आयशा हत्याकांड : मोहब्बत की सजा मौत – भाग 2

पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में इमरान और उस्मान ने नाजिम और आयशा की हत्या की जो कहानी पुलिस को बताई, वह प्रेमसंबंध और औनर किलिंग की निकली.

इलाहाबाद के थाना धूमनगंज के गांव दामूपुर में मोहम्मद आरिफ अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 6 बेटे थे. बेटों में नाजिम सब से छोटा था. वह मकानों में मार्बल लगाने का ठेका लेता था, जिस से वह अच्छीखासी कमाई कर रहा था. जबकि मोहम्मद आरिफ गांव में ही पान की दुकान चलाते थे.

इसी गांव के रहने वाले मोहम्मद इब्राहीम मोटर मैकेनिक थे. जीटी रोड चौफटका पर उस की अपनी दुकान थी. घर में पत्नी परवीन बेगम के अलावा 3 बेटे और 4 बेटियां थीं. 18 वर्षीया आयशा तीसरे नंबर पर थी. एकहरे बदन की गोरीचिट्टी आयशा देखने में ठीकठाक लगती थी.

आयशा के भाई इमरान की नाजिम से खूब पटती थी. उन की यह दोस्ती बचपन की थी. नाजिम का उस के घर भी आनाजाना था. इसी आनेजाने में आयशा को नाजिम कब पसंद आ गया, उसे खुद ही पता नहीं चला. नाजिम आयशा को 1-2 दिन दिखाई न देता तो वह बेचैन हो उठती. उस की आंखें नाजिम के दीदार को तड़पने लगतीं.

जल्दी ही नाजिम को आयशा की इस तड़प का अहसास हो गया. यही वजह थी कि जिस आग में आयशा जल रही थी, उसी आग मे नाजिम भी जलने लगा. वह जब भी आयशा के घर आता, चाहतभरी नजरों से उसे देखता रहता.

ऐसे में ही किसी दिन आयशा और नाजिम को तनहाई में मिलने का मौका मिला तो दोनों के दिल की तड़प होठों पर आ गई. नाजिम ने आयशा का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘आयशा, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. जी चाहता है मैं तुम्हें हमेशा देखता रहूं.’’

‘‘नाजिम, मेरा भी यही हाल है.’’ आयशा उस के नजदीक आकर बोली, ‘‘मेरा भी मन करता है कि हर पल तुम्हें ही देखती रहूं, तुम से खूब बातें करूं, तुम्हारे साथ घूमूं. तुम मेरे दिलोदिमाग में रचबस गए हो. दिन में चैन नहीं मिलता तो रातों को नींद नहीं आती. बस, तुम्हारी ही यादों में खोई रहती हूं.’’

आयशा अपनी बात कह ही रही थी कि नाजिम ने उसे अपनी बांहों में भींच लिया. इस के बाद धीरेधीरे उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. गुपचुप तौर पर दोनों कभी घर में तो कभी घर के बाहर रात के अंधेरों में मिलनेजुलने लगे. आयशा जब भी नाजिम से मिलती, अपने प्यार की दुनिया बसाने का स्वप्न उस के सीने पर सिर रख कर देखती.

आयशा नाजिम पर कुछ इस कदर दीवानी हुई कि एक दिन अपना सबकुछ उस के हवाले कर दिया. इस के बाद नाजिम ने उसे भरोसा दिलाया कि दुनिया भले ही इधर से उधर हो जाए, लेकिन वह उसे इधर से उधर नहीं होने देगा. वह उसी से निकाह करेगा. प्यार मोहब्बत कोई छिपने की चीज तो है नहीं, यही वजह थी कि नाजिम और आयशा की मोहब्बत का भी खुलासा हो गया. गांव में उन की मोहब्बत की चर्चाएं होने लगीं.

यह खबर इब्राहीम और उस के बेटे इमरान तक भी पहुंच गई. बहन की इस करतूत से इमरान को आग सी लग गई. वह आयशा पर नजर रखने लगा. उस ने आयशा का घर से निकलना बंद करा दिया.

इस के बाद उस ने नाजिम को भी धमकाया, ‘‘खबरदार, अब कभी आयशा से मिलने की कोशिश की तो अंजाम बहुत बुरा होगा.’’

लेकिन नाजिम और आयशा की मोहब्बत इतनी गहरी हो चुकी थी कि इमरान की कोई भी कोशिश सफल नहीं हुई. किसी न किसी बहाने आयशा और नाजिम मिल ही लेते थे.

ऐसे ही पलों में एक दिन आयशा ने कहा, ‘‘नाजिम, मेरे भाईजान इमरान को हमारी मोहब्बत पर सख्त ऐतराज है. वह नहीं चाहते कि मैं तुम से मिलूं. उन्होंने मुझ पर इतनी सख्ती कर दी है कि तुम से मिलना मेरे लिए मुश्किल हो गया है. गांव में भी हमारी मोहब्बत के चर्चे आम हो गए हैं. वैसे मेरी अम्मी और अब्बू को हमारी मोहब्बत पर ज्यादा ऐतराज नहीं है. अगर तुम अपने अब्बू को निकाह के लिए मेरे अब्बू के पास भेजो तो बात बन सकती है.

नाजिम को आयशा की बात उचित लगी. उस ने आयशा को आश्वासन दिया कि घर पहुंचते ही वह अम्मीअब्बू से निकाह की बात करेगा. नाजिम ने कहा ही नहीं, बल्कि घर आते ही बात भी की. तब अगले ही दिन उस के अब्बू आयशा के अब्बू इब्राहीम से मिलने उन के कारखाने पर जा पहुंचे. उन्होंने उन से आयशा और नाजिम के निकाह की बात की तो पहले तो इब्राहीम ने मना कर दिया.

लेकिन बाद में कहा, ‘‘देखो आरिफ भाई, मुझे तो इस निकाह से कोई ऐतराज नहीं है. लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि इमरान इस निकाह के लिए तैयार नहीं होगा. फिर भी मैं घर में बात चलाऊंगा.’’

इमरान को जब पता चला कि आयशा के निकाह के लिए नाजिम के अब्बू उस के अब्बू के पास आए थे तो वह स्वयं को रोक नहीं सका और जा कर नाजिम से झगड़ा करने लगा. तब गांव के कुछ लोगों ने उसे समझाबुझा कर शांत किया.

कहीं कुछ उलटासीधा न हो जाए, यह सोच कर गांव के कुछ बुजुर्गों ने इकट्ठा हो कर इमरान को समझाया कि नाजिम खाताकमाता है, आयशा भी बालिग हो चुकी है, इसलिए दोनों का निकाह करने में उसे परेशानी किस बात की है? कोई ऊंचनीच हो, इस से बेहतर है कि दोनों का निकाह कर दिया जाए. बुजुर्गों के सामने तो इमरान कोई विरोध नहीं कर सका, लेकिन दिल से वह इस निकाह के लिए तैयार नहीं हुआ.

आयशा और नाजिम की मोहब्बत की उम्र 2 साल से अधिक हो चुकी थी. लाख कोशिश कर के भी इमरान आयशा और नाजिम को अलग नहीं कर सका. बुजुर्गों के समझाने के बाद नाजिम और आयशा को लगने लगा था कि अब उन का निकाह हो जाएगा. इस की वजह यह थी कि दोनों के अम्मीअब्बू राजी थे. बात सिर्फ इमरान की थी. उन्हें विश्वास था कि एक न एक दिन वह भी मान जाएगा.

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15-20 दिनों तक इमरान ने भी विरोध नहीं किया तो आयशा और नाजिम को लगा कि अब सारी रुकावटें दूर हो गई हैं. जबकि आयशा ने जो किया था, उस से इमरान अंदर ही अंदर सुलग रहा था. वह किसी भी कीमत पर आयशा का निकाह नाजिम से नहीं होने देना चाहता था. इस के लिए जब उसे कोई राह नहीं सूझी तो उस ने गुपचुप तरीके से साजिश रच डाली. इस साजिश में उस ने अपने मौसेरे भाई उस्मान, जो बेगम बाजार, बमरौली का रहने वाला था तथा अपने दोस्त सुफियान को विश्वास में ले कर शामिल कर लिया.

आयशा हत्याकांड : मोहब्बत की सजा मौत – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला इलाहाबाद के थाना धूमनगंज के थानाप्रभारी रामसूरत सोनकर अपने कार्यालय  में जैसे ही आ कर बैठे, एक बुजुर्ग उन के सामने आ कर खड़ा हो गया. उन्होंने उस की ओर देखा तो वह हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘साहब, मेरा नाम मोहम्मद आरिफ है. मैं दामूपुर गांव का रहने वाला हूं. मेरा 26 वर्षीय बेटा नाजिम 14 सितंबर की सुबह 10 बजे घर से काम पर जाने के लिए निकला था.

शाम को वह घर नहीं लौटा तो मैं उस की तलाश करने लगा. लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. आज सुबह 5 बजे गांव में शोर मचा कि सुमित पाल के बाजरे के खेत में एक लड़के की लाश पड़ी है. मैं ने वहां जा कर देखा तो वह मेरे बेटे नाजिम की लाश थी. उस में से बदबू आ रही थी. साहब, मैं उसी की रिपोर्ट दर्ज कराने आया हूं.’’

सुबहसुबह हत्या की खबर से थानाप्रभारी रामसूरत सोनकर का दिमाग चकरा गया. उन्होंने स्वयं को संभाल कर मोहम्मद आरिफ से पूछा, ‘‘बता सकते हो कि तुम्हारे बेटे की हत्या किस ने की होगी?’’

‘‘जी मेरे ही गांव के मोहम्मद इब्राहीम के बेटे इमरान ने यह काम किया है. साहब, मेरा बेटा नाजिम उस की बहन आयशा से प्यार करता था. वह उस से निकाह करना चाहता था. जबकि इमरान को यह पसंद नहीं था.’’

