UP News : हापुड़ में स्थित मोनाड यूनिवर्सिटी फरजी मार्कशीट और डिग्रियां बेचने का अड्डा बनी हुई थी. देश भर में तैनात दलाल 5 हजार रुपए से ले कर 5 लाख रुपए में यह गोरखधंधा कर रहे थे. चौंकाने वाली बात तो यह है कि इस यूनिवर्सिटी का चेयरमैन और अघोषित चांसलर विजेंद्र सिंह हुड्डा 15 हजार करोड़ रुपए के फ्रौड का आरोपी है, जिस पर 5 लाख का इनाम भी घोषित था. आखिर कैसे चल रहा था यह गोरखधंधा?

लोग अकसर उन लोगों से सवाल पूछते हैं, जो अपने बच्चों को विदेशों में पढ़ाई करने भेजते हैं कि हमारे देश में भी तो अच्छे कालेज और यूनिवर्सिटी हैं, बच्चों को देश में क्यों नहीं पढ़ाते? कुछ लोग अकसर ऐसे भी सवाल उठाते हैं कि विश्वस्तरीय शिक्षण संस्थानों की रैंकिंग में भारत के शिक्षण संस्थान क्यों नहीं शामिल हैं?

ऐसे तमाम सवालों का एक ही जवाब है कि भारत में शिक्षण संस्थानों ने शिक्षा को धंधा बना लिया है. वे न तो शिक्षण संस्थानों के संचालन के लिए बनी नियमावली का पालन करते हैं, न ही सरकार उन की निगरानी और नियमों का पालन नहीं करने पर कड़ी काररवाई करती है. इसलिए कुकुरमुत्तों की तरह खुले स्कूल, कालेज और यूनिवर्सिटी स्टूडेंट को बिना कोई हुनर दिए मोटी रकम ले कर प्रसाद की तरह डिग्रियां बांट रहे हैं.

कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं, दिल्ली से केवल 50 किलोमीटर की दूरी पर हापुड़ जिले में एक ऐसी यूनिवर्सिटी का खुलासा हुआ है, जहां बिना पढ़ाई और परीक्षा के मोटा पैसा ले कर छात्रों को डिग्रियां बांटी जा रही थीं. इस का संचालक एक ऐसा शख्स था, जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजनीति की दुनिया का जानामाना नाम था. लोगों से ठगी और जालसाजी करने का उस का पुराना अतीत भी रहा है.

शिक्षा को धंधा बनाने वाले इस मामले की कहानी जान कर आप भी दांतों तले अंगुली दबा लेंगे. बीते दिनों यूपी एसटीएफ चीफ को एक लिखित शिकायत मिली थी. दरअसल, हरियाणा के एक विश्वविद्यालय में नौकरी पाए शख्स किशनपाल सिंह ने पीएचडी की फरजी डिग्री लगा दी और वहां असिस्टेंट प्रोफेसर बन गया. नौकरी देने के बाद यूनिविर्सिटी ने किशनपाल सिंह के शैक्षणिक प्रमाणपत्रों की जांचपड़ताल कराई. सारे प्रमाणपत्रों का तो सत्यापन हो गया, लेकिन पीएचडी की डिग्री किसी भी औनलाइन डाटाबेस में नहीं मिली. पीएचडी की ये डिग्री हापुड़ में पिलखुआ रोड पर बनी मोनाड यूनिवर्सिटी से जारी की गई थी.

ऐसे में हरियाणा की यूनिवर्सिटी ने किशनपाल के खिलाफ कानूनी काररवाई करते हुए उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग को एक पत्र लिखा, जिस में मोनाड यूनिवर्सिटी की फरजी पीएचडी डिग्री का जिक्र कर जांच करने के लिए कहा गया था. किशनपाल सिंह की नियुक्ति तो रद्द हो गई और उस के खिलाफ शिकायत की पुलिस में जांच शुरू हो गई. इधर जब यूपी सरकार को हरियाणा की यूनिवर्सिटी से मोनाड यूनिवर्सिटी की फरजी डिग्री के बारे में लेटर मिला तो शिक्षा विभाग ने यूपी एसटीएफ के चीफ अमिताभ यश से यूनिवर्सिटी की जांच कराने का आदेश दिया.

