दोस्त की शराबी गोली : दोस्ती पड़ी महंगी

छत्तीसगढ़ के सरगुजा का शहर अंबिकापुर.रात के लगभग 8 बजे थे, कोरोना महामारी के चलते देशभर में लौकडाउन चल रहा था. जिधर देखो, उधर ही सन्नाटा. छत्तीसगढ़़ सरगुजा संभाग के ब्रह्म रोड, अंबिकापुर स्थित अपने आवास के बाहर खड़े सौरभ अग्रवाल ने मोबाइल से अपने चचेरे भाई सुनील अग्रवाल को काल लगाई.

काल रिसीव हुई तो उस ने पूछा, ‘‘क्या कर रहे हो भाई? वैसे कर ही क्या सकते हो, चारों ओर तो सन्नाटा पसरा है.’’

हैलो के साथ सुनील ने दूसरी ओर से कहा, ‘‘घर पर बैठा हूं, टीवी पर कोरोना की खबरों के अलावा कुछ है ही नहीं. देखदेख कर बोर हो रहा हूं. कभी मौतों के आंकड़े आते हैं तो कभी मरीजों के. देख कर लगता है, जैसे अगला नंबर मेरा ही है.’’

हलकी हंसी के साथ सौरभ बोला, ‘‘आओ, आकाश के यहां चलते हैं. कह रहा था, टाइम पास नहीं हो रहा, सारी व्यवस्था कर रखी है उस ने.’’

सौरभ ने इशारे में सुनील को बता दिया. लेकिन वह तल्ख स्वर में बोला, ‘‘तू आकाश के चक्कर में मत रहा कर. उस क ी जुबान की कोई कीमत नहीं है. पिछले डेढ़ साल से चक्कर पर चक्कर कटवा रहा है, एक नंबर का बदमाश है.’’

‘‘भाई, समयसमय की बात है, कभी करोड़ों का आसामी था, उस के पिता की तूती बोलती थी सरगुजा में… समय का मारा है बेचारा. रही बात मकान की तो चिंता क्यों करते हो, पक्की लिखापढ़ी है, मकान तो उस के पुरखे भी खाली करेंगे.’’ सौरभ ने आकाश का पक्ष रखने की कोशिश की.

‘‘ठीक है, मैं आता हूं.’’ सुनील अग्रवाल ने बात बंद कर दी. सुनील उस का चचेरा भाई था, उम्र लगभग 40 वर्ष. दोनों में खूब छनती थी. दोनों मिलजुल कर अंबिकापुर में बिल्डिंग वर्क और प्रौपर्टी डीलिंग का काम करते थे. सौरभ अपनी इनोवा सीजी 15डी एच8949 पर आ कर बैठ गया. थोड़ी देर में सुनील अग्रवाल आ गया .

दोनों कार से शहर का चक्कर लगा कर आकाश गुप्ता के घर पहुंच गए. हमेशा की तरह आकाश ने मुसकरा कर दोनों का स्वागत किया. तीनों के आपस में मित्रवत संबंध थे, एक ही शहर एक ही मोहल्ले में रहने के कारण एकदूसरे के काफी करीब थे. आपस में लेनदेन भी चलता था.

वह आकाश का पुश्तैनी घर था, जो अकसर खाली रहता था. जब पीनेपिलाने का प्रोग्राम बनता था तो सब दोस्त अक्सर यहीं एकत्र होते थे. फिर कैरम खेलने और पीनेपिलाने का दौर चलता था, इसी के चलते आकाश ने यह मकान 2. 30 करोड़ में सौरभ को बेच दिया था और पैसे भी ले लिए थे, मगर वह मकान को सुपुर्द करने में आनाकानी कर रहा था.

बहरहाल, इन सब बातों को दरकिनार कर सुनील और सौरभ आकाश गुप्ता के घर पहुंचे और महफिल सज गई. आकाश ने बेशकीमती शराब, मुर्गमुसल्लम वगैरह मंगा रखा था. लौकडाउन के समय में ऐसी बेहतरीन व्यवस्था देख कर सौरभ अग्रवाल चहका, ‘‘अरे भाई क्या इंतजाम किया है, लग ही नहीं रहा लौकडाउन चल रहा है.’’ इस पर आकाश गुप्ता और सुनील अग्रवाल दोनों हंसने लगे.

बातचीत और पीनेपिलाने का दौर शुरू हुआ. इसी बीच अपने उग्र स्वभाव के मुताबिक सुनील अग्रवाल ने आकाश की ओर मुखातिब हो कर कहा, ‘‘यार, ये सब तो ठीक है मगर तू यह बता… सौरभ को मकान कब दे रहा है, 6 महीने हो गए.’’

यह सुन कर आकाश गुप्ता मुसकराते हुए बोला, ‘‘यार, तुम मौजमजा करने आए हो. मजे करो. कोरोना पर बात करो. ये मकान कहां जाएगा.’’

इस पर सौरभ बोला, ‘‘बात बिलकुल ठीक है. आज कोरोना की वजह से हुए लौकडाउन को 17वां दिन है. त्राहित्राहि मची है.’’

सौरभ की बात पर सुनील गंभीर हो गया और चुपचाप शराब का गिलास हाथों में उठा लिया. आकाश ने अपने एक साथी सिद्धार्थ यादव को भी बुला रखा था जो उन की सेवा में तैनात था, साथ ही हमप्याला भी बना हुआ था.

हंसतेमुसकराते तीनों शराब पी रहे थे. तभी एकाएक सुनील अग्रवाल ने कहा, ‘‘यार, तूने यह आदमी कहां से ढूंढ निकाला, पहले तो तेरे यहां कभी नहीं देखा.’’

कुछ सकुचाते हुए आकाश गुप्ता ने कहा,

‘‘हां, नयानया रखा है  तुम्हारी सेवाटहल के लिए.’’

‘‘इसे कहीं देखा है…’’ सुनील ने शराब का घूंट गले से नीचे उतारते हुए कहा

‘‘हां देखा होगा. मैं यहीं का हूं भैया, पास में ही मेरा घर है.’’

‘‘नाम  क्या  है  तेरा?’’

‘‘सिद्धार्थ… सिद्धार्थ यादव.’’

‘‘हूं, तू जेल गया था न, कब छूटा?’’ सुनील ने उस पर तीखी नजर डालते हुए कहा

‘‘मैं…अभी एक महीना हुआ है.’’ सिद्धार्थ ने हकलाते हुए दोनों की ओर देख कर कहा.

‘‘अरे, तुम भी यार… सिद्धार्थ बहुत काम का लड़का है. अब सुधर गया है.’’ कहते हुए आकाश गुप्ता ने दोनों के खाली गिलास फिर से भर दिए. दोनों पीते रहे. जब नशा तारी हुआ तो अचानक आकाश गुप्ता जेब से पिस्तौल निकालते हुए बोला, ‘‘आज तुम दोनों खल्लास, मेरा… मेरा मकान चाहिए. ब्याज  पर ब्याज …ब्याज पर ब्याज… आज तुम दोनों को मार कर यहीं दफन कर दूंगा.’

आकाश का रौद्र रूप देख सौरभ और सुनील दोनों के होश उड़ गए. वे कुछ कहते समझते, इस से पहले ही आकाश ने गोली चला दी जो सीधे सुनील अग्रवाल के सिर में लगी. वह चीखता हुआ वहीं ढेर हो गया.

सुनील को गोली लगते देख सौरभ कांप  उठा और वहां से भागने लगा. यह देख पास खड़े सिद्धार्थ यादव ने गुप्ती निकाली और सौरभ अग्रवाल के पेट में घुसेड़ दी. उस के पेट से खून का फव्वारा फूट पड़ा और वह वहीं गिर गया. आकाश ने उस पर भी एक गोली दाग दी. सुनील और सौरभ फर्श पर गिर कर थोड़ी देर तड़पते रहे और फिर मौत के आगोश में चले गए.

आकाश ॒गुप्ता ने पिस्तौल जेब में रख ली. फिर उस ने सिद्धार्थ के साथ मिल कर सौरभ और सुनील की लाशों को घर में पहले से ही खोद कर रखे गए गड्ढे में डाल कर ऊपर से मिट्टी डाल दी. इस से पहले सिद्धार्थ यादव ने सौरभ और सुनील की जेब से पर्स, हाथ से अंगूठी, चेन, इनोवा गाड़ी की चाबी अपने कब्जे में ले ली थी.

आकाश के निर्देशानुसार वह घर से निकला और इनोवा को चला कर आकाशवाणी मार्ग पर पहुंचा. उस ने इनोवा वहीं खड़ी कर उस में पर्स, मोबाइल रख दिया. लेकिन वह यह नहीं देख सका कि उस का चेहरा कैमरे की जद में आ गया है.

10 अप्रैल, 2020 शुक्रवार को देर रात तक जब सौरभ अग्रवाल और सुनील अग्रवाल घर नहीं पहुंचे तो घर वालों को चिंता हुई. देश के साथसाथ अंबिकापुर में भी लौकडाउन का असर था. सड़कें सूनी थीं. सौरभ के भाई सुमित अग्रवाल ने सौरभ व सुनील के कुछ मित्रों को उन के मोबाइल पर काल कर के दोनों के बारे में पूछताछ की, लेकिन कोई जानकारी नहीं मिली. दोनों के मोबाइल भी स्विच्ड औफ थे. इस से घर वाले चिंतातुर थे.

अगले दिन सुबह सुमित अग्रवाल ने सौरभ के पिता बलराज अग्रवाल से आकाश गुप्ता का मोबाइल नंबर ले कर उसे काल की और सौरभ व सुनील के बारे में पूछा. आकाश गुप्ता ने इस बारे में अनभिज्ञता जाहिर करते हुए पूछा, ‘‘क्या बात है?’’

यह बताने पर कि सौरभ व सुनील भैया दोनों रात भर घर नहीं आए तो आकाश ने नाटकीयता पूर्वक कहा, ‘‘अरे, यह तो चिंता की बात है… रुको, मैं पता लगाता हूं.’’

सभी को यह जानकारी थी कि आकाश गुप्ता से सौरभ के घनिष्ठ संबंध थे. ऐसे में आकाश ने उस के परिजनों का विश्वास जीतने का प्रयास किया. थोड़ी देर बाद वह स्वयं सौरभ अग्रवाल के घर आ पहुंचा और बातचीत में शामिल हो गया.

जब सुबह भी सौरभ व सुनील का पता नहीं चल पाया तो तय हुआ कि इस बात की जानकारी पुलिस को दे दी जाए. सुनील और सौरभ के भाई सुमित थाने पहुंचे. उन्हें कोतवाल विलियम टोप्पो से मिल कर उन्हें पूरी बात बता दी.

कोतवाल टोप्पो ने पूछा, ‘‘पहले कभी ऐसा हुआ था?’’

‘‘नहीं…सर, ऐसा कभी नहीं हुआ, दोनों रात 11 बजे तक घर आ जाया करते थे. दोनों के मोबाइल भी औफ हैं. हम ने सारे परिचितों से भी पूछताछ कर ली है.’’ सुमित अग्रवाल यह सब बताते हुए रुआंसा हो गया.

‘‘देखो, चिंता मत करो, तुम्हारी तहरीर पर रिपोर्ट दर्ज कर हम खोजबीन शुरू करते हैं.’’ कोतवाल  विलियम टोप्पो ने आश्वासन दिया.

कोतवाल दोनों के घर पहुंचे और जरूरी बातें पूछने के बाद उच्चाधिकारियों एसपी आशुतोष सिंह, एडीशनल एसपी ओम चंदेल और एसपी (सिटी) एस.एस. पैकरा को इस घटना की जानकारी दे दी. मामला अंबिकापुर के धनाढ्य परिवार से जुड़ा था.

सौरभ और सुनील के गायब होने की खबर बहुत तेजी से फैली. पुलिस पर सम्मानित लोगों का प्रेशर बढ़ने लगा. दोपहर होते होते एसपी आशुतोष सिंह और सभी अधिकारी व डीएसपी फोरैंसिक टीम के साथ सौरभ अग्रवाल व सुनील के घर पहुंच गए. इस के साथ ही जांच तेजी से शुरू हो गई.

इसी बीच खबर मिली कि सौरभ व सुनील जिस इनोवा कार में घर से निकले थे, वह अंबिकापुर के आकाशवाणी चौक के पास खड़ी है.

यह सूचना मिलते ही कोतवाल विलियम टोप्पो आकाशवाणी चौक पहुंचे और गाड़ी की सूक्ष्मता से जांच की. गाड़ी में सुनील और सौरभ के पर्स व मोबाइल मिल गए. इस से मामला और भी संदिग्ध हो गया.

पुलिस ने आसपास के सीसीटीवी कैमरों की जांच की तो एक शख्स गाड़ी पार्क करते और उस में से निकलते दिखाई दे गया. पुलिस ने तफ्तीश की तो पता चला वह शातिर अपराधी  सिद्धार्थ यादव उर्फ श्रवण है, जो फरवरी 2020 में ही एक अपराध में जेल से बाहर आया है. पुलिस ने उसे उस के घर से हिरासत में ले लिया और पूछताछ शुरू कर दी.

पहले तो सिद्धार्थ एकदम भोला बन कर कहने लगा, ‘‘मैं तो घर पर था, कहीं गया ही नहीं.’’

मगर जब उसे सीसीटीवी में कैद उस की फुटेज दिखाई गई तो उस का चेहरा स्याह पड़ गया. उस के कसबल ढीले पड़ गए. आखिर उस ने पुलिस को चौंकाने वाली बात बताई. उस ने कहा कि सौरभ व सुनील अग्रवाल की गोली मार कर हत्या कर दी गई है.

सिद्धार्थ यादव के बयान के आधार पर पुलिस ने आकाश गुप्ता के यहां दबिश दी. वह शराब में डूबा घर पर बैठा था. पुलिस ने उसे गिरफ्त मे ले कर पूछताछ शुरू की. साथ ही सिद्धार्थ यादव की निशानदेही पर आकाश गुप्ता के घर में खोदे गए गड्ढे से सौरभ व सुनील की लाशें भी बरामद कर ली.

हत्या में इस्तेमाल की गई पिस्तौल भी जब्त कर ली गई. तब तक यह खबर अंबिकापुर के कोनेकोने तक पहुंच गई थी. लौकडाउन के बावजूद आकाश गुप्ता के घर के बाहर लोगों का हुजूम जुट गया.

पुलिस हिरासत में आ कर आकाश गुप्ता का नशा हिरन हो गया था. थरथर कांपते हुए उस ने अपनी गलती स्वीकार कर ली और पुलिस को सब कुछ बता दिया. आकाश के पिता काशी प्रसाद गुप्ता कभी शहर के बहुत बड़े आसामी थे, पांच बहनों में अकेले भाई आकाश को पिता की अर्जित धनसंपत्ति शौक में उड़ाने  के अलावा कोई काम नहीं था.

धीरेधीरे वह करोड़ों की जमीनजायदाद बेचता रहा. उस ने अपना पुश्तैनी मकान भी सौरभ को 2 करोड़ 30 लाख रुपए में बेच दिया था. वह उस से रुपए भी ले चुका था, लेकिन उस की नीयत खराब हो गई थी.

वह चाहता था किसी तरह मकान उस के कब्जे में रह जाए. दूसरी तरफ 2016 में आकाश गुप्ता ने सौरभ के पिता बलराज अग्रवाल से 20  लाख रुपए का कर्ज  लिया था और इन 4 वर्षों में 50 लाख रुपए अदा करने के बावजूद उस से ब्याज के 50 लाख रुपए मांगे जा रहे थे.

परेशान आकाश गुप्ता ने सिद्धार्थ को विश्वास में लिया. उसे सिद्धार्थ की आपराधिक पृष्ठभूमि पता थी. आकाश ने धीरेधीरे सिद्धार्थ से घनिष्ठ संबंध बनाए और उसे बताया कि वह किस तरह करोड़पति से बरबादी की ओर जा रहा है.

इस पर सिद्धार्थ यादव ने आकाश गुप्ता के साथ हमदर्दी जताते हुए कहा, ‘‘ऐसा है तो क्यों ना सौरभ को रास्ते से हटा दिया जाए. आकाश को सिद्धार्थ की कही बात जम गई. दोनों ने साथ मिल कर पहले सौरभ के अपहरण की योजना बनाई. लेकिन उस में बड़े पेंच देख कर तय किया कि हत्या ज्यादा आसान है. दोनों ने इसी योजना पर काम किया.

सौरभ की हत्या की योजना बनने लगी तो सिद्धार्थ ने आकाश को पास के उपनगर  गंगापुर के रमेश अग्रवाल से मिलवाया. रमेश ने बरगीडीह निवासी शिव पटेल से 90 हजार रुपए में एक पिस्तौल व गोलियां दिला दीं.

हत्या की योजना बना कर पहले ही यह तय कर लिया गया था कि सौरभ व सुनील को मार कर उन की लाशें घर में ही दफन कर दी जाएंगी. सिद्धार्थ और आकाश ने 4 अप्रैल से धीरेधीरे गड्ढा खोदने का काम शुरू कर दिया था.

आकाश गुप्ता ने सिद्धार्थ को मोटी रकम देने का लालच दे कर अपने साथ मिला लिया. सिद्धार्थ भी आकाश गुप्ता की रईसी से प्रभावित था और धारणा बना चुका था कि इस काम में उस की मदद कर के उस का जिंदगी भर का राजदार बन जाएगा और आगे की जिंदगी मौजमजे से गुजारेगा.

11 अप्रैल 2020 की देर शाम तक आकाश गुप्ता और सिद्धार्थ को गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस ने सौरभ अग्रवाल, सुनील अग्रवाल की हत्या के आरोप में आकाश और सिद्धार्थ के विरुद्ध भारतीय दंड विधान की धारा 302, 201, 120बी 34,25, 27 आर्म्स एक्ट  के तहत मामला दर्ज कर के आरोपियों को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें अंबिकापुर कारागार भेज दिया गया.

सौजन्य- मनोहर कहानियां, अगस्त 2020

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खिलाड़ियों का शिकार

विनोद दीक्षित उस मीटिंग में जाने की तैयारी कर रहे थे, तभी उन के पास 32-33 साल का एक युवक शिकायत ले कर आया. उस ने टीआई साहब को शिकायती पत्र दिया. उसे पढ़ कर टीआई विनोद दीक्षित चौंके. क्योंकि मामला हनीट्रैप का था.

हनीट्रैप का एक मामला वैसे भी पूरे प्रदेश में हलचल मचाए हुए था. यह मामला भी कहीं चर्चित न हो जाए, इसलिए टीआई ने उस युवक की शिकायत को गंभीरता से लेते हुए यह सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दे दी.

एसएसपी के आदेश पर टीआई ने शिकायतकर्ता राजेश गहलोत की तहरीर पर आरोपियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा कर इस की जांच एसआई दिलीप देवड़ा को सौंप दी.

