Extramarital Affair : लखनऊ के रिकवरी एजेंट कुणाल शुक्ला (27 वर्ष) और प्रौपर्टी डीलर विवेक सिंह के बीच का रिश्ता भरोसे पर टिका हुआ था. अचानक एक प्रेमप्रसंग के आने से रिश्ते में खटास आ गई. विवेक का उस पर से भरोसा टूट गया… कारण, उस की पत्नी का अफेयर था. उस के बाद दिल दहला देने वाली जो वारदात हुई, उस से पतिपत्नी, गहरी दोस्ती और मालिककर्मचारी के रिश्ते तक में अविश्वास का ऐसा जहर घुल गया कि…

शाम का अंधेरा गहराने लगा था. दादूपुर-डेस्टियन सिटी कालोनी निवासी विवेक सिंह अपनी स्वास्तिक असोसिएट कंपनी के औफिस में अकेला बैठा था. वह गहरी चिंता में डूबा था. इसी बीच उस का एक कर्मचारी वसीम अली खान उस के पास आ कर बोला, ”भाई साहब, कहें तो कुछ खानेपीने के लिए मंगवा दूं?’’

विवेक उस के कहने का मतलब समझ गया था, लेकिन चुपचाप रहा. उस की मासूमियत भरी सूरत को निहारने लगा. विवेक को शांत देख कर वसीम वहां से जाने को मुड़ा.

”वसीम! तुम मेरा एक काम करोगे?’’ अचानक विवेक की आवाज सुन कर वसीम उस की ओर तुरंत पलटता हुआ बोला, ”हांहां, बोलो न! कौन सा ब्रांड लाना है?’’

”अरे भाई वसीम, मैं किसी शराब के बोतल की बात नहीं कर रहा. मैं कुछ औैर कहना चाहता हूं. पहले यहां बैठ.’’ विवेक प्यार से बोला.

”बोलो न भाई, मैं ने कभी किसी काम के लिए आप को मना किया है?’’ वसीम बोला.

”अगर तूने मेरा काम कर दिया तो बदले में तुम्हें एक 100 गज का फ्लैट गिफ्ट कर दूंगा.’’ विवेक बोला.

”ऐंऽऽ ऐसा कौन का काम है भाई, जो मुझे आप इतना बड़ा गिफ्ट दोगे?’’ वसीम ने जानने की जिज्ञासा दिखाई.

”है कुछ पर्सनल काम, जो किसी और से नहीं करवा सकता.’’ विवेक बोला.

”कौन सा काम है, जो मैं ही कर सकता हूं… वह कुणाल नहीं कर सकता क्या?’’ वसीम बोला.

”अरे उस हरामजादे का नाम भी मत ले… वह रिकवरी तो ठीक से करता नहीं है…और उस की वजह से मेरा करोड़ों रुपया मार्केट में फंसा है… अब उस ने मेरी इज्जत पर भी…खैर, छोड़ उस की, जा पहले कुछ खानेपीने को ले कर आ. फिर साथ बैठ कर पर्सनल काम के बारे में बताऊंगा.’’

थोड़ी देर में विवेक और वसीम औफिस के बंद केबिन में बैठे थे. दोनों के हाथों में शराब का गिलास था. टेबल पर सामने प्लेट में नमकीन थी. विवेक एक घूंट शराब पीने के बाद वसीम को समझाने लगा, ”देखो वसीम, यह काम है तो जोखिम वाला, लेकिन इस में हम दोनों की भलाई है. आखिर कब तक हम आस्तीन में सांप को पाले रखें…कहीं किसी दिन हमें ही डंस लिया तो क्या होगा?’’

”फिर भी, भाई अगर बातों से बिगड़ी बात पटरी पर आ जाए तो वही अच्छा होगा.’’ वसीम बोला.

”कुछ नहीं बात बनने वाली है. अब उस का पानी समझो सिर के काफी ऊपर से जा चुका है.’’

”चलो ठीक है…मुझे पूरा प्लान समझाओ,’’ वसीम बोला.

