MP News : जिस सोनू को भावना बेटे की तरह मानती थी और उसे घर के अंदर तक आने देती थी, उसी सोनू ने ऐसा कुछ क्या किया कि भावना को अंत में कहना पड़ा, ‘यह तू ने क्या किया सोनू…’
वक्त और तरहतरह के अनुभव भावना को दिनोंदिन मजबूत बनाते गए. अब से कोई 10 साल पहले जब उन के पति दरियाव वर्मा की एक हादसे में मौत हो गई थी तो भावना पर जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था. वह मध्य प्रदेश के खरगौन जिले के कस्बा कसरावद स्थित एक सरकारी अस्पताल में नौकरी जरूर करती थी, लेकिन उस के सामने सब से बड़ी समस्या यह थी कि वह अपने चारों बच्चों की परवरिश कैसे करे? पति अपने पीछे 3 बेटियां और एक बेटा छोड़ गए थे. भावना के साथ उस के नातेरिश्तेदार जो हमदर्दी दिखा रहे थे, उस में हमदर्दी कम, दिखावा ज्यादा लग रहा था.
लिहाजा वह समझ गई कि उसे जो भी करना है, अपने दम पर करना है. नौकरी के बाद उस ने अपना सारा ध्यान बच्चों की परवरिश और पढ़ाई पर लगा दिया. 5 सदस्यों वाले इस परिवार का गुजारा भावना की मामूली तनख्वाह से जैसेतैसे हो रहा था. उस के सामने जब कोई बड़ा खर्चा आ जाता तो वह इधरउधर से मदद ले लेती थी. इस के बाद उसे जैसे ही तनख्वाह मिलती, वह कर्ज निपटा देती. चूंकि वह सरकारी कर्मचारी थी और नीयत की साफ थी, इसलिए जरूरत पर हर कोई उसे पैसे उधार दे देता था. भावना की सब से बड़ी चिंता उस की 3 बेटियां थीं, जो देखतेदेखते बड़ी हो रही थीं.
उसे उन की शादियों की चिंता सता रही थी. वह सोचती थी कि बेटियों की शादी के बाद वह एकलौते बेटे अभिषेक (बदला नाम) के साथ रहेगी. वह उसे अपने बुढ़ापे की लाठी समझती थी. भावना ने अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दिए थे. उस की तीनों बेटियां बेहद शरीफ और समझदार थीं. यही वजह थी कि कसरावद में लोग उस की बेटियों की मिसालें देते थे. इस से भावना का सिर गर्व से ऊंचा हो जाता था. अपनी तपस्या उसे सफल होती नजर आ रही थी. लेकिन एक दिन अचानक कुछ ऐसा हुआ कि उस का आत्मविश्वास डोल गया. उस के बेटे अभिषेक का एक दोस्त था आशिक उर्फ सोनू. बचपन का दोस्त होने की वजह से सोनू का उस के घर आनाजाना आम बात थी.
भावना उसे बेटे का दोस्त नहीं, बल्कि बेटे जैसा ही मानती थी. एक तरह से वह परिवार के सदस्य की तरह था. उस पर उस की बेटियां भी पूरा भरोसा करती थीं. वह एक धनाढ्य परिवार का लड़का था, जिस से उस की जेबों में हमेशा अच्छेखासे पैसे रहते थे. कई मौके ऐसे भी आए, जब जरूरत पड़ने पर सोनू ने उस की मदद की थी. भावना की सब से छोटी बेटी थी दर्शना, जिस की उम्र 17 साल हो गई थी. दर्शना पढ़ने में होशियार थी और जीवन के प्रति गंभीर भी थी. वह जानती थी कि मां किन स्थितियों से जूझते हुए चारों बच्चों की परवरिश कर रही है. कमउम्र में ही दर्शना ने फैसला कर लिया था कि वह खूब मन लगा कर पढ़ाई करेगी और अच्छी सी नौकरी हासिल करेगी, जिस से वह मां की हर तरह से मदद कर सके. वह कसरावद के कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में 10वीं कक्षा में पढ़ती थी.
