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जितने भी जघन्य अपराध चार्ल्स शोभराज ने किए, उन के लिए एक हद तक ही उसे दोषी ठहराया जा सकता है. क्योंकि गलत नहीं कहा जाता कि मां के पेट से कोई मुजरिम नहीं बल्कि एक बच्चा पैदा होता है, जो कच्ची मिट्टी की तरह होता है. जैसी परवरिश, माहौल और हालात उसे मिलते हैं, वह उन में ढलता जाता है.

चार्ल्स शोभराज बीती 21 दिसंबर को 19 साल की लंबी सजा काटने के बाद नेपाल की एक जेल से रिहा हुआ. वह जुर्म की दुनिया में एक किंवदंती बन चुका है, जो रिहाई के बाद भी सुर्खियों में रहा.

उसे देख कर लगता नहीं कि वह कभी खूंखार और पेशेवर मुजरिम रहा होगा. जब वह जेल से बाहर आया तो एक संभ्रांत, रईस और समझदार बुजुर्ग लग रहा था. एकदम फिट चुस्तदुरुस्त ठीक वैसा ही जैसा अपनी जवानी के दिनों में दिखता था. एक कामयाब स्मार्ट बिजनैसमैन, एक मौडल या फिर कोई बड़ा आफीसर.

चार्ल्स की जिंदगी की कहानी वाकई फिल्मों जैसी है, जिस में उतारचढ़ावों की भरमार है. उस में रहस्य है, रोमांच है, उस से भी ज्यादा रोमांस है, हिंसा है, चालाकी भी है. और यह खतरनाक मैसेज भी कि जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास और जोखिम भी कभीकभी दुनिया, समाज, सभ्यता और शांति के लिए खतरा बन जाते हैं, बशर्ते उन्हें सही दिशा न मिले तो. यही सब चार्ल्स के साथ हुआ था.

शोभराज एक अंतरराष्ट्रीय प्रेम कथा का पात्र है जिस का पूरा नाम चार्ल्स गुरुमुख शोभराज होतचंद भवनानी कभी हुआ करता था. कहानी 1940 के दशक से शुरू होती है, जब पूरी दुनिया अस्थिरता के दौर से गुजर रही थी. लोग कमाने, खाने और सेटल होने की चिंता में यहां से वहां पलायन कर रहे थे. भारत भी इस से अछूता नहीं था.

इसी दौर में बड़ी तादाद में भारतीय रोजगार की तलाश में यूरोप और दीगर देशों की तरफ भाग रहे थे, जिन्हें गिरमिटिया के खिताब से नवाजा गया था.

ऐसा ही एक महत्त्वाकांक्षी शख्स था शोभराज हेचर्ड भवनानी, जो सिंधी समुदाय से था. पेशे से दरजी और कपड़ा व्यवसायी. भवनानी 1940 के लगभग वियतनाम गए थे और फिर वहीं के हो कर रह गए.

उन्होंने दक्षिणी वियतनाम के सब से बड़े शहर साइगन में डेरा डाला और थोड़ाबहुत पैसा कमाने के बाद जैसा कि आमतौर पर विदेश जाने वाले लोग करते हैं, प्यार करने लगे. उन की प्रेमिका का नाम था त्रान लोआंग फुन, वह पेशे से सेल्सगर्ल थी.

साइगन शहर, जो अब हो ची मिन्ह के नाम से जाना जाता है, में हेचर्ड ने टेलरिंग की दुकान खोल ली जो ठीकठाक चलती थी. हेचर्ड और त्रान एकदूसरे से प्यार करने लगे, लेकिन उन्होंने शादी नहीं की बल्कि लिविंग टुगेदर में रहे. इन दोनों के प्यार की निशानी एक बेटे की शक्ल में 6 अप्रैल, 1944 को दुनिया में आई, जिसे आज दुनिया चार्ल्स शोभराज के नाम से जानती है.

मांबाप के प्यार से वंचित रहा बचपन

इस वक्त में वियतनाम में कुछ भी ठीक नहीं था. देश फ्रांस से आजाद होने के लिए छटपटा रहा था. राजनीतिक और सामाजिक अस्तव्यस्तता के अलावा हिंसा के चलते लोग सहज तरीके से न तो रह पा रहे थे और न ही बेफिक्री से जी पा रहे थे.

