UP Crime: पत्नी सलीमा के चरित्र को ले कर आलमगीर के मन में ऐसा शक बैठ गया कि वह उस से उबर नहीं पा रहा था. इसी बीच एक युवती से आलमगीर की ऐसी नजदीकी बढ़ी कि उस से निकाह की खातिर वह एक खौफनाक गुनाह कर बैठा.
उत्तर प्रदेश के जिला बागपत के थाना रमाला के किरठल गांव में सूरज की किरणें फूटने के साथ ही कोहराम मच गया था. इस की वजह थी एक लोमहर्षक वारदात, जो इतनी बड़ी थी कि पूरे गांव में मातम छा गया था. दरअसल, इसी गांव में रहने वाले आलमगीर के परिवार में पत्नी सलीमा के अलावा 4 बच्चे थे. आलमगीर अपने परिवार के साथ अलग रहता था, जबकि उस के पिता दिलशेर तथा भाई और बहन वाजिदा एकसाथ अलग घर में रहते थे. उस के 2 भाई वासिद और आलम दिल्ली में रह कर खराद का काम करते थे. एक भाई वाजिद गांव में ही रह कर दूध का काम करता था.

भाईबहनों में आलमगीर सब से बड़ा था. उस की बड़ी बेटी साहिबा अपने चाचा वासिद के पास दिल्ली गई हुई थी. उस की माली हालत कोई खास नहीं थी. किसी तरह मेहनत कर के वह परिवार को पाल रहा था. आलम ही नहीं, उस के पिता और भाइयों की स्थिति भी उसी जैसी थी. आलम के बच्चे गांव के मदरसे में पढ़ने जाते थे. 9 अप्रैल, 2015 की सुबह जब वे मदरसे में पढ़ने नहीं पहुंचे तो मौलवी ने आलमगीर की बेटी करीना की सहपाठीसहेली 10 वर्षीया सना को उन्हें बुलाने के लिए भेजा. सना भागती हुई मोहल्ला मूलेजाट स्थित आलमगीर के घर पहुंची तो दरवाजा खुला हुआ था. वह आवाज लगाते हुए जितनी तेजी से अंदर दाखिल हुई, उतनी ही तेजी से चिल्लाते हुए बाहर आ गई.
आलमगीर की बहन वाजिदा उधर से गुजर रही थी, सना की आवाज सुन कर उस के कदम ठिठक गए. उस ने पूछा, ‘‘क्या हुआ बेटा?’’
डरीसहमी सना के गले से शब्द नहीं फूटे. उस ने घर की ओर इशारा कर दिया. अब तक कुछ और लोग आ चुके थे. माजरा समझने के लिए वे अंदर पहुंचे तो उन के होश उड़ गए. घर के अंदर 1-2 नहीं, 4 लाशें पड़ी थीं. दिल दहला देने वाले इस खूनी मंजर की सूचना किसी ने पुलिस को दी तो थाना रमाला के थानाप्रभारी राजेंद्र सिंह कुछ पुलिसकर्मियों के साथ मौके पर पहुंच गए. घटनास्थल के मुआयना में पुलिस ने देखा कि 35 वर्षीया सलीमा, उस की 2 बेटियां 13 वर्षीया करीना, 6 वर्षीया यासमीन और 8 वर्षीय बेटे सूफियान की हत्या किसी धारदार हथियार से की गई थी.
घर के अंदर बाहरी कमरे में तख्त पर करीना की लाश पड़ी थी जबकि अंदर के कमरे में एक चारपाई पर सलीमा, सूफियान और यासमीन की लाशें पड़ी थीं. थानाप्रभारी राजेंद्र सिंह ने हत्याकांड की खबर अपने आला अधिकारियों को दी तो एएसपी विद्यासागर मिश्र, डीएसपी (बड़ौत) सी.पी. सिंह, डीएसपी (रमाला) राहुल मिठास, थानाप्रभारी (बड़ौत) राजेश वर्मा, अपराध शाखा के प्रभारी सतीशचंद्र और एडीएम यशवर्धन श्रीवास्तव भी घटनास्थल पर आ पहुंचे. 4 हत्याओं की चर्चा मेरठ मंडल में फैल चुकी थी, इसलिए मेरठ जोन के आईजी आलोक शर्मा ओर डीआईजी रमित शर्मा भी मौके पर आ पहुंचे. आलमगीर ड्राइवर था और नजदीकी जिला मुजफ्फरनगर में प्राइवेट बस चलाता था. वह हफ्ता 10 दिन में घर आता था.