आरिफ की सूचना पर थानाप्रभारी रामसूरत सोनकर ने अपराध संख्या-520/2013 पर भादंवि की धारा 302/364/201 के तहत मोहम्मद इब्राहीम के बेटे इमरान तथा 2 अन्य  लोगों, इमरान के मौसेरे भाई उस्मान और दोस्त सुफियान के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा कर अपने साथ एसएसआई उमाशंकर यादव, एसआई जीतेंद्र बहादुर सिंह, एसआई (टे्रनिंग) संगीता सिंह तथा कुछ सिपाहियों को ले कर गांव दामूपुर के लिए रवाना हो गए.

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पुलिस बल के साथ इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर दामूपुर गांव के उस बाजरे के खेत पर जा पहुंचे, जहां लाश पड़ी थी. लाश निर्वस्त्र थी. देखने से ही लग रहा था कि हत्या गला दबा कर की गई थी. उस के बाद उसे चाकुओं से भी गोदा गया था. यह हत्या भी कहीं दूसरी जगह की गई थी. उस के बाद लाश को यहां ला कर फेंका गया था. लाश से तेज दुर्गंध आ रही थी.

इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर ने घटनास्थल की आवश्यक काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद अभियुक्तों को गिरफ्तार करने दामूपुर गांव जा पहुंचे. लेकिन वहां कोई नहीं मिला.

इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर अभियुक्त इमरान की बहन आयशा, अम्मी परवीन बेगम तथा अब्बा इब्राहीम को पूछताछ के लिए थाने ले आए. पूछताछ में इब्राहीम और उन की पत्नी ने बताया कि न तो उन्होंने यह हत्या की है और न ही उन्हें हत्यारों के बारे में कुछ पता है.

इस के बाद इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर ने आयशा को अलग ले जा कर पूछताछ की तो उस ने नाजिम से अपना प्रेम संबंध स्वीकार करते हुए बताया, ‘‘मेरे भाई इमरान ने मेरी मौसी के बेटे उस्मान और दोस्त सुफियान के साथ मिल कर नाजिम की हत्या की है. इमरान ने मुझ से निकाह करने का आश्वासन दे कर नाजिम को शनिवार की रात घर बुलाया. उसी रात तीनों ने नाजिम की गला दबा कर और चाकुओं से गोद कर हत्या कर दी. आधी रात के बाद गांव में सन्नाटा पसर गया तो वे नाजिम की लाश को गांव के बाहर बाजरे के खेत में फेंक आए थे.’’

इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर ने इमरान के पिता इब्राहीम को रोक कर आयशा और उस की मां परवीन बेगम को घर भेज दिया था. यह 16 सितंबर की बात है.

19 सितंबर को सूरज ने अभी पूरी तरह आंखें खोली भी नहीं थी कि इब्राहीम के घर की महिलाओं के चीखचीख कर रोने की आवाज से पूरा गांव जाग गया. गांव वाले इब्राहीम के घर पहुंचे तो पता चला कि उस की बेटी आयशा ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली है.

गांव वालों के कहने पर परवीन बेगम ने इस घटना की सूचना थाना धूमनगंज पुलिस को दी. इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर को परवीन बेगम की बातों पर कतई विश्वास नहीं हुआ. फिर भी उन्होंने उस के बताए अनुसार अपराध संख्या-529/2013 पर भादंवि की धारा 309 के तहत मुकद्दमा दर्ज करा कर साथियों के साथ दामूपुर स्थित इब्राहीम के घर जा पहुंचे.

आयशा की लाश मकान की पहली मंजिल बने कमरे में दरवाजे के ऊपर के रोशनदान से रस्सी के सहारे लटक रही थी. इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर ने लाश का निरीक्षण करने के दौरान देखा कि लटक रही लाश के पैर फर्श को छू रहे थे. शरीर पर 2 जगहों पर जले के निशान थे. कपड़ों से मिट्टी के तेल की गंध आ रही थी. वहीं मिट्टी के तेल का डिब्बा भी पड़ा था.

स्थितियों से यही लग रहा था कि पहले उस पर मिट्टी का तेल डाल कर जला कर मारने का प्रयास किया गया था. किसी वजह से इरादा बदल गया तो गला दबा कर उस की हत्या कर दी गई. उस के बाद लाश को रस्सी के सहारे लटका कर आत्महत्या का रूप दे दिया गया. पुलिस ने जब हत्या की शंका व्यक्त की लेकिन घर वाले यह बात मानने को तैयार नहीं थे.

इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर ने लाश को नीचे उतरवा कर आवश्यक काररवाई निपटाई और लाश को पोस्टमार्टम के लिए स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल भिजवा दिया. अब उन्हें पोस्टमार्टम रिपोर्ट की प्रतीक्षा थी.

पोस्टमार्टम के बाद आयशा की लाश अंतिम संस्कार के लिए उस के घर वालों को सौंप दी गई. इंसपेक्टर रामसूरत को पोस्टमार्टम की रिपोर्ट मिली तो उन का शक विश्वास में बदल गया, क्योंकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट आयशा की मौत एंटीमार्टम इंजरी स्ट्रांगग्यूलेशन यानी गला दबा कर हत्या करना बता रही थी.

इस बीच इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर ने इस मामले में अपने मुखबिरों से बहुत सारी जानकारियां प्राप्त कर ली थीं. प्राप्त जानकारियों के अनुसार आयशा के भाई को उस रात गांव में देखा गया था. चर्चा थी कि आयशा नाजिम की हत्या की पूरी कहानी पुलिस को बता कर मुख्य गवाह बन गई थी, इसीलिए उसे उस के भाई ने मार दिया था.

अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए थाना धूमनगंज पुलिस ने ताबड़तोड़ छापे मारने शुरू किए. परिणामस्वरूप 20 सितंबर को पुलिस ने इमरान के मौसेरे भाई उस्मान को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ के बाद अगले दिन पुलिस ने उसे अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. इस के बाद 28 सितंबर को आयशा का भाई इमरान भी पुलिस गिरफ्त में आ गया. पुलिस ने पूछताछ कर के अगले दिन उसे भी अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

सीधी सादी बीवी का शराबी पति – भाग 4

विवेक का जब मन होता, वह गंदीगंदी गालियां देते हुए रश्मि की पिटाई करने लगता. जबकि रश्मि को गालियों से बहुत चिढ़ थी. ऐसे में रश्मि विरोध करती तो घर का माहौल बिगड़ जाता. मजबूरन समझदारी का परिचय देते हुए रश्मि को ही चुप होना पड़ता.

मार्च महीने की बात है. रश्मि मायके आई हुई थी. उसी बीच एक दिन उस ने देवर विकास और उस की पत्नी को खाने पर अपने घर बुलाया. रात में विवेक भी आ गया. खाना खा कर विकास तो पत्नी के साथ चला गया, लेकिन विवेक ससुराल में ही रुक गया.

सब के जाने के बाद विवेक सोने के लिए लेटा तो पत्नी से लाइट बंद करने को कहा. काम में व्यस्त होने की वजह से रश्मि सुन नहीं पाई. इसलिए लाइट औफ नहीं की. विवेक गुस्से में उठा तो शराब की खाली पड़ी बोतल उस के पैर से टकरा गई. फिर तो विवेक का गुस्सा इस कदर बढ़ा कि उस ने चप्पल निकाली और रश्मि के घर में ही उस की पिटाई करने लगा, साथ ही गंदीगंदी गालियां भी दे रहा था.

हद तो तब हो गई, जब गिलास में रखी शराब उस ने उस के मुंह पर उड़ेल दी. इस पर रश्मि को भी गुस्सा आ गया. उस ने आवाज दे कर मांबाप को बुला लिया. इस के बाद उस रात विवेक से खूब झगड़ा हुआ. विवेक अकेला था, जबकि रश्मि का पूरा परिवार था. अंत में रश्मि ने ही बीचबचाव कर के मामला शांत कराया. इस के बाद एक बार फिर विवेक के संबंध ससुराल वालों से खराब हो गए. इतना सब होने के बावजूद रश्मि बेटी को ले कर पति के साथ ससुराल आ गई.

3 अप्रैल, 2013 की शाम 4 बजे के आसपास रश्मि ने अभिषेक को फोन कर के बताया कि विवेक ने उसे और श्रद्धा को खाने की चीज में जहर मिला कर खिला दिया है. इस के आगे वह कुछ नहीं कह पाई, क्योंकि दूसरी ओर से फोन कट गया था. शायद किसी ने फोन छीन कर काट दिया था. अभिषेक के पास सोचने का भी समय नहीं था. उस ने जल्दी से गाड़ी निकाली और पिता को साथ ले कर रश्मि की ससुराल जा पहुंचा.

विवेक घर में ही था. लेकिन उस से कोई बात किए बगैर बापबेटे सीधे रश्मि के कमरे में पहुंचे. श्रद्धा और रश्मि बिस्तर पर पड़ी तड़प रही थीं. बापबेटे ने मिल कर दोनों को गाड़ी में लिटाया और विंध्यवासिनीनगर स्थित स्टार नर्सिंग होम ले गए. दोनों का इलाज शुरू हुआ. इस बीच ससुराल का कोई भी सदस्य उन्हें देखने नहीं आया. रात करीब 11 बजे रश्मि की ननद वंदना जरूर आई. थोड़ी देर रुक कर वह भी चली गई.

श्रद्धा की हालत तो स्थिर रही, लेकिन रश्मि की हालत बिगड़ती गई. तब अर्जुन कुमार और अभिषेक, दोनों को वहां से डिस्चार्ज करा कर डा. मल्ल नर्सिंगहोम ले गए. श्रद्धा तो जैसेतैसे बच गई, लेकिन 2 दिनों तक जिंदगी और मौत से संघर्ष करते हुए 5 अप्रैल की शाम 6 बजे रश्मि मौत से हार गई और यह दुनिया छोड़ कर चली गई.

