Uttar Pradesh News : मुख्तार अंसारी का जन्म एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था, लेकिन छात्र जीवन में बृजेश सिंह से हुई दुश्मनी की वजह से वह अपराध के गर्त में उतरता चला गया. परिवार का राजनीतिक संरक्षण मिलने पर वह एक ऐसा माफिया डौन बना कि…

गाजीपुर जिले के कोतवाली थानाक्षेत्र स्थित मोहल्ला मुहम्मदपट्टी (महुआबाग) का नाम सामने आते ही लोगों में डर की लहर उठने लगती थी. जब वाहनों का काफिला सड़कों पर निकलता था, तो कुछ देर के लिए ट्रैफिक भी बंद हो जाता था. जिस का यह डर था, उस आतंक के पर्याय का नाम है बाहुबली मुख्तार अंसारी. 57 वर्षीय बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी ने जिस तरह आतंक के बल पर कई सौ करोड़ की चलअचल संपत्ति अर्जित की थी, उस के पाईपाई का लेखाजोखा शासन के पिटारे में सालों से कैद था. 10 अक्तूबर, 2020 की सुबह 7 बजे जब पिटारे का ढक्कन खुला तो गाजीपुर ही नहीं समूचे प्रदेश में भूचाल सा आ गया.

25 जून, 2020 को एसडीएम सदर प्रभास कुमार ने होटल गजल के जमीन की पैमाइश कराई थी. यह होटल मुहम्मदपट्टी इलाके में है. नजूल की इस भूमि को ले कर न्यायालय में सरकार की ओर से वाद संख्या 123/2020 दायर किया गया था. होटल की मालकिन बाहुबली की पत्नी अफशां अंसारी और उन के दोनों बेटे अब्बास अंसारी और उमर अंसारी थे. होटल के एक भाग में एचडीएफसी बैंक, एटीएम और रेस्टोरेंट किराए पर चल रहा था. यह भवन अवैध कब्जे वाली जमीन पर बनाया गया था. इस संबंध में होटल मालिकों को कई बार नोटिस दिए गए थे. अंतिम नोटिस 16 सितंबर, 2020 को सुनवाई के लिए प्राधिकारी/उप जिलाधिकारी (सदर) प्रभास कुमार ने दिया था, जिस में चेतावनी दी गई थी कि अवैध निर्माण भवन स्वत: गिरा दें अन्यथा शासन द्वारा गिरा दिया जाएगा.

लेकिन धनबल के नशे में चूर मुख्तार अंसारी ने प्रशासन के आदेश की अनसुनी कर दी. इस पर मालिकों के नकारात्मक रवैए से नाखुश प्रशासन 10 अक्तूबर, 2020 को फोर्स के साथ सुबह 7 बजे होटल गिराने मुहम्मदपट्टी पहुंच गया. फोर्स में एसडीएम राजेश सिंह, एसडीएम सुशील कुमार श्रीवास्तव, एसडीएम सदर प्रभास कुमार, एसडीएम रमेश मौर्या, एसपी (सिटी) गोपीनाथ सोनी, सीओ (सिटी) ओजस्वी चावला, शहर कोतवाल विमल मिश्रा, क्राइम ब्रांच प्रभारी सरस सलिल, नंदगंज थाना प्रभारी राकेश सिंह और तहसीलदार मुकेश सिंह मौजूद थे. मौके पर भारी पुलिस टीम देख कर सैकड़ों तमाशबीन जुट गए.

