Politics : शर्मीले स्वभाव के इमरान खान ने क्रिकेट के मैदान में न सिर्फ अपनी अलग पहचान बनाई, बल्कि देश का नाम भी रोशन किया. राजनीति में उन्हें सफलता नहीं मिली, लेकिन अब 62 साल की उम्र में उन्होंने ऐसा कौन सा काम किया कि वह फिर से चर्चाओं में आ गए. बचपन से ही शर्मीले रहे इमरान खान जब 1982 में पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के कप्तान बनाए गए थे, तब भी वह बहुत शर्मीले थे. यह बात उस समय देखने को मिलती थी,
जब वह टीम की बैठकों में बोलने से बचने की कोशिश करते थे. लेकिन यह बात उन के ताजे फैसले से मेल नहीं खाती, जिस के तहत उन्होंने टीवी पत्रकार और 3 बच्चों की मां रेहम खान से शादी कर ली. शर्मीले स्वभाव के 62 साल के इमरान खान के इस कदम पर उन के जानने वाले भी आश्चर्यचकित हो गए हैं.
इमरान खान के इस प्यार और शादी के मायने को उन के समर्थक उन के बहुआयामी व्यक्तित्व से जोड़ कर देखने लगे हैं. इमरान के पिता इकरामुल्लाह खान नियाजी लाहौर में सिविल इंजीनियर थे, जबकि मामा माजिद खान और जावेद के नाम अपने जमाने के कामयाब क्रिकेटरों में शुमार थे. इन्हीं से पे्ररणा लेते हुए इमरान का झुकाव भी क्रिकेट की तरफ हो गया था. निस्संदेह इमरान बेइंतहा खूबसूरत थे और आज 62 की उम्र में भी दिखते हैं. इस की वजह उन का पश्तून नियाजी शेरमनरवेल जनजाति का होना है, जो अपनी गोरी रंगत और कदकाठी के कारण जानीपहचानी जाती है. भारत में ऐसे लंबे व चौड़ी छाती वाले मुसलमानों के लिए बोलचाल में पठान शब्द का संबोधन किया जाता है.
इमरान का परिवार खासा प्रतिष्ठित था. पिता अधिकांश वक्त अपनी नौकरी में व्यस्त रहते थे. जिस के चलते वह अपनी मां शौकत खानम के काफी नजदीक थे. 4 बहनों के अकेले भाई इमरान की शुरुआती पढ़ाई लाहौर के सेंट्रल स्कूल में हुई थी. स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्हें उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड भेज दिया गया, जहां उन्होंने रायल ग्रामर स्कूल वर्सेस्टर में दाखिला लिया. सन 1972 में उन्होंने औक्सफोर्ड के केबल कालेज से राजनीति, अर्थशास्त्र और दर्शनशास्त्र विषयों की पढ़ाई की. पढ़ाई के दौरान भी उन पर क्रिकेट का जुनून हावी रहा. जब भी मौका मिलता, वह मैदान में अभ्यास करने चले जाते थे.
लगातार अभ्यास से इमरान का प्रदर्शन भी निखर रहा था. पाकिस्तान में रहते उन्होंने 16 साल की उम्र में प्रथम श्रेणी का मैच खेला था. इसी दौरान वह अपनी घरेलू टीम लाहौर-ए, लाहौर-बी और लाहौर ग्रींस से भी खेले थे, लेकिन उन्हें बड़ा मौका सन 1973 में मिला, जब वह औक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की ब्लू क्रिकेट टीम के लिए चुने गए. 70 के दशक में 2 प्रमुख एशियाई देशों भारत व पाकिस्तान में क्रिकेट का बुखार शवाब पर था. 1971 से 1976 तक इमरान ने काउंटी क्रिकेट खेला, जहां से उन की पहचान एक मध्यम तेज गेंदबाज की बनी. पाकिस्तान आ कर वह दाऊद इंडस्ट्रीज के अलावा पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस के लिए खेले.