एसआई दिलीप देवड़ा ने जब राजेश सोलंकी ने बताया कि इंदौर की द्वारिकापुरी सोसाइटी निवासी दुर्गेश सेन और उस की लिवइन पार्टनर गायत्री सिसोदिया ने पहले उसे धोखे से अपने देहजाल में फंसाया और फिर चोरीछिपे उस की अश्लील वीडियो बना ली.

उसी वीडियो से ब्लैकमेल कर के वह उस से 45 हजार रुपए वसूल चुके हैं. लेकिन इस के बाद भी उन की पैसों की मांग लगातार बढ़ती जा रही है. राजेश गहलोत ने ब्लैकमेल करने के कुछ सबूत भी जांच अधिकारी को सौंपे.

एसआई दिलीप देवड़ा ने सबूतों का अध्ययन कर के राजेश गहलोत से बात करने के बाद सारी जानकारी टीआई विनोद दीक्षित व सीएसपी पुनीत गहलोत को दे दी.

इस के बाद उन्होंने नामजद आरोपियों को गिरफ्तार करने की योजना बनानी शुरू कर दी. अगले दिन पुलिस टीम ने द्वारिकापुरी सोसाइटी से दुर्गेश को गिरफ्तार कर लिया. तलाशी में दुर्गेश के पास एक भरा हुआ पिस्तौल ओर 3 जिंदा कारतूस भी मिले.

दुर्गेश से पूछताछ की गई तो उस ने खुद को निर्दोष बताया. इतना ही नहीं उस ने राजेश गहलोत को पहचानने से भी इनकार कर दिया. लेकिन जब एसआई देवड़ा ने गहलोत द्वारा उपलब्ध कराए सबूत उस के सामने रखे तो दुर्गेश की बोलती बंद हो गई. अब उस के बोलने की कोई गुंजाइश ही नहीं बची थी.

लिहाजा उसे सच्चाई बताने के लिए मजबूर होना पड़ा. एसआई देवड़ा ने उस से जानकारी ले कर तत्काल जवाहर नगर देवास में दबिश दी और गायत्री सिसोदिया को भी गिरफ्तार कर लिया. गायत्री ने भी नाटकबाजी करते हुए राजेश गहलोत को पहचानने से इनकार कर दिया.

जांच अधिकारी ने गायत्री सिसोदिया का मोबाइल जब्त कर उस की जांच की तो राजेश के साथ ही नहीं बल्कि कई अन्य युवकों के साथ भी उस की अश्लील वीडियो मिलीं. इस से साफ हो गया कि गायत्री दुर्गेश के साथ मिल कर पैसे वाले युवकों को अपने जिस्म के जाल में फंसा कर उन्हें ब्लैकमेल करने का काम कर रही थी.

चूंकि उन के खिलाफ सुबूत मिल चुके थे और उन्होंने अपना अपराध भी स्वीकार कर लिया था, इसलिए पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश कर दुर्गेश को रिमांड पर ले लिया जबकि कोर्ट के आदेश पर गायत्री को जेल भेज दिया गया. इस के बाद हनीट्रैप की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी—

मध्य प्रदेश के जनपद देवास के रहने वाले राजेश गहलोत का टूव्हीलर

शोरूम था. जिस मोहल्ले में राजेश रहते थे, उसी मोहल्ले में दुर्गेश नाम का एक शख्स रहता था जो एक निजी कंपनी की बस में ड्राइवर था. दुर्गेश चालाक इंसान था. उस ने नरसिंहपुर में रहने वाली गायत्री नाम की युवती से अच्छी दोस्ती कर ली थी. यह दोस्ती उन्हें अवैध संबंधों तक ले गई.

दरअसल गायत्री इंदौर के एक कालेज से बीए द्वितीय वर्ष की पढ़ाई कर रही थी. वह अकसर दुर्गेश की बस से कालेज जाती थी. उसी समय उन दोनों की दोस्ती हो गई थी. बाद में दुर्गेश उस की आर्थिक मदद भी करने लगा था. उन के संबंध इतने गहरे हो गए थे कि दुर्गेश ने द्वारिकापुरी में किराए पर एक फ्लैट ले लिया और उस के साथ लिव इन रिलेशन में रहने लगा.

इस के पीछे गायत्री की यह सोच थी कि उसे पढ़ाई का खर्च तो घर से मिलता रहेगा, बाकी ऐश के लिए दुर्गेश उस का खर्च उठाएगा. लेकिन एक बस ड्राइवर अपनी प्रेमिका पर कितना खर्च कर सकता था. सो जल्द ही गायत्री को लगने लगा कि ऐश करने के लिए उसे ही कोई रास्ता निकालना पड़ेगा. इस बीच उस ने देखा कि उस के कालेज की कई लड़कियां जो बाहर के शहरों से पढ़ने के लिए इंदौर में आ कर अकेली रहती हैं, अपने ऊपरी खर्च निकालने के लिए एक साथ कई लड़कों को अपना प्रेमी बनाए हुए हैं.

लेकिन उन में और गायत्री में अंतर था. दूसरी लड़कियों को रोकटोक करने वाला कोई नहीं था, जबकि दुर्गेश गायत्री पर नजर रखता था. इसलिए काफी सोचसमझ कर गायत्री ने एक दिन दुर्गेश को जल्द अमीर होने की योजना बताई. उस ने कहा कि क्यों न वे युवकों को हनीट्रैप में फंसा कर उन से मोटी कमाई करें.

दुर्गेश को गायत्री की यह योजना पसंद आ गई. दुर्गेश खुद भी गायत्री के साथ यही कर रहा था. वह उसे अन्य युवकों के साथ सुलाने के लिए तैयार हो गया. इस योजना में दुर्गेश ने अपने दोस्त राकेश सोलंकी को भी शामिल कर लिया.

गायत्री ने सब से पहले युवकों को फंसाने की शुरुआत अपने कालेज से की. वहां से वह युवकों को अपने जाल में फंसा कर कमरे पर लाती, जहां दुर्गेश चोरीछिपे उन की अश्लील फिल्म बनाने के बाद गायत्री और राकेश की मदद से ब्लैकमेल करता. लेकिन जल्द ही इन दोनें की समझ में आ गया कि कालेज बौय को फंसाने में 10-15 हजार से ज्यादा की रकम नहीं मिल पाती. इसलिए वह मालदार आसानी को शिकार बनाने की फिराक में रहने लगे.

इस बीच गायत्री ने कालेज में ऐसी लड़कियां तलाश कर लीं, जिन की न केवल कई युवकों से दोस्ती थी बल्कि किसी भी युवक के साथ एकदो दिन के लिए इंदौर से बाहर घूमने के लिए जाने को तैयार रहती थीं.

गायत्री ने ऐसी लड़कियों से दोस्ती कर एक वाट्सऐप ग्रुप बना कर सब को साथ जोड़ लिया. इस के बाद उस ने इन में से काम की कुछ लड़कियों का चयन कर उन्हें अपने सांचे में ढाल लिया. इस काम में दुर्गेश भी उस की मदद कर रहा था.

अब उस के ग्रुप की लड़कियां किसी मालदार युवक को अपने रूपजाल में फंसा कर गायत्री के कमरे में लातीं जहां गायत्री और दुर्गेश मिल कर युवती के साथ युवक का अश्लील वीडियो बनाने के बाद उस से बड़ी रकम झटक लेते. इस काम के लिए गायत्री के गिरोह की लड़कियों ने कई कोड वर्ड भी तैयार कर लिए थे. जैसे कि लड़की बोलती कि एक फोटो फ्रेम कर ली है तो इस का मतलब होता था कि एक युवक जाल में फंस चुका है.

जांच में सामने आया कि गायत्री राकेश और दुर्गेश ने कई युवकों को इस तरह से ब्लैकमेल कर उन से बड़ी रकम लूटी. पुलिस ने गायत्री के वाट्सऐप ग्रुप से जुड़ी कुछ लड़कियों के भी बयान दर्ज किए, जिन में उन्होंने स्वीकार किया कि गायत्री उन से लड़कों को फंसा कर अपने घर पर लाने का दबाव डालती थी लेकिन उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया था.

देवास निवासी राजेश गहलोत गायत्री के जाल में कैसे फंसा इस की कहानी भी काफी रोचक है. हुआ यह कि राजेश को देवास स्थित अपने टूव्हीलर शोरूम पर एकाउंट का काम संभालने के लिए किसी स्मार्ट लड़की की जरूरत थी. इस बारे में राजेश ने दुर्गेश की मौजूदगी में अपने दोस्त से बात की तो दुर्गेश का दिमाग चल गया. राजेश के पास काफी पैसा है यह बात दुर्गेश जानता था.

उस ने सोचा कि अगर गायत्री से राजेश को मिलवा दिया जाए तो लाखों रुपए हाथ आ जाएंगे, यह सोच कर उस ने राजेश से कहा, ‘‘इंदौर में मेरी परिचित एक युवती है. स्मार्ट भी है उसे काम की जरूरत है. तुम कहो तो इंटरव्यू के लिए मैं उसे बुला देता हूं. अगर समझ में आए तो देख लेना. मुझे लगता है कि वो काफी सुलझी हुई लड़की है, जो तुम्हारा सारा शोरूम संभाल सकती है.’’

‘‘ठीक है, उसे 2 दिन बाद बुला लो, क्योंकि कल मुझे एक जरूरी काम से इंदौर जाना है.’’ राजेश बोले.

‘‘ठीक है न, वो इंदौर में ही रहती है. तुम कहो तो वहीं तुम्हारी मुलाकात उस से करवा दूंगा.’’ दुर्गेश ने राजेश से कहा तो राजेश इस के लिए तैयार हो गया.

दूसरे दिन दुर्गेश अपनी ड्यूटी पर नहीं गया और इंदौर में बैठ कर गायत्री के साथ राजेश को सांचे में उतारने की तैयारी में जुट गया. राजेश चूंकि दुर्गेश की नजर में काफी मोटी आसामी था, इसलिए राजेश से मिलने से पहले उस ने गायत्री को ब्यूटीपार्लर भेज कर तैयार करवाया. इस के बाद उस ने राजेश को फोन लगाया. राजेश ने कहा कि अभी वह व्यस्त है. उस ने युवती को 2 दिन बाद देवास भेजने को कह दिया.

लेकिन जब दुर्गेश ने उस पर दबाव डाला तो वह काम से फ्री होने के बाद युवती का इंटरव्यू लेने को राजी हो गया. फिर शाम के समय दुर्गेश राजेश को ले कर गायत्री के पास आ गया. राजेश को गायत्री के साथ फ्लैट में छोड़ कर वह किसी काम के बहाने वहां से चला गया.

राजेश ने सजीधजी गायत्री को देखा तो वह उसे कहीं से भी नौकरी की तलबगार नहीं लगी. उस ने गायत्री से पूछा, ‘‘आप ने इस के पहले कहीं काम किया है?’’

‘‘जी नहीं, आप पहले हैं, जिन के साथ मैं काम करूंगी.’’ गायत्री ने मुसकरा कर जवाब दिया.

ऐसा कहते हुए गायत्री ने ‘काम’ शब्द पर जिस तरह जोर दिया उस से राजेश को लगने लगा कि गायत्री का इरादा ठीक नहीं है. एक बार तो राजेश का मन हुआ कि वहां से उठ कर चला जाए लेकिन फिर उसे लगा कि शायद उस का ऐसा सोचना गलत है.

संभव है कि लड़की का वह मतलब न हो, जो वह समझ रहा है. जबकि गायत्री का मतलब सचमुच वही था. यह बात उस की समझ में तब आई जब कुछ देर बाद गायत्री के साथ उस के कपड़े भी कमरे के फर्श पर पड़े थे.

कमरे में आया सांसों का तूफान थम चुका था. ऐसा कर के राजेश खुद को शर्मिंदा महसूस कर रहा था इसलिए अपनी शर्म छिपाने के लिए उस ने गायत्री से कहा, ‘‘ठीक है, तुम पहली तारीख से काम पर आ जाना.’’

इस के बाद दोनों अपनेअपने घर चले गए. इस के 2 दिन बाद गायत्री राजेश के शोरूम पर आई. राजेश ने नजरें चुराते हुए उसे काम समझाया. लेकिन गायत्री बोली, ‘‘लेकिन अब मुझे काम की कोई जरूरत ही नहीं है.’’

‘‘क्यों’’ राजेश ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘क्योंकि आप मुझे जितना वेतन साल दो साल में देते वो तो अब आप मुझे ऐसे ही 2 मिनट में दे देंगे.’’ गायत्री ने गरदन टेढ़ी कर कहा.

‘‘यह देखिए हमारे प्यार की फिल्म.’’  कहते हुए गायत्री ने उसे वह वीडियो दिखा दी जो उस ने राजेश के साथ हकीकत में किया था.

वीडियो देख कर राजेश को पसीना आ गया. लेकिन गायत्री ने चुटकी लेते हुए कहा, ‘‘क्या सैक्सी ऐक्ट करते हो यार. बाजार में इस वीडियो को बेच दूं तो लाख दो लाख तो यूं ही मिल जाएंगे.’’

‘‘क्या कहना चाहती हो तुम.’’ राजेश थूक गटकते हुए बोला.

‘‘यही कि इस वीडियो को आप खरीदना पसंद करोगे या फिर किसी और को बेचूं?’’ वह शब्दों पर जोर देते हुए बोली.

‘‘तुम मुझे ब्लैकमेल कर रही हो?’’

‘‘तुम ने भी तो यही किया. नौकरी देने के नाम पर मेरी इज्जत लूट ली.’’

‘‘पहल तो तुम ने ही की थी.’’

‘‘लेकिन पुलिस इस बात को नहीं मानेगी, न कानून मानेगा. छोड़ो इसे कानून गया तेल लेने. मैं अपने बनाए कानून से चलती हूं. मेरी अदालत में गवाह भी मैं हूं और जज भी मैं. सीधी बात करो. 2 लाख दो और अपनी इज्जत बचा लो.’’ गायत्री ने सौदेबाजी की.

राजेश रोयागिड़गिड़ाया लेकिन गायत्री को दया नहीं आई. इसलिए राजेश ने अपने पर्स में रखे 25 हजार रुपए उसे दिए और उस से अपनी जान छुड़ाई. राजेश समझ गया कि राकेश और दुर्गेश भी इस पूरे खेल में शामिल हैं, लेकिन अपनी इज्जत के डर से वह चुप रहा.

इधर दूसरे दिन ही गायत्री ने उस से और पैसों की मांग की तो राजेश ने उसे 15 हजार रुपए और दे दिए, जबकि गायत्री 2 लाख पर अड़ी रही.

इतना ही नहीं जब राजेश ने आनाकानी की तो एक दिन राजेश के शोरूम पर आ कर वह तकरीबन 70 हजार रुपए की एक नई गाड़ी ले कर चली गई. राजेश ने सोचा कि अब शायद गायत्री उस का पीछा छोड़ देगी. लेकिन कुछ दिनों बाद गायत्री के साथ दुर्गेश भी उसे पैसा देने के लिए धमकाने लगा.

संयोग से इसी बीच राजेश की मुलाकात इंदौर निवासी अपने एक पत्रकार मित्र से हो गई. राजेश को परेशान देख कर उस ने कारण पूछा तो राजेश ने उसे सारी बात सुना दी. इस पर पत्रकार दोस्त ने उसे पुलिस की मदद लेने की सलाह दी. साथ ही उस ने पुलिस के पास जाने से पहले कुछ पुख्ता सबूत जमा कर लेने को कहा.

जिस के चलते 15 नवंबर के आसपास जब गायत्री ने फोन कर और पैसों की मांग की तो राजेश ने कहा कि ठीक है कल शाम को फूटी कोठी के पास मिलो, वहां मैं तुम्हें पैसा दे दूंगा.

गायत्री आई तो राजेश उसे पहले से तैयार रखे गए एक मकान में ले गया, जहां उस ने गायत्री के साथ हुई पैसों के लेनदेन की बात रिकौर्ड कर ली. इस के बाद कुछ देर में एटीएम से पैसा निकालने की बोल कर वह वहां से वापस आ गया और वह सीधे पुलिस के पास पहुंच गया.

टीआई विनोद दीक्षित के नेतृत्व में मामले की जांच कर रहे एसआई दिलीप देवड़ा ने 24 घंटे में ही दोनों आरोपियों दुर्गेश और बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा गायत्री को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. जबकि राकेश फरार था.

पुलिस जांच में पूर्व विधायक के एक नजदीकी व्यक्ति व ओम प्रकाश साखला का नाम भी सामने आया. पुलिस ने पूछताछ करने के लिए दोनों के घर में दबिश डालीं, लेकिन ये फरार मिले. कथा लिखने तक पुलिस फरार आरोपियों की तलाश में जुटी थी.

कुंवारी लड़कियों का कामुक कथावाचक

मध्य प्रदेश के जिला सतना में एक थाना है नादन. 10 दिसंबर, 2019 को एक व्यक्ति 3 बालिकाओं को साथ ले कर थाना नादन के टीआई भूपेंद्र के पास पहुंचा. उस के साथ जो बालिकाएं थीं, उन की उम्र 14, 16 और 17 साल थी.

टीआई ने सोचा कि आगंतुक इतनी सर्दी में 3 लड़कियों को ले कर आया है तो कुछ न कुछ खास बात ही होगी. उन्होंने उसे कुरसी पर बैठने का इशारा किया. वह आदमी और लड़कियां कुरसियों पर बैठ गईं. टीआई भूपेंद्र पांडेय ने उस व्यक्ति से थाने आने का कारण पूछा.

कुछ देर वह चुप रहा. फिर टीकाराम नाम के उस व्यक्ति ने अपनी पीड़ा थानाप्रभारी को बताई. उस ने बताया कि उस की तीनों बेटियों के साथ कथावाचक पं. नारायण स्वरूप त्रिपाठी ने बलात्कार किया था.

क्षेत्र भर में पं. नारायण स्वरूप त्रिपाठी का खासा नाम था. टीआई भूपेंद्र पांडेय भी उसे अच्छी तरह जानते थे. लेकिन जब उस ने  अपराध किया था तो उस के खिलाफ काररवाई करनी जरूरी थी. मामला गंभीर था इसलिए टीआई ने सतना के एसपी रियाज इकबाल और डीएसपी हेमंत शर्मा को इस मामले की सूचना दे दी.

मामले की गंभीरता को देखते हुए एसपी रियाज इकबाल खुद थाना नादन पहुंच गए. एसपी साहब ने टीकाराम से बात की तो उस ने उन्हें बेटियों के साथ कथावाचक पं. नारायण स्वरूप त्रिपाठी द्वारा बलात्कार करने की बात बता दी. एसपी साहब ने उसी समय एक पुलिस टीम आरोपी को गिरफ्तार करने के लिए भेज दी.

