UP Crime : नवीन की शादी इसलिए नहीं हो रही थी, क्योंकि उस की दलित प्रेमिका सीमा को उस से बेटा हो गया था. इस से उस की ही नहीं, घर वालों की भी बदनामी हो रही थी. घर वालों ने इस बदनामी से बचने का जो उपाय किया, क्या वह उचित था?
उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर थानाकोतवाली बड़हलगंज का एक गांव है तिहामोहम्मद. इसी गांव में रामाश्रय अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी केसरी देवी के अलावा 2 बेटे संजय, राकेश कुमार उर्फ हृदय कुमार और 2 बेटियां सीमा तथा आशा थीं. बात 10 नवंबर, 2014 की है. सुबह साढ़े 6 बजे के करीब गांव के ग्रामप्रधान काशी राय टहलने के लिए घर से निकल कर गलियों से होते हुए गांव के बाहर रह रहे दलितों के मोहल्ले से होते हुए चले जा रहे थे कि गली के किनारे बने रामाश्रय के झोपड़ानुमा मकान की खुली दालान में चारपाई पर उन की नजर पड़ी तो उस की हालत देख कर उन का कलेजा मुंह को आ गया.
दालान में पड़ी उस चारपाई पर एकएक कर के 3 लाशें पड़ी थीं. सब से नीचे रामाश्रय के नाती आशीष उर्फ लालू, उस के ऊपर उस की पत्नी केसरी देवी और सब से ऊपर उस की बेटी सीमा की लाश पड़ी थी. उन्होंने आवाज लगा कर कुछ लोगों को बुलाया और घटना के बारे में बताया. इस के बाद थोड़ी ही देर में घटना की सूचना पूरे गांव में फैल गई. इस के बाद तो रामाश्रय के घर के सामने भीड़ लग गई. ग्रामप्रधान काशी राय ने घटना की सूचना थानाकोतवाली बड़हलगंज पुलिस को दी तो कोतवाली प्रभारी इंसपेक्टर सुनील कुमार राय एसआई वी.पी. सिंह, देवेंद्र मौर्य, हरिकेष कुमार आर्या, हेडकांस्टेबल रमाकांत पांडेय, कांस्टेबल समतुल्ला खान, सुरेश सिंह, अनिल पाल, शंभू सिंह के साथ गांव तिहामोहम्मद आ पहुंचे.
दिल दहला देने वाली स्थिति देख कर इंसपेक्टर सुनील कुमार राय ने इस बात की जानकारी आईजी सतीश कुमार माथुर, डीआईजी डा. संजीव कुमार, एसएसपी राजकुमार भारद्वाज, एसपी (ग्रामीण) बृजेश सिंह और सीओ अशोक कुमार को दी. पुलिस अधिकारियों को सूचना देने के बाद वह साथियों के साथ घटनास्थल और लाशों का निरीक्षण करने के लिए दालान में पहुंचे. दालान में पड़ी चारपाई पर तीनों लाशें एक के ऊपर एक पड़ी थीं. चारपाई के पास ही 315 बोर के 5 खोखे और कांच की टूटी चूडि़यों के टुकड़े पड़े थे. वे टुकड़े मृतका सीमा की कलाई की चूडि़यों के थे, इसलिए उन टुकड़ों को देख कर अनुमान लगाया गया कि मृतका सीमा ने खुद या बच्चे और मां को बचाने के लिए हत्यारों से संघर्ष किया होगा.
पुलिस ने गोलियों के खोखे के साथ टूटी चूडि़यों के उन टुकड़ों को भी कब्जे में ले लिया. लाशों के निरीक्षण में पता चला, मृतका सीमा की पीठ और सिर में बाईं ओर केसरी देवी के सिर और कान के ऊपर बाईं ओर तथा सब से नीचे पड़े आशीष उर्फ लालू के सीने में दाहिनी ओर गोली मारी गई थी. स्थिति देख कर ही लग रहा था कि हत्यारे कम से कम 3-4 रहे होंगे. आसपास वालों से की गई पूछताछ में पता चला कि मृतकों के परिवार में और कोई नहीं है. एक बेटी आशा ससुराल में है और बेटा राकेश मुंबई में है. एक बेटा संजय 18 साल से लापता है. परिवार के मुखिया रामाश्रय की 8-9 साल पहले मौत हो चुकी है. मृतकों के घर में उस समय कोई ऐसा नहीं था, जिस से कुछ जानकारी मिल पाती.
