Hindi True Crime: पत्नी की मौत के बाद डा. अशोक सिंघल अपनी दोस्त रीना से अपने मन की बात कर लेते थे, लेकिन डा. अशोक के एकलौते बेटे अंकित को पिता की यह दोस्ती पसंद नहीं थी. फिर वह ऐसा जुर्म कर बैठा कि…

डा. अशोक सिंघल लंबीचौड़ी जिस आलीशान कोठी में रहते थे, उस कोठी के सामने 21 मई की सुबह पुलिस की कई गाडि़यां आ कर रुकीं. उन की कोठी के सामने अचानक आई पुलिस को देख कर आसपड़ोस के लोग चौंके कि आखिर ऐसी क्या बात हो गई जो सुबहसुबह इतनी पुलिस आई है. पुलिस की गाडि़यों के आते ही कोठी के अंदर से विलाप करने की आवाज भी आने लगी. माजरा समझ में न आने पर लोग आपस में कानाफूसी करने लगे. पुलिस के पीछेपीछे कुछ लोग कोठी में पहुंचे तो पता चला कि किसी ने डा. अशोक सिंघल की हत्या कर दी है.

उन की हत्या की बात सुन कर लोग हैरत में पड़ गए. क्योंकि वह निहायत सज्जन इंसान थे. उसी दौरान डौग स्क्वायड और फोरेंसिक एक्सपर्ट्स की टीमें भी वहां पहुंच गई थीं. यह वारदात उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ की पौश कालोनी शास्त्री नगर के एच ब्लौक में घटी थी. थानाप्रभारी हरशरण शर्मा ने कोठी का मुआयना किया तो देखा कि डा. अशोक सिंघल का खून से लथपथ शव कोठी के बाहरी हिस्से में बने बैडरूम में फर्श पर पड़ा था. देख कर लग रहा था जैसे किसी भारी चीज से उन के सिर पर प्रहार किया गया है. उन का सिर फटा हुआ था. मौके पर इधरउधर खून बिखरा हुआ था.

लाश बिस्तर पर नहीं थी, इस से लगता था कि मरने से पहले उन्होंने हत्यारे से संघर्ष किया था. बैडरूम के अलावा साथ लगे कमरे का सामान भी बिखरा पड़ा था. कमरे में रखी अलमारी के कपड़े बाहर पड़े थे तथा लौकर भी खुला था. अलमारी वाले कमरे से ही लगा हुआ उन के बेटे अंकित का कमरा था, लेकिन बदमाशों ने उसे खोला तक नहीं था. जिस कमरे में लाश पड़ी थी, वहीं पर डा. अशोक सिंघल का मोबाइल फोन व लैपटौप रखा था. वहीं पर खून से सनी एक अंगूठी भी पड़ी थी. सारे सबूतों को पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया. क्राइम सीन देख कर पहली नजर में लग रहा था कि उन की हत्या लूटपाट की खातिर की गई थी.

मामला गंभीर था, इसलिए थानाप्रभारी ने इस की सूचना अधिकारियों को भी दे दी थी. सूचना मिलने पर एसएसपी डी.सी. दुबे, एसपी (सिटी) ओमप्रकाश सिंह और सीओ (सिविल लाइंस) विनीत भटनागर घटनास्थल पर पहुंच गए थे. पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. मौके पर पहुंचा खोजी कुत्ता कोठी के दरवाजे से बाहर सड़क तक जा कर वापस आ गया और कोठी में ही घूमता रहा. उस ने 3 बार ऐसा किया. फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट की टीम ने लौकर समेत अन्य स्थानों से सावधानीपूर्वक प्रिंट एकत्र कर लिए. दरवाजे के पीछे एक बेसबौल बैट रखा था. हो सकता है, उस से वारदात को अंजाम दिया गया हो, यह सोच कर टीम ने उस के ऊपर से भी फिंगरप्रिंट उठा लिए.

