्रिटेन भागना ही चाहता था. लेकिन जब नितिन व रेनू दोनों के मोबाइल की लोकेशन घर के अंदर मिली और रेनू की लाश मिलने के बावजूद सीसीटीवी में नितिन के घर से बाहर निकलने की कोई फुटेज नहीं मिली तो पुलिस को लग गया कि हो न हो कोठी के भीतर ही कातिल का राज छिपा है. फिर कत्ल के 15 घंटे बाद स्टोररूम में छिपे रेनू के कातिल पति नितिन नाथ को गिरफ्तार कर लिया गया.

नितिन नाथ ने पुलिस को पूछताछ में बताया कि स्टोर रूम में छिपे रहने के दौरान उस के फोन पर जिस की भी काल आई, उस ने सब को बताया था कि वह दिल्ली में लोधी रोड पर है, जब घर आएगा तो मुलाकात करेगा. उस का कहना था कि अगर वह पकड़ा नहीं जाता तो वह बाहर भाग जाता और फिर बाद में कभी कोर्ट में अपने वकील के माध्यम से हाजिर होता.

नितिन नाथ स्टोररूम में छिपे रहने के दौरान सिर्फ कौफी पी कर अपना पेट भरता रहा. उस ने अपने व रेनू के फोन को साइलेंट मोड पर डाल कर वाइब्रेशन पर कर दिया ताकि घर में कोई आ भी जाए तो उस के स्टोररूम में छिपे होने की जानकारी किसी को न मिले.

विस्तार पूछताछ के बाद जांच अधिकारी इंसपेक्टर डी.पी. शुक्ला ने नितिन नाथ को अपनी पत्नी रेनू की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. उसे अगले दिन हत्या व सबूत नष्ट करने के आरोप में अदालत के समक्ष पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

(कथा पुलिस की जांच, आरोपी के बयान व पीडि़तों के कथन पर आधारित)

दूसरा पहलू : अपनों ने बिछाया जाल – भाग 3

एक दिन बिजनैस ट्रिप की बात कह कर मनु अहमदाबाद जा पहुंचा. मनु को रिसीव करने मिंटू और रश्मि स्टेशन पर आई थीं. मिंटू के पापा वहां किसी फैक्ट्री में काम करते थे. उन की 12 घंटे की नौकरी थी. प्राइवेट नौकरी, ऊपर से महंगाई में पूरे परिवार का खर्च. मनु उन के यहां 2 दिन रुका. सुकृति जानती थी कि वह मुंबई गया है. यह अस्वाभाविक भी नहीं था, क्योंकि अकसर बिजनैस के काम से वह वहां जाता रहता था.

अहमदाबाद में किराए के छोटे से मकान में मिंटू का परिवार जैसेतैसे गुजर कर रहा था. भले ही मनु की शाही आवभगत नहीं हुई, लेकिन उसे वहां जो प्यार और अपनत्व मिला, वह उस के लिए अप्रत्याशित था. बातोंबातों में रश्मि ने मनु के सामने अपनी दिली ख्वाहिश भी जाहिर कर दी थी कि 10 लाख में एक मकान मिल रहा है, लेकिन पैसे नहीं हैं. मनु के लिए उन की हैल्प कर देना मुश्किल नहीं था.

2 दिन और 2 रात का समय कम नहीं होता. इस बीच मनु की उन लोगों से जी भर कर बातें हुईं. सब से अहम बात तो यह थी कि रश्मि ने उसे मिंटू से बातचीत करने, उस के साथ घूमनेफिरने का भरपूर मौका दिया था. वह मिंटू को सिनेमा दिखाने भी ले गया था. यहां गांव जैसी पाबंदियां तो थी नहीं, सब खुले विचारों वाले लोग थे, सो मनु को यह सब बहुत अच्छा लग रहा था.

मनु ने अपनी अहमदाबाद की 2 दिनों की यात्रा में जम कर पैसा खर्च किया. अंकलआंटी और अन्य बच्चों को बहुत से उपहार ला कर दिए. मिंटू को उस ने एक गोल्डन रिंग भी गिफ्ट की थी, जिस में डायमंड जड़े थे. शायद उस की असली कीमत का अहसास मिंटू को तो क्या, उस के मम्मीपापा को भी नहीं था.

रात में जब रश्मि और मिंटू से मनु की बातें हो रही थीं तो सुकृति का जिक्र आना स्वाभाविक था. नजदीकियां बढ़ चुकी थीं, सो मनु ने रश्मि से सुकृति के गैरजिम्मेदाराना व्यवहार के बारे में बता दिया. अपने जीवन के एकाकीपन को उस ने इन नए अपनों के सामने खुली किताब की तरह स्पष्ट कर दिया. रश्मि के अनुभव की गहराई की थाह वह नहीं ले पाया था. उस ने अभी दुनिया देखी ही कहां थी?

मौके का फायदा उठा कर रश्मि ने कहा था, ‘‘बेटा, तुम सुकृति से शादी कर के फंस गए. अगर तुम पहले मिले होते तो मिंटू की शादी मैं तुम्हीं से करती.’’

रश्मि ने यह बात मजाक में कही थी या गंभीरता से, यह मनु नहीं समझ पाया. लेकिन इस बात से मनु इतना प्रभावित हुआ कि अब वह उन्हीं का हो कर रह गया. रश्मि आंटी और मिंटू अब उस के लिए खास बन चुके थे.

मनु शब्द के पीछे छिपी विवशता के आगे मौन था, लेकिन अब हो भी क्या सकता था? मिंटू सामने बैठी अपलक उसे ही निहारे जा रही थी. मनु के दिमाग में एक अनोखा विचार चल रहा था. शायद वैसा ही विचार इस परिवार के दिलोदिमाग में कब से बैठा था, इस का मनु को अहसास भी नहीं हो पाया था.

रश्मि उठी और दूसरे कमरे में चली गई. उस के जाते ही मिंटू ने कहा, ‘‘आई लव यू जीजू, मैं अब आप के बगैर नहीं रह सकती.’’

यह सब संयोगवश हुआ था अथवा इस के पीछे कोई पूर्व योजना काम कर रही थी, मनु को इस बारे में सोचने का मौका नहीं मिला. अब उसे मिंटू के अलावा दुनिया में कुछ नहीं दिखाई दे रहा था. रश्मि दूसरे कमरे में जा कर सो चुकी थी. दरवाजा भिड़ा दिया गया था. यह किस बात का संकेत था, मनु समझ नहीं पाया.

मिंटू आ कर उस के एकदम नजदीक सट कर बैठ गई. भावनाओं पर परिस्थितिजन्य असर होने लगा. मिंटू का स्पर्श पाते ही मनु उस की बांहों में समा गया. धीरेधीरे सब दीवारें ढह गईं. रश्मि गहरी नींद में सो चुकी थी. यह नींद कितनी गहरी थी, मनु को कुछ पता नहीं था.

