बाइक रोक कर प्रेमिका के मुंह में कट्टा घुसेड़ मारी गोली

शीला ने अपने पति दिनेश से जिस दुर्गेश के लिए बेवफाई की, उस लालची प्रेमी दुर्गेश ने उस के साथ ऐसा विश्वासघात किया, जिस की शीला ने कभी कल्पना नहीं की थी. उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के थाना कैंपियरगंज के थानाप्रभारी चौथीराम यादव रात की गश्त से लौट कर लेटे ही थे कि उन के फोन की घंटी बजी. बेमन से उन्होंने फोन उठा कर कहा, ‘‘हैलो, कौन?’’

‘‘सर मैं टैक्सी ड्राइवर किशोर बोल रहा हूं.’’ दूसरी ओर से कहा गया.

‘‘जो भी कहना है, सुबह थाने में कर कहना. अभी मैं सोने जा रहा हूं.’’

सर, जरूरी बात हैमोहम्मदपुर नवापार सीवान के पास सड़क के किनारे एक औरत की लाश पड़ी है. उस के सीने से एक छोटा बच्चा चिपका है. अभी बच्चा जीवित है.’’ किशोर ने कहा. लाश की बात सुन कर थानाप्रभारी की नींद गायब हो गई. उन्होंने कहा, ‘‘ठीक है, मैं पहुंच रहा हूं. मेरे आने तक तुम वहीं रहना. बच्चे का खयाल रखना.’’

‘‘ठीक है सर, आप आइए. आप के आने तक मैं यहीं रहूंगा.’’

कह कर किशोर ने फोन काट दिया.

सूचना गंभीर थी, इसलिए थानाप्रभारी चौथीराम यादव ने तुरंत इस घटना की सूचना अधिकारियों को दी और खुद जल्दीजल्दी तैयार हो कर सबइंसपेक्टर विनोद कुमार सिंह, कांस्टेबल रामउजागर राय, अवधेश यादव और जगरनाथ यादव के साथ घटनास्थल की ओर चल पड़े. अब तक उजाला फैल चुका था. घटनास्थल पर काफी लोग जमा हो चुके थे. घटनास्थल पर पहुंचते ही थानाप्रभारी चौथीराम यादव ने सब से पहले उस बच्चे को उठाया, जो मरी हुई मां के सीने से चिपका सो रहा था. स्थिति यही बता रही थी कि वह मृतका का बेटा था. उठाते ही बच्चा जाग गया. वह बिलखबिलख कर रोने लगा. चौथीराम ने उसे एक सिपाही को पकड़ाया तो वह उसे चुप कराने की कोशिश करने लगा

पहनावे से मृतका मध्यमवर्गीय परिवार की लग रही थी. उस की उम्र यही कोई 25 साल के आसपास थी. उस के मुंह और सीने में एकदम करीब से गोलियां मारी गई थीं. मुंह में गोली मारी जाने की वजह से चेहरा खून से सना था. घावों से निकल कर बहा खून सूख चुका था. मृतका की कदकाठी ठीकठाक थी. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारे कम से कम 2 तो रहे ही होंगे. पुलिस ने घटनास्थल से 315 बोर के 2 खोखे बरामद किए थे. खोखे वही रहे होंगे, जो 2 गोलियां मृतका को मारी गई थीं. घटनास्थल पर मौजूद लोग लाश की शिनाख्त नहीं कर सके थे. इस का मतलब मृतका वहां की रहने वाली नहीं थी

पुलिस लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने की काररवाई कर रही थी कि अचानक वहां एक युवक आया और लाश देख कर जोरजोर से रोने लगा. उस के रोने का मतलब था, वह मृतका का कोई अपना रहा होगा. पुलिस ने उसे चुप करा कर पूछताछ की तो पता चला कि वह मृतका का भाई दीपचंद था. मृतका का नाम शीला था. कल सुबह वह ससुराल से अपने बेटे को ले कर मायके जाने के लिए निकली थी. शाम तक वह घर नहीं पहुंची तो उसे चिंता हुई. सुबह वह उसी की तलाश में निकला था. यहां भीड़ देख कर वह रुक गया. पूछने पर पता चला कि यहां एक महिला की लाश पड़ी है. वह लाश देखने आया तो पता चला वह लाश उस की बहन की है. उस के साथ उस का बेटा कृष्णा भी था.

पुलिस ने कृष्णा को उसे सौंप दिया. दीपचंद ने फोन द्वारा घटना की सूचना पिता वृजवंशी को दी तो घर में कोहराम मच गया. गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर वृजवंशी भी वहां पहुंच गया, जहां लाश पड़ी थीबेटी की लाश और मासूम नाती कृष्णा को रोते देख वृजवंशी भी बिलखबिलख कर रोने लगा. उस से रहा नहीं गया और उस ने नाती को दीपचंद से ले कर सीने से चिपका लिया. घटनास्थल की सारी काररवाई निपटा कर पुलिस दीपचंद के साथ थाने गई. थाने में उस की ओर से शीला की हत्या का मुकदमा अज्ञात के खिलाफ दर्ज कर लिया गया. यह 23 जनवरी, 2014 की बात है.

मुकदमा दर्ज होने के बाद थानाप्रभारी चौथीराम यादव ने जांच शुरू की. हत्यारों ने सिर्फ शीला की हत्या की थी, उस के बच्चे को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया था. इस का मतलब उस का जो कुछ था, वह शीला से ही था. उसे सिर्फ उसी से परेशानी थी. ऐसे में उस का कोई प्रेमी भी हो सकता था, जो उस से पीछा छुड़ाना चाहता रहा हो. शीला की ससुराल गोरखपुर के थाना गुलरिहा के गांव बनरहा सरहरी में थी. थानाप्रभारी चौथीराम दीपचंद को ले कर शीला की ससुराल जा पहुंचे. बनरहा पहुंचने में उन्हें करीब 2 घंटे का समय लगा. शीला की ससुराल में उस की सास और ससुर थे. पूछताछ में उन्होंने बताया कि 22 जनवरी, 2014 को शीला अपने मुंहबोले भाई पप्पू और उस के दोस्त के साथ मोटरसाइकिल से मायके के लिए निकली थी. कृष्णा को भी वह अपने साथ ले गई थी.

इस के अलावा वे और कुछ नहीं बता सके थे. पूछताछ में सासससुर ने यह भी बताया था कि पप्पू अकसर उन के यहां आता रहता था. चौथीराम यादव ने दीपचंद से पप्पू के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि पप्पू उसी के गांव का रहने वाला था. वह आवारा किस्म का लड़का था. थानाप्रभारी बनरहा से सीधे दीपचंद के गांव अहिरौली जा पहुंचे. पप्पू के बारे में पता किया गया तो घर वालों ने बताया कि वह 22 जनवरी, 2014 को नौतनवा जाने की बात कह कर घर से निकला था. तब से लौट कर नहीं आया है. दीपचंद की मदद से पप्पू और शीला का मोबाइल नंबर मिल गया था. पुलिस ने दोनों नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि 22 जनवरी की सुबह शीला ने पप्पू को फोन किया था. उस के बाद पप्पू का मोबाइल फोन बंद हो गया था. काल डिटेल्स से यह भी पता चला कि दोनों में रोजाना घंटों बातें होती थीं. इस से साफ हो गया कि दोनों में संबंध थे. पप्पू ने ही किसी बात से नाराज हो कर दोस्त की मदद से शीला की हत्या की थी.

जांच कहां तक पहुंची है, थानाप्रभारी चौथीराम इस की जानकारी क्षेत्राधिकारी अजय कुमार पांडेय और पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) डा. यस चेन्नपा को भी दे रहे थे. पप्पू के बारे में जब घर वालों से कोई जानकारी नहीं मिली तो थानाप्रभारी ने उस के बारे में पता करने के लिए उस के मोबाइल को सर्विलांस पर लगवा दियाआखिर 2 फरवरी, 2014 को घटना के 10 दिनों बाद पुलिस ने मुखबिर के जरिए पप्पू और उस के दोस्त को मोटरसाइकिल सहित लोरपुरवा के पास से उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब दोनों नेपाल की ओर जा रहे थे. पुलिस पप्पू और उस के दोस्त अवधेश को थाने ले आई. तलाशी में पुलिस को अवधेश के पास से 315 बोर का देशी तमंचा और कारतूस भी मिले. पुलिस ने दोनों चीजों को अपने कब्जे में ले लिया. जबकि पप्पू उर्फ दुर्गेश के पास से सिर्फ 2 सिम वाला मोबाइल फोन मिला था

पुलिस दोनों से अलगअलग पूछताछ करने लगी. दोनों ने पहले तो शीला की हत्या से इनकार किया, लेकिन पुलिस के पास उन के खिलाफ इतने सुबूत थे कि ज्यादा देर तक वे अपनी बात पर टिके नहीं रह सके और सच्चाई कुबूल कर के शीला की हत्या की पूरी कहानी उगल दी. इस पूछताछ में पप्पू और अवधेश ने शीला की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी. जिला महाराजगंज के थाना पनियरा के गांव अहिरौली में रहता था वृजवंशी. उस के परिवार में पत्नी फूलवासी के अलावा कुल 7 बच्चे थे. शीला उन में पांचवें नंबर पर थी. वृजवंशी के पास इतनी खेती थी कि उसी से उन के इतने बड़े परिवार का गुजरबसर हो रहा था. लेकिन बेटे बड़े हुए, उन्होंने काफी जिम्मेदारियां अपने कंधों पर ले ली थीं. बेटों की शादियां हो गईं तो बेटों की मदद से वृजवंशी बेटियों की शादियां करने लगा.

शीला जवान हुई तो वृजवंशी को उस की शादी की चिंता हुई. बाप और भाई उस के लिए लड़का ढूंढ पाते उस के पहले ही वह गांव में ही बचपन के साथी दुर्गेश उर्फ पप्पू से आंखें लड़ा बैठी. दोनों साथसाथ खेलेकूदे ही नहीं थे, बल्कि एक ही स्कूल में पढ़े भी थे. दुर्गेश उर्फ पप्पू के पिता दूधनाथ भी खेती किसानी करते थे. उस के परिवार में पत्नी के अलावा एकलौता बेटा पप्पू और 3 बेटियां थीं. एकलौता होने की वजह से पप्पू को घर से कुछ ज्यादा ही लाडप्यार मिला, जिस की वजह से वह बिगड़ गया. जैसेतैसे उस ने इंटरमीडिएट कर के पढ़ाई छोड़ दी. इस के बाद गांव में घूमघूम कर आवारागर्दी करने लगा. शीला और पप्पू के संबंधों की जानकारी गांव वालों को हुई तो इस से वृजवंशी की बदनामी होने लगी. तब उसे चिंता हुई कि बात ज्यादा फैल गई  तो बेटी की शादी होना मुश्किल हो जाएगा. अब इस से बचने का एक ही उपाय था, शीला की शादी. वह उस के लिए लड़का ढूंढने लगा. क्योंकि अब देर करना ठीक नहीं था.

उस ने कोशिश की तो गोरखपुर के थाना गुलरिहा के गांव बनरहा का रहने वाला दिनेश उसे पसंद गया. उस ने जल्दी से शीला की शादी उस के साथ कर दी. शीला विदा हो कर ससुराल गई. दिनेश मुंबई में रहता था. कुछ दिन पत्नी के साथ रह कर वह मुंबई चला गया. शीला को उस ने बूढ़े मांबाप के पास उन की सेवा के लिए छोड़ दिया, ताकि किसी को कुछ कहने का मौका मिले. क्योंकि उन्हें तो पूरी जिंदगी साथ रहना है. शीला भले ही 2 बच्चों की मां बन गई थी, लेकिन पति के परदेस में रहने की वजह से वह अपने पहले प्यार दुर्गेश उर्फ पप्पू को कभी नहीं भूल पाई. शादी के बाद भी वह प्रेमी से मिलती रही. शीला का मुंहबोला भाई बन कर वह उस की ससुराल भी आता रहा. उस के सासससुर पप्पू को उस का भाई समझते थे, इसलिए उस के आनेजाने पर कभी रोक नहीं लगाई. जबकि भाईबहन के रिश्ते की आड़ में दोनों कुछ और ही गुल खिला रहे थे

पप्पू ने बातचीत के लिए शीला को मोबाइल फोन खरीद कर दे दिया था. सासससुर रात में सो जाते तो शीला मिस्डकाल कर देती. इस के बाद पप्पू फोन करता तो दोनों के बीच घंटों बातें होतीं. शीला को कई बार पप्पू से गर्भ भी ठहरा, लेकिन पप्पू ने हर बार उस का गर्भपात करा दिया. बारबार गर्भपात कराने से तंग कर शीला उस के साथ रहने की जिद करने लगी. जबकि पप्पू को शीला से नहीं, सिर्फ उस की देह से प्रेम था. शीला जब भी उस से साथ रखने के लिए कहती, वह कोई कोई बहाना बना देता. शीला जब उस पर जोर डालने लगी तो वह दूर भागने लगा. उस का कहना था कि घर वाले उसे रहने नहीं देंगे. अपना अलग घर है नहीं. तब शीला ने पप्पू को 1 लाख रुपए जमीन खरीद कर घर बनाने के लिए दिए. इस की जानकारी तो शीला के पति को थी, सासससुर को.

पप्पू ने पैसे तो लिए, लेकिन उस ने जमीन नहीं खरीदी. जब भी शीला जमीन और घर के बारे में पूछती, वह कोई कोई बहाना बना देता. जब शीला को लगने लगा कि पप्पू उसे बेवकूफ बना रहा है तो वह बेचैन हो उठीवह समझ गई कि उस से बहुत बड़ी भूल हो गई है. जिस के लिए उस ने घरपरिवार के साथ विश्वासघात किया, वह उस के साथ विश्वासघात कर रहा है. उस ने ठान लिया कि वह ऐसे आदमी को किसी कीमत पर नहीं बख्शेगी. वह पप्पू से अपने रुपए मांगने लगी. शीला ने जब पैसे के लिए पप्पू पर दबाव बनाया तो वह विचलित हो उठा. उस की समझ में गया कि शीला उस की नीयत जान गई है. अब उस की दाल गलने वाली नहीं है. शीला के पैसे उस ने खर्च कर दिए थे

लाख रुपए की व्यवस्था वह कर नहीं सकता था. इसलिए शीला से पीछा छुड़ाने के लिए उस ने एक खतरनाक योजना बना डाली. शीला की हत्या करना उस के अकेले के वश का नहीं था, इसलिए उस ने एक पेशेवर बदमाश अवधेश से बात कीअवधेश महाराजगंज के थाना पनियरा के गांव खजुही का रहने वाला था. पप्पू से उस की दोस्ती भी थी. पनियरा थाने में उस के खिलाफ हत्या, हत्या के प्रयास, दुष्कर्म, लूट और राहजनी के कई मुकदमे दर्ज थे. योजना के मुताबिक, अवधेश ने 315 बोर के देशी कट्टे का इंतजाम किया. इस के बाद दोनों को मौके की तलाश थी. 22 जनवरी, 2014 की सुबह 7 बजे शीला ने पप्पू को फोन कर के पूछा कि इस समय वह कहां है, तो उस ने कहा कि इस समय वह शहर में है. कुछ देर में उस के पास पहुंच जाएगा

इस के बाद शीला ने फोन काट दिया. जबकि सही बात यह थी कि पप्पू उस समय नौतनवा में मौजूद था. उस ने शीला से झूठ बोला था. शीला से बात करने के बाद उस ने अपना मोबाइल बंद कर दिया. दुर्गेश उर्फ पप्पू को वह मौका मिल गया, जिस की तलाश में वह था. उस ने अवधेश को तैयार किया और मोटरसाइकिल से शीला की ससुराल बनरहा 11 बजे के आसपास पहुंच गया. शीला उसी का इंतजार कर रही थी. चायनाश्ता करा कर शीला मायके जाने की बात कह कर उन के साथ निकल पड़ी. उस ने सास से कहा था कि 2-1 दिन में वह लौट आएगी

दिन में कुछ हो नहीं सकता था. इसलिए पप्पू को किसी तरह रात करनी थी. इस के लिए वह कुसुम्ही के जंगल स्थित बुढि़या माई के मंदिर दर्शन करने गया. वहां से निकल कर वह सब के साथ शहर में घूमता रहा. अचानक रात साढ़े 8 बजे पप्पू को कुछ याद आया तो उस ने मोबाइल औन कर के फोन किया. उस समय वह चिलुयाताल के मोहरीपुर में था. इस के बाद वे कैंपियरगंज पहुंचे. रात साढ़े 10 बजे के करीब पप्पू सब के साथ मोहम्मदपुर नवापार पहुंचा तो ठंड का मौसम होने की वजह से चारों ओर सुनसान हो चुका था. पप्पू ने अचानक मोटरसाइकिल सड़क के किनारे रोक दी. शीला ने रुकने की वजह पूछी तो पप्पू ने कहा कि पेशाब करना है. पेशाब करने के बहाने वह थोड़ा आगे बढ़ गया तो अवधेश शीला के पास पहुंचा और कमर में खोंसा तमंचा निकाला और उस के सीने से सटा कर ट्रिगर दबा दिया.

गोली लगते ही शीला के मुंह से एक भयानक चीख निकली. तभी उस ने कट्टे की नाल उस के मुंह में घुसेड़ कर दूसरी गोली चला दी. इसी के साथ बच्चे को गोद में लिए हुए शीला जमीन पर गिरी और मौत के आगोश में समा गई. उस का मासूम बेटा सीने से चिपका सोता ही रहा. अपना काम कर के पप्पू और अवधेश चले गए. टैक्सी ड्राइवर किशोर सुबह उधर से गुजरा तो उस ने सड़क किनारे पड़ी शीला की लाश देख कर थानाप्रभारी चौथीराम यादव को सूचना दी.

पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल, 315 बोर का तमंचा और मोबाइल फोन बरामद कर लिया था. थाने की सारी काररवाई निबटा कर थानाप्रभारी चौथीराम ने पप्पू और अवधेश को अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.    

पत्‍नी को मारकर जमीन में दफनाया और उस पर लगाया आम का पेड़

घर वालों के लाख मना करने के बाद भी दीपा ने गांव के ही दूसरी जाति के युवक समरजीत से शादी कर ली. इस के बाद दीपा ने ऐसा क्या किया कि प्रेमी से पति बने समरजीत ने उस की हत्या कर लाश जमीन में दफना कर उस पर आम का पेड़ लगा दिया. समरजीत करीब एक साल बाद दिल्ली से अपने भाइयों अरविंद और धर्मेंद्र के साथ गांव धनजई लौटा तो मोहल्ले वालों ने उस में कई बदलाव देखे. उस के पहनावे और बातचीत में काफी अंतर चुका था. उस का बातचीत का तरीका गांव वालों से एकदम अलग था. इस से गांव वाले समझ गए कि दिल्ली में उस का काम ठीकठाक चल रहा है. धनजई गांव उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर के थाना कूंड़ेभार में पड़ता है.

देखने से ही लग रहा था कि समरजीत की हालत अब पहले से अच्छी हो गई है, लेकिन गांव वाले एक बात नहीं समझ पा रहे थे कि जब वह गांव से गया था तो गांव के ही रहने वाले रामसनेही की बेटी दीपा को भगा कर ले गया था. लेकिन उस के साथ दीपा दिखाई नहीं दे रही थी. दरअसल, दीपा और समरजीत के बीच काफी दिनों से प्रेमसंबंध चल रहा था. जिस के चलते वह और दीपा करीब एक साल पहले गांव से भाग गए थे. बाद में रामसनेही को पता लगा कि समरजीत दीपा के साथ दक्षिणपूर्वी दिल्ली के पुल प्रहलादपुर गांव में रह रहा है. गांव के ही लड़के के साथ बेटी के भाग जाने की बदनामी रामसनेही झेल रहा था. उसे जब पता लगा कि समरजीत के साथ दीपा नहीं आई है तो यह बात उसे कुछ अजीब सी लगी. बेटी को भगा कर ले जाने वाला समरजीत उस के लिए एक दुश्मन था.

इस के बावजूद भी बेटी की ममता उस के दिल में जाग उठी. उस ने समरजीत से बेटी के बारे में पूछ ही लिया. तब समरजीत ने बताया, ‘‘वह तो करीब एक महीने पहले नाराज हो कर दिल्ली से गांव चली आई थी. अब तुम्हें ही पता होगा कि वह कहां है?’’ यह सुन कर रामसनेही चौंका. उस ने कहा, ‘‘यह तुम क्या कह रहे हो? वो यहां आई ही नहीं है.’’

‘‘अब मुझे क्या पता वह कहां गई? आप अपनी रिश्तेदारियों वगैरह में देख लीजिए. क्या पता वहीं चली गई हो.’’

समरजीत की बात रामसनेही के गले नहीं उतरी. वह समझ नहीं पा रहा था कि समरजीत जो दीपा को कहीं देखने की बात कह रहा है, वह कहीं दूसरी जगह क्यों जाएगी? फिर भी उस का मन नहीं माना. उस ने अपने रिश्तेदारों के यहां फोन कर के दीपा के बारे में पता किया, लेकिन पता चला कि वह कहीं नहीं है. बात एक महीना पुरानी थी. ऐसे में वह बेटी को कहां ढूंढ़े. बेटी के बारे में सोचसोच कर उस की चिंता बढ़ती जा रही थी. यह बात दिसंबर, 2013 के आखिरी हफ्ते की थी. समरजीत के साथ उस के भाई अरविंद और धर्मेंद्र भी गांव आए थे. रामसनेही ने दोनों भाइयों से भी बेटी के बारे में पूछा. लेकिन उन से भी उसे कोई ठोस जवाब नहीं मिला. 10-11 दिन गांव में रहने के बाद समरजीत दिल्ली लौट गया.

बेटी की कोई खैरखबर मिलने से रामसनेही और उस की पत्नी बहुत परेशान थे. वह जानते थे कि समरजीत दिल्ली के पुल प्रहलादपुर में रहता है. वहीं पर उन के गांव का एक आदमी और रहता था. उस आदमी के साथ जनवरी, 2014 के पहले हफ्ते में रामसनेही भी पुल प्रहलादपुर गयाथोड़ी कोशिश के बाद उसे समरजीत का कमरा मिल गया. उस ने वहां आसपास रहने वालों से बेटी दीपा का फोटो दिखाते हुए पूछा. लोगों ने बताया कि जिस दीपा नाम की लड़की की बात कर रहा है, वह 22 दिसंबर, 2013 तक तो समरजीत के साथ देखी गई थी, इस के बाद वह दिखाई नहीं दी है. समरजीत ने रामसनेही को बताया था दीपा एक महीने पहले यानी नवंबर, 2013 में नाराज हो कर दिल्ली से चली गई थी, जबकि पुल प्रहलादपुर गांव के लोगों से पता चला था कि वह 22 दिसंबर, 2013 तक समरजीत के साथ थी. इस से रामसनेही को शक हुआ कि समरजीत ने उस से जरूर झूठ बोला है. वह दीपा के बारे में जानता है कि वह इस समय कहां है?