इस कोठी में 58 वर्षीय डा. अशोक सिंघल अपने बेटे अंकित, पुत्रवधू दीप्ति व उस की 4 महीने की बेटी ओजस्वी के साथ रहते थे. अशोक सिंघल आयुर्वेद के डाक्टर थे. साथ ही उन का दवाओं का भी कारोबार था. जिस की सप्लाई मेरठ के आसपास के जिलों में होती थी. एमबीए पास उन का बेटा भी उन के साथ कारोबार से जुड़ा था. अशोक की एक बेटी आस्था थी, जिस की वह शादी कर चुके थे. वारदात की सूचना पर वह भी वहां आ गई थी. वह शहर में ही रहती थी. पुलिस ने वहां मौजूद बेटे अंकित से प्रारंभिक पूछताछ की तो उस ने बताया, ‘‘पापा बैडरूम में सोते थे, जबकि मैं दीप्ति के साथ कोठी के ऊपरी हिस्से में बने कमरे में सोता था.

आज तड़के करीब साढ़े 4 बजे दीप्ति बेटी के लिए दूध गरम करने नीचे आई, क्योंकि किचन नीचे ही है. जब वह बैडरूम की तरफ पहुंची तो लकड़ी का दरवाजा खुला हुआ था, लेकिन बैडरूम में अंधेरा था.

‘‘उस ने कई आवाजें दीं, लेकिन बैडरूम से कोई आवाज नहीं आई. तब दीप्ति ने बिजली बोर्ड से लाइट का स्विच औन किया. कमरे में रौशनी होते ही उस की नजर बैड से होते हुए फर्श पर गई तो वह भौचक्की रह गई. वहां पर पापा खून से लथपथ पड़े थे.

‘‘वह रोती हुई ऊपर आई और मुझे जगा कर यह बात बताई. पत्नी की बात सुन कर मेरे होश उड़ गए. मैं तुरंत तेज कदमों से नीचे आया तो वास्तव में बैडरूम में पापा की लाश पड़ी थी. पापा की हत्या की जानकारी मैं ने फोन द्वारा अपने रिश्तेदारों को दी, उस के बाद पुलिस को फोन किया?’’

पुलिस ने ऊपर के कमरे में सोने की वजह मालूम की तो उस ने बताया, ‘‘दरअसल, पापा को सिगरेट पीने की आदत थी. वह अकसर रात में कई बार सिगरेट पीते थे. इस से मुझे और मेरी पत्नी को परेशानी होती थी. इसलिए रात का खाना वगैरह खा कर हम दोनों ऊपर के कमरे में सोने के लिए चले जाते थे.’’

उस ने यह भी बताया कि पापा ड्राइंगरूम का दरवाजा खुला रख कर सोते थे और कोठी का मुख्य दरवाजा भी अंदर से बंद रहता था, परंतु पत्नी के मुंह से पापा की हत्या की बात सुनने के बाद जब वह नीचे आया तो देखा कि मुख्य दरवाजा बंद तो था, लेकिन उस का कुंडा नहीं लगा था. उन के चीखने की आवाज भी किसी ने नहीं सुनी थी. पुलिस अधिकारियों ने क्राइम सीन को पुन: समझा. जांच में 3 बातें स्पष्ट हुईं. एक तो यह कि सिर पर किसी भारी चीज से प्रहार किया गया था. दूसरा यह कि मामला हत्या का ज्यादा लग रहा था, न कि लूटपाट में हुई हत्या का. हालांकि अंकित लौकर से करीब एक लाख रुपए की नकदी गायब होने की बात कह रहा था, जबकि महंगा मोबाइल फोन व लैपटौप कमरे में ही रखे थे. आमतौर पर बदमाश ऐसी चीजें नहीं छोड़ते. इस के अलावा लूटपाट करने वालों ने अंकित के कमरे को खोला तक नहीं था, जबकि उस के दरवाजे पर ताला नहीं था.