तमाशबीन यह देखकर हैरान थे कि पहली बार प्रशासन ने बाहुबली से टकराने की जुर्रत की है, जिन में आज तक ऐसी कूवत नहीं थी. फिर क्या था, देखते ही देखते प्रशासन के बुलडोजर ने होटल गजल को घंटे भर में मलबे में तब्दील कर दिया. जिस होटल को मलबे में तब्दील किया गया था, उस की कीमत 22 करोड़ 23 लाख रुपए आंकी गई थी. सचमुच किसी मजबूत सरकार के कार्यकाल में पहली बार ऐसा कठोर फैसला लिया गया था, जिस से होटल के साथसाथ मुख्तार अंसारी का घमंड भी मलबे में मिल गया था. आइए, जानते हैं मुख्तार अंसारी की माफिया डौन से राजनीतिक सफर की कहानी—

57 वर्षीय मुख्तार अंसारी पूर्वी उत्तर प्रदेश के माफिया सरगनाओं में एक है. प्रदेश में सक्रिय सरगनाओं में उस की गिनती नंबर एक पर होती है. मुख्तार अंसारी का जन्म गाजीपुर जिले के थाना मोहम्मदाबाद के गांव यूसुफपुर के सम्मानित परिवार में हुआ था. उस के पिता काजी सुभानउल्ला अंसारी किसान थे. गांव में उन की इज्जत थी. गांव वालों के सुखदुख में खड़ा होना उन का शौक था. उन की समस्याएं सुनना और निदान करना अच्छा लगता था. सुभानउल्ला अंसारी के 2 बेटे थे अफजल अंसारी और मुख्तार अंसारी. बड़े बेटे अफजल अंसारी ने ग्रैजुएशन के बाद सन 1985 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा. 1985 से लगातार इसी पार्टी से वह 4 बार मोहम्मदाबाद से विधायक चुने गए.

उन के नाना डा. अंसारी 1927 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष थे. आजादी के बाद पाकिस्तान द्वारा कश्मीर पर आक्रमण करने के समय भारतीय सेना की कमान संभालने वाले परमवीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर उस्मान अली भी मुख्तार अंसारी के परिवार से ताल्लुक रखते थे. खैर, भाई का राजनीतिक कद देख मुख्तार अंसारी के भीतर भी राजनीति में जाने की चाहत घर कर गई. 1985 में भाई को विधानसभा पहुंचाने में मुख्तार अंसारी ने काफी मेहनत की थी. अफजल विधानसभा का चुनाव जीत कर माननीय का दर्जा प्राप्त कर चुके थे. मुख्तार अंसारी के भाग्य की लकीरें कालेज के समय में उस समय बदलीं, जब कालेज में छात्रसंघ के चुनाव को ले कर उन की बृजेश सिंह से ठन गई थी.

मुख्तार अंसारी की कालेज में तेजतर्रार छात्र के रूप में पहचान थी. उस के साथ दोस्तों की खासी टोली थी. इतने खास दोस्त कि जरा सी बात पर लड़नेमरने के लिए तैयार हो जाते थे. मुख्तार अंसारी को क्रिकेट खेलने, शिकार करने और तरहतरह के हथियार रखने का शौक था. बृजेश सिंह भी उसी कालेज में पढ़ता था. कसरती बदन और तेजतर्रार दिमाग वाले बृजेश की शैतानी टोली थी. उस में बातबात पर लड़ने और दुश्मनों को धूल चटाने की कूवत थी. छात्र संघ चुनाव को ले कर दोनों के बीच उपजी प्रतिस्पर्धा दुश्मनी में बदल गई थी. कुछ समय बाद बृजेश सिंह का त्रिभुवन सिंह से संपर्क हो गया. त्रिभुवन सिंह मुडि़या, सैदपुर, गाजीपुर का रहने वाला था.

बनारस के धौरहरा गांव का रहने वाला बृजेश सिंह उन दिनों खासी चर्चा में था. उस की गांव के चिनमुन यादव से गहरी अदावत चल रही थी. बृजेश 4 भाइयों में तीसरे नंबर का था. एक दिन मौका मिलने पर चिनमुन यादव ने बृजेश सिंह के पिता रवींद्र सिंह की हत्या कर दी. इस के बाद हत्याओं का जो दौर चला, गाजीपुर की धरती खून से लाल हो गई. बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी आए आमनेसामने बृजेश सिंह के दुश्मन मुख्तार अंसारी की छत्रछाया में चले गए थे. अब बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी आमनेसामने आ गए थे. यहीं से मुख्तार अंसारी की माफिया छवि का उदय हुआ, जो आज तक बरकरार है. इन के साथियों में साधू सिंह, लुल्लर और पांचू नामचीन थे और पुलिस रिकौर्ड में कुख्यात अपराधी भी. किसी की हत्या करना उन के लिए गाजर मूली काटने के समान था.

