बदनामी सह न सकी बदनाम औरत

फिलिप्स हर उस बदनाम गली और अड्डे पर हो आया था, जहां अकसर जाया करता था.  लेकिन कहीं भी उस का मन घंटे भर तो क्या, पल भर भी बैठने को नहीं हुआ. रंगीनमिजाज फिलिप्स ने किसी एक का हो कर रहना सीखा ही नहीं था. 30 साल का होने के बावजूद उस ने शादी नहीं की थी. शादी की उस ने जरूरत ही नहीं महसूस की, क्योंकि वह 15-16 साल का था, तभी से बदनाम गलियों का चक्कर लगाने लगा था.

सारा दिन वह मेहनत कर के जो भी कमाता था, उस का एक बड़ा हिस्सा बदनाम औरतों के साथ कुछ समय गुजार कर खर्च कर देता था. तभी तो वह हर बदनाम गली की हर बदनाम औरत का नाम ही नहीं, उस के शरीर की नापतौल भी बता सकता था.

फिलिप्स में एक आदत यह थी कि वह जिस औरत के साथ एक बार समय गुजार लेता था, उस के पास दोबारा नहीं जाता था. जब उन गलियों में उसे कोई नई औरत बैठने को नहीं मिली तो वह बीयर बार चला गया.  बीयर बार में शराब के 4-5 बड़े पैग गले से नीचे उतरे तो वहां भी उस का मन नहीं लगा, बल्कि उस की इच्छा और बढ़ गई. वहां की बारगर्ल्स के अधखुले अंगों को देख कर उस का मन और बेचैन हो उठा. मन तो किया, उन्हीं में से किसी को साथ बैठने का औफर दे दे, लेकिन वे ऐसा काम नहीं करती थीं, इसलिए वह उन्हें सिर्फ छू कर रह गया था.

फिलिप्स अभी कुछ कदम ही आगे बढ़ा था कि उस की नजर एक साइबर कैफे पर पड़ी. वह साइबर कैफे में घुस गया और वहां एक कंप्यूटर के सामने जा बैठा. उस ने वहां कालगर्ल्स की साइटें खोल कर खंगालनी शुरू कीं. उस की मेहनत रंग लाई और उस की पसंद की एक कालगर्ल मिल गई.

वह हसीन तो थी ही, उस की अदाएं भी कातिल थीं. उस के शरीर पर 2 ही कपड़े थे, एक ब्रा और दूसरी पैंटी. गोरे रंग पर गुलाबी रंग के ये दोनों कपड़े खूब फब रहे थे. फिलिप्स की नजर स्क्रीन पर उभरे फोटो से हट ही नहीं रही थी. मन कर रहा था, हाथ डाल कर खींच ले. साइट पर दिए विवरण को पढ़ कर फिलिप्स जैसे उस में डूबा जा रहा था. अंत में लिखा था, ‘अगर दीदार करना है तो एक पल का भी इंतजार न करें. तुरंत दिए मोबाइल नंबर पर फोन करें.’

दिए गए मोबाइल नंबर पर फिलिप्स ने फोन किया तो दूसरी ओर से एक मीठी और सैक्सी आवाज आई, ‘‘बहुत देर कर दी, इतनी देर तक क्या सोचते रहे? सोचविचार में कितने हसीन पल गंवा दिए? मेरे बारे में तो सब जान ही लिया है. अब कीमत सुन लो. एक घंटे के मात्र 3 सौ डौलर, ज्यादा नहीं हैं न? जन्नत की सैर के लिए यह रकम कोई ज्यादा नहीं है.’’

‘‘मुझे यह कीमत मंजूर है. तुम कहां मिलोगी?’’ फिलिप्स ने पूछा.

‘‘मेरे यहां ही आ जाओ. पता है—द हाउस विद लाइट्स औन. और हां, अब देर मत करो. मैं इंतजार कर रही हूं.’’

‘‘आप ने अपना नाम तो बताया ही नहीं?’’ फिलिप्स ने पूछा.

‘‘वैसे नाम की क्या जरूरत है. लेकिन आप पूछ रहे हैं तो बता देती हूं, मुझे ब्रांडी कहते हैं.’’ इतना कह कर दूसरी ओर से फोन काट दिया गया.

फिलिप्स तो कब से बेचैन था. पैसे उस की जेब में थे ही, उस ने टैक्सी पकड़ी और द हाउस विद लाइट्स औन पहुंच गया. यह शहर से थोड़ा हट कर एक कम रिहायशी इलाके में बनी आलीशान कोठी थी. सड़क पर ज्यादा भीड़भाड़ भी नहीं थी. कोठी के नीचे जरूर कुछ नौजवान टहल रहे थे.

कोठी नाम के एकदम अनुरूप थी. लाइट हलकी जरूर थी, पर जगमगा रही थी. देख कर यही लग रहा था कि यहां कभी रात होती ही नहीं.  फिलिप्स अंदर घुसते हुए सहमा सा था. वह अंदर पहुंचा तो उस के कानों में मिठास घोलने वाले ये शब्द पड़े, ‘‘लगता है पेनीलोपे, तुम यहां खुश नहीं हो?’’

यही आवाज फिलिप्स ने फोन पर सुनी थी. उस ने खुली खिड़की से अंदर झांका. संगमरमर के फर्श पर संगमरमर सी काया वाली एक लड़की बैठी थी. शायद वही पेनीलोपे थी. उस की बगल में एक औरत और बैठी थी. उसी से फिलिप्स की बात हुई थी. वह ब्रांडी थी. वह पेनीलोपे के गुलाबी गाल पर अंगुलियां फेरते हुए कह रही थी, ‘‘पता नहीं क्यों तुम्हें यहां अच्छा नहीं लग रहा? अरे यहां नएनए आशिक तो आते ही हैं, मोटी कमाई भी होती है.’’

‘‘लेकिन मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘पेनीलोपे! तुम अपनी कीमत समझो? तुम जिस से शादी करोगी, वह भी तुम्हें नोचेगा, खसोटेगा. बदले में क्या देगा, दो जून की रोटी और तन के कपड़े. जबकि यहां जो चाहोगी, वह मिलेगा.’’ ब्रांडी ने कहा.

‘‘तुम बहुत खराब हो मैम.’’ पेनीलोपे शरमाते हुए बोली. शायद उस पर ब्रांडी की बातों का जादू चल गया था.

‘‘वह तो हूं.’’ ब्रांडी ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘अब देर मत करो, जल्दी से तैयार हो जाओ. लोग आते ही होंगे.’’

ब्रांडी की बात पूरी ही हुई थी कि नौकरानी ने आ कर कहा, ‘‘मैम, फिलिप्स नाम का एक लड़का आप से मिलने आया है.’’

‘‘ठीक है, उसे मेरे कमरे में भेज दो.’’ कह कर ब्रांडी अपने कमरे की ओर बढ़ गई. ब्रांडी का कमरा किसी जन्नत से कम नहीं था. कमरे के बीचोबीच बेड पड़ा था, जो बेहद कीमती था. उस के सिरहाने एक छोटी सी टेबल रखी थी, जिस पर सुगंधित मोमबत्ती जल रही थी. हलका उत्तेजक संगीत बज रहा था. मोमबत्ती की हलकी रोशनी में पारदर्शी गाउन पहने ब्रांडी लेटी थी.

उसे देख कर फिलिप्स की आंखें हैरत से फटी रह गई थीं. उसे ब्रांडी नहीं, जन्नत दिखाई दे रही थी. वह होश खो बैठा. उसे आगे बढ़ने का होश ही नहीं रहा. उसे ठगा सा देख ब्रांडी ने कहा, ‘‘एक घंटे के लिए मैं तुम्हारी हो चुकी हूं, जिस की कीमत तुम अदा कर चुके हो. अब दूर खड़े क्या देख रहे हो, करीब आ जाओ.’’

फिलिप्स जैसे ही बेड के नजदीक पहुंचा, ब्रांडी ने उसे खींच लिया. फिलिप्स बेड पर गिर पड़ा. उसे बांहों में भर कर ब्रांडी ने कहा, ‘‘मेरा नाम ही ब्रांडी नहीं है, मुझ में ब्रांडी जैसा नशा भी है. जहां भी होंठ रखोगे, मदहोश हो जाओगे.’’

फिलिप्स को लगा, उस की खोज पूरी हो चुकी है. वह जिस काम के लिए ब्रांडी के पास आया था, पूरा होने के बाद ब्रांडी ने कहा, ‘‘आप मेरी सेवा से खुश तो हैं?’’

‘‘उम्मीद से ज्यादा.’’ फिलिप्स ने कहा.

‘‘और चुकाई गई कीमत से भी ज्यादा.’’ ब्रांडी ने कहा तो फिलिप्स को हंसी आ गई. उसी के साथ ब्रांडी भी हंसने लगी.

एक कालगर्ल के अड्डे पर दोबारा न जाने वाले फिलिप्स की रातें अब ब्रांडी की कोठी पर बीतने लगीं. इस की वजह यह थी कि उस की यह इच्छा यहीं पूरी हो जाती थी. उसे यहीं रोजरोज नई लड़कियां मिल जाती थीं.

