Romantic Story: ठाकुर जोरावर सिंह ने प्रेमरस में डूबी खूबसूरत चांदनी को पाने की पूरी कोशिश की. यहां तक कि उस ने चांदनी से जबरन विवाह भी रचा लिया. लेकिन प्यार की पंछी चांदनी उस के हाथ आने वाली कहां थी, वह अपने प्रेमी जय के साथ लंबी उड़ान पर उड़ गई. दी नगढ़ के ठाकुर जोरावर सिंह अपने पड़ोसी जागीरदार विक्रम सिंह के बेटे किशन सिंह की शादी में शामिल होने गए थे. बारात काठा जा रही थी. इंतजाम इतना भव्य था, जैसे किसी राजामहाराजा का विवाह हो. किशन सिंह ने तिजोरियों के मुंह खोल दिए थे. आसपास के पचासों गांवों से खासखास लोगों को आमंत्रित किया गया था.
पूरा गांव रोशनियों से जगमगा रहा था. गांव भर के लोग शादी में निमंत्रित थे. एक हफ्ते तक लगातार खुला रसोड़ा चला, गलीगली में सजावट हुई, जगहजगह गीत गाए गए. बाहर से आने वालों की विशेष खातिरदारी हुई. सारा गांव नाचगाने और रागरंग में डूब गया. प्रभावशाली और अत्यधिक धनी लोग ऐसे मौकों पर धन बहाने में अपनी शानोशौकत समझते हैं. वे चाहते हैं कि ऐसा कुछ करें कि लोग सदियों तक याद रखें. विक्रम सिंह ने भी यही किया. उन्होंने अपने पुत्र किशन सिंह की शादी में कोई कोरकसर नहीं छोड़ी.
लगभग 5 सौ लोगों की बारात सजी. दूल्हा हाथी पर बैठा. माणक मोती की झालरें और चांदी का हौदा. दूल्हे की आरती उतारी गई. मंगल गीत गाए गए. हवेली से बाग तक कालीन बिछाए गए. फिर हाथी पर सवार विक्रम सिंह के पुत्र किशन सिंह की बारात निकली. बारात की रवानगी के समय सोने की मोहरें उछाली गईं. मार्ग के दोनों ओर भीड़ उमड़ पड़ी. उन के सामने एक यादगार दृश्य था. सब से आगे कई गांवों के नामीगिरामी मांगणहार शहनाईनौबत बाजे बजाते निकले. फिर मंगल कलश ले कर बालिकाएं, मंगल गीत गाती महिलाएं. उन के पीछे सजेधजे घोड़ों पर रियासत के हाकिम, ठाकुर, अमीरउमराव चल रहे थे. घोड़ों के पीछे माणिकमोती की झालरें और सोने का मुकुट पहने चांदी के हौदे में बैठे दूल्हे किशन सिंह का हाथी था. उस के पीछे तमाम बाराती.
गांव के बाहर बाग के पास सोनेचांदी के काम वाला 4 घोड़ों से युक्त एक रथ खड़ा था, जो चारों तरफ से बंद था. हाथी से उतार कर दूल्हे को इसी रथ में बैठाया गया. सारे बाराती अपनेअपने सजेधजे ऊंट और घोड़ों पर सवार हो गए. विक्रम सिंह ने ‘मोहरें’ उछाल कर बारात रवाना की. बारात के पड़ावों की जगह पहले से तय थीं. खानेपीने और रागरंग का भी पूरा इंतजाम था. बाराती हो या कोई और, रास्ते में सब के लिए रसोड़ा खुला था. रास्ते के गांवों में जबरदस्त हलचल थी. दूरदूर से लोग बारात देखने आ रहे थे. कुछ बारात में शामिल भी हो रहे थे. ठाकुर सा की तरफ से सब को छूट थी, जो चाहे चल सकता था.