विवेक ने एक कागज का पन्ना लिया और रेखांकन के जरिए पूरी योजना के बारे में वसीम को समझा दिया. वसीम ने अच्छी तरह प्लान समझने की हामी भर दी. गिलास के बचे पैग को खत्म किया… टेबल पर बिखरे सामान को समेट कर और वहां से विदा ले लिया.

औफिस में मिली खून से लथपथ लाश

बात 8 सितंबर, 2025 की है. विवेक सिंह के औफिस में शराब पार्टी चल रही थी. केबिन में विवेक के साथ उस रोज वसीम नहीं, बल्कि कुणाल शुक्ला था. वह विवेक का खास था. उस के बिजनैस में कुणाल की खास भूमिका थी. वह एक रिकवरी एजेंट था. काफी समय से विवेक के साथ जुड़ा हुआ था. कई दिनों बाद दोनों के हाथ शराब का गिलास थामे थे. हंसीठहाके का माहौल बना हुआ था. विवेक उस के गिलास में पैग पर पैग बनाए जा रहा था. जबकि खुद धीरेधीरे घूंट ले रहा था.

”अब बस कर यार!’’ कुणाल शुक्ला लडख़ड़ाई आवाज में बोला.

”यह आखिरी पैग भाभी के नाम.’’ विवेक बोला और एक बड़ा पैग बना दिया.

”तूने तो भाभीजी का नाम ले कर मेरा दिल जीत लिया…लाओ, इसे तो एक सांस में पी लूंगा.’’

”हांहां, ले पी न!’’ वो पैग विवेक ने उसे अपने हाथों से पिला दिया. अपना हाथ तब तक लगाए रखा, जब तक कि उस ने पूरा पैग खत्म नहीं कर लिया.

पूरा पैग गटकते ही कुणाल (27 वर्षीय) वहीं टेबल पर सिर टिका कर लुढ़क गया. वह नशे की हालत में अर्धबेहोश हो चुका था. जबकि विवेक होश में था. वैसे तो जब भी दोनों साथसाथ शराब पीते थे, तब विवेक हमेशा पहले अधिक नशे से लडख़ड़ाने लगता था और उसे कुणाल सहारा दे कर देर को उस के घर तक पहुंचाता था. उस रोज उलटा हुआ था. कुणाल ही नशे में धुत हो चुका था और उसे ही घर पहुंचाने के लिए सहारे की जरूरत थी.

”कुणाल! मेरे भाई कुणाल!! तुझे घर छोड़ दूं.’’ विवेक प्यार से उस की गाल पर थपकी लगाते हुए बोला. जबकि वह कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं था.

वह खुद से बोलने लगा, ”ऐसा करता हूं इसे औफिस के बैडरूम में ही सुला देता हूं. सुबह जल्द आ जाऊंगा या फिर वसीम को बोल दूंगा जल्द आने को!’’

उस के बाद उस ने कुणाल के वजनी शरीर को सहारा दे कर बैडरूम में ले जा कर सुला दिया. अधिक नशे में होने के कारण कुणाल तुरंत खर्राटे भरने लगा. तब तक रात के 11 बज चुके थे. विवेक अपने घर चला गया था. जाने से पहले उस ने वसीम को फोन कर कुणाल के औफिस के बैडरूम में सोने की जानकारी दे दी थी. इस से अलग एक और सच्चाई भी थी. कुणाल को अधिक शराब पिलाना और उसे नशे की हालत में औफिस के बैडरूम में ही सुला देना उसी प्लान का हिस्सा था, जिसे विवेक ने बनाया था.

प्लान के मुताबिक वसीम को जैसे ही विवेक की कौल आई, वह सक्रिय हो गया. वह विवेक का इशारा समझ चुका था. थोड़ी देर में ही वसीम विवेक के औफिस में पहुंच गया. वसीम सीधा वहीं गया, जहां कुणाल बेसुध सोया था. शराब के नशे में गहरी नींद में खर्राटे भर रहा था. उस ने कमरे में इधरउधर नजरें दौड़ाईं.

