फोन की घंटी बजते ही अमित ने फोन निकाल कर स्क्रीन पर नजर डाली. फोन रीता यानी बौस का था, इसलिए उस ने झट से रिसीव किया. उस के ‘हैलो’ कहते ही दूसरी ओर से रीता ने कहा, ‘‘अमित, तुम्हें अभी तुरंत देवास प्रा.लि. कंपनी के औफिस जाना होगा.’’

‘‘अभी हो..?’’ अमित ने हैरानी से पूछा, ‘‘अभी दिन में?’’

‘‘हां, तुम ने रात की शिफ्ट तो बहुत की है, आज दिन की शिफ्ट कर के देखो, कभीकभी दिन का भी आनंद लेना चाहिए डियर. काम जल्दी ही खत्म हो जाएगा. पार्टी का नाम अवनी मेहता है. अपने लिए यह नई ग्राहक है, इसलिए इस की सेवा जरूरी है. अगर तुम्हें कोई प्राब्लम हो, तो किसी दूसरे से बात करूं?’’ रीता ने कहा.

‘‘नहीं…नहीं… सब ठीक है बौस.’’ अमित रीता को बौस ही कहता था. उस ने आगे कहा, ‘‘लेकिन दोपहर में किसी के औफिस में इस तरह की मीटिंग, ऐसा कैसे हो सकता है?’’

‘‘हमें क्या पता, यह हमारी प्राब्लम थोड़े ही है. हमें तो ग्राहक का फोन आने पर उस की सेवा करनी है, ओके.’’

‘‘ओके बौस, आप एड्रेस दीजिए. मैं  समय पर पहुंच जाऊंगा.’’ अमित ने कहा.

‘‘देवास प्रा.लि. इवेन टावर्स, सेकेंड फ्लोर फेज-5, ग्रेटर नोएडा. पार्टी कंपनी की मालकिन है. जल्दी करो, जाओ और अपने ग्राहक को अटैंड करो. ग्राहक को संतुष्ट करना ही हमारा लक्ष्य है, यह तो तुम जानते ही हो?’’

अमित की मोटरसाइकिल रीता द्वारा लिखाए गए पते की ओर चल पड़ी. काम कैसा भी हो, कोई भी हो बौस का फोन आने पर जाना ही पड़ता है. मूड हो न हो, ग्राहक को संतुष्ट करना पहला लक्ष्य होता है. रीता का सिखाया यह सिद्धांत कोई भी काम करा सकता था, अमित यही करता भी आ रहा था.

अमित दिन में ज्यादातर खाली ही रहता था. उस समय भी खाली था. अचानक रीता का फोन आ गया तो उसे निकलना पड़ा. रीता की उस से जानपहचान यानी बातचीत ‘मीट मी’ ऐप द्वारा शुरू हुई थी.

ऐप से फोन नंबर ले कर उस ने रीता को मैसेज भेजा तो उस ने बातचीत के रेट की एक लिस्ट भेज दी थी. इस के अलावा वह कालगर्ल एवं जिगोलो सप्लाई का भी काम करती थी. अमित बेरोजगार था, इसलिए रीता से जुड़ गया. रीता से उस की सिर्फ फोन पर बातें होती थीं. वह उस से कभी मिला नहीं था.

अमित रीता को बौस कहता था. वह फोन पर ही उसे निर्देश देती थी. वह अमित से जैसा कहती थी, वैसा ही करता था. उस ने अमित को धंधे के सारे गुर समझाते हुए कहा था कि ग्राहक को संतुष्ट करना हमारा पहला लक्ष्य है. ग्राहक संतुष्ट होगा तभी हमें मीटिंग के लिए आगे बुलाएगा. रीता का कमीशन अमित पेटीएम द्वारा अदा करता था.

जब वह पहली बार मीटिंग के लिए गया था तो वह सकुचा रहा था. लेकिन रीता ने कहा था कि हमारे धंधे में शर्म और संकोच बिलकुल नहीं चलता. इसी बात को ध्यान में रख कर अमित ने मीटिंग की. उस के बाद से वह एकदम बेफिक्र हो गया. उस ने बौस के सिखाए हर गुर को ध्यान में रखा, इसीलिए अच्छे ग्राहकों के लिए रीता हमेशा उसे ही याद करती थी.