मनु को लगा कि मिंटू में जोश और प्रेम का जो उफान है, वह सुकृति जैसी साधारण लड़की में नहीं है. वह बर्फ की मूरत जैसी थी, जो घर में अपने सासससुर और बड़ों की सेवा करना ही अपना धर्म समझती थी. पति को ऐसा विलक्षण सुख देने में शायद वह पूरी तरह असफल थी.

उस पूरी रात मनु और मिंटू एकदूसरे के हो कर जिए. उसी बीच उन्होंने संग जीने और मरने की कसमें भी खा लीं. सुबह रश्मि ने साफ कह दिया कि अगर वह सुकृति से तलाक ले लो तो वह उसे अपना दामाद बनाने को तैयार है.

तब मनु ने यह भी नहीं सोचा कि रश्मि ने सुबहसुबह यह बात कह कैसे दी? क्योंकि रात में मिंटू की अपनी मम्मी से कोई बात भी नहीं हुई थी. ऐसे में उन्हें बीती रात की घटना के बारे में कैसे अनुमान हो गया? शायद इसे ही बुद्धि कहते हैं. रश्मि ने 45 साल की उम्र तक भाड़ नहीं झोंका था. शतरंज का खिलाड़ी चाल चलने से पहले ही सब सोच लेता है.

मनु ने रश्मि की बातों को सिरआंखों से स्वीकार कर लिया. बैग से उस ने चैक बुक निकाली और 3 लाख रुपए का चैक रश्मि को थमाते हुए कहा, ‘‘लीजिए आंटीजी, आप मकान लेना चाहती हैं न, एडवांस दे कर सौदा कर लीजिए.’’

रश्मि ने चैक झपट लिया. सौदा मकान का हो रहा था या किसी और चीज का, इस पर बात करना बेकार है. 2 दिन अहमदाबाद में रह कर मनु ने जीभर कर एंजौय किया. उस का मन घर लौटने का नहीं हो रहा था, लेकिन मजबूरी थी, सो लौटना पड़ा. मिंटू ने जल्द आने का प्रौमिस करवा कर ही उसे छोड़ा था.

मनु में आए बदलाव को घर के लगभग हर आदमी ने महसूस किया, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया. मनु अब अक्सर घर से बाहर रहने लगा था. घर का कोई शख्स कहता भले कुछ नहीं था, लेकिन यह जरूर सोचने लगा था कि मसला क्या है.

गर्मियां शुरू हो चुकी थीं. कुछ दिनों बाद एक दिन मनु सूटकेस ले कर जाने लगा तो बड़े भाई ने टोका, ‘‘क्या हुआ, कहां जा रहे हो?’’

‘‘मुंबई, एक डील करनी है.’’ मनु ने संक्षिप्त सा जवाब दिया.

मां से नहीं रहा गया. उस ने सख्ती से कहा, ‘‘कोई जरूरत नहीं बाहर जाने की. पहले इस बिजनैस को संभालो, आगे की बाद में देखी जाएगी.’’

मनु को यह टोकाटाकी अच्छी नहीं लगी. उस ने नाराजगी से कहा, ‘‘45 लाख की डीलिंग है मां, नहीं जाऊंगा तो हाथ से निकल जाएगी. आप कह रही हैं तो नहीं जाता. आप दे देंगी 45 लाख रुपए.’’

मां भला बिजनैस की बात क्या समझती. सुकृति ने मनु का पक्ष लेते हुए सास को समझाया, ‘‘बड़ी डीलिंग है मम्मी, 2-4 दिन में लौट आएंगे. इन्हें जाने दीजिए ना.’’

मां लाचार हो गई. मनु आराम से चला गया. जिंदगी रोजमर्रा की तरह आगे बढ़ती रही. 2 दिनों में लौटने को कहा था, लेकिन 4 दिन बीत गए और मनु नहीं लौटा. चिंता की बात यह थी कि उस का मोबाइल फोन बंद था. सभी घबराने लगे. एक दिन और इंतजार किया गया. लेकिन मनु का कोई मेसेज नहीं आया. इस बीच एक बात जरूर पता चली कि उस ने किसी मित्र से मौरिशस जाने और एक सप्ताह बाद लौटने की बात कही थी.

पति ने किया अर्चना की जिंदगी का सूर्यास्त – भाग 2

पुलिस ने प्रमोद के बयान के आधार पर उस के साथी मुकेश को भी गिरफ्तार कर लिया था. उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. प्रमोद और मुकेश के बयान से अर्चना की हत्या की जो कहानी सामने आई, उस के अनुसार, निर्दोष अर्चना पति प्रमोद के प्रेमसंबंधों की भेंट चढ़ गई थी.

हाईस्कूल पास करने के बाद प्रमोद ने पढ़ाई छोड़ दी थी. घर के कामों से वह कोई मतलब नहीं रखता था, इसलिए दिन भर गांव में घूमघूम कर अड्डेबाजी करता रहता था. अड्डेबाजी करने में ही उस की नजर गांव की सरिता पर पड़ी तो उस पर उस का दिल आ गया. फिर तो वह उस के पीछे पड़ गया. उस की मेहनत रंग लाई और सरिता का झुकाव भी उस की ओर हो गया. दोनों ही एकदूसरे को प्यार करने लगे. लेकिन इस में परेशानी यह थी कि दोनों की जाति अलगअलग थी.

सरिता पढ़ रही थी, जबकि प्रमोद पढ़ाई छोड़ चुका था. उस का पिता के साथ खेतों में काम करने में मन भी नहीं लग रहा था, न ही उसे कोई ठीकठाक नौकरी मिल रही थी. उसी बीच वह सरिता में रम गया तो उस का पूरा ध्यान उसी पर केंद्रित हो गया. वह अपने भविष्य की चिंता करने के बजाय सरिता को सुनहरे सपने दिखाने लगा. इसी के साथ अन्य प्रेमियों की तरह साथ जीनेमरने की कसमें भी खाता रहा. लेकिन प्यार को अंजाम तक पहुंचाने के लिए उस के पास न तो कोई व्यवस्था थी, न ही समाज उस के साथ था.

सरिता और प्रमोद का मिलनाजुलना लोगों की नजरों में आया तो गांव में उन्हें ले कर चर्चा होने लगी. ऐसे में सरिता को डर सताने लगा कि उस के प्यार का क्या होगा? क्योंकि अब तक उसे लगने लगा था कि वह प्रमोद के बिना जी नहीं पाएगी. वह यह भी जानती थी कि उस का बाप किसी भी कीमत पर इस रिश्ते को स्वीकार नहीं करेगा, वह उस के साथ मनमरजी से भी शादी नहीं कर सकती थी, क्योंकि न तो प्रमोद ज्यादा पढ़ालिखा था, न ही वह कोई कामधाम कर रहा था. ऐसे लड़के को कौन अपनी लड़की देना चाहेगा?

