Short Hindi Story: हर बात की एक सीमा होती है. समुद्र और सब्र की भी सीमा होती है. दोनों अपनी सीमा तोड़ दें तो अनर्थ हो जाएगा. प्रेम और धोखेबाजी की एक दुखांत कथा…

राजेंद्र तिवारी ने क्याक्या सपने नहीं संजोए थे, क्याक्या नहीं सोचा था, अपने लिए…उस के लिए और अपने भावी जीवन के लिए. जबकि वह जानता था कि सपने कभी सच नहीं होते, अपना सोचा कभी पूरा नहीं होता. शायद यही वजह थी कि आज उसे उस का खून अपने ही हाथों करने पर मजबूर होना पड़ा. दरअसल इस के अलावा कोई दूसरा रास्ता शायद उसे सूझा ही नहीं.  शादी के 10 महीनों का जीवन उस के लिए नारकीय था. हर पल उस की यही कोशिश रही कि यह जीवन किसी तरह सुखमय हो जाए. लेकिन कलयुग में शायद यह उस के लिए संभव नहीं था.

उस ने विश्वास किया तो दगा मिली. प्यार दिया तो घृणा हाथ लगी. जहर का घूंट पीतेपीते वह पूरी तरह थक चुका था. जब सहन की सीमा पार हो गई तो वह कर बैठा, जो कानून की नजरों में अपराध था. उस का कहना था कि यह अपराध तो बहुत पहले हो चुका होता, अगर वह गांधीवादी सोच का न होता. इतना घृणित दृश्य देखने के बाद शायद ही कोई अधिक समय तक चुप बैठता. लेकिन वह शांति का उपासक था, अहिंसा का पुजारी था, इसीलिए सोचता था कि बाकी जिंदगी अहिंसा और नेकी की राह पर चलते हुए कट जाए तो बेहतर होगा.

लेकिन ऐसा हो नहीं सका. क्योंकि वह जितना टालता, समस्या उतनी ही उलझती रही. एक बार तो उस ने उस की ओर से एकदम से निगाहें हटा लीं, परंतु उसे यह भी अच्छा नहीं लगा. मजबूर हो कर यह कठोर कदम उठाना पड़ा. वह मानता है कि इस सब का गुनहगार वही है. लेकिन उस के द्वारा किए गए इस अपराध का एक अच्छा परिणाम यह निकला कि समाज को कलंकित करने वाला सदा के लिए मिट गया. उस का मानना है कि उस ने अपराध नहीं, समाज पर एहसान किया है.

उसे वह पहली मुलाकात आज भी अच्छी तरह याद है. वह लखनऊ के हजरतगंज में एक कंप्यूटर इंस्टीट्यूट में प्रशिक्षक था. वह इंस्टीट्यूट अखिलेश अग्रवाल का था. अग्रवाल शिक्षा विभाग में नौकरी करते थे. वह कभीकभार ही वहां आते थे. इंस्टीट्यूट की देखभाल की पूरी जिम्मेदारी राजेंद्र तिवारी पर ही थी.

उस दिन क्लास के बाद राजेंद्र औफिस में बैठा आराम कर रहा था, तभी एक लड़की उस के औफिस में आई. बहुत खूबसूरत थी वह. गजब का आकर्षण था उस में. वह अपलक उस की ओर देखता रहा.

‘‘मैं कंप्यूटर सीखना चाहती हूं.’’ उस के स्वर में मिठास थी.

राजेंद्र हड़बड़ा कर बोला, ‘‘हां..हां, बैठिए.’’

‘‘कितने दिनों में मैं कंप्यूटर सीख जाऊंगी.’’ सामने की कुरसी पर बैठते हुए उस ने पूछा.

‘‘यह तो सीखने वाले पर डिपेंड करता है. वैसे थोड़ी सी प्रैक्टिस से 6 महीने में अच्छाखासा सीख जाएंगी.’’

‘‘ठीक है, मुझे एडमीशन के लिए फार्म दे दीजिए.’’

‘‘आप का नाम?’’ मेज की दराज से फार्म निकाल कर उस की ओर बढ़ाते हुए राजेंद्र ने पूछा.

‘‘अमिता सक्सेना. मैं सर्विस करती हूं, इसलिए शाम को ही आ सकूंगी.’’

‘‘कोई बात नहीं, आप फार्म भर दीजिए.’’

उस ने सरसरी निगाह फार्म पर डाली. फिर कुछ सोचते हुए बोली, ‘‘मैं इसे भर कर बाद में ले आऊं तो कोई हर्ज है?’’

‘‘नहीं, कोई हर्ज नहीं है. फार्म के साथ आप फीस जमा कर दीजिएगा. उसी दिन आप का एडमीशन हो जाएगा.’’

‘‘ठीक है, मैं जब भी आऊंगी, इसे भर कर ले आऊंगी.’’ इतना कह कर अमिता चली गई.

अमिता राजेंद्र को अच्छी लगी थी. ऐसा नहीं कि वह कोई आशिकमिजाज था. लड़कियों से खासतौर पर वह दूर ही रहता था. पर अमिता में न जाने क्या खासियत थी कि वह काफी देर तक उस के खयालों में खोया रहा. उस ने जैसे उस के ऊपर कोई जादू कर दिया था. वह दोबारा उस की एक झलक पाने के लिए बेचैन हो उठा था. उस के बारे में उस के मन में इस बात का भी संदेह था कि कहीं वह विवाहित तो नहीं. वह अगले दिन अमिता का इंतजार करता रहा कि शायद वह आए, लेकिन निराशा ही हाथ लगी.