इंसपेक्टर सुनील कुमार राय पूछताछ कर रहे थे कि अन्य पुलिस अधिकारी भी आ पहुंचे. पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल और लाशों का निरीक्षण कर लिया तो ग्रामप्रधान काशी राय की उपस्थिति में घटनास्थल की काररवाई निपटा कर तीनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज भिजवा दिया गया. इस के बाद ग्रामप्रधान काशी राय द्वारा दी गई तहरीर पर थानाकोतवाली बड़हलगंज में अज्ञात लोगों के खिलाफ तीनों हत्याओं का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. मुकदमा दर्ज होने के बाद कोतवाली प्रभारी सुनील कुमार राय ने मामले की जांच शुरू की.
सब से पहले उन्होंने पड़ोसियों से राकेश का फोन नंबर ले कर उसे घटना की सूचना दी. स्थिति को देखते हुए हत्या की वजह रंजिश लग रही थी, क्योंकि घर का सारा सामान जस का तस था. इस से साफ था कि हत्यारे सिर्फ हत्या करने आए थे. घर वालों की हत्या की जानकारी मिलते ही राकेश गोरखपुर के लिए चल पड़ा. 11 नवंबर, 2014 को वह घर पहुंचा और सामान वगैरह रख कर सीधे कोतवाली बड़हलगंज के लिए रवाना हो गया. कोतवाली पहुंच कर उस ने इंसपेक्टर सुनील कुमार राय को एक प्रार्थना पत्र दिया, जिस में उस ने गांव के हीरा राय और उन के 4 बेटों, परविंद कुमार राय, अरुण कुमार राय उर्फ विक्की, अरविंद कुमार राय और नवीन कुमार राय उर्फ टुनटुन को अपनी मां, बहन और भांजे की हत्याओं का दोषी ठहराया था.
कोतवाली पुलिस ने राकेश के उस प्रार्थना पत्र के आधार पर अज्ञात की जगह प्रार्थना पत्र में लिखे पांचों को नामजद अभियुक्त बना कर मुकदमे में एससीएसटी ऐक्ट जोड़ दिया. इस के बाद इस मामले की जांच सीओ अशोक कुमार को सौंप दी गई. राकेश द्वारा दिए गए प्रार्थना पत्र के अनुसार उस की बहन सीमा के अवैधसंबंध 13-14 सालों से हीरा राय के तीसरे नंबर के बेटे नवीन कुमार राय उर्फ टुनटुन से थे, जिस की वजह से नवीन के घर वाले आए दिन लड़ाईझगड़ा करते रहते थे. मौका मिलने पर उन्होंने ही ये तीनों हत्याएं की हैं. अगर राकेश भी घर में होता तो उस की भी हत्या हो सकती थी.
नामजद मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने गिरफ्तारी के लिए हीरा राय के घर छापा मारा, लेकिन घर में सिर्फ महिलाएं मिलीं. सारे के सारे पुरुष घर छोड़ कर भाग गए थे. सीमा का मोबाइल फोन मिल गया था. फोन से पता चला कि घटना वाली रात 12 बजे सीमा के फोन पर एक फोन आया था. पुलिस ने उस के बारे में पता किया तो वह नंबर गांव के अरुण का था. इस से साफ हो गया था कि अरुण ने सीमा को फोन कर के स्थिति के बारे में पता किया होगा. इस का मतलब राकेश का शक सही था.
पुलिस को हत्यारों के बारे में पता चल गया, लेकिन वे पकड़ में नहीं आए, क्योंकि वे सभी के सभी फरार थे. गिरफ्तारी न हो पाने की वजह से 13 नवंबर को एसएसपी औफिस के सामने बहुजन समाज पार्टी के जिलाध्यक्ष सुरेश कुमार भारती के नेतृत्व में 6 सूत्रीय मांगें ले कर धरनाप्रदर्शन किया गया. उसी दिन समाजवादी पार्टी की पूर्व विधायक शारदा देवी, राकेश के गांव तिहामोहम्मद पहुंची और राकेश को ढांढस बंधाया. उन्होंने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सरकार को मुआवजा के लिए पत्र तो भेजा ही, अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस पर भी दबाव बनाया.