उस की नजर उस सब्बल पर गई, जिसे उस ने एक दिन पहले कोने में छिपा दिया था. उस के दिमाग में एक साथ कई बातें कौंध गईं. कई तसवीरें तैरने लगीं जिन में फ्लैट, सो रहा कुणाल और आग्रह करता विवेक का मायूस चेहरा था. तभी उसे खुद की सुरक्षा, पुलिस और कोर्टकानून आदि से बचने की भी चिंता का एहसास हुआ. अब उस की निगाह सुरक्षित करने की नजर से कमरे के अंदर लगे सीसीटीवी कैमरे पर गई. उस ने पहले उसे हटाया, फिर उस का डीवीआर हटा दिया. पलभर के लिए निश्चिंतता की लंबी सांस ली.

अगले ही पल उस ने फुरती से सब्बल को दोनों हाथों से पकड़ा और कुणाल के सिर पर तेजी से हमला कर दिया. अचानक हुए हमले से कुणाल कुछ समय के लिए छटपटाया… चीख निकली और जल्द ही मरणासन्न अवस्था में पहुंच गया. वसीम ने सब्बल से 2-3 हमले किए. उस के बाद वह औफिस के कमरे से सीसीटीवी और डीवीआर ले कर फरार हो गया. सर्विलांस के सामान उस ने बाहर झाडिय़ों में फेंक दिए.

अगले रोज 9 सितंबर की सुबह विवेक सिंह की घरेलू नौकरानी संगम थारू औफिस में सफाई करने गई. वहां कुणाल के कमरे में लाश देख कर वह भयभीत हो गई. कांपने लगी. भागीभागी विवेक के आवास पर लौट आई. उस ने विवेक सिंह को जा कर बताया कि कुणाल की किसी ने हत्या कर दी है. बैड के चारों तरफ खून फैला है. दीवार और छत पर खून के छींटे हैं. विवेक देरी किए बगैर कुणाल के भाई सौरभ शुक्ला के साथ कंपनी औफिस गया. उन्होंने इस वारदात की फोन पर पुलिस को सूचना दे दी.

पुलिस ने कई एंगल से शुरू की जांच

सूचना पा कर बंथरा पुलिस स्टेशन के एसएचओ राजेश कुमार सिंह पूरी टीम के साथ घटनास्थल पर आ गए. डीसीपी (साउथ) निपुण अग्रवाल और एसीपी विकास कुमार पांडे भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल स्वास्तिक एसोसिएट कंपनी के कार्यालय में मुआयना किया. कुणाल का खून से लथपथ शव बैड पर पड़ा था. घटनास्थल पर एसएचओ के साथ एसएसआई प्रमोद यादव, एसआई ब्रजभान सिंह, अभय कुमार गुप्ता और सहदेव कुमार ने कंपनी के तमाम स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे की तलाश की. कुछ हिस्से गायब मिले, जबकि कुछ इधरउधर टूटेफूटे बिखरे थे. पुलिस समझ गई कि हत्यारा शातिरदिमाग का है और उस ने यह सब सबूत मिटाने के लिए किया है.

हत्या के बारे में जानकारी जुटाने के लिए घटनास्थल के लोकेशन की तहकीकात के अलावा कंपनी के कर्मचारियों से पूछताछ की गई, लेकिन उन से कोई ठोस जानकारी नहीं मिल पाई. कुणाल के बड़े भाई सौरभ सिंह के सामने शव का निरीक्षण किया गया. उसे देखने से पता चला कि उस की आंखें बुरी तरह से कुचली गई थीं. मौके पर पुलिस को कुणाल का मोबाइल भी नहीं मिला. घटनास्थल को देख कर ऐसा लग रहा था कि कंपनी का ही कोई न कोई व्यक्ति जरूर घटना से पहले अपराधी से मिला हो. जांचपड़ताल के दौरान कंपनी के कर्मियों ने एसएचओ को बताया कि कुणाल औफिस में बने कमरे में ही सोता था. हर रोज अंदर से कमरा बंद कर लेता था, किंतु घटना वाली रात हो सकता है वह ज्यादा नशे में हो और बिना कमरा बंद किए बैड पर जाते ही सो गया हो.