रश्मि की मौत की सूचना पा कर कोतवाली पुलिस अस्पताल पहुंची और लाश को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए मेडिकल कालेज भिजवा दिया. इस के बाद श्रद्धा के बताए अनुसार अभिषेक ने कोतवाली पुलिस को जो तहरीर दी, उस के आधार पर कोतवाली पुलिस ने अपराध संख्या 139/2013 पर भादंवि की धारा 302, 307, 498ए के तहत विवेक कुमार लाट के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. इस मामले की जांच कोतवाल प्रभारी इंसपेक्टर बृजेंद्र सिंह ने स्वयं संभाली.

6 अप्रैल, 2013 की सुबह बृजेंद्र सिंह ने विवेक कुमार को आर्यनगर स्थित उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ के बाद उसी दिन उसे अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. जांच के दौरान इंस्पेक्टर बृजेंद्र सिंह को अभिषेक ने रश्मि के हाथों के लिखी 13 बिंदुओं में 7 पृष्ठों की मर्मस्पर्शी एक चिट्ठी सौंपी. उस चिट्ठी में रश्मि ने पति के हर जुर्म को विस्तार से लिखा था. जांच के दौरान कोतवाली प्रभारी ने उस में लिखा एकएक शब्द सच पाया. इस मामले में पुलिस ने 29 जून, 2013 को विवेक कुमार लाट के खिलाफ आरोप पत्र भी दाखिल कर दिया.

श्रद्धा ने अपने बयान में पुलिस को बताया था कि उस के पापा ने ही उसे और उस की मां को खाने के चीज में जहर मिला कर जबरदस्ती खिलाया था. जिसे खाने के कुछ देर बाद दोनों की हालत बिगड़ने लगी थी. अभिषेक ने पुलिस को बताया था कि उस की बहन बहुत ज्यादा सुंदर नहीं थी. वह निहायत सीधीसादी और परंपराओं में जीने वाली नारी थी. उस की यही बातें विवेक की पसंद नहीं थीं. वह अय्याश था. उस के कई औरतों से नाजायज संबंध थे. रश्मि ने इस का विरोध किया तो वह उस के साथ मारपीट करने लगा. 15 सालों तक वह तिलतिल मरती रही.

अभिषेक बहन की मौत का बदला लेना चाहता था. इसी वजह से वह बहन की हत्या के मामले की पैरवी ठीक से कर रहा था. विवेक के घर वालों ने जब उस की जमानत के लिए अदालत में याचिका दायर की तो अभिषेक की पैरवी की वजह से उस की जमानत याचिका खारिज हो गई. विवेक का मंझला भाई विनय कुमार लाट अभिषेक पर दबाव बना रहा था कि इस मामले से धारा 302 हटवा दे. अभिषेक इस के लिए तैयार नहीं था.

अभिषेक और अर्जुन कुमार रश्मि की ससुराल वालों की धमकियों की परवाह किए बगैर मामले की पैरवी करते रहे. आखिरकार वही हुआ, जिस की उन्होंने परवाह नहीं थी. 18 जून, 2013 को भाड़े के शूटरों से विनय कुमार लाट ने अभिषेक रंजन अग्रवाल की हत्या करवा दी. मृतक अभिषेक के पिता अर्जुन कुमार अग्रवाल ने बेटे की हत्या की नामजद रिपोर्ट विवेक, उस के मंझले भाई विनय कुमार और 2 अज्ञात शूटरों के खिलाफ थाना कैंट में दर्ज कराई थी.

मुकदमा दर्ज होने के बाद थाना कैंट के इंस्पेक्टर टी.पी. श्रीवास्तव ने जांच के दौरान पाया कि यह हत्या पूर्व में हुए झगड़े की वजह से जेल में बंद एक बाहुबली सफेदपोश अपराधी को सुपारी दे कर कराई गई थी. विनय ने पुलिस के सामने अपना अपराध स्वीकार भी किया था. लेकिन हत्यारे कौन थे, कहां से आए थे? पुलिस इस का पता नहीं लगा सकी.

जबकि इस मामले में नामजद अभियुक्त विनय और विवेक के बड़े भाई और प्रौपर्टी डीलर कमलेश कुमार लाट का कहना था कि रश्मि ने पारिवारिक कारणों से आजिज आ कर खुद ही जहर खा लिया था और श्रद्धा को भी खिलाया था. अस्पताल में उस ने सब के सामने यही कहा भी था. लेकिन अर्जुन कुमार और अभिषेक ने जबरदस्ती उस के निर्दोष भाई को जेल भिजवा दिया. उस की जमानत तक नहीं होने दी. अभिषेक की हत्या में भी उन का कोई हाथ नहीं है.

इस लड़ाई में एकमात्र गवाह 14 वर्षीया श्रद्धा लाट की जान खतरे में है. शूटरों के न पकड़े जाने से अर्जुन कुमार का परिवार दहशत में है. उन की सुरक्षा के लिए पुलिस तैनात है. पुलिस ने विवेक कुमार और विनय कुमार पर 8 नवंबर, 2013 को गैंगस्टर एक्ट भी लगा दिया. कथा लिखे जाने तक दोनों अभियुक्तों विवेक और विनय की जमानत नहीं हुई थी.

—कथा परिजनों और पुलिस सूत्रों पर आधारित

सीधी सादी बीवी का शराबी पति – भाग 3

रश्मि के अकेली आने पर मांबाप को समझते देर नहीं लगी कि बेटी दामाद में ऐसा कुछ जरूर हुआ है, जिस की वजह से रश्मि को घर छोड़ कर अकेली आना पड़ा. जब उन्होंने ध्यान से देखा तो उस के जिस्म पर उभरे नीले निशान दामाद की दरिंदगी की कहानी कह रहे थे.

पहली बार उन्हें अहसास हुआ कि उन्होंने बेटी को गलत हाथों में सौंप दिया है. आगे से ऐसा न हो, इस के लिए अर्जुन कुमार ने बेटी का मेडिकल करवाया और उसे ले कर महिला थाने पहुंच गए. महिला थाने की थानाप्रभारी से रश्मि के साथ हुए अत्याचार के बारे में बता कर कानूनी काररवाई करने को कहा, ताकि भविष्य में बेटी के साथ कोई अनहोनी हो तो इस के लिए उस के दामाद विवेक को जिम्मेदार माना जाए.

रश्मि नहीं चाहती थी कि उस के पिता कोई ऐसा काम करें, जिस से ससुराल जाने पर उसे परेशानी हो. इसलिए थानाप्रभारी से उस ने कोई भी काररवाई करने से मना कर दिया. इस के बावजूद रश्मि के लिए परेशानी खड़ी हो गई. विवेक को पता चल ही गया था कि रश्मि पिता के साथ महिला थाने गई थी. इस बात से रश्मि के प्रति उस का व्यवहार और बदल गया.

अब वह पहले से ज्यादा शराब पी कर आने लगा और रश्मि को परेशान करने लगा. इसी तरह 3 साल बीत गए. इन 3 सालों में रश्मि ने ससुराल में एक दिन भी सुख का अनुभव नहीं किया. कोई भी ऐसा दिन नहीं बीता, जिस दिन पतिपत्नी के बीच लड़ाईझगड़ा या मारपीट न हुई हो. शारीरिक उत्पीड़न और प्रताड़ना उस की जिंदगी का हिस्सा बन गई थी. एक तरह से उस की जिंदगी नरक बन कर रह गई थी.

शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न सहतेसहते रश्मि पूरी तरह से टूट गई थी. जब उस की सहनशक्ति खत्म हो गई तो ससुराल में उस के साथ क्या क्या हुआ, उस ने एक एक बात मांबाप को बता दी. बेटी की दुखद कहानी सुन कर मांबाप के पैरों तले से जमीन खिसक गई. वे हैरानी से बेटी का मुंह ताकते रह गए कि इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी उस ने उफ तक नहीं की. उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि नाजों से पलीबढ़ी बेटी ससुराल में दुख के अंगारों पर झुलस रही है.

वह ऐसे गुनाह की सजा वह काट रही है, जिसे उस ने कभी किया ही नहीं है. बिना वजह रश्मि को परेशान किए जाने की बात से अर्जुन कुमार और अभिषेक बहुत दुखी हुए. अब उन के पास कानून का सहारा लेने के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं था. इसलिए उन्होंने बेटी से दामाद द्वारा मारपीट करने की तहरीर महिला थाने में दिलवा दी.

रश्मि द्वारा दी गई तहरीर ने आग में घी का काम किया. महिला थाने की थानाप्रभारी ने विवेक को थाने बुलवा कर सब के सामने उसे इस तरह जलील किया कि वह भीगी बिल्ली बन कर रह गया. उस ने सब के सामने माफी मांगी और वादा किया कि भविष्य में वह फिर कभी किसी तरह की शिकायत का मौका नहीं देगा.

विवेक के घडि़याली आंसू पर रश्मि तो पिघल गई, लेकिन उस के इस नाटक पर न तो अर्जुन और अभिषेक को यकीन हुआ, न ही थानाप्रभारी को. रश्मि के कहने पर उस के घर वाले और पुलिस उसे इस शर्त पर विवेक के साथ भेजने को राजी हुई कि भविष्य में अगर रश्मि के साथ किसी भी तरह की कोई अनहोनी होती है तो इस के लिए वही जिम्मेदार होगा. विवेक ने यह शर्त मान ली तो रश्मि को उस के साथ भेज दिया गया.