3 दिनों बाद अमिता आई. फार्म उस ने राजेंद्र को दे दिया. फार्म में उस के नाम के पहले ‘कुमारी’ शब्द देख कर उसे बड़ा सुकून मिला. फार्म पर सरसरी नजर डाल कर उस ने पूछा, ‘‘आप कहां नौकरी करती हैं?’’

‘‘स्टेशन रोड पर एक बिल्डर के औफिस में. यह इंस्टीट्यूट आप का है?’’

वह बीच में ही बोल उठा, ‘‘मुझे राजेंद्र तिवारी कहते हैं. मैं यहां प्रशिक्षक हूं. यह इंस्टीट्यूट अखिलेश अग्रवाल का है. लेकिन देखभाल मैं ही करता हूं. कभी कोई चीज समझ में न आए तो बिना झिझक पूछ लेना, शरमाना नहीं.’’

‘‘जी, वैसे मैं कल से जौइन करूंगी.’’ कह कर अमिता मुसकराई और कुरसी से उठ खड़ी हुई.

उस ने अगले दिन से जौइन कर लिया. कंप्यूटर सिखाते समय राजेंद्र की नजरें उसी पर टिकी रहतीं. अमिता ने उस का कहा माना था, मतलब उसे जो समझ में न आता, झट पूछ लेती. राजेंद्र भी पूरे मनोयोग से उसे कंप्यूटर सिखा रहा था.

कोई एक सप्ताह बाद एक दिन क्लास समाप्त होने पर अमिता औफिस में आई, ‘‘मुझे आप से कुछ पूछना है?’’

‘‘पूछो, क्या पूछना है?’’

उस ने कुछ सवाल पूछे. राजेंद्र ने उत्तर समझा दिए. बाद में व्यंग्य करते हुए उस ने कहा, ‘‘लगता है, मेरा बताया तुम्हारी समझ में नहीं आता.’’

‘‘नहीं, आप बतातेसिखाते तो बहुत अच्छा हैं, पर मेरी ही समझ में देर से आता है.’’ चेहरे पर मासूमियत लाते हुए वह बोली.

‘‘हां, बेवकूफों के साथ यही होता है.’’

राजेंद्र के इस मजाक पर उस ने हंसते हुए जवाब दिया, ‘‘चलिए, आप ने पहचान तो लिया. गुरु को अपना ही गुण शिष्य में दिखाई पड़ता है.’’

कुछ देर तक दोनों यूं ही हंसीमजाक करते रहे. बातोंबातों में अमिता बोली, ‘‘किसी दिन मेरे घर चाय पर आइए. मेरा घर पता है आप को?’’

उस ने राजेंद्र को बताया कि अमीनाबाद में वह अपने चाचा के साथ रहती है. उस के मातापिता लखनऊ में ही तालकटोरा थानाक्षेत्र स्थित राजाजीपुरम कालोनी में रहते हैं. राजेंद्र भी राजाजीपुरम में ही रहता था. यह बात उस ने अमिता को बताई तो उस ने पूछा, ‘‘आप किस ब्लौक में रहते हैं?’’

‘‘ई ब्लौक में.’’

‘‘अरे, मैं भी ई ब्लौक में रहती हूं.’’

‘‘तुम अब वहां क्यों नहीं रहती?’’

वह टालते हुए बोली, ‘‘ऐसे ही, अच्छा अब मैं चलूंगी, काफी देर हो गई है.’’

इस बातचीत के बाद दोनों काफी घुलमिल गए थे. इस बीच एक बार राजेंद्र उस के घर भी हो आया. उस के चाचा हंसमुख और मिलनसार लगे. उस ने लौटते समय अमिता के चाचा को अपने घर आने के लिए आमंत्रित किया. उस का अनुमान था कि उन के साथ अमिता भी आएगी. पर न तो चाचा आए और न अमिता. अचानक एक दिन राजेंद्र अमिता के औफिस जा पहुचा. ज्यादा बड़ा औफिस नहीं था. फिर भी 15-20 लोग काम करते थे. उसे देख कर अमिता मुसकरा दी. वह झेंप सा गया. उस समय उस की ड्यूटी समाप्त होने वाली थी. उसे बैठने के लिए कह कर वह एक केबिन में गई. शायद वह उस के बौस की केबिन थी, 2 मिनट बाद ही बाहर आ कर बोली, ‘‘आइए, चलें.’’

दोनों एक रेस्तरां में जा पहुंचे. कौफी पीते हुए उस ने राजेंद्र को छेड़ा, ‘‘आज इधर का रास्ता कैसे भूल गए?’’

‘‘तुम से मिलने का मन था, चला आया.’’

राजेंद्र की इस बात पर वह गुमसुम हो गई. उसे लगा, जैसे उस ने कुछ गलत कह दिया हो. झट सफाई दी, ‘‘मुझे गलत मत समझो.’’

‘‘नहीं, यह बात नहीं है. आज पहली बार मुझ से किसी ने इतने अपनत्व से बात की है, वरना सब मुझे काट खाने दौड़ते हैं. मातापिता से भी मुझे प्यार नहीं मिला. घर में हर एक ने मुझे दुत्कारा. मजबूरी में मैं चाचा के यहां रहने लगी. वहां सब मुझे ऊपर से तो प्यार दिखाते हैं, लेकिन अंदर ही अंदर जलते हैं. एक भी महीने अगर पूरी तनख्वाह उन्हें न दूं तो मुझ पर पहाड़ टूट पड़ता है. समझ में नहीं आता, मैं क्या करूं.’’ कहतेकहते अमिता की आंखें सजल हो गईं.

