Emotional Love Story: प्यार में मजाक हो सकता है, मगर मजाक में प्यार नहीं. मैं पागल थी न, किसी दूसरे की मंजिल को अपनी मंजिल समझ बैठी. ... बस मैं अपनी मोहब्बत की तौहीन बरदाश्त नहीं कर सकी. कुसूर तो मेरा ही है कि हमदर्दी को मोहब्बत समझ लिया. अचानक मैं हड़बड़ा कर उठ बैठा. कोई बडे़ जोर से दरवाजा पीट रहा था. ‘‘भई, क्या मुसीबत आ गई? अभी तो सिर्फ 8 बजे हैं.’’ मैं ने चिल्ला कर कहा.

‘‘अशरफ भाई, दरवाजा खोलें.’’ शाजिया की कांपती

आवाज में न जाने क्या था कि मैं ने बिस्तर से छलांग लगाई और दरवाजा खोल दिया.

‘‘अशरफ भाई, वह... वह शज्जो मर गई. उस ने खुदकुशी कर ली है.’’

फिर मैं घर के अंदरूनी हिस्से की तरफ भागा. सब शज्जो के कमरे में जमा थे और वह सिर से पैर तक सफेद चादर ओढ़े पड़ी थी. चाची अम्मां के विलाप दिल को दहलाए दे रहे थे. यह अचानक क्या हो गया? मेरा दिल जैसे फटने को था. मैं घबरा कर कमरे से निकल आया. बरामदे में सब लड़केलड़कियां खड़े रो रहे थे. मुझे देख कर जमाल एकदम मुझ से लिपट गया, ‘‘अशरफ, मेरा गला दबा दो अशरफ... मैं शज्जो का कातिल हूं... मुझे मार दो. हमारे मजाक ने उस की जान ले ली. मैं सोच भी नहीं सकता था कि वह इतना आगे बढ़ जाएगी. मुझे फांसी पर लटकना चाहिए. मैं उस का कातिल हूं.’’

‘‘नहीं जमाल, हम सभी उस के मुजरिम हैं, सिर्फ तुम्हीं नहीं.’’ मैं ने रुंधी आवाज में कहा. मेरा दिल चाह रहा था कि मैं अकेले में बैठ कर खूब रोऊं और जी का बोझ हल्का करूं. मैं जल्दी से दादीजान के कमरे में घुस गया और आंसुओं से दिल की आग ठंडी करने लगा. हमारा खानदान बहुत बड़ा था और यह हमारी दादी का कारनामा था, जिन्होंने अपने चारों बेटों को एक छत तले रखा था. यह लंबीचौड़ी कोठी दादाजान ने बड़ी चाहत से बनवाई थी. दादीजान गांव की रहने वाली थीं. उन्होंने बेटों को अच्छी तालीम दिलाई. पढ़ीलिखी बहुएं लाईं, मगर उन्हें शहरों का यह लच्छन कि शादी होते ही बेटा मांबाप से अलग हो जाए, जरा भी पसंद नहीं आया था.

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