उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले के मुरादनगर से सटा गांव है बसंतपुर सैंथली. यहां भी तेजी से शहरीकरण के चलते जमीनों के दाम आसमान छूने लगे हैं. बिल्डर आते हैं, किसानों को लुभाते हैं और उस भाव में खेतीकिसानी की जमीनों के सौदे करते हैं, जिस की उम्मीद किसानों ने कभी सपने में भी नहीं की होती.

एक बीघा के 50 लाख से ले कर एक करोड़ रुपए सुन कर किसानों का मुंह खुला का खुला रह जाता है कि इतना तो वे सौ साल खेती कर के भी नहीं कमा पाएंगे. और वैसे भी आजकल खेतीकिसानी खासतौर से छोटी जोत के किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित होने लगी है.

लिहाजा वे एकमुश्त मिलने वाले मुंहमांगे दाम का लालच छोड़ नहीं पाते और जमीन बेच कर पास के किसी कसबे में बस जाते हैं.

इसी गांव का एक ऐसा ही किसान है 48 वर्षीय लीलू त्यागी, जिस के हिस्से में पुश्तैनी 15 बीघा जमीन में से 5 बीघा जमीन आई थी. बाकी 10 बीघा 2 बड़े भाइयों सुधीर त्यागी और ब्रजेश त्यागी के हिस्से में चली गई थी.

जमीन बंटबारे के बाद तीनों भाई अपनीअपनी घरगृहस्थी देखने लगे और जैसे भी हो खींचतान कर अपने घर चलाते बच्चों की परवरिश करने लगे. बंटवारे के समय लीलू की शादी नहीं हुई थी, लिहाजा उस पर घरगृहस्थी के खर्चों का भार कम था.

गांव के संयुक्त परिवारों में जैसा कि आमतौर पर होता है, दुनियादारी और रिश्तेदारी निभाने की जिम्मेदारी बड़ों पर होती है, इसलिए भी लीलू बेफिक्र रहता था और मनमरजी से जिंदगी जीता था.

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