उस समय राजेंद्र को ऐसा लगा कि अमिता दुनिया में बिलकुल अकेली है, बेसहारा है. शायद वह अपने अंदर दुख ही दुख समेटे है. वह अपने को उस का सब से बड़ा हमदर्द समझ कर बोल पड़ा, ‘‘इस में इतना परेशान होने की क्या बात है? मैं तो हूं, सब ठीक हो जाएगा.’’

राजेंद्र की इस सहानुभूति ने अमिता को आत्मबल दिया. उस के काफी समझानेबुझाने पर वह सामान्य हो गई. इस के बाद दोनों काफी करीब आते गए. दोनों ने एकदूसरे के मोबाइल नंबर ले लिए. मुलाकातों का सिलसिला तेजी से चल निकला. रोज ही मिलना, बातें करना, साथ घूमना जैसे जरूरी हो गया. अमिता की बातों से राजेंद्र को लगता कि जैसे वह उस के बिना रह नहीं पाएगी. वह भी उस का जीवन सुखमय बनाना चाहता था. इसीलिए उस ने उस का हाथ थामने का निर्णय ले लिया. जबकि राजेंद्र उस से 4 साल छोटा था. लेकिन उस ने इस की भी परवाह नहीं की. उसे डर था कि उस के कदम पीछे खींच लेने से एक इंसान की जिंदगी चली जाएगी और उस का जिम्मेदार वह होगा.

राजेंद्र के पिता शिवप्रसाद तिवारी रायबरेली की डलमऊ तहसील स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में हेड क्लर्क थे. रायबरेली में ही उस का पैतृक घर था. 3 भाइयों और एक बहन में वह दूसरे नंबर पर था. सब से बड़े भाई देवेंद्र कुमार तिवारी घर पर ही खेतीबाड़ी का काम देखते थे. उस से छोटा नरेंद्र और बहन थी. दोनों पढ़ रहे थे. राजेंद्र के इस निर्णय की जानकारी उस के पिता को होगी तो उन का क्या रुख होगा, यह उसे अच्छी तरह पता था. एक तो प्रेम विवाह, दूसरा अपने से बड़ी उम्र की लड़की से, तीसरा विजातीय. उस के निर्णय का पता चलते ही उन्होंने उस से संबंध तोड़ लिए. उस ने उन्हें समझाने का प्रयास किया, पर उन्होंने उस की एक न सुनी.

घर वालों से बगावत कर के राजेंद्र ने अमिता से प्रेम विवाह कर लिया. इस विवाह में दोनों के ही परिवारों के लोग शामिल नहीं हुए. शादी के बाद वह अमिता को राजाजीपुरम स्थित अपने मकान में ले आया. वैवाहिक जीवन हंसीखुशी बीतने लगा. इंस्टीट्यूट में नौकरी करने के साथसाथ राजेंद्र किसी अच्छी नौकरी की तलाश में था. शादी के बाद उस ने इस ओर खास ध्यान देना शुरू कर दिया. अमिता नियमित रूप से अपनी नौकरी पर जा रही थी.

एक दिन राजेंद्र अमिता के औफिस पहुंचा तो उस के बौस दिनेश मेहरा कहीं जाने की तैयारी में थे. अमिता ने राजेंद्र का परिचय उन से कराया तो वह तपाक से बोले, ‘‘अरे तुम राजेंद्र हो, कहो कैसी कट रही है?’’

‘‘सब बढि़या चल रहा है.’’ राजेंद्र ने जवाब दिया.

‘‘कभी कोई काम हो तो बताना.’’ कहते हुए उन्होंने राजेंद्र के कंधे पर हाथ रखा और आगे बढ़ गए. मेहराजी पहली मुलाकात में राजेंद्र को काफी भले आदमी नजर आए. उस समय उसे क्या पता था कि ऊपर से सज्जन लगने वाले यह शख्स उस की जिंदगी में जहर घोल कर रख देंगे. अमिता ने एक दिन उसे बताया कि मेहराजी बड़ी दिलचस्पी से हमारे घर की बातें पूछा करते हैं. यह बात उसे बड़ी अजीब लगी कि आखिर उन का उस के घर से क्या मतलब. बहरहाल उस ने उस समय इस बात पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया.

धीरेधीरे छोटीछोटी बातों पर अमिता राजेंद्र से झगड़ने लगी. उस की सही बात को भी गलत बताती. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर अमिता के व्यवहार में अचानक यह बदलाव क्यों आ गया. एक रात जब उस ने उस के व्यवहार में आए बदलाव के बारे में पूछा तो उस से मिली जानकारी से वह दंग रह गया. अमिता ने बताया कि मेहराजी अकसर उस के घर के बारे में राय दिया करते थे कि यह काम ऐसे होना चाहिए, फलां काम नहीं करना चाहिए. मेहराजी अमिता को जिस तरह की सलाह देते थे, उस के हिसाब से वह बिलकुल बेतुकी होती थीं. चूंकि अमिता पूरी तरह उन की सलाह पर चल रही थी, इसीलिए उन दोनों में मनमुटाव हो रहा था.

