Crime News: इफ्खिर अहमद सुनहरे सपनों की चाह में इंग्लैंड गया था. वहां उसे सब कुछ मिला भी. लेकिन 2 शादियों और मजहबी चक्रव्यूह के कारण वह अपनी ही बेटी का हत्यारा बन बैठा. इस चक्कर में वह तो जेल गया ही, उस की पत्नी फरजाना भी नहीं बच सकी. इफ्तिखार अहमद मूलत: पाकिस्तान के गुजरात क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले गांव उत्ताम का निवासी था. वर्षों पहले जब वह युवा था, एक हसीन जिंदगी जीने का सपना संजो कर पाकिस्तान से

इंग्लैंड आ गया था. इफ्तिखार अहमद कोई खास पढ़ालिखा नहीं था, पर ड्राइविंग अच्छी जानता था, जो विदेश में आ कर उस के रोजगार का साधन बन गई. उस का बचपन भले ही बेहद गरीबी में गुजरा था, पर वह शुरू से महत्वकांक्षी था. बंदिशें उसे पसंद नहीं थीं. अलबत्ता अपने धर्म के प्रति वह पूरी तरह आस्थावान था. वह 6-7 वर्ष का था, तभी उस का रिश्ता उस के दूर के मामा की बेटी फरजाना से तय हो गया था. बड़ेबड़े सपने देखने वाला इफ्तिखार अकसर अपने दोस्तों से कहा करता था, ‘‘देखना एक दिन मैं बहुत बड़ा आदमी बनूंगा, दुनिया का हर ऐशोआराम मेरे कदमों में होगा.’’

दोस्त उसे टोक देते, ‘‘जमीन पर ही रह, हवा में मत उड़. घर में दो वक्त की रोटी नहीं, बनेगा बड़ा आदमी.’’

इफ्तिखार गुस्सैल स्वभाव का था. ऐसे तानें भला कैसे सुनता? उस ने दोस्तों से 2-4 हाथ कर लिए और चीख कर कहा, ‘‘तुम लोग यहीं सड़ते रहोगे. देखना, बड़ा हो कर मैं विदेश जाऊंगा. वहां जा कर हर कीमत पर अपने हालात बदल दूंगा.’’

खैर, किसी तरह बचपन अभावों में गुजरा. इफ्तिखार ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा और बचपन के सपनों में रंग भरने की कोशिश शुरू कर दी. यह अलग बात थी कि कुछ घर की माली हालात के चलते तो कुछ पढ़ाई में मन न लगने की वजह से वह जैसेतैसे नौवीं कक्षा ही पास कर पाया. पढ़ न पाने के कारण उसे कोई ढंग की नौकरी नहीं मिल सकती थी, ऊपर से घर वालोें का दबाव कि हमारा ना सही, अपना ही पेट भर ले. कोई और रास्ता न देख इफ्तिखार ने अपने एक जानकार ट्रक ड्राइवर के साथ कंडक्टरी शुरू कर दी. इसी दौरान उस ने ड्राइविंग भी सीख ली. धीरेधीरे हाथ साफ हो गया तो उस ने कंडक्टरी छोड़ दी और लाहौर आ कर किराए की टैक्सी चलाने लगा. उस ने 2 साल वहीं बिताए. फिर वह अपने घर वापस आ गया. इस बीच उस ने कुछ पैसे जोड़ लिए थे. अपना ख्वाब पूरा करने के लिए उस ने अपना पासपोर्ट बनवाया और फिर एक दिन फ्लाइट पकड़ कर इंग्लैंड आ गया.

इंग्लैंड में उसे हमवतन एजाज मिल गया, जिस ने उस की मदद की और उसे किराए पर चलाने के लिए टैक्सी दिलवा दी. इफ्तिखार मन लगा कर काम करने लगा. उसे यह बात अखरती थी कि उस की कमाई का ज्यादा हिस्सा तो टैक्सी मालिक के पास चला जाता है, सो उस ने बचत शुरू कर दी. 3-4 साल में उस ने काफी पैसे जोड़ लिए. कुछ पैसे कम पड़े तो एजाज ने मदद कर दी. पैसे एकत्र हो गए तो इफ्तिखार ने खुद की टैक्सी खरीद ली. अपनी टैक्सी आने के बाद सारा पैसा इफ्तिखार की जेब में आने लगा. पैसा आया तो उसे कई ऐब लग गए. इफ्तिखार को औरत के जिस्म का चस्का लग गया. वह अकसर देह बेचने वालियों के पास रातें बिताने लगा.

