कलाकार: केके मेनन, सौरभ सचदेवा, नवाब शाह, विवान भटेना, कर्मवीर चौधरी, शिव पंडित, जितिन गुलाटी, सुमित व्यास, आदित्य रावल, कन्नन अरुणाचलम, निवेदिता भट्टाचार्य, अमाया दस्तूर, अविनाश तिवारी, कृतिका कामरा, जयसिंह राजपूत, सुनील पलवल, चैतन्य चोपड़ा, दिनेश प्रभाकर, लक्ष्य कोचर, चेष्टा भगत, तान्या खान झा, समारा खान, प्रिंसी सुधाकरन, गरिमा जैन
डायलौग: अब्बास दलाल और हुसैन दलाल
निर्देशक: शुजात सौदागर
निर्माता: कासिम जगमिगया, रितेश सिधवानी और फरहान अख्तर
अभिनय के लिए जिस तरह केके मेनन को जाना जाता है वैसा अभिनय इस सीरीज में नहीं है. वेब सीरीज में जगहजगह बिखराव देखने को मिला. तीनों के चेहरे पर किसी तरह का पुलिसिया रौब दिखाई ही नहीं दिया. इसी एपिसोड में 2 नए किरदारों की एंट्री बेहद हास्यास्पद नजर आई.
दर्शकों का मूड सीरीज से ही ऊब चुका होता है. घटिया डायरेक्शन की इसे हम निशानी कह सकते हैं. यहां भी मेनन से ज्यादा डायरेक्टर की कमजोरी उजागर होती है. यहां डायरेक्टर की चूक है. लगता है उस की अक्ल खाली हो गई. यहां वेब सीरीज के डायरेक्टर सुजात सौदागर ने फिर जबरिया सस्पेंस क्रिएट करने की कोशिश की है. कुल मिला कर कहानी यह है कि वेब सीरीज के डायरेक्टर इस पूरे घटनाक्रम में तारतम्य मिलाने में कामयाब नहीं हो सके. इस एपिसोड के एक हिस्से में भी डायरेक्टर की विफलता साफ दिखती है.
बंबई मेरी जान’ की कहानी फौजी पत्रकार एस. हुसैन जैदी की 2012 में प्रकाशित हुई किताब ‘डोंगरी टू दुबई’ के जरिए बनाई गई है. इसी किताब पर संजय गुप्ता ने भी फिल्म बनाई थी. जिस का नाम ‘शूटआउट ऐट वडाला’ था. यह किताब दाऊद इब्राहिम पर केंद्रित है, जो देश की आजादी से 2012 तक मुंबई के कुख्यात गैंगस्टरों पर लिखी गई है.
‘बंबई मेरी जान’ वेब सीरीज में डायलौग अब्बास दलाल और हुसैन दलाल ने दिए हैं. जैदी के बाद मुंबई के माफियाओं को हीरो बनाने के लिए कई किताबें बाजार में आ चुकी हैं. इन्हीं किताबों के अंश पर संजय लीला भंसाली ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ से ले कर कई अन्य डायरेक्टर फिल्म बना कर जबरिया माफियाओं को नेताओं और अफसरों के कारिंदे बता चुके हैं.
वेब सीरीज के पहले एपिसोड की शुरुआत दारा कादरी से होती है. उस की पूरी फैमिली भारत छोड़ कर दुबई भागने की तैयारी में होती है, जहांं उस का पिता इस्माइल कादरी जाने से साफ इंकार कर देता है तो दारा और उस की पूरी फैमिली उस पर दुबई चलने के लिए दबाव बनाने लगती है.
तब इस्माइल कादरी गन निकाल कर दारा पर तान देता है. फिर बाद में उन्हें डराने के लिए वह गन अपनी कनपटी पर लगा लेता है. वह दारा को सलाह देता है कि तुम यहां से चले जाओ वरना अपने पीछे एक और लाश छोड़ कर जाओगे.