रामसनेही के मन में बेटी को ले कर कई तरह के खयाल पैदा होने लगे. उसे इस बात का अंदेशा होने लगा कि कहीं इन लोगों ने बेटी के साथ कोई अनहोनी तो नहीं कर दी. यही सब सोचते हुए वह 6 जनवरी, 2014 को दोपहर के समय थाना पुल प्रहलादपुर पहुंचा और वहां मौजूद थानाप्रभारी धर्मदेव को बेटी के गायब होने की बात बताई. रामसनेही ने थानाप्रभारी को बेटी का हुलिया बताते हुए आरोप लगाया कि समरजीत और उस के भाइयों, अरविंद धर्मेंद्र ने अपने मामा नरेंद्र, राजेंद्र और वीरेंद्र के साथ बेटी को अगवा कर उस के साथ कोई अप्रिय घटना को अंजाम दे दिया है. थानाप्रभारी धर्मदेव ने उसी समय रामसनेही की तहरीर पर भादंवि की धारा 365, 34 के तहत रिपोर्ट दर्ज कराकर सूचना एसीपी जसवीर सिंह मलिक को दे दी.

मामला जवान लड़की के अपहरण का था, इसलिए एसीपी जसवीर सिंह मलिक ने थानाप्रभारी धर्मदेव के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में इंसपेक्टर आर.एस. नरुका, सबइंसपेक्टर किशोर कुमार, युद्धवीर सिंह, हेडकांस्टेबल श्रवण कुमार, नईम अहमद, राकेश, कांस्टेबल अनुज कुमार तोमर, धर्म सिंह आदि को शामिल किया गया. उधर दिल्ली में रह रहे समरजीत और उस के भाइयों को जब पता चला कि दीपा का बाप रामसनेही पुल प्रहलादपुर आया हुआ है तो तीनों भाई दिल्ली से फरार हो गए. पुलिस टीम जब उन के कमरे पर गई तो वहां उन तीनों में से कोई नहीं मिला. चूंकि तीनों आरोपी रामसनेही के गांव के ही रहने वाले थे, इसलिए पुलिस टीम रामसनेही को ले कर यूपी स्थित उस के गांव धनजई पहुंची. लेकिन घर पर समरजीत और उस के घर वालों में से कोई नहीं मिला.

अब पुलिस को अंदेशा हो गया कि जरूर कोई कोई गड़बड़ है, जिस की वजह से ये लोग फरार हैं. गांव के लोगों से बात कर के पुलिस ने यह पता लगाया कि इन के रिश्तेदार वगैरह कहांकहां रहते हैं, ताकि वहां जा कर आरोपियों को तलाशा जा सके. इस से पुलिस को पता चला कि सुलतानपुर और फैजाबाद के कई गांवों में समरजीत के रिश्तेदार रहते हैं. उन रिश्तेदारों के यहां जा कर दिल्ली पुलिस ने दबिशें दीं, लेकिन वे सब वहां भी नहीं मिले. दिल्ली पुलिस ने समरजीत के सभी रिश्तेदारों पर दबाव बनाया कि आरोपियों को जल्द से जल्द पुलिस के हवाले करें. उधर बेटी की चिंता में रामसनेही का बुरा हाल था. वह पुलिस से बारबार बेटी को जल्द तलाशने की मांग कर रहा था.

समरजीत या उस के भाइयों से पूछताछ करने के बाद ही दीपा के बारे में कोई जानकारी मिल सकती थी. इसलिए दिल्ली पुलिस की टीम अपने स्तर से ही आरोपियों को तलाशती रही9 जनवरी, 2014 को पुलिस को सूचना मिली कि समरजीत सुलतानपुर के ही गांव नगईपुर, सामरी बाजार में रहने वाले अपने मामा के यहां आया हुआ है. खबर मिलते ही पुलिस नगईपुर गांव पहुंच गई. सूचना एकदम सही निकली. वहां पर समरजीत, उस के भाई अरविंद और धर्मेंद्र के अलावा उस का मामा नरेंद्र भी मिल गयाचूंकि दीपा समरजीत के साथ ही रह रही थी, इसलिए पुलिस ने सब से पहले उसी से दीपा के बारे में पूछा. इस पर समरजीत ने बताया, ‘‘सर, नवंबर, 2013 में दीपा उस से लड़झगड़ कर दिल्ली से अपने गांव जाने को कह कर चली आई थी. इस के बाद वह कहां गई, इस की उसे जानकारी नहीं है.’’

‘‘लेकिन पुल प्रहलादपुर में जहां तुम लोग रहते थे, वहां जा कर हम ने जांच की तो जानकारी मिली कि दीपा 23 दिसंबर, 2013 को दिल्ली में ही तुम्हारे साथ थी.’’ थानाप्रभारी धर्मदेव ने कहा तो समरजीत के चेहरे का रंग उड़ गयाथानाप्रभारी उस का हावभाव देख कर समझ गए कि यह झूठ बोल रहा है. उन्होंने रौबदार आवाज में उस से कहा, ‘‘देखो, तुम हम से झूठ बोलने की कोशिश मत करो. दीपा के साथ तुम लोगों ने जो कुछ भी किया है, हमें सब पता चल चुका है. वैसे एक बात बताऊं, सच्चाई उगलवाने के हमारे पास कई तरीके हैं, जिन के बारे में तुम जानते भी होगे. अब गनीमत इसी में है कि तुम सारी बात हमें खुद बता दो, वरना…’’

इतना सुनते ही वह डर गया. वह समझ गया कि अगर सच नहीं बताया कि पुलिस बेरहमी से उस की पिटाई करेगी. इसलिए वह सहम कर बोला, ‘‘सर, हम ने दीपा को मार दिया है.’’

‘‘उस की लाश कहां है?’’ थाना प्रभारी ने पूछा.

‘‘सर, उस की लाश बाग में दफन कर दी है.’’ समरजीत ने कहा तो पुलिस चारों आरोपियों के साथ उस बाग में पहुंची, जहां उन्होंने दीपा की लाश दफन करने की बात कही थी. समरजीत के मामा नरेंद्र ने पुलिस को आम के बाग में वह जगह बता दी. लेकिन उस जगह तो आम का पेड़ लगा हुआ था. नरेंद्र ने कहा कि लाश इसी पेड़ के नीचे है. उन लोगों की निशानदेही पर पुलिस ने वहां खुदाई कराई तो वास्तव में एक शाल में गठरी के रूप में बंधी एक महिला की लाश निकली. उस समय रामसनेही भी पुलिस के साथ था. लाश देखते ही वह रोते हुए बोला, ‘‘साहब यही मेरी दीपा है. देखो इन्होंने मेरी बेटी का क्या हाल कर दिया. मुझे पहले ही इन लोगों पर शक हो रहा था. इन के खिलाफ आप सख्त से सख्त काररवाई कीजिए, ताकि ये बच सकें.’’

वहां खड़े गांव वालों ने तसल्ली दे कर किसी तरह रामसनेही को चुप कराया. गांव वाले इस बात से हैरान थे कि समरजीत दीपा को बहुत प्यार करता था, जिस के कारण दोनों गांव से भाग गए थे. फिर समरजीत ने उस के साथ ऐसा क्यों किया?

पुलिस ने लाश का मुआयना किया तो उस के गले पर कुछ निशान पाए गए. इस से अनुमान लगाया कि दीपा की हत्या गला घोंट कर की गई थी. मौके की जरूरी काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए सुलतानपुर के पोस्टमार्टम हाऊस भेज दिया और चारों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर के दिल्ली ले आई. थाना पुल प्रहलादपुर में समरजीत, अरविंद, धर्मेंद्र और इन के मामा नरेंद्र से जब पूछताछ की गई तो दीपा और समरजीत के प्रेमप्रसंग से ले कर मौत का तानाबाना बुनने तक की जो कहानी सामने आई, वह बड़ी ही दिलचस्प निकली. उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर के थाना कूंड़ेभार में आता है एक गांव धनजई, इसी गांव में सूर्यभान सिंह परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे धर्मेंद्र, अरविंद और समरजीत थे. अरविंद और धर्मेंद्र शादीशुदा थे. दोनों भाई दिल्ली में ड्राइवर की नौकरी करते थे. समरजीत गांव में ही खेतीकिसानी करता था. वह खेतीकिसानी करता जरूर था, लेकिन उसे अच्छे कपड़े पहनने का शौक था.

वह जवान तो था ही. इसलिए उस का मन ऐसा साथी पाने के लिए बेचैन था, जिस से अपने मन की बात कह सके. इसी दौरान उस की नजरें दीपा से दोचार हुईं. दीपा रामसनेही की 20 वर्षीया बेटी थी. दीपा तीखे नयननक्श और गोल चेहरे वाली युवती थी. दीपा उस की बिरादरी की नहीं थी, फिर भी उस का झुकाव उस की तरफ हो गया. फिर दोनों के बीच बातों का सिलसिला ऐसा शुरू हुआ कि वे दोनों एकदूसरे के करीब आते गएदोनों ही चढ़ती जवानी पर थे, इसलिए जल्दी ही उन के बीच शारीरिक संबंध बन गए. एकदूसरे को शरीर सौंपने के बाद उन की सोच में इस कदर बदलाव आया कि उन्हें अपने प्यार के अलावा सब कुछ फीका लगने लगा. उन्हें ऐसा लग रहा था, जैसे उन की मंजिल यहीं तक हो. मौका मिलने पर दोनों खेतों में एकदूसरे से मिलते रहे. उन के प्यार को देख कर ऐसा लगता था, जैसे भले ही उन के शरीर अलगअलग हों, लेकिन जान एक हो.

उन्होंने शादी कर के अपनी अलग दुनिया बसाने तक की प्लानिंग कर ली. घर वाले उन की शादी करने के लिए तैयार हो सकेंगे, इस का विश्वास दोनों को नहीं था. इस की वजह साफ थी कि दोनों की जाति अलगअलग थी और दूसरे दोनों एक ही गांव के थे. घर वाले तैयार हों या हों, उन्हें इस बात की फिक्र थी. वे जानते थे कि प्यार के रास्ते में तमाम तरह की बाधाएं आती हैं. सच्चे प्रेमी उन बाधाओं की कभी फिक्र नहीं करते. वे परिवार और समाज के व्यंग्यबाणों और उन के द्वारा खींची गई लक्ष्मण रेखा को लांघ कर अपने मुकाम तक पहुंचने की कोशिश करते हैं. समरजीत और दीपा भले ही सोच रहे थे कि उन का प्यार जमाने से छिपा हुआ है, लेकिन यह केवल उन का भ्रम था. हकीकत यह थी कि इस तरह के काम कोई चाहे कितना भी चोरीछिपे क्यों करे, लोगों को पता चल ही जाता है. समरजीत और दीपा के मामले में भी ऐसा ही हुआ. मोहल्ले के कुछ लोगों को उन के प्यार की खबर लग गई.

फिर क्या था. मोहल्ले के लोगों से बात उड़तेउड़ते इन दोनों के घरवालों के कानों में भी पहुंच गई. समरजीत के पिता सूर्यभान सिंह ने बेटे को डांटा तो वहीं दूसरी तरफ दीपा के पिता रामसनेही ने भी दीपा पर पाबंदियां लगा दीं. उसे इस बात का डर था कि कहीं कोई ऐसीवैसी बात हो गई तो उस की शादी करने में परेशानी होगी. कहते हैं कि प्यार पर जितनी बंदिशें लगाई जाती हैं, वह और ज्यादा बढ़ता है यानी बंदिशों से प्यार की डोर टूटने के बजाय और ज्यादा मजबूत हो जाती है. बेटी पर बंदिशें लगाने के पीछे रामसनेही की मंशा यही थी कि वह समरजीत को भूल जाएगी. लेकिन उस ने इस बात की तरफ गौर नहीं किया कि घर वालों के सो जाने के बाद दीपा अभी भी समरजीत से फोन पर बात करती है. यानी भले ही उस की अपने प्रेमी से मुलाकात नहीं हो पा रही थी, वह फोन पर दिल की बात उस से कर लेती थी.

एक बार रामसनेही ने उसे रात को फोन पर बात करते देखा तो उस ने उस से पूछा कि किस से बात कर रही है. तब दीपा ने साफ बता दिया कि वह समरजीत से बात कर रही है. इतना सुनते ही रामसनेही को गुस्सा गया और उस ने उस की पिटाई कर दी. रामसनेही ने सोचा कि पिटाई से दीपा के मन में खौफ बैठ जाएगा. लेकिन इस का असर उलटा हुआ. सन 2012 में दीपा समरजीत के साथ भाग गई. समरजीत प्रेमिका को ले कर हरिद्वार में अपने एक परिचित के यहां चला गया. तब रामसनेही ने थाना कूंडे़भार में बेटी के गायब हेने की सूचना दर्ज करा दीचूंकि गांव से समरजीत भी गायब था. इसलिए लोगों को यह बात समझते देर नहीं लगी कि दीपा समरजीत के संग ही भागी है. तब रामसनेही ने गांव में पंचायत बुला कर पंचों की मार्फत समरजीत के पिता सूर्यभान सिंह पर अपनी बेटी को ढूंढ़ने का दबाव बनाया.

आज भी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के कुछ गांवों में पंचों की बातों का पालन किया जाता है. सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए कई मामलों में पंचायतों के फैसले सही भी होते हैं. अपनी मानमर्यादा और सामाजिक दबाव को देखते हुए लोग पंचों की बात का पालन भी करते हैं. पंचायती फैसले के बाद सूर्यभान सिंह ने अपने स्तर से समरजीत और दीपा को तलाशना शुरू किया. बाद में उसे पता लगा कि समरजीत और दीपा हरिद्वार में हैं तो वह उन दोनों को हरिद्वार से गांव ले आया. दोनों के घर वालों ने उन्हें फिर से समझाया. समरजीत और दीपा कुछ दिनों तक तो ठीक रहे, इस के बाद उन्होंने फिर से मिलनाजुलना शुरू कर दिया. फिर वे दोनों अंबाला भाग गए. वहां पर समरजीत की बड़ी बहन रहती थी. समरजीत दीपा को ले कर बहन के यहां ही गया था. उस ने भी उन दोनों को समझाया. उस ने पिता को इस की सूचना दे दी. सूर्यभान सिंह इस बार भी उन दोनों को गांव ले आए.

बेटी के बारबार भागने पर रामसनेही और उस के परिवार की खासी बदनामी हो रही थी. अब उस के पास एक ही रास्ता था कि उस की शादी कर दी जाए. लिहाजा उस ने उस की फटाफट शादी करने का प्लान बनाया. वह उस के लिए लड़का देखने लगादीपा को जब पता चला कि घर वाले उस की जल्द से जल्द शादी करने की फिराक में हैं तो उस ने आखिर अपनी मां से कह ही दिया कि वह समरजीत के अलावा किसी और से शादी नहीं करेगी. उस की इस जिद पर मां ने उस की पिटाई कर दी. इस के बाद 27 फरवरी, 2013 को दीपा और समरजीत तीसरी बार घर से भाग गए. इस बार समरजीत उसे दिल्ली ले गया. दक्षिणपूर्वी दिल्ली के पुल प्रहलादपुर गांव में समरजीत के भाई धर्मेंद्र और अरविंद रहते थे. वह उन्हीं के पास चला गया. बाद में समरजीत और दीपा ने मंदिर में शादी कर ली. फिर उसी इलाके में कमरा ले कर पतिपत्नी की तरह रहने लगे.

पुल प्रहलादपुर में रामसनेही के कुछ परिचित भी रहते थे. उन्हीं के द्वारा उसे पता चला कि दीपा समरजीत के साथ दिल्ली में रह रही है. खबर मिलने के बावजूद भी रामसनेही ने उसे वहां से लाना जरूरी नहीं समझा. वह जानता था कि दीपा घर से 2 बार भागी और दोनों बार उसे घर लाया गया था. जब वह घर रुकना ही नहीं चाहती तो उसे फिर से घर लाने से क्या फायदा. समरजीत के भाई अरविंद और धर्मेंद्र ड्राइवर थे. जबकि समरजीत को फिलहाल कोई काम नहीं मिल रहा था. उस की गृहस्थी का खर्चा दोनों भाई उठा रहे थेसमरजीत भाइयों पर ज्यादा दिनों तक बोझ नहीं बनना चाहता था, इसलिए कुछ दिनों बाद ही एक जानकार की मार्फत ओखला फेज-1 स्थित एक सिक्योरिटी कंपनी में नौकरी कर ली. उस की चिंता थोड़ी कम हो गई.

दोनों की गृहस्थी हंसीखुशी से चल रही थी. चूंकि समरजीत सिक्योरिटी गार्ड के रूप में काम कर रहा था, इसलिए कभी उस की ड्यूटी नाइट की लगती थी तो कभी दिन की. वह मन लगा कर नौकरी कर रहा था. जिस वजह से वह पत्नी की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दे पा रहा था. इस का नतीजा यह निकला कि पास में ही रहने वाले एक युवक से दीपा के नाजायज संबंध बन गए. समरजीत दीपा को जीजान से चाहता था, इसलिए उसे पत्नी पर विश्वास था. लेकिन उसे इस बात की भनक तक नहीं लगी कि उस के विश्वास को धता बता कर वह क्या गुल खिला रही है. कहते हैं कि कोई भी गलत काम ज्यादा दिनों तक छिपाया नहीं जा सकता. एक एक दिन किसी तरीके से वह लोगों के सामने ही जाता है.

दीपा की आशिकमिजाजी भी एक दिन समरजीत के सामने गई. हुआ यह था कि एक बार समरजीत की रात की ड्यूटी लगी थी. वह शाम 7 बजे ही घर से चला गया था. दीपा को पता था कि पति की ड्यूटी रात 8 बजे से सुबह 8 बजे तक की है. जब भी पति की रात की ड्यूटी होती थी, दीपा प्रेमी को रात 10 बजे के करीब अपने कमरे पर बुला लेती थी. मौजमस्ती करने के बाद वह रात में ही चला जाता था. उस दिन भी उस ने अपने प्रेमी को घर बुला लिया.  रात 11 बजे के करीब समरजीत की तबीयत अचानक खराब हो गई. ड्यूटी पर रहते वह आराम नहीं कर सकता था. वह चाहता था कि घर जा कर आराम करे. लेकिन उस समय घर जाने के लिए उसे कोई सवारी नहीं मिल रही थी. इसलिए उस ने अपने एक दोस्त से घर छोड़ने को कहा. तब दोस्त अपनी मोटरसाइकिल से उसे उस के कमरे के बाहर छोड़ आया.

समरजीत ने जब अपने कमरे का दरवाजा खटखटाया तो प्रेमी के साथ गुलछर्रे उड़ा रही दीपा दरवाजे की दस्तक सुन कर घबरा गई. उस के मन में विचार आया कि पता नहीं इतनी रात को कौन गया. प्रेमी को बेड के नीचे छिपने को कह कर उस ने अपने कपड़े संभाले और बेमन से दरवाजे की तरफ बढ़ी. जैसे ही उस ने दरवाजा खोला, सामने पति को देख कर वह चौंक कर बोली, ‘‘तुम, आज इतनी जल्दी कैसे गए?’’

‘‘आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है इसलिए ड्यूटी बीच में ही छोड़ कर गया.’’ समरजीत कमरे में घुसते हुए बोला. कमरे में बेड के नीचे दीपा का प्रेमी छिपा हुआ था. दीपा इस बात से डर रही थी कि कहीं आज उस की पोल खुल जाए. समरजीत की तो तबीयत खराब थी. वह जैसे ही बेड पर लेटा, उसी समय बेड के नीचे से दीपा का प्रेमी निकल कर भाग खड़ा हुआ. अपने कमरे से किसी आदमी को निकलते देख समरजीत चौंका. वह उस की सूरत नहीं देख पाया था. समरजीत उस भागने वाले आदमी को भले ही नहीं जानता था, लेकिन उसे यह समझते देर नहीं लगी कि उस की गैरमौजूदगी में यह आदमी कमरे में क्या कर रहा होगावह गुस्से में भर गया. उस ने पत्नी से पूछा, ‘‘यह कौन था और यहां क्यों आया था?’’

‘‘पता नहीं कौन था. कहीं ऐसा तो नहीं कि वह चोर हो. कोई सामान चुरा कर तो नहीं ले गया.’’ दीपा ने बात घुमाने की कोशिश करते हुए कहा और संदूक का ताला खोल कर अपना कीमती सामान तलाशने लगीतभी समरजीत ने कहा, ‘‘तुम मुझे बेवकूफ समझती हो क्या? मुझे पता है कि वह यहां क्यों आया था. उसे जो चीज चुरानी थी, वह तुम ने उसे खुद ही सौंप दी. अब बेहतर यह है कि जो हुआ उसे भूल जाओ. आइंदा यह व्यक्ति यहां नहीं आना चाहिए. और ही ऐसी बात मुझे सुनने को मिलनी चाहिए.’’

पति की नसीहत से दीपा ने राहत की सांस ली. समरजीत तबीयत खराब होने पर घर आराम करने आया था, लेकिन आराम करना भूल कर वह रात भर इसी बात को सोचता रहा कि जिस दीपा के लिए उस ने अपना गांव छोड़ा, उसे पत्नी बनाया, उसी ने उस के साथ इतना बड़ा विश्वासघात क्यों किया. वह इस बात को अच्छी तरह जानता था कि जब कोई भी महिला एक बार देहरी लांघ जाती है तो उस पर विश्वास करना मूर्खता होती है. अगले दिन जब वह ड्यूटी पर गया तो वहां भी उस का मन नहीं लगा. उस के मन में यही बात घूम रही थी कि दीपा अपने यार के साथ गुलछर्रे उड़ा रही होगी. घर लौटने के बाद उस ने अपने भाइयों अरविंद और धर्मेंद्र से दीपा के बारे में बात की. यह बात उस ने अपने मामा नरेंद्र को भी बताई

उन सभी ने फैसला किया कि ऐसी कुलच्छनी महिला की चौकीदारी कोई हर समय तो कर नहीं सकता. इसलिए उसे खत्म करना ही आखिरी रास्ता है. दीपा को खत्म करने का फैसला तो ले लिया, लेकिन अपना यह काम उसे कहां और कब करना है, इस की उन्होंने योजना बनाई. काफी सोचनेसमझने के बाद उन्होंने तय किया कि दीपा को दिल्ली में मारना ठीक नहीं रहेगा, क्योंकि लाख कोशिशों के बाद भी वह दिल्ली पुलिस से बच नहीं पाएंगे. अपने जिला क्षेत्र में ले जा कर ठिकाने लगाना उन्हें उचित लगा. समरजीत को पता था कि दीपा सुलतानपुर जाने के लिए आसानी से तैयार नहीं होगी. उसे झांसे में लेने के लिए उस ने एक दिन कहा, ‘‘दीपा, सुलतानपुर के ही नगईपुर में मेरे मामा रहते हैं. उन के कोई बच्चा नहीं है और उन के पास जमीनजायदाद भी काफी है. उन्होंने हम दोनों को अपने यहां रहने के लिए बुलाया है. तुम्हें तो पता ही है कि दिल्ली में हम लोगों का गुजारा बड़ी मुश्किल से हो रहा है. इसलिए मैं चाहता हूं कि हम लोग कुछ दिन मामा के घर पर रहें.’’

