बार डांसर की बेवफाई – भाग 3

शादी के बाद कुछ महीने तो बड़े चैन से गुजरे, लेकिन बाद में आर्थिक तंगी सामने आ खड़ी हुई. वजह यह थी कि वे दोनों कैटरिंग के जिस काम से जुड़े थे, वह मौसमी शादियों और पार्टियों के बूते पर चलता था, जब शादियों का मौसम नहीं होता था तो दोनों की आय का स्रोत बंद हो जाता था. 2-4 पार्टियों के लिए काम मिल भी जाता तो उस से गुजारा नहीं होता था.

जब आर्थिक हालात बिगड़ते गए तो पूजा को फिर से डांस बार का रुख करना पड़ा. जबकि आसिफ कैटरिंग के काम से ही जुड़ा रहा. पूजा इस बार डांसबार में लौटी तो वह पहले वाली पूजा नहीं थी.  शादी के बाद वह काफी बदल गई थी. इस बार डांसबार में आ कर मां की तरह पूजा के भी कदम बहक गए. फलस्वरूप वह भी अपनी मां मंदा के रास्ते पर चल निकली.

शारीरिक सुख और पैसों की चाह में पूजा के कई पुरुष मित्र बन गए. जिन के साथ वह घूमनेफिरने और पार्टियों में जाने लगी. अब वह रात को अकसर नशे में घर लौटने लगी थी. आसिफ को यह बिलकुल पसंद नहीं था. जब वह पूजा को इस सब के लिए मना करता था तो वह उलटा जवाब देती थी.

इन बातों को ले कर पूजा और आसिफ में कभीकभी झगड़ा हो जाता था और बात मारपीट तक पहुंच जाती थी. एक बार तो आसिफ ने गुस्से में पूजा को इतना पीटा कि उस ने साकी नाका पुलिस थाने जा कर उस के खिलाफ शिकायत दर्ज करवा दी.   फलस्वरूप आसिफ को जेल जाना पड़ा. जब तक वह जमानत पर जेल के बाहर आया तब तक उस के प्रति पूजा का मन बदल चुका था. अब वह आसिफ के साथ नहीं रहना चाहती थी. वह उस का मोह छोड़ कर अपनी मौसी की लड़की लता के पास नागपुर चली गई.

लता भी नागपुर के बीयर बारों में आर्केस्ट्रा पर नाचने का काम करती थी. जाने से पहले पूजा ने जब लता को फोन कर के अपनी आप बीती बताई तो लता ने उसे नागपुर आने की सलाह दी. लता की सलाह पर पूजा नागपुर चली आई थी और लता के साथ बीयर बारों में काम करने लगी थी.

एक महीने बाद आसिफ ने पूजा से संपर्क कर के उस से माफी मांगी तो उस ने आसिफ को नागपुर बुला लिया. नागपुर आ कर आसिफ ने कैटरिंग का काम करना शुरू कर दिया. उस के नागपुर आने के बाद पूजा ने जाटवरोड़ी बस्ती में किराए का मकान ले लिया. आसिफ और वह उसी मकान में पतिपत्नी की तरह रहने लगे. इस के बावजूद पूजा का चालचलन वही रहा जो मुंबई में था. नागपुर में भी उस ने कई पुरुष मित्र बना लिए थे.

पूजा के पुराने रंगढंग देख कर आसिफ को बहुत दुख हुआ क्योंकि उस के लिए उस ने खुद को बिलकुल बदल लिया था. आसिफ ने पूजा को समझाने की कोशिश की लेकिन वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आई. इस से आसिफ को उस से नफरत हो गई.

27 अप्रैल 2014 की रात उस नफरत की आग में घी डालने का काम उस पार्टी ने किया था जो पूजा के मकान की छत पर आयोजित की गई थी. यह पार्टी पूजा के एक दोस्त के बर्थडे की थी. पार्टी के लिए शराब और चिकन वगैरह की पूरी व्यवस्था की गई थी.

उस पार्टी में सारे लोग शराब पी कर आर्केस्ट्रा की धुन और हलकी पीली रोशनी के बीच एकदूसरे की बाहों में झूल रहे थे. पार्टी में आसिफ भी मौजूद था, जो पूजा की हर हरकत को देख रहा था. पूजा शराब के नशे में पार्टी में एक युवक की बाहों में अश्लीलता की हदें पार करते हुए झूल रही थी.

वह युवक उस के नाजुक अंगों से छेड़खानी कर रहा था. यह सब देख कर आसिफ का खून खौल रहा था. लेकिन वह मजबूर था क्योंकि वह युवक उस इलाके का माना हुआ बदमाश था. जब आसिफ से यह सब नहीं देखा गया तो वह पार्टी छोड़ कर नीचे चला आया और अपने बिस्तर पर लेट गया.

जब पार्टी खत्म हुई तो पूजा भी नीचे कमरे में गई और आसिफ के पास लेट कर सो गई. आसिफ उस वक्त जाग रहा था. उस की आंखों से नींद कोसों दूर थी. उस की आंखों में पूजा की बेवफाई घूम रही थी. उस के दिमाग में बैठा शैतान उस की सोचनेसमझने की शक्ति को लील गया था. ऐसी विश्वासघाती बीवी से तो अच्छा है, वह बिना उस के ही रहे, यह सोच कर आसिफ बिस्तर से उठा और कमरे में रखे कटर ब्लेड से एक झटके में पूजा का गला काट दिया.

गला कटते ही पूजा लड़खड़ा कर फर्श पर गिर पड़ी. उस का गला काटने के बाद आसिफ ने मकान के बाहर आ कर दरवाजा बंद किया और ताला लगा कर मुंबई चला गया. लेकिन मुंबई आने के बाद भी उस के मन में पूजा के प्रति नफरत खत्म नहीं हुई थी. इसीलिए उस ने हत्या करने के बाद भी नागपुर में रहने वाले अपने एक दोस्त को फोन कर के पूजा के बारे में पूछा. दरअसल उसे शंका थी कि कहीं वह जीवित न रह गई हो. उस की यही गलती उसे महंगी पड़ी और वह फोन काल से पकड़ा गया.

आसिफ इस्माइल शेख से विस्तृत पूछताछ के बाद जांच अधिकारी सब इंसपेक्टर मुकुंद कवाड़े ने उस के विरुद्ध भादंवि की धारा 302, 202 के तहत मुकदमा दर्ज कर उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक वह नागपुर जेल में बंद था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पत्नी और प्रेमी के प्यार में पिसा करन – भाग 3

“अगला जन्म किस ने देखा है अनुराग, मैं इसी जन्म में तुम्हारी दुलहन बनूंगी. तुम मेरा पहला और आखिरी प्यार हो. मेरे प्यार की कहानी तुम से शुरू हुई थी और तुम पर ही जा कर खत्म होगी.” राधा ने कहा और आगे झुक कर उस ने भावावेश में अनुराग के होंठ चूम लिए. वह फिर पार्क में नहीं रुकी. पार्क से बाहर निकलते वक्त उस की आंखों में आंसू झिलमिला रहे थे.

दुलहन के रूप में करन की मौत बन कर आई राधा

9 मई, 2022 को राधा और करन भदौरिया की धूमधाम से शादी हो गई. राधा भदौरिया खानदान की बहू बन कर कोट पोरसा में आ गई. अब यह राधा की ससुराल थी और करन उस का सुहाग. विवशता में राधा ने यह विवाह किया था, वह अनुराग के साथ अपने प्रेम और उसी से विवाह करने की बात मांबाप के सामने जुबान पर नहीं ला पाई. उस ने करन भदौरिया से शादी का विरोध करने का साहस भी नहीं जुटाया और बुझे मन से शादी की रस्में निभाते हुए करन के साथ सात फेरे ले लिए.

सुहागसेज पर करन ने अपना हक मांगा तो अनुराग की छवि मन में बसा कर खुद को करन के हवाले कर दिया. उस का मन तड़प रहा था और आंखों में नमी थी, जिसे करन नहीं देख पाया. एक सप्ताह वह राधा के साथ मौजमस्ती करता रहा. राधा भरे मन से उस की खुशियों की भागीदार बनती रही. 8वें दिन करन अपनी नौकरी पर विजयवाड़ा चला गया तो राधा ने चैन की सांस ली. उसे ऐसा लगा जैसे लंबी कैद काट कर वह आजाद हुई है.

करन विजयवाड़ा की टोल प्लाजा कंपनी में काम करता था. शुरूशुरू में वह 15 दिन में एक बार कोट पोरसा पत्नी राधा के मोह में आता रहा, फिर यह सिलसिला रुक गया. कारण कंपनी ने उस की ज्यादा नागा का नोटिस ले लिया था, उन्होंने करन को हिदायत दी थी कि वह मन लगा कर काम करे, ज्यादा छुट्टी लेने पर कंपनी का नुकसान होगा. करन मन मार कर रह गया था.

11 फरवरी, 2023 को रघुसिंह भदौरिया बड़ी बेचैनी से घर के आगे टहल रहे थे. उन की निगाहें सामने वाली उस सडक़ पर जमी थीं, जो कोट परोसा बाजार हो कर उन के दरवाजे की ओर आती थी. रघुसिंह को अपने बेटे करन के आने का इंतजार था.

करन हुआ अचानक लापता

करन ने दोपहर में उन्हें सूचना दे दी थी कि वह सकुशल विजयवाड़ा से ग्वालियर आ गया है और 2 बजे तक घर पहुंच जाएगा. लेकिन अब शाम के 6 बज रहे थे. करन का न फोन आया था, न वह खुद घर पहुंचा था. उस का फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा था. रघुसिंह भदौरिया को घबराहट होने लगी थी.

वह पागलों की तरह बेटे की राह देख रहे थे कि उन का बड़ा बेटा अर्जुन घर आ गया. रघुसिंह भदौरिया ने उसे करन के अभी तक घर न आने की बात बताई तो वह भी परेशान हो गया. उस ने अपने सभी रिश्तेदारों को फोन कर के करन के विषय में पूछा, सभी से एक ही बात सुनने को मिली कि करन उन के घर नहीं आया है. फिर तो अर्जुन भी घबरा गया.

वह रात जैसेतैसे उन्होंने आंखों में काटी, सुबह रघुसिंह बड़े बेटे अर्जुन को ले कर थाना गोहद चौराहा पहुंच गए. एसएचओ उपेंद्र छारी ने दोनों की बदहवास हालत देख कर उन्हें पानी पिलवाया और उन के थाने आने का कारण पूछा.