इसी दरम्यान उस की मुलाकात लोन एंडरसन नाम की एक लड़की से हुई, जो मूलत: डेनमार्क की रहने वाली थी और इंग्लैंड में एक बुकशौप में काम करती थी. दोनों की मुलाकातों का सिलसिला शुरू हुआ तो फिर रुका नहीं. वे अकसर मिलते रहते थे. इफ्तिखार उसे अपनी टैक्सी में भी घुमाता था. इस का नतीजा यह हुआ कि दोनों एकदूसरे को दिल दे बैठे. इफ्तिखर ने एक दिन अपने प्यार का इजहार किया तो लोन एंडरसन ने भी अपने दिल की बात कह दी. लोन एंडरसन बेशक पश्चिमी देश की थी, पर सभ्य और शालीन थी. एक दिन जब दोनों एकांत में मिले तो इफ्तिखार ने उस के सामने शारीरिक दूरी खत्म करने की चाहत बयान करते हुए कहा, ‘‘इस के बिना हमारा प्यार अधूरा है. मैं इसे मुकम्मल कर देना चाहता हूं.’’

लोन एंडरसन ने इफ्तिखार के चेहरे को गौर से देखा. फिर गंभीर आवाज में कहा, ‘‘शादी से पहले नहीं. मैं खुले विचारों की जरूर हूं, पर शादी के बाद ही अपना तन किसी पुरुष को सौपूंगी. इसीलिए मैं ने आज तक अपने नारीत्व की गरिमा को कायम रखा है.’’

‘‘शादी भी कर लेंगे, लेकिन आज दिल न तोड़ो.’’ इफ्तिखार ने गुजारिश की.

‘‘नहीं, कतई नहीं. मैं शादी से पहले इस की मंजूरी किसी हाल में नहीं दूंगी.’’ लोन एंडरसन ने साफ लहजे में सख्ती से मना कर दिया.

सुन कर इफ्तिखार का चेहरा उतर गया. वह मायूस हो गया. जबरदस्ती वह कर नहीं सकता था, सो मन मार कर रह गया. इस घटना के कुछ महीनों बाद आखिरकार इफ्तिखार और लोन एंडरसन ने कोपेनहेगन स्थित चर्च में शादी कर ली. यह सन 1981 के जून महीने की बात है. उसी रात दोनों ने एक होटल में हनीमून मनाया. 2 दिनों बाद इफ्तिखार होटल से उसे अपने घर ले आया. इस के बाद लोन एंडरसन के कहने पर इफ्तिखार उस के साथ डेनमार्क चला गया. वहां भी उस ने अपना टैक्सी ड्राइवर वाला काम कर लिया. दोनों खूब खुश थे और हंसीखुशी जिंदगी बिता रहे थे. शादी के एक साल बाद लोन एंडरसन ने इफ्तिखार के बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम टोनी एंडरसन रखा गया. इफ्तिखार चाहता था कि उसे अपनी मरजी का कोई मुसलिम नाम दे, पर लोन एंडरसन की इच्छा और डेनमार्क के नियम के चलते वह ऐसा नहीं कर पाया.

सन 1985 के जनवरी माह में इफ्तिखार के नाम पाकिस्तान से एक खत आया. खत उस के घर वालों ने भेजा था. इफ्तिखार और उस के परिवार के बीच पत्र व्यवहार चलता रहता था, इसलिए यह कोई खास बात नहीं थी. लेकिन इस पत्र को पढ़ कर वह सोच में पड़ गया. उसे गंभीर देख कर लोन एंडरसन ने कारण पूछा तो इफ्तिखार ने कहा, ‘‘मेरी मां बहुत बीमार है. मुझे पाकिस्तान जाना होगा.’’

‘‘बिलकुल जाओ, वैसे भी तुम्हें जाना चाहिए. आखिर वह तुम्हारी मां है.’’ लोन एंडरसन ने बिना कोई आपत्ति जताए कहा. उस वक्त वह यह बिलकुल नहीं समझ पाई कि इफ्तिखार उस से फरेब कर रहा है. हकीकत में उस की मां बीमार नहीं थी, बल्कि खत में लिखा था कि बचपन में फरजाना नाम की जिस लड़की से उस का निकाह तय हुआ था, वह अब जवान हो चुकी है. उस के घर वाले निकाह के लिए दबाव बना रहे हैं. इसलिए वह फौरन स्वदेश लौट आए और घर वालों द्वारा फरजाना के परिवार से किए वादे को पूरा करे.