पति की बात सुन कर दीपा ने भी सोचा कि जब उन की कोई औलाद नहीं है तो उन के बाद सारी जायदाद पति की ही हो जाएगी. इसलिए उस ने मामा के यहां रहने की हामी भर दी. 23 दिसंबर, 2013 को समरजीत दीपा को ट्रेन से सुलतानपुर ले गया. उस के साथ दोनों भाई अरविंद और धर्मेंद्र भी थे. जब वे सुलतानपुर स्टेशन पहुंचे, अंधेरा घिर चुका था. नगईपुर सुलतानपुर स्टेशन से दूर था. नगईपुर गांव से पहले ही समरजीत के मामा नरेंद्र का आम का बाग था. प्लान के मुताबिक नरेंद्र उन का उसी बाग में पहले से ही इंतजार कर रहा था. बाग के किनारे पहुंच कर तीनों भाइयों ने दीपा की गला घोंट कर हत्या कर दी और बाग में ही गड्ढा खोद कर लाश को दफना दिया.

जिस गड्ढे में उन्होंने लाश दफन की थी, जल्दबाजी में वह ज्यादा गहरा नहीं खोदा गया था. नरेंद्र को इस बात का अंदेशा हो रहा था कि जंगली जानवर मिट्टी खोद कर लाश खाने लगें. ऐसा होने पर भेद खुलना लाजिमी था इसलिए इस के 2 दिनों बाद नरेंद्र रात में ही अकेला उस बाग में गया और वहां से 20-25 कदम दूर दूसरा गहरा गड्ढा खोदा. फिर पहले गड्ढे से दीपा की लाश निकालने के बाद उस ने उसे उसी की शाल में गठरी की तरह बांध दियाउस गठरी को उस ने दूसरे गहरे गड्ढे में दफना कर उस के ऊपर आम का एक पेड़ लगा दिया ताकि किसी को कोई शक हो. दीपा को ठिकाने लगाने के बाद वे इस बात से निश्चिंत थे कि उन के अपराध की किसी को भनक लगेगी. यह जघन्य अपराध करने के बाद अरविंद और धर्मेंद्र पहले की ही तरह बनठन कर घूम रहे थे. उन को देख कर कोई अनुमान भी नहीं लगा सकता था कि उन्होंने हाल ही में कोई बड़ा अपराध किया है.

गांव के ज्यादातर लोगों को पता था कि दीपा दिल्ली में समरजीत के साथ पत्नी की तरह रह रही है. जब उन्होंने समरजीत को गांव में अकेला देखा तो उन्होंने उस से दीपा के बारे में पूछाजब दीपा के पिता रामसनेही को भी जानकारी मिली कि समरजीत के साथ दीपा गांव नहीं आई है तो उस ने उस से बेटी के बारे में पूछा. तब समरजीत ने उसे झूठी बात बताई कि दीपा एक महीने पहले उस से झगड़ा कर के दिल्ली से गांव जाने की बात कह कर गई थी. समरजीत की यह बात सुन कर रामसनेही घबरा गया था. फिर वह बेटी की छानबीन करने दिल्ली पहुंचा और बाद में दिल्ली के पुल प्रहलादपुर थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी.

इस के बाद ही पुलिस अभियुक्तों तक पहुंची. पुलिस ने समरजीत, अरविंद, धर्मेंद्र और मामा नरेंद्र को अपहरण कर हत्या और लाश छिपाने के जुर्म में गिरफ्तार कर 9 जनवरी, 2013 को दिल्ली के साकेत न्यायालय में महानगर दंडाधिकारी पवन कुमार की कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

   —कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

 

फेसबुक पर लड़की से दोस्‍ती ने ली सुदीप की जान

सलोनी नाबालिग थी और सुदीप 19 साल का. दोनों की फेसबुक पर दोस्ती हुई तो तथाकथित प्यार के नाम पर पश्चिम बंगाल के मालदा और लखनऊ की दूरियां सिमट गईं और सुदीप लखनऊ गया. इस के बाद जो हुआ उस ने 2 परिवारों को बरबाद कर दिया.    

रोमिला अपनी बेटी सलोनी के साथ लखनऊ के इंदिरा नगर मोहल्ले में रहती थी. उस का 3 मंजिल का मकान था. पहली दोनों मंजिलों पर रहने के लिए कमरे थे और तीसरी मंजिल पर गोदाम बना था, जहां कबाड़ और पुरानी चीजें रखी रहती थीं.ईसाई समुदाय की रोमिला मूलत: सुल्तानपुर जिले की रहने वाली थी. उस ने जौन स्विंग से प्रेम विवाह किया था. सलोनी के जन्म के बाद रोमिला और जौन स्विंग के संबंध खराब हो गएरोमिला ने घुटघुट कर जीने के बजाय अपने पति जौन स्विंग से तलाक ले लिया. इसी बीच रोमिला को लखनऊ के सरकारी अस्पताल में टैक्नीशियन की नौकरी मिल गई. वेतन ठीकठाक था. इसलिए वह अपनी आगे की जिंदगी अपने खुद के बूते पर गुजारना चाहती थी

स्विंग से प्यार, शादी और फिर तलाक ने रोमिला की जिंदगी को बहुत बोझिल बना दिया था. कम उम्र की तलाकशुदा महिला का समाज में अकेले रहना सरल नहीं होता, इस बात को ध्यान में रखते हुए रोमिला ने अपने को धर्मकर्म की बंदिशों में उलझा लिया. समय गुजर रहा था, बेटी बड़ी हो रही थी. रोमिला अपनी बेटी को पढ़ालिखा कर बड़ा बनाना चाहती थी. क्योंकि अब उस का भविष्य वही थी. सलोनी कावेंट स्कूल में पढ़ती थी, पढ़ने में होशियार. रोमिला ने लाड़प्यार से उस की परवरिश लड़कों की तरह की थीसलोनी भी खुद को लड़कों की तरह समझने लगी थी. वह जिद्दी स्वभाव की तो थी ही गुस्सा भी खूब करती थी. जन्म के समय ही कुछ परेशानियों के कारण सलोनी के शरीर के दाएं हिस्से में पैरालिसिस का अटैक पड़ा था, लेकिन उम्र बढ़ने के साथ उस का असर करीबकरीब खत्म हो गया था.

सलोनी बौबकट बाल रखती थी. उस की उम्र हालांकि 15 साल थी पर वह अपनी उम्र से बड़ी दिखाई देती थी. वह लड़कों की तरह टीशर्ट पैंट पहनती थी. सलोनी के साथ पढ़ने वाले लड़केलड़कियां स्मार्टफोन इस्तेमाल करते थे. सलोनी ने भी मां से जिद कर के स्मार्टफोन खरीदवा लियारोमिला जानती थी कि आजकल के बच्चे मोबाइल पर इंटरनेट लगा कर फेसबुक और वाट्सएप जैसी साइटों का इस्तेमाल करते हैं जो सलोनी जैसी कम उम्र लड़की के लिए ठीक नहीं है. लेकिन एकलौती बेटी की जिद के सामने उसे झुकना पड़ा. रोमिला सुबह 8 बजे अस्पताल जाती थी और शाम को 4 बजे लौटती थी. सलोनी भी सुबह 8 बजे स्कूल चली जाती थी और 2 बजे वापस आती थी. कठिन जीवन जीने के लिए रोमिला ने बेड की जगह घर में सीमेंट के चबूतरे बनवा रखे थे. मांबेटी बिस्तर डाल कर इन्हीं चबूतरों पर सोती थीं

रोमिला को अस्पताल से 45 हजार रुपए प्रतिमाह वेतन मिलता था. इस के बावजूद मांबेटी का खर्च बहुत कम था. रोमिला जो खाना बनाती थी वह कई दिन तक चलता था. मोबाइल फोन लेने के बाद सलोनी ने इंटरनेट के जरीए अपना फेसबुक पेज बना लिया था. वह अकसर अपने दोस्तों से चैटिंग करती रहती थी. इसी के चलते उस के कई नए दोस्त बन गए थे. उस के इन्हीं दोस्तों में से एक था पश्चिम बंगाल के मालदा का रहने वाला सुदीप दास. 19 साल का सुदीप एक प्राइवेट फैक्ट्री में काम करता थाउस के घर की हालत ठीक नहीं थी. उस का पिता सुधीरदास मालदा में मिठाई की एक दुकान पर काम करता था. जबकि मां कावेरी घरेलू महिला थी. उस का छोटा भाई राजदीप कोई काम नहीं करता था. सुदीप और उस के पिता की कमाई से ही घर का खर्च चलता था.

सुदीप और सलोनी के बीच चैटिंग के माध्यम से जो दोस्ती हुई धीरेधीरे प्यार तक जा पहुंची. नासमझी भरी कम उम्र का तकाजा था. चैटिंग करतेकरते सुदीप और सलोनी एकदूसरे के प्यार में पागल से हो गए. स्थिति यह गई कि सुदीप सलोनी से मिलने के लिए बेचैन रहने लगा. दोनों के पास एकदूसरे के मोबाइल नंबर थे. सो दोनों खूब बातें करते थे. मोबाइल पर ही दोनों की मिलने की बात तय हुई. सितंबर 2013 में सुदीप सलोनी से मिलने लखनऊ गया. सलोनी ने सुदीप को अपनी मां से मिलवाया. रोमिला बेटी को इतना प्यार करती थी कि उस की हर बात मानने को तैयार रहती थी. 2 दिन लखनऊ में रोमिला के घर पर रह कर सुदीप वापस चला गया

अक्तूबर में सलोनी का बर्थडे था. उस के बर्थडे पर सुदीप फिर लखनऊ आया. अब तक सलोनी ने सुदीप से अपने प्यार की बात मां से छिपा कर रखी थी. लेकिन इस बार उस ने अपने और सुदीप के प्यार की बात रोमिला को बता दी. सलोनी और सुदीप दोनों की ही उम्र ऐसी नहीं थी कि शादी जैसे फैसले कर सकें. इसलिए रोमिला ने दोनों को समझाने की कोशिश की. ऊंचनीच दुनियादारी के बारे में बताया. लेकिन सुदीप और सलोनी पर तो प्यार का भूत चढ़ा थारोमिला को इनकार करते देख सुदीप बड़े आत्मविश्वास से बोला, ‘‘आंटी, आप चिंता करें. मैं सलोनी का खयाल रख सकता हूं. मैं खुद भी नौकरी करता हूं और मेरे पिताजी भी. हमारे घर में भी कोई कुछ नहीं कहेगा.’’

बातचीत के दौरान रोमिला सुदीप के बारे में सब कुछ जान गई थी. इसलिए सोचविचार कर बोली, ‘‘देखो बेटा, तुम्हारी सारी बातें अपनी जगह सही हैं. मुझे इस रिश्ते से भी कोई ऐतराज नहीं है. पर मैं यह रिश्ता तभी स्वीकार करूंगी जब तुम कोई अच्छी नौकरी करने लगोगे. आजकल 10-5 हजार की नौकरी में घरपरिवार नहीं चलते. अभी तुम दोनों में बचपना है.’’

‘‘ठीक है आंटी, मैं आप की बात मान लेता हूं. लेकिन आप वादा करिए कि आप उसे मुझ से दूर नहीं करेंगी. जब मैं कुछ बन जाऊंगा तो सलोनी को अपनी बनाने आऊंगा.’’ सुदीप ने फिल्मी हीरो वाले अंदाज में रोमिला से अपनी बात कही. इस बार सुदीप सलोनी के घर पर एक सप्ताह तक रहा. इसी बीच रोमिला ने सुदीप से स्टांप पेपर पर लिखवा लिया कि वह किसी लायक बन जाने के बाद ही सलोनी से शादी करेगा. इस के बाद सुदीप अपने घर मालदा चला गया. लेकिन लखनऊ से लौटने के बाद उस का मन नहीं लग रहा था. जवानी में, खास कर चढ़ती उम्र में महबूबा से बड़ा दूसरा कोई दिखाई नहीं देता. कामधाम, भूखप्यास, घरपरिवार सब बेकार लगने लगते हैं. सुदीप का भी कुछ ऐसा ही हाल था. उस की आंखों के सामने सलोनी का गोलगोल सुंदर चेहरा और बोलती हुई आंखें घूमती रहती थीं. वह किसी भी सूरत में उसे खोने के लिए तैयार नहीं था

जब नहीं रहा गया तो 10 दिसंबर, 2013 को सुदीप वापस लखनऊ आया और रोमिला को बहकाफुसला कर सलोनी को मालदा घुमाने के लिए साथ ले गया. हालांकि सलोनी की मां रोमिला इस के लिए कतई तैयार नहीं थी. लेकिन सलोनी ने उसे मजबूर कर दिया. दरअसल मां के प्यार ने उसे इतना जिद्दी बना दिया था कि वह कोई बात सुनने को तैयार नहीं होती थी. रोमिला के लिए बेटी ही जीने का सहारा थी. वह उसे किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती थी. इस लिए वह सलोनी की जिद के आगे झुक गई. करीब ढाई माह तक सलोनी सुदीप के साथ मालदा में रही.

मार्च, 2014 में सलोनी वापस गई. सुदीप भी उस के साथ आया था. बेटी का बदला हुआ स्वभाव देख कर रोमिला को झटका लगा. सलोनी उस की कोई बात सुनने को तैयार नहीं थी. पति से अलग होने के बाद रोमिला ने सोचा था कि वह बेटी के सहारे अपना पूरा जीवन काट लेगी. अब वह बेटी के दूर जाने की कल्पना मात्र से बुरी तरह घबरा गई थी. लेकिन हकीकत वह नहीं थी जो रोमिला देख या समझ रही थी. सच यह था कि सलोनी का मन सुदीप से उचट गया था. उस का झुकाव यश नाम के एक अन्य लड़के की ओर होने लगा था. जबकि सुदीप हर हाल में सलोनी को पाना चाहता था. वह कई बार उस के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश कर चुका था. यह बात मांबेटी दोनों को नागवार गुजरने लगी थी

रोमिला ने अस्पताल से 1 मार्च, 2014 से 31 मार्च तक की छुट्टी ले रखी थी. उस ने अस्पताल में छुट्टी लेने की वजह बेटी की परीक्षाएं बताई थीं. 7 अप्रैल, 2014 की सुबह रोमिला के मकान के पड़ोस में रहने वाले रणजीत सिंह ने थाना गाजीपुर कर सूचना दी कि बगल के मकान में बहुत तेज बदबू रही है. उन्होंने यह भी बताया कि मकान मालकिन रोमिला काफी दिनों से घर पर नहीं है. सूचना पा कर एसओ गाजीपुर नोवेंद्र सिंह सिरोही, सीनियर इंसपेक्टर रामराज कुशवाहा और सिपाही अरूण कुमार सिंह रोमिला के मकान पर पहुंच गएदेखने पर पता चला कि मकान के ऊपर के हिस्से में बदबू रही थी. पुलिस ने फोन कर के मकान मालकिन रोमिला को बुला लिया. वहां उस के सामने ही मकान खोल कर देखा गया तो पूरा मकान गंदा और रहस्यमय सा नजर आया. सिपाही अरूण कुमार और एसएसआई रामराज कुशवाहा तलाशी लेने ऊपर वाले कमरे में पहुंचे तो कबाड़ रखने वाले कमरे में एक युवक की सड़ीगली लाश मिली.

पुलिस ने रोमिला से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह लाश मालदा, पश्चिम बंगाल के रहने वाले सुदीप दास की है. वह उस की बेटी सलोनी का प्रेमी था और उस से शादी करना चाहता था. जब सलोनी ने इनकार कर दिया तो सुदीप ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली. रोमिला ने आगे बताया कि इस घटना से वह बुरी तरह डर गई थी. उसे लग रहा था कि हत्या के इल्जाम में फंस जाएगी. इसलिए वह घर को बंद कर के फरार हो गई थी. पुलिस ने रोमिला से नंबर ले कर फोन से सुदीप के घर संपर्क किया और इस मामले की पूरी जानकारी उस के पिता को दे दी. लेकिन उस के घर वाले लखनऊ कर मुकदमा कराने को तैयार नहीं थे. कारण यह कि वे लोग इतने गरीब थे कि उन के पास लखनऊ आने के लिए पैसा नहीं था. इस पर एसओ गाजीपुर ने अपनी ओर से मुकदमा दर्ज कर के इस मामले की जांच शुरू कर दी. प्राथमिक काररवाई के बाद सुदीप की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया.

8 अप्रैल 2014 को सुदीप की लाश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद जो सच सामने आया, वह चौंका देने वाला था. इस बीच सलोनी भी गई थी. रोमिला और उस की बेटी सलोनी ने अपने बयानों में कई बातें छिपाने की कोशिश की थी. लेकिन उन के अलगअलग बयानों ने उन की पोल खोल दी. एसपी ट्रांसगोमती हबीबुल हसन और सीओ गाजीपुर विशाल पांडेय पुलिस विवेचना पर नजर रख रहे थे जिस से इस पूरे मामले का बहुत जल्दी पर्दाफाश हो गया. मांबेटी से पूछताछ के बाद जो कहानी सामने आई वह कुछ इस तरह थी. 13 मार्च, 2014 की रात को सलोनी अपने कमरे में किसी से फोन पर बात कर रही थी. इसी बीच सुदीप उस से झगड़ने लगा. वह गुस्से में बोला, ‘‘मैं ने मांबेटी दोनों को कितनी बार समझाया है कि मुझे खीर में इलायची डाल कर खाना पसंद नहीं है. लेकिन तुम लोगों पर मेरी बात का कोई असर नहीं होता.’’

उस की इस बात पर सलोनी को गुस्सा गया. उस ने सुदीप को लताड़ा, ‘‘तुम मां से झगड़ने के बहाने तलाश करते रहते हो. बेहतर होगा, तुम यहां से चले जाओ. मैं तुम से किसी तरह की दोस्ती नहीं रखना चाहती.’’

‘‘ऐसे कैसे चला जाऊं? मैं ने स्टांपपेपर पर लिख कर दिया है, तुम्हें मेरे साथ ही शादी करनी होगी. बस तुम 18 साल की हो जाओ. तब तक मैं कोई अच्छी नौकरी कर लूंगा और फिर तुम से शादी कर के तुम्हें साथ ले जाऊंगा. अब तुम्हारी मां चाहे भी तो तुम्हारी शादी किसी और से नहीं करा सकती.’’ सुदीप ने भी गुस्से में जवाब दिया.

‘‘मेरी ही मति मारी गई थी जो तुम्हें इतना मुंह लगा लिया.’’ कह कर सलोनी ऊपर चली गई. वहां उस की मां पहले से दोनों का लड़ाईझगड़ा देख रही थी.

‘‘सुदीप, तुम मेरे घर से चले जाओ.’’ रोमिला ने बेटी का पक्ष लेते हुए चेतावनी भरे शब्दों में कहा तो सुदीप उस से भी लड़नेझगड़ने लगा. यह देख मांबेटी को गुस्सा गया. सुदीप भी गुस्से में था. उस ने मांबेटी के साथ मारपीट शुरू कर दी. जल्दी ही वह दोनों पर भरी पड़ने लगा. तभी रोमिला की निगाह वहां रखी हौकी स्टिक पर पड़ीरोमिला ने हौकी उठा कर पूरी ताकत से सुदीप के सिर पर वार किया. एक दो नहीं कई वार. एक साथ कई वार होने से सुदीप की वहीं गिर कर मौत हो गई. सुदीप की मृत्यु के बाद मांबेटी दोनों ने मिल कर उस की लाश को बोरे में भर कर कबाड़ वाले कमरे में बंद कर दिया. इस के बाद अगली सुबह दोनों घर पर ताला लगा कर गायब हो गईं. पुलिस को उलझाने के लिए रोमिला ने बताया कि वह यह सोच कर डर गई थी कि सुदीप का भूत उसे परेशान कर सकता है. इसलिए, वे दोनों हवन कराने के लिए हरिद्वार चली गई थीं

सलोनी ने भी 14 मार्च को अपनी डायरी में लिखा था, ‘आत्माओं ने सुदीप को मार डाला. हम फेसबुक पर एकदूसरे से मिले थे. आत्माओं के पास लेजर जैसी किरणें हैं. वह हमें नष्ट कर देंगी. आत्माएं हमें फंसा देंगी.’ सलोनी ने इस तरह की और भी तमाम अनापशनाप बातें डायरी में लिखी थीं. रोमिला भी इसी तरह की बातें कर रही थी. पुलिस ने अपनी जांच में पाया कि मांबेटी हरिद्वार वगैरह कहीं नहीं गई थी बल्कि दोनों लखनऊ में इधरउधर भटक कर अपना समय गुजारती रही थीं. वे समझ नहीं पा रही थीं कि इस मामले को कैसे सुलझाएं, क्योंकि सुदीप की लाश घर में पड़ी थी. बहरहाल, उस की लाश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद इस बात का खुलासा हो गया था कि मामला आत्महत्या का नहीं बल्कि हत्या का था. गाजीपुर पुलिस ने महिला दारोगा नीतू सिंह, सिपाही मंजू द्विवेदी और उषा वर्मा को इन मांबेटी से राज कबूलवाने पर लगाया

जब उन्हें बताया गया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सुदीप की मौत का का कारण सिर पर लगी चोट को बताया गया है, तो वे टूट गईं. दोनों ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. रोमिला की निशानदेही पर हौकी स्टिक भी बरामद हो गई. 8 अप्रैल, 2014 को पुलिस ने मां रोमिला को जेल और उस की नाबालिग बेटी सलोनी को बालसुधार गृह भेज दिया. जो भी जैसे भी हुआ हो, लेकिन सच यह है कि फेसबुक की दोस्ती की वजह से सुदीप का परिवार बेसहारा हो गया हैपुलिस उस के परिवार को बारबार फोन कर के लखनऊ कर बेटे का दाह संस्कार कराने के लिए कह रही थी. लेकिन वे लोग आने को तैयार नहीं थे. सुदीप की लाश लखनऊ मेडिकल कालेज के शवगृह में रखी थी. एसओ गाजीपुर नोवेंद्र सिंह सिरोही ने सुदीप के पिता सुधीर दास को समझाया और भरोसा दिलाया कि वह लखनऊ आएं, वे उन की पूरी मदद करेंगे. पुलिस का भरोसा पा कर सुदीप का पिता सुधीर दास लखनऊ आया. बेटे की असमय मौत ने उस का कलेजा चीर दिया था

सुधीर दास पूरे परिवार के साथ लखनऊ आना चाहता था लेकिन उस के पास पैसा नहीं था. इसलिए परिवार का कोई सदस्य उस के साथ नहीं सका. वह खुद भी पैसा उधार ले कर आया थासुधीर दास की हालत यह थी कि बेटे के दाह संस्कार के लिए भी उस के पास पैसा नहीं था. जवान बेटे की मौत से टूट चुका सुधीर दास पूरी तरह से बेबस और लाचार नजर रहा था. उन की हालत देख कर गाजीपुर पुलिस ने अपने स्तर पर पैसों का इंतजाम किया और सुदीप का क्रियाकर्म भैंसाकुंड के इलेक्ट्रिक शवदाह गृह पर किया. सुदीप की अभागी मां कावेरी और भाई राजदीप तो उसे अंतिम बार देख भी नहीं सके.