“साहब, मेरा छोटा बेटा करन भदौरिया विजयवाड़ा से अंडमान एक्सप्रेस ट्रेन पकड़ कर कल दोपहर को ग्वालियर स्टेशन पर उतरा था. उस का फोन तब चालू था, उस ने मुझे बताया था कि वह 2 बजे तक घर आ जाएगा. लेकिन वह अभी तक घर नहीं पहुंचा है. उस का फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा है. मुझे बहुत घबराहट हो रही है, आप मेरे बेटे की तलाश करवाइए.”

“आप अपनी रिपोर्ट लिखवा दीजिए और अपने बेटे की फोटो दे दीजिए. मैं पूरी कोशिश करूंगा कि आप के बेटे का पता चल जाए.” एसएचओ ने उन्हें आश्वासन देते हुए कहा.

रघुसिंह ने बेटे करन की गुमशुदगी दर्ज करा दी

एसएचओ उपेंद्र छारी ने करन की गुमशुदगी को बड़ी गंभीरता से लिया. उन्होंने भिंड जिले के सभी थानों में करन की फोटो फ्लैश कर के उन से करन को तलाश करने में मदद मांगी. लेकिन 2 दिन बीत जाने पर भी करन की कोई सूचना नहीं मिली. करन का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिया गया था, लेकिन वह मोबाइल स्विच्ड औफ था.

रघुसिंह से उन्होंने करन और उस की पत्नी राधा का मोबाइल नंबर लेकर सर्विलांस की मदद से उस की काल डिटेल्स निकलवाई तो वह चौंक गए. करन की पत्नी राधा के मोबाइल से एक नंबर पर इन 9 महीनों में 12,375 बार फोन किया गया था. इस नंबर की जांच की तो यह नंबर भिंड जिले में चतुर्वेदी नगर के रहने वाले अनुराग चौहान का निकला.

“यह अनुराग कौन है?” एसएचओ ने रघुसिंह को थाने बुला कर पूछा.

“मैं नहीं जानता साहब,” रघुसिंह ने सिर हिलाया.

“आप की बहू का चुतुर्वेदी नगर में कोई रहता है क्या? आप की बहू ने यहां रहने वाले अनुराग चौहान से शादी के बाद से 12,375 बार फोन किया है.”

“चतुर्वेदी नगर में तो राधा की मौसी रहती है साहब. उन का कोई बेटा नहीं है, पति भी कभी का स्वर्गवासी हो गया है.” रघुसिंह ने बताया.

“हं. मुझे अब करन की तलाश करने के लिए रास्ता मिलने लगा है. आप घर जाइए, करन के बारे में अब जल्दी पता चल जाएगा.” एसएचओ ने रहस्यभरी आवाज में कहा.

रघुसिंह के जाने के बाद एसएचअे उपेंद्र छारी ने एसआई शिवप्रताप राजावत, वैभव तोमर, कल्याण सिंह यादव और एएसआई सत्यवीर सिंह को रघुसिंह के घर के आसपड़ोस में रहने वाले लोगों से राधा के विषय में गुप्त तरीके से जानकारी जुटाने के लिए भेज दिया.

बार डांसर की बेवफाई – भाग 2

आसिफ जिस बीयर बार में कभीकभी बीयर पीने और डांस देखने जाता था, एक दिन अचानक उसी के डांस फ्लोर पर उस की नजर एक शोख चंचल हसीना से टकरा गईं. यह हसीना थी पूजा. वह उस डांसबार की सब से छोटी और सैक्सी बार डांसर थी. कच्ची उम्र की पूजा अपनी सुंदरता और नृत्यकला के बल पर डांसबार में आने वाले सभी ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित कर लेती थी. लेकिन उस के पास वही लोग जा पाते थे जिन की जेब में मोटी रकम होती थी.

पूजा भी पैसे वालों को ही भाव देती थी. ऐसी स्थिति में आसिफ की दाल कहां गलने वाली थी. वह छोटामोटा चोर था, उस के पास इतना पैसा नहीं होता था कि नोट दिखा कर पूजा का स्पर्श कर सके. आसिफ ने जब से पूजा को देखा था, उस का दीवाना हो गया था, पूजा उस के दिलोदिमाग पर छा गई थी. वह सोतेजागते पूजा के ही सपने देखने लगा था. इस बीच उस ने कई बार पूजा के करीब जाने की कोशिश भी की थी. लेकिन पूजा उसे भाव नहीं देती थी.

जब आसिफ को लगा कि बिना पैसे के कुछ नहीं हो सकता तो उस ने पूजा के करीब जाने का रास्ता ढूंढ निकाला. उस ने उसी डांसबार में वेटर की नौकरी कर ली. वेटर की नौकरी के दौरान उसे पूजा के पास जाने और उस से बातचीत करने का मौका मिलने लगा. कुछ दिन बाद उसे धक्का तब लगा जब पूजा उस डांसबार को छोड़ कर चली गई.

दरअसल पूजा ने डांसबार में नौकरी अपनी मां के दबाव में की थी. जब उसे वहां का माहौल ठीक नहीं लगा तो उस ने डांसबार की नौकरी छोड़ दी और एक कैटरर के यहां नौकरी करने लगी. जब यह बात आसिफ को पता चली तो उस ने भी डांसबार की नौकरी छोड़ दी.

थोड़ी कोशिश के बाद उसे भी उसी कैटरर के यहां काम मिल गया. इस तरह वह फिर से पूजा के पास आ गया. धीरेधीरे उस ने पूजा से नजदीकियां बनानी शुरू कर दीं. फलस्वरूप दोनों के बीच दुखदर्द की बातें होने लगीं. इसी के चलते जल्दी ही दोनों के बीच अच्छीभली दोस्ती हो गई. इस से आसिफ खूब खुश था.

आसिफ सोचता था कि जिस तरह पूजा ने उस की दोस्ती स्वीकार की है, उसी तरह एक दिन वह उस के प्यार को भी स्वीकार कर लेगी. उसे अपना सपना सच होता नजर आ रहा था. अब वह पूजा के साथ हंसीमजाक भी करने लगा था और उस की छोटीबड़ी हर बात का ध्यान भी रखता था. कैटरिंग के काम में रात को कभी देर हो जाती थी तो वह पूजा को उस के घर भी छोड़ने जाता था.

पहले तो पूजा ने आसिफ की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब उस ने अपने प्रति आसिफ का लगाव देखा, तो वह भी उस की तरफ झुकने लगी. फिर धीरेधीरे उस के दिल में भी प्यार के अंकुर फूटने लगे. वह आसिफ की बातों का जवाब उसी की तरह देने लगी.

अब जब भी आसिफ उसे छोड़ने उस के घर आता तो वह उसे घर के अंदर बुला लेती. उसे चायनाश्ता कराती और उस के साथ बैठ कर बातें करती. बातोंबातों में जब आसिफ को यह अहसास हुआ कि पूजा भी उसे चाहने लगी है, तो आसिफ ने उस के सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया. बात जब शादी की आई तो पूजा ने अपने प्रेमी से कुछ भी छुपाना उचित नहीं समझा. उस ने आसिफ को अपने बारे में सब कुछ सचसच बता दिया.

पूजा के पिता का नाम हनुमंत यादव था और मां का मंदा यादव. आसिफ के पिता की तरह हनुमंत यादव भी एक आटो रिक्शा ड्राइवर था. वह अपनी पत्नी मंदा के साथ हर तरह से खुश था. लेकिन मंदा खुश नहीं थी. वह महत्त्वाकांक्षी महिला थी.   वह चाहती थी कि उस के पास खूब पैसा हो और वह खूब ऐश करे, घूमेफिरे, होटलों में जाए. लेकिन यह सब तभी संभव था जब घर की आर्थिक स्थिति अच्छी होती. आटो रिक्शा की कमाई से घर का खर्चा ही बड़ी मुश्किल से चलता था.

पूजा के जन्म के बाद खर्चा बढ़ने से जब घर की आर्थिक स्थिति और बिगड़ गई तो मंदा ने अपनी इच्छाओं को पूरी करने के लिए डांस बार में बतौर डांसर काम करने का फैसला किया. जहां पर हनुमंत यादव और मंदा रहते थे वहां आसपास कई बार डांसर रहती थीं. मंदा ने उन्हीं की मदद से बीयर बारों और आर्केस्ट्रा में नाचने का काम शुरू कर दिया.

एक तो मंदा खूबसूरत और गुदाज बदन वाली महिला थी, दूसरे उस ने अपनी पढ़ाई के दौरान डांस सीखा था, सो लोग उसे और उस के डांस को पसंद करने लगे. धीरेधीरे वह लोगों की पसंदीदा डांसर बन गई. मंदा जब डांस फ्लोर पर डांस करती थी तो अपनी अदाओं से मनचलों का मन मोह लेती थी. फलस्वरूप उस के ऊपर पैसों की बरसात होने लगी.

इस काम से मंदा भी खुश थी और उस के ग्राहक भी. लेकिन मंदा का पति हनुमंत यादव खुश नहीं था. वह मंदा को इस काम के लिए मना करता था. उस के मना करने के बावजूद मंदा नहीं मानती थी. मंदा के पास जब अच्छाभला पैसा आने लगा तो उस की पैसे की भूख बढ़ती गई. ज्यादा पैसा कमाने के चक्कर में मंदा ने नाचने के साथसाथ मनचलों के साथ बाहर जाना भी शुरू कर दिया. नतीजतन उस की देह महंगी ही सही, लेकिन दुकान बन कर रह गई.

जब यह बात हनुमंत यादव को पता चली तो उस ने मंदा पर पाबंदी लगानी शुरू कर दी. इस से मंदा और हनुमंत के बीच तकरार होने लगी. कुछ ही दिनों में यह तकरार इतनी बढ़ी कि दोनों में तलाक हो गया. तलाक के बाद मंदा ने हनुमंत यादव का घर छोड़ दिया. पूजा को वह अपने साथ ले आई थी. पति से अलग होने के बाद मंदा ने दूसरी शादी कर ली. दूसरे पति से मंदा एक बेटी और एक बेटे की मां बनी.

इस के बाद भी मंदा का स्वभाव और सोच वैसी की वैसी ही रही. वह अपनी मौजमस्ती में डूबी रहती थी. ऐसी हालत में रह कर पूजा ने किसी तरह अपनी पढ़ाई पूरी की. मंदा की उम्र ढलने लगी थी. अब उसे पहले जैसी आय भी नहीं होती थी. इसलिए उस की निगाहें जवान होती बेटी पर जमी थीं.

पूजा को हालांकि यह सब पसंद नहीं था, लेकिन मंदा ने उस के 16 साल की होते ही उसे डांसबार में भेज दिया. पूजा ने कई सालों तक डांस बारों में काम किया. पैसे के लिए वह मर्दों को लुभाती थी, लेकिन हर तरह के लालच देने के बावजूद वह किसी के साथ कहीं नहीं जाती थी.

