ढलते सूरज से वातावरण की गरमी जरूर कम हो गई थी, लेकिन गांव बिलासपुर का तापमान अचानक तब बढ़ गया, जब सिपाही रामनाथ रावत के बेटे सूरज रावत और रामानंद की पत्नी लक्ष्मी के बीच घंटों से चल रही तूतू मैंमैं मारपीट तक पहुंच गई.

यह कहासुनी शुरू तो सूरज के मौसेरे भाई हृदयनाथ रावत से हुई थी, लेकिन जैसे ही बात बढ़ी सूरज भी छोटे भाई गुड्डू के साथ वहां पहुंच गया था. लड़ाई झगड़ा शुरू होते ही तमाशा देखने वाले इकट्ठा हो ही जाते हैं, वैसा ही यहां भी हुआ था. लगभग पूरा गांव तमाशा देखने के लिए लक्ष्मी के घर के सामने इकट्ठा हो गया था.

गांव वालों ने बीचबचाव कर के मामला जरूर शांत करा दिया, लेकिन सूरज मारपीट नहीं कर पाया था, इसलिए उस का गुस्सा शांत नहीं हुआ था. वह सब के साथ अपने घर आ गया. गुस्से में होने की वजह से उस ने आव देखा न ताव खूंटी पर टंगी पिता की लाइसेंसी राइफल उतारी और छत पर जा कर लक्ष्मी को निशाना बना कर गोलियां चलाने लगा.

संयोग से उस का हर निशाना चूक गया और गोलियां लक्ष्मी को लगने के बजाय तमाशा देखने वालों को लगीं, जिन में 13 साल के अमरनाथ की मौत हो गई. इस के अलावा परमशीला, प्रीति, सुधा, सीमा, उमेश, पवन कुमार और रोशन घायल हुए. उस की इस हरकत से गांव में भगदड़ मच गई.

किसी ने इस घटना की सूचना फोन द्वारा थाना उरुवा पुलिस को दी तो सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अरुण कुमार राय के हाथपांव फूल गए. थोड़ी ही देर में वह पुलिस बल के साथ गांव बिलासपुर जा पहुंचे. पुलिस कोई काररवाई कर पाती, नाराज गांव वालों ने थानाप्रभारी सहित सभी पुलिसकर्मियों को एक कमरे में बंद कर के बंधक बना लिया. इस के बाद उन्होंने पुलिस की जीप में आग लगा दी.

बंधक बने अरुण कुमार राय ने मोबाइल फोन द्वारा घटना और बंधक बनाए जाने की सूचना उच्च अधिकारियों को दी तो थोड़ी ही देर में पूरा गांव पुलिस छावनी में तब्दील हो गया. सूचना पा कर आईजी जकी अहमद, डीआईजी नवीन अरोड़ा, एसएसपी शलभ माथुर, एसपी (ग्रामीण) यस चेन्नपा, क्षेत्राधिकारी विजय शंकर 4 थानों के थानाप्रभारी तथा भारी मात्रा में पीएसी पहुंच गई थी.

अधिकारियों ने आते ही सब से पहले बंधक बनाए थानाप्रभारी अरुण कुमार राय एवं उन के सहोगियों को मुक्त कराया. इस के बाद मृतक अमरनाथ के शव को अपने कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मेडिकल कालेज भिजवाने के साथ घायलों को इलाज के लिए नेताजी सुभाषचंद्र बोस जिला अस्पताल भिजवा दिया.

घटनास्थल की औपचारिक काररवाई से फारिग हो कर पुलिस ने सूरज द्वारा चलाई गई गोली से मारे गए अमरनाथ के पिता बलिकरन यादव से एक तहरीर ले कर थाना उरुवा में अपराध संख्या 76/2013 पर भादंवि की धाराओं 302/504/506 व 7 क्रिमिनल एमेंडमेंट एक्ट के तहत सूरज रावत, उस के छोटे भाई गुड्डू, मौसेरे भाई हृदयनाथ और चंदन के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. मुकदमा दर्ज होते ही पुलिस ने नामजद चारों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया.