उस समय आलमगीर घर में नहीं था, इसलिए घर वालों ने फोन कर के उसे घटना की सूचना दे दी. कुछ ही घंटे में वह आ गया. पत्नी और बच्चों की मौत से उस की हालत पागलों जैसी हो गई थी. पुलिस अधिकारियों ने आपस में विचारविमर्श किया. सभी का अनुमान था कि हत्या से पहले मृतकों को खाने में कोई नशीला पदार्थ दिया गया था, जिस के बाद वे बेहोश हो गए तो उन के गले काटे गए. हत्या का तरीका एक जैसा था. सभी के गले के बीचोबीच वार किए गए थे. इस से यही लगता था कि हत्यारे के मन में मृतकों के प्रति काफी नफरत थी.
आसपड़ोस के किसी भी आदमी को हत्या के बारे में बिलकुल पता नहीं चल सका था. किसी को आतेजाते भी नहीं देखा गया था. आलम का रोरो कर बुरा हाल था. वह बारबार लाशों से लिपटे जा रहा था. हर कोई उसे दिलासा दे रहा था. पुलिस ने दिलासा दे कर उस से पूछा, ‘‘तुम्हें किसी पर शक है?’’
कुछ पल खामोश रहने के बाद उस ने शून्य में ताकते हुए कहा, ‘‘नहीं साहब.’’
‘‘तुम आखिरी बार घर कब आए थे?’’
‘‘पिछले सप्ताह 29 तारीख को आया था साहब. पता नहीं किस से मेरे बच्चों की क्या दुश्मनी थी, जो उस ने इन्हें मार दिया. अल्लाह उसे कभी माफ नहीं करेगा.’’ आलमगीर ने बिलखते हुए कहा.
‘‘सलीमा से तुम्हारी कब बात हुई थी?’’
‘‘2 दिनों पहले उस का फोन आया था. कह रही थी कि सूफियान की तबीयत खराब है. मैं ने कहा था कि उसे दवा दिला दो, मैं जल्दी ही घर आऊंगा.’’
इतना कह कर वह एक बार फिर फूटफूट कर रोने लगा. हालात और गम की वजह से उस से ज्यादा पूछताछ नहीं की जा सकती थी, इसलिए पुलिस अन्य लोगों से पूछताछ करने लगी. लोगों से पता चला कि आलम काफी व्यवहारकुशल आदमी था. गांव में उस की किसी से कोई अनबन नहीं थी. पुलिस का अनुमान था कि हत्यारा परिवार का ही कोई करीबी हो सकता है. इस की कुछ वजह भी थीं. जैसे कि घर में सब्जियों से सनी खाने की पैकिंग पौलीथिन घर के कोने में कूड़े पर पड़ी थीं. घर के आंगन में जो चूल्हा था, उस में राख नहीं थी. इस का मतलब वह पिछली रात नहीं जलाया गया था. साफ था रात का खाना बाहर से आया था.
सलीमा घर का दरवाजा अंदर से बंद कर के ही सोती रही होगी. किसी अंजान के लिए वह दरवाजा खोल नहीं सकती थी. घर में लूटपाट का भी कोई निशान नहीं था. मोबाइल भी घर में ही रखा था. इस के अलावा मृतका करीना के कमरे में एक अन्य चारपाई पर बिस्तर लगा था. संभवत: वह किसी करीबी के सोने के लिए ही लगाया गया होगा. पूरी आशंका थी कि उसी ने खाने में कोई नशीली चीज दे कर पहले सभी को बेहोश किया होगा, उस के बाद इत्मीनान से सभी की हत्या की होगी. बेहोश होने की वजह से कोई विरोध नहीं कर सका. करीना के हाथ पेट पर रखे थे, सलीमा के हाथ सीने पर थे, जबकि अन्य दोनों बच्चों के हाथ सिर के नीचे थे.
