Bihar News: बिहार में अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि थानाप्रभारी संजय तिवारी ने एक बाइक पर बिना हेलमेट लगाए बैठे युवकों को रोक कर गाड़ी के कागज दिखाने को कहा तो उन्होंने दिनदहाड़े थानाप्रभारी को गोलियों से भून डाला. बिहार के छपरा जिले में एक  थाना है इसुआपुर. यह थाना जिला मुख्यालय से करीब 28 किलोमीटर दूर है. पिछले दिनों इस थाने के प्रभारी के साथ एक ऐसी घटना घटी कि देश भर के लोगों की जुबान पर इस थाने का नाम आ गया. बात 22 दिसंबर, 2014 की है. इसुआपुर के थानाप्रभारी संजय तिवारी अपने औफिस में बैठे हुए थे, तभी उन के एक खास मुखबिर ने सूचना दी कि कुछ बदमाश आज स्टेट बैंक की कैश वैन को लूटने की योजना बना रहे हैं.

मुखबिर ने बताया कि जिला मुख्यालय स्थित स्टेट बैंक की मेन ब्रांच से कैश वैन जब इसुआपुर शाखा के लिए रवाना होगी तभी बदमाश रास्ते में कहीं मौका देख कर लूट की योजना को अंजाम देंगे. यह भी हो सकता है कि बदमाश इसुआपुर की शाखा से मेन ब्रांच को कैश ले जाने वाली कैश वैन को निशाना बना लें. यह सूचना थानाप्रभारी संजय तिवारी के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण थी. उन्होंने घड़ी पर नजर डाली उस समय दोपहर का एक बज चुका था.

आज भी बिहार के अनेक थाने ऐसे हैं जहां सरकारी वाहन तक नहीं है. इसुआपुर थाना भी उन्हीं में से एक है. इस थाने में सरकारी वाहन की कमी तो है ही साथ ही पर्याप्त संख्या में पुलिस स्टाफ भी नहीं है. थानाप्रभारी को जब कहीं किसी बड़े मिशन को अंजाम देने या छापे आदि के लिए जाना होता तब वह किसी प्राइवेट वाहन का इंतजाम कर के जाते थे. सूचना मिलने के बाद वह संजय तिवारी सोच रहे थे कि उन के थाना क्षेत्र में बदमाश वारदात को कहां अंजाम दे सकते हैं और उन्हें कहां पर घेरा जा सकता है? वह इसी उधेड़बुन में थे कि तभी उन के मोबाइल की घंटी बजी. स्क्रीन पर देखा तो पता चला कि वह नंबर डा. बी.के. सिंह का था. डा. बी.के. सिंह का इसुआपुर बाजार में एक नर्सिंग होम है. इस के अलावा वह एक पेट्रोल पंप के मालिक भी हैं.

थानाप्रभारी ने जैसे ही काल रिसीव की तो उधर से डा. बी.के. सिंह बोले, ‘‘नमस्कार तिवारी जी, मुझे पेट्रोल पंप के 3 लाख रुपए स्टेट बैंक इसुआपुर शाखा में जमा कराने हैं. सुरक्षा के लिहाज से यदि आप किसी सिपाही को बैंक तक साथ भेज देंगे तो मेहरबानी होगी. पैसा जमा करने मेरा बेटा प्रतीक जाएगा.’’

‘‘इस में मेहरबानी जैसी कोई बात नहीं है. पुलिस तो होती ही है जनता की सेवा के लिए. आप को तो पता है हमारे थाने में वाहन नहीं है, इसलिए अच्छा होगा आप डा. प्रतीक को गाड़ी के साथ यहां भेज दें.’’ थानाप्रभारी बोले.

थानाप्रभारी को वैसे भी स्टेट बैंक जाना था इसलिए उन्होंने सोचा कि पैसे जमा कराने के बाद वह बैंक मैनेजर से भी कुछ बात कर लेंगे.

‘‘आप 10 मिनट इंतजार करें, प्रतीक आप के पास गाड़ी ले कर पहुंच रहा है.’’ इतना कह कर डा. बी.के. सिंह ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

थोड़ी देर बाद ही डा. बी.के. सिंह का बेटा डा. प्रतीक सिंह अपनी कार के साथ इसुआपुर थाने पहंच गया. थानाप्रभारी संजय तिवारी तुरंत थाने के चौकीदार उपेंद्र कुमार मांझी को साथ ले कर डा. प्रतीक सिंह की गाड़ी से स्टेट बैंक इसुआपुर शाखा के लिए रवाना हो गए. स्टेट बैंक शाखा थाने से लगभग 4 किलोमीटर दूर थी. थोड़ी देर में ही वह बैंक पहुंच गए. बैंक पहुंच कर डा. प्रतीक ने अपने खाते में पैसे जमा करा कर राहत की सांस ली. पैसा जमा हो जाने के बाद थानाप्रभारी शाखा प्रबंधक से मिले. चूंकि उन्हें कैश वैन लूटने की सूचना मिली थी इसलिए उन्होंने शाखा प्रबंधक से बैंक की सुरक्षा और कैश वैन के बारे में बातचीत की. शाखा प्रबंधक ने उन्हें बताया कि मेन ब्रांच से आने वाला कैश यहां आ चुका है. यह सुन कर थानाप्रभारी ने राहत की सांस ली.

शाखा प्रबंधक ने उन्हें बताया कि कैश क्लोजिंग के बाद यदि ब्रांच में कैश ज्यादा होता है तो उसे मेन ब्रांच में जमा करा दिया जाता है. थानाप्रभारी ने बैंक मैनेजर से कहा कि यदि उन्हें कभी भी पुलिस की जरूरत महसूस हो तो तुरंत फोन कर दें. शाखा प्रबंधक से मिलने के बाद थानाप्रभारी चौकीदार के साथ डा. प्रतीक की गाड़ी में बैठ गए. गाड़ी में बैठ कर थानाप्रभारी ने डा. प्रतीक से कहा, ‘‘यदि आप को बहुत जल्दी न हो तो हम आप की गाड़ी से आधे घंटे में अपना काम निपटा लें?’’

‘‘इंसपेक्टर साहब, आप भी क्या छोटी सी बात के लिए शर्मिंदा कर रहे हैं. आप अपना काम आराम से निपटा लें मुझे कोई परेशानी नहीं.’’ डा. प्रतीक ने कहा.

डा. प्रतीक कार चलाते हुए बैंक से बमुश्किल आधा किलोमीटर दूर श्याम कैरियां रेलवे क्रासिंग के नजदीक पहुंचे ही थे कि तभी थानाप्रभारी की नजर सामने से आ रही एक बाइक पर पड़ी, जिस पर 3 लोग बैठे हुए थे. यह देखते ही थानाप्रभारी ने डा. प्रतीक से गाड़ी साइड में खड़ी करने को कहा. कार के रुकते ही थानाप्रभारी कार से बाहर आ गए और चौकीदार उपेंद्र मांझी को आदेश दिया कि वह 3 सवारी वाली बाइक को रोके.

थानाप्रभारी का आदेश पाते ही चौकीदार ने सामने से आ रही बाइक को हाथ दे कर रुकने का इशारा किया. गाड़ी में वर्दीधारी दरोगा को देख बाइक चला रहे युवक ने बाइक रोक दी. उस समय दोपहर के 2 बजने वाले थे. पहली नजर में ही संजय तिवारी को पल्सर बाइक सवार तीनों युवक संदिग्ध नजर आए. बाइक के रुकते ही उन्होंने कहा, ‘‘एक तो बिना हेल्मेट के गाड़ी चला रहे हो ऊपर से 3-3 बैठे हो… गाड़ी से उतरो और कागजात दिखाओ.’’

उन की बात सुनते ही बाइक चला रहा युवक बोल उठा, ‘‘साहब, हमारे परिवार की एक महिला की हालत बेहद खराब है. वह अस्पताल में भरती है. हम उसी को देखने जा रहे थे. आइंदा ऐसी गलती नहीं करेंगे.’’ वह विनती करने लगा कि उन्हें छोड़ दें. अस्पताल पहुंचना जरूरी है. लेकिन थानाप्रभारी गाड़ी के कागजात देखने और उन की तलाशी ले कर ही उन्हें जाने देना चाहते थे. उन्होंने गाड़ी चला रहे युवक से कहा, ‘‘पहले अपना लाइसेंस और गाड़ी के कागजात दिखाओ, उस के बाद जाने की सोचना.’’

थानाप्रभारी का इतना कहना था कि गाड़ी के पीछे बैठे दोनों युवकों में से एक ने कहा, ‘‘साहब, लगता है आप गाड़ी के कागज देखे बगैर हमें जाने नहीं देंगे?’’

‘‘यही सोच लो…’’ थाना प्रभारी ने डपट कर कहा तो बाइक चला रहा युवक बोल उठा, ‘‘दरोगा जी, आप विश्वास करें, हमारे पास गाड़ी के कागजात हैं. अस्पताल जाने की जल्दी थी इसलिए…’’

‘‘कब से देख रहा हूं फालतू की बकवास किए जा रहे हो. सीधी तरह से अपना लाइसेंस और गाड़ी के कागजात दिखाते हो या नहीं?’’ थानाप्रभारी ने गुस्से से कहा तो बीच में बैठा युवक अपने पीछे बैठे साथी को संबोधित करते हुए बोला, ‘‘तुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा है. बिना कागजपत्तर देखे दरोगाजी जाने नहीं देंगे. गाड़ी से उतर कर दारोगा जी को कागज निकाल कर दिखा दे.’’

अपने साथी की बात सुन कर पीछे बैठा युवक बाइक से उतर कर बोला, ‘‘दरोगाजी, आप कागज देख कर ही मानेंगे. ठीक है, आप जिद कर रहे हैं तो हम आप को कागज दिखा ही देते हैं. इस के बाद वह फुरती से उतर कर अपना दाहिना हाथ पीछे की ओर ले गया और स्वेटर के नीचे कमर में छिपा कर रखा पिस्तौल निकालने लगा. कार में बैठा डा. प्रतीक सिंह जो थानाप्रभारी और बाइक सवार के बीच हो रही बहस को देख रहा था, उस की नजर उस युवक पर पड़ी जो अपने कमर में खोंसा हुआ पिस्तौल निकाल रहा था. यह देख डा. प्रतीक को माजरा समझते देर नहीं लगी. वह गाड़ी में बैठेबैठे ही जोर से चिल्ला पड़ा, ‘‘तिवारीजी सावधान, इस लड़के के पास पिस्तौल है.’’

अब तक की बातचीत से थानाप्रभारी को भी अंदेशा हो गया था कि युवकों की नीयत ठीक नहीं है. जैसे ही उन के कानों में डा. प्रतीक के चिल्लाने की आवाज पड़ी वह सावधान हो गए. उन्होंने फुरती से कमर में लटक रही अपनी सर्विस रिवाल्वर निकाली. इस से पहले कि वह पोजिशन लेते उस से पहले ही उस युवक ने अपने पिस्तौल से थाना प्रभारी संजय तिवारी पर फायर कर दिया. गोली सीधे तिवारीजी के कान के पास जा लगी. तिवारीजी के फायर करने से पहले ही उस युवक ने दूसरा फायर उन के सीने पर किया. गोली लगते ही थानाप्रभारी लड़खड़ाए. तभी उस युवक ने फुरती से थानाप्रभारी के हाथों से उन का सर्विस रिवाल्वर छीन लिया और उन पर तीसरा फायर झोंक दिया. तीसरी गोली लगते ही थानाप्रभारी संजय तिवारी सड़क पर गिर पड़े. उन के गिरते ही तीनों बाइक सवार युवक वहां से भाग खड़े हुए.

जिस समय वह युवक थानाप्रभारी पर गोलियां चला रहा था, उस वक्त सड़क पर लोगों का आवागमन कुछ देर के लिए ठहर गया था. किसी की हिम्मत भागते हुए उन हमलावरों को पकड़ने की नहीं हुई. चौकीदार उपेंद्र मांझी पहला फायर होते ही एक गाड़ी की ओट में दुबक गया था. डा. प्रतीक सिंह भी एक के बाद एक फायर होते देख अपनी गाड़ी से बाहर नहीं निकला. तीनों बदमाश जब घटनास्थल से भाग गए तब डा. प्रतीक गाड़ी से उतर कर थानाप्रभारी के पास पहुंचा. खून से लथपथ संजय तिवारी की सांसें चल रही थीं लेकिन वह कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं थे. डा. प्रतीक ने तुरंत मोबाइल से अपने पिता को फोन कर सारी बातें बताईं तो वह थोड़ी ही देर में एंबुलेंस और 2 वार्डबौय के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