पुलिस टीम ने रात में एक बजे पं. नारायण स्वरूप त्रिपाठी को उस के घर से हिरासत में ले लिया. सुबह होने पर जब क्षेत्र के लोगों को पता चला कि पंडितजी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है तो बड़ी संख्या में भीड़ थाने के बाहर जमा हो गई.

लेकिन पुलिस ने जब लोगों को पंडितजी के कुकर्मों की जानकारी दी तो सभी अपनेअपने घर लौट गए. पुलिस ने पं. नारायण स्वरूप त्रिपाठी से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने स्वीकार कर लिया कि टीकाराम की तीनों बेटियों को हवस का शिकार बनाया था.

विस्तार से पूछताछ करने के बाद कथावाचक की पापलीला की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी—

नादन निवासी पं. नारायण स्वरूप त्रिपाठी की सतना और आसपास के जिलों में धार्मिक संत, भजन गायक और कथावाचक के रूप में अच्छी पहचान थी. बड़ेबड़े धार्मिक आयोजनों में उस की कथा सुनने के लिए हजारों भक्तों की भीड़ उमड़ती थी. इस के अलावा लोग घरों में होने वाली पूजा के लिए भी उसे बुला लेते थे, जिस के चलते 7 दिसंबर को क्षेत्र के रहने वाले टीकाराम ने भी उसे नरसिंहजी का मायरा के लिए अपने घर बुलाया था.

पं. नारायण स्वरूप त्रिपाठी नियत समय पर उस के यहां पहुंच गया. कथा संपन्न होने के बाद पंडितजी यजमानों से बात कर रहे थे, तभी टीकाराम ने कहा, ‘‘क्या कहूं पंडितजी, बाकी तो सब कुशल है लेकिन मैं अपनी बेटियों को ले कर परेशान हूं. तीनों बेटियां आपस में लड़तीझगड़ती रहती हैं. मुझे चिंता है कि इन की यही आदत बनी रही तो ये ससुराल में कैसे निभाएंगी. आप ही कोई ऐसा उपाय करिए कि तीनों प्यार से हिलमिल कर साथ रहने लगें.’’

पंडित नारायण स्वरूप के लिए यह बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने जैसा था. क्योंकि यजमान टीकाराम के घर में आने के बाद से ही पंडितजी की नजर उस की तीनों बेटियों पर खराब हो चुकी थी. पूजा के दौरान भी वह लोगों से नजर बचा कर तीनों बहनों को बुरी नजर से घूरता रहा. जब यजमान ने बेटियों से परेशान रहने की समस्या सामने रखी, तो उस की बाछें खिल गईं.

वह समझ गया कि वक्त ने उसे मौका दिया है, जिस से वह यजमान की तीनों नादान बेटियों को अपना शिकार बना सकता है. इसलिए उस ने टीकाराम से कहा, ‘‘चिंता मत करो, मैं देखता हूं समस्या की जड़ कहां है. केवल समस्या का पता ही नहीं लगाऊंगा, बल्कि उसे जड़ से खत्म भी कर दूंगा. लाओ, तीनों की जन्मपत्रिकाएं दिखाओ, देखता हूं आखिर इन की आपस में बनती क्यों नहीं है.’’

पंडित नारायण स्वरूप ने कहा तो टीकाराम ने घर में रखे पुराने संदूक में संभाल कर रखी अपनी बेटियों की जन्म पत्रिकाएं निकाल कर उस के सामने रख दीं.

पंडित नारायण स्वरूप ने एकएक कर तीनों की कुंडलियों को गौर से देखा फिर अचानक गंभीर हो गया.

‘‘क्या हुआ पंडितजी?’’ त्रिपाठीजी को अचानक गंभीर देख कर टीकाराम ने चिंतित स्वर में पूछा.

‘‘यजमान, समस्या तो बड़ी है. दरअसल, तुम्हारी तीनों बेटियों की कुंडली में कालसर्प दोष है, जिस के चलते इन की आपस में बननी तो दूर किसी गैर के साथ भी नहीं बन सकती. लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है. तुम ने बहुत सही समय पर अपनी समस्या मेरे सामने रखी है.

‘‘2 दिन बाद ही 9 दिसंबर को बड़ा शुभ मुहूर्त है. उस दिन मैं पूजा कर इन तीनों के दोष का निवारण का दूंगा.’’ कहते हुए पंडितजी ने पूजा के सामान की लिस्ट बना कर उसे दे दी. 9 दिसंबर को पूजा के लिए आने की बात कह कर नारायण स्वरूप तीनों बहनों को आशीर्वाद दे कर चला गया.

पंडित के जाने के बाद टीकाराम पूजा की तैयारी में जुट गया. जबकि दूसरी तरफ पं. नारायण स्वरूप को रात भर नींद नहीं आई. पूजा के बहाने वह तीनों बहनों का यौनशोषण करने की ठान चुका था. इसलिए पूरी रात जाग कर वह योजना बनाता रहा कि कैसे काम को अंजाम दे कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

2 रात जाग कर पंडित ने पूरी योजना बनाई और 9 दिसंबर की सुबह टीकाराम के बुलावे का इंतजार किए बिना ही उस के घर पहुंच गया. योजनानुसार, पंडित ने पूजा के लिए बरामदे के बजाए अंदर वाला कमरा चुना और फिर कुछ देर तक तीनों बहनों और परिवार के साथ पूजा का ढोंग करता रहा. फिर उस ने सब को कमरे से बाहर निकाल दिया.

उस ने घर के सभी लोगों को हिदायत दी कि वह एकएक कर तीनों बहनों को कमरे में पूजा के लिए बुलाएगा. इस दौरान कोई भी न तो कमरे में दाखिल होगा और न ही ताकझांक करने की कोशिश करेगा.

टीकाराम का परिवार पंडितजी को अपना सब कुछ मानता था, इसलिए उस की बात मानने से इनकार करने का सवाल ही नहीं था.

अपनी योजना सफल होती देख पंडित नारायण स्वरूप मन ही मन खुश हुआ और कुछ देर तक जोरजोर से मंत्र जाप करने का नाटक करता रहा. सब से पहले उस ने 17 वर्षीय बड़ी बेटी को पूजा के लिए कमरे में बुलाया.

इस के बाद उस ने उसे बाहर भेज दिया, फिर मंझली बेटी को बुलाया. अंत में उस ने सब से छोटी बेटी को अंदर बुलाया. इस दौरान हर बहन के साथ वह लगभग एकएक घंटे तक बंद कमरे में पूजा करता रहा और बाद में टीकाराम से मोटी दक्षिणा ले कर चला गया.

पंडित के जाने के बाद तीनों बहनें काफी उदास थीं. एकदूसरे से लड़ना तो दूर वे आपस में बात भी नहीं कर रही थीं. यह देख कर टीकाराम को लगा कि शायद पंडितजी की पूजा के प्रभाव से उन की बेटियों का स्वभाव एकदम शांत हो गया है.

लेकिन सचमुच क्या हुआ था, इस का खुलासा रात में तब हुआ, जब सब से छोटी बेटी बिस्तर पर लेटेलेटे रोने लगी. मां ने उस से रोने का कारण पूछा तो पहले तो वह कुछ भी बताने से डरती रही. बाद में उस ने अपने अंग विशेष में तेज दर्द होने की बात बता दी.

बेटी की बात सुन कर मां को बहुत गुस्सा आया. इस के बाद दोनों बहनों ने भी पंडित द्वारा उन के साथ दुराचार करने की बात बताई. उन्होंने कहा कि पूजा के लिए पंडित ने कमरे में बुला कर उन के सारे कपड़े उतरवा दिए थे.

इस के बाद वह मंत्र पढ़ते समय उन के पूरे शरीर पर हाथ फेरता रहा और उन के अंगों से छेड़छाड़ करता रहा. इतना ही नहीं, इस के बाद उस ने उन के साथ गंदा काम भी किया.

तीनों बहनों ने अपनी आपबीती सुनाई तो मातापिता ने अपना सिर पीट लिया. आरोपी पंडित की इलाके में अच्छी धाक थी, इसलिए उन्हें डर था कि उन की बात पर पुलिस भरोसा नहीं करेगी. परिवार की आर्थिक हैसियत भी ऐसी नहीं थी कि कथा सुनाने के बदले में लाखों रुपए फीस के रूप में लेने वाले नारायण स्वरूप से वे टक्कर ले सकें. इस के अलावा सब से बड़ा डर उन्हें लोकलाज का भी था, इसलिए परिवार वालों ने चुप रहने में ही भलाई समझी.

दूसरे दिन 10 दिसंबर की सुबह दोनों बहनों की अर्द्धवार्षिक परीक्षा का पेपर था, सो वे स्कूल चली गईं. परीक्षा दे कर वापस आने के बाद सब से छोटी बहन अपने अंगों में दर्द होने के कारण रोने लगी तो बेटी के आंसू देख कर पिता का हृदय रो पड़ा, जिस के बाद वे तीनों बेटियों को साथ ले कर सीधे नादन थाने के टीआई भूपेंद्र पांडे के पास पहुंचा.

पं. नारायण स्वरूप त्रिपाठी से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे व तीनों बहनों को मैडिकल परीक्षण के लिए भेजा.

इस के बाद कामुक पंडित के खिलाफ बलात्कार, पोक्सो एक्ट व एससी/एसटी एक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज कर जेल भेजा दिया. कामुक कथावाचक  की हकीकत जान कर क्षेत्र के लोग आश्चर्यचकित हैं.

—कथा में टीकाराम परिवर्तित नाम है

असंभव के पार झांकने की भूल

24 जून, 2019 की बात है. लखनऊ के शेरपुर लवल गांव में सुबह 6 बजे रोज की तरह प्रभातफेरी निकल रही थी. प्रभातफेरी जब गांव में ही रहने वाले शिवप्रसाद के घर से 100 मीटर दूर पहुंची तो सड़क किनारे पीपल के पेड़ के नीचे एक लड़के का नंगा शव पड़ा दिखाई दिया. शव को देखने से लग रहा था कि किसी ने धारदार हथियार से उस की हत्या की है.

प्रभातफेरी में जगदीश भी शामिल था. जगदीश जैसे ही लाश के पास गया, तो चिल्लाने लगा कि यह तो मेरा भतीजा यतीश है. इस का यह हाल किस ने कर दिया. लाश की शिनाख्त जगदीश ने अपने भतीजे यतीश के रूप में की.

उस ने इस बात की सूचना अपने भाई शिवप्रसाद और परिवार के अन्य लोगों को दे दी. घटना का पता चलते ही पूरे गांव में कोहराम मच गया. गांव के लोग घटनास्थल की तरफ भागे. यतीश का शव देख कर सभी लोग सन्न रह गए.

24 वर्षीय यतीश की मां सरला उस के शव से लिपट कर रोने लगी. गांव की महिलाएं और दूसरे लोग उसे ढांढस बंधा रहे थे. वह बारबार दहाड़ें मार कर रोतेरोते बेहोश हो रही थी.

घटना की जानकारी लखनऊ जनपद के निगोहा थाने को दी गई. शेरपुर लवल गांव इसी थाने के तहत आता था. निगोहा लखनऊ जिले का अंतिम थाना है. इस के बाद रायबरेली जिला शुरू हो जाता है. पुलिस ने यतीश की नंगी लाश देखने और गांव वालों से बात करने के बाद अनुमान लगाया कि उस की हत्या की वजह अवैध संबंध हो सकते हैं

इंसपेक्टर निगोहां जगदीश पांडेय ने लखनऊ के एसएसपी कलानिधि नैथानी को घटना के बारे में बताया. एसएसपी कलानिधि नैथानी ने एसपी (क्राइम) सर्वेश कुमार मिश्रा और सीओ (मोहनलालगंज) राजकुमार शुक्ला को मौके पर जा कर घटना की तहकीकात और खुलासा करने को कहा.

पुलिस ने घटनास्थल का निरीक्षण किया, तो पता चला कि मृतक यतीश पर किसी धारदार हथियार से वार किए गए थे. मौके पर काफी मात्रा में खून फैला हुआ था. लाश के मुआयने में लगा कि हत्यारे एक से अधिक रहे होंगे.

वहां मौजूद मृतक की मां सरला ने पुलिस को बताया कि यतीश कल रात अपने दोस्तों के साथ गांव के बाहर मोबाइल फोन पर गेम खेलने की बात कह कर आया था. मैं ने इसे मना भी किया पर यह नहीं माना. यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस को यह पता लगाना था कि यतीश किन दोस्तों के साथ आया था. पुलिस ने मौके की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

जांच में सामने आया नेहा का नाम

एसएसपी ने इस केस को सुलझाने के लिए एक पुलिस टीम बनाई.  इसी दौरान पुलिस टीम को मुखबिर से पता चला कि मृतक के गांव की ही नेहा से प्रेम संबंध थे. इस सूचना में पुलिस को दम नजर आया, क्योंकि जिस तरह से यतीश की नंगी लाश मिली थी, उस से हत्या की यही वजह नजर आ रही थी.

टीम ने यतीश के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस में एक नंबर ऐसा मिल गया, जिस पर यतीश काफी देर तक बातें करता था. वह फोन नंबर नेहा का ही निकला.

इस के बाद पुलिस को यकीन हो गया कि यतीश की हत्या के तार जरूर नेहा से जुड़े हैं. इसलिए पुलिस टीम नेहा के घर पहुंच गई. पुलिस नेहा और उस के भाई को पूछताछ के लिए थाने ले आई. पूछताछ करने पर नेहा ने यह तो कबूल कर लिया कि यतीश के साथ उस के प्रेम संबंध थे लेकिन उस के अनुसार, हत्या के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं थी.

सख्ती से पूछताछ करने पर नेहा के भाई शिवशंकर ने स्वीकार कर लिया कि यतीश ने उस के घर वालों का जीना हराम कर दिया था. इसीलिए उसे ठिकाने लगाने के पर मजबूर होना पड़ा. शिवशंकर ने यतीश की हत्या की जो कहानी बताई वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 40 किलोमीटर दूर एक गांव है शेरपुर लवल. यहां की आबादी मिलीजुली है. ज्यादातर परिवार खेतीकिसानी पर निर्भर हैं. इन्हीं लोगों में शिवप्रसाद तिवारी का भी परिवार था.

यतीश तिवारी शिवप्रसाद का ही बेटा था. यतीश 2 भाई थे. मनीष बड़ा था और यतीश छोटा. मनीष होमगार्ड की नौकरी करता है. उस की ड्यूटी लखनऊ सचिवालय में लगी थी. मनीष अपने परिवार के साथ लखनऊ के पास ही तेलीबाग में रहता था. यतीश की एक बहन है प्रीति, जिस की शादी हो चुकी है. यतीश अकेला अपने मातापिता के साथ रहता था. मां सरला देवी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता है.

यतीश भारतीय सेना में शामिल हो कर देश की सेवा करना चाहता था. इस के लिए वह अपनी तैयारी भी कर रहा था. वह रोजाना गांव के बाहर दौड़ लगाता था और एक्सरसाइज भी करता था. शारीरिक रूप से फिट 24 साल के यतीश ने कई प्रतियोगी परीक्षाएं पास की थीं. लेकिन फिजिकल टेस्ट में वह रह जाता था.

यतीश अपनी मां से कहता था कि अगर मैं आर्मी में नहीं जा पाया तो दूसरी फोर्स या पुलिस में तो मेरा चयन हो ही जाएगा. मां को भी बेटे की बात पर यकीन था. मां ही नहीं गांव और घर के दूसरे लोग भी यही मान रहे थे. यही वजह थी कि बिना नौकरी किए भी यतीश के रिश्ते आने लगे थे.

लेकिन यतीश अभी शादी नहीं करना चाहता था. उस ने मां से कहा, ‘‘मां शादी की अभी क्या जल्दी है, नौकरी लगने दो फिर शादी कर लूंगा.’’

‘‘शादी के लायक उम्र हो गई है. तू ही बता, अभी नहीं तो कब होगी तेरी शादी? तुझे पता नहीं है गांव के लोग तमाम तरह की बातें करते हैं. ऐसे में उन को भी कहने का मौका नहीं मिलेगा.

‘‘जिस जगह से रिश्ता आया है वहां लड़की और घरपरिवार सभी अच्छा है. कई बार लड़की की किस्मत अच्छी होती है तो पति की नौकरी जल्दी लग जाती है.’’ मां ने यतीश को समझाया तो वह भी मां की बात टाल नहीं सका. इस के बाद मांबाप ने यतीश की शादी तय कर दी.

उस की शादी हैदरगढ़ के रहने वाले एक परिवार में तय हो गई. शादी और तिलक की तारीख भी तय हो गई थीं. इसी साल यानी 2019 में ही 22 नवंबर को तिलक और 28 नवंबर को उस की बारात जानी थी.

दूसरी ओर यतीश का चक्कर गांव की ही नेहा से चल रहा था. वह नेहा के साथ शादी करना चाहता था. नेहा के पिता मिस्त्री का काम करते थे. नेहा और यतीश अलगअलग बिरादरी के थे. इसलिए दोनों परिवारों के बीच शादी विवाह की बात किसी भी हालत में संभव नहीं था. यतीश और नेहा के बीच लंबे समय से संबंध थे. यह बात नेहा के घर वालों को भी पता चल गई थी.

उन्होंने नेहा को समझाया लेकिन वह प्रेमी को किसी भी हालत में नहीं छोड़ना चाहती थी. नेहा के मातापिता और परिवार के लोग इस बात का विरोध कर रहे थे. इस के बाद भी यतीश और नेहा मानने को तैयार नहीं थे.

जब नेहा और यतीश का मिलनाजुलना बंद नहीं हुआ तो नेहा के पिता शिवप्रसाद ने अपने परिवार को गांव से दूर पीजीआई अस्पताल के पास वेदावन कालोनी में किराए का घर ले कर दे दिया. पूरा परिवार किराए के उसी मकान में रहने लगा. लेकिन वहां जाने के बाद भी यतीश ने नेहा से मिलना नहीं छोड़ा.

शिवप्रसाद को यह बात पता चल गई थी कि नेहा और यतीश अब भी छिपछिप कर मिलते हैं. लिहाजा उस ने अपने बेटे शिवशंकर से कहा कि यतीश की हरकतें बढ़ती जा रही हैं. गांव छोड़ने के बाद भी वह नेहा का पीछा नहीं छोड़ रहा है. अब उसे सबक सिखाना ही पड़ेगा.

‘‘हम तो पहले ही कह रहे थे कि गांव छोड़ने से कुछ नहीं होगा. लेकिन आप ही नहीं माने. अब जो भी करना है, जल्दी करो. कहीं ऐसा न हो कि वह कोई दूसरा कदम उठा ले.’’ बेटे शिवशंकर ने कहा.

इस के बाद दोनों ने तय कर लिया कि यतीश को रास्ते से हटाना है. शिवप्रसाद और उस के बेटे शिवशंकर ने मिल कर यतीश की हत्या की योजना बना ली. शिवशंकर ने इस के लिए गांव में रहने वाले अपने दोस्त हनुमान को भी अपनी योजना में शामिल कर लिया.

