Agra News: पंकज और रितु सगे मामाभांजी थे, इसलिए उन्होंने प्यार और शादी कर के जो सामाजिक अपराध किया, उस की सजा उन्हें मौत को गले लगा कर चुकानी पड़ी. उत्तर प्रदेश के जिला शाहजहांपुर का एक छोटा सा कस्बा है खुतार. इसी कस्बे के रहने वाले प्रकाश नारायण श्रीवास्तव अध्यापक थे. उन की संतानों में एक बेटी मीना और 3 बेटे संतोष, राजीव तथा पंकज थे. बच्चों में मीना सब से बड़ी थी. उस के सयानी होते ही प्रकाश नारायण ने उस के विवाह के लिए भागदौड़ शुरू कर दी. काफी भागदौड़ के बाद प्रकाश नारायण को मीना के लिए लखीमपुर खीरी के गांव सैकिया का रहने वाला शांतिस्वरूप पसंद आ गया. वह किसान परिवार से था. इस तरह मीना की शादी शांतिस्वरूप के साथ हो गई.

मीना ससुराल में सुखी थी, इसलिए मांबाप निश्चिंत थे. कालांतर में मीना 1 बेटे बीरू और 3 बेटियों की मां बनी. लगभग 10 साल पहले मीना की बीमारी की वजह से मौत हो गई तो शांतिस्वरूप पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. बच्चे छोटेछोटे थे, इसलिए पत्नी के बिना वह घर संभाले या बाहर के काम देखें. बड़ी बेटी स्नेहा (बदला हुआ नाम) कुछ समझदार थी, इसलिए उस ने घर संभाल लिया था. सभी बच्चे अभी पढ़ ही रहे थे. सब से छोटी सुधा (बदला हुआ नाम) 6 साल की थी, जबकि मंझली रितु करीब 10 साल की. समय का पहिया अपनी गति से चलता रहा और जख्म धीरेधीरे भरते गए.

शांतिस्वरूप की ससुराल खुतार और उन के गांव सैकिया के बीच 10-12 किलोमीटर की दूरी थी, इसलिए दोनों ओर से लोगों का आनाजाना लगा रहता था. प्रकाश नारायण का बड़ा बेटा यानी शांतिस्वरूप का बड़ा साला संतोष परचून की दुकान करता था, उस से छोटा राजीव पढ़लिख कर एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ा रहा था. सब से छोटा पंकज डेकोरेशन का काम करता था. कुल मिला कर प्रकाश नारायण का परिवार व्यवस्थित हो चुका था, लेकिन बेटी की मौत का सदमा उन्हें कुछ ऐसा लगा कि उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया था.

कौन जानता था कि समय के साथ ऐसा जलजला आएगा कि दोनों परिवारों की इज्जत का जनाजा निकल जाएगा. पंकज घर का सब से छोटा बेटा था, इसलिए सभी का लाडला था. मीना अपने इस छोटे भाई से बहुत प्यार करती थी, इसलिए बहन की मौत से पंकज को गहरा आघात लगा था. बहन के जीवित रहने पर वह उस के यहां अकसर जाया करता था, इसलिए बहन के बच्चों को भी अपने छोटे मामा पंकज से काफी लगाव था. रितु को ननिहाल में कुछ ज्यादा ही अच्छा लगता था, क्योंकि उसे लगता था कि तीनों मामा उसे हाथोंहाथ लिए रहते हैं. छोटे मामा तो उस की हर इच्छा पूरी करने को तैयार रहते हैं.

रितु का मामा के यहां आनाजाना लगा रहा. रितु 15 साल की हो गई. इस उम्र में आतेआते वह काफी खूबसूरत लगने लगी थी. ननिहाल में ज्यादातर समय उस का टीवी देखने में गुजरता था. टीवी के छोटे परदे पर नजर आने वाले लड़के उसे बहुत अच्छे लगते थे. कभीकभी उन में कोई लड़का उसे पंकज मामा जैसा लगता था. एक दिन टीवी देखते समय अचानक पंकज आ गया तो उस ने कहा, ‘‘मामा, आप बहुत स्मार्ट हैं, एकदम टीवी सीरियलों में आने वाले हीरो जैसे लगते हैं.’’

