सुबह के करीब 7 बजे का वक्त था. परेशान सा इलियास घर के बरामदे में टहल रहा था. कभी वह दरवाजे पर जा कर बाहर झांकता, तो कभी गली में चक्कर लगा कर घर में लौट जाता. पड़ोस में रहने वाले लियाकत ने इलियास को परेशान देख कर पूछ लिया, ‘‘खैरियत तो हैं इलियास मियां, कुछ परेशान दिख रहे हो?’’
इलियास ने पहले उसे गहरी नजरों से देखा, फिर जवाब दिया, ‘‘हां, परेशानी की ही बात है.’’
‘‘क्या हुआ मियां, जरा हमें भी तो बताओ?’’
‘‘तुम्हारी भाभी का कुछ अतापता नहीं है.’’
‘‘मतलब?’’
‘‘कल वह दवा लेने दिल्ली गई थी, लेकिन अभी तक आई नहीं है. परेशानी यह है कि उस के साथ तीनों बच्चे भी हैं.’’
‘‘मोबाइल तो होगा उन के पास?’’ लियाकत ने जिज्ञासावश पूछा तो इलियास चिंता जाहिर करते हुए बोला, ‘‘हां है, लेकिन नंबर मिलामिला कर थक गया हूं. बराबर बंद आ रहा है. खुदा खैर करे, किसी परेशानी में न फंस गई हो वह.’’
‘‘ऐसा क्यों सोचते हो इलियास भाई, आ जाएंगी.’’ लेकिन लियाकत के समझाने पर भी इलियास की परेशानी रत्ती भर कम नहीं हुई. इलियास की जगह कोई और भी होता तो ऐसे हालातों में वह भी इसी तरह परेशान होता.
इलियास उत्तर प्रदेश के जाट बाहुल्य बागपत जिले के कोतवाली क्षेत्र में आने वाले गांव चौहल्दा का रहने वाला था. वह दिल्ली के दिलशाद गार्डन इलाके की रेडीमेड गारमेंट्स फैक्ट्री में इस्तरी करने का काम करता था. उस के परिवार में पत्नी नसीमा, 7 साल का बेटा नाजिम, 5 साल की बेटी नाजिया और 4 साल के बेटे अकरम को मिला कर 5 सदस्य थे. नसीमा 7 महीने की गर्भवती थी.
इलियास दिल्ली में अकेला रहता था. बीचबीच में वह गांव आता रहता था. जबकि नसीमा बच्चों के साथ गांव में ही रहती थी. दुबलपतला इलियास किसी तरह मेहनत कर के अपने परिवार को पाल रहा था.
7 फरवरी, 2014 को नसीमा बच्चों के साथ दिल्ली गई थी, लेकिन अगले दिन तक भी वापस नहीं आई थी. इलियास इसी बात को ले कर किसी अनहोनी की आशंका से परेशान था.
इलियास व लियाकत इस मसले पर बात कर ही रहे थे कि तभी एक शख्स तेजी से साइकिल चलाते हुए उन के पास आया. उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. उस ने हांफते हुए बताया, ‘‘इलियास भाई गजब हो गया.’’
इलियास ने फटीफटी आंखों से उस की तरफ देख कर पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’
‘‘किसी ने नसीमा भाभी का कत्ल कर दिया है.’’
‘‘या अल्लाह,’’ इलियास अपने कानों पर हाथ रख कर चिल्लाया.
‘‘भाभी की लाश गांव के रास्ते पर पड़ी है.’’ उस ने बताया तो इलियास के होश उड़ गए. वह रोने बिलखने लगा तो जरा सी देर में लोग एकत्र हो गए. सभी दौड़ेदौड़े गांव के बाहर पहुंचे.
नसीमा की लाश अहेड़ा रेलवे स्टेशन से चौहल्दा गांव तक आने वाले रास्ते पर सड़क के किनारे खेत में पड़ी थी. वहां पहले से ही लोग जमा हो चुके थे. किसी ने बड़ी बेरहमी से नसीमा की गरदन और चेहरे पर वार किए थे. लाश के पास ही उस का मोबाइल पड़ा था. लाश को सुबह काम पर जा रहे ग्रामीणों ने देखा था. लाश देख कर उन्होंने नसीमा को पहचान लिया था. उन्हीं में से एक व्यक्ति ने गांव जा कर इलियास को इस बात की जानकारी दी थी.
नसीमा के बच्चों का कहीं पता नहीं था. ग्रामीणों ने आसपास तलाश शुरू की तो गेहूं के खेत में जो दृश्य देखने को मिला, उसे देख कर सभी के रोंगटे खड़े हो गए. तीनों बच्चों की भी लाशें वहां पड़ी थीं. उन की हत्या बेरहमी के साथ धारदार हथियार से गला काट कर की गई थी.
