UP News : 15 साल की आशू और 19 साल के राहुल निषाद को साथसाथ पढ़ते हुए ही प्यार हो गया था. कई साल बाद जब उन के प्यार की पोल खुली, तब तक उन के संबंध बहुत गहरे हो चुके थे. घर वालों ने उन के प्यार पर नकेल कसने की कोशिश की, लेकिन असफल रहे. अंत में यह जोड़ा भी औनर किलिंग के गर्त में इस तरह समा गया कि…

उत्तर प्रदेश का कुशीनगर जिला एक पर्यटनस्थल के रूप में जाना जाता है. यहां देशविदेश से बौद्ध भिक्षु घूमने आया करते हैं. बताया जाता है कि यहीं पर गौतम बुद्ध ने अपनी अंतिम सांस ली थी, इसलिए यह जिला देशविदेश में काफी प्रसिद्ध है. इसी जिले के तमकुहीराज थाना अंर्तगत परसौनी गांव में 58 वर्षीय रामदेव कुशवाहा अपने परिवार के साथ रहता था. परिवार में 3 बेटियां थीं. पत्नी की कई साल पहले बीमारी से मृत्यु हो गई थी. बेटियों के अलावा रामदेव के कोई बेटा नहीं था.

रामदेव के बड़े भाई के 3 बेटे थे, इसलिए उन्हें कभी इस बात का मलाल नहीं हुआ कि उन्हें बेटा क्यों नहीं पैदा हुआ. बड़े भाई के दूसरे नंबर का बेटा, जिस का नाम सिकंदर कुशवाहा था, दुखसुख में चाचा रामदेव के पास हर घड़ी खड़ा रहता था. उन की एक आवाज पर कड़ी धूप हो या चाहे तूफान आ जाए, उन का आदेश सिरआंखों पर रख पहले फरमाइश पूरी करता था.

रामदेव सिकंदर को बेटे की तरह मानते थे और उस के लिए हमेशा समर्पित रहते थे. उस की बातों और भावनाओं को सिर माथे लगाए रखते थे. बेटियां भी सिंकदर को अपने सगे भाई से कम नहीं समझती थीं. हर साल रक्षाबंधन के त्योहार पर सिकंदर की कलाई पर राखी बांध कर उस से ढेरों आशीर्वाद लेती थीं. इस दिन सिकंदर दिल खोल कर बहनों को आशीर्वाद देता था.

बात 30 जून, 2025 की रात की है. गांव के पट्टीदारी में एक बारात आई थी. उस बारात में रामदेव कुशवाहा भी पूरे परिवार के साथ आमंत्रित थे. वह तीनों बेटियों विमला, सुमन, आशू और बेटे सिकंदर के साथ लड़की के घर बारात में पहुंचे थे. वहां पहुंच कर सभी पार्टी एंजौय करने में मशगूल हो गए थे. सिकंदर अपने हमजोलियों के साथ मस्त था तो रामदेव की सब से छोटी बेटी आशू कुशवाहा अपनी बहनों और सहेलियों के साथ पार्टी एंजौय करने में मस्त थी.

पार्टी एंजौय करतेकरते आशू कहीं नजर नहीं आ रही थी. चचेरा भाई सिकंदर भले ही पार्टी एंजौय कर रहा था, लेकिन उस का पूरा ध्यान पार्टी नहीं सिर्फ आशू पर था. वह क्या कर रही है, किस से मिल रही है, उन के बीच क्या बातचीत कर रही है, घूमघूम कर यही निगरानी वह कर रहा था. अचानक से जब आशू पार्टी में कहीं नहीं दिखी तो उस का माथा ठनक गया. पागल कुत्ते के माफिक वह आशू को पार्टी में इधरउधर ढूंढने लगा. वह कहीं नहीं दिखी. चाचा रामदेव ने भी सिकंदर को हिदायत दी थी कि आशू पर निगरानी रखे. इतना समझाने के बावजूद अगर उस के पांव उस के बस में नहीं होते हैं तो इज्जत बचाने के लिए जो अच्छा लगे, फैसला कर सकते हो.

रंगेहाथों पकड़ी गई आशू

बहन आशू को ढंूढतेढूंढते सिकंदर पार्टी वाली जगह से थोड़ा बाहर निकला तो अंधेरे में उसे किसी के फुसफुसाने की आवाज सुनाई दी. वह दबे पांव और आहिस्ताआहिस्ता वहां पहुंचा तो उसे आशू दिख गई. वह अपने प्रेमी राहुल निषाद से बातें कर रही थी. पास खड़े चचेरे भाई को देख कर आशू एकदम सकपका गई. उस का चेहरा पीला पड़ गया था. बहन की इस हरकत पर सिकंदर गुस्से से लाल हो गया. उस ने आव देखा न ताव, बहन की बाजू पकड़ कर खींचता हुआ वहां से ले कर घर चल दिया.

”क्या कर रहे हो भैया?’’ आशू दर्द से बिलबिलाई और भाई की मजबूत पकड़ से छूटने की कोशिश की, ”दर्द हो रहा है, छोड़ो मेरा हाथ. टूट जाएगा.’’

”तुझे दर्द हो रहा है, हाथ टूट जाएगा तेरा, चल घर चल.’’ घसीटते हुए सिकंदर आगे बोला, ”बताता हूं तुझे. घर की इज्जत डुबोते हुए तुझे तब दर्द नहीं हो रहा था, बेशरम कहीं की.’’

”मेरा हाथ छोड़ दो.’’