पूजा ने अपनी जिंदगी की हकीकत आसिफ को बता दी. सुन कर आसिफ को अच्छा लगा. वह उस की बातों से इतना प्रभावित हुआ कि उस ने भी अपनी हकीकत उसे बता दी. साथ ही वादा भी किया कि अब वह अपनी पुरानी जिंदगी में कभी नहीं लौटेगा. हां दोनों ओर से थी, सो दोनों ने साथसाथ रहने का फैसला कर लिया.

पूजा ने अपनी मां का घर छोड़ दिया और आसिफ ने अपना. दोनों ने मुंबई स्थित साकी नाका की एक बस्ती में किराए का मकान ले लिया और लिव इन रिलेशनशिप में साथसाथ रहने लगे. पूजा और आसिफ के बीच एक ही रुकावट थी धर्म. लेकिन प्यार मजहब नहीं देखता. इस के लिए पूजा ने कह दिया कि उस के प्यार के लिए वह धर्म परिवर्तन भी कर लेगी. इस पर आसिफ ने कुछ धार्मिक औपचारिकताएं पूरी कर के उस का नाम अशरीफा रख दिया और उस से निकाह कर लिया. निकाह के बाद भी दोनों पूर्ववत प्यार से साथसाथ रहते रहे.

पत्नी और प्रेमी के प्यार में पिसा करन – भाग 2

उस के कंधों को पकड़ कर उस ने उसे अपनी तरफ घुमाया तो राधा का पूरा जिस्म कांप गया. किसी अंजान पुरुष का पहला स्पर्श था यह, वह रोमांच से भर गई.

“मेरी तरफ देखो राधा,” अनुराग प्यार से उस की ठोड़ी ऊपर उठाते हुए बोला, “मेरी आंखों में देखो राधा, इन में तुम्हारी छवि बस गई है. मैं तुम्हें पहले से जानता हूं, लेकिन कल शाम को तुम्हें देख कर मेरे दिल ने अंगड़ाई ली है, यह तुम्हें चाहने लगा है. क्या तुम मुझे अपने दिल में थोड़ी सी जगह दोगी राधा?”

“हां.” राधा के थरधराते होंठों से स्वयं निकल गया.

खुशी से अनुराग ने उस का चेहरा ऊपर उठाया और माथा चूमते हुए बोला, “आज मेरी उड़ानों को तुम्हारे प्याररूपी पंख लग गए हैं. राधा, मैं तुम्हें शिद्दत से प्यार करूंगा, तुम्हें अपनी रानी बनाऊंगा.”

राधा का जिस्म प्यार के इस पहले अहसास के रोमांच से भर गया था, वह अनुराग के साथ सटी कांप रही थी. अनुराग उस से प्यार भरे वादे करता रहा और फिर उसे छोड़ कर कब चला गया, पता ही नहीं चला. उसे होश आया तो वह अपनी दशा पर लजा गई. पलंग पर औंधी लेट कर वह अनुराग के खयालों में खोती चली गई.

छूट गया राधा का प्यार

राधा के दिल में अनुराग रचबस गया था. राधा की मौसी मध्य प्रदेश के भिंड जिले के चतुर्वेदी नगर में रहती थी और राधा इटावा शहर में. अनुराग से प्यार हुआ तो राधा बारबार मौसी के घर भिंड आने लगी. अनुराग मौसी के पड़ोस में ही रहता था, इसलिए उस से बात करने में राधा को परेशानी नहीं होती थी. उन्हें बाहर जाना होता था तो आंखों ही आंखों में इशारा कर के वे शहर की रमणीक जगहों पर पहुंच जाते. घटों वहां बैठ कर प्यार की बातें करते, भविष्य के तानेबाने बुनते.

अनुराग ने राधा से वादा किया था कि प्रतियोगिता परीक्षा में पास होने के बाद वह नौकरी करेगा, फिर उस से शादी कर लेगा. राधा को अनुराग पर पूरा विश्वास था, वह पति के रूप में अनुराग को ही पाना चाहती थी. दोनों प्यार के सफर में मन से ही नहीं, तन से भी एक हो गए थे. राधा की मौसी जब किसी काम से बाहर जाती थी तो अनुराग और राधा अपने तन की प्यास बुझा लेते थे. अनुराग को अपना तन सौंप देने के बाद राधा ने उस से वादा ले लिया था कि वह उसे ही अपनी दुलहन बनाएगा.

अनुराग भी दिल से राधा को प्यार करता था, उसे इंतजार था अच्छी सी नौकरी का. नौकरी लग जाने के बाद वह अपने प्यार का जिक्र घर में मां, पिताजी से कर के राधा को बहू के रूप में स्वीकार कर लेने की जिद कर सकता था. अभी वह पिता सबल सिंह की कमाई पर जी रहा था. नौकरी पा लेने के बाद घर वाले उस की बात को नहीं टाल सकते थे.

इंतजार में कब 4 साल गुजर गए, दोनों को पता ही नहीं चला. प्रेम प्रसंग की कहानी ऐसे ही चलती रही. दोनों का प्यार परवान चढ़ चुका था. अभी तक उन के लव अफेयर्स की भनक किसी को नहीं लगी थी. राधा की मौसी की अनुराग की मां से गहरी छनती थी. दोनों एकदूसरे के दुखसुख में साथ खड़ी रहती थीं. यही वजह थी कि अनुराग बेधडक़ राधा की मौसी के घर में आताजाता था. राधा ग्रैजुएशन कर रही थी. अनुराग उस को किसी सब्जेक्ट में उलझ जाने पर समझाता था. दोनों साथसाथ बैठ कर पढ़ते थे. इसी बहाने उन्हें प्यार करने का मौका मिल जाता था, किसी को अभी तक यह समझ नहीं आया था कि उन दोनों के बीच क्या चल रहा है.

कहते हैं कि इश्क और मुश्क लाख परदे में छिप कर किया जाए, उजागर हो ही जाता है, उन के प्यार की महक भी आसपास फैलने लगी. धीरेधीरे यह राधा की मौसी को भी मालूम हो गया कि राधा और अनुराग के बीच प्यार की खिचड़ी पक रही है.

जवान लडक़ी का मामला था. ऊंचनीच हो जाएगी तो वह अपनी बहन जीजा को क्या जवाब देगी. मौसी ने राधा को सख्त हिदायत दे दी और उस की मां को कह दिया कि वह अब उस के घर कभी नहीं आएगी. मां को राधा का अनुराग से प्यार होने की बात बता कर उसे भी चेता दिया कि वह आईंदा राधा को चतुर्वेदी नगर न भेजे.

राधा की हरकतें जान लेने के बाद राधा की मां ने पति के कान में बात डाल कर दबाव बनाया कि वह राधा के लिए कोई अच्छा सा लडक़ा देख कर उस की शादी कर दें. राधा के पिता ने राधा के लिए लडक़ा देखने के लिए भागदौड़ शुरू कर दी. शीघ्र ही भिंड जिले के कोटपोरसा निवासी रघुवीर सिंह भदौरिया के बेटे करन भदौरिया को उन्होंने राधा के लिए पसंद कर लिया और 9 मई, 2022 का दिन शादी के लिए पक्का कर दिया.

राधा को पता चला तो वह तड़प कर रह गई. वह मौसी के घर अब नहीं जा सकती थी, इसलिए फोन करके उस ने अनुराग को इटावा बुला लिया. राधा इटावा में थी और अनुराग भिंड के चतुर्वेदी नगर में, इसलिए राधा के घरवालों ने राधा पर कोई पाबंदी नहीं लगा रखी थी.

प्रेमी को बताया दिल का हाल

राधा ने बाजार से अपने लिए कुछ जरूरी सामान लाने का बहाना बनाया और शहर में स्थित सुभाष पार्क में पहुंच गई. अनुराग को उस ने वहीं बुलाया था. अनुराग पार्क में आ गया था. वे दोनों पार्क के कोने में बैठ गए. “राधा, ऐसी क्या बात हो गई जो तुम ने मुझे इटावा बुला लिया. सब ठीक तो है न?” राधा का हाथ अपने हाथों में ले कर अनुराग ने हैरान होते हुए पूछा.

“कुछ ठीक नहीं है अनुराग. मेरे पिता ने…” राधा रुआंसे स्वर में बोली, “कोट पोरसा में मेरा रिश्ता पक्का कर दिया है, 3 दिन बाद मेरी शादी है. मैं यह शादी हरगिज नहीं करूंगी. तुम मुझे यहां से भगा कर ले चलो.”

“नहीं राधा, यह संभव नहीं है. चतुर्वेदी नगर में हमारे प्यार के चर्चे घरघर में हो रहे हैं, मेरे पिता इस मामले में मेरी क्लास ले चुके हैं. उन्होंने चेतावनी दे दी है कि यदि मैं ने तुम से शादी की तो वह मुझे अपनी जमीनजायदाद से बेदखल कर देंगे. राधा, मैं अपने पिता के खिलाफ नहीं जा सकता.”

“यानी तुम्हें अपनी जमीनजायदाद से प्यार है, मुझ से नहीं?” राधा ने अनुराग को घूरा.

“ऐसी बात नहीं है राधा, मैं तुम्हें दिल की गहराई से प्यार करता हूं. यदि मैं ने पिता की मरजी के खिलाफ शादी की तो मैं सडक़ पर आ जाऊंगा. अभी मैं बेरोजगार हूं, मैं खुद भूखा रह सकता हूं राधा, तुम्हें भूखा नहीं देख पाऊंगा.”

“क्या मुझे दूसरे की दुलहन बनते देख कर तुम जी पाओगे अनुराग?” भर्राए कंठ से राधा बोली.

“इसे मेरी बदकिस्मती समझो राधा, इस जन्म में हम बेशक नहीं मिल पाएंगे, लेकिन अगले जन्म में मैं तुम्हें दुलहन जरूर बनाऊंगा.”

बार डांसर की बेवफाई – भाग 1

रोजाना की तरह उस दिन भी नागपुर के थाना इमामबाड़ा के सीनियर इंसपेक्टर आनंद नर्लेकर सुबह 8 बजे ही अपनी ड्यूटी पर  आ गए थे. लगभग साढ़े 8 बजे किसी ने फोन कर के उन्हें सूचना दी कि थाना क्षेत्र की जाटवरोड़ी बस्ती स्थित शुक्ला आटा चक्की के पास वाले मकान से तेज बदबू आ रही है. पुलिस ले कर आ जाएं और जांच करें क्योंकि मकान का दरवाजा बंद है.