गरदन तक झूलते बाल, असामान्य लंबा कद, सिकुड़ी मगर बोलती आंखें और रौबदार चेहरा उन की पहचान बन चुका था. इमरान ऐसे युवा थे, जो पाश्चात्य संस्कृति और इस्लामिक परंपराओं की कशमकश में फंसे थे. वह दोनों संस्कृतियों से प्रभावित थे. पश्चिम का खुलापन उन की आंखों को लुभाता था तो वहीं पाकिस्तान की बंदिशें दिमाग को हिलाती थीं. 1971 में पाकिस्तानी टीम की तरफ से उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ अपना पहला टेस्ट मैच बर्मिंघम में खेला. उन की शुरुआत भले ही उल्लेखनीय नहीं रही, लेकिन उन का व्यक्तित्व क्रिकेट प्रेमियों के दिलोदिमाग पर छा गया था. उन की तेज गेंदों से दुनिया भर के बल्लेबाज खौफ खाने लगे थे.
दरअसल वह एशिया के पहले तेज गेंदबाज थे, जिस के पास गति के साथ दिशा भी थी और उस के लिए 4 फील्डर तक स्लिप में तैनात किए जाते थे. गेंद को हवा में स्विंग कराने की कला में वह माहिर हो गए थे. इमरान के खेल का रंग अब दुनिया में जमने लगा था. हालांकि उन्हें बल्लेबाजी के लिए छठवें नंबर पर भेजा जाता था. उस क्रम में भी उन्होंने कई दफा अच्छे रन बटोरे जिस से उन्हें आल राउंडर कहा जाने लगा और उन की तुलना इंग्लैंड के हरफनमौला खिलाड़ी इयान बौथम से की जाने लगी. यह बात उन के लिए बड़े ही गर्व और उपलब्धि वाली थी. उस समय पाकिस्तानी टीम और क्रिकेट, दोनों जावेद मियांदाद के नाम से जाने पहचाने जाते थे.
जावेद आक्रामक बल्लेबाज तो थे ही, साथ ही उद्दंड भी थे. इस के विपरीत इमरान का शर्मीलापन उन्हें नम्र साबित करता था. डे्रसिंगरूम में भी इमरान अकसर अकेले रहते थे. इंग्लैंड के दिग्गज क्रिकेटर कैरी पैकर ने जब वर्ल्ड क्रिकेट शृंखला की शुरुआत की थी, तब इमरान भी उन के कैंप में शामिल हुए थे. कैरी पैकर ने समानांतर क्रिकेट शुरू कर दुनिया भर को हिला दिया था. कैरी कैंप में जाने से भी इमरान का नाम कामयाब खिलाडि़यों में शुमार किया जाने लगा था, मगर एक तेज गेंदबाज की मुहर उन के नाम पर साल 1978 में लगी. पर्थ में तेज गेंदबाजों की एक प्रतियोगिता में उन्होंने 139.7 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से गेंद फेंकी. यह गति तत्कालीन तेज गेंदबाजों आस्ट्रेलिया के जियाफ थौमसन और वेस्टइंडीज के माइकल होल्डिंग से कम थी, लेकिन डेनिस लिली और एंटी राबर्ट्स से ज्यादा थी.
2 साल के अंदर ही इमरान खान एक विश्वस्तरीय क्रिकेटर के रूप में स्थापित हो चुके थे. उन की सफलता से पाकिस्तानी टीम का भी आत्मविश्वास बढ़ गया था. विरोधी टीम में इमरान के नाम की खासी दहशत रहती थी. उन की काबिलियत को देखते हुए सन 1982 में उन्हें पाकिस्तानी क्रिकेट टीम की कप्तानी सौंपी गई. इस पर दुनिया भर के समीक्षक, विश्लेषक और खिलाड़ी हैरान रह गए कि जावेद मियांदाद जैसे सधे कप्तान की जगह इमरान को लाना कहीं जल्दबाजी तो नहीं. मगर यह जल्दीबाजी नहीं, वक्त की जरूरत थी. जल्दी ही इमरान ने इस फैसले को सही ठहराते हुए अंगे्रजों को 28 साल बाद उन की ही धरती पर हराने का श्रेय ले लिया.
