संजीव यादव दिल्ली पुलिस के वह सुपरकौप हैं, जिन के नाम से बड़ेबड़े बदमाश थरथर कांपते हैं. स्पैशल सेल के डीसीपी संजीव अब तक 75 बदमाशों को मौत के घाट उतार चुके हैं. फिल्म बटला हाउस में जौन अब्राहम ने उन्हीं का किरदार निभाया था. संजीव का अपराधों के विरूद्ध अभियान…

एसीपी संजीव यादव को जामिया नगर स्थित बटला हाउस की बिल्डिंग एल 18 के मकान नंबर 108 तक पहुंचने में 20 मिनट का समय लगा था. लेकिन उस से पहले ही उन की टीम के बहादुर इंसपेक्टर मोहनचंद्र शर्मा और हैडकांस्टेबल आतंकवादियों की गोलियों से जख्मी हो चुके थे. जिन्हें स्पैशल सेल की टीम के लोग अस्पताल ले गए थे.

संजीव यादव को बटला हाउस पहुंचने से पहले जब मोहनचंद्र शर्मा की आतंकवादियों से हुई मुठभेड़ और उन के घायल होने की सूचना मिली थी तो उन्होंने अपने डीसीपी आलोक वर्मा तथा जौइंट कमिश्नर करनैल सिंह को भी इस की सूचना दे दी थी.

इसी बीच उन्होंने अपनी गाड़ी के पीछे चल रहे स्टाफ को संदेश दे दिया कि बुलेटप्रूफ जैकेट पहन लें और हथियारों से लैस हो मुठभेड़ के लिए तैयार रहें.

तैयारी पूरी थी, बटला हाउस में आतंकवादियों के छिपे होने वाले मकान पर पहुंच कर उन्होंने अपने स्टाफ के साथ धावा बोल दिया, जहां भीतर से हुई फायरिंग के कारण इंसपेक्टर मोहनचंद्र शर्मा घायल हुए थे.

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बुलेटप्रूफ  जैकेट पहने एसीपी संजीव यादव ने जान जोखिम में डाल कर मकान नंबर 108 में जब प्रवेश किया तो उन की टीम पर अंदर छिपे आतंकवादियों ने ताबड़तोड़ फायरिंग की, लेकिन किस्मत अच्छी थी कि गोली किसी को लगी नहीं. जवाब में संजीव यादव की टीम ने भी क्र्रौस फायरिंग की. गोलीबारी का यह सिलसिला करीब 7-8 मिनट तक चला और जब सब कुछ शांत हो गया तो पुलिस टीम ने मकान की तलाशी ली.

अंदर जा कर देखा तो कमरे में सामने 2 लाशें पड़ी थीं और कुछ हथियार व गोलियों के खाली कारतूस भी थे. बाथरूम में घायल हालत में एक युवक मिला, जिस ने अपना नाम नाम सैफ बताया. साथ ही उस ने लाशों की पहचान आतिफ अमीन और साजिद के रूप में की. उस ने यह भी बताया कि वे सब आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन के लिए काम करते हैं.

19 सिंतबर, 2008 की सुबह जामिया नगर के बटला हाउस में हुए इस एकाउंटर से ठीक एक हफ्ते पहले यानी 13 सितंबर, 2008 को दिल्ली में 5 अलगअलग जगहों पर हुए सीरियल बम ब्लास्ट में 30 लोगों की मौत हुई थी. उसी ब्लास्ट की जांच और धरपकड़ करते हुए स्पैशल सेल को ब्लास्ट में शामिल कुछ संदिग्ध लोगों के इस मकान में छिपे होने की जानकारी मिली थी.

स्पैशल सेल के इंसपेक्टर मोहनचंद्र शर्मा इसी सूचना को वैरीफाई करने के लिए बटला हाउस की एल 18 नंबर बिल्डिंग के मकान नंबर 108 में अपनी टीम के साथ पहुंचे थे. लेकिन बिना स्वचालित हथियार और बुलेटप्रूफ जैकेट पहने सर्च के लिए गई टीम को पता नहीं था कि मकान के भीतर खूंखार आतंकवादी घातक हथियारों के साथ मौजूद हैं. पुलिस के मकान में घुसते ही दहशतगर्दों ने पुलिस पर ताबड़तोड़ गालियां चला दीं, जिस में मोहनचंद्र शर्मा व हवलदार बलवंत घायल हो गए.

आतंकवादियों की गोलियां लगने के कुछ घंटों के बाद ही इंसपेक्टर मोहन चंद शर्मा की मौत हो गई थी. बाद में एसीपी संजीव यादव मौके पर पहुंचे और उन्होंने मोर्चा संभाला. मकान के भीतर छिपे आतंकियों से लोहा लिया और इस एनकाउंटर में 2 आतंकवादी मारे गए. सैफ नाम के एक आतंकवादी को घर में ही पकड़ लिया गया था. बाद में एक आतंकवादी जीशान को पुलिस ने उसी शाम पकड़ लिया.

एसीपी संजीव यादव ने जिस बहादुरी के साथ बटला हाउस एनकाउंटर को लीड किया था, ताबड़तोड़ छापेमारी कर इस वारदात में शामिल अपराधियों की धरपकड़ की थी और विवादों का सामना करते हुए जिस मानसिक प्रताड़ना को सहा था, उसी बहुचर्चित एनकाउंटर पर कुछ सालों बाद डायरेक्टर निखिल आडवानी ने ‘बटला हाउस’ के नाम से फिल्म बनाई थी. फिल्म में अभिनेता जौन अब्राहम ने तत्कालीन एसीपी संजीव यादव का किरदार निभाया था.

इस फिल्म में संजीव यादव का किरदार निभाने से पहले अभिनेता जौन अब्राहम ने जब असल जिंदगी के डीसीपी (बाद में) संजीव कुमार यादव से मुलाकात की तो वह यह जान कर दंग रह गए थे कि करीब 75 मुठभेड़ों में अपराधियों से 2-2 हाथ करने वाले संजीव यादव ने बाटला हाउस मुठभेड़ के विवाद के बीच मानसिक प्रताड़ना के एक बुरे दर्दनाक दौर का सामना किया था. संजीव यादव यहां तक हतोत्साहित हो गए थे कि मन में आत्महत्या करने तक का ख्याल आया था. क्योंकि बाटला हाउस एनकांउटर के बाद उन्हें स्पैशल सेल से हटा दिया गया था.

बाटला हाउस फिल्म में एक सीन है, जिस में जौन अपनी पिस्तौल को नष्ट कर के अपनी पत्नी को दे देते हैं. क्योंकि वह डर गए थे कि वह उस पिस्तौल से खुद को भी गोली मार सकते थे. उन्होंने पिस्तौल के सभी हिस्सों को घर के अलगअलग हिस्सों में रखवा दिया था.

अभिनेता जौन अब्राहम ने संजीव यादव से मिलने के बाद महसूस किया था कि एक कठोर मिजाज सुपर कौप असल जिंदगी में बेहद शर्मीला और शांत स्वभाव का इंसान भी हो सकता है.

संजीव यादव दिल्ली पुलिस के उन जांबाज अफसरों में से एक हैं, जिन का नाम सुन कर बदमाश दिल्ली के आसपास फटकने से भी कन्नी काटते हैं. दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल में कार्यरत डीसीपी संजीव यादव देश के इकलौते ऐसे पुलिस अफसर हैं, जिन को उन के काम के लिए 9 गैलेंट्री अवार्ड यानी राष्ट्रपति वीरता पदक मिल चुके हैं.

दिल्ली पुलिस में सुपर कौप के नाम से पहचान बना चुके डीसीपी संजीव यादव दिल्ली पुलिस की शान और ऐसी धरोहर हैं, जिन की मौजूदगी पूरे शहर को महफूज रहने का भरोसा देती है.

कुख्यात अपराधी हो या आतंक फैलाने वाले दहशतगर्द, इस सुपर कौप की नजर में एक बार जो चढ़ गया समझो उस का काम तमाम हो गया. पुलिस विभाग में काम करते हुए जांबाजी से अपराधियों के हौसले पस्त करने की सीख उन्हें विरासत में मिली है.

संजीव यादव पिछले काफी सालों से स्पैशल सेल में पहले एसीपी रहे. इस के बाद अब बतौर डीसीपी तैनात हैं. स्पैशल सेल के साथ उन्होंने लंबे वक्त तक क्राइम ब्रांच में भी काम किया. संजीव यादव जहां भी रहे, आतंक फैलाने से ले कर अपराध करने वालों के बीच खौफ पैदा करते रहे हैं.

यूपी के बलिया के रहने वाले संजीव यादव एक रसूखदार परिवार में पैदा हुए थे. पिता नंदजी यादव उत्तर प्रदेश पुलिस में थे और एसपी पद से रिटायर होने के बाद जिला पंचायत अध्यक्ष चुने गए थे.

संजीव कुमार यादव के सब से बड़े भाई विनोद यादव डिप्टी एसपी से रिटायर होने के बाद फिलहाल गोरखपुर में रह रहे हैं और एक निजी बैंक में डिप्टी मैनेजर हैं. विनोद यादव से छोटे प्रमोद कुमार यादव सबरजिस्ट्रार हैं, जबकि उन से छोटे राजीव डिप्टी डायरेक्टर (रोजगार) व अजय कुमार यादव सेना में कर्नल हैं.

दिल्ली पुलिस में आने से पहले संजीव यादव मध्य प्रदेश पुलिस में डीएसपी रह चुके हैं. 1998 में दिल्ली पुलिस में बतौर दानिप्स संजीव यादव एसीपी सेलेक्ट हुए तो उन्होंने मध्य प्रदेश पुलिस की नौकरी छोड़ दी.

पुलिस विभाग में काम करते हुए अपराध और अपराधियों का खात्मा करने का जज्बा सुपर कौप संजीव यादव को इसी पारिवारिक विरासत से मिला है. दिल्ली पुलिस में 1998 में एसीपी के रूप में भरती होने के बाद संजीव यादव की सब से पहली नियुक्ति मध्य जिले के औपरेशन सेल में हुई थी.

बटला हाउस एनकांउटर के बाद उठे विवाद के कारण उन्हें क्राइम ब्रांच में भेज दिया गया था. यहां भी उन्होंने अपराधियों के खिलाफ अपना अभियान लगातार जारी रखा.

लेकिन दिल्ली में 2010 में हुए आतंकी हमले के बाद देश की सुरक्षा और जेहादियों के खिलाफ बेहतरीन नेटवर्क के कारण संजीव यादव को फिर से स्पैशल सेल में बुला कर स्पैशल सेल में डीसीपी बना दिया गया. इस के बाद उन्हें आईपीएस कैडर मिला.

स्पैशल सेल में संजीव यादव ने अब तक 42 केस अपने हाथ में लिए हैं, जिस में से 32 का फैसला आ चुका है और अदालत से आरोपियों को सजा मिली है. इन में 2004, 2008, 2010 और 2012 के आतंकी हमले वाले केस भी शामिल हैं.

संजीव यादव आतंकवादियों से ले कर कुख्यात अपराधियों के निशाने पर हैं, इसीलिए खुफिया विभाग की सलाह पर सरकार ने उन्हें जेड कैटेगरी का सुरक्षा कवच दिया हुआ है. आतंकवादियों के खिलाफ औपरेशन हो या किसी खतरनाक गैंगस्टर के खिलाफ अभियान, संजीव कभी अपनी जान की परवाह नहीं करते और औपरेशन को खुद ही लीड करते हैं, रणनीति बनाते हैं और टीम का मनोबल बढ़ाते हुए साथ ले कर चलते है.

दिल्ली में एक गैंगस्टर के लिए चलाया गया उन का औपरेशन उन के कैरियर का सब से बड़ा एनकाउंटर औपरेशन था.