हनुमान ने सतीश पर नजर रखनी शुरू कर दी  ताकि काम आसानी से हो सके. यतीश की दिनचर्या से पता चला कि रात को वह गांव के बाहर पीपल के पेड़ के पास चबूतरे पर बैठ कर मोबाइल फोन पर पबजी गेम खेलता है. यह पूरी जानकारी हनुमान ने शिवशंकर को दे दी. इस के बाद शिवशंकर, शिवप्रसाद और हनुमान ने अपनी योजना को अंजाम देने की तैयारी कर ली.

23 जून को गांव में किसी की तेरहवीं का भोज था. शिवप्रसाद और शिवशंकर भोज में शामिल होने के लिए घर से निकले. वहां जाने से पहले दोनों ने हनुमान के साथ शराब पी, फिर खाना खाया. रात करीब एक बजे तीनों गांव के बाहर उस चबूतरे के पास पहुंच गए जहां पर यतीश मोबाइल के स्क्रीन पर नजरें जमाए बड़े ध्यान से गेम खेल रहा था.

शिवप्रसाद और हनुमान ने यतीश को पीछे से दबोच लिया. उस का मुंह दबा कर वे लोग उसे वहीं स्थित पुलिया के नीचे ले गए. इस के बाद शिवशंकर ने साथ लाए चापड़ से उस के गले और सिर पर कई वार किए. कुछ ही देर में वह मर गया. उस की हत्या करने के बाद इन लोगों ने उस के कपड़े उतार कर सड़क के किनारे फेंक दिया. यतीश के कपड़ों में तो खून लगा ही था. पुलिया के दोनों किनारों पर भी खून के छींटे गिर गए थे. शिवशंकर से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उस के दोस्त हनुमान को भी गिरफ्तार कर लिया, जबकि नेहा को छोड़ दिया गया.

शिवशंकर की निशानदेही पर पुलिस ने उस के घर से हत्या में प्रयुक्त चापड़ और यतीश के खून सने कपड़े बरामद कर लिए. पुलिस ने दोनों आरोपियों शिवशंकर और हनुमान को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया. कहानी लिखे जाने तक शिवप्रसाद की तलाश जारी थी. साफ जाहिर है कि अपराध छिपाने की कितनी भी कोशिश की जाए, अपराध छिपता नहीं है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में नेहा परिवर्तित नाम है.

स्वामी चिन्मयानंद: एक और संत जेल में

सब से पहले वह अपने लिए सुख वैभव के साधन तैयार करता है, फिर उसे देह सुख भी सामान्य लगने लगता है. स्वामी चिन्मयानंद के साथ भी ऐसा ही कुछ था, जिस की वजह से…

हाल ही में कानून की छात्रा कामिनी द्वारा स्वामी चिन्मयानंद पर लगाया गया यौनशोषण और बलात्कार का आरोप खूब चर्चाओं में रहा. छात्रा द्वारा निर्वस्त्र स्वामी की मसाज करने के वायरल वीडियो ने भी स्वामी की हकीकत खोल कर रख दी. यौनशोषण और बलात्कार की यह कहानी पूरी तरह से फिल्मी सैक्स, सस्पेंस और थ्रिल से भरी हुई है. शाहजहांपुर के सामान्य परिवार की कामिनी स्वामी शुकदेवानंद ला कालेज से एलएलएम यानी मास्टर औफ ला की पढ़ाई कर रही थी.

हौस्टल में रहने के दौरान नहाते समय उस का एक वीडियो तैयार किया गया और उसी वीडियो को आधार बना कर उस का यौनशोषण शुरू हुआ. शोषण से मुक्ति पाने के लिए लड़की ने भी वीडियो का सहारा लिया. लेकिन इस प्रभावशाली संत और पूर्व केंद्रीय मंत्री को कटघरे में खड़ा करना आसान नहीं था. फिर भी लड़की ने हिम्मत से काम लिया और अंत में संत को विलेन साबित कर के ही दम लिया. यह संत थे स्वामी चिन्मयानंद.

अटल सरकार के बाद हाशिए पर चले गए स्वामी चिन्मयानंद 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति की मुख्यधारा में शामिल होने के लिए प्रयासरत थे. वह राज्यसभा के जरिए संसद में पहुंचना चाहते थे. इस के पहले कि उन के संसद जाने का सफर पूरा होता, उन के ही कालेज में पढ़ने वाली लड़की कामिनी ने उन का चेहरा बेनकाब कर दिया.

कानून की पढ़ाई करने वाली 24 वर्षीया कामिनी ने जब मुमुक्षु आश्रम के अधिष्ठाता स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ यौनशोषण और बलात्कार का आरोप लगाया तो पूरा देश सन्न रह गया.

एक लड़की के लिए ऐसे आरोप लगाना और साबित करना आसान काम नहीं था. इस का कारण यह था कि पूरा प्रशासन स्वामी चिन्मयानंद को बचाने में लगा था. इस के बावजूद पीडि़त लड़की और चिन्मयानंद के बीच शह और मात का खेल चलता रहा.

स्वामी चिन्मयानंद का रसूख लड़की पर भारी पड़ रहा था, जिस के चलते शोषण और बलात्कार का आरोप लगाने वाली लड़की के खिलाफ 5 करोड़ की रंगदारी मांगने का मुकदमा कायम कर के उसे जेल भेज दिया गया.

लड़की को जेल में और आरोपी को एसी कमरे में रहने को सुख मिला. शोषण और बलात्कार के मुकदमे में हिरासत में लिए गए स्वामी चिन्मयानंद को जेल में 2 रात रखने के बाद सेहत की जांच को ले कर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के पीजी अस्पताल भेज दिया गया था.

शह और मात के खेल में बाजी किस के हाथ लगेगी, यह तो अदालत के फैसले पर निर्भर करेगा. लेकिन धर्म के नाम पर कैसेकैसे खेल खेले जाते हैं, यह समाज ने खुली आंखों से देखा. नग्नावस्था में लड़की से मसाज कराते वीडियो के सामने आने पर खुद स्वामी चिन्मयानंद ने जनता से कहा, ‘वह अपने इस कृत्य पर शर्मिंदा हैं.’

चिन्मयानंद से पहले सन 2015 में उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर की ही रहने वाली एक लड़की ने भी आसाराम बापू के खिलाफ ऐसे ही आरोप लगाए थे. आसाराम और चिन्मयानंद में केवल इतना ही फर्क है कि आसाराम केवल संत थे, जबकि चिन्मयानंद संत के साथसाथ भाजपा के सांसद और मंत्री भी रह चुके हैं.

चिन्मयानंद के जेल जाने के समय भाजपा के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह ने कहा कि स्वामी चिन्मयानंद भाजपा के सदस्य नहीं हैं. वह इस बात का जवाब नहीं दे सके कि यदि वह सदस्य नहीं हैं तो उन्हें भाजपा की सदस्यता से कब निकाला गया था.

स्वामी चिन्मयानंद ने धर्म के सहारे अपनी राजनीति शुरू की थी. वह राममंदिर आंदोलन के दौरान देश के उन प्रमुख संतों में थे, जो मंदिर निर्माण की राजनीति कर रहे थे. भाजपा ने स्वामी चिन्मयानंद को 3 बार लोकसभा का टिकट दे कर सांसद बनाया और अटल सरकार में उन्हें मंत्री बनने का मौका भी दिया.

चिन्मयानंद भाजपा में उस समय के नेता हैं, जब संतों को राजनीति में शामिल कर के सत्ता का रास्ता तय किया गया था. उस समय लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, कल्याण सिंह, महंत अवैद्यनाथ जैसे संत और नेताओं का भाजपा में बोलबाला था.

ऐसे कद्दावर स्वामी चिन्मयानंद की सच्चाई तब खुली, जब 24 अगस्त, 2019 को उन के ही स्वामी शुकदेवानंद ला कालेज में एलएलएम में पढ़ने वाली कामिनी ने उन के खिलाफ यौनशोषण और बलात्कार का आरोप लगाते हुए वीडियो जारी किया.

स्वामी शुकदेवानंद ला कालेज मुमुक्षु आश्रम की शिक्षण संस्थाओं में से एक है. इस कालेज की स्थापना शाहजहांपुर और उस के आसपास के इलाकों के छात्रों को कानून की शिक्षा देने के लिए हुई थी.

पीडि़त कामिनी इसी कालेज में एलएलएम की पढ़ाई कर रही थी. वह यहीं के हौस्टल में रहती थी. हौस्टल में रहने के दौरान ही स्वामी चिन्मयानंद की उस पर निगाह पड़ी. फलस्वरूप पढ़ाई के साथसाथ उसे कालेज में ही नौकरी दे दी गई. कामिनी सामान्य कदकाठी वाली गोरे रंग की लड़की थी.

कालेज में पढ़ने वाली दूसरी लड़कियों की तरह उसे भी स्टाइल के साथ सजसंवर कर रहने की आदत थी. चिन्मयानंद ने उस के जन्मदिन की पार्टी में भी हिस्सा लिया और केक काटने में हिस्सेदारी की. वैसे कामिनी और चिन्मयानंद की नजदीकी बढ़ने की अपनी अलग कहानी है.

कामिनी का कहना है कि उसे योजना बना कर फंसाया गया. जब वह हौस्टल में रहने आई तो एक दिन नहाते समय चोरी से उस का वीडियो बना लिया गया. इस के बाद उस वीडियो को वायरल कर के उसे बदनाम करने की धमकी दी गई. फिर स्वामी चिन्मयानंद ने उस के साथ बलात्कार किया. इस बलात्कार की भी उन्होंने वीडियो बनाई. इस के बाद उस के शोषण का सिलसिला चल निकला.

चिन्मयानंद को मसाज कराने का शौक था. मसाज के दौरान ही कभीकभी वह सैक्स भी करते थे. अपने शोषण से परेशान कामिनी ने स्वामी की तर्ज पर उन की मसाज और सैक्स के वीडियो बनाने शुरू कर दिए. वह जान गई थी कि स्वामी चिन्मयानंद के जाल से निकलने के लिए शोषण की कहानी को दुनिया के सामने लाना होगा.

पीडि़त कामिनी ने स्वामी चिन्मयानंद के तमाम वीडियो पुलिस को सौंपे हैं. इन में से 2 वीडियो वायरल भी हो गए. वायरल वीडियो में चिन्मयानंद नग्नावस्था में कामिनी से मसाज करा रहे थे. इस में वह कामिनी से आपसी संबंधों की बातें भी कर रहे थे. उन की आपसी बातचीत से ऐसा लग रहा था, जैसे दोनों के बीच यह सामान्य घटना हो.

इस दौरान कामिनी की तबीयत और नया मोबाइल खरीदने की बात भी हुई. कामिनी ने काले रंग की टीशर्ट पहनी थी. उस ने मसाज वाले दोनों वीडियो अपने चश्मे में लगे खुफिया कैमरे से तैयार किए थे. खुद को फ्रेम में रखने के लिए उस ने अपना चश्मा मेज पर उतार कर रख दिया था, जिस से स्वामी चिन्मयानंद के साथ वह भी कैमरे में दिख सके.

यह कैमरा कामिनी के नजर वाले चश्मे के फ्रेम में नाक के ठीक ऊपर इस तरह लगा था जैसे कोई चश्मे की डिजाइन हो. कामिनी ने यह चश्मा औनलाइन शौपिंग से मंगवाया था.

मसाज करने के बाद जब कामिनी हाथ धोने बाथरूम में गई तो शीशे में उस का अपना चेहरा भी कैमरे में कैद हो गया था. पूरी तैयारी के बाद उस ने स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. लेकिन उस की तैयारी के मुकाबले स्वामी का प्रभाव भारी पड़ा.

खुद को फंसता देख स्वामी चिन्मयानंद ने कामिनी और उस के 3 दोस्तों पर 5 करोड़ की फिरौती मांगने का मुकदमा दर्ज करा दिया. इस काम में स्वामी चिन्मयानंद का रसूख काम आया.

कामिनी की कोशिश के बावजूद स्वामी चिन्मयानंद पर उत्तर प्रदेश में मुकदमा दर्ज नहीं हो सका. लेकिन पुलिस ने कामिनी पर फिरौती मांगने का मुकदमा दर्ज कर उस की तलाश शुरू कर दी. कामिनी अपने दोस्त के साथ राजस्थान के दौसा शहर चली गई थी. वहां उस ने सोशल मीडिया पर अपनी दास्तान सुनाई. जनता और सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान लेने के बाद उस का मुकदमा दिल्ली में दर्ज किया गया.

उत्तर प्रदेश सरकार ने आननफानन में स्पैशल जांच टीम बना कर पूरा मामला उस के हवाले कर दिया. भारी दबाव के बाद आखिर चिन्मयानंद को 19 सितंबर, 2019 की सुबह करीब पौने 9 बजे एसआईटी ने गिरफ्तार कर लिया. जिस समय चिन्मयानंद को गिरफ्तार किया गया, उस समय वह अपने आश्रम में ही थे.

शाहजहांपुर के मुमुक्षु आश्रम को मोक्ष प्राप्त करने का स्थान बताया जाता है. शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश के पिछडे़ जिलों में गिना जाता है. करीब 30 लाख की आबादी वाले इस जिले की साक्षरता 59 प्रतिशत है. मुमुक्षु आश्रम भी यहां की धार्मिक आस्था का बड़ा केंद्र माना जाता था.

शाहजहांपुर बरेली हाइवे पर स्थित यह आश्रम करीब 21 एकड़ जमीन पर बना है. इस के परिसर में ही इंटर कालेज से ले कर डिग्री कालेज तक 5 शिक्षण संस्थाएं हैं. मुमुक्षु आश्रम का दायरा शाहजहांपुर के बाहर दिल्ली, हरिद्वार, बद्रीनाथ और ऋषिकेश तक फैला है.

मुमुक्षु आश्रम की ताकत का लाभ ले कर वर्ष 1985 के बाद स्वामी चिन्मयानंद ने धर्म के साथसाथ अपनी राजनीतिक ताकत बढ़ाई. वह 3 बार सांसद और एक बार केंद्र सरकार में गृह राज्य मंत्री बने. दूसरों को मोक्ष देने का दावा करने वाला मुमुक्षु आश्रम स्वामी चिन्मयानंद को मोक्ष की जगह जेल भेजने का जरिया बन गया.

मुमुक्षु आश्रम में संत के रूप में रहने आए चिन्मयानंद मुमुक्षु आश्रम के अधिष्ठाता बन गए थे. अधिष्ठाता बनने के बाद चिन्मयानंद खुद को भगवान समझने लगे. अहंकार का यही भाव उन के पतन का कारण बना.

श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी ने स्वामी चिन्मयानंद को अखाड़ा परिषद से बाहर कर दिया है. अखाड़ा सचिव महंत स्वामी रामसेवक गिरी ने कहा कि चिन्मयानंद के कारण संत समाज की छवि धूमिल हुई है.

मुमुक्षु आश्रम की स्थापना सन 1947 में स्वामी शुकदेवानंद ने की थी. शुकदेवानंद शाहजहांपुर के ही रहने वाले थे. उन की सोच हिंदूवादी थी. उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में ‘गांधी फैज-ए-आजम’ नाम से कालेज की स्थापना हुई थी. शुकदेवानंद को यह कालेज मुसलिमपरस्त लगा.

शुकदेवानंद को लगा कि इस के जवाब में संस्कृत का प्रचार करने के लिए इसी तरह से दूसरे कालेज की स्थापना होनी चाहिए, जिस से हिंदू संस्कृति का प्रचारप्रसार किया जा सके. इस के बाद शुकदेवानंद ने 1947 में श्री दैवी संपदा इंटर कालेज और 1951 में दैवी संपदा संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना की.

स्वामी शुकदेवानंद पोस्ट ग्रैजुएट कालेज की स्थापना सन 1964 में हुई. छात्रों की संस्कृत में विशेष रुचि न होने के कारण यहां पढ़ने वाले छात्रों की संख्या काफी कम थी. पोस्टग्रैजुएट कालेज खुल जाने के बाद यहां के इंटर कालेज और डिग्री कालेज के छात्रों की संख्या तेजी से बढ़ी, जिस से कालेज में पैसा आने लगा.

देखते ही देखते शुकदेवानंद का प्रभाव बढ़ने लगा. शाहजहांपुर के बाद दिल्ली, हरिद्वार, बद्रीनाथ और ऋषिकेश में शुकदेवानंद आश्रम बन गए. शुकदेवानंद के निधन के बाद उन के नाम पर शुकदेवानंद ट्रस्ट की स्थापना हुई. सभी कालेज और आश्रम इसी के आधीन आ गए.

शुकदेवानंद के निधन के बाद उन के आश्रम और बाकी काम की जिम्मेदारी स्वामी धर्मानंद ने संभाली. धर्मानंद स्वामी शुकदेवानंद के शिष्य थे और उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के रहने वाले थे. स्वामी धर्मानंद ने भी अपने समय में शिक्षा के माध्यम से हिंदू संस्कृति को ले कर काम किया. बीमार रहने के कारण कुछ सालों बाद उन का भी देहांत हो गया. धर्मानंद के बाद चिन्मयानंद ने गद्दी संभाली.

चिन्मयानंद का जन्म सन 1947 में उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में परसपुर क्षेत्र के त्योरासी गांव में हुआ था. उन का असल नाम कृष्णपाल सिंह है. 1967 में 20 साल की उम्र में संन्यास लेने के बाद वह हरिद्वार पहुंचे, जहां संत समाज ने उन का नाम चिन्मयानंद रखा.

चिन्मयानंद का परिचय भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता लालकृष्ण आडवाणी से था. राजनीतिक रुचि के कारण चिन्मयानंद उन के करीबी बन गए. इस के बाद चिन्मयानंद उत्तर प्रदेश में प्रमुख संत नेता के रूप में उभरने लगे. इसी के चलते वह विश्व हिंदू परिषद के संपर्क में आए.

यही वह समय था जब विश्व हिंदू परिषद राममंदिर को ले कर उत्तर प्रदेश में आंदोलन चला रहा था. उस के लिए मठ, मंदिर और आश्रम में रहने वाले संत मठाधीश बहुत खास हो गए थे.

विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष रहे अशोक सिंघल ने उत्तर प्रदेश में जिन आश्रम के लोगों को राममंदिर आंदोलन से जोड़ा, उन में गोरखपुर जिले के गोरखनाथ धाम के महंत अवैद्यनाथ, शाहजहांपुर के स्वामी चिन्मयानंद और अयोध्या से महंत परमहंस दास प्रमुख थे.