खैर, इफ्तिखार अहमद जनवरी, 1985 के आखिर में अपनी पत्नी लोन एंडरसन और 3 साल के बेटे टोनी एंडरसन को डेनमार्क में छोड़ कर पाकिस्तान आ गया. पाकिस्तान आ कर उस ने फरजाना के साथ निकाह कर लिया. उस ने अपने घर वालों और फरजाना पर यह जाहिर नहीं होने दिया कि वह पहले से शादीशुदा है और साथ ही एक बेटे का बाप भी. कुछ महीने इफ्तिखार पाकिस्तान में ही रहा. वजह यह कि उस पर दबाव था कि वह फरजाना को भी अपने साथ ले जाए. फरजाना का पासपोर्ट बनने और वीजा लगने में समय लग रहा था. अंतत: इफ्तिखार अपनी दूसरी पत्नी फरजाना को ले कर ब्रैडफोर्ड, इंग्लैंड आ गया. उस ने डेनमार्क में इंतजार कर रही लोन एंडरसन से कोई संपर्क नहीं किया.

कई महीने गुजर गए, इफ्तिखार नहीं लौटा तो लोन एंडरसन को चिंता हुई. पाकिस्तान का पता उस के पास था नहीं, जो वहां से कोई पूछताछ करती. अत: वह ब्रैडफोर्ड आई और इफ्तिखार के पुराने घर पर गई. वहां उसे पता चला कि इफ्तिखार ने पड़ोस में ही दूसरा घर ले लिया है. लोन एंडरसन वहां पहुंची तो फरजाना को देख कर उसे लगा कि इफ्तिखार की कोई रिश्तेदार होगी. उसी समय इफ्तिखार आ गया. उस ने यह बात छिपा ली कि फरजाना उस की बीवी है. इत्तफाक से तभी फरजाना की तबीयत खराब हो गई. इफ्तिखार और लोन एंडरसन उसे ले कर डाक्टर के पास गए. वहां पता चला कि फरजाना गर्भ से है. इस जानकारी के बाद इफ्तिखार लोन एंडरसन से सच नहीं छिपा पाया. उस ने बता दिया कि फरजाना उस की पत्नी है. वह पाकिस्तान निकाह करने गया था.

इस से लोन एंडरसन का दिल टूट गया. वह कुछ नहीं बोली और वापस डेनमार्क लौट गई. कुछ दिनों बाद वह अपने बेटे टोनी एंडरसन के साथ वापस आई और इफ्तिखार से कहा कि उस ने उस के साथ जो किया सो किया, पर वह उस के बेटे को पिता की सरपस्ती से दूर न करे. वह उसे अपने पास रखे. लेकिन इफ्तिखार इस के लिए राजी नहीं हुआ. उस ने कहा कि अगर बेटी होती तो वह उसे अपने पास रख लेता, पर बेटे को नहीं रखेगा. लोन एंडरसन ने उस पर कोई दबाव नहीं बनाया. वह बेटे को ले कर वापस लौट गई. अलबत्ता इस के बाद भी वह इफ्तिखार से संपर्क जरूर बनाए रही. दूसरी ओर इफ्तिखार बेखौफ फरजाना के साथ अपना गृहस्थ जीवन जी रहा था. 14 जुलाई, 1986 को फरजाना ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम रखा गया शेफीलिया अहमद.

इस के ठीक एक साल बाद फरजाना ने एक और बेटी को जन्म दिया. इस का नाम रखा गया अलेशा अहमद. फिर फरजाना ने एक बेटे को जन्म दिया. तीनों बच्चे कुछ बड़े हुए तो इफ्तिखार ब्रैडफोर्ड छोड़ कर परिवार सहित वारिंगटन आ बसा. शेफीलिया पढ़ाई में काफी होशियार थी. वह वकील बनना चाहती थी. वहीं उस से छोटी अलेशा की पढ़ाई में कोई रुचि नहीं थी. वह पिता के दबाव में जबरदस्ती पढ़ रही थी. बात 2003 की है. शेफीलिया का हाईस्कूल का आखिरी साल था. 11 सितंबर, 2003 को शेफीलिया की टीचर ने पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दी कि वह एक सप्ताह से ना तो स्कूल आ रही है और ना ही घर पर है. घर वाले भी कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे रहे हैं.

पुलिस ने इफ्तिखार अहमद से पूछताछ की तो उस ने बताया कि शेफीलिया की उसे भी कोई खबर नहीं है. उन लोगों ने उस की सहेलियों से भी संपर्क किया, पर उस का कोई पता नहीं चला. शेफीलिया लापता है, इस की सूचना पुलिस को क्यों नहीं दी? यह पूछने पर इफ्तिखार अहमद ने कहा कि बेटी का मामला है. वह नहीं चाहता था कि शेफीलिया के गुम होने पर उस के परिवार वालों को किसी प्रकार की जगहंसाई का सामना करना पड़े. वैसे भी यह शेफीलिया के भविष्य का भी सवाल था. अगर एक बार चरित्र पर दाग लग जाता तो उन के समाज में शेफीलिया का निकाह होना मुश्किल है.