क्रियाकर्म के बाद पुलिस ने ही सुधीर के वापस मालदा जाने का इंतजाम कराया. गरीबी से लाचार यह पिता बेटे की हत्या करने वाली मांबेटी को सजा दिलाने के लिए मुकदमा भी नहीं लड़ना चाहता. अनजान से मोहब्बत और उस से शादी की जिद ने सुदीप की जान ले ली. सुदीप अपने परिवार का एकलौता कमाऊ बेटा था. उस के जाने से पूरा परिवार पूरी तरह से टूट गया है. सलोनी और सुदीप की एक गलती ने 2 परिवारों को तबाह कर दिया है.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है. कथा में आरोपी सलोनी का नाम परिवर्तित है.

  

नाकाम पाकिस्तानी आशिक सुसाइड करने के लिए भारत में घुसा

प्यार में नाकाम आसिफ रमजान में आत्महत्या नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने भारतपाक सीमा पार करने की सोची ताकि मिलिट्री वाले उसे गोलियों से भून दें. लेकिन…   

मोहम्मद आसिफ ने सामने बैठी शबनम की पूरी बात सुनने के बाद एक गहरी सांस ले कर बुझे मन से कहा, ‘‘आखिर वही हुआ जिस का मुझे डर था, आज सारी दुनिया हमारे प्यार की दुश्मन बन बैठी है. जब अपनों ने ही साथ देने से साफ इंकार कर दिया तो किसी दूसरे को क्या दोष दें.’’

‘‘आसिफ मैं अम्मीअब्बू तो क्या, अपनी खाला से भी बात कर चुकी हूं. मुझे भी वही सब जवाब मिले थे, जो तुम्हें अपने परिवार से मिले हैं.’’ 

फिर कुछ सोचते हुए आसिफ ने कहा, ‘‘शबनम, हमें घर से भाग कर अपनी एक नई दुनिया बनानी होगी.’’

आसिफ की बात बीच में ही काटते हुए शबनम ने कहा, ‘‘यह तुम कैसी बातें कर रहे हो, क्या घर से भागना इतना आसान है? आसिफ मुझे तो ऐसा लग रहा है कि आज यह हमारी आखिरी मुलाकात है. आज के बाद हम कभी नहीं मिल सकेंगे. क्योंकि अगले हफ्ते मेरा निकाह है. इस बीच अगर तुम अपने घर वालों को मना सको तो ठीक है, नहीं तो मुझे भूल जाना और बेवफा कह कर दोषी मत ठहराना. खुदा हाफिज.’’ कह कर शबनम वहां से उठ कर अपने घर की तरफ चली गई. आसिफ काफी देर तक वहीं बैठा सोचता रहा.

मोहम्मद आसिफ पाकिस्तान के जिला कसूर के अंतर्गत आने वाले गांव जल्लोके का रहने वाला था. उस के पिता का नाम था खलील मोहम्मद. खलील मोहम्मद की 4 संतानों में आसिफ सब से छोटा था. उसे छोड़ कर सभी बहनभाइयों की शादी हो चुकी थीखलील मोहम्मद के पास अपने गुजारे लायक जमीन थी, जिस में घर खर्च बड़े मजे से चलता था. सब कुछ ठीक चल रहा था कि आसिफ की जिंदगी में उस दिन से हलचल शुरू हुई, जिस रोज उस ने पहली बार शबनम को देखा था. मन ही मन आसिफ ने उस की तारीफ की थी. उन की यह मुलाकात एक शादी समारोह में हुई थी. शबनम की एक झलक देखते ही आसिफ अपना दिल हार बैठा था. वह सोचने लगा कि अगर यह खूबसूरत लड़की उस की जिंदगी में जाए तो जिंदगी बन जाएगी

जब मन में उसे पाने की चाहत ने जन्म लिया तो उस ने अपनी हमउम्र मामू, खाला आदि की लड़कियों के माध्यम से शबनम के पास पैगाम भिजवाने शुरू कर दिए. वह जल्द से उस के नजदीक पहुंचने की कोशिश करने लगा. चूंकि वह उस के बड़े भाई हमीद की साली थी और आसिफ शबनम को पाने के लिए बेताब हो उठा. उस की चाहत को देखते हुए शबनम भी उस की ओर आकर्षित हो चुकी थी. यानी आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई थी. जल्द ही आसिफ को शबनम के निकट रहने का मौका मिल गया. शादी समारोह के बाद सभी रिश्तेदार विदा हो कर अपनेअपने घरों को लौटने लगे, पर आसिफ के बड़े भाई हमीद को उस के ससुर ने कुछ दिनों के लिए अपने यहां रोक लिया. अपनी भाभी से जिद कर के आसिफ भी उन के साथ भाई की ससुराल में रुक गया

एक तरह से वह शबनम के बिलकुल करीब पहुंच गया था. घर में गहमागहमी का माहौल था. घर के बडे़ अपनी बातों में मशगूल रहते थे तो बच्चे और किशोर अपनी अलग मंडली जमाए बैठे थे. ऐसे में आसिफ और शबनम को अपनेअपने दिल की बात कहने का अवसर मिल गया. दोनों ने एकदूसरे के सामने प्यार का इजहार किया, साथ जीनेमरने की कसमें खाईं. दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया था. शादी का फैसला करते वक्त दोनों ने यह बात सपने में भी नहीं सोची थी कि परिवार वालों को उन का फैसला मंजूर होगा भी या नहीं. दोनों अभी अपने प्यार की पींगे पूरी तरह बढ़ा भी नहीं पाए थे कि शबनम के अब्बू को उन की प्रेम कहानी का पता चल गया.

शबनम पर तो जैसे आफत का पहाड़ ही टूट पड़ा. इसी बात को ले कर ससुर और दामाद में भी कहासुनी हो गई. हामिद अपनी ससुराल से नाराज हो कर अपने गांव लौट आया. उस ने अपनी बीवी को भी सख्त ताकीद कर दी थी कि अब वह अपने अम्मीअब्बू को भूल जाए. आसिफ और शबनम के प्यार का घरौंदा बसने से पहले ही उजड़ गया. आसिफ और शबनम ने अपनेअपने तरीकों से इस रिश्ते को कायम रखने के लिए बहुत कोशिश की. पर दोनों परिवारों की जिद के आगे उन की एक नहीं चली. शबनम के अब्बू ने शबनम का रिश्ता कहीं दूसरी जगह तय कर दिया था. जल्दी ही शादी का दिन भी गया. इस शादी में उस ने अपनी बेटी और दामाद को भी नहीं बुलाया था

मोहम्मद आसिफ ने बड़ी बेबसी के साथ शबनम के घर की तरफ देखा. चारों तरफ जगमगाती लाइटें जल रही थीं, चहलपहल दिखाई दे रही थी. घर और आसपास के पेड़ों में लगे लाउडस्पीकर पर पंजाबी गाने बज रहे थे. वहां से 100 मीटर दूरी पर आसिफ एक जगह अंधेरे में बैठा था. वह नहीं चाहता था कि कोई उसे और उस के दर्द को देखे. जिसे देखना था वह अपनी खुशियों में व्यस्त थी. लाउडस्पीकर पर बजते गाने आसिफ के दिल में तीर की तरह चुभ रहे थे. अंदर ही अंदर बेचैनी खाए जा रही थी. बारात धीरेधीरे शबनम के घर की तरफ बढ़ रही थी. आवाज की तेजी बढ़ती जा रही थी. जैसे वे सारी आवाजें उस की तरफ रही हों. ढोल वाले के हर डंके की चोट में जैसे शबनम चीखचीख कर कह रही हो, ‘मैं जा रही हूं आसिफ. तुम को छोड़ कर. मेरी शादी किसी और के साथ हो रही है. अब मैं तुम्हारी नहीं रही.’

आसिफ धीरेधीरे वहां से उठा और खेतों की तरफ जाने लगा. वह इन आवाजों से दूर जाना चाहता था, बहुत दूर. काली अंधेरी रात में वह कहां जा रहा था, उसे पता नहीं चल रहा था. वह तो बस चले जा रहा थाउस के मन में उस समय एक ही धुन सवार थी कि जितनी जल्दी हो सके, बोझ बनी इस जिंदगी से छुटकारा पा कर सुकून हासिल कर ले. वह चले जा रहा था, पर शहनाई की आवाज उस का पीछा नहीं छोड़ रही थी. उस ने अपने कदमों की रफ्तार और तेज कर दी थी. वह शबनम के गांव से दूर चुका था. आवाजें उस का पीछा कर रही थीं. उस ने अपने दोनों कान बंद किए और वहीं बैठ गया. अचानक उस ने अपना मुंह आसमान की तरफ उठाया और चीखचीख कर रोने लगा. जैसे खुदा से शिकायत कर रहा हो

अपने भीतर कितने दिनों से दबा कर रखे आंसुओं के भंडार को वह आज जी भर के निकालना चाहता था. वहां कोई सुनने वाला था, और कोई कुछ कहने वाला. वह रोता रहा, रोता रहा. तब तक जब तक जहर भरे सारे आंसू बाहर नहीं निकल गए. मन हलका हो गया तो फिर से शबनम की यादों को समेटने लगा था. इस के पहले कि शबनम की यादों में पड़ कर कमजोर हो जाए, वह अपनी जगह से उठा और तेजी से एक ओर बढ़ता गया. आसिफ रात भर चलता रहा, उस के पैरों में बिजली सी तेजी थी, मानो वह जल्द से जल्द अपनी मंजिल पर पहुंचना चाहता हो. सुबह के करीब 5 बजे वह भारतपाक सीमा के हुसैनीवाला क्षेत्र फिरोजपुर बौर्डर के पास पहुंच गया. वह एक पल के लिए वहां रुका और आसपास देख कर वहां का जायजा लेने लगा. जब दूर से उस ने 2 देशों की सीमा को विभाजन करने वाली तारों की बाड़ को देखा तो उस की आंखें चमक उठीं.

किसी सम्मोहनवश वह लगभग दौड़ता हुआ सीमा पर लगी बाड़ की ओर लपका. सीमा के दोनों ओर दोनों देशों के सुरक्षाकर्मी हाथों में आधुनिक हथियार लिए बड़ी मुस्तैदी से खडे़ थे, पर आसिफ सुरक्षाकर्मियों की नजरों के सामने से बिना भयभीत हुएअल्लाह हू अकबरकहता हुआ सुरक्षा तारों को पार करने लगासीमा के दोनों ओर के जवान इस अजूबे को हैरत की नजरों से देख रहे थे और सोच रहे थे कि वह कौन है और क्या करना चाहता है. किसी की समझ में कुछ नहीं रहा था. क्योंकि आसिफ पाकिस्तान की ओर से सीमा पार कर के भारत की सीमा में प्रवेश कर चुका थाअब भारतीय फौजियों को ही उसे रोकना था सीमा पर उस समय सीमा सुरक्षाबल की 118वीं बटालियन के जवान तैनात थे. उन्होंने आसिफ को चेतावनी देते हुए कहा, ‘‘जहां हो वहीं रुक जाओ और वापस अपने सीमा क्षेत्र में लौट जाओ वरना गोली मार दी जाएगी.’’

सीमा सुरक्षाबल के जवानों की चेतावनी का आसिफ पर कोई असर नहीं हुआ. वह अपनी धुन में तारों को पार करने की कोशिश करता रहा. थोडे़ से प्रयास के बाद वह अपने इरादों में सफल हो कर भारतीय सीमा में प्रवेश कर गयाभारतीय सीमा में प्रवेश करते ही सुरक्षाबलों ने उसे घेर लिया. एसआई राजवीर सिंह, हवलदार अरविंद कुमार, अशोक कुमार, सिपाही जुगल किशोर और पी.एच. डेविड ने आसिफ को गिरफ्तार कर अपनी हिरासत में ले लिया और यह सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दे दीसीमा सुरक्षा बल के आला अधिकारियों और अन्य सुरक्षा एजेंसियों ने आसिफ से जम कर पूछताछ की. किसी हारे हुए जुआरी की तरह आसिफ ने अपना दिल खोल कर जब अपने नाकाम प्यार की दास्तां सुनाई तो सभी दंग रह गए

आसिफ ने अपने बयान में बताया कि उसे विश्वास था कि सीमा पर उस के द्वारा की गई इस हरकत के बदले जवान उसे गोली से उड़ा देंगे और वह दुनिया से मुक्त हो जाएगा. क्योंकि रमजान के पाक महीने में वह आत्महत्या जैसा गुनाह नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने सोचसमझ कर जवानों की गोली से अपने प्यार के लिए शहीद होने की सोची थी. अपनी नाकाम मोहब्बत के सदमे की वजह से उस की जीने की इच्छा खत्म हो गई है. सुरक्षा एजेंसियों की पूछताछ के बाद अपने अधिकारियों के आदेश पर एसआई राजबीर सिंह ने आसिफ को जिला फिरोजपुर के थाना  ममदोह की पुलिस के हवाले कर दिया

थानाप्रभारी रछपाल सिंह ने आसिफ से पूछताछ करने के बाद बताया कि नौजवान मानसिक तौर पर परेशान है. उस से सभी पहलुओं से पूछताछ की गई है. युवक की तलाशी लेने पर उस की जेब से 1200 रुपए की पाकिस्तानी करेंसी और 2 नींद की गोलियां बरामद हुई थीं. पूछताछ के बाद थानाप्रभारी रछपाल सिंह ने आसिफ के खिलाफ 28 मई, 2018 को इंडियन पासपोर्ट एक्ट 1920 की धारा-3 और फारेनर एक्ट-1946 की धारा-14 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर उसे अदालत में पेश किया गया जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.    

   —पुलिस सूत्रों पर आधारित

क्यों एक नौकरानी खाने में पेशाब मिला दिया करती थी

सनसनीखेज घटना का पूरा सच जानिए…

एक शर्मसार कर देने वाली घटना ने सभ्य समाज की चूलें हिला दीं, जब एक नौकरानी ने खुन्नस में रोज खाने में अपना यूरिन यानि पेशाब मिला रही थी। यह सिरफिरी नौकरानी पिछले 8 साल से एक घर में खाना बना रही थी और उस में खुद का यूरिन मिला दिया करती थी. यों मालिक अकसर अपने घर पर खाना बनाने वाली मेड को इसलिए रखता है कि वह मेड उस घर के सभी लोगों को अच्छा खाना खिलाएगी लेकिन एक मेड ने उस मालिक और समाज का भरोसा तोड़ दिया। ऐसा इसलिए हुआ कि वह मेड घर के सभी लोगों को खुद का यूरिन डाल कर खाना बना रही थी और उस घर के लोगों को खिला रही थी.

हैरान कर देने वाली घटना

यह हैरान कर देने वाली घटना उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद की है, जिस में एक महिला घर के लोगों को अपने यूरिन मिला कर खाना खिलाया करती थी. यह महिला पिछले 8 सालों से उस घर में मेड का काम कर रही थी और यह परिवार उस पर पूरी तरह से भरोसा करता था.

भरोसे के बदले मिली गद्दारी

घर के सभी लोग उसे अच्छा खाना बनाने वाली मानते थे, लेकिन उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि वह अपने पेशाब को भोजन में मिला कर खिला रही थी.

इस पूरे मामले का खुलासा तब हुआ जब घर के सभी लोग धीरेधीरे बीमार पड़ने लगे. वे सभी लोग कई बार डाक्टर के पास जाते, लेकिन उन की बीमारी ठीक नहीं हो रही थी. डाक्टर ने उन सभी लोगों से पूछा,”खाना तो अच्छा खा रहे हो न?”

तब ही घर के सभी लोगों ने कहा,”हां, क्योंकि हमारे घर में जो खाना बनाने वाली मेड आती है वही खाना बनाती है…”

लेकिन घर वालों को अंदाजा नहीं था कि वह महिला उन को अपना यूरिन डाल कर खाना खिला रही थी. इस के बाद घर के सभी लोगों की हालत धीरेधीरे ज्यादा खराब होने लग गई। उन्हें लिवर की प्रौब्लम होने लगी और वे अन्य बीमारियों से जूझने लगे.

जब बढ़ने लगी समस्या

जब समस्या ज्यादा बढ़ी तो घर के लोगों को खाना बनाने वाली मेड पर शक हुआ कि कहीं वह तो कुछ गङबङ नहीं कर रही। इस शक के कारण घर के मालिक ने रसोईघर में एक सीसीटीवी कैमरा लगवा दिया ताकि उस की सभी हरकतों पर नजर रखी जा सके.

भयानक और शर्मनाक

जब मेड घर में खाना बनाने आई तो कैमरे में उस की घिनौनी हरकतें रिकौर्ड हो गईं। वह भयानक और शर्मसार करने वाली घटना थी. सीसीटीवी फुटेज में साफतौर पर दिख रहा था कि वह मेड आटे में यूरिन मिला कर उसे गूंथ रही थी और फिर वही खाना घर के लोगों को खिला रही थी.

जैसे ही घर के मालिक ने यह फुटेज देखा, उन्होंने तुरंत पुलिस को सूचित कर दिया. पुलिस ने जब इस सीसीटीवी को देखा तो वह भी इस हैरान रह गई। तुरंत उस महिला को गिरफ्तार पुलिस ने सख्ती से पूछताछ शुरू की, तो पहले उस मेड ने अपनी गलती मानने से इनकार कर दिया लेकिन जब पुलिस ने उस मेड को सीसीटीवी फुटेज दिखाया, तो वह घबरा गई और अपना जुर्म कुबूल कर लिया।

पुलिस कर रही तफ्तीश

यह घटना न केवल उस परिवार के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए शर्मसार करने वाली है. पुलिस इस मामले की गहराई से जांच कर रही है और यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि आखिर नौकरानी ने ऐसा क्यों किया.

दोस्ती में विश्वासघात : पति से ही लुटवाई सहेली की इज्जत

‘‘साहब, मैं बरबाद हो गई, मुझे रिपोर्ट लिखानी है, उन दरिंदों के खिलाफ, जिन्होंने मेरी इज्जत को तारतार कर दिया, मुझे कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा.’’ थाने में मुंशी के पास जा कर शाहीन ने बिना सांस लिए एक बार में ही अपनी बात कह दी. मुंशीजी तजुर्बेकार थे, सो उन्हें समझने में जरा भी दिक्कत नहीं हुई कि मामला क्या है.

‘‘आप का नाम क्या है?’’ मुंशीजी ने बडे़ धैर्य से पूछा. शाहीन ने अपना नाम बता दिया.

‘‘आप कहां रहती हैं?’’

‘‘जी, भोपाल के ऐशबाग इलाके में रहती हूं.’’ शाहीन ने जल्दी से जवाब दिया.

मुंशीजी ने सवाल किया, ‘‘आप के साथ हुआ क्या है? सचसच बताइए. कुछ भी छिपाने की जरूरत नहीं है.’’

शाहीन ने सिर झुका कर हामी भर दी. फिर एकएक कर सारी बात उन्हें बताते हुए कहा, ‘‘हमीदा, मेरी बचपन की सहेली है. हम दोनों एक ही स्कूल में पढ़े हैं. 6 महीने पहले उस की शादी फैजान के साथ हुई थी, वो दोनों अपनी शादी से बहुत खुश थे. बचपन की दोस्त होने के नाते हमीदा ने मुझे खासतौर पर दावत दी थी. हम लोगों ने शादी में खूब मस्ती की. कुछ दिनों पहले उस ने मुझे दावत पर बुलाया. साथ ही उस ने कहा भी कि फैजान तुम से मिलना चाहते हैं.’’

तयशुदा वक्त पर मैं हमीदा के घर पहुंच गई. उस ने और फैजान ने मेरी बहुत खातिरदारी की. खाने में चिकन, कबाब, बिरयानी के साथ खीर थी. हमीदा को मालूम था कि मुझे खीर बहुत पसंद है. हम सब ने मिल कर हंसीमजाक करते हुए लजीज खाने का लुत्फ उठाया. खाने के बाद सोफे पर बैठ कर सब ने कोल्डड्रिंक पी और इधरउधर की बातें करने लगे. वही पुरानी बातें, शादी विवाह और रस्मोंरिवाज की बातें.

खाने के बाद हमीदा किचन में जा कर बरतन धोने लगी. जाते हुए उस ने मुझ से कहा था, ‘‘शाहीन, तुम फैजान से बात करो.’’

मैं फैजान से इधरउधर की बात करती रही, फिर थोड़ी देर बाद हमीदा ने मुझे आवाज लगाते हुए कहा, ‘‘यार, तू कैसी दोस्त है. मैं अकेले बरतन धो रही हूं और तू है कि मेरे शौहर के साथ गपबाजी कर रही है. जल्दी से आ कर मेरी मदद करो.’’

मैं फैजान के पास से उठ कर किचन में चली गई, जहां हमीदा बरतन साफ कर रही थी.

जैसे ही मैं किचन में जा कर बरतन धुलवाने में उस की मदद करने लगी, वैसे ही वह बाथरूम जाने को कह कर बाहर आ गई. मैं किचन में अकेली रह गई और चुपचाप बरतन साफ करती रही.

