Love Story: मारपीट, चोरीडकैती, अपहरण और फिरौती वसूलने जैसे अपराध करने वाले वैभव को शादीशुदा ज्योत्सना से दिल लगा कर जिंदगी से हाथ क्यों धोना पड़ा. 23 अगस्त की रात के यही कोई 8 बजे महानगर मुंबई के व्यस्ततम थाना डोंगरी के चार्जरूम में ड्यूटी पर मौजूद महिला सबइंसपेक्टर गिरिजा मस्के के सामने रोनी सूरत लिए एक चेहरा अपने पूरे परिवार के साथ आ कर खड़ा हो गया. गिरिजा मस्के उस चेहरे और उस के परिवार वालों को अच्छी तरह से पहचानती थीं. वह विशाल आचरेकर था, जो आपराधिक प्रवृत्ति के वैभव आचरेकर का बड़ा भाई था.

भाई के मामलों में वह अकसर थाना डोंगरी आता रहता था, इसलिए सबइंसपेक्टर गिरिजा मस्के उसे और उस के घर वालों को अच्छी तरह से पहचानती थीं. इसी वजह से उन्होंने सीधे पूछा, ‘‘कहिए, क्या बात है, वैभव ने फिर कोई कांड कर दिया क्या?’’
‘‘नहीं मैडम, इस बार उस ने कोई कांड नहीं किया, बल्कि लगता है वह खुद ही किसी कांड का शिकार हो गया है.’’ विशाल आचरेकर ने भर्राई आवाज में कहा, ‘‘मैडम, 20 अगस्त की सुबह वह घर से निकला था, तब से उस का कुछ अतापता नहीं है. उस का मोबाइल फोन भी बंद है.’’
‘‘चिंता करने की कोई बात नहीं है. अपराध कर के कहीं छिपा होगा. 2-4 दिनों में अपने आप ही आ जाएगा.’’ सबइंसपेक्टर गिरिजा मस्के ने उस की शिकायत को हल्के में लेते हुए कहा, ‘‘हो सकता है, यारोंदोस्तों के साथ कहीं चला गया हो. ऐसे लोगों का क्या भरोसा.’’
‘‘नहीं मैडम, हम लोगों ने उसे हर जगह ढूंढ लिया है. पूरी तरह निराश हो कर ही आप के पास आए हैं. वह कहीं छिपा नहीं, उस के साथ जरूर कोई अनहोनी हो गई है. अब आप ही हमारी कुछ मदद कर सकती हैं.’’
विशाल और उस के घर वालों की विनती पर सबइंसपेक्टर गिरिजा मस्के ने वैभव की गुमशुदगी दर्ज करा कर इस बात की जानकारी अपने सीनियर इंसपेक्टर संदीप डाल को दे दी. इस के बाद उन्होंने विशाल और उस के घर वालों को आश्वासन दे कर घर भेज दिया. थाना डोंगरी के सीनियर इंसपेक्टर संदीप डाल ने तत्काल इस मामले की जानकारी अधिकारियों को देने के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम को भी दे दी थी. इस के बाद अधिकारियों के दिशानिर्देश पर सीनियर इंसपेक्टर संदीप डाल ने सहायक इंसपेक्टर महादेव कदम और अंकुश काटकर के साथ जांच की रूपरेखा तैयार की और फिर उन्हीं को इस मामले की जांच सौंप दी.
जांच की जिम्मेदारी मिलने के बाद इंसपेक्टर महादेव कदम और अंकुश काटकर ने एक टीम बनाई, जिस में असिस्टेंट इंसपेक्टर शशिकांत यादव, सबइंसपेक्टर संतोष कांबले, महिला सबइंसपेक्टर गिरिजा मस्के, पुलिस नायक सैयद सांलुके, कांबले, धार्गे, कनकुटे और वोडरे को शामिल किया. इस टीम ने जांच तो तेजी से शुरू की, लेकिन कोई कामयाबी हासिल नहीं हुई. 31 वर्षीय वैभव आचरेकर अपने मातापिता, भाईभाभी और बहनों के साथ मुंबई के डोंगरी इलाके में स्थित पोद्दार इमारत की दूसरी मंजिल पर रहता था. पिता का नाम देवीदास आचरेकर था. वैभव डोंगरी के जिस इलाके में रहता था, वह इलाका किसी जमाने में जानेमाने कुख्यात तस्कर करीम लाला और हाजी मस्तान का माना जाता था.