इस शिकायत की जांच का काम एसटीएफ लखनऊ में तैनात डीएसपी संजीव दीक्षित को सौंपा गया. एसटीएफ मुख्यालय ने मामले की जांच मेरठ टीम को इसलिए नहीं दी, क्योंकि मेरठ की लोकल टीम के इनवौल्व होने पर मास्टरमाइंड विजेंद्र हुड्डा को भनक लग सकती थी और वह छापेमारी की काररवाई से पहले ही चौकन्ना हो सकता था. दरअसल, इस यूनिविर्सिटी का संचालक विजेंद्र सिंह हुड्डा मेरठ का ही रहने वाला है और राजनीति में बड़ा रसूखदार आदमी है.

डीएसपी संजीव दीक्षित ने अपनी टीम के सब से तेजतर्रार इंसपेक्टर ओमशंकर शुक्ला और उन की टीम को इस केस की जांच के काम पर लगा दिया. साथ ही यह भी कहा गया कि जांच का काम बेहद गुप्त तरीके से हो ताकि किसी को भनक न लगे. एसटीएफ ने जांचपड़ताल शुरू कर दी.

मोनाड यूनिवर्सिटी की स्थापना से ले कर उस के संचालन और कामकाज की जानकारी के साथ कि वहां पढऩे वाले करीब 7 हजार स्टूडेंट के बीच से मुखबिरों के जरिए जानकारी जुटाई जाने लगी. इस यूनिवर्सिटी की छवि के बारे में भी पता किया गया तो पता चला कि पिछले काफी लंबे समय से मोनाड यूनिवर्सिटी के खिलाफ फरजी डिग्री बनाने की चर्चा है. यूं कहें तो गलत नहीं होगा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मोनाड यूनिवर्सिटी की छवि बहुत अच्छी नहीं थी.

पुलिस ने यूनिविर्सिटी में अहम पदों पर काम करने वाले अफसरों के साथ इस के चेयरमैन विजेंद्र सिंह हुड्डा की निगरानी शुरू कर दी. जिस के बाद सामने आया कि पलवल का रहने वाला संदीप सेहरावत, जो फरजी डिग्री मामले में पहले पकड़ा जा चुका है, वह विजेंद्र सिंह का बेहद खास है. संदीप अकसर या तो खुद आता है या विजेंद्र सिंह का कोई खास आदमी उस से मिलता है. उन के बीच कुछ सर्टिफिकेट के पैकेट का आदानप्रदान होता है.

पुलिस टीम ने सब से पहले संदीप सहरावत को टारगेट पर लिया. कई दिन की निगरानी के बाद संदीप को 16 मई, 2025 की रात हिरासत में लिया गया. संयोग से जब उसे पकड़ा गया तो उस के पास पीएचडी और ला की कुछ छपी हुई फरजी डिग्रियां भी थीं. उसे हिरासत में ले कर जब पूछताछ की गई तो एसटीएफ को बहुत ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी. इस पूरे घोटाले का परदाफाश होता चला गया. बस अब घेराबंदी कर के इस पूरे गोरखधंधे में शामिल गैंग को पकडऩा था.

एसटीएफ ने जब सारी तैयारियां कर लीं तो 17 मई की सुबह हापुड़ पुलिस के एसपी राजेश कुमार से बात कर के स्थानीय पिलखुआ पुलिस की टीम को साथ ले कर छापेमारी की काररवाई शुरू की गई. यूनिवर्सिटी के सभी एंट्री व एग्जिट गेट बंद कर वहां पुलिस तैनात कर दी गई. यूनिवर्सिटी के चांसलर विजेंद्र सिंह हुड्डा समेत करीब 10 ऐसे लोग जांच में जिन की भूमिका संदिग्ध दिखी, उन्हें हिरासत में ले लिया गया. सभी के मोबाइल फोन जब्त कर लिए गए. करीब 5 घंटे तक मोनाड यूनिवर्सिटी में एसटीएफ की जांच और तलाशी का काम चला. इस दौरान करीब 1,372 फरजी डिग्री  मार्कशीट और डिग्रियां रिकवर हुईं.