ठाकुर सा चाहते थे कि लोगों की 7 पीढि़यों को याद रहे कि विक्रम सिंह के बेटे की बारात कैसे निकली थी. इसीलिए कई लोग यह सोच कर भी शामिल हो गए थे कि कुछ दिन खाने के लिए पकवान मिलेंगे. गत 2 वर्षों से रियासत में भयंकर अकाल पड़ा हुआ था. नदी, नाले, तालाब सूखे हुए थे. बरसात शुरू नहीं हुई थी. तपता हुआ ज्येष्ठ झुलसा कर चला गया था, आषाढ़ दस्तक दे चुका था. कुओं में पानी था, लेकिन जिस इलाके से बारात गुजरती, वहां के कुएं खाली हो जाते. घास के मैदान साफ हो जाते. वहां की घास बारात के घोड़े, ऊंट और बैल साफ कर देते. स्थानीय लोग खुद को लुटा हुआ महसूस करते.
चौथे दिन बारात काठा पहुंची. बड़ी संख्या में लोगों को आते देख गांव की प्रोलें बंद कर दी गईं. उन्हें आशंका हुई कि बारात के मुगालते में दीनगढ़ वाले आक्रमण करने आए हैं. वे युद्ध की तैयारी करने लगे. यह तय था कि बारात सेठ की हवेली में रुकेगी. गांव के ठाकुर मोहन सिंह ने अपने दीवान के साथ कुछ सैनिक बारात के पास भेज कर वस्तु स्थिति का पता किया. जब उन्हें भरोसा हो गया कि यह बारात ही है तो जा कर उसे सेठजी की हवेली में आने की इजाजत दी गई. रात में फेरे हो गए और खूब खातिरदारी भी.
सुबह का सूरज निकल आया था. दीनगढ़ के ठाकुर जोरावर सिंह हवेली के झरोखें में बैठे सुबह की ताजी हवा का आनंद ले रहे थे कि उन्हें खिलखिलाती हंसी की गूंज सुनाई दी, सोनचिड़ी की चिहुंक सी मिठास. बरसाती हवा सी ठंडक, सैकड़ों झांझरों की खनक, चिर प्रतीक्षा के बाद मिले प्रियतम सा रोमांच, दूर से आती विह्वल पुकार सी गूंज. मीठी हंसी ने कानों में जैसे अमृत उड़ेल दिया. जोरावर सिंह का रोमरोम स्पंदित हो उठा. दिल जैसे छाती से निकल सामने आ खड़ा हुआ. लगा जैसे वह यही है, जिस की तलाश में मन जन्मभर भटकता रहा. इसी की तलाश में कई नीड़ उजाड़े, कई दिशाएं लूटीं.
हवा में तैरती खिलखिलाती हंसी दिलोदिमाग पर छा गई. अंतर मन में खनक गूंजने लगी. दिल बेचैन हो उठा. मन चंचल, निगाहें भटकने लगीं. बाहर देखा तो केसर सी दमक वाली अप्सरा सी सुंदरी, लाल चूनर ओढ़े खड़ी थी. उगते सूरज की किरणों ने उस पर अपनी आभा का पीला रंग चढ़ा दिया था. पृष्ठभूमि में उठी गोधूलि के परदे पर एक ऋषि कन्या सी सुंदर सुकोमल षोडसी अपने यौवन से बेखबर अज-शावक के साथ खेलते हुए उसे पकड़ने का प्रयत्न कर रही थी. लेकिन वह बारबार हाथ से छूट कर भाग जाता था. आखिर उस ने उसे पकड़ ही लिया.
वह विजयनी की तरह उसे पकड़े दर्प से चल रही थी कि उस की नजर सामने खुली खिड़की से निहारते जोरावर पर पड़ी, वह कांप उठी, हाथ से शावक छूट गया. उस के होठ थरथरा उठे, माथे पर पसीना आ गया, आंखें फटी की फटी रह गईं. जोरावर अपलक लगातार उस के सौंदर्य का पान कर रहा था. पर पुरुष को इस तरह घूरते देख वह घबरा कर भाग खड़ी हुई. जोरावर चकित था. काठा में इतनी सुंदर कन्या है और उसे पता तक नहीं. यह लड़की कुछ अलग है, कुछ विशेष. उस के अंतर के तार झंकृत हो उठे थे. वह सोचने लगा, इसे हासिल करना ही है, वह भी शाम तक. युवती घबराई हुई वापस घर में घुसी. वह बुरी तरह कांप रही थी. वह आ कर बिस्तर पर औंधी पड़ गई.