जून, 2018 का वाकया है. संजीव यादव उन दिनों दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल में नार्दर्न रेंज के डीसीपी की कमान संभाल रहे थे. एक दिन उन्हें अपने एक खबरी से सूचना मिली की कुख्यात इनामी बदमाश राजेश भारती और उस के गैंग के कुछ लोग छतरपुर के चानन होला इलाके में एक फार्महाउस में आने वाले हैं.

संजीव ने अपने मातहत तेजतर्रार पुलिस अफसरों की 5 टीमें गठित की और उन्हें उस इलाके में हर रास्ते पर इस तरह से तैनात कर दिया कि जब राजेश भारती को घेरा जाए तो वह भागने में कामयाब न हो सके.

सादे कपड़ों में टीमों को बाइक और गाडि़यों में बैठा कर ऐसे लगाया गया, जिस से बदमाश अपनी गाडि़यों से पुलिस की गाडि़यों में टक्कर मार कर भी भागे तो वे पकड़े जाएं. उन की टीमों ने छतरपुर इलाके में अपना पूरा जाल बिछा दिया था.

उस के बाद शुरू हुआ राजेश भारती के आने का इंतजार. 31 घंटे तक बिना पलक झपकाए संजीव यादव अपनी टीम के साथ टकटकी लगाए राजेश भारती के आने का रास्ता देखते रहे. जिस फार्महाउस पर नजर रखी जा रही थी, वह एक प्रौपर्टी डीलर का था.

चूंकि खबर एकदम पुख्ता थी कि राजेश भारती वहां जरूर आएगा, इसलिए पूरा दिन इंतजार करने के बाद संजीव यादव अपनी टीमों के साथ मुस्तैदी से वहीं डटे रहे. सब ने बिस्कुट, नमकीन के साथ पानी पी कर रात गुजारी, लेकिन वहां से हटे नहीं.

किसी तरह सुबह हुई तो खबरी से एक बार फिर फोन पर संपर्क साधा गया. उस ने बताया कि आज राजेश भारती हर हाल में  वहां पहुंचेगा. संजीव की सभी टीमें इस सूचना पर अलर्ट हो गईं.

दोपहर होतेहोते शिकार के आने का इंतजार खत्म हो गया. फार्महाउस के बाहर एक एसयूवी आ कर रुकी, जिस की पिछली सीट पर राजेश भारती बैठा था. एसयूवी को उमेश उर्फ डौन ड्राइव कर रहा था. एसयूवी के साथ सफेद रंग की एक दूसरी कार भी थी जिस में 4 लोग सवार थे.

गाडि़यों के फार्महाउस के बाहर पहुंचते ही पहले से घेराबंदी कर चुकी पुलिस की टीमों ने चारों तरफ से दोनों गाडि़यों की ओर आगे बढ़ना शुरू कर दिया. थोड़ा नजदीक पहुंचते ही संजीव यादव ने कोर्डलैस लाउडस्पीकर से बदमाशों को सरेंडर करने की चेतावनी दी. लेकिन उन्होंने सरेंडर करने के बजाय भागने का फैसला किया और अपनी गाडि़यां तेज गति से दौड़ा दीं.

संजीव यादव इस तरह के बदमाशों से पहले भी कई बार लोहा ले चुके थे, इसलिए जानते थे कि ऐसा हो सकता है. इसीलिए उन्होंने बदमाशों को दबोचने के लिए 3 स्तरीय घेराबंदी की थी. पहला घेरा तोड़ कर भागे बदमाशों को पीछे से घेरने के साथ आधा किलोमीटर की दूरी पर घेराबंदी कर के खड़ी टीम ने घेर लिया.

बदमाशों की दोनों गाडियां करीब एकडेढ़ किलोमीटर तक पुलिस को छकाती रहीं. लेकिन त्रिस्तरीय घेराबंदी इतनी पुख्ता थी कि बदमाश 2 मिनट बाद ही चौतरफा इस तरह घिर गए कि उन के सामने 2 ही रास्ते थे कि या तो सरेंडर कर दें या मुकाबला करें.