इस के बाद वेब सीरीज की कहानी फ्लैशबैक में चली जाती है. जहां पर इस्माइल कादरी को एक शादी समारोह में अपने दोस्तों के साथ दिखाया जाता है. इस्माइल कादरी की बीवी प्रेग्नेंट है, जो अपनी सहेलियों से बात कर रही होती है. यहीं बताया जाता है कि इस्माइल कादरी पुलिस वाला है.
शादी फंक्शन के दौरान एक कौमेडीनुमा और भद्दा सीन दिखाया जाता है. जहां केके मेनन यानी इस्माइल कादरी के तीनों बच्चे वैवाहिक कार्यक्रम के दौरान लोगों पर बाथरूम करते हैं. ऐसा करते हुए एक बच्ची देख लेती है जो वेब सीरीज में आगे जा कर दारा कादरी की माशूका दिखाई जाती है. उस का नाम परी पटेल है. वेब सीरीज में परी पटेल का किरदार अमायरा दस्तूर ने निभाया है.
वेब सीरीज आगे बढ़ती है. शादी के दौरान ही हाजी मकबूल और अजीम पठान दोनों की एंट्री होती है. हाजी मकबूल की भूमिका सौरभ सचदेवा ने निभाई है. वहीं अजीम पठान का किरदार नवाब शाह ने निभाया है.
फिर वौइस ओवर में दोनों के बारे में जानकारी दी जाती है. इस से साफ है कि डायरेक्टर सुजीत सौदागर को अहसास हो गया था कि फिल्म काफी लंबी होने वाली है. हाजी मकबूल और अजीम पठान मुंबई में कुली का काम करता था.
उसी दौरान वह बहुत सारी चीजों की स्मगलिंग करने लगा. स्मगलिंग के दौरान ही वह कुछ सामान चोरी करने लगता है. धीरेधीरे कर के चुराए हुए पैसों से वह हज पर भी जाता है. यह बात डायरेक्टर ने बाकायदा वौइस ओवर के जरिए बताई है.
वेब सीरीज पहले ही एपिसोड से दर्शकों को बोर करने न लगे, इसलिए डायरेक्टर ने जगहजगह वौइस ओवर की मदद ली है. यह आवाज केके मेनन की है. आवाज के बीच मेनन यानी इस्माइल कादरी जो पुलिस अधिकारी बना है. वह हाजी मकबूल के इशारों पर अजीम पठान के सुपारी किलिंग के बाद ऐक्शन में दिखाया है.
जिस तरह के अभिनय के लिए केके मेनन को जाना जाता है वैसा अभिनय इस सीरीज में नहीं है. अगर आप मेनन के लिए सीरीज देखने के इच्छुक हैं तो निराशा हाथ लग सकती है. यहां डायरेक्टर का प्रभाव उस के अभिनय पर हावी दिखाई दिया.
डायरेक्टर ने पात्रों के साथ नहीं किया न्याय
अच्छे कलाकार की प्रतिभा के अनुरूप वेब सीरीज में उस से काम नहीं लिया गया. पुलिस की दमदार पर्सनैल्टी में खरा भी नहीं दिखा. क्लब पर दबिश देते वक्त उस का गेटअप पुलिस के बजाय टपोरी जैसा दिखाया गया है. पुलिस वरदी के 2 बटन खोल कर कौन अधिकारी अपने ही ओहदे के सीनियर अफसर को पकड़ता है. इसे देख कर लगता है कि डायरेक्टर ने या तो कोई नशा कर रखा होगा या उस का दिमाग पगला गया.
पहले एपिसोड में वेब सीरीज के कलाकारों की एंट्री एकएक कर के दिखाई गई है. डायरेक्टर किसी भी पात्र के साथ पहले एपिसोड में न्याय करते हुए दिखाई नहीं दिया. इस कारण वेब सीरीज में जगहजगह बिखराव देखने को मिला.