पिता की मौत के समय दर्शना 7 साल की थी. सोनू उस समय भी उस के घर आताजाता था. वह दर्शना के साथ खूब खेलता था. दर्शना भी भाई का दोस्त होने के नाते उसे भाई जैसा मानती थी. समय के साथ दर्शना बड़ी होती गई. देखते ही देखते उस के शरीर में परिवर्तन तो हुए ही, साथ ही बुद्धि भी व्यावहारिक हो गई. 14 की होतेहोते दर्शना के सौंदर्य में काफी निखार आ गया. सोनू दर्शना में आ रहे तमाम बदलावों का गवाह था, लेकिन पिछले 2-3 सालों से वह जब भी दर्शना को देखता था, उस के दिल में कुछकुछ होने लगता था. खुद में आ रहे बदलावों से बेखबर दर्शना पहले की ही तरह उस के सामने पड़ती. उस के सामने पड़ते ही सोनू का हलक सूखने लगता था और जुबान जैसे लड़खड़ाने सी लगती थी.
वह खुद को स्वाभाविक और सामान्य दिखाने की कोशिश करता था, ताकि कोई उस के ऊपर शक न कर सके. दरअसल सोनू मन ही मन उसे चाहने लगा था. चौबीसों घंटे उस के दिलोदिमाग में दर्शना ही घूमती रहती थी. सोनू का झुकाव इस परिवार के प्रति दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा था. अब वह पहले से ज्यादा भावना की आर्थिक मदद करने लगा था. भावना को उस से आर्थिक मदद लेने में संकोच तो होता था, लेकिन सोनू हर बार उसे असमंजस में देख कर यही कहता था, ‘‘आंटी, क्या मैं आप का बेटा नहीं?’’
सोनू की यह बात उसे निरुत्तर कर देती थी. चूंकि वह स्वाभिमानी थी, इसलिए सोनू की पाईपाई वापस कर देती थी. पिछले कुछ दिनों से सोनू की भावनाएं, नीयत और ईमान बदल रहा है, इस बात को वह भांप नहीं सकी. उसी का नतीजा था कि सोनू उस के लिए भोलाभाला मासूम नहीं, बल्कि राक्षस बन गया था. जिस के पंजे में वह फंसी हुई महसूस कर रही थी. पिछले साल होली के आसपास की बात थी. सोनू अभिषेक के घर गया तो दर्शना अकेली थी. उसे लगा कि आज दिल की बात अपनी माशूका पर जाहिर कर देनी चाहिए. फिर ऐसा सुनहरा मौका जाने कब मिले. लिहाजा उस ने हिम्मत जुटाते हुए दर्शना की कलाई पकड़ कर कहा, ‘‘आई लव यू दर्शना.’’
इस अप्रत्याशित पेशकश से दर्शना घबरा गई. कुछ पल तो उस की समझ में ही नहीं आया कि सोनू क्या कर रहा है और वह उस की बात का जवाब दे या नहीं. दर्शना के चुप रहने से सोनू की अंगुलियां उस के शरीर पर रेंगने लगीं. एक नादान नौसिखिया आशिक इस से ज्यादा जानतासमझता भी नहीं था. वह इस बात को नहीं जानता था कि प्यार एक हसीन जज्बा है. जिस्म की जरूरत जैसी बातों से उस का कोई वास्ता नहीं होता. उस की अंगुलियां दर्शना के नाजुक अंगों पर आतीं, उस के पहले ही दर्शना ने झटके से सोनू का हाथ पकड़ लिया और उस से दूर जा खड़ी हुई.