उन्हें एंबुलेंस में लिटा कर वह सदर अस्पताल के लिए रवाना हो गए. लेकिन अस्पताल पहुंचने से पहले ही उन की सांसें थम चुकी थीं. अस्पताल में डाक्टरों की टीम ने संजय तिवारी को देखते ही मृत घोषित कर दिया. चौकीदार उपेंद्र मांझी ने सदर अस्पताल रवाना होने से पहले ही फोन द्वारा इसुआपुर थाने को इस घटना की सूचना दे दी थी. फिर क्या था, देखते ही देखते थानाप्रभारी संजय तिवारी को दिनदहाड़े गोली मारे जाने की बात पूरे सारण (छपरा) जिले में जंगल की आग की तरह फैल गई. सूचना मिलते ही इसुआपुर थाना पुलिस के अलावा मढौरा, मशरक, पानापुर, परसा समेत कई थानों के थानाप्रभारी सदर अस्पताल पहुंच गए. उन की मौत पर सभी की आंखें नम हो गईं.

एसपी सत्यवीर सिंह, मढौरा के डीएसपी कुंदन कुमार, सदर डीएसपी राजकुमार कर्ण, एसडीओ मनीष शर्मा, एसडीओ सदर कय्यूम अंसारी के अलावा सारण के उपविकास आयुक्त सहप्रभारी डीएम राजीव वर्मा तथा नगर अध्यक्ष शतेंदु शरत भी अस्पताल पहुंच गए. सभी अधिकारी अपने जांबाज थानेदार की मौत से दुखी थे. जब दुकानदारों को थानाप्रभारी संजय तिवारी की हत्या की जानकारी मिली तो वे स्वेच्छा से अपनी दुकानें बंद कर के सीधे अस्पताल पहुंच गए. सदर अस्पताल में सैकड़ों की संख्या में पुलिस कर्मियों के अलावा शहर के तमाम गणमान्य लोग भी मौजूद थे.

चौकीदार उपेंद्र मांझी की तहरीर पर 22 दिसंबर, 2014 को इसुआपुर थाने में थानाप्रभारी संजय तिवारी की हत्या के संबंध में भादंवि की धारा 302, 353 के अलावा विभिन्न धाराओं में 3 अज्ञात हत्यारों के खिलाफ मुकदमा पंजीकृत कर लिया गया. एसपी सत्यवीर सिंह ने आरोपियों को दबोचने के लिए 6 पुलिस टीमें बनाईं. पुलिस ने जिले की सीमाएं सील कर जगहजगह वाहनों की सघन चेकिंग शुरू कर दी. इस के अलावा सर्विलांस टीम तथा तकनीकी सेल को भी काम पर लगा दिया. 2-3 घंटे की सघन तलाशी के बाद भी कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला.

घटनास्थल की समस्त औपचारिकताएं पूरी कर पुलिस ने संजय तिवारी के शव का पंचनामा तैयार कर उसे पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भिजवा दिया तथा बिहारशरीफ में रहने वाले उन के पिता पंडित कमलाकांत को भी सूचना भिजवा दी. संजय तिवारी की हत्या की खबर जैसे ही उन के घर वालों को मिली तो घर में कोहराम मच गया. उन की पत्नी प्रियंका का तो रोरो कर बुरा हाल था. 40 वर्षीय संजय कुमार तिवारी बिहारशरीफ जिले के लहेरी थानांतर्गत ब्रह्मस्थान इलाके में रहने वाले पंडित कमलाकांत तिवारी के 3 बेटों में से बीच के थे. कमलाकांत तिवारी पूजापाठी ब्राह्मण हैं. अपने यजमानों के यहां होने वाले पूजापाठ आदि से जो दक्षिणा मिलती, वह उसी से परिवार को पालते.

कमलाकांत के 3 बेटों में सब से बड़े बेटे संतोष तिवारी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली में अच्छीखासी नौकरी कर रहे हैं और वहीं अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहते हैं. जबकि सब से छोटा बंगलुरु में रह कर किसी कंपीटीशन की तैयारी कर रहा है. दूसरे नंबर के संजय ने मैट्रिक पास करने के बाद ही पुलिस विभाग में जाने का मन बना लिया था. इस के लिए उन्होंने तैयारी भी शुरू कर दी थी. ग्रैजुएशन पूरा करने के बाद सन 2009 में संजय की मुराद पूरी हो गई और उन्हें बिहार पुलिस में सब इंसपेक्टर की नौकरी मिल गई.