बरामद हुईं सैकड़ों फरजी डिग्रियां और मार्कशीट

एसटीएफ ने इस पूरी काररवाई में 1,372 फरजी मार्कशीट, डिग्रियां, 262 फरजी प्रोविजनल और माइग्रेशन सर्टिफिकेट, 14 मोबाइल फोन, एक आईपैड, 7 लैपटाप, 26 इलेक्ट्रौनिक डिवाइसेस (सर्वर) और 6,54,800 रुपए और एक सफारी कार व 35 लग्जरी गाडिय़ों की चाबियां बरामद की गईं. बरामद फरजी मार्कशीट का डेटा यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर नहीं मिला तो पता चला कि ये सर्वर रूम के रिकौर्ड में दर्ज हैं, इसलिए एसटीएफ ने पूरे सर्वर रूम को ही सील कर दिया. इसे जांच के लिए लखनऊ में फोरैंसिक जांच के लिए भेजा जाएगा.

इस घोटाले में विश्वविद्यालय के चेयरमैन चौधरी विजेंद्र सिंह उर्फ विजेंद्र हुड्डा, प्रो. चांसलर नितिन कुमार सिंह, वाइस चांसलर, एडमिशन डायरेक्टर इमरान, वेरिफिकेशन हेड गौरव शर्मा सहित कुल 10 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया. पूछताछ में पता चला कि यह गिरोह सालों से छात्रों से लाखों रुपए वसूल कर फरजी डिग्रियां और मार्कशीट बेच रहा था.

उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को झकझोर कर रख देने वाला एक बड़ा घोटाला सामने आने के बाद गाजियाबाद से ले कर लखनऊ तक हडकंप मच गया. क्योंकि हापुड़ स्थित मोनाड यूनिवर्सिटी में फरजी डिग्री रैकेट का यह गोरखधंधा कई साल से चल रहा था. एसटीएफ की इस काररवाई ने उस सच्चाई को उजागर कर दिया है, जिस में शिक्षा जैसे पवित्र क्षेत्र को कुछ लोगों ने मुनाफे का धंधा बना रखा था. यूनिवर्सिटी के नाम पर फरजी डिग्रियां तैयार की जा रही थीं, जो न केवल छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ है, बल्कि पूरी शिक्षा प्रणाली को बदनाम करने वाली साजिश भी.

बरामद किए गए इन सबूतों से साफ था कि यह कोई सामान्य गलती नहीं, बल्कि एक संगठित अपराध था. मौके पर की गई पूछताछ में पता चला कि यूनिवर्सिटी के अधिकारी मोटी रकम ले कर छात्रों को बिना परीक्षा दिए डिग्रियां जारी करते थे. बीए, बीकौम, बीएससी, एमबीए, बीटेक, एलएलबी, बीफार्मा, डीफार्मा समेत कई अन्य कोर्सेस की फरजी डिग्रियां व तकनीकी और प्रोफेशनल डिग्रियां 5 हजार रुपए से ले कर 5 लाख रुपए तक में बेची जाती थीं. इस गोरखधंधे में यूनिवर्सिटी प्रशासन के कई उच्च अधिकारी, एजेंट और बाहरी दलाल भी शामिल थे.

इस घोटाले में शामिल यूनिवर्सिटी के चेयरमैन वीरेंद्र सिंह पूरे नेटवर्क के मास्टरमाइंड है. इस गिरोह का नेटवर्क दिल्ली, मेरठ, नोएडा, हापुड़ और हरियाणा तक फैला हुआ था. सभी आरोपी बेरोजगार युवाओं की मजबूरी का फायदा उठा कर उन्हें असली डिग्री का झांसा देते थे, जिस से हजारों छात्रों का भविष्य खतरे में पड़ गया है. वैसे यह पहला मामला नहीं है. पिछले 15 सालों से चल रही मोनाड यूनिवर्सिटी पहले भी कई बार विवादों में रही है. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग  ने 2022 में इस के कई पाठ्यक्रमों पर सवाल उठाए थे और नियमानुसार प्रमाणन की मांग की थी. इस के बावजूद विश्वविद्यालय में यह फरजीवाड़ा बेरोकटोक चल रहा था.