इन्हीं दबावों का ही परिणाम था कि 14 नवंबर को नामजद अभियुक्तों में से 3 अभियुक्तों परविंद कुमार, अरुण कुमार राय उर्फ विक्की और अरविंद कुमार राय को ओझौली गांव के पास से रात डेढ़ बजे गिरफ्तार कर लिया गया. बाकी बचे 1 अभियुक्त हीरा राय का पता नहीं था, जबकि नवीन कुमार राय उर्फ टुनटुन 2 साल पहले बैंकाक चला गया था और घटना के समय भी वहीं था. इस के बावजूद पुलिस ने हत्या के जुर्म में उसे भी आरोपी बना दिया था. पुलिस परविंद, अरुण और अरविंद को कोतवाली बड़हलगंज कोतवाली ले आई, जहां उन से हत्याओं के बारे में पूछताछ की जाने लगी. तीनों अभियुक्तों ने बिना किसी हीलाहवाली के अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उन्होंने तीनों हत्याओं की जो कहानी बताई, वह कुछ इस प्रकार थी.
दलित बस्ती में रहने वाला रामाश्रय खेती कर के अपने परिवार को पाल रहा था. बड़ा बेटा संजय 15 साल का हुआ तो अपने किसी रिश्तेदार के साथ गुजरात के सूरत शहर चला गया. 6 महीने तो उस ने कमा कर रुपए भेजे, लेकिन उस के बाद अचानक उस ने रुपए भेजने बंद कर दिए. घर वालों ने रिश्तेदार को फोन कर के पूछा तो उस ने बताया कि अब वह उन के पास नहीं रहता. इस के बाद से आज तक उस का कुछ पता नहीं चला है. बेटे के इस तरह लापता हो जाने से रामाश्रय को इतना गहरा आघात पहुंचा कि वह बीमार पड़ गया. कुछ दिनों बाद उस की मौत हो गई तो 2 बेटियों और एक बेटे की जिम्मेदारी केसरी देवी पर आ पड़ी.
केसरी देवी की बड़ी बेटी सीमा कीचड़ में खिले कमल की तरह थी. जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही उस की सुंदरता में जो निखार आया, वह गांव के लड़कों को लुभाने लगा. मजे की बात यह थी कि वह जितनी सुंदर थी, उतनी ही चंचल भी थी. चंचल, चपल और चालाक सीमा अपनी सीमा जानती थी. वह गरीब घर की बेटी थी, जिस की जमापूंजी सिर्फ इज्जत होती है. वह अपनी इज्जत को बचा कर रखना चाहती थी, लेकिन गांव के ही हीरा राय के तीसरे नंबर का बेटा नवीन कुमार राय उर्फ टुनटुन उस का ऐसा दीवाना हुआ कि उस ने कोशिश कर के उसे अपने रंग में ढाल ही लिया. यह 12-13 साल पहले की बात है.
उस समय सीमा की उम्र 19-20 साल रही होगी. नवीन भी उम्र लगभग उतनी ही थी. नवीन गबरू जवान तो था ही, खातेपीते घर का होने के साथसाथ खूबसूरत भी था. शायद उस की खूबसूरती पर ही सीमा भी मर मिटी थी. प्यार हुआ तो दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए थे. इस के बाद दोनों के संबंधों की बात गांव में चर्चा का विषय बन गई. सीमा दलित थी, जबकि नवीन भूमिहार यानी सामान्य वर्ग का था. नवीन के घर वालों ने सोचा दलित होने के नाते सीमा के घर वाले क्या कर लेंगे. साल, 2 साल बाद दोनों की शादी हो जाएगी तो संबंध अपने आप खत्म हो जाएंगे.
तिहामोहम्मद गांव के ही रहने वाले हीरा राय साधनसंपन्न आदमी थे. उस की 5 संतानों में 4 बेटे, अरविंद कुमार राय, परविंद कुमार राय उर्फ गुड्डू, नवीन कुमार राय उर्फ टुनटुन, अरुण कुमार राय और एक बेटी संध्या राय थी. उस के 2 बेटे अरविंद और परविंद बैंकाक में रहते थे. इन से छोटा नवीन पढ़ाई के साथसाथ खेती के कामों में पिता की मदद करता था. सब से छोटा अरुण समझदार होते ही बड़े भाइयों के पास बैंकाक चला गया था, जहां वह नौकरी करने लगा था. बैंकाक से आने वाले रुपयों से हीरा राय गांव में जमीनें खरीदते गए, जिस से जल्दी ही उन की गिनती बड़े लोगों में होने लगी. बाद में बड़ा बेटा अरविंद गांव आ गया और यहीं रहने लगा. लेकिन परविंद और अरुण वहीं रह कर नौकरी करते रहे.