‘‘सर,’’ शाहीन मुंशीजी के सामने ही फफक फफक कर रोने लगी.

‘‘देखिए शाहीनजी, आप रोएंगी तो हम आप की रिपोर्ट कैसे लिखेंगे. आप अपने आप को संभालिए और हमें सारी बात खुल कर बताइए.’’ मुंशीजी बोले.

इस के बाद शाहीन ने आंसू पोंछते हुए एकएक कर सारी बात विस्तार से मुंशीजी को बता दी. उस ने कहा कि फिर अचानक किचन का दरवाजा जोरदार आवाज के साथ बंद हो गया. मैं इस तरह अचानक दरवाजा बंद होने से एकदम सिहर उठी.

लेकिन मैं ने सोचा कि हमीदा मेरे साथ इस तरह का मजाक पहले भी करती रही है. मैं ने हमीदा को अंदर से ही आवाज दी, ‘हमीदा, मैं तुम्हारी ऐसी बचकाना हरकतों से डरने वाली नहीं हूं.’ कह कर मैं फिर से बरतन धोने में लग गई.

मैं अकेली थी और मन ही मन गाना गुनगुना रही थी. तभी पीछे से अचानक आ कर किसी ने मेरी कमर को मजबूती से जकड़ लिया. उस की गिरफ्त से निकलना नामुमकिन सा था. मेरी घबराहट की वजह से सांस फूलने लगी और मैं बुरी तरह डर गई थी. मेरे मुंह से जोरों की चीख निकली, जो पूरे घर में गूंज गई. लेकिन मेरी चीख सुन ने वाला शायद कोई नहीं था.

काफी जद्दोजहद के बाद जब थक कर मैं ने हार मान ली तो फैजान कान के एकदम पास होंठ कर के बोला, ‘‘मोहतरमा, आप किसी अंजान शख्स की बाहों में नहीं हैं. हमें अपना ही समझें.’’ फैजान ने मुझे एक झटके से पलटा कर सीने में भींच लिया और मैं बिन पानी की मछली की तरह तड़पने लगी.

‘‘फैजान छोडि़ए मुझे, इस तरह के मजाक मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं हैं. आप को अपनी हद मालूम होनी चाहिए.’’ मैं ने विरोध करते हुए कहा.

‘‘शाहीन, हम कोई गैर थोड़े ही हैं, जो आप हम से इस तरह से खुद को आजाद कराने की कोशिश कर रही हैं.’’

‘‘देखिए फैजान, मैं आप से फिर कहे देती हूं, मुझे छोडि़ए, वरना मैं हमीदा से आप की इस घटिया हरकत की शिकायत कर दूंगी. मैं कोई ऐसीवैसी लड़की नहीं हूं, जो आप की इस हरकत पर खामोश रहूं.’’ कहते हुए मैं ने हमीदा को जोर से आवाज लगाई, ‘‘हमीदा, हमीदा…’’

‘‘शाहीन मैं तो यही हूं.’’ दरवाजे की ओट में झांकती हमीदा के होंठों पर एक कातिलना मुसकराहट तैर गई. लेकिन शाहीन को देख कर नहीं, बल्कि फैजान से नजर मिलने पर.

शाहीन एक लम्हे के लिए बुत बन गई, जैसे उस में जान ही नहीं हो. शाहीन की हालत मजलूमों जैसी हो गई थी. उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर उस के साथ यह सब क्या हो रहा था.

‘‘हमीदा, तुम ऐसा क्यों कर रही हो? खुदा के लिए मुझ पर रहम करो, मैं किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहूंगी. प्लीज हमीदा, रुक जाओ, ऐसा मत करो. मुझ पर रहम करो.’’ शाहीन गिड़गिड़ा रही थी, लेकिन हमीदा को शाहीन की इस स्थिति पर मजा आ रहा था.

फैजान जब शाहीन के साथ हैवानियत का खुला खेल खेल रहा था, तभी हमीदा, किचन की खिड़की से शाहीन की नीलाम होती इज्जत की वीडियो क्लिप बना रही थी.

शाहीन के आंसू उस के नर्म नाजुक गालों से लुढ़कते हुए उस के दामन को भिगो रहे थे.

‘‘फिर क्या हुआ?’’ मुंशीजी ने खामोशी तोड़ी.

लेकिन शाहीन के मुंह से एक लफ्ज भी नहीं निकला, क्योंकि उस की हिचकियां बंध गई थीं. एक कांस्टेबल ने गिलास में पानी दिया, जिसे शाहीन बिना सांस लिए एक बार में ही पी गई. दुपट्टे से मुंह पोछने के बाद उस ने एक गहरी सांस ली, फिर अपनी बरबादी के सफर का किस्सा सुनाने लगी, ‘‘सर, उन्होंने मेरी अश्लील वीडियो बना ली थी.’’

‘‘एक मिनट, आप ये बताइए कि हमीदा तो आप के बचपन की दोस्त थी, फिर उस ने ऐसा क्यों किया? क्या तुम्हारी उस से कोई पुरानी अदावत थी?’’

‘‘नहीं सर, ऐसा कुछ भी नहीं था.’’ शाहीन ने मुंशीजी को बीच में ही टोका. हमारा तो कभी झगड़ा भी नहीं हुआ, पता नहीं मुझ से किस बात का बदला लिया गया था. मुंशीजी को शाहीन की बात पच नही रही थी. जरूर कोई बात होगी, तभी उस ने इतना बड़ा कदम उठाया है.

शाहीन खामोशी से उन के सवालों को सुन रह थी. आखिर में उस ने बताया कि हम दोनों कक्षा 6 से ग्रैजुएशन तक एक साथ पढ़े हैं. हम दोनों में अच्छी दोस्ती थी. मैं हमीदा से पढ़ने में अव्वल थी और हमेशा उस से अच्छे नंबर लाती थी. शुरू में कोई बात नहीं थी, लेकिन जब हम ने 10वीं का इम्तेहान दिया और मैं ने एक बार फिर टौप किया, तब हमीदा ने पहली बार मुझे ताना मारा था कि तुम्हीं क्यों हमेशा टौप करती हो? मेरे नंबर हमेशा से तुम से कम रहे हैं.

‘‘सर, तभी पहली बार हमीदा मुझ से चिढ़ी थी. लेकिन मैं ने उस की बातों का बुरा नहीं माना.’’

इसी तरह मैं ने 12वीं भी टौप किया और ग्रैजुएशन के लिए हम दोनों ने बरकतुल्लाह यूनिवर्सिटी में बीए में एडमिशन ले लिया. हम लोग रोजाना सिटी बस से आतेजाते थे. हम लोग अब कालेज के बंद माहौल से एकदम खुली फिजा में उड़ने लगे थे.

हमें वहां का माहौल बहुत अच्छा लगता था. पहली बार गर्ल्स कालेज से निकल कर लड़कों से घुलने मिलने का मौका मिला. हमारे ग्रुप में रेशमा, शबा, पूजा, दानिश और राहुल थे. दानिश के साथ मेरी अच्छी बनती थी और हम लोग बहुत अच्छे दोस्त बन गए थे.

जिंदगी के हसीन पल इसी तरह गुजरते रहे. इसी सिलसिले में वैलेंटाइंस डे आ गया और दोस्तों के सामने ही दानिश ने मुझे प्रपोज कर दिया. मैं उसे इनकार नहीं कर सकी. शायद उस के लिए मेरे दिल में कहीं न कहीं कुछ था. जो मुझे उस के वजूद का हमेशा एहसास दिलाता रहता था.

ये बात और थी कि मैं ने उसे कभी अपने दिल के हाल से आगाह नहीं किया था. उस के लिए मेरे दिल में जो चाहत थी, वो अब मोहब्बत बन कर मेरे वजूद का एक हिस्सा बन चुकी थी. मैं ने उस के गुलाब को ले कर अपनी मोहब्बत का इकरार कर लिया था.

हमीदा भी दानिश को चाहती थी, ये बात, मुझे काफी बाद में पता चली. उस ने शायद इसी बात का मुझ से बदला लिया हो.

मेरी इज्जत तारतार करने के बाद फैजान और हमीदा मुझे धमकी देने लगे, ‘‘अगर किसी के सामने अपना मुंह खोला तो इस वीडियो को वायरल कर देंगे, जिस से तुम किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रह पाओगी. कोई भी लड़का तुम से शादी नहीं करेगा. शाहीन इसे सिर्फ धमकी नहीं समझना.’’ हमीदा अपने होंठ भींच कर बोली.

‘‘सर,’’ शाहीन ने आंखें उठा कर कहा, ‘‘मेरी आंखों में जैसे खून उतर आया था और गुस्सा भी बहुत था. इस के बावजूद हमीदा के चेहरे पर एक अजीब सा सुकून दिख रहा था, जैसे उस ने अपना बदला ले लिया हो.’’

मैं घर पहुंची तो मां ने तमाम दुआएं दीं, फिर हमीदा और उस के शौहर के बारे में मुझ से पूछा कि दावत में क्याक्या था.

‘‘अम्मी, सब ठीक था.’’ उखड़ा सा जवाब दे कर मैं अंदर चली गई और कमरा बंद कर के सिसक सिसक कर रोने लगी. रात को अम्मी ने खाना खाने को बुलाया पर मैं नहीं गई.

रात 11 बजे के बाद मेरे मोबाइल की रिंगटोन बजी, लेकिन मैं ने काल रिसीव नहीं की. पता नहीं कौन फोन कर रहा है. आखिर मैं ने मोबाइल उठा कर देखा. देखते ही मेरा खून खौल उठा, क्योंकि हमीदा इस वक्त फोन कर के जख्म को कुरेदने का काम कर रही थी.

‘‘अब क्या है?’’ मैं गुस्से से बोली.

मेरे गुस्से से बेपरवाह हमीदा ने बड़े सुकून से कहा,‘‘शाहीन बड़ी देर कर दी काल रिसीव करने में, क्या गहरी नींद में सो रही थी.’’ हमीदा फोन पर ही हंसी. उस का एकएक लफ्ज मेरे दिल में नश्तर की तरह चुभ रहा था. लेकिन वह मजबूर थी, चाह कर भी कुछ बोल नहीं सकती थी.

फिर मैं ने सिसकते हुए भर्राई आवाज में पूछा, ‘‘अब क्या, जो इतनी रात को परेशान करने के लिए फोन कर रही है?’’

हमीदा बड़े इत्मीनान के साथ बोली, ‘‘शाहीन, अपने घर पर तो कुछ बताया नहीं होगा. हम सब के लिए फायदे का सौदा यही है कि इस से तुम्हारी बदनामी नहीं होगी और न ही हमें पुलिस के झमेले में पड़ना पड़ेगा, है ना शाहीन.’’

मैं क्या बोलती, मैं तो पहले ही लुट चुकी थी.

‘‘अच्छा सुनो शाहीन, ऐसा करो कि तुम 2 दिन बाद घर आ जाना, ठीक है ना.’’ हमीदा मुझे फोन पर ही लेक्चर देने लगी.

‘‘अब किसलिए आऊं और किस मुंह से आऊं. आप लोगों ने मुझे कहीं मुंह दिखाने के काबिल नहीं छोड़ा है? सुनो हमीदा अब मुझे माफ करो, मैं नहीं आ सकती. वैसे भी अब घर में क्या कह कर आऊंगी.’’ रोते हुए मैं ने रहम की भीख मांगी.

‘‘मैं कुछ नहीं जानती.’’ हमीदा चीखी, ‘‘तुम्हें 2 दिन बाद हर हाल में मेरे घर आना ही होगा, वरना अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहो. मैं फैजान से कह कर तुम्हारा एमएमएस नेट पर डलवा दूंगी. ये धमकी नहीं है शाहीन, पिक्चर अभी बाकी है.’’ इस के साथ ही फोन डिस्कनेक्ट हो गया. मैं हैलो, हैलो… करती रही, फिर बुत बन कर बैठ गई.

सुबह 10 बजे के बाद मेरी अम्मी रजिया ने मुझे जगाया, तब जा कर आंखें खुलीं.

‘‘क्या बात है शाहीन, तुम्हारी आंखें लाल हैं, किसी बात की परेशानी है क्या?’’

‘‘नहीं अम्मी, कोई बात नहीं है. असल में काफी देर रात तक एक फ्रैंड से बात करती रही. इसलिए देर से उठी हूं.’’

‘‘अच्छा मुंहहाथ धो कर नाश्ता कर लो, सभी लोगों ने नाश्ता कर लिया है, सिवाए तुम्हारे.’’

मैं ने उठ कर ना चाहते हुए भी जैसेतैसे नाश्ता किया. फिर सारा दिन अपने कमरे में गुमसुम बैठी रही. मेरा छोटा सा रूम ही दुनिया थी.

पूरे दिन और रात में मैं इसी उधेड़बुन में रही कि क्या मुझे दोबारा हमीदा के घर जाना चाहिए या नहीं, फिर जो होगा उसे देखा जाएगा. लेकिन अश्लील वीडियो की बात सोच कर मैं सिहर उठी थी. अगर हमीदा ने ऐसा सच में कर दिया तब क्या होगा. अम्मी अब्बू पर क्या गुजरेगी, उन के सिर हमेशा के लिए समाज के सामने झुक जाएंगे. घर पर छोटी बहन नाजनीन का रिश्ता नहीं आएगा. इसी उधेड़बुन में मुझे नींद आ गई.

तमाम पहलुओं पर काफी सोचने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंची कि घर वालों की इज्जत की खातिर मुझे वहां जाना ही होगा. बस यहीं पर मैं ने ऐसी गलती की, जिस से मैं दलदल में फंसती गई. अगर मैं यहीं पर जरा अक्ल और हिम्मत से काम लेती तो शायद आने वाले बदतर दिन देखने को नहीं मिलते.

जमाने का एक उसूल है जो डर गया वो जीते जी मर गया. औरों की तरह मेरा भी वही हाल हुआ जो अकसर ऐसी स्थिति में लड़कियों का होता है.

तयशुदा वक्त पर मैं हमीदा के घर पहुंच गई. मुझे आया देख कर हमीदा की बांछें खिल उठीं. मुझे ये समझना मुश्किल हो रहा था कि हमीदा मेरी शिकस्त पर मचल रही है या अपनी जीत पर. हमीदा ने मुझ से अदब से पूछा, ‘‘मैडम, आप क्या लेंगी?’’

‘‘कुछ नहीं.’’ मैं ने बेरुखी से जवाब दिया.

‘‘खैर आप की मरजी, ये मेजबान का हक है कि वो मेहमान की खिदमत में कोई कमी न रखे.’’ हमीदा ने मुझे सोफे पर बैठने के लिए कहा तो मैं खामोशी से बिना कुछ कहे बैठ गई.

‘‘सलाम अर्ज है मोहतरमा.’’ फैजान मुसकरा कर बोला. मैं ने जवाब देना भी मुनासिब नहीं समझा. मैं खामोशी की चादर ओढ़े बैठी रही. अब ये लोग क्या चाहते हैं? क्या मुझे फिर से जलील करने के लिए बुलाया गया है. कई तरह के बातें मेरे जेहन को बेकरार कर रही थीं.

अगर फैजान ने मेरे साथ फिर से ज्यादती की तो… इस गुमान से ही मेरी रूह कांप गई. दिल की धड़कनें बढ़ गई थीं और सांसें ऊपरनीचे होने लगीं.

‘‘अरे शाहीन, आप को बहुत पसीना आ रहा है. आप मेरे रूम में चलिए. वहां एसी लगा है, आप को राहत मिलेगी.’’ फैजान मेरे नाजुक हाथों को पकड़ कर अपने रूम की तरफ बढ़ गया. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरे पैरों में बहुत भारी बेडि़यां पड़ी हों.

फैजान मुझे तकरीबन जबरदस्ती खींचते हुए ले गया. उस ने फ्रीज से एक बोतल पानी निकाला और मेरी तरफ बढ़ा दिया, जिसे मैं ने देखा तक नहीं. थोड़ी देर में हमीदा भी अंदर आ गई. उस ने घूरते हुए कहा, ‘‘मेरे शौहर जो जो कहते जाएं, वैसा ही तुम करती जाना, और हां, नखरा तो बिलकुल भी नहीं करना.’’ फिर फैजान अचानक से मुझ पर दरिंदों की तरह टूट पड़ा.

वह मेरे जिस्म को चीलकौवों की तरह नोचता रहा और मैं दर्द से बैड पर तड़पती रही. हद तो तब हुई, जब हमीदा मेरी नीलाम होती आबरू की मोबाइल से वीडियो बनाती रही. उसे जरा भी शर्म नहीं आई थी, जो खुद ही अपने शौहर से उस की इज्जत लुटवा रही थी. इस से बड़ा धक्का तब लगा, जब थोड़ी देर बाद एक और लड़का वहां आ धमका. वह मुझे प्यासी नजरों से घूर रहा था. मैं उसे देख कर सहम गई और बेड के दूसरी तरफ एक कोने में कपड़ों की गठरी की तरह सिकुड़ कर बैठ गई.

फैजान ने उस का नाम मलिक बताते हुए कहा, ‘‘ये मेरा दोस्त है और तुम्हें इसे भी खुश करना है.’’

इतना सुनते ही मुझे पूरा कमरा गोलमोल घूमता नजर आने लगा. कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि मेरे साथ ये सब क्या हो रहा है. मुझ से किस बात का बदला लिया जा रहा है. मैं ने उस से कहा, ‘‘सुनो फैजान, अब बहुत हो गया, मुझे क्या समझ रखा है तुम ने. मैं तुम्हारी ये घटिया बात कभी नहीं मानूंगी, चाहे जो भी हो.’’

मेरे सख्त तेवर के खिलाफ हमीदा मैदान में दम दिखाने आ गई. वह बोली, ‘‘ठीक है शाहीन, हमारी बात मत मानो. फैजान, अभी इस कमीनी का वीडियो इंटरनेट पर वायरल कर दो. तब इसे समझ आएगा कि हम जो कहते हैं, उसे करते भी हैं.’’

इस के बाद हमीदा से मोबाइल मांगते हुए फैजान मोबाइल पर मुझे वीडियो दिखाते हुए बोला, ‘‘अभी भी वक्त है, ठंडे दिमाग से सोच लो, वरना समाज में मुंह नहीं दिखाओगी.’’

मैं उस के सामने हाथ जोड़ते हुए गिड़गिड़ाई कि मेरे साथ ऐसा मत करो, मैं बर्बाद हो जाऊंगी, मुझ पर रहम करो. लेकिन मेरे गिड़गिड़ाने का उन पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा था. मानो वे लोग इंसान की शक्ल में भेडि़ए हों.

कोई रास्ता न मिलता देख मैं ने गुनाहों में खुद को धकेल दिया. ये सिलसिला इसी तरह चलता रहा और मुझे नएनए लोगों के सामने परोसा जाने लगा. कई बार खुदकुशी की सोची, पर हिम्मत नहीं जुटा पाई.

एक बार फैजान ने मुझे दूसरे शहर के लड़के के सामने पेश कर दिया और मुझ से बोला कि इस से तुम्हारी शादी करा देंगे. लेकिन जब वो बंदा निकाह के वायदे से मुकर गया. तब जा कर मैं ने अपने दिल में ठान लिया कि अब और बरदाश्त नहीं करूंगी. जिन्होनें मेरी आबरू से खिलवाड़ किया है, उन कमीनों को सजा जरूर दिलवाऊंगी इसलिए रिपोर्ट लिखवाने आयी हूं.

‘मोहतरमा आप फ़िक्र न करें, आपको इंसाफ जरूर मिलेगा उन लोगों को किसी हालत में बक्शा नहीं जायेगा’, मुंशी जी ने शाहीन से कहा.

रिपोर्ट दर्ज कर पुलिस ने उन सभी गुनहगारों को गिरफ्तार कर लिया. शाहीन की अश्लील वीडियो भी उनके फ़ोन से बरामद कर ली गयी और तीनो आरोपियों को जेल भेज दिया गया. शाहीन के दिल में इंसाफ की उम्मीद जाग उठी थी.

अजनबी मुहाफिज : 2 शैतानों का सफाया

उन दिनों मैं जिला गुजरांवाला के थाना सदर में तैनात था. मेरा थाना जीटी रोड के मोड़ पर था. सर्दी का मौसम था. मैं  जब थाने पहुंचा तो 2 लोग मेरे इंतजार में बैठे मिले. उन्होंने खबर दी कि नहर के किनारे एक लाश बरामद हुई है.

जिन दिनों अपर चिनाब नहर अपने किनारों तक भर कर बह रही होती है, उस वक्त उस की गहराई करीब 20 फीट होती है. मैं फौरन एएसआई नबी बख्श और एक हवलदार को ले कर मौकाएवारदात पर पहुंच गया. मेरी तजुर्बेकार निगाहों ने लाश को देखने के बाद अंदाजा लगा लिया कि मृतक को एक झटके में मौत के घाट उतारा गया है.

कातिल जो भी था, पहलवान या कबड्डी का अच्छा खिलाड़ी था, क्योंकि मकतूल को गरदन का मनका तोड़ कर मौत के घाट उतारा गया था. यह टैक्निक किसी आम आदमी के बस की बात नहीं है. मकतूल की उम्र 30 के आसपास थी. वह मजबूत जिस्म का स्मार्ट आदमी था, शानदार मूंछों वाला. उस के बदन पर गरम लिबास था, स्वेटर भी पहन रखा था.

पूरी तरह से तलाशी लेने के बाद मृतक के कपड़ों में ऐसी कोई चीज नहीं मिल सकी जो काम की होती. उस के जिस्म पर कोई जख्म भी नहीं था. अब तक वहां काफी लोग जमा हो चुके थे. मैं ने सभी से लाश के बारे में पूछा, लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका. एक बूढ़े आदमी ने गौर से देखने के बाद कहा, ‘‘सरकार, मैं इसे पहचनता हूं. मैं ने इसे देखा है. यह फरीदपुर के चौधरी सिकंदर अली के यहां काम करता था.’’

मैं चौधरी सिकंदर को जानता था. उस से 2-3 मुलाकातें हो चुकी थीं. अच्छा आदमी था. कुछ अरसे पहले उसे फालिज का अटैक हुआ था. तब से वह बिस्तर का हो कर रह गया था. मैं ने हवलदार को लाश के पास छोड़ा और खुद घोड़े पर सवार हो कर एएसआई के साथ फरीदपुर रवाना हो गया. मैं ने हवलदार को कह दिया था कि लाश को पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भेजने का बंदोबस्त कर ले.