फोरैंसिक टीम के साथ पुलिस ने औफिस के बगल में खाली पड़े प्लौट से खून से सना सब्बल बरामद किया. पास में ही झाडिय़ों में सीसीटीवी कैमरा और उस का डीवीआर भी मिल गया. घटनास्थल पर शव का पंचनामा करने से पहले कुणाल की मम्मी को शव को सही ढंग से देखने भी नहीं दिया गया. कारण, चेहरा काफी विचलित करने वाला था. जांच में पता चला कि शाम के वक्त औफिस बंद करते समय कुणाल, विवेक और वसीम खान अकसर खानेपीने की पार्टियां किया करते थे. कुणाल अकसर घर नहीं जा कर औफिस में ही सो जाता था.

जांच के सिलसिले में कुणाल की हत्या का मामला रिकवरी के मुद्ïदे से जुड़े होने का भी अनुमान लगाया गया. बंथरा के डेस्टिनी कालोनी निवासी रिकवरी एजेंट कुणाल शुक्ला (26) दादूपुर स्थित स्वास्तिक असोसिएट्स (रिकवरी एजेंसी) के लिए काम करता था. लोग यह भी जानते थे कि विवेक और कुणाल के बीच अकसर लेनदेन को ले कर बहस होती रहती थी. यहां तक कि पार्टियों के साथ भी रिकवरी को ले कर कई विवाद थे. इस कारण जांच टीम ने आशंका जताई कि कुणाल की हत्या रंजिशन हो सकती है.

पुलिस ने कुणाल और विवेक के मोबाइल  नंबरों की कौल डिटेल्स निकलवाई. हालांकि पुलिस की शुरुआती जांच में मृतक के सिर को कुचल कर हत्या करने की बात सामने आई थी. कुणाल के बड़े भाई सौरभ सिंह द्वारा उस की हत्या का मुकदमा अज्ञात रूप से दर्ज कराने के लिए तहरीर दी गई. पुलिस द्वारा मुकदमा अपराध संख्या 317/2025 पर बीएनएस की धारा 238(क) के तहत दर्ज किया गया था, जिस में जांच करने के बाद 61(क)/2 की बढ़ोत्तरी कर दी गई. कंपनी के विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के आधार पर पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि हत्या के पहले विवेक सिंह ने अपने सहयोगी वसीम खान से फोन पर बात की थी.

साथ ही कुणाल के मोबाइल नंबर से यह बात सामने आई कि उस की बातचीत विवेक सिंह की पत्नी मालती सिंह से होती थी. डिजिटल तथ्यों से पुलिस को कुणाल हत्याकांड का परदाफाश करने में देर नहीं लगी. विवेक सिंह और वसीम खान से इस बारे में सख्ती से पूछताछ की गई. वसीम ने पुलिस को बयान दिया कि 8 सितंबर, 2025 को हत्याकांड की योजना उस के सामने बनाई गई थी, जिस में उसे मकान देने का लालच दे कर इसे अंजाम देने के लिए कहा गया था. उस ने यह भी स्वीकार कर लिया कि हत्या उस के द्वारा ही की गई.

उस से पूछताछ के बाद कुणाल शुक्ला हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

पत्नी और कुणाल के बीच बने अवैध संबंधों से विवेक सिंह की काफी बदनामी हो रही थी. विवेक ने योजना बना कर वसीम अली खान को भी उस में शामिल कर लिया. वसीम कुणाल के मर्डर में इसलिए शामिल हो गया कि एक तो विवेक ने उसे फ्लैट देने का वादा किया था और दूसरे पैसों के लेनदेन को ले कर उस का भी कुणाल से विवाद चल रहा था. गाजीपुर जिले के करीमुद्ïदीनपुर स्थित महेन गांव निवासी वसीम अली खान लखनऊ के सरोजनीनगर के गौरी बाजार में किराए पर रहता था. उस ने पूछताछ में बताया कि कुणाल को ठिकाने लगाने के लिए विवेक सिंह ने उसे नया मकान बनवा कर देने का लालच दिया था. विवेक ने कार्यालय में पहले से ही सब्बल रखवा दिया था और सही मौका देख कर उसे वारदात करने के लिए भेजा था.