अमित की मोटरसाइकिल फर्राटा भर रही थी. उस के कानों में हवा की सरसराहट के साथ एक नया नाम गूंज रहा था अवनी मेहता. वह सोच रहा था, शायद एकदम नई पार्टी है. यह भी तो हो सकता है कि कोई पुरानी पार्टी नए नाम से आई हो, क्योंकि इस धंधे में कोई भी पार्टी अपना सही नाम नहीं बताती.

सभी पार्टियां अपनी पहचान छुपाते हुए फरजी नाम बताती हैं. नाम ही नहीं, चेहरा भी छुपाती हैं. पुराने और रेगुलर ग्राहकों को ही देखो, मिस जूली का सही नाम शर्मिष्ठा है तो मिसेज शीला दत्ता का नाम शैलजा. इस सब की जानकारी अमित को काफी दिनों बाद हुई थी.

दूसरे की क्या कहें, अमित का ही असली नाम कहां था. बौस ने उसे अमित कह कर बुलाया तो उसे यह नाम जंच गया. बस, वह अमित हो गया. उस की बौस रीता का भी यह असली नाम नहीं होगा. क्योंकि जब वह दूसरों का नाम बदल सकती है तो अपना असली नाम क्यों बताएगी?

बौस हमेशा कहती हैं कभी किसी ग्राहक की असली पहचान जानने की कोशिश मत करना. ऐसा करने से हम ग्राहक का विश्वास और ग्राहक दोनों खो सकते हैं. किसी की प्राइवेसी को डिस्टर्ब न करने से ग्राहक खुश रहेगा और जरूरत पड़ने पर आगे भी उसे याद करेगा.

बौस की एकएक बात की अमित ने गांठ बांध ली थी. वह सिर्फ काम से मतलब रखता था. किसी से भी कोई अटैचमेंट नहीं. डील यानी मीटिंग पूरी होने के बाद वह ग्राहक को पूरी तरह भूल जाता था.

ग्राहकों की अच्छी रिपोर्ट की वजह से ही इस धंधे में नया होने के बावजूद बौस सब से पहले उसे ही फोन करती थी. इस से अमित को लगता था कि बौस को उस के पुरुषार्थ पर पूरा भरोसा है. इतने कम समय में मिली यह सफलता एक तरह से उस की बहुत बड़ी अचीवमेंट कही जा सकती थी.

अमित इवेन टावर्स के पास पहुंच गया. पार्किंग में मोटरसाइकिल खड़ी कर के वह लिफ्ट की ओर बढ़ा, लेकिन छुट्टी का दिन होने की वजह से लिफ्ट बंद थी. उसे लगा, मीटिंग में हिस्सा लेने यानी डील पूरा करने से पहले ही 7 मंजिल की सीढि़यां चढ़तेचढ़ते हाफ जाएगा. लेकिन उसे वहां तक पहुंचना ही था, इसलिए धीरेधीरे सीढि़यां चढ़ते लगा.

ऊपर पहुंच कर उस ने चेहरा साफ किया, क्योंकि उसे पता था कि थका या पसीने से तरबतर देख कर डील फेल होने की संभावना रहती है. ग्राहक को ताजगीभरा, स्वस्थ मुसकराता हुआ खुशहाल चेहरा ही अच्छा लगता है. इसीलिए चेहरे पर हलकी मुसकान लपेट कर वह देवास प्रा.लि. के औफिस के दरवाजे पर पहुंच गया.

बौस ने अमित को पहले ही सिखा दिया था कि अगलबगल का कोई डिस्टर्ब नहीं होना चाहिए. अगर जरूरत न हो तो दरवाजा खटखटाने की भी जरूरत नहीं है. अमित जानता था कि दिन का मामला है. इसलिए होशियार रहने की जरूरत है. दिन की बात हो या रात की. अमित वैसे ही सावधान रहने वाला आदमी था. वह हर काम बहुत होशियारी से करता था. इसीलिए बौस उसे शार्पशूटर कहती थी.