एसटीएफ की टीम सभी आरोपियों तथा बरामद किए सामान को ले कर पिलखुआ कोतवाली पहुंची, जहां एसटीएफ की तरफ से दी गई शिकायत के बाद आरोपियों के खिलाफ पुलिस ने जालसाजी कर फरजी दस्तावेज तैयार करने व संगठित अपराध करने पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 318(4), 338, 340 (1), 340(2), 111 और 336(3) के तहत मुकदमा दर्ज कर 11 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.

गिरफ्तार आरोपियों की पहचान संदीप सहरावत निवासी गांव चिरवाड़ी, जिला पलवल, हरियाणा, विजेंद्र सिंह हुड्डा निवासी कंकरखेड़ा मेरठ, मुकेश ठाकुर निवासी कटवारिया सराय, नई दिल्ली, अनिल बत्रा सेक्टर 47 नोएडा,  नितिन सिंह, आनंदलोक रुड़की रोड मेरठ,  गौरव शर्मा निवासी रोशनपुर डार्ली रुड़की रोड हापुड़, सन्नी कश्यप निवासी अर्जुन नगर हापुड़, इमरान निवासी हापुड़,  कुलदीप कुमार सिंह निवासी गांव बलवंतनगर जिला बुलंदशहर,  विपुल ताल्या निवासी स्वर्ग आश्रम रोड हापुड़ के रूप में हुई हैं.

एकएक कर सभी आरोपियों से इस पूरे फरजीवाड़े को ले कर पूछताछ हुई तो पता चला कि इस का मास्टरमाइंड और जाली डिग्री रैकेट का सरगना 46 साल का विजेंद्र सिंह हुड्डा है, जो मेरठ के मवाना के एक गांव का रहने वाला है. विजेंद्र सिंह के पिता एक जमाने में मवाना स्थित एक भट्ठे पर मुनीम का काम करते थे. 10वीं तक की पढ़ाई करने के बाद विजेंद्र सिंह भी उसी ईंट के भट्ठे पर नौकरी करने लगा. बचपन से ही महत्त्वाकांक्षी और बड़ा आदमी बनने का सपना देखने वाला विजेंद्र सिंह दिलेर और बातचीत का धनी इंसान था. उस में लोगों को प्रभावित करने और उन से संबंध बना लेने की अद्भुत कला थी.

यही कारण रहा कि कुछ ही सालों में उस ने सामाजिक और राजनीतिक रसूखदारों से संबध बना लिए और धीरेधीरे तिकड़मबाजी कर पैसा भी बना लिया. इसी का नतीजा है कि आज मेरठ में शिवलोकपुरी तथा गंगानगर क्षेत्र की पौश डिफेंस कालोनी में उस के आलीशान मकान हैं, जहां मेरठ के सांसद अरुण गोविल समेत तमाम वीआईपी रहते हैं.

बताते हैं कि विजेंद्र सिंह ने 2005 के बाद कुछ समय तक चीन में लैपटाप और टैबलेट बेच कर करोड़ों रुपए कमाए. वर्ष 2010 में उस ने चीन से लौट कर भारत में यह कारोबार शुरू किया और यहां भी उस ने करोड़ों रुपए कमाए. इस के बाद उस ने देश के नामी पत्रकारों के साथ मिल कर एक न्यूज चैनल शुरू किया. इस के जरिए उस ने यूपी के बड़े नौकरशाहों के साथ ही देश के तमाम चर्चित नेताओं से अपने संपर्क बनाए. वर्ष 2018 में उस ने अपने न्यूज चैनल को बेच दिया और दूसरे कारोबार करने में जुट गया. परंतु उसे सफलता नहीं मिली.