यह बात सरिता प्रमोद से कहती तो वह उसे आश्वस्त करते हुए कहता, ‘‘तुम्हें इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है. मैं तुम्हारे लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाऊंगा. लेकिन हर हालत में तुम्हें हासिल कर के रहूंगा.’’

प्रमोद सरिता को कितना भी आश्वस्त करता, लेकिन वह हर वक्त तनाव में रहती. उस के लिए परेशानी यह थी कि वह प्रमोद को छोड़ भी नहीं सकती थी, क्योंकि उस का दिल इस के लिए तैयार नहीं था. जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने प्रमोद से कहा कि वह कोई नौकरी कर ले, जिस से अगर घर छोड़ कर भागना पड़े तो गृहस्थी बसाने के लिए उस के पास कुछ पैसे तो हों. लेकिन तो केवल हाईस्कूल पास था. इतने पढ़े पर भला उसे कौन सी नौकरी मिल सकती थी.

प्रमोद और सरिता जीवन के रंगीन सपने तो देख रहे थे, लेकिन उन के इन सपनों का कोई भविष्य नहीं था. गांव में प्रमोद और सरिता के प्रेमसंबंधों की चर्चा हो और उन के घर वालों को पता न चले, भला ऐसा कैसे हो सकता था. सरिता के पिता जीवनराम को भी किसी ने इस बारे में बता दिया.

एक तो इज्जत की बात थी, दूसरे जीवनराम की नजरों में प्रमोद ठीक लड़का नहीं था. इसलिए वह परेशान हो उठा. घर जा कर पहले तो उस ने पत्नी को डांटा कि वह जवान हो रही बेटी का ध्यान नहीं रखती. उस के बाद सरिता को बुला कर पूछा ‘‘यह प्रमोद के साथ तेरा क्या चक्कर है? वह आवारा तेरा कौन है, जो तू उस से मिलतीजुलती है.’’

बाप की इन बातों से सरिता कांप उठी. वह जान गई कि पिता को उस के संबंधों की जानकारी हो गई है. वह उन के सामने सीधेसीधे तो अपने और प्रमोद के संबंधों को स्वीकार नहीं कर सकती थी, इसलिए उस ने कहा, ‘‘पापा, प्रमोद से मेरा कोई संबंध नहीं है. कभीकभार स्कूल आतेजाते रास्ते में मिल जाता है तो पढ़ाई के बारे में पूछ लेता है.’’

जीवनराम जानता था कि बेटी झूठ बोल रही है. जवान बेटी से ज्यादा कुछ कहा भी नहीं जा सकता था. फिर उन्हें यह भी पता नहीं था कि बात कहां तक पहुंची है, इसलिए उन्होंने सरिता को समझाते हुए कहा, ‘‘बेटा, हम तुम्हें इसलिए पढ़ा रहे हैं कि तुम्हारी जिंदगी बन जाए, लेकिन अगर मुझे कुछ ऐसावैसा सुनने को मिलेगा तो मैं तुम्हारी पढ़ाई छुड़ा कर शादी कर दूंगा.’’

‘‘पापा, आप बिलकुल चिंता न करें. मैं कोई ऐसा काम नहीं करूंगी, जिस से आप को कोई परेशानी हो.’’

सरिता के इस आश्वासन पर जीवनराम को थोड़ी राहत तो मिली, लेकिन वह निश्चिंत नहीं हुए. उन्होंने पत्नी से तो सरिता पर नजर रखने के लिए कहा ही, खुद भी उस पर नजर रखते थे. जब उन्हें लगा कि इस तरह बात नहीं बनेगी तो एक दिन वह प्रमोद के बाप से मिल कर उस की शिकायत करते हुए बोले, ‘‘प्रमोद सरिता का पीछा करता है. यह अच्छी बात नहीं है. आप उसे रोकें.’’

प्रमोद का बाप वैसे ही बेटे की आवारगी से परेशान था. जब उसे इस बात की जानकारी हुई तो वह बेचैन हो उठा, क्योंकि वह नहीं चाहता था कि कोई ऐसी स्थिति आए कि उसे मुंह छिपाना पड़े. इसलिए जीवनराम के जाते ही उस ने प्रमोद को बुला कर पूछा, ‘‘जीवनराम शिकायत ले कर आया था, सरिता से तुम्हारा क्या चक्कर है?’’

प्रमोद साफ मुकर गया. लेकिन उस का बाप अपने आवारा बेटे के बारे में जानता था, इसलिए उसे डांटफटकार कर कहा, ‘‘प्रमोद, बेहतर होगा कि तुम कोई कामधाम करो, वरना हमारा घर छोड़ दो. मैं नहीं चाहता कि तुम्हारी करतूतों की वजह से गांव में मेरा सिर नीचा हो.’’

प्रमोद सिर झुकाए बाप की बातें सुनता रहा. उस ने सोचा, सरिता भी कोई कामधाम करने के लिए कह रही थी. अब बाप भी घर से भगा रहा है. इसलिए अब कुछ कर लेना ही ठीक है. बाप किसी बिजनैस के लिए पैसे दे नहीं सकता था, इसलिए उस ने दिल्ली जाने का मन बना लिया. उस का एक दोस्त सुरेश दिल्ली में पहले से ही रहता था. उस ने उस से बात की और दिल्ली आ गया.

प्रमोद का विचार था कि वह काम कर के खुद को इस काबिल बनाएगा कि कोई उस का विरोध नहीं कर सकेगा. दिल्ली में सुरेश ने उसे एक जींस बनाने वाली फैक्टरी में नौकरी दिला दी थी. काम भी बढि़या था और पैसे भी ठीकठाक मिल रहे थे, लेकिन कुछ ही दिनों में प्रमोद को सरिता की याद सताने लगी तो वह नौकरी छोड़ कर गांव चला गया. उस के बाहर जाने से जहां जीवनराम ने राहत की सांस ली थी, वहीं वापस आने से उस की चिंता फिर बढ़ गई थी.

बचपन का मजा, जवानी में बना सजा – भाग 2

रुखसाना की हरकतों से सारा गांव वाकिफ था. गांव वालों से इस बात की जानकारी उस के मातापिता को हुई तो उन्होंने उसे मारापीटा और समझाया भी. आखिर मांबाप की बात रुखसाना की समझ में आ गई. इसलिए वह जाबिर से निकाह के लिए राजी हो गई. जाबिर तो उस के लिए पागल था ही, इसलिए रुखसाना के हामी भरते ही उस ने अपने अब्बू नौशे मियां से कहा, ‘‘अब्बू, मैं रुखसाना से निकाह करना चाहता हूं.’’