उस की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर यह कौन सी राजनीति है? आखिर मेहराजी उस के परिवार में कलह पैदा करने पर क्यों तुले हैं? राजेंद्र ने इस ओर गंभीरता से ध्यान शुरू किया. उसी बीच उसे पता चला कि उस की शादी के पहले से ही मेहराजी के अमिता से काफी आत्मीय संबंध थे. दरअसल शादी से पहले जब अमिता अपनी पारिवारिक स्थिति से परेशान थी तो मेहराजी उस के साथ सहानुभूति जता कर उस के हमदर्द बन गए थे. लेकिन शादी के बाद अमिता की स्थिति बदल गई थी. शायद यही कारण था कि मेहराजी ने कूटनीति अपना कर उस के वैवाहिक जीवन में फूट डालने की कोशिश शुरू कर दी थी, ताकि वे फिर अमिता के हितैषी बन सकें.

सीधे स्वभाव की अमिता को मेहराजी ने अपने व्यवहार से काफी प्रभावित कर रखा था. जबतब काम के बहाने वह उसे साथ ले जाते. घुमातेफिराते, ऊंचेऊंचे ख्वाब दिखाते, कीमती सामान खरीद कर देते. राजेंद्र ने अमिता को समझाने का भरसक प्रयास किया. पर उसे लगा कि वह मेहराजी से जलता है, इसलिए ऐसी बातें कर रहा है. यही वजह थी कि उस के समझानेबुझाने का उस पर कोई असर नहीं हुआ. मेहराजी से वह इतना अधिक प्रभावित थी कि उन के आगे उस की हर बात महत्त्वहीन थी. अब उसे विश्वास हो गया कि अमिता के सीधे और सरल स्वभाव का मेहरा नाजायज फायदा उठा रहा है.

राजेंद्र ने अमिता को बहुत समझाया, मेहराजी के साथ घूमनेफिरने से मना किया, उन की मक्कारी के बारे में बताया. एक बार तो अमिता को उस की बातें समझ में आ गईं. उस ने वादा किया कि अब वह कभी मेहराजी से औफिस के काम के अलावा कोई बात नहीं करेगी. कुछ दिनों तक तो सब ठीकठाक चलता रहा, लेकिन जल्दी ही मेहराजी ने उसे फिर बहकाना शुरू कर दिया. इस बार उन्होंने अमिता को स्वतंत्रता का पाठ पढ़ा दिया. अब जब भी राजेंद्र उसे समझाता तो जवाब मिलता, ‘‘मैं स्वतंत्र हूं, बंधुआ नहीं.’’

अजीब थी उस की स्वतंत्रता और मेहराजी का स्वतंत्रता पाठ. राजेंद्र के सामने ही उस का घर उजड़ रहा था और वह असहाय था. लेकिन वह कठोर कदम उठा कर मेहराजी को कोई आसान मौका नहीं देना चाहता था. वह नहीं चाहता था कि उस का घर बिखरे. राजेंद्र ने अमिता को समझाया कि ये पैसे वाले लोग उन की कमजोरी का फायदा उठाते हैं. पैसे के बल पर वे उन्हें खरीदने तथा गुलाम बनाने की कोशिश करते हैं. उन का हित इसी में है कि मेहनत से जो कुछ कमाएं, उसी में गुजारा करें. दूसरों के पैसों के पीछे न भागें.

अमिता ने महसूस किया कि राजेंद्र की बात सही है. इसीलिए उस ने फिर वादा किया कि अब वह मेहराजी की बातों पर ध्यान नहीं देगी. लेकिन अगले ही दिन जब वह औफिस से लौटी तो मेहराजी ने उस के सारे उपदेश गलत सिद्ध कर दिए. उसी शाम मेहराजी उस के घर आ धमके. उन्होंने राजेंद्र को चेतावनी दी, ‘‘अमिता तुम से जो कुछ कहे, वह तुम्हें मानना होगा. अगर ऐसा नहीं किया तो अंजाम ठीक नहीं होगा.’’

यह सुन कर राजेंद्र सन्न रह गया. शांत और विनम्र भाव से उस ने जवाब दिया, ‘‘ठीक है, जो आप चाहते हैं, वही होगा. साथ ही मैं कोशिश करूंगा कि जितनी जल्दी हो, अमिता की जिंदगी से दूर हो जाऊं.’’

राजेंद्र मेहराजी के सामने इसलिए विनम्र हो गया था कि शायद उस के दुख को समझ कर उन्हें सद्बुद्धि आ जाए. पर हुआ इस के विपरीत. मेहराजी ने अपनी जीत पर प्रसन्न हो कर राजेंद्र के सामने ही उस की पत्नी को ले कर घूमने चले गए. उन के जाने के बाद राजेंद्र आंसू बहाता रहा. सोचता रहा कि क्या दुनिया में कमजोर लोगों के साथ ऐसा ही होता है? लौटने पर अमिता को जब उस ने समझाया तो वह बोली, ‘‘मेहराजी तो मजाक कर रहे थे, आप बुरा मान गए.’’

