Crime in Society : एकांत बंसल क्रिकेट का उभरता हुआ खिलाड़ी था. उचित मार्गदर्शन मिलने पर उस की प्रतिभा निखर सकती थी लेकिन उस के सामने एक ऐसी समस्या आन पड़ी कि उस ने अपने कदम पिच के बजाय चोरी की तरफ बढ़ा दिए और…

रात के करीब ढाई बजे थे. दिल्ली के मध्य जिला के थाने पहाड़गंज को पुलिस नियंत्रण कक्ष से सूचना मिली कि क्षेत्र के नेहरू बाजार में एक दुकान का ताला तोड़ने वाले चोरों ने 2 चौकीदारों की पिटाई की है. यह सूचना मिलते ही थानाप्रभारी राजकुमार, इंसपेक्टर (इनवैस्टीगेशन) सुखदेव मीणा, एएसआई हरपाल सिंह नेहरू बाजार की ओर रवाना हो गए. नेहरू बाजार थाने से दक्षिणपूर्वी दिशा में करीब 2 किलोमीटर दूर महावीर मंदिर के पास है. पुलिस वहां पहुंची तो मंदिर के आसपास 2-3 लोग मिले. मंदिर के पास ही सड़क पर एक जगह खून पड़ा मिला. उन लोगों ने बताया कि एक दुकान का ताला तोड़ रहे कुछ चोरों ने 2 चौकीदारों को पीट कर घायल कर दिया.

जिन्हें पुलिस नियंत्रण कक्ष की वैन लेडी हार्डिंग अस्पताल ले गई है. जिस दुकान का चोर ताला तोड़ रहे थे पुलिस वहां भी गई. वह रामकिशन वार्ष्णेय की कौस्मेटिक सामान की होलसेल की दुकान थी. उस दुकान के शटर का एक ताला टूटा पड़ा था. यह बात 12-13 नवंबर, 2014 की रात की है. थानाप्रभारी एएसआई हरपाल सिंह को घटनास्थल पर छोड़ कर लेडी हार्डिंग अस्पताल पहुंच गए. वहां डाक्टरों ने बताया कि एक चौकीदार भगत शाह की अस्पताल में ही मौत हो गई है जबकि दूसरे घायल चौकीदार करन बहादुर शाह का इलाज चल रहा है. थानाप्रभारी करन बहादुर शाह के पास गए. वह बयान देने की हालत में था.

करन बहादुर ने पुलिस को बताया कि वह पहाड़गंज के 6 टूटी चौक पर चौकीदारी करता है. रात करीब 2 बजे उसे प्यास लगी तो वह नेहरू मार्केट में महावीर मंदिर के प्याऊ पर पानी पीने गया. उसे देख कर उस का चाचा भगत शाह भी उस के पास आ गया था. भगत शाह पास में ही स्थित रतन मार्केट सब्जीमंडी में चौकीदारी करता था. पानी पीने के बाद दोनों बातें कर रहे थे, तभी उन की नजर नेहरू बाजार में खड़ी सिल्वर कलर की सैंट्रो कार पर गई. उस कार के पास ही 2 लड़के हाथ में लोहे की रौड लिए खड़े थे. एक उस सैंट्रो कार में था जबकि एक अन्य युवक एक दुकान के ताले तोड़ रहा था. यह देख कर वे चौंके. उन्होंने उन युवकों को टोका तो वे तीनों उन पर टूट पड़े और रौड से पिटाई करने लगे.

करन ने बताया कि एक हमलावर ने रौड से भगत शाह के सिर पर वार किया तो उन का सिर फट गया और वह नीचे गिर गए. दूसरे हमलावर ने उस के ऊपर वार किया तो उस ने हाथ से उस की रौड रोकने की कोशिश की जिस से उस के दाहिने हाथ के अंगूठे में चोट आ गई. अपनी जान बचाने के लिए वह रतन मार्केट सब्जीमंडी की तरफ भाग गया. फिर एक गली से निकल कर घटनास्थल की तरफ देखा तो वे हमलावर वहां नहीं दिखे. वे कार ले कर वहां से जा चुके थे. तब वह घटनास्थल पर पहुंचा तो वहां उस के चाचा भगत शाह खून में सने पड़े थे. किसी का फोन ले कर उस ने पुलिस के 100 नंबर पर काल की. थोड़ी देर में ही पीसीआर की गाड़ी वहां आ गई और उन्हें अस्पताल ले लाई.