नवीन और सीमा के संबंध हद पार करने लगे तो हीरा राय और उन के बड़े बेटे अरविंद को लगा कि आगे चल कर बात बिगड़ सकती है. कहीं बात शादी की आ गई तो वे समाज को कैसे मुंह दिखा पाएंगे. यही सोच कर अरविंद ने केसरी देवी को धमकाया कि वह अपनी बेटी को काबू में रखे. उस ने केसरी देवी को ही नहीं धमकाया, नवीन पर भी सीमा से मिलने पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी. नवीन कोई लड़की नहीं था कि घर वाले उस के पैरों में जंजीर डाल कर उसे कमरे में कैद कर देते. उस ने पिता और भाई के दबाव में भले ही सीमा से मिलने के लिए मना कर दिया था, लेकिन यह दिखावा मात्र था. सीमा उस की धमनियों में खून बन कर बह रही थी. इसलिए वह पिता और भाई को दिए आश्वासन पर अटल नहीं रह सका और चोरीछिपे लगातार सीमा से मिलता रहा.
परिणामस्वरूप बिना शादी के ही सीमा गर्भवती हो गई. धीरेधीरे गांव में यह बात फैली तो केसरी देवी की बदनामी होने लगी. बदनामी से बचने के लिए उस ने देवरिया जिले के थाना एकौना के गांव छपना के रहने वाले दीपचंद के साथ सीमा की शादी कर दी. सीमा ससुराल चली तो गई, लेकिन उस के गर्भ में पल रहा पाप पति से छिपा नहीं रहा. दीपचंद को जब पता चला कि सीमा की कोख में किसी दूसरे का 2-3 महीने का बच्चा पल रहा है तो उस ने इज्जत के साथ सीमा को उस के मायके पहुंचा दिया और सीमा की सहमति से तलाक ले लिया. यह बात 11-12 साल पहले की है.
इस के बाद सीमा मां और बहनभाई के साथ मायके में ही रहने लगी. समय पर उस ने बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम आशीष उर्फ लालू रखा. यह सभी को पता था कि सीमा का बेटा आशीष नवीन कुमार राय का बेटा है. नवीन सीमा को अपनाने के लिए तैयार भी था, लेकिन घर वाले इस शादी के सख्त खिलाफ थे. इस की सब से बड़ी वजह सीमा का दलित होना था. लालू धीरेधीरे बड़ा होने लगा. सीमा ने स्कूल में उस का दाखिला कराते समय पिता के नाम के रूप में नवीन कुमार राय का ही नाम लिखाया था. इस से हीरा राय और उन के बेटों, अरविंद, परविंद और अरुण को इस बात का डर सताने लगा कि बड़ा हो कर लालू उन की संपत्ति में हिस्सा ले सकता है.
जबकि नवीन पर इस बात का कोई असर नहीं था, क्योंकि वह सीमा और लालू को अपनाने को तैयार था. शायद इसीलिए वह कहीं और शादी नहीं कर रहा था. लालू और सीमा को ले कर हीरा राय के परिवार में महाभारत छिड़ा हुआ था. सीमा से छुटकारा पाने का अब एक ही उपाय था कि उस की शादी कहीं और हो जाए. हीरा राय और उस के बेटे इस के लिए कोशिश भी कर रहे थे, लेकिन नवीन ऐसा होने नहीं दे रहा था. इस से घर वालों ने सोचा कि अगर नवीन को गांव से हटा दिया जाए तो यह काम आसानी से हो जाएगा.
नवीन के 2 भाई, परविंद और अरुण बैंकाक में रह ही रहे थे. हीरा और अरविंद ने नवीन का पासपोर्ट और वीजा तैयार करा कर उसे भी बैंकाक भेज दिया. नवीन के हटते ही हीरा राय और अरविंद दिमाग चलाने लगे. योजना के अनुसार नवीन के बैंकाक पहुंचते ही परंविद और अरुण गांव आ गए. अरविंद, परविंद और अरुण रास्ते का कांटा लालू को हटाने की योजना बनाने लगे. लालू की ही वजह से नवीन की भी शादी नहीं हो रही थी, बदनामी अलग से हो रही थी. नवीन भले ही बैंकाक चला गया था, लेकिन फोन से वह बराबर सीमा और उस के बेटे का हालचाल लेता रहता था.