साधू सिंह की वजह से मुख्तार अंसारी अंडरवर्ल्ड में गहराई से पांव जमा रहा था. अपराध की काली फसल तेजी से फैलती जा रही थी. मुख्तार के ताकतवर होने से बृजेश और उस के दोस्त त्रिभुवन सिंह के पसीने छूट रहे थे. मुख्तार अंसारी को कमजोर करने के लिए बृजेश सिंह और त्रिभुवन सिंह ने मिल कर ऐसी पुख्ता योजना बनाई कि इन के कहर से घबरा कर खुद मुख्तार अंसारी ने दोनों को खत्म करने का बीड़ा उठा लिया. मुख्तार अंसारी बृजेश सिंह और त्रिभुवन सिंह की परछाई तो छू नहीं पाया अलबत्ता उस ने त्रिभुवन सिंह के भाई सच्चिदानंद सिंह की हत्या की योजना बना ली और उसके पीछे हाथ धो कर पड़ गया. कई दिनों की मशक्कत के बाद भी मुख्तार अंसारी उस का बाल बांका नहीं कर सका और हाथ मलता रह गया.

महीनों बाद मुख्तार अंसारी की मेहनत रंग लाई. 28 फरवरी, 1985 की शाम के समय मुख्तार अंसारी और अताउर्रहमान ने मोहम्मदाबाद कस्बे में तिवारीपुर मोड़ पर सच्चिदानंद की गोली मार कर हत्या कर दी. पुलिस के अनुसार, जिस रिवौल्वर से मुख्तार अंसारी ने सच्चिदानंद की हत्या की थी, उसे गोरखपुर के माफिया कांग्रेसी नेता को बेच दिया था. सच्चिदानंद की हत्या से बृजेश सिंह और त्रिभुवन गिरोह बौखला सा गया था लेकिन गिरोह अंदर ही अंदर टूट भी गया था. मुख्तार अंसारी यही चाहता भी था कि बृजेश पूर्वांचल में अपने पांव न जमा सके. इस के बाद बृजेश सिंह गिरोह को एक और झटका करीब एक साल बाद 2 जनवरी, 1986 को लगा. मुख्तार अंसारी गिरोह ने त्रिभुवन सिंह के सगे भाई रामविलास बेड़ा की गोली मार कर हत्या कर दी.

इस खूनी वार में मुख्तार अंसारी का साथ उस के पुराने साथी साधू सिंह, कमलेश सिंह, भीम सिंह और हरिहर सिंह ने दिया था. इस के बाद तो मुख्तार अंसारी गिरोह का पूर्वांचल में खासा आतंक फैल गया था. पुलिस कुख्यात हो चुके मुख्तार अंसारी ऐंड सिंडीकेट को गिरफ्तार करने की फिराक में थी. गिरफ्तार तो दूर की बात पुलिस गिरोह के सदस्यों की परछाई तक नहीं छू पाई और हाथ मलती रह गई. हर बार वह अपने भाई अफजल अंसारी की राजनीतिक पहुंच के कारण बच जाता था. राजनैतिक दबाव के चलते पुलिस मुख्तार अंसारी पर हाथ डालने में हिचकने लगी थी. यहां तक कि कोई भी एसपी मुख्तार अंसारी पर हाथ डालने की कोशिश करता, तो उस का गाजीपुर से कुछ ही दिनों में स्थानांतरण हो जाता था.