उस समय पठान भाइयों की इजाजत के बगैर इस इलाके का एक पत्ता भी नहीं हिलता था. शायद वैभव पर भी इलाके का असर पड़ गया था और वह भी अपराधी प्रवृत्ति का हो गया था. इलाके के सभी छोटेबड़े अपराधियों के बीच उस की अच्छी पैठ थी. उस के खिलाफ मारपीट, चोरीडकैती और अपहरणफिरौती जैसे कई अपराधों के मामले दर्ज थे, इसलिए थाना डोंगरी पुलिस उसे ही नहीं, उस के घर के हर सदस्य को पहचानती थी. शुरू में वैभव की अपराधी प्रवृत्ति को ध्यान में रख कर पुलिस टीम ने उस के बारे में पता लगाना शुरू किया. पुलिस को लगता था, कि अपने कारनामों की वजह से कहीं उसे मार न दिया गया हो. लेकिन इस बारे में कोई सुराग नहीं मिला.
धीरेधीरे दिन बीतते गए. वैभव को गायब हुए 4 महीने बीत गए और उस का कुछ पता नहीं चला. उस की लाश भी नहीं मिली कि मान लिया जाता कि उसे मार दिया गया है. अगर वह कोई अपराध कर के भी छिपा होता तो इतने दिनों तक न उस का अपराध छिपा रह सकता था और न वह खुद. जांच टीम वैभव के बारे में जो सोच कर जांच कर रही थी, उस से कोई फायदा नहीं हुआ, इसलिए जांच अधिकारी इंसपेक्टर महादेव कदम ने जांच की दिशा बदल दी. माना जाता है कि लड़ाईझगड़े या हत्या जैसे अपराधों की वजह जर, जमीन और जोरू होती है. यहां जर, जमीन का कोई कारण नहीं दिख रहा था, इसलिए उन का ध्यान जोरू की तरफ गया. वैभव जवान, सुंदर और अविवाहित युवक था, इसलिए उन्हें लगा कि कहीं वह किसी जोरू की वजह से तो नहीं गायब कर दिया गया.
इस की एक वजह यह भी थी कि जिस दिन वैभव गायब हुआ था, उस दिन की उस के मोबाइल फोन की लोकेशन मुंबई के उपनगर दहिसर की लाभदर्शन इमारत के आसपास की पाई गई थी. वहां उस के जाने की क्या वजह हो सकती थी? जांच टीम यह जानने के लिए उस के घर गई तो घर वाले इस बारे में कुछ खास नहीं बता सके. लेकिन जब इस टीम ने किसी महिला से संबंध के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि इसी इमारत में रहने वाली ज्योत्सना मोरे से वैभव के मधुर संबंध थे. उस के घर भी उस का खूब आनाजाना था.
पुलिस ने जब ज्योत्सना मोरे से पूछताछ की तो उस ने यह तो स्वीकार कर लिया कि पड़ोसी होने के नाते वैभव का उस के घर आनाजाना था. लेकिन न तो उस के उस से कोई गलत संबंध थे, न उसे उस की गुमशुदगी के बारे में कुछ पता है. इमारत में ईर्ष्या करने वाले लोगों ने उसे बदनाम करने के लिए उस का नाम वैभव के साथ जोड़ दिया होगा. पुलिस ने ज्योत्सना मोरे को गिरफ्तार तो नहीं किया, लेकिन वह संदेह के घेरे में आ गई थी, इसलिए उस का मोबाइल अपने पास रखने के साथ इस हिदायत के साथ घर जाने दिया कि वह पुलिस को बताए बिना मुंबई छोड़ कर कहीं नहीं जाएगी. इस के बाद पुलिस ने ज्योत्सना के बारे में पता लगाना शुरू किया.
