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संजीव गुप्ता बड़ेबड़े सपने देखने वाला नौजवान था. फर्श पर रह कर वह अर्श छूना चाहता था. कभी शहर की एक तंग गली में उस का चूडि़यों का छोटा सा गोदाम था. लेकिन वह रंगबिरंगी चूडि़यों के बीच जिंदगी के गोलगोल रंगीन सपने बुन रहा था. वह सपने ही नहीं देख रहा था, बल्कि धीरेधीरे उन सपनों को हकीकत का जामा भी पहनाने लगा था. पर इस के लिए उसे पैसों की जरूरत थी.

उस ने फिरोजाबाद ही नहीं, आगरा, मथुरा के बड़ेबड़े व्यापारियों से संपर्क बनाए और कमेटी और किटी का काम शुरू किया. लोग उस की कमेटी और किटी में बड़ीबड़ी रकम लगाने लगे. इसी पैसे को वह ब्याज पर उठाने लगा. बाजार में उस का लाखों रुपए ब्याज पर उठ गया. मजे की बात यह थी कि वह ब्याज के रुपए काट कर लोगों को रुपए उधार देता था.

समय पर किस्त न आने से संजीव अलग से ब्याज लेता था. धीरेधीरे वह बड़ा आदमी बनने लगा. पैसा आया तो वह अन्य धंधों में पैसे लगाने लगा. कमेटी में जो लोग पैसा डालते थे, वह दो नंबर का था. संजीव का सारा काम भी 2 नंबर का होता था, इसलिए हर कोई एकदूसरे की चोरी छिपाए रहा. पैसा आया तो संजीव गुप्ता के खर्चे बढ़ने लगे.

लोगों के पैसों से संजीव ने प्रौपर्टी तो बनाई ही, बड़ीबड़ी कारें भी खरीदीं. लेकिन बाद में लोग अपने पैसे मांगने लगे. अब उसे घाटा भी होने लगा था, जिस से लोगों को अपना पैसा डूबता नजर आया. फिर तो वह उस पर पैसा लौटाने के लिए दबाव डालने लगे. लोगों के दबाव से परेशान संजीव गुप्ता नीता पांडेय से 60 लाख रुपए मांगने लगा तो परेशान हो कर नीता ने उस पर मुकदमा कर दिया.

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