जाटवरोड़ी बदनाम बस्ती थी, वहां आए दिन लड़ाईझगड़े होते रहते थे, जिन से पुलिस परेशान रहती थी. लेकिन यह मामला किसी जघन्य अपराध की ओर इशारा कर रहा था. सीनियर इंसपेक्टर नर्लेकर ने ड्यूटी पर तैनात सब इंसपेक्टर मुकुंद कवाड़े को फोन पर मिली सूचना के बारे में बता कर रवानगी दर्ज कराई और पुलिस टीम के साथ जाटवरोड़ी स्थित बताई गई जगह पर जा पहुंचे.

जिस मकान से बदबू आ रही थी वहां तमाम लोग एकत्र थे. पुलिस लोगों को हटा कर दरवाजे तक पहुंची. दरवाजा बाहर से बंद था और उस पर ताला लटक रहा था. पुलिस ने आसपड़ोस के लोगों से पूछताछ की तो पता चला, उस मकान में आर्केस्ट्रा डांसर पूजा अपने पति के साथ किराए पर रहती थी. यह भी जानकारी मिली कि दोनों कुछ ही महीने पहले वहां रहने के लिए आए थे. एक पड़ोसी ने यह भी बताया कि पूजा की एक मौसेरी बहन लता कभीकभी उस के पास आतीजाती थी, जो कहीं आसपास ही रहती है.

कोई और चारा न देख आनंद नर्लेकर ने अपने साथ आई पुलिस टीम को दरवाजा तोड़ने का निर्देश दिया. दुर्गंध चूंकि काफी तेज थी इसलिए पुलिस कर्मियों ने नाक पर रुमाल बांध कर दरवाजा तोड़ा. अंदर का दृश्य दिल दहला देने वाला था.

कमरे के फर्श पर खून में डूबी एक लड़की की लाश पड़ी थी जिसे बेरहमी से कत्ल किया गया था. उस की हत्या संभवत: 2-3 दिन पहले की गई थी, इसी वजह से लाश में सड़न पैदा हो गई थी और बदबू आने लगी थी. मृतका की हत्या गला काट कर की गई थी.

मामला हत्या का था, इसलिए आनंद नर्लेकर ने इस की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. साथ ही पुलिस फोटोग्राफर और फारेंसिक टीम को भी मौकाएवारदात पर बुला लिया. सूचना मिलते ही अतिरिक्त पुलिस आयुक्त चंद्रकिशोर मीना भी वहां आ गए. उन के सामने ही फारेंसिक टीम ने अपनी काररवाई की. लोगों को शव दिखाया गया तो उन्होंने उस की शिनाख्त पूजा के रूप में की. इस बीच किसी तरह पूजा की मौसेरी बहन लता तक भी सूचना पहुंच गई थी और वह रोतेबिलखते वहां आ गई थी. उस ने भी लाश पूजा की ही बताई.

कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद पुलिस ने पूजा के शव को पोस्टमार्टम के लिए नागपुर मेडिकल कालेज भेज दिया. इस के बाद पुलिस पूजा की बहन लता को साथ ले कर थाने लौट आई. लता से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि पूजा पहले मुंबई में रहती थी. वहीं पर उस ने आसिफ शेख नाम के एक युवक से शादी की थी. आसिफ मनचले स्वभाव का था और उस का चालचलन ठीक नहीं था. दोनों में अकसर झगड़ा और मारपिटाई होती थी जिस की वजह से पूजा उसे छोड़ कर नागपुर आ गई थी, लेकिन आसिफ यहां भी आ गया था. उस के आने के बाद यहां भी मुंबई जैसा माहौल बन गया था.

शुरुआती जांच और लता के बयान के बाद पूजा का पति आसिफ शेख शक के घेरे में आ गया. लेकिन हकीकत उस की गिरफ्तारी के बाद ही सामने आ सकती थी. आसिफ मुंबई में होगा या नहीं, इस बात की जानकारी लता को भी नहीं थी. लता के अनुसार आसिफ अपराधी प्रवृत्ति का था. ऐसे लोगों की गिरफ्तारी पुलिस के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होती.

लता के बयान के बाद सीनियर इंसपेक्टर आनंद नर्लेकर ने अपने सहायकों के साथ मीटिंग कर के इस मामले के हर पहलू पर विचारविमर्श किया. तत्पश्चात उन्होंने इस की जांच की जिम्मेदारी सबइंसपेक्टर मुकुंद कवाड़े को सौंप दी. कवाड़े ने कांस्टेबल कृपाशंकर शुक्ला, प्रशांत साबरे, विनायक पाटिल और मूसासिंह को ले कर अपनी एक टीम बनाई और हत्या की जांच शुरू कर दी.

पुलिस को पता चला कि आसिफ नागपुर में रह कर कैटरर्स के साथ कैटरिंग का काम करता था. इस काम में कई लोगों से उस के करीबी संबंध बन गए थे. इसलिए पुलिस टीम ने सब से पहले नागपुर में अपनी जांच का केंद्रबिंदु उन लोगों को बनाया जिन से आसिफ के करीबी संबंध थे. इस का नतीजा भी जल्दी ही सामने आ गया. आसिफ ने अपने एक करीबी दोस्त से एक सप्ताह बाद नागपुर वापस आने की बात कही थी. उस ने यह भी कहा था कि पूजा को उसी ने मारा है.

अभी तक आसिफ संदेह के दायरे में था. इस के बाद पुलिस को पक्का यकीन हो गया कि पूजा का हत्यारा वही है. पुलिस ने उस के दोस्त की बातों को रिकौर्ड में शामिल कर के सरगर्मी से उस की तलाश शुरू कर दी.

जिस नंबर से आसिफ ने अपने दोस्त को फोन किया था, पुलिस ने जब उस की काल डिटेल्स निकलवा कर छानबीन की तो पता चला, वह काल मुंबई के थाना साकीनाका क्षेत्र में आने वाले जरीमरी इलाके से की गई थी.  इसी के आधार पर मुकुंद कवाड़े की पुलिस टीम ने मुंबई आ कर जरीमरी इलाके में आसिफ की तलाश की. लेकिन एक काल के आधार पर जरीमरी जैसे घनी आबादी वाले इलाके में एक आदमी को ढूंढ़ना संभव नहीं था. फलस्वरूप पुलिस टीम को खाली हाथ नागपुर लौटना पड़ा.

नागपुर लौट कर मुकुंद कवाड़े ने वह नंबर जिस से आसिफ ने फोन किया था, सर्विलांस पर लगा दिया. साथ ही नाकासाकी थाने की पुलिस को सचेत भी कर दिया. आसिफ का नंबर सर्विलांस पर डालने के 2 हफ्ते बाद मुकुंद कवाड़े को मनचाही सफलता मिल गई. उन्होंने 19 मई को साकी नाका पुलिस की मदद से आसिफ को जरीमरी इलाके से गिरफ्तार कर लिया. उसे 2 दिन तक साकीनाका पुलिस की कस्टडी में रखा गया. 22 मई को उसे नागपुर लाया गया.

नागपुर में पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों के सामने उस से विस्तृत पूछताछ की गई तो पूजा की हत्या की पूरी जानकारी सामने आ गई.

28 वर्षीय आसिफ का पूरा नाम आसिफ इस्माइल शेख था. वह अपने मातापिता का इकलौता बेटा था. अधिक लाड़प्यार के कारण उस की आदतें बचपन से ही बिगड़ गई थीं. उस का पिता इस्माइल शेख आटो रिक्शा ड्राइवर था. वह साकी नाका विहार रोड और अंधेरी में आटो रिक्शा चलाता था. जबकि उस की मां सऊदी अरब में नर्स की नौकरी करती थी. व्यस्तता की वजह से इस्माइल शेख आसिफ का ज्यादा खयाल नहीं रख पाता था.

मांबाप के प्यार से वंचित आसिफ जैसेजैसे बड़ा होता गया वैसेवैसे उस के दिल से पिता का डर निकलता गया. कोई मार्गदर्शक न होने की वजह से वह अपनी ही बस्ती के रहने वाले कुछ आवारा और अपराधी प्रवृत्ति के लड़कों के संपर्क में रहने लगा.  फलस्वरूप वह कम उम्र में ही चरस, गांजा, हेरोइन और शराबशवाब का आदी हो गया. कभीकभी वह डांस बारों में जा कर वहां की डांसरों के साथ भी मौजमस्ती कर लेता था. अपने इन शौकों को पूरा करने के लिए वह चोरी और राहजनी जैसे अपराध किया करता था.

पत्नी और प्रेमी के प्यार में पिसा करन – भाग 1

आज सुबह से दोपहर तक खूब धूप खिली थी. दोपहर को अचानक आसमान में काले बादल उमड़ आए, तेज हवा चलने लगी और अंधेरा छा गया तो राधा दौड़ कर छत पर गई और सूखने को डाले गए कपड़ों को समेट कर नीचे आ गई. मौसी रसोई में थी. राधा ने कपड़ों की तह करते हुए कहा, “मौसम अचानक से खराब हो गया है मौसी. बारिश पड़ेगी.”

“अरी, छत पर जा कर कपड़े समेट ला, भीग जाएंगे.” रसोई में से ही मौसी ने राधा को चेताया.

“कपड़े तो समेट लाई हूं मौसी,” राधा मुसकरा कर बोली, “अब तो बारिश में भीगने को दिल चाह रहा है.”

“तो भीग ले. मैं मौसम का मिजाज भांप गई थी, तभी बेसन घोल कर पकौड़े बनाने बैठ गई हूं.” मौसी ने बताया तो राधा दोनों पैरों पर उछल पड़ी. खुशी से वह चहकी, “बारिश में गरमागरम पकौड़े, वाह मौसी! मजा आ जाएगा.”

राधा सीढिय़ों की तरफ लपकी, “आप पकौड़े बनाइए मौसी, मैं थोड़ा सा भीग लेती हूं.”

“ठीक है,” मौसी रसोई घर में हंस पड़ी और खुद से ही बोलने लगी, “यह जवानी के दिन भी बड़े हसीन और रोमांचकारी होते हैं, मैं भी तो राधा की उम्र में ऐसी ही बारिश में छत पर खूब नहाती थी.” मौसी गरदन झटक कर पकौड़े तलने में व्यस्त हो गई.

राधा छत पर जैसे ही पहुंची, बारिश की मोटीमोटी बूंदों ने उस का स्वागत किया. राधा छोटे बच्चे की तरह खुशी से उछलती हुई बारिश में भीगने का आनंद लेने लगी. मोटी बूंदों ने पल भर में ही उसे ऊपर से नीचे तक भिगो दिया तो कपड़े उस के बदन से चिपक गए और उस पर चढ़ी जवानी के उभार उसके शरीर से चिपक गई कुरती से स्पष्ट नुमाया होने लगे.