उस के साथ मजाक? आखिर क्या रिश्ता है मेहराजी से उस का, जो वह उस से मजाक कर रहे थे? उस की समझ में नहीं आ रहा था. इसलिए चुप रह गया. इस गंभीर समसया के समाधान का वह रास्ता ढूंढने लगा. काफी माथापच्ची के बाद भी उसे कोई उपाय नहीं सूझा. हां, इस बीच मेहराजी और अमिता का मिलनाजुलना और भी आसान हो गया. हुआ यह कि गरमियों में राजेंद्र के मकान मालिक सपरिवार घूमने चले गए. इस बीच अमिता ने 15 दिनों की छुट्टी ले ली. राजेंद्र के नौकरी पर जाने के बाद घर में केवल अमिता ही रह जाती थी. मेहराजी उस की अनुपस्थिति में घर आ जाते. दोनों घंटों बैठ कर गपशप करते या फिर घूमने चले जाते.

राजेंद्र को इस बात का आभास तब हुआ, जब घर लौटने पर कमरे में मेहराजी का कोई न कोई सामान पड़ा मिलता. बरतन जूठे मिलते. आखिर एक दिन उस ने पूछ ही लिया, ‘‘क्या बात है, आज चाय बहुत बनी है?’’

‘‘मेहराजी आए थे.’’ अमिता ने बड़े तीखे स्वर में कहा. राजेंद्र चुप रह गया.

राजेंद्र ने उसे एक बार फिर समझाने की कोशिश की, पर असफल रहा. इसी बीच उस के इंस्टीट्यूट का समय भी बदल गया. जिस दिन समय बदला था, उस दिन जल्दी छुट्टी हो गई. वह घर आ गया. वहां बाउंड्री वाले मेनगेट पर अंदर से ताला बंद था. अंदर के दरवाजे भी बंद थे. ग्रिल वाला गेट फांद कर वह खिड़की के पास पहुंचा. एक कब्जा टूटा होने के कारण खिड़की ठीक से बंद नहीं होती थी. चुपके से उस ने अंदर झांका तो अमिता और मेहरा को आपत्तिजनक अवस्था में देख कर उस के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. वह तो सिर्फ यही समझता था कि दोनों के बीच मामला केवल घूमनेफिरने तक ही सीमित था.

उस समय राजेंद्र की समझ में नहीं आया कि वह क्या करे. एक बार उस के मन में आया कि पड़ोसियों को बुला कर मेहराजी को मजा चखा दे. फिर यह सोच कर चुप रह गया कि इस में बदनामी उसी की होगी. गेट फांद कर वह फिर बाहर आ गया. कुछ देर इधरउधर चहलकदमी कर सोचता रहा, लेकिन कुछ समझ में नहीं आया. फिर कुछ देर बाद उस ने जोर से गेट भड़भड़ाया. अमिता बाहर निगली. गेट पर उसे देख कर चौंकी. उस ने ग्रिल वाले मेनगेट का ताला खोला. वह अंदर पहुंचा. सामने मेहराजी बैठे थे. उन्हें यह जाहिर नहीं होने दिया कि उस ने सब कुछ देख लिया था. वह बनावटी हंसी हंसता रहा. कुछ देर बाद मेहराजी चले गए.

राजेंद्र ने इस बारे में अमिता से भी कुछ नहीं कहा. लेकिन इधरउधर की बात कर उसे एक बार फिर समझाने की कोशिश की, पर कोई नतीजा नहीं निकला. वह बराबर यही कहती रही, ‘‘मेहराजी बहुत अच्छे आदमी हैं. तुम नाहक उन से जलते हो. वह हमारी हर तरह से मदद कर रहे हैं. उन का एहसान मैं जिंदगी भर नहीं भूल सकती.’’

उन्हीं दिनों अमिता ने अपने मातापिता के घर भी आनाजाना शुरू कर दिया. उस के मातापिता पास में ही रहते थे. अब वह सुबह बहुत जल्दी औफिस जाने के लिए निकलती और रात देर से घर लौटती. राजेंद्र फोन कर के पूछ भी नहीं सकता था कि वह कहां है और कब तक आएगी. जल्दी जाने और  देर से लौटने का कारण पूछने पर राजेंद्र को धमकी मिलती, ‘‘मेरी जो इच्छा होगी करूंगी, तुम मुझे रोक नहीं सकते.’’

राजेंद्र की विनम्रता और सीधेपन का नाजायज फायदा उठाया जाता रहा. वह उसे कमजोर और डरपोक समझ रही थी. वह नहीं चाहता था कि उस की इज्जत चौराहे पर नीलाम हो, लोग उस पर हंसें. लेकिन अब उसे इस बात का पश्चाताप हो रहा था कि उस ने मातापिता की बात नहीं मानी. उन के न चाहते हुए भी प्रेमविवाह क्यों कर लिया? अब महसूस हो रहा था कि मांबाप हमेशा अपनी संतान के हित की सोचते हैं. अपने अनुभवों के आधार पर ही संतान को उचित राय देते हैं. मांबाप की याद आते ही वह दुखी हो उठता. प्रेम के नाम से उसे नफरत होने लगी थी.

दूसरी ओर मेहराजी ने अमिता को यह आश्वासन दे रखा था कि अगर पति उसे छोड़ देगा तो वह उसे अपनी पत्नी बना लेंगे. मेहराजी की संपत्ति की वह मालकिन हो जाएगी. शायद यही वजह थी कि जब भी राजेंद्र उसे समझाने की कोशिश करता, वह बेबाक कह देती, ‘‘ठीक है, मैं मेहराजी के साथ जा रही हूं, रात देर से लौटूंगी.’’