कैरियर की सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजी भी उन्होंने कप्तान रहते हुए श्रीलंका के खिलाफ 1982 में लाहौर में की थी. जब महज 58 रन दे कर उन्होंने 8 विकेट झटके थे. इस शृंखला में इमरान ने तूफानी बल्लेबाजी भी की थी. इसी साल अपने परंपरागत प्रतिद्वंद्वी भारत के खिलाफ भी उन्होंने 6 टेस्ट मैचों में 40 विकेट ले कर चमत्कारिक प्रदर्शन किया था. इसी दौरान इमरान की पिंडली में फ्रैक्चर हो गया, जिस की वजह से उन्हें तकरीबन ढाई साल तक क्रिकेट से दूर रहना पड़ा. फ्रैक्चर इतना घातक था कि शुरू में डाक्टरों ने उन की वापसी की उम्मीद छोड़ दी थी. लेकिन यह इमरान की क्रिकेट के प्रति लगन और दृढ़ इच्छाशक्ति ही थी कि 1984 में उन्होंने शानदार वापसी की.
1987 का वर्ल्ड कप भारत पाकिस्तान ने संयुक्त मेजबानी में आयोजित किया था, जिस से पूरा एशिया रोमांचित था. उम्मीद और चर्चा यह थी कि कोई मेजबान देश ही यह खिताब हासिल करेगा. इस में भारत की संभावनाएं ज्यादा थीं, क्योंकि कपिल देव के नेतृत्व में 1983 का वर्ल्ड कप जीतने के बाद उस के हौसले बुलंद थे. लेकिन दोनों ही मेजबान टीमें सेमीफाइनल के आगे नहीं पहुंच पाईं. पाकिस्तानी टीम की उस हार और प्रदर्शन से इमरान इतने हताश हो गए थे कि उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने की घोषणा कर दी. इमरान द्वारा लिए गए इस फैसले से उन के समर्थकों को बड़ा धक्का लगा. साथ ही सरकार भी सोचने के लिए मजबूर हो गई, क्योंकि उस समय हालात यह थे कि इमरान खान के बिना पाकिस्तान क्रिकेट की कल्पना तक नहीं की जा सकती थी.
राष्ट्रपति जियाउल हक के आग्रह पर इमरान खान ने दोबारा कप्तानी संभाली और पाकिस्तान क्रिकेट को फिर एक बेहतर मुकाम पर ला खड़ा किया. यह विश्व क्रिकेट का पहला मौका था, जब किसी राष्ट्रपति ने खिलाड़ी से खेलते रहने का आग्रह किया था. इमरान का प्रदर्शन भी पहले के मुकाबले काफी अच्छा हो गया था. जिस का परिणाम यह रहा कि 1988 का वेस्टइंडीज का दौरा भी इमरान के नाम रहा. वहां उन्होंने 3 टेस्ट मैचों में 23 विकेट लेने का कारनामा कर दिखाया था, जिस में वह मैन औफ द सीरीज रहे थे.
यह इमरान के क्रिकेट जीवन का उत्तरार्ध था, जो क्रिकेट की भाषा में स्वर्णिम ही कहा जाएगा. क्योंकि उसी दौरान सन 1992 में उन के नेतृत्व में वर्ल्ड कप पाकिस्तान ने जीता तो रातोंरात इमरान महानायक बन गए थे. अब तक क्रिकेट से परे इमरान के व्यक्तिगत जीवन में चर्चा लायक कोई बड़ा विवाद नहीं था. लेकिन भारतीय फिल्म अभिनेत्री जीनत अमान से कथित रोमांस करने पर वह चर्चाओं में आ गए. जीनत अमान अपने वक्त की बिंदास अभिनेत्री थीं, जिस ने परंपरागत भारतीय स्त्री की छवि को फिल्मों के जरिए छोड़ा था. राजकपूर की ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ फिल्म में किए गए अभिनय को दर्शक कभी नहीं भुला सकते.
इमरान जीनत का रोमांस कथित हो कर रह गया, क्योंकि इन संबंधों का दोनों ने न कभी खंडन किया और न ही स्वीकारा. इसी दौरान यह भी चर्चा होने लगी कि कालेज जीवन में बेनजीर भुट्टो से उन की शादी होने वाली थी. इमरान 40 साल के हो चुके थे, लेकिन अविवाहित थे. लोगों में इस बात की जिज्ञासा पैदा हो गई कि वे शादी क्यों नहीं कर रहे? 1992 का साल क्रिकेटर इमरान के लिए उपलब्धियों के साथसाथ विवादों से भी भरा रहा. विश्वकप जीतने के बाद उन्होंने जो भाषण दिया, वह विवादित था. भाषण में उन्होंने क्रिकेट से ज्यादा अपने भविष्य की बातें कही थीं, जिन में प्रमुख थीं खुद के द्वारा कैंसर अस्पताल बनाया जाना. पूरे भाषण को इमरान ने खुद पर केंद्रित रखा तो पाकिस्तान में उन का विरोध भी शुरू हो गया.