किसी अंजान के लिए जिस का मकसद मात्र कत्ल करना था, उस के लिए न दरवाजा खोला जाता, न बिस्तर लगाया जाता और न ही वह खाना बाहर से ले कर आता. ऐसे में कातिल आलमगीर का कोई रिश्तेदार या खास ही हो सकता था. लेकिन यह बात समझ से बाहर थी कि कोई इस तरह का आदमी पूरे परिवार को इस तरह क्यों खत्म करेगा? बहरहाल पुलिस ने जरूरी सामान को अपने कब्जे में ले लिया और लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. हत्याओं में इस्तेमाल किया गया हथियार बरामद नहीं किया जा सका था. इस के बाद थाने आ कर आलमगीर के पिता दिलशेर की तरफ से अज्ञात हत्यारे के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया और पुलिस जांच में जुट गई.
4 हत्याओं की इस घटना से जिले में सनसनी फैल गई थी. अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद लाशें गांव लाई गईं. जब 4-4 जनाजे एकसाथ निकले तो लोगों की आंखें नम हो गईं. बच्चे बड़े सभी दुखी थे. हर कोई कातिल को कोस रहा था. गमगीन माहौल के बीच चारों लाशों को दफना दिया गया. दुख का पहाड़ आलमगीर पर टूटा था. इस दौरान वह रोरो कर बेहोश भी हो जाता था. गांव के बुजुर्ग उसे दिलासा दे रहे थे, ‘‘सब्र रखो आलम, अल्लाह को शायद यही मंजूर था.’’
पोस्टमार्टम रिपोर्ट पुलिस को मिली तो सभी की मौत की वजह सांस की नली कटना बताया गया. मृतकों के सिर पर भी किसी भारी चीज से प्रहार किए गए थे. पुलिस ने आलमगीर और सलीमा की काल डिटेल्स निकलवाई. सलीमा के नंबर पर आलमगीर की 2 दिन पहले बात हुई थी लेकिन आलमगीर की काल डिटेल्स में एक नंबर ऐसा था, जिस पर उस की बहुत ज्यादा बातें हुई थीं. पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह नंबर गाजियाबाद की एक युवती का था. पुलिस ने गाजियाबाद जा कर उस युवती से पूछताछ की तो उस ने बताया कि आलमगीर से उस के गहरे ताल्लुकात थे. दोनों के बीच प्रेमप्रसंग था, इसलिए दोनों बातें किया करते थे.
पुलिस उस वक्त चौंकी जब आलमगीर के मोबाइल की लोकेशन सुबह के 4 बजे तक गांव में ही मिली. इस का मतलब हत्या वाली रात वह गांव में ही था, जबकि उस ने बताया था कि वह गांव नहीं आया था. पुलिस के शक की सुई उसी पर जा कर ठहर गई. पुलिस ने बिना देर किए उसे हिरासत में ले लिया और थाने ले आई. थाने में पूछताछ की जाने लगी तो वह रोने और बेहोश होने का नाटक करने लगा. पुलिस जानती थी कि यह नाटक कर रहा है इसलिए उस से सख्ती से पेश आया गया. इस के बाद उस ने चौंकाने वाला जो खुलासा किया, एकबारगी पुलिस को भी विश्वास नहीं हुआ. किसी और ने नहीं, बल्कि आलमगीर ने ही पत्नी और अपने तीनों बच्चों की हत्या की थी. अब सवाल यह था कि आलमगीर ने अपनी ही पत्नी और प्राणों से प्यारे बच्चों की हत्या क्यों की? वह इतना कू्रर कैसे बन गया? इन सारे सवालों के जवाब उस की इस कहानी में छिपे हैं.
आलमगीर का विवाह सलीमा के साथ सन 2000 में हुआ था. सलीमा झारखंड राज्य के रांची शहर के मोहल्ला बडयातू की रहने वाली थी. सलीमा के पिता नहीं थे. उस का भाई महमूद दूरसंचार विभाग में नौकरी करता था. शादी के बाद सलीमा अपने मायके बहुत कम जाती थी. उस का भाई 2-3 सालों में उस से मिलने आ जाता था. विवाह होते ही आलमगीर पिता से अलग रहने लगा था. समय के साथ सलीमा 4 बच्चों की मां बनी. आलमगीर ड्राइवर था. वह प्राइवेट बस चलाता था. वह अकसर बाहर रहता था. बाद में वह मुजफ्फरनगर रूट पर बस चलाने लगा.