जब देश में हिंदुत्व की राजनीतिक लहर बनी, तब चिन्मयानंद विश्व हिंदू परिषद के साथसाथ भाजपा के भी कद्दावर नेता बन गए. विश्व हिंदू परिषद ने जब राम जन्मभूमि मुक्ति संघर्ष समिति का गठन किया तो स्वामी चिन्मयानंद को उस का राष्ट्रीय संयोजक बनाया गया. राम जन्मभूमि मुक्ति संघर्ष समिति का राष्ट्रीय संयोजक बनने के बाद

स्वामी चिन्मयानंद के नेतृत्व में संघर्ष समिति का दायरा बढ़ाने का काम किया गया. इस से उन की पहचान पूरे देश में प्रखर हिंदू वक्ता के रूप में स्थापित हुई.

हिंदुत्व के सहारे देश की सत्ता हासिल करने का सपना देख रही भाजपा ने साधुसंतों को संसद पहुंचाने की योजना बनाई. इसी के चलते चिन्मयानंद को लोकसभा का चुनाव लड़ाने की योजना बनी. सन 1990 में भाजपा ने केंद्र में वी.पी. सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले कर देश को मध्यावधि चुनाव में धकेल दिया तो 1991 में चिन्मयानंद को शरद यादव के खिलाफ बदायूं से टिकट दिया गया.

चुनाव में स्वामी चिन्मयानंद ने शरद यादव को 15 हजार वोटों से पटखनी दे दी. इस के बाद स्वामी चिन्मयानंद ने 1998 में मछलीशहर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की.

इस के बाद स्वामी चिन्मयानंद ने धर्म और सत्ता का तालमेल बैठा कर आगे बढ़ना शुरू किया. सन 1992 में जब बाबरी मसजिद ढहाई गई तब स्वामी चिन्मयानंद भी वहां मौजूद थे. लिब्रहान आयोग ने जिन लोगों को आरोपी माना था, उस में चिन्मयानंद का नाम भी शामिल था.

बाबरी मसजिद ढहाए जाने से 9 दिन पहले चिन्मयानंद ने सुप्रीम कोर्ट के सामने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दायर एफिडेविट में बताया था कि 6 दिसंबर, 1992 को सिर्फ कार सेवा की जाएगी और अयोध्या में इस से कानूनव्यवस्था के लिए किसी तरह का खतरा नहीं होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने उन की बातों पर विश्वास भी किया, लेकिन बाबरी मसजिद ढहा दी गई. सन 2009 में लिब्रहान आयोग ने अपनी रिपोर्ट में

कहा था कि कार सेवा के बहाने मसजिद गिराने का प्लान पहले से तय था और इस की भूमिका में परमहंस रामचंद्र दास, अशोक सिंघल, विनय कटियार, चंपत राय, आचार्य गिरिराज, वी.पी. सिंघल, एस.सी. दीक्षित और चिन्मयानंद शामिल थे.

1990 के दशक में राजनीतिक रूप से स्वामी चिन्मयानंद अपना रसूख काफी मजबूत कर चुके थे. देश के हिंदुत्व के नायकों में से उन की गिनती होने लगी. 12वीं लोकसभा (1998) में उन्होंने अपने आप को सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यकर्ता और धार्मिक गुरु बताया था. चिन्मयानंद 30 से अधिक आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक संस्थाओं के साथ जुड़े थे.

चिन्मयानंद और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच गहरा रिश्ता है. 1980 के दशक में राममंदिर आंदोलन के दौरान स्वामी चिन्मयानंद और योगी आदित्यनाथ के गुरु महंत अवैद्यनाथ ने मंदिर निर्माण के लिए कंधे से कंधा मिला कर काम किया था. दोनों ने मिल कर राम जन्मभूमि मुक्ति संघर्ष समिति की स्थापना भी की थी. उन के बीच करीबी रिश्ता था.

अटल सरकार में मंत्री पद से हटने के बाद स्वामी चिन्मयानंद का राजनीतिक रसूख हाशिए पर सिमट गया था. 2017 में जब उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी और योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो स्वामी चिन्मयानंद का रसूख फिर से बढ़ गया. उन का दरबार सजने लगा था. तमाम नेता और अफसर वहां शीश झुकाने जाने लगे. मुमुक्षु आश्रम का दरबार एक तरह से सत्ता का केंद्र बन गया था.

कामिनी के पिता की तरफ से चिन्मयानंद उर्फ कृष्णपाल सिंह के खिलाफ भादंवि की धारा 376सी, 354बी, 342, 306 के तहत मुकदमा लिखाया गया. दूसरी ओर स्वामी चिन्मयानंद के वकील की तरफ से कामिनी और उस के दोस्तों संजय सिंह, सचिन और विक्रम के खिलाफ भादंवि की धारा 385, 506, 201, 35 और आईटी ऐक्ट 67ए के तहत 5 करोड़ रुपए की रंगदारी मांगने का मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

दोनों ही मुकदमों में गिरफ्तारी हो चुकी है. जानकार लोगों का मानना है कि रंगदारी के मुकदमे के सहारे यौनशोषण और बलात्कार के मुकदमे को कमजोर करने का प्रयास किया जा रहा है.

पुलिस द्वारा आरोप लगाने वाली कामिनी के ही खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उसे 24 सितंबर को पकड़ कर जेल भेज दिया गया. इस के बाद विरोधी दलों ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर चिन्मयानंद को बचाने के आरोप लगाए.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में कामिनी नाम परिवर्तित है.

सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2019

 

स्टेशन पर चलता था सेक्स रैकेट

अलंकृत कश्यप  

गोरखपुर पूर्वोत्तर रेलवे मंडल के मंडल सुरक्षा आयुक्त अमित कुमार मिश्रा के निर्देश पर मंडल के सभी रेलवे स्टेशनों एवं ट्रेनों में सघन जांच का अभियान चलाया जा रहा था. दरअसल, अमित कुमार मिश्रा को सूचना मिली थी कि कुछ ऐसे गैंग सक्रिय हैं, जो कम उम्र की लड़कियों को अपने जाल में फांस कर जिस्मफरोशी का धंधा कराते हैं. उन के निर्देश पर बादशाह नगर रेलवे सुरक्षा बल के एसआई वंशबहादुर यादव 25 सितंबर, 2019 की सुबह आनेजाने वाली ट्रेनों की जांच कर रहे थे. ट्रेनों की जांच करने के बाद उन की नजर प्लेटफार्म नंबर-1 पर बैठे बालकों पर पड़ी.

एक पेड़ के निकट रुक कर वह उन को निहारने लगे. वहां 2 किशोरों के साथ 2 किशोरियां थीं. उन्हें देख कर पहले उन्होंने सोचा कि शायद ये ट्रेन में भीख मांग कर गुजारा करने वाले खानाबदोश या बंगलादेशियों के बच्चे होंगे और सामान एकत्रित कर के अपने गंतव्य स्थान पर कुछ देर में चले जाएंगे, किंतु पेड़ की आड़ में छिप कर देखने के बाद उन्हें उन की गतिविधियां कुछ संदिग्ध लगीं.

तब उन के नजदीक जा कर उन्होंने उन से पूछा, ‘‘तुम लोग कौन हो? सुबहसुबह यहां प्लेटफार्म पर क्या कर रहे हो?’’

पुलिस वाले को अपने पास देख कर वे चारों सहम गए और सुबकने लगे. उन चारों को सुबकते देख एसआई वंशबहादुर यादव को मामला कुछ संदिग्ध लगा. उन्होंने सहानुभूति दिखाते हुए उन चारों को चाय पिला कर ढांढस बंधाते हुए पूछा, ‘‘आखिर बात क्या है, बताओ. तुम इस तरह रो क्यों रहे हो? कुछ तो बताओ, तभी तो मैं तुम्हारे लिए कुछ करूंगा.’’

कुछ देर खामोश रहने के बाद किशोरों के साथ बैठी दोनों किशोरियों ने अपनी आपबीती एसआई वंशबहादुर को सुनाई. उन्होंने बताया कि एक दिव्यांग व्यक्ति ने उन्हें अपने कब्जे में कर रखा था और वह उन से जिस्मफरोशी का धंधा कराता था. किसी तरह वे उस के चंगुल से निकल कर आई हैं.

उन की व्यथा सुन कर एसआई आश्चर्य में पड़ गए. उन का दिल करुणा से भर आया. उन दोनों किशोरियों ने अपने नाम गुंजा व मंजुला खातून और किशोरों ने विजय व आनंद बताए. किशोरियों ने बताया कि यहां से वे वैशाली एक्सप्रैस से अपनी रिश्तेदारी में बहराईच जाने के लिए प्लेटफार्म पर बैठी हुई ट्रेन का इंतजार कर रही थीं.

एसआई वंशबहादुर यादव ने उन की व्यथा सुनने के बाद यह जानकारी ऐशबाद रेलवे स्टेशन पर स्थित आरपीएफ के थानाप्रभारी एम.के. खान को फोन द्वरा दे दी.

चूंकि मामला गंभीर था इसलिए उस दिव्यांग व्यक्ति को तलाशने के लिए उन्होंने सिपाही उमाकांत दुबे, धर्मेंद्र चौरसिया, महिला सिपाही अंजनी सिंह व अर्चना सिंह को एसआई वंशबहादुर के पास भेज दिया. इस के बाद वंशबहादुर पुलिस टीम के साथ उस दिव्यांग की तलाश में मुंशी पुलिया के पास उस के अड्डे पर गए, लेकिन वह वहां नहीं मिला.

उन किशोरियों ने बताया था कि वह दिव्यांग व्यक्ति उन दोनों को ही ढूंढ रहा होगा. वह उन्हें ढूंढता हुआ बादशाह नगर प्लेटफार्म तक जरूर आएगा. इस के बाद पुलिस टीम इधरउधर छिप कर उस के आने का इंतजार करने लगी. कुछ देर बाद करीब 11 बजे के वक्त वह दिव्यांग व्यक्ति बादशाह नगर रेलवे स्टेशन पर आता हुआ दिखाई दिया. किशोरियों ने उसे पहचान लिया.

उन्होंने बताया कि वह करीब एक साल से इसी व्यक्ति के चंगुल में थीं. पुलिस टीम ने उस दिव्यांग को हिरासत में ले लिया और उसे बादशाह नगर रेलवे पुलिस चौकी ले आए.

पुलिस ने उस से पूछताछ की तो उस ने उन दोनों किशोरियों एवं किशोरों को पहचानते हुए यह स्वीकार किया कि इन लड़कियों से अनैतिक कार्य और किशोरों से भीख मांगने का धंधा कराता था. रेलवे पुलिस को यह भी पता चला कि मुंशी पुलिया के निकट यह दिव्यांग व्यक्ति पुलिस चौकी के पीछे झोपड़ी में रहता था. उस ने अपना नाम विजय बद्री उर्फ बंगाली बताया. वह पश्चिमी बंगाल का निवासी था.

आरोपी की गिरफ्तारी की सूचना पर रेलवे सुरक्षा बल ऐशबाद के थानाप्रभारी एम.के. खान भी बादशाह नगर रेलवे पुलिस चौकी पर पहुंच गए.

चूंकि मामला सिविल पुलिस का था, इसलिए थानाप्रभारी के निर्देश पर एसआई वंशबहादुर मेमो डिटेल बना कर उन दोनों किशोरों विजय व आनंद और दोनों किशोरियों गुंजा और मंजुला खातून को साथ ले कर थाना गाजीपुर पहुंचे.

उन्होंने गाजीपुर थानाप्रभारी राजदेव मिश्रा को पूरी बात बताई तो उन्होंने विजय बद्री के खिलाफ भादंवि की धारा 365, 370, 370ए के अंतर्गत 25 सितंबर, 2019 को मुकदमा दर्ज कर लिया.

गाजीपुर थाने में मुकदमा दर्ज हाने के बाद थानाप्रभारी ने उक्त प्रकरण की जांच विकास नगर पुलिस चौकी के इंचार्ज एसआई दुर्गाप्रसाद यादव को सौंप दी. जांच मिलते ही दुर्गाप्रसाद ने आरोपी दिव्यांग विजय बद्री से पूछताछ की तो उस ने अन्य आरोपियों सुमेर व शमीम के नाम भी बताए. पुलिस ने अन्य आरोपियों की खोजबीन शुरू कर दी.

एसआई दुर्गाप्रसाद यादव ने दोनों किशोरियों से पूछताछ की तो पता चला कि उन में से एक असम व एक बिहार की रहने वाली थी. उन के पिता लखनऊ शहर आ कर रिक्शा चलाते थे. उन के घर की हालत खस्ता थी. किसी तरह से केवल पेट भरने लायक रोटी मिल पाती थी.

मंजुला खातून विकासनगर के पास स्थित गांव चांदन में अपने पिता के साथ रहती थी. वहीं से वह कामधंधे की तलाश में निकली तो वह मुंशी पुलिया के पास झुग्गी में रहने वाले दिव्यांग विजय बद्री के संपर्क में आई. कुछ दिनों तक बद्री ने मंजुला की काफी मेहमाननवाजी की.

विजय बद्री के पास कुछ औरतें आती थीं. उस ने मंजुला को उन औरतों से मिलवाया. उन महिलाओं ने मंजुला को गोमतीनगर, इंदिरानगर और विकास नगर की पौश कालोनियों में भीख मांगने के काम पर लगा दिया.

इसी बीच गुंजा भी विजय बद्री के संपर्क में आ गई. गुंजा को भी उस ने मंजुला के साथ भीख मांगने के काम पर लगा दिया. बाद में उन दोनों को बादशाह नगर चौराहे व रेलवे स्टेशन के आसपास भेजा जाने लगा. वे ट्रेन में भी भीख मांगने लगीं. अधिकांशत: गुंजा व मंजुला खातून बादशाह नगर स्टेशन से ट्रेन में सवार हो कर काफी दूर तक भीख मांगने निकल जाया करती थीं.

शाम को वह अपने अड्डे पर जब वापस नहीं पहुंचतीं तो विजय बद्री खुद उन की तलाश में निकल पड़ता था. धीरेधीरे उस के यहां काम करने के दौरान गुडंबा निवासी विजय व आनंद से उन का संपर्क हुआ. ये दोनों किशोर भी भीख मांगने का धंधा किया करते थे. ये चारों दिन भर में लगभग एकएक हजार रुपए कमा कर लाते थे. विजय बद्री इस काम के लिए उन्हें रोजाना 200 रुपए दिया करता था.

गुंजा व मंजुला दोनों किशोरियों ने जांच के दौरान पुलिस को बताया कि विजय बद्री ने मुंशी पुलिया पुलिस चौकी के पीछे गोल्फ चौराहे पर ठहरने का अड्डा बना रखा था. जांच में पता चला कि विजय बद्री पश्चिमी बंगाल से आ कर उत्तर प्रदेश में बस गया था.

वह कई दशक पहले प्रयागराज में चोरीछिपे अनैतिक काम करता था. किंतु पुलिस के बढ़ते दबाव के कारण उस ने वहां से लखनऊ आ कर शरण ली थी. तब से वह खुद को उत्तर प्रदेश का मूल निवासी बताने लगा था.

लखनऊ में इस ने ठहरने के कई अड्डे बना रखे थे. पुलिस की सख्ती होने पर वह जगह बदलबदल कर गैरकानूनी गतिविधियां संचालित करता था. इन दोनों किशोरियों के द्वारा भीख मांगने को इनकार करने पर वह इन से जिस्मफरोशी का धंधा करने को मजबूर करता था.

पुलिस को पता चला कि विजय बद्री के चंगुल में एक दरजन से अधिक नाबालिग बच्चे थे, जो इस के बताए हुए अलगअलग जगहों पर भीख मांगने का धंधा किया करते थे.

इस से पहले गाजीपुर थानाप्रभारी राजदेव मिश्रा ने एक शिकायत के आधार पर विजय बद्री को 26 जुलाई, 2019 को गाजीपुर थाना क्षेत्र से पकड़ा था किंतु जमानत पर रिहा हो कर वह फिर से अपराध में मशगूल हो गया था.

पता चला कि वह युवतियों को बुरी तरह प्रताडि़त भी करता था और भीख मांगने के लिए विवश करने के लिए वह उन्हें भूखा रखता था तथा सिगरेट आदि से जलाता था.

अपने गैंग में शामिल करने के लिए वह बच्चों को खोजता रहता था. बच्चे खोजने के लिए वह खुद भी भीख मांगतेमांगते असम और बिहार तक चला जाता था. वहां कुछ दिन रुक कर कुछ सस्ते दामों में भोलीभाली गरीब बच्चियों को अपने अड्डे पर ले आता था.

वह किशोरियों से भीख ही नहीं मंगवाता था बल्कि उन से जिस्मफरोशी का धंधा भी करवाता था. वह उन्हें होटलों में भेजता था. इस से उसे अच्छी कमाई हो जाती थी. बताया जाता है कि उस के पास 30 किशोरियां थीं.

विजय बद्री के गैंग में जो भी लड़कियां आती थीं, सब से पहले वह उन्हें नशे की लत लगाता था. वह उन्हें अफीम, गांजा, भांग व दारू के नशे की आदत डालता था. जब वे नशे की आदी हो जाती थीं तो वह उन्हें जिस्मफरोशी के दलदल में ढकेल देता था.

मना करने पर रात को बेहोशी में सोने के दौरान नशे के इंजेक्शन दे कर उन्हें नशेड़ी बनाता. इतना ही नहीं ब्लेड से उन किशोरियों के शरीर पर गहरा चीरा लगा कर खून निकालता फिर उस खून से पट्टियां भिगो कर अपने कटे हुए दिव्यांग अंगों पर बांध लेता जिस से लोगों को लगे कि उस के जख्मों से खून निकल रहा है. इस से उसे भीख में ज्यादा पैसे मिलते थे.

विजय बद्री दाहिने पैर से विकलांग था. उस का घुटनों से ऊपर पैर कटा हुआ था और सुबह को यह खून से भीगी पट्टी पैर के कटे हुए भाग पर बांध कर नाटक बनाने के बाद भीख मांगने के लिए खुद भी ट्रेन में निकल जाता था.

भीख मांगते समय बद्री मौका मिलते ही यात्रियों का मोबाइल आदि भी चोरी कर लिया करता था. वह विकलांग जरूर था लेकिन दिमाग से बहुत शातिर था.

गुंजा व मंजुला ने बताया कि उन्होंने कई बार मुंशी पुलिया पुलिस चौकी पर जा कर मदद की गुहार लगाई थी, किंतु पुलिस ने उन्हें हर बार डपट कर भगा दिया था. विजय बद्री ने पुलिस को बताया कि नाबालिग किशोरियां जल्दी बड़ी दिखने लगें, इस के लिए वह उन्हें रात में हारमोंस के इंजेक्शन लगाता था.

गाजीपुर पुलिस के द्वारा विजय बद्री द्वारा बताए स्थानों की सघन तलाशी कराई गई तो पुलिस को पता चला कि आरोपी विजय बद्री तो गैंग का एक मामूली मोहरा था. उस के पीछे जिस्मफरोशी का रैकेट चलाने वाले सफेदपोश लोगों का हाथ था.