रितु, जो पंकज के सामने अभी बच्ची थी, अचानक उसे वह हीरो जैसा लगने लगा था. पंकज ने ध्यान से देखा, तब उसे लगा कि रितु अब बच्ची नहीं रही, वह जवान हो गई है. वह ऐसा क्षण था, जब वह भूल गया कि रितु उस की सगी बहन की बेटी यानी सगी भांजी है. उसी एक क्षण में उस का दिमाग कुछ तरह बदला कि उस की सोच ही बदल गई. पंकज के दिलोदिमाग पर रितु कुछ इस कदर छाई कि वह यह भूल गया कि रितु उस की सगी भांजी है. रितु उम्र में भी उस से बहुत छोटी थी. वह क्षण ऐसा था, जिस ने रिश्तों में ही नहीं, जिदंगी में ही आग लगा दी. आखिर इस की परिणति वही हुई, जैसा ऐसे रिश्तों में होता है. इस रिश्ते ने खुतार के सीने पर एक ऐसी कलंक कथा लिख डाली, जिस ने रिश्तों को ही नहीं, समाज को भी शर्मसार कर दिया.

बड़ेबुजुर्गों ने कहा है कि कदम बढ़ाने से पहले खूब सोचविचार लेना चाहिए. कहीं वह कदम गलत राह पर तो नहीं ले जा रहा. रितु के पास से अपने कमरे में आने के बाद पंकज विचारों में ऐसा खोया कि उसे समय का पता ही नहीं चला. शाम को रितु ने आ कर उस का कंधा पकड़ कर हिलाते हुए कहा, ‘‘उठो मामा, आज खाना नहीं खाना क्या?’’

रितु के मुलायम स्पर्श ने आग में घी का काम किया. पंकज झटके से उठा और रितु को बांहों में भर कर सीने से लगा लिया. रितु हैरान रह गई. वह इतनी बड़ी और समझदार हो चुकी थी कि स्पर्श के मायने पहचानने लगी थी. यह स्पर्श मामा का नहीं, बल्कि एक मर्द का था. उस का तन ही नहीं, मन भी झनझना उठा था. वह एकदम से घबरा गई. उस ने खुद को मामा की बांहों से आजाद किया और हांफती हुई बाहर आ गई. बाहर आते ही सामने नानी पड़ गईं. उस की हालत देख कर उन्होंने पूछा, ‘‘क्या हुआ रितु, हांफ क्यों रही है?’’

‘‘कुछ नहीं नानी, ऐसे ही.’’ कह कर वह नानी के कमरे में चली गई.

रात जैसेतैसे बीती. सुबह होते ही रितु ने कहा, ‘‘नानी, मुझे अपने घर जाना है. आप भिजवा दीजिए.’’

‘‘तू तो कह रही थी कि अभी हफ्ते भर रहूंगी. अचानक जाने का मन कैसे हो गया?’’ नानी ने पूछा.

‘‘मेरा पढ़ाई का नुकसान हो रहा है नानी, इसलिए मैं जाना चाहती हूं.’’ रितु ने कहा.

‘‘ठीक है, पंकज से कह देती हूं, वह तुझे पहुंचा देगा.’’ नानी ने कहा.

‘‘नहीं नानी, मैं पंकज मामा के साथ नहीं, राजीव मामा के साथ जाऊंगी.’’ रितु ने कहा.

पंकज कमरे में बैठा रितु की बातें सुन रहा था. झट से बाहर आ कर बोला, ‘‘अम्मा, मुझे थोड़ा काम है, इसलिए मैं इसे छोड़ने नहीं जा सकता.’’

रितु ने राहत की सांस ली. रितु शरम और डर की वजह से मामा की हरकत के बारे में किसी को कुछ नहीं बता सकी थी. अगर उस दिन रितु जरा भी हिम्मत कर गई होती तो शायद आज यह कलंक कथा न लिखी जाती. रितु चली गई. उस के जाने के बाद पंकज को लगा कि रितु के लिए उस के दिल के किसी कोने में ऐसी जगह बन गई है, जिसे अब कोई दूसरा नहीं भर सकता. हालांकि दिल और दिमाग में भारी कशमकश चल रही थी, पर दिल था कि मान ही नहीं रहा था. रितु 15 साल की थी, जबकि वह 28 साल का था.