परिवार बड़ा था, जिस का खर्च पूरा करने के लिए उसे दिनरात मेहनत करनी पड़ती थी. उस की इतनी कमाई नहीं थी जिस से बच्चों को अच्छी तालीम दिला सके. इसलिए बच्चे गांव के मदरसे में तालीम ले रहे थे. सलीमा हंसमुख स्वभाव की थी, हर किसी से मुसकरा कर बात करती थी. आलमगीर को उस का यह व्यवहार बहुत खलता था. यहां तक कि उसे अपने पिता से भी सलीमा का इस तरह बात करना पसंद नहीं था. उस ने सलीमा को कई बार टोका. जब उस की आदत नहीं बदली तो उसे उस पर शक होने लगा.
वह 8-10 दिनों में ही घर आ पाता था. वह जितना दूर रहता था, उतना ही सलीमा के बारे में सोचता रहता था कि पत्नी कहीं चरित्रहीन तो नहीं है. वह जितना सोचता, उस का शक उतना ही बढ़ता गया. एक दिन उस ने शराब पी कर इस बात को ले कर झगड़ा किया तो सलीमा ने अपना सिर थाम लिया, ‘‘या अल्लाह, कैसी तोहमत लगा रहे हो, कुछ तो शरम करो?’’
‘‘शरम तो तुम्हें करनी चाहिए. तुम जब से मेरी जिंदगी में आई हो, मुझे तभी से तुम्हारे ऊपर शक है.’’
नशे में आलमगीर ने न जाने क्याक्या कह डाला. इस के बाद तो यह सिलसिला सा बन गया. शक्की आदमी को कितना भी समझाओ, विश्वास दिलाओ उस का शक दूर नहीं होता. ऐसा ही आलमगीर के साथ भी था.
एक बार आलमगीर करीब 20 दिनों बाद घर आया तो सलीमा से उस का झगड़ा हो गया. इस से उसे लगा कि सलीमा ने उस से जानबूझ कर झगड़ा किया है. शायद उस का घर आना उसे अच्छा नहीं लगता. अब आए दिन ऐसी बातों पर तकरार होने लगी. सलीमा इस बात से बहुत आहत थी. फिर भी क्लेश के बीच जिंदगी और दिन बीतते रहे. एक साल पहले की बात है. आलमगीर घर आया हुआ था. एक दिन शाम को वह मोबाइल घर पर ही छोड़ कर गांव में घूमने निकल गया. तभी उस का मोबाइल बजा तो सलीमा ने फोन रिसीव कर लिया. वह कुछ कहती, उस के पहले ही दूसरी ओर से कोई लड़की नाराजगी के लहजे में कहने लगी, ‘‘आलम, 2 दिन हो गए तुम ने मुझ से कोई बात नहीं की. मेरा दिल नहीं लग रहा है.
बीवी में इतना खो गए हो कि मेरा खयाल ही नहीं आ रहा है.’’
यह सुन कर सलीमा के पैरों तले से जमीन खिसक गई. वह खामोश रही. दूसरी ओर से फिर कहा गया, ‘‘कुछ बोलते क्यों नहीं? मेरी मोहब्बत का इम्तिहान क्यों ले रहे हो?’’
सलीमा का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. वह भड़क उठी, ‘‘मैं आलमगीर की बीवी बोल रही हूं. तू कौन है, जो मेरा घर बरबाद करना चाहती है. तुझे शरम नहीं आती, बेहया…’’
उस के इतना कहते ही दूसरी ओर से फोन काट दिया गया. सलीमा गुस्से में बड़बड़ाती रही. सलीमा को बिलकुल उम्मीद नहीं थी कि जो आदमी उस पर झूठा शक करता है, वह खुद इस तरह का काम कर सकता है. वह गुस्से से भरी बैठी थी. आलम के आते ही उस ने जम कर खरीखोटी सुनाई. बीवी पर शक करने वाला आलमगीर सन्न रह गया. उस ने टालने की कोशिश की, लेकिन सलीमा ने बखेड़ा खड़ा कर दिया. इस के बाद घर में अकसर कलह रहने लगी. दोनों एकदूसरे पर आरोप लगाते रहते. धीरेधीरे मनमुटाव और झगड़ा इतना बढ़ गया कि दोनों के बीच मारपीट होने लगी. सलीमा को पता चल गया था कि आलमगीर गाजियाबाद की किसी युवती से प्रेम करता है और उस के साथ निकाह करना चाहता है.
दूसरी ओर आलम को जो सलीमा पर शक था, वह बढ़ता ही गया. एक दिन उस ने कुछ कहा तो सलीमा ने उसे झिड़क दिया, ‘‘तुम अपने दिमाग का इलाज क्यों नहीं करा लेते. ऐसी बातें करोगे तो अल्लाह भी तुम्हें माफ नहीं करेगा. खराब तुम खुद हो, इसलिए मुझ पर शक करते हो.’’
‘‘मैं रोजरोज के झगड़ों से तंग आ गया हूं. अब मैं यह सब बरदाश्त नहीं कर सकता.’’
‘‘तो तुम क्या करोगे?’’ सलीमा चीखी.
‘‘मुझे भी नहीं पता, लेकिन मेरा शक गलत नहीं है.’’
‘‘और तुम जो हम से अलग गुलछर्रे उड़ा रहे हो, उस का क्या? गलत काम खुद करते हो और हमारे ऊपर झूठी तोहमत लगाते हो.’’
आलमगीर लड़झगड़ कर शांत हो गया लेकिन शक उस के दिमाग से निकला नहीं. शक इंसान को अंधा कर देता है. वक्त के साथ उसे इस बात का शक हो गया कि चारों बच्चे उस के नहीं है. अब वह मन ही मन सलीमा ही नहीं बच्चों से भी नफरत करने लगा. प्रेमिका के लिए उस के मन में मोहब्बत बढ़ने लगी और वह उस के साथ निकाह के सपने देखने लगा. आलमगीर ने सोचा कि वह पत्नी और बच्चों को रास्ते से हटा दे तो उस के शक का समाधान भी हो जाएगा और उस के बाद प्रेमिका से निकाह कर के आराम से रहेगा. उस का यह इरादा घर बरबाद करने वाला था लेकिन शक में उस की मति मारी गई थी. वह जब भी घर आता, सलीमा से जरूर झगड़ता था.
मन ही मन उस ने पत्नी और बच्चों को मारने का खतरनाक फैसला ले लिया. एक दिन वह जहर ले आया और शाम को दूध में मिला दिया. वह अपना काम कर पाता, इस के पहले ही कुछ रिश्तेदार आ गए. जिस की वजह से उस का काम नहीं हो पाया. उस ने दूध में छिपकली गिरने की बात कह कर सारा दूध नाली में फेंक दिया. उस के इरादों से उस की प्रेमिका पूरी तरह अंजान थी. जबकि वह ठान चुका था कि सभी को मार कर ही रहेगा. एक दिन वह घर में रखी दरांती अपने साथ ले गया और उस पर धार लगवा कर उसे तेज करा लाया. उस ने सोचा कि इस बार पूरी तैयारी कर के सभी को खत्म कर देगा.
अप्रैल के पहले सप्ताह की बात है. उस ने बस पर अपने साथ रहने वाले परिचालक से गेहूं में रखने की बात कह कर सल्फास मंगवा लिया. सल्फास की गोलियां गांवों में अकसर गेहूं को कीड़ों से बचाने के लिए उस के बीच रखी जाती हैं. सल्फास उसे आसानी से मिल गया. उस ने तय कर लिया कि इस बार वह जब भी घर जाएगा, सभी को खत्म कर देगा. पहले वह मोबाइल से बच्चों से बात कर लिया करता था, लेकिन इधर उस ने ऐसा करना कम कर दिया था. 6 अप्रैल को सलीमा ने उसे फोन किया कि बेटे की तबीयत खराब है. उस ने उसे दवा दिलाने की बात कही तो उस दिन भी दोनों के बीच फोन पर ही झगड़ा हुआ.
इस के बाद उस ने 8 अप्रैल को सभी को खत्म कर देने का विचार बना लिया. अकसर वह घर आने से पहले फोन कर देता था. लेकिन उस दिन उस ने जानबूझ कर फोन नहीं किया. उस ने आते समय शाम का खाना एक ढाबे से पैक कराया और कोल्डड्रिंक की बोतल भी खरीदीं. इस के बाद वह घर पहुंच गया. शाम ढलते ही गांव में लोग सो जाते हैं, इसलिए किसी ने उसे घर आते नहीं देखा. सलीमा ने तब तक खाना नहीं बनाया था. उस ने खाना दे कर सलीमा से उस दिन बहुत प्यार से कहा, ‘‘सभी को खाना परोस कर दे दो. मैं भी बेवजह तुम पर शक करता हूं.’’