गैंग को संचालित करने वाले 3 लोगों के नाम सामने आए, जिस में एक शर्मीला नाम की औरत बताई जाती है. उस महिला ने पुलिस को बताया कि वह केवल विजय बद्री के यहां रोटीपानी के लिए काम करती थी. ये सफेदपोश लोग बाहर से युवतियां खरीद कर विजय बद्री के हाथ अड्डे पर बेच जाया करते थे. उस के बदले उन्हें बद्री मोटी रकम दिया करता था.

गाजीपुर पुलिस को छानबीन में पता चला कि विजय बद्री उर्फ बंगाली ने अब तक अपने जीवन में 30 लड़कियों को जिस्मफरोशी के  लिए चारबाग रेलवे स्टेशन के बाहर 10 हजार से ले कर 40 हजार रुपए तक में बेचा था.

इस काले धंधे को पूर्ण अंजाम तक पहुंचाने के लिए सीतापुर रोड के कल्याणपुर निवासी सुमेर नाम के व्यक्ति का पूरा सहयोग रहता था. गाजीपुर पुलिस ने सुमेर को पकड़ कर 18 सितंबर, 2019 को जेल भेजा था. सुमेर ने पुलिस की गिरफ्त में आने के बाद शमीम नामक व्यक्ति के संपर्क में आ कर इस मानव तस्करी में लिप्त रहने की बात कबूली थी.

सुमेर व विजय बद्री को न्यायालय में पेश किया गया जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. वहीं दोनों युवतियां गुंजा व मंजुला खातून को मोहान रोड स्थित महिला सुधार गृह और दोनों बालकों को बाल सुधार गृह में दाखिल करा दिया गया.

5 अक्तूबर, 2019 को जांच पूरी करने के बाद थानाप्रभारी राजदेव मिश्रा आरोपियों के खिलाफ शीघ्र ही आरोप पत्र दाखिल करने की तैयारी में थे.

—कथा में कुछ नाम काल्पनिक हैं. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2019

 

क्वीन हरीश का निधन: वह रानी नहीं, राजा था

नृत्य एक ऐसी कला है, जिस पर किसी का एकाधिकार नहीं है. नृत्य करने और सिखाने वालों में स्त्री और पुरुष दोनों होते हैं. किन्नरों में भी अच्छे नर्तकों और नर्तकियों की कमी नहीं है. लेकिन नृत्य सीखना अलग बात है और नृत्य की प्रस्तुति देना अलग बात. नृत्यकला अत्यधिक सुंदरता की मुरीद हो, ऐसा भी नहीं है. कहने का तात्पर्य यह है कि पुरुष भी नृत्य प्रवीण हो सकते हैं और स्त्री भी. यहां हम जिस नृत्य के पुजारी का जिक्र कर रहे हैं, वह पुरुष था नाम था हरीश कुमार सुथार.

हरीश कुमार भले ही पुरुष नर्तक था, लेकिन लोग उसे क्वीन कहते थे. खास बात यह कि हजारों नहीं लाखों दीवाने थे इस क्वीन के नृत्य के. राजस्थान के रेतीले धोरों वाले शहर जैसलमेर की शान माना जाता था क्वीन हरीश को.

जब वह राजस्थानी वेशभूषा में घाघराचोली पहन, पूरा शृंगार कर स्टेज या रेतीले धोरों पर नृत्य करता था तो लोग आंखें झपकाना भूल जाते थे. वह राजस्थान का ऐसा कलाकार था, जिस ने मरुभूति की लोक संस्कृति को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाया.

हरीश का मेकअप किट किसी फिल्मी सितारे से कम नहीं था. उस के मेकअप किट में देसीविदेशी सौंदर्य प्रसाधन का सारा सामान रहता था. मेकअप कर तैयार होने में उसे घंटा भर लग जाता था. वजह यह कि अपना मेकअप वह खुद करता था. नाक में नथुनी, पैरों में पायल और हाथों में चूडि़यां पहन कर खनकाते हुए जब वह चुस्त चोली और गोटापत्ती से सजे घाघरे में नृत्य करता था, जो नौजवानों के दिल पर छुरियां सी चल जाती थीं.

क्वीन हरीश ने हाल ही रिलायंस के चेयरमैन मुकेश अंबानी की बेटी ईशा अंबानी और अजय पीरामल के बेटे आनंद पीरामल की शादी में अपनी परफौरमेंस दे कर सुर्खियां बटोरी थीं. इसी दौरान हरीश ने अभिनेत्री ऐश्वर्या राय बच्चन और उन की बेटी आराध्या को नृत्य के टिप्स दिए थे. यह वीडियो पूरे देश में वायरल हुआ था.

हरीश ने मशहूर फिल्म निर्माता प्रकाश झा की फिल्म ‘जय गंगाजल’ में आइटम सौंग ‘नजर तोरी राजा…’ पर नृत्य किया था. इस फिल्म के कितने ही दर्शकों को आज तक इस बात का अहसास नहीं होगा कि आइटम डांसर कोई लड़की नहीं, बल्कि एक लड़का हरीश सुथार था.

हरीश ने कई बंगाली और मराठी फिल्मों में भी काम किया था. वह 2010 में इंडियन फैशन वीक में रैंप वाक भी कर चुका था. क्वीन हरीश राजस्थानी लोकनृत्य घूमर, कालबेलिया, चंग, भवई, चरी सहित कई लोक कलाओं में पारंगत था.

हरीश ने अपनी कला के बल पर ही दुनिया भर में अपनी पहचान बनाई थी. वह दुनिया के 60 से अधिक देशों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुका था. उस ने इन में सब से ज्यादा शो जापान और कोरिया में किए. अमेरिका, फ्रांस और इंग्लैंड में भी हरीश ने अपनी कला के जलवे दिखाए.

राजस्थानी लोकनृत्य के अलावा हरीश को बैले डांस के लिए भी दुनिया भर में जाना जाता रहा. उस ने कई बैले डांस चैंपियनशिप में हिस्सा लिया. राजस्थानी स्टाइल में बैले डांस परफौर्म करने के कारण उसे डेजर्ट क्वीन भी कहा जाता था. हरीश कलर्स चैनल के इंडियाज गौट टैलेंट का हिस्सा भी बना.

करीब 38 साल की उम्र के हरीश सुथार उर्फ क्वीन हरीश का इसी 2 जून को जोधपुर में कापरड़ा के पास हुए हादसे में निधन हो गया. वह जैसलमेर से एक टवेरा कार में अपने साथी कलाकारों के साथ जयपुर में प्रस्तावित कार्यक्रम में भाग लेने आ रहा था.

सुबह करीब 6 बजे उस की कार सड़क किनारे खड़े एक ट्रक से जा टकराई और चकनाचूर हो गई. इस हादसे में 3 अन्य लोक कलाकारों की भी मौके पर ही मौत हो गई. इन में जैसलमेर के रहने वाले लोक कलाकार लतीफ खां, रवींद्र उर्फ बंटी गोस्वामी और बाड़मेर के भीखे खां शामिल थे.

लोक कलाकार क्वीन हरीश के असामयिक निधन पर पूरे देश के कला जगत में शोक छा गया. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, विधानसभा अध्यक्ष डा. सी.पी. जोशी, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सहित अनेक राजनेताओं और कलाकारों के अलावा उन के प्रशंसकों ने हरीश के निधन को अपूरणीय क्षति बताया.

हरीश के परिवार में पत्नी व 2 बेटों के अलावा एक बहन है. दुनिया भर में नाम कमाने वाले हरीश का जन्म जैसलमेर के एक छोटे से गांव में गरीब परिवार में हुआ था. उन के पिता का भी कम उम्र में ही निधन हो गया था. गरीबी के कारण हरीश ने अपनी स्कूली पढ़ाई भी पूरी नहीं की. बाद में उस ने जीवन यापन के लिए डाकघर में भी काम किया.

हरीश को बचपन से ही डांस का शौक था. जब भी मौका मिलता, वह राजस्थानी लोकगीतों पर डांस करने लगता. उसे लड़की बन कर डांस करना अच्छा लगता था. इस का कारण यह था कि राजस्थानी नृत्य मूलरूप से महिलाएं ही करती हैं. जबकि हरीश कुछ अलग हट कर करना चाहता था.

डाकघर की नौकरी करते हुए भी हरीश ने अपने डांस के शौक को नहीं छोड़ा. वह दिन में काम करता और रात को डांस की प्रैक्टिस. हरीश ने सब से पहले 1995 में जैसलमेर में अपनी नृत्य कला का प्रदर्शन किया.

बाद में वह जैसलमेर आने वाले विदेशी सैलानियों के सामने महिला नर्तकी के रूप में अपनी कला का प्रदर्शन करने लगा. विदेशी मेहमानों के लिए क्वीन हरीश के नृत्य की महफिल जैसलमेर के रेतीले धोरों पर खुले आसमान तले चांद की दूधिया रोशनी में सजती थी.

बाद में हरीश की कला में जैसेजैसे निखार आया, उस के प्रशंसकों की संख्या बढ़ती गई. बाद में वह 1997 से राजस्थान के डांस ग्रुप्स के साथ मिल कर विदेशों में मेहमान कलाकार के रूप में अपनी कला दिखाने जाने लगा. यह सिलसिला उस की मौत से पहले तक चल रहा था.

जैसलमेर में हरीश ने अपनी डांस एकेडमी भी शुरू की. यहां वह विदेशी और भारतीय युवाओं को डांस की बारीकियां सिखाता था. उन के पास कई देशों के लड़केलड़कियां और सांस्कृतिक ग्रुप डांस के गुर सीखने के लिए जैसलमेर आते थे. हजारों विदेशी बालाएं हरीश के नृत्य की फैन थीं.

हर साल सैकड़ों विदेशी सैलानी खासतौर से हरीश से नृत्य का हुनर सीख कर जाते और अपने देश में परफौरमेंस देते. हरीश की पूरी दुनिया में 15 हजार से ज्यादा विदेशी युवतियां शिष्य हैं. उन्हें अपने गुरु की असामयिक मौत का यकीन ही नहीं हो रहा.

हरीश की सफलता का कारवां विदेशी डौक्युमेंटरी फिल्म ‘जिप्सी’ से शुरू हुआ था. यह फिल्म जैसलमेर के लोक संगीत से जुड़े लोगों पर बनी थी. इस के बाद हरीश पर्यटन से जुड़ गए और देश के विभिन्न शहरों और विदेशों में स्टेज शो के दौरान राजस्थान की मरुभूमि की लोक संस्कृति से दर्शकों का मन मोहा. हरीश भारत से ज्यादा विदेशों में विख्यात थे. उन्होंने बौलीवुड और लोक संगीत के फ्यूजन पर शानदार डांस किए.

उन्होंने पेरिस फुटबाल कप, बैली डांस रेग्स फैस्टिवल बेल्जियम, सेंट्रल पार्क समर स्टेज अमेरिका, हौलीवुड बाउल अमेरिका, दिवाली मेला न्यूजीलैंड, इंडिया शो जर्मनी में शानदार प्रस्तुतियां दे कर राजस्थन का नाम ऊंचा किया. वर्ल्ड रिकौर्ड और इंडिया की ओर से सन 2018 में उन्हें डांस जीनियस का अवार्ड दिया गया था.

कहानी सौजन्यसत्यकथा,  जुलाई 2019

हर्ष नहीं था हर्षिता के ससुराल में

उस दिन जुलाई 2019 की 6 तारीख थी. सुबह के 10 बज चुके थे. कानपुर शहर के जानेमाने कागज व्यापारी पदम

अग्रवाल अपनी 80 फुटा रोड स्थित दुकान पर कारोबार में व्यस्त थे. कागज खरीदने वालों और कर्मचारियों की चहलपहल शुरू हो गई थी. तभी 11 बज कर 21 मिनट पर पदम अग्रवाल के मोबाइल पर काल आई. उन्होंने मोबाइल स्क्रीन पर नजर डाली तो काल उन की बेटी हर्षिता की थी. काल रिसीव कर पदम अग्रवाल ने पूछा, ‘‘कैसी हो बेटी? ससुराल में सब ठीक तो है?’’

हर्षिता रुंधे गले से बोली, ‘‘पापाजी, यहां कुछ भी ठीक नहीं है. सासू मां झगड़ा कर रही हैं और मुझे प्रताडि़त कर रही हैं. उन्होंने मेरे गाल पर कई थप्पड़ मारे और झाडू से भी पीटा. पापा, मुझे ऐसा लग रहा है कि ये लोग मुझे जान से मारना चाहते हैं. इस षड्यंत्र में मेरी ननद परिधि और उस का पति आशीष भी शामिल हैं. सासू मां ने मुझ से कार की चाबी छीन ली है और दरवाजा लाक कर दिया है. पापा, आप जल्दी से मेरी ससुराल आ जाइए.’’

बेटी हर्षिता की व्यथा सुन कर पदम अग्रवाल का मन व्यथित हो उठा, गुस्सा भी आया. उन्होंने तुरंत अपने दामाद उत्कर्ष को फोन मिलाया, लेकिन उस का फोन व्यस्त था, बात नहीं हो सकी. तब उन्होंने अपने समधी सुशील अग्रवाल को फोन कर के हर्षिता के साथ उस की सास रानू अग्रवाल द्वारा मारपीट की जानकारी दी और मध्यस्तता की बात कही.

दुकान पर चूंकि भीड़ थी. इसलिए पदम अग्रवाल को कुछ देर रुकना पड़ा. अभी वह हर्षिता की ससुराल एलेनगंज स्थित एल्डोराडो अपार्टमेंट जाने की तैयारी कर ही रहे थे कि 12 बज कर 42 मिनट पर उन के मोबाइल पर पुन: काल आई. इस बार काल उन के समधी सुशील अग्रवाल की थी.

उन्होंने काल रिसीव की तो सुशील कांपती आवाज में बोले, ‘‘पदम जी, आप जल्दी घर आ जाइए.’’ पदम उन से कुछ पूछते, उस के पहले ही उन्होंने फोन का स्विच औफ कर दिया.

समधी की बात सुन कर पदम अग्रवाल बेचैन हो गए. उन के मन में विभिन्न आशंकाएं उमड़नेघुमड़ने लगीं. वह कार से पहले घर  पहुंचे फिर वहां से पत्नी संतोष व बेटी गीतिका को साथ ले कर हर्षिता की ससुराल के लिए निकल पड़े. हर्षिता की ससुराल कानपुर शहर के कोहना थाने के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र एलेनगंज में थी. सुशील अग्रवाल का परिवार एलेनगंज के एल्डोराडो अपार्टमेंट की सातवीं मंजिल के फ्लैट नं. 706 में रहता था.

क्षतविक्षत मिला हर्षिता का शव पदम अग्रवाल सर्वोदय नगर में रहते थे. सर्वोदय नगर से हर्षिता की ससुराल की दूरी 5 कि.मी. से भी कम थी. उन्हें कार से वहां पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगा. वह कार से उतर कर आगे बढे़ तो वहां का दृश्य देख कर वह अवाक रह गए.

अपार्टमेंट के बाहर फर्श पर उन की बेटी हर्षिता का क्षतविक्षत शव पड़ा था और सामने गैलरी में हर्षिता का पति उत्कर्ष, सास रानू, ससुर सुशील तथा ननद परिधि मुंह झुकाए खडे़ थे. पदम के पूछने पर उन लोगों ने बताया कि हर्षिता ने सातवीं मंजिल की खिड़की से कूद कर जान दे दी.

उन लोगों की बात सुन कर पदम अग्रवाल गुस्से से बोले, ‘‘मेरी बेटी हर्षिता ने स्वयं कूद कर जान नहीं दी. तुम लोगों ने दहेज के लिए उसे सुनियोजित ढंग से मार डाला है. मैं तुम लोगों को किसी भी हालत में नहीं छोड़ूंगा.

इसी के साथ उन्होंने मोबाइल फोन द्वारा थाना कोहना पुलिस को घटना की सूचना दे दी. उन्होंने अपने परिवार तथा सगे संबंधियों को भी घटना के बारे में बता दिया. खबर मिलते ही पदम के भाई मदन लाल, मनीष अग्रवाल, भतीजा गोपाल और साला मनोज घटनास्थल पर आ गए.

हर्षिता का क्षतविक्षत शव देख कर मां संतोष दहाड़ मार कर रोने लगी थीं. रोतेरोते वह अर्धमूर्छित हो गईं. परिवार की महिलाओं ने उन्हें संभाला और मुंह पर पानी के छींटे मार कर होश में लाईं. गीतिका भी छोटी बहन की लाश देख कर फफक रही थी. रोतेरोते वह मां को भी संभाल रही थी. मां बेटी का करूण रुदन देख कर परिवार की अन्य महिलाओं की आंखों में भी अश्रुधारा बहने लगी.

इधर जैसे ही कोहना थानाप्रभारी प्रभुकांत को हर्षिता की मौत की सूचना मिली, वह पुलिस टीम के साथ एल्डोराडो अपार्टमेंट आ गए. आते ही उन्होंने घटनास्थल को कवर कर दिया, ताकि कोई सबूतों से छेड़छाड़ न कर सके. मामला चूूंकि 2 धनाढ्य परिवारों का था. इसलिए उन्होंने तत्काल घटना की खबर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दे दी.

खबर पाते ही एडीजी प्रेम प्रकाश, आईजी मोहित अग्रवाल, एसएसपी अनंत देव तिवारी, सीओ (कर्नलगंज) जनार्दन दुबे और सीओ (स्वरूप नगर) अजीत सिंह चौहान घटनास्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. साथ ही उपद्रव की आशंका से थाना काकादेव, स्वरूप नगर तथा कर्नलगंज से पुलिस फोर्स मंगवा ली.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो वह भी दहल उठे. हर्षिता  अपार्टमेंट की सातवीं मंजिल की खिड़की से गिरी थी. अधिक ऊंचाई से गिरने के कारण उस के सिर की हड्डियां चकनाचूर हो गई थीं और चेहरा विकृत हो गया था. शरीर के अन्य हिस्सों की भी हड्डियां टूट गई थीं.

हर्षिता का रंग गोरा था और उस की उम्र 27 वर्ष के आसपास थी. पुलिस अधिकारियों ने फ्लैट नं. 706 की किचन के बराबर वाली उस खिड़की का भी मुआयना किया जहां से हर्षिता कूदी थी या फिर उसे फेंका गया था.

फ्लैट से पुलिस को कोई ऐसी संदिग्ध वस्तु नहीं मिली जिस से साबित होता कि हर्षिता की हत्या की गई थी. फोरैंसिक टीम ने भी एक घंटे तक जांच कर के साक्ष्य जुटाए. निरीक्षण के बाद पुलिस अधिकारियों ने हर्षिता के शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपत राय चिकित्सालय भिजवा दिया.