आखिर दिल के हाथों मजबूर पंकज एक दिन रितु के घर जा पहुंचा. संयोग से जब वह वहां पहुंचा था, रितु घर में अकेली थी. यह मौका रिश्तों को दलदल में घसीटने के लिए काफी था. मामा को देख कर रितु कांप उठी, लेकिन पंकज ने उसे पास बिठा कर प्यार से समझाया, ‘‘रितु, डरने की कोई बात नहीं है. मैं जो कहने जा रहा हूं, वह तुम्हें सुनना ही पड़ेगा. मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. मैं ने इस बात पर बहुत सोचाविचारा, लेकिन आखिर में यही लगा कि अगर तुम मुझे नहीं मिली तो मैं जिंदा नहीं रह पाऊंगा.’’

रितु घबरा गई, ‘‘नहीं मामा, ऐसा मत करना.’’

‘‘अगर तुम कहती हो तो ठीक है. लेकिन सच बताओ, क्या मैं तुम्हें अच्छा नहीं लगता, क्या तुम्हें मुझ से प्यार नहीं है?’’

‘‘मामा, आप मुझे बहुत अच्छे लगते हैं, लेकिन…’’

‘‘लेकिनवेकिन कुछ नहीं, हां या ना में जवाब दो. अभी कोई जल्दी नहीं है, खूब सोचविचार कर फैसला कर लेना. लेकिन फैसला लेने से पहले इस बात का ध्यान रखना कि तुम मेरी यादों के सहारे जीना चाहोगी या साक्षात देखते हुए. जो भी फैसला लेना, फोन कर के बता देना.’’ कह कर पंकज ने उसे बांहों में समेटा, प्यार किया और चला गया.

रितु स्तब्ध बैठी रही. इस बार मामा का स्पर्श उसे भी कुछ अच्छा लगा था. वह जिस उम्र में थी, उस में फिसलने की संभावनाएं बहुत होती हैं. बिना मां की बेटी थी, न कोई रोकनेटोकने वाला था, न कोई राह दिखाने वाला. ऐसे में मामा ही अंगुली पकड़ कर दलदल में खींच रहा था. रितु ने ज्यादा सोचनेविचारने की जहमत नहीं उठाई और जीवन की नाव को तूफान के हवाले कर दिया.

2-3 दिनों बाद पंकज ने फोन किया, ‘‘रितु, मैं तुम से मिलने आना चाहता हूं.’’

‘‘…तो आ जाओ न.’’ रितु ने चहक कर कहा.

पंकज को लगा, जैसे किसी ने कानों में शहद घोल दिया हो. वह तुरंत सैकिया आ गया. इस के बाद वह रितु को उस दलदल में घसीट ले गया, जिस में घुसना तो आसान है, पर निकलना बहुत मुश्किल. मामाभांजी के बीच ऐसा रिश्ता बन गया, जिस की भनक घर वालों को ही नहीं, किसी को भी लग जाती तो हायतौबा मच जाती. इस के बाद रितु और पंकज का एकदूसरे के घर आनाजाना कुछ ज्यादा ही हो गया. उन का रिश्ता ऐसा था कि कोई संदेह भी नहीं कर सकता था. रितु की हर चाहत पंकज पूरी कर रहा था. सब यही समझते थे कि मामा को भांजी से कुछ ज्यादा ही प्यार है.

लेकिन सच कितने दिनों तक छिपा रहता. एक न एक दिन तो उसे उजागर होना ही था. जब पंकज का शांतिस्वरूप के घर आनाजाना कुछ ज्यादा ही हो गया तो उसे लगा, यह ठीक नहीं है. घर में बिना मां की 3 बेटियां थीं, इसलिए उन्होंने टोका, ‘‘पंकज, तुम्हें कुछ कामधाम है या नहीं, जब देखो यहीं डेरा डाले रहते हो. तुम्हारी वजह से रितु भी बेलगाम होती जा रही है. जब देखो, तब नानी के यहां जाने के लिए तैयार रहती है. पढ़ाई पर भी ध्यान नहीं देती.’’

‘‘जीजाजी, दीदी की याद आ जाती है, इसलिए चला आता हूं. अगर आप को मेरा आना अच्छा नहीं लगता तो अब नहीं आऊंगा.’’

‘‘भई, ऐसी कोई बत नहीं है. मेरे कहने का मतलब यह है कि अपने कामधंधे पर भी ध्यान दो. फालतू घूमने से कोई फायदा नहीं है.’’

