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इकबाल शफकत को समझाता रहता था कि वह उस से बहुत प्यार करता है और उस के बिना रह नहीं सकता. इस के बावजूद शफकत जयपुर में मकान ले कर अलग रहने की जिद पर अड़ी थी. उस का कहना था कि वह तो नौकरी कर ही रही है, अगर वह भी यहां आ जाएगा तो उसे भी बढि़या नौकरी मिल लाएगी. दोनों कमाएंगे और आराम से रहेंगे.  वैसे चाहे इकबाल जयपुर चला भी जाता, लेकिन शक की वजह से वह वहां नहीं जाना चाहता था. यही नहीं, वह यह भी नहीं चाहता था कि शफकत वहां रहे. इसीलिए वह जयपुर नहीं जा रहा था.

शफकत के जयपुर में रहने की जिद से इकबाल परेशान रहने लगा था. उसे लगने लगा था  कि शफकत बेवफा हो गई है. दोनों ही अपनीअपनी जिद पर अड़े थे. जब अब्दुल्ला को पता चला कि शफकत और इकबाल के बीच ठीक नहीं चल रहा है तो उस ने इकबाल को फोन किया. पहले तो उस ने दोस्त को समझाया. लेकिन जब वह अपनी जिद पर अड़ा रहा तो अब्दुल्ला ने कहा, ‘‘इकबाल, अगर तुम शफकत को ज्यादा परेशान करोगे और उस की बात नहीं मानोगे तो किसी दिन मैं तुम्हें गोली मार दूंगा.’’

कभी रूम पार्टनर और दोस्त रहे अब्दुल्ला ने गोली मारने की बात की तो इकबाल को भी गुस्सा आ गया. अब वह इस परेशानी से छुटकारा पाने के बारे में सोचने लगा. अब वह इस बात को ले कर काफी परेशान रहने लगा था, क्योंकि बात अब जान लेने तक पहुंच गई थी.

काफी सोचविचार कर 16 अगस्त को इकबाल ने नूंह से एक देसी कट्टा और 10 कारतूस खरीदे. 19 अगस्त को उस ने अपने गांव बिछोर से एक बोलेरो जीप किराए पर की और जयपुर पहुंच गया. बोलेरो के ड्राइवर से उस ने कहा था कि वह जयपुर अपनी बीवी को विदा कराने जा रहा है. जयपुर पहुंच कर उसने रामगंज में रैगरों की कोठी के पास बोलेरो रुकवा कर ड्राइवर से कहा, ‘‘तुम यहीं रुको, मैं दस मिनट में अपनी बीवी और बच्चे को ले कर आ रहा हूं. उस के बाद गांव चलेंगे.’’

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