खैर, पुलिस ने प्रिंट मीडिया और इलैक्ट्रोनिक मीडिया में शेफालिया के गायब होने की सूचना प्रसारित करवा दी. पुलिस खुद भी अपने स्तर पर उस की खोज करने लगी. न्यूज चैनलों पर उस की खोज के लिए बड़े पैमाने पर कैंपेन चलाए गए. इस के तहत अंगे्रजी फिल्मों की अभिनेत्री शोभना गुलाटी ने टीवी पर शेफीलिया द्वारा लिखित कविताओं का पाठ किया. पर शेफीलिया का कोई सुराग नहीं मिल पाया. इसी तरह कई महीने बीत गए. 24 फरवरी, 2004 को पुलिस कंट्रोल में किसी ने सूचना दी कि वारिंगटन से करीब 110 किलामीटर दूर कंब्रिया के सेडविक शहर स्थित केंट नदी के किनारे किसी लड़की का सड़ागला शव पड़ा हुआ है. नदी में भारी बाढ़ आने की वजह से शव नदी के किनारे आ लगा था. पुलिस तुरंत नदी किनारे पहुंची.

सूचना सही थी, लेकिन लड़की की लाश इतनी सड़ गई थी कि उस की पहचान करना मुश्किल था. हां, लाश के बाएं हाथ में जिगजेग गोल्ड बे्रसलेट और हाथ की एक अंगुली में ब्ल्यू टोपाज रिंग अब भी मौजूद थी. इफ्तिखार अहमद ने बेटी की गुमशुदगी के समय इन चीजों का जिक्र किया था. पुलिस ने इस की सूचना इफ्तिखार अहमद को दी और तुरंत नदी पर आने को कहा. इफ्तिखार अहमद पत्नी फरजाना सहित वहां पहुंचा. उस ने गोल्ड ब्रेसलेट और रिंग को पहचानते हुए लाश की शिनाख्त अपनी 17 वर्षीया बेटी शेफीलिया अहमद के रूप में की. लाश की शिनाख्त हो गई तो उसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया.

पोस्टमार्टम में मौत का कारण पता नहीं लग पाया. वजह थी, लाश का अत्यधिक सड़ जाना. पुलिस ने लाश का दूसरी बार पोस्टमार्टम करवाया, पर इस बार भी कोई परिणाम नहीं निकला. अब की बार पुलिस ने मृतका शेफीलिया के बाएं थाई बोन का डीएनए टेस्ट करवाया. इस से साफ हो गया कि लाश शेफीलिया की ही थी. वहीं निचले जबड़े को भी शेफीलिया के दंत चिकित्सक को दिखाया गया. उस ने भी पुष्टि कर दी कि लाश शेफीलिया की ही थी. पुलिस इंस्पेक्टर माइक फोरेस्टर ने जांच शुरू की तो उन्हें आशंका हुई कि कहीं यह औनर किलिंग का मामला तो नहीं. इस जांच के लिए पुलिस ने इफ्तिखार अहमद, उस की पत्नी फरजाना, इफ्तिखार के साथी टैक्सी ड्राइवर व 5 अन्य परिचितों को हिरासत में ले लिया.

सभी से अलगअलग तरहतरह से पूछताछ की गई. पर उस की हत्या का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला. इस पर बिना चार्ज लगाए सभी को छोड़ दिया गया. बावजूद इस के पुलिस इंस्पेक्टर माइक फोरेस्टर ने जांच जारी रखी. जांच के दौरान इफ्तिखार के घर से शेफीलिया के सामान से उस की डायरी बरामद हुई, जिस में काफी कविताएं लिखी हुई थीं. उस की कविताओं में एक कविता ‘आई फील टे्रप्ड’ शीर्षक से थी. यह कविता शेफीलिया की मनोदशा व्यक्त करती थी. इस से उस के निराशाजनक जीवन का साफ पता चल रहा था.

जांच के दौरान ही इफ्तिखार की पड़ोसन शैला कोस्टेलो ने बताया था कि शेफीलिया को उस का परिवार उपेक्षित रखता था. परिवार द्वारा पीडि़त करने की वजह से वह कई बार घर से भाग गई थी. 2 बार पुलिस में उस के लापता होने की रिपोर्ट भी लिखाई गई थी. दोनों बार वह अपने बौयफ्रेंड के घर पर पाई गई थी. पड़ोसन ने यह भी बताया कि उस ने सुना था कि शेफीलिया के घर वाले उस की इसी उम्र में अरेंज मैरिज करने के लिए दबाव बना रहे थे. इफ्तिखार के घर से एक वीडियो भी बरामद हुआ. यह वीडियो उस समय का था, जब सन 2003 के शुरू में इफ्तिखार अहमद परिवार सहित पाकिस्तान गया था. इस वीडियो में शेफीलिया पाकिस्तान में मस्ती करती हुई दिखाई दे रही थी.