”तू घर तो चल पहले, फिर तेरा हाथ भी छोड़ दूंगा और तेरी अच्छे से खातिर भी करूंगा. तूने समझ क्या रखा है हमें. इतना समझाने के बाद भी तेरे कान पर जूं तक नहीं रेगती और तू फिर उस लुच्चे से चोंच मिलाने चली गई. तेरी इस गुस्ताखी की तो आज सजा मिल कर ही रहेगी. थोड़ी देर तू और रुक जा. चाचा को आ जाने दे. उस के बाद बताता हूं तेरे को.’’ कहता हुआ सिकंदर आशू को कमरे में धकेल कर बाहर से दरवाजे पर सिटकनी लगा दी.

गुस्से के मारे सिकंदर का नथुना फूलपिचक रहा था और बदन थरथरा रहा था. उस समय वह अपने काबू में नहीं था. क्षण भर बाद जैसेतैसे उस ने खुद पर काबू पाया और मोबाइल निकाल कर चाचा रामदेव को फोन कर के फौरन घर आने को कह दिया. जिस लहजे में सिकंदर ने बात की थी, उस से रामदेव को समझने में देर नहीं लगी थी कि वह बहुत गुस्से में है. फिर वह सोचने लगे, अभी तो वह यहीं था, कब घर चला गया और ऐसी क्या बात हो गई कि उस ने तुरंत घर पहुंचने को कहा है.

रामदेव खाना बीच में छोड़ कर बहू रामदुलारी और बेटियों को साथ ले कर लंबेलंबे डग भरते हुए घर निकल पड़े. थोड़ी देर में वह अपने घर पहुंचे तो देखा कि सिंकदर दरवाजे पर खड़ा था और लंबीलंबी सांसें ले रहा था, ”सिकंदर, क्या बात हो गई, जो तुम ने फौरन घर बुला लिया, खाने भी नहीं दिया. आखिर क्या बात है?’’

”आप को खाना खाने की पड़ी है? सुनोगे तो आप के पैरों तले से जमीन खिसक जाएगी.’’

”बात बताओ, जलेबी की तरह गोलगोल मत घुमाओ, आसमान टूट पड़ा या जमीन फट गई? बात क्या है, जो तुम इतने गुस्से में हो.’’

”न आसमान टूट पड़ा और न ही जमीन फट पड़ी, सुनोगे तो आप भी गुस्से से दहकने लगोगे.’’

”अब मुझ से और सब्र नहीं हो रहा, जो कहना है जल्दी कह.’’ रामदेव ने इधरउधर देखते हुए भतीजे सिकंदर से सवाल किया, ”यहां सब तो दिख रहे हैं, लेकिन आशू कहीं दिख नहीं रही है, कहां है? पार्टी से आई नहीं क्या?’’

”अरे चाचा, जब हम पार्टी में मशगूल थे तब वह घर के पिछवाड़े अपने यार की बाहों में चिपकी झप्पी ले रही थी. वहां जब कहीं नहीं दिखी तो मैं ने उसे ढूंढना शुरू किया, तब वह पकड़ में आई थी. उसे पकड़ कर घर लाया और कमरे में बंद कर दिया हूं. फडफ़ड़ा रही है, बंद कमरे में आजाद होने के लिए.’’

”क्या कह रहे हो?’’ रामदेव भतीजे की बात सुन कर गुस्से से तमतमा उठा, ”उस बेशरम नालायक की इतना मजाल, बारबार समझाने के बावजूद भी उस के सिर से राहुल के इश्क का भूत उतर नहीं रहा है, आज तो उस ने सारी हदें ही पार कर दीं, इस गुस्ताखी की सजा तो उसे जरूर मिलेगी. खोल री दरवाजा. जवानी का सारा पानी नींबू की तरह निचोड़ नहीं दिया तो… रोजरोज की बदनामी का किस्सा ही खत्म कर देते हैं,  खोल दरवाजा सिकंदर, जल्दी खोल.’’

चाचा रामदेव का आदेश पा कर सिकंदर ने दरवाजा खोल दिया. एलईडी की सफेद रोशनी से कमरा नहा रहा था और आशू दीवार के एक कोने से दुबकी, डरीसहमी घुटने मोड़ कर बैठी हुई थी. रामदेव की नजर जैसे ही उस की नजर से टकराई, गुस्से से लाल हो गया. उस ने आव देखा न ताव, उस पर लातघूसों की बरसात शुरू कर दी.

डरीसहमी आशू अपनी जान की भीख मांगती रही, उन के सामने गिड़गिड़ाती रही, लेकिन इंसान से हैवान बन चुके रामदेव ने उस की एक न सुनी. कल तक जिस बेटी की एक आवाज पर सारी दुनिया को सिर पर उठा लेने को तैयार था, आज वही पिता पूरी तरह शैतान बन चुका था, ”तुझे बारबार समझाया था बेशरम, उस आवारा राहुलवा से दूर रहना, मत करना नैन मटक्का. तेरे चलते गांव में मेरी कितनी बदनामी हो रही है, लेकिन तूने मेरी एक न सुनी, करती रही नैन मटक्का तो ले भुगत.’’