लेकिन एक रात फिलिप्स ब्रांडी की ‘द हाउस विद लाइट्स औन’ कोठी पर पहुंचा तो उसे वहां एक पुलिस जीप खड़ी दिखाई दी. वह काफी देर उस जीप के जाने का इंतजार करता रहा. जब वह काफी देर तक नहीं गई तो वह लौट गया. अगले दिन वह गया तो ब्रांडी ने बताया कि पुलिस उसे पकड़ने आई थी. लेकिन उसे ले जाने के बजाय हुस्न और दौलत ले कर चली गई.

ब्रांडी ने उसे बताया कि जब पुलिस उस के यहां आई तो ब्रांडी और उस के साथ की लड़कियां हाथों में डौलर की गड्डियां लिए उन के सामने आ खड़ी हुईं. उस समय उन के तन पर एक भी कपड़ा नहीं था.

उस हालत में पुलिस वाले अपनी वर्दी का फर्ज और आने का मकसद भूल गए. डौलरों को जेब के हवाले किया और लड़कियों के साथ कमरों में घुस गए. 3-4 घंटे गुजार कर वे जैसे आए थे, उसी तरह खाली हाथ लौट गए. लेकिन उस के कुछ दिनों बाद ही एक बार फिर पुलिस ने उस के यहां छापा मारा. इस बार ब्रांडी की कोई चाल कामयाब नहीं हुई. दरअसल ब्रांडी के खिलाफ काफी शिकायतें हो चुकी थीं. इसलिए यह मामला अंडर कवर डिटेक्टिव एजेंसी के पास पहुंच गया था.

किसी ने फोन द्वारा पुलिस को सूचना दी थी कि शाम ढलते ही जैसे द हाउस विद लाइट्स औन कोठी में लाइट जलती है, बाहर गाडि़यों की लाइन लग जाती है. नएनए लोग गाडि़यों से आते हैं और घंटे-2 घंटे रुक कर चले जाते हैं. उस में रहने वाली ब्रांडी ने एलीक्स 38डी नाम से वेबसाइट बना रखी है. एलीक्स उस का दूसरा नाम है. उस के नाम के साथ जो 38 लगा है, वह उस की ब्रा का साइज है. इस साइट पर कालगर्ल्स की फोटो के साथ उन के साथ रात गुजारने की कीमत भी लिखी है.

उस व्यक्ति के अलावा भी कुछ अन्य लोगों ने शिकायतें की थीं. उन लोगों का भी यही कहना था कि ब्रांडी के यहां गलत काम होता है. उस के यहां तरहतरह के लोग आते हैं. उस की वजह से उन का जीना दूभर हो गया है. क्रिसमस की रात उस के यहां ऐसा जश्न मनाया गया था कि उस की कोठी के आगेपीछे दूरदूर तक पैर रखने की जगह नहीं थी. जश्न शाम से शुरू हुआ था तो सुबह 4 बजे तक चला था.

इस के अलावा एक महिला ने शिकायत की थी कि उस का अय्याश पति ब्रांडी के घर हर रात 3 से 5 सौ डौलर खर्च कर के आता है. घर आ कर कहता है कि उसे जो सुख वहां मिलता है, कहीं और नहीं मिल सकता. कई शिकायतें हो गई थीं, इसलिए पुलिस को सख्त काररवाई करनी पड़ी.

पहले छापे में मिली नाकामी को ध्यान में रख कर इस बार ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अधिकारियों की टीम को ब्रांडी के घर भेजा गया था.   छापे में ब्रांडी के अलावा 3 अन्य कालगर्ल्स पकड़ी गई थीं. इन के साथ तमाम आपत्तिजनक सामान भी बरामद किया गया था. पुलिस द्वारा पकड़े जाने पर ब्रांडी चिल्लाचिल्ला कर कह रही थी, ‘‘न तो मैं कालगर्ल हूं और न ही ऐसा कोई रैकेट चलाती हूं. यह सब मेरे पति ने मुझ से बदला लेने के लिए किया है. मुझे झूठे इलजाम में फंसाया जा रहा है. मैं जेल नहीं जाऊंगी. इस से बेहतर है मैं मर जाऊं.’’

पुलिस ने उस की एक नहीं सुनी और हथकड़ी पहना दी. अदालत से उसे जेल भेज दिया गया. मगर मानसिक हालत ठीक न होने की वजह से उसे जल्दी ही जमानत मिल गई. जमानत पर छूट कर घर आते ही उस ने जो कहा था, कर दिखाया. उस ने पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली.

ब्रांडी मर गई, मगर उस की कहानी खत्म नहीं हुई. उस का अतीत वाकई चौंका देने वाला था. उस का असली नाम ब्रिटन था. बचपन से ही वह कुशाग्र बुद्धि थी.

हर कक्षा में अव्वल आने वाली ब्रिटन खेलकूद में भी आगे रहती थी. अखबारों में वह लेख भी लिखती थी. उस ने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से जीव विज्ञान और समाज विज्ञान से डिग्री लेने के बाद इलाइट यूनिवर्सिटी से पीएचडी किया था. उस के नाम के साथ डाक्टर जैसा सम्मानित शब्द जुड़ गया तो उसे मैरीलैंड यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर की नौकरी मिल गई. तब वह 30 साल की थी.

न जाने क्यों ब्रिटन ने 1999 में यूनिवर्सिटी की नौकरी से इस्तीफा दे दिया. सन 2002 में उस की मुलाकात इसामु तुबीयामी से हुई. यह मुलाकात इंटरनेट के माध्यम से हुई थी. जल्दी ही दोनों एकदूसरे को समझ गए तो प्यार की राह पर चल पड़े. प्यार गहराया तो दोनों ने शादी कर ली. लेकिन उन का दांपत्य सुखी नहीं रहा. इस की वजह यह थी कि इसामु जैसा दिखता था, वैसा था नहीं. वह हिंसक प्रवृत्ति का था.

एकांत के क्षणों में इसामु ब्रिटन को तरहतरह की यातनाएं दे कर अपनी विकृत यौन कुंठा को संतुष्ट करता था. यही नहीं, उसे मारतापीटता भी था. उस की इन्हीं हरकतों से तंग आ कर शादी के मात्र 6 महीने बाद ही ब्रिटन ने उस से तलाक ले लिया.

उस समय ब्रिटन के पास कोई नौकरी नहीं थी. आमदनी का कोई जरिया न होने की वजह से किसी की सलाह पर उस ने कालगर्ल का धंधा अपना लिया. पहले ही दिन एक ही ग्राहक से उसे इतनी कमाई हो गई कि वह उतना पूरे महीने बच्चों को पढ़ा कर नहीं कमा पाती थी.  ब्रिटन को अच्छी कमाई के साथ देह की संतुष्टि का यह पेशा इतना अच्छा लगा कि वह पूरी तरह से इस धंधे से जुड़ गई. उस ने अपने अलगअलग नाम रख लिए. कहीं वह ब्रांडी होती थी तो कहीं एलीक्स.

यही नहीं, वह जहां कालगर्ल रैकेट चलाने वाली एक कुख्यात मैडम रिंग से जुड़ी थी, वहीं उस ने अपनी वेबसाइट भी बना डाली. जिस का नाम रखा— एलीक्स 38डी. इस से उस का धंधा इतना चमका कि उस ने एक आलीशान कोठी खरीद ली. जरूरतमंद लड़कियों को सब्जबाग दिखा कर देह के धंधे से खूब दौलत बटोरने लगी. वह आम लोगों की ही नहीं, कई नामीगिरामी राजनैतिक हस्तियों की भी रातें रंगीन करती थी.

ब्रिटन उर्फ ब्रांडी भले ही गलत काम कर रही थी, लेकिन वह बेहद भावुक थी. यही वजह थी कि धंधे का खुलासा होने और पुलिस द्वारा पकड़े जाने पर उस ने आत्मग्लानि के चलते आत्महत्या कर ली थी.   ब्रिटन द्वारा आत्महत्या करने पर उसी रैकेट की डी.सी. मैडम ने कहा था कि उस ने कायरतापूर्ण कदम उठाया है.  संयोग देखो, आगे चल कर डी.सी. मैडम को भी यही कदम उठाना पड़ा.

डी.सी. मैडम का पूरा नाम था डीबोराह जीन पालफ्रे. वह देह के धंधे की कुख्यात और मास्टरमाइंड खिलाड़ी थी. जवानी में डीबोराह ने अपनी खूबसूरत देह से अकूत दौलत कमाई थी. तब वह कई बार पकड़ी भी गई थी.

लेकिन जब जवानी ढल गई तो उस के ग्राहकों की संख्या एकदम से घट गई. इस के बाद उस ने ‘पामेला मार्टिन ऐंड एसोसिएट्स’ नाम की एक एस्कार्ट एजेंसी खोल ली. उस की इस एजेंसी में ऐसी तमाम जवान खूबसूरत लड़कियां थीं, जो मजबूरी की मारी थीं या फिर ऐश की जिंदगी जीने के लिए कुछ भी करने को तैयार थीं.

रैकेट में वह डी.सी. मैडम के नाम से प्रसिद्ध थी. उन्हीं लड़कियों की बदौलत उस ने अपनी पहुंच ऊपर तक बना ली थी. राजनैतिक गलियारों में भी उस के नाम की धमक थी. कई राजनीतिज्ञ अपनी रात रंगीन करने के लिए उस की सेवा लिया करते थे. वह उन के साथ सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी दिखाई देने लगी थी, जिस से उस का धंधा और चमक उठा था.