उसी वक्त साथ वाली छत पर अनुराग चौहान बारिश का आनंद लेने के लिए आया तो भीगी हुई राधा के जिस्म पर नजर पड़ते ही वह ठगा सा अपलक राधा को निहारता रह गया. राधा ने पहली आहट में ही पलट कर अनुराग को छत पर आते देख लिया था. अनुराग की नजरों को अपने सीने पर टिकी देख कर वह घबरा गई. उसे डपटते हुए बोली, “बड़े बेशरम हो तुम, कोई ऐसे किसी लडक़ी को देखता है क्या, नजरें घुमाओ.”

“कमाल है! तुम खुद ही तो अजंता की मूरत जैसी खड़ी हो और दोष मुझे दे रही हो.” अनुराग चिढ़ कर बोला, “नीचे चली जाओ.”

राधा झेंप गई. अपनी गलती पर दूसरों को डांटने का कोई अधिकार उसे नहीं बनता था. अपने दोनों हाथ सीने पर बांध कर वह तेजी से अपनी छत से नीचे उतर आई.

पहले प्यार का एहसास

उस की सांसें इस वक्त धौंकनी की तरह चल रही थीं. अपनी सांसों को नियंत्रित करने की कोशिश करती हुई वह तौलिया ले कर बाथरूम में घुस गई. बदन पोंछ कर उस ने कपड़े बदले तो वह खुद से लजाने लगी. उसे लग रहा था कि अनुराग की नजरें अभी भी उस के सीने से चिपकी हुई हैं.

अनुराग चौहान उस की मौसी के पड़ोस में ही रहता था. राधा उसे बहुत पहले से जानती थी. राधा को यह भी पता था कि अनुराग प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा है. मौसी ने ही बताया था कि अनुराग बहुत हंसमुख और सीधा लडक़ा है, वह पढऩे में व्यस्त रहता है, किसी से फालतू नहीं बोलता. हां, मैं कोई काम बताती हूं तो मना नहीं करता.

“कोई सीधा नहीं होता, लडक़ी देखी नहीं कि लगे फिसलने.” राधा होंठों में बुदबुदाई फिर बालों में तौलिया लपेटती हुई रसोई में घुस गई. गरमगरम बेसन के पकौड़ों की खुशबू से रसोई महक रही थी. अनुराग का खयाल झटक कर राधा पकौड़ों का आनंद लेने लगी.

रात भर छत वाला खयाल राधा के तनमन को विचलित करता रहा, वह ठीक से सो नहीं पाई. सुबह उठी तो उस की आंखें लाल थीं. मौसी ने देखा तो चौंक पड़ी, “क्या हुआ राधा, तेरी तबियत तो ठीक है न?”

“ठीक है मौसी,” जम्हाई लेते हुए राधा मुसकराई.

“तेरी आंखें लाल हो रही हैं, इसलिए पूछ रही हूं. अगर कुछ परेशानी महसूस कर रही है तो डाक्टर से दवा ले आ.”

“मैं एकदम भलीचंगी हूं मौसी. शाम को बारिश में ज्यादा भीग गई, इसलिए आंखें लाल हो गई हैं.” राधा ने कहा और फ्रैश होने के लिए टायलेट में घुस गई. नहाधो कर राधा ने नाश्ता किया.

आज उस की हिम्मत घर से बाहर निकलने की नहीं हो रही थी. साफसफाई का काम मौसी ने ही किया. दोपहर तक काम निपटा कर मौसी ने खाना खाया, राधा को भी परोस दिया फिर बोली, “मैं बाजार जा रही हूं राधा, घर के लिए कुछ सामान लाना है. घर या दरवाजा बंद कर के पढ़ाई करना.”

“अच्छा मौसी,” राधा ने सिर हिला कर कहा.

मौसी थैला ले कर घर से निकली तो राधा ने दरवाजे की सांकल अंदर से लगा ली और कमरे में आ कर कोर्स की किताब निकाल कर पढऩे बैठ गई. उस ने अभी किताब खोली ही थी कि दरवाजे पर दस्तक हुई. राधा उठ कर दरवाजे पर आ गई. सांकल खोलने से पहले उस ने पूछा, “कौन है बाहर?”

“मैं हूं राधा, अनुराग, दरवाजा खोलो.” अनुराग का स्वर राधा के कानों में पड़ा तो वह घबरा गई.

“मौसी बाजार गई है अनुराग…मैं…”

अनुराग ने बात पूरी नहीं होने दी, “मुझे मालूम है राधा, तभी तो मैं आया हूं. दरवाजा खोल दो प्लीज.” अनुराग ने गिड़गिड़ाकर कहा.

‘मुझे अकेली देख कर आया है, क्या मंशा है अनुराग की.’ राधा के मन में खयाल उठा. लेकिन न जाने अनुराग की आवाज में क्या कशिश थी कि राधा ने सांकल खोल दी. अनुराग अंदर आ गया. राधा को उस के चेहरे की तरफ देखने की हिम्मत नहीं हुई, वह तेजी से पलटी और अपने कमरे में आ गई. अनुराग भी उस के पीछे कमरे में आ गया.

“…तुम जान चुके हो कि मौसी बाजार गई हैं, फिर क्यों आए हो?” राधा ने उस की ओर पीठ किए ही कांपती आवाज में पूछा.

“राधा, मैं रात भर ठीक से नहीं सो पाया हूं.” अनुराग ने बगैर कोई भूमिका बांधे दिल की बात कह डाली, “तुम्हारा बारिश में भीगा बदन देख लेने के बाद भला नींद कैसे आती. तुम बहुत सुंदर हो राधा, मेरा दिल तुम्हें चाहने लगा है… मैं तुम्हें आई लव यू कहने आया हूं.”

राधा के पूरे जिस्म में सनसनी भर गई. अनुराग उसे प्रपोज कर रहा था. राधा के दिल की धडक़नें तेज होने लगीं. चेहरा लाज से लाल होने लगा, वह कुछ कह नहीं पाई तो अनुराग करीब आ गया.

अपमान के बदले : तिहरा हत्याकांड

रामप्रकाश जैसे ही घर के पीछे की ओर गया, पीछे से रामपाल ने आ कर बड़े भाई को अकेले में पा कर लगभग फुसफुसाते हुए कहा, “भइया, आज मैं आप से बड़े भइया राजकुमार के बारे में कुछ बातें करना चाहता हूं.”

“अंबर (रामपाल को घर में सभी अंबर कहते थे) तुम्हारे और बड़े भइया के बीच हमेशा कुछ न कुछ चलता रहता है, अब क्या हो गया?” रामप्रकाश ने पलट कर जवाब में कहा.

“पहले तो वह कह रहे थे कि मेरी शादी में सारा खर्च वह करेंगे. लेकिन गहने बनवाने लगे तो 40 हजार रुपए मुझ से ले लिए. उस समय मैं ने ङ्क्षपटू से 70 हजार रुपए ले कर उस में से 40 हजार रुपए उन्हें दिए थे. अब वह अपने पैसे मांग रहा है. मैं ने भइया से कुछ रुपए देने को कहा तो उन्होंने मुझे गाली दे कर भगा दिया.”

“अंबर, तुम भइया का स्वभाव अच्छी तरह जानते हो. उन की आदत ही ऐसी है. इस में नाराज होने की कोई बात नहीं है.”

रामप्रकाश ने छोटे भाई रामपाल को समझाने के उद्देश्य से कह.

लेकिन रामपाल समझने के बजाय रामप्रकाश को भी बड़े भाई राजकुमार के खिलाफ भडक़ाते हुए बोला, “तुम भइया को जितना सीधा समझते हो, वह उतने सीधे हैं नहीं. तुम तो उन की ओर से आंखें मूंदे हुए हो, इसलिए उन की बुराई तुम्हें दिखाई नहीं देती. गांव वाले क्या कहते हैं, तुम्हें पता है? पूरे गांव में चर्चा है कि रंजना भाभी और बड़े भइया के बीच गलत संबंध है.”

रामपाल का इतना कहना था कि रामप्रकाश को गुस्सा आ गया. वह थोड़ी ऊंची आवाज में बोला, “तुम्हारा दिमाग तो ठीक है अंबर, तुम झूठ कह रहे हो. भइया ऐसा काम नहीं कर सकते. उन पर इस तरह का घिनौना आरोप लगा कर तुम मेरी नजरों में गिर गए.”

“अगर तुम सच देखना चाहते हो तो जब बड़े भइया तुम्हें और आशा भाभी को किसी रिश्तेदार के यहां भेजें तो रात में अचानक आ कर तुम देख लेना, बड़े भइया और भाभी रंजना एक साथ मिलेंगी.” रामपाल ने ने भी थोड़ी ऊंची आवाज में कहा. छोटे भाई उस की इस बात से नाराज हो कर पैर पटकता हुआ रामप्रकाश चला गया. उस के पीछेपीछे रामपाल भी चला गया.

रामपाल उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के थाना माल के गांव थावर में अपने बड़े भाइयों राजकुमार और रामप्रकाश के साथ रहता था. राजकुमार मूलरूप से लखनऊ के ही थाना मलिहाबाद के गांव चौसझा का रहने वाला था. 20 साल पहले वह अपना गांव छोड़ कर थावर आ गया था और यहीं रहने लगा था. यहां वह अपनी क्लिनिक चलाता था. उस ने बीयूएमएस की डिग्री ले रखी थी.

उस की क्लिनिक ठीकठाक चलने लगी थी तो उस ने अपने दोनों भाइयों रामप्रकाश और रामपाल को भी यहीं बुला लिया था. इस तरह तीनों भाई एक साथ रहने लगे थे. राजकुमार ही पूरे परिवार की देखभाल करता था. उस के दोनों ही भाई उम्र में उस से काफी छोटे थे.

राजकुमार की शादी आशा के साथ हुई थी. शादी के कई सालों के बाद भी जब उसे खुद की कोई संतान नहीं हुई तो उस ने सन 2006 में अपनी साली रंजना की शादी अपने छोटे भाई रामप्रकाश से करा दी थी. शादी के बाद रंजना को 2 बेटे, 6 साल का तुषार, 3 साल का ईशान और 4 माह की एक बेटी अनिष्का थी. रंजना ब्यूटीपार्लर का कोर्स किए हुए थी, इसलिए राजकुमार ने उसे घर के ही एक कमरे में ब्यूटीपौर्लर खुलवा दिया था.

कुछ दिनों पहले राजकुमार ने अपने सब से छोटे भाई रामपाल की शादी कराई थी. उस की शादी में उन्होंने करीब एक लाख रुपए के गहने बनवाए थे. शादी के समय राजकुमार ने रामपाल से कहा था कि शादी के खर्च में वह भी कुछ मदद करे. तब राजपाल ने इधरउधर से पैसों का जुगाड़ कर के राजकुमार को दिए थे.