सलीमा को लगा कि आलमगीर को अपनी गलती का अहसास हो गया है. परिवार खुश रहे किसी औरत के लिए इस से अच्छी बात और क्या हो सकती है. वह खुश हो गई. उस ने खाना लगाया तो सब ने साथ मिल कर खाया. सलीमा और बच्चों ने सभी के सोने के लिए बिस्तर लगा दिए. किसी को अंदाजा नहीं था कि आलमगीर के सिर पर शैतान सवार है और वह सभी की आखिरी रात है. वह कोल्डड्रिंक की जो बोतल लाया था, उस में सल्फास की गोलियां डाल कर मिला दीं और सभी को पिला दी. आलमगीर ने कोल्डड्रिंक नहीं पी. इस के बाद सभी सोने चले गए. आलमगीर भी बिस्तर पर लेट गया लेकिन उसे भला नींद कैसे आती.
सभी सो चुके थे. रात 11 बजे जब उसे लगा कि सभी गहरी नींद सो गए हैं और जहर अपना असर दिखा चुका होगा तो उस ने घर में रखी दराती और एक हथौड़ा निकाला. कपड़ों पर खून के दाग न लगें इस के लिए उस ने अपने सारे कपड़े उतार दिए. वह सिर्फ अंडरवियर पहने था. वह सलीमा के नजदीक पहुंचा और हथौड़े से उस के सिर पर वार किया. वह पहले से ही बेहोश थी, इसलिए चीखपुकार का कोई सवाल नहीं था. फिर उस ने दरांती से उस का गला काट दिया. इस के बाद उस ने एकएक कर के तीनों बच्चों सूफियान, यासमीन और करीना को भी मार दिया. हैवान बने आलमगीर को अपने बच्चों पर जरा भी दया नहीं आई. जब उसे इत्मीनान हो गया कि सभी मर चुके हैं तो उस ने खून सने हाथ और मुंह पर लगे खून को साफ किया और बिस्तर पर आ कर लेट गया.
सुबह 4 बजे उस ने दरांती और हथौड़ा चादर में लपेट कर साथ लिया और घर से निकल गया. यह संयोग ही था कि उसे जाते हुए भी किसी ने नहीं देखा. गांव के बाहर एक खेत में उस ने दरांती और हथौड़ा छिपा दिया. इस के बाद दिन निकलने का इंतजार करने लगा. सुबह उजाला होने पर वह मुजफ्फरनगर चला गया और घर से हत्याओं की सूचना आने का इंतजार करने लगा. सूचना मिलने पर वह गांव पहुंचा और दुखी होने का सफल नाटक किया. हर किसी की हमदर्दी आलमगीर के साथ थी. किसी को अंदाजा नहीं था कि वह इतना खतरनाक काम भी कर सकता है. उस ने नाटक तो बहुत बढि़या किया, लेकिन पुलिस के शिकंजे से बच नहीं सका.
पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त दरांती और हथौड़ा भी बरामद कर लिया. एसपी शरद सचान ने प्रेसवार्ता कर हत्याकांड का खुलासा किया. आलमगीर की करतूत पर हर कोई हैरान था. पुलिस ने उस की प्रेमिका से भी पूछताछ की लेकिन वह आलमगीर की योजना से अंजान थी, इसलिए निर्दोष मान कर उसे छोड़ दिया गया. पूछताछ के बाद पुलिस ने आलमगीर को अदालत में पेश किया, जहां से उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.
अब उस के घर वालों तथा नातेरिश्तेदारों ने निर्णय लिया है कि उस ने हैवानियत भरा जो काम किया है, इस के लिए उस की कोई पैरवी नहीं करेगा. उस के पिता दिलशेर का कहना था कि उसे बेटे की गंदी सोच और गुनाह का हमेशा अफसोस रहेगा. कथा लिखे जाने तक आलमगीर जेल में था. उस की जमानत नहीं हो सकी थी. UP Crime
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.