58 वर्षीया डी.सी. मैडम सालों तक देह का अपना यह धंधा इन्हीं पहुंच के दम पर चलाती रही. लेकिन जब भारी दबाव पड़ा तो 15 अप्रैल, 2008 को उसे गिरफ्तार कर लिया गया.

उस की गिरफ्तारी के बाद पता चला कि 24 जुलाई, 2007 को उस ने वाशिंगटन पौलीटिकल ग्रुप के सीनेटर डेविड विट्टर के लिए अपने रैकेट की एक कालगर्ल भेजी थी, जबकि अदालत में सुनवाई के दौरान वह चीखचीख कर कह रही थी, ‘‘मुझ पर देह व्यापार का इलजाम लगाना गलत है. किसी ने दुश्मनी की वजह से मुझे फंसाया है.’’

लेकिन उस की यह आवाज सुबूतों के बोझ तले दब कर रह गई थी. उस पर यह भी आरोप था कि 15 अप्रैल, 2008 को उस ने एक मेल के जरिए अपने इस काले धंधे के काले धन को अवैध रूप से विदेशी बैंक में जमा कराया था. तब उस ने सफाई में कहा था कि अब तक वह शरम के मारे चुप थी, लेकिन अब खुल कर बोलेगी. वह उन राजनीतिज्ञों के नाम उजागर करेगी, जिन की उस ने रातें रंगीन कराई थीं.

उसी के जुबान खोलने पर सीनेटर विट्टर को अदालत में तलब किया गया था. उस ने विटनेस बौक्स में खड़े हो कर स्वीकार किया कि डी.सी. मैडम कालगर्ल रैकेट चलाती थी और उस ने उस के रैकेट की एक कालगर्ल के साथ एक रात बिताई थी.

इस के बाद डी.सी. मैडम कुछ बोल नहीं सकी, क्योंकि सुबूत सामने था. लेकिन इस के बावजूद भी वह यही कहती रही, ‘‘यह झूठ है. मैं ने कितने भी जुर्म किए हों, पर मैं जेल में कदम नहीं रखूंगी.’’

और वाकई उस ने जेल में कदम नहीं रखा. 1 मई, 2008 को वह अपनी 76 वर्षीया मां बलान्ये पालफ्रे से मिलने गई तो वहां से जिंदा नहीं लौटी. उस का परिवार टारपोन स्प्रिंग्स, फ्लोरिडा के जिस मोबाइल होम में रहता था, पुलिस को उस से उस का शव मिला था. उस ने नायलौन की रस्सी का फंदा गले में डाल कर आत्महत्या कर ली थी.

पहले प्रोफेसर ब्रिटन और अब डी.सी. मैडम द्वारा आत्महत्या कर लेने के बाद वाशिंगटन की राजनीतिक हस्तियों ने राहत की सांस ली. क्योंकि वे जिंदा रहतीं तो उन के नाम उजागर कर सकती थीं, जो अपनी रातें रंगीन करने के लिए उन की सहायता लिया करते थे.

आवारगी में गंवाई जान

पुलिस के सामने काम न आईं शिखा की अदाएं

पैसे का गुमान : दोस्त ने ली जान

तंत्र मंत्र: पैसों के लिए दी इंसानी बलि – भाग 4

इस पर दोनों ने तय किया कि सुरेश साहू और उस के परिवार को यह विश्वास कर लेना चाहिए कि तंत्र साधना के बाद भी गड़ा हुआ धन नहीं मिल रहा है, तो फिर आगे दूसरा उपाय भी किया जा सकता है. जब यह बात सुरेश साहू को माखन ने बताई तो वह सिर पीट कर रह गया और बोला, ‘‘बड़े भैया तो मुझे घर से निकाल देंगे. उन्होंने साफसाफ कहा था कि ऐसा मत करो, मगर मैं ही नहीं माना. तुम लोगों ने तो मुझे बुरी तरह लूट लिया.’’

इस पर सुभाष ने कहा, ‘‘देखो, विश्वास में बड़ी ताकत होती है. आस्था रखो, एक दिन अगर गड़ा धन नहीं मिला है तो मैं अपनी तंत्र साधना से रुपयों की बारिश आसमान से करवा दूंगा. या फिर अगर तुम्हारा गड़ा धन किसी ने खींच लिया है, या कहीं चला गया है तो उस के लिए भी साधना कर छीन लाऊंगा. लेकिन इस में समय लगेगा. तुम्हें धैर्य रखना होगा.’’

आखिरकार सुरेश ने हाथ जोड़ कर के विवश हो तांत्रिकों के आगे घुटने टेक दिए. कई महीने के बाद एक दिन अचानक सुरेश साहू से माखन की मुलाकात हो गई. औपचारिक बातचीत करने के बाद सुरेश ने सुभाषदास का हालचाल पूछ लिया. माखन ने बताया कि वे बड़ी साधना में लगे हुए हैं.

‘‘मगर तुम्हारे गुरु ने तो हमारा बेड़ा गर्क कर दिया,’’ सुरेश ने नाराजगी दिखाई.

‘‘देखो भाई, विश्वास रखो. तंत्र साधना कोई मजाक या जादू की छड़ी नहीं है. हर किसी का इस से भला भी नहीं होता. हालांकि हमारे गुरु सुभाषदास बहुत पहुंचे हुए हैं. उस वक्त या तो तुम्हारा समय अच्छा नहीं चल रहा था या फिर तुम्हारे भाई और परिवार को विश्वास नहीं था. इस कारण भी साधना में कमी आ सकती है. मैं तो कहता हूं कि अगर तुम्हें विश्वास है तो गुरु की शरण में आ जाओ, फिर देखो कैसे तुम मालामाल हो जाते हो.’’

माखनदास की बड़ीबड़ी बातें सुन कर के सुरेश कुमार साहू को विश्वास हो गया कि घर में धन का घड़ा इसलिए नहीं मिला क्योंकि वह धन किसी ने अपने पास खींच लिया था. या फिर हो सकता है पहले ही किसी ने उसे निकाल लिया हो.

सुरेश साहू माखन की बातों से संतुष्ट हो कर बोला, ‘‘ठीक है, एक बार मुझे अपने गुरु सुभाषदास से मिलाना. मुझे भी अपने साथ जोड़ लो, ताकि मेरा भी खर्चा चलता रहे.’’

माखनदास ने सुभाषदास से सुरेश साहू की पूरी बात बताई. इस पर सुभाषदास की आंखों में चमक आ गई.

उस ने कहा, ‘‘देखो, इस बार मैं ने कुछ नई जानकारियां इकट्ठा की हैं. सोशल मीडिया पर यूट्यूब है. वहां पर तंत्रमंत्र साधनाओं को देख कर के मुझे पूरा यकीन है कि हम मालामाल हो जाएंगे. अब सुरेश साहू को कुछ मिले न मिले, तुम और मैं तो मालामाल हो सकते हैं. बताओ कैसा रहेगा?’’

‘‘ठीक है गुरु, जैसा आप कहो, आखिर हम भी कब तक गरीबी के दिन गुजारते रहेंगे.’’

‘‘तो तुम मुझे अपना पूरा साथ दोगे?’’

‘‘मैं तनमन से आप के साथ हूं.’’ माखनदास ने बड़ी श्रद्धा के साथ सुभाषदास मानिकपुरी के सामने हाथ जोड़ कर कहा.

‘‘तो सुनो, आज हम जो साधना करेंगे उस में हमें खून देना होगा. और अगर हम ने खून दे दिया तो समझो कि हम तो करोड़पति हो गए.’’

खून शब्द सुन कर माखनदास के ललाट पर पसीने की बूंदें उभर आईं. घबरा कर वह इधरउधर देखने लगा. यह देख कर सुभाषदास मानिकपुरी हंसने लगा, ‘‘देखो, तुम तो मेरे चेले हो. मुझे तुम्हारा खून नहीं चाहिए. हां, सुरेश का कैसा रहेगा.’’

‘‘हां, मुझे मंजूर है,’’ सुभाषदास की बात सुन कर माखन ने सहमति जताई.

देर शाम को सुरेश साहू तंत्रमंत्र के इंतजाम के साथ आ गया. तीनों तंत्रमंत्र साधना के सारे सामान जुटा कर मुरू पथराली खार, जो बिलासपुर के सिरगिट्टी में स्थित है, आ पहुंचे. यहां सुनसान जगह में देर रात को सुभाषदास ने अपना आसन जमाया और तंत्रमंत्र साधना करने लगा.

माखनदास और सुरेश साहू पास में बैठे हुए थे. 2 घंटे के अनुष्ठान के बाद सुभाष उठा और चलने का इशारा किया. मानिक ने वहां का सारा सामान समेटा और सुरेश की मोटरसाइकिल पर रख दिया. कुछ देर में तीनों पैदल ही पास के खंडहरनुमा वीरान पुराने मकान में थे. वहां फिर से अनुष्ठान की तैयारी की गई. सुरेश को साधना पूरी होने तक आंखें बंद रखने की हिदायत दी गई. एक घंटे तक सुरेश साहू आंखें बंद कर के बैठा रहा.