मुख्तार अंसारी बड़े भाई के राजनैतिक रसूख का भरपूर लाभ उठाता रहा. जैसेजैसे राजनीतिक संरक्षण मिलता गया, वैसेवैसे उस का आपराधिक ग्राफ बढ़ता गया. यह हाल हो गया था कि अब पुलिस वाले भी मुख्तार अंसारी की गोली का शिकार बनने लगे थे. बृजेश और मुख्तार में छिड़ी खूनी जंग इस का उदाहरण सन 1987 में वाराणसी पुलिस लाइन में देखने को मिला. मुख्तार अंसारी ऐंड सिंडीकेट ने जिस दुस्साहस का परिचय दिया था, उस से प्रदेश पुलिस हिल गई थी. मामला जुड़ा हुआ था बृजेश ऐंड त्रिभुवन सिंह गैंग से. दरअसल, त्रिभुवन सिंह का भाई राजेंद्र सिंह हेडकांसटेबल था. वह वाराणसी में पुलिस लाइन में तैनात था.

मुख्तार अंसारी ने अपने साथियों साधू सिंह, कमलेश सिंह, हरिहर सिंह और भीम सिंह के साथ मिल कर वाराणसी पुलिस लाइन में दिनदहाड़े ताबड़तोड़ गोलियां बरसा कर राजेंद्र सिंह को मौत के घाट उतार दिया था. पुलिस ने मुख्तार अंसारी को गिरफ्तार करने के लिए एड़ीचोटी एक कर दी, लेकिन विधायक भाई अफजल अंसारी के हस्तक्षेप से पुलिस उस का बाल बांका नहीं कर पाई. इस के बाद बृजेश गैंग भी चुप नहीं बैठा. बृजेश और त्रिभुवन गैंग ने मिल कर मुख्तार अंसारी का दाहिना हाथ माने जाने वाले साधू सिंह को मौत के घाट उतार कर अंसारी को तोड़ने की कोशिश की. साधू सिंह की हत्या से मुख्तार अंसारी को बड़ा झटका लगा.

इस के बाद तो बृजेश गैंग ने एकएक कर के मुख्तार असांरी के कई नामचीन साथियों को मौत के घाट उतार दिया. धीरेधीरे बृजेश सिंह गिरोह की पूर्वांचल में तूती बोलने लगी. नब्बे के दशक में 2 आपराधिक गिरोहों की समानांतर सरकार चल रही थी. कभी बृजेश सिंह गैंग मुख्तार अंसारी पर भारी पड़ता तो कभी मुख्तार अंसारी गिरोह बृजेश पर भारी पड़ता. बृजेश सिंह के आपराधिक कद को बढ़ते देख मुख्तार अंसारी सहम सा गया था. बृजेश से टक्कर लेने के लिए उस ने अपने ट्रैक में बदलाव किया. भाई अफजल अंसारी की बदौलत मुख्तार अंसारी की पहुंच सत्ता के गलियारों में गहरी हो चुकी थी. अफजल विधायक थे ही. मुलायम सिंह यादव सरकार में उन की पैठ कुछ ज्यादा ही हो गई थी. सपा सरकार के पहले शासन काल में ही मुख्तार अंसारी की उन से नजदीकियां बन गई थीं.

इसी राजनीतिक पहुंच के कारण मुख्तार अंसारी के घर वालोंं के नाम हथियारों के लाइसेंस स्वीकृत कर दिए गए थे. इन में डीबीबीएल गन, मैग्नम रिवौल्वर, टेलिस्कोपिक राइफल इत्यादि खतरनाक हथियार शामिल थे. इस के बाद मुख्तार अंसारी खुलेआम गाजीपुर में रहने लगा. अब तक जिले की जो पुलिस मुख्तार अंसारी की गिरफ्तारी के लिए बेताब रहती थी, वही पुलिस उस के आगेपीछे घूमती थी. सत्ता के सनकी घोड़े की सवारी करते हुए मुख्तार अंसारी बृजेश गिरोह के बचे हुए गुरगों का एकएक कर सफाया करने लगा. दिसंबर, 1991 में मुख्तार अंसारी की पुलिस से मुठभेड़ हो गई. मुठभेड़ वाराणसी के मुगलसराय थाना क्षेत्र के पास हुई थी.