मेहरा और अमिता ने राजेंद्र के सामने ऐसी स्थिति पैदा कर दी थी कि एक ही रास्ता शेष था कि वह उन के बीच से हट जाए. मेहरा के औफिस के तमाम कर्मचारी अमिता और बौस के रिश्ते को जान गए थे. इस से राजेंद्र को खुद पर शरम महसूस हो रही थी. वह अपने प्रेम और धोखेबाजी के बारे में सोचसोच कर परेशान हो रहा था. आखिर क्या उसे सारी जिंदगी यही देखना पड़ेगा. उस दिन तो वह जैसे आसमान से गिर पड़ा, जब अमिता को अपने सगे भाई अश्विनी के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. उस ने भाईबहन के पवित्र रिश्ते पर बदनुमा दाग लगा दिया था. अब राजेंद्र समझ गया कि असली दोषी कौन है. वह अभी तक सारा दोष मेहराजी को ही दे रहा था, जबकि अपना ही सिक्का खोटा था. इस घटना के बाद वह पूरी तरह टूट गया.

आखिर कोई कब तक अपने स्वाभिमान को तिलांजलि देता रहेगा? कितना झुकेगा? कितना दबेगा? राजेंद्र ने काफी प्रयास किया कि बात उसी तक सीमित रहे, आगे न बढ़े. पर उस का चुप रहना उस की कमजोरी माना जा रहा था. वह इस विचार का था कि वह प्यार सच्चा नहीं होता, जिस में प्रेमी को क्षमा न किया जा सके. इसी कारण वह अमिता को समझाबुझा कर सही रास्ते पर लाने का असफल प्रयास करता रहा. लेकिन उस के मनमस्तिष्क को तो मेहराजी ने विकृत कर दिया था. ‘वाह रे मेहराजी, तुम ने अजीब राजनीति का खेल खेला. तुम समझते होगे कि राजेंद्र घुटघुट कर मर जाएगा या फिर जहर खा लेगा. फिर तुम मनचाहा राज करोगे.’ लेकिन राजेंद्र ऐसा करने वालों में नहीं था. शायद वह कोई कठोर कदम उठाने से रुक जाता था. उसे विश्वास था कि कुदरत उन्हें उन के कर्मों का दंड अवश्य देगा.

लेकिन हर चीज की एक सीमा होती है. समुद्र और सब्र की भी सीमा होती है. दोनों अगर अपनी सीमा तोड़ दें तो अनर्थ हो जाता है. किसी चीज की अति करने का अर्थ होता है विनाश. वे दोनों अति की ओर अग्रसर हो रहे थे. राजेंद्र शांत रह कर बुरे दिन टलने का इंतजार करता रहा. वह अपनी पत्नी को अब न तो कुछ समझाता था और न ही उस की किसी हरकत का विरोध करता था. उसे बिलकुल स्वच्छंद छोड़ दिया था, इसलिए कि शायद कभी ठोकर खा कर वह अपने कर्मों पर शर्मिंदगी महसूस करे. लेकिन वे घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही थीं. एक दिन अमिता ने राजेंद्र से कहा, ‘‘आज मैं अपनी मां के साथ बाजार जाऊंगी.’’

राजेंद्र ने उस की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया तो उस ने अपने कुछ कपड़े लिए और घर से निकल गई. उसे इस तरह कपड़े ले जाते देख उसे शक हुआ. उस के जाने के थोड़ी देर बाद वह घर से निकला और अपनी ससुराल जा पहुंचा. वहां मजदूर घर की पुताई कर रहे थे. अमिता की मम्मी और पापा बाजार गए थे. घर में केवल अमिता का भाई अश्विनी था. वह सीधे उस के कमरे की ओर बढ़ा. कमरे के दरवाजे को हाथ से धकेलने की कोशिश की, लेकिन वह अंदर से बंद था. उस ने अपना शक मिटाने के लिए खिड़की से अंदर झांका. वहां का दृश्य देख कर वह कांप उठा. वह चुपचाप वापस लौट आया.

राजेंद्र ने तय कर लिया कि अब वह यह घर छोड़ कर चला जाएगा. उस का मन वैराग्य की ओर मुड़ गया. लेकिन उस के संन्यासी हो जाने से उस के दुश्मनों का मतलब हल हो जाएगा. यह सोच कर उस ने तय किया कि दुनिया से पूछ लिया जाए कि आखिर कौन गलत है, कौन सही? जब उस का जीवन बरबाद हो ही गया है तो फिर सच उजागर करने में ज्यादा से ज्यादा उस की जान ही तो जाएगी. वैसे भी कैसा डर? इस जिंदगी से तो मौत ही अच्छी है. वह जानता था कि अन्याय करने वाले से ज्यादा दोषी अन्याय सहने वाला होता है. पर वह मजबूर था. किसी को दंड नहीं दे सकता था. क्योंकि किसी को दंड देने का कोई अधिकार उस के पास नहीं था. यही सोच कर उस का संन्यास ले लेने का निर्णय पक्का होता गया.