सुभाष ने अपने थैले से कुल्हाड़ी निकाली और उस का पूजन किया. उस ने दीपक की लौ से कुल्हाड़ी की धार गर्म की. फिर एक झटके में सुरेश के सिर पर दे मारी. अचानक हुए तेज वार से सुरेश तिलमिला गया. उस की चीख  निकल पड़ी. आंखें खोलीं. तब तक सुभाषदास ने उस पर 3-4 वार और कर दिए.

कुल्हाड़ी की चोट से  वह लहूलुहान हो गया. और थोड़ी देर में उस की वहीं मौत हो गई. उस के खून से सुभाषदास ने थोड़ी देर और तंत्र साधना की. माखनदास हाथ जोड़ कर खड़ा आसमान से रुपएपैसे बरसने का इंतजार करने लगा. क्योंकि सुभाषदास ने खून देने के बाद रुपएपैसे आसमान से बरसने की बात कही थी. जब कुछ देर बाद भी कोई रुपयापैसा नहीं बरसा, तब माखन ने सुभाष की तरफ सवालिया निगाहों से देखा. अब सुभाष भी घबरा गया. माखनदास बोला, ‘‘गुरु, अब क्या होगा?’’

सुभाष आकाश की तरफ देखते हुए बोला, ‘‘यार, मैं ने पढ़ा था कि खून देने के बाद मृतक की आत्मा आती है और वह सारी समस्या का समाधान कर देती है. लगता है, जरूर कोई चूक हो गई.’’

‘‘अब क्या होगा, हमें रुपए भी नहीं मिले और सुरेश की हत्या भी हो गई. अब तो जेल जाना पड़ेगा.’’

सुभाषदास ने कहा, ‘‘चलो, यहां से भाग चलते हैं.’’ उस के बाद दोनों नौ दो ग्यारह हो गए. शहर ही छोड़ दिया.

इस पूरे मामले की जांच के बाद 17 नवंबर, 2021 को एडिशनल एसपी रोहित कुमार झा, एसपी (सिटी) सुश्री गरिमा द्विवेदी और जांच अधिकारी शांत कुमार साहू ने मीडिया के सामने सुरेश साहू हत्याकांड पर से परदा हटा दिया.

पुलिस ने थाना सिरगिट्टी बिलासपुर में अपराध दर्ज कर के आरोपी सुभाषदास, माखनदास को भादंवि धारा 302, 201, 120बी के तहत गिरफ्तार कर के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी बिलासपुर के समक्ष पेश किया, उन के अपराध की गंभीरता को देखते हुए मजिस्ट्रैट ने दोनों को जेल भेजने का आदेश दिया.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

तंत्र मंत्र: पैसों के लिए दी इंसानी बलि – भाग 3

एक दिन की बात है. माखनदास मानिकपुरी ने सुभाषदास से जिज्ञासावश पूछा, ‘‘गुरु, क्या सचमुच कोई ऐसी अदृश्य ताकत है जो हमें रुपएपैसे से मालामाल कर सकती है? यह हनुमान सिक्का क्या है? इस के बारे में सुना तो मैं ने बहुत  है, मगर…’’

संशय भाव से माखनदास के पूछने पर सुभाषदास ने जवाब दिया, ‘‘अरे, अगरमगर क्या होता है, क्या तुम्हें इस बात में शक है कि भूतप्रेत और आत्मा होती है. नहीं न…’’

‘‘ नहीं, कभी नहीं. यह तो मानना पड़ेगा कि आत्मा होती है भूतप्रेत होते हैं.’’ माखनदास ने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा.

‘‘तो फिर इस में क्या इंकार कि इन शैतानी शक्तियों को अगर प्रसन्न कर लिया जाए तो उस के जरिए कुछ भी कियाकरवाया जा सकता है. और सुनो, हनुमान सिक्का अगर किसी को मिल जाए तो आदमी लखपति क्या करोड़पति बन सकता है. ऐसी ही कितनी विधाएं और साधनाएं हैं. मैं इस दिशा में सफलता की ओर बहुत आगे बढ़ चुका हूं. मुझे विश्वास है कि शीघ्र ही मुझे इन शक्तियों का आशीर्वाद मिलने लगेगा.’’ सुभाषदास ने आंखें घुमाते हुए कहा.

‘‘गुरु, फिर तो आप मालामाल हो जाओगे, अब मुझे विश्वास हो चला है कि यह ताकत होती है. मुझे जो भी कहोगे, मैं करूंगा.’’ माखनदास खुश होते हुए बोला.

‘‘मुझे बहुत अफसोस होता है कि तुझ जैसा समझदार आदमी क्यों बारबार रास्ते से भटक जाता है. तुम ने पहले भी मेरा साथ दिया था और मैं ने इस दिशा में कई सफलताएं पाई हैं. तभी तो लोगों का हम पर भरोसा भी बना है.’’ सुभाषदास ने समझाया.

‘‘गुरु, जब सफलता नहीं मिलती तो मन टूट जाता है, कितने ही लोगों को मैं ने आप से मिलवाया और आप ने उन को हनुमान सिक्के, 21 नाखून के रास्ते बतलाए, तंत्रमंत्र भी किया… मगर लाभ कहां मिला? ऐसे में आप ही बताओ, मन कैसे नहीं विचलित होगा. फिर भी मैं मानता हूं कि तंत्रमंत्र की इस विद्या से कोई भी लखपति, करोड़पति बन सकता है. कई बार साधना में असफलता भी मिलती है. उस के कई कारण हो सकते हैं. आप में कूवत भी है.’’ माखनदास बोला.

‘‘होगा, जरूर होगा. हमें सफलता भी मिलेगी, लोगों को हमारी साधना का भी लाभ मिलेगा. बस, भरोसा रखो. एक दिन तुम भी देखना, किस तरह मैं तंत्रमंत्र की ताकत से तुम को भी मालामाल कर दूंगा. असल में हमें जैसी साधना करनी चाहिए उस में चूक हो रही है. यह मैं ने एहसास कर लिया है. कल देखना, देखते ही देखते मानो छप्पर फट जाएगा और सोनाचांदी बरसने लगेगा.’’ सुभाषदास ने अपनी लच्छेदार बातों से माखनदास को प्रभावित कर दिया था.

‘‘ऐसा है तो गुरु, कुछ जल्दी करो. क्यों हम अपना समय नष्ट कर रहे हैं.’’ माखनदास बोला.

‘‘ठीक है, तुम ने एक बार मुझे सुरेश साहू से मिलवाया था, उसे तुम फिर ले कर आओ. और सुनो, इस बार जो तंत्रमंत्र मैं करूंगा वह किसी भी हालत में खाली नहीं जाएगा. हम दोनों मालामाल हो जाएंगे.’’ सुभाषदास बोला.

‘‘ठीक है गुरु, मैं आज ही सुरेश से मिलता हूं और उसे आप के पास ले आता हूं. बेचारा कितने सालों से धन की खोज में लगा हुआ है. आप ने भी उसे आश्वासन दिया था.’’

‘‘ठीक है, उसे जितनी जल्दी हो सके लाओ, हम मुरू पथराली खार में तंत्र साधना करेंगे. यह साधना बहुत महत्त्वपूर्ण होगी और सफलता मिलने की पूरी शतप्रतिशत गारंटी है.’’

अगले ही दिन माखनदास ने सुरेश कुमार साहू की सुभाषदास से मुलाकात करवा दी. खरकेन में संतराम साहू का बड़ा बेटा सुरेश कुमार साहू सुभाषदास से मिल कर काफी प्रभावित हुआ. उस के सामने ही माखनदास ने कहा, ‘‘गुरु, यह हमारे गांव के खूब पैसे वाले हैं. पूरा परिवार सुखीसंपन्न और मानमर्यादा वाला है. अभी इन की आर्थिक स्थिति कुछ ठीक नहीं है. मगर इन्हें विश्वास है कि इन के पुश्तैनी घर में गड़ा धन रखा हुआ है. आप कृपा कर दो बड़ी मेहरबानी होगी.’’

सुभाषदास मानिकपुरी ने माखनदास की बातें सुन कर सुरेश साहू की ओर अपलक देखते हुए कहा, ‘‘मैं यहां बैठेबैठे सब ठीक कर सकता हूं. मैं देख रहा हूं कि तुम आने वाले समय में बहुत पैसे वाले बनने वाले हो, तुम्हारे मकान के नीचे खूब सोनाचांदी छिपा हुआ है, जो तुम्हारे पूर्वजों का है.’’

यह सुन कर सुरेश तांत्रिक सुभाषदास मानिकपुरी के पैरों पर गिर पड़ा और सविनय कहा, ‘‘गुरुदेव, हम पर कृपा करो. हम तो बरबाद हो गए हैं. अगर वह धन हमें मिल जाएगा तो हमारी जिंदगी संवर जाएगी. हमारे घर में खुशियां लौट आएंगी. हमारे कर्ज चुकता हो जाएंगे.’’

सुभाषदास ने सुरेश की अधीरता को भांपते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारी मदद अवश्य करूंगा. इस के लिए मुझे तुम्हारे घर आ कर के एक तांत्रिक साधना करनी पड़ेगी.’’

यह सुन कर सुरेश ने हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘गुरुदेव, हमारे घर का माहौल ठीक नहीं है. आप का वहां आना सब पसंद नहीं करेंगे, मेरा भाई और उस की पत्नी तो इस पर थोड़ा भी यकीन नहीं करते हैं.’’