अमित ने दरवाजे पर हाथ रखा, दरवाजा खुल गया. उसे लगा देवास प्रा.लि. का यह दरवाजा शायद उसी के लिए खुला छोड़ा गया है. अंदर जा कर उस ने दरवाजे की सिटकनी बंद कर दी. पूरा औफिस खाली पड़ा था. उस ने महसूस किया कि यह सब पहले से ही तय था.

मिसेज अवनी मेहता अपने चैंबर में होगी. यह सोच कर वह आगे बढ़ा. एसी चल रहे थे, औफिस खाली पड़ा था, इसलिए वातावरण एकदम ठंडा था. उसे ठंडे वातावरण को हौट बनाने की जिम्मेदारी अब अमित की थी. यह उस के लिए कोई समस्या नहीं थी. यह काम वह अब बड़ी आसानी से कर लेता था.

अमित ने मिसेज मेहता का चैंबर खोज निकाला. उन के चैंबर के दरवाजे को भी खटखटाने की जरूरत नहीं थी. उन के कांच के आलीशान चैंबर के शीशे का दरवाजा पहले से खुला था. पास पहुंच कर उसे लगा, मिसेज मेहता किसी से बातें कर रही हैं, इसलिए वह सावधान हो गया. जबकि बौस ने कहा था कि वह औफिस में अकेली हैं.

उस ने ध्यान से देखा तो पता चला वह स्पीकर औन कर के अपनी किसी सहेली से बातें कर रही थीं. बीचबीच में दोनों हाथों से अपने बाल ठीक करने लगती थीं, शायद इसीलिए स्पीकर औन कर लिया था.

उन की बातों में खलल न पड़े, इस के लिए अमित उन की नजरों के सामने से हट कर एक किनारे खड़ा हो गया, जिस से वह उसे देख न सकें. शिष्टाचारवश भी उसे उन की फोन पर होने वाली बातचीत खत्म होने का इंतजार करना चाहिए था.

वैसे तो किसी की व्यक्तिगत बातें उसे नहीं सुननी चाहिए थीं, लेकिन पूरा औफिस खाली होने की वजह से उस नीरव शांति में मिसेज मेहता की एकएक बात अमित को स्पष्ट सुनाई दे रही थी. मिसेज मेहता कह रही थीं, ‘‘अरे जो कुछ भी कहना है, खुल कर कहो शिखा, एकदम बिंदास, औफिस में मैं अकेली ही हूं. पूरा औफिस खाली पड़ा है.’’

मिसेज मेहता की बातें अमित को मजेदार लगीं, इसलिए उस ने उसी ओर कान लगा लिए.

‘‘आज छुट्टी के दिन भी औफिस में, कोई बहुत जरूरी काम था क्या?’’ दूसरी ओर से पूछा गया. फोन का स्पीकर धीमा था, फिर भी तीखी और शहद में घुली मधुर आवाज बाहर खड़े अमित तक आ रही थी.

‘‘छुट्टी है, इसीलिए तो… भई तू समझी नहीं. एक पार्टी बुलाई है, आती ही होगी. समझ गई न?’’ अवनी की आवाज धीमी थी, लेकिन उस में खुशी स्पष्ट झलक रही थी.

दूसरी ओर से हंसने की आवाज आई. अपनी हंसी को एकदम से रोक कर उस ने कहा, ‘‘शरारती लड़की, तू आज भी वैसी की वैसी है अवनी. सच कहती हूं तुझ से ईर्ष्या होती है. तू अपनी लाइफ को अपनी तरह से इंजौय कर रही है. तू सचमुच बड़ी भाग्यशाली है, जो अपनी जिंदगी को अपनी तरह जी रही है.’’