मुगलसराय एसओ ने रात 8 बजे के गश्त के दौरान एक मारुति जिप्सी में मुख्तार और उस के साथियों भीम सिंह, अरमान व रामजी को जाते हुए देखा तो इशारा कर के उन सब को रुकने को कहा. जिप्सी रोकते ही मुख्तार और उस के साथियों ने पुलिस पर फायरिंग करनी शुरू कर दी. जबावी काररवाई में पुलिस ने भी उन पर फायरिंग की और मुख्तार सहित सभी साथियों को गिरफ्तार कर लिया. कस्टडी में पुलिस अधिकारी का किया कत्ल तलाशी लेने पर जिप्सी में से 2 आटोमैटिक राइफल, 2 बंदूक और एक रिवौल्वर बरामद हुई. मुख्तार अंसारी को कैद में रखना आसान नहीं था. गिरफ्तार करने वाले पुलिस वालों में से एक को मुख्तार अंसारी ने पहचान लिया, जो बृजेश गुट के एक कारकुन का भाई था और पुलिस में था.

मुख्तार अंसारी ने अपनी विदेशी रिवौल्वर से उस की हत्या कर दी और पुलिस कस्टडी से फरार हो गया. पुलिस हाथ मलती रह गई. इस घटना ने खासा तूल पकड़ा. उस वक्त प्रदेश में भाजपा की सरकार थी. सरकार की सख्ती से मुख्तार अंसारी के घर की कुर्की तक हो गई थी. विधायक अफजल अंसारी के घर पर पुलिस ने छापा मारा. मामले ने काफी तूल पकड़ा और सरकार पर आरोप लगा कि अन्य पार्टी का होने के नाते भाजपा सरकार विधायक का उत्पीड़न कर रही है. मामला विधानसभा तक पहुंच गया और वहां इसे ले कर खूब हंगामा हुआ. बाद में काफी हंगामे के बाद विधानसभा अध्यक्ष केसरीनाथ त्रिपाठी ने घटना की जांच का आदेश विधानसभा के पूर्व अघ्यक्ष भलचंद्र शुक्ल को सौंपा.

पुलिस रिकौर्ड के अनुसार, इस घटना के बाद मुख्तार अंसारी ने चंडीगढ़ और पंजाब के शहरों में छिप कर फरारी काटी. इसी दौरान उस की पंजाब के आतंकवादियों से साथ मुलाकात हुई. दुश्मनों का सफाया करने के लिए उस ने इन्हीं आतंकवादियों के जरिए एके-47 हासिल की. यह बात सन 1991-92 के करीब की है. प्रदेश में भाजपा की सरकार रहते मुख्तार अंसारी ने उत्तर प्रदेश की ओर मुड़ कर नहीं देखा. भाजपा का शासन खत्म होते ही मुख्तार अंसारी एक बार फिर सक्रिय हो गया. वह 1993 का दौर था, जब मुख्तार अंसारी ने दिल्ली के व्यवसाई वेदप्रकाश गोयल का अपहरण कर के देश के पुलिसिया तंत्र को हिला दिया था. व्यवसाई गोयल को मुक्त करने के एवज में मुख्तार अंसारी ने उन के घर वालों से 50 लाख रुपयों की मांग की.

मुख्तार अंसारी ने गोयल को चंडीगढ़ के एक मकान में कैद कर के रखा था. अंतत: दिल्ली पुलिस एड़ीचोटी का जोर लगा कर वेदप्रकाश गोयल को माफिया डौन मुख्तार अंसारी के चंगुल से आजाद कराने में कामयाब हो गई थी. पुलिस ने चंडीगढ़ के मकान से कई जहरीले इंजेक्शनन तथा तमाम आपत्तिजनक वस्तुएं बरामद कीं. इस के बाद पुलिस ने मुख्तार और उस के साथियों पर ‘टाडा’ लगा कर उन्हें तिहाड़ जेल भेज दिया. उस के बाद प्रदेश में मुलायम सिंह की सरकार बनी तो मुख्तार की किस्मत का ताला फिर खुल गया. उसे टाडा कानून से राहत दे कर गाजीपुर जेल स्थानांतरित करा दिया गया.