जुटाई गई जानकारियों के आधार पर पुलिस को ज्योत्सना मोरे के बारे में जो पता चला, वह चौंकाने वाला था. पुलिस को उस के नंबर की काल डिटेल्स में एक ऐसा नंबर मिला, जिस पर उस ने वैभव के गायब होने वाले दिन कई बार बात की थी. उस नंबर वाले फोन की लोकेशन भी उसी जगह की पाई गई थी, जहां की वैभव के मोबाइल फोन की मिली थी. ज्योत्सना के भी मोबाइल फोन की लोकेशन वहां की थी. तीनों मोबाइल फोनों की लोकेशन एक जगह की मिलने की वजह से ज्योत्सना मोरे संदेह के घेरे में आ गई. यह संदेह तब और गहरा गया, जब पुलिस ने उस से उस नंबर के बारे में पूछा तो उस ने साफ कहा कि वह उस नंबर के बारे में बिलकुल नहीं जानती.
जबकि उस नंबर पर उस की लगातार बातें हो रही थीं. पुलिस को अब तक यह भी पता चल चुका था कि दहिसर की लाभदर्शन इमारत में उस का मायका था. साफ था, ज्योत्सना ने ही वैभव को वहां बुलाया होगा. इस के बाद पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. 20 दिसंबर, 2014 को इंसपेक्टर महादेव कदम ने सीनियर अधिकारियों की उपस्थिति में जब ज्योत्सना से सुबूतों के आधार पर सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गई. उस ने वैभव की हत्या का अपना अपराध तो स्वीकार कर ही लिया, उस मोबाइल नंबर के बारे में भी बता दिया, जिस के बारे में वह अनभिज्ञता प्रकट कर रही थी.
वह मोबाइल नंबर ज्योत्सना के पुराने प्रेमी प्रकाश पाटिल का था. उसी के साथ मिल कर उस ने वैभव आचरेकर को ठिकाने लगा दिया था. इस के बाद उस की निशानदेही पर इंसपेक्टर महादेव कदम ने उसी रात उस के साथी प्रकाश पाटिल को भी गिरफ्तार कर लिया था. थाने में दोनों से की गई पूछताछ में वैभव आचरेकर की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह प्रेम त्रिकोण में की गई हत्या की थी. 34 वर्षीय प्रकाश पाटिल महाराष्ट्र के जनपद पालघर की तहसील वसई के गांव ज्यूचंद्र का रहने वाला था. उस के पिता रामचंद्र पाटिल गांव के सुखीसंपन्न किसान थे. बीए करने के बाद प्रकाश नगर महापालिका में ठेकेदारी करने लगा था, जिस से उसे ठीकठाक आमदनी हो रही थी.
जिन दिनों वह बीए कर रहा था, उन्हीं दिनों साथ पढ़ने वाली ज्योत्सना से उसे प्यार हो गया था. ज्योत्सना भी उसे प्यार करती थी, इसलिए दोनों शादी करना चाहते थे. लेकिन किन्हीं कारणों से यह शादी नहीं हो पाई. प्रकाश के घर वालों ने उस की शादी कहीं और कर दी थी तो ज्योत्सना के घर वालों ने भी उस उस की शादी मुंबई के रहने वाले अमित मोरे से कर दी थी. दोनों ही अपनेअपने घरसंसार में सुखी थे. प्रकाश जहां 2 बेटियों का बाप बन गया था, वहीं ज्योत्सना भी एक बेटे की मां बन चुकी थी. लेकिन जब कई सालों बाद बिछड़े हुए प्रेमी एक विवाह समारोह में मिले तो इन का प्यार एक बार फिर उमड़ पड़ा.