इस के तुरंत बाद पुलिस ने एक अन्य मुकदमा अपराध संख्या 77/2013 पर भादंवि की धाराओं 147, 148, 323, 504, 506, 307, 353, 332, 427, 435 व 7 क्रिमिनल एमेंडमेंट एक्ट तथा 2/3 के तहत ग्रामप्रधान असलम, आजम, पूर्व ब्लाकप्रमुख मुख्तार अहमद, विनोद, पप्पू, प्रवीण, मोतीलाल, उमेश, सागर तथा 200 अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कर के सभी की धरपकड़ शुरू कर दी. ग्रामप्रधान असलम को छोड़ कर बाकी सभी नामजद लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार भी कर लिया.

पुलिस ने गिरफ्तार अभियुक्तों को अगले दिन अदालत में पेश किया, जहां से सभी को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. इसी के साथ आइए अब यह जानते हैं कि ऐसा क्या हुआ था, जिस की वजह से एक नाबालिग मारा गया तो 7 लोग घायल हुए. यही नहीं, गांव के इतने लोग जेल भेजे गए. यह पूरी कहानी कुछ इस तरह की पृष्ठभूमि पर तैयार हुई है, जिस में पुलिस की लापरवाही साफ नजर आती है.

जिला मुख्यालय गोरखपुर से दक्षिण में 60 किलोमीटर की दूरी पर है थाना उरुवा. इसी थाने का एक गांव है बिलासपुर. यादव बाहुल्य इस गांव में ज्यादातर लोग खेतीकिसानी करते हैं. कुछ लोग सरकारी नौकरियों में भी हैं. मेहनती होने की वजह से गांव के ज्यादातर लोग साधनसंपन्न और आर्थिक रूप से मजबूत हैं. 50 वर्षीय रामानंद यादव उर्फ नंदू भी अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी लक्ष्मी के अलावा तीन बच्चे, जिन में 2 बेटे और 1 बेटी राखी थी. रामानंद मेहनती था, जिस की वजह से खेती से ही उस के दिन मजे से कट रहे थे.

रामानंद की एकलौती बेटी राखी कुछ ज्यादा ही समझदार थी. दोनों भाई पढ़ाई छोड़ कर पिता के काम में हाथ बंटाने लगे थे, लेकिन राखी पूरी लगन के साथ पढ़ रही थी. यही वजह थी कि मातापिता ही नहीं, भाई भी उसे पढ़ालिखा कर किसी लायक बनाना चाहते थे. घर में छोटी होने की वजह से वह सब की लाडली भी थी.

बलिया के रहने वाले रामनाथ रावत भी इसी गांव में आ कर रहने लगे थे. वह उत्तर प्रदेश पुलिस में थे. उन की तैनाती थाना उरुवा में हुई थी, तभी उन्होंने गांव बिलासपुर में अपना मकान बनवा लिया था और उसी में परिवार के साथ रहने लगे थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे सूरज और चंदन थे. उन्हीं के साथ उन की साली का बेटा हृदयनाथ भी रहता था. वह होमगार्ड था और थाना उरुवा में ही तैनात था.

रामनाथ का बड़ा बेटा सूरज कोचिंग चलाता था, जिस में गांव के बच्चों के साथ रामानंद की बेटी राखी भी पढ़ने जाती थी. बात तब की है, जब वह छठवीं में पढ़ती थी. राखी साथ पढ़ने वाली अन्य लड़कियों से खूबसूरत तो थी ही, हृष्टपुष्ट होने की वजह से अपनी उम्र से अधिक की भी लगती थी.

चुलबुली होने की वजह से वह हर किसी का मन मोह लेती थी. यही वजह थी कि वह सूरज को भी अच्छी लगने लगी थी. जब भी वह उसे देखता, उस की आंखों में एक अजीब सी चमक आ जाती. उम्र में भले ही राखी छोटी थी, लेकिन सूरज की नीयत को भांप गई थी. जिन कातिल नजरों से सूरज उसे घूरता था, उस से वह समझ गई थी कि गुरु क्या चाहता है.

इसलिए राखी सूरज से सतर्क और होशियार रहने लगी थी. क्लास खत्म होते ही वह अन्य सहपाठियों के साथ निकल जाती थी. पिछले साल मार्च की बात है. राखी घर से कोचिंग पढ़ने गई थी. बच्चों के साथ वह क्लास में भी थी. लेकिन शाम को वह घर नहीं पहुंची. घर वालों को चिंता हुई. उन्होंने उस की तलाश शुरू की. तलाश में सूरज से भी पूछा गया. उस ने बताया कि राखी तो क्लास खत्म होते ही चली गई थी.

सूरज के जवाब से रामानंद परेशान हो उठा. 2 दिनों तक रामानंद और उस का परिवार राखी की तलाश में भटकता रहा. लेकिन उस का कहीं कुछ पता नहीं चला. तीसरे दिन सुबह विक्षिप्त हालत में राखी घर पहुंची तो उस की हालत देख कर कोहराम मच गया. राखी बुरी तरह डरी हुई थी. उस की हालत देख कर मां लक्ष्मी का तो बुरा हाल था. उस के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे.

किसी तरह खुद पर काबू पा कर बेटी को नहलाया धुलाया और भोजन कराया. मां की ममता और अपनों के बीच आने के बाद राखी का डर थोड़ा कम हुआ तो घर वालों के पूछने पर 2 दिनों तक गायब रहने की उस ने जो वजह बताई, वह कलेजा चीर देने वाली थी.

राखी ने बताया था कि वह कोचिंग से घर के लिए निकली तो रास्ते में सूरज ने अपने दोस्तों, चंदन, अमित, नागेंद्र और बृजेश के साथ मिल कर उस का अपहरण कर लिया था और उसे ले जा कर एक कमरे में बंद कर दिया था. उस के बाद 2 दिनों तक लगातार उस के साथ जबरदस्ती करते रहे. उस की हालत खराब हो गई तो उसे गांव के बाहर छोड़ कर भाग गए.

बेटी की करुण कहानी सुन कर मांबाप का दिल खून के आंसू रो पड़ा. कोई छोटीमोटी बात नहीं थी. सीधासीधा सामूहिक दुष्कर्म का मामला था. रामानंद ने गांव वालों को जमा किया और बेटी को साथ ले कर थाना उरुवा जा पहुंचा. बेटी के साथ घटी घटना की नामजद तहरीर थानाप्रभारी को सौंपी. थानाप्रभारी ने काररवाई का भरोसा दे कर सभी को घर भेज दिया.

रामानंद को तहरीर दिए धीरेधीरे 3 महीने बीत गए, लेकिन पुलिस ने उस की तहरीर पर कोई काररवाई नहीं की. बाद में पता चला कि उसी थाने में आरोपी सूरज का बाप रामनाथ रावत तैनात था, इसीलिए रामानंद की तहरीर दबा दी गई थी.

थाने से रामानंद को न्याय नहीं मिला तो उस ने अदालत का दरवाजा खटखटाया. आखिर 8 जून, 2012 को अदालत के आदेश पर पुलिस ने पांचों आरोपियों सूरज, चंदन, अमित, नागेंद्र और बृजेश के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज किया और गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. इसी के साथ होहल्ला होने पर रामनाथ को थाना उरुवा से हटा कर थाना कैंपियरगंज में तैनात कर दिया गया.

बेटे के जेल जाने से रामनाथ रावत तिलमिला उठा. रामानंद और उस का साथ देने वाले ग्रामप्रधान असलम, दिनेश, विजीत और लक्ष्मण को उस ने सबक सिखाने का निश्चय कर लिया. ग्रामप्रधान असलम की पहल पर सूरज और उस के साथियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ था, इसलिए रामनाथ ने उसे अपना सब से बड़ा दुश्मन माना और सब से पहले उसे ही सबक सिखाने के लिए मौके की तलाश में जुट गया.