न जाने क्यों राजकुमार और उस की पत्नी आशा रामपाल को पसंद नहीं करते थे. रामपाल को इस बात का अहसास भी था. भाईभाभी के इस व्यवहार से उसे लगता था कि भइया मंझले भाई रामप्रकाश और उस की पत्नी रंजना को ही अपनी सारी जायदाद देंगे. रामपाल में कुछ बुरी आदतें थीं, जिस की वजह से उस ने कई लोगों से कर्ज ले रखा था. कर्ज चुकाने के लिए वह जब भी बड़े भाई राजकुमार से पैसे मांगता, वह उसे बेइज्जत कर के भगा देता था.

रामपाल ने मंझले भाई रामप्रकाश के मन में शंका का बीज डाल दिया था. एक दिन रामप्रकाश की रिश्तेदारी में शादी थी. राजकुमार ने अपनी पत्नी आशा से कहा कि वह रामप्रकाश और दोनों बेटों को ले कर शादी में चली जाए. आशा ने वैसा ही किया. रामप्रकाश ने अपनी पत्नी रंजना से भी शादी में चलने को कहा तो उस ने सुबह ब्यूटीपौर्लर खोलने का बहाना कर के शादी में जाने से मना कर दिया.

इस बात से रामप्रकाश की शंका यकीन में बदल गई. उसे रामपाल की बात सच लगी. वह भाभी आशा और दोनों बेटों को ले कर शादी में चला तो गया, लेकिन सभी को वहां छोड़ कर रात में चुपके से घर आ गया. घर पहुंच कर उस ने पत्नी रंजना और बड़े भाई राजकुमार को आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया. इस के बाद उसे पत्नी रंजना और बड़े भाई से नफरत हो गई.

इस के बाद वह बड़े भाई से बदला लेने के लिए छोटे भाई रामपाल से मिल गया. अपने अपमान का बदला लेने के लिए दोनों भाइयों ने बड़े भाई की हत्या की योजना बना डाली. 5 नवंबर की रात करीब ढाई बजे रामपाल मोटरसाइकिल से थावर पहुंचा. योजना के अनुसार, रामप्रकाश ने घर का दरवाजा पहले से ही खोल रखा था. रामपाल घर में घुसा और क्लीनिक में हंसिया और बांका ले कर छिप गया.

इस के बाद रामप्रकाश ने पीठ में दर्द होने की बात कह कर रंजना को इंजेक्शन लाने के लिए कहा. रंजना जैसे ही उठ कर क्लीनिक की ओर गई, वहां छिपे रामपाल ने उसे पकड़ लिया और ब्यूटीपौर्लर वाले कमरे में घसीट ले गया. उस के पीछेपीछे रामप्रकाश भी वहां पहुंच गया. इस के बाद दोनों ने उसे खत्म कर दिया. इस के बाद दोनों पहली मंजिल पर गए, जहां राजकुमार पत्नी आशा के साथ सो रहा था.

दोनों ने पहले आशा पर वार किया. आशा की चीख से राजकुमार जाग गया तो दोनों उस पर टूट पड़े. जब रामपाल और रामप्रकाश को लगा कि दोनों मर गए हैं तो रामप्रकाश ने बांका और हंसिया घर के बाहर फेंक दिया और रामपाल को भाग जाने के लिए कहा. जब रामपाल भाग गया तो वह दरवाजा खोल कर चिल्लाने लगा कि घर में बदमाश घुस आए हैं.

शोर सुन कर गांव वाले इकट्ïठा हो गए. उस समय राजकुमार कराह रहा था, लेकिन अस्पताल ले जाते समय उस की मौत हो गई. रामप्रकाश ने गांव के ही 2 लोगों, राजाराम और प्रेमरैदास के खिलाफ हत्या का शक जताते हुए मुकदमा दर्ज करा दिया. पुलिस ने जांच की तो नामजद लोगों के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला. मोहनलालगंज के सांसद कौशल किशोर ने तो इस हत्याकांड का परदाफाश करने के लिए पुलिस पर दबाव डाला तो गांव वालों ने भी सडक़ जाम कर के पुलिस के खिलाफ नारेबाजी की.

तब लखनऊ के एसएसपी राजेश कुमार पांडेय ने थाना माल के थानाप्रभारी विनय तिवारी, एसएसआई गणेश तिवारी, क्राइम ब्रांच के भगवान ङ्क्षसह, अनिल ङ्क्षसह चंदेल और हमीदउल्ला की एक टीम बनाई, जिस का नेतृत्व मलिहाबाद के सीओ जावेद खान को सौंपा.

आखिर 4 दिनों के बाद 9 नवंबर को इस टीम ने राजकुमार, आशा और रंजना की हत्या के आरोप में राजकुमार के दोनों सगे भाई रामप्रकाश और रामपाल को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में रामपाल और रामप्रकाश ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

दरअसल, जब पुलिस घटनास्थल पर पहुंची थी तो वहां लूट का कोई सबूत नहीं मिला था. आसपड़ोस वालों ने बदमाशों के आनेजाने की भी आवाज नहीं सुनी थी. रामपाल जब वहां पहुंचा था तो उसे देख कर ही लग रहा था कि वह अभीअभी नहा कर आया है. उस के बाल भी गीले थे. नहाने वाली जगह पर भीगा तौलिया मौजूद था. उस पर खून के कुछ दाग भी लगे थे.

रामप्रकाश ने बताया था कि बदमाशों ने बाहर से दरवाजा बंद कर दिया था, लेकिन जब पुलिस ने गांव वालों से पूछा कि घर का दरवाजा किस ने खोला था तो कोई सामने नहीं आया. इस से पुलिस को लगा कि हत्या में घर वालों का ही हाथ है. बाद में पूछताछ में ये बातें सामने आ गईं.

पूछताछ में रामप्रकाश ने कहा, “मैं भाभी आशा को बहुत मानता था. वह हमें भी बेटे की तरह मानती थीं. रंजना उन की सगी छोटी बहन थी. उन्हें रंजना की हत्या में मेरे शामिल होने का पता चलता तो वह हमारे खिलाफ हो जातीं. रंजना ने जो किया था, मुझे उस बात से उस से चिढ़ हो गई थी. इस हालत में न चाहते हुए भी मुझे भाभी की हत्या करनी पड़ी.”

पूछताछ के बाद पुलिस ने रामपाल और रामप्रकाश को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया था, कथा लिखे जाने तक दोनों भाई जेल में थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

कुएं से गहरा दांपत्य का अविश्वास

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की कोतवाली मोहनलालगंज के कोतवाली प्रभारी इंसपेक्टर  कमरुद्दीन सुबहसुबह अपने औफिस में बैठे हेडमुहर्रिर को दिशानिर्देश दे रहे थे, तभी पास के गांव का ग्रामप्रधान रमाशंकर वहां पहुंचा. ग्रामप्रधान होने के नाते वह अक्सर कोतवाली आताजाता रहता था, इसलिए कोतवाली के सारे पुलिसकर्मी उसे पहचानते थे.

रमाशंकर ग्रामप्रधान होने के साथसाथ जमीन की खरीदफरोख्त यानी प्रौपर्टी डीलिंग का भी काम करता था, इसलिए इलाके में उस की अच्छीखासी जानपहचान थी. सुबहसुबह उसे कोतवाली में देख कर पहरे पर तैनात संतरी ने पूछा, ‘‘क्या बात है प्रधानजी आज सुबहसुबह ही आ गए? कोई खास काम पड़ गया क्या?’’

‘‘हां, थोड़ी परेशानी वाली बात है, कोतवाल साहब बैठे हैं क्या?’’ ग्रामप्रधान रमाशंकर ने पूछा.

‘‘आप तो जानते हैं, कोतवाल साहब सुबहसुबह ही बैठ जाते हैं. जाइए, साहब बैठे हैं.’’ संतरी ने कहा.

रमाशंकर कोतवाली प्रभारी के औफिस की ओर बढ़ गया. कोतवाली प्रभारी कमरुद्दीन सिपाहियों को उस दिन का काम समझा रहे थे. तभी ग्रामप्रधान रमाशंकर ने उन्हें नमस्कार किया तो उन्होंने उसे सामने पड़ी कुरसी पर बैठने का इशारा किया.

वह कुर्सी पर बैठ तो गया, लेकिन बारबार करवट बदलता रहा. उसे उस तरह करवट बदलते देख कोतवाली प्रभारी को लगा कि  किसी वजह से यह कुछ ज्यादा ही परेशान है. उन्होंने कहा, ‘‘क्या बात है प्रधानजी, आज कुछ ज्यादा ही परेशान लग रहे हो?’’

‘‘कोतवाल साहब, बात ही कुछ ऐसी है कि समझ में नहीं आ रहा है कि कैसे कहूं?’’ ग्रामप्रधान रमाशंकर ने कहा.

‘‘जो भी परेशानी हो, बताइए. इस में सोचनेसमझने की क्या बात है.’’ कोतवाली प्रभारी ने कहा.

‘‘साहब, मेरी पत्नी कल शाम से गायब है. पहले तो मैं ने सोचा था कि वह मायके गई होगी. लेकिन जब वहां फोन किया तो पता चला कि वह वहां भी नहीं है.’’

‘‘आप पूरी बात बताइए कि यह सब कैसे और कब हुआ? उसी के बाद हम किसी नतीजे पर पहुंच पाएंगे.’’

‘‘कल शाम को मेरी पत्नी मंजूलता हमारे ड्राइवर रामकरन के साथ टाटा सफारी कार से खरीदारी के लिए मोहनलालगंज बाजार गई थी. बाजार पहुंच कर उस ने ड्राइवर से कार वापस ले जाने के लिए कहा. उस ने कहा था कि वहां से वह मायके जाना चाहती है. ड्राइवर लौट गया. रात को मैं ने ससुराल फोन किया कि अब तक वह वहां पहुंच गई होगी. लेकिन पता चला कि वह वहां नहीं पहुंची है.

‘‘इस के बाद मैं परेशान हो गया. इधरउधर पता किया. जब कहीं से उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो आप के पास चला आया.’’ ग्रामप्रधान रमाशंकर ने पूरी बताई.