गिलेशिकवे दूर करने के बाद प्रकाश और ज्योत्सना ने एकदूसरे के मोबाइल नंबर ले लिए थे. फोन पर बातचीत करतेकरते धीरेधीरे दोनों एक बार फिर पुराने रंग में रंग गए. ज्योत्सना पति अमित मोरे और बेटे के साथ मुंबई के डोंगरी में रहती थी. दरअसल वह अपने पति अमित मोरे से खुश नहीं थी. अमित मोरे एक बीमा कंपनी का एजेंट था. वह ज्योत्सना जैसी सुंदर और पढ़ीलिखी पत्नी पा कर खुद को धन्य समझ रहा था. इसीलिए वह उसे खुश रखने और उस की सुखसुविधाओं का पूरा खयाल रखता था. पत्नी और बेटे को किसी तरह की कोई तकलीफ न हो, इस के लिए वह दिनरात मेहनत करता था.
इसी चक्कर में वह यह भूल भी गया था कि सुखसुविधा के अलावा पत्नी को पति का प्यार भी चाहिए. देर रात वह घर लौटता तो बुरी तरह थका होता. खापी कर वह बिस्तर पर पड़ते ही सो जाता. सुबह उठता और चायनाश्ता कर के काम पर निकल जाता. उस के पास ज्योत्सना के लिए समय ही नहीं होता था. पति की इसी उपेक्षा से ज्योत्सना अंदर ही अंदर सुलग रही थी, जिस का फायदा उसी इमारत में रहने वाले वैभव आचरेकर ने उठाया. वैभव आचरेकर और अमित मोरे के बीच अच्छी दोस्ती थी. दोनों बचपन के दोस्त थे. यह अलग बात थी कि अमित मोरे ईमानदारी और मेहनत की कमाई खाता था, जबकि वैभव आचरेकर अपराध की कमाई से मौज कर रहा था. दोनों की दिशाएं अलग थीं, इस के बावजूद उन की दोस्ती में कोई फर्क नहीं पड़ा था.
वैभव कभी अमित मोरे के साथ उस के घर आया तो खूबसूरत ज्योत्सना को देख कर उस पर मर मिटा. कुंवारा होने की वजह से स्त्रीसुख से वंचित वैभव ज्योत्सना को पाने की कोशिश करने लगा. उस के हावभाव से जब उस के मन की बात ज्योत्सना को पता चली तो वह भी उस की ओर आकर्षित हो उठी. क्योंकि वह यही तो चाहती थी. धीरेधीरे ज्योत्सना वैभव की ओर खिंचने लगी. फिर तो वह स्वयं को संभाल नहीं सकी और वैभव की बांहों में समा गई. ज्योत्सना को वैभव की सशक्त बांहों का सुख मिला तो वह अमित मोरे को भूल कर उसी की हो गई. उसे जब भी मौका मिलता, वैभव को अपने फ्लैट पर बुला लेती. पहले तो वैभव ज्योत्सना के बुलाने का इंतजार करता था, लेकिन कुछ दिनों बाद जब भी उस का मन होता, वह खुद ही ज्योत्सना के फ्लैट पर पहुंच जाता.
धीरेधीरे वह ज्योत्सना को प्रेमिका कम, पत्नी ज्यादा समझने लगा. लेकिन जब ज्योत्सना की मुलाकात उस के पुराने प्रेमी प्रकाश से हुई तो वह वैभव से किनारे करने लगी. अपराधी प्रवृत्ति के वैभव को ज्योत्सना का यह व्यवहार पसंद नहीं आया. क्योंकि वह उसे किसी भी कीमत पर छोड़ने को तैयार नहीं था. उसे जब जैसी जरूरत पड़ती थी, वह ज्योत्सना को उसी हिसाब से इस्तेमाल कर लेता था. यह बात ज्योत्सना को पसंद नहीं थी. प्रकाश से मिलने के बाद वह वैभव से संबंध नहीं रखना चाहती थी. ज्योत्सना जब वैभव की मनमानियों से तंग आ गई तो उस से मुक्ति पाने के लिए परेशान रहने लगी. जब उस की परेशानी के बारे में प्रकाश पाटिल को पता चला तो उस ने ज्योत्सना के साथ मिल कर वैभव को अपने बीच से निकाल फेंकने की खतरनाक योजना बना डाली.