घर की सारी औरतें और लड़कियां आसपास आ खड़ी हुईं. ‘क्या हुआ…क्या हुआ’ का शोर मच गया. कोई हवा करने लगी, कोई पानी ले आई, कोई सिर और पीठ सहलाने लगी. मगर वह न तो पलट कर सीधी हो रही थी, न ही आंखें खोल रही थी. पूरे मामले की प्रत्यक्षदर्शी उस की सहेली चंपा बोली, ‘‘मैं बताती हूं क्या हुआ है. चांदनी को मैं ने मना किया था कि जहां बारात का डेरा है, उस हवेली की तरफ मत जाना. वहां ठाकुर सा ठहरे हुए हैं. अगर तू उन की नजर में आ गई तो सोच लेना तू गई. इस ने मेरा मजाक उड़ाया और वहां चली गई. खिड़की से ठाकुर सा ने इसे देख लिया है. अब कांप रही है.’’
चंपा की बात खत्म होते ही सन्नाटा छा गया. जैसे उस ने सब के हलक में हाथ डाल कर आवाज निकाल फेंकी.
‘‘उन्हें देखते ही इस के हाथ का मेमना छूट गया. मेमना नहीं, मैं तो कहती हूं कि जमारा छूट गया.’’ चंपा ने फिर खामोशी तोड़ी.
यह सुन कर चांदनी पलट कर बोली, ‘‘मैं किसी से नहीं डरती.’’
‘‘तो कांप क्यों रही थी?’’ चंपा ने पूछा.
‘‘उस की नजरें बहुत बुरी थीं. लगा जैसे मुझे खा जाएगा.’’ चांदनी की आवाज भर्राने लगी. जैसे भय उस के अंतरमन में उतर गया था. उस की मां ने उस के मुंह पर हाथ फेरा, लोटा भर पानी पिलाया. फिर उस का माथा सीने से लगाती हुई बोली, ‘‘बारात आज नहीं तो कल चली ही जाएगी. अब तू बाहर मत निकलना. हम कोई उस की रियाया हैं, जो खा जाएगा.’’
चांदनी के पिता चंदन सिंह काठा के ही रहने वाले थे. सच्चे राजपूत अपनी आन, बान और शान के लिए जान तक न्यौछावर करने वाले. लेकिन जोरावर सिंह से कमजोर होने के कारण वह उस से टक्कर नहीं ले सकते थे. इसलिए बेटी को छिपा कर रखना चाहते थे. मगर काइंया ठाकुर जोरावर सिंह ने चांदनी को जब टेढ़ी नजर से देख लिया था तो उस का बचना मुश्किल था. ठाकुर जोरावर ने अपने खासमखास आदमी को उस की टोह में लगा दिया. उस का आदमी जानता था कि वह लड़की राजपूत हुई तो ठाकुर सा ब्याह कर लेंगे और किसी अन्य जाति की हुई तो मसल कर फेंक देंगे. थोड़ी देर में सब पता लग गया.
ठाकुर जोरावर सिंह ने पंडित को बुलवा कर विवाह का मुहूर्त निकलवाया. फिर चंदन सिंह को बुला कर कहा, ‘‘आज रात्रि में मैं आप की पुत्री का विवाह संस्कार करूंगा. सारी तैयारी कर ली जाए. आप की भीतीजी का विवाह तो कल संपन्न हो चुका है, आज हमारा होगा. बारात आज भी रुकी रहेगी.’’
चंदन सिंह हाथ जोड़े पत्थर की तरह खड़े रहे. ठाकुर जोरावर 50 का और उन की बेटी 17 बरस की. उन्होंने अपनी बेटी चांदनी की सगाई देवीकोट में कर रखी थी. इसलिए बोले, ‘‘क्षमा करें हुकम, मेरी बेटी का सगपण (सगाई) हो चुकी है, वरना आप की कृपा तो भाग्यशालियों को मिलती है.’’