नौकरी लगने के 3 साल बाद सन 2012 में उन की शादी प्रियंका नाम की लड़की से हो गई. बाद में प्रियंका सानिध्य नाम के एक बेटे की मां भी बन गई. 12 जून 2014 को संजय कुमार को इसुआपुर थाने का प्रभारी बनाया गया. अपनी व्यवहारकुशलता की वजह से क्षेत्र में उन की अच्छी छवि बनी हुई थी. बेटे की हत्या की बात सुन कर कमलाकांत तिवारी अपनी पत्नी शांति देवी तथा भतीजे आशुतोष तिवारी को साथ ले कर उसी समय छपरा के लिए रवाना हो गए. देर रात संजय तिवारी के शव को पोस्टमार्टम के बाद ताबूत में रख कर पुलिस लाइन ले जाया गया. कमलकांत और शांति देवी बेटे का शव देखते ही दहाड़ मार कर रोने लगे, भतीजे आशुतोष के भी आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे. पुलिस के जवान तीनों को धैर्य बंधा रहे थे.

अगले दिन 23 दिसंबर की सुबह पुलिस लाइन में थानाप्रभारी संजय कुमार तिवारी के शव को गार्ड आफ औनर की सलामी दी. श्रद्धांजलि के दौरान सीआईडी के आईजी विनय कुमार, सारण (छपरा) के डीआईजी विनोद कुमार, एसपी सत्यवीर सिंह सहित कई थानों के थानाध्यक्ष व पुलिस के सैकड़ों जवान मौजूद थे. सलामी के बाद ताबूत को फूलों से सजी एक पुलिस वैन में रख कर पूरे सम्मान के साथ उन के घर बिहारशरीफ के लिए रवाना कर दिया. दोपहर 2 बजे पुलिस की फूलों से सजी गाड़ी पर ताबूत में रखा स्व. तिवारी का तिरंगे में लिपटा शव उन के दरवाजे पर पहुंचा तो वहां मौजूद सभी लोगों की आंखें नम हो उठीं. जिसे देखो उसी की आंख से आंसू टपक रहे थे.

शहीद थानाप्रभारी को उन के घर के दरवाजे पर एक बार फिर से स्थानीय पुलिस के जवानों ने श्रद्धांजलि दी. उसी दिन शाम को स्थानीय श्मशान घाट पर पूरे सम्मान के साथ शहीद संजय तिवारी का अंतिम संस्कार कर दिया गया. राज्य के मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने शहीद थानाप्रभारी संजय तिवारी के प्रति शोक संवेदना प्रकट करते हुए मृतक के आश्रित को नौकरी तथा 10 लाख रुपए की सहायता राशि भी देने की घोषणा की तो वहीं जिले के सभी पुलिसकर्मियों ने अपना एकएक दिन का वेतन उन की पत्नी को देने का ऐलान किया है.

मुख्यमंत्री ने डीजीपी पी.के. ठाकुर को थानाप्रभारी संजय कुमार तिवारी के हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने के आदेश दिए. मुख्यमंत्री के आदेश से पुलिस विभाग की बेचैनी बढ़ गई. हत्यारों को तलाशने में पुलिस ने रातदिन एक कर दिया. पुलिस की मेहनत रंग लाई. सर्विलांस टीम और मुखबिरों की सटीक सूचना के आधार पर बुधवार 24 दिसंबर, 2014 को छपरा पुलिस को ऐसे 3 लोगों के बारे में जानकारी मिली जो थानाप्रभारी को गोली मारने वाले मुख्य अपराधी को हालात तथा लोकेशन से जुड़ी पलपल की जानकारी दे रहे थे. पुलिस भाषा में ऐसे लोगों को लाइनर कहते हैं. तीनों लाइनरों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.