यह बयान पुलिस के लिए अहम था. उसे हिरासत में लिए जाने के बाद 10 सितंबर को पुलिस की टीम एसएसआई प्रमोद यादव, एसआई श्यामजी मिश्रा, सहदेव कुमार, अभय कुमार गुप्ता को साथ ले कर एसएचओ राजेश कुमार सिंह ने कंपनी  के औफिस से विवेक सिंह को हिरासत में ले लिया. डीसीपी (साउथ) निपुण अग्रवाल के सामने विवेक ने भी अपना जुर्म कुबूल कर लिया. रात को विवेक से कुणाल के कार्यालय में अकेले होने की सूचना पा कर वसीम अली खान वहां गया था और सब्बल से ताबड़तोड़ वार कर उस की हत्या कर दी थी. उस के बाद सब्बल को बगल के प्लौट में फेंक कर भाग गया था. पुलिस ने उसी दिन सब्बल को बरामद कर लिया था.

वसीम ने बताया कि कुणाल की हत्या करने के बाद उस का मोबाइल ले कर कुछ दूरी पर स्थित गिट्टी प्लांट पर गया था. वहां विवेक पहले से मौजूद था. वसीम ने खून से सने अपने कपड़े धोए और उन्हें पौलीथिन में रख कर प्लांट के पास बने टौयलेट में छिपा दिए थे. उस ने दूसरी टीशर्ट पहनी और पकड़े जाने के डर से कुणाल का मोबाइल नाले में फेंक दिया.

पति की उपेक्षा से पहुंची दोस्त की बांहों में

उत्तर प्रदेश लखनऊकानपुर रोड पर बंथरा थाना क्षेत्र में दादूपुर-डेस्टियन सिटी कालोनी में स्वास्तिक एसोसिएट कंपनी का मालिक विवेक सिंह रहता था. कंपनी का मुख्य काम गाडिय़ों की रिकवरी का था. उस के पास करीब 4 साल पहले कुणाल शुक्ला आया था. अयोध्या के धनुआपुर का रहने वाला कुणाल शुक्ला दिखने में हट्टाकट्टा और व्यवहार में कुशल और तेजतर्रार 26 वर्षीय युवक था. विवेक ने उसे गाडिय़ों के रिकवरी एजेंट के रूप में अपने साथ काम पर लगा लिया. उस ने रिकवरी के काम को अच्छी तरह संभाल लिया, जिस से कंपनी की अच्छी आय होने लगी.

कुणाल के पापा अशोक शुक्ला फैजाबाद जनपद में रोडवेज डिपो में ड्राइवर थे और उन्होंने दादूपुर में अपना मकान बनवा लिया था. कुणाल वहीं अपनी मम्मी सुधा और बड़े भाई सौरभ शुक्ला के साथ रहता था. विवेक सिंह का मकान भी वहीं पास में ही था. इस कारण कुणाल और विवेक एकदूसरे के काफी नजदीकी थे. जल्द ही कुणाल विवेक के घर भी आनेजाने लगा. कुणाल और विवेक के परिवार में अच्छे संबंध बन चुके थे. विवेक सिंह के हर काम में कुणाल वफादार साबित हो चुका था. इस कारण कुणाल और विवेक की नजदीकियां काफी बढ़ गई थीं. दोनों एकदूसरे के हमराज बन चुके थे. काम से फुरसत मिलने पर औफिस में देर रात तक पार्टी का जश्न मनाते थे. बाहर की पर्टियों में भी अकसर साथसाथ जाते थे.

कई बार देर रात तक पार्टियों के दौरान विवेक जब शराब के नशे में धुत हो जाता था, तब कुणाल ही उसे अपने कंधे का सहारा दे कर उस के घर के बैडरूम तक छोड़ दिया करता था. उस वक्त उस की पत्नी मालती सिंह भीतर ही भीतर कुढ़ जाती थी, जबकि कुणाल मजाकमजाक में कमेंट कस दिया करता था. हालांकि उस के मजाक का मालती बुरा नहीं मानती थी. एक सच्चाई यह भी थी कि विवेक की आए दिन शराब पी कर धुत होने से वह परेशान रहने लगी थी. उस की परेशानी को कुणाल अच्छी तरह भांप चुका था. उस के रगों के जख्मों पर भावनात्मक बातों का मरहम लगा दिया करता था.