‘‘ईर्ष्या किस बात की भई? मैं जो करती हूं, तू भी तो कर सकती है. इस में परेशानी किस बात की है? ईर्ष्या कर के बेकार में अपना जी हलकान कर रही है. अच्छा एक काम कर, तू भी मेरे औफिस आ जा. हम दोनों साथ साथ…’’ अपने बालों को झटकते हुए मुंह स्पीकर के करीब ले जा कर मिसेज मेहता ने कुछ अलग अंदाज में कहा. अमित को उस की ये अदाएं अच्छी लग रही थीं.

‘‘अवनी, तुम्हारी सोच भी गजब की है? यह क्या कह रही हो तुम? तुम कैसी बातें कर रही हो? ऐसा भी कहीं होता है? फिर मैं उतनी दूर क्यों आऊं? अगर इच्छा हो तो तुम्हारी तरह मैं यहीं…’’  दूसरी ओर से धीमी आवाज में कहा गया.

‘‘इस में इतना उछलने की क्या बात है. हम डबल पेमेंट कर देंगे. अगर आना हो तो जल्दी आ जा, वह आता ही होगा.’’ अवनी ने कहा.

‘‘कौन, मिस्टर मेहता?’’

‘‘अरे मिस्टर मेहता तो बिजनेस टूर पर बाहर गए हैं. इसीलिए तो यह कार्यक्रम बनाया है. वह आने ही वाला होगा.’’

‘‘यार, तुम तो बड़ी स्मार्ट हो. अभी भी पहले जैसी ही. जरा भी नहीं बदली. मौके का फायदा उठाने में जरा भी नहीं चूकती.’’ दूसरी ओर से शिखा ने कहा.

‘‘इस में कुछ खोना तो है नहीं, जिंदगी के मजे लेने हैं. बोल तुझे आना है या नहीं, क्योंकि अब वह आता ही होगा.’’

‘‘अरे कौन आ रहा है, यह तो बता नहीं रही. बस, वह आता होगा यही कह रही हो.’’ शिखा ने थोड़ा खीझ कर कहा.

‘‘पता नहीं, अमित, सुमित जैसा कुछ नाम है. लेकिन हमें नाम से क्या मतलब, यहां तो सिर्फ काम से मतलब है?’’

‘‘डियर शरारती अवनी, तू कभी नहीं सुधरेगी. कालेज में भी तू इसी तरह के नाटक खूब करती थी. सुकेत को तो तूने कभी सांस लेने का भी मौका नहीं दिया. और वह बेचारा स्कौलर स्टूडेंट, क्या नाम था उस का? अरे हां, याद आया, धर्मिल, बेचारे की सारी मर्दानगी तेरे सामने भाप बन कर उड़ जाती थी.

‘‘और वह विपुल, वह बेचारा तो आज भी तेरे जवाब के इंतजार में किसी पार्क की बेंच पर मुंह लटकाए बैठा होगा. अवनी, मुझे पूरा विश्वास है कि प्रतीक को तो तू अभी भी नहीं भूली होगी.’’

स्पीकर फोन से आने वाला तीखा और लंबा अट्टहास औफिस की उस नीरव शांति को भंग कर गया.

‘‘अरे छोड़ न यार शिखा. इन सब को अब क्या याद करना? हमारा काम कुछ इस तरह का होना चाहिए कि दुनिया हमें याद करे. मैं ने ठीक कहा न?’’

‘‘तुम ने गलत कब कहा है. तुम ठीक ही कह रही हो.’’ दूसरी ओर से हंसते हुए शिखा ने कहा.

‘‘अच्छा शिखा तू उसे क्या कहती थी, जिगोलो या कोई पेट नेम?’’

‘‘रियली, मैं इस बारे में कुछ नहीं जानती. लेकिन तमाम हाई सोसाइटी फ्रेंड्स के बीच कुछ इसी तरह कहते सुना है.’’

अपना मुंह फोन के स्पीकर के एकदम करीब ले जा कर अवनी ने थोड़ी धीमी आवाज में कहा, ‘‘नंबर? व्हाट ए फनी नेम? कितना सुंदर, तुम जानती हो हम उसे क्या कहते हैं पिज्जा बौय! है न मजेदार? डिलीवरी बौय! उस से भी मजेदार?’’