रश्मि पति के साथ ससुराल आ तो गई, लेकिन इस के बाद उसे मायके वालों का मुंह देखना नसीब नहीं हुआ. विवेक का सख्त आदेश था कि वह न तो मायके जाएगी और न ही वहां फोन करेगी. यही नहीं, मायके वालों का फोन आता है, तब भी वह बात नहीं करेगी. इस तरह विवेक ने ससुराल वालों से संबंध लगभग तोड़ लिए. उसे नाराजगी इस बात की थी कि ससुर और साले ने दूसरी बार पत्नी से उस की शिकायत करा दी थी, जिस की वजह से उसे थाने में सब के साने जलील किया गया था. यह अपमान वह भूल नहीं पा रहा था.

रश्मि ने सब कुछ भाग्य के भरोसे छोड़ दिया था. अब बेटी ही उस के लिए एकमात्र जीने का सहारा रह गई थी. उसे ही देख कर वह जी रही थी. सासससुर, ननददेवर सभी ने मुंह मोड़ लिया था. शायद उस ने भी ठान लिया था कि वह वही करेगी, जो भारतीय नारियां करती आई हैं. जिस इज्जत के साथ वह ब्याह कर ससुराल आई है, उसी इज्जत के साथ उस की अर्थी ससुराल से ही उठेगी. इसी तरह 5 साल बीत गए.

सन 2008 में रश्मि की छोटी बहन दिवीता की शादी तय हुई. बेटी की शादी तय होने की बात अर्जुन कुमार ने बेटी रश्मि और दामाद विवेक को भी बताई. बहन की शादी तय होने की बात सुन कर रश्मि बहुत खुश हुई. न जाने क्या सोच कर विवेक ने रश्मि को शादी में जाने की अनुमति दे दी. यही नहीं, वह खुद भी उस शादी में शामिल हुआ.

बेटीदामाद के आने से सभी को खुशी हुई. अर्जुन कुमार और उन की पत्नी को लगा, शायद अब सब ठीक हो जाएगा. इस के बाद विवेक खुद भी ससुराल आनेजाने लगा और रश्मि को भी साथ ले जाने लगा. 2 बार वह रश्मि को ले कर सिंगापुर भी घूमने गया. विवेक भले ही ससुराल आनेजाने लगा था और रश्मि को देश के बाहर घुमाने भी ले गया था, लेकिन रश्मि के साथ वह जो व्यवहार करता आया था, उस में कोई बदलाव नहीं आया था.

वह अभी भी रश्मि को न जलील करने से चूकता था, न उस के साथ मारपीट करने में पीछे रहता था. उस में सब से बड़ी कमी यह थी कि वह यह भी नहीं देखता था कि पत्नी से कहां और कैसा व्यवहार किया जाए. बाप के इस व्यवहार से श्रद्धा भी दुखी रहती थी. कहने का मतलब यह था कि विवेक ने शराफत का जो चोला ओढ़ रखा था, वह मात्र दिखावा था, जबकि उस की आदत में कोई सुधार नहीं आया था.

सीधी सादी बीवी का शराबी पति – भाग 2

कमलेश प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था. उस से छोटे विनय, विवेक और विकास विजय चौक स्थित फोटो विजन स्टूडियो को संभालते थे. रामस्वरूप लाट सुखी और संपन्न थे, इसलिए उन की समाज में एक हैसियत थी. रामस्वरूप की बड़ी बेटी कमला की शादी कोलकाता में हुई थी. बेटों में भी कमलेश और विनय की शादी हो चुकी थी. अब उन्हें 2 बेटों और 2 बेटियों की शादी करनी थी.

उसी बीच उन का बड़ा बेटा कमलेश अपने परिवार के साथ कैंट स्थित हरिओमनगर कालोनी में रहने चला गया. बाद में उस ने अपने लिए लखनऊ में मकान बनवा लिया तो अपना वह मकान सब से छोटे भाई विकास को दे कर परिवार के साथ लखनऊ चला गया. विकास उस में रहने लगा तो विनय ने कोतवाली के विष्णु मंदिर स्थित बशारतपुर मोहल्ले में अपने लिए मकान बनवा लिया. विवेक उस की दोनों, बहनें वंदना और एप्पुल तथा मांबाप आर्यनगर स्थित पुश्तैनी मकान में एक साथ रहते थे. रहते भले ही सभी भाई अलगअलग थे, लेकिन एकदूसरे से दिल से जुड़े थे.

अभिषेक को जब भी मौका मिलता, बहन का हालचाल लेने उस के घर जाता रहता था. इस के अलावा विवेक का स्टूडियो अभिषेक के घर के नजदीक ही था, इसलिए सालेबहनोई की मुलाकात अकसर होती रहती थी. रश्मि जब भी मायके आती, खुश नजर आती. इसलिए मायके वालों को यही लगता था कि वह ससुराल में खुश है.

लेकिन रश्मि की यह खुशी ऊपरी तौर पर थी, जबकि अंदर से वह बहुत दुखी थी. इस की वजह थी पति का शराबी होना. इस में दुख देने वाली बात यह थी कि शराब का घूंट हलक के नीचे उतरते ही विवेक किसी को भी नहीं पहचानता था, वह उस की पत्नी की क्यों न हो. उस स्थिति में अगर रश्मि कुछ कह देती तो विवेक उसे भद्दीभद्दी गालियां तो देता ही था, पिटाई करने में भी पीछे नहीं रहता था.

इस की एक वजह यह भी थी कि विवेक की कल्पना के अनुरूप रश्मि खूबसूरत नहीं थी, इसलिए वह उसे पत्नी नहीं मानता था. पति के इस उपेक्षित व्यवहार को रश्मि ने अपना भाग्य मान लिया था और ससुराल में उस के साथ क्या होता है, मायके वालों से नहीं बताया.

बात उन दिनों की है कि जब रश्मि को 7 माह का गर्भ था. नवरात्र चल रहे थे. विवेक स्टूडियो बंद कर के घर पहुंचा ही था कि उस की मां का फोन आ गया. मां उन दिनों लखनऊ में थी. विवेक ने फोन रिसीव किया तो मां ने बिना हालचाल पूछे ही कहा, ‘‘कैसे कहूं, समझ में नहीं आ रहा है. कहूंगी तो कहोगे कि मेरे पत्नी के पीछे हाथ धो कर पड़ी हूं.’’

‘‘कहो तो बात क्या है?’’ विवेक ने कहा.

‘‘तेरी पत्नी कह रही थी कि बहुओं को पीटना इस घर का रिवाज है. अब तुम्हीं बताओ, मैं ने कब किस के साथ मारपीट की है, जो मुझ पर इस तरह के आरोप लग रहे हैं. जब से सुना है, कलेजे में आग लगी है. पूछ तो अपनी लुगाई से, आखिर वह चाहती क्या है? मांबेटे के बीच दरार क्यों डाल रही है?’’

मां ने ये बातें जिस तरह कही थीं, सुनते ही विवेक की देह में आग लग गई. उस ने आव देखा न ताव, रश्मि पर पिल पड़ा. उस के हाथ में जो भी आया वह उसी से उसे मारता रहा. उस समय उस ने यह भी नहीं सोचा कि रश्मि गर्भवती है. कहीं उल्टासीधा चोट लग गई तो क्या होगा.

आखिर इस पिटाई से रश्मि की हालत बिगड़ गई. वह चलने फिरने लायक नहीं रही. तब विवेक उसे रिक्शे पर बैठा कर ससुराल छोड़ आया. मांबाप और अभिषेक उस की हालत देख कर दंग रह गए. यह सब कैसे हुआ, सभी पूछते रह गए. लेकिन रश्मि ने बताया नहीं. उस ने झूठ बोल दिया कि पीरियड नजदीक होने की वजह से उसे कुछ तकलीफ हो गई है. जिस की वजह से इतनी रात को यहां आ गई.

मांबाप ने उस की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. इस की वजह यह थी कि उस के साथ यह सब जो हुआ था, उस के बारे में उन्होंने कभी सोचा ही नहीं था. उन्होंने उसे आराम करने के लिए कह दिया. विवेक उसे छोड़ कर उसी समय अपने घर लौट गया.

पति ने इतना मारापीटा था, इस के बावजूद रश्मि ने इस बात को दिल से नहीं लिया. शायद यही वजह थी कि उस ने मायके वालों से सच्चाई छिपा ली थी. उसे यह भी पता था कि अगर भाई को सच्चाई का पता चल गया तो हंगामा हो जाएगा. इसलिए चुप रहने में ही सब की भलाई है.

यही सोच कर रश्मि ने इस बात को भुला दिया. 3 दिनों बाद विवेक ने फोन किया. माफी मांगते हुए उस ने कहा कि उसे अपने किए पर काफी पछतावा है. इतने में ही रश्मि का दिल पसीज गया और उस ने विवेक को माफ कर दिया. यही नहीं, उस के साथ वह ससुराल भी आ गई.

रश्मि के ससुराल आने के बाद 2-4 दिनों तक घर का माहौल ठीक रहा. उस के बाद फिर पहले जैसे ही हालात हो गए. छोटीछोटी बातों को ले कर तूफान खड़ा होने लगा. विवेक पहले की तरह फिर रश्मि के साथ बदसलूकी और मारपीट करने लगा. जबकि उसे मना कर लाते समय उस ने वादा किया था कि अब वह उस के साथ न बदसलूकी करेगा न मारपीट. लेकिन घर आते ही वह अपना वादा भूल गया. धीरेधीरे रोज की यही नियति बन गई.

समय पर रश्मि ने बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम श्रद्धा रखा गया. विवेक बेटी को पा कर निहाल था. उस की एप्पुल बुआ उस पर जान छिड़कती थी. वैसे तो सब कुछ ठीक रहता था, लेकिन विवेक की मां के आते ही घर का माहौल खराब हो जाता. वह उलटासीधा पढ़ाती तो मां के प्रेम में अंधा विवेक वही करता, जो मां उसे करने को कहती. जब तक वह घर में नहीं रहती, घर में सुखचैन रहता. वैसे वह ज्यादातर बड़े बेटे बहू के साथ लखनऊ में रहती थी.