एक बार मजाक में ही कुणाल बोल पड़ा था, ”भाभीजी, आप अपनी अमानत को संभालती क्यों नहीं हो?’’

जवाब में मालती सिर्फ मुसकरा दी थी. वह कुणाल के बोलने का मतलब अच्छी तरह समझ गई थी. कुछ पल ठहर कर बोली, ”ऐसी अमानत से क्या फायदा? कौन सा सुख मिलता है इस अमानत से! आज तक तुम्हारे भैया ने मुझे कौन सा सुख दिया है? हर समय मुझे बुराभला कहते रहते हैं…और रात को भी नशे में बेसुध पड़े रहते हैं.’’

”ऐसा नहीं है भाभी, विवेक भैया बहुत अच्छे हैं. उन की बातों का बुरा मत माना करो. कंपनी का काम बहुत टेंशन भरा होता है.’’ कुणाल बोला.

”कितने टेंशन का काम है, जरा मुझे समझाओ तो?’’ मालती बोली.

”कभी फुरसत में बैठूंगा, तब समझाऊंगा.’’ कुणाल बोला.

”नहीं, अभी बताओ. आओ इधर.’’ मालती उस का हाथ खींचती हुई अपने बैडरूम में ले कर चली गई. उस वक्त रात के 11 बज चुके थे. बोली, ”पास में ही तो रहते हो चले जाना. कुछ खाने को लाती हूं. मैं ने भी अभी तक खाना नहीं खाया है.’’

कहते हुए मालती कमरे से बाहर चली गई थी. कुणाल उस के भूखे रहने की बात सुन कर चौंक गया था. उस के और विवेक के साथ संबंध को ले कर सोचने लगा.

कुछ मिनट में ही मालती 2 प्लेटों में खाने का सामान ले आई थी. बैड के पास रखे साइड टेबल पर रखती हुई हाथों का इशारा करती हुई बोली, ”कहो तो यह भी ला दूं.’’

”भाभी, तुम भी पीती हो?’’ कुणाल चौंकता हुआ बोला.

”अरे! इस में चौंकने की कौन सी बात है. जब घर में बोतल रखी होगी, तब कैसे किसी का मन नहीं करेगा…हां, यह कहो कि इस का मजा तो किसी के साथ ही लिया जा सकता है!’’ मालती जब मोहक अदाओं के साथ बोली, तब कुणाल भी हामी भरने से पीछे नहीं रहा.

”सही कहती हो भाभी, शराब का मजा अकेले कहां मिलता है… अगर साथ कोई औरत हो तब तो इस का मजा और भी दुगुना हो जाता है.’’ कुणाल बोला.

”यह हुई न दिल की बात.’’

थोड़ी देर में कुणाल और मालती के हाथों में शराब का गिलास था. जबकि विवेक दूसरे कमरे में नशे में बेसुध सो रहा था. अधेड़ उम्र की मालती 2-3 पैग में ही बहकने लगी. दिल की बात जुबान पर आने लगी. निराशा और पति से मिलने वाले सुख की कमी की बातें करने लगी. बोलतेबतियाते वह कब कुणाल की बाहों में लिपट गई, इस का दोनों को पता ही नहीं चला. जल्द ही दोनों वासना की रौ में बहने लगे. उस रोज कुणाल भूल गया था कि वह अपने दोस्त समान मालिक की पत्नी के साथ गलत कर चुका है…इसी तरह मालती भी भूल चुकी थी कि उस ने पति के दूसरे कमरे में रहते हुए गैरमर्द के साथ हसरतें पूरी की हैं.

सुबह पौ फटने से पहले कुणाल को मालती ने अपने कमरे से विदा कर दिया और दिनचर्या में ऐसे लग गई, जैसे बीती रात कुछ हुआ ही नहीं.

विवेक भी औफिस जाने की तैयारी में लगा हुआ था. इस दौरान ड्राइंग टेबल पर बाल संवारते वक्त आइने में उस की नजर बैड के एक किनारे पर्स पर गई. उस ने पर्स उठा कर देखा. वह कुणाल का था. उस बारे में मालती से पूछ लिया, ”ये कुणाल का पर्स यहां कैसे?’’