‘‘बढि़या है, तुम्हारा यह समय तुम्हारे पिज्जा बौय या डिलीवरी बौय के साथ बढि़या बीते. ओके. बाय…’’

‘‘बाय, फिर फोन करती हूं.’’ कह कर अवनी ने फोन काट दिया.

थोड़ा अस्वस्थ हो कर अमित ने मुंह फेर लिया. तभी मिसेज मेहता की नजर उस पर पड़ी. उन्होंने चौंक कर कहा, ‘‘मेरे खयाल से तुम अमित, अमित पिज्जा बौय… ओके.’’

‘‘यस मैडम, लेकिन…’’ अनजाने में अमित थोड़ा सकुचाते हुए बोला.

‘‘शरमाओ मत, प्लीज कम इन. इधर आओ.’’ अवनी की आवाज अमित की याद्दाश्त को झकझोर रही थी. उस के बुलाने के बावजूद अंदर नहीं गया तो उस ने फिर से कहा, ‘‘क्या हुआ, तुम पिज्जा बौय ही हो न? आई मीन, तुम समझ रहे हो न? जिगोलो बौस को मैं ने फोन किया था, मुझ से कोई मिस्टेक तो नहीं हो रही है? इज देयर एनी प्राब्लम मिस्टर अमित? तुम अमित ही हो न?’’

इतना कह कर अवनी ने रहीसही फारमैलिटी छोड़ कर अपने होंठों को दांतों तले दबा कर बिंदास स्वर में कहा, ‘‘तुम्हें देख कर अगर कोई मिस्टेक हुई भी हो तो चिंता की कोई बात नहीं है.’’

‘‘नहीं मैडम, कोई मिस्टेक नहीं हुई. मिस्टेक होगी कैसे, आप कोई मिस्टेक कर ही नहीं सकतीं. शायद मैं ही आप का अमित हूं, लेकिन… मैं…’’ अमित की अंदर की पहचान उसे खाए जा रही थी.

‘‘तो फिर आ जाओ. मैं ने यह सारा इंतजाम तुम्हारे लिए ही तो किया है. लेट्स स्टार्ट विद अ साफ्टड्रिंक्स माई क्यूट लिटिल पिज्जा बौय कम इन.’’

मिसेज अवनी मेहता बहुत उतावली लग रही थीं. आज ही नहीं, वह हमेशा ही इसी तरह उतावली रहती थीं. लेकिन अमित की स्थिति खराब होती जा ही थी. उस ने कहा, ‘‘सौरी मैडम, मैं कब पिज्जा बौय या डिलीवरी बौय बन गया, मुझे नहीं मालूम. किस ने बनाया, यह भी नहीं मालूम. लेकिन मैं तुम्हारा पिज्जा बौय या डिलीवरी बौय नहीं बन सकता, यह निश्चित है.’’

इतना कहतेकहते अमित पसीने से तर हो गया. एसी के उस ठंडे वातावरण में भी वह इतना हौट हो गया कि गरमी से उस का मन बेचैन हो उठा. मुट्ठियां भींच कर उस ने झटके से औफिस का दरवाजा खोला और सीढि़यों की ओर बढ़ गया. अवनी कुछ समझ नहीं पाई. वह पीछे से ‘अमित…अमित…’ चिल्लाई, उस की आवाजें सीढ़ी उतरते तक अमित का पीछा करती रहीं.

अवनी के इस तरह चिल्लाने से अमित को दो बातें याद आईं. एक तो यह कि मिसेज अवनी मेहता ऐसी पहली कस्टमर थीं, जिन्होंने अपनी पहचान छुपाने के लिए अपना नाम नहीं बदला था, दूसरी यह कि पहली बार बौस द्वारा दिए गए पेट नाम अमित का लाभ उसे आज मिला था.

अच्छा हुआ अवनी ने उसे पहचानने की कोशिश नहीं की, वरना उस के अंदर भी सुकेत, धर्मिल, विपुल या प्रतीक जैसे किसी एक नाम की सच्ची पहचान सामने आ जाती.

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