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शाम होते ही ठंड बढ़ने लगी तो राजस्थान के जिला श्रीगंगानगर के कस्बा नरसिंहपुरा में गहनों की  दुकान चलाने वाले भूपेंद्र सोनी ने घर जाने का मन बना लिया. क्योंकि ठंड की वजह से अब ग्राहक आने की कोई उम्मीद नहीं थी. भूपेंद्र दुकान बंद कर के खडे़ हुए थे कि उन का मोबाइल बज उठा. स्क्रीन पर जो नंबर दिख रहा था, वह अंजान था, फिर भी उन्होंने फोन रिसीव कर लिया.

‘‘हैलो, जी… मुझे भूपेंद्रजी से बात करनी थी.’’ दूसरी ओर से किसी महिला ने कानों में शहद सा घोल दिया.

‘‘जी बोलिए, मैं भूपेंद्र ही बोल रहा हूं.’’ भूपेंद्र ने कहा.

‘‘अरे यार! मैं सपना बोल रही हूं. बड़ी मुश्किल से आप का नंबर ढूंढ पाई हूं. नंबर मिलते ही आप को फोन किया है. आप तो मुझे भूल ही गए. कभी पूछा भी नहीं कि मैं जिंदा हूं या मर गई?’’ सपना ने एक ही सांस में शिकायत भरे लहजे में उलाहना दे डाला.

‘‘लेकिन मैं ने आप को पहचाना ही नहीं. शायद आप को गलतफहमी हुई है. आप ने गलत नंबर मिला दिया है.’’ भूपेंद्र ने कहा.

‘‘आप चुन्नीराम अंकल के बेटे भूपेंद्र बोल रहे हैं न?’’ सपना ने पूछा.

‘‘हां, मैं उन्हीं का बेटा भूपेंद्र ही हूं.’’ भूपेंद्र ने कहा.

‘‘यह हुई न बात, भला ऐसा कैसे हो सकता है कि मैं जिस भूपेंद्र की फैन हूं. वह मुझे न जाने.’’ सपना ने कहा, ‘‘तुम मर्दों की यही तो फितरत होती है. मतलब निकलने के बाद एकदम से भूल जाते हो.’’

भूपेंद्र जवाब में कुछ कहता, उस के पहले ही सपना ने धीरे से कहा, ‘‘शायद वह आ गए हैं. अभी फोन रखती हूं. कल इसी समय फिर फोन करूंगी. और हां, आप भूल कर भी फोन मत करना.’’

इतना कह कर सपना ने फोन काट दिया.

भूपेंद्र ने एक बार फोन को देखा, फिर गाड़ी में सवार हो कर घर की ओर चल पड़ा. पूरे रास्ते वह सपना के बारे में ही सोचता रहा. घर आने पर भी उस के दिमाग में सपना ही घूमती रही. उस की नसनस में सनसनी सी फैल गई थी.

भूपेंद्र की गहनों की दुकान थी, उस के ग्राहकों में ज्यादातर महिलाएं ही थीं. उसे लगा कि सपना भी उस की कोई ग्राहक होगी. कभी लगता, कोई कालगर्ल तो नहीं है. यही सब सोचते हुए भूपेंद्र सपना की सुंदरता और शारीरिक बनावट को विभिन्न आकार देता रहा. उसी के बारे में सोचते हुए उसे न जाने कब नींद आ गई.

अगले दिन भूपेंद्र का मन न जाने क्यों दुकान पर जाने का नहीं हुआ. उस ने बड़े भाई को दुकान पर जाने के लिए कहा और स्वयं खेतों की ओर चला गया. उस का कई बार मन हुआ कि वह स्वयं सपना को फोन करे, लेकिन उस ने मना किया था, इसलिए वह मन मार कर रह गया. वैसे भी उस ने कहा था कि वह शाम को स्वयं फोन करेगी. शाम तक इंतजार करना उस के लिए मुश्किल था.

दोपहर बाद जब भूपेंद्र घर लौट रहा था तो उस के मोबाइल फोन की घंटी बजी. नंबर सपना का ही था. उस के फोन रिसीव करते ही सपना ने कहा, ‘‘हैलो, भूपेंद्रजी.’’

‘‘जी बोलिए, मैं बोल रहा हूं.’’ भूपेंद्र ने कहा.

‘‘भूपेंद्रजी, मैं आप से मिलना चाहती हूं. इस समय कहां हैं आप?’’

‘‘मैं इस समय खेतों पर हूं. यहीं आ जाओ.’’ भूपेंद्र ने कहा.

‘‘पागल हो गए हैं क्या आप. मैं अपनी ससुराल हनुमानगढ़ में हूं. मैं वहां कैसे आ सकती हूं? आप को ही यहां आना होगा. वह आज किसी काम से दिल्ली गए हैं. कल तक लौटेंगे.’’ सपना ने कहा.