करन बहादुर के बयान से पुलिस को इतना पता चल गया था कि बदमाश सिल्वर कलर की सैंट्रो कार में आए थे और दुकान में चोरी करने के लिए दुकान का एक ताला तोड़ भी चुके थे. उन्होंने यह मैसेज वायरलैस से पूरी दिल्ली में प्रसारित करा दिया कि 4 लड़के वारदात करने के बाद सिल्वर कलर की सैंट्रो कार से भागे हैं. जहां भी वे दिखें, उन्हें ट्रेस किया जाए. इस के बाद उन्होंने अज्ञात लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर के एसीपी ओमप्रकाश और डीसीपी परमादित्य को घटना की जानकारी दे दी. अगले दिन थानाप्रभारी को खबर मिली कि दिल्ली के नजफगढ़ की मेन मार्केट में जवाहर चौक पर स्थित एक ज्वैलरी शौप में 4 चोर ताले तोड़ कर उस में से 7 किलोग्राम से ज्यादा चांदी और सोने की ज्वैलरी तथा 35 हजार रुपए नकद ले गए.

चोरी करने से पहले उन्होंने वहां के चौकीदार को डराधमका दिया था. नजफगढ़ थाने में इस घटना की रिपोर्ट दर्ज हुई थी. उस चौकीदार ने पुलिस को बताया था कि वे चारों लुटेरे सिल्वर कलर की सैंट्रो कार से आए थे. नजफगढ़ वाली घटना डीसीपी परमादित्य की जानकारी में आई तो उन्हें लगा कि कहीं नजफगढ़ में वारदात करने वाले वही तो नहीं हैं जो पहाड़गंज क्षेत्र में चौकीदार का मर्डर कर के भागे थे. क्योंकि दोनों ही वारदातों में एक बात समान थी कि बदमाशों की संख्या 4 थी और उन के पास सिल्वर कलर की सैंट्रो कार थी. उन बदमाशों के पास पहुंचने का एक ही रास्ता था कि किसी भी तरह उन की सैंट्रो कार का रजिस्ट्रेशन नंबर पता चल जाए. लेकिन दोनों ही जगहों के चौकीदारों को कार का नंबर पता नहीं था इसलिए यह केस खोलना किसी चुनौती से कम नहीं था.

डीसीपी परमादित्य ने इस केस को सुलझाने के लिए पहाड़गंज क्षेत्र के एसीपी ओमप्रकाश के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में थानाप्रभारी राजकुमार, इंसपेक्टर (इनवैस्टीगेशन) सुखदेव मीणा, एसआई ओ.पी. मंडल, विनोद जैन, एएसआई हरपाल सिंह, हेडकांस्टेबल विष्णुदत्त, अरविंद कुमार, जितेंद्र राकेश, कांस्टेबल कुलदीप, समय सिंह को शामिल किया गया. इस के अलावा उन्होंने स्पैशल स्टाफ के इंचार्ज इंसपेक्टर सतेंद्र मोहन की टीम को भी इस केस को सुलझाने में लगा दिया. दोनों पुलिस टीमें इस केस को खोलने में जुट गईं. पहाड़गंज के नेहरू बाजार में जिस जगह वारदात हुई थी, पुलिस ने उस जगह का एक बार फिर मुआयना कर के यह देखा कि उधर कहीं कोई सीसीटीवी कैमरे तो नहीं लगे हैं, जिस से उस सैंट्रो कार का नंबर मिल सके.