चूंकि इमरान क्रिकेट से संन्यास लेने की घोषणा कर चुके थे, इसलिए उन्होंने अपनी आलोचनाओं पर ध्यान नहीं दिया, बल्कि वह और आक्रामक हो कर दूसरे रूप में सामने आए. वह समाजसेवा में जुट गए. विवादों और विरोधाभासों के बीच उन्हें उसी साल पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान हिलाल-ए-इम्तियाज से सम्मानित किया. 1995 तक इमरान समाजसेवा में लगे रहे. क्रिकेट से वह कट चुके थे, लेकिन विभिन्न समाचार पत्रों में स्तंभ लिखने और क्रिकेट कमेंट्री करने का उन का सिलसिला जारी रहा. इसी बीच उन की मां शौकत खानम की मृत्यु हो गई, जिस से वह काफी व्यथित रहने लगे थे.
इमरान ने कैंसर पीडि़तों की मदद करने के लिए एक धर्मार्थ संस्था शौकत खानम मेमोरियल ट्रस्ट की स्थापना की. इस ट्रस्ट के लिए इमरान ने क्रिकेट की अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा तो लगाया ही, साथ ही लोगों से सार्वजनिक रूप से चंदा भी इकट्ठा किया. इमरान यूनिसेफ के लिए खेलों के विशेष प्रतिनिधि तो रह ही चुके थे, साथ ही उन्हें पाकिस्तान, श्रीलंका और थाईलैंड में स्वास्थ्य व टीकाकरण कार्यक्रम का ब्रांड एंबेसेडर भी बनाया गया.
लेकिन इतने से वह संतुष्ट और खुश नहीं थे. अब तक वह काफी दौलत और शोहरत कमा चुके थे, लेकिन एक छटपटाहट उन के भीतर थी. बदलाव की जो चाहत या हसरत उन के दिल में थी, उस के पूरे होने का रास्ता सियासत से हो कर ही जाता था. इस के लिए वह खुद को पुख्ता करना चाहते थे. उन्होंने एक तकनीकी महाविद्यालय भी स्थापित किया. उन के द्वारा किए गए काम चर्चित हुए, लेकिन चर्चा की मियाद पानी के बुलबुले सरीखी थी. इसी बीच उन्होंने अपनी शादी का ऐलान कर डाला. उन की शादी की खबर महत्त्वपूर्ण इसलिए हो गई थी, क्योंकि उन की होने वाली पत्नी मुसलमान नहीं, बल्कि ईसाई थी. उस का नाम था जेमिमा गोल्ड स्मिथ. जेमिमा एक खूबसूरत युवती थी और बेहद आकर्षक और अल्हड़ रोमांटिक मिजाज की.
यह शादी दुनिया भर में चर्चा का विषय रही थी. जिस की कई वजहें थीं, जिन में पहली वजह उन की उम्र का बड़ा अंतर था. इमरान तब 42 साल के थे और जेमिमा महज 21 साल की थी. बेहद संपन्न पारिवारिक पृष्ठभूमि की मालकिन जेमिमा इस हद तक इमरान पर मरती थी कि उस ने इमरान की धर्म परिवर्तन की शर्त झट से कुबूल कर ली थी. दिलचस्प बात यह थी कि 16 मई, 1995 को शादी के दिन ही उस ने पेरिस में इमरान के साथसाथ इसलाम भी अपना लिया था.