आखिर उसे मौका मिल ही गया. उसे कहीं से पता चला कि गांव की एक जमीन को ले कर रामकृपाल की पत्नी बिंदू देवी और ग्रामप्रधान असलम के बीच झगड़ा चल रहा है.

पुलिस सूत्रों की मानें तो गांव की उस जमीन पर बिंदू जबरन कब्जा करना चाहती थी. इस बात की जानकारी ग्रामप्रधान असलम को हुई तो उस ने बिंदू के मंसूबों पर पानी फेरते हुए जमीन पर सरकारी कब्जा करवा दिया. ग्रामप्रधान के इस रवैये से बिंदू ने उसे अपना दुश्मन मान लिया.

कहते हैं, दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है. यही सोच कर रामनाथ बिंदू तक पहुंच गया. वह कानून का मंझा हुआ खिलाड़ी था. उस ने बिंदू को ग्रामप्रधान असलम के खिलाफ इतना उकसाया कि अपने फायदे के लिए बिंदू नैतिकअनैतिक किसी भी हद तक जाने को तैयार हो गई.

रामनाथ के कहने पर 21 सितंबर, 2012 को बिंदू अदालत के माध्यम से उरुवा थाना में दुष्कर्म की रिपोर्ट दर्ज करवा दी. न्यायालय के आदेश पर यह रिपोर्ट रामानंद यादव उर्फ नंदू, ग्रामप्रधान असलम, रामानंद के बेटों श्याम, सुंदर, दिनेश, विजीत और लक्ष्मण के खिलाफ दर्ज हुई थी.

मुकदमा दर्ज होते ही पुलिस ने नामजद आरोपियों को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. लेकिन ग्रामप्रधान असलम फरार होने में कामयाब रहा. बाद में उस ने अग्रिम जमानत करा ली, जिस से वह जेल जाने से बच गया.

इस तरह एक बार रामनाथ की फिर विजय हो गई. 6 महीने बाद सूरज और उस के चारों दोस्तों की जमानत हो गई. जेल से बाहर आने के बाद शरम करने के बजाय सूरज की अकड़ और बढ़ गई. दूसरी ओर रामानंद यादव उर्फ नंदू को छोड़ कर बाकी अन्य 5 लोगों को भी सेशन कोर्ट से जमानत मिल गई. इस तरह वे भी जेल से बाहर आ गए.

लक्ष्मी पति की जमानत के लिए एड़ीचोटी का जोर लगाए थी. 5 जुलाई, 2013 को रामानंद की जमानत पर सुनवाई थी, जिस के लिए कुछ जरूरी कागजात उरुवा थाने को अदालत भेजने थे. रामनाथ का रिश्तेदार हृदयनाथ वहीं तैनात था. कहा जाता है कि उस ने वे कागजात इधरउधर करवा दिए, जिस से उस दिन कागजात अदालत देर से पहुंचे और रामानंद की जमानत नहीं हो सकी.

लक्ष्मी के घर का रास्ता रामनाथ रावत के घर के सामने से ही था. पति की जमानत न होने से दुखी लक्ष्मी अपने घर जा रही थी, तभी सूरज के मौसेरे भाई हृदयनाथ ने दरवाजे से उस पर गंदीगंदी फब्तियां कसीं तो दुखी और परेशान लक्ष्मी को उस पर गुस्सा आ गया. उस ने उसे उसी तरह जवाब दे दिया.

लक्ष्मी की बातें हृदयनाथ को इतनी बुरी लगीं कि वह उस से लड़ने लगा. दोनों के बीच तूतू मैंमैं होने लगी तो घर के अंदर बैठा सूरज भी बाहर आ गया. उस के पीछेपीछे उस का छोटा भाई गुड्डू भी था. भाइयों को देख कर हृदयनाथ को ताव आ गया और उस ने आव देखा न ताव, लक्ष्मी के गाल पर दो थप्पड़ लगा दिए.