बाद में वह ग्रेटर नोएडा के ग्राम चीती में रहने वाले संजय भाटी, जिस ने साल 2010 में गर्वित इनोवेटिव प्रमोटर्स लिमिटेड नाम से कंपनी बनाई थी, उस के संपर्क में आया. 2018 में संजय भाटी ने बाइक बोट स्कीम लांच करते हुए बाइक टैक्सी की शुरुआत की. इस के तहत एक निवेशक से एक बाइक की कीमत करीब 62 हजार रुपए ली गई. उन्हें हर महीने 9 हजार 765 रुपए लौटाने का वादा किया गया. एक साल बाद कंपनी ने रुपए लौटाने बंद कर दिए.

बाइक बोट से बटोरे 15 हजार करोड़ रुपए

नेटवर्किंग कंपनी अपने निवेशकों के हजारों करोड़ रुपए ले कर भाग गई. इस के बाद धड़ाधड़ मुकदमे दर्ज होने शुरू हुए. उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा सहित कई राज्यों में कई सौ मुकदमे दर्ज हुए. 118 मुकदमों की जांच यूपी पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा  ने की थी. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर दर्ज हुए 118 मुकदमों में ईओडब्लू मेरठ चार्जशीट लगा चुकी है. नोएडा की अदालत में ईओडब्लू ने जिन 31 लोगों को आरोपी बनाया गया है, उस में विजेंद्र सिंह हुड्डा भी है. बाइक बोट कंपनी के घोटाले मे विजेंद्र भी संजय भाटी के साथ शामिल था और आरोपी भी था, लेकिन वह इतना शातिर था कि कहीं भी सीधे तौर पर नहीं जुडा था.

जब संजय भाटी कई हजार करोड़ का घपला कर के भागा और विजेंद्र हुड्डा के पीछे पुलिस लगी तो सालभर से ज्यादा समय तक विजेंद्र हुड्डा अपनी एक महिला सहयोगी मित्र दीप्ति बहल को ले कर लंदन भाग गया, जहां एक साल तक फरारी बिताई. जांच एजेंसियों को उस के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी करना पड़ा था. इस दौरान उस पर 5 लाख रुपए का इनाम भी घोषित हुआ. बाद में अपने राजनीतिक प्रभाव तथा पैसे के बल पर गोटियां फिट कर के वह भारत लौटा और नोएडा कोर्ट में पेश हो कर उसे जमानत करानी पड़ी. कोर्ट से राहत मिलने के बाद विजेंद्र हुड्डा ने पौलिटिक्स में हाथ आजमाने का फैसला किया.

2020 में बाइक बोट घोटाले में जमानत पर छूटने के बाद कोविड महामारी का प्रकोप शुरू हुआ तो उस वक्त लोग जिंदगी बचाने को मारेमारे फिर रहे थे, लेकिन उस वक्त विजेंद्र सिंह का कारोबार विकास कर रहा था. उसी दौर में उस ने 2022 में हापुड़ के पिलखुआ में मोनाड यूनिवर्सिटी को खरीद लिया. तेजी से पैसा कमाने के लिए उस ने बड़े स्तर पर फरजी डिग्रियां व सर्टिफिकेट बेचने का धंधा शुरू कर दिया. गलत काम करने वाले को हमेशा राजनीतिक संरक्षण की तलाश रहती है. विजेंद्र सिंह हर कला में माहिर था. वह राजनीतिक संरक्षण के लिए भाजपा में शामिल होना चाहता था, लेकिन बाइक बोट घोटाले में नाम आने के बाद उस को वहां एंट्री नहीं मिल सकी.

इस के बाद 2022 में उस ने सुनील सिंह के साथ लोकदल में बड़ा पद हासिल कर लिया. नाम और शोहरत पाने के लिए उस ने चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने व किसानों के मुद्ïदों को ले कर कई रैलियां और प्रदर्शन किए. उसे शोहरत तो मिली, लेकिन इतना सब खर्च करने के बावजूद जब मजबूत मुकाम नहीं मिल सका तो उस ने चुनाव से ठीक पहले लोकदल से इस्तीफा दे कर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का दामन थाम लिया. वह बसपा के टिकट पर बिजनौर से 2024 में लोकसभा का चुनाव लड़ा, हालांकि चुनाव में उसे पराजय हाथ लगी. लेकिन इस के कारण उस के सामने दूसरे दलों में प्रवेश के लिए राजनीतिक दरवाजे जरूर खुल गए.