पुलिस को कुछ दुकानों के आगे सीसीटीवी कैमरे तो लगे मिले लेकिन उन में से कई कैमरे बंद थे. और जो कैमरे चालू थे, उन की रिकौर्डिंग की जांच की तो वे इस एंगल से थे कि कार का केवल ऊपर का भाग ही उन की जद में आ सका. कार का नंबर उन कैमरों में नहीं मिल सका. इस के बाद पुलिस ने नजफगढ़ मार्केट में जवाहर चौक पर लगे सीसीटीवी कैमरों की रिकौर्डिंग देखी तो वहां भी सिल्वर कलर की सैंट्रो कार दिखी. एक कैमरे की रिकौर्डिंग में उस कार का नंबर दिखा, लेकिन वह स्पष्ट नहीं हो रहा था. उस नंबर को देखने की कोशिश की तो अधूरा नंबर 3409 ही पढ़ने में आया. इस अधूरे नंबर के माध्यम से उन बदमाशों तक पहुंचना आसान नहीं था. एसीपी ओमप्रकाश ने इस नंबर को भी दिल्ली के समस्त थानों में वायरलैस से फ्लैश करा दिया.

दोनों ही पुलिस टीमें अपनेअपने स्रोतों से उन बदमाशों तक पहुंचने की कोशिश कर रही थीं, लेकिन सफलता नहीं मिल रही थी. इलाके के अनेक संदिग्ध लोगों से भी पूछताछ की गई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल सका. इसी तरह करीब 2 महीने निकल गए. 15 जनवरी, 2015 को हेडकांस्टेबल विष्णुदत्त को अपने एक मुखबिर द्वारा बदमाशों के बारे में एक महत्त्वपूर्ण जानकारी मिली. विष्णुदत्त ने उस सूचना से थानाप्रभारी राजकुमार को अवगत करा दिया. थानाप्रभारी ने आगे की काररवाई करने के लिए तुरंत 2 टीमें बनाईं. पहली टीम इंसपेक्टर सुखदेव मीणा के नेतृत्व में बनी, जिस में एएसआई हरपाल सिंह, हेडकांस्टेबल विष्णुदत्त, अरविंद को शामिल किया. जबकि दूसरी टीम एसआई विनोद नैन की देखरेख में बनाई जिस में हेडकांस्टेबल जितेंद्र, राकेश आदि सम्मिलित थे.

पहली टीम वीडियोकौन टावर के पास पचकुइयां रोड पर बैरीकेड्स लगा कर वाहनों की चैकिंग करने लगी तो दूसरी टीम को समयपुर बादली क्षेत्र में जीवन पार्क के नजदीक भेज दिया. पचकुइयां रोड पर जो टीम वाहनों की चैकिंग कर रही थी, उसे डीएल3सीए क्यू3409 नंबर की सैंट्रो कार आती दिखी. वह कार सिल्वर कलर की थी. पुलिस ने उसे रोका. उस कार में ड्राइवर के अलावा अगली सीट पर एक युवक और बैठा था. पूछने पर ड्राइवर ने अपना नाम राकेश कुमार और दूसरे युवक ने अपना नाम एकांत बंसल बताया. मुखबिर ने पुलिस को इन्हीं दोनों युवकों के बारे में सूचना दी थी. पुलिस ने दोनों को हिरासत में ले लिया.

कार की तलाशी लेने पर पीछे वाली सीटों के नीचे से 2 रौड, गैस कटर, शटर खोलने का हैंडल, हथौड़ा, छेनी आदि औजार मिले. जिस सैंट्रो कार में वे बैठे थे, वह उन्होंने 16 अक्तूबर, 2014 को दिल्ली के पटेलनगर क्षेत्र से चुराई थी, जिस की वहां रिपोर्ट भी दर्ज है. उन्होंने बताया कि पहाड़गंज के नेहरू बाजार में चौकीदारों पर हमला और नजफगढ़ में ज्वैलरी की दुकान में चोरी की वारदात को उन्होंने ही अपने साथियों के साथ अंजाम दिया था. दोनों अभियुक्तों को पुलिस पूछताछ के लिए थाने ले आई. पुलिस की दूसरी टीम जो जीवन पार्क गई थी, वहां से उस ने मनोज नाम के एक व्यक्ति को हिरासत में ले लिया. वह भी एकांत बंसल का साथी था.