ग्रामप्रधान रमाशंकर की पत्नी मंजूलता का इस तरह अचानक गायब हो जाना हैरान करने वाली बात थी. वह कहीं बाहर की भी रहने वाली नहीं थी कि भटक गई हो. कोतवाली प्रभारी ने सहानुभूति जताते हुए कहा, ‘‘प्रधानजी, आप रिपोर्ट लिखा दीजिए. हम उस की तलाश करते हैं. आप भी तलाश करते रहिए. आप दोनों में लड़ाईझगड़ा तो नहीं हुआ था कि नाराज हो कर वह बिना बताए किसी रिश्तेदार के यहां चली गई हों. मोहनलालगंज बाजार से उन्हें कोई जबरदस्ती तो ले नहीं जा सकता.’’

पुलिस और रमाशंकर अपनेअपने हिसाब से मंजूलता की खोजबीन करते रहे. जब शाम तक उस के बारे में कुछ पता नहीं चला तो रमाशंकर के दोनों साले यानी मंजूलता के भाई त्रिलोकीदास और सत्यप्रकाश कोतवाली मोहनलालगंज पहुंचे. उन्होंने कोतवाली प्रभारी से अपने बहनोई रमाशंकर और ड्राइवर रामकरन के खिलाफ नामजद मुकदमा दर्ज करने के लिए कहा. उन का कहना था कि रमाशंकर और उस के ड्राइवर को पता है कि मंजू कहां है?

त्रिलोकीदास और सत्यप्रकाश का गांव शिवधर भी मोहनलालगंज कोतवाली के अंतर्गत आता था, जो मोहनलालगंज कस्बे से मात्र 3 किलोमीटर दूर था. उन्होंने अपनी बहन की शादी परसैनी गांव के मजरा रानीखेड़ा के रहने वाले रमाशंकर रावत के साथ सन 2002 में की थी.

इन 12 सालों में रमाशंकर ने खूब तरक्की कर ली थी. ग्रामप्रधान बनने के साथ ही उस ने जमीन की खरीदफरोख्त का काम शुरू कर दिया था, जिस से उस ने खूब पैसा कमाया था. इस की वजह यह थी कि लखनऊ से सटे होने की वजह से यहां की जमीनों के दाम आसमान छूने लगे हैं.

रमाशंकर और मंजूलता के 3 बच्चे थे. सब से बड़ी बेटी शैली 10 साल की है, जो स्कूल जाती है. उस से छोटा बेटा शिवम 7 साल का है तो उस से छोटी बेटी राशि ढाई साल की. मंजू अपनी गृहस्थी में पूरी तरह से खुश थी. उसे इस बात की खुशी थी कि उस के अच्छे दिन आ गए थे.

ग्रामप्रधान बनने के साथ ही पति बड़ा आदमी बन गया था. लेकिन वह घर में कम समय दे पा रहा था. इस से मंजूलता को लगने लगा था कि वह पैसे के पीछे कुछ ज्यादा ही भाग रहा है. इस बात को ले कर दोनों में अक्सर कहासुनी भी होती रहती थी. इस की खास वजह यह थी कि मंजू को लगने लगा था कि उस के पति के संबंध कुछ अन्य औरतों से बन गए हैं.

मंजूलता के काम और बातव्यवहार से ससुराल के बाकी लोग बहुत खुश रहते थे. उस के ससुर पूर्णमासी रावत उसे बहुत मानते थे. उन का बेटा रमाशंकर तो अपने काम में व्यस्त रहता था, इसलिए घर की सारी जरूरतों का खयाल मंजूलता ही रखती थी. वह सासससुर की खूब सेवा करती थी, इसलिए उस के गायब होने से पतिपत्नी बहुत परेशान थे.

मंजूलता के भाइयों को रमाशंकर पर ही संदेह था. लेकिन कोई सुबूत न होने की वजह वे कुछ कर नहीं पा रहे थे. वे सिर्फ ड्राइवर रामकरन के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के लिए पुलिस पर दबाव डाल रहे थे, जबकि कोतवाली प्रभारी इस के लिए तैयार नहीं थे.

जब कोतवाली प्रभारी ने रिपोर्ट दर्ज नहीं की तो सत्यप्रकाश क्षेत्राधिकारी राजेश यादव, एसपी (देहात) सौमित्र यादव तथा एसएसपी प्रवीण कुमार से मिला. उस का कहना था कि अगर रमाशंकर के ड्राइवर रामकरन पर शिकंजा कसा जाए तो सारी सच्चाई सामने आ जाएगी. सत्यप्रकाश के कहने पर क्षेत्राधिकारी राजेश यादव ने ड्राइवर रामकरन को हिरासत में ले कर सख्ती से पूछताछ करने का आदेश दिया.

आखिर जब कोतवाली प्रभारी कमरुद्दीन ने ड्राइवर रामकरन को हिरासत में ले कर सख्ती से पूछताछ की तो उस ने बताया कि मंजूलता की हत्या कर दी गई है और उस की लाश को मऊ गांव के एक पुराने कुएं में डाल कर उसे पटवा दिया गया है.

ड्राइवर रामकरन के बयान के आधार पर लाश बरामद करने के लिए पुलिस को कुएं की खुदाई कराना जरूरी था. इस के लिए जेसीबी मशीन मंगाई गई. पूछताछ में रामकरन ने बताया था कि इस वारदात में मृतका मंजूलता का पति रमाशंकर और मऊ का रहने वाला केतन भी शामिल था.

केतन के घर के बगल में ही मुन्ना वाजपेई का पुराना मकान था. वह लखनऊ में रहते थे और एचएएल में नौकरी करते थे. उन्होंने अपना यह मकान बेच दिया था, जो अब पूरी तरह से खंडहर हो चुका था. उसी मकान के आंगन में एक कुआं था, जिस का उपयोग न होने की वजह से वह लगभग सूख चुका था.

रामकरन ने पुलिस को बताया था कि मंजूलता की हत्या कर के उस की लाश को उसी कुएं में फेंक कर ऊपर से मकान का मलबा डाल कर कुएं को पाट दिया गया था. लाश बरामद करने के लिए कोतवाली पुलिस ने मंजूलता के भाई और अन्य रिश्तेदारों की उपस्थिति में कुएं की खुदाई शुरू कराई.

रामकरन के बयान के आधार पर पुलिस को रमाशंकर को गिरफ्तार कर लेना चाहिए था. लेकिन पुलिस ने उसे गिरफ्तार नहीं किया. दरअसल पुलिस मंजूलता की लाश बरामद कर के सुबूत के आधार पर उसे गिरफ्तार करना चाहती थी. क्योंकि वह ग्रामप्रधान था. उस की गिरफ्तारी पर गांव वाले बवाल कर सकते थे, इसलिए पुलिस सोचसमझ कर कदम उठा रही थी. अगर लाश कुएं से बरामद न होती तो रामकरन की बात झूठी भी हो सकती थी.

पुलिस ने 23 जून की रात एक बजे के आसपास कुएं की खुदाई शुरू कराई. जेसीबी कुएं को लगातार खोदती रही. कुएं का मलबा हटाने में करीब 15 घंटे का समय लगा. अब तक दूसरे दिन यानी 24 जून की दोपहर हो गई थी. कुएं की तली दिखाई देने लगी थी, लेकिन मंजूलता की लाश का कुछ अतापता नहीं था.

तमाशा देखने के लिए वहां गांव वाले इकट्ठा थे. जब उन्होंने देखा कि इतनी खुदाई होने पर भी लाश नहीं मिल रही है तो उन्हें लगा कि पुलिस ग्रामप्रधान को फंसाने के लिए नाटक कर रही है. उन्हें गुस्सा आ गया और उन्होंने मोहनलालगंज कोतवाली के सामने एकत्र हो कर लखनऊरायबरेली रोड और मोहनलालगंज-गोसाईगंज रोड पर जाम लगाना शुरू कर दिया.

अब पुलिस दोहरी मुसीबत में फंस गई. एक ओर उसे मंजूलता की लाश बरामद करनी थी तो दूसरी ओर जाम लगा रहे गांव वालों को रोकना था.

जेसीबी का काम खत्म हो गया था. अब कुएं की खुदाई मजदूरों से कराई जा रही थी. मजदूर कुएं का मलबा बाल्टी से निकाल रहे थे. कुएं से जो कीचड़ निकल रहा था, उस से भयंकर बदबू आ रही थी, जिस की वजह से वहां खड़ा होना मुश्किल हो रहा था. गरमी और धूप का भी बुरा हाल था. इस के बावजूद गांव वाले वहां जमा थे. 4 फुट चौड़े और करीब 40 फुट गहरे कुएं का जब सारा कीचड़ निकल गया तो मंजूलता की लाश दिखाई दे गई. लाश देख कर पुलिस की जान में जान आई.

लाश निकलते ही मंजूलता के मायके वाले ही नहीं, सासससुर और बच्चे बिलखने लगे. पुलिस ने घटनास्थल की अपनी काररवाई निबटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए लखनऊ भिजवा दिया. इस के बाद पुलिस ने मंजूलता के पति रमाशंकर को भी गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद थाने आ कर रामकरन, रमाशंकर और केतन के खिलाफ मंजूलता की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

केतन को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. थाने ला कर तीनों से पूछताछ शुरू हुई. इस पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह पतिपत्नी के बीच भरोसा टूटने वाली थी…

रमाशंकर को लगने लगा था कि उस की पत्नी के कुछ बाहरी लोगों से संबंध बन गए हैं, इसलिए वह उस की बात नहीं मानती. दूसरी ओर मंजूलता को लगता था कि रमाशंकर के संबंध अन्य औरतों से हो गए हैं, इसलिए वह उस की उपेक्षा करता है.

मंजूलता की हत्या की एक बड़ी वजह यह भी थी कि उस के नाम मऊ में 12 बिसवा जमीन थी, जो सड़क के किनारे थी. रमाशंकर उस जमीन को बेचना चाहता था, जबकि मंजू उस जमीन को बेचने को बिलकुल तैयार नहीं थी. इसी बात को ले कर पतिपत्नी में अक्सर लड़ाईझगड़ा होता रहता था.

रमाशंकर जमीन बेचने के लिए जब मंजू पर ज्यादा दबाव बनाने लगा तो मंजू गुस्से से बोली, ‘‘तुम यह क्यों नहीं सोचते कि वह जमीन मेरे पिता ने मुझे दी है. वह मेरे लिए बहुत कीमती है. उसे मैं अपने जीते जी बिलकुल नहीं बेच सकती.’’

‘‘वह जमीन बड़ी अच्छी जगह पर है. अभी उस की कीमत ठीकठाक मिल जाएगी. उसी पैसे से हम तुम्हारे लिए दूसरी जगह जमीन खरीद देंगे.’’ रमाशंकर ने मंजूलता को समझाया.

‘‘तुम कुछ भी कहो, मैं ने कह दिया कि वह जमीन मैं नहीं बेचूंगी तो नहीं बेचूंगी.’’ मंजूलता गुस्से में बोली.