फरीदपुर वहां से करीब 8 मील दूर था. हम घोड़ों पर सवार थे. अभी हम ने कुछ ही रास्ता तय किया था कि सामने से 2-3 घुड़सवार आते दिखाई दिए. हम उन्हें देख कर रुक गए. मैं ने उन से पूछा, ‘‘क्या बात है, तुम लोग कहां जा रहे हो?’’

‘‘हम लोग आप के पास ही आ रहे थे. आप को हमारे साथ चलना पड़ेगा. बड़ा हादसा हो गया है.’’ एक नौजवान ने कहा.

‘‘कहां चलना पड़ेगा और क्यों?’’

‘‘फरीदपुर, सरकार. वहां के चौधरी का किसी ने कत्ल कर दिया है. हम यही खबर ले कर आए थे.’’

‘‘तुम चौधरी सिकंदर की बात कर रहे हो?’’

‘‘नहीं जनाब, उन्हें कौन कत्ल करेगा. हम उन के बेटे चौधरी रुस्तम की बात कर रहे हैं.’’ उसी नौजवान ने जिस का नाम राशिद था, जवाब दिया.

‘‘किस ने कत्ल किया है और कब?’’

‘‘कातिल के बारे में तो कुछ पता नहीं सरकार. घटना पिछली रात की है. छोटे चौधरी साहब की लाश उधर डेरे पर पड़ी हुई है.’’

फरीदपुर छोटा सा गांव था. 60-70 घरों की आबादी वाला. मैं ने राशिद से पूछा, ‘‘इस हादसे के बाद से फरीदपुर से कोई गायब है क्या?’’

‘‘हां सरकार. आप को कैसे पता लगा? कल रात से कादिर गायब है. उस की ड्यूटी डेरे पर छोटे चौधरी के साथ होती थी, पर रात को वह ड्यूटी पर पहुंचा ही नहीं.’’

‘‘अब वह पहुंचेगा भी नहीं. वह मारा जा चुका है. तुम लोग मेरे साथ नहर पर चलो और लाश पहचान कर तसदीक कर दो.’’

वे लोग मेरे साथ घटनास्थल पर आए. उन्होंने तसदीक कर दी कि लाश कादिर की थी जोकि छोटे चौधरी का खास आदमी था. मैं ने उन्हें बताया, ‘‘लाश नहर में बहती हुई आई है. किसी ने गरदन का मनका तोड़ कर उसे कत्ल किया है.’’

लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर मैं उन लोगों के साथ फरीदपुर रवाना हो गया. चौधरी सिकंदर तो फालिज की वजह से बिस्तर पर पड़े थे. उन का एकलौता बेटा रुस्तम ही कामकाज देखता था. पहले हम डेरे पर पहुंचे. वे तीनों आदमी मेरे साथ  थे.

डेरा नहर के किनारे खेत के बीचोबीच बना था. इस में फलों के कुछ पेड़ भी लगे थे. यहां नीची छत वाले 3 कमरे थे. सामने बड़ा बरामदा था. डेरे के आसपास भी कुछ लोग खड़े हुए थे. डेरे के एक तरफ कुछ मवेशी बंधे थे.

राशिद मुझे उस कमरे में ले गया, जिस कमरे में लाश थी. यह देख कर मुझे हैरत हुई कि कमरा आलीशान बैडरूम का मंजर पेश कर रहा था. दीवार की एक साइड में बड़ा पलंग बिछा था और उस पर चौधरी की लाश पड़ी थी. मैं ने रुस्तम की लाश की बारीकी से जांच की.

चौधरी की खोपड़ी पर पीछे से किसी भारी चीज से वार किया गया था, जिस से सिर बुरी तरह जख्मी हो गया था. बिस्तर और कपड़े खून में भीगे हुए थे. वार इतना करारा था कि पड़ते ही चौधरी मर गया. उस के बाद मैं ने कमरे का जायजा लिया. मेज पर कच्ची शराब की बोतल और शराब से भरा एक गिलास रखा था. बोतल भी खुली हुई थी. इस का मतलब मकतूल मरने से पहले शराब पी रहा था. यह कमरा शायद अय्याशी के लिए ही बनाया गया था.

पलंग के नजदीक फर्श पर मुझे लाल हरी चूडि़यों के टुकड़े दिखाई दिए. मैं ने ऐहतियात से टुकड़े जमा कर लिए. इस का मतलब था चौधरी के साथ कोई औरत मौजूद थी. चूडि़यों के टुकड़े इस बात की गवाही दे रहे थे कि औरत अपनी मरजी से नहीं आई थी. उसे जबरदस्ती चौधरी की अय्याशी के लिए लाया गया था.

मेरे जहन में एक खयाल आया कि कहीं उस औरत ने ही तो चौधरी को मौत के घाट नहीं उतारा. यह मुमकिन भी था. मैं ने राशिद और ममदू से पूछा, ‘‘रात को चौधरी रुस्तम के साथ डेरे पर कौन था?’’

‘‘हुजूर, यहां तो सिर्फ कादिर ही होता है. पिछली रात भी वहीं था.’’

मैं ने टूटी हुई चूडि़यों की तरफ इशारा करते हुए पूछा, ‘‘यह औरत कौन थी, जिस की जबरदस्ती में चूडि़यां टूटी हैं?’’

‘‘जनाब हमारी बात का यकीन करें. हमें इस बारे में कुछ भी नहीं मालूम. कादिर जानता है. पर अब तो वह मर चुका है.’’

उन की बात में सच्चाई थी. रुस्तम एक अय्याश आदमी था. वह शराब के नशे में था और किसी औरत के साथ उस ने जबरदस्ती की थी. राशिद ने बताया, ‘‘चौधरी रुस्तम अकसर डेरे पर ही रातें गुजारता था. सुबह सवेरे वह हवेली पहुंच जाता था. पर आज जब वह हवेली नहीं पहुंचा तो चौधरी सिकंदर ने हमें यहां भेजा. यहां चौधरी रुस्तम की लाश मिली. हम ने फौरन आप को खबर की.’’

उसी वक्त एएसआई लोहे का रेंच और पाना उठा लाया. उस पर खून और कुछ बाल चिपके हुए थे. यही आलाएकत्ल था, जिस की मार ने चौधरी का काम तमाम कर दिया. यह रेंच पाना पलंग के नीचे से बरामद हुआ था.

उसे ऐहतियात से रखने के बाद मैं ने राशिद से कहा, ‘‘जल्दी ही चौधरी की लाश को अस्पताल ले जाने का बंदोबस्त करो.’’

इस डेरे पर 3 कमरे थे. दूसरे कमरे में कादिर का मुकाम था. तीसरा कमरा स्टोर की तरह काम में आता था. कहीं से कोई भी काम की चीज बरामद नहीं हुई. मैं चौधरी सिकंदर के पास पहुंच गया. वह अपाहिज था. फालिज ने उसे बिस्तर से लगा दिया था. जवान बेटे की मौत ने उसे हिला कर रख दिया था.

मैं ने उसे तसल्ली दी और वादा किया कि मैं बहुत जल्द कातिल को गिरफ्तार कर लूंगा. वह रोते हुए बोला, ‘‘रुस्तम मेरा एकलौता बेटा था. मेरी तो नस्ल ही खत्म हो गई. उस की शादी का अरमान भी दिल में रह गया. उस से छोटी तीनों बहनों की शादियां हो गईं. बस यही रह गया था. मेरी बीवी का भी इंतकाल हो गया है. अब मैं बिलकुल तनहा रह गया.’’

मैं ने उसे तसल्ली दे कर डेरे के हाल सुनाए और पूछा, ‘‘आप को किसी पर शक है क्या?’’

‘‘नहीं जनाब. मुझे कुछ अंदाजा नहीं है.’’

‘‘कादिर को गरदन का मनका तोड़ कर ठिकाने लगाया गया था और लाश नहर में बहा दी गई थी, जबकि रुस्तम को खोपड़ी पर वार कर के खत्म किया गया था. यह किसी ऐसे इंसान का काम है जो दोनों से नफरत करता था. क्या आप फरीदपुर की तमाम औरतों को हवेली में जमा कर सकते हैं, साथ ही अगर आप के गांव में कोई पहलवान हो या कबड्डी का खिलाड़ी हो तो उसे भी बुलवाइए.’’

‘‘मैं अभी इंतजाम करता हूं. हमारे गांव में एक ही पहलवान है सादिक, जो गांव की शान और हमारा मान है. बड़ा ही भला आदमी है.’’

थोड़ी देर में गांव की सभी औरतें हवेली में पहुंच गईं. मैं ने चौधरी को बताया, ‘‘मुझे उस औरत की तलाश है जो रात को चौधरी रुस्तम के साथ डेरे पर मौजूद थी. उस की चूडि़यां टूटी थीं. उस के हाथ पर खरोंच या जख्म जरूर होगा.’’

मैं ने चौधरी को चूड़ी के टुकड़े भी दिखाए. मेरी बात सुन कर चौधरी सारा मामला समझ गया. मैं ने हवेली में बुलाई जाने वाली तमाम औरतों की कलाइयां बारीकी से चैक कीं पर किसी की कलाई पर ऐसा कोई निशान नहीं मिला. मुझे बताया गया बस एक औरत इस परेड में शामिल नहीं है, क्योंकि उसे बुखार है.

मैं ने उस औरत से मिलना जरूरी समझा. उसे सब नूरी मौसी कहते थे. मैं उस के घर पहुंचा. नूरी कोई 50 साल की मामूली शक्ल की औरत थी. उसे देख कर मेरी उम्मीद खत्म हो गई पर उस से बात करना जरूरी समझा. मैं ने उसे सारी बात बताई. उस ने अपनी कलाई आगे की.

मैं ने जल्दी से कहा, ‘‘नहीं नूरी मौसी, तुम्हारी कलाई चैक करने की जरूरत नहीं है. अगर तुम मुझे यह बता सकती हो कि रात चौधरी के डेरे पर कौन औरत थी, जिस ने चौधरी की जान ली तो बड़ी मेहरबानी होगी. वैसे मुझे एक मर्द की भी तलाश है जिस ने कादिर को मौत के घाट उतारा है.’’

नूरी बहुत समझदार औरत थी. सारी बात समझ गई. कहने लगी, ‘‘सरकार, मेरा अंदाजा है चौधरी के साथ जो औरत डेरे पर थी, वह जरूर बाहर की होगी. फरीदपुर की नहीं हो सकती. क्योंकि यहां आप ने सभी को चैक कर लिया है.’’

‘‘तुम्हारे इस अंदाजे की कोई वजह है?’’

‘‘जी सरकार, मैं ने कल दिन में 2 अजनबी औरतों को कादिर से बात करते देखा था.’’

नूरी की बात सुन कर आशा की एक किरण जगी. मैं ने जल्दी से पूछा, ‘‘तुम ने उन औरतों को कहां देखा था?’’

‘‘डेरे के करीब, नहर के किनारे.’’ उस ने जवाब दिया.

‘‘ओह. क्या तुम बता सकती हो कि वे क्या बातें कर रहे थे?’’

‘‘नहीं जनाब, मैं जरा फासले पर थी. बात नहीं सुन सकी. पर यह पक्का है वे फरीदपुर की नहीं थीं.’’

‘‘नूरी, तुम ने बड़े काम की बात बताई. मैं तुम्हारा शुक्रगुजार हूं. बस एक काम और करो, उन के हुलिए और कद के बारे में तफसील से बताओ जिस से उन्हें ढूंढने में आसानी हो जाए. तुम ने उन की शक्लें तो गौर से देखी होंगी?’’

‘‘जी देखी थीं. साहब वे 2 औरतें थीं. उस में से एक जवान 19-20 की होगी. लंबा कद, गोरा रंग, बड़ीबड़ी आंखें बहुत खूबसूरत थी. उस ने फूलदार सलवार कुरते पर काली शौल ओढ़ रखी थी. उस के साथ वाली औरत अधेड़ थी. काफी मोटी, कद छोटा, रंग सांवला बिलकुल फुटबाल जैसे लगती थी. उस की नाक पर एक मस्सा था. उस ने भूरे रंग का जोड़ा और नीला स्वेटर पहन रखा था.’’

शुक्रिया कह कर मैं उस के घर से निकल आया. फरीदपुर में मेरा काम करीब करीब खत्म हो गया था. पहलवान सादिक से आज मुलाकात मुमकिन न थी. क्योंकि वह बाहर गया हुआ था.

अगले दिन सुबह मैं ने सरकारी फोटोग्राफर और आर्टिस्ट को थाने बुलवाया और उन दोनों औरतों का हुलिया बता कर स्केच बनाने को कहा. स्केच तैयार होने पर मैं ने उस स्केच के 10-12 प्रिंट बनवाए. साथ ही बताने वालों को भी जता दिया कि ये दोनों औरतें अगर कहीं भी दिखाई दें तो मुझे फौरन खबर करें.

फिर उन तसवीरों के आने पर मैं ने उन्हें जरूरी जगहों पर तलाश करने के लिए सिपाहियों की ड्यूटी लगा दी. शाम को दोनों पोस्टमार्टम शुदा लाशें थाने पहुंच गईं. दोनों की मौत का वक्त 10 और 11 बजे के बीच का था.

रुस्तम की मौत खोपड़ी पर लगने वाली करारी चोट से हुई थी, जब वह शराब के नशे में धुत था. रेंच पाने पर उसी का खून और बाल थे और कादिर की गरदन का मनका एक खास टैक्निक से तोड़ा गया था और फिर उसे नहर में डाल दिया गया था. मैं ने लाशें कफन दफन के लिए चौधरी साहब के यहां भिजवा दीं.

अब मुझे उन दोनों औरतों की तलाश थी. फोटो बन कर आ गए थे. सिपाही उन की तलाश में भटक रहे थे. दूसरे दिन शाम को एक सिपाही खबर ले कर आया कि इन दोनों औरतों को रेलवे प्लेटफार्म पर देखा गया है.

मैं फौरन रेलवे स्टेशन रवाना हो गया. स्टेशन मास्टर ने बड़ी गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया. मैं ने उन दोनों औरतों के बारे में पूछताछ शुरू कर दी.

उस ने बताया, ‘‘वह लड़की गलती से इस स्टेशन पर उतर गई थी. वह बहुत परेशान थी. उसी दौरान यह मोटी औरत उसे मिल गई. दोनों काफी देर तक एक बेंच पर बैठ कर बातें करती रहीं. उस के बाद मोटी औरत उस का हाथ पकड़ कर स्टेशन से बाहर ले गई. हो सकता है, वे एकदूसरे को जानती हों पर पक्का नहीं है.’’

मैं ने पूछा, ‘‘आप ने कहा वह लड़की गलती से उतर गई थी. वह जा कहां रही थी?’’

‘‘जिस गाड़ी से वह उतरी थी, वह रावलपिंडी से लाहौर जा रही थी. मुझे यह नहीं पता वह कहां जा रही थी क्योंकि मेरी उस से कोई बातचीत नहीं हुई थी. फिर वह मोटी औरत के साथ बाहर चली गई थी.’’

स्टेशन मास्टर का शुक्रिया अदा कर के मैं बाहर आ गया. जिन दिनों की यह बात है उन दिनों स्टेशन के बाहर मुश्किल से 2-3 तांगे खड़े रहते थे. मैं एक तांगे की तरफ बढ़ा. कोचवान बूढ़ा आदमी था. मैं ने उस से कहा, ‘‘चाचा, यह फोटो देख कर बताओ. मुझे इन दोनों की तलाश है. ये दोनों औरतें 3-4 दिन पहले स्टेशन से निकल कर तांगें में बैठ कर कहीं गई थीं. क्या तुम बता सकते हो वे किस के तांगे में गई थीं?’’

चाचा ने जवाब दिया, ‘‘14 तारीख को ये दोनों औरतें गुलाम अब्बास के तांगे में बैठ कर छछेरीवाल गई थीं, क्योंकि गुलाम अब्बास का रूट स्टेशन से छछेरीवाल तक ही जाता है क्योंकि वह खुद वहीं रहता है.’’

मैं ने कहा, ‘‘चाचा, हमें छछेरीवाल ही जाना है और गुलाम अब्बास से मिलना है.’’

मैं अपने 2 सिपाहियों के साथ छछेरीवाल रवाना हो गया. वह हमें सीधे गुलाम अब्बास के घर ले गया. मैं पुलिस की वरदी में था. पहले तो वह घबरा गया. मैं ने दोनों फोटो दिखा कर उन औरतों के बारे में पूछा तो वह फौरन ही बोला, ‘‘जी सरकार, इन दोनों औरतों को 14 दिसंबर की दोपहर रेलवे स्टेशन से छछेरीवाल लाया था. इस में से मोटी औरत को मैं जानता हूं. इस का नाम गुलशन है. सब इसे गुलशन आंटी कहते हैं पर वह गोरी खूबसूरत लड़की मेरे लिए नई थी.’’

उस ने हमें गुलशन के घर का पता बता दिया. हम वहां पहुंचे. घर के बाहर एक गंजा बूढ़ा आदमी फल और सब्जी का ठेला लगाए बैठा था. उस ने जल्दी से हमें सलाम किया. मैं ने उस से गुलशन आंटी के बारे में पूछा. वह बोला, ‘‘गुलशन मेरी बीवी है.’’

मैं उस के साथ घर के अंदर गया. धीरे से उस ने पूछा, ‘‘हुजूर, कुछ गलती हो गई है क्या?’’

‘‘हां, एक केस में उस से पूछताछ करनी है.’’ वह बड़बड़ाया, ‘‘वह जरूर फिर कोई कमीनी हरकत कर के आई होगी.’’

‘‘क्या तुम्हारी बीवी हमेशा कोई लफड़े करती रहती है?’’

‘‘बस सरकार, वह ऐसी ही है मेरी कहां सुनती है.’’

उसी वक्त अंदर के कमरे से एक तेज आवाज आई, ‘‘तुम्हारा दिल दुकान पर नहीं लगता. घर में क्यों चले आते हो?’’

मैं ने कहा, ‘‘इसे बाहर बुलाओ.’’

उस ने उसे आवाज दी, ‘‘गुलशन बाहर आओ. तुम से मिलने कोई आया है.’’

घर का दरवाजा एक झटके से खोल कर जो औरत बाहर आई, वह गोलमटोल, 45 साल की औरत थी. उस के चेहरे पर चालाकी और कमीनापन झलक रहा था. हमें देखते ही उस ने दरवाजा बंद करना चाहा. मैं ने पांव अड़ा दिया और तेज लहजे में कहा, ‘‘गुलशन, सीधे सीधे हमारे सवालों के जवाब दो. नहीं तो मैं हथकड़ी डाल कर ले जाऊंगा.’’

मेरी धमकी का असर हुआ. वह हमें अंदर ले गई जहां 2 पलंग बिछे थे. हम उन पर बैठ गए.

‘‘गुलशन, 24 दिसंबर को जो लड़की तुम्हारे साथ तुम्हारे घर आई थी, वह कहां है?’’

‘‘कौन सी लड़की सरकार?’’

सिपाही ने फौरन ही फोटो निकाल कर उस के सामने रख दिया.

‘‘अच्छा! आप इस की बात कर रहे हैं. यह तो फरजाना है. मेरी रिश्ते की भांजी.’’ वह मजबूत लहजे में बोली, ‘‘वे लोग लालामूसा में रहते हैं. फरजाना मुझ से मिलने आई थी. मैं उसे लेने रेलवे स्टेशन गई थी.’’

मैं समझ गया, वह सरासर झूठ बोल रही है. मैं ने उस के आदमी से पूछा, ‘‘तुम कभी फरजाना से मिलने लालामूसा गए हो?’’

वह हड़बड़ा गया, ‘‘नहीं…हां…जी…नहीं…’’

अब मैं गुलशन की तरफ बढ़ा और डांट कर कहा, ‘‘देखो गुलशन, तुम सच बोल दो उसी में भलाई है. वरना मैं तुम से बहुत बुरी तरह पेश आऊंगा. जिस लड़की को तुम अपनी भांजी बता रही हो, उस से तुम स्टेशन पर पहली बार मिली थी. उस से तुम्हारा कोई रिश्ता नहीं है. अगर होता तो तुम हरगिज उसे कादिर के हवाले नहीं करती. तुम्हें अंदाजा भी नहीं है कि फरीदपुर में कैसी कयामत बरपी है. तुम जिस लड़की को बहला फुसला कर अपने साथ लाई थीं, 2 रोज बाद उसे तुम ने कादिर के हवाले कर दिया.’’

‘‘मैं किसी कादिर को नहीं जानती.’’

‘‘बकवास बंद करो. तुम बहुत ढीठ और बेशर्म औरत हो. थाने जा कर तुम्हारी जुबान खुलेगी.’’

उसे भी तांगे में बैठा कर हम थाने आ गए. मैं ने एक हवलदार को बुला कर गुलशन को उस के हवाले करते हुए कहा, ‘‘यह आंटी गुलशन हैं. इन्होंने एक लड़की चौधरी रुस्तम के डेरे पर भिजवाई थी, पर अब गूंगी हो गई हैं. तुम्हें रात भर में इसे अच्छा करना है. तुम्हारे पास जुबान खुलवाने के जितने मंत्र हैं, सब आजमा लो.’’

वह गुलशन आंटी को ले कर चला गया. उसी वक्त सादिक पहलवान मुझ से मिलने पहुंचा. ऊंचा पूरा मजबूत काठी का आदमी था. चेहरे से ही शराफत टपकती थी. मैं ने उस से काफी पूछताछ की.

सब से बड़ी बात यह थी कि वारदात के एक दिन पहले ही वह कुश्ती के मैच में शामिल होने दूसरे शहर चला गया था, जिस के कई गवाह थे. चौधरी सिकंदर के मुताबिक वह सच्चा और खरा आदमी था और फरीदपुर की शान था. वह 3 मैच जीत कर आया था. मैं ने उसे जाने दिया. शाम हो चुकी थी. मैं भी अपने क्वार्टर पर चला गया.

अगली सुबह तैयार हो कर मैं थाने पहुंचा. हवलदार ने खुशखबरी सुनाई कि आंटी गुलशन बोलने लगी है. मैं ने हवलदार से पूछा, ‘‘तुम ने मारपीट तो नहीं की न?’’

‘‘नहीं साहब, सिर्फ पेशाब लाने वाली दवा पिला दी थी और उसे बाथरूम नहीं जाने दिया. मजबूर हो कर उस ने जुबान खोल दी.’’

आंटी गुलशन ने बताया कि वह शहर शहर घूमने वाली औरत है. जब कोई मजबूर, बेबस लावारिस लड़की नजर आती, उस से हमदर्दी जता कर उसे अपने साथ छछेरीवाल ले आती. कुछ दिन खिलापिला कर उसे फरेब में रखती, फिर किसी ग्राहक को बेच देती और अपने पैसे खड़े कर लेती.