मुलायम के आशीर्वाद से फैले पैर गाजीपुर में किसी जेल अधिकारी की मुख्तार की हरकतों को रोकने की हिम्मत नहीं थी. उस के गुर्गों की ओर से उन्हें धमकी मिलती थी ‘यदि जिंदा रहना है तो अपनी आंखें और जुबान दोनों बंद रखो, वरना कत्ल कर दिए जाओगे.’ मुख्तार की धमकियों के आगे जेल पुलिस नतमस्तक रहने को मजबूर हो गई. मुलायम सिंह यादव की अंसारी परिवार पर खास नजर रहती थी. इस से पूर्व बसपा मुखिया मायावती की नजर मुख्तार अंसारी पर थी. एक ऐसा भी दौर था जब मायावती और मुलायम सिंह के बीच मुख्तार को अपनीअपनी पार्टी में लेने के लिए होड़ मची. तब वह मायावती के पाले में चला गया.

विधायक अफजल अंसारी मुलायम सिंह के हुए तो मुख्तार अंसारी ने भी मायावती को छोड़ कर सपा का दामन थाम लिया. बाद के दिनों में बड़े आपराधिक कारनामों को अंजाम दे कर मुख्तार अंसारी ने सब को सकते में डाल दिया. ठेकेदारी, खनन, स्क्रैप, शराब, रेलवे ठेकेदारी में अंसारी का कब्जा बरकरार था, जिस के दम पर उस ने अपनी सल्तनत खड़ी की. मऊ की जनता का कहना है मुख्तार अंसारी गरीबों के मसीहा हैं. अमीरों से लूटते हैं तो गरीबों में बांटते हैं. मुख्तार अंसारी पुलों, अस्पतालों और स्कूल कालेजों पर अपनी विधायक निधि से 20 गुना ज्यादा पैसे खर्च करते थे. यही वो वक्त था, जब मुख्तार की रौबिनहुड इमेज पर बसपा ने बहुत जोर दिया. 2009 के लोकसभा चुनाव में मुख्तार अंसारी बनारस से खड़ा हुआ और बीजेपी के मुरली मनोहर जोशी से हार गया.

खास बात यह थी कि मुख्तार ने यह पूरा चुनाव जेल के अंदर से ही संभाला. मुख्तार जब गाजीपुर की जेल में था तभी पुलिस रेड में पता चला कि उस की जिंदगी जेल में बाहर से भी ज्यादा आलीशान और आरामदायक है. अंदर फ्रिज, टीवी से ले कर खाना बनाने के बरतन तक मौजूद थे. तब उसे मथुरा जेल में भेज दिया गया. साल 2010 में बसपा ने मुख्तार के आपराधिक मामलों को स्वीकारते हुए उसे पार्टी से निकाल दिया. अब मुख्तार ने अपने भाइयों के साथ नई पार्टी बनाई, जिस का नाम था- कौमी एकता दल. जिस से वह 2012 में मऊ से विधानसभा का चुनाव जीत गया. 2014 में मुख्तार ने ऐलान किया कि वह बनारस से नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ेगा, लेकिन बाद में उस ने यह कह कर आवेदन वापस ले लिया कि इस से वोट सांप्रदायिकता के आधार पर बंट जाएंगे.

2016 में जब मुख्तार अंसारी को सपा में शामिल करने की बात आई, तो उस वक्त मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने मंत्री बलराम यादव को मंत्रिमंडल से ही बाहर का रास्ता दिखा दिया. बलराम यादव ने ही मुख्तार अंसारी को सपा में लाने की बात कही थी. किसी तरह मुलायम सिंह से कहसुन कर बलराम यादव तो पार्टी में वापस आ गए, लेकिन मुख्तार अंसारी को पार्टी में शामिल न करने की बात पर अखिलेश यादव अड़े रहे. इस के बाद विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मुख्तार अंसारी के बड़े भाई अफजल अंसारी ने अपनी पार्टी कौमी एकता दल का मायावती की पार्टी बीएसपी में विलय कर दिया.