2 आरोपी इसुआपुर थाना क्षेत्र के गंगोई गांव के रिकेश कुमार सिंह उर्फ लव और उस का छोटा भाई राजन कुमार सिंह उर्फ कुश हैं. तीसरा आरोपी भी इसी थानाक्षेत्र के आटानगर गांव का राजनारायण सिंह था. पुलिस ने तीनों को गिरफ्तार कर इन से कड़ी पूछताछ की तो पता चला कि थानाप्रभारी पर गोली चलाने वाला मुख्य शूटर जिले के ही दरियापुर थानाक्षेत्र के पोरई गांव का रहने वाला कैलाश सिंह उर्फ चेक सिंह है. पुलिस की एक टीम कैलाश सिंह को तलाशने के लिए निकल गई. लेकिन वह घर पर नहीं मिला. पुलिस ने तीनों लाइनरों से विस्तृत पूछताछ के बाद 25 दिसंबर को उन्हें छपरा के व्यवहार न्यायालय के न्यायिक दंडाधिकारी शिवधर भारती के समक्ष पेश किया जहां से तीनों को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

संजय तिवारी की हत्या के एक महीने बाद भी पुलिस तीनों हत्यारों में से किसी के पास भी नहीं पहुंच पाई. पुलिस ने शूटर कैलाश सिंह के संभावित स्थानों पर दविशें दीं लेकिन पुलिस को कामयाबी नहीं मिल सकी. उसी दौरान एक अप्रत्याशित घटना घट गई जिस ने बिना किसी मेहनत के पुलिस का आधा काम कर दिया. बुधवार 11 फरवरी, 2015 को देर शाम परसा थानाप्रभारी संजय कुमार को सूचना मिली कि थाना क्षेत्र के परसौना गांव में महारानी माई मंदिर के पास गैंगवार हमले में शहीद थानाप्रभारी संजय तिवारी हत्याकांड के मुख्य शूटर कैलाश सिंह उर्फ चेक सिंह की मौत हो गई है. चेक सिंह की खून से सनी लाश वहीं पड़ी है. हमलावर साथी भाग गए हैं.

सूचना पाते ही संजय कुमार पुलिस टीम के साथ मौकाएवारदात पर पहुंचे तो सचमुच चेक सिंह की खून से सनी लाश वहां पड़ी मिली. जांचपड़ताल के दौरान पुलिस को लाश के पास से फायर किए गए 7 खाली खोखे, 2 मोबाइल फोन जिन में एक में सिम लगा हुआ था वहां मिले. घटनास्थल की औपचारिकताएं पूरी करने के बाद लाश को कब्जे में ले कर थानाप्रभारी थाने लौट आए. कैलाश सिंह उर्फ चेक सिंह के बारे में जांच करने पर पता चला कि वह सारण (छपरा) जिले के दरियापुर थाना क्षेत्र के पोरईपुर गांव के निवासी विद्या सिंह का बेटा था. चेक सिंह की रिश्तेदारी पूर्व में गिरफ्तार कर जेल भेजे गए आरोपी रिकेश सिंह और राजन सिंह के परिवार से है. चेक सिंह के खिलाफ विभिन्न थानों में हत्या व लूट से संबंधित 14 से अधिक मुकदमे दर्ज हैं.

थानाप्रभारी संजय तिवारी की हत्या से पहले 30 सितंबर 2014 को चेक सिंह ने परसा बाजार में दिन दहाड़े 2 युवकों की हत्या कर दी थी. इस दोहरे हत्याकांड से महीना भर पहले उस ने दिनदहाड़े एक व्यापारी से सवा 2 लाख रुपए लूटे थे. सन 2000 में चेक सिंह ने परसा गांव में कुख्यात अपराधी बालिस्टर राय की हत्या की थी. इस के बाद वह अचानक सुर्खियों में आ गया था. चेक सिंह की हत्या उसी के साथियों ने की या वह गैंगवार का शिकार हुआ यह तो अभी साफ नहीं हुआ पर इतना साफ है कि चेक सिंह की हत्या किसी षडयंत्र का ही परिणाम है.

पुलिस को चेक सिंह की लाश तो मिल गई लेकिन अभी तक थानाप्रभारी की लूटी गई सर्विस रिवाल्वर बरामद नहीं हो पाई है और न ही अब तक फरार दोनों अभियुक्त पकड़े गए हैं. Bihar News

—प्रस्तुत कथा घटनास्थल से प्राप्त जानकारी, पुलिस तथ्य एवं मीडिया सूत्रों पर आधारित है.

 

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