इस चौहरे हत्याकांड से गांव में कोहराम मच गया. दिल दहला देने वाले इस दृश्य को देख कर लोगों की आंखें नम हो गईं. सभी के मन में एक ही सवाल था कि आखिर इन मासूमों ने किसी का क्या बिगाड़ा था? इलियास का रोरो कर बुरा हाल था. लोग गमजदा इलियास को संभालने की कोशिश कर रहे थे.
लोगों ने इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी. सनसनीखेज हत्याकांड की खबर मिलते ही थानाप्रभारी अनिल कपरवाल, सीओ एन.पी. सिंह और पुलिस अधीक्षक जितेंद्र कुमार शाही घटनास्थल पर आ गए. ग्रामीणों में भारी आक्रोश था.
निस्संदेह मामला गंभीर था. पुलिस ने शवों का निरीक्षण किया. सभी की गरदनों पर वार किए गए थे. घटनास्थल पर बिखरे खून से साफ पता चल रहा था कि हत्याएं उसी स्थान पर की गई थीं. हत्यारों ने नसीमा के मोबाइल के अलावा कोई सुबूत शवों के इर्दगिर्द नहीं छोड़ा था.
गमगीन माहौल में ही पुलिस ने पूछताछ की तो पता चला कि नसीमा की तबीयत खराब थी. वह दिल्ली के शाहदरा स्थित गुरु तेग बहादुर अस्पताल दवा लेने गई थी. शाम को संभवत: जब वह टे्रन से उतर कर गांव की तरफ जा रही थी, तभी उस की हत्या कर दी गई थी.
मामला चौहरे हत्याकांड का था, लिहाजा एसपी जे.के. शाही ने इस की सूचना मेरठ रेंज के आईजी आलोक शर्मा व डीआईजी के. सत्यनारायण को भी दे दी. पुलिस ने मौकामुआयना कर के शवों का पंचनामा किया और उन्हें पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. माहौल इस कदर गमगीन व गरमाया हुआ था कि इलियास से ज्यादा पूछताछ नहीं की जा सकती थी.
बड़ी घटना के मद्देनजर आईजी व डीआईजी बागपत आ गए. हत्याकांड की प्राथमिक जानकारी ले कर उन्होंने अधिकारियों को इस मामले का जल्द से जल्द खुलासा किए जाने के निर्देश दिए. इसी बीच सैकड़ों की तादाद में ग्रामीण पोस्टमार्टम हाउस पर जमा हो गए.
उन्होंने रोष प्रकट कर के पुलिस के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी. इतना ही नहीं शवों को उठा कर उन्हें दिल्लीयमनोत्री हाईवे पर रख कर जाम लगा दिया. पुलिस ने विरोध किया तो लोग हाथापई पर उतारू हो गए. इलियास पुलिसकर्मियों से उलझ गया. अधिकारियों ने इसे उस की बदहवासी समझा.
पुलिस अधिकारियों ने ग्रामीणों को समझाया और जल्दी ही हत्यारों को पकड़ने का आश्वासन दिया. जब ग्रामीण नहीं माने तो पुलिस ने बल प्रयोग किया और जबरन शव अपने कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम कराया. पोस्टमार्टम के बाद शवों को ग्रामीणों के हवाले कर दिया गया. इस बीच इलियास की तरफ से थाने में अज्ञात हत्यारों के विरुद्ध भादंवि की धारा 302 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.
सामूहिक हत्या के इस जघन्य मामले को खोलने के लिए पुलिस पर दबाव बना हुआ था. पुलिस अपनी जांच में लगी थी. इसी जांच में चौंकाने वाली बात यह पता चली कि मृतका इलियास की दूसरी बीवी थी. उस की पहली बीवी वरीसा बागपत के ही निनाना गांव की रहने वाली थी. उस के आबिद, आबिदा, शाहिदा, शाहिद और राशिद 5 बच्चे थे. 12 साल पहले बीमारी के चलते वरीसा का इंतकाल हो गया था.
इलियास के रिश्तेदारों ने बच्चों के छोटे होने का वास्ता दे कर उसे दूसरे निकाह का मशविरा दिया. यह लोगों के मशविरे का असर था या इलियास की ख्वाहिश कि उस ने 3 साल बाद नसीमा से निकाह कर लिया.
नसीमा मूलत: बिहार के बेगूसराय जिले की रहने वाली थी. गुजरते वक्त के साथ नसीमा भी 3 बच्चों नाजिम, नाजिया व अकरम की मां बन गई. इस बीच इलियास की पहली बीवी का बड़ा बेटा आबिद 18 साल का हो चुका था. वह दिल्ली में अपने एक रिश्तेदार के यहां रह कर मेहनत मजदूरी करता था. जबकि बेटियां और अन्य 2 बेटे इलियास के पास ही रहते थे.
जब कहीं से कोई लीड नहीं मिली तो इस मामले की जांच की जिम्मेदारी सीओ एन.पी. सिंह के सुपुर्द कर दी गई. घटना की बारीकियों और हत्यारों तक पहुंचने के लिए ठोस तथ्यों की जरूरत थी. इस के लिए एन.पी. सिंह ने इलियास से पूछताछ की.