यह बात साबित करने के लिए पहले एपिसोड का केंद्रीय गृहमंत्री और राज्य के एक अधिकारी के बीच हुई बातचीत से पता चल जाती है. इसी बातचीत के बाद एक स्पैशल दस्ता बनता है, जिसे बंबई क्राइम क्लीन करने का टारगेट मिलता है. इस का प्रभारी इस्माइल कादरी को बनाया जाता है और टीम को पठान स्क्वायड कोड वर्ड दिया जाता है. यहां डायरेक्टर कास्टिंग चूक में चूकते हुए दिखाई दे जाता है.
दरअसल, इस्माइल कादरी के साथ टीम में दिखाए गए 2 अन्य अफसर पुलिस की आभा से दूर दिखे. तीनों के चेहरे पर किसी तरह का पुलिसिया रौब दिखाई ही नहीं दिया. इसी एपिसोड में 2 नए किरदारों की एंट्री बेहद हास्यास्पद नजर आई. यहां एक मोटा सेठ गरीब दिखने वाले व्यक्ति को पीट रहा होता है. उस की जेब से सेठ का बटुआ निकलता है.
उसे पीटते वक्त ही इस्माइल कादरी के तीनों नाबालिग बच्चे वहां पहुंच जाते हैं. बीचबचाव करते हुए उसे पीटने से रोकने का काम बच्चे करते हैं. यह दृश्य हटने के बाद पता चलता है कि पिट रहा व्यक्ति इस्माइल कादरी का साला है.
वह भांजों की मदद से बच तो जाता है, लेकिन मोटा सेठ से छूटने के बाद पता चलता है कि पर्स से नकदी वह पहले ही निकाल चुका होता है. अगले सीन में इस्माइल कादरी उसे डपट कर घर से भगाते हुए दिखाया गया.
एपिसोड का महत्त्वपूर्ण किरदार अब्दुल्ला बताया गया है. यह भूमिका विवान भतेना ने निभाई है. इस सीरीज में यही एकमात्र कलाकार है, जिस का योगदान कुछ खास दिखा. यूपी का रहने वाला अब्दुला पठान के अखाड़े में कुश्ती करता था. उसे पछाड़ने वाला पठान के गैंग में कोई नहीं था. जिस कारण ईर्ष्या के चलते दोनों पठान भाई उसे अपमानित करने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे. लेकिन, हाजी मकबूल इस हुनर का काफी दीवाना दिखाया गया.
एपिसोड में एक जैसे दिखने वाले 3 सीन पुलिस रेड के दिखाए गए हैं, जिस में दर्शकों को कुछ भी नया नहीं मिलेगा. आखिरी रेड में जब सफलता हाथ लगती है, तब तक दर्शकों का मूड सीरीज से ही ऊब चुका होता है. घटिया डायरेक्शन की इसे हम निशानी कह सकते हैं.
दूसरे एपिसोड की शुरुआत हाजी मकबूल से होती है. रेड के बाद इस्माइल कादरी के घर आ कर उसे वह लालच दे कर साथ देने के लिए बोलता है, लेकिन हाजी मकबूल को शैतान बोल कर उसे अपमानित करने लगता है. अपनी कहानी सुना कर वह अपने साथ मिल कर काम करने के लिए उकसाता है, लेकिन हाजी मकबूल की बातों का असर उस पर नहीं होता. वह उसे घर से निकाल देता है.
जब वह बाहर जा रहा होता है, तब कादरी के तीनों बच्चे आ जाते हैं, जो हाजी मकबूल के ड्राइवर से बहस करते हैं. यह बेतुका सीन डायरेक्टर ने जबरदस्ती क्रिएट किया है. दूसरे एपिसोड में डायरेक्टर द्वारा इस्माइल कादरी के साले के जरिए उस के ईमानदार होने की फिर एक बार जबरिया पटकथा लिखी जाती है.