उस के बाद उस ने फिर से भाजपा में प्रवेश करने का प्रयास किया, लेकिन स्थानीय जाट व ठाकुर नेताओं के विरोध के चलते कामयाब नहीं हो सका. चुनाव के कुछ समय बाद ही विजेंद्र ने बसपा को अलविदा कह दिया और राष्ट्रीय लोकदल की सदस्यता ले ली. क्योंकि रालोद के भाजपा के साथ आने से उस को नई उम्मीद दिखने लगी थी. वह रालोद के साथ जुड़ कर सत्ता पक्ष का करीबी बनना चाहता था. मोनाड यूनिवर्सिटी का चेयरमैन बन चुके चौधरी विजेंद्र सिंह हुड्डा के पास अब अकूत संपत्ति भी थी और वह वेस्ट यूपी का प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ व सामाजिक कार्यकर्ता भी था.

यह उस का समाज में दिखावे के जीवन का औरा था. लेकिन इस कथित छवि को बचाने के लिए 5 साल से राजनीतिक संरक्षण पाने की जो मारामारी वह कर रहा था, उस में अभी तक सफलता नहीं मिली थी. विजेंद्र हुड्डा जो काम कर रहा था, उस के लिए उसे सत्ता का आश्रय चाहिए था. जिस से वह कभी फंसे तो किसी बड़ी काररवाई से बच सके. राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी से उस की बातचीत चल रही थी ताकि वह उसे पार्टी में कोई बडा पद दे सकें और वह यूपी सरकार की भागीदार पार्टी का लाभ उठा सके. लेकिन वह इस में कामयाब होता, इस से पहले ही एसटीएफ ने उस के बड़े फरजीवाड़े का परदाफाश कर दिया.

विजेंद्र सिंह कितना शातिर है, इस का पता इसी बात से चलता है कि वह मोनाड यूनिवर्सिटी का चांसलर है. लेकिन यूनिवर्सिटी की वेबसाइट में उस का कहीं कोई जिक्र नहीं है. हुड्डा के कई और भी कालेज हैं. अब वह मेरठ में एक नया कालेज खोलने की भी तैयारी कर रहा था. उस के काले धंधों की भनक मेरठ के ज्यादातर मीडिया वालों को थी, लेकिन करीबी संबंधों और उन के बीच पैसा बांटने के कारण कभी किसी ने उस के कारनामों को उजागर करने की कोशिश नहीं की.

विजेंद्र सिंह ने 2024 के लोकसभा चुनाव में दिए गए अपने शपथपत्र में जानकारी दी थी कि 2024 में उस के पास 28 करोड़ की संपत्ति थी, जबकि 230 करोड़ की देनदारी थी. उस की 2022-23 में वार्षिक आय मात्र 15 लाख रुपए ही थी.

इस मामले की अब ईडी भी करेगी जांच

मोनाड विश्वविद्यालय की फरजी मार्कशीट मामले में एसटीएफ और पिलखुवा पुलिस ने 19 मई को अगले दिन फरीदाबाद के हाई स्ट्रीट 81 माल से एक अन्य आरोपी राजेश को भी गिरफ्तार किया, जो मुकेश कालोनी बल्लभगढ़, फरीदाबाद का रहने वाला है. राजेश की निशानदेही पर पुलिस ने बड़ी मात्रा में फरजी दस्तावेज बरामद किए. इन में मोनाड विश्वविद्यालय की 957 खाली मार्कशीट, 223 खाली सर्टिफिकेट और 575 खाली प्रोविजनल सर्टिफिकेट शामिल थे. इस के अलावा 2 प्रिंटर, कारट्रेज, मोनोग्राम सील का एक बंडल, एक कंप्यूटर और 49 तैयार की गई फरजी मार्कशीट भी मिली थीं.