बहरहाल, विधायक मुख्तार अंसारी तमाम गुनाहों की सजा काटने के लिए 2006 से विभिन्न जेलों में बंद था. फिर उसे बांदा जेल में लाया गया था. बिल्डर से मांगी 10 करोड़ की रंगदारी 23 जनवरी, 2019 को बसपा विधायक मुख्तार अंसारी को बांदा जेल से पंजाब के मोहाली जेल ले जाया गया. अंसारी को मोहाली के बिल्डर से 10 करोड़ की रंगदारी मांगे जाने के मामले में गिरफ्तार किया गया था. इस मामले में उसे 24 जनवरी को मोहाली कोर्ट में पेश किया गया, जहां अदालत ने उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में मोहाली की रोपड़ जेल भेज दिया. तब से वह मोहाली जेल में बंद है.

बाहुबली मुख्तार अंसारी के गुनाहों का शिकंजा उस के घर वालों पर कसता जा रहा है. गाजीपुर जिले के विशेष न्यायाधीश (गैंगस्टर कोर्ट) गौरव कुमार की अदालत ने 19 सितंबर, 2020 को मुख्तार अंसारी की पत्नी आफशां अंसारी और 2 सालों के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी किया गया है. कोतवाली पुलिस द्वारा दर्ज गैंगस्टर एक्ट के मामले में तीनों फरार चल रहे थे. एसपी डा. ओ.पी. सिंह ने बताया कि शासन के निर्देशानुसार प्रदेश भर में माफियाओं और अपराधियों के खिलाफ अभियान चल रहा है. नगर कोतवाली में दर्ज गैंगस्टर एक्ट के वांछित आईएस-191 गैंग के लीडर मुख्तार अंसारी की पत्नी आफशां अंसारी और उस के सालों शरजील रजा व अनवर शहजाद के खिलाफ गैंगस्टर कोर्ट द्वारा गैरजमानती वारंट जारी किया गया था.

अब बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी, उस के घर वालों, रिश्तेदारों और करीबियों की सूची तैयार कर प्रदेश भर में काररवाई की जा रही है. पुलिसिया जांचपड़ताल में मुख्तार अंसारी की पत्नी आफशां अंसारी व उस के साले शरजील रजा और अनवर शहजाद द्वारा संगठित आपराधिक गिरोह के रूप में अपराध के मामले सामने आए थे. साथ ही छावनी लाइन स्थित भूमि गाटा संख्या-162 और बवेरी में भूमि आराजी नंबर-598 कुर्क शुदा जमीन पर अवैध कब्जा का मामला प्रकाश में आया था. इस के अलावा आरोपी शरजील रजा और अनवर शहजाद द्वारा सरकारी ठेका हासिल करने के लिए फरजी दस्तावेज तैयार कर प्रस्तुत करने की बात भी सामने आई थी.

इस संबंध में भी थाना कोतवाली में मुकदमा दर्ज करने के बाद विवेचना और आरोप पत्र अदालत में भेजा गया है, जबकि आरोपी आफशां अंसारी द्वारा सरकारी धन के गबन व अमानत में खयानत के आपराधिक कृत्य के संबंध में भी सैदपुर में मुकदमा पंजीकृत है. इन आपराधिक मामलों पर प्रभावी काररवाई करते हुए पुलिस ने साले शरजील रजा, अनवर शहजाद और पत्नी आफशां अंसारी के खिलाफ बीते 12 सितंबर, 2020 को गैंगस्टर एक्ट का मुकदमा दर्ज किया था. मुकदमा दर्ज होते ही तीनों फरार हो गए. तीनों के खिलाफ 19 सितंबर, 2020 को गैरजमानती वारंट जारी किए जा चुके हैं.

बहरहाल, बाहुबली मुख्तार अंसारी के जुर्म की दास्तानों पर कई सनसनीखेज किताबें लिखी जा सकती हैं. फिर भी उस के जुर्म की दास्तान थमेगी नहीं. शासन मुख्तार अंसारी द्वारा जुर्म कर के बटोरी संपत्ति का लेखाजोखा जुटा रहा था.

—कथा पुलिस सूत्रों आधारित

 

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