पंकज समझ गया कि अब लोगों को उस पर शक होने लगा है, इसलिए उसे सतर्क हो जाना चाहिए. घर आ कर वह अपने कमरे में बैठा देर तक सोचता रहा. उस का प्यार जुनूनी होता जा रहा था. लेकिन घरपरिवार और समाज का भी डर सता रहा था. रिश्ता इतना नाजुक था कि वह रितु को अपना भी नहीं सकता था. जबकि दिल उसे छोड़ने को तैयार नहीं था. प्रेम की एकएक सीढ़ी चढ़ते हुए रितु और पंकज जिस शिखर की ओर जा रहे थे, वहां से फिसल कर आने का ही अंदेशा था. उन्हें मंजिल मिलना लगभग असंभव था, पर वे मंजिल पाने के लिए बेताब थे. जबकि मंजिल पाने की कोई राह नहीं थी. पंकज की उम्र 30 साल से अधिक हो चुकी थी. उस का कामकाज भी ठीक चल रहा था. उस की शादी के लिए भी लोग आ रहे थे. लेकिन शादी में वह रुचि नहीं दिखा रहा था. बड़े भाई ने दबाव डाला तो उस ने एक दिन साफसाफ कह दिया, ‘‘भैया, मैं शादी नहीं करूंगा.’’

‘‘तो क्या अकेले ही जिंदगी बिताओगे?’’

‘‘नहीं, अकेला तो नहीं रहूंगा, पर आप लोग मेरे लिए परेशान न हों.’’

पंकज के इस जवाब से घर के सब लोग सोचने को मजबूर हो गए कि पंकज शादी के लिए मना क्यों कर रहा है? उसी बीच शांतिस्वरूप ने संतोष को फोन कर के पंकज की शादी के लिए एक रिश्ता बताया तो उस ने कहा कि पंकज शादी नहीं करना चाहता. संतोष की बात से पंकज को ले कर कुछ आशंका हुई तो उस ने कहा, ‘‘भई पंकज का इरादा मुझे कुछ ठीक नहीं लगता. जब देखो, तब वह मेरे यहां पड़ा रहता है. रितु भी उस के कुछ ज्यादा ही मुंहलगी हो गई है. इधर वह पढ़ाई में भी ध्यान नहीं दे रही है.’’

बहनोई की बात पर संतोष के मन में भी संदेह पैदा हो गया. कहीं उस के इस इरादे के पीछे रितु तो नहीं है. आखिर शादी से मना क्यों कर रहा है? रितु और पंकज की प्रेमकहानी अब तक 5 साल पुरानी हो चुकी थी. इस बेईमान प्यार का अंजाम क्या होगा, कोई नहीं जानता था. रितु भी अपने भविष्य को ले कर परेशान थी, इसलिए एक दिन उस ने पंकज से पूछा, ‘‘अब आगे क्या होगा मामा?’’

‘‘आगे से मतलब..?’’ पंकज बोला.

‘‘मतलब यह कि आखिर इस तरह कब तक चलता रहेगा. तुम्हारा मेरे घर आना पापा को अच्छा नहीं लगता. उन्होंने साफसाफ तो कुछ नहीं कहा, लेकिन उन के मन में हम लोगों को ले कर कुछ संदेह जरूर है.’’

‘‘लगता तो मुझे भी कुछ ऐसा ही है. मैं जल्दी ही कुछ करने की सोचता हूं.’’

‘‘क्या सोचोगे, हमारे सामने एक ओर कुआं है तो दूसरी ओर खाई. हमारे दोनों ओर खतरा है. अभी तो हमारे संबंधों के बारे में कोई कुछ नहीं जानता, लेकिन जिस दिन इस का खुलासा होगा, पहाड़ टूट पड़ेगा.’’

पंकज और रितु की दीवानगी बढ़ती जा रही थी. दोनों ही एकदूसरे को अपने अस्तित्व का हिस्सा मानने लगे थे, इसलिए जिंदगी एक साथ बिताना चाहते थे. पर यह उन के लिए आसान नहीं था. रितु तो उतनी समझदार नहीं थी, पर पंकज समझदार था. वह हमेशा इसी चिंता में डूबा रहता कि घर वालों से कैसे बताए कि वह अपनी सगी भांजी से प्यार करता है और उसी से शादी करना चाहता है. वह जानता था कि घर वालों की छोड़ो, समाज भी उसे इस रिश्ते की अनुमति नहीं देगा. जो भी सुनेगा, वही धिक्कारेगा. कभीकभी उसे लगता कि उसी ने रितु को गुमराह किया है. उस ने उस के साथ शारीरिक संबंध बना कर पवित्र रिश्ते को कलंकित किया है. लेकिन उस दिल का वह क्या करे, जिस ने मजबूर करा कर यह सब कराया है.