तीसरी बात यह कि वारदात में किसी एक ऐसे नजदीकी व्यक्ति का हाथ होने की संभावना लग रही थी, जो घर की स्थिति को जानता था. वह व्यक्ति यह बात तक जानता था कि डा. अशोक दरवाजा खुला रख कर सोते हैं. बहरहाल, कातिल जो भी था, उस ने जुर्म को छिपाने की हर संभव कोशिश की थी. पुलिस ने मौके से जो अंगूठी बरामद की थी, वह भी डा. अशोक की नहीं थी. अंकित ने उसे पहचानने से इनकार कर दिया. पुलिस को लगा कि वह शायद हत्यारे की होगी. घटनास्थल की औपचारिकताएं पूरी करने के बाद डा. अशोक की लाश को पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए मैडिकल कालेज भिजवा दिया.

इस के साथ ही अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया. मामला संगीन था, इसलिए एसएसपी डी.सी. दुबे ने केस के खुलासे के लिए थानाप्रभारी हरशरण शर्मा की अध्यक्षता में एक टीम का गठन कर दिया. टीम का निर्देशन एसपी ओमप्रकाश सिंह कह रहे थे. अपराध शाखा भी टीम को जांच में सहयोग कर रही थी. अगले दिन पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत की वजह सिर पर घातक प्रहार बताया गया था. मौत का समय रात 10 बजे से 2 बजे के बीच का था. इसलिए पुलिस ने सीसीटीवी कैमरों की रात 10 बजे से ले कर 3 बजे तक की फुटेज देखी. लेकिन इस से कोई सुराग नहीं मिला. फुटेज में कोई भी शख्स आताजाता दिखाई नहीं दिया.

पुलिस ने अंकित से पूछताछ की, लेकिन वह गमजदा था और बीमार भी, इसलिए वह कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे सका. पुलिस को लग रहा था कि डाक्टर की हत्या किसी नजदीकी व्यक्ति ने ही की है, इसलिए पुलिस ने उन के पड़ोसियों, रिश्तेदारों के अलावा परिचितों से भी पूछताछ कर के जानना चाहा कि उन के यहां किनकिन लोगों का ज्यादा आनाजाना था. इस पूछताछ में पुलिस को यह पता चला कि उन के पास कभीकभी एक महिला आया करती थी. वह महिला कौन थी, इस बारे में पता नहीं चल सका. देखतेदेखते 2 दिन गुजर गए, लेकिन उस महिला का पता न लगा. उधर मामले का खुलासा न होने पर कुछ संभ्रांत लोगों ने एसएसपी डी.सी. दुबे से मुलाकात की और हत्या का जल्द खुलासा करने की मांग की. इस के बाद पुलिस टीम ने पारिवारिक बिंदु पर जांच केंद्रित कर दी.

पुलिस ने परिजनों के मोबाइल नंबर ले कर उन की काल डिटेल्स निकलवाईं. काल डिटेल्स का अध्ययन करने पर पता चला कि डा. अशोक एक नंबर पर सब से ज्यादा बातें किया करते थे. उस नंबर की जांच हुई तो वह उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर की रहने वाली एक महिला रीना का निकला. रिश्तेदारों और पड़ोसियों से भी पता चला कि डा. अशोक के पास एक महिला आती थी. कहीं वह महिला वही तो नहीं है, जिस से वह फोन पर ज्यादा बातें करते थे, जानने के लिए पुलिस टीम बिजनौर में रीना के घर गई और उसे पूछताछ के लिए थाने ले आई. कई तरह से की गई पूछताछ के बाद पुलिस को यह जानकारी मिली कि रीना से डा. अशोक की दोस्ती तो थी लेकिन उन की हत्या में उस का कोई हाथ नहीं था. रीना ने यह भी बताया कि इस मित्रता को ले कर डा. अशोक से अपने बेटे अंकित का विवाद भी होता रहता था. यह बात डा. अशोक ने उस से बताई थी.