इस शादी पर कानूनी मुहर 21 जून, 1995 को लगी. दोनों ने इंग्लैंड में रिचमंड रजिस्टर औफिस में कानूनी तौर पर भी एकदूसरे को अपना लिया. यूरोपियन संस्कृति में पलीबढ़ी जेमिमा बहुत ज्यादा परिपक्व नहीं थी. उस के पास जिंदगी और दुनिया का महज 21 साल का तजुर्बा था. वह एक उम्रदराज दिग्गज क्रिकेटर की दीवानी थी और उसे पति के रूप में पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार थी, इसलिए उस ने अपना धर्म परिवर्तन कर लिया था. लेकिन आने वाली दुश्वारियों का अंदाजा उसे नहीं था. हालांकि 1996 में उस ने पहले बेटे सुलेमान को जन्म दिया और 1999 में दूसरा बेटा कासिम हुआ. जेमिमा गोल्डस्मिथ ने इसलाम और पाकिस्तान के तौर तरीकों से तालमेल बैठाने की बहुत कोशिश की. लेकिन वह खुद को सहज नहीं पा रही थी.
इमरान के लिए यह वाकई कठिन वक्त था, जेमिमा अपनी मरजी से बारबार इंग्लैंड चली जाती थी. यह बात इमरान को पसंद नहीं थी. लिहाजा इसी बात पर दोनों के बीच अनबन और खटपट शुरू हुई, जो साल 2004 में तलाक पर जा कर खत्म हुई. रसूखदार और संपन्न घराने की जेमिमा को लगा हो या न लगा हो, पर इमरान को उस तलाक से सदमा लगा था. अब इमरान के बारे में इन खबरों को मीडिया तूल देने लगा था कि 1990 में ब्रिटेन के एक कूटनीतिज्ञ की बेटी सीता व्हाइट द्वारा उन पर लगाया यह आरोप सच था कि वह उस की बेटी टीरियन के पिता हैं. इस आरोप को इमरान ने सार्वजनिक रूप से नकार दिया था, लेकिन सीता अदालत तक जा पहुंची.
अदालत में उस ने इस आरोप को साबित भी कर दिया. इस के बाद इमरान ने भी सच स्वीकारने में भलाई समझी थी. इस से इमरान की अब तक की पाकसाफ इमेज धूमिल हो गई. जेमिमा से तलाक के बाद इमरान अपने बेटों से मिलने जाते रहे, लेकिन वे स्वाभाविक तौर पर मां के ज्यादा करीब थे, इसलिए उन्हें बेटों का रूखापन ही मिला. अब उन पर उम्र भी हावी होती दिख रही थी. गालों पर पड़ती झुर्रियां इस की गवाही देने लगी थीं. एक वक्त ऐसा भी आया कि लोगों ने इमरान पर ध्यान देना कम कर दिया.
इमरान अब अकेले थे. लिहाजा उन्होंने एक और चौंका देने वाला फैसला राजनीति में आने का कर डाला. सियासी शुरुआत धमाकेदार रही. इमरान ने बहाव के विपरीत जाने का रास्ता चुनते हुए सत्ताधारी नेताओं की खिंचाई शुरू कर दी. परवेज मुशर्रफ और आसिफ अली जरदारी उन के निशाने पर रहते थे. ब्रिटेन और खासतौर से अमेरिकी विदेश नीति की इमरान ने जम कर आलोचना की लोगों ने इस का स्वागत किया. फिर क्या था, देखते ही देखते इमरान सरकार विरोधी वक्तव्य देने वाले नेता बन गए. उन से युवा तो सहमत हुए ही, साथ ही महिलाएं भी प्रभावित होने लगीं. पाकिस्तान के कट्टरपंथियों ने उन के पश्चिम विरोधी बयानों को हाथोंहाथ लिया.
लोकप्रियता मिलते देख इमरान ने अपने समर्थकों की भीड़ इकट्ठा कर 21 अप्रैल, 1998 को पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ (पीटीआई) नाम की राजनीतिक पार्टी बना डाली. उन्होंने नारा दिया ‘न्याय, मानवता और आत्मसम्मान’. पीटीआई का हल्ला खूब मचा, लेकिन चुनावी असफलताओं ने यह साबित कर दिया कि जनता इमरान के साथ नहीं है, वह गुजरे कल के एक कामयाब और लोकप्रिय क्रिकेटर को देखने के लिए ही इकट्ठा होती है. यह बात सन 2002 के आम चुनावों में साबित भी हो गई, जब पीटीआई को पूरे 1 फीसदी वोट भी नहीं मिले और 272 सीटों में से वह केवल एक ही सीट जीत पाई. वह सीट भी खुद इमरान की मियांवाली की थी.
