‘‘सर, जब मैं जग्गी साहब को छोड़ कर घर आया तो लेटते ही सो गया. सुबह तक जग्गी साहब नहीं आए तो मैं ने पड़ोस के पीसीओ से उन के बताए नंबर पर फोन किया. फोन सचमुच लड़की ने उठाया. मैं ने उस से जग्गी साहब के बारे में पूछा तो उस ने कहा कि इस नाम का कोई आदमी वहां नहीं रहता. इस पर मैं ने उसे समझाते हुए कहा कि उन का पूरा नाम जोगेंद्रलाल मेहता है और वह पंजाब नैशनल बैंक में नौकरी करते हैं. इस पर भी उस ने मना कर दिया कि वह इस नाम के आदमी को नहीं जानती.’’
‘‘ठीक है, तुम हमारे साथ वहां चलो, जहां रात में जग्गी साहब को छोड़ कर गए थे.’’
मुन्ना सतीश मेहता को उस जगह ले गया, जहां उस ने जग्गी को छोड़ा था. वह विश्वासनगर का एक पुराना सा मकान था. मुन्ना ने उस मकान की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘हम इसी मकान के आगे रुके थे और इसी दरवाजे से जग्गी साहब अंदर गए थे.’’
उस मकान में ताला लटक रहा था. सतीश मेहता ने पड़ोसियों से उस मकान में रहने वालों के बारे में पूछा तो पता चला कि उस घर में हरीश विरमानी अपनी पत्नी कांता और 2 जवान बेटियों यवनिका तथा शामला के साथ रहते थे.
विरमानी के दिमाग की नस फट गई थी, जिस की वजह से उन दिनों इस परिवार को काफी परेशानी झेलनी पड़ रही थी. विरमानी चंडीगढ़ के पीजीआई में भरती थे. परिवार के लोग अकसर चंडीगढ़ में ही रहते थे. संभव था कि उस समय भी घर पर ताला लगा कर वहीं गए हों.
वहां काम की कोई जानकारी नहीं मिल सकी. इस पर सतीश सुरजीत सिंह के घर की ओर बढ़ गए. उन का घर भी विश्वासनगर में ही था. वह स्थानीय इलैक्ट्रिसिटी बोर्ड में काम करते थे. सुरजीत घर पर ही मिल गए.
उन से जग्गी मेहता के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि जग्गी उन का दोस्त था और उन से हर तरह की बातें शेयर करता था. एक बार उस ने मुझे बताया था कि हरीश विरमानी की लड़कियां बदचलन हैं.
पलभर बाद सुरजीत ने दिमाग पर जोर देते हुए कहा, ‘‘डेढ़, 2 महीने पहले की बात है. विरमानी अपनी बीमारी की वजह से चंडीगढ़ के पीजीआई अस्पताल में भरती था. जग्गी ने उस का हालचाल लेने की बात कही तो मैं उसे अपनी कार से चंडीगढ़ ले गया. उस समय जग्गी के साथ विरमानी की बड़ी बेटी यवनिका भी थी. वापसी में जीरकपुर के एक होटल में जग्गी ने गाड़ी रुकवा कर मुझे बीयर पिलाई और खुद भी पी. उस के बाद मुझे बाहर बैठा कर वह खुद यवनिका को ले कर होटल के कमरे में चला गया. वहां से वह करीब पौन घंटे बाद लौटा.’’
‘‘तुम्हारे कहने का मतलब यह है कि जग्गी और यवनिका के बीच गलत संबंध थे?’’ सतीश मेहता ने पूछा.
‘‘इस बारे में पक्के तौर पर तो कुछ नहीं कह सकता, लेकिन जब हम चंडीगढ़ से लौट रहे थे तो पिछली सीट पर बैठा जग्गी लगातार यवनिका के साथ अश्लील हरकतें करता रहा था.’’ सुरजीत ने कहा.
उस की इस बात पर मोहनलाल मेहता भड़क उठे. ‘‘ऐसा नहीं हो सकता. मेरा बेटा 40 साल का हो चुका है और बालबच्चेदार है. उस की खूबसूरत पढ़ीलिखी बीवी है.’’
सतीश मेहता ने उन्हें समझाया कि इस तरह की बातों पर भावुक होने की जरूरत नहीं है. हमें हर बात को ध्यान में रख कर जांच आगे बढ़ानी है.
इस पर मोहनलाल कुछ सोचते हुए बोले, ‘‘हरीश विरमानी की लड़कियों के पास कुछ लड़के आया करते थे. इस बारे में मेरे बेटे ने कुछ अन्य लोगों के साथ मिल कर पुलिस से शिकायत भी की थी.’’
‘‘क्या हुआ था शिकायत वाले मामले में?’’
‘‘दोनों पार्टियों में समझौता करा दिया गया था. उस के बाद लड़कियों के पास फालतू लोगों का आना बंद हो गया था.’’