‘‘सपना, आज तो नहीं, मैं कल सुबह ही आ पाऊंगा.’’ भूपेंद्र ने कहा.

‘‘सुबह 10 बजे तक पहुंच कर फोन करना. मैं स्वयं आप को लेने आ जाऊंगी. घर खाली है. पूरा दिन आप के लिए… ओके बाय…’’ कह कर सपना ने फोन काट दिया.

सुंदरी से मिले आमंत्रण से भूपेंद्र का रोमरोम रोमांचित हो रहा था. अगले दिन भूपेंद्र को किसी काम से हनुमानगढ़ जाना भी था. उस ने सोचा लगे हाथ यह काम भी हो जाएगा. अगले दिन यानी 9 दिसंबर, 2013 की सुबह भूपेंद्र अपनी कार से हनुमानगढ़ पहुंच गया. उस ने फोन किया तो सपना ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें रिसीव करने चूना फाटक पहुंच रही हूं, आप वहीं इंतजार करें.’’

भूपेंद्र चूना फाटक पहुंच गया. कार को सड़क के किनारे खड़ी कर के वह सपना का इंतजार करने लगा. थाड़ी देर बाद सपना वहां पहुंच गई तो चाहत की उम्मीदों के सहारे दोनों ने एकदूसरे को पहचान लिया. आते ही सपना भूपेंद्र की बगल वाली सीट पर बैठ गई. उस के बैठते ही भूपेंद्र ने पूछा, ‘‘बताओ, कहां चलें?’’

‘‘मेरे पड़ोस में एक बुढि़या मर गई है, उस की वजह से मोहल्ले में काफी भीड़ है. ऐसे में घर चलना ठीक नहीं होगा. घंटे, 2 घंटे मटरगस्ती कर के समय गुजारते हैं.’’ सपना ने कहा.

भूपेंद्र ने कार लिंक रोड से अबोहर जाने वाली मुख्य सड़क की ओर मोड़ दी. कुछ दूर आगे सड़क पर एक कार खड़ी दिखाई दी तो सपना ने भूपेंद्र से गाड़ी रोकने को कहा. कार के पास 3 लोग खड़े थे. उन्हें अपना परिचित बता कर सपना उन के पास चली गई.

भूपेंद्र कुछ समझ पाता, इस से पहले ही उन में से 2 लोग उस के पास आ गए. उन्होंने भूपेंद्र को कार की पिछली सीट पर धकेला और उन में से एक ड्राइविंग सीट पर बैठ गया तो दूसरा उस की बगल में. इस के बाद कार फिर रिंग रोड पर चल पड़ी. उस के पीछेपीछे वह कार भी चल पड़ी, जो वहां पहले से खड़ी थी. उस में सपना अपने तीसरे साथी के साथ सवार थी.

अब भूपेंद्र को समझते देर नहीं लगी कि वह किसी शातिर गिरोह के चक्कर में फंस गया है. वहां शोर मचाना भी बेकार था, क्योंकि सड़क लगभग सुनसान थी.  दोनों कारें एक खेत में बनी सुनसान ढांपी (घर) में जा कर रुकीं.

उन तीनों ने भूपेंद्र को खींच कर कार से बाहर निकाला. पहले तो उन्होंने उस की जम कर पिटाई की. उस के बाद उस की चेन, अंगूठी और जेब में पड़ी नकदी छीन ली. साथ ही गाड़ी की आरसी और 2 बैंकों के एटीएम भी ले लिए. उन लोगों ने एटीएम के कोड नंबर पूछे तो भूपेंद्र ने शून्य बैलेंस वाले कार्ड का नंबर बता दिया. जिस में बैलेंस था, उस के कोड नंबर के बारे में उस ने कह दिया कि याद नहीं है.

सारा माल छीन लेने के बाद उन में से एक ने कहा, ‘‘शोहदे, तूने इस लड़की के साथ दुष्कर्म किया है. हम तेरे खिलाफ मुकदमा दर्ज कराएंगे.’’

मुकदमे की बात सुनते ही भूपेंद्र की घिग्घी बंध गई. वह गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘‘मैं बाल बच्चेदार आदमी हूं. मेरी इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी. प्लीज ऐसा मत करो.’’

‘‘अब तू एक ही सूरत में इस मुकदमे से बच सकता है. अगर तू 10 लाख रुपयों की व्यवस्था कर के हमें दे दे तो हम मुकदमा नहीं करेंगे.’’

भूपेंद्र के काफी गिड़गिड़ाने पर मामला 50 हजार रुपए में तय हो गया. जान से मारने की धमकी दे कर चारों ने भूपेंद्र को 2 दिनों में रुपए की व्यवस्था कर के फोन करने को कहा.

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