वह जिस सैंट्रो कार नंबर डीएल-6सी जे3828 से जीवन पार्क में स्थित अपने घर लौट रहा था. वह उस ने दिल्ली के राजेंद्रनगर से 15 जनवरी, 2015 यानी उसी दिन चुराई थी. तलाशी लेने पर उस की कार से एक गैस कटर, छोटा सिलेंडर, एक गदाड़ा, शटर खोलने का हैंडल आदि बरामद हुआ. उस ने भी बताया कि नजफगढ़ और पहाड़गंज की वारदातों में वह शामिल रहा. उसे भी हिरासत में ले कर पुलिस थाने लौट आई. चौकीदार भगत शाह की हत्या के मामले का खुलासा हो चुका था. 3 अभियुक्त पुलिस के हत्थे चढ़ चुके थे. मास्टरमाइंड एकांत बंसल था जो एक क्लब लेवल का क्रिकेट खिलाड़ी था. जबकि मनोज दिल्ली विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुका था. तीनों अभियुक्तों से सख्ती से पूछताछ की तो उन से लूट और चोरी की 55 वारदातों का खुलासा हुआ.

एक क्रिकेट खिलाड़ी और राजनेता ने मिल कर चोरी की इतनी सारी वारदातों को कैसे अंजाम दिया और ये इस जरायम में कैसे आए, इस की एक रोचक कहानी सामने आई. 34 वर्षीय एकांत बंसल दिल्ली के पहाड़गंज क्षेत्र में स्थित संग तराशान इलाके में रहने वाले गुरुचरण बंसल का बेटा था. बचपन से ही उसे क्रिकेट खेलने का शौक था. क्रिकेट खेल में ज्यादा ध्यान देने की वजह से वह जूनियर कक्षा से आगे नहीं पढ़ सका. दिल्ली में वह कई क्लबों की तरफ से मैच खेलता था. उस ने बताया कि वह इशांत शर्मा जैसे कई बड़े खिलाडि़यों के साथ भी मैच खेल चुका है.

राष्ट्रीय खिलाडि़यों की तरह वह भी इस खेल में अपना नाम चमकाना चाहता था. लेकिन उस के हौसले उस समय पस्त हो गए जब पिता ने उस की शादी कर दी. पिता बूढ़े हो चुके थे, उन की इतनी कूवत नहीं थी कि वह अपने शादीशुदा बच्चों का भी खर्च उठा सकें. एकांत के सिर पर बीवी का खर्च भी आन पड़ा था. अब उस के सामने परेशानी यह थी कि वह ज्यादा पढ़ालिखा भी नहीं था जिस से उसे कोई नौकरी मिल सके और उस के पास कोई तकनीकी ज्ञान भी नहीं था जिस के सहारे उस की रोजीरोटी चल सके. क्रिकेट खिलाड़ी होने की वजह से लोगों की नजरों में उस की अच्छी इमेज थी. इस की वजह से वह कोई ऐसा काम भी नहीं करना चाहता था जिस से उस की इज्जत धूमिल हो. इसी बीच उस के मातापिता की मौत हो गई. उन की मौत के बाद वह और परेशान रहने लगा.

उस के दूसरे भाई अलगअलग रह रहे थे. उस के सामने एक ही समस्या बनी हुई थी कि वह अपने घर का खर्च कैसे चलाए. काफी सोचनेसमझने के बाद एकांत चोरियां करने लगा. इस काम में जुट जाने के बाद उस ने क्रिकेट खेल की तरफ ध्यान नहीं दिया. इस के बाद वह इसी जरायम से पैसा कमाने लगा. चोर चाहे कितनी चालाकी से चोरी क्यों न करे, एक न एक दिन वह पकड़ में आ ही जाता है. एकांत भी एक दिन पुलिस की पकड़ में आ ही गया, जिस की वजह से उसे जेल जाना पड़ा.

रोहिणी स्थित जेल में ही सन 2008-09 में उस की मुलाकात राकेश कुमार नाम के व्यक्ति से हुई. वह दिल्ली के वजीरपुर क्षेत्र में रहता था. राकेश भी चोरी के आरोप में जेल गया था. साथसाथ जेल में रहने पर दोनों के बीच दोस्ती हो गई और जमानत पर रिहा होने के बाद दोनों ही मिल कर चोरियां करने लगे. वह बंद दुकानों के ताले तोड़ कर बड़ीबड़ी चोरियां करने लगे. चोरियों में मोटा माल हाथ लगने लगा तो उन के हौसले बढ़ने लगे. दोनों जने साथसाथ जेल भी गए. अब एकांत को जेल जाने से डर नहीं लगता.