रीना द्वारा दी गई यह जानकारी बड़े काम की थी. पुलिस का शक अब परिवार के इर्दगिर्द ही घूमने लगा, यह भी संभव था कि बेटा ही पिता का कातिल बन गया हो, लेकिन पुलिस को यकीन नहीं हो रहा था कि कोई बेटा ऐसा कांड कैसे कर सकता है. एक और अहम बात यह थी कि अंकित ने हत्या की खबर अपने पड़ोसियों तक को नहीं दी थी. पुलिस के पहुंचने पर ही पड़ोसियों को हत्या का पता चला था. पुलिस ने कुछ बिंदुओं पर एक बार फिर अंकित से पूछताछ की. उस ने बिना डरे सफाई से सभी सवालों के जवाब दिए. पिता से एक महिला की मित्रता के विरोध की बात तो उस ने स्वीकार की, लेकिन उन की हत्या करने की बात नकार दी. थानाप्रभारी हरशरण शर्मा ने उस से पूछा, ‘‘तुम्हारे पिता की किसी से कोई ऐसी रंजिश थी, जो हत्या की वजह बनी हो?’’

‘‘मेरी जानकारी में उन का कोई विवाद नहीं था. यदि होता तो वह मुझे जरूर बताते.’’ अंकित ने आत्मविश्वास के साथ जवाब दिया.

‘‘तुम्हें किसी पर शक है?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तो फिर हत्या कौन कर सकता है?’’

‘‘सर, मैं कह रहा हूं, यह काम लुटेरों का है. घर में यदि लुटेरे नहीं आए तो फिर लौकर से रुपए कैसे गायब हुए. वे पैसे मैं ने ही उस शाम को लौकर में रखे थे.’’ अंकित ने जवाब दिया.

अंकित अपनी जगह ठीक हो सकता था, लेकिन सीसीटीवी फुटेज के आधार पर इस पर विश्वास नहीं किया जा सकता था. जब कोठी में कोई आया ही नहीं तो लूट कैसे हो गई. पुलिस को अंकित के खिलाफ ऐसे कोई मजबूत सबूत नहीं मिल रहे थे, जिन के आधार पर उसे थाने ले जा कर सख्ती से पूछताछ की जा सके. पुलिस टीम जांच में उलझ गई. पुलिस ने सीसीटीवी कैमरों की फुटेज एक बार ध्यान से फिर देखी. इस का नतीजा पहले जैसा ही निकला. उस में कोई भी मृतक की कोठी की तरफ आताजाता नहीं दिखा. इंस्पेक्टर हरशरण शर्मा ने एसपी ओमप्रकाश सिंह व सीओ विनीत भटनागर को जांच से अवगत कराया.

पुलिस अधिकारियों ने विचारविमर्श किया. सीसीटीवी कैमरे की इस सच्चाई को किसी भी सूरत में झुठलाया नहीं जा सकता था. अब सब से बड़ा सवाल यह था कि जब उन की कोठी में कोई बाहरी व्यक्ति आया ही नहीं तो डा. अशोक की हत्या किस ने की? पुलिस ने अंकित को ही शक के दायरे में रख कर जांच में परिवर्तन किया. इस बार पुलिस ने अंकित के मोबाइल फोन की लोकेशन हासिल कर ली. पता चला कि 21 मई की तड़के करीब साढ़े 4 बजे उस के मोबाइल की लोकेशन कोठी से दूर पाई गई. यह बेहद चौंकाने वाली बात थी. साफ था कि अंकित तड़के कोठी से बाहर गया था. वह क्यों गया था, इस का जवाब उस से पूछताछ के बाद ही मिल सकता था. जबकि उस ने बताया था कि पत्नी के जगाने पर उसे पिता की हत्या का पता चला था.