बहरहाल, शेफीलिया की हत्या की जांच चलती रही. जनवरी, 2008 में मृत्यु समीक्षक जोजफ द्वारा की गई जांच में कहा गया कि शेफीलिया की हत्या का केस बहुत ही जघन्य हत्याकांड की श्रेणी में आता है. उस ने शंका भी व्यक्त की कि हो सकता है, इस में उस के घर वालों का हाथ रहा हो. इस के बाद पुलिस ने फिर से इफ्तिखार से पूछताछ की. उस ने बताया कि यह सही है कि शेफीलिया गुस्सैल स्वभाव की जिद्दी लड़की थी. उसे पश्चिमी पहनावा पसंद था. जबकि उस का परिवार इस के खिलाफ था. उस पर रोक लगाई जाती थी तो वह विद्रोह पर उतर आती थी. पूछताछ के दौरान कोई ऐसी बात नहीं निकल कर आई कि इफ्तिखार पर शक किया जाता.

देखतेदेखते शेफीलिया की मौत को 7 साल बीत गए. पुलिस किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाई. पर कहते हैं कि पाप एक न एक दिन जरूर बेपरदा हो जाता है. आखिर शेफीलिया अहमद हत्याकांड के ताले की चाबी बन कर उस की छोटी बहन अलेशा सामने आई. शुरू से पढ़ाई चोर और बिगड़ैल मिजाज की अलेशा गलत सोहबत में पड़ गई थी. उस के खर्चे बेपनाह थे, जबकि घर से उसे नाममात्र का ही जेबखर्च मिलता था. अपने खर्चे पूरे करने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकती थी. यहां तक कि उस ने अपने खुद के ही घर में डकैती डलवा दी थी. यह घटना 25 अगस्त, 2010 की है. घटना के समय वह अपने मातापिता व भाईबहन के साथ घर में ही मौजूद रही, ताकि उस पर घर वालों या पुलिस को कोई शक न हो. इस के लिए उस ने अपने बौयफ्रेंडों के साथ मिल कर सुरक्षित योजना बनाई थी. इस डकैती में घर से काफी गहने व नकदी लूटी गई.

डकैती की सूचना पुलिस को दी गई तो उस ने जांच शुरू की. अलेशा से पूछताछ के दौरान उस के बदले हुए भाव को देखते ही पुलिस को उस पर शक हो गया था. पर वह सहज रूप से सच नहीं उगल पा रही थी. आखिर उस के साथ थोड़ी सख्ती की गई तो वह टूटने लगी. आखिर उस ने सारा सच उगल दिया. साथ ही उस ने अपने घर वालों के भय से 7 साल से दिल में छिपा कर रखा अपनी बड़ी बहन शेफीलिया की हत्या का राज भी उगल दिया. बतौर अलेशा, शेफीलिया शुरू से आजाद ख्याल की थी. उसे पश्चिमी रहनसहन, खुलापन और पहनावा पसंद था. जबकि घर वाले इस सब के खिलाफ थे. वह चाहते थे कि शेफीलिया उन के मजहब की परंपरा के अनुसार आचरण अपनाए, घर की चारदीवारी तक सीमित रहे. बुर्का पहने और लड़कों से दोस्ती न करे. पर वह ऐसा नहीं करती थी.

वह पश्चिमी पहनावा पहनती और लड़कों से खुल कर दोस्ती करती. इसी वजह से इफ्तिखार अकसर उस की पिटाई तक कर देता था. उसे भूखा रखा जाता और अन्य तरीकों से भी प्रताडि़त किया जाता. इस से उस का स्वभाव विद्रोही हो गया. 15 वर्ष की होतेहोते उस का यह स्वभाव अपने चरम पर पहुंच गया था. अब जब भी उसे प्रताडि़त किया जाता, वह घर से भाग जाती. फिर 2-4 दिन में वापस लौट आती. उस का एक बौयफ्रेंड था मुश्ताक बगास. वह ब्लेकबर्न में रहता था और 28 साल का था. यानी वह उस से करीब 11 साल बड़ा था. 2002 में जब शेफीलिया का परिवार ब्लेकबर्न में रहता था, तब दोनों की दोस्ती हुई थी, जो प्यार के बाद शारीरिक संबंधों में बदल गई थी. इस की पहल शेफीलिया ने ही की थी.