अरुण काफी दबंग किस्म का युवक था. बैंकाक से खूब रुपए कमा कर लाया ही था, इसलिए पैसों की भी गरमी थी. उस का उठनाबैठना भी बदमाशों के बीच था, इसलिए लालू को रास्ते से हटाने के लिए उस ने अपने उन्हीं दोस्तों की मदद से कट्टा और कारतूस का इंतजाम किया हथियारों का इंतजाम हो गया तो एक दिन तीनों भाइयों ने पिता हीरा राय के साथ बैठ कर लालू को खत्म करने की योजना बना डाली. 9/10 नवंबर की रात 12 बजे अरुण ने सीमा के मोबाइल पर फोन कर के पता किया कि वह सो गई है या जाग रही है. वैसे तो सीमा सो रही थी, लेकिन मोबाइल की घंटी ने उसे जगा दिया. 2-4 बातें हुईं, उस के बाद सीमा फोन काट कर सो गई.
सीमा से बात होने के काफी देर बाद अरुण, अरविंद और परविंद 315 बोर के देसी कट्टे और कारतूस ले कर केसरी देवी के घर जा पहुंचे. बिजली न होने की वजह से गांव में अंधेरा था. अरुण को पता था कि लालू अपनी नानी के पास बरामदे में चारपाई पर सोता है, जबकि सीमा अंदर कमरे में सोती है. अरुण को सारी स्थिति का पता था, इसलिए सीमा के घर पहुंचते ही उस ने एक, डेढ मीटर की दूरी से लालू पर निशाना साध कर कट्टे से गोली चला दी. गोली लालू के सीने में दाईं ओर लगी. सोया लालू छटपटा कर हमेशाहमेशा के लिए सो गया.
गोली की आवाज सुन कर केसरी देवी जाग गई. पकड़े जाने के डर से अरुण और अरविंद ने एक साथ केसरी देवी को गोली मार दी. केसरी देवी भी लहरा कर नाती लालू के ऊपर गिर गई. दूसरी ओर गोली की आवाज सुन कर कमरे में सो रही सीमा भी जाग गई थी और उठ कर बाहर आ गई थी. उस ने तीनों भाइयों को पहचान भी लिया था. मां को बचाने के चक्कर में वह अरुण से भिड़ गई थी. उसी दौरान उस की चूडि़यां टूट कर नीचे गिर गई थीं. सीमा ने उन्हें पहचान लिया था, इसलिए उसे भी जिंदा नहीं छोड़ा जा सकता था. अरुण और अरविंद ने एक साथ गोलियां चला कर उसे भी मार दिया. मां को बचाने के लिए वह चारपाई के पास ही खड़ी थी. इसलिए गोलियां लगने के बाद भी वह मां के ऊपर चारपाई पर गिर पड़ी थी.
इस तरह एक हत्या करने के चक्कर में अरविंद, अरुण और परविंद ने 3 हत्याएं कर डालीं थीं. फिर भी उन्हें न किसी बात की चिंता थी, न किस तरह का पछतावा. वे घर जा कर आराम से सो गए. लेकिन सुबह होते ही हीरा राय और उन के तीनों बेटे अरविंद, परविंद और अरुण घर छोड़ कर भाग गए. 14 नवंबर, 2014 की रात अरविंद, परविंद और अरुण ओझौली गांव से गिरफ्तार हो गए. पुलिस ने अरुण के पास से 315 बोर का एक कट्टा, कारतूस के 3 खोखे, एक जिंदा कारतूस, अरविंद के पास से 315 बोर का एक कट्टा, कारतूस के 2 खोखे और 1 जिंदा कारतूस बरामद कर लिया था. इस के बाद पुलिस ने तीनों को अदालत मे पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया था.
21 नवंबर को पुलिस ने गांव के बाहर हीरा राय को भी गिरफ्तार कर लिया था. पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे भी जेल भेज दिया है. पुलिस का मानना है कि साजिश रचने में नवीन भी शामिल था, इसलिए धारा 120बी के तहत उसे भी आरोपी बनाया है. लेकिन इस समय वह बैंकाक में है. पुलिस उसे वहां से बुला कर गिरफ्तार करने की कोशिश कर रही है. UP Crime