जेल में ही इन की मनोज नाम के एक अन्य शख्स से मुलाकात हुई. समयपुर बादली के जीवन पार्क में रहने वाला 45 वर्षीय मनोज भी चोरी के मामले में जेल गया था. तीनों का पेशा एक ही था इसलिए जेल से बाहर आने पर तीनों ने मिल कर वारदात को अंजाम देने का फैसला कर लिया. मनोज ने अपने दोस्त अजय को भी अपनी टीम में शामिल कर लिया. फिर तो इस चौकड़ी ने दिल्ली में एक के बाद एक वारदातें करनी शुरू कर दीं. ये लोग किसी वाहन से रात में निकलते और वाहन को दुकान के आगे खड़ा कर के अपने साथ लाए औजारों से ताले तोड़ कर उस में रखा सामान, नकदी साफ कर देते थे.

इन के टारगेट पर मैडिकल स्टोर, ज्वैलरी शौप, सिगरेट शौप, जनरल स्टोर्स, साडि़यों की दुकान आदि रहते थे. चोरी किए सामान को यह आपस में बांट लेते थे. ज्वैलरी को मेरठ के एक ज्वैलर को बेचते थे. एक ही इलाके के बजाय ये दिल्ली के अलगअलग इलाकों में वारदात को अंजाम देते थे. कभीकभी तो ये एक ही रात में  3-4 वारदातें कर देते थे. मनोज के पास जब पैसा जमा हो गया तो उस ने राजनीति में पैर जमाने का निश्चय किया. सन 2003 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में उस ने कई राजनीतिक पार्टियों के नेताओं से संपर्क कर टिकट लेने की कोशिश की लेकिन जब उसे किसी भी पार्टी से टिकट नहीं मिला तो उस ने निर्दलीय रूप से विधानसभा का चुनाव लड़ा, जिस में उसे 1500 वोट मिले. राजनीति में पैर न जमने पर वह फिर से अपने साथियों के साथ पुराने धंधे में उतर आया.

16 अक्तूबर, 2014 को इन्होंने पटेलनगर क्षेत्र से एक सैंट्रो कार नंबर डीएल3सीए क्यू 3409 चुराई. इस कार का नंबर बदले बिना ही ये दिल्ली में इसे चलाते रहे लेकिन पुलिस की पकड़ में नहीं आ सके. 12-13 नवंबर, 2014 की रात को ये इसी कार में बैठ कर वारदात के लिए निकले. इस बार वे पहाड़गंज क्षेत्र में स्थित नेहरू बाजार में गए. वहां पर उन्होंने एक दुकान के आगे अपनी कार लगा दी. वह रामकिशन वार्ष्णेय की कौस्मेटिक सामान की होलसेल की दुकान थी. राकेश कार में ड्राइविंग सीट पर बैठा रहा तो मनोज और अजय हाथों में लोहे की रौड ले कर कार के पास खड़े हो कर निगरानी करने लगे. जबकि एकांत औजारों से उस दुकान के ताले तोड़ने लगा. उस ने दुकान का एक ताला तोड़ भी लिया था.

वह और ताले तोड़ रहा था तभी अचानक चौकीदार करन बहादुर और भगत शाह उधर आए. करन बहादुर और भगत शाह मूलरूप से नेपाल के रहने वाले थे. वे इस बाजार में पिछले 10-15 सालों से चौकीदारी कर रहे थे. फिलहाल वे संग तराशान इलाके में रह रहे थे. उन्होंने कार के पास 2 लोगों को खड़े देखा तो उन्हें शक हुआ कि रात 2 बजे ये हाथों में रौड लिए क्यों खड़े हैं. तभी उन की नजर एक दुकान की तरफ गई वहां भी एक आदमी तालों को तोड़ने में लगा था. वे समझ गए कि ये सेंधमार हैं. दोनों चौकीदारों ने आवाज दे कर उन से पूछा कि वे वहां क्या कर रहे हैं.