जाबिर की बात सुन कर नौशे मियां हैरान रह गए. क्योंकि रुखसाना अब तक गांव में इस कदर बदनाम हो चुकी थी कि निकाह की छोड़ो, कोई भला आदमी उस से बातचीत करना भी पसंद नहीं करता था. ऐसी लड़की से जाबिर निकाह की बात कर रहा था. नौशे मियां की गांव में अच्छी इज्जत थी. उन्होंने इस निकाह के लिए साफ मना कर दिया. लेकिन जाबिर ने तो इरादा पक्का कर लिया था, इसलिए उस ने कहा, ‘‘अगर मेरा निकाह रुखसाना से नहीं  किया गया तो मैं आत्महत्या कर लूंगा.’’

मजबूरन नौशे मियां को राजी होना पड़ा. रुखसाना के घर वालों की ओर से इनकार का सवाल ही नहीं था. क्योंकि उन की बदनाम बेटी से और कौन शादी करता. इस तरह जाबिर और रुखसाना का निकाह हो गया.

निकाह के बाद रुखसाना पूरी तरह बदल गई थी. वह पति की ही नहीं, सासससुर और देवर की सेवा पूरे लगन से करने लगी थी. घर के सारे कामों की जिम्मेदारी ले ली थी. नौशे मियां के पास काफी जमीन थी. उसी पर खेती कर के वह अपने परिवार का भरणपोषण कर रहे थे. जाबिर गांव में रह कर पिता की मदद करता था.

समय के साथ जाबिर 4 बच्चों का बाप बन गया. परिवार बढ़ा तो जिम्मेदारी और खर्च बढ़ा. जाबिर को लगा कि अब गांव में गुजारा नहीं होगा तो गांव छोड़ कर वह दिल्ली चला गया.

दिल्ली के दिलशाद गार्डेन में उस ने कबाड़ी का काम शुरू किया. कबाड़ी का काम नाम से भले ही छोटा है, लेकिन अगर मेहनत से किया जाए तो इस काम में मोटी कमाई है. जाबिर ने मन लगा कर मेहनत की. जिस का उसे फायदा भी मिला. उस की ठीकठाक कमाई होने लगी. वह जरूरत भर का पैसा रख कर बाकी गांव भेज देता था. जाबिर की कमाई बढ़ी तो उस ने रहने के लिए एक जनता फ्लैट खरीद लिया. अपना मकान हो गया तो गांव से वह अपना परिवार ले आया. बच्चों का उस ने यहीं एडमिशन करा दिया. अब समय आराम से गुजरने लगा.

जाबिर ने देखा कि कबाड़ी के काम में पैसा तो खूब है, लेकिन इज्जत नहीं है. अगर वह इसी तरह कबाड़ी का काम करता रहा तो उस के बच्चों की शादी ठीकठाक घरों में नहीं हो सकेगी. उस ने कबाड़ी का काम बंद कर दिया और स्टील वर्क्स का काम शुरू कर दिया. इस काम में भी उस ने मन लगा कर मेहनत की. उस की मेहनत रंग लाई और उस के पास सब कुछ हो गया. वह दिन में मेहनत करता और रात को चैन की नींद सोता. जाबिर अपने अब्बू को दिल्ली लाना चाहता था. लेकिन नौशे मियां ने दिल्ली आने से साफ मना कर दिया. तब जाबिर ने उन की मदद के लिए एक नौकर रख दिया. इस नौकर का नाम भी जाबिर था.

वह नौशे मियां के साथ उन के खेतों पर काम करता था. समय निकाल कर जाबिर कभीकभार पिता से मिलने रमजानपुर आ जाता और एकाध दिन रह कर चला जाता था.

काम बढ़ा तो जाबिर की व्यस्तता भी बढ़ गई. जिस की वजह से वह पत्नी और बच्चों को समय कम दे पाता था. अब तक रुखसाना 30 साल की हो गई थी तो जाबिर 45 साल का. दिन भर काम कर के जाबिर बुरी तरह थक जाता तो देर रात घर आने पर उसे बिस्तर ही दिखाई देता था. वह जल्दी से खाना खा कर सो जाता. जबकि भरपूर जवान रुखसाना को उस की नजदीकी की जरूरत होती थी. पति के सो जाने से उस के अरमान दिल में ही रह जाते थे.

रुखसाना चाहती थी कि पति घर आए तो उस से बातें करे, प्यार करे. उस के बच्चों को समय दे. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा था, जिस की वजह से वह खीझने लगी थी. उसे लगता था कि जाबिर को जैसे पत्नी और बच्चों को जरूरत ही नहीं है. बस उसे पैसे चाहिए. उस के अरमानों और भावनाओं की उसे कोई परवाह नहीं है. ऐसे में अगर औरत जवान हो तो वह क्या करे? इस स्थिति में उसे उम्र के लंबे अंतराल का खयाल आया और उसे अपनी गलती का अहसास हुआ.

वह देखती थी कि लोग अभी भी उसे चाहतभरी नजरों से ताकते हैं, जबकि पति उस की ओर ध्यान ही नहीं देता. पति की इस बेरुखी से उस का मन बहकने लगा तो उस की नजरें किसी मर्द को तलाशने लगीं.

रुखसाना के बच्चों को एक सरदार ट्यूशन पढ़ाने आता था. वह हट्टाकट्टा गठीले बदन का कुंवारा नौजवान था. रुखसाना का दिल उसी पर आ गया. क्योंकि वही उस के सब से करीब था. रुखसाना ने उसे लटकेझटके दिखाए तो सरदार को समझते देर नहीं लगी कि उस के मन में क्या है. फिर एक दिन रुखसाना ने उसे मौका दिया तो उस सरदार ने खुशीखुशी उस की इच्छा पूरी कर दी. सरदार ने उसे इस तरह खुश किया कि वह उस की दीवानी हो गई.

धीरेधीरे रुखसाना उस की इस कदर दीवानी हुई कि उसे लगने लगा कि वह सरदार के बिना जी नहीं पाएगी. कुछ ऐसा ही सरदार को भी लगने लगा तो एक दिन वह रुखसाना को भगा ले गया. यह सन 2008 की बात है. रुखसाना को न पति की चिंता थी, न बच्चों की. इसलिए सरदार के साथ जाने के बाद उस ने उन की कोई खबर नहीं ली.

पत्नी की बेवफाई से जाबिर को गहरा आघात लगा. लेकिन इस आघात को बच्चों की परवरिश में लग कर उस ने भुला दिया. फिर भी वह रुखसाना की तलाश करता रहा. 5 महीने बाद उसे किसी से पता चला कि रुखसाना अपने प्रेमी के साथ पंजाब में रह रही है. पत्नी को वापस लाने के लिए वह पंजाब गया. सचमुच वहां रुखसाना उस सरदार के साथ रवीना कौर नाम से रह रही थी. रुखसाना आने को तैयार नहीं थी. लेकिन उस की असलियत जब सरदार के घर वालों को पता चली तो उन्होंने जबरदस्ती उसे जाबिर के साथ भेज दिया.