कादिर जैसे कई लोगों से उस की जानपहचान थी, जिन्हें वह लड़कियां सप्लाई करती थी. यह लड़की, जिस का नाम जबीन था, उस ने कादिर के हवाले की थी. कादिर पहले भी रुस्तम के लिए गुलशन से कई लड़कियां ले चुका था. जबीन गुलशन को गुजरांवाला रेलवे स्टेशन पर मिली थी. वह पहली नजर में ही पहचान गई कि वह उस का शिकार है.

वह उस के करीब जा कर बैठ गई. 10 मिनट में ही प्यार जता कर उस की असल कहानी मालूम कर ली. जबीन का ताल्लुक वजीराबाद से था. उस का बाप मर चुका था. उस की मां ने दूसरी शादी कर ली थी. सौतेला बाप उस पर बुरी नजर रखता था. कई बार उसे परेशान भी करता था.

जब उस ने मां से शिकायत की तो मां ने उलटा उसे ही मुजरिम ठहराया. तंग आ कर जबीन घर से भाग निकली. जब वह ट्रेन से इस तरफ आ रही थी तो उसे महसूस हुआ कि एक आदमी उस का पीछा कर रहा है. घबरा कर वह अंजान स्टेशन पर उतर गई. वहीं उस की मुलाकात गुलशन से हुई.

गुलशन उसे अपनी मीठी बातों के जाल में फंसा कर अपने घर ले आई. 2 दिन उस की खूब खातिर की और फिर नौकरी दिलाने के बहाने कादिर के पास बेच कर आ गई. उस मासूम को इस छलकपट की खबर ही नहीं लगी.

मैं ने गुस्से से कहा, ‘‘तुम दुनिया की सब से कमीनी औरत हो. जिस इज्जत की हिफाजत के लिए जबीन ने अपना घर छोड़ा था, तुम ने झूठी मोहब्बत का फरेब दे कर उस की इज्जत को नीलाम कर दिया. मैं तुम्हें कठोर सजा दिलवाऊंगा.’’

वो मगरमच्छ के आंसू बहाने लगी, जिस का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ.

‘‘तुम ने क्या कह कर उसे कादिर के हाथ बेचा था?’’

‘‘मैं ने कहा था यह मेरा भाई है. इस के 3-4 बच्चे हैं. इसे बच्चे संभालने के लिए एक औरत चाहिए. यह कह कर मैं ने उसे कादिर के हवाले कर दिया था. वह खुशी खुशी उस के साथ चली गई थी.’’

‘‘अब तुम्हारे पास बचाव का कोई रास्ता नहीं है. मैं तुम्हें मासूम लड़कियों की जिंदगी बरबाद करने के जुर्म में लंबे अरसे के लिए अंदर कर दूंगा.’’

दूसरे दिन मैं वजीराबाद रवाना हो गया. वहां मैं ने जबीन के सौतेले बाप और मां से मुलाकात की. उन लोगों को जबीन के बारे में कुछ पता नहीं था, न ही उन्हें उस की कोई फिक्र थी. उन लोगों ने उसे ढूंढने में भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी. पूछताछ कर के मैं वापस गुजरांवाला आ गया.

यहां भी मैं ने जबीन की काफी तलाश करवाई लेकिन कुछ पता नहीं चला. बाद में किसी ने मुझे बताया कि जिस दिन गुलशन ने जबीन को कादिर के हवाले किया था, उसी दिन से छछेरीवाल से जावेद नाम का एक नौजवान गायब है. वह कबड्डी का बहुत अच्छा खिलाड़ी था.

यह सुन कर मेरे दिमाग में बिजली सी चमकी. मेरी आंखों के सामने कादिर की गरदन टूटी लाश घूम गई. कादिर की गरदन का मनका जिस माहिर अंदाज में तोड़ा गया था, वह किसी पहलवान या कबड्डी के अच्छे खिलाड़ी का ही काम हो सकता था. मैं ने छछेरीवाल में जावेद के जानने वाले लोगों से मिल कर अपने आर्टिस्ट से उस का स्केच बनवाया. उस के सहारे मैं ने जावेद की तलाश शुरू कर दी. 3 महीने गुजर गए.

मामला भी ठंडा पड़ गया. एक दिन अचानक मैं जावेद को ढूंढने में कामयाब हो गया. दरअसल, जावेद और जबीन ने शादी कर ली थी. एक दूरदराज इलाके में दोनों पुरसुकून जिंदगी गुजार रहे थे. जावेद का ताल्लुक छछेरीवाल से था. वह गुलशन के धंधे से अच्छी तरह से वाकिफ था. जब उस की नजर गुलशन के साथ आई जबीन पर पड़ी तो वह दिल हार बैठा. उस ने फैसला कर लिया कि वह इस मासूम लड़की की जिंदगी जरूर बचाएगा.

वह गुलशन की निगरानी करने लगा. जब गुलशन फरीदपुर से जबीन को कादिर के पास ले कर आई, जावेद उस का पीछा कर रहा था. पीछा करतेकरते ही वह रुस्तम के अड्डे पर पहुंच गया. वहीं छिप कर वह रुस्तम वाले बैडरूम में घुस गया और सही मौके का इंतजार करने लगा. रुस्तम को वहां किसी के होने का गुमान भी नहीं था. वह नशे में धुत था.

जब वह जबीन से जबरदस्ती करने लगा तो जावेद ने उसे सोचने समझने का मौका दिए बिना उस के सिर के पिछले हिस्से पर वजनी रेंच पाने से करारा वार किया, जिस से उस की मौत हो गई. यह मंजर देख कर जबीन ने दरवाजे के बाहर दौड़ लगा दी. मारे डर के उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था.

बाहर कादिर मौजूद था. उस ने भी जबीन के पीछे दौड़ लगा दी. जावेद ने भी देर नहीं की. वह उन दोनों के पीछे दौड़ा. रेंच पाना वह रुस्तम के कमरे में पलंग के नीचे फेंक आया था. वे तीनों आगे पीछे दौड़ते हुए नजर के अंदर उतर गए.

जावेद जल्दी ही कादिर तक पहुंच गया और पलक झपकते ही एक झटके से उस ने कादिर की गरदन का मनका तोड़ डाला. पहले तो जबीन यह समझी कि यह वही आदमी है जो ट्रेन में उस का पीछा कर रहा था. पर जावेद ने उसे बताया कि उस ने उसे छछेरीवाल में देखा था और उस पर आशिक हो गया था.

यह सुन कर जबीन की जान में जान आई. जावेद के हाथों 2 कत्ल हो चुके थे. छछेरीवाल जाने का सवाल ही नहीं उठता था. उन दोनों ने मिल कर फैसला किया कि दोनों किसी दूरदराज इलाके में जा कर शादी कर के रहेंगे. इन तमाम हालात में जबीन का कोई कुसूर नहीं था. वह तो खुद हालात और गमों की मारी हुई थी. गिरफ्तारी के वक्त वह उम्मीद से थी.

जावेद ने जो भी किया, जबीन की इज्जत बचाने के लिए किया था. उस ने 2 शैतानों का सफाया कर दिया था, जो इंसान के रूप में भेडि़ए थे. एक हिसाब से उन दोनों का मर जाना अच्छा था.

मेरी नजर में जावेद का कातिल होना हालात का तकाजा था. मैं ने जावेद के लिए क्या सजा चुनी, यह मैं आप को नहीं बताऊंगा. यह आप की जहानत के लिए एक चैलेंज है, खुद सोचें और फैसला करें.

पिज्जा बौय

फोन की घंटी बजते ही अमित ने फोन निकाल कर स्क्रीन पर नजर डाली. फोन रीता यानी बौस का था, इसलिए उस ने झट से रिसीव किया. उस के ‘हैलो’ कहते ही दूसरी ओर से रीता ने कहा, ‘‘अमित, तुम्हें अभी तुरंत देवास प्रा.लि. कंपनी के औफिस जाना होगा.’’

‘‘अभी हो..?’’ अमित ने हैरानी से पूछा, ‘‘अभी दिन में?’’

‘‘हां, तुम ने रात की शिफ्ट तो बहुत की है, आज दिन की शिफ्ट कर के देखो, कभीकभी दिन का भी आनंद लेना चाहिए डियर. काम जल्दी ही खत्म हो जाएगा. पार्टी का नाम अवनी मेहता है. अपने लिए यह नई ग्राहक है, इसलिए इस की सेवा जरूरी है. अगर तुम्हें कोई प्राब्लम हो, तो किसी दूसरे से बात करूं?’’ रीता ने कहा.

‘‘नहीं…नहीं… सब ठीक है बौस.’’ अमित रीता को बौस ही कहता था. उस ने आगे कहा, ‘‘लेकिन दोपहर में किसी के औफिस में इस तरह की मीटिंग, ऐसा कैसे हो सकता है?’’

‘‘हमें क्या पता, यह हमारी प्राब्लम थोड़े ही है. हमें तो ग्राहक का फोन आने पर उस की सेवा करनी है, ओके.’’

‘‘ओके बौस, आप एड्रेस दीजिए. मैं  समय पर पहुंच जाऊंगा.’’ अमित ने कहा.

‘‘देवास प्रा.लि. इवेन टावर्स, सेकेंड फ्लोर फेज-5, ग्रेटर नोएडा. पार्टी कंपनी की मालकिन है. जल्दी करो, जाओ और अपने ग्राहक को अटैंड करो. ग्राहक को संतुष्ट करना ही हमारा लक्ष्य है, यह तो तुम जानते ही हो?’’

अमित की मोटरसाइकिल रीता द्वारा लिखाए गए पते की ओर चल पड़ी. काम कैसा भी हो, कोई भी हो बौस का फोन आने पर जाना ही पड़ता है. मूड हो न हो, ग्राहक को संतुष्ट करना पहला लक्ष्य होता है. रीता का सिखाया यह सिद्धांत कोई भी काम करा सकता था, अमित यही करता भी आ रहा था.

अमित दिन में ज्यादातर खाली ही रहता था. उस समय भी खाली था. अचानक रीता का फोन आ गया तो उसे निकलना पड़ा. रीता की उस से जानपहचान यानी बातचीत ‘मीट मी’ ऐप द्वारा शुरू हुई थी.

ऐप से फोन नंबर ले कर उस ने रीता को मैसेज भेजा तो उस ने बातचीत के रेट की एक लिस्ट भेज दी थी. इस के अलावा वह कालगर्ल एवं जिगोलो सप्लाई का भी काम करती थी. अमित बेरोजगार था, इसलिए रीता से जुड़ गया. रीता से उस की सिर्फ फोन पर बातें होती थीं. वह उस से कभी मिला नहीं था.

अमित रीता को बौस कहता था. वह फोन पर ही उसे निर्देश देती थी. वह अमित से जैसा कहती थी, वैसा ही करता था. उस ने अमित को धंधे के सारे गुर समझाते हुए कहा था कि ग्राहक को संतुष्ट करना हमारा पहला लक्ष्य है. ग्राहक संतुष्ट होगा तभी हमें मीटिंग के लिए आगे बुलाएगा. रीता का कमीशन अमित पेटीएम द्वारा अदा करता था.

जब वह पहली बार मीटिंग के लिए गया था तो वह सकुचा रहा था. लेकिन रीता ने कहा था कि हमारे धंधे में शर्म और संकोच बिलकुल नहीं चलता. इसी बात को ध्यान में रख कर अमित ने मीटिंग की. उस के बाद से वह एकदम बेफिक्र हो गया. उस ने बौस के सिखाए हर गुर को ध्यान में रखा, इसीलिए अच्छे ग्राहकों के लिए रीता हमेशा उसे ही याद करती थी.

अमित की मोटरसाइकिल फर्राटा भर रही थी. उस के कानों में हवा की सरसराहट के साथ एक नया नाम गूंज रहा था अवनी मेहता. वह सोच रहा था, शायद एकदम नई पार्टी है. यह भी तो हो सकता है कि कोई पुरानी पार्टी नए नाम से आई हो, क्योंकि इस धंधे में कोई भी पार्टी अपना सही नाम नहीं बताती.

सभी पार्टियां अपनी पहचान छुपाते हुए फरजी नाम बताती हैं. नाम ही नहीं, चेहरा भी छुपाती हैं. पुराने और रेगुलर ग्राहकों को ही देखो, मिस जूली का सही नाम शर्मिष्ठा है तो मिसेज शीला दत्ता का नाम शैलजा. इस सब की जानकारी अमित को काफी दिनों बाद हुई थी.

दूसरे की क्या कहें, अमित का ही असली नाम कहां था. बौस ने उसे अमित कह कर बुलाया तो उसे यह नाम जंच गया. बस, वह अमित हो गया. उस की बौस रीता का भी यह असली नाम नहीं होगा. क्योंकि जब वह दूसरों का नाम बदल सकती है तो अपना असली नाम क्यों बताएगी?

बौस हमेशा कहती हैं कभी किसी ग्राहक की असली पहचान जानने की कोशिश मत करना. ऐसा करने से हम ग्राहक का विश्वास और ग्राहक दोनों खो सकते हैं. किसी की प्राइवेसी को डिस्टर्ब न करने से ग्राहक खुश रहेगा और जरूरत पड़ने पर आगे भी उसे याद करेगा.

बौस की एकएक बात की अमित ने गांठ बांध ली थी. वह सिर्फ काम से मतलब रखता था. किसी से भी कोई अटैचमेंट नहीं. डील यानी मीटिंग पूरी होने के बाद वह ग्राहक को पूरी तरह भूल जाता था.

ग्राहकों की अच्छी रिपोर्ट की वजह से ही इस धंधे में नया होने के बावजूद बौस सब से पहले उसे ही फोन करती थी. इस से अमित को लगता था कि बौस को उस के पुरुषार्थ पर पूरा भरोसा है. इतने कम समय में मिली यह सफलता एक तरह से उस की बहुत बड़ी अचीवमेंट कही जा सकती थी.

अमित इवेन टावर्स के पास पहुंच गया. पार्किंग में मोटरसाइकिल खड़ी कर के वह लिफ्ट की ओर बढ़ा, लेकिन छुट्टी का दिन होने की वजह से लिफ्ट बंद थी. उसे लगा, मीटिंग में हिस्सा लेने यानी डील पूरा करने से पहले ही 7 मंजिल की सीढि़यां चढ़तेचढ़ते हाफ जाएगा. लेकिन उसे वहां तक पहुंचना ही था, इसलिए धीरेधीरे सीढि़यां चढ़ते लगा.

ऊपर पहुंच कर उस ने चेहरा साफ किया, क्योंकि उसे पता था कि थका या पसीने से तरबतर देख कर डील फेल होने की संभावना रहती है. ग्राहक को ताजगीभरा, स्वस्थ मुसकराता हुआ खुशहाल चेहरा ही अच्छा लगता है. इसीलिए चेहरे पर हलकी मुसकान लपेट कर वह देवास प्रा.लि. के औफिस के दरवाजे पर पहुंच गया.

बौस ने अमित को पहले ही सिखा दिया था कि अगलबगल का कोई डिस्टर्ब नहीं होना चाहिए. अगर जरूरत न हो तो दरवाजा खटखटाने की भी जरूरत नहीं है. अमित जानता था कि दिन का मामला है. इसलिए होशियार रहने की जरूरत है. दिन की बात हो या रात की. अमित वैसे ही सावधान रहने वाला आदमी था. वह हर काम बहुत होशियारी से करता था. इसीलिए बौस उसे शार्पशूटर कहती थी.

अमित ने दरवाजे पर हाथ रखा, दरवाजा खुल गया. उसे लगा देवास प्रा.लि. का यह दरवाजा शायद उसी के लिए खुला छोड़ा गया है. अंदर जा कर उस ने दरवाजे की सिटकनी बंद कर दी. पूरा औफिस खाली पड़ा था. उस ने महसूस किया कि यह सब पहले से ही तय था.

मिसेज अवनी मेहता अपने चैंबर में होगी. यह सोच कर वह आगे बढ़ा. एसी चल रहे थे, औफिस खाली पड़ा था, इसलिए वातावरण एकदम ठंडा था. उसे ठंडे वातावरण को हौट बनाने की जिम्मेदारी अब अमित की थी. यह उस के लिए कोई समस्या नहीं थी. यह काम वह अब बड़ी आसानी से कर लेता था.

अमित ने मिसेज मेहता का चैंबर खोज निकाला. उन के चैंबर के दरवाजे को भी खटखटाने की जरूरत नहीं थी. उन के कांच के आलीशान चैंबर के शीशे का दरवाजा पहले से खुला था. पास पहुंच कर उसे लगा, मिसेज मेहता किसी से बातें कर रही हैं, इसलिए वह सावधान हो गया. जबकि बौस ने कहा था कि वह औफिस में अकेली हैं.

उस ने ध्यान से देखा तो पता चला वह स्पीकर औन कर के अपनी किसी सहेली से बातें कर रही थीं. बीचबीच में दोनों हाथों से अपने बाल ठीक करने लगती थीं, शायद इसीलिए स्पीकर औन कर लिया था.

उन की बातों में खलल न पड़े, इस के लिए अमित उन की नजरों के सामने से हट कर एक किनारे खड़ा हो गया, जिस से वह उसे देख न सकें. शिष्टाचारवश भी उसे उन की फोन पर होने वाली बातचीत खत्म होने का इंतजार करना चाहिए था.

वैसे तो किसी की व्यक्तिगत बातें उसे नहीं सुननी चाहिए थीं, लेकिन पूरा औफिस खाली होने की वजह से उस नीरव शांति में मिसेज मेहता की एकएक बात अमित को स्पष्ट सुनाई दे रही थी. मिसेज मेहता कह रही थीं, ‘‘अरे जो कुछ भी कहना है, खुल कर कहो शिखा, एकदम बिंदास, औफिस में मैं अकेली ही हूं. पूरा औफिस खाली पड़ा है.’’

मिसेज मेहता की बातें अमित को मजेदार लगीं, इसलिए उस ने उसी ओर कान लगा लिए.

‘‘आज छुट्टी के दिन भी औफिस में, कोई बहुत जरूरी काम था क्या?’’ दूसरी ओर से पूछा गया. फोन का स्पीकर धीमा था, फिर भी तीखी और शहद में घुली मधुर आवाज बाहर खड़े अमित तक आ रही थी.

‘‘छुट्टी है, इसीलिए तो… भई तू समझी नहीं. एक पार्टी बुलाई है, आती ही होगी. समझ गई न?’’ अवनी की आवाज धीमी थी, लेकिन उस में खुशी स्पष्ट झलक रही थी.

दूसरी ओर से हंसने की आवाज आई. अपनी हंसी को एकदम से रोक कर उस ने कहा, ‘‘शरारती लड़की, तू आज भी वैसी की वैसी है अवनी. सच कहती हूं तुझ से ईर्ष्या होती है. तू अपनी लाइफ को अपनी तरह से इंजौय कर रही है. तू सचमुच बड़ी भाग्यशाली है, जो अपनी जिंदगी को अपनी तरह जी रही है.’’

‘‘ईर्ष्या किस बात की भई? मैं जो करती हूं, तू भी तो कर सकती है. इस में परेशानी किस बात की है? ईर्ष्या कर के बेकार में अपना जी हलकान कर रही है. अच्छा एक काम कर, तू भी मेरे औफिस आ जा. हम दोनों साथ साथ…’’ अपने बालों को झटकते हुए मुंह स्पीकर के करीब ले जा कर मिसेज मेहता ने कुछ अलग अंदाज में कहा. अमित को उस की ये अदाएं अच्छी लग रही थीं.

‘‘अवनी, तुम्हारी सोच भी गजब की है? यह क्या कह रही हो तुम? तुम कैसी बातें कर रही हो? ऐसा भी कहीं होता है? फिर मैं उतनी दूर क्यों आऊं? अगर इच्छा हो तो तुम्हारी तरह मैं यहीं…’’  दूसरी ओर से धीमी आवाज में कहा गया.

‘‘इस में इतना उछलने की क्या बात है. हम डबल पेमेंट कर देंगे. अगर आना हो तो जल्दी आ जा, वह आता ही होगा.’’ अवनी ने कहा.

‘‘कौन, मिस्टर मेहता?’’

‘‘अरे मिस्टर मेहता तो बिजनेस टूर पर बाहर गए हैं. इसीलिए तो यह कार्यक्रम बनाया है. वह आने ही वाला होगा.’’

‘‘यार, तुम तो बड़ी स्मार्ट हो. अभी भी पहले जैसी ही. जरा भी नहीं बदली. मौके का फायदा उठाने में जरा भी नहीं चूकती.’’ दूसरी ओर से शिखा ने कहा.

‘‘इस में कुछ खोना तो है नहीं, जिंदगी के मजे लेने हैं. बोल तुझे आना है या नहीं, क्योंकि अब वह आता ही होगा.’’

‘‘अरे कौन आ रहा है, यह तो बता नहीं रही. बस, वह आता होगा यही कह रही हो.’’ शिखा ने थोड़ा खीझ कर कहा.

‘‘पता नहीं, अमित, सुमित जैसा कुछ नाम है. लेकिन हमें नाम से क्या मतलब, यहां तो सिर्फ काम से मतलब है?’’

‘‘डियर शरारती अवनी, तू कभी नहीं सुधरेगी. कालेज में भी तू इसी तरह के नाटक खूब करती थी. सुकेत को तो तूने कभी सांस लेने का भी मौका नहीं दिया. और वह बेचारा स्कौलर स्टूडेंट, क्या नाम था उस का? अरे हां, याद आया, धर्मिल, बेचारे की सारी मर्दानगी तेरे सामने भाप बन कर उड़ जाती थी.

‘‘और वह विपुल, वह बेचारा तो आज भी तेरे जवाब के इंतजार में किसी पार्क की बेंच पर मुंह लटकाए बैठा होगा. अवनी, मुझे पूरा विश्वास है कि प्रतीक को तो तू अभी भी नहीं भूली होगी.’’

स्पीकर फोन से आने वाला तीखा और लंबा अट्टहास औफिस की उस नीरव शांति को भंग कर गया.

‘‘अरे छोड़ न यार शिखा. इन सब को अब क्या याद करना? हमारा काम कुछ इस तरह का होना चाहिए कि दुनिया हमें याद करे. मैं ने ठीक कहा न?’’

‘‘तुम ने गलत कब कहा है. तुम ठीक ही कह रही हो.’’ दूसरी ओर से हंसते हुए शिखा ने कहा.

‘‘अच्छा शिखा तू उसे क्या कहती थी, जिगोलो या कोई पेट नेम?’’

‘‘रियली, मैं इस बारे में कुछ नहीं जानती. लेकिन तमाम हाई सोसाइटी फ्रेंड्स के बीच कुछ इसी तरह कहते सुना है.’’