जल्द ही इमरान की छवि अमेरिका विरोधी नेता की हो गई. जिस का एक मतलब यह भी निकाला जाने लगा कि वह कट्टर मुसलिम हैं. इस के बाद इमरान खुलेआम कहने लगे थे कि पाकिस्तान अमेरिका का गुलाम हो चला है. इन बयानों की पाकिस्तान में मिलीजुली प्रतिक्रिया हुई. इमरान इस से और उत्साहित हुए और इतने हुए कि मार्च, 2006 में अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश के पाकिस्तान दौरे का उन्होंने विरोध करने की ठान ली. लेकिन मुशर्रफ सरकार ने जार्ज बुश के दौरे के समय इमरान को इस्लामाबाद में उन के घर में नजरबंद कर दिया. इस से इमरान और सुर्खियों में आए.
2007 में परवेज मुशर्रफ ने इमरजेंसी लगाई तो इमरान खान सब से पहले नजरबंद किए जाने वाले नेताओं में से एक थे. मुशर्रफ की निगाह में वह एक देशद्रोही थे, जिस की सजा मृत्युदंड थी. कोई अनहोनी होती इस के पहले ही इमरान अचानक पाकिस्तान से गायब हो गए और लंबे वक्त तक फरार रहे. हालात सामान्य हुए तो वह फिर से पाकिस्तान लौट आए. वह कभी लोकतंत्र की बात करते तो कभी कट्टरवाद की. कई मौके ऐसे भी आए, जिन से उन का मौकापरस्त होना साबित हुआ. क्रिकेट के मैदान पर राज करने वाले इमरान राजनीति में गच्चा खा गए. वह चर्चित तो हुए पर सफल नहीं हो पाए. जिस से उन्हें एक सफल और स्पष्ट विचारधारा वाला नेता नहीं माना गया.
इसी बीच 62 साल के इमरान खान की रेहम खान नाम की एक टीवी पत्रकार से शादी की अफवाहें उड़ने लगीं, जिन का उन्होंने कभी खंडन नहीं किया. जेमिमा से तलाक के बाद राजनैतिक जीवन में आने पर वह अकसर कहा करते थे कि अब शादी तभी करूंगा, जब नया पाकिस्तान बना लूंगा. नया पाकिस्तान तो नहीं बना, लेकिन दिसंबर, 2014 में उन्होंने रेहम से शादी कर ली. यह भी दिलचस्पी की बात है कि इमरान से तलाक के बाद जेमिमा पत्रकारिता करने लगी थीं और रेहम खान पहले से ही टीवी पत्रकार थीं. वह बीबीसी की एंकर थीं और इन दिनों वह डान न्यूज में कार्यरत हैं. 41 साल की रेहम खान 3 बच्चों की मां हैं और अपने डाक्टर पति से तलाक ले चुकी हैं.
लीबिया में जन्मी रेहम के मातापिता पाकिस्तानी हैं और पिछले साल पाकिस्तान में बसने से पहले वह लंदन में रहती थीं. दिलचस्प इत्तफाक यह है कि दूसरी बार भी इमरान और दूसरी पत्नी रेहम खान के बीच उम्र का फर्क 21 साल का है. नवाज शरीफ का भी सार्वजनिक विरोध करते रहने वाले इमरान का भविष्य और अगला कदम क्या होगा, इस का अंदाजा कोई नहीं लगा पा रहा है. इमरान के बचेखुचे समर्थक उन के इस फैसले से पूरी तरह खुश नहीं हैं, वजह रेहम का पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित होना भी है, जिस के तहत वह भड़काऊ पोशाकें पहनती हैं. स्थिरता और इमरान, नदी के 2 पाटों की तरह हैं, जो कभी आपस में मिलते नहीं. क्रिकेट, समाजसेवा और राजनीति के अलावा इमरान अब इश्क और शादियों के लिए भी जाने जाने लगे हैं.
62 की उम्र में शादी पर ऐतराज जताना उन के साथ ज्यादती होगी, पर उन की पार्टी का भविष्य खतरे में है. इमरान को नजदीक से जानने वालों को इस बात की आशंका है कि कहीं वह बीवीबच्चों के साथ सुकून से रहने के लिए राजनीति से संन्यास लेने का ऐलान कर के सभी को फिर से चौंका न दें. Politics