पंकज भांजी के साथ प्यार की राह में इतनी दूर आ चुका था कि किसी भी कीमत में वापस नहीं लौट सकता था. प्यार का जुनून सिर चढ़ कर बोल रहा था. आखिर एक दिन संतोष ने रितु को पंकज की बांहों में  देख लिया तो पूछा, ‘‘यह सब क्या हो रहा है?’’

‘‘भैया, मेरी जिंदगी का यही सच है. मैं रितु से प्यार करता हूं और इसी के साथ शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘यह हरगिज नहीं हो सकता. हम समाज, अपने बहनोई और स्वर्गवासी बहन को क्या जवाब देंगे. तुम इतना नीचे गिर जाओगे, मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था. अभी तो सिर्फ मुझे पता चला है, अगर घर के बाकी के लोगों को इस बारे में पता चलेगा तो वे क्या सोचेंगे. अच्छा होगा, तुम इस मामले को यहीं खत्म कर के हम सभी जिस तरह सिर उठा कर जी रहे हैं, उसी तरह जीने दो.’’ संतोष ने कहा. पंकज ने भाई को समझाने की बहुत कोशिश की कि वह रितु से बहुत प्यार करता है और उस के बिना जीवित नहीं रह सकता. पर वह बिलकुल नहीं माने. उन्होंने पंकज को खूब लताड़ा और उसी वक्त राजीव के साथ रितु को उस के घर भिजवा दिया. संतोष ने रितु को भले ही उस के घर भिजवा दिया, पर पंकज ने साफ कह दिया, ‘‘भले ही पूरी दुनिया उस की दुश्मन हो जाए, पर रितु से उसे कोई अलग नहीं कर सकता.’’

संतोष पंकज की इस धमकी से परेशान था. अगर किसी को भी उस की हरकत के बारे में पता चल गया तो उस का परिवार इस कदर बदनाम हो जाएगा कि कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगा. लोग थूकेंगे उस के परिवार पर. उस की यह परेशानी उस के चेहरे पर साफ झलक रही थी. आखिर एक दिन पत्नी ने पूछ ही लिया. तब बेचैन संतोष ने मन हलका करने के लिए सारी बात पत्नी को बता दी. वह भी सन्न रह गई. धीरेधीरे घर में इस बात की जानकारी सब को हो गई. लेकिन पंकज का घर में दबदबा था, इसलिए कोई भी उसे इस रिश्ते को खत्म करने के लिए विवश नहीं कर सका. हां, घर वालों का व्यवहार उस के प्रति जरूर बदल गया. इस से पंकज ने इतना जरूर महसूस किया कि अब धीरेधीरे उस की परेशानी बढ़ती ही जाएगी.

उस की जिंदगी पतंग जैसी हो गई थी. पता नहीं कब कट जाए. इसलिए उस ने पक्का इरादा बना लिया कि चाहे कुछ भी हो, वह रितु से शादी करेगा और दूर कहीं जा कर अपनी गृहस्थी बसा लेगा. इस के बाद उस ने फोन कर के रितु को बता भी दिया कि 18 फरवरी को भैया के बेटे के मुंडन के बाद वह उस के साथ घर छोड़ देगा. राजीव के बेटे के मुंडन पर रितु खुतार आई. मुंडन के बाद उस ने नानी से घर भिजवाने को कहा. वहीं खड़े पंकज ने कहा, ‘‘चलो, मैं तुम्हें छोड़ आता हूं.’’

घर के सभी लोग थके थे, इसलिए पंकज को अनुमति मिल गई. किसी को क्या पता था कि उन के मन में क्या है. दोनों घर से बाहर निकले और सीधे बसअड्डे पहुंचे. वहां से बस पकड़ी और शाहजहांपुर आ गए, जहां से ट्रेन द्वारा आगरा पहुंच गए.