बगास ने तो उसे रोका था कि अभी वह नाबालिग है और शादी से पहले यह उचित नहीं है, पर शेफीलिया ने जिद पकड़ ली थी. वह बोली, ‘‘मैं तुम्हें बेइंतहा प्यार करती हूं. फिर प्यार में किसी प्रकार की दीवार क्यों? जब मैं ने तुम्हें अपना मन सौंप दिया है तो तन सौंपने में क्या हर्ज है. आखिर शादी के बाद भी तो यही सब करना है. फिर शादी तक हम क्यों समय बर्बाद करें. जिंदगी मौजमस्ती का नाम है. कल किस ने देखा है. जो करना है, आज ही क्यों ना कर लें.’’

‘‘लेकिन यह गलत होगा.’’ बगास समझदार था और इस तरह का कोई फायदा नहीं उठाना चाहता था.

‘‘प्यार में गलत सही कुछ नहीं होता. फिर तुम कौन सा मुझ से जबरदस्ती कर रहे हो. मैं अपनी इच्छा से तुम्हें अपना सब कुछ सौंपना चाहती हूं.’’ शेफीलिया ने कहा. आखिर उस की दलीलों के आगे बगास की एक न चली और उस ने वैसा ही किया जैसा शेफीलिया चाहती थी.

अब जब भी शेफीलिया घर से भागती. बगास के घर ही पहुंच जाती. दोनों खुल कर मौजमस्ती करते. बातचीत के लिए बगास ने उसे एक मोबाइल फोन भी दे दिया था, जो वह छिपा कर रखती थी. मौका मिलने पर वह अपने दुखसुख की बात उस से कर लेती थी. शेफीलिया यूं तो कई बार घर से भागी थी, पर पुलिस में उस की रिपोर्ट 2-3 बार ही दर्ज कराई गई थी. दिसंबर, 2002 में उस ने बगास को स्कूल के लंच समय में मिलने के लिए बुलाया. उस दिन तो वह नहीं आया, पर अगले दिन दोनों मिले. शेफीलिया ने उसे अपने पिता द्वारा की गई पिटाई के निशान दिखाते हुए कहा, ‘‘अब सहन नहीं होता बगास. कुछ करो, वरना मैं यूं ही किसी दिन दम तोड़ दूंगी. अब हद हो गई है. मेरे घर वाले मेरा निकाह पाकिस्तान में मेरे कजिन से करना चाहते हैं, जो मुझ से 30 साल बड़ा है. मुझे अब सारा भरोसा तुम्हारे प्यार पर है, वरना…’’

बगास उस के हर दर्द से वाकिफ था. वह भी चाहता था कि शेफीलिया सदा खुश रहे. इसलिए वह उस की मदद करने को तैयार हो गया. दोनों ने घर से भागने का प्लान बना लिया. 2 जनवरी, 2003 को सुबहसवेरे ही बगास कार ले कर उस के घर से कुछ दूरी पर जा कर खड़ा हो गया. उस ने मिसकाल दे कर शेफीलिया को अपने आने की सूचना दे दी. शेफीलिया मौका देख कर एक बैग में अपने कुछ कपड़े रख कर सावधानीपूर्वक घर की खिड़की से कूद कर बाहर आ गई और बगास की कार में जा बैठी. बगास ने फौरन कार आगे बढ़ा दी. इस बार वह शेफीलिया को अपने घर नहीं ले गया. क्योंकि पहले 2 बार शेफीलिया के पिता इफ्तिखार अहमद उसे वहां से बरामद कर चुके थे.

बगास शेफीलिया को ब्लेकबर्न में ही अपने भाई के घर ले गया. वहां रात में दोनों ने एकदूसरे को खूब प्यार किया. दोनों के बीच कई बार शारीरिक संबंध भी बने. इस दौरान शेफीलिया के पिता इफ्तिखार अहमद ने कई बार उसे फोन किया, पर उस ने कोई उत्तर नहीं दिया. लेकिन इफ्तिखार अहमद ने किसी तरह शेफीलिया का पता लगा ही लिया. वह सीधे बगास के भाई के घर पहुंचा और शेफीलिया को जबरदस्ती साथ ले आया. उस ने चलते समय बगास को चेतावनी भी दी, ‘‘अगर अब की बार मैं ने तुम्हें इस के साथ देख लिया तो इस के साथ तुझे भी काट डालूंगा.’’