जाबिर को अब रुखसाना पर यकीन नहीं रह गया था. इसलिए उस ने उसे पिता के पास गांव पहुंचा दिया. 4 बच्चों की मां बनने के बाद भी रुखसाना के रुखसार में कोई कमी नहीं आई थी. साथ ही उस के अरमान भी पहले जैसे ही चिंगारी की तरह थे, जिसे सिर्फ हवा देने की जरूरत थी. आखिर गांव में जाबिर ने पिता की मदद के लिए जाबिर नाम के जिस नौकर को रखा था, उस ने हवा देने का काम किया. उसे देखते ही रुखसाना की आग भड़क उठी. उन के पास मौका ही मौका था. जाबिर घर का नौकर था, इसलिए उस का अंदर तक आनाजाना था.  रुखसाना ने इसी का फायदा उठाया और नौकर जाबिर को बिस्तर का साथी बना लिया.

रुखसाना का जब मन होता, नौकर जाबिर के साथ हमबिस्तर हो जाती. पहले तो यह काम बहुत चोरीछिपे होता रहा, लेकिन धीरेधीरे वे लापरवाह होते गए. गांव वालों को संदेह हुआ तो लोग उन पर नजर रखने लगे. जब उन्हें यकीन हो गया कि सचमुच कुछ गड़बड़ है तो उन्होंने इस बारे में नौशे मियां से बात की. उन्होंने फोन कर के सारी बात बेटे को बता दी. अगले ही दिन जाबिर गांव पहुंचा और पहले तो उस ने रुखसाना की जम कर पिटाई की, उस के बाद तुरंत नौकर को भगा दिया. 4-5 दिन गांव में रह कर जाबिर दिल्ली चला गया.

अधिवक्ता पत्नी की जिंदगी की वैल्यू पौने 6 करोड़ – भाग 2

पुलिस को नहीं मिला हत्यारे का सुराग

रेनू के सिर और कान से थोड़ा खून जरूर बह रहा था. जिस्म के दूसरे हिस्सों में भी चोट के कई निशान दिखाई पड़ रहे थे. इस से साफ था कि रेनू सिंह ने हत्या से पहले कातिल के साथ संघर्ष किया था.

हैरानी की बात यह थी कि घर का सारा सामान अपनी जगह था, यानी वहां कोई लूटपाट या डकैती जैसी वारदात के कोई संकेत दिखाई नहीं पड़ रहे थे. लेकिन ताज्जुब की बात यह थी कि रेनू का पति नितिन फरार था. रेनू के भाई अजय सिन्हा बारबार कह रहे थे कि उन की बहन की हत्या पति नितिन नाथ ने ही की है. पुलिस को तलाश में रेनू सिन्हा का मोबाइल नहीं मिला था, लेकिन यह तभी पता चल सकता था कि रेनू की हत्या पति ने की है या किसी अन्य ने.

बहरहाल, पुलिस ने फोरैंसिक टीम को बुला कर मौके से साक्ष्य एकत्र करने की काररवाई पूरी की और रेनू सिन्हा के शव को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भिजवा दिया. दिलचस्प बात यह रही कि उस समय पुलिस को पूरी कोठी की तलाशी लेने का खयाल तक नहीं आया, लेकिन नितिन का कुछ पता नहीं चला.

सेक्टर 20 थाने आ कर उच्चाधिकारियों के निर्देश पर एसएचओ धर्मप्रकाश शुक्ला ने भादंसं की धारा 302 में अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. जांच की जिम्मेदारी भी उन्होंने अपने पास ही रखी. इस के बाद नितिन नाथ का पता लगाने और रेनू सिंह के मोबाइल की जानकारी लेने के लिए पहले दोनों के फोन की काल डिटेल्स व उन के फोन की लोकेशन निकलवाई.

लोकेशन निकलवाई गई तो पुलिस का माथा ठनका, क्योंकि रेनू सिन्हा और नितिन नाथ दोनों के मोबाइल फोन की लोकेशन उसी डी-40 कोठी के आसपास की नजर आ रही थी, जहां वे रहते थे. इस का मतलब साफ था कि रेनू और उन के पति के फोन कोठी के भीतर ही हैं.

आखिरकार रात 12 बजे पुलिस दोबारा और सही मायने में हरकत में आई. तब पुलिस ने रेनू सिन्हा की कोठी और उस के आसपास के मकानों की सीसीटीवी फुटेज चैक करने का काम शुरू किया. इसी दौरान पुलिस ने ये गौर किया कि रेनू का पति नितिन पिछले 24 घंटों से ज्यादा वक्त में कभी बाहर ही नहीं निकला है. हां, दिन में करीब 2 बजे एकदो लोग घर में जरूर आए थे, लेकिन उन्हें किसी ने कोठी के मेन गेट पर लगा छोटा दरवाजा खोल कर अंदर बुला लिया था.

करीब आधे घंटे बाद आगंतुक चले गए और दरवाजा फिर किसी ने अंदर से बंद कर लिया था. उस के बाद घर के भीतर किसी के आने या किसी के बाहर निकलने की कोई फुटेज नहीं थी. पुलिस ने एक बार फिर से रेनू के घर वालों को मौके पर बुलाया. सीसीटीवी कैमरे में नितिन के घर से बाहर न जाने की पुष्टि होने की बात साफ होने के बाद पुलिस ने फिर से कोठी के निचले और दूसरी मंजिल की तलाशी लेने का काम शुरू किया.

कहानी में असली ट्विस्ट तब आया, जब रेनू का पति नितिन पुलिस को उसी कोठी में छिपा हुआ मिला. असल में नितिन अपने ही मकान के पहले माले में बने स्टोररूम में छिपा हुआ था.

पुलिस ने जब रेनू की लाश बरामद की थी, तब उस ने ऊपर की मंजिल पर केवल कमरों में ही सरसरी तौर पर तलाशी ली थी. जबकि स्टोर रूम छोड़ दिया था. लेकिन रात को दूसरे चरण में पूरे घर का चप्पाचप्पा छानने की कवायद में पुलिस को घर में स्टोररूम में नितिन नाथ छिपा हुआ मिल गया.

स्टोररूम में बंद मिला हत्यारा पति

इस के लिए भी पुलिस ने एक तरकीब निकाली थी. पुलिस टीम ने 4 अलगअलग मोबाइल फोन से लगातार रेनू और नितिन के मोबाइल पर काल करने का काम शुरू किया और जबकि कुछ टीम घर के अलगअलग हिस्सों में सर्च का काम कर रही थी.

पुलिस को तो सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि नितिन घर में छिपा मिलेगा. पुलिस तो रेनू व नितिन के मोबाइल को तलाशने के लिए घर में सर्च कर रही थी, क्योंकि दोनों फोन की लोकेशन लगातार घर में ही आ रही थी. पुलिस जब तलाश करते हुए पहली मंजिल के स्टोररूम तक पहुंची तो इंसपेक्टर डी.पी. शुक्ला की टीम को कुछ घनघनाने की आवाज आई. लगा मानो किसी का मोबाइल वाइब्रेट कर रहा है. जहां से आवाजें आ रही थीं, वह एक स्टोररूम था.