पीटपीट कर मार डाला फेमिली वालों ने

रामदेव, चचेरा भाई सिकंदर और उस की पत्नी रामदुलारी तीनों मिल कर आशू पर हैवानों की तरह टूट पड़े और जिसे जो हाथ मिला, उसी से तब तक मारते रहे, जब तक उस की मौत न हो गई. लहूलुहान आशू अपने ही खून में डूबी फर्श पर औंधे मुंह निढाल पड़ी हुई थी. थोड़ी देर बाद जब उन का गुस्सा शांत हुआ और होश में आए तो तीनों में से सिकंदर ने उसे हिलाडुला कर देखा. उस के शरीर में कोई हलचल नहीं हो रही थी. वह मर चुकी थी. इस के बाद उन्होंने लाश पर चादर डाल दी और दरवाजे पर ताला जड़ दिया.

फिर तीनों एक पेट हो हत्या की बात हजम कर गए. घर के सभी सदस्यों को धमका दिया था कि किसी ने भी इस घटना को घर से बाहर किया तो उस का भी वही हाल होगा, जो आशू का हुआ है. इसलिए चुप रहने में सब की भलाई है आशू की निर्मम हत्या करने बाद भी तीनों का गुस्सा शांत नहीं हुआ था. उसी रात उन्होंने आशू के प्रेमी राहुल को भी जान से मार डालने की योजना को अंतिम रूप दे दिया. योजना के अनुसार, अगली सुबह यानी पहली जुलाई के दिन सुबह से ही सिकंदर राहुल को गांव में यहांवहां ढंूढता रहा, लेकिन वह उसे कहीं नजर नहीं आया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर गया तो गया कहां? कहीं दिख क्यों नहीं रहा है वह उसे.

इकहरे बदन वाला सिकंदर था तो एकदम दुबलापतला, लेकिन दिमाग से शातिरों का शातिर था. काफी देर तक मंथन करने के बाद उस ने राहुल तक पहुंचने का एक नायाब और आसान सा रास्ता निकाल ही लिया. उसे पता था विनय और विकास नाम के 2 युवक उस के जिगरी यार थे. तीनों में गहरी छनती थी. किसी तरह उन्हें अपनी ओर मिला लें तो काम आसान हो सकता है. फिर क्या था, यह सोच कर वह मन ही मन गदगद हो उठा और विनय और विकास से जा मिला.

”हैलो विनय, कैसे हो?’’ मुसकराते हुए सिकंदर आगे बोला, ”आओ, चलो चाय पीते हैं.’’

उस समय विनय अपने दोस्त विकास के साथ गांव के बीच स्थित चाय की दुकान पर खड़ा था और राहुल का इंतजार कर रहा था.

”नहीं भैया, मैं चाय नहीं पीता.’’ विनय ने सामान्य तरीके से उत्तर दिया.

”तो बिसकुट ही खा लो,’’ कह कर सिकंदर ने डिब्बे में रखे 4 बिसकुट निकाले और 2 बिसकुट विनय की ओर और 2 बिसकुट विकास की ओर बढ़ाए. दोनों ने बिसकुट पकड़ लिए और खाने लगे. फिर बड़ी चालाकी से अपनी बातों में दोनों को उलझाते हुए वहां से बाहर ले गया और बातों बातों में उस से राहुल के बारे में पूछा कि राहुल कहां है, आज दिख नहीं रहा. आशू उसे याद कर रही थी, मिलना चाहती थी उस से, तभी तो मैं तुम्हारे पास मिलने आया हूं. तुम दोनों उस के सब से अच्छे दोस्त हो, मेरी बात उस से करा सकते हो क्या? तुम उसे यहां बुला दो. बड़ा एहसान होगा तुम दोनों का.’’

”इस में एहसान की क्या बात है भैया,’’ इस बार विकास बोला था, ”मैं अभी फोन कर के बुला देता हूं. दोस्त दोस्त के काम न आए तो फिर दोस्ती किस काम की.’’

सिकंदर ने दोनों की थोड़ी तारीफ क्या कर दी थी, वे चने के झाड़ पर चढ़ गए. वाहवाही में विकास ने फोन कर के राहुल को चाय की दुकान पर बुला लिया. लोमड़ी से ज्यादा शातिर सिकंदर तो यही चाहता था, किसी तरह राहुल बिल से बाहर निकले. उस के बाद क्या करना है, पहले से सोच रखा था. विनय और विकास शातिर सिकंदर के दिमाग को पढ़ नहीं सके और दोनों उस के चक्रव्यूह में फंस गए. दोस्त विकास का फोन रिसीव करते ही राहुल चाय की दुकान पर पहुंच गया. जैसे ही उस की नजर सिकंदर पर पड़ी तो वह घबरा गया और वापस मुडऩे लगा. बड़ी मुश्किल से शिकार चंगुल में फंसा था और उस के हाथों से फिसल रहा था. वह उसे हाथों से फिसलने देना नहीं चाहता था.

वह राहुल के नजदीक जा कर बोला, ”डरो मत भाई, जो होना था सो हो गया. मुझे अपनी गलतियों का पश्चाताप है, माफी चाहता हूं. आशू तुम से मिलना चाहती है. मैं तुम्हें उस से मिलाना चाहता हूं. मिलना चाहोगे?’’

कह कर सिकंदर ने राहुल के चेहरे को पढऩे की कोशिश की कि उस के दिमाग में क्या चल रहा है. राहुल कुछ सोच कर आशू से मिलने के लिए तैयार हो गया था. उस ने अपने साथ विनय और विकास को भी चलने के लिए तैयार कर लिया था. आगेआगे सिकंदर और राहुल चल रहे थे, पीछेपीछे विनय और विकास. उस ने राहुल को भरोसा दिला दिया था कि घर पर चाचा रामदेव नहीं हैं, किसी काम से बाहर गए हुए हैं और शाम तक आएंगे. तभी वह प्रेमिका आशू से मिलने के लिए तैयार हुआ था.