इस पर हंसते हुए सुभाषदास ने मधुर वाणी में कहा, ‘‘दुनिया में ऐसे कितने ही लोग हैं, जो इस पर विश्वास नहीं करते. मगर जब वे देखेंगे कि पैसों की हांडी बाहर आ गई है, तो खुशी से नाच पड़ेंगे.’’

‘‘हां, यह बात तो सही है, मगर मैं उन्हें कैसे समझाऊं. कोई रास्ता निकालो गुरुदेव.’’ सुरेश बोला.

‘‘देखो भाई, तुम अपने घर में बात करो और उन्हें समझाओ. देखो अगर तंत्र साधना की तैयारी करोगे तो भला तो तुम्हारे परिवार का ही है. उन्हें इस साधना को घर में सुखशांति बनाए रखने वाला कह कर मना लो.’’

सुभाषदास की बातें सुन कर सुरेश समझ गया कि कैसे अपने परिवार के सदस्यों को इस साधना के बारे में आश्वस्त करना है. यही फैसला कर सुरेश साहू अपने घर पहुंचा और अपने भाई रामप्रसाद से बात की. उस ने कहा, ‘‘भैया, अगर आप बुरा न मानें तो सिर्फ एक बार घर में तांत्रिक साधना करवा लें. मुझे विश्वास है कि आप को भी यकीन हो जाएगा.’’

सुरेश साहू की बातें सुन कर बड़े भाई रामप्रसाद साहू ने कहा, ‘‘भाई, मुझे तो इस सब में कोई विश्वास ही नहीं है, मगर तुम चाहते हो तो एक बार पूजापाठ करवा कर देख लो.’’

यह सुन कर कि सुरेश साहू खुश हो गया और 2 दिन बाद ही सुभाषदास और माखनदास को तांत्रिक साधना के लिए घर बुला लिया. उन के घर पर सुभाषदास और माखनदास आए और रात भर तंत्र साधना करते रहे. उन्हें विश्वास दिलाया कि जैसे ही यह सिद्धि पूरी होगी, उन के घर में गड़ा हुआ रुपया उन्हें मिल जाएगा.

यह अनुष्ठान 3 दिन तक चला, जो रात के वक्त ही किए गए. इस के बदले में दोनों तांत्रिकों ने मोटी फीस वसूली. उस के बाद भी जब गड़ा धन नहीं निकल पाया तब दोनों तांत्रिक बगलें झांकने लगे.

सुभाषदास ने माखन से कहा, ‘‘भाई, मुझे लगता है यहां कोई गड़ा धन है ही नहीं.’’

माखनदास ने धीरे से कहा, ‘‘फिर आगे क्या होगा, सुरेश साहू तो हाथ से निकल जाएगा.’’

सुभाषदास ने कहा, ‘‘मैं ने तंत्र साधना पूरी कर ली है, अगर रुपए होते तो हमें इशारा मिल जाता. अब अगर यहां रुपए नहीं हैं तो मैं या तुम क्या कर सकते हैं. इन लोगों को गलतफहमी है कि उन के पूर्वजों ने पैसा जमीन में  गाड़ कर रखा था.

‘‘यह भी हो सकता है कि आसपास के किसी जानकार तांत्रिक ने साधना कर पहले ही यहां का गड़ा धन दूसरे की जमीन में खींच कर निकलवा लिया हो. कई बार यह भी होता है कि गड़ा हुआ धन अपने आप कहीं दूसरी जगह चला जाता है.’’

माखन ने हां में हां मिलाते हुए कहा, ‘‘हां, ऐसा हो सकता है, मैं ने भी सुना है.’’

                                                                                                                                        क्रमशः

तंत्र मंत्र: पैसों के लिए दी इंसानी बलि – भाग 2

सुरेश हत्याकांड के सिलसिले में कड़ी पूछताछ में वह टूट गया. उस ने सुरेश के साथ हुई वारदात की सारी कहानी पुलिस को बता दी. उस के बाद पुलिस के सामने नई चुनौती सुभाषदास मानिकपुरी को ढूंढ निकालने की थी.

अपने साथी सुभाषदास के बारे में माखनदास ने सिर्फ इतना बताया था कि वह जबलपुर में कहीं सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर रहा है. वह विवाहित है. उस की एक प्रेमिका भी है. उस की पत्नी से बहुत पहले ही संबंध टूट चुके थे. पुलिस ने जांच को आगे बढ़ाते हुए सुभाषदास की प्रेमिका का नाम मालूम कर लिया. फिर जबलपुर बिल्डिंग निर्माण वाले इलाके में गार्ड की नौकरी में लगे लोगों से पूछताछ करने लगी.

पुलिस ने पहले छत्तीसगढ़ के रहने वाले गार्ड्स के बारे में जानकारी जुटाई. इस में जबलपुर पुलिस की मदद से जांच टीम को सुभाषदास की भी जानकारी मिल गई. वह मैडिकल कालेज में बतौर गार्ड तैनात था. पुलिस उसे हिरासत में ले कर बिलासपुर आई. पहले तो उस ने नानुकुर की और गिरफ्तारी को ले कर सवालजवाब करने लगा. किंतु जब उसे सुरेश हत्याकांड और तांत्रिक अनुष्ठान के बारे में बताया, तब वह ठंडा पड़ गया.

पूछताछ के दौरान पुलिस ने उस का सामना माखनदास से करवा दिया. उसे देख कर वह समझ गया कि अब उस का बचना नामुमकिन है. वह सुरेश हत्याकांड से संबंधित सारी बातें बताने को तैयार हो गया. उस ने पुलिस के सामने अपने इकबालिया बयान में पूरे घटनाक्रम को सिलसिलेवार तरीके से बता दिया. साथ ही यह भी स्वीकार कर लिया कि सुरेश की हत्या में इस्तेमाल की गई कुल्हाड़ी भी उसी की थी, जिसे वह अपने घर ले आया था. दोनों ढोंगी तांत्रिकों की अंधविश्वास की करतूतें कुछ इस प्रकार सामने आईं—

सुभाषदास मानिकपुरी (40 साल) मूलत: छत्तीसगढ़ के सरगुजा के बुंदिया लखनपुर का रहने वाला था. बचपन से ही उसे यह विश्वास हो गया था कि तंत्रमंत्र के द्वारा सिद्धि प्राप्त होती है और खूब धन पाया जा सकता है. उस ने मात्र 8वीं तक की ही पढ़ाई की थी. जैसेजैसे बड़ा हुआ उस की तंत्रमंत्र और पराशक्ति की साधना में रुचि लेने लगा. वह वैसे लोगों से ही अधिक मिलता था, जो तंत्रमंत्र की बातें करते थे. उसे लगता था कि इस में इतनी अधिक शक्ति होती है कि इस से दुनिया का कोई भी काम चंद मिनटों में सिद्ध किया जा सकता है. यह बात उस के मनमस्तिष्क में काफी गहराई तक बैठ चुकी थी.

नतीजा यह हुआ था कि उस का मन कभी किसी काम में नहीं लगता था. वह लाखों रुपए कमाने के लिए तंत्रमंत्र सामानों हनुमान सिक्के, पीला कछुआ, रुद्राक्ष माला, पारद लिंग, अघोरपंथी, बारहसिंघा, हत्थाजोड़ी आदि को हासिल करने की कोशिश में लगा रहता था. जहां कभी कोई ऐसी बात होती या कोई इस सोच का व्यक्ति मिलता, तो वह उस के साथ हो लेता था. घंटों तंत्रमंत्र की चर्चा में लगा रहता था. उस से मिलनेजुलने वाले लोगों को हर समस्या का उपाय तांत्रिक साधन से बताता था.

जब उस के घर में लोगों ने देखा कि सुभाष हमेशा तंत्रमंत्र की दुनिया में रमा रहता है, तब उस की शादी करवा दी. मातापिता ने सोचा घरगृहस्थी की जिम्मेदारी आने पर उस में सुधार हो जाएगा. उस का विवाह सरगुजा के प्रेम नगर की एक युवती के साथ हुआ, लेकिन कुछ समय बाद ही पत्नी उस के व्यवहार और बातों से ऊब गई और उसे छोड़ कर अपने मायके चली गई.

सुभाषदास भी अपना गांव छोड़ बिलासपुर के कोरियापारा, सिरगिट्टी में जा कर रहने लगा. वहीं उस के एक महिला से प्रेम संबंध बन गए थे. अकेली रहने वाली महिला को लोग घरेलू उपचार करने वाली के रूप में जानते थे. वह उस के पास रहते हुए तंत्रमंत्र का काम भी करने लगा.

जब लोग महिला के पास किसी मर्ज को ठीक करवाने के लिए आते थे, तब वह उस से तंत्रमंत्र की बातें कर उस की ताकत के बारे में बताता था. दुख को दूर करने के लिए पूजापाठ करने की सलाह देता था. धीरेधीरे दूरदराज के लोगों के बीच वह तांत्रिक पूजापाठ करवाने वाले साधक के रूप में प्रसिद्ध हो गया था.

उसी दरम्यान उस की मुलाकात माखनदास मानिकपुरी से हो गई. वह भी उस का हमउम्र था और अमसैना, थाना सिरगिट्टी का निवासी था. उस की भी तंत्रमंत्र में गहरी रुचि थी. उस की इच्छा थी कि कोई ऐसा जादू हो जाए और कहीं से गड़ा हुआ अकूत खजाना हाथ लग जाए, ताकि उस की जिंदगी मजे में कटने लगे. उस ने भी सुभाषदास की  प्रसिद्धि और साधना के बारे में सुन रखा था. माखनदास उस के पास आनेजाने लगा. उस ने उसे एक तरह से अपना गुरु बना लिया था.