पंकज और रितु ने शादी करने के इरादे से घर छोड़ दिया था. ट्रेन से वे सुबह 7 बजे ईदगाह स्टेशन पर उतरे और स्टेशन के पास ही होटल डी-लौरेट में कमरा बुक करा लिया. उन्हें तीसरी मंजिल पर कमरा नंबर 310 मिला था. होटल में पंकज ने रितु को अपनी पत्नी बताया था और आईडी के रूप में अपना ड्राइविंग लाइसेंस की कौपी जमा कराई थी. जब दोनों होटल पहुंचे थे, रिसैप्शन पर मैनेजर संजय कश्यप मौजूद थे. नहाधो कर दोनों ने कपड़े बदले और नाश्ता कर के मोहब्बत की निशानी ताजमहल देखने चले गए. रितु पंकज के साथ ताजमहल के पास पहुंची तो बोली, ‘‘लगता है, शाहजहां मुमताज को बहुत प्यार करता था.’’

‘‘हां, एकदम मेरी तरह रितु. अगर शाहजहां की तरह मैं भी अमीर होता तो अपने प्यार को अमर करने के लिए इसी तरह का रितुमहल बनवाता.’’

यह सुन कर रितु को हंसी आ गई. इस के बाद दोनों ताजमहल के अंदर पहुंचे. शाहजहां और मुमताज की कब्रों को देख कर रितु ने कहा, ‘‘ये तो मर कर भी एक साथ हैं.’’

माहौल गमगीन हो गया. पंकज ने कहा, ‘‘चलो, बाहर चल कर साथसाथ फोटो खिंचवाते हैं, जो जिंदगी भर हमें याद दिलाएंगे.’’

इस के बाद दोनों ने ताज के साए में कुछ फोटो खिंचवाए. वहां से वे बाजार गए, जहां कपडे़ वगैरह खरीदे. रात 9 बजे तक उन के कमरे का दरवाजा खुला रहा. इस के बाद दरवाजा बंद हुआ तो जब सुबह 10 बजे तक उन के कमरे का दरवाजा नहीं खुला तो सर्विस बौय गब्बर ने कई बार दरवाजा खटखटाया. जब अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो वह मैनेजर संजय कश्यप के पास पहुंचा. गब्बर ने जब मैनेजर संजय कश्यप को बताया कि कमरा नंबर 301 का दरवाजा काफी खटखटाने पर भी अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल रही है तो संजय घबरा गए. भाग कर वह ऊपर पहुंचे. उन्होंने दरवाजे के की-होल से झांक कर देखा तो लड़की के पैर लटके दिखाई दिए.

माजरा समझ में आते ही वह सन्न रह गए. उन्होंने तुरंत होटल की मालकिन शारदा रानी को सारी बात बताई. शारदा रानी ने थाना रकाबगंज पुलिस को फोन कर के घटना की सूचना दी. सूचना मिलने के बाद सीओ असीम चौधरी और थाना रकाबगंज के थानाप्रभारी इंसपेक्टर सतीशचंद्र यादव पुलिस बल के साथ होटल पहुंच गए. दूसरी चाबी से दरवाजा खोला गया तो अंदर की स्थिति देख कर सभी स्तब्ध रह गए. हरे रंग की नई रस्सी के दोनों छोरों पर फंदे बना कर पंखे के सहारे एक ओर एक लड़की लटकी हुई थी तो दूसरी ओर एक लड़का.

पुलिस ने कमरे की तलाशी ली. पलंग पर कुछ फोटोग्राफ्स मिले, जो ताजमहल पर खिंचवाए गए थे. बैग से कुछ गहनों के साथ मंगलसूत्र, कुछ रुपए और एक सुसाइड नोट भी मिला. पुलिस ने मामले की वीडियोग्राफी करा कर दोनों लाशों को नीचे उतरवाया. लड़की की मांग में सिंदूर भरा था. वह पैरों में बिछिया भी पहने थी. पुलिस ने सुसाइड नोट देखा तो उस में लिखा था, ‘ये फोटो हमारे प्यार की निशानी हैं, जो हम ने ताजमहल पर साथसाथ खिंचवाए थे. आप ने हमें जिंदगी जीने का जो मौका दिया था, शायद हमारी किस्मत नहीं था.

‘हम लोगों के बारे में कोई नहीं जानता कि हम कहां हैं. फिर भी रितु का यही कहना है कि हम लोग किसी को मुंह नहीं दिखा सकते. जब उस का यही फैसला है तो हम भी उस के साथ हैं.