इधर बातोंबातों में उस ने कब चाचा रामदेव को फोन कर ‘शिकार खुद बलि चढऩे के लिए आ रहा है, सतर्क हो जाएं.’ कह कर उन्हें अलर्ट कर दिया था. इस की भनक न तो राहुल को लगी थी और न ही विनय और विकास को ही. राहुल निषाद को देखते ही सिकंदर का खून खौल उठा था, लेकिन अपनी भावनाओं को उन के सामने जाहिर नहीं होने दिया था. उस के दिल में कसक तो इस बात की थी कि इसी कमीने के चलते बहन को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था तो ये कैसे जिंदा रहे. इसे भी बहन की तरह तड़पतड़प कर मरना होगा, बस किसी तरह घर तक पहुंच जाए, फिर देखेंगे क्या होता है.

इधर भतीजे से सूचना मिलते ही रामदेव सतर्क हो गया था और बहू को भी सतर्क कर दिया था ताकि शिकार चंगुल से छूट कर भाग न सके. उसे भी जान से मार देना होगा. इस कमीने की वजह से इज्जत तारतार हुई है, किसी कीमत पर जिंदा बच कर जाना नहीं चाहिए.

एक ही कमरे में मार डाला प्रेमीप्रेमिका को

घर पहुंचते ही सिकंदर के शरीर में जैसे शैतानी ताकत कुलांचे मारने लगी. गजब की फुरती आ गई थी उस में. उस ने राहुल को अपनी दोनों मजबूत भुजाओं में कस कर जकड़ लिया. जोरजोर से आवाज दे कर चाचा रामदेव को बाहर बुलाया. राहुल खुद को सिकंदर की भुजाओं में जकड़ा देख समझ गया कि उस के साथ बड़ा धोखा हुआ है. उस ने दोस्तों के साथ मिल कर धोखा किया है. राहुल ने सिकंदर की मजबूत बाहों से आजाद होने के लिए बहुत दम लगाया था, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. उस की मजबूत पकड़ से वह आजाद नहीं हो सका. चाचाभतीजा दोनों मिल कर उसे उसी कमरे में धकेल कर ले गए थे, जहां पहले से आशू की लाश पड़ी थी.

इधर सिकंदर ने विनय और विकास को धमका कर अपने पक्ष में मिला लिया था कि अगर किसी से कुछ भी कहा तो दोनों को भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ सकता है, इसलिए भलाई इसी में है कि हमेशा के लिए अपनी जुबान बंद कर लें. सिकंदर की धमकियों से दोनों बुरी तरह डर गए और चुप हो गए. उस ने दोनों को दूसरे कमरे में बंद कर दिया था. भतीजा सिकंदर, चाचा रामदेव और बहू रामदुलारी तीनों मिल कर उस पर टूट पड़े. लाठी, डंडे और लातघंूसों से उसे मारने लगे.

राहुल जान बचाने के लिए भीख मांग रहा था. कमरे में चीखताचिल्लाता इधरउधर भाग रहा था, लेकिन उन के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी. गुस्से से लाल हुए तीनों बस लाठी, डंडे की बरसात करते रहे. इस से भी जब उन का मन नहीं भरा तो सिकंदर दरवाजे पर रखी एक ईंट उठा लाया और उसी ईंट से राहुल के सिर के पीछे जोरदार वार किया. ईंट का वार इतना जोरदार था कि पल भर में उस की आवाज शांत हो गई और उस का शरीर निढाल हो कर शांत हो गया.

सिकंदर ने राहुल को हिलाडुला कर देखा. उस की सांसें टूट चुकी थीं. शरीर में कोई हरकत नहीं हो रही थी. वह मर चुका था. सिर से खून का रिसाव हो रहा था. लाश देख कर तीनों नफरत भरी हुंकार भर और लाश वहीं छोड़ कर कमरे से बाहर निकल आए और फिर उस कमरे में दाखिल हुए, जहां मृतक राहुल के दोस्तों विनय और विकास को बंद कर के रखा था. शातिर सिकंदर ने दोनों को धमकाते हुए इस शर्त पर वहां से जाने दिया कि वह जब भी उसे बुलाएगा, दोनों को आना होगा और यहां जो कुछ भी हुआ है, अगर किसी से भी कुछ कहा तो उन्हें भी जान से मार देंगे, इसलिए चुप रहने में ही दोनों की भलाई है.

रामदेव के घर में 2 लाशें पड़ी हुई थीं. इस के बावजूद उन के चेहरे पर कोई शिकन तक नहीं थी. तीनों खुद को बचाते हुए कोई ऐसा रास्ता निकालना चाहते थे, जिस में यह घटना मर्डर के बजाए आत्महत्या की लगे. इस के लिए मतबूत और लंबी रस्सी की जरूरत थी. सिकंदर बाजार से नायलोन की 2 बंडल मजबूत और मोटी रस्सी खरीद कर ले आया और घर में छिपा कर रख दी और रात होने का इंतजार करने लगे.

इधर राहुल को घर से निकले 4 घंटे बीत चुके थे. वह तक घर वापस नहीं पहुंचा था. यह देख कर उस के फेमिली वाले परेशान हो गए थे. राहुल की मम्मी ने फोन कर के पति अशरफी निषाद को बताया कि 10 बजे का निकला बेटा अभी तक घर नहीं लौटा है, मेरा दिल बैठा जा रहा है. उस समय अशरफी अपनी नौकरी पर थे. बेटे के गायब होने की सूचना मिलते ही वह बुरी तरह परेशान हो गए और ड्यूटी से छुट्टी ले कर वापस घर आ गए.

अशरफी ने अपने गांव और आसपास के गांवों में बेटे की तलाश की, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. देखते ही देखते गांव में राहुल के गायब होने की खबर जंगल में आग की तरह फैल गई थी. बेटा जब कहीं नहीं मिला तो शाम को थाना तमकुहीराज में गुमशुदगी की सूचना दर्ज करा दी. उसी दौरान रामदेव तक खबर पहुंची तो उस के हाथपांव फूल गए. आननफानन में उस ने भी बेटी आशू के रहस्यमय तरीके से गायब होने की खबर गांव में फैला दी, ताकि उस पर किसी का शक न जाए.

अचानक आशू और राहुल दोनों के एक साथ गायब होने से गांव में यही चर्चा होने लगी कि कहीं दोनों गांव से भाग तो नहीं गए. यह बात सभी पहले से जानते थे कि दोनों के बीच में 4 सालों से लव अफेयर है. इसे ले कर 2 बार पंचायत भी बुलाई गई थी. दोनों के अचानक गायब हो जाने से गांव में खुसरफुसर शुरू हो गई. मामले की नजाकत को समझते हुए उसी शाम रामदेव भतीजे सिकंदर के साथ तमकुहीराज थाने पहुंचा और बेटी आशू के रहस्यमय तरीके से गायब होने की सूचना दर्ज करा दी, ताकि वह ऐसा कर के खुद सुरक्षित रह सके.

तमकुहीराज के इंसपेक्टर सुशील कुमार शुक्ला को जब परसौनी गांव की आशू और राहुल के गायब होने की तहरीर मिली थी. छानबीन में पता चला कि दोनों एकदूसरे से प्रेम करते थे. इस के अलावा कोई और खास जानकारी नहीं मिल सकी थी. पुलिस अपनी आगे की काररवाई में जुटी रही. पुलिस रामदेव कुशवाहा तक पहुंच पाती, इस से पहले वे दोनों लाशों को ठिकाने लगा देना चाहता था. क्योंकि 2-2 लाशों को हजम कर पाना रामदेव के बस की बात नहीं थी. वह रात गहराने का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. रात जैसे गहराई, सिकंदर ने विनय को काल कर के उस की स्कूटी मंगाई.

हत्या को दे दिया आत्महत्या का रूप

विनय और विकास चुपके से उस समय अपने घर से स्कूटी ले कर निकले थे, जब घर वाले गहरी नींद में जा चुके थे. सिकंदर की धमकी से दोनों बुरी तरह डरे हुए थे. अगर वे उस का साथ नहीं देंगे तो उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ सकता था. सिकंदर, विनय और विकास के सहारे स्कूटी पर पहले आशू की लाश घर से करीब 400 मीटर दूर आम के घने बगीचे में पहुंचा दी. वहां पहले से रामदेव मौजूद था. फिर चाचा रामदेव को वहीं छोड़ कर विनय और विकास को साथ ले कर वापस घर आया और राहुल की लाश को स्कूटी पर लाद कर बगीचे में पहुंचा दी.

फिर साथ लाई रस्सी को 2 बराबर टुकड़ों में काट कर बारीबारी से दोनों लाशें आम की मजबूत डाली से लटका दी, ताकि देखने से लगे कि दोनों ने आत्महत्या की है, इस काम को अंजाम देने में सिकंदर का साथ चाचा रामदेव, विनय और विकास तीनों ने बराबरबराबर साथ दिया था. लाश ठिकाने लगाने के बाद चारों ने राहत भरी सांसें लीं और मोबाइल की टौर्च के उजाले में बगीचे के चारों ओर देखा. जब चारों आश्वस्त हो गए कि उन्हें कोई देख नहीं रहा है, तब वहां से अपनेअपने घरों को लौट गए और घर जा कर इत्मीनान से सो गए.

अगले दिन यानी 2 जुलाई, 2025 की सुबह परसौनी गांव का तापमान उस समय बढ़ गया था, जब गांव से 400 मीटर दूर आम के बगीचे में आशू और राहुल की पेड़ से लटकती हुई लाशें मिलने की खबर गांव वालों को मिली. खबर मिलते ही गांव वाले मौके पर पहुंच गए थे. बेटे की लाश मिलने की सूचना जैसे ही अशरफी को मिली तो उन के तो हाथपांव ढीले हो गए और गश खा कर नीचे गिर गए और घर में कोहराम मच गया था. लाश की सूचना मिलते ही दिखावे के तौर पर रामदेव और सिकंदर भी मौके पर पहुंच गए थे, ताकि किसी को उन पर कोई शक न हो.

थोड़ी देर में ये खबर तमकुहीराज थाने तक पहुंच गई. सूचना मिलते ही इंसपेक्टर सुशील कुमार शुक्ला आननफानन में पुलिस टीम के साथ मौके पर जा पहुंचे और निरीक्षण में जुट गए. प्रथमदृष्टया मामला आत्महत्या का नहीं, मर्डर का लग रहा था. पेड़ की जिस ऊंचाई से मृतक लटक कर आत्महत्या किए थे, उन के घुटने जमीन पर मुड़े हुए थे और दोनों की जीभ भी बाहर नहीं निकली थी. अमूमन आत्महत्या के केस में मृतक की जीभ बाहर निकल जाती है, यही बात इंसपेक्टर शुक्ला को खटक रही थी. घटनास्थल की छानबीन के दौरान मौके से एक ईंट बरामद हुई थी. ईंट पर खून लगा हुआ था, जो सूख चुका था. पुलिस ने साक्ष्य के तौर पर वह अपने कब्जे में ले ली.