राजेश सब से पहले पकड़े गए आरोपी संदीप सहरावत के साथ विजेंद्र सिंह का बेहद करीबी साथी था. संदीप व राजेश दोनों मिल कर फरजी मार्कशीट छापने का काम करते थे. संदीप के पकड़े जाने के बाद राजेश फरार हो गया था. राजेश ही वह शख्स है, जो फरजी डिग्री छापने के बाद उन की डिलीवरी करने के लिए ज्यादातर मोनाड यूनिवर्सिटी ले कर जाता था. बताया जा रहा है कि एसटीएफ की इस रिपोर्ट के आधार पर ईडी के अधिकारी विजेंद्र सिंह हुड्डा के चंद सालों में खड़े किए गए विशाल साम्राज्य की जांच कर सकते हैं. यह भी पता लगाएंगे कि 15 हजार करोड़ रुपए के बाइक बोट घोटाले में नाम आने के बाद 5 लाख रुपए का इनामी विजेंद्र सिंह कैसे विदेश भागा और फिर वहां से वापस आने के बाद उस की जमानत कैसे हो गई.

फिर वह बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के टिकट पर कैसे बिजनौर से बीता लोकसभा का चुनाव लड़ा और उस के बाद कैसे वह मोनाड यूनिवर्सिटी की फरजी मार्कशीट बेचने का घंधा करने लगा. फिलहाल एसटीएफ के अधिकारियों को मोनाड यूनिवर्सिटी से पकड़े गए संदीप कुमार उर्फ संदीप सहरावत, जो हरियाणा का रहने वाला है, ने यह बताया है कि वह यूनिवर्सिटी के चेयरमैन विजेंद्र सिंह हुड्डा के कहने पर फरजी मार्कशीट व डिग्री छापता था और विजेंद्र सिंह का खास राजेश इस काम में उस की मदद करता था.

उस ने बताया कि वह बीते 3 सालों से यह धंधा कर रहा था. यह सब भी तब हो रहा था जबकि इस रैकेट का मास्टरमाइंड विजेंद्र सिंह बाइक बोट घोटाले का आरोपी है तथा ईओडब्ल्यू के साथ ईडी बाइक बोट घोटाले की जांच कर रही है. ऐसे में अब विजेंद्र सिंह हुड्डा की गिरफ्तारी के बाद मोनाड यूनिवर्सिटी पर ईडी का भी शिकंजा कसना तय है, क्योंकि आशंका जताई जा रही है कि बाइक बोट घोटाले से जुटाई गई रकम विजेंद्र सिंह हुड्डा ने मोनाड यूनिवर्सिटी में निवेश किया है. एसटीएफ की अब तक जांच में पता चला है कि पलवल में रहने वाला संदीप सहरावत इस रैकेट का दूसरा मास्टरमाइंड है, जो महज 12वीं तक पढ़ा हुआ है.

उस ने 15 साल पहले हथीन में एक कंप्यूटर सेंटर से शुरुआत की थी और बाद में नकली मार्कशीट बनवाने का अवैध धंधा शुरू कर दिया. धीरेधीरे इस गोरखधंधे से उस ने करोड़ों की संपत्ति बना ली. पलवल के चिरावड़ी गांव में उस की अलीशान कोठी, फुल बौडी स्कैनर, हाईसिक्योरिटी कैमरे और लग्जरी गाडिय़ां उस की गैरकानूनी कमाई की गवाही देते हैं. संदीप 3 साल पहले विजेंद्र हुड्डा के संपर्क में आया था. जब विजेंद्र को संदीप के हुनर की जानकारी मिली तो दोनों ने हाथ मिला लिया. संदीप की फरजी मार्कशीट को हापुड़ की मोनाड यूनिवर्सिटी मान्यता देने लगी और इन्हें छात्रों को 50 हजार से ले कर 4 लाख रुपए तक में बेचा जाने लगा.