लेकिन खुद को फंसा देख बदमाशों ने सरेंडर करने की जगह पुलिस पर फायरिंग शुरू कर दी. बदमाशों की फायरिंग के जवाब में संजीव का इशारा मिलते ही उन की टीम ने भी फायरिंग शुरू कर दी. पुलिस की टीम स्वचालित हथियारों से लैस थी.

पूरा इलाका ताबड़तोड़ गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा. मुश्किल से 3 मिनट लगे 31 घंटे से चले आ रहे औपरेशन को खत्म होने में. बदमाशों की ओर से करीब 50 और पुलिस की तरफ से 100 राउंड फायरिंग हुई. एनकाउंटर में राजेश कंडेला उर्फ भारती, संजीत विद्रोही, गुड़गांव निवासी उमेश उर्फ डौन तथा दिल्ली के घेवरा का वीरेश राणा उर्फ विक्कू वहीं पर ढेर हो गए.

संजीव यादव की टीम के 8 जवान भी गोली लगने से घायल हुए थे. जिन 4 बदमाशों को गोली लगी थी, उन की मौके पर ही मौत हो चुकी थी. इस के बावजूद उन्हें भी अस्पताल भेजा गया.

दरअसल अपराधी राजेश भारती ने दिल्ली के एक बिजनैसमैन को फोन कर के 50 लाख रुपए की रंगदारी मांगी थी. इसी की शिकायत मिलने के बाद संजीव यादव ने राजेश भारती और उस के गुर्गों की कुंडली खंगाल कर उन के पीछे अपने खबरियों की टीम लगाई थी.

गांव में घरेलू रंजिश के कारण अपराध की डगर पर चलते हुए राजेश भारती के खिलाफ अपराध के 15 संगीन मामले दर्ज थे. भारती की गिरफ्तारी पर दिल्ली पुलिस की तरफ से एक लाख का ईनाम भी घोषित किया गया था. राजेश भारती दिल्ली के उन टौप टेन अपराधियों में से एक था, जो रंगदारी से ले कर तमाम तरह के गुनाहों को अंजाम दे रहे थे. लेकिन संजीव यादव की नजर में चढ़ते ही उस के गुनाहों के साथ जिदंगी का भी खात्मा हो गया.

संगठित अपराध व आतंकवादियों के खिलाफ सब से दमदार मुहिम चलाने वाली दिल्ली पुलिस की 2 यूनिटों स्पैशल सेल तथा क्राइम ब्रांच में रहते हुए संजीव यादव अब तक 75 एनकांउटरों को अंजाम दे चुके हैं. उन्होंने कई पाकिस्तानी और कश्मीरी आतंकवादियों को मुठभेड़ में धराशायी किया तो बहुतों को गिरफ्तार किया.

कई नामचीन गैंगस्टर उन की गोली का शिकार बने तो कई ईनामी बदमाशों को उन्होंने हथकड़ी पहनाई. उन्होंने ही दिल्ली के सब से बड़े गैंगस्टर 5 लाख के ईनामी कुख्यात सोनू दरियापुर को 2017 में मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार किया था.

ड्रग्स सिंडीकेट चलाने वालों के खिलाफ तो डीसीपी संजीव यादव ने मानों मुहिम ही छेड़ी हुई है. उन के नेतृत्व में 4 दरजन से अधिक देशीविदेशी नशे के तसकर और कई सौ करोड़ की ड्रग्स पकड़ी जा चुकी है.

संजीव यादव की जांबाजी से सिर्फ दिल्ली की जनता ही महफूज नहीं है. उन्होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश व पूर्वांचल के साथ बिहार के भी कई दुर्दांत अपराधियों का खात्मा कर के इन राज्यों की पुलिस व जनता को राहत दिलाई है.