घटनास्थल पर अन्य लोगों के अलावा हर्षिता का पति उत्कर्ष तथा उस के माता पिता मौजूद थे. पुलिस अधिकारियों ने सब से पहले मृतका के पति उत्कर्ष से पूछताछ की. उसने बताया कि वह हर्षिता से बहुत प्यार करता था, लेकिन उस के जाने से सब कुछ खत्म हो गया है. शादी के बाद वह दोनों बेहद खुश थे. मम्मीपापा भी उसे काफी प्यार करते थे. उसे अपना फोटोग्राफी का व्यवसाय शुरू कराने वाले थे, आनेजाने के लिए उसे कार भी दे रखी थी. कहीं आनेजाने पर कोई रोकटोक नहीं थी.

28 मई से 16 जून 2019 तक वे दोनों अमेरिका में रहे, तब भी भविष्य को ले कर सपने बुने लेकिन क्या पता था कि सारे सपने टूट जाएंगे. आज मैं और पापा फैक्ट्री में थे तभी मम्मी का फोन आया. हम लोग तुरंत घर आए. हर्षिता खिड़की से नीचे कैसे गिरी उसे पता नहीं है.

हर्षिता के ससुर सुशील कुमार अग्रवाल ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि उन्हें अपनी फैक्ट्री मंधना से तांतियागंज में शिफ्ट करनी थी. माल ढुलाई के लिए वह आज सुबह 9 बजे ही फैक्ट्री पहुंच गए थे. उस समय घर में सबकुछ ठीकठाक था.

दोपहर 12.35 बजे पत्नी रानू ने फोन कर बताया कि बहू हर्षिता अपार्टमेंट की खिड़की से गिर गई है. यह पता चलते ही उन्होंने हर्षिता के पिता को फोन किया और फौरन घर आने को कहा. फिर बेटे उत्कर्ष को साथ ले कर घर के लिए चल दिए. घर पहुंचे तो वहां बहू हर्षिता की लाश नीचे पड़ी मिली.

मृतका हर्षिता की सास रानू अग्रवाल ने बताया कि सुबह 9 बजे के लगभग उत्कर्ष अपने पापा के साथ मंधना स्थित फैक्ट्री चला गया था. बरसात थमने के बाद नौकरानी आ गई. उस के आने के बाद वह एक जरूरी कुरियर करने जाने लगी. उस वक्त बहू हर्षिता सफाई कर रही थी. शायद वह खिड़की के पास कबूतरों द्वारा फैलाई गई गंदगी को साफ कर रही थी.

नौकरानी ने खोला भेद  वह कुरियर का पैकेट ले कर फ्लैट के दरवाजे के पास ही पहुंची थी कि नौकरानी के चिल्लाने की आवाज आई. वह वहां पहुंची तो देखा कि हर्षिता खिड़की से नीचे गिर गई है. नौकरानी ने उसे खींचने की कोशिश की लेकिन वह उसे बचा नहीं पाई. इस पर उस ने शेर मचाया और नीचे जा कर देखा. बहू की मौत हो चुकी थी. फिर उस ने जानकारी फोन पर पति को दी.

फ्लैट पर नौकरानी शकुंतला मौजूद थी. पुलिस अधिकारियों ने उस से पूछताछ की. उस ने मालकिन रानू अग्रवाल के झूठ का परदाफाश कर दिया और सारी सच्चाई बता दी. शकुंतला ने बताया कि वह सुबह साढे़ 9 बजे फ्लैट पर पहुंची थी.

उस समय भैया (उत्कर्ष) और उन के पापा (सुशील) फैक्ट्री जा चुके  थे. भाभी (हर्षिता) और मालकिन रानू ही फ्लैट में मौजूद थी. किसी बात पर उन में विवाद हो रहा था.

मालकिन भाभी से कह रही थीं कि नौकरानी को 8 हजार रुपए दिए जाते हैं और तुम कमरे में पड़ी रहती हो. घर का काम नहीं कर सकतीं. इस के बाद दोनों में नौकझोंक होने लगी. इसी नौकझोंक में मालकिन ने भाभी को 2-3 थप्पड़ जड ़दिए और फिर झाडू उठा कर मारने लगीं. तब भाभी कार की चाबी ले कर बाहर जाने लगीं. पर मालकिन गेट पर खड़ी हो गईं.

मेनगेट बंद कर ताला लगा लिया और चाबी अपने पास रख ली. गुस्से में भाभी ने सिर दीवार से टकराने की कोशिश की तो मैं ने मना किया. फिर वह खिड़की से नीचे कूदने लगीं तो मैं ने उन का हाथ पकड़ कर खींच लिया और कमरे में ले आई.

इस के बाद वह बरतन धोने लगी. लगभग साढे़ 12 बजे मालकिन चिल्लाईं तो मैं वहां पहुंची. मैं ने देखा कि भाभी खिड़की से नीचे लटकी थीं. मैं ने उन के पैर का पंजा व कुरता पकड़ कर ऊपर खींचने की कोशिश की, लेकिन बचा नहीं पाई. इस दौरान मालकिन पीछे खड़ी रहीं. उन्होंने मदद नहीं की.

नौकरानी शकुंतला के बयानों के बाद थानाप्रभारी प्रभुकांत ने पुलिस अधिकारियों के आदेश पर रानू अग्रवाल को महिला पुलिस के सहयोग से हिरासत में ले लिया. उसे हिरासत में लेते ही मृतका के मायके वालों का गुस्सा फूट पड़ा. महिलाएं हत्यारिन सास कह कर रानू पर टूट पड़ीं.

पुलिस ने बड़ी मशक्कत से रानू अग्रवाल को हमलावर महिलाओं से बचाया और उसे पुलिस सुरक्षा में जीप में बिठा कर थाना कोहना भेज दिया. पुलिस को शक था कि कहीं मायके वाले उत्कर्ष व उस के पिता सुशील कुमार पर भी हमला न कर दें. इसलिए सुरक्षा की दृष्टि से उन्हें भी थाने भेज दिया गया.

पुलिस अधिकारियों ने मृतका हर्षिता के पिता पदम अग्रवाल से घटना के संबंध में जानकारी ली तो वह फफक पडे़ और बोले, ‘‘मैं ने हर्षिता को बडे़ लाडप्यार से पालपोस कर बड़ा किया, पढ़ायालिखाया था. शादी भी बडे़ अरमानों के साथ की थी. उस की शादी में करीब 40 लाख रुपए खर्च किया था. इस के बावजूद ससुराल वालों का पेट नहीं भरा. शादी के कुछ दिन बाद ही वह रुपयों के लालच में बेटी को शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताडि़त करने लगे थे.

‘‘मार्च 2019 में समधी सुशील कुमार की बेटी परिधि की शादी थी. शादी के लिए उन्होंने हर्षिता के मार्फत 25 लाख रुपए मांगे थे. लेकिन उस ने मना कर दिया था. तब पूरा परिवार बेटी को प्रताडि़त करने लगा. फैक्ट्री शिफ्ट करने के लिए भी कभी 30 लाख तो कभी 40 लाख की मांग की थी.

‘‘आज 11.20 बजे हर्षिता ने फोन कर के सास द्वारा प्रताडि़त करने की जानकारी दी थी. उस ने जानमाल का खतरा भी बताया था. आखिर दहेज लोभियों ने मेरी बेटी को मार ही डाला. आप से मेरा अनुरोध है कि इन दहेज लोभियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर के इन्हें सख्त से सख्त सजा दिलाने में मदद करें.’’

ससुराल वालों के खिलाफ हुआ केस दर्ज पदम अग्रवाल की तहरीर पर कोहना थानाप्रभारी प्रभुकांत ने भादंवि की धारा 498ए, 304बी, 506 तथा दहेज अधिनियम की  धारा 3/4 के अंतर्गत हर्षिता की सास रानू अग्रवाल, पति उत्कर्ष अग्रवाल, ससुर सुशील कुमार  अग्रवाल, ननद परिधि और ननदोई आशीष जालौन के विरूद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली. मामले की जांच का कार्य सीओ (कर्नलगंज) जनार्दन दुबे को सौंपा गया.

7 जुलाई, 2019 को हर्षिता का जन्म दिन था. बर्थ  डे पर ही उस की अरथी उठी. पदम अग्रवाल की लाडली बेटी का जन्म 7 जुलाई, 1991 को रविवार के दिन हुआ था. 28 साल बाद उसी तारीख और रविवार के दिन घर से बेटी की अरथी उठी.

उसी दिन उस के शव का पोस्टमार्टम हुआ. दोपहर बाद शव घर पहुंचा तो वहां कोहराम मच गया. लाल जोडे़ में सजी अरथी को देख कर मां संतोष बेहोश हो गई. महिलाओं ने उन्हें संभाला. हर्षिता को अंतिम विदाई देने के लिए जनसैलाब उमड़ पड़ा.

हर्षिता की मौत का समाचार 7 जुलाई को कानपुर से प्रकाशित प्रमुख समाचार पत्रों में प्रमुखता से छपा तो शहर वासियों में गुस्सा छा गया. लोग एक सुर से हर्षिता को न्याय दिलाने की मांग करने लगे. सामाजिक संगठन, महिला मंच, मुसलिम महिला संगठन, जौहर एसोसिएशन आदि ने घटना की घोर निंदा की और एकजुट हो कर हर्षिता को न्याय दिलाने का आह्वान किया.

इधर विवेचक जनार्दन दुबे ने जांच प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए एक बार फिर घटनास्थल का निरीक्षण किया. फ्लैट को ख्ांगाला और घटना की अहम गवाह नौकरानी शकुंतला का बयान दर्ज किया. साथ ही फ्लैट के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी देखीं. आरोपियों के बयान भी दर्ज किए गए. साथ ही मृतका के मातापिता का बयान भी लिया गया.

जांच के बाद ससुरालियों द्वार हर्षिता को प्रताडि़त करने का आरोप सही पाया गया. इस में सब से बड़ी भूमिका हर्षिता की सास रानू की थी. यह बात भी सामने आई कि उत्कर्ष और सुशील कुमार अग्रवाल भी हर्षिता को प्रताडि़त करते थे. रानू अग्रवाल हर्षिता को सब से ज्यादा प्रताडि़त करती थी.

जांच के बाद 7 जुलाई, 2019 को थाना कोहना पुलिस ने अभियुक्त रानू अग्रवाल, उत्कर्ष अग्रवाल तथा सुशील अग्रवाल को विधि सम्मत गिरफ्तार कर लिया. रानू अग्रवाल को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया. जहां से उसे जेल भेज दिया गया. दूसरे रोज 8 जुलाई को उत्कर्ष तथा सुशील को कोर्ट में पेश किया गया. जहां से उन दोनों को भी जेल भेज दिया गया.

हर्षिता की मौत के मामले में नामजद 5 आरोपियों में से 3 जेल चले गए थे, जबकि 2 आरोपी हर्षिता की ननद परिधि जालान तथा ननदोई आशीष जालान बाहर थे. सीओ जनार्दन दुबे की विवेचना में ये दोनों निर्दोष पाए गए. रिपोर्टकर्ता पदम अग्रवाल ने भी इन दोनों को क्लीन चिट दे दी थी. इसलिए विवेचक ने दोनों का नाम मुकदमे से हटा दिया.

हर्षिता की मौत के गुनहगारों को पुलिस ने हालांकि जेल भेज दिया था, लेकिन कानपुर वासियों का गुस्सा अब भी ठंडा नहीं पड़ा था. सामाजिक संगठन, महिला मंच आल इंडिया डेमोक्रेटिक वूमेंस एसोसिएशन, मौलाना मोहम्मद अली जौहर एसोसिएशन महिला संगठन तथा स्कूली छात्राएं सड़कों पर प्रदर्शन कर रही थीं

10 जुलाई को भारी संख्या में महिलाएं छात्राएं तथा सामाजिक संगठनों के लोग मोतीझील स्थित राजीव वाटिका पर जुटे और हर्षिता की मौत के गुनहगारों को फांसी की सजा दिलाने के लिए शांति मार्च निकाला. इस दौरान हर किसी की आंखों में गम और चेहरे पर गुस्सा था.

हर्षिता की मौत को ले कर मुसलिम महिलाओं में भी आक्रोश था. इसी कड़ी में हर्षिता को न्याय दिलाने के लिए मौलाना मोहम्मद अली जौहर एसोसिएशन की महिला पदाधिकारियों ने हलीम मुसलिम कालेज चौराहे पर श्रद्धांजलि सभा की, फिर कैंडिल मार्च निकाला. कैंडिल मार्च का नेतृत्व जैनब कर रही थीं. मुसलिम महिलाएं हाथ में ‘जस्टिस फार हर्षिता’, ‘हत्यारों को फांसी दो’ लिखी तख्तियां लिए थीं.

पदम अग्रवाल ने विवेचक पर आरोप लगाया कि वह जांच को प्रभावित कर के आरोपियों को फायदा पहुंचा रहे हैं. इस की शिकायत उन्होंने डीएम विजय विश्वास पंत से की. साथ ही आईजी मोहित अग्रवाल व एसएसपी अनंतदेव को भी इस बात से अवगत कराया.

पदम अग्रवाल की शिकायत को गंभीरता से लेते हुए आईजी मोहित अग्रवाल ने सीओ (कर्नलगंज) जनार्दन दुबे से जांच हटा कर सीओ (स्वरूपनगर) अजीत सिंह चौहान को सौंप दी. जांच की जिम्मेदारी मिलते ही अजीत सिंह चौहान ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तथा फ्लैट में जा कर बारीकी से जांच की. साथ ही पदम अग्रवाल, उन की पत्नी संतोष, बेटी गीतिका तथा हर्षिता के पड़ोसियों का बयान दर्ज किया. फोरैंसिक टीम को साथ ले कर उन्होंने क्राइम सीन को भी दोहराया.

कानपुर महानगर के काकादेव थाना क्षेत्र में पौश इलाका है सर्वोदय नगर. इसी सर्वोदय नगर क्षेत्र के मोती विहार में पदम अग्रवाल अपने परिवार के साथ रहते हैं. उन के परिवार में पत्नी संतोष के अलावा 2 बेटियां गीतिका व हर्षिता थीं. पदम अग्रवाल कागज व्यापारी हैं. कागज का उन का बड़ा कारोबार है. 80 फुटा रोड पर उन का गोदाम तथा दुकान है. अग्रवाल समाज में उन की अच्छी प्रतिष्ठा है.

पदम अग्रवाल अपनी बड़ी बेटी गीतिका की शादी कर चुके थे. वह अपनी ससुराल में खुशहाल थी. गीतिका से छोटी हर्षिता थी, वह भी बड़ी बहन गीतिका की तरह खूबसूरत, हंसमुख तथा मृदुभाषी थी. उस ने छत्रपति शाहूजी महाराज (कानपुर) यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएशन कर लिया था.

हर्षिता को फोटोग्राफी का शौक था. वह फोटोग्राफी से अपना कैरियर बनाना चाहती थी. इस के लिए उस ने न्यूयार्क इंस्टीट्यूट औफ फोटोग्राफी से प्रोफेशनल फोटोग्राफी का कोर्स पूरा कर लिया था.

हर्षिता जहां फोटोग्राफी के व्यवसाय की ओर अग्रसर थी, वहीं पदम अग्रवाल अपनी इस बेटी के हाथ पीले कर उसे ससुराल भेज देना चाहते थे. वह ऐसे घरवर की तलाश में थे, जहां उसे मायके की तरह सभी सुखसुविधाएं मुहैया हों. काफी प्रयास के बाद एक विचौलिए के मार्फत उन्हें उत्कर्ष पसंद आ गया.

उत्कर्ष के पिता सुशील कुमार अग्रवाल अपने परिवार के साथ कानपुर के कोहना थाना क्षेत्र स्थित एल्डोराडो अपार्टमेंट की 7वीं मंजिल पर फ्लैट नंबर 706 में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी रानू अग्रवाल के अलावा बेटा उत्कर्ष तथा बेटी परिधि थीं. दोनों ही बच्चे अविवाहित थे.

सुशील कुमार धागा व्यापारी थे. मंधना में उन की अनुशील फिलामेंट प्राइवेट लिमिटेड नाम से पौलिस्टर धागा बनाने की फैक्ट्री थी. उत्कर्ष अपने पिता सुशील के साथ धागे की फैक्ट्री को चलाता था. वह पढ़ालिखा और स्मार्ट था. पदम अग्रवाल ने उसे अपनी बेटी हर्षिता के लिए पसंद कर लिया. हर्षिता और उत्कर्ष ने एकदूसरे को देखा, तो वे दोनों भी शादी के लिए राजी हो गए. इस के बाद रिश्ता तय हो गया.

हर्षिता की जिंदगी में आया उत्कर्ष रिश्ता तय होने के बाद 24 जनवरी, 2017 को उत्कर्ष के साथ हर्षिता की शादी संपन्न हो गई. शादी मध्य प्रदेश के ओरछा रिसोर्ट में हुई थी. इस शादी में कानपुर शहर के उद्योगपतियों के अलावा अनेक जानीमानी हस्तियां शामिल हुई थीं. पदम अग्रवाल ने इस शादी में लगभग 40 लाख रुपया खर्च किए. उन्होंने बेटी को ज्वैलरी के अलावा उस की ससुराल वालों को वह सब दिया था, जिस की उन्होंने डिमांड की थी.

शादी के बाद 6 माह तक हर्षिता के जीवन में बहार रही. सासससुर व पति का उसे भरपूर प्यार मिला. लेकिन उस के बाद सास व ननद के ताने शुरू हो गए. उस पर घरगृहस्थी का बोझ भी लाद दिया गया. घर की साफसफाई कपडे़ व रसोई का काम भी उसे ही करना पड़ता.

नौकरानी कभी रख ली जाती तो कभी उस की छुट्टी कर दी जाती. काम करने के बावजूद हर्षिता के हर काम में टोकाटाकी की जाती. सास ताने देती कि तुम्हारी मां ने यह नहीं सिखाया, वह नहीं सिखाया.

धीरेधीरे हर्षिता की सास रानू अग्रवाल के जुल्म बढ़ने लगे. रानू हर्षिता के उठनेबैठने, सोने पर आपत्ति जताने लगी थी. खानेपीने व घर के बाहर जाने पर भी आपत्ति जताती और प्रताडि़त करती थी. हर्षिता जब कभी घर से ब्यूटीपार्लर जाती तो सजासंवरा देख कर ऐसे ताने मारती कि हर्षिता का दिल छलनी हो जाता.

वह उत्कर्ष से शिकायत करती तो उत्कर्ष मां का ही पक्ष लेता और उसे प्रताडि़त करता. ससुर सुशील अग्रवाल भी अपनी पत्नी रानू के उकसाने पर हर्षिता को दोषी ठहराते और प्रताडि़त करते.

हर्षिता मायके जाती, लेकिन ससुराल वालों की प्रताड़ना की बात नहीं बताती थी. वह सोचती थी कि आज नहीं तो कल सब ठीक हो जाएगा. पर एक रोज मां ने प्यार से बेटी के सिर पर हाथ फेर कर पूछा तो हर्षिता के मन का गुबार फट पडा.

वह बोली, ‘‘मां, आप लोगों से दामाद चुनने में भूल हो गई. उस के मातापिता का व्यवहार ठीक नहीं है. सभी मुझे प्रताडि़त करते हैं.’’

बेटी की व्यथा से व्यथित मां संतोष ने हर्षिता को ससुराल नहीं भेजा. इस पर उत्कर्ष ससुराल आया और हर्षिता तथा संतोष से माफी मांग कर हर्षिता को साथ ले गया

हर्षिता के ससुराल आते ही उसे फिर प्रताडि़त किया जाने लगा. उस पर अब 25 लाख रुपए दहेज के रूप में लाने का दबाव बनाया जाने लगा.

दरअसल हर्षिता की ननद परिधि की शादी तय हो गई थी. शादी के लिए ही पति, सासससुर हर्षिता पर रुपए लाने का दबाव बना रहे थे. रुपए न लाने पर उन का जुल्म बढ़ने लगा था.

23 नवंबर, 2018 को हर्षिता के चचेरे भाई की शादी थी. हर्षिता शादी में शामिल होने आई तो उस ने मां को 25 लाख रुपया मांगने तथा प्रताडि़त करने की बात बताई. इस पर पदम अग्रवाल ने हर्षिता को ससुराल नहीं भेजा. 2 हफ्ते बाद उत्कर्ष अपने पिता सुशील के साथ आया और दोनों ने हाथ जोड़ कर माफी मांगी. सुशील ने अपनी पत्नी रानू के गलत व्यवहार के लिए भी माफी मांगी, साथ ही हर्षिता को प्रताडि़त न करने का वचन दिया, तभी हर्षिता को ससुराल भेजा गया.

सुशील कुमार अग्रवाल ने फैक्ट्री में नई मशीनें लगाने के लिए लगभग 2.5 करोड़ रुपए बैंक से लोन लिया था. इस लोन की भरपाई हेतु सुशील ने कभी 30 लाख, तो कभी 40 लाख की डिमांड की. लेकिन पदम अग्रवाल ने रुपया देने से मना कर दिया था.

हर्षिता की सास रानू अग्रवाल व पति उत्कर्ष ने भी हर्षिता के मार्फत लाखों रुपए मायके से लाने की बात कही. रुपए लाने से मना करने पर हर्षिता को परिणाम भुगतने की चेतावनी भी दी.

मई, 2019 में पदम अग्रवाल ने अमेरिका घूमने का प्लान बनाया. उन के साथ बड़ी बेटी गीतिका व उस का पति भी जा रहा था. पदम अग्रवाल ने हर्षिता व उस के पति उत्कर्ष को भी साथ ले जाने का निश्चय किया.

हर्षिता की सास रानू नहीं चाहती थी कि हर्षिता घूमने जाए. अत: उस ने हर्षिता का टिकट बुक कराने से मना कर दिया. तब पदम अग्रवाल ने ही बेटीदामाद का टिकट बुक कराया. 25 मई को पदम अग्रवाल अपनी पत्नी तथा दोनों दामाद व बेटियों के साथ टूर पर चले गए.

सास ने की बहू हर्षिता की पिटाई  16 जून को वे सब अमेरिका से लौट आए. टूर से लौटने के बाद हर्षिता मायके में ही रुक गई. वह ससुराल नहीं जाना चाहती थी. लेकिन उत्कर्ष माफी मांग कर तथा समझा कर हर्षिता को ले गया. ससुराल पहुंचते ही सास रानू अग्रवाल हर्षिता को बातबेबात मानसिक रूप से प्रताडि़त करने लगी. उस ने हर्षिता के ब्यूटीपार्लर जाने पर भी रोक लगा दी. हर्षिता घर से निकलती तो वह कार की चाबी छीन लेती और मारपीट पर उतारू हो जाती.

6 जुलाई, 2019 को जब उत्कर्ष तथा सुशील फैक्ट्री चले गए तो घरेलू काम करने को ले कर सासबहू में झगड़ा होने लगा. कुछ देर बाद नौकरानी शकुंतला आ गई. तब भी दोनों में झगड़ा हो रहा था. तकरार ज्यादा बढ़ी तो किसी बात का जवाब देने पर सास रानू ने हर्षिता के गाल पर 2-3 थप्पड़ जड़ दिए तथा झाड़ू से पीटने लगी.

गुस्से में हर्षिता ने पर्स और कार की चाबी ली और घर के बाहर जाने लगी. यह देख कर रानू दरवाजे पर जा खड़ी हुई और उस ने मुख्य दरवाजा लौक कर दिया. इस पर गुस्से में हर्षिता किचन की बराबर वाली खिड़की पर पहुंची और वहां से कूदने लगी. लेकिन शकुंतला ने उसे खींच लिया और कमरे में ले आई.

इस के बाद शकुंतला बरतन साफ करने लगी. लगभग साढ़े 12 बजे रानू चिल्लाई तो शकुंतला वहां पहुंची. लेकिन हर्षिता खिड़की से कूद चुकी थी. हर्षिता स्वयं कूदी या सास रानू ने उसे धक्का दिया, शकुंतला नहीं देख पाई. हर्षिता जीवित है या मर गई, यह देखने के लिए रानू अपार्टमेंट के नीचे आई. उस ने हर्षिता का पर्स व चाबी उठाई, फिर हर्षिता की कलाई पकड़ कर नब्ज टटोली. इस के बाद उस ने पति सुशील को फोन किया, ‘‘जल्दी घर आओ. हर्षिता खिड़की से कूद गई है.’’

जानकारी पाते ही सुशील ने समधी पदम अग्रवाल को घर आने को कहा और उत्कर्ष के साथ घर आ गए. कुछ देर बाद पदम अग्रवाल भी अपनी पत्नी संतोष व बेटी गीतिका के साथ आ गए और बेटी का शव देखकर रो पड़े. उन्होंने थाना कोहना में ससुराली जनों के विरूद्ध रिपोर्ट दर्ज कराई.

रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने रानू, उत्कर्ष, तथा सुशील कुमार अग्रवाल को गिरफ्तार कर लिया. बाद में उन्हें कोर्ट में पेश किया गया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया.

दहेज हत्या के आरोपी सुशील कुमार अग्रवाल की जमानत हेतु जिला न्यायाधीश अशोक कुमार सिंह की अदालत में बचाव पक्ष के वकील ने अरजी दाखिल की. जिस पर 9 अगस्त को सुनवाई हुई. बचावपक्ष के वकील ने हृदय की बीमारी को आधार बना कर तथा दहेज न मांगने की बात कह कर अरजी दाखिल की थी.

बचावपक्ष के वकील ने हृदय की बीमारी के तर्क के जरिए कोर्ट में जमानत की गुहार लगाई. वहीं पीडि़त पक्ष के वकील ने न्यायालय में जमानत का विरोध करते हुए दलील दी कि हर्षिता की मृत्यु विवाह के ढाई वर्ष के अंदर ससुराल में असामान्य परिस्थितियों में हुई है. विवेचना में भी विवेचक को पर्याप्त साक्ष्य मिले हैं. दहेज हत्या का अपराध गैरजमानती होने के साथसाथ गंभीर भी है.

दोनों वकीलों की दलील सुनने के बाद जज ने कहा कि दहेज हत्या जैसे मामले में उदारता नहीं बरती जा सकती. इस से पीडि़तों का न्याय व्यवस्था पर विश्वास कम होगा. जहां तक आवेदक के बीमार होने की बात है, उसे जेल में इलाज मुहैया कराया जा सकता है. इस पर जज ने सुशील की जमानत खारिज कर दी. कथा संकलन तक सभी आरोपी जेल में बंद थे.

बंगलों के चोर

मुंबई शहर के मुलुंड इलाके के रहने वाले सुरेश एस. नुजाजे एक होटल व्यवसायी थे. मुंबई के अलावा उन के बेंगलुरु और दुबई में भी होटल थे. इस के अलावा ठाणे जिले की तहसील शहापुर के खंडोबा गांव में उन का एक फार्महाउस के रूप में ‘ॐ’ नाम का बंगला भी था. वैसे तो 48 वर्षीय सुरेश एस. नुजाजे अपने बिजनैस में ही व्यस्त रहते थे, लेकिन समय निकाल कर अपने परिवार के साथ वह ठाणे स्थित बंगले में आते रहते थे. यहां 4-5 दिन रह कर वह मुंबई लौट जाते थे.

जुलाई, 2019 के दूसरे सप्ताह में भी वह 8 दिनों के लिए परिवार के साथ अपने इस बंगले में आए थे. मुंबई पहुंचने के बाद उन्हें खबर मिली कि बंगले में रहने वाले 8 कुत्तों में से एक कुत्ता बीमार है. उस की बीमारी की खबर सुन कर वह परिवार को मुंबई छोड़ कर अकेले ही कुत्ते के इलाज के लिए फिर से अपने बंगले पर पहुंच गए.

उन्होंने अपने बीमार कुत्ते का इलाज कराया. उन के बंगले की सफाई आदि करने के लिए दीपिका नामक एक महिला आती थी. हमेशा की तरह 19 जुलाई, 2019 को भी वह सुबह करीब 7 बजे बंगले पर पहुंची. उसे सुरेश नुजाजे के बैडरूम की भी सफाई करनी थी, लिहाजा उन के बैडरूम में जाने से पहले उस ने दरवाजा खटखटाया.

दरवाजा खटखटाने और आवाज देने के बाद भी जब अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो वह अपने साहब को आवाज देते हुए उन के कमरे में चली गई. तभी उस ने देखा कि उस के मलिक सुरेश नुजाजे बैड से नीचे पड़े थे. उन के हाथ बंधे दिखे.

दीपिका ने उन्हें गौर से देखा तो वह लहूलुहान हालत में थे. उन के हाथों के अलावा पैर भी बंधे थे और उन के पेट पर घाव थे. दीपिका ने उन्हें उठाने की कोशिश की पर वह नहीं उठे और न ही कुछ बोले. वह डर गई और बाहर की ओर भागी. वह सीधे वहां रहने वाले जगन्नाथ पवार के कमरे पर गई. उस ने जगन्नाथ पवार को यह खबर दी.

जगन्नाथ पवार ने उसी समय फोन द्वारा उपसरपंच नामदेव दुधाले और भाई रमेश पवार को बता दिया कि सुरेश नुजाजे बंगले में लहूलुहान हालत में हैं. जगन्नाथ पवार के बुलावे पर दोनों उस के पास पहुंच गए.

इस के बाद वे तीनों इकट्ठे हो कर सुरेश नुजाजे के बंगले पर दीपिका के साथ गए. जब उन्होंने बंगले में जा कर देखा तो सुरेश नुजाजे अपने बैडरूम में मृत हालत में थे. यानी किसी ने उन की हत्या कर दी थी.

इस के बाद जगन्नाथ पवार ने मोबाइल फोन से शहापुर पुलिस को सूचना दे दी. हत्या की सूचना मिलने के बाद शहापुर थाने से इंसपेक्टर घनश्याम आढाव, एसआई नीलेश कदम, हवलदार बांलू अवसरे, कैलाश पाटील, कांस्टेबल सुरेश खड़के को साथ ले कर घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

खून से लथपथ मिली लाश जब वे ‘ॐ’ बंगले में गए तब वहां उन्हें सुरेश नुजाजे की खून से लथपथ लाश मिली. लाश फर्श पर लकड़ी की मेज के पास पड़ी थी. उन के बगल में एक नीले रंग का तकिया गिरा पड़ा था. साथ ही उन के बैडरूम में लकड़ी की 2 अलमारियां उखड़ी हुई थीं.

अलमारियों का सामान भी इधरउधर बिखरा पड़ा था. शोकेस भी टूटा हुआ था. साथ ही बैड पर मच्छर मारने का इलैक्ट्रिक रैकेट टूटी हुई अवस्था में नजर आया. किसी ने सुरेश के दोनों पैर टावेल से मजबूती से बांधे थे और दोनों हाथ लाल रंग की शर्ट से बांधे थे.

पुलिस को वैसे तो लग ही रहा था कि सुरेश नुजाजे की मृत्यु हो चुकी है लेकिन वहां मौजूद लोगों के अनुरोध पर पुलिस उन्हें इलाज के लिए शहापुर के सरकारी अस्पताल ले गई लेकिन डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. डाक्टरों ने प्रारंभिक जांच में पाया कि गंभीर रूप से घायल करने के बाद हत्यारों ने इन का गला घोंटा था.

इंसपेक्टर घनश्याम आढाव ने इस वारदात की खबर एसपी (ग्रामीण) डा. शिवाजी राव राठौर और एसडीपीओ दीपक सावंत, क्राइम ब्रांच के इंचार्ज व्यंकट आंधले को दी. कुछ ही देर में ये सभी अधिकारी अस्पताल पहुंच गए.

इस के बाद पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का मुआयना किया. जांच में पुलिस ने देखा कि बंगले के पीछे का गेट खुला था. इस के अलावा बंगले की खिड़की का ग्रिल भी उखड़ा हुआ था. हत्यारे ग्रिल उखाड़ कर सरकने वाली कांच की खिड़की सरका कर बैडरूम में घुसे थे.

बैडरूम की उखड़ी अलमारियों और शोकेस के टूटने पर पुलिस ने अंदाजा लगाया कि ये हत्यारों ने लूटपाट के इरादे से किया होगा, तभी तो अलमारियों का सामान कमरे में फैला है. इस जांच से यही पता चल रहा था कि सुरेश नुजाजे की हत्या लूट के इरादे से की गई होगी.

पुलिस ने अंदाजा लगाया कि अंदर घुसने पर बंगले के मालिक सुरेश नुजाजे ने शायद बदमाशों का विरोध किया होगा, फिर बदमाशों ने हाथपैर बांधने के बाद उन की हत्या कर दी होगी.

मृतक के घर वाले भी आ चुके थे. उन्होंने पुलिस को बताया कि सुरेश के हाथ की अंगूठियां, ब्रेसलेट, गले में सोने की चेन रहती थी. अलमारी में भी लाखों रुपए रखे रहते थे. ये सब गायब थे. क्राइम ब्रांच ने मौके से कई साक्ष्य जुटाए. एसपी (ग्रामीण) डा. शिवाजी राव राठौर ने हत्या के इस केस को खोलने के लिए एक पुलिस टीम का गठन किया.

पुराने अपराधियों की हुई धरपकड़  पुलिस टीम ने पुराने अपराधियों के रिकौर्ड खंगालने शुरू किए. उन में से कुछ को पुलिस ने पूछताछ के लिए उठा लिया. उन से पूछताछ की, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली. कोंकण परिक्षेत्र के स्पैशल आईजी निकेत कौशिक टीम के सीधे संपर्क में थे. इस के अलावा क्राइम ब्रांच की टीम भी मामले की समानांतर जांच कर रही थी.

क्राइम ब्रांच की टीम में सीनियर इंसपेक्टर व्यंकट आंधले, इंसपेक्टर प्रमोद गड़ाख, एसआई अभिजीत टेलर, गणपत सुले, शांताराम महाले, कांस्टेबल आशा मुंडे, जगताप राय, एएसआई वेले, हैडकांस्टेबल चालके, अमोल कदम, गायकवाड़ पाटी, सोनावणे, थापा आदि शामिल थे.

पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज की जांच की. जांच के दौरान एक खबरची ने पुलिस को सूचना दी कि जिन लोगों ने सुरेश नुजाजे के बंगले में वारदात को अंजाम दिया, वे भिवंडी इलाके के नवजीवन अस्पताल के पीछे स्थित एक टूटीफूटी इमारत में छिपे हुए हैं.

इस सूचना पर सीनियर इंसपेक्टर व्यंकट आंधले अपनी पुलिस टीम के साथ मुखबिर द्वारा बताई गई जगह पर पहुंच गए और वहां उस बिल्डिंग को चारों ओर से घेर कर उस में छिपे चमन चौहान (25 वर्ष), अनिल सालुंखे (32 वर्ष) और संतोष सालुंखे (35 वर्ष) को गिरफ्तार कर लिया.

उन से पूछताछ की गई तो उन्होंने सुरेश नुजाजे की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. उन से पूछताछ के बाद उन की निशानदेही पर पुलिस ने 22 जुलाई, 2019 को औरंगाबाद से उन के साथी रोहित पिंपले (19 वर्ष), बाबूभाई चौहान (18 वर्ष) व रोशन खरे (30 वर्ष) को गिरफ्तार कर लिया. ये सभी बदमाश महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के रहने वाले थे.

पूछताछ में पता चला कि कत्लेआम के साथ डकैती करने वाली यह अंतरराज्यीय टोली दिन में गुब्बारे या अन्य चीजें बेचने का बहाना कर रेकी करती और रात में वारदात को अंजाम देती थी. इसी तरह इस टोली के सदस्यों ने सुदेश नुजाजे के बंगले की रेकी की थी.

तकिए से मुंह दबा कर घोंटा था गला  वारदात के दिन जब ये बदमाश उन के बंगले के पास गए, तब चोरों की आहट से सुरेश सतर्क हो चुके थे. फिर मौका देख कर ये किसी तरह उन के बंगले में घुस गए. सुरेश ने इन का विरोध किया, पर इतने लोगों का वह मुकाबला नहीं कर सके. बदमाशों ने उन के हाथपैर बांध कर उन पर फावड़े के हत्थे से प्रहार किया.

वहीं बैडरूम में पड़े तकिए से उन का मुंह दबा कर उन्हें मार दिया. कत्ल के बाद सुरेश के शरीर के सारे जेवरात उन्होंने उतार लिए. लकड़ी की अलमारी उखाड़ कर उन्होंने उस में रखे 28 हजार रुपए भी निकाल लिए. हत्या और डकैती की वारदात को अंजाम दे कर वे वहां से फरार हो गए.

पूछताछ में उन्होंने उस इलाके में 17 वारदातों को अंजाम देने की बात स्वीकार की. सुरेश नुजाजे के बंगले के पास ही दूर्वांकुर और शिवनलिनी बंगले में भी इन अभियुक्तों ने दरवाजे तोड़ कर चोरी की वारदात को अंजाम दिया था.

पुलिस ने इन बदमाशों से बरमा, तराजू, पेचकस, एक मोटरसाइकिल एवं बोलेरो कार के साथ सोनेचांदी के जेवरात भी बरामद किए. पुलिस को पता चला कि इस टोली के साथ कुछ महिलाएं भी अपराध में शामिल रहती हैं. पूछताछ के बाद पुलिस ने उन के साथ की 2 महिलाओं को भी हिरासत में ले लिया.

इस अपराध में पुलिस के पास कोई भी सुराग न होने के बावजूद भी स्थानीय पुलिस ने न सिर्फ मर्डर और डकैती की घटना का खुलासा किया, बल्कि 17 अन्य वारदातों को भी खोल दिया. स्पैशल आईजी निकेत कौशिक ने इस केस को खोलने वाली टीम की प्रशंसा कर उत्साहवर्धन किया.