गहरी सांसें लेते हुए दर्शना ने खुद पर काबू पाया तो उस का आत्मविश्वास भी लौट आया. उस ने जम कर सोनू को लताड़ लगाई. सोनू को इस की उम्मीद नहीं थी. वह तो सोच रहा था कि जो आग उस के जिस्म और दिल में लगी है, वही दूसरी तरफ भी लगी होगी. दर्शना के तेवर देख कर सोनू अपना सा मुंह लिए वापस चला गया. दर्शना की हालत और ज्यादा अजीब थी. सोनू अभी जो कह और कर गया था, उस के मायने वह समझती थी. वह जानती थी कि अगर उस ने सोनू की हरकत छिपाई तो उस के हौंसले और बढ़ेंगे. मुमकिन है कि बाद में लोग उसे ही गलत समझने लगें. काफी सोचविचार कर उस ने तय किया कि वह मां को सब कुछ बता देगी.
भावना अस्पताल की ड्यूटी कर के वापस आई तो दर्शना ने सारी बात उसे बता दी. भावना को लगा मानो किसी ने उसे आसमान से जमीन पर पटक दिया है. सोनू से उसे ऐसी उम्मीद सपने में भी नहीं थी. 19-20 साल के एक नौजवान की मदद और एहसान के मायने उसे अब समझ में आ रहा था, साथ ही अपने लाचार होने का भी अहसास हो रहा था. सामान्य होने के बाद उस ने तय किया कि चुप रहने से काम नहीं चलेगा. उस ने उसी समय सोनू को फोन कर के बुला लिया. भावना का फोन आते ही सोनू समझ गया कि भावना ने उसे क्यों बुलाया है. गलती करने के बावजूद वह दर्शना के घर जा पहुंचा. लेकिन इस बार उस का सिर अहसानों के गुरूर से उठा हुआ नहीं, बल्कि शर्म से झुका हुआ था.
भावना ने उसे नजरें गड़ा कर देखा तो वह और सकपका उठा. सोनू को सामने देख कर भावना उस की उतनी सख्त और तल्ख आवाज में खिंचाई नहीं कर पाईं, जितनी उस के आने से पहले मन ही मन सोच रही थी.
‘‘सोनू, मैं हमेशा तुम्हें बेटे की तरह मानती रही. इस के बावजूद तुम ने जो किया, वह सही नहीं था. तुम्हें अपने किए पर शरम आनी चाहिए.’’ खीझ और आवेग में भावना कांपती आवाज में बोली. सोनू को जरा भी उम्मीद नहीं थी कि उस के साथ इतनी नरमी से बात की जाएगी. वह सिर झुकाए उसी तरह खड़ा रहा. बात को यहीं खत्म करने के अंदाज मेंभावना ने कहा, ‘‘जो हुआ सो हुआ, अब यह मसला यहीं खत्म हो जाना चाहिए.’’
भावना की बात खत्म होते ही सोनू शांत और गंभीर आवाज में बोला, ‘‘आंटी, मैं दर्शना को बहुत प्यार करता हूं और उस से निकाह करना चाहता हूं.’’
सोनू की बात सुन कर भावना की रूह तक कांप उठी. उस के मन में आया कि वह उसे खरीखोटी सुना कर उसी समय घर से भगा दे. लेकिन बदनामी के डर से वह कोई बखेड़ा नहीं खड़ा करना चाहती थी. उस की बात से वह इतना तो समझ गई थी कि यह लड़का सीधे नहीं मानेगा. इस के बावजूद वह अपने गुस्से को काबू में रख कर संयत स्वर में बोली, ‘‘यह नामुमकिन है, तुम जानते हो कि हमारे तुम्हारे बीच कितने और कैसेकैसे फासले हैं.’’
पर सोनू अपनी बात से टस से मस नहीं हुआ. भावना ने उसे समझाया, ‘‘तुम मुसलमान हो और दर्शना अभी नाबालिग है. इस के अलावा मेरे सिर पर और 2 लड़कियों की शादी की जिम्मेदारी है. जिस समाज में हम रहते हैं, वह इसे कतई मंजूर नहीं करेगा.’’