”तुम तो होश में होते नहीं हो और मुझ से पूछते हो… कल रात तुम्हें नशे की हालत में यहां छोड़ गया था, तभी उस का पर्स यहां गिर गया था. मैं ने ही उसे वापस लौटाने के लिए बैड पर रख दिया था. लेते जाओ, उसे वापस कर देना.’’ मालती बड़ी सफाई से रात की बात को छिपा गई. विवेक ने भी कुणाल के पर्स के यहां होने पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

दगाबाज दोस्त को ऐसे दी सजा

एक बार जब कुणाल और मालती आपस में खुले तब उन के बीच के रिश्ते, सामाजिक दायरे और शर्म की सीमा खत्म हो गई. जब मौका मिलता, कुणाल को मालती बुला लेती तो कुणाल भी इस ताक में रहने लगा कि कब विवेक किसी काम के सिलसिले में शहर से बाहर जाने वाला है. दोनों के अवैध रिश्ते छिपतेछिपाते चलते रहे. किंतु वे ज्यादा दिनों तक विवेक की नजरों से बच नहीं पाए. पहले तो कुछ बातें और मालती का कुणाल के प्रति बदले हुए हावभाव से संदेह हुआ, लेकिन उस ने एक बार छिप कर देख लिया.

हालांकि विवेक इसे ले कर चुप नहीं बैठा, बल्कि मालती से सीधे तौर पर बात की. उस ने ऐसा करने पर उसे सख्ती के साथ मना किया. इस के बदले में मालती ही उलटे विवेक से उलझ गई. गलत आरोप लगाने की तोहमत मढ़ दी. बिजनैस में घाटे और परेशानियों का गुस्सा उस पर उतारने से मना किया. एक तरह से मालती अपने पति पर ही नाराज हो गई.

विवेक ठगा से मुंह ले कर रह गया. वह चाहता तो कुणाल से भी इस बारे में बात कर सकता था, लेकिन उस के साथ पैसे का लेनदेन बना हुआ था. वह जानता था कि यदि उस ने खुल कर पत्नी के साथ उस के नाजायज रिश्ते की बातें कीं, तब उस के बहुत सारे पैसे डूब सकते थे. इस कारण वह तनाव से घिर गया. वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे और क्या नहीं? दूसरी तरफ कुणाल का दबदबा विवेक पर बढ़ता ही जा रहा था.

एक तरफ विवेक का शाही खर्च कम नहीं हो रहा था, दूसरी तरफ कुणाल का दबाव उस पर बढ़ता ही जा रहा था. उस के नशे की आदत से काफी परेशान मालती के ताने से उस का दिमाग भन्ना जाता था. इस गम और परेशानी को भूलने के लिए विवेक सिंह दिनरात बुरी तरह से शराब पीने लगा था. घर पर जब होश में होता था, तब उस की पत्नी से अकसर रात को तकरार हो जाया करती थी. विवेक के दिमाग पर चौतरफा मार पड़ रही थी. उस से बचने के लिए उस ने पत्नी से भी बात कर के देख ली थी और कुणाल को भी इशारेइशारे में समझने की कोशिश की थी. सारे प्रयास बेकार साबित हुए थे. आखिरकार उस ने कुणाल के खिलाफ ही ऐक्शन लेने की पहल की. उस से पीछा छुड़ाने के लिए तानाबाना बुन लिया और अपने दिल की बात अपने कर्मचारी वसीम अली खान को बताई.

8-9 सितंबर की रात वसीम अली खान ने योजना के मुताबिक हत्याकांड को अंजाम दे दिया. बचने के तरीके भी अपनाए, लेकिन पुलिस की गहन तहकीकात और कानून के लंबे हाथों से बच नहीं पाया. 10 सितंबर को पुलिस अधिकारियों के समक्ष पेश किए जाने के बाद दोनों आरोपियों को न्यायालय में पेश किया गया. वहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. Extramarital Affair

—कथा में मालती परिवर्तित नाम है

 

 

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