श्रद्धा 2-3 महीने की थी, तभी एक दिन विवेक की बहन वंदना ने विवेक और रश्मि को अपने घर खाने पर बुलाया. बेटी को साथ ले कर रश्मि पति के साथ ननद के यहां पहुंची. हंसीठिठोली के बीच विवेक बातबात में रश्मि को जलील करने लगा. रश्मि वहां तो कुछ नहीं बोली, लेकिन घर आ कर वह विवेक से जलील करने की वजह पूछने लगी.

विवेक ने ठीक से जवाब नहीं दिया तो इसी बात पर दोनों में नोकझोंक हो गई. विवेक दूसरे कमरे में जा कर सो गया और रश्मि अपने कमरे में. सुबह रश्मि ने विवेक से कुछ कहा तो रात की खुन्नस निकालने के लिए वह उस की पिटाई करने लगा. पति की इस हरकत से क्षुब्ध हो कर उसी समय रश्मि बेटी को ले कर मायके आ गई.

पाक प्यार में नापाक इरादे

सीधी सादी बीवी का शराबी पति – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के थाना कैंट का सब से व्यवस्ततम है इलाका अग्रसेन चौराहा. फर्नीचर व्यवसायियों की सब से बड़ी मार्केट  होने की वजह से यहां पूरे दिन भीड़ लगी रहती है. इस मार्केट की दुकान ‘गीता फर्नीचर’ काफी बड़ी और प्रतिष्ठित मानी जाती है. फर्नीचर व्यवसायी अभिषेक रंजन अग्रवाल की यह दुकान उन की पत्नी गीता के नाम पर है. दुकान के पीछे ही उन का मकान भी है.

  18 जून, 2013 की रात साढ़े 8 बजे अभिषेक अग्रवाल ने दुकान के कर्मचारियों सनी प्रजापति और राजेंद्र साहनी से दुकान बढ़ाने को कह कर खुद दुकान से बाहर आ कर अपने परिचित रवि अग्रवाल के साथ खड़े हो कर बातें करने लगे. इसी बीच बैंक रोड की ओर से एक मोटरसाइकिल उन के करीब आ कर रुक गई.

  उस पर 2 युवक सवार थे. वे कौन हैं, यह देखने के लिए जैसे ही अभिषेक पलटे, पीछे बैठे युवक ने रिवाल्वर निकाल कर उन पर 2 गोलियां दाग दीं. दोनों ही गोलियां उन के सिर में लगीं. गोलियां लगते ही अभिषेक जहां जमीन पर गिर गए, वहीं मोटरसाइकिल युवक भाग निकले. उन के हाथों में रिवाल्वर थे, इसलिए कोई भी उन्हें रोकने की हिम्मत नहीं कर सका.

  अप्रत्याशित घटी इस घटना से जहां सभी हैरान थे, वहीं पूरी बाजार में हड़कंप सा मच गया था. दोनों नौकर पहले तो भाग कर घायल हो कर गिरे अभिषेक के पास आए. उन्हें तड़पता देख कर सनी जहां रवि अग्रवाल की मदद से उन्हें संभालने लगा, वहीं रवींद्र घर के अंदर की ओर घटना की सूचना देने के लिए भागा.

  घर के सदस्य सूचना पा कर बाहर आते, उस के पहले ही पड़ोस के दुकानदारों ने अभिषेक को एक रिक्शे पर बैठाया और पास के विंध्यवासिनीनगर स्थित स्टार नर्सिंगहोम के लिए रवाना हो गए. पीछेपीछे अभिषेक के घर वाले भी अस्पताल की ओर भागे. लेकिन अभिषेक को अस्पताल ले जाने का कोई फायदा नहीं हुआ. क्योंकि अस्पताल पहुंचने के पहले ही उस की मौत हो चुकी थी. डाक्टरों ने देखते ही उसे मृत घोषित कर दिया था. मौत की जानकारी होते ही घरवाले बिलखबिलख कर रोने लगे.

 सूचना पा कर अभिषेक के तमाम परिचित भी अस्पताल पहुंच चुके थे. किसी ने घटना की सूचना फोन द्वारा  पुलिस कंट्रोलरूम को दे दी थी, जहां से सूचना पा कर थाना कैंट के इंस्पेक्टर टी.पी. श्रीवास्तव सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए थे. वहीं से उन्होंने इस घटना की सूचना अधिकारियों को दे कर खुद अस्पताल जा पहुंचे. इस के बाद वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर, पुलिस अधीक्षक (नगर) परेश पांडेय, क्षेत्राधिकारी (कैंट) वी.के. पांडेय, कोतवाली के इंसपेक्टर बृजेंद्र कुमार सिंह भी वहां पहुंच गए.

  पुलिस ने लाश कब्जे में ले कर औपचारिक काररवाई निपटाने के बाद पोस्टमार्टम के लिए मेडिकल कालेज भिजवा दी. पुलिस ने घटनास्थल से 9 एमएम के 2 खोखे बरामद किए थे. सारी काररवाई निपटाने के बाद थाने लौट कर पुलिस ने मृतक अभिषेक के पिता अर्जुन कुमार अग्रवाल द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर अभिषेक के बहनोई विवेक कुमार लाट, उस के मंझले भाई विनय कुमार लाट तथा 2 अज्ञात बदमाशों के खिलाफ अपराध संख्या 513/2013 पर भादंवि की धारा 302/120 बी/34 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

  मुकदमा दर्ज होने के बाद थाना कैंट पुलिस ने उसी दिन विनय कुमार लाट को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर उस से पूछताछ की गई. पहले तो वह पुलिस को बरगलाता रहा, लेकिन वह कोई पेशेवर अपराधी तो था नहीं, इसलिए पुलिस ने जब उस के साथ थोड़ी सख्ती की तो उसे टूटते देर नहीं लगी. उस ने स्वीकार कर लिया कि उसी ने सुपारी दे कर किराए के हत्यारों से अभिषेक की हत्या कराई थी. विनय द्वारा अपराध स्वीकार कर लेने और हत्यारों के नाम बता देने के बाद पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

  इस मामले में नामजद दूसरा अभियुक्त विनय का भाई विवेक पहले से ही जेल में बंद था. पुलिस अन्य अभियुक्तों की तलाश में जुट गई. इस मामले में सोचने वाली बात यह थी कि आखिर बहनोई के बड़े भाई ने ही छोटे भाई के साले की हत्या क्यों कराई? अभिषेक का बहनोई जेल में क्यों बंद था? यह सब जानने के लिए हमें थोड़ा पीछे चलना होगा.

  गोरखपुर के थाना कैंट के रहने वाले 72 वर्षीय अर्जुन कुमार अग्रवाल ढुनमुनदास बालमुकुंद दास इंटर कालेज से 30 जून, 2003 को रिटायर होने के बाद अपने एकलौते बेटे अभिषेक रंजन के साथ उस के व्यवसाय में हाथ बंटाने लगे थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 4 बच्चों में 3 बेटियां रश्मि, शालिनी, दिवीता और एकलौता बेटा अभिषेक रंजन था. उन का यह बेटा तीसरे नंबर पर था.

  अध्यापक होने की वजह से अर्जुन कुमार खुद तो संस्कारी थे ही, उन के चारों बच्चे भी उन्हीं की तरह संस्कारी थे. अर्जुन की बड़ी बेटी रश्मि सीधीसादी, बेहद सुशील थी. उस ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय से संस्कृत से एमए करने के बाद नेट परीक्षा भी पास कर ली थी. अर्जुन कुमार अग्रवाल के सभी बच्चे इसी तरह पढ़ेलिखे थे. बायोलौजी से प्रथम श्रेणी में बीएससी करने के बाद अभिषेक रंजन अग्रवाल ने पढ़ाई छोड़ कर व्यवसाय की ओर कदम बढ़ाया था. अपने घर के आगे पड़ी जमीन में दुकान बनवा कर उस ने फर्नीचर और हार्डवेयर का काम शुरू कर दिया था. जल्दी ही उस का यह व्यवसाय चल निकला.

  घर में हर तरह से खुशहाली थी. रश्मि शादी लायक हुई तो अर्जुन कुमार उस के लिए लड़का ढूंढ़ने लगे. एक दिन अर्जुन कुमार अग्रवाल की नजर स्थानीय अखबार के शहनाई कालम में ‘वधु चाहिए’ में छपे एक विज्ञापन पर पड़ी तो उन्हें लगा कि यहां बात बन सकती है. यह विज्ञापन रामस्वरूप लाट ने अपने बेटे के विवाह के लिए छपवाया था. उस  में फोन नंबर भी दिया था, इसलिए अर्जुन कुमार अग्रवाल ने तुरंत फोन कर के बात कर ली.

  आखिर वहां बात बन गई. जल्दी गोदभराई कर के कुल 15 दिनों में अर्जुन कुमार ने अपनी बड़ी बेटी रश्मि का विवाह रामस्वरूप लाट के बेटे विवेक कुमार से कर दिया था. पहली और बड़ी बेटी का विवाह था, इसलिए अर्जुन कुमार ने अपनी हैसियत से कहीं ज्यादा इस शादी में खर्च किया था.

रामस्वरूप लाट ने यह विवाह इतनी जल्दी में कराया था कि अर्जुन कुमार को मौका ही नहीं मिला था कि वह लड़के या उस के घर वालों के बारे में ठीक से पता कर पाते. बाद में जो पता चला, उस के अनुसार गोरखपुर की कोतवाली के आर्यनगर के दक्षिणी हुमायूंपुर मोहल्ले के राज नर्सिंग होम के पास रहने वाले रामस्वरूप लाट ठेकेदारी करते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 4 बेटे, कमलेश कुमार लाट, विनय कुमार लाट, विवेक कुमार लाट, विकास कुमार लाट तथा 3 बेटियां, कमला, वंदना और एप्पुल थीं.