इंसपेक्टर सुशील कुमार शुक्ला ने घटना की सूचना एसपी संतोष कुमार मिश्रा और एएसपी निवेश कटियार को दे दी. सूचना पा कर दोनों पुलिस अधिकारी और फोरैंसिक टीम मौके पर पहुंच गई थी. एजेंसी अपनी जांच में जुट गई थी. कागजी काररवाई पूरी कर लाशों को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल कुशीनगर भेज दिया और आगे की काररवाई में जुट गई थी. अगले दिन 3 जुलाई, 2025 को आशू और राहुल की पोस्टमार्टम की रिपोर्ट इंसपेक्टर सुशील कुमार शुक्ला के सामने थी. जिसे पढ़ कर वह चौंके बिना नहीं रहे. उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि जो उन की आंखें देख रही हैं, वो सच हो सकता है. रिपोर्ट में उल्लेख था कि दोनों मौतों के बीच में करीब 8 से 10 घंटे का अंतर है.

दोनों ने आत्महत्या नहीं की थी, बल्कि उन की मौतें सिर पर लगे गहरे जख्म की वजह से हुई थीं. जिस का मतलब शीशे की तरह साफ था कि दोनों की हत्या कर के उसे आत्महत्या का रूप देने की कोशिश की गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने के बाद इंसपेक्टर शुक्ला की जांच की दिशा तेज हो गई थी. वैज्ञानिक साक्ष्य, कौल डिटेल्स और मुखबिर की निशानदेही ने पुलिस के शक की सूई रामदेव कुशवाहा की ओर घुमा दी थी. तब उन का शक और पुख्ता हो गया था, जब घटनास्थल से बरामद ईंट रामदेव के दरवाजे पर रखे ईंट के मार्का आपस में मेल खा लिए थे. फिर क्या था? पुलिस अधिकारियों के दिशानिर्देश से सप्ताह के भीतर दूध का दूध और पानी का पानी अलग हो गया.

शक के आधार पर तमकुहीराज पुलिस 9 जुलाई, 2025 की दोपहर रामदेव कुशवाहा को उस के घर से हिरासत में ले लिया. उस से कड़ाई से पूछताछ की तो उस ने पुलिस के सामने घुटने टेक दिए और अपना जुर्म कुबूल कर लिया कि उस ने अपने भतीजे सिकंदर, बहू रामदुलारी देवी, राहुल के दोस्तों विनय और विकास की मदद से बेटी आशू और उस के प्रेमी राहुल को मौत के घाट उतारा था. बेटी और उस के प्रेमी ने इज्जत का बट्टा लगा दिया था. गांव और इलाके में थूथू हो रही थी. बेटी को बहुत समझाया, लेकिन उस के सिर से राहुल के इश्क का भूत उतर ही नहीं रहा था तो क्या करता? इज्जत की खातिर उसे ये खौफनाक कदम उठाना ही पड़ा.

किशोर उम्र में हो गया आशू और राहुल को प्यार

रामदेव कुशवाहा कुशीनगर जिले के तमकुहीराज थानाक्षेत्र के परसौनी गांव में परिवार सहित रहता था. परिवार में 3 बेटियां ही थीं. तीनों बेटियों में सब से छोटी बेटी आशू थी. आशू गजब की खूबसूरत थी. उस पर किसी की नजर पड़ जाती तो उस के सुंदर चेहरे से जल्दी नजर हटती नहीं थी. आशू थी तो 15 साल की. उस का अंगअंग विकसित हो चुका था. देखने से कोई नहीं कह सकता था कि पूरी तरह परिपक्व नहीं है. औसत कदकाठी की आशू नागिन सी लहराती कालीकाली जुल्फें खुली छोड़ कर जब घर से बाहर निकलती थी, मनचलों के दिलों पर छुरियां चल जाती थीं. बिलकुल कीचड़ में खिली कमल जैसी थी.

राहुल निषाद आशू का पड़ोसी था. वह 19 साल का था और 10वीं में उसी स्कूल में पढ़ता था, जहां आशू पढ़ती थी. वह 8वीं क्लास की छात्रा थी. करीब 4 साल पहले ही राहुल आशू के जुल्फों में इस कदर कैद हो चुका था कि अपना दिल उस के नाम कुरबान कर दिया था. तब उस की उम्र 15 साल के करीब रही होगी और आशू यही कोई 12 साल के करीब रही होगी, जिस ने अपने दिल के कोरे पन्ने पर प्रेमी राहुल का नाम लिख दिया था. कच्ची उम्र में आशू राहुल को दिल दे बैठी थी.

समय के साथ दोनों ने अपने प्यार का इजहार कर दिया था. उम्र के साथसाथ दोनों का प्यार भी प्रगाढ़ होता चला गया था. जिस कच्ची उम्र में दोनों ने प्यार की दहलीज पर पांव रखा था, उस उम्र में उन्हें प्यार का मतलब समझ में आ रहा था या नहीं, ये बता पाना मुश्किल होगा, लेकिन उन के बीच में गजब का आकर्षण था. आलम यह था कि एक दिन वे एकदूसरे को देखे बिना रह नहीं पाते थे.