संदीप को प्रति मार्कशीट 5 हजार रुपए मिलते थे. गिरोह के सदस्य यूनिवर्सिटी तक मार्कशीट पहुंचाते और वेरिफिकेशन दिखाने में सहयोग करते थे. गोरखधंधे की कमाई बनी संदीप की आलीशान कोठी इतनी भव्य है कि हरियाणवी डांसर सपना चौधरी ने भी यहां अपने गाने की शूटिंग की थी. वह खुद को बिजनेसमैन बताता था और आमतौर पर फाच्र्यूनर जैसी लग्जरी गाडिय़ों में चलता था. कोठी में उस की पत्नी और 2 बच्चे रहते हैं. पुलिस ने अभी तक गिरफ्तार सभी 12 आरोपियों को हापुड़ कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया है और उन से बरामद किए गए दस्तावेजों की जांच की जा रही है.

सवालों के घेरे में प्राइवेट यूनिवर्सिटी मौडल

हापुड़ की मोनाड यूनिवर्सिटी में हुआ फरजी डिग्री व मार्कशीट का घोटाला प्राइवेट यूनिवर्सिटी मौडल की निगरानी और पारदर्शिता पर भी सवाल खड़े करता है. अकसर देखा गया है कि कुछ निजी विश्वविद्यालय केवल मुनाफा कमाने के उद्ïदेश्य से खोले जाते हैं और वहां शिक्षा की गुणवत्ता या पारदर्शिता का अभाव होता है. मोनाड यूनिवर्सिटी का मामला इसी चिंताजनक स्थिति को उजागर करता है. आशंका है कि यह गिरोह केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं है. बरामद किए गए दस्तावेजों और डिजिटल डेटा से यह संकेत मिल रहे हैं कि इस रैकेट का नेटवर्क अन्य राज्यों और संभवत: विदेशों तक फैला हो सकता है.

जांच एजेंसियां अब उन डिग्रियों और प्रमाणपत्रों की सूची तैयार कर रही हैं, जो इस यूनिवर्सिटी से जारी किए गए थे, ताकि उन के धारकों की वैधता की जांच की जा सके. इस घोटाले के सामने आने के बाद शिक्षा मंत्रालय की निगरानी प्रणाली पर भी सवाल उठने लगे हैं. आखिर कैसे इतनी बड़ी संख्या में फरजी डिग्रियां बिना किसी सरकारी जांच या शिकायत के जारी होती रहीं. यह दर्शाता है कि निगरानी प्रणाली में कहीं न कहीं गंभीर खामियां हैं, जिन का सुधार तत्काल जरूरी है.

फरजी डिग्रीधारक यदि सरकारी या निजी संस्थानों में नौकरी पा जाते हैं तो इस से योग्य उम्मीदवारों का नुकसान होता है और संस्थानों की कार्यक्षमता पर भी असर पड़ता है. यह न सिर्फ व्यक्तिगत स्तर पर अन्याय है, बल्कि देश की प्रगति के रास्ते में एक बड़ी बाधा भी. इस मामले की जांच को और गहराई से करने की जरूरत है. डिजिटल सबूतों को साइबर फोरैंसिक लैब में भेजा जा रहा है. इस के साथ ही जिन एजेंटों और दलालों के नाम सामने आ रहे हैं, उन की भी तलाश की जा रही है. माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में और भी गिरफ्तारियां हो सकती हैं.

इस घटना के बाद आम नागरिकों, खासकर छात्रों और अभिभावकों को भी अधिक सतर्क रहने की जरूरत है. किसी भी संस्थान में प्रवेश लेने से पहले उस की मान्यता, रिकौर्ड और विश्वसनीयता की पूरी जांच करना जरूरी है. मोनाड यूनिवर्सिटी फरजी डिग्री घोटाले ने न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश की शिक्षा व्यवस्था को झकझोर कर रख दिया है. यह समय है जब सरकार, शिक्षा विभाग और न्यायिक संस्थाएं मिल कर ऐसी गतिविधियों पर सख्त से सख्त काररवाई करें, ताकि शिक्षा का पवित्र स्वरूप बचा रह सके. इस काररवाई से यूनिवर्सिटी समेत इस गोरखधंधे में संलिप्त लोगों में हड़कंप मचा हुआ है. UP News

 

 

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