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मेज पर रखे मोबाइल फोन की घंटी बजी तो हेमा की नींद खुल गई. भरी दोपहरी में घर का कामधंधा निपटा कर वह आराम करने के लिए लेट गई थी. पंखे की हवा में कब उसे झपकी आ गई, उसे पता ही नहीं चला. अब फोन की घंटी ने उस के आराम में खलल डाल दिया था.

हेमा ने पलंग पर लेटेलेटे ही हाथ बढ़ा कर फोन उठा लिया. मोबाइल के डिसप्ले पर किसी अपने का नाम नहीं था. एक अनजान नंबर से यह काल आ रही थी. कौन है, यह जानने के लिए हेमा ने काल रिसीव करते हुए अलसाई आवाज में पूछा, ‘‘हैलो कौन?’’

‘‘मैं सचिन बोल रहा हूं…दिनेश है क्या?’’ किसी पुरुष की आवाज आई.

‘‘कौन दिनेश? यहां कोई दिनेश नहीं रहता. रौंग नंबर है आप का.’’ हेमा ने कहा और दूसरी ओर के व्यक्ति की प्रतिक्रिया जाने बिना फोन काट दिया.

‘कैसे बेवकूफ लोग भरे पड़े हैं दुनिया में, नंबर जांचपरख कर भी नहीं लगाते. अच्छीभली नींद आ रही थी, जगा दिया.’ हेमा बड़बड़ाई. उस ने मोबाइल को मेज पर रखा और आंखें बंद कर लीं.

कुछ ही देर हुई थी कि मोबाइल की घंटी फिर से बजने लगी. हेमा मेज की ओर हाथ बढ़ाते हुए झुंझला कर बोली, ‘‘अब कौन है?’’

हेमा ने मोबाइल उठाया. उस की स्क्रीन पर पहले वाला नंबर ही था, जिसे देख कर वह चौंकी, ‘‘अब क्या चाहिए इसे?’’ वह बड़बड़ाई और रिसीविंग का बटन दबा दिया.

वह कुछ कहती, उस से पहले ही दूसरी ओर का व्यक्ति बहुत जल्दीजल्दी बोला, ‘‘देखिए, प्लीज फोन मत काटना, आप मेरी बात सुन लीजिए.’’

‘‘ठीक है,’’ हेमा ने गंभीर स्वर में कहा, ‘‘कहिए, क्या कहना है आप को?’’

‘‘देखिए, मेरा दिनेश से बात करना बहुत जरूरी है. आप उस से एक बार मेरी बात करा दीजिए.’’

‘‘मिस्टर…’’ हेमा हत्थे से उखड़ गई, ‘‘आप को कहा न, यहां कोई दिनेश नहीं रहता. आप का रौंग नंबर लग रहा है.’’

‘‘सौरी मैडम,’’ दूसरी ओर से कहा गया और उस ओर से ही संबंध काट दिया गया.

हेमा ने मुंह बिगाड़ा, ‘एक बार में लोगों को समझ में नहीं आता है, मेरी नींद उड़ा कर ही रख दी.’ हेमा होंठों में बुदबुदाई और उस ने मोबाइल को मेज पर रखने के लिए हाथ बढ़ाया तो वह फिर घनघनाने लगा. हेमा ने मोबाइल को करीब कर के नंबर देखा, फिर से उसी नंबर को स्क्रीन पर देख कर उस की त्यौरियां चढ़ गईं.

वह पलंग पर उठ कर बैठ गई और बटन पुश करते हुए चिल्ला पड़ी, ‘‘तुम बारबार क्यों परेशान कर रहे हो?’’

‘‘मैडम, क्योंकि मुझे तुम्हारी आवाज बहुत सुरीली और कोयल सी मधुर लगी है. मैं बारबार उसे सुनने के लिए तुम्हें फोन लगा रहा हूं.’’ दूसरी ओर से गंभीर स्वर में कहा गया.

हेमा को रोमांच हो आया. कोई उस की आवाज की तारीफ में कसीदे पढ़ रहा था और वह थी कि उस पर झल्ला रही थी. वह एकदम नरम पड़ गई. उस ने बड़ी कोमल आवाज में पूछा, ‘‘मैं तुम्हारा नाम जान सकती हूं?’’