स्टोररूम में 2 दरवाजे थे, एक दरवाजा अंदर से बंद था, जबकि उस के दूसरे गेट पर बाहर से ताला लगा था. पुलिस ने स्टोररूम के दरवाजे का ताला तोड़ा तो अंदर नितिन नाथ छिपा बैठा था. पुलिस ने जब स्टोररूम का दरवाजा खोला तो अंदर नितिन मोबाइल फोन, चार्जर, कौफी मग सब कुछ ले कर इत्मीनान से बैठा हुआ था. तब तक रात के 3 बज चुके थे. यानी जो शख्स पिछले कई घंटों से लाश मिलने वाली जगह से महज 2 मीटर के फासले पर छिपा था, पुलिस को उस तक पहुंचने में कत्ल का खुलासा होने के बाद भी 8 घंटे का वक्त लग गया.

पुलिस को अब लगा कि अगर उन्होंने सीसीटीवी फुटेज की जांच, कोठी की सही तरीके से तलाशी की होती तो ये कामयाबी दोपहर में ही मिल जाती. बहरहाल, नितिन नाथ को जब पकड़ा गया तो उस के पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं था. उस ने कुबूल कर लिया कि अपनी पत्नी रेनू की हत्या उस ने ही गला दबा कर की है. उस ने एकएक सच से परदा उठा दिया.

रेनू सिन्हा को जीवन में सब कुछ मिला. वह सुप्रीम कोर्ट की अच्छी वकील थीं, बेटा गिरीश अमेरिका में जौब करता है, शादी भी एक समृद्ध परिवार में हुई. लेकिन, एक चीज थी जो बीते 33 साल से सही नहीं थी. वो था रेनू का वैवाहिक जीवन.

रेनू और नितिन 33 साल पहले एकदूसरे के हुए थे, लेकिन उन का रिश्ता खुशहाल नहीं था. नितिन नाथ सिन्हा पैसे का लालची और ऐशभरी जिंदगी जीने का ख्वाहिशमंद जिद्दी इंसान था, लेकिन रेनू सीधीसादी और रिश्ते की कद्र करने वाली महिला थीं. उन का एकमात्र बेटा 15 साल पहले अमेरिका चला गया और वहीं बस गया. रेनू के भाई भी हर महीने उस से मिलने आते थे.

मूलरूप से बिहार के पटना के रहने वाले नितिन नाथ सिन्हा का जन्म वैसे तो ब्रिटेन में हुआ था. उन के पिता ब्रिटेन में एक प्रमुख नेत्र सर्जन थे, जिन्होंने 15 साल तक लंदन में प्रैक्टिस की थी, लेकिन उस के बाद वह भारत आ गए. यहां आ कर नितिन ने उच्चशिक्षा हासिल की और बाद में 1986 बैच का भारतीय सूचना सेवा विभाग का अधिकारी चुना गया.

उस ने 25 साल पहले यानी 1998 में ही स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) ले ली थी. इस के बाद उस ने अमेरिका की एक कंपनी में नौकरी की. यही नहीं, वह इंडियन मैडिकल एसोसिएशन में भी पदाधिकारी रह चुका है. पत्नी रेनू सिन्हा को कैंसर था, जिन का इलाज अमेरिका में चल रहा था. कुछ दिन पहले ही वह कैंसर से जीत कर घर लौटी थीं.

इधर कुछ समय से नितिन नाथ अब किसी भी तरह की नौकरी नहीं होने के कारण आर्थिक रूप से परेशान रहने लगा था. वह अपने फिजूल खर्चों के लिए रेनू या उस के भाई पर आश्रित रहता था.

दूसरा पहलू : अपनों ने बिछाया जाल – भाग 2

बारात जनवासे पहुंच गई. मिंटू साए की तरह मनु के आगेपीछे घूम रही थी. सुकृति रिश्तेदारों में व्यस्त थी, इसलिए मनु को समय नहीं दे पा रही थी. उस ने देखा कि उस की चचेरी बहन उस की जिम्मेदारी निभा रही है. मनु बोर नहीं हो रहा, यही उस के लिए पर्याप्त था. मिंटू ने लहंगाओढ़नी पहना था.

दुलहन सी सजी मिंटू ने मनु से पूछा, ‘‘मैं कैसी लग रही हूं जीजू?’’

‘‘माइंड ब्लोइंग रियली.’’ मनु ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘जीजू, झूठी प्रशंसा कर के आप मुझे झाड़ पर चढ़ा रहे हैं.’’

ऐसी बात कह कर शायद मिंटू मनु को और कुरेदना चाह रही थी. अब तक मनु भी काफी खुल चुका था, इसलिए उस ने कहा, ‘‘मिंटू, अपनी लाइफ में मैं ने इतनी सुंदर लड़की पहले नहीं देखी. जी चाहता है कि…’’

मनु का वाक्य पूरा होता, उस के पहले ही मिंटू तपाक से बोली, ‘‘क्या चाहता है जीजू आप का दिल? जरा हमें भी तो पता चले.’’

मिंटू की इस बात से मनु का साहस बढ़ा. उस ने बिना कुछ सोचेसमझे कहा, ‘‘अगर सामने कोई खूबसूरत अप्सरा खड़ी हो तो पुरुष का दिल क्या चाहेगा?’’

‘‘क्या चाहेगा, आप ही बता दीजिए?’’ मिंटू ने मुसकराते हुए पूछा.

मनु ने कोई जवाब नहीं दिया तो पल भर बाद मिंटू ही बोली, ‘‘आप तो लड़कियों की तरह शरमा रहे हैं. आय एम योर फ्रैंड जीजू, प्लीज बताइए ना.’’

मनु अपने ऊपर नियंत्रण नहीं रख पाया और दिल की ख्वाहिश जाहिर करते हुए बोला, ‘‘वांट ए किस, आई मीन लव…’’

‘‘इस में इतना शरमाने की क्या बात थी जीजू? मैं ने तो सोचा था आप…’’ इस बार मिंटू ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी. लेकिन मनु की बात उस के दिल को भेद गई थी. थोड़ा रुक कर मिंटू बोली, ‘‘मैं आप को एक गिफ्ट देना चाहती हूं जीजू.’’

‘‘क्या?’’ मनु ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘एक ऐसा गिफ्ट, जो आप को बहुत पसंद आएगा.’’ मिंटू ने हंसते हुए कहा.

‘‘दीजिए, देखें तो क्या दे रही हैं अपने जीजू को?’’ मनु ने पूछा.

‘‘अभी नहीं. समय आने दो, फिर देखना.’’

मनु कुछ और कहता, जानवासे से बारात चल पड़ी. बारातियों में तमाम लोग डांस कर रहे थे. लेकिन जब मिंटू ने डांस शुरू किया तो उस ने तुरंत भीड़ से मनु को अपने साथ डांस करने के लिए खींच लिया. सुकृति भी अब उस के साथ डांस करने लगी.