खुला नहीं उनकी मौत का रहस्य

अंकिता अग्रवाल उत्तर प्रदेश के जिला फैजाबाद की रहने वाली थी. उस के पिता अनिल कुमार  अग्रवाल का सोनेचांदी के गहनों का कारोबार था. पिता की लाडली तो वह थी ही, मां विमला और भाई अभिषेक भी उसे बहुत प्यार करते थे. अंकिता बीए की परीक्षा दे रही थी, तभी उस के पिता ने उस की शादी की बात चला दी.

अंकिता देखने में तो सुंदर थी ही, मासूम और सुशील भी थी. पिता चाहते थे कि उस की शादी किसी ऐसे लड़के से हो, जो उसे जीवन भर खुश और सुखी रख सके. काफी तलाश के बाद उन्हें अंकिता के लिए अमित अग्रवाल मिला तो वह उन्हें अपनी भोलीभाली बेटी के लिए योग्य वर लगा.

अमित अग्रवाल मथुरा के गुदड़ी बाजार का रहने वाला था. उस के पिता माधवराम अग्रवाल की मथुरा में के.डी. ज्वैलर्स के नाम से सोनेचांदी के गहनों की दुकान थी. अमित का परिवार मथुरा का बड़ा कारोबारी घराना माना जाता था. सोनेचांदी की दुकान के साथसाथ उस के अन्य कई कारोबार थे.

अनिल कुमार अग्रवाल को अंकिता और अमित की जोड़ी हर तरह से ठीक लगी थी. यही वजह थी कि 13 जुलाई, 2005 को उन्होंने बड़े धूमधाम से अंकिता की शादी अमित से कर दी. शादी के कुछ दिनों बाद अमित ने लखनऊ के चौक बाजार में अपनी सोनेचांदी की दुकान खोलने का विचार किया. अमित और अंकिता, दोनों के ही तमाम नातेरिश्तेदार लखनऊ में सोनेचांदी की दुकानें चलाते थे. उन्हीं लोगों की मदद से अमित ने मथुरा के के.डी. ज्वैलर्स की एक अन्य दुकान यानी शाखा लखनऊ के चौक बाजार के सुरंगी टोला में खोल दी.

अमित जल्द से जल्द अमीर होना चाहता था, इसलिए वह गहनों के कारोबार से जुड़े गैरकानूनी काम करने लगा. समय के साथसाथ अमित और अंकिता 2 बच्चों के मांबाप बन गए थे. बेटी वाणी बड़ी थी तो बेटा दिव्यांश छोटा था.

बच्चे स्कूल जाने लायक हुए तो उन का दाखिला लखनऊ के रेडहिल स्कूल में करा दिया गया. कारोबार को बढ़ाने के लिए अमित ने अपनी ससुराल वालों यानी अंकिता के घर वालों से भी मदद ली थी.

अंकिता के साथ अमित को जिस तरह का प्यार और व्यवहार करना चाहिए था, वह वैसा नहीं करता था. इस से अंकिता परेशान रहती थी. अंकिता ये बातें मायके वालों को बता कर उन्हें परेशान नहीं करना चाहती थी. इस की वजह यह थी कि उस के पिता अनिल कुमार अग्रवाल की तबीयत ठीक नहीं रहती थी. लेकिन बच्चे अपनी परेशानी या दुख कितना भी छिपाएं, मांबाप तो चेहरे के हावभाव से ही सब जान लेते हैं.

अंकिता भले ही अपने मन की बात मांबाप से नहीं कह रही थी, लेकिन मां उस की परेशानी को अच्छी तरह से समझ रही थी. लेकिन वह जब भी कुछ पूछती, अंकिता कुछ बताने के बजाए बात को टाल जाती थी.

कभी वह इतना जरूर कह देती, ‘‘मां, आप लोगों ने हमारे लिए रिश्ता बहुत अच्छा खोजा है, फिर भी मेरे साथ जो होना होगा, वह होगा ही. फिलहाल मुझे कोई परेशानी नहीं है.’’

इसी बीच अंकिता के पिता की मौत हो गई. अंकिता की मां विमला का कहना है कि अंकिता के पिता का उस की ससुराल और पति पर काफी दबाव रहता था. इस वजह से वे लोग अंकिता के साथ कोई गलत व्यवहार नहीं कर पाते थे. अमित को लगता था कि अगर कोई बात अंकिता के पिता को पता चल गई तो वह हंगामा खड़ा कर देंगे. लेकिन उस के पिता की मौत के बाद वह दबाव खत्म हो गया, जिस से अमित अंकिता को परेशान करने लगा. अंकिता हालात बेहतर होने की उम्मीद में सब सहती रही.

विमला अग्रवाल के अनुसार, 18 अगस्त, 2013 को अमित अंकिता और दोनों बच्चों को ले कर इनोवा कार से अचानक कहीं चला गया. जाने से पहले उस ने अपने घर वालों या ससुराल  वालों को कुछ बताने के बजाए अपने मैनेजर राजेश पांडे को सिर्फ एक पत्र लिखा था, ‘मैं बहुत परेशान हूं. मरने जा रहा हूं. पैसे का लेनदेन तो चलता ही रहता है, लेकिन कैलाश चाचा, रानू और मनोज ने परेशान कर रखा है. वे मुझे बहुत अपमानित करते हैं. अब जीने की इच्छा नहीं रही. इसलिए मरने जा रहा हूं. आप लेग दूसरी जगह नौकरी कर लीजिएगा.’

अगले दिन अमित की इनोवा कार इलाहाबाद के दारागंज में लावारिस हालत में खड़ी मिली. अंकिता की मां का कहना है कि अमित के गायब होने के बाद योजना के अनुसार अमित के करीबी लोगों ने अफवाह फैला दी कि अमित पर 25 करोड़ रुपए की देनदारी हो गई थी. वह बकाया चुकाने की हालत में नहीं था, इसलिए परिवार के साथ कहीं भाग गया.

अंकिता के भाई अभिषेक ने लखनऊ की चौक कोतवाली में इंसपेक्टर आई.पी. सिंह ने मिल कर अमित, बहन अंकिता और भांजेभांजी की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी. इस की जांच सबइंसपेक्टर दिनेश सिंह को सौंपी गई. बकायेदारी की बात का पता चलने पर पुलिस को लगा कि कुछ दिनों बाद अमित खुद ही वापस आ जाएगा. इसलिए लखनऊ पुलिस ने अमित की खोज के लिए सर्विलांस का भी सहारा नहीं लिया. अगर पुलिस तत्काल अमित के घर और करीबी लोगों के फोन सर्विलांस पर लगा देती तो शायद कोई न केई नतीजा जरूर निकल आता.

अमित की तलाश में केवल अंकिता का परिवार जुटा था. अभिषेक का कहना है कि अमित का परिवार किसी भी तरह का सहयोग नहीं कर रहा था. इसी तरह समय गुजरता रहा. अचानक 15 दिसंबर को अंकिता के भाई अभिषेक के मोबाइल फोन पर उड़ीसा के जिला पुरी से पुलिस का फोन आया. पुरी की पुलिस ने उसे बताया कि अंकिता और उस के दोनों बच्चे वहां के होटल जमींदार पैलेस के कमरा नंबर 307 मृत पाए गए हैं.

पुरी पुलिस की इस सूचना पर अभिषेक पत्नी श्रद्धा और मां विमला अग्रवाल के साथ पुरी पहुंचा. अभिषेक के अनुसार होटल के कमरे में अंकिता और बच्चों के शव बिस्तर पर पड़े मिले थे. बिस्तर की चादर और तकिया खून से सने थे. होटल के कमरे में जहर की शीशी भी पड़ी थी. इस से अंदाजा लगाया गया कि अंकिता और उस के बच्चों को जहर दे कर बेहोश किया गया था. उस के बाद उन्हें बेरहमी से पीटा गया था. फिर सब की गला दबा कर हत्या कर दी गई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, अंकिता के शरीर में चोट के 5 निशान पाए गए थे. शरीर की हड्डी 4 जगह से टूटी थी. अभिषेक का कहना है कि ये लोग पहले पुरी के अन्य होटलों में ठहरे थे. 22 नवंबर को होटल जमींदार पैलेस आए थे. यह अच्छा होटल था. यहां अमित ने सी-फेसिंग कमरा लिया था, जिस का एक दिन का किराया 7500 रुपए था. घटना वाली रात होटल में पार्टी चल रही थी, इसलिए होटल का सारा स्टाफ उस में लगा था. कमरा समुद्र की ओर वाला था, इसलिए तेज हवाओं के शोर की वजह से अंकिता की चीखपुकार किसी को सुनाई नहीं दी थी.

अंकिता के भाई अभिषेक के अनुसार, लाशों के गले में तुलसी की माला और शरीर पर कालेसफेद तिल पड़े मिले थे. इस से अंदाजा लगाया गया कि मरने के बाद उन के क्रियाकर्म की कोशिश की गई थी. बाद में पुलिस ने होटल का वह कमरा डुप्लीकेट चाबी से खोला था.

कमरे में कागज का एक टुकड़ा मिला था, जिस पर अभिषेक के फोन नंबर के साथ लिखा था कि इस नंबर पर घटना की सूचना दी जाए. पुलिस जांच में पता चला कि अमित ने होटल के रजिस्टर में अपना पता मथुरा वृदांवन लिखाया था. पते के साथ उस ने जो मोबाइल नंबर लिखाया था, वह पहले से ही बंद था.

अभिषेक ने अंकिता और उस के बच्चों का अंतिम संस्कार कर दिया था. वह अपने बहनोई अमित और उस के घर वालों के खिलाफ बहन और उस के बच्चों की हत्या का मुकदमा नामजद दर्ज कराना चाहता था. उस का कहना है कि अमित के पिता माधवराम ने भाजपा के एक स्थानीय विधायक से पैरवी करा दी, जिस से पुरी पुलिस ने दबाव में आ कर हत्या का मुकदमा नामजद दर्ज करने के बजाए अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कर के जांच शुरू की.