सोनू ने उस की बात नहीं मानी और साफसाफ कह दिया कि वह दर्शना को नहीं भूल सकता. नरमी से बात न बनते देख भावना को गुस्सा आ गया. उस ने सोनू को धमकाते हुए कहा, ‘‘निकल जाओ यहां से और अब कभी इस घर में पांव भी मत रखना, वरना मुझ से बुरा कोई नहीं होगा.’’
बहरहाल, उस दिन सोनू वहां से चला तो गया, लेकिन जातेजाते कह गया कि वह दर्शना को हरगिज नहीं छोड़ेगा. इस तरह जातेजाते वह दर्शना और भावना की नींद और चैन लेता गया. दर्शना जब भी उसे दिखती, उस का दिल बल्लियों उछलने लगता. पर मायूसी उस वक्त होती, जब वह नफरत से मुंह फेर लेती. यह बात उसे बड़ी बुरी लगती थी. दर्शना के प्रति चाहत ने सोनू की नींद और चैन उड़ा दिया था. दिनरात, सुबहशाम उसे हर जगह दर्शना ही दर्शना नजर आती थी. सोनू को उम्मीद थी कि जीत उस के प्यार की ही होगी. एक दिन भावना आंटी उसे बुला कर कहेंगी,‘ तेरा प्यार सच्चा था और तू जीत गया. अब मैं दर्शना का हाथ तेरे हाथ में देती हूं.’ लेकिन उस की यह उम्मीद उम्मीद ही बन कर रह गई.
भावना की सख्ती की वजह से दर्शना ने घर से निकलना कम कर दिया था. सोनू उस की याद में परेशान रहने लगा. इसी तरह 2 महीने बीत गए. अपना गम भुलाने के लिए सोनू शराब पीने लगा और नशे की झोंक में अपने यारदोस्तों से भी अपनी माशूका दर्शना का जिक्र सरेआम करने लगा. इस का नतीजा यह हुआ कि मोहल्ले में यह बात फैल गई. इस से दर्शना की बदनामी होने लगी. वैसे भी मजहबी तौर पर कसरावद एक संवेदनशील इलाका है, जहां जबतब हिंदूमुसलिम झड़पें होती रहती हैं. लिहाजा सोनू की बातों को एक वर्ग विशेष के लोगों ने गंभीरता से लेते हुए आपत्ति जतानी शुरू कर दी. ये बातें कोई दूसरा रूप न ले लें, इसलिए नियाज अली ने अपने इश्कजादे बेटे सोनू को खरगौन भेज दिया.
न चाहते हुए भी सोनू पिता के कहने पर कसरावद से खरगौन चला तो गया, लेकिन वहां उस का मन नहीं लगा. वहां वह इस तरह छटपटा रहा था, जैसे उस की आत्मा कसरावद में ही रह गई है. पारिवारिक अंकुश न रह जाने की वजह से वह अब पहले से ज्यादा शराब पीने लगा था. नशे में वह दर्शना को हासिल करने के तरीकों पर सोचा करता था. कसरावद में तो स्कूल या कोचिंग आतेजाते दर्शना उसे दिख जाती थी, लेकिन खरगौन आ कर तो यह सुख भी छिन गया था. किसी भी आदमी की जब यह स्थिति हो जाती है तो वह सोचनेसमझने की ताकत खो बैठता है. यही हाल सोनू का भी था. ऐसी स्थिति में एक खतरनाक खयाल उस के जेहन में आया.