शोभराज चूंकि फ्रांसीसी उपनिवेश में पैदा हुआ था, इसलिए कानून के मुताबिक उसे फ्रांस की नागरिकता मिल गई. यह बाद की बात है कि वह किसी सीमा से बंधा नहीं रहा बल्कि जुर्म के लिए उस ने आधी दुनिया की सैर की और जहां भी गया, वहीं खौफनाक वारदातों को अंजाम दिया और अपने नाम और काम के झंडे गाड़ कर आया.

बचपन में वह उतना ही मासूम था, जितना कि संकर नस्ल के एक बच्चे को होना चाहिए. लेकिन उस की मासूमियत परवान नहीं चढ़ पाई. क्योंकि जल्द ही हेचर्ड और त्रान अलग हो गए. तब शोभराज की उम्र इतनी नहीं थी कि वह साथ रहने के और अलगाव के रत्ती भर भी माने समझता.

हालांकि चार्ल्स शोभराज बनने के बाद भी शायद ही वह कभी समझ पाया हो कि मांबाप अलग क्यों हो गए थे और क्यों पिता ने उसे कभी अपनाया नहीं, जिस के सीने से लगने के लिए वह जिंदगी भर तरसता रहा.

हेचर्ड और त्रान को अलग होने का कोई मलाल नहीं हुआ. शोभराज मां के हिस्से में आया जिस ने फ्रांसीसी सैन्य अधिकारी अलफोंस डार्यु से शादी कर ली. जो एक तरह से शोभराज का सौतेला लेकिन ऐसा वैधानिक पिता हो गया, जिस ने कभी उसे अपना नाम नहीं दिया.

हालांकि सौतेले पिता की तरह अलफोंस ने कभी शोभराज के प्रति क्रूरता नहीं दिखाई, लेकिन कभी पिता की तरह दुलारा भी नहीं. पत्नी के प्रेमी का बेटा होने के नाते शोभराज बस उस के लिए था, इस से ज्यादा कुछ नहीं था. यानी वह पिता के प्यार और गोद से महरूम रहा और यह बात जिंदगी भर शोभराज को सालती भी रही.

लेकिन धीरेधीरे शोभराज का मन सौतेले पिता के प्रति भी आक्रोश से भरने लगा. क्योंकि वह अपने सगे बेटे यानी शोभराज के सौतेले भाई आंद्रे को तो प्यार करते थे. मां का झुकाव भी आंदे्र की तरफ बढ़ने लगा था. यही आंद्रे जवान हो कर शोभराज के कई अपराधों में सहयोगी भी रहा.

दुनिया समझते और होश संभालते शोभराज के लिए यह सब असहनीय और तकलीफदेह था, जो अपने आप से ही सवाल करता रहता था कि आखिर मेरा कसूर क्या है, जो मुझे मांबाप का प्यार नहीं मिला. मुझे किस गलती की सजा भुगतनी पड़ रही है.

एक उपेक्षित और त्रासद बचपन गुजारने के बाद शोभराज जब किशोर हुआ तो उस ने सवाल पूछना, रोनागाना और झींकना छोड़ दिया और अपने कदम जुर्म की दुनिया में दाखिल कर दिए. पर यह एहसास तब उसे भी नहीं रहा होगा कि वह बड़ा नामी चर्चित और कुख्यात मुजरिम बन जाएगा.

इस के पहले चार्ल्स को एक फ्रेंच बोर्डिंग स्कूल भेजा गया था, जो उस के लिए एक बेकार की जगह थी. वहां उस का मन नहीं लगा और अकसर वह गैरहाजिर रहता था और जब हाजिर रहता था तो टीचर्स के लिए खासी सिरदर्दी पैदा करता रहता था.

अकसर जो बच्चे उपेक्षा और मांबाप की मजबूरी में पलते हैं, उन की जिंदगी आसान नहीं होती. वे प्रतिशोध और भड़ास से भरे होते हैं. यही शोभराज के साथ हो रहा था, जिस के सिर पर किसी का हाथ नहीं था. कोई संरक्षण नहीं था.

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