घर आ कर इफ्तिखार ने शेफीलिया की खूब पिटाई की और फरमान सुना दिया कि 2-4 दिन में सब लोग पाकिस्तान चले जाएंगे. वहां उस का निकाह कर दिया जाएगा. शेफीलिया बेबस हो गई. वह घर में कैद थी. जनवरी, 2003 के आखिर में पूरा परिवार पाकिस्तान गया. वहां शेफीलिया के निकाह की तैयारी भी कर ली गई. शेफीलिया को इस से बचने का कोई रास्ता नहीं सूझा तो उस ने अपनी इहलीला समाप्त करने की ठान ली. उस ने मौका देख ब्लीच पी लिया. इस से उस की हालत बिगड़ने लगी. लेकिन समय रहते घर वालों ने उसे बचा लिया. उसे अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों को बताया गया कि अंधेरा होने के कारण शेफीलिया ने दवा की जगह कोई जहरीली चीज पी ली थी.

अभी तक इफ्तिखार के रिश्तेदारों को इस की भनक नहीं लगी थी. सो मई में वह शेफीलिया और परिवार सहित वापस इंग्लैंड लौट आया. यहां उसे अस्पताल में भर्ती करवाया गया. क्योंकि वह पूरी तरह ठीक नहीं हो पाई थी. न तो उस के गले से कुछ नीचे उतरता था, न ही वह कमजोरी के कारण ठीक से चल पाती थी. यहां कई सप्ताह तक उस का इलाज चला. उस के बगल वाले बेड की मरीज ने जब शेफीलिया से पूछा कि उस ने ब्लीच क्यों पी तो उस ने बताया कि जबरन उस की शादी उस से की जा रही थी, जिसे वह पसंद ही नहीं करती.

उस का पासपोर्ट भी उस के पिता ने छीन लिया था. इफ्तिखार ने यहां अस्पताल की एक एशियन मूल की नर्स को कहा कि वह गोरी नर्सों को न बताए कि शेफीलिया ने ब्लीच पी थी. उस नर्स ने शेफीलिया से कहा कि वह कैसे अपने घर वालों के साथ रहती है. उस की फैमिली तो लवलेस फैमिली है. स्वस्थ होने के बाद शेफीलिया पर फिर से शादी के लिए दबाव बनाया जाने लगा. पर उस ने साफ मना कर दिया. उस के पिता को उस पर शक भी होने लगा था कि वह गर्भ से है. उन्हें जब विश्वास हो गया कि अब वह किसी भी तरह नहीं मानेगी तो 11 दिसंबर, 2003 को इफ्तिखार और उस की पत्नी फरजाना ने शेफीलिया की खूब पिटाई की. अलेशा थोड़ी सी खुली खिड़की से सब देख रही थी. फरजाना ने अपने पति से कहा, ‘‘यह लड़की हमें कहीं का नहीं छोड़ेगी. बेहतर है, इसे खत्म कर दो.’’

इफ्तिखार इस के लिए तैयार हो गया तो फरजाना कंबल, चादर, टेप के 2 रोल, एक काला विग और बैग ले आई. इस के बाद इफ्तिखार ने एक प्लास्टिक बैग से शेफीलिया का मुंह तब तक दबाए रखा, जब तक कि उस ने दम नहीं तोड़ दिया. तत्पश्चात दोनों ने उस की लाश को चादर व कंबल में लपेट कर बैग में भर दिया. फिर दोनों ने मिल कर बैग को चारों तरफ से टेप से पैक कर दिया. इस के बाद दोनों ने लाश को बाहर खड़ी कार में रख दिया. इफ्तिखार अकेले ही कार ले कर चला गया. उस ने लाश केंट नदी में फेंक दी और घर लौट आया. इस के कई महीने बाद पुलिस ने लाश बरामद की. शक इफ्तिखार पर गया. पर उस के खिलाफ कोई सुबूत नहीं मिला. यह केस यहीं दफन हो जाता अगर 7 साल बाद अलेशा सच उजागर न करती.

डकैती के आरोप में अलेशा को 6 महीने की सजा सुनाई गई. उस की सजा ज्यादा होती, पर उस ने मानवीयता दिखाते हुए अपनी बहन शेफीलिया की हत्या का राज खोला था, इस का उसे लाभ दिया गया. जज इरविन ने कहा, ‘‘जब सच्चाई व्यक्त करने की इच्छा होती है, तो कोई भी व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता. अलेशा ने कानून की मदद की है, इस के लिए उस का यह कदम सराहनीय है. इस से उस के मन को शांति मिलेगी, जो उस की आगे की जिंदगी को सामान्य बनाने में मदद करेगी.’’