‘‘सचिन,’’ दूसरी ओर से बताया गया.

‘‘कहां से बोल रहे हो?’’

‘‘मथुरा के वृंदावन से,’’ सचिन नाम के युवक ने बताते हुए पूछा, ‘‘अपना नाम नहीं बताओगी क्या?’’

न चाहते हुए भी हेमा के मुंह से निकल गया, ‘‘मेरा नाम हेमा है, मैं दिल्ली में मंडावली इलाके में रहती हूं.’’

‘‘मेरा नंबर तुम्हारे फोन में आ गया है हेमा, इसे सेव कर लेना. कभी इस गरीब की याद आए तो बात कर लेना.’’ कहने के बाद उस ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

तारीफ सुन कर इतरा पड़ी हेमा

हेमा के होंठ मुसकरा पड़े. बैठेबिठाए उसे कोई चाहने वाला मिल गया था. जिसे उस ने न देखा था, न पहचानती थी. मन के कोने से आवाज आई, ‘‘देख लो हेमा, तुम्हारी आवाज का भी कोई दीवाना है. कोई तुम्हें बगैर देखे, बगैर जाने तुम्हारी ओर आकर्षित हो गया है.’’

हेमा अपनी किस्मत पर इतरा उठी. उस के दिल ने कहा, ‘हेमा तेरे इस कद्रदान को दिल के किसी कोने में जगह दे दे. खाली समय में इस से बातें कर के दिल का हाल कहा भी जाएगा और उस के दिल का हाल सुना भी जाएगा.’

रोमांच से भरी हेमा ने मोबाइल को होंठों से चूम लिया. क्यों न चूमती, इसी की बदौलत तो उसे आज एक दीवाना मिला था.

पूर्वी दिल्ली का मंडावली थाना क्षेत्र. इसी मंडावली में किराए का कमरा ले कर सुरेश अपनी पत्नी हेमा और 2 बच्चों के साथ रहता था.

सुरेश गाजीपुर की एक फैक्ट्री में काम करता था. हेमा घर का काम संभालती थी और बच्चों की देखभाल करती थी. सुरेश की उम्र 45 साल थी, हेमा उस से 8 साल छोटी थी. उस की उम्र 37 साल थी. उस का एक बेटा 15 साल का और दूसरा 13 साल का था.

2 बेटों की मां हेमा का शरीर भरा हुआ था. वह खूबसूरत और तीखे नैननक्श वाली महिला थी. उसे देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वह 2 बच्चों की मां है.

सुरेश की कमाई से घर ठीकठाक चल जाता था लेकिन हेमा की तमन्ना ऐशोआराम भरी जिंदगी जीने की थी. वह बाजार हाट में जब किसी अच्छे घरों की महिलाओं के बदन पर कीमती कपड़े और उन का बनावशृंगार देखती तो उस का भी मन वैसे ही कपड़े पहनने और हर रोज ब्यूटीपार्लर में जा कर सजनेसंवरने का होता था.

दिल्ली के पौश इलाकों में वह आलीशान बंगले देखती तो उस की इच्छा होती कि वह भी ऐसे ही किसी आलीशान बंगले में रहे. बड़ीबड़ी कीमती कारों को देख कर भी उस की इच्छा उन में बैठ कर सैरसपाटा करने की होती थी. लेकिन हर इच्छा पूरी होना आसान नहीं था.

लेकिन वह मजबूरी में किराए के कमरे में रहती थी. पति और बच्चों के लिए 2 वक्त की रोटियां बनाना और घर की साफसफाई करना. इसी में उसे संतुष्ट रहना पड़ता था. चाह कर भी और न चाह कर भी.

सुरेश मेहनत करने में कोई कसर नहीं छोड़ता था. लेकिन उस में एक ऐब था, वह शराब पीता था. उस का काफी रुपया शराब की भेंट चढ़ जाता था. हेमा उसे समझासमझा कर थक चुकी थी.

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