मोबाइल की लोकेशन को पुख्ता करने के लिए पुलिस टीम ने इस बार रात 3 बजे के बाद की सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. इस फुटेज से पता चला कि अंकित सुबह 4 बजे के बाद अपनी कार ले कर कोठी से गया था और आधे घंटे बाद ही वापस आ गया था. उस के झूठ की पोल खुल गई थी. अब उस के खिलाफ पुलिस को पुख्ता सबूत मिल गए थे. शक व सबूतों के जाल में वह पूरी तरह फंस चुका था. बिना देर किए 26 मई, 2015 को पुलिस ने पूछताछ के लिए उसे हिरासत में ले लिया और थाने ले आई. पुलिस ने इस बार सबूतों के आधार पर उस से मनोवैज्ञानिक ढंग से पूछताछ की. वह पुलिस की बात को झुठला नहीं सका. आखिर सच बोलते हुए उस ने कहा, ‘‘साहब, अपने पिता को अकेले मैं ने ही मारा है. मुझे बहुत गुस्सा आ गया था.’’

उस से गहराई से पूछताछ की गई तो इस हत्याकांड के पीछे दरकते रिश्तों की चौंकाने वाली कहानी निकल कर सामने आई. सरल स्वभाव के डा. अशोक सिंघल आयुर्वेदिक दवाओं का कारोबार करते थे. उन के 2 बच्चे थे, एक बेटा अंकित और दूसरी बेटी आस्था. कुछ सालों पहले वह बेटी का विवाह कर चुके थे. अंकित भी पिता के काम में हाथ बंटाता था. कुछ दर्द ऐसे होते हैं, जिन की भरपाई कभी नहीं होती. इंसान बाहर से तो खुश नजर आता है, लेकिन अंदर से वह परेशान रहता है. अशोक सिंघल के साथ भी कुछ ऐसा ही था. डा. अशोक की जिंदगी दिखावे के तौर पर यूं तो खुशहाल थी, लेकिन उन की जिंदगी में एक ऐसा गम था, जो उन्हें अकसर परेशान किया करता था. दरअसल उन की पत्नी मीनाक्षी की कई सालों पहले मृत्यु हो गई थी. इस के बाद वह अकेले से हो गए थे. किसी तरह उन की जिंदगी बीत रही थी.

2 साल पहले उन्होंने अंकित का विवाह दीप्ति से कर दिया. दीप्ति एमबीए की पढ़ाई कर रही थी. अंकित को शराब पीने की लत थी. पिता ने उसे कई बार समझाया, लेकिन वह नहीं सुधरा तो उन्होंने इसे नियति मान लिया. डा. अशोक अपनी दवाओं की सप्लाई के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों के अलावा उत्तराखंड भी जाया करते थे. इसी दौरान जनवरी, 2015 में उन की मुलाकात बिजनौर की एक महिला रीना से हुई. रीना एक हर्बल कंपनी में दवाओं की सप्लाई का काम करती थी. अशोक की जिंदगी में पत्नी के गुजर जाने के बाद नीरसता छाने लगी थी.

रीना से उन्हें भावनात्मक लगाव हो गया. रीना भी उन से स्नेह करती थी. दोनों के बीच अकसर मोबाइल पर भी बातें होने लगी थीं. वक्त के साथ दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ने लगी थीं. इस से डा. अशोक के जीवन में खुशी जरूर आ गई थी. रीना चूंकि कंपनी के काम से बाहर जाती रहती थी और डा. अशोक का काम भी बाहर घूमने का था, इसलिए दोनों साथसाथ घूमते थे. इस दौरान वे एकसाथ होटल में ही रुकते थे. जिन जगहों पर डा. अशोक दवा सप्लाई करते थे, वहां के लोगों से अंकित का भी संपर्क था. उन्हीं लोगों से अंकित को यह बात पता चल गई कि उस के पिता की किसी महिला से दोस्ती हो गई है और दोनों साथसाथ घूमते हैं.