अंकिता की मां विमला अग्रवाल का कहना है कि पहले तो उन्हें लग रहा था कि उड़ीसा की पुरी पुलिस अमित को खोज लेगी. लेकिन जैसेजैसे समय बीतता गया, उन की उम्मीद धूमिल होती गई. पुरी पुलिस ने इस मामले की जानकारी लखनऊ पुलिस को भी दी थी. दोनों ने तथ्यों का अदानप्रदान भी किया था, लेकिन मामले का कोई हल नहीं निकला.

अंकिता के भाई अभिषेक का कहना है कि अंकिता और उस के बच्चों की हत्या में उस के पति अमित का हाथ है. उस की मदद उस के घर वाले कर रहे हैं. ऐसा भी हो सकता है कि उन की मदद से वह देश से बाहर चला गया हो. अगर अमित के घर वाले उस की मदद न कर रहे होते तो वह इतने लंबे समय तक पुरी के महंगे होटलों में नहीं रह सकता था.

अंकिता की मां विमला अग्रवाल का कहना है कि अगर अमित सही मायने में गायब होता तो उस के घर वाले उस की तलाश में जमीनआसमान एक कर देते. अमित के गायब होने से उस के घर वाले जरा भी परेशान नजर नहीं आ रहे हैं. उन्होंने उस की खोज भी नहीं की. वे चाहते तो अमित की तलाश में अखबार में उस का फोटो छपवाते, टीवी पर दिखवाते, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं कराया.

विमला अग्रवाल का कहना है कि लखनऊ पुलिस ने भी इस मामले में कम लापरवाही नहीं की. अमित और अंकिता के गायब होने के बाद पुलिस को गुमशुदगी की रिपोर्ट को अपहरण की धारा में बदल कर जांच करनी चाहिए थी. लेकिन ऐसा नहीं किया गया. पुरी पुलिस के साथ मिल कर भी लखनऊ पुलिस ने कोई छानबीन नहीं की.

अंकिता के घर वालों ने न्याय पाने के लिए लखनऊ में कैंडिल मार्च निकाल कर पुलिस प्रशासन पर दबाव बनाने की भी कोशिश की थी. पुलिस के बड़े अफसरों के अलावा फैजाबाद के सांसद एवं उत्तर प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष निर्मल खत्री और अयोध्या के विधायक अखिलेश सरकार के मंत्री तेजनारायण पांडेय से भी अपनी व्यथा सुनाई थी. सभी ने न्याय दिलाने और सही जांच कराने का भरोसा दिलाया था, लेकिन हकीकत में कुछ हुआ नहीं.

अंकिता के भाई अभिषेक अग्रवाल का कहना है कि अमित के घर वालों की सत्ता में पहुंच है, इसलिए पुलिस निष्पक्ष जांच नहीं कर रही है. अगर लखनऊ पुलिस ने शुरू में ही अमित के खिलाफ सख्त कदम उठाया होता तो अंकिता और उस के बच्चे आज जिंदा होते. अंकिता की मां विमला अग्रवाल का कहना है कि अब हमें सिर्फ सीबीआई जांच पर भरोसा है. हम उसी की मांग कर रहे हैं.

कितने शर्म की बात है कि अगस्त से अब तक 8 महीने बीत जाने के बाद भी 2-2 राज्यों की पुलिस अंकिता और उस के बच्चों की हत्या का राज खोलने में पूरी तरह से नाकाम रही है. ऐसे में पुलिस की वैज्ञानिक और खोजपूर्ण जांच की बातें पूरी तरह से खोखली और बेमानी नजर आती हैं. जब तक अमित का पता नहीं चलता, तब तक हत्या की वजह और हत्यारे के बारे में नहीं जाना जा सकता.

अंकिता के करीबियों का कहना है कि अमित देश में ही कहीं छिपा है. उस के घर वालों को पता भी है. लेकिन वे बता नहीं रहे हैं. जबकि अमित के घर वाले इस बात को गलत बता रहे हैं. उन का कहना है, ‘‘हम तो चाहते हैं कि अमित जल्द से जल्द वापस आ जाए. जिस से सच्चाई का खुलासा हो सके.’’

—कथा अंकिता की मां और भाई के बयान पर आधारित

पत्नी जब न बनी दोस्तों का बिछौना – भाग 4

सरिता एक सप्ताह तक खाट पर पड़ी रही तथा दर्द से छटपटाती रही. उस ने मारपीट की शिकायत न तो पुलिस में की और न ही मायके वालों को कुछ बताया. वह नहीं चाहती थी कि उस का परिवार बिखरे और वह दरदर की ठोकरें खाने को मजबूर हो. पति आज नहीं तो कल सुधर ही जाएगा.

लेकिन सरिता की यह सोच गलत थी. सरिता की चुप्पी से रमन को बढ़ावा मिला. वह उस पर और जुल्म ढाने लगा. सरिता का पति रमन सिर से पांव तक कर्ज में डूबा था. इस कर्ज को उतारने के लिए वह सरिता को गलत रास्ते पर ढकेलने की कोशिश कर रहा था. सरिता उस की बात मानने को राजी नहीं थी. जिस से वह उसे आए दिन शराब पी कर पीटता था. कभीकभी तो घर के बाहर भी निकाल देता था.

ससुर ने रमन को सुनाई खरीखोटी

सरिता पति के जुल्म सह रही थी. उस ने मायके वालों को इसलिए कभी कुछ नहीं बताया कि उस के मातापिता उस के गम में डूब जाएंगे, लेकिन इस के बावजूद किसी तरह उस के पिता कमलेश को बेटी पर ढाए जा रहे जुल्मों की बात पता चल गई. तब कमलेश पाल ने दामाद रमन को खूब बुराभला कहा और सुधर जाने की नसीहत दी. न सुधरने पर किसी हद तक जाने की धमकी भी दी.

कमलेश पाल की इस धमकी ने आग में घी का काम किया. शिकायत को ले कर रमन ने सरिता को खूब पीटा. उस दिन तो वह इतना हैवान बन गया कि पानी भरे टब में उस ने सरिता के बाल पकड़ कर उस के चेहरे को कई बार डुबोया. मासूम बेटी जोरजोर से रोने लगी तो उस के हाथ रुके. अन्यथा वह सरिता को डुबो कर मार ही डालता.

30 अगस्त, 2023 को रक्षाबंधन का त्योहार था. सरिता भाई को राखी बांधने मायके गहलों जाने लगी तो रमन ने मना कर दिया. मायके जाने को ले कर सरिता और रमन में बहस होने लगी. इसी बहस में रमन ने सरिता की पिटाई कर दी. लेकिन पिटाई के बावजूद सरिता नहीं मानी और बेटी को साथ ले कर मायके आ गई. यहां सरिता ने मारपीट की बात घर वालों को बताई तो उन का पारा चढ़ गया.

दूसरे रोज ही रमन ससुराल पहुंच गया. तब कमलेश पाल ने रमन को जम कर फटकार लगाई और खूब बेइज्जत किया. सरिता को भी साथ भेजने से इंकार कर दिया. सरिता ने भी रमन को बेइज्जत किया. अपमान का घूंट पी कर रमन वापस लौट आया. शाम को उस ने दोस्त अखिल व रंजीत संग शराब पी. फिर उस ने बेइज्जती वाली बात दोस्तों को बताई और सरिता को ठिकाने लगा कर बदला लेने की बात कही.

नशे में धुत अखिल व रंजीत दोस्त रमन का साथ देने को तैयार हो गए. इस की वजह यह भी थी कि अखिल व रंजीत को सरिता ने कई बार बेइज्जत किया था और घर से भगाया था. इस के बाद रमन, अखिल व रंजीत ने सरिता के अपहरण व हत्या की योजना बनाई. इस योजना में रंजीत ने अपने दोस्त सौरभ गौतम को भी शामिल कर लिया.

आखिर सरिता को लगा दिया ठिकाने

5 सितंबर, 2023 की सुबह 10 बजे रमन ने सरिता से मोबाइल फोन पर बात की और मारपीट के लिए माफी मांगी. साथ ही कहा कि वह शाम को उसे लेने आएगा, इंकार मत करना. सरिता से बात करने के बाद रमन ने चौबेपुर बाजार के शराब ठेके पर रंजीत, अखिल व सौरभ को बुलाया. कुछ देर में तीनों वहां आ गए. सभी ने बैठ कर शराब पी फिर सरिता की हत्या की योजना बनाई.

योजना के तहत शाम 6 बजे रंजीत, अखिल व सौरभ, केशरी निवादा गांव के पास नहर पट्टी सड़क पर गगनी देवी मंदिर के पास पहुंच गए. पीछे से रमन भी बाइक से वहां आ गया. सभी ने मिल कर आसपास के जंगल एरिया का जायजा लिया फिर आपस में बात की. इस के बाद दोस्तों को वहीं छोड़ कर रमन अपनी ससुराल गहलों चला गया.

गहलों पहुंच कर रमन ने सरिता को फोन कर गांव के बाहर बुला लिया फिर वह सरिता व बेटी अनिका को बाइक पर बिठा कर अपने घर की ओर चल पड़ा. अब तक सूरज छिप चुका था और अंधेरा छाने लगा था. रमन धीमी गति से बाइक चलाता हुआ केशरी निवादा गांव के पास पहुंचा.

तभी वहां स्थित देवी मंदिर के पास योजना के तहत अखिल, रंजीत व सौरभ ने रमन की बाइक रोक ली. सरिता कुछ समझ पाती, उस के पहले ही उन तीनों ने सरिता को दबोच लिया और घसीटते हुए जंगल की ओर ले गए. पीछे से रमन भी पहुंच गया. सरिता ने अपनी जान जोखिम में देखी तो वह उन से भिड़ गई. सभी ने मिल कर सरिता को खूब पीटा फिर उसी की चुनरी से उस का गला घोंट दिया और शव को बबूल के पेड़ के नीचे छोड़ आए.