24 अक्तूबर, 2013 की रात को वसंत कुंज में होटल ग्रैंड के पास हुई एक मुठभेड़ में सुरेंद्र मलिक उर्फ नीटू दाबोदिया और उस के साथी आलोक गुप्ता और दीपक गुप्ता मारे गए थे. इस गिरोह ने अपना पीछा कर रही दिल्ली पुलिस के एक एसीपी मनीष चंद्रा की स्कौर्पियो को अपनी कार से टक्कर मार दी थी और अपनी गाडि़यों से उतर कर अलगअलग दिशा में भागते हुए पुलिस पर जबरदस्त तरीके से गोलियां दागी थीं.

डीसीपी संजीव यादव की अगुवाई में इन बदमाशों का पीछा कर उन की टीम के इंसपेक्टर ललित मोहन नेगी, हृदय भूषण और रमेश चंदर लांबा व सबइंसपेक्टर सुखबीर सिंह ने अपनी जान पर खेलते हुए सभी बदमाशों को बसंतकुंज के होटल ग्रैंड के पास एनकाउंटर में धराशायी किया था. यह 13 अक्तूबर, 2013 की रात की बात है.

इस मुठभेड़ में सुरेंद्र मलिक उर्फ नीटू दाबोदिया, आलोक गुप्ता और इन का साथी दीपक गुप्ता मारे गए थे. दिल्ली शहर में बदमाशों के खिलाफ इस बहादुरी के लिए संजीव यादव समेत इन सभी चारों पुलिस वालों को राष्ट्रपति का पुलिस मैडल मिला था.

इसीलिए पुलिस विभाग में संजीव यादव को दिल्ली का सुपर कौप कहा जाता है. वैसे तो संजीव यादव अपनी पिस्तौल से सिर्फ बदमाशों पर ही निशाना लगाते हैं. लेकिन उन का एक शौक ऐसा है, जिस के बारे में शायद लोगों का ज्यादा जानकारी न हो.

संजीव यादव अचूक निशानेबाज हैं. उन्होंने साल 2018 में 45वीं दिल्ली स्टेट शूटिंग चैंपियनशिप में एक गोल्ड व 2 ब्रोंज मैडल जीते थे. साथ ही 10 मीटर एयर पिस्टल और 25 मीटर सेंटर फायर पिस्टल में 2 ब्रोंज मेडल अपने नाम किए.

खास बात ये है कि जिस उम्र में शूटर शूटिंग से रिटायरमेंट ले लेते हैं, डीसीपी संजीव यादव ने उस उम्र में शूटिंग शुरू की और अपनी मेहनत से पुलिस की व्यस्त जिंदगी से वक्त निकाल कर यह कारनामा कर दिखाया.

शूटिंग की कई प्रतियोगिताओं में मैडल जीतने के बाद उन का चयन भारत की राष्ट्रीय शूटिंग टीम में साउथ एशियन गेम्स 2019 के लिए हुआ और वे भारत की तरफ से शूटिंग में हिस्सा लेने के लिए नेपाल गए.

संजीव यादव की तमाम उपलब्धियों में उन की पत्नी शोभना यादव की भी अहम भूमिका है जो उन्हें सदैव प्रेरित करती हैं. शोभना यादव उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले की हैं. पत्रकारिता के प्रति उन का रुझान कालेज के दिनों में हुआ था, लिहाजा पत्रकारिता की पढ़ाई के बाद सब से पहले उन्होंने आईटीवी नाम के एक लोकल न्यूज चैनल में काम किया. कुछ महीनों बाद उन्हें पहला ब्रेक इंडिया टीवी में मिला. यहीं से उन को प्रसिद्धि मिली. उन्होंने इस चैनल के साथ काफी दिनों तक काम किया.

बटला हाउस एनकाउंटर के समय वह लाइव रिपोर्टिंग कर रही थीं, यह जानते हुए भी कि उन का पति ही एनकाउंटर को लीड कर रहा है. दर्शकों को उन्होंने इस बात का अहसास तक नहीं होने दिया. उस वक्त वह कितनी टेंशन में रही होंगी, इस का अंदाजा लगाया जा सकता था.

संजीव कुमार यादव और उन की पत्नी शोभना यादव एक बेटे व एक बेटी के मातापिता हैं.

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