बदमाशों को डर हो गया कि ये चौकीदार उन की योजना को नाकाम कर सकते हैं, इसलिए वे तीनों रौड ले कर उन के पास आ गए और चौकीदारों पर रौड से हमला कर दिया. एक हमलावर ने भगत शाह के सिर पर वार किया जिस से वह वहीं गिर गया तथा दूसरा चौकीदार करन बहादुर जान बचा कर वहां से भाग गया. चौकीदार का सिर फटने के बाद बदमाशों ने सोचा कि शायद वह मर गया है, इसलिए चोरी करने के बजाय वे वहां से भाग खड़े हुए. पहाड़गंज से वे चारों नजफगढ़ मेनबाजार पहुंचे. रास्ते में उन की गाड़ी को पुलिस ने भी नहीं रोका. मेनमार्केट में पहुंच कर वे दुकानों के ऊपर लगे साइनबोर्डों को पढ़ कर सोचने लगे कि किस दुकान को निशाना बनाना सही रहेगा. तभी उन्हें जवाहर चौक पर एक ज्वैलरी शौप दिखी.

उस ज्वैलरी शौप के पास एक चौकीदार था. उन्होंने सब से पहले उस चौकीदार को काबू में कर के डराधमका दिया. इस के बाद उन्होंने दुकान के ताले तोड़ कर वहां से सोनेचांदी की करीब 7 किलोग्राम ज्वैलरी और 35 हजार रुपए कैश चुरा लिया. अपना काम करने के बाद वे पहाड़गंज लौट आए. रात में वे सभी एकांत के घर रुके और सुबह होने पर सभी अपनेअपने घर चले गए. बाद में उन्होंने चोरी के सामान का बंटवारा भी कर लिया था. 2 महीने बाद मनोज ने राजेंद्रनगर से एक सैंट्रो कार नंबर डीएल-6सी जे3828 चुराई.

दोनों जगहों की वारदातों में पुलिस को ऐसा सुबूत नहीं मिला था, जिस से पुलिस उन तक पहुंच पाती. इसलिए 13 नवंबर के बाद भी उन्होंने दिल्ली के अलगअलग क्षेत्रों में कई वारदातों को अंजाम दिया. आखिर मुखबिर की सूचना पर 15 जनवरी, 2015 को वे पुलिस के हत्थे चढ़ ही गए. पुलिस ने 16 जनवरी को अभियुक्त एकांत बंसल, राकेश कुमार और मनोज को तीसहजारी कोर्ट में महानगर दंडाधिकारी अंबिका सिंह की कोर्ट में पेश कर के उन का 3 दिनों का रिमांड लिया.

रिमांड अवधि में पुलिस ने उन की निशानदेही पर 20 किलोग्राम चांदी और सोने की ज्वैलरी, 1 लाख 70 हजार रुपए नकद, चोरी की 2 सैंट्रो कारें, 2 मोटरसाइकिलें, 52 इंच के 2 एलईडी टीवी, 6 लैपटोप, 20 मोबाइल फोन, 30 किलोग्राम 5 व 10 रुपए के सिक्के, 4 गैस कटर, 5 म्यूजिक सिस्टम, भारी मात्रा में रेडीमेड कपड़े, ब्रांडेड कंपनियों के सिगरेट के पैकेट, चौकलेट आदि सामान बरामद किए. उन्होंने बताया कि वे दिल्ली के 20 से अधिक थानाक्षेत्रों में चोरी, डकैती, सेंधमारी की 55 वारदातों को अंजाम दे चुके हैं.

18 जनवरी को पुलिस ने चोरी का माल खरीदने वाले एक ज्वैलर को भी दिल्ली के मंगोलपुरी बसस्टाप से गिरफ्तार कर लिया. वह इन लोगों से मिलने दिल्ली आया था. उसे इन के गिरफ्तार होने की जानकारी नहीं थी. उस की निशानदेही पर पुलिस ने 2 किलोग्राम चांदी एवं चांदी को मोल्डिंग करने वाली मशीन बरामद कर ली. 37 वर्षीय वह ज्वैलर चोरी का सामान खरीदने के आरोप में पहले भी जेल जा चुका है. उस के खिलाफ 6 केस पहले से दर्ज थे. पांचवें अभियुक्त अजय को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर सकी. चारों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश करने के बाद उन्हें जेल भेज दिया गया. मामले की जांच इंसपेक्टर सुखदेव मीणा कर रहे हैं. Crime in Society

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

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