‘‘भूल जाओ उसे. मैं ठाकुर जोरावर सिंह रियासत के राजा का सगा छोटा भाई हूं. आज से आप की बेटी हमारी हवेली की शोभा होगी. अब वह किसी ढ़ाणी के झोपड़े में नहीं रहेगी.’’ फिर उस ने चंदन सिंह के बड़े भाई की ओर देख कर कहा, ‘‘अवतार सिंहजी, आप ही अपने भाई को समझाओ.’’
ठाकुर ने अपने स्वभाव के अनुसार ही आदेशात्मक प्रार्थना की.
‘‘चंदन सिंह, यह तो अपना अहोभाग्य है कि ठाकुर सा से सूर्यवंशी नाता जोड़ रहे हैं. आप की बेटी भाग्यशाली है, जिस की ठाकुर सा ने मांग कर ली है. पीछे मत हटो.’’
जोरावर की तरफ मुखातिब हो कर अवतार सिंह आगे बोले, ‘‘हुकम, आप निश्चिंत रहें. सब तैयारी हो जाएगी. आज ही विवाह हो जाएगा हुकम, आज ही. चलो चंदन सिंह, समय कम है.’’
चंदन सिंह को ले कर अवतार सिंह घर आए. रास्ते में उन्होंने एक ही बात कही, ‘‘ठाकुर सा की हवेली में रह कर राज करेगी चांदनी.’’
‘‘मगर उन की उम्र.’’ चंदन सिंह ने कहा तो अवतार सिंह ने बात काट दी, ‘‘आदमी की उम्र का क्या? राजपुरुष कभी बूढे़ होते हैं क्या? आप भी क्या भोली बातें कर रहे हैं.’’
उन की बात यहीं खत्म हो गईं. मगर औरतों में बात यहीं पर खत्म नहीं हुई. सुनते ही चांदनी बिफर उठी, ‘‘मैं ठाकुर से विवाह नहीं करूंगी. मेरी उम्र के उस के पुत्रपुत्रियां हैं. मैं मर जाऊंगी, मगर उस से विवाह नहीं करूंगी.’’
उस की आंखों के आगे उस के मंगेतर जय सिंह का चेहरा घूम रहा था, जिस से वह कई बार चुपकेचुपके मिलती और बातें करती रही थी. वह उसी की उम्र का लड़का था. जब वह हवेली की तरफ गई थी तो उस ने सोचा भी नहीं था कि वह किसी ऐसे गर्त की तरफ जा रही है, जहां से कभी वापस नहीं लौट पाएगी. वह दिन भर रोतीबिलखती बिसूरती रही, वह एकएक कर सब से इस विवाह को टाल देने की प्रार्थना करती रही. जिबह के लिए ले जाए जाने वाले जानवर की तरह तड़पती रही. लेकिन सब जगह से उसे निराशा ही मिली. सब के चेहरों पर लाचारी पुती हुई थी. सब की आंखों में जोरावर सिंह के भय की दहशत टपक रही थी. वह हार गई.
चांदनी ने अपने संगीसाथी राम सिंह से कहा, ‘‘रामू, किसी तरह यह समाचार देवीकोट जा कर जय सिंह तक पहुंचा दो. मैं तुम्हारा अहसान उम्र भर नहीं भूलूंगी. मेरे तनमन पर सिर्फ जय सिंह का हक है, अगर वह नहीं मिला तो मैं मर जाना पसंद करूंगी.’’
चांदनी ने रोरो कर राम सिंह को अंदर तक हिला दिया था. वह अपने ऊंट पर सवार हो कर चांदनी के दिल की बात जय सिंह तक पहुंचाने के लिए देवीकोट के लिए निकल पड़ा. सुबह का निकला राम सिंह देर रात देवीकोट जा पहुंचा. जय सिंह को चांदनी का पैगाम सुना कर उस ने कहा, ‘‘जय सिंह, अब तक चांदनी से जोरावर का पाणिग्रहण संस्कार तो हो चुका होगा और सुबह होते ही वह उसे विदा करा कर बारात के साथ दीनगढ़ के लिए रवाना हो जाएगा. 4 दिनों बाद बारात दीनगढ़ पहुंचेगी. तुम्हें रास्ते में मौका देख कर चांदनी से मिल कर आगे की योजना बनानी होगी.’’