चूंकि दोनों के घर अगलबगल थे, इसलिए वे एकदूसरे के घरों को आतेजाते भी थे. घंटों बैठ कर वे आपस में प्रेमभरी मीठी बातें करते थे. घर वालों को उन पर शक नहीं हुआ कि उन के बीच में क्या खिचड़ी पक रही है. घर वाले यही समझते थे कि दोनों बच्चे हैं, एक ही स्कूल में पढ़ते हैं, साथसाथ आतेजाते हैं तो आपस में स्कूल को ले कर बातचीत करते होंगे, इसलिए उन पर कोई खास तवज्जो नहीं देते थे.

धीरेधीरे 3 साल बीत गए थे. आखिरकार उन के प्यार की गगरी फूट ही गई. इश्क का भांडा फूटते ही घर वालों की चिंता बढ़ गई. रामदेव कुशवाहा को तो ऐसा लगा, जैसे उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई हो. जिस बेटी को वह अभी छोटी सी बच्ची समझ रहा था, वह तो प्रेम की पाठशाला में अव्वल निकली. माथे पर हाथ रख कर रामदेव जमीन पर बैठ गया था. बेटी ने इज्जत की धज्जियां उड़ा दी थीं. गांव में रामदेव की किरकिरी मची हुई थी. उस का घर से निकलना मुश्किल हो गया था. वह जहां जाता था, वहीं बेटी के प्यार के चर्चे चटखारे ले कर होते थे. सुनसुन कर रामदेव के कान पक गए. अब और बदनामी उस से बरदाश्त नहीं हो पा रही थी, इसलिए उस ने कारगर फैसला करने का निर्णय ले लिया था.

रामदेव कुशवाहा ने बेटी को समाज की ऊंचनीच का पाठ तो पढ़ाया ही, साथ ही भतीजे सिकंदर को साथ ले कर उस के प्रेमी राहुल के घर पहुंच कर पिता अशरफी निषाद से राहुल की शिकायत करते हुए आड़े हाथों लेते हुए उसे समझाया, ”देख अशरफी, तुम से या तुम्हारे परिवार से मेरा कोई बैर नहीं है. पड़ोसी होने के नाते हमारे रिश्ते अच्छे हैं. हम दोनों एकदूसरे के दुखसुख में बराबर खड़े रहते हैं. बता, सच है कि नहीं.’’

”सच तो है.’’ असमंजस की स्थिति में अशरफी ने उत्तर दिया, ”लेकिन बात क्या है, रामदेव भाई. आज आप ये कैसी बात कर रहे हैं? मेरी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा है. क्या कहना चाहते हो?’’

”सब समझ में आ जाएगा अशरफी, चिंता मत कर. तुझे सब समझाता हूं. लगता है, इसी उमर में तेरा बेटा जवान हो गया है.’’

”मतलब?’’

”मतलब यह कि आजकल तेरा बेटा राहुल मेरी बेटी के पीछे हाथ धो कर पड़ा है.’’

”मेरा बेटा तुम्हारी बेटी के पीछे हाथ धो कर पड़ा है, अभी भी मैं समझा नहीं. जो कहना है, खुल कर कर कहो भाई.’’

”लगता है तुम्हारी खोपड़ी में बात उतरी नहीं.’’ इस बार रामदेव का भतीजा सिकंदर गुर्राते हुए बोला था, ”चाचा कह रहे हैं कि तुम्हारा बेटा राहुल मेरी बहन के पीछे हाथ धो कर पड़ा है तो बात समझ में नहीं आ रही है या समझाऊं तुम्हें. देखो अशरफी चाचा, मैं तुम्हें हिंदी में समझा रहा हूं कि अपने बेटे को समझा लो. उस से कह दो कि आशू से दूरी बना ले, अगर वह दूरी नहीं बनाता है तो उस की सेहत के लिए अच्छा नहीं होगा. मैं आप को समझा कर जा रहा हूं, दोबारा उस से बातें करते या उस से मिलते देख लिया तो जान से मार दूंगा. समझा देना अपने बेटे को.’’

चेतावनी से बुरी तरह डर गए थे अशरफी

सिकंदर अशरफी निशाद को चेता कर चाचा रामदेव के साथ घर वापस लौट गया, लेकिन उस के कानों में सिकंदर की धमकी भरी बातें गंूजती रहीं. उस की धमकी से वह बुरी तरह डर गया था. राहुल उस का इकलौता बेटा था. सचमुच उस के साथ कुछ अनहोनी हो गई तो वह तो जीते जी मर जाएगा. उस शाम उस ने बेटे को बुलाया और अपने पास बैठा कर उसे समझाया कि अभी ये उम्र पढऩेलिखने की है. मन लगा कर पढ़ाई करो, जब समय आएगा तो अच्छी सी लड़की देख कर उस से तुम्हारा ब्याह रचा दूंगा. तुम आशू से दूरियां बना लो, इसी में हम सभी की भलाई है.

आशू के पापा रामदेव और उस का भाई सिकंदर धमकी दे कर गए हैं कि अगर तुम ने उस से बात की या उस से मिला तो तुम्हें जान से मार देंगे. इसलिए मेरा कहना मान ले बेटा, तू आशू नाम की उस बला से दूरियां बना ले, नहीं तो कोई अनहोनी तुम्हारे साथ हो गई तो जीवन भर हम रोते रहेंगे. मेरी बात मान ले और उस से दूरी बना ले.’’

