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उस दिन सुबह जब मैं थाने पहुंचा तो थाने के अहाते में काले रंग की एक कार खड़ी हुई थी. कार के पास 4 लोग खड़े थे, जिन में एक ड्राइवर था. सलामदुआ के बाद अधेड़ व्यक्ति ने अपना  नाम महेश बग्गा बताया. महेश बिजनैसमैन थे और शहर के बाहर अजनाला रोड पर उन की सरिया मिल थी.

अमृतसर के पौश इलाके सिविल लाइंस में उन की आलीशान कोठी थी. उन्होंने बताया कि आज सुबह कोठी से उन के बेटे की नई मोटरसाइकिल चोरी हो गई है. उन का 22-23 साल का वह खूबसूरत जवान बेटा भी साथ था, जिस की मोटरसाइकिल चोरी हुई थी.

उस ने कहा, ‘‘मैं सैर पर जाने के लिए सुबह 5 बजे उठ जाता हूं. आज उठ कर जाने के लिए तैयार हुआ तो गैराज में मोटरसाइकिल नहीं थी. मैं ने घर वालों से पूछा, पर किसी को कुछ पता नहीं था. पड़ोसी ने बताया कि उस ने सुबह करीब पौने 5 बजे मोटरसाइकिल स्टार्ट होने की आवाज सुनी थी.’’

उस ने आगे बताया, ‘‘हमारे यहां हौकर सुबह 5 बजे अखबार डालता है. वह ज्यादातर बाहर से ही अखबार फेंकता था. पिछले कई दिनों से बारिश हो रही थी, इसलिए मैं ने दादीजी से कहा था कि वह सुबह पूजापाठ के लिए उठती हैं तो अंदर से दरवाजा खोल दिया करें, ताकि हौकर अखबार अंदर आ कर बरामदे में डाल सके. वह ऐसा ही करने लगा था.

आज का अखबार बरामदे में पड़ा हुआ था. इस का मतलब करीब 5 बजे हौकर जीता अंदर आया था. मेरी बहन पम्मी का कहना है कि चंद रोज पहले वह मोटरसाइकिल पर झुका हुआ कुछ कर रहा था. उसे देख कर वह ठिठक गया था.

झेंप कर कहने लगा, ‘पैट्रोल गिर रहा था, मैं ने बंद कर दिया है.’ लेकिन जब पम्मी ने देखा तो वहां पैट्रोल गिरने का कोई निशान नहीं था. पम्मी ने उसी दिन मुझ से कहा भी था, ‘भैया, मोटरसाइकिल नई है, अंदर रखा करें.’ मगर मैं ने ही ध्यान नहीं दिया था.’’

मामला कोई खास नहीं था. मैं ने बग्गा और उस के बेटे की तहरीर पर कच्ची रिपोर्ट लिखा दी और 2 सिपाहियों को इस निर्देश के साथ भेज दिया कि न्यूज एजेंसी जा कर हौकर जीते का पता करें. आधे घंटे बाद दोनों सिपाही जीते को थाने ले आए.

जगजीत उर्फ जीता 17-18 साल का खूबसूरत लड़का था. वह नजरें झुका कर मेरे सामने खड़ा हो गया. वह बेहद डरा हुआ था. मैं ने उस से नामपता पूछा तो उस ने बताया कि वह कस्बा जामपुर का रहने वाला है और यहां अमृतसर में अपने एक दूर के रिश्तेदार के पास रहता है. सुबह कालेज जाता है, शाम को बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता है और तड़के अखबार बांटता है.

मैं ने आवाज को थोड़ी सख्त कर के उस से पूछा, ‘‘जीते, तुम ने आज सुबह बग्गा साहब की कोठी से जो मोटरसाइकिल उठाई है, वह कहां है?’’

वह हकला कर बोला, ‘‘इंसपेक्टर साहब, यह आप क्या कह रहे हैं? यह मुझ पर सरासर झूठा इलजाम है. मैं मेहनतमजदूरी कर के चार पैसे कमाता हूं और अपनी पढ़ाई करता हूं.’’

मैं अभी जीते से बात कर ही रहा था कि न्यूज एजेंसी का मालिक और उस का वह रिश्तेदार भी आ गया, जिस के पास वह रहता था. मैं ने उन से कहा, ‘‘इस की खैरियत चाहते हो तो चोरी का माल बरामद करवा दो, वरना सब को रगड़ा लगेगा.’’

लेकिन मेरे डरानेधमकाने के बावजूद भी कोई नतीजा नहीं निकला. जीते ने स्वीकार किया कि वह 5 बजे के करीब कोठी में अखबार डालने के लिए दाखिल जरूर हुआ था, लेकिन उस ने मोटरसाइकिल को छुआ तक नहीं था. उस ने यह भी बताया कि उस वक्त मोटरसाइकिल अपनी जगह मौजूद थी.

पूछताछ में यह बात सामने आई कि जीता पिछले 4-5 दिनों से पैदल घूम कर अखबार डाल रहा था. यह बात शक पैदा करने वाली थी. मैं ने इस की वजह पूछी तो जीते की जगह उस का रिश्तेदार बोला, ‘‘इस की साइकिल कई दिनों से खराब पड़ी है जी, इसलिए इसे पैदल घूमना पड़ता है.’’