अपना मुंह फोन के स्पीकर के एकदम करीब ले जा कर अवनी ने थोड़ी धीमी आवाज में कहा, ‘‘नंबर? व्हाट ए फनी नेम? कितना सुंदर, तुम जानती हो हम उसे क्या कहते हैं पिज्जा बौय! है न मजेदार? डिलीवरी बौय! उस से भी मजेदार?’’

‘‘बढि़या है, तुम्हारा यह समय तुम्हारे पिज्जा बौय या डिलीवरी बौय के साथ बढि़या बीते. ओके. बाय…’’

‘‘बाय, फिर फोन करती हूं.’’ कह कर अवनी ने फोन काट दिया.

थोड़ा अस्वस्थ हो कर अमित ने मुंह फेर लिया. तभी मिसेज मेहता की नजर उस पर पड़ी. उन्होंने चौंक कर कहा, ‘‘मेरे खयाल से तुम अमित, अमित पिज्जा बौय… ओके.’’

‘‘यस मैडम, लेकिन…’’ अनजाने में अमित थोड़ा सकुचाते हुए बोला.

‘‘शरमाओ मत, प्लीज कम इन. इधर आओ.’’ अवनी की आवाज अमित की याद्दाश्त को झकझोर रही थी. उस के बुलाने के बावजूद अंदर नहीं गया तो उस ने फिर से कहा, ‘‘क्या हुआ, तुम पिज्जा बौय ही हो न? आई मीन, तुम समझ रहे हो न? जिगोलो बौस को मैं ने फोन किया था, मुझ से कोई मिस्टेक तो नहीं हो रही है? इज देयर एनी प्राब्लम मिस्टर अमित? तुम अमित ही हो न?’’

इतना कह कर अवनी ने रहीसही फारमैलिटी छोड़ कर अपने होंठों को दांतों तले दबा कर बिंदास स्वर में कहा, ‘‘तुम्हें देख कर अगर कोई मिस्टेक हुई भी हो तो चिंता की कोई बात नहीं है.’’

‘‘नहीं मैडम, कोई मिस्टेक नहीं हुई. मिस्टेक होगी कैसे, आप कोई मिस्टेक कर ही नहीं सकतीं. शायद मैं ही आप का अमित हूं, लेकिन… मैं…’’ अमित की अंदर की पहचान उसे खाए जा रही थी.

‘‘तो फिर आ जाओ. मैं ने यह सारा इंतजाम तुम्हारे लिए ही तो किया है. लेट्स स्टार्ट विद अ साफ्टड्रिंक्स माई क्यूट लिटिल पिज्जा बौय कम इन.’’

मिसेज अवनी मेहता बहुत उतावली लग रही थीं. आज ही नहीं, वह हमेशा ही इसी तरह उतावली रहती थीं. लेकिन अमित की स्थिति खराब होती जा ही थी. उस ने कहा, ‘‘सौरी मैडम, मैं कब पिज्जा बौय या डिलीवरी बौय बन गया, मुझे नहीं मालूम. किस ने बनाया, यह भी नहीं मालूम. लेकिन मैं तुम्हारा पिज्जा बौय या डिलीवरी बौय नहीं बन सकता, यह निश्चित है.’’

इतना कहतेकहते अमित पसीने से तर हो गया. एसी के उस ठंडे वातावरण में भी वह इतना हौट हो गया कि गरमी से उस का मन बेचैन हो उठा. मुट्ठियां भींच कर उस ने झटके से औफिस का दरवाजा खोला और सीढि़यों की ओर बढ़ गया. अवनी कुछ समझ नहीं पाई. वह पीछे से ‘अमित…अमित…’ चिल्लाई, उस की आवाजें सीढ़ी उतरते तक अमित का पीछा करती रहीं.

अवनी के इस तरह चिल्लाने से अमित को दो बातें याद आईं. एक तो यह कि मिसेज अवनी मेहता ऐसी पहली कस्टमर थीं, जिन्होंने अपनी पहचान छुपाने के लिए अपना नाम नहीं बदला था, दूसरी यह कि पहली बार बौस द्वारा दिए गए पेट नाम अमित का लाभ उसे आज मिला था.

अच्छा हुआ अवनी ने उसे पहचानने की कोशिश नहीं की, वरना उस के अंदर भी सुकेत, धर्मिल, विपुल या प्रतीक जैसे किसी एक नाम की सच्ची पहचान सामने आ जाती.

लिपस्टिक की चोरी

कालेज फीस के लिए बने अपराधी

”काय बोले? डाक्टर साहेब चा मुलगा मिलता नाही है?’’ शकुनबाई ने आश्चर्य से अपनी पड़ोसन से पूछा.

”हां, शकुनबाई. पर तुम तो उन्हीं के घर पर काम करती हो. तुम्हें अभी तक नहीं पता?’’ पड़ोसन भी आश्चर्य से शकुनबाई की तरफ देखते हुए बोली.

”हां पाम, मेरा काम तो 12 बजे ही खतम हो गया था तो मैं मैडम को बोल कर आ गई थी. उस बखत मैडम नहाने को गई थी और बाबा सो गया था. मैं ने बाबा को आधा घंटा पहले ही दालभात खिला दिया था.’’ शकुनबाई ने पड़ोसन को बताया.

”हां, मगर अब तो 4 बज रहे हैं. 2 साल का बच्चा इतनी देर में कहां जा सकता है?’’ पड़ोसन के स्वर में दुख झलक रहा था.

”देवाची शप्पथ बहुत सुंदर और नाजुक बच्चा है. मैं अभी डाक्टर के घर को जाती.’’ शकुनबाई बोली.

डा. ईनामदार अपने क्षेत्र के प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित डाक्टर थे. वह प्राइवेट प्रैक्टिस ही करते थे. शिशु रोग विशेषज्ञ होने के कारण उन के ज्यादातर पेशेंट बच्चे ही थे.

अब तक आसपास के क्षेत्र में यह बात आग की तरह फैल चुकी थी कि डाक्टर साहब का 2 साल का बच्चा अचानक गायब हो गया है. शकुनबाई जब तक डाक्टर के घर पहुंचती, तब तक पुलिस आ चुकी थी.

”ओ देवा ई काय झाला रे.’’ शकुन घर के अंदर घुसते समय रो रही थी. वह डाक्टर साहब की पत्नी के सीने से चिपक गई. यह काफी स्वाभाविक भी था, क्योंकि बच्चे के जन्म के समय से ही वह उसे संभालती आई है. कई बार तो बच्चा अपनी मां के पास न जा कर शकुनबाई के साथ ही रहता था.

”यह कौन है?’’ पुलिस इंसपेक्टर दिवाकर शर्मा ने डाक्टर से पूछा.

”यह हमारी सर्वेंट है और मेरी शादी के काफी पहले से हमारे यहां ही काम कर रही है.’’ डा. ईनामदार ने बताया.

”आप के घर और कितने सर्वेंट्स हैं?’’ इंसपेक्टर ने अगला प्रश्न किया.

”क्लीनिक पर कंपाउंडर और रिसैप्शनिस्ट सहित कुल 3 और घर पर शकुनबाई के अलावा एक माली है, जो हफ्ते में 2 बार आता है.’’ डाक्टर ने बताया, ”शकुनबाई सुबह 8 बजे आ जाती है और दोपहर को 12 बजे तक अपना काम खत्म कर के चली जाती है. शाम को 5 बजे आ जाती है और 7-8 बजे तक काम कर के चली जाती है.’’

”क्या आज माली आया था?’’ इंसपेक्टर ने फिर पूछा.

”नहीं साहब, माली नहीं आया था.’’ डा. ईनामदार ने जवाब दिया.

”हूं.’’ इंसपेक्टर ने हुंकार भरी, ”तुम्हारा नाम क्या है और तुम्हारे घर में और कौनकौन हैं?’’ इंसपेक्टर शकुनबाई की तरफ मुखातिब हो कर बोला.

”अपन चा नाव शकुनबाई है और मेरा मरद इधरइच एक फैक्ट्री में काम करता है. हमारे 3 बेटे हैं और तीनों ही अभी पढाई करते हैं. बड़ा लड़का अभी 17 बरस का है. वो जब 3 महीने का था, मैं तभी से इधरीच नौकरी कर रही हूं. इस लड़के ने अभी बड़ी परीक्षा पास करी है, कालेज में जाने के वास्ते.’’ शकुन बाई बोल रही थी.

”बड़ी क्लास मतलब?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

”जी, इस के बेटे का अभीअभी एंट्रेंस एग्जाम के थ्रू इंजीनियरिंग कालेज में एडमिशन हुआ है. यह उसी के एडमिशन की बात कर रही है.’’ डा. ईनामदार ने बताया.

”अच्छा अच्छा. और बाकी के दोनों लड़के क्या करते हैं?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

”मंझला वाला अभी 8 किलास में पढ़ता है और सब से छोटा वाला 5वीं किलास में है.’’ शकुनबाई बोली.

”तुम हनी को कब और कैसे छोड़ कर गई थी?’’ इंसपेक्टर ने फिर पूछा.

पुलिस को शकुनबाई पर क्यों हुआ शक

”मैडम ने हनी बाबा को नहलाने के बाद मुझे दे दिया और कहा कि इसे दालभात खिला दो. मैं ने हनी बाबा को दालभात खिला दिया, उस के बाद बाबा को नींद आने लगी तो मैं ने उसे सुला दिया.

”2 बजे मेरा मरद फैक्टरी से खाना खाने आता है, इसी कारन मई चली गई. उस समय मैडम नहा रही थी.’’ शकुन बाई ने बताया, ”मैं रोज ऐसा ही करती हूं.’’

”तुम्हारा घर कहां है?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

”ये रोड पार करने के बाद अगली रोड के पास जो चाल है, मैं उधरिच रहती हूं.’’ शकुन बाई ने बताया.

”मैडम की और इस बाई की कभी आपस में कुछ कहासुनी हुई है क्या?’’ इंसपेक्टर ने डाक्टर से पूछा.

”नहीं साहब, इस पर शक करना बेकार है. ये लोग काफी समय से रह रहे हैं यहां. इस के तीनों लड़के भी दोपहर से ही हनी को ढूंढ रहे हैं.’’ डाक्टर ने बताया.

”आप तीनों लड़कों को बुलवा दीजिए.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

”साहब ये रहे तीनों लड़के.’’ एक सिपाही तीनों लड़कों को कुछ ही देर में ले कर आ गया.

”क्या नाम है तुम्हारा और तुम्हारे छोटे भाइयों का?’’ इंसपेक्टर ने सब से बड़े लड़के से पूछा.

”जी, मेरा नाम श्याम राव है. यह मंझले वाले का गोपाल राव और सब से छोटे वाले का नाम कृष्णा राव है.’’ लड़के ने जवाब दिया.

”तुम्हारा ही एडमिशन पौलिटेक्निक में हुआ है न?’’ इंसपेक्टर ने श्याम राव से पूछा.

”जी, इंजीनियरिंग में.’’ श्याम राव ने जवाब दिया.

”तुम ने हनी को कहां कहां पर खोजा था?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

”जी, हम ने सभी संभावित दिशाओं में लगभग एकएक किलोमीटर तक खोजा था.’’ श्याम राव ने जवाब दिया.

”ठीक से याद कर लो, तुम ने हनी को कहांकहां खोजा था, वरना मुझे याद दिलाने के लिए तुम्हारी 2-4 हड्डियाँ तोडऩी पड़ेंगी.’’ अब तक शांत बैठा इंसपेक्टर एकदम गुस्से में आ गया और वह कड़क और रौबीली आवाज में बोला.

”इंसपेक्टर साहब, कृपया मेरे घर में मारपीट न करें. मेरी पत्नी की हालत वैसे ही खराब हो रही है.’’ डाक्टर विनती करते हुए बोला.

”ठीक है डाक्टर साहब, मैं सब से छोटे लड़के से पूछता हूं. अगर सही जवाब नहीं मिला तो मैं इन सब को थाने ले जाऊंगा. वैसे भी इस सस्पेंस कहानी में सिर्फ 3 ही पात्र हैं. इसलिए मुझे लगता है कि मेरा जवाब यहीं पर मिल जाएगा.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

”हां, बेटे छोटू, क्या नाम है तुम्हारा?’’

”मेरा नाम कृष्णा राव है साहब.’’ छोटा लड़का बोला.

”तुम्हें तुम्हारी उम्र पता है छोटू?’’ इंसपेक्टर ने नरमी से पूछा.

”है साहब, 9 साल.’’ कृष्णा राव बोला.

”तुम्हारा बड़ा भाई बोल रहा था कि तुम ने हनी बाबा को सभी जगह पर देख लिया है.’’ इंसपेक्टर अपनी नरमी कायम रखते हुए बोला.

”जी साहब, सभी जगह देख लिया है.’’ कृष्णा राव ने जवाब दिया.

”तुम्हारे हिसाब से ऐसी कौन सी जगह है, जहां पर तुम लोगों ने नहीं देखा?’’ इंसपेक्टर ने प्रश्न पूछने का अपना अंदाज बदल कर पूछा. इंसपेक्टर को पूरा भरोसा था कि कृष्णा राव इस ढंग से पूछे प्रश्न के जाल में फंस जाएगा.

”साहब, थिएटर के पीछे जो सेफ्टी टैंक है, उस में किसी ने नहीं देखा.’’ कृष्णा राव सचमुच उस जाल में फंस कर बोला.

”तीनों लड़कों को गाड़ी में बिठाओ और चलो थिएटर.’’ इंसपेक्टर बोला, ”आप भी चलिए, डाक्टर साहब.’’

सेफ्टी टैंक में मिली हनी की लाश

डाक्टर के घर से लगभग 800 मीटर दूर एक चौराहा पार करने के बाद एक थिएटर था. जल्दी सब लोग वहां पर पहुंच गए. वहां पर 3 सेफ्टी टैंक थे. बीच वाले सेफ्टी टैंक के ऊपर की फर्श ताजीताजी हटी हुई लग रही थी. इंसपेक्टर ने तुरंत ही उस के अंदर आदमी उतारे. कुछ ही देर में हनी की लाश उन के हाथों में थी.

”हां, तो श्याम राव, बताओ तुम ने यह काम कैसे और क्यों किया? इतने सालों का विश्वास क्यों तोड़ा?’’ इंसपेक्टर श्याम राव की तरफ मुखातिब हो कर बोला.

”मगर इंसपेक्टर साहब, आप को कैसे मालूम हुआ कि यह काम श्याम राव ने ही किया है.’’ डा. ईनामदार बच्चे की लाश को छाती से चिपकाते हुए रोतेरोते बोले.

”डाक्टर साहब, इस कहानी में जैसा कि मैं ने पहले भी बोला था कि सिर्फ 3 ही किरदार थे आप, आप की पत्नी और शकुनबाई. हम चाहते तो शकुनबाई को उसी समय गिरफ्तार कर लेते. मगर ऐसा करने पर हम असली कातिल और उस के मोटिव तक कभी नहीं पहुंच पाते. फिर दिल को छूने वाली मनोरंजक कहानी सामने नहीं आ पाती. क्योंकि कोई भी मां अपने बच्चों को मुसीबत में डालना नहीं चाहेगी.

”यही कारण था कि हम ने पहले श्याम राव से पूछताछ की तथा मंझले लड़के को छोड़ कर सब से छोटे लड़के से पूछताछ की. अगर हम मंझले लड़के से भी पूछताछ करते तो शायद छोटा लड़का सतर्क हो जाता. और वह भी सीखे सिखाए जवाब ही देता.’’ इंसपेक्टर डाक्टर को समझाता हुआ बोला.

”मुझे कितना विश्वास था शकुनबाई के परिवार पर. वह पिछले 17 सालों से हमारे यहां परिवार के सदस्य की तरह काम कर रही है.’’ डा. ईनामदार के स्वर में नफरत झलक रही थी.

”खैर. हां, तो श्याम राव तू कुछ बोलेगा या इन सिपाहियों को बोलूं यहीं पर सबक सिखाने को?’’ इंसपेक्टर अपने लहजे में बोला.

”साहब, मेरा एडमिशन इंजीनियरिंग कालेज में हुआ है. दाखिले के लिए शुरू में ही 25 हजार रुपए देने थे. इतने पैसे हमारे पास नहीं थे. पिताजी ने अपनी फैक्ट्री में बात की तो उन्होंने 10 हजार रुपए देने की स्वीकृति दे दी थी.

”मां ने डाक्टर साहब से बात की तो डाक्टर साहब ने यह कहते हुए मना कर दिया कि जब इतनी बड़ी फैक्ट्री वाले 10 हजार दे रहे हैं तो वह उसे 15 हजार कैसे दे सकते हैं. वह अधिकतम 5 हजार रुपयों की ही मदद कर सकते हैं.

”रुपयों के कारण मेरे भविष्य का सपना चौपट हो जाता. इसी कारण मैं ने मां के साथ मिल कर यह प्लान बनाया. इस प्लान के बारे में मेरे पिताजी तक को मालूम नहीं था.

”मेरे दोनों भाइयों को इस योजना में शामिल करना बहुत जरूरी था, क्योंकि हनी इन दोनों के साथ हंसता खेलता था. मां ने मुझे बता दिया था कि मैडम 11-साढ़े 11 बजे तक नहाती है. इस के बाद आधे घंटे तक पूजा करती है.

”इसी दौरान मां हनी को खाना खिला कर सुला देती है और वापस घर आ जाती है. हनी रोजाना करीब 3 से 4 घंटे सोता था. इन्हीं 4 घंटों में हम अपनी योजना पूरी कर सकते थे.’’ श्याम राव बता रहा था.

क्यों की गई हनी की हत्या

”यहां तक तो ठीक है. तुम्हारी योजना हनी के अपहरण करने की थी, मगर यह हत्या तो तुम्हारी योजना का हिस्सा नहीं रही होगी?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

”हां साहब, हत्या की बात तो हमारी योजना में शामिल नहीं थी, लेकिन मैं ने अब तक आप को जो बताया, वह योजना का एक हिस्सा ही था. दूसरे हिस्से में इस में एक व्यक्ति और शामिल था. उस का नाम है सरस खान.’’

”सरस खान? कौन है यह सरस खान?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

”थिएटर का प्रोजेक्टर औपरेटर.’’ श्याम राव  ने  बताया, ”वह मेरा मित्र है और उस की ड्यूटी रात के 12 बजे तक रहती है. उसे भी बाजार का कुछ पैसा चुकाना था. इसी कारण उस ने यह आइडिया दिया था. दोपहर 12 बजे का शो चालू होने के बाद वहां रखना भी बहुत आसान था.

”मैडम से इतना तो पता चल ही गया था कि हनी बाबा पिक्चर बहुत शांत हो कर देखता है. योजना के अनुसार सोते हुए हनी बाबा को ले कर प्रोजेक्टर रूम में जाना था. वहां पर गोपाल राव और कृष्णा राव रहते थे, जो उसे बहलाते रहते.

”इस बीच मैं घर आ कर मां के हाथों से बाबा के अपहरण की एक चिट्टी डाक्टर साहब के पास पहुंचा देता. हम सिर्फ 17 हजार रुपयों की ही मांग करते.

”इतनी कम मांग के लिए डाक्टर साहब पुलिस में नहीं जाते और हमारा काम भी बिना किसी शक के हो जाता. यह पैसा उन्हें कृष्णा राव के हाथ शाम 6 बजे का शो खत्म होने के बाद पहुंचाना था. शो खत्म हो जाने की भीड़ में यह सब काम आसानी से पूरा हो जाता. इन 17 हजार में से 15 हजार मुझे और 2 हजार सरस खान को रखने थे.’’ श्याम राव ने बताया.

”अभी भी यह नहीं बताया कि हत्या क्यों और कैसे की.’’ इंसपेक्टर ने बोला.

थिएटर तक क्यों नहीं पहुंचा हनी

”रोजाना जब मां डाक्टर साहब के घर का काम खत्म कर के निकलती थी, उस समय अमूमन मैडम या तो नहा रही होती थी या पूजा कर रही होती थी. ऐसे में मां बाहरी दरवाजे को सिर्फ अटका कर निकल जाती थी.

”उस दिन मैं घर के आसपास ही था. मां ने बाहर निकलते समय मुझे इशारा कर दिया था. मैं तुरंत ही हनी बाबा के कमरे में घुस कर पलंग के पीछे छिप गया.

”मैडम नहा कर निकली और हनी बाबा के कमरे में आई. हनी बाबा को सोता देख निश्चिंत हो कर पूजा करने चली गई. अब हम पर शक करने की संभावना भी समाप्त हो गई थी.

”मौका देख कर मैं सोते हुए हनी बाबा को ले कर घर से बाहर आ गया. हमारे प्लान का सब से खास हिस्सा पूरा हो चुका था. योजना के अगले हिस्से के तहत मुझे सोते हुए हनी बाबा को ले कर थिएटर के प्रोजेक्टर रूम में जाना था.

”मगर थिएटर के पिछवाड़े में पहुंचते ही या तो तेज धूप के कारण या पैदल चलने के कारण लग रहे झटकों से हनी बाबा जाग गया और वह मचल कर जोरजोर से रोने लगा. ऐसी अवस्था में उसे प्रोजेक्टर रूम में ले जाने पर थिएटर के मैनेजर और गेटकीपर जैसे लोगों को पता चल जाता.

”इसी कारण हम उसे वहीं पर सेफ्टी टैंक के ऊपर बैठ कर चुप कराने लगे, मगर वह लगातार रोए ही जा रहा था. तब तक गोपाल राव और कृष्णा राव भी वहां पर आ गए. थिएटर का पीछे वाला इलाका सुनसान ही रहता है.

”हनी बाबा के इस तरह जोरजोर से रोने के कारण हम तीनों घबरा गए. उसे डराने के मकसद से कृष्णा राव ने फर्शी का एक बड़ा सा टुकड़ा उठा लिया. मगर हनी बाबा चुप ही नहीं हो रहा था.

”तब गुस्से में आ कर कृष्णा राव ने उस पर फर्शी के उस टुकड़े से वार कर दिया. यह वार हनी बाबा की कनपटी पर लगा. कुछ देर तड़पने के बाद वह शांत हो गया. शायद वह बेहोश हो गया था.

”यह देख कर हम तीनों घबरा गए और सेफ्टी टैंक के कवर वाली फर्शी हटा कर उसे उस में फेंक दिया. इस के बाद टैंक को फिर से ढंक दिया.’’ श्याम राव ने विस्तार से पूरी घटना बता दी.

यह कहानी सुनने के बाद इंसपेक्टर दिवाकर शर्मा ने आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.