हत्या करने के बाद अखिल, रंजीत व सौरभ तो फरार हो गए, लेकिन रमन पाल सड़क पर आया, जहां उस ने बाइक खड़ी की थी और मासूम बेटी अनिका डरीसहमी बैठी थी. उस ने ब्लेड से अपना हाथ जख्मी किया फिर शोर मचाने लगा.

रमन का शोर सुन कर कुछ लोग इकट्ठा हो गए. उन लोगों को उस ने बताया कि उसे जख्मी कर बदमाशों ने उस की पत्नी सरिता का अपहरण कर लिया है. कुछ देर बाद रमन ने पहले अपने ससुर कमलेश पाल को सरिता के अपहरण की सूचना दी फिर थाना शिवली पुलिस को सूचना दे दी.

सूचना पा कर शिवली थाने के एसएचओ एस.एन. सिंह घटनास्थल पहुंचे और सर्च औपरेशन शुरू किया. दूसरे रोज सरिता की लाश मिली.

8 सितंबर, 2023 को थाना शिवली पुलिस ने आरोपी रमन पाल, अखिल पाल व रंजीत को कानपुर देहात की कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल माती भेज दिया गया. सौरभ गौतम कथा लिखने तक फरार था. पुलिस उसे तलाश रही थी. मासूम अनिका नाना कमलेश के संरक्षण में रह रही थी.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पत्नी जब न बनी दोस्तों का बिछौना – भाग 3

सरिता मम्मी से छिपा गई हकीकत

कुछ समय बाद सरिता मायके गई तो उस का गिरा हुआ स्वास्थ्य देख कर उस की मम्मी को दुख हुआ. शादी के

पहले सरिता का खिला हुआ गुलाब सा चेहरा किसी लंबी बीमारी के मरीज जैसा मुरझा गया था. उस की आंखों के नीचे कालेकाले घेरे भी बन गए थे.

“यह तुझे क्या हो गया बेटी?’’ सरिता की मम्मी ने उस के सिर पर हाथ फेर कर पूछा, “तुझे ससुराल में कुछ तकलीफ है क्या, जो तेरी हालत ऐसी हो गई है?’’

“नहीं मम्मी, ऐसी कोई बात नहीं है,’’ सरिता फीकी मुसकराहट चेहरे पर लाती हुई बोली, “ससुराल में तो मैं बहुत खुश हूं.’’

दरअसल, सरिता नहीं चाहती थी कि वह ससुराल वालों की घटिया आदतों का बयान कर घर वालों को दुखी करे. इसलिए वह अपने दुखों का जहर खुद ही पी गई थी.

शादी के डेढ़ साल बाद सरिता ने एक बच्ची को जन्म दिया. इस का नाम उस ने अनिका रखा. अनिका के जन्म से सरिता तो खुश थी, लेकिन सासससुर व पति खुश न थे. ये लोग चाह रहे थे कि सरिता के बेटा पैदा हो. लेकिन जब बेटी पैदा हो गई तो उमा अकसर सरिता को जलीकटी सुनाने लगी. सरिता जवाब देती तो रमन उसे रुई की तरह धुन देता.

इन्हीं दिनों रमन में एक और बुराई घर कर गई. वह दोस्तों के साथ जुआ खेलने लगा. उस ने घर में पैसे देने भी बंद कर दिए. कभीकभी तो वह फैक्ट्री में मिलने वाले सारे पैसे जुए में हार जाता, जिस से घर में कलह होती. रामपाल सासबहू के झगड़े व बेटे की मारपीट से पहले ही परेशान था. इस जुए की मुसीबत ने उसे और विचलित कर दिया. इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए उस ने रमन को घर से बेदखल कर दिया.

इस के बाद रमन सरिता व बेटी अनिका के साथ अलग घर में रहने लगा. अलग होने के बाद सरिता तो खुश थी. क्योंकि उसे सास के तानों, झूठी शिकायतों और जलीकटी बातों से छुटकारा मिल गया था. लेकिन रमन खुश नहीं था, क्योंकि घरगृहस्थी का सारा बोझ अब उसी के कंधों पर आ गया था.

रमन पाल को फैक्ट्री में मामूली तनख्वाह मिलता था. उस से उस का घर का खर्च पूरा नहीं हो पाता था. वह खानेपीने का सामान चौबेपुर कस्बे की एक दुकान से लाता था. इस दुकान का मालिक अखिल पाल था. अखिल पाल रमन का बचपन का दोस्त था. आठवीं कक्षा तक दोनों साथसाथ पढ़े थे. रमन अलग रहने लगा तो अखिल उस के घर आनेजाने लगा. अखिल शराब पीने का आदी था.

दोस्त के कर्ज में दबता गया रमन

घर आतेजाते अखिल की नजर रमन की खूबसूरत पत्नी सरिता पर जमने लगी. रूपयौवन से भरपूर सरिता को अखिल पाल जब भी देखता तो मदहोश हो उठता था. रमन के घर आने पर अखिल की निगाहें सरिता को ही ढूंढा करती थीं.

सरिता को पाने के लिए धीरेधीरे उस ने रमन पर अपना जाल फेंकना शुरू कर दिया. अखिल ने मामूली तनख्वाह पाने वाले रमन को भी शराब आदि पीने का शौक लगा दिया. रमन पाल को जब भी पैसों की जरूरत होती तो अखिल से उधार ले लेता था. अखिल के कर्ज के नीचे दबे होने के कारण रमन उस की किसी बात से इंकार नहीं करता था.

सरिता को पाने की चाहत में अखिल ने अपने उधार के रुपए मांगने के बजाय उसे घर का सामान तथा पैसे भी देने शुरू कर दिए. शराब की महफिल भी रमन के घर जमने लगी. हालांकि रमन अखिल पाल की विशेष कृपा के पीछे उस के इरादे से वाकिफ था, लेकिन आराम, सुविधा व पैसे के लालच में फंसे रमन ने अखिल को सरिता के साथ बैठने व बतियाने की खुली छूट दे दी.

शुरू में तो सरिता ने इस इस ओर ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब अखिल मनमानी करने लगा तो सरिता का माथा ठनका. शराब के नशे में जब एक रोज उस ने सरिता का हाथ पकड़ा और उस के साथ छेड़छाड़ करने लगा तो सरिता ने उस के गाल पर तमाचा जड़ दिया और उसे घर के बाहर खदेड़ दिया. अपमानित हो कर अखिल वहां से चला गया.

अखिल ने सरिता द्वारा की गई बेइज्जती की शिकायत रमन से की तो वह गुस्सा हो गया. शराब पी कर वह घर आया और सरिता की जम कर पिटाई कर दी. इस के बाद तो यह सिलसिला ही चल पड़ा. रात को अकसर वह शराब पीने के बाद बात बेबात सरिता को पीटता और उस के साथ गालीगलौज करता. सरिता अच्छी तरह जानती थी कि रमन उस के साथ मारपीट अखिल के उकसाने पर करता है.

रमन सरिता को परोसना चाहता था दोस्तों के सामने

एक शाम शराब की बोतल ले कर अखिल अपने शराबी दोस्त रंजीत उर्फ गुल्लू के साथ रमन के घर आया. रमन उन दोनों से ऐसे गले मिला जैसे वे दोनों उस के सगे भाई हों. इस के बाद महफिल जमी और तीनों ने शराब पी. कुछ देर तीनों शोरशराबा करते रहे, फिर रमन घर के बाहर चला गया.

सरिता कमरे में अकेली थी और अपनी बेटी अनिका को थपकी दे कर सुलाने की कोशिश कर रही थी. तभी भड़ाक से दरवाजा खुला. सामने अखिल व रंजीत खड़े थे. उन दोनों की आंखों में वासना के डोरे तैर रहे थे. सरिता को उन दोनों ने दबोचना चाहा तो वह भाग कर रसोई में जा पहुंची. वे दोनों वहां भी आ पहुंचे.

बचाव के लिए सरिता ने रसोई में रखा चाकू उठा लिया और बोली, “चले जाओ वरना पेट में चाकू घुसेड़ दूंगी. भूल जाऊंगी कि तुम मेरे पति के दोस्त हो.’’

सरिता के ये तेवर देख कर अखिल और रंजीत डर गए. उन का नशा उड़नछू हो गया. कुछ देर बाद रमन घर वापस आया तो दोनों ने सरिता की शिकायत की.

इस पर रमन ने सरिता को फिर पीटा और बोला, “साली, हरामजादी, कुतिया तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरे दोस्तों से भिड़ने की. हम तीनों एक प्याला, एक निवाला हैं. हर चीज मिलबांट कर खाते हैं. तुझे उन की बात मान लेनी चाहिए थी.’’

पति की बेहूदा बात सुन कर सरिता गुस्से से बोली, “लोग अपनी इज्जत बचाने के लिए दूसरों का खून तक कर देते हैं और एक तुम हो जो पत्नी को यारों के सामने परोसना चाहते हो. छि घिन आती है तुम पर. धिक्कार है तुम्हारी मर्दानगी पर.’’

यह सुनते ही रमन दांत पीसते हुए बोला, “मादरचो…रंडी. मुझे पाठ पढ़ा रही है. बेइज्जत कर रही है. आज मैं तेरी हड्डीपसली एक कर दूंगा.’’ कहते हुए रमन इंसान से हैवान बन गया. उस ने सरिता को पीटपीट कर उस की देह सुजा दी.

क्या होगा जब सरिता के पिता को रमन की सच्चाई पता लगेगी? जानने के लिए पढ़ें Family Crime Story का अंतिम भाग.