अंकित को यह बात बरदाश्त नहीं हुई. उस ने पिता से इस मुद्दे पर एक दिन बात की. तब उन्होंने अंकित को समझाते हुए कहा, ‘‘तुम काम पर ध्यान दो अंकित. क्या बात अच्छी है क्या बुरी, यह मैं तुम से ज्यादा समझता हूं.’’ पिता के इस जवाब से वह चुप तो हो गया, लेकिन अंदर ही अंदर कुढ़ गया. क्योंकि वह उन का कर भी क्या सकता था. इस के बाद उसे जैसेजैसे पिता की रीना से मेलमुलाकातों का पता चलता गया, वैसेवैसे उस का अपने पिता से मनमुटाव बढ़ता गया. रीना से संबंधों को ले कर दोनों के बीच कई बार विवाद भी हुआ. इसी तनाव में उस ने ज्यादा शराब पीनी शुरू कर दी. इसी बीच वह पीलिया की बीमारी से ग्रस्त हो गया. बीमारी बढ़ गई तो डा. अशोक ने उसे शहर के एक नामी अस्पताल में भरती करा दिया. अस्पताल में एक महीने रहने के बाद वह ठीक हो सका.

जिस समय वह अस्पताल में भरती था, उस दौरान रीना उस के पिता के साथ कोठी में भी रुकी थी. अंकित को यह पता चला तो उसे नागवार लगा. अंकित को इस बात का डर था कि उस के पिता रीना के साथ कहीं शादी न कर लें. यदि उन्होंने ऐसा कर लिया तो वह उन की दौलत की हकदार हो जाएगी. मई के पहले सप्ताह में अंकित अस्पताल से डिस्चार्ज हो कर घर आ गया. अशोक को सिगरेट पीने की आदत थी. वह रात को भी जाग कर कई दफा सिगरेट पीने बैठ जाते थे. इस से अंकित और उस की पत्नी परेशान हो जाते थे. इसलिए अंकित व दीप्ति ऊपर वाले कमरे में जा कर सो जाया करते थे.

रीना को ले कर पितापुत्र में तकरार इतनी बढ़ गई थी कि उन्होंने एकदूसरे से बात करनी छोड़ दी थी. कुछ दिनों बाद डा. अशोक बाहर गए. अंकित को पता चल गया कि उन के साथ रीना भी गई थी. अब की बार अंकित ने तय कर लिया कि पिता के लौटने पर वह उन से दो टूक बात करेगा. डा. अशोक अपने बिजनेस टूर से वापस आए तो 19 मई की शाम को अंकित ने उन से दो टूक कहा, ‘‘मैं चाहता हूं कि उस महिला से आप दूर हो जाएं.’’

यह सुन कर डा. अशोक आगबबूला होते हुए बोले, ‘‘तुम मेरे बेटे हो, इसलिए अपनी हद में रहो, वरना घर से बाहर का रास्ता दिखा दूंगा.’’

‘‘बेटा होने के नाते ही कह रहा हूं कि आप को यह बात शोभा नहीं देती. आप अपनी मर्यादा का ध्यान रखें.’’ अंकित ने तेवर दिखाए. बेटे के तेवर देख कर अशोक को भी ताव आ गया. उन्होंने अंकित के गाल पर थप्पड़ रसीद करते हुए चेतावनी दी, ‘‘खबरदार, आज के बाद इस मुद्दे पर बात मत करना और सुबह होते ही बीवीबच्चों को ले कर घर से निकल जाना. अब मैं तुझे अपने साथ नहीं रख सकता.’’

पिता के इस व्यवहार पर अंकित खून का घूंट पी कर ऊपर चला गया. उस के पिता द्वारा घर से निकालने की चेतावनी ने उस के होश उड़ा दिए. उस ने ऊपर जा कर शराब पी. वह पिता की आदत से वाकिफ था कि उन्होंने उस से जो कहा है, वह कर भी देंगे. यही बात सोच कर उसे उस रात ठीक से नींद नहीं आई. करीब 3 बजे आंख खुली तो वह पिता से फाइनल बात करने नीचे आ गया. बैडरूम का दरवाजा खुला था. उधर बेटे के रवैये से अशोक भी परेशान थे. शायद उन्हें भी नींद नहीं आ रही थी. वह बैठे सिगरेट पर सिगरेट पिए जा रहे थे.