बारात लड़की वालों के घर पहुंच गई. अचानक सुकृति को याद आया कि वह अपना सूटकेस लौक करना भूल गई थी. उस ने यह बात मनु से कही तो वह अपनी कार से जनवासे जाने लगा. वह पंडाल से बाहर आया था कि पीछे से दौड़ती हुई मिंटू आई और उस के साथसाथ चलने लगी. चलते हुए ही उस ने पूछा, ‘‘जनवासे जा रहे हैं क्या जीजू?’’

‘‘हां, तुम्हें भी कोई काम है क्या?’’

‘‘मुझे भी वहां से अपनी एक ड्रेस लानी है.’’ मिंटू ने कहा.

मनु के साथ मिंटू भी कार में बैठ गई. कार में सिर्फ वही दोनों थे. कार थोड़ी दूर ही चली होगी कि मिंटू ने मनु का हाथ दबा कर कार रुकवा ली. मनु कुछ समझ पाता, बिजली की सी फुर्ती से मिंटू ने मनु के गाल पर चुंबनों की बौछार कर दी. मनु भौचक्का रह गया. मिंटू ने कहा, ‘‘जीजू मेरी गिफ्ट कैसी लगी? बदले में अब आप मुझे गिफ्ट में क्या दे रहे हैं?’’

मनु की भी भावनाएं भड़क उठी थीं. उस ने भी आगे बढ़ कर मिंटू के होठों पर अपने होंठ रख दिए. मनु ने स्वयं को जैसेतैसे संयत किया. रिश्तों की नाजुकता ने आवेश पर ब्रेक लगाया तो कार आगे बढ़ी. जनवासा आ चुका था. मनु कार में ही बैठा रहा. मिंटू जा कर सुकृति का सूटकेस और अपनी ड्रेस ले आई.

भावावेश में यह सब जो हुआ था, मनु को पश्चाताप हो रहा था. उसे परेशान देख कर मिंटू ने कहा, ‘‘इतने टैंस क्यों हो रहे हैं जीजू? मैं आप की साली ही तो हूं. साली यानी आधी घर वाली. इतना हक तो बनता ही है आप का?’’

मनु थोड़ा संयत हुआ. मिंटू की दिलकश अदाएं उस पर भारी पड़ने लगी थीं. दोनों बारात में शामिल हो गए. लड़की वालों का घर आ गया. शादी की वह रात इसी तरह हंसीमजाक में बीत गई. सुबह दुलहन की विदाई के बाद सुकृति मनु की कार में बैठ गई थी. शादी निपट चुकी थी. मनु को अपना बिजनैस देखना था, इसलिए उसे लौटना था. वह चला आया, लेकिन सुकृति 2-4 दिनों के लिए रुक गई. रश्मि और उस की बेटी मिंटू के व्यवहार ने उस की जिंदगी में नए रंग भर दिए थे. मिंटू उस से रुकने के लिए जिद कर रही थी, लेकिन बिजनैस की वजह से उस का रुकना संभव नहीं था.

मनु रास्ते में ही था कि उस के मोबाइल फोन पर मिंटू के एसएमएस धड़ाधड़ आने लगे. मनु के पास इतना समय नही था कि वह जवाब देता. 2-4 के जवाब दिए, बाकी फोन पर बात कर ली. 2-4 दिनों बाद मिंटू मां के साथ अहमदाबाद चली गई.

सुकृति ने शायद उन के बीच बढ़ती प्रगाढ़ता को भांप लिया था, इसलिए मनु को सचेत किया, ‘‘आप इन लोगों से ज्यादा नजदीकी मत बढ़ाइए. आप उन लोगों को नहीं जानते, धोखा उन की रगरग में बसा है.’’

मनु पशोपेश में पड़ गया. अपनों के बारे में सुकृति के विचार जान कर उसे बड़ा अजीब लगा. इस के बाद उस ने सुकृति को उन लोगों के बारे में बताना बंद कर दिया. मिंटू बारबार मनु से अहमदाबाद आने की जिद कर रही थी. उस की डिमांड पर मनु ने कुरियर से उस के लिए एक कीमती मोबाइल सेट और कुछ शानदार ड्रेसेज भेज दी थीं. यह सब पा कर मिंटू बहुत खुश हुई थी.

मनु अकसर मिंटू के लिए कुछ न कुछ भेजने लगा था. उस के मोबाइल में पैसे डलवाना तो आम बात थी. वह थी ही इतनी बातूनी. वही क्या, उस की मम्मी यानी रश्मि भी मनु से घंटों बातें करती थी. मनु को मोबाइल के बिल की उतनी चिंता नही थी, लेकिन उस के पास समय नहीं होता था.

शोरूम में ग्राहकों के सामने ज्यादा देर मोबाइल पर बात नहीं कर सकता था. इधर वह मोबाइल में इतना उलझा रहने लगा था कि शोरूम का सिस्टम गड़बड़ाने लगा था. उस में आए इस बदलाव से शोरूम के कर्मचारी हैरान थे.

पति ने किया अर्चना की जिंदगी का सूर्यास्त – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला पीलीभीत के थाना गजरौला कलां का संतरी बरामदे में खड़ा इधरउधर ताक रहा था. उसी समय एक युवक तेजी से  आया और थानाप्रभारी भुवनेश गौतम के औफिस में घुसने लगा तो उस ने टोका, ‘‘बिना पूछे कहां घुसे जा रहे हो भाई?’’

युवक रुक गया. वह काफी घबराया हुआ लग रहा था. उस ने कहा, ‘‘साहब से मिलना है, मेरी पत्नी को बदमाश उठा ले गए हैं.’’

‘‘तुम यहीं रुको, मैं साहब से पूछता हूं, उस के बाद अंदर जाना.’’ कह कर संतरी थानाप्रभारी के औफिस में घुसा और पल भर में ही वापस आ कर बोला, ‘‘ठीक है, जाओ.’’

संतरी के अंदर जाने के लिए कहते ही युवक तेजी से थानाप्रभारी के औफिस में घुस गया. अंदर पहुंच कर बिना कोई औपचारिकता निभाए उस ने कहा, ‘‘साहब, मैं लालपुर गांव का रहने वाला हूं. मेरा नाम प्रमोद है. मैं अपनी पत्नी को विदा करा कर घर जा रहा था. गांव से लगभग 2 किलोमीटर पहले कुछ लोग बोलेरो जीप से आए और मेरी पत्नी को उसी में बैठा कर ले कर चले गए.’’

थानाप्रभारी भुवनेश गौतम ने प्रमोद को ध्यान से देखा. उस के बाद मुंशी को बुला कर उस की रिपोर्ट दर्ज करने को कहा. मुंशी ने प्रमोद के बयान के आधार पर उस की रिपोर्ट दर्ज कर ली. रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद प्रमोद ने थानाप्रभारी के औफिस में आ कर कहा, ‘‘साहब, अब मैं जाऊं?’’