लेकिन शायद ऐसा नहीं होना था. 21 जनवरी को रात साढ़े 8 बजे अमिता औफिस से घर लौटी. उस के इतनी देर से आने के बावजूद राजेंद्र ने कुछ नहीं कहा. उस ने कपड़े बदले. वह विचारों में खोया था. अचानक उस के दिमाग में आया कि क्यों न घर छोड़ने से पूर्व अमिता को आखिरी बार समझाने की कोशिश करे. राजेंद्र ने उस से बात छेड़ी ही थी कि वह बिफर उठी. उसे दुत्कारने लगी. इस के बावजूद वह उसे समझाने की कोशिश करता रहा. उस के समझाने का उस पर कोई असर नहीं हुआ. उस ने उसे खरीखोटी सुनानी शुरू कर दी. वह भी थोड़ा उत्तेजित हुआ. दोनों में झगड़ा होने लगा. उस ने गुस्से में कहा, ‘‘तुम मेरे जीवन से निकल जाओ. तुम्हारे लिए अब मेरी जिंदगी में कोई जगह नहीं है. न ही अब मैं तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं. अब मैं मेहराजी की पत्नी बन कर रहूंगी.’’

राजेंद्र ने उसे अपने प्यार की दुहाई दी. परंतु वह जानबूझ कर उस की खिल्ली उड़ा रही थी. वह अपना होश खो बैठा. मेज पर पड़ी कैंची उस के हाथ में आ गई. उस ने कैंची का भरपूर वार उस के पेट पर कर दिया. वह चीख उठी. परंतु उस पर तो जैसे शैतान सवार हो गया था. वह कैंची से उस के शरीर को गोदता चला गया. वह जमीन पर गिर पड़ी. कुछ देर तड़पने के बाद उस ने दम तोड़ दिया. अमिता की मृत देह देख कर राजेंद्र के सिर पर सवार शैतान उतर गया. सामने लाश देख कर वह कांप उठा. अब क्या होगा? उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. उस ने क्या सोचा था और क्या कर बैठा. कहां सब कुछ त्याग कर वह संन्यासी बनने चला था, कहां अब खूनी बन गया.

स्वयं को संतुलित कर उस ने आपबीती लिखनी शुरू की. उस के साथ जो कुछ हुआ था, सब लिख डाला. यह घटना स्पष्ट रूप से दिनेश मेहरा तथा अमिता के भाई के कारण ही हुई थी. राजेंद्र ने सब कुछ होशोहवास में लिखा था. 28 पृष्ठों के उस पत्र की कौपियां राष्ट्रपति, भारत सरकार, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री तथा गृहमंत्री और लखनऊ के जिलाधिकारी को आवश्यक काररवाई हेतु भेज दिया. राजेंद्र कुमार तिवारी द्वारा लिखे गए इस पत्र को पढ़ कर थाना तालकटोरा के थानाप्रभारी रामकुमार यादव की आंखें फटी रह गईं. हत्यारे ने न केवल अपना अपराध स्वीकार किया था, बल्कि हत्या के कारण को भी स्पष्ट लिख दिया था. हत्या करने के बाद ही यह पत्र लिखा गया था, क्योंकि पत्र के अंत में राजेंद्र कुमार ने अपने हस्ताक्षर करने के साथ खून की छींटें भी डाली थीं.

थानाप्रभारी को यह पत्र अमिता की लाश के समीप एक मेज पर मिला था, जिसे वह उसी समय पूरा पढ़ गए थे. मेज पर ही खून से सनी कैंची भी रखी थी. कमरे की दीवारों पर भी खून के छींटे पड़े थे. मृत अमिता के शरीर पर सलवारकुर्ता था. राजेंद्र कुमार तिवारी की मकान मालकिन श्रीमती बाधवा भी उसी मकान के एक हिस्से में रहती थीं. पूछताछ के दौरान श्रीमती बाधवा ने पुलिस को बताया कि बीती रात उन्होंने राजेंद्र तथा उस की पत्नी के बीच हुए झगड़े की आवाजें सुनी थीं. घटना वाली सुबह जब वह बाहर निकलीं तो राजेंद्र के घर का दरवाजा बंद था. उन्हें आश्चर्य हुआ, क्योंकि उस समय तक दोनों लौन में बैठ कर अखबार पढ़ते हुए दिखाई देते थे.

उन्होंने दरवाजा खटखटाया. राजेंद्र को आवाज दी, पर अंदर से कोई जवाब नहीं मिला. वह सशंकित हो उठीं. मकान के पिछले हिस्से की तरफ जाने पर उन्होंने बाथरूम के दरवाजे पर ताला बंद पाया. श्रीमती बाधवा ने यह बात अमिता के पिता को बता देना उचित समझा. उन का फोन नंबर उन के पास था. उन्होंने फोन कर के उन्हें पूरी बात बता दी. एकदो पड़ोसियों को साथ ले कर अमिता के पापा राजेंद्र के मकान पर पहुंचे. उन लोगों ने भी दरवाजा खटखटाया. ताला तोड़ने की कोशिश की, पर सफल न हो सके. राजेंद्र को फोन किया. उस का फोन बंद था. किसी अनिष्ट की आशंका से उन्होंने थाना तालकटोरा पुलिस को फोन किया. थानाप्रभारी रामकुमार यादव पुलिस दल के साथ मौके पर पहुंचे. ताला तोड़ कर जब उन्होंने अंदर प्रवेश किया तो वहां अमिता का शव पड़ा था.

