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एक दिन सूरज रमाकांती के कमरे पर पहुंचा तो उस समय वह अकेली थी. कमरे के बाहर से ही उस ने पूछा, ‘‘भाभी, भाई साहब घर पर नहीं हैं क्या?’’

‘‘तुम अच्छी तरह जानते हो कि इस समय वह घर पर नहीं होते, फिर भी पूछ रहे हो?’’ रमाकांती ने सूरज की आंखों में आंखें डाल कर कहा तो वह इस तरह झेंप गया, जैसे उस की कोई चोरी पकड़ी गई हो. सच भी यही था. वह जानबूझ कर ऐसे समय में आया था. उस ने झेंप मिटाते हुए कहा, ‘‘तुम तो बहुत पारखी हो भाभी.’’

‘‘औरत की नजरें मर्द के मन को बड़ी जल्दी पहचान लेती हैं देवरजी.’’ रमाकांती ने इठलाते हुए कहा, ‘‘अंदर आ कर बैठो, मैं तुम्हारे लिए चाय बनाती हूं.’’

सूरज पलंग पर बैठते हुए बोला, ‘‘भाभीजी, तुम ने मेरी चोरी पकड़ ली, लेकिन यह तो बताओ कि मेरा इस तरह आना तुम्हें बुरा तो नहीं लगा?’’

‘‘अगर बुरा लगा होता तो तुम्हें अंदर बुला कर चाय क्यों पिलाती?’’ रमाकांती ने एक आंख दबा कर मुसकराते हुए कहा.

‘‘बुरा न मानो तो एक बात कहूं भाभी?’’ सूरज ने सूखे होंठों पर जीभ फेरते हुए कहा.

‘‘कहो,’’ रमाकांती तिरछी नजरों से उसे घूरते हुए बोली, ‘‘अपनों की बात का भी कोई बुरा मानता है.’’

‘‘भाभी, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. इसीलिए मेरा मन तुम्हें बारबार देखने को मचलता रहता है.’’

‘‘भला मुझ में ऐसी कौन सी बात है, जो तुम्हारा मन मुझे बारबार देखने को मचलता है.’’ रमाकांती ने तिरछी चितवन का तीर चलाते हुए कहा.

‘‘यह पूछो कि तुम में क्या नहीं है. हिरनी जैसी चंचल आंखें, उन में थोड़ी उदासी, गठा हुआ बदन और होंठों पर अप्सराओं जैसी मादक मुसकान,’’ सूरज ने मस्का लगाते हुए कहा, ‘‘काश, तुम मेरी किस्मत में लिखी होती तो मैं तुम्हें रानी बना कर रखता.’’

‘‘यह सब कहने की बातें हैं देवरजी. पहले ‘वह’ भी ऐसा ही कहते थे. सारे मर्द एक जैसे होते हैं. बाहर से कुछ और अंदर से कुछ और.’’ रमाकांती ने ताना मारा.

‘‘मैं भाई साहब की तरह नहीं हूं. उन्हें तुम्हारी कद्र करना ही नहीं आता,’’ सूरज ने मौके का फायदा उठाते हुए कहा, ‘‘उन्हें तुम्हारे सुख की जरा भी परवाह नहीं रहती. वह सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं.’’

‘‘तुम्हें कैसे पता?’’ रमाकांती ने भौंहें सिकोड़ कर कहा.

‘‘भाभी, इंसान की आंखों से ही उस के दिल की बात का पता चल जाता है. मुझे तुम्हारी आंखों से ही तुम्हारे दिल के दर्द का पता चल गया है.’’

सूरज की इन बातों से रमाकांती को मजा आने लगा था. इसी चक्कर में वह चाय भी बनाना भूल गई. अचानक खयाल आया तो बोली, ‘‘तुम्हारी बातों में पड़ कर मैं तो चाय बनाना ही भूल गई.’’

‘‘रहने दो भाभी, बस तुम्हें देख लिया, आत्मा तृप्त हो गई. अब मैं चलता हूं.’’ कह कर सूरज चला तो गया, लेकिन रमाकांती की हसरतों को हवा दे गया.

रमाकांती अब सूरज की चढ़ती जवानी के सपने देखने लगी. दूसरी ओर सूरज भी उसे अपनी कल्पनाओं की रानी बनाने लगा. इस के बाद सूरज और रमाकांती के बीच होने वाला हंसीमजाक छेड़छाड़ तक पहुंच गया. सूरज जब भी रमाकांती के कमरे पर आता, उस के बच्चों के लिए कुछ न कुछ ले कर आता. ऐसे में एक दिन रमाकांती ने उसे टोका, ‘‘तुम्हें बच्चों की खुशी का तो इतना खयाल रहता है, कभी भाभी की खुशी के बारे में भी सोचते हो?’’