लक्ष्मी अकेली थी, इसलिए वह उस समय चुपचाप घर चली गई. बड़ा बेटा श्याम घर पर ही था. उस ने बेटे से पूरी बात बताई तो उस का खून खौल उठा. वह रोजरोज की इस किचकिच से ऊब चुका था. अब वह इस किस्से को हमेशा हमेशा के लिए खत्म करना चाहता था. मजे की बात यह थी कि रामनाथ के परिवार से गांव के किसी भी आदमी से नहीं पटती थी. गांव का हर आदमी उस के व्यवहार से परेशान था. उस के बेटे गांव वालों से जब तब बिना मतलब पंगा लेते रहते थे.

यही वजह थी कि पूरा गांव रामनाथ और उस के बेटों के खिलाफ था. लक्ष्मी के साथ मारपीट की जानकारी गांव वालों को हुई तो वे श्याम को ले कर थाने जा पहुंचे. थानाप्रभारी छोटेलाल छुट्टी पर थे. उन की जगह सबइंस्पेक्टर अरुण कुमार राय ने थाने की जिम्मेदारी संभाल रखी थी. संयोग से वह भी उस समय थाने में नहीं थे. श्याम ने मां के साथ हुई मारपीट की जानकारी थाना पुलिस को दी तो उन्होंने काररवाई करने के बजाय उसे थाने से भगा दिया.

श्याम, मां और गांव वालों के साथ थाने से लौट आया. किसी तरह इस बात की जानकारी अरुण कुमार राय को हुई तो उन्होने सूरज, गुड्डू और हृदयनाथ को थाने बुलाया. पूछताछ कर के उन्होंने कोई काररवाई किए बगैर उन्हें वापस भेज दिया.

सूरज, गुड्डू और हृदयनाथ को थाने से छोड़ दिए जाने की जानकारी गांव वालों को हुई तो उन्हें पुलिस पर बहुत गुस्सा आया. वे बीच गांव में इकट्ठा हो कर आगे की रणनीति पर विचार करने लगे. सूरज के दोस्त चंदन को लक्ष्मी के साथ मारपीट और थाने जाने की बात की जानकारी हुई तो मित्र की मदद के लिए वह भी उस के घर जा पहुंचा.

सूरज का वह खास दोस्त था. उसी समय सीनाजोरी दिखाते हुए हृदयनाथ वहां जा पहुंचा, जहां गांव वाले इकट्ठा थे. उस के पीछेपीछे सूरज, गुड्डू और चंदन भी वहां जा पहुंचे. उन्हें पता था कि माहौल अभी गरम है, फिर भी वे वहां चले गए. हृदयनाथ के वहां पहुंचते ही गांववालों ने उसे घेर लिया.

स्थिति मारपीट तक पहुंच गई. हृदयनाथ के साथी पिट सकते थे, इसलिए सभी वापस आ गए. लेकिन सभी गुस्से में थे. इसी का नतीजा था कि कमरे में खूंटी पर टंगी पिता की लाइसेंसी राइफल सूरज ने उतारी और छत पर जा कर गोलियां चलाने लगा.

घटना के समय सूरज का बाप रामनाथ रावत थाना कैंपियरगंज में अपनी ड्यूटी पर था. उस का इस कांड से कोई लेनादेना नहीं था. लेकिन पुत्रमोह में उस ने उसे जो अनुचित बढ़ावा दिया, यह उसी का परिणाम था, जिस में एक निर्दोष मारा गया तो 7 लोग घायल हुए.

कथा लिखे जाने तक फरार ग्रामप्रधान असलम की गिरफ्तारी नहीं हुई थी. पुलिस ने अदालत से 82/83 की काररवाई कर के उस के घर की कुर्की कर ली थी. इस के बावजूद वह हाजिर नहीं हुआ था. गोली कांड में भी गिरफ्तार अभियुक्तों में से किसी की जमानत नहीं हुई थी. पुलिस ने अपनी जांच पूरी कर के अदालत में आरोप पत्र दाखिल कर दिया है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में राखी बदला हुआ नाम है.

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