‘‘यह तो आप के बेटे ने अच्छा काम किया था. लेकिन अभी मुझे सुरजीत से कुछ और पूछना है.’’
‘‘आप के कुछ पूछने से पहले मैं एक बात जानना चाहता हूं. आप जिस जग्गी मेहता के बारे में पूछ रहे हैं, उस ने कुछ कर दिया है क्या?’’
‘‘वह गायब है और हम उस की तलाश में लगे हैं.’’
सुरजीत का घर दूर नहीं था. इंसपेक्टर सतीश मेहता मोहनलाल को ले कर उस के घर पहुंचे. वह घर पर ही था. मेहता ने उस से पूछा, ‘‘14 जुलाई की रात जग्गी मेहता से तुम्हारी कोई बातचीत हुई थी?’’
‘‘जी सर, उस रात वह मेरे पास आया था. आते ही उस ने यवनिका को फोन किया था. उस के प्रोग्राम के अनुसार उस रात उसे यवनिका के साथ रहना था. उस ने मुझ से 2 हजार रुपए मांगते हुए कहा था कि अगर उसे कार की जरूरत पड़ी तो वह मेरी कार ले जाएगा. लेकिन मैं ने उसे कार देने से इनकार कर दिया था. इस की वजह यह थी कि वह मेरा दोस्त जरूर था, लेकिन वह बालबच्चेदार था, इसलिए मुझे यह ठीक नहीं लगा.’’
‘‘तुम्हारे पास वह अकेला ही आया था?’’
‘‘जी, वह अकेला ही आया था.’’
‘‘उस का चपरासी मुन्ना साथ नहीं था?’’
‘‘जी नहीं, वह साथ में नहीं था. जग्गी ने मुझे बताया कि उसे अपने घर पर बैठा कर वह शराब लेने आया था.’’
‘‘फिर क्या हुआ था?’’
‘‘वह मुझ से 2 हजार रुपए ले कर चला गया था. आधी रात के बाद उस का फोन आया था. तब उस ने कहा था कि वह यवनिका के घर से बोल रहा है. उस ने एक बार फिर कार मांगी थी, लेकिन मैं ने मना कर दिया था.’’
‘‘उस के बाद क्या किया था उस ने?’’
‘‘क्या किया, पता नहीं. शायद टैक्सी ले कर अंबाला से कहीं बाहर चला गया होगा?’’
इस के बाद सतीश मेहता मोहनलाल के घर जा पहुंचे. जग्गी मेहता की पत्नी का नाम संतोष था. वह पब्लिक स्कूल में टीचर थीं. सतीश मेहता ने शालीनता के साथ पतिपत्नी के रिश्तों के अलावा जग्गी के बारे में कुछ बातें पूछीं और मोहनलाल के साथ थाने लौट आए.
वापस लौट कर उन्होंने थाने में रखे लाश के कपड़े और फोटो मोहनलाल को दिखाए तो उन्होंने रोते हुए कहा, ‘‘ये कपड़े और फोटो मेरे बेटे के हैं.’’
सतीश मेहता ने उन्हें सांत्वना दी और समझा कर कहा, ‘‘आप एक अरजी लिख कर दे दें ताकि हम रिपोर्ट लिख कर आगे की काररवाई शुरू करें.’’
‘‘क्या आप इस अभागे बाप को बेटे की लाश दिखा देंगे?’’
लेकिन एक दिन पहले ही लाश को लावारिस मान कर उस का अंतिम संस्कार कर दिया गया था, यह बात सतीश मेहता ने उन्हें बता दी.
दुखी मन से मोहनलाल मेहता उठे और धीरेधीरे चलते हुए थाने से बाहर निकल गए. उन की मानसिक दशा देख कर सतीश मेहता ने कुछ कहना उचित नहीं समझा. मोहनलाल मेहता दोबारा थाने नहीं आए तो उन्हें बुलाने के लिए सिपाही भेजे गए, लेकिन वह टालते रहे. इस से पुलिस को लगा कि शायद वह बेटे की बदनामी से डर गए हैं.
लेकिन 2 अगस्त की सुबह मोहनलाल मेहता बेटे की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराने आ पहुंचे. उन की तहरीर के आधार पर यवनिका, शामला, अमित और सुनील को संदिग्ध मानते हुए नामजद रिपोर्ट दर्ज कर ली गई.
रिपोर्ट दर्ज होने के बाद सतीश मेहता ने एसपी आर.सी. जोवल से संपर्क किया तो उन्होंने काररवाई का आदेश दे दिया. सतीश मेहता ने अपनी एक टीम गठित की, जिस में एसआई सोमदत्त, एएसआई गुरमेल सिंह, हवलदार आनंद किशोर, अश्विनी कुमार, राधेश्याम के अलावा कुछ महिला पुलिसकर्मियों को शामिल किया गया.