सुन कर जय सिंह ने एक लंबी सांस छोड़ी. उस ने क्याक्या सपने संजोए थे मगर जोरावर रूपी राक्षस ने सब कुछ उजाड़ कर रख दिया था. उस ने राम सिंह का तहेदिल से शुक्रिया अदा कर सुबह आने को कहा. जय सिंह ने सुबह होने से पहले अपने घोड़े पर सवार हो कर काठा की राह पकड़ ली. उस का घोड़ा उसे पीठ पर लादे उड़ा जा रहा था. वह मन ही मन योजना बनाते हुए आगे बढ़ा जा रहा था. उधर चांदनी ने मन ही मन कसम खा ली थी कि वह जोरावर को कभी भी अपने तनमन पर हक नहीं जमाने देगी. भले ही दुनिया की नजर में वह उस की ब्याहता रहे, उस के मन में तसवीर सिर्फ जय सिंह की ही रहेगी. अपनी इसी सोच के साथ वह अल्हड़, चुलबुली युवती अपनी खिलखिलाती आत्मिक हंसी को 7 तालों में बंद कर के ठाकुर जोरावर सिंह की ब्याहता बन गई.
अगली सुबह बारात की विदाई हो गई. चांदनी को दहेज में उस की सहेली चंपा जो दासी थी, दी गई. वह चांदनी के साथ दीनगढ़ के लिए रवाना हो गई. चांदनी का रोरो कर बुरा हाल था, वह चंपा से बोली, ‘‘चंपा, आज मेरी डोली नहीं अर्थी उठी हैं. मैं अब इन गलियों में कभी लौट कर नहीं आऊंगी. मुझे विश्वास है, मेरे इस अंतिम सफर में जय मेरा साथ जरूर देगा, वह जरूर आएगा. उसे एक बार जी भर कर देख लूं, उस के बाद उस के साथ अंतिम सफर पर चली जाऊंगी?’’
चंपा कुछ भी नहीं समझ पाई. चांदनी का मन उन गलियों में भटकने लगा, जहां दोनों बचपन से ले कर अब तक खेलकूद कर जवान हुई थीं. मांबाप, बहनभाई के चेहरे उस के सामने घूम रहे थे. वे कभी हंसते, कभी मुसकराते, कभी उदास हो जाते, तो कभी रो पड़ते. चांदनी खुद को संभाल नहीं पा रही थी, वह रोने लगी. चंपा दिलासा दे कर उसे संभालने की कोशिश जरूर कर रही थी, मगर सब व्यर्थ? चांदनी मन ही मन कल्पना कर रही थी कि उस का सिर अपने प्रेमी जय की छाती पर रखा है. जय की छाती आंसुओं से तर हो चुकी है. वह उस के सिर पर धीरेधीरे हाथ फिराते हुए रो रहा है. रोतेरोते वह जैसे कह रहा है, ‘‘चांदनी, अच्छी प्रीत निभाई तू ने, ठाकुर मिला तो छोड़ गई मुझे. बड़ी खुदगर्ज निकली तू.’’
वह उसे आश्वस्त करना चाहती थी, उस के चेहरे को प्यार से छूना चाहती थी. लेकिन उस का चेहरा खयालों से अचानक गायब हो गया. तभी हल्ले की आवाज सुनाई पड़ी. चांदनी ने पूछा, ‘‘चंपा, यह हल्ला कैसा?’’
चंपा बाहर का नजारा देख रही थी. वह बोली, ‘‘पता नहीं, शायद कोई झगड़ा हो रहा है?’’
बारात के वापस लौटते समय रास्ते के गांव वालों से झगड़े शुरू हो गए थे. झगड़े का कारण था अकाल के समय लोगों को सहायता के बदले उन का चारापानी बारात के घोड़ोंऊंटों और बैलों द्वारा खापी जाना. पानी पीपी कर उन्होंने कुएं सुखा दिए थे. अकाल के समय इस बारात ने कोढ़ में खाज का काम किया था. इस बात ने लोगों पर गहरा असर किया था. बारात से लौटते बारातियों के साथ ग्रामीणों के झगड़े शुरू हो गए थे. उसी की आवाज चांदनी व चंपा को सुनाई दे रही थी. कई जगह मारपीट और खूनखराबा हुआ. कई लोग मारे गए. ज्यादा नुकसान बारातियों का हुआ. उन पर अचानक हमले हुए, उन्हें लूट लिया गया.
