‘‘सर, मैं मोहल्ला इसलामपुर से दाऊद पुत्र आफताब अली बोल रहा हूं. मेरी चचेरी बहन गुलफ्शा यहां चारपाई पर मृत अवस्था में पड़ी मिली है. आप को सूचना देना जरूरी लगा तो फोन किया है.’’
‘‘ओह!’’ दूसरी ओर से खारी का स्वर गंभीर हो गया, ‘‘आप हमें अपना पूरा एड्रैस बताइए.’’
मोहम्मद दाऊद ने उन्हें अपने चाचा के घर का पूरा पता बता दिया और फोन काट कर जेब में डालते हुए बोला, ‘‘गुलफ्शा की लाश को कोई हाथ न लगाए. पुलिस थोड़ी देर में यहां पहुंच जाएगी.’’
सभी चारपाई से पीछे हट गए. जो महिलाएं रुदन कर रही थीं, उन का रुदन भी थम गया. हां, गुलफ्शा की अम्मी शमशीदा अभी भी घुटनों में मुंह रख कर धीरेधीरे सिसक रही थी.
थोड़ी देर में ही कोतवाली थाने के एसएचओ अमित कुमार खारी अपनी टीम के साथ वहां आ गए. उन की टीम में इंसपेक्टर सुरेंद्र पाल सिंह, अरविंद कुमार शर्मा, एसआई विनेश कुमार, राजीव कुमार, महिला कांस्टेबल दीपिका व अनुज कुमार, सहायक चौकी इंचार्ज कैला भट्ठा अनंगपाल राठी थे.
कांस्टेबल दीपिका ने लाश का निरीक्षण कर एसएचओ खारी को बताया, ‘‘सर, गुलफ्शा की गरदन पर खरोंच के निशान हैं और सूजन भी है. लगता है इसे गला घोंट कर मारा गया है. इस की कलाई पर भी खरोंच के निशान दिखाई दे रहे हैं.’’
इस के बाद एसएचओ पूछताछ के लिए अपने साथ नन्हे, उस के बेटों, बहू और नन्हे की बीवी शमशीदा को ले कर घर की बैठक में आ गए.
उन्होंने नन्हे के चेहरे पर गहरी नजरें जमा कर सख्त लहजे में पूछा, ‘‘तुम ने गुलफ्शा को क्यों मारा?’’
‘‘क्या कह रहे हैं साहब,’’ नन्हे घबरा कर बोला, ‘‘गुलफ्शा मेरी लाडली बेटी थी. मैं उसे हर तरह से खुश रखने की कोशिश करता था. मैं ने उसे कभी चांटा तक नहीं मारा साहब.’’
‘‘लेकिन गुलफ्शा का गला घोटा गया है. यह काम घर के लोगों का ही हो सकता है. कोई बाहर से तो उस का गला घोटने नहीं आ सकता. अब तुम सब सचसच बताओ, क्यों और किस कारण से गुलफ्शा का गला घोटा गया है?’’ खारी के स्वर में अभी भी सख्ती थी.
‘‘यह काम हम क्यों करेंगे साहब?’’ इस बार शमशीदा सामने आ कर रुआंसे स्वर में बोली, ‘‘हम अपनी ही बेटी को क्यों मारेंगे भला?’’
‘‘यह मालूम हो जाएगा तो बता दूंगा.’’ खारी ने कंधे झटके, ‘‘नन्हे, मुझे बताओ, गुलफ्शा की लाश तुम लोगों ने कब देखी?’’
‘‘साहब, सब से पहले गुलफ्शा की मृत लाश को मेरी बीवी ने देखा. वह गुसलखाने में जाने के लिए उठी तो इसे बेटी बाहर चारपाई पर मृत अवस्था में दिखाई दी. इस ने घर के बाकी लोगों को यह जानकारी दी तो रोनापीटना शुरू हो गया.’’
‘‘गुलफ्शा क्या बाहर ही सोई थी?’’ एसएचओ ने अलग प्रश्न किया.
‘‘नहीं साहब, वह मेरे साथ मेरे कमरे में सोती है. रात भी मेरे पास ही चारपाई पर सो रही थी.’’
‘‘फिर वह बाहर कैसे पहुंच गई?’’
‘‘यह हमारी भी समझ में नहीं आ रहा है साहब.’’ इस बार तौहीद आगे बढ़ आया’
‘‘क्या आप लोग मेनगेट खुला रख कर सोते हैं?’’
‘‘जी नहीं,’’ नन्हे तुरंत बोला, ‘‘रात को मैं ने खुद उसे बंद किया था साहब.’’
‘‘तब तो अंदर के किसी व्यक्ति ने यह दरवाजा खोल कर हत्यारे को अंदर बुलाया है और गुलफ्शा का कत्ल करवाया है.’’ एसएचओ ने अपना अनुमान व्यक्त किया.
श्री खारी ने अपना अंतिम और महत्त्वपूर्ण प्रश्न कर दिया, ‘‘नन्हे, अब एक बात बहुत ईमानदारी से बताना. क्या तुम्हारी बेटी का किसी के साथ कोई चक्कर चल रहा था?’’
‘‘छि:’’ नन्हे ने मुंह बिगाड़ा, ‘‘गुलफ्शा पाक खयालात की लड़की थी साहब.’’
गुलफ्शा की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने के बाद पुलिस टीम थाने की ओर लौट रही थी तो रास्ते से ही एसएचओ ने अपने उच्चाधिकारियों को इस हत्याकांड की सूचना दे दी.