अंकित ने एक बार फिर रीना के मुद्दे पर उन से बात शुरू की. लेकिन इस बार उन के बीच बात इतनी बढ़ गई कि दोनों के बीच मारपीट हो गई. उसी दौरान अंकित ने कमरे में रखा बेसबौल बैट उठा कर पिता के सिर पर कई वार कर दिए. उन के सिर से खून का फव्वारा फूट पड़ा. अशोक ने अपने बचाव के लिए संघर्ष भी किया. आखिर उन्होंने तड़प कर दम तोड़ दिया. इस दौरान अंकित की अंगूठी वहीं गिर गई. गुस्से में अंकित ने पिता की हत्या तो कर दी. लेकिन हत्या का इल्जाम उस के ऊपर न आए, इस के लिए उस ने लूट का ड्रामा रचने की प्लानिंग की. सोचविचार के बाद उस ने कमरे में लूटपाट दिखाने के लिए सामान फैला दिया. लौकर से रुपए भी निकाल लिए.

हत्या के वक्त उस के कपड़े खून से सन गए थे. उस ने बाथरूम में हाथपांव धोए. फ्रेश हो कर उस ने अपने कपड़े बदले और खून से सने कपड़े एक पौलीथिन में रख लिए. उस ने बेसबौल बैट भी साफ किया और उसे घर में ही छिपा कर रख दिया. वह कार निकाल कर कपड़ों वाली पौलीथिन फेंकने चला गया. इत्तफाक से उस समय किसी सिक्योरिटी गार्ड ने उसे नहीं देखा. कार से वह सूरजकुंड इलाके में पहुंचा और पौलीथिन नाले में फेंक कर वापस आ गया. उस ने वापस आ कर लौकर से निकाले रुपए भी कोठी में कहीं छिपा दिए. फिर ऊपर जा कर आंखें बंद कर के चुपचाप लेट गया. इतना कुछ हो गया था, लेकिन नींद में होने की वजह से दीप्ति को कुछ पता नहीं चल सका.

तड़के बच्ची का दूध गरम करने के लिए दीप्ति नीचे आई तो अपने ससुर की लाश देख कर वह चीखती हुई वापस अपने कमरे में पहुंची. पत्नी के रोने पर वह जागा. पुलिस केवल उस से ही ज्यादा पूछताछ न करे, इसलिए उस ने अपने रिश्तेदारों को फोन कर के सब से पहले बुलाया, फिर दीप्ति के मोबाइल से पुलिस को सूचना दी. इस के पीछे उस की सोच यह थी कि वह नहीं चाहता था कि उस का मोबाइल नंबर पुलिस को पता चले. पुलिस के आने के बाद वह घटना से पूरी तरह अंजान बना रहा. लूट के लिए हत्या होने की बात पर जोर देता रहा. पुलिस के सवालों का भी उस ने चालाकी से आत्मविश्वास के साथ सामना किया. उस ने अपने जुर्म को छिपाने की लाख कोशिश की, लेकिन पकड़ में आ ही गया.

अंकित ने जब अपना अपराध स्वीकार कर लिया, तो पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर के उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त बेसबौल बैट व खून सने कपड़े बरामद कर लिए. पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. अंकित ने पिता को प्यार से समझाने में नातेरिश्तेदारों की मदद ले कर विवेक का परिचय दिया होता तो शायद ऐसी नौबत कभी नहीं आती. अंकित का कहना था कि उसे पिता की हत्या करने का पछतावा है, वह जोश में होश खो कर एक बड़ा अपराध कर बैठा. कथा लिखे जाने तक वह जेल में था. उस की जमानत नहीं हो सकी थी. Hindi True Crime

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, रीना परिवर्तित नाम है.)

 

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