अब दोनों ही गुरुशिष्य बन कर आसपास के लोगों की हर समस्या का समाधान तंत्रमंत्र से करने का दावा करने लगे थे. यही उन के जीविकोपार्जन का जरिया बन गया था. पूजापाठ के बदले में पैसे लेते थे, लेकिन उन्हें बड़ा हाथ नहीं लगा था. दूसरों को तो धनसंपदा की बरसात का दावा करते थे, गड़े धन को ढूंढ निकालने का आश्वासन देते, लेकिन इस के लिए कोई वैसा इच्छुक व्यक्ति नहीं मिला था.

                                                                                                                                 क्रमशः

तंत्र मंत्र: पैसों के लिए दी इंसानी बलि – भाग 1

छत्तीसगढ़ के जिला बिलासपुर में थाना सिरगिट्टी के प्रभारी शांत कुमार साहू सुबह करीब 10 बजे अन्य पुलिसकर्मियों को कोरोना प्रकोप से संबंधित आवश्यक निर्देश देने में मशगूल थे. केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा एक बार फिर लौकडाउन के नए दिशानिर्देश जारी किए जा चुके थे. उसे सख्ती से पालन के लिए राज्य सरकारों को भी विशेष हिदायतें दी गई थीं.

पुलिस को एक बार फिर बड़ी जिम्मेदारी निभानी थी. छत्तीसगढ़ में भी उसी दिन से लौकडाउन लगा दिया गया था. इस के चलते पुलिस के कंधों पर कानूनव्यवस्था को दुरुस्त रखने की और भी ज्यादा जिम्मेदारी आ गई थी. इस मुद्दे को ले कर कई तरह की भ्रामक चर्चाएं भी गर्म थीं. इसे ध्यान में रखते हुए पुलिसकर्मियों को विभिन्न कार्यभार सौंपे जा रहे थे. उसी दौरान एक व्यक्ति काफी घबराया हुआ थाने में घुस आया. शांत कुमार उस के उड़े हुए चेहरे की रंगत देख कर समझ गए कि वह जरूर किसी गंभीर परेशानी में है.

उन्होंने उसे वहीं थोड़ी दूरी पर बैठने का इशारा किया. वह एक खाली कुरसी पर बैठ गया. उस के कपड़े अस्तव्यस्त थे. कुछ मिनट बाद थानाप्रभारी ने सहजता से पूछा, ‘‘क्या बात है? तुम कौन हो?’’

‘‘साहब, मेरा नाम रामप्रसाद साहू है. मैं खरकेना, कोडियापार से आया हूं. मेरे छोटे भाई सुरेश कुमार साहू की हत्या हो गई है. उस की लाश एक अनजान

वीराने घर में पड़ी हुई है…’’ कहते हुए वह सुबकने लगा.

थानाप्रभारी ने पहले उस के लिए एक गिलास पानी मंगवाया. पानी पीने के बाद थानाप्रभारी ने उस से कहा, ‘‘अब बताओ, कहां पर हत्या हुई है? उस के बारे में क्या जानते हो?’’

‘‘जी, साहबजी, कल शाम अंधेरा होने पर मेरा छोटा भाई किसी दोस्त के यहां जाने को कह कर बाइक से निकला था, उस की रात में ही किसी ने हत्या कर दी. हत्यारों ने उस का काफी बेरहमी से खून कर दिया है. आप अभी वहां पर चलिए. लाश वहीं वीरान घर में पड़ी हुई है.’’

हत्या जैसे गंभीर मामले को सुन कर थानाप्रभारी शांत कुमार साहू ने कहा, ‘‘तुम्हें कैसे मालूम कि वहां हत्या हुई है? क्या तुम भी उस में शामिल थे? सब कुछ सचसच बताओ. झूठ मत बोलना.’’

इसी के साथ थानाप्रभारी ने एक कांस्टेबल को उस की पूरी बात लिखने के लिए कहा और खुद मोबाइल में रिकौर्ड करने लगे. रामप्रसाद बताने लगा, ‘‘साहबजी, मेरा भाई घर से जब निकला था तब उस के हाथ में एक थैला था. उस में पूजापाठ और दान का कुछ सामान था. उस ने जाते हुए कहा था कि थैले में पुजारी सुभाषदास का कुछ बचा हुआ सामान है. यही सामान पुजारी को देने जा रहा है.’’

‘‘फिर क्या हुआ?’’

थानाप्रभारी के टोकने के बाद रामप्रसाद आगे बोला, ‘‘देर रात तक जब वह नहीं लौटा तब मैं उस के बताए पुजारी के पास जाने के लिए निकला. किंतु पुजारी के रहने वाले स्थान से काफी पहले ही मुझे वीरान खंडहरनुमा घर के दरवाजे के बाहर उस का थैला दिख गया. उस में वह सामान नहीं था, जो वह ले कर गया था. लेकिन मैं ने उस थैले को पहचान लिया था, क्योंकि वह मेरे घर के बरामदे में ही 2 सप्ताह से टंगा था.

‘‘वहीं मेरे भाई की एक झाड़ी में चप्पल भी दिख गई. कुछ दूरी पर मेरे भाई की मोटरसाइकिल भी नजर आ गई. मैं समझ गया कि हो न हो भाई इसी मकान में होगा.

‘‘मैं ने उस के अधखुले दरवाजे से अंदर जा कर देखा तो मेरे होश उड़ गए. वहां का दृश्य देख कर मैं डर गया और भागाभागा सीधा आप के पास आ गया. आगे का वर्णन मैं नहीं कर सकता. आप खुद ही वहीं चल कर देख लीजिए और मेरे भाई के हत्यारे को पकड़ लीजिए.’’

यह बात 13 अप्रैल, 2021 की है. रामप्रसाद के बयान के आधार पर पहले उस की तरफ से थाने में एक लिखित शिकायत दर्ज की गई. उस के बाद थानाप्रभारी तत्काल घटनास्थल के लिए कुछ पुलिसकर्मियों को ले कर निकल पड़े. साथ में रामप्रसाद साहू को भी ले लिया.

घटनास्थल ठीक वैसा ही था, जैसा रामप्रसाद साहू ने थाने में वर्णन किया था. वहां पहुंच कर घटनास्थल का मुआयना किया, जो वास्तव में काफी वीभत्स और डरावना था. वहीं सुरेश साहू की क्षतविक्षत लाश पड़ी थी. उस के चेहरे और शरीर के दूसरे कई हिस्से जख्मी थी, जिन से खून निकल कर सूख चूका था.

पास में ही खून से सनी एक कुल्हाड़ी पड़ी थी और पूजापाठ के मुख्य सामान बिखरे पड़े थे. उन्हें देख कर ऐसा लग रहा था मानो पूजापाठ के बाद उस की बलि चढ़ाई गई हो. यह घटना बीती रात 12 अप्रैल की थी, उस दिन अमावस्या की काली रात थी. शांत कुमार साहू को समझते देर नहीं लगी कि सारा घटनाक्रम तंत्रमंत्र और नरबलि से जुड़ा हुआ है.

जांचपड़ताल के अलावा रामप्रसाद के बयानों के अनुसार यह तथ्य सामने आ गया कि सुरेश साहू तंत्रमंत्र में बहुत विश्वास करता था. वह 2 तांत्रिकों के संपर्क में भी था. अब सवाल यह था कि आखिर सुरेश साहू की हत्या किस ने की? तांत्रिक पुजारियों ने या फिर किसी और ने तांत्रिकों के कहने पर उस की नरबलि दे दी? मामला गंभीर होने के बावजूद पुलिस को कोई वैसी सूचना या जानकारी नहीं मिल पा रही थी, जिस से मामले को जल्द सुलझाया जा सके.

संयोग से प्रदेश में 13 अप्रैल से लौकडाउन लगने के कारण पुलिस और प्रशासन के जिम्मे अतिरिक्त जिम्मेदारियां आ गई थीं. नतीजतन सुरेश कुमार साहू हत्या की तहकीकात का मामला टल गया. लगभग 2 महीने तक लौकडाउन लगा रहा. लौकडाउन खुलने के बाद थानाप्रभारी शांत कुमार साहू ने सुरेश साहू हत्याकांड की फाइल एक बार फिर से पलटनी शुरू की. उस की नए सिरे से जांच के लिए एक खास टीम बनाई गई.

पुलिस टीम ने अपराधियों का सुराग लगाने के लिए लगभग 70 संदिग्ध लोगों के बयान दर्ज किए. जांच में 2 तथाकथित तांत्रिक सुभाषदास मानिकपुरी और माखनदास मानिकपुरी के नाम सामने आ रहे थे. दोनों ही महीनों से लापता थे. थानाप्रभारी ने दोनों की खोज करवाई. रामप्रसाद ने भी इस की पुष्टि कर दी कि उस के भाई की उन से जानपहचान थी और घटना के दिन वह उन के पास ही गया था.