लेकिन वैभव मजबूत कदकाठी और अपराधी प्रवृत्ति का युवक था, इसलिए उस से सीधे निपटना ज्योत्सना और प्रकाश के वश की बात नहीं थी. इसलिए प्रकाश ने अपनी योजना में अपने एक दोस्त माइकल को भी शामिल कर लिया. योजना के अनुसार, ज्योत्सना 19 अगस्त, 2014 को अपने मायके दहिसर आ गई. वहीं से उस ने वैभव को फोन कर के मिलने के लिए वसई के रेलवे स्टेशन नायगांव बुलाया. 20 अगस्त, 2014 की सुबह वैभव अपने घर वालों को बताए बगैर ज्योत्सना से मिलने नायगांव पहुंच गया. साढ़े 10 बजे वैभव नायगांव रेलवे स्टेशन पर पहुंचा तो पहले से ही इंतजार कर रहे प्रकाश और माइकल ने उसे पकड़ लिया. दोनों खुद को पालिका इंसपेक्टर बता कर वैभव को पूछताछ के बहाने नायगांव पूर्व मित्तल क्लब हाउस के पास ले गए.
वहां पहुंच कर प्रकाश पाटिल और माइकल ने वैभव की यह कर पिटाई शुरू कर दी कि वह डोंगरी में रहने वाली ज्योत्सना मोरे को परेशान करता है और उसे धमकी दे कर बिना उस की मरजी के उस के साथ शारीरिक संबंध बनाता है. प्रकाश पाटिल और माइकल ने वैभव की इस तरह पिटाई की कि थोड़ी देर में वह बेहोश हो गया. उस के बेहोश होने के बाद प्रकाश पाटिल ने वैभव के गले में रस्सी डाल कर कस दी, जिस से उस की मौत हो गई.
वैभव को मौत के घाट उतार कर उस की लाश एक चादर में लपेटी और रात में ही माइकल की मारुति कार में रख कर उसे ठिकाने लगाने के लिए मुंबई-अहमदाबाद एक्सप्रेस हाइवे पर चल पड़े. रात 12 बजे के आसपास वे मनोर के पास बह रही नदी के पुल पर पहुंचे. उन्होंने लाश कार से निकाली और तलाशी में उस का सारा सामान निकाल कर लाश को नदी में फेंक दिया. लाश ठिकाने लगाने के बाद प्रकाश ने फोन कर के ज्योत्सना को वैभव की हत्या के बारे में बता दिया. अगले दिन वैभव की लाश किसी मछुआरे के जाल में फंस गई तो उस ने इस बात की जानकारी थाना मनोर पुलिस को दी. पुलिस ने शव बरामद कर के शिनाख्त कराने की कोशिश की. शिनाख्त न होने पर पोस्टमार्टम के बाद थाना मनोर पुलिस ने उस का अंतिम संस्कार करा दिया.
वैभव की हत्या से ज्योत्सना तो खुश थी ही, प्रेमिका को खुश कर के प्रकाश भी खुश था. जिस तरह प्रकाश ने वैभव को अपने रास्ते से हटाया था, उस का सोचना था कि पुलिस उस तक कभी नहीं पहुंच पाएगी. 4 महीने बीत गए तो उसे पूरा विश्वास हो गया कि अब वह बच गया. लेकिन पुलिस खोजतेखोजते ज्योत्सना तक पहुंच गई तो वैभव आचरेकर की हत्या का रहस्य खुल गया और वह भी पकड़ा गया. पूछताछ के बाद पुलिस ने प्रकाश के दोस्त माइकल को भी गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद वैभव की हत्या का मुकदमा प्रकाश पाटिल, ज्योत्सना और माइकल के खिलाफ दर्ज कर के महानगर मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक तीनों अभियुक्त जेल में ही थे. Love Story
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित






