कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

लड़का अधेड़ को जलती नजरों से इस तरह देख रहा था, जैसे वह उस का अपराधी हो. अपराधी था भी. वह अपने बचाव के लिए गिड़गिड़ाने लगा, ‘‘मुझे माफ कर दो. मुझे दुष्कर्मी बनाने में इस का हाथ है. फिर मेरे ऊपर तो मुकदमा चल रहा है. सजा तो होनी ही है. हम जैसे पापियों के लिए जेल की कोठरी ही ठीक है.’’

इसी के साथ एक और गोली चली. इस बार लड़के की चीख निकली. गोली चलाने वाली औरत ने कहा, ‘‘कमीने, जेल की कोठरी तेरे लिए कुछ नहीं है. जेल इंसानों के लिए है. तुम जैसे राक्षसों के लिए तो मौत ही उचित सजा है.’’

‘‘मुझे पानी पिला दो.’’ लड़के ने कहा.

‘‘तुम औरतों, मासूम बच्चियों के साथ दुष्कर्म करो और पानी मांगने पर उन्हें पेशाब पिलाओ. अब समझ में आई पानी की कीमत? अब मैं तुम्हें दुष्कर्म की पीड़ा बताऊंगी.’’

तभी 2 लोग और आ गए. वे भी उसी तरह लबादे से ढके थे. उन में से एक के हाथ में लोहे की मोटी रौड थी तो दूसरे के हाथ में तलवार. उन्हें देख कर लड़के ने पूछा, ‘‘ये लोग कौन हैं?’’

‘‘हम कोई भी हों, तुम जैसों के लिए मात्र मांस का टुकड़ा हैं. तुम्हें क्या फर्क पड़ता है कि हम किसी की मां हैं, बहन हैं या पत्नी हैं. तुम्हें तो सिर्फ औरतों की चीखें सुनने में मजा आता है. आज देखते हैं, तुम कितना दर्द बरदाश्त कर पाते हो?’’

‘‘नहीं, हमें माफ कर दो. गोली मार दो, लेकिन हमें तड़पा तड़पा कर मत मारो.’’ दोनों एक साथ गिड़गिड़ाए.

‘‘तुम्हें उस दर्द का अहसास कराना जरूरी है. तुम्हें नपुंसक बना कर छोड़ देना ही तुम्हारे लिए उचित सजा है.’’

‘‘मेरी बच्चियों, मेरी बात सुनो. मैं मरने से नहीं डरता. हत्यारे को अपनी हत्या से डरना भी नहीं चाहिए. मेरी उम्र 50 साल है और ज्यादा से ज्यादा 10-5 साल और जिऊंगा. तुम लोगों को इस पापी देह के साथ जो करना है, करो. लेकिन पहले मेरी बात सुन लो.’’

‘‘अभी भी कुछ कहना बाकी है?’’ तीनों में से एक ने कहा. वह पुरुष था.

‘‘हां, बहुत कुछ कहना है. लेकिन अपनी जान बचाने के लिए नहीं. मैं नहीं जानता कि तुम लोग कौन हो. मैं यह जानना भी नहीं चाहता. इस बच्चे को मैं ने अपने पाप के लिए इस्तेमाल किया. तब मैं ने सोचा भी नहीं था कि मेरे कर्मों का इस पर क्या दुष्प्रभाव पड़ेगा. उसी तरह मेरे दुष्कर्मी होने में मात्र मेरा पुरुष होना ही नहीं है. इस के पीछे समाज की वे गंदगियां हैं, जो हमारे मस्तिष्क को विकृत करती हैं.

‘‘मैं केवल सिनेमा, साहित्य या इंटरनेट को ही इस का दोष नहीं दूंगा. क्योंकि इस का असर कोमल मस्तिष्क पर तो पड़ सकता है, मुझ जैसे थके दिमाग वालों पर नहीं. लेकिन मैं कितनी भी वजहें गिना दूं, इस से मेरे अपराध कम नहीं होंगे. दुष्कर्म पहले भी होते थे. हर ताकतवर ने कमजोर की स्त्री के साथ मौका मिलते ही दुष्कर्म किया. लेकिन अभी जो बाढ़ सी आ गई है, यह समाज में फैला प्रदूषण है.

‘‘स्त्रियों को सम्मान की दृष्टि से न देखना, यह पुरुष प्रधान समाज की देन है. पुरुष औरतों को तुच्छ और कमजोर समझते हैं. जो दंड आप लोग हमें आज दे रहे हैं, अगर यह पहले ही स्त्रियां देना शुरू कर देतीं तो शायद आज यह स्थिति न आती. कोई जवाब देने वाला ही नहीं होगा तो हमला करने वाला कैसे पीछे हटेगा.’’

‘‘यही बकवास सुनानी थी तुम्हें?’’ तीनों में से एक ने पूछा.

‘‘मैं बकवास नहीं कर रहा. मैं मां के पेट से ही दुष्कर्मी बन कर पैदा नहीं हुआ और मेरी हत्या के बाद दुष्कर्म बंद भी नहीं हो जाएंगे. क्या इस में सारा दोष हम मर्दों का ही है? तुम स्त्रियों का कोई दोष नहीं है? क्यों नहीं दिया संसार के पहले दुष्कर्मी को सजा, क्यों सहती रही यह सब, क्यों सृष्टि के आरंभ से ही अबला बनी रहीं, क्यों नहीं दिया उसी समय जवाब?

‘‘तुम्हारी कायरता और कमजोरी की ही वजह से समाज को नियम बनाने पडे़. कानून को स्वयं कठोर बनना पड़ा. आज भी समाज और कानून के भरोसे बैठी हैं औरतें. अकेले नहीं, संगठित हो कर तो हमला कर सकती थीं. जो हालात शुरू में थे, आज वही इतने बिगड़ गए हैं कि दुष्कर्म खत्म करने के लिए आधे से अधिक पुरुषों को मृत्युदंड देना होगा. आप लोगों की कमजोरी की वजह से ही आप लोगों का शोषण होता रहा. सजा ही देनी है तो उन औरतों को भी दो, जो सभ्यता की शुरुआत से यह सब सहती आ रही हैं.’’

‘‘ऐसा नहीं है, जबजब औरतों पर अत्याचार हुए हैं, तब तब विनाश हुआ है. मर्दों को अगर प्रकृति ने शारीरिक रूप से अधिक ताकतवर बनाया है तो स्त्रियों को भी दूसरी शक्तियां दी हैं. प्रकृति किसी के साथ अत्याचार नहीं करती. फूल नाजुक है तो क्या हुआ, खूशबू बिखेरता है, उद्यान की शोभा बढ़ाता है. अगर कोई दुष्ट उसे मसल दे तो इस में फूल का क्या दोष?’’ सब से पहले आई महिला ने कहा.

‘‘एक स्त्री पूरे समाज को प्रभावित करती है. अगर यह ज्यादा है तो कम से कम एक परिवार को तो प्रभावित करती ही है. मकान को घर बनाने वाली स्त्रियां अगर घर को मकान बना दें या बाजार बना दें तो क्या उस घरपरिवार के पुरुष श्रेष्ठ हो सकते हैं?’’

खुशाल की यह बात सुन कर उन तीनों में जो पुरुष था, उस ने कहा, ‘‘खत्म करो इसे. इसी की वजह से मेरी बेटी पागलखाने में मरी थी. यह दुष्कर्मी है. हत्यारा है मेरी बेटी का. डाक्टर होते हुए भी मैं अपनी बेटी को नहीं बचा सका. इस के जुल्म के आगे मेरी चिकित्सा हार गई.’’

खुशाल समझ गया कि यह डाक्टर उसी लड़की का बाप है, जिस के साथ उस ने दुष्कर्म किया था. उसे सजा न होने पर वह लड़की पागल हो गई थी. इस के अनुसार अब वह मर चुकी है. उस ने कहा, ‘‘मेरी मां मेरे पिता की गैरहाजिरी में एक आदमी को बुला कर उस के साथ कमरे में बंद हो जाती थी. एक दिन मेरे चाचा ने उसे देख लिया तो उस ने पिता के सामने रोते हुए चाचा पर दुष्कर्म का झूठा आरोप लगा कर उन्हें जेल भिजवा दिया.

‘‘जमानत पर वापस आ कर जब समाज ने, परिवार ने चाचा को प्रताडि़त किया तो उन्होंने आत्महत्या कर ली. जब मेरे पिता ने अपनी आंखों से मां को गैरमर्द के साथ देख लिया तो मां ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर उन की हत्या कर दी. बाद में पकड़ी गई और जेल चली गई. मां की इस हरकत से मुझे सारी स्त्रियां हत्यारिन और कामलोलुप नजर आने लगीं.

‘‘बड़े होने पर मेरा विवाह हुआ. मेरे साथ भी वही हुआ, जो मेरे पिता के साथ हुआ था. किसी गैर मर्द की संगत की वजह से मेरी पत्नी ने मुझ पर दहेज प्रताड़ना का आरोप लगा कर मुझे जेल भिजवा दिया और खुद अपने आशिक के साथ रंगरलियां मनाती रही. मैं जमानत पर जेल से बाहर आया तो मुझ से तलाक ले लिया. बस उसी के बाद से मैं ने औरतों को अपमानित करना शुरू कर दिया.’’

‘‘इस का मतलब यह हुआ कि तुम 2 औरतों के किए का बदला सारी स्त्री जाति से लेना चाहते थे?’’ लड़की ने पूछा.

लड़की की बात का जवाब देने के बजाय खुशाल ने डाक्टर से कहा, ‘‘डाक्टर साहब, पढ़ेलिखे हो कर आप भी गैरकानूनी काम कर रहे हैं. आप गुस्से में विकृत हो चुके हैं. मेरा भी मनमस्तिष्क विकृत हो चुका है. आप भले मुझे गोली मार दें, लेकिन इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि मेरे दुष्कर्मी होने के पीछे औरतों का हाथ था. बेवफाई और बेहयाई ने मुझे ऐसा बनाया. इस की छाप मेरे मस्तिष्क पर बचपन से पड़ चुकी थी.’’

तीनों में से महिला ने अपना चोंगा उतार फेंका. उस की उम्र 60 साल के आसपास थी. उस ने कहा, ‘‘तुम्हारी बातों से मैं कुछ हद तक सहमत हूं. मैं ने भी अपनी मां की वजह से पिता को तिलतिल मरते देखा था. परिवार की वजह से मैं स्वयं भी काफी समय तक अवसाद में रही. लेकिन मैं ने खुद को संभाला, पढ़ाई की और डाक्टर बन गई. एक बेटी को जन्म दिया, जिसे तुम ने मौत के मुंह में धकेल दिया. तुम्हें अतीत ने विकृत किया, इस की वजह से तुम्हारे अपराध कम नहीं हो सकते. उन्हें माफ भी नहीं किया जा सकता.’’

इस के बाद खुद को डाक्टर कहने वाले ने भी अपना चोंगा उतार दिया. वह उस महिला का पति था. बेटी के साथ हुए अत्याचार का बदला लेने के लिए उन्होंने खुशाल के रिहा होने का इंतजार किया था.

उस के जेल से बाहर आते ही वे उस का अपहरण कर के यहां ले आए थे. उस ने कहा, ‘‘एक डाक्टर होने के नाते मुझे पता है, तुम्हें दंड की नहीं, इलाज की जरूरत है. लेकिन तुम ने मेरी बेटी के साथ जो जुल्म किए हैं, मैं उन्हें बिलकुल नहीं भूल सकता.’’

‘‘गोली मार कर अपने बदले की आग बुझा लीजिए डाक्टर साहब.  मैं भी अपने इस जीवन से ऊब चुका हूं. इस से मैं भी छुटकारा पाना चाहता हूं.’’

‘‘मुझे लगता है, तुम्हारा जिंदा रहना ही तुम्हारे लिए सब से बड़ी सजा है.’’ डाक्टर की पत्नी ने कहा, ‘‘अगर हम ने तुम्हें इस तरह बेरहमी से मार दिया तो तुम में और हम में अंतर ही क्या रह जाएगा?’’

उन दोनों की इस बात से दुखी हो कर उन के साथ आई लड़की ने कहा, ‘‘इन्हें इस तरह छोड़ने के लिए हम ने इतनी मेहनत नहीं की है? इन्हें छोड़ दिया गया तो ये फिर वही करेंगे. इसलिए इन्हें मार देना ही ठीक है.’’

दर्द से बिलबिला रहे लड़के ने कहा, ‘‘तुम लोगों का दुश्मन तो खुशाल है, फिर मुझे क्यों बांध रखा है. इसी की वजह से मेरा जीवन नरक हुआ है. इसे मार दो और मुझे छोड़ दो.’’

‘‘नाबालिग होने की वजह से जिस दुष्कर्म के जुर्म में तुम रिहा हो गए थे, वह जुर्म रिहाई के योग्य नहीं था. कानून की नजर में तुम भले नाबालिग थे, लेकिन अपराध की दृष्टि से नहीं.’’ लड़की ने उस की ओर रिवाल्वर तान कर कहा.

‘‘दीदी…’’ लड़के ने कांपती आवाज में कहा.

‘‘मत कहो मुझे दीदी. तू भाई के नाम पर कलंक है. तुझ से बदला लेने के लिए ये लोग मेरी तलाश कर रहे थे कि जैसा भाई ने किया है, वैसा ही उस की बहन के साथ किया जाए. शुक्र था कि पिता के मित्र होने के नाते ये मुझे अपने घर ले गए, वरना मेरा भी वही हाल होता, जो तूने अपने दोस्तों के साथ मिल कर लड़कियों के साथ किया था. तब तुम यह भी भूल गए थे कि तुम्हारी भी एक बहन है. तू भी किसी का भाई है. वे लड़कियां भी किसी की बहनें थीं. उन का भी भाई रहा होगा. तेरे जैसे हैवान किसी के भाई नहीं हो सकते. मौका मिलता तो तू मुझे भी नहीं छोड़ता.’’

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...