रमाशंकर जमीन की खरीदफरोख्त से ही गरीब से अमीर बना था, इसलिए उसे आदमी से ज्यादा जमीन की कीमत महत्व रखती थी. जबकि मंजू जमीन बेच कर पैसा कमाने के बजाय जमीन से जुड़ी अपनी भावनाओं को महत्व दे रही थी. जमीन की वजह से पतिपत्नी के बीच की खाई चौड़ी होती जा रही थी. मंजू जिस तरह जिद पर अड़ी थी, उस से रमाशंकर को लगने लगा कि उस के पीछे कोई लगा है, जो उसे भड़का रहा है.

रमाशंकर को पत्नी के चरित्र पर संदेह हुआ तो उस ने उसे रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. यह काम वह खुद तो कर नहीं सकता था, इसलिए उस ने मऊ गांव के रहने वाले केतन से बात की और 50 हजार रुपए में पत्नी की हत्या का ठेका दे दिया. इस के बाद 20 हजार नकद और 10 हजार का चेक एडवांस में दे दिया. 20 हजार रुपए काम हो जाने के बाद देने का वादा किया.

18 जून को रमाशंकर के ड्राइवर रामकरन ने मंजू से कहा, ‘‘भाभीजी कुछ काम से मैं मोहनलालगंज बाजार जा रहा हूं. अगर आप को चलना हो तो आप भी चल सकती हैं.’’

घर के लड़ाईझगड़ों से परेशान मंजू ने सोचा कि कुछ दिनों के लिए वह बाजार चली जाए तो मन बहल जाएगा. वैसे जाते हुए बाजार से कुछ खरीदारी भी कर लेगी, इसलिए वह उस के साथ जाने के लिए तैयार हो गई. शाम को लौटते समय उस की कार में केतन भी बैठ गया. माधवखेड़ा गांव के मोड़ के पास जब कार पहुंची तो वहां सन्नाटा देख कर केतन और रामकरन ने गला दबा कर मंजूलता की हत्या कर दी. इस के बाद रामकरन ने फोन कर के इस बात की जानकारी रमाशंकर को दे दी.

इस के बाद लाश को डिग्गी में रख कर केतन कार ले कर अपने गांव मऊ चला गया. रात 2 बजे केतन ने लाश को अपने मकान के बगल खंडहर हो चुके मुन्ना वाजपेयी के मकान में बने पुराने कुएं में डाल दिया. अगले दिन सुबह रमाशंकर ने केतन की मदद से उस कुएं को खंडहर हो चुके मकान के मलबे से पटवा दिया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, हत्या करने से पहले मंजू को बेहोश किया गया था. उसे कोल्डड्रिंक में बेहोश होने की दवा पिलाई गई थी. उस के बाद उस का गला घोंटा गया था.

पोस्टमार्टम के बाद जब मंजूलता की लाश घर आई तो मायके वाले ही नहीं, उस के ससुर पूर्णमासी अपनी पत्नी कौशल्या और मंजू के बच्चों को ले कर लाश के पास पहुंचे. बहू की लाश देख कर वह फफक पड़े. उन्होंने रोते हुए कहा, ‘‘मंजू बहुत अच्छी बहू थी. जिस दिन से इस ने हमारे घर में कदम रखा था, हमारे दिन बदल गए थे. मेरे बेटे ने बहू की हत्या कर के मासूम बच्चों को बिना मां के कर दिया. ऐसे पापी को फांसी की सजा होनी चाहिए.’’

शायद यह पहला मौका रहा होगा, जब पिता ही अपने बेटे को फांसी की सजा देने की बात कर रहा था. बहू की लाश को मुखाग्नि देते हुए पूर्णमासी ने कहा, ‘‘मैं अपने बेटे को जेल से छुड़ाने के लिए कोई प्रयास नहीं करूंगा.’’

पूछताछ में रमाशंकर ने पुलिस को बताया था कि मंजू उस पर शक करती थी. उसे घर आने में देर हो जाती हो तो वह उस से तरहतरह के सवाल करती थी. उस का कहना था कि अगर वह उस की हत्या न करवाता तो वह उसे मरवा देती. क्योंकि उस के कुछ अन्य लोगों से संबंध हो गए थे.

कुछ भी रहा हो, रमाशंकर ने जो भी किया, वह ठीक नहीं था. शायद उसे पैसे और पहुंच का घमंड हो गया था. उस की पहुंच कुछ हद तक काम भी कर रही थी, लेकिन पुलिस अधिकारियों की दखल ने उस का सारा काम बिगाड़ दिया. अब शायद उसे अपने किए पर पश्चाताप हो रहा होगा. लेकिन इस से कुछ भी फायदा नहीं होगा. शक में उस ने अपना ही घर बरबाद कर दिया है.

कपूत की करतूत : अपने पिता की दी सुपारी

बेटी बनी गवाह : मां को मिली सजा – भाग 3

प्रेमीप्रेमिका सहित अन्य आरोपी हुए गिरफ्तार

20 अक्तूबर, 2018 को हरदा पुलिस ने राजेश की हत्या के आरोपी प्रकाश जाट को गिरफ्तार कर लिया. प्रकाश की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त दरांती, खून से सने हुए कपड़े और जूते भी बरामद कर लिए. प्रकाश से पुलिस ने जब सख्ती से पूछताछ की तो उस ने मनीषा से अवैध संबंध होने के चलते पवन, पप्पू और छोटू उर्फ ब्रजेश की मदद से राजेश की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. इस आधार पर पुलिस ने मनीषा को भी हिरासत में ले ले कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

6 नवंबर को हरदा पुलिस ने हत्या के 3 अन्य आरोपियों गोलू शर्मा, पवन पुरी और छोटू उर्फ ब्रजेश को भी इंदौर के पास मूसाखेड़ी से गिरफ्तार कर लिया. पति की हत्या के मामले में जब मनीषा को जेल भेज दिया गया तो दोनों बच्चे अपने दादादादी के पास रहने लगे. लेकिन जेल में बंद मां ने बच्चों को वहां से बाल संरक्षण गृह भेजने के लिए आवेदन कर दिया. दोनों बच्चे करीब 6 महीने तक बाल संरक्षण गृह में रहे, इस के बाद बच्चों को दोबारा से दादादादी के पास भेज दिया गया.

अपने बड़े बेटे राजेश की हत्या और बहू के जेल जाने को ले कर पिता रामरज सिंह राजपूत काफी दुखी रहने लगे. उन्हें हरदम मासूम पोतेपोती के भविष्य की चिंता सताया करती थी. बुढ़ापे में अपनी ही बहू के द्वारा बेटे की हत्या करने के सदमे के चलते वह 6 महीने बाद ही दुनिया से चल बसे.

इस पूरे मामले में हत्या का एक कारण मकान का पतिपत्नी के नाम पर होना भी था. मनीषा और प्रकाश के बीच 2 साल से अफेयर चल रहा था. इस की जानकारी राजेश को भी थी, वह किसी भी तरह परिवार को बिखरने नहीं देना चाहता था. उस ने तो यह भी सोच रखा था कि मकान को बेच कर पत्नी और दोनों बच्चों को ले कर कहीं और जा कर बस जाएगा. मगर मनीषा इस बात के लिए राजी नहीं थी. वह तो मकान में से आधा हिस्सा ले कर अपने प्रेमी के साथ रहना चाहती थी. इस बात ने दोनों के बीच विवाद को बहुत गहरा कर दिया था.

मार्च 2022 में मनीषा जमानत पर बाहर आई थी. तब 30 अगस्त, 2022 को हरतालिका तीज के दिन उस ने अचानक घर आ कर परिवार के लोगों को धमकी दे कर कहा, “यह मेरा घर है, इसे तत्काल खाली कर दो, क्योंकि इस पर मेरा हक है. यह मेरे और राजेश के नाम पर है. यदि ऐसा नहीं किया तो एकएक को देख लूंगी.”

कोर्ट के फैसले पर घर वालों को राहत

फिलहाल राजेश के दोनों बच्चे दादी और चाचाचाची के साथ रहते हैं. बेटी 9वीं और बेटा 5वीं क्लास में पढ़ता है. अब वे समझदार हो गए हैं. जब उन्हें पता चला कि मां ने ही उन के सिर से पिता का साया छीना है, तब से वे मां से नफरत करने लगे हैं. दोनों बच्चे अपनी मां से बातचीत तो दूर, उस का चेहरा भी नहीं देखना चाहते हैं.

दोनों छोटे भाइयों ने 5 सालों तक भाई के हत्यारों को सजा दिलाने के लिए संघर्ष किया है. इस दौरान आरोपियों द्वारा तरहतरह की धमकियां दे कर समझौते के लिए दबाव बनाया गया. कोर्ट के फैसले से राजेश के परिवार को न्याय मिला है. उन का कहना है कि जिन 3 आरोपियों को बरी कर दिया गया है, उन्हें सजा दिलाने के लिए वे फिर से अपील करने का प्रयास कर रहे हैं.

तत्कालीन हरदा थानाप्रभारी सुभाष दरश्यामकर और एसआई ओ.पी. यादव ने विवेचना कर चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की. लगभग 4 साल तक न्यायालय में चले इस प्रकरण में अभियोजन पक्ष से 21 गवाहों को पेश किया गया. 19 मई, 2023 को विशेष सत्र न्यायालय के मजिस्ट्रेट अनूप कुमार त्रिपाठी ने 42 पेज के फैसले में राजेश की पत्नी मनीषा और उस के प्रेमी प्रकाश जाट को आजीवन कारावास की सजा सुनाई. सजा के बाद प्रकाश को जबलपुर जेल भेज दिया गया, जबकि मनीषा जिला जेल हरदा में है.

न्यायाधीश अनूप कुमार त्रिपाठी ने अपने जजमेंट में लिखा कि त्रुटिपूर्ण जांच के आधार पर अभियोजन अपना प्रकरण शंका से परे मामला सिद्ध नहीं कर पाया, इसलिए अन्य व्यक्तियों को दोष मुक्त किया गया है. बचाव पक्ष की ओर से एडवोकेट राजेश पाराशर, एस.एन. अग्रवाल ( खंडवा), हरिमोहन शर्मा, रमेश चंद शर्मा, अचल पाराशर ने जबकि अभियोजन पक्ष की ओर से जिला लोक अभियोजक आशाराम रोहित, सहायक लोक अभिायोजक विनोद अहिरवार और एडवोकेट अखिलेश भाटी ने पैरवी की.

कथा कोर्ट के फैसले और जिला लोक अभियोजक आशाराम रोहित से बातचीत पर आधारित. प्रियांशी परिवर्तित नाम है.