मैं ने एक हवलदार से कहा कि वह जीते को ले जा कर थोड़ा शक दूर कर ले. हवलदार ने हवालात में ले जा कर जीते के कसबल निकाल दिए. हवलदार जब उसे मेरे सामने लाया तो वह बुरी तरह कांप रहा था. उस ने हाथ जोड़ कर मुझ से कहा, ‘‘साहब, मैं आप से अकेले में बात करना चाहता हूं.’’

मैं समझ गया कि वह बग्गा और उस के बेटे से कुछ छिपाना चाहता है. इसलिए मैं ने उसे हवालात में भेज दिया, ताकि उस से वहीं बात कर सकूं.

करीब एक घंटा बाद मैं ने जीते से पूछताछ की. उस की आंखों में मर्दाना कशिश थी. डीलडौल भी अच्छा था. अगर उस का संबंध किसी रईस घर से होता, जिस्म पर अच्छा लिबास होता तो राह चलती औरतें उसे मुड़ कर जरूर देखतीं.

वह कहने लगा, ‘‘साहब, मैं गरीब इंसान हूं. सच भी बोलूंगा तो लोग झूठ समझेंगे. लेकिन मेरी जो बेइज्जती हुई है, उस से मेरा मन खून के आंसू रो रहा है. इसलिए अब मैं कुछ नहीं छिपाऊंगा. पिछले 2-3 महीनों से बग्गा साहब की लड़की पम्मी मेरे साथ अश्लील हरकतें कर रही थी. जब मैं सुबह लगभग 5 बजे अखबार फेंकने जाता था, तब वह पायजामा बनियान पहने अपने घर के पार्क में एक्सरसाइज करती मिलती थी.

उस वक्त मुझे दूसरे घरों में अखबार डालने की जल्दी होती थी, लेकिन वह बेवजह की कोई न कोई बात छेड़ कर मुझे रोक लेती थी. बाद में उस ने मुझे फूल देने शुरू कर दिए. वह शरारत करती और फिर बेवजह हंसती रहती. मैं उस से जितना बचने की कोशिश करता था, वह उतना ही सिर चढ़ती जा रही थी. मैं डरता था कि कहीं किसी दिन कोई मुसीबत खड़ी न हो जाए. आखिर वही हुआ, जिस का मुझे डर था.’’

मैं ने कहा, ‘‘मैं समझा नहीं, क्या तुम यह कहना चाहते हो कि तुम्हें फंसाया जा रहा है?’’

‘‘हां साहब, यही कहना चाहता हूं. मुझे नहीं मालूम कि मोटरसाइकिल चोरी हुई है या नहीं. लेकिन पम्मी ने मुझ पर यह जो इलजाम लगाया है कि कुछ रोज पहले मैं मोटरसाइकिल से छेड़छाड़ कर रहा था, बिलकुल गलत है. ऐसा लगता है, मुझे दोषी ठहराने में पम्मी का ही हाथ है. हो सकता है, उस ने अपने किसी चाहने वाले से मोटरसाइकिल गायब करवा दी हो.’’

‘‘तुम यकीन के साथ ऐसा कैसे कह सकते हो?’’

उस ने इधरउधर देखा, फिर संभल कर बोला, ‘‘साहब, कहना नहीं चाहिए पर वह लड़की बहुत तेज है. पिछले इतवार को उस का भाई सैर के लिए नहीं निकला था. इसलिए वह बड़ी निडर दिख रही थी.

मैं अंदर अखबार डालने गया तो वह पिछले लौन की तरफ से आ गई. कहने लगी, ‘सिर्फ अखबार ही बेचते हो या वहां कुछ जानपहचान भी है?’

मैं ने जवाब में कहा, ‘हां, थोड़ीबहुत जानपहचान है.’ इस पर वह मुझे एक फोटो दिखाते हुए बोली, ‘मेरी सहेली की है, इसे अखबार में छपवा दो.’

वह एक औरत की अर्धनग्न तसवीर थी. शायद उस ने किसी मैगजीन से काटी थी. मैं ने उस की तरफ देखा तो वह शरारत से मुसकरा रही थी. मैं ने उस से कहा, ‘‘आप पढ़ीलिखी अच्छे घर की लड़की हैं. ऐसी हरकत करते हुए आप को शरम आनी चाहिए.’’

इस पर वह छूटते ही बोली, ‘‘सारी शरम तो तुम जैसे लड़के ले गए. लड़कियों के लिए कुछ बचा ही नहीं.’’

मैं वापस जाने लगा तो वह पीछे से मेरी कमीज पकड़ कर बोली, ‘‘बड़े नखरे हैं तुम्हारे. बातें तो बड़ीबड़ी करते हो, एक छोटी सी तसवीर नहीं छपवा सकते.’’

मैं ने उस से कहा, ‘‘अपने पिताजी को दे देना, वह बड़े आदमी हैं, छपवा देंगे.’’

मेरी बात सुन वह गुस्से से लाल हो कर मुझे घूरने लगी. फिर बदतमीज कह कर पांव पटकती हुई वहां से चली गई. मैं ने सोचा था कि महीना पूरा होते ही वहां अखबार डालना छोड़ दूंगा, लेकिन इस से पहले ही यह मामला हो गया.

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