थानाप्रभारी भुवनेश गौतम ने उसे एक बार फिर ध्यान से देखा. प्रमोद ने उन से एक बार भी नहीं कहा था कि वह उस की पत्नी को तुरंत बरामद कराएं. उस के चेहरे के हावभाव से भी नहीं लग रहा था कि उसे पत्नी के अपहरण का जरा भी दुख है.

उन्होंने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘तुम हमें वह जगह नहीं दिखाओगे, जहां से तुम्हारी पत्नी का अपहरण हुआ है? अपहर्त्ता जिस बोलेरो जीप से तुम्हारी पत्नी को ले गए हैं, उस का नंबर तो तुम ने देखा ही होगा. वह नंबर नहीं बताओगे?’’

थानाप्रभारी की बातें सुन कर प्रमोद के चेहरे के भाव बदल गए. वह एकदम से घबरा सा गया. उस ने हकलाते हुए कहा, ‘‘साहब, मैं गाड़ी का नंबर नहीं देख पाया था. यह सब इतनी जल्दी और अचानक हुआ था कि गाड़ी का नंबर देखने की कौन कहे, मैं तो यह भी नहीं देख पाया कि अपहर्त्ता कितने थे.’’

‘‘ठीक है, हम अभी तुम्हारे साथ चल कर वह जगह देखते हैं, जहां से तुम्हारी पत्नी का अपहरण हुआ है. तुम घबराओ मत, हम नंबर और अपहर्त्ताओं के बारे में भी पता कर लेंगे.’’ कह कर थानाप्रभारी ने गाड़ी निकलवाई और सिपाहियों के साथ प्रमोद को भी गाड़ी में बैठा कर घटनास्थल की ओर चल पड़े. सिपाहियों के साथ बैठा प्रमोद काफी परेशान सा लग रहा था.

जिस की पत्नी का अपहरण हो जाएगा, वह परेशान तो होगा ही, लेकिन उस की परेशानी उस से हट कर लग रही थी. थानाप्रभारी जब गांव के मोड़ पर पहुंचे तो प्रमोद ने कहा, ‘‘साहब, मुझे तो अब याद ही नहीं कि अपहरण कहां से हुआ था? मैं तो पत्नी के साथ पैदल ही जा रहा था. अंधेरा होने की वजह से मैं वह जगह ठीक से पहचान नहीं सका.’’

‘‘तुम ने शोर मचाया था?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब, शोर मचाने का मौका ही कहां मिला. वह आंधी की तरह आए और मेरी पत्नी को जीप में जबरदस्ती बैठा कर ले गए.’’ प्रमोद ने कहा.

थानाप्रभारी को प्रमोद की इस बात से लगा कि मामला अपहरण का नहीं, कुछ और ही है. पूछने पर प्रमोद यह भी नहीं बता रहा था कि उस की ससुराल कहां है. संदेह हुआ तो उन्होंने गुस्से में कहा, ‘‘सचसच बता, क्या बात है?’’

प्रमोद कांपने लगा. थानाप्रभारी को समझते देर नहीं लगी कि यह झूठ बोल रहा है. उन्होंने उसे जीप में बैठाया और थाने आ गए. थाने ला कर उन्होंने उस से पूछताछ शुरू की. शुरूशुरू में तो प्रमोद ने पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की, लेकिन जब उस ने देखा कि पुलिस अब सख्त होने वाली है तो उस ने रोते हुए कहा, ‘‘साहब, अपने दोस्त मुकेश के साथ मिल कर मैं ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी है और लाश एक गन्ने के खेत में छिपा दी है.’’

रात में तो कुछ हो नहीं सकता था, इसलिए पुलिस सुबह होने का इंतजार करने लगी. सुबहसुबह पुलिस लालपुर पहुंची तो गांव वाले हैरान रह गए. उन्हें लगा कि जरूर कुछ गड़बड़ है. जब प्रमोद ने गन्ने के खेत से लाश बरामद कराई तो लोगों को पता चला कि प्रमोद ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी है. थोड़ी ही देर में वहां भीड़ लग गई.

पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया. मृतका की उम्र 20 साल के करीब थी. वह साड़ीब्लाउज पहने थी. गले पर दबाने का निशान स्पष्ट दिखाई दे रहा था. गांव वालों से जब प्रमोद के घर वालों को पता चला कि प्रमोद ने अर्चना की हत्या कर दी है तो वे भी हैरान रह गए. उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि प्रमोद ऐसा भी कर सकता है. लेकिन जब वे घटनास्थल पर पहुंचे तो अर्चना की लाश देख कर सन्न रह गए. पुलिस ने मृतका अर्चना के पिता डालचंद को भी फोन द्वारा सूचना दे दी थी कि उन की बेटी अर्चना की हत्या हो चुकी है.

इस सूचना से डालचंद और उन की पत्नी शारदा हैरान रह गए थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब कैसे हो गया. कल शाम को ही तो उन्होंने बेटी को विदा किया था. उस समय तो सब ठीकठाक लगा था. रास्ते में ऐसा क्या हो गया कि अच्छीभली बेटी की हत्या हो गई.

डालचंद ने सिर पीट लिया. उन के मुंह से एकदम से निकला, ‘‘किस ने मेरी बेटी को मार दिया? उस ने आखिर किसी का क्या बिगाड़ा था?’’

‘‘हमारी बेटी को किसी और ने नहीं, प्रमोद ने ही मारा है.’’ रोते हुए शारदा ने कहा.

पत्नी की इस बात से डालचंद हैरान रह गया, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’

‘‘तुम्हें पता नहीं है. दामाद का गांव की ही किसी लड़की से चक्कर चल रहा था. उसी की वजह से उस ने मेरी बेटी को मार डाला है.’’ शारदा ने कहा.

पत्नी भले ही कह रही थी कि अर्चना की हत्या प्रमोद ने की है, लेकिन डालचंद को विश्वास नहीं हो रहा था. सूचना पाने के बाद डालचंद परिवार के कुछ लोगों के साथ थाना गजरौला कलां जा पहुंचा. अर्चना की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया था. थानाप्रभारी ने जब उसे बताया कि अर्चना की हत्या उस के दामाद प्रमोद ने ही की है, तब कहीं जा कर उसे विश्वास हुआ.

पूछताछ में शारदा ने बताया कि अर्चना ने उन से बताया था कि प्रमोद का गांव की ही किसी लड़की से प्रेमसंबंध है. लेकिन उस ने बेटी की इस बात को गंभीरता से नहीं लिया था. उसे लगा कि हो सकता है शादी के पहले रहे होंगे. शादी के बाद संबंध खत्म हो जाएंगे. उसे क्या पता कि उसी संबंध की वजह से प्रमोद उस की बेटी को मार डालेगा.