बाराती कई ग्रामीणों के मवेशी ले कर भाग गए. दोनों दूल्हों और खासखास बारातियों को लूटा गया. उन का सोना, चांदी, बरतन, ऊंट, घोड़े छीन लिए गए. कुछ लोगों ने दूल्हादुल्हनों को सुरक्षित निकाल कर दीनगढ़ का रास्ता पकड़ा. उधर दोपहर में जय सिंह काठा पहुंचा और वहां से पता कर के बारात के पीछे निकल गया. बारात धीरेधीरे जा रही थी और लड़ाईझगड़े के कारण तितरबितर हो गई थी. खैर, जय सिंह उस मार्ग पर बढ़ता गया, जिस रास्ते से बारात गुजरी थी. जब शाम का धुंधलका गहराने लगा तो जय सिंह बारात से जा मिला. उस ने अपना परिचय दे कर कहा, ‘‘रिश्तेदारी में जा रहा हूं.’’ उस की बात सुन कर जोरावर ने साथ चलने का प्रस्ताव रखते हुए कहा, ‘‘हमारे साथ ही चलो. अच्छेखासे मर्द हो, काम आओगे.’’
‘‘ठीक है?’’ जय सिंह ने कहा. वह यही चाहता भी था.
रात गहराने लगी तो एक कुएं के पास तंबू गाड़ दिया गया. जनाना तंबू अलग गाड़ा गया, जिस में किशन सिंह की नवब्याहता और जोरावर सिंह की दुलहन चांदनी के अलावा दहेज में आई दासियों को ठहराया गया. जय सिंह और दीनगढ़ के ठाकुर अफीम और मदिरा पान करने लगे. जय सिंह ने कम शराब पी. जनाना तंबू में बैठी चांदनी को जब जय सिंह की आवाज सुनाई दी तो वह निहाल हो उठी. रात का दूसरा प्रहर लगते ही सब लोग खापी कर सो गए. जय सिंह और चांदनी की आंखों से नींद कोसों दूर थी. दिन भर की थकान व नशे के कारण सब लोग सो गए, तो जय सिंह धीरेधीरे सरक कर जनाना तंबू के गेट पर आ खड़ा हुआ.
उस ने हौले से पुकारा, ‘‘चांदनी, ओ चांदनी?’’
सुन कर चांदनी दौड़ी चली आई. अपने प्रियतम को देख कर उस की आंखों से सावनभादो की बरसात होने लगी. वह जय के सीने में धंसती चली गई. दोनों वहां से निकल कर कुएं के पास आ बैठे. वहां पर दोनों रात भर अपने मन की बातें करते रहे. चांदनी बोली, ‘‘मैं ने कहा था न जय कि मैं जन्मजन्म तक तुम्हारी ही रहूंगी. इस जन्म में हम एकसाथ नहीं रह सके, मगर अगले जन्म में हम जरूर मिलेंगे.’’
‘‘हमारा प्यार पवित्र है, हम प्यार के पंछी एकदूजे के बिना नहीं रह सकते. हम भले ही साथ नहीं जी सके, लेकिन मर तो साथ सकते हैं?’’
दोनों प्रेमी अगले जन्म में मिलने के वादे के साथ अपने कपड़े व जूते कुएं की पाट पर रख कर कुएं में कूद गए. सुबह जब जोरावर को सच पता चला तो वह हाथ मलता रह गया. दोनों के मृत शरीर कुएं से निकाल कर वहीं पर उन्हें एक चिता पर लेटा कर अंतिम यात्रा पर विदा किया गया. उस कुएं का नाम आज भी प्रेमियों के कुएं के नाम से जाना जाता है. ठाकुर जोरावर सिंह कभी किसी से नहीं हारा था, मगर आज वह पहली बार सच्ची मोहब्बत से हार गया था. जब तक ठाकुर जोरावर सिंह जिंदा रहा, उसे यह घटना उद्वेलित करती रही. Romantic Story