‘हमें 2 दिन की जो जिंदगी मिली, शायद वही हमारी किस्मत थी. जो भी चुरा के घर से ले गए थे, सब आप को लौटा रहे हैं. हम ने जिंदगी में जो गलत किया, उस की कीमत हम अपनी जान दे कर चुका रहे हैं. जब हम ही नहीं होंगे तो हमें कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि कौन जीता है या मरता है. हमें माफ करना या न करना, आप की मरजी.’

उन्होंने अपने इस सुसाइड नोट में साथसाथ दफनाने के लिए भी लिखा था. उन का कहना था कि वे इस जन्म में नहीं मिल सके तो कम से कम साथसाथ मर कर अगले जन्म में तो एक हो सकेंगे. सुसाइड नोट में उन्होंने दस्तखत करने के साथ फोन नंबर भी लिखे थे. पुलिस ने सुसाइड नोट में दिए नंबरों पर फोन कर के पंकज और रितु के आत्महत्या करने की सूचना दी तो कोई कुछ कहने को ही तैयार नहीं हुआ. वे आगरा आने को भी राजी नहीं थे. लेकिन न जाने क्या सोच कर सभी आने को राजी हो गए.

पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया था. शाम तक घर वाले आगरा पहुंचे तो पता चला कि सुसाइड करने वाले दोनों सगे मामाभांजी थे. उन के रिश्ते के बारे में जान कर सभी दंग रह गए. पोस्टमार्टम के बाद पंकज और रितु के शव घर वालों को सौंप दिए गए. घर वालों ने लाशें ले जाने के बजाय आगरा के ही विद्युत शवदाह गृह में दोनों का अंतिम संस्कार करा दिया. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में संतोष ने बताया कि उस ने पंकज को फोन किया था. तब उस ने यह नहीं बताया कि वह आगरा है. उस ने अगले दिन घर आने को कहा था.

दरअसल, उस दिन रितु अपने घर नहीं पहुंची तो शांतिस्वरूप ने ससुराल फोन कर के पूछा. जब उन्हें बताया गया कि रितु तो पंकज के साथ कब का निकल चुकी है, तब उन्हें समझते देर नहीं लगी कि रितु पंकज के साथ भाग चुकी है. दोनों ने जो किया था, उस से दोनों के घर वाले काफी नाराज थे. लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम था कि वे इस तरह मौत को गले लगा लेंगे. लेकिन आशंका तो थी ही. फिर वही हुआ भी. बदनामी से बचने के लिए सभी चुप थे, लेकिन पंकज और रितु ने आत्महत्या कर के रिश्ते को कलंकित करने का ढिंढोरा पूरी दुनिया में पीट दिया. दरअसल, पंकज और रितु ने शादी करने का निर्णय ले लिया था. वे शादी कर के घर वालों से इतनी दूर चले जाना चाहते थे, जहां उन्हें जानने वाला कोई न हो और वे खुशीखुशी रह सकें.

पंकज ने रितु की मांग में सिंदूर भर कर शादी भी कर ली. लेकिन शादी करने के बाद दोनों को लगा होगा कि वे चाहे जहां भी रहें, हमेशा अपराधबोध से ग्रसित रहेंगे. यही नहीं, उन के बच्चों को जब उन के असली रिश्ते के बारे में पता चलेगा तो वे भी उन्हें माफ नहीं करेंगे. घर से भागने के बाद उन के घर लौटने का रास्ता पूरी तरह से बंद हो चुका था. आगे भी उन्हें कोई रास्ता नहीं दिखाई दिया. घरपरिवार और समाज से कट कर जीना भी आसान नहीं था. उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ तो वे डरे कि अब क्या होगा? कोई रास्ता न देख उन का जिंदगी से मोह भंग हो गया होगा.

मन में एक ही बात आई होगी कि इस जन्म में साथ नहीं जी सके तो मर कर अगले जन्म में तो मिल सकेंगे. अगले जन्म में मिलने की उम्मीद में उन्होंने फांसी लगा ली. पंकज और रितु ने रिश्तों को कलंकित करने की लक्ष्मणरेखा लांघी तो उस की सजा उन्हें जान दे कर चुकानी पड़ी. उन्होंने तो जान दे कर मुक्ति पा ली, लेकिन घर वालों को तो इस की सजा कम से कम 2 पीढि़यों तक भोगनी पड़ेगी. Agra News

 

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