दर्शना रोज की तरह 12 अक्टूबर, 2014 को शाम 6 बजे कसरावद के मोहल्ला शाहबाद स्थित कोचिंग सैंटर से पढ़ कर बाहर निकली. वह सिर झुकाए सीधे अपने घर की ओर चली जा रही थी. 5-6 मिनट में वह मंडी रोड वाली मसजिद के सामने पहुंची थी कि तभी तेज गति से पीछे की तरफ से आती एक मोटरसाइकिल उस के पास रुक गई. उस ने बाइक पर पीछे बैठे शख्स को देखा तो सहम गई. चेहरे पर रूमाल बांधे उस शख्स को वह पहचान गई. वह कोई और नहीं, आशिक उर्फ सोनू था. उस की नजरों से लग रहा था कि उस के इरादे नेक नहीं हैं.
डर के मारे उस के हाथों से कापीकिताबें छूट कर जमीन पर गिर गईं. वह वहां से भागी और खुद को महफूज करने के लिए एक मकान का दरवाजा खटखटाने लगी. वह मकान मुबारक खान का था.
खटखटाने की आवाज सुन कर अंदर से एक जनाना आवाज आई, ‘‘कौन है, आती हूं.’’
लेकिन दरवाजा खुल पाता, उस के पहले ही सोनू दौड़ कर उस के पास आया और अंटी से कट्टा निकाल कर गोली सीधे दर्शना के सिर पर दाग दी. मुबारक खान की पत्नी ने दरवाजा खोला तो चौखट पर दर्शना पड़ी थी. वह उसे पहचान गईं. दर्शना शायद बेहोशी की हालत में थी. कुछ ही देर में वहां तमाम लोग जमा हो गए. उन्होंने दर्शना के घर वालों को खबर करने के साथ इलाज के लिए उसे उसी सरकारी अस्पताल ले गए, जहां उस की मां भावना काम करती थी. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि माजरा क्या है और दर्शना को हुआ क्या है? उस की गंभीर हालत को देखते हुए उसे कसरावद के अस्पताल से जिला अस्पताल खरगौन के लिए रैफर कर दिया गया.
लेकिन अस्पताल पहुंचते ही दर्शना की मौत हो गई. इसी बीच खबर पा कर पुलिस भी अस्पताल पहुंच गई थी. अब तक सभी लोग इसे सड़क दुर्घटना मान कर चल रहे थे, लेकिन खरगौन अस्पताल में उस के सिर के घाव की जांच की गई तो उस की मौत की असल वजह सामने आ गई. क्योंकि सिर पर गोली का निशान था.
खरगौन के एसपी अमित सिंह भी अस्पताल पहुंच गए थे. उन्होंने सदमे में डूबी भावना को बताया कि उन की बेटी की मौत एक्सीडेंट से नहीं, बल्कि गोली लगने से हुई है. इतना सुनते ही भावना के मुंह से निकला, ‘‘यह तू ने क्या किया सोनू.’’
बाद में भावना ने पूरी बात पुलिस को बता दी. लोगों को जब पता चला कि मुसलिम युवक सोनू ने दर्शना की हत्या की है तो दूसरे वर्ग के लोगों ने हल्ला मचाना शुरू कर दिया. इस से पुलिस प्रशासन घबरा गया. एसपी अमित सिंह ने कसरावद के टीआई गिरीश जेजुकर और एसडीओपी सुनील लाली को सोनू उर्फ आशिक को जल्द गिरफ्तार करने के निर्देश दिए. पुलिस सोनू को गिरफ्तार करने उस के घर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला. तब एसपी के आदेश पर जिले के समस्त थाना क्षेत्रों में नाकेबंदी कर दी और सारे टोल नाकों के सीसीटीवी फुटेज खंगाले गए. तब कहीं रात 2 बजे हत्यारे आशिक को सनावद से पकड़ा जा सका.
सोनू के साथ उस के साथी गुरू उर्फ भूरे को भी गिरफ्तार कर लिया गया था. सोनू से पूछताछ करने के बाद लकी उर्फ शुभम गुप्ता को भी धर दबोचा गया. लकी सोनू का दोस्त था और उसी ने हत्या में इस्तेमाल की गई बाइक सोनू को दी थी. पूछताछ कर के पुलिस ने तीनों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. MP News