खैर, अब फिर से इफ्तिखार अहमद तथा फरजाना को गिरफ्तार कर लिया गया. एक पेशी के दौरान जज जान स्मिथ ने कहा, ‘‘शेफीलिया हत्याकांड एक जघन्य कृत्य है. वह अपना जीवन अपने तरीके से जीना चाहती थी. वह होनहार थी और ला की पढ़ाई करना चाहती थी. उसे अपनी इच्छा से जीवन जीने का अधिकार था. पर उस के मातापिता उसे इस अधिकार से वंचित रखना चाहते थे. शेफीलिया 2 संस्कृतियों के बीच फंसी हुई थी. उसे अपने तरीके से जीने देना चाहिए था, पर उस के मातापिता ने जीवन की जगह उसे मौत दे दी. ये किसी भी तरह रहम के काबिल नहीं हैं.’’

कोर्ट में कई सुनवाई हुईं. इस दौरान शेफीलिया के जानकारों के भी बयान दर्ज किए गए. नार्थवेस्ट के नए चीफ प्रौसिक्यूटर नाजिर अफजल ने कोर्ट को बताया कि एशियन समाज में अभिभावक औनर क्राइम करने से नहीं डरते. शेफीलिया की हत्या के कई सुबूत मिले हैं. वह घरेलू हिंसा का शिकार हुई थी. घर वालों ने उस से अपनी मर्जी की जिंदगी जीने का अधिकार छीन लिया था. शेफीलिया के दोस्त साराह बैनट ने कोर्ट में बयान दिया कि शेफीलिया ने अपने बालों को रंग लिया था और नाखून बढ़ा लिए थे. इस पर उस की मां फरजाना ने कैमिकल की सहायता से उस के बालों का रंग धो दिया और उस के नाखून काट दिए थे. साथ ही उस की बेरहमी से पिटाई भी की थी. उसे गंदी गालियां भी दी जाती थीं. उस की मां उसे पकड़ती तो पिता उस की पिटाई करता था.

शेफीलिया के दूसरे दोस्त बुड्स ने बताया कि उसे शेफीलिया ने एक नोट दिया था. उस ने वही नोट कोर्ट में पढ़ कर सुनाया. उस में लिखा था, ‘‘पिछले कुछ सालों से घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ रहा है. वे मुझे कालेज जाने से रोकना चाहते थे. वे मुझ से जबरदस्ती नौकरी करवाना चाहते थे. मैं ने जेब खर्च से 2 हजार यूरो बचा कर अपने खाते में डलवाए तो मेरे पिता ने वे भी निकलवा लिए. मुझे डर रहता है, क्योंकि मेरे मातापिता मुझे पाकिस्तान ले जा कर मेरी शादी करवाना चाहते हैं. वे लोग मुझे वहीं छोड़ देना चाहते हैं. जबकि मुझे वह कल्चर कतई पसंद नहीं है. मुझे घर में घुटन होती है. मैं ने पिता द्वारा लाए गए कई रिश्ते ठुकरा दिए थे. इस कारण मुझे मार खानी पड़ती थी.’’

शेफीलिया की टीचर जोएनी कोड ने कोर्ट में बयान दिया, ‘‘शेफीलिया की मौत से करीब 11 महीने पहले उस के स्कूल से अनुपस्थित रहने पर जब मैं ने उसे फोन किया और पूछा कि क्या कोई चिंता की बात है? तब शेफीलिया ने हां कहा था. जब वह दूसरे दिन स्कूल लौटी तो मैं ने उस की गर्दन पर खरोचों के निशान देखे थे. उस के होंठों पर भी कट का निशान था. पूछने पर शेफीलिया ने बताया कि उस की मां ने उसे नीचे कर के पकड़े रखा और पिता ने पीटा. इसी से वे निशान आए थे. उसे अकसर कमरे में बंद कर के भूखा रखा जाता था. उस के उत्पीड़न की बात एक सोशल वर्कर को पता लगी तो वह स्कूल में उस से पूछताछ करने आया. पर शेफीलिया ने उसे कुछ नहीं बताया था.’’

7 सितंबर, 2011 को तमाम गवाहों के बयानों के बाद पुलिस ने इफ्तिखार अहमद और फरजाना के विरुद्ध कोर्ट में चार्जशीट पेश की. जिस में उन पर बेटी शेफीलिया की हत्या का चार्ज लगाया गया था. दोनों के खिलाफ ट्रायल मई, 2012 से 3 अगस्त, 2012 तक हुआ. इस दौरान इफ्तिखार अहमद और फरजाना ने अपना अपराध कुबूल लिया था. उन्होंने बताया कि शेफीलिया की हरकतों से वे तंग आ गए थे. वह हर तरह से उन की बदनामी करवाना चाहती थी. इसी कारण उन्हें उस की हत्या करनी पड़ी.

तमाम पेशियों के बाद 14 दिसंबर, 2014 को कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया. इफ्तिखार अहमद और फरजाना को शेफीलिया की हत्या का दोषी करार देते हुए दोनों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई. सजा सुनते ही दोनों रो पड़े. Crime News

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