Short Story : रेलवे के तकनीकी विभाग में कार्यरत राजेश पांडेय देखने में भले ही एक युवक था, लेकिन मानसिक रूप से वह बचपन से ही एक लड़की था. भावनाएं जाहिर न करने की वजह से घर वालों ने एक लड़की से उस की शादी भी कर दी. इस के बाद स्त्री बन कर अपनी अलग पहचान बनाने के लिए राजेश उर्फ सोनिया पांडेय ने जो संघर्ष किया वह...

काफी जद्दोजहद के बाद अब मैं असली जिंदगी जी रही हूं और जिंदगी के मजे ले रही हूं. इस के लिए मुझे काफी संघर्ष करना पड़ा. संघर्ष भी किसी और से नहीं, बल्कि अपने परिवार से और समाज से, तब कहीं जा कर मैं अपनी असली पहचान बना पाई हूं. जिसे अब मेरा परिवार और समाज भी स्वीकार करने लगा है. मैं कौन हूं, क्या हूं और मेरे परिवार में कौनकौन हैं, इस के बारे में मैं बताए देती हूं. इस की शुरुआत मैं अपने घर से ही करती हूं. दरअसल, मेरे पिता ख्यालीराम पांडेय मूलरूप से उत्तराखंड के शहर अल्मोड़ा के रहने वाले थे. वह 1960 में उत्तर प्रदेश के शहर बरेली आ गए.

वह पूर्वोत्तर रेलवे में इंजीनियर के पद पर कार्यरत थे. बरेली की इज्जतनगर रेलवे की वर्कशाप में वह काम करते थे. परिवार में मेरी मां निर्मला और एक बड़ा भाई था. मेरा परिवार बरेली आ गया. बरेली में ही मेरा जन्म हुआ. मातापिता ने मेरा नाम राजेश रखा. मेरे बाद मेरी 2 छोटी बहनें हुईं. मैं कहने को तो लड़का थी, लेकिन मेरी आत्मा, मेरी भावना मुझे लड़की होने का एहसास कराती थी. जब मैं 5 साल की थी, तभी से मुझे लड़कियों की तरह रहना पसंद था, लड़कों की तरह नहीं. पापा मार्केट से मेरे लिए लड़कों वाली कोई ड्रेस ले कर आते तो मैं लड़कियों की डे्रस पहनने की जिद करती थी. मैं लड़कियों के कपड़े पहनना पसंद करती थी. कभी मां या बड़ी बहनें मुझे फ्रौक पहना देती थीं तो उन को उस फ्रौक को उतारना मुश्किल हो जाता था, मैं उन से बच के घर से बाहर भाग जाती थी.

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