रामकुमार यादव इस घटना से काफी परेशान हो उठे थे. सुबहसुबह उन के थानाक्षेत्र में 2 अन्य घटनाएं भी हो चुकी थीं. एक अन्य युवती की हत्या का मामला था और तालकटोरा थानाक्षेत्र के डी-ब्लौक स्थित रेलवे लाइन पर एक घायल युवक मिला था. उस युवक को कुछ लोग बेहोशी की हालत में उठा कर थाने ले आए थे. उसे उपचार हेतु अस्पताल भेज दिया गया था. युवक की शिनाख्त नहीं हो सकी थी. थानाप्रभारी ने संभावित स्थानों पर खोज की, परंतु राजेंद्र नहीं मिला. उस का फोन बंद ही था, इसलिए संपर्क नहीं हो सका. उस की तलाश में पुलिस टीम रायबरेली गई. वह अपने पिता के यहां भी नहीं मिला. पुलिस उस के पिता शिवप्रसाद तिवारी को अपने साथ लखनऊ ले आई. उन से पूछताछ के आधार पर पुलिस ने एक बार फिर राजेंद्र की तलाश की, पर उस का पता नहीं चला.

अचानक थानाप्रभारी का माथा ठनका कि कहीं रेलवे लाइन पर घायल मिला युवक ही राजेंद्र न हो. इस के बाद उन्होंने शिवप्रसाद तिवारी को साथ लिया और बलरामपुर अस्पताल जा पहुंचे. वह युवक अभी तक बेहोश था. शिवप्रसाद तिवारी उसे देखते ही रो पड़े. वह राजेंद्र ही था. उस की निगरानी के लिए 2 सिपाहियों को वहां तैनात कर दिया गया. तीन दिनों बाद 25 जनवरी को राजेंद्र को होश आ गया. पुलिस ने उस से पूछताछ की तो उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस का कहना था, ‘‘मैं ने जो कुछ किया, उस का मुझे कोई दुख नहीं है. मलाल तो इस बात का है कि मेरा परिवार तबाह करने वालों को कानून ने कोई सजा नहीं दी. अब कुदरत ही उन के कर्मों का फल उन्हें देगा, ऐसा मेरा विश्वास है.’’

लेकिन सवाल उठता है कि क्या अमिता की हत्या के बाद राजेंद्र द्वारा लिखे गए पत्र में लगाए गए आरोपों की कोई सजा कथित दोषियों को मिल सकती है? क्या ऐसा नहीं हो सकता कि कुछ लोगों को बदनाम करने के लिए हत्या के बाद लिखे गए पत्र में राजेंद्र ने उन का नाम लिखा हो? शायद यही वजह है कि दिनेश मेहरा (55 वर्ष) का कहना है, ‘‘मेरा और अमिता का रिलेशन केवल औफिशियल था. राजेंद्र ने अपने पत्र में मेरा जिक्र क्यों किया, यह मुझे नहीं पता. हो सकता है, उस ने मुझे बदनाम करने के लिए ऐसा किया हो. जहां तक सवाल है कि राजेंद्र ने अमिता की हत्या क्यों की तो इस का पता लगाना पुलिस का काम है, मेरा नहीं. हां, मैं यह जरूर कह सकता हूं कि अमिता बहुत ही मेहनती महिला थी. औफिस का काम भी वह पूरी ईमानदारी और लगन से करती थी. उस की मौत का मुझे दुख है.’’

दूसरी ओर अमिता के भाई अश्विनी का कहना था, ‘‘मुझे जो कुछ कहना है, पुलिस के सामने या अदालत में कहूंगा. लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि राजेंद्र न केवल सनकी, बल्कि पागल था. उस ने जो कुछ लिखा है, अपनी सनक और पागलपन की झोंक में लिखा है. हत्या के असली कारण से पुलिस का ध्यान हटाने के लिए उस ने ऊलजुलूल बातें अपने पत्र में लिखी हैं. आखिर इन बातों का कोई सुबूत तो होना चाहिए.’’

एक अहम सवाल यह भी है कि जब राजेंद्र अपना अपराध स्वीकार कर रहा है तो उसे हत्या का असली कारण छिपाने से क्या लाभ? उस ने अमिता से प्रेमविवाह किया था. दोनों साथसाथ रह रहे थे. दोनों ही सर्विस में थे. इसलिए न तो आर्थिक संकट जैसा कोई कारण था और न ही सर्विस को ले कर कोई मनमुटाव था. बहरहाल, पुलिस का कहना है कि उसे हत्या का अपराधी मिल गया है. पुलिस का काम तो हत्या के अपराधी को पकड़ने के साथ ही समाप्त हो गया है. किसी को सजा देने का काम अदालत का है. शायद इसी कारण पुलिस ने राजेंद्र द्वारा पत्र में लिखी गई बातों की वास्तविकता का पता नहीं लगाया और न ही इस संबंध में कोई छानबीन की.

थानाप्रभारी रामकुमार यादव इस बारे में कहते हैं, ‘‘राजेंद्र ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया है. उस ने अपने पत्र में किस पर क्या आरोप लगाया है, इस की जांच का काम हमारा नहीं है. हां, इतना जरूर है कि पाप का प्रायश्चित करने वाला व्यक्ति न झूठ बोल सकता है और न झूठ लिख सकता है. अदालत भले ही किसी को सजा न दे सके, लेकिन कुदरत जरूर सजा देगी.’’

कथा लिखे जाने तक राजेंद्र को अस्पताल से छुट्टी मिल गई थी. पुलिस ने उसे अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया था. पुलिस आरोपपत्र तैयार करने में जुटी थी. Short Hindi Story

—कथा सत्य घटना पर आधारित है. कथा में पात्रों एवं स्थानों के नाम बदले हुए हैं.

 

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