अच्छा इंसान वही होता है, जो अपनी गलती स्वीकार कर के उसे सुधार ले, लेकिन चंचल ने उल्टा दांव चला. वह हैरान हो कर बोली, “यह आप क्या कह रही हैं मांजी? आप को इतनी घटिया बातें सोचते हुए शरम नहीं आई?”
“सोचना क्या, मैं सब देख रही हूं.” कमला गुस्से से बोलीं.
“सच देखतीं तो आप ऐसा नहीं बोलतीं. ऐसा कुछ भी नहीं है, जैसा आप सोच रही हैं. अपने दिमाग से इस तरह की बातों को निकाल दीजिए.”
“सच्चाई तो कड़वी लगती है बहू, लेकिन मैं ने तुम्हें समझाना अपना फर्ज समझा. मैं तुम्हारी हरकतों से अपने परिवार को बदनाम नहीं होने दूंगी.” बहू के शातिराना रुख से हैरान कमला ने चेतवानी भरे लहजे में कहा.
उन्होंने अगले दिन संजय को भी समझाया कि वह उन के यहां ज्यादा न आया करे. पतन की राहें बहुत रपटीली होती हैं. कुछ दिनों तो दोनों दूर रहे, लेकिन बहुत जल्द दोनों पुराने ढर्रे पर उतर आए. संजय रात के वक्त भी छिपतेछिपाते आने लगा. जो गलतियां करता है, वह कहीं न कहीं लापरवाह भी हो जाता है. एक रात कमला ने उन दोनों को पकड़ा तो उन्हें जम कर फटकारा.
संजय चुपचाप वहां से खिसक गया. कमला ने चंचल को खरीखोटी सुनाई, “मैं ने सोचा था चंचल कि तू मेरी बातों से संभल जाएगी, लेकिन अब पानी सिर से ऊपर चला गया है. अब मैं यह सब बरदाश्त नहीं कर सकती. मुझे इस बारे में दीपक से बात करनी पड़ेगी.”
चंचल रंगेहाथों पकड़ी गई थी. उस के पास कहनेसुनने को कुछ नहीं था. वह नहीं चाहती थी कि यह बात उस के पति तक पहुंचे. उस ने कमला से माफी मांग कर कभी कोई गलती न करने की कसम खाई. सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते. कमला ने भी वक्त के साथ बहू को माफ कर दिया. बेटे को दु:ख न पहुंचे, इसलिए वह इन बातों को दबा गईं. संजय का आनाजाना भी कम हो गया. अपने किए पर वह भी माफी मांग चुका था.


 
 
 
            



 
             
                
                
                
                
                
                
                
                
                
               
 
                
               