सिर नीचे झुकाए राहुल अपने पापा की बातें ध्यान से सुनता रहा, मानो ऐसा लग रहा था कि जैसे धरती फटे और वह उस में समा जाए. उस समय उस ने पापा को भरोसा दिलाया कि दोबारा उन्हें शिकायत का मौका नहीं देगा. राहुल ने अपने पापा से झूठ बोल कर खुद को बचा लिया था. अगले दिन किसी तरह वह आशू से मिला और सारी बातें उसे बता दीं कि उस के पापा को हमारे प्यार वाली बात पता चल गई. और तुम से मिलने से मना कर रहे थे. ऐसे में आशू ने भी उसे बता दिया कि उस के घर वालों ने इज्जत की दुहाई देते हुए तुम से मिलने से मना किया है.

”चाहे कुछ भी हो जाए आशू, हमें प्यार करने से कोई रोक नहीं सकता. हमारा प्यार अमर है, क्या हुआ अगर जमाने वाले हमारे प्यार को नहीं समझते. वक्त आने दो, मैं जैसे ही अपने पैरों पर खड़ा होऊंगा, भाग कर हम दोनों शादी कर लेंगे. फिर घर लौट कर कभी नहीं आएंगे.’’ राहुल बोला.

मांबाप के समझाने का आशू और राहुल दोनों पर कोई असर नहीं हुआ था. दोनों छिपछिप कर मिलते रहे और प्यार की गाड़ी मजे से चलती रही, लेकिन उन की ज्यादा दिनों तक फर्राटे नहीं भर सकी थी. घरवालों को पता चल गया कि आशू उन की आंखों में धूल झोंक कर अपने प्रेमी से छिपछिप कर मिलती है. यह बात न तो रामदेव को हजम हुई और न ही भतीजे सिकंदर को ही. दोनों का खून खौल उठा और राहुल को सबक सिखाने की ठान लिया.

इस के बाद रामदेव कुशवाहा और सिकंदर दोनों ने मिल कर गांव में पंचायत बुलाई. पंचायत में अशरफी निषाद और राहुल को खड़ा किया. घंटों पंचायत चली. इस दौरान पंचों ने निर्णय लिया कि राहुल को समझाबुझा कर छोड़ दिया जाए, दोबारा गलती करते पकड़े जाने पर पंचायत सख्त काररवाई करने के लिए बाध्य होगी. पंचों का निर्णय सुन कर रामदेव और सिकंदर अंदर ही अंदर झुलस कर रह गए. उन्हें इस बात की कतई उम्मीद नहीं थी कि पंचायत ऐसा छोटा निर्णय ले कर राहुल को छोड़ देगी. लेकिन उन्हें पंचों के निर्णय के आगे झुकना पड़ा. सिकंदर भी चुप रहने वालों में से नहीं था. उस दिन के बाद से वह दोनों पर और कड़ी नजर रखने लगा था, ताकि मौका मिलते ही राहुल को सजा दे सके.

पंचायत में बदनामी होने के बाद अशरफी निषाद ने बेटे को टाइट कर के रखा और आशू से मिलते पर सख्त पाबंदी लगा दी. बेटे की करतूत से उसे काफी बदनामी झेलनी पड़ी थी. अब और बदनामी झेलने की क्षमता नहीं थी. लेकिन राहुल पर रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ा था और वह आशू से मिलताजुलता रहा. फिर यह खबर रामदेव तक पहुंच गई थी. खबर मिलते ही वह आगबबूला हो गया था और एक बार फिर पंचायत बुलाई गई. उस पंचायत में राहुल के साथसाथ आशू को भी पेश किया गया था. पंचायत के दौरान काफी हंगामा हुआ और गुस्साए सिकंदर ने भरी पंचायत में राहुल को ललकारा, जहां देखेंगे, उसे जान से मार देंगे. इस ने हमारी इज्जत की छिछालेदर मचा दी है, छोड़ूंगा नहीं किसी कीमत पर, चाहे कुछ भी हो जाए. मरना है तो उसे मरना है.

बात आई गई, खत्म हो गई. पंचायत की यह बात घटना से 2 दिन पहले यानी 28 जून, 2025 की थी. 2 दिन बाद यानी 30 जून को गांव में एक लड़की की शादी थी. शादी का कार्यक्रम रात में होना तय था. शादी में गांव के सभी लोग आमंत्रित थे. उस में रामदेव और अशरफी दोनेां का परिवार भी आमंत्रित था. सभी के साथ दोनों परिवार वाले पार्टी का आनंद ले रहे थे. इसी बीच आशू और राहुल दोनों के घर वाले जब पार्टी में व्यस्त हो गए थे, तभी मौका देख कर आशू और राहुल घर के पिछवाड़े जा पहुंचे और प्यार भरी बातें करने लगे थे. सिकंदर ने उन दोनों को पकड़ लिया. इस के बाद दोनों की हत्या कर दी गई.

पुलिस ने इस दोहरे हत्याकांड को अंजाम देने वाले रामदेव कुशवाहा के इकरारेजुर्म के बाद उस के भतीजे सिकंदर, रामदुलारी, विनय और विकास को गिरफ्तार कर लिया. पहले से दी गई अशरफी की तहरीर के आधार पर पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 103/238/61 (2)/315 के तहत रामदेव कुशवाहा, सिकंदर कुशवाहा, रामदुलारी देवी को जेल और नाबालिग विनय और विकास को बाल सुधार गृह भेज दिया. UP News

(कथा में विनय और विकास परिवर्तित नाम है.)

 

 

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