अपनी बात कह कर रमाकांती एक आंख दबा कर मुसकराई तो सूरज उस का इशारा समझ गया कि वह क्या चाहती है. बात यहां तक पहुंच गई तो वह उचित मौके की तलाश में रहने लगा.

एक दिन सूरज ऐसे समय पर रमाकांती के कमरे पर पहुंचा, जब उस के बच्चे कमरे पर नहीं थे. आसपास के कमरों में रहने वाले भी इधरउधर थे. उस के कमरे में आते ही रमाकांती ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आज यह मत पूछना कि भाई साहब हैं या नहीं? मुझे पता है कि तुम यहां क्यों आए हो.’’

‘‘तुम्हीं ने तो बुलाया था?’’ सूरज हंस कर बोला.

‘‘अरे, मैं ने तुम्हें कब बुलाया?’’

सूरज आगे बढ़ कर बोला, ‘‘अच्छा भाभी, सचसच बताना, जब भी मैं तुम से बात करता हूं, तुम्हारी आंखों की चाहत मुझे बुलाती है या नहीं?’’

इतना कह कर सूरज ने रमाकांती का हाथ पकड़ लिया और अपना मुंह उस के मंह के पास ले जा कर बोला, ‘‘उन्हीं के बुलाने पर आया हूं.’’

‘‘दिल की बात कहने का अंदाज तो तुम्हारा बहुत अच्छा है,’’ रमाकांती ने प्यार से उस के गाल पर चपत लगा कर कहा, ‘‘हाथ छोड़ो तो चाय बना कर लाऊं.’’

‘‘इस तनहाई में चाय पीने का नहीं, कुछ और ही पीने का मन हो रहा है. बोलो पिलाओगी न?’’

‘‘मैं ने कब मना किया है,’’ रमाकांती ने अपना सिर उस के सीने पर रख कर कहा, ‘‘पहले दरवाजा तो बंद कर लो.’’

रमाकांती का खुला आमंत्रण पा कर सूरज की बांछें खिल उठीं. इस के बाद वहां जो हुआ, वह किसी भी लिहाज से सही नहीं था. रमाकांती की जिस्म की आग ने सारी मर्यादाओं को जला कर राख कर दिया.

उस दिन के बाद इस का सिलसिला सा चल निकला. जब भी मौका मिलता, सूरज और रमाकांती एकदूसरे की बांहों में समा जाते. लेकिन इस के लिए सूरज को रमाकांती के कमरे पर आना पड़ता था.

रामचंद्र की गैरमौजूदगी में सूरज का रमाकांती के कमरे पर बारबार आना आसपड़ोस वालों को अखरने लगा. उन की समझ में आ गया कि सूरज और रमकांती के बीच गलत संबंध है. इन दोनों के संबंधों की चर्चा होने लगी तो उड़तेउड़ते यह बात रामचंद्र के कानों तक भी पहुंची. लेकिन उसे इस बात पर यकीन नहीं हुआ.

जब लोग रामचंद्र पर ताने कसने लगे तो एक दिन उस ने रमाकांती से पूछा, ‘‘मैं ने सुना है कि मेरी गैरमौजूदगी में सूरज यहां आता है?’’

‘‘हां, कभीकभी आ जाता है बच्चों से मिलने के लिए.’’ रमाकांती ने कहा.

‘‘तुम्हें पता होना चाहिए कि मोहल्ले वाले तुम दोनों को ले कर तरहतरह की बातें कर हैं?’’

‘‘लोगों का क्या, वे किसी को खुश थोड़े ही देख सकते हैं, इसीलिए मनगढ़ंत कहानी रचते रहते हैं. तुम्हें लगता है कि मैं ऐसा नीच काम कर सकती हूं?’’ रमाकांती ने सवाल किया तो रामचंद्र शर्मिंदा हो गया. उसे लगा कि उसने पत्नी पर शक कर के ठीक नहीं किया.

लेकिन सच्चाई को कितना भी छिपाया जाए, वह छिपती नहीं. रामचंद्र को शक तो हो ही गया था, एकदो बार उस ने पत्नी की पिटाई भी की, लेकिन रमाकांती हमेशा यह सिद्ध करने में सफल रही कि उस का शक झूठा है.

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