उन की तलाश के लिए पुलिस ने मुखबिर की मदद ली. तब 16 नवंबर, 2021 को माखनदास पकड़ में आ गया. उस ने अपने घर वालों को बता रखा था कि वह सतना में रेलवे का गार्ड है. पुलिस उसे सतना से पकड़ कर बिलासपुर ले आई. पूछताछ करने पर पहले तो उस ने साफ इंकार कर दिया और बताया कि वह रोजीरोटी कमाने के लिए सतना में प्राइवेट काम कर रहा रहा था. घर वालों से झूठ बोला था कि वह रेलवे में गार्ड है.

                                                                                                                                               क्रमशः

60 साल का लुटेरा: 18 महिलाओं से शादी करने वाला बहरूपिया – भाग 4

हाईप्रोफाइल वाली कमाऊ महिलाओं को फांसने में है माहिर

66 साल का रमेशचंद्र स्वैन दिखने में बेहद ही साधारण शख्स की तरह है. छोटेछोटे बाल, चार्ली चैपलिन स्टाइल की मूंछें, छोटी कदकाठी (5 फीट 2 इंच). फिर भी अपने प्रोफेशनल चार्म के चलते उस ने कई इंडिपेंडेंट महिलाओं को अपने जाल में फांस लिया था.

उस की चिकनीचुपड़ी बातों में आने वाली महिलाओं में सुप्रीम कोर्ट की वकील, केरल प्रशासनिक सेवा की एक अधिकारी, एक चार्टर्ड एकाउंटेंट, आईटीबीपी की एक अधिकारी, एक बीमा कंपनी की वरिष्ठ कार्यकारी अधिकारी और डाक्टर शामिल थी. उस से पूछताछ में जो कहानी सामने आई, वह बेहद चौंकाने वाली थी.

रमेश की गिरफ्तारी पूरे 38 सालों बाद हुई थी. पुलिस में दर्ज रिकौर्ड के अनुसार उस ने 10 राज्यों की अकेले जीवनयापन करने वाली महिलाओं (विधवा, तलाकशुदा या फिर विवाह की उम्र गुजर चुकी 40 पार की महिलाओं) को अपना शिकार बनाया था. उन को सच्चे लाइफ पार्टनर के नाम पर बेवकूफ बनाया था और उन से लाखों रुपए की ठगी की थी.

इस धोखाधड़ी के अलावा वह और भी दूसरी तरह की ठगी में शामिल रह चुका था. भुवनेश्वर के डीसीपी उमा शंकर दास के मुताबिक स्वैन 2006 में एक बैंक फ्रौड के सिलसिले में भी गिरफ्तार किया गया था. इस के बाद 2010 में मैडिकल कालेजों में दाखिले के नाम पर उसे स्टूडेंट्स से 2 करोड़ रुपए की ठगी करने पर हैदराबाद पुलिस ने गिरफ्तार किया था.

रमेश की पहली शादी साल 1979 में हुई थी. उस से उस के 2 बेटे और एक बेटी है. बाद में पत्नी उस से अलग रहने लगी थी. बताते हैं कि उस ने दूसरी शादी झारखंड की एक डाक्टर से की थी. उसे जब स्वैन के पकड़े जाने की सूचना मिली तब उन्होंने इस पर किसी भी तरह की टिप्पणी नहीं की.

2018 के बाद उसने कई मैट्रिमोनियल साइट्स पर अपने अकाउंट बनाए. वह अधिकतर 40 साल से अधिक उम्र वाली ऐसी महिलाओं को निशाना बनाता था, जिन पर शादी का दबाव रहता है. उस ने अलगअलग प्रोफाइल में खुद को डाक्टर और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय में कार्यरत अधिकारी के रूप में बताया है.

बदनामी के डर से पीडि़त महिलाएं नहीं आईं सामने

जिन से शादी की, उन में अधिकांश अविवाहित या विधवा थीं. उन की नजर में वह केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में स्वास्थ्य शिक्षा और प्रशिक्षण के उपमहानिदेशक था. ऐसा बताने पर अधिकतर महिलाएं बिना किसी संदेह के उस के साथ शादी के बंधन में बंध गई थीं. इस सिलसिले में पुलिस ने स्वैन द्वारा बरगलाई गई करीब 90 महिलाओं से संपर्क किया, लेकिन उन में से कोई भी समाज में बदनामी के डर से जांच का हिस्सा बनने को तैयार नहीं हुईं.

मात्र दसवीं तक पढ़ा हुआ रमेश चंद्र स्वैन ओडिशा और झारखंड की कई क्षेत्रीय भाषाओं के अलावा हिंदी और अंग्रेजी धाराप्रवाह बोलता था. उस की इस धोखाधड़ी के बारे में जानकारी उस के परिवार के दूसरे सदस्यों को टीवी की खबरों से मिली.

शादी के लिए झांसा देने के सिलसिले में वह अपनी उम्र 1971 की जन्म तिथि के अनुसार बताता था. जबकि वह वास्तव में 1958 में पैदा हुआ था. इस के लिए पहले वह वैवाहिक वेबसाइट पर अपनी प्रोफाइल अपलोड करता था. उस के बाद संपर्क करने वाली महिलाओं से संपर्क कर सीधा उसी से या फिर उस के परिवार से मिलता था. उन्हें विश्वास में ले कर बताता था कि वह केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में एक बड़ा अधिकारी है. प्रमाण के लिए वह कुछ फरजी दस्तावेज दिखा देता था.

इस के अलावा खुद को प्रभावशाली व्यक्ति बताने के लिए अपने कार्यालय से मिलने वाला पत्र भी दिखाता था, जिस में ‘छुट्टी का अस्वीकार प्रार्थनापत्र’ होता था. यह कहते हुए बताता था कि वह औफिस के लिए काफी महत्त्वपूर्ण है, इसलिए उस की छुट्टी जल्दी मंजूर नहीं होती है. इस तर्क के सहारे वह अपनी पत्नी से लंबे समय तक दूर रहता था.

पुलिस ने दिल्ली की टीचर वाइफ से स्वैन पर भरोसा करने के संबंध में भी पूछताछ की. इस पर उस ने बताया, ‘‘जब मैं पहली बार स्वैन से मिली थी, तब बातचीत में बेहद ही सज्जन पुरुष जैसा लगा. चूंकि मेरा कोई अभिभावक नहीं था और मैं अकेली रह रही थी. खुद के बारे में मुझे ही निर्णय लेने थे. इसलिए मैं उस की पिछली जिंदगी के बारे में जांच नहीं कर सकी. हां, उस के ईमेल आईडी सरकारी अधिकारियों की तरह असली लगा और मैं ने हामी भर दी. मेरा बचपन ओडिशा में बीता था, और मेरा मानना था कि ओडिशा के पुरुष कभी धोखा नहीं देंगे.’’

इस घटना के बाद उस ने उन अन्य महिलाओं से संपर्क किया, जिन से स्वैन ने अपने फोन का उपयोग कर शादी की थी, और उन के साथ संपर्क में रही थी. ऐसा कर उस ने अन्य महिलाओं को भी सतर्क कर दिया, जो वैवाहिक वेबसाइटों पर उस की प्रोफाइल के प्रभाव में आ कर उस से संपर्क करेंगी.

पुलिस ने पाया कि उस ने 2018 में दिल्ली की शिक्षका से शादी के बाद करीब 25 महिलाओं से संपर्क किया. उन में एक गुवाहाटी की डाक्टर भी थी, जिस ने स्वैन द्वारा आश्वस्त होने के बाद शादी के पंजीकरण के लिए अपने परिवार के साथ सड़क मार्ग से गुवाहाटी की यात्रा की. वह वहां शादी के बाद कुछ महीनों तक उस के साथ रही. ऐसी ओडिशा में 5 महिलाएं थीं, जिन में से 3 शिक्षिकाएं थीं. शिक्षिकाओं में एक विधवा थी, जिस की बड़ी बेटी थी.

इन के अलावा एक अन्य सुप्रीम कोर्ट की वकील हैं, जिस ने अब अपनी शादी को रद््द करने के लिए निचली अदालत में एक याचिका दायर कर दी है. मामले की जांच कर रहे एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि सामाजिक बदनामी के कारण कई महिलाएं औपचारिक शिकायत दर्ज कराने के लिए आगे नहीं आ रही हैं. पुलिस ने यह भी कहा कि स्वैन ने स्पष्ट रूप से महिलाओं को उन के अंतरंग वीडियो सार्वजनिक करने की धमकी दी थी.

बहरहाल, कथा लिखे जाने तक स्वैन न्यायिक हिरासत में था.

   —कथा में अवंतिका परिवर्तित नाम है

रिश्तों की कब्र खोदने वाला क्रूर हत्यारा – भाग 4

मांबाप के कत्ल की ठीक तारीख तो उदयन नहीं बता पाया, पर उस ने बताया कि यह कोई 5-6 साल पहले की बात है. उस दिन बारिश हो रही थी. पापा चिकन लेने बाजार गए थे और मम्मी कमरे में अलमारी में कपड़े रख रही थीं. हत्या के 2 हफ्ते पहले उस ने एक इंगलिश चैनल पर ‘वाकिंग डैथ’ नामक सीरियल देख कर मातापिता की हत्या की योजना बनाई थी. हत्या के दिन उदयन ने सुंदरनगर के ही गायत्री मैडिकल स्टोर्स से नींद की गोलियां खरीद ली थीं.

अलमारी में कपड़े सहेज कर रखती इंद्राणी को उदयन ने धक्का दे कर पलंग पर ढकेल दिया. इंद्राणी की बूढ़ी हड्डियों में दम नहीं था, वह अपने हट्टेकट्टे बेटे का ज्यादा विरोध नहीं कर पाईं. कुछ ही देर में उदयन ने उन का गला घोंट दिया.

लगभग आधे घंटे बाद बी.के. दास चिकन ले कर घर आए और इंद्राणी के बारे में पूछा तो उदयन ने सहज भाव से उन्हें बताया कि मां ऊपर कपड़े रख रही हैं. इस बात से संतुष्ट हो कर उन्होंने उदयन से चाय बनाने को कहा तो वह चाय बना लाया और उन के कप में नींद की 5 गोलियां मिला दीं.

चाय पीने के बाद बी.के. दास नींद की आगोश में चले गए तो उदयन ने उन की गला घोंट कर हत्या कर दी. अब समस्या लाशों को ठिकाने लगाने की थी. उन दिनों सुंदरनगर इलाके में कंस्ट्रक्शन का काम जोरों पर चल रहा था. उदयन ने बगल में काम करने वाले एक मजदूर को बुलाया और लौन के दोनों कोनों में गड्ढे खुदवा लिए. देर रात उस ने अपने जन्मदाताओं की लाशें घसीट कर गड्डों में डालीं और उन्हें हमेशा के लिए दफना दिया.

इस के बाद किसी ने बी.के. दास और उन की पत्नी इंद्राणी दास को नहीं देखा और न ही उन के बारे में कोई पूछने वाला था. उदयन की मौसी प्रिया चटर्जी ने जरूर एकाध बार उस के घर आ कर पूछा तो उदयन ने उन्हें टरकाऊ जवाब दे दिया.

भोपाल पुलिस उदयन को ले कर राजधानी एक्सप्रैस से 6 फरवरी को करीब 11 बजे रायपुर पहुंची और सुंदरनगर जा कर उस लौन की खुदाई शुरू करवा दी, जहां उदयन ने अपने मांबाप की कब्र बनाई थी. 3 घंटे की खुदाई के बाद लगभग 6 फुट नीचे से दोनों की खोपडि़यां निकलीं. साथ ही इंद्राणी के कपड़े, सोने की 4 चूडि़यां, चेन, एक ताबीज और बी.के. दास की पैंटशर्ट, बेल्ट और ताबीज भी कब्रों से मिले.

इस बंगले के मौजूदा मालिक हरीश पांडेय हैं, जो खुदाई होते वक्त वहां मौजूद थे. उन्होंने यह मकान उदयन से सुरेंद्र दुआ नाम के ब्रोकर के जरिए खरीदा था. 1800 वर्गफीट पर बने इस मकान का सौदा 30 लाख रुपए में हुआ था जोकि उन्हें सस्ता लगा था. हरीश ने जब यह मकान खरीदा था तब यहां बगीचा नहीं था, बल्कि खाली जमीन थी, जिस पर उन्होंने काली मिट्टी डाल कर गार्डन बनवा लिया था. उस वक्त उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उदयन के मांबाप की कब्रें यहां बनी हुई हैं.

दोपहर ढाई बजे तक खुदाई का काम पूरा हो गया और सारे सबूत मिल गए. रायपुर पुलिस ने उदयन के खिलाफ मांबाप की हत्या का मामला दर्ज कर लिया. उदयन अब चर्चा के साथसाथ शोध का भी विषय बन गया था. 3 राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल की पुलिस ने उस के खिलाफ हत्या, अपहरण व धोखाधड़ी जैसे दरजन भर मामले दर्ज किए हैं. रायपुर से उसे बांकुरा पुलिस बंगाल ले गई, फिर उसे वापस रायपुर लाया गया. जाहिर है, सब कुछ साफ होने तक उदयन रिमांड पर भोपाल, रायपुर और कोलकाता के बीच झूलता रहेगा.

7 फरवरी को जब उसे बांकुरा पुलिस ने सीजेएम अरुण कुमार नंदी की अदालत में पेश किया गया तो वहां गणतंत्र समनाधिकार नारी मुक्ति ने विरोध प्रदर्शन करते हुए उस पर पत्थर बरसाए. उदयन की कहानी खत्म सी हो गई है, पर जिज्ञासाएं और सवाल अभी भी बाकी हैं, जिन में से कुछ के जवाब मिल गए हैं और कुछ के मिलना शेष हैं.

अपनी मां इंद्राणी का मृत्यु प्रमाणपत्र बनवाने के लिए उस ने 8 फरवरी, 2013 को इटारसी नगर पालिका में रजिस्ट्रेशन फार्म भरा था. इस में उस ने मां की मौत 3 फरवरी, 2013 को 66 वर्ष की उम्र में होना लिखा था. इंद्राणी का स्थाई पता उस ने रायपुर का ही लिखाया था और अस्थाई पता द्वारा हेलिना दास, गांधीनगर, इटारसी लिखवाया था. इस आधार पर उसे इंद्राणी का डेथ सर्टिफिकेट मिल गया था जबकि पिता बी.के. दास का मृत्यु प्रमाणपत्र उस ने इंदौर जा कर बनवाया था.

जल्द ही साबित हो गया कि उदयन अव्वल दरजे का खुराफाती और चालाक शख्स भी था जो संयुक्त खाते से अपनी मां की पेंशन निकाल रहा था. इस बारे में फेडरल बैंक के कुछ अधिकारी शक के दायरे में हैं. इंद्राणी पेंशनभोगी कर्मचारी थीं. हर पेंशनभोगी को साल में एक बार अपने जीवित होने का प्रमाणपत्र बैंक को देना होता है. आमतौर पर पेंशनधारी खुद बैंक जा कर अपने जीवित होने का प्रमाण दे कर आते हैं.

अस्वस्थता, नि:शक्तता या किसी दूसरी वजह से बैंक जाने में असमर्थ पेंशनर्स को डाक्टरी हेल्थ सर्टिफिकेट देना पड़ता है. कैसे हर साल उदयन अपनी मां के जीवित होने का प्रमाणपत्र बैंक को दे रहा था, यह गुत्थी अभी पूरी तरह नहीं सुलझी है. लेकिन साफ दिख रहा है कि उदयन से किसी बैंक कर्मचारी की मिलीभगत थी.

हालांकि जनवरी 2012 में उस ने मां के जीवित होने का प्रमाण पत्र डिफेंस कालोनी, दिल्ली के डाक्टर एस.के. सूरी से लिया था, जिस की जांच ये पंक्तियां लिखे जाने तक चल रही थीं. अगर शुरू में ही फेडरल बैंक कर्मचारियों ने सख्ती बरती होती तो इंद्राणी की मौत का राज वक्त रहते खुल जाता.

सब कुछ साफ होने के बाद यह भी उजागर हुआ कि उदयन मांबाप की हत्या के बाद अय्याश हो गया था. नशे के साथसाथ उसे अलगअलग लड़कियों से सैक्स करने की लत भी लग गई थी. अपनी हवस बुझाने के लिए वह कालगर्ल्स के पास भी जाता था या फिर उन्हें होटलों में बुला कर ऐश करता था. फेसबुक पर उस के सौ से भी ज्यादा एकाउंट थे, जिन की प्रोफाइल में खुद को वह बड़ा कारोबारी बता कर लड़कियों को फांसता था.

उदयन की एकदो नहीं, बल्कि 40 गर्लफ्रैंड थीं जो उस की हवस पूरी करने के काम आती थीं. इन में कई अच्छे घरों की लड़कियां भी शामिल थीं. उदयन का प्यार दिखावा भर होता था. साल छह महीने में ही एक लड़की से उस का जी भर जाता था और उसे वह बासी लगने लगती थी. फिर किसी न किसी बहाने वह उसे छोड़ देता था. अभी तक 14 ऐसी लड़कियों की पहचान हो चुकी है, जिन के उदयन के साथ अंतरंग संबंध थे. 2 गायब युवतियों को पुलिस ढूंढ रही है, शक यह है कि कहीं उदयन ने इसी तर्ज पर और भी कत्ल तो नहीं किए.

शराब और ड्रग्स के आदी उदयन ने मांबाप का पैसा जम कर अय्याशियों में उड़ाया. ऐसा मामला पहले न मनोवैज्ञानिकों ने देखा है, न ही वकीलों ने और न ही उन पुलिस वालों ने जिन का वास्ता कई अनूठे अपराधियों से पड़ता है. सब के सब उदयन दास की हकीकत जान कर हैरान हैं.

दास दंपति ने हाड़तोड़ मेहनत कर के जो पैसा कमाया था. शायद यह सोच कर कि बुढ़ापा आराम से बेटेबहू और पोते के साथ गुजरेगा. लेकिन उसी बेटे ने उन का बेरहमी से अर्पणतर्पण कर डाला और उन की अस्थियां तक लेने से मना कर दिया.

उदयन की परवरिश का मामला एक गंभीर विषय है जिस पर काफी सोचसमझ कर बोलने और सोचने की जरूरत है, क्योंकि हत्या जैसे संगीन जुर्म की वजह बचपन के एकाकीपन, किशोरावस्था की हिंसा